पिछले अंकों की संपादकीय में मैंने अक्सर यह बात छेड़ी है कि जब भी कोई व्यक्ति या व्यवस्था न्यूनतम न्याय की अवहेलना कर निरंकुश होता है, तब-तब विनाश निश्चित होता है। मैंने पहले ही कहा था कि उच्चस्थ शनि देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था को परिपक्व कर चुका है साथ ही उच्चस्थ गुरू देश में उंचे राजनैतिक मानदंडों का पुनस्र्थापन कर रहे हैं। जो लोग भी लोकतंत्र के मूल्यों से परे जाकर जनहित के खिलाफ होकर या खास वर्ग के लिए या खास वर्ग का हित करने वाले राजनैतिक निर्णय लेते हैं तो उसे लोकतांत्रिक दण्ड भोगना पड़ता है। कांग्रेस शायद इस बात को समझ चुकी हो.., और बीजेपी समझने के दौर पर है। अरविंद केजरीवाल का अभी कसौटी पर कसा जाना शेष है। आगे जो भी लोकतंत्र की शुचिता के लिए प्रयास करेगा, लोक की जिंदगी को आसान बनाएगा यानि मंहगाई, भ्रष्टाचार, सामाजिक न्याय, सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराएगा वही देश पर राज करेगा। याद रहे देश के अस्सी प्रतिशत लोग कमजोर या अतिकमजोर तबके से हैं, वे किसी भी जाति, धर्म या संप्रदाय से हो सकते हैं। तीन प्रतिशत अत्यंत समृद्ध लोग हैं तथा लगभग सत्रह प्रतिशत समृद्ध लोग हैं। जब नीतियां तीन प्रतिशत के हित में बनेंगी या ये तीन प्रतिशत लोग ही नीतिनिर्माता होंगे और बकाया अस्सी प्रतिशत को अनदेखा करेंगे तो परिणाम यही होगा, जो बीते दिनों में दिल्ली में दिखाई पड़ा। राजनैतिक पार्टियों के लिए यह चिंतन का विषय है कि वे अपने आचार, व्यवहार एवं नीतियों की समीक्षा करें कि कौन सी नीति या कौन सा व्यवहार या कौन सा आचार, जनता को पसंद आया अथवा नहीं आया। और इससे भी बड़ी बात कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनैतिक सहिष्णुता की कमी भी नहीं होनी चाहिए। अर्थात लोक के द्वारा चुने गये लोग या पार्टियों को काम करने देना चाहिए। बहुत अधिक राजनैतिक साजिशें भी आपको जनता की नजरों में गिरा सकता है। हालाकि मोहब्बत और जंग में सब जायज है, ऐसा बुजुर्ग कहते हैं पर सच तो यह है कि मर्यादा का अतिक्रमण अंत में दु:खदायी ही होता है।
देश का लोकतंत्र अब अपने सबाब पर है, वह पौढ़ व परिपक्व हो चुका है। अब किसी भी गलती करने वाले व्यक्ति या राजनैतिक पार्टी के लिए यहां स्थान नहीं होगा। अवाम ऐसी व्यवस्था को उसका अंजाम दिखाना सीख चुकी है। हाल ही में दिल्ली चुनावों ने साफ कर दिया है कि जनता समझदार है, अब ज़ुबानी वादों पर ठगा जाना उसे मंजूर नहीं है। दिल्ली की जनता ने यह बता दिया है कि अगर आप जल्द ही परिणाम नहीं देंगे तो हमारा भरोसा भी किसी और के साथ जाता रहेगा। चूंकि हम हमेशा किसी मसीहा, किसी नायक के इंतजार में रहते हैं, जो हमारी परेशानियों को खत्म कर सके, अपने वादों पर खरा उतर सके और सच्चे मायने में जो सुशासन होता है, वह ला सके। दिल्ली ने पुराने नायक के स्थान पर नवागत नेतृत्व को चुन लिया है और बता दिया है कि सौ स्मार्ट सिटी और मैट्रो सुविधाओं से कहीं आगे उनकी कुछ बुनियादी सुविधाएं हैं जिनकी आज भी कमी है। भ्रष्टाचार, मंहगाई, बिजली, पानी, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दे कल भी प्रासंगिक थे और आज भी हैं। आसमानी वादों से जनता का भला कम और व्यवसायिक परिवारों का ज्यादा होता दिखाई पड़ता है। मैं जो न्यूनतम न्याय के अतिक्रमण की बात करता हूं वह यही न्यूनतम सुविधाएं हैं, जो अगर यहां की जनता को मुहैया हो पाएं तो वे उन्हें यानि राजनैतिज्ञों को सत्तासंपन्न बनाए रखेंगे। यानि नेतृत्व शायद बुनियादी सुविधाओं को छोड़कर समृद्धि के जो सपने दिखा रहा है वह लोगों को पसंद नहीं आया और परिणाम नेतृत्व चिंता में पड़ गया।
अब आने वाले दिनों में देखने लायक बात होगी कि केन्द्र में सत्तासीन नेता क्या निर्णय लेंगे? क्या नेतृत्व अपनी प्रतिष्ठा को फिर से पहले जितना बना पायेंगे? क्या दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री किसी प्रकार के गलती फिर से करने से बच पायेंगे? बहरहाल, जो भी हो। यह बात इन सभी को जान लेनी चाहिए कि समय की कचहरी का न्याय हमेशा बेरहम होता है। आपको चाहने वाले तब तक आपके साथ रहेंगे जब तक आप अपनी मर्यादाओं के अनुशासन पर खरे उतरते रहेंगे, अन्यथा पतन निश्चित होगा...। मतलब बहुत साफ है जो भी लक्ष्मण रेखा के अंदर रहेगा, वही सुरक्षित रहेगा। देखना यह है कि आगे क्या...?
Pt.P.S Tripathi
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देश का लोकतंत्र अब अपने सबाब पर है, वह पौढ़ व परिपक्व हो चुका है। अब किसी भी गलती करने वाले व्यक्ति या राजनैतिक पार्टी के लिए यहां स्थान नहीं होगा। अवाम ऐसी व्यवस्था को उसका अंजाम दिखाना सीख चुकी है। हाल ही में दिल्ली चुनावों ने साफ कर दिया है कि जनता समझदार है, अब ज़ुबानी वादों पर ठगा जाना उसे मंजूर नहीं है। दिल्ली की जनता ने यह बता दिया है कि अगर आप जल्द ही परिणाम नहीं देंगे तो हमारा भरोसा भी किसी और के साथ जाता रहेगा। चूंकि हम हमेशा किसी मसीहा, किसी नायक के इंतजार में रहते हैं, जो हमारी परेशानियों को खत्म कर सके, अपने वादों पर खरा उतर सके और सच्चे मायने में जो सुशासन होता है, वह ला सके। दिल्ली ने पुराने नायक के स्थान पर नवागत नेतृत्व को चुन लिया है और बता दिया है कि सौ स्मार्ट सिटी और मैट्रो सुविधाओं से कहीं आगे उनकी कुछ बुनियादी सुविधाएं हैं जिनकी आज भी कमी है। भ्रष्टाचार, मंहगाई, बिजली, पानी, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दे कल भी प्रासंगिक थे और आज भी हैं। आसमानी वादों से जनता का भला कम और व्यवसायिक परिवारों का ज्यादा होता दिखाई पड़ता है। मैं जो न्यूनतम न्याय के अतिक्रमण की बात करता हूं वह यही न्यूनतम सुविधाएं हैं, जो अगर यहां की जनता को मुहैया हो पाएं तो वे उन्हें यानि राजनैतिज्ञों को सत्तासंपन्न बनाए रखेंगे। यानि नेतृत्व शायद बुनियादी सुविधाओं को छोड़कर समृद्धि के जो सपने दिखा रहा है वह लोगों को पसंद नहीं आया और परिणाम नेतृत्व चिंता में पड़ गया।
अब आने वाले दिनों में देखने लायक बात होगी कि केन्द्र में सत्तासीन नेता क्या निर्णय लेंगे? क्या नेतृत्व अपनी प्रतिष्ठा को फिर से पहले जितना बना पायेंगे? क्या दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री किसी प्रकार के गलती फिर से करने से बच पायेंगे? बहरहाल, जो भी हो। यह बात इन सभी को जान लेनी चाहिए कि समय की कचहरी का न्याय हमेशा बेरहम होता है। आपको चाहने वाले तब तक आपके साथ रहेंगे जब तक आप अपनी मर्यादाओं के अनुशासन पर खरे उतरते रहेंगे, अन्यथा पतन निश्चित होगा...। मतलब बहुत साफ है जो भी लक्ष्मण रेखा के अंदर रहेगा, वही सुरक्षित रहेगा। देखना यह है कि आगे क्या...?
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