Sunday, 12 April 2015

मूलांक-2

अंक दो के सकारात्मक पहलू (Positive Traits of Life Number 2)
आपके नाम के हिज्जो के जोड़ का अंतिम अंक अगर दो आता है तब आपका नंबर दो बनेगा. अंक दो का प्रतिनिधित्व चंद्रमा करता है. आपके अंदर नेतृत्व की भावना का अभाव रह सकता है लेकिन आप समूह में काम करने वाले व्यक्ति होगें. अंक दो के प्रभाव से आप शांतिप्रिय व्यक्ति होगें, दूसरो को सहयोग देने वाले वाले होगे और सभी के साथ आपका मित्रतापूर्ण व्यवहार होगा.
आप मध्यस्थ की भूमिका बहुत ही अदभुत रुप से निभा सकते हैं इसलिए आप सदा दूसरो के झगड़े निपटाने का काम करते रहते हैं. आप कृपालु व्यक्ति होगे और आपके ऊपर आध्यात्मिकता का पूर्ण प्रभाव हो सकता है. आप समय्-समय पर धार्मिक क्रिया कलापो में भाग लेते रहेगें. आप वातावरण के अनुसार स्वयं को ढ़ालने की क्षमता रखते हैं. आप लोगो के मध्य समझौते कराने में निपुण तथा कूट्नीतिज्ञ हो सकते हैं. आप अपनी नीतियों तथा सदव्यवहार से मित्रो अथवा रिश्तेदारो के मध्य सुलह शांति कराने का काम कर सकते हैं.
अंक दो के नकारात्मक पहलू (Negative traits of Life number 2)-
अंक दो के प्रभाव से आप अत्यधिक भावुक होते हैं और आपकी भावनाएँ आपके हर फैसले में शामिल होती है. इन भावनाओ के अत्यधिक हावी होने से शीघ्र ही आपका दिल टूट जाता है. छोटी सी बात भी आपको व्याकुल कर देती है. आप स्वभाव से शर्मीले व्यक्तित्व के होते हैं और जल्दी से किसी से घुलते-मिलते नहीं है. अगर आपको अपने मनोनुकूल कोई बात ना लगे तब आप बहुत शीघ्र उदास हो जाते हैं. आपको अकेलापन बहुत खलता है इसलिए आप कभी अकेले रहना पसंद नहीं करते हैं. आपको किसी ना किसी का साथ अवश्य ही चाहिए होता है. आपकी एक कमी यह होती है कि आप शीघ्रता से निर्णय नहीं ले पाते हैं और बहुत ज्यादा बारीकियों में घुस जाते हैं इसलिए समय की बर्बादी ज्यादा करते हैं. आपकी एक कमी यह है कि आपको जब तक आपको प्रोत्साहित ना किया जाए तब तक आप कार्यक्षेत्र में तरक्की नहीं कर पाते हैं. जीवन में उन्नति के लिए आपको आश्वासनों की जरुरत पड़ती है अर्थात आपके आगे बढऩे के लिए किसी ना किसी को आपको तसल्ली और प्रोत्साहन देते रहना पड़ता है.
अंक दो के संभावित व्यवसाय (Possible Business or Profession related to Life Number 2)-
अंक दो के प्रभाव से आप बहुत ही अच्छे अनुयायी होते हैं बजाय नेतागिरी करने के. इसलिए आप उन्हीं क्षेत्रों में ज्यादा तरक्की कर सकते हैं जहाँ सभी के साथ मिलकर काम होता हो. अंक दो के प्रभाव से आप इलेक्ट्रोनिक्स के क्षेत्र जैसे रेडियो, टेलीविजिन आदि में जा सकते हैं. आप दवाईयो से संबंधित क्षेत्र जैशे मेडिसिन, फार्मेसी, लैबोरेटरी आदि में भी जा सकते हैं.
आप टेक्नीशियन हो सकते हैं, अध्यापन कार्य अथवा बैंक में कार्य कर सकते हैं. आप संगीत, कला, म्यूजियम अथवा डिजाईनिंग में जा सकते हैं. आप एक अच्छे सलाहकार हो सकते हैं इसलिए आपको ?से क्षेत्रों में व्यवसाय का चुनाव करना चाहिए जहाँ सलाहकारो की नियुक्ति की जाती हो. जिन क्षेत्रों में सेवाओं की आवश्यकता होती है वहाँ भी आप कामयाब हो सकते हैं जैसे - नर्सिंग, बुक कीपर, सेक्रेटरी, होस्टेस आदि. ?से क्षेत्र जहाँ एकता और सदभावना की आवश्यकता हो तब अंक दो को जाना चाहिए क्योकि आप अपने अच्छे स्वभाव से लोगो के मध्य एकता बनाए रखने में कामयाब रहते हैं.
अंक दो का निजी जीवन (Personal life of people of Life number 2)
अंक दो के प्रभाव में जो भी व्यक्ति आएगा उसे भरपूर ममता अंक दो से प्रापत होगी. सभी पर प्यार तथा दुलार लुटाना अंक एक का स्वभाव होता है. इसलिए आपके प्रभाव में आकर आपके मित्र अथवा रिश्तेदार अपने दुख भूल जाते हैं. यदि कभी कोई अनजान भी आपसे मिलता है तब वह भी आपकी छत्रछाया में बहुत ही आनंद का अनुभव करेगा. आप बहुत ही अच्छे जीवनसाथी बनते है, आप अपनी संतान के प्रति समर्पित पिता अथवा माता बनते हैं और आप अपनी गृहस्थी को चलाने में बहुत ही निपुण होगे.
आपके आसपास के लोग आपको बहुत पसंद करेगें क्योकि आप सदा सभी का आदर मान करते हैं और बुरी बातो से दूर रहते हैं. कभी - कभी अत्यधिक भावुक होने से आप बहुत शीघ्र परेशान भी हो जाते हैं. आपको सौहार्दपूर्ण वातावरण में ही रहना चाहिए. जीवन में आपकी अपनी तरक्की के लिए आपको प्यार मिलते रहना बहुत जरुरी है. आप अपने सामाजिक जीवन में सभी के चहेते हो सकते हैं. आपको कभी अगर अकेला रहने पड़ जाए तब आपके विचार बहुत ही नकारात्मक हो सकते हैं इसलिए आपके जीवन में प्यार बहुत ही महत्व रखता है.

क्या करें ? जब शनि सताये

मतौर पर वैदिक ज्योतिष में जब ग्रह कमजोर या अशुभ स्थिति (Debilitated and inaspicious position of planets) )मे होते है तब उनका उपाय किया जाता है।परन्तु लाल किताब के अनुसार ग्रह चाहे शुभ स्थिति में हो या अशुभ उसका उपाय करने से जहाँ उसके फल में स्थायित्व रहता ((Result intact in Lal Kitab) है, वही दूसरी तरफ अशुभ ग्रह का उपाय करने से उसके विपरीत प्रभाव में कमी आती है।
कुण्डली में शनि जिस भाव में है उस भाव के अनुसार हमें किस प्रकार का उपाय करना चाहिए, यहां लाल किताब के सिद्धान्तों के अनुसार हम इसे जानने की कोशिश करेंगे।
ठ्ठ आपके लिए लाल किताब कुंडली एवं उपचार रिपोर्ट - - Lal Kitab Remedies.
ठ्ठ आपकी कुण्डली में शनि प्रथम भाव में स्थित हों तो आपको इस प्रकार के उपाय करने चाहिए। (Remedies of Saturn in first house)
1) जमीन पर तेल गिराएं.
2) 48वर्ष की आयु तक मकान न बनाएं.
3) रूके हुये पानी में काला सुरमा दबाएं.
4) बन्दर पालें.
5) मांगने वाले को लोहे की अगींठी, तवा, चिमटा इत्यादि दान में दें.
6) वट बृक्ष की पेड़ की जड़ में दूध डालकर उसकी गीली मिट्टी का तिलक माथे पर लगाएं.
ठ्ठ द्वितीय भाव में स्थित शनि के उपाय
(Remedies of Saturn in second house)
1) भूरे रंग की भेंस पालें.
2) साँप को दूध पिलाएं.
3) मन्दिर में उड़द काली मिर्च, काले चने व चन्दन की लकडी दान में दें.
4) प्रतिदिन मन्दिर में दर्शन करें.
ठ्ठ तृतीय भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in third house)
1) अलग-अलग रंग के (सफेद, लाल, काला, ) तीन कुत्ते पालें.
2) मकान की दहलीज में लोहे की कील लगाएं.
ठ्ठ चतुर्थ भाव में स्थित शनी के उपाय (Remedies of Saturn in fourth house)
1) साँप को दूध पिलाएं.
2) मछ्ली को चावल, दाना आदी डालें
3) डा़क्टरी का कार्य करें और इलाज के तौर खुश्क दवा दें.
4) रात को दूध न पिये.
5) श्रमिक वर्ग से अच्छे सम्बन्ध बनाकर रखें.
6) भैस पालें.
7) दवाईयों व्यापार करें.
ठ्ठ पंचम भाव में स्थित शनी के उपाय(Remedies of Saturn in fifth house)
1) 48वर्ष आयु से पहले मकान न वनाएं.
2) मन्दिर में बादाम चढाए़ व उनमें से आधे वाप़स लाकर घरमें रखें.
3) पुत्र के जन्म दिन पर मिठाई न बाटें.
4) कुत्ता पालें.
5) काले सुरमें को बहते जल में प्रवाहित करें.
ठ्ठ छटे भाव में स्थित शनि के उपाय(Remedies of Saturn in si&th house)
1) भूरे व काले रंग का कुत्ता पालें.
2) सरसो का तेल मिट्टी या शीशी के बर्तन में बन्द करके तालाब के पानी के अन्दर दबाएं.
3) साँप को दूध पिलाएं.
4) रात के समय किया गया काम लाभदायक होगा.
ठ्ठ सप्तम भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in seventh house)
1) 22 वर्ष की आयु से पहले विवाह न करें.
2) देशी खाण्ड मिटटी के बर्तन में भरकर श्मशान में दवाएं.
3) किसी भी रिश्तेदार से साझें में कार्य न करें.
4) पत्नी की सलाह से काम करें.
ठ्ठ अष्टम भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in eighth house)
1) शराब, अण्डे, मांस से परहेज करें.
2) मकान न खरीदें.
3) भारी मशीनरी का व्यबसाय न करें.
4) लोहे की अंगीठी, तवा, चिमटा आदि दान करें.
5) भूमि पर नगें पाँव ना चलें.
6) सवा आठ किलो साबुत उड़त वहते पानी में प्रवाहित करें.
ठ्ठ नवम भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in ninth house)
1) शराब, अण्डा, मांस का सेवन ना करें.
2) वहते पानी में चावल प्रवाहित करें.
3) पिता, दादा के साथ रहें.
4) बूढे ब्राह्मण को बृहस्पति की वस्तुएँ दान करें .
5) छत पर ईंधन (चूल्हा) न जलाएँ.
6) सोना, चांदी व कपड़े का व्यबसाय लाभ देगा.
ठ्ठ द्शम भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in tenth house)
1) रात को दूध ना पिये.
2) सिर ढक कर रखें .
3) दस अन्धों को भोजन करायें.
4) शराब, अण्डा, मांस का सेवन ना करें.5) मन्दिर में दर्शन हेतु जाते रहें.
ठ्ठ एकादश भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in eleventh house)
1) शराब, अण्डा, मांस का सेवन ना करें.
2) 48वर्ष आयु के पश्चात मकान बना?ं.
3) जमीन पर तेल गिरा?ं.
4) मकान में दक्षिण दिशा की ओर दरवाजा ना रखें.
5) शुभ काम करने से पहले मिट्टी का घडा़ पानी से भरकर रखें.
ठ्ठ द्वादश भाव में स्थित शनि के उपाय (Remedies of Saturn in twelveth house)
1) झूठ बोलने से बचे.
2) मकान की पिछली दीवार में रोशनदान ना बनाएं.
3) शराब, अण्डा, मांस से परहेज करें.
4) धर्म, कर्म करते रहें.
ठ्ठ लाल किताब के अनुसार शनि के उपरोक्त उपाय (Remedies of Saturn in Lal Kitab) करने से तुरन्त लाभ मिलता हैं.
ध्यान रखें:
1) एक समय में केवल एक ही उपाय करें.
2) उपाय कम से कम 40 दिन या 43 दिनो तक करें.
3) उपाय में नागा ना करें यदि किसी कारणवश नागा हो तो उपाय फिर से प्रारम्भ करें.
4) उपाय सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक करें.
5) उपाय खून का रिश्तेदार ( भाई, पिता, पुत्र इत्यादि) भी कर सकता है.

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हेल्थ डायरी से स्वस्थ जीवन शैली अपनाएँ


अगर आपकी उम्र 20 की है तो आप अपनी हेल्थ डायरी में आपको बचपन और किशोरावस्था के दौरान लगे टीकों के बारे में भी लिख सकते हैं। 30 साल के होने पर अपनी डाइट में किए बदलाव के बारे में लिखें। इस हेल्थ डायरी में आपने यदि अपनी कोई आदत, जैसे धूम्रपान करना छोड़ी हो, तो उसे भी जरूर लिखें। 40 में प्रवेश करने पर अपने सभी हेल्थ चेक-अप के बारे में लिखें कि आपने अंतिम बार कब कौन-सा चेकअप करवाया था।
इस डायरी का एक फायदा यह भी है कि जिन दवाइयों से आपको एलर्जी है, डॉ. आपको उन्हें लेने का सुझाव नहीं देंगे। एक वरिष्ठ डॉक्टर बताते हैं कि एक बार एक पेशेंट मेरे पास त्वचा संबंधी किसी रोग के लिए आए और उन्होंने मुझे अपनी हेल्थ डायरी दिखाई जिससे मुझे पता चला कि उन्हें ग्लूटन इंनटोलरेंस की समस्या हो चुकी है। इससे मुझे उनकी समस्या का पता लगाने में आसानी हुई। यह पता चला कि यह त्वचा संबंधी समस्या उन्हें भोजन से एलर्जी के कारण हुई है। वे कहते हैं कि हेल्थ डायरी से आपके शारीरिक व्यवहार को पहचानना आसान हो जाता है।
डॉक्टर कहते हैं कि लोग अक्सर कुछ समय बाद प्रिस्क्रिप्शन गँवा देते हैं या
फेंक देते हैं लेकिन लोगों को डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन भी फाइल करके रखना चाहिए और हेल्थ डायरी भी बनाना चाहिए। इस डायरी को रोज अपडेट करने की जरूरत भी नहीं है। आप जब भी मेडिकल चेक-अप कराएँ या डाइट में कोई फेरबदल करें, तब लिख दें। हेल्थ डायरी की मदद से आप अपने मेडिकल प्रोफाइल को भी याद रख सकेंगे। बहुत से लोगों से पूछा जाता कि आपको अंतिम बार कब ब्लड प्रेशर की समस्या हुई थी तो वे बता नहीं पाते हैं। यह समस्या 10 या 15 साल पुरानी भी हो सकती है।
अगर आपने इसे हेल्थ डायरी में लिखा हुआ हो तो आप आसानी से बता सकते हैं। इस हेल्थ डायरी में आपको मेडिकल की विशिष्ट शब्दावली में लिखने की जरूरत नहीं है। इसे आप साधारण भाषा में ही लिखें, जिसे
आप आसानी से समझ सकें। इस डायरी में अधिक विस्तार से लिखने की भी जरूरत नहीं है। तो फिर देर किस बात की? आज ही बना डालिए अपनी हेल्थ डायरी!
रखें इस बातों का ध्यान:
* कहीं भी बाहर से घर आने के बाद, किसी बाहरी वस्तु को हाथ लगाने के बाद, खाना बनाने से पहले, खाने से पहले, खाने के बाद और बाथरूम का उपयोग करने के बाद हाथों को अच्छी तरह साबुन से धोएं। यदि आपके घर में कोई छोटा बच्चा है तब तो यह और भी जरूरी हो जाता है। उसे हाथ लगाने से पहले अपने हाथ अच्छे से जरूर धोएं।
* घर में सफाई पर खास ध्यान दें, विशेषकर रसोई तथा शौचालयों पर। पानी को कहीं भी इक_ा न होने दें। सिंक, वॉश बेसिन आदि जैसी जगहों पर नियमित रूप से सफाई करें तथा फिनाइल, फ्लोर क्लीनर आदि का उपयोग करती रहें। खाने की किसी भी वस्तु को खुला न छोड़ें। कच्चे और पके हुए खाने को अलग-अलग रखें। खाना पकाने तथा खाने के लिए उपयोग में आने वाले बर्तनों, फ्रिज, ओवन आदि को भी साफ रखें। कभी भी गीले बर्तनों को रैक में नहीं रखें, न ही बिना सूखे डिब्बों के ढक्कन लगाकर रखें।
हेल्थ डायरी बनांए, नियमित जीवनशैली अपनाएं
अक्सर लोग अपने खर्चों का बाकायदा डायरी में हिसाब रखते हैं। कुछ लोग पर्सनल डायरी बनाते हैं। तो इन्हीं के साथ अब आप एक हेल्थ डायरी भी बना लीजिए। इस डायरी में आप अपनी हेल्थ का हिसाब रख सकते हैं जैसे कि आप कब बीमार हुए थे, आपको क्या बीमारी हुई थी, आपके परिवार में कौन-सी बीमारियां अनुवांशिक हैं, आपको व परिवार के सदस्यों को कौन-सी दवाइयों से एलर्जी हैं, खाने की कौन-सी चीज आप पचा नहीं पाते हैं। इस तरह की तमाम बातें आप अपनी हेल्थ डायरी में दर्ज कर सकते हैं। करें।
* कोई भी एक व्यायाम रोज जरूर करें। इसके लिए रोजाना कम से कम आधा घंटा दें और व्यायाम के तरीके बदलते रहें, जैसे कभी एयरोबिक्स करें तो कभी सिर्फ तेज चलें। अगर किसी भी चीज के लिए वक्त नहीं निकाल पा रहे तो दफ्तर या घर की सीढिय़ां चढऩे और तेज चलने का लक्ष्य रखें। कोशिश करें कि दफ्तर में भी आपको बहुत देर तक एक ही पोजीशन में न बैठा रहना पड़े।
* 45 की उम्र के बाद अपना रूटीन चेकअप करवाते रहें और यदि डॉक्टर आपको कोई औषधि देता है तो उसे नियमित लें। प्रकृति के करीब रहने का समय जरूर निकालें। बच्चों के साथ खेलें, अपने पालतू जानवर के साथ दौड़ें और परिवार के साथ हल्के-फुल्के मनोरंजन का भी समय निकालें।

अच्छी हेल्थ के लिए ज्योतिषी निदान

लग्र, पंचम, नवम, दशमादि भाव के स्वामियों को देखकर, अपना डाईट चार्ट बनाएं। अर्थात अपनी प्रकृति के अनुकूल आहार-विहार अपनाएं। यदि आपके जन्मांग में राहु लग्रस्थ हों, तो भूल कर भी खट्टे एवं ठंडे खाद्य पदार्थों का सेवन न करें। यदि लग्रस्थ शनि कुभ राशि को छोड़कर हो तो इत्र, धूल, धुंए से खुद को बचाएं। यदि आपका जन्म लग्र मेष या कर्क हो, तो ओवर-ईटिंग से बचें। यदि लग्र में शुक्र हो तो स्किन एलर्जी संभव, कॉस्मेटिक का उपयोग संभल कर करें। नीचस्थ मंगल और नीचस्थ शनि आपको एलर्जी दे सकते हैं तो अपनी डायरी में एलर्जेंट्स का जिक्र रखें। यदि तृतीयेश अष्टम हों, तेा ड्रिंक और स्मोक पर नियंत्रण रखें। यदि दशमेश यदि छंठें ,आंठवें या बारहवें हों, तो समझ लें कि ईश्वर ने आपको कम खाने, गम खाने के लिए पैदा किया है। तो तीक्ष-रुक्ष-विदाही यानि तीखा, सूखा और मसालेदार खाने से परहेज करें। शुक्र का अंतर हो तो लिपिड प्रोफाईल कराएं और कॉलेस्ट्राल अधिक हो तो दवा के साथ वर्क आउट करें। राहु का अंतर हो और आपका वजन बढ़ रहा हो या मेजर हारमोनल प्रोब्लम्स आ रही हों तो फोरन डॉक्टर की सलाह लें और वर्कआउट करें। बुध की दशा में किसी भी प्रकार के व्यसन से बचे रहें। और जिन दशाओं में आप को शारीरिक बाधाएं दिख रही हों, विद्वान आचार्यों के देख रेख में उन ग्रहों की शांति कराएं। अपनी हेल्थ डायरी मेंटेन करें और नियमित जीवन चर्या अपनाएं।


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साजिश और केजरीवाल

आम आदमी के अंतर्मन पर बहुत कम समय में अपना असर छोडऩे वाले पार्टी के मुखिया एवं दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की राशि और लग्न दोनों वृषभ है। लग्न का चंद्रमा जहां इनके व्यक्तित्व को आकर्षक बना रहा है वहीं मित्र सूर्य के घर में बैठा बुध इन्हें बेहतर वक्तृत्व शैली भी प्रदान कर रहा है। बुध के साथ-साथ स्वगृही सूर्य की उपस्थिति बुद्धादित्य नामक राजयोग निर्मित करते हैं तथा लाभ स्थान के राहु ने इनके लिए एक नई जगमगाती कथा लिखी। इसी राहू ने इन्हें पद और प्रतिष्ठा के काबिल बनाया।
पराक्रम भाव में आसीन मंगल जहां इन्हें पराक्रमी और पुरुषार्थी बना रहा है वहीं इन्हें जुनून भी प्रदान कर रहा है। वर्तमान में इनकी बृहस्पति की महादशा में शुक्र का अंतर चल रहा है जो इनके लिए लाभ के बड़े द्वार खोल रहा है।
अब एक नजर उनके जीवन पर डालें तो मंगल में केतु की दशा में उन्होंन १९८९ में आई.आई.टी. किया तथा राहु में शनि के अंतर में १९९२ में वे आई.आर.एस. में आ गए। यहां आकर उन्होंने भ्रष्टाचार देखा। २००० में राहु में शुक्र का अंतर चल रहा था, उस समय उन्होंने छुट्टी ले ली और नागरिक आंदोलन, परिवर्तन की शुरूआत की। और जब फरवरी २००६ में जब गुरू में राहु का प्रत्यंतर चल रहा था तब उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। इस समय अरुणा राय और इनके प्रयास से आर.टी.आई. का कानून संसद में पास कर दिया गया। ६ फरवरी २००७ जब गुरू में शनि का अंतर चल रहा था तो लोग २००६ के लिए लोक-सेवा में सीएनएन-आईबीएन ''इस वर्ष का भारतीय INDIAN OF THE YEAR नामित किया गया। गुरू में शुक्र का अंतर प्रारंभ हुआ जून २०१२ से, यहीं से उन्होंने अन्ना के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल बिल के लिए बड़ा आंदोलन किया जिसे आगे चलकर अगस्त क्रान्ति का नाम दिया गया। परन्तु इस आंदोलन में बड़ी राजनैतिक पार्टियों का सहयोग नहीं मिला और यहीं पर शुक्र की अंतरदशा में ही अपने राजनैतिक कैरियर की शुरूआत की और 'आप पार्टी की स्थापना की और दिल्ली विधान सभा में २८ सीटें जीतकर देश की राजनीति में खलबली मचा दी।
6नवंबर, 2013 से आरंभ शुक्र के अंतर में चंद्रमा के प्रत्यंतर ने अरविंद केजरीवाल के लिए सफलता के द्वार पर नए तोरन बांधे। पर, 16मार्च, 2014 से शनि का प्रत्यंतर शुभता में कुछ अशुभ रंग का समावेश भी समावेश कर रहा है। यह काल साजिशों के नए समीकरण रचता हुआ नजर आ रहा है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी पांच महीने बेहतर नहीं नजर आ रहे।
बृहस्पति में शुक्र की अंतर्दशा जहां अरविंद को नई उड़ान दे रही है वहीं 28फरवरी 2015 से प्रारंभ होने वाली सूर्य की अंतर्दशा उन्हें नए पंख प्रदान करेगी। सूर्य की अंतर्दशा उन्हें जरूर बड़ा पद या हैसियत प्रदान करेगी। बड़े-बड़े दिग्गजों को बेचारा बना देने वाले अरविंद केजरीवाल आगे भी अनेक खास को आम बना देने का कौशल दिखाते रहेंगे।
3 नवंबर 2014 को शनि का वृश्चिक में प्रवेश अगले ढाई वर्षों में कभी भी अरविंद को स्वास्थ्य समस्याएं दे सकता है। इन पर नए-नए आरोप लगेंगे। पर, हर आरोप इन्हें नई ऊंचाई पर ले जाता नजर आएगा।
पुरुषार्थ के मंगल और नए-नए आरोपों की मदद से एक आम आदमी अरविंद केजरीवाल एक महानायक का रूप अख्तियार कर लेगा पर मार्च 2014 से अगस्त 2014 तक का काल कुछ निराशा के बीज बो सकता है।

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बाहरी धर्म कर्मकांड है भीतरी धर्म अध्यात्म

धर्म और अध्यात्म अलग-अलग हैं या एक? इनका आपस में क्या रिश्ता है? रिलीजन एक इटालियन शब्द है, जिसका अर्थ है वह चीज जो हमें प्रभु के साथ जोड़े। धर्म के दो पहलू हैं -एक बाहरी और एक अंदरूनी। अंदरूनी पहलू, रूहानी पहलू है। यह अध्यात्म है। अंदरूनी लक्ष्य सबका एक ही है -कि कैसे हम परमेश्वर से मिलें। और जो बाहरी पहलू है जिसमें हम कर्मकांड करते हैं -वो सबका अलग-अलग है। लोग इसे ही धर्म या संप्रदाय कहते हैं। मूल रूप से धर्म और अध्यात्म दोनों जुड़े हुए हैं। लेकिन हम लोग अक्सर सिर्फ बाहर की चीजों में उलझ कर रह जाते हैं, अंदर क्या है उसको भूल जाते हैं। और इससे कई कर्म कांड शुरू हो जाते हैं।
एक कहानी सुनाता हूं। एक स्वामी जी थे, जो एक धर्म स्थान के पास सत्संग किया करते थे। जब सत्संग किया करते थे तो एक बिल्ली वहां आकर शोर मचाती थी। स्वामी जी ने सब सेवादारों से कहा कि बिल्ली को दूर बांधकर आया करो, तो उन्होंने बिल्ली को दूर बांधना शुरू कर दिया, ताकि सत्संग के वक्त शोर न हो। जैसे समय गुजरा उन स्वामी जी मृत्यु हो गई। एक नए स्वामी जी आ गए, वे भी पहले वाले स्वामी जी की ही तरह पूजा-पाठ और सत्संग करने लगे। कुछ समय बाद पुराने वाले सेवादारों की भी मृत्यु हो गई। तो अब नए सेवादार आ गए। इसके कुछ समय बाद बिल्ली की भी मौत हो गई। तब उन्होंने नई बिल्ली लाकर बांधनी शुरू कर दी। क्योंकि उन्हें लगा कि इतने समय से बिल्ली बांधी जाती थी। जरूर इसका कोई धार्मिक महात्म्य होगा। जब तक बिल्ली नहीं बंधेगी, तब तक भला सत्संग कैसे शुरू होगा। तो कर्म कांड ऐसे ही बनते हैं। हम भूल जाते हैं कि कारण क्या था, आंख पर पट्टी बांधकर हम उन्हें करते रहते हैं। हमें जानना चाहिए कि उसके पीछे उद्देश्य क्या है। अध्यात्म अनुकरण नहीं है, वो धर्म या विश्वास को अनुभव करना है। यह नहीं कि आंखें बंद करके किए जाओ। लेकिन हम सोचते हैं कि हमने अगरबत्ती जला दी, घंटी बजा दी, और काम हो गया। जब सभी धर्म एक ही बात कहते हैं, तो विभिन्न धर्मों के बीच इतनी लड़ाई क्यों होती है? हम विभिन्नता से इतने भयभीत क्यों रहते हैं?
क्योंकि हम सिर्फ अपनी समझ और अपने विचारों को ही ठीक मानते हैं। हम सोचते हैं कि जो कुछ हमने सोच लिया, जो हमने कह दिया या कर दिया वही ठीक है, बाकी सब गलत हैं। अलग - अलग संस्कृतियां हैं, अलग -अलग तरीके हैं, अलग-अलग सोच है। हम ये समझ नहीं पाते कि अपने आराध्य की पूजा कई तरीकों से की जा सकती है।
इसीलिए जब शांत अवस्था में बैठेंगे, अंतर में प्रभु के साथ जुड़ेंगें तो हमें यह विश्वास हो जाएगा कि सब एक हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारी चमड़ी का रंग क्या है , कि हम पढ़े-लिखे कितने हैं , या हमारे पासकितना पैसा है। या हम पूर्व में मुंह कर के प्रार्थना करते हैं या पश्चिम में मुंह कर के।
दूसरों के बारे अज्ञानता अथवा उन्हें पूरी तरह न समझ पाने के कारण कई मुश्किलें पैदा होती हैं। इसलिए सबसे जरूरी है कि हम कुछ समय दूसरों को जानने-समझने के लिए दें। अगर हम समय निकालेंगे, समझने की कोशिश करेंगे तो पाएंगे कि सभी धर्मों की बुनियाद तो एक ही है। और जब एक बार इंसान को अनुभव हो जाएतो फिर उसकी तरफ से सबकी ओर सिर्फं प्यार ही जाता है, खिंचाव नहीं।

वसंत पंचमी

वसंत पंचमी वा श्रीपंचमी एक हिन्दू त्योहार है, इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कइ राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।
प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
बसन्त पंचमी कथा
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य
योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है- प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु। अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूँ भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है। पतंगबाज़ी का वसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा।
देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है- प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु। अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूँ भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है। पतंगबाज़ी का वसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा।
पर्व का महत्व
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
पौराणिक महत्व
इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दंडकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे झूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान
है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।
ऐतिहासिक महत्व
वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं।
इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान॥
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले उध्दार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिश्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था। 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गोमांस ठूंस दिया। यह सुनकर गुरू रामसिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अत: युध्द का पासा पलट गया।
इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18को अगले दिन फांसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।

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कृष्णमूर्ति पद्धति

भौतिक जगत की तरह मानव ने अध्यात्म और दर्शन में भी कई महत्वपूर्ण अनुसंधान किये हैं। अध्यात्म और दर्शन से ही जुड़ा हुआ विषय है ज्योतिष। मानव के अनुसंधानात्मक प्रवृति से ज्योतिष भी अछूता नहीं रहा है। ज्योतिषशास्त्रियों ने अपने ज्ञान और अनुसंधान से इसमें कई नई चीजों को शामिल किया है।
भारतीय ज्योतिष परम्परा में वैदिक ज्योतिष को सबसे प्रमाणिक माना जाता है परंतु, वैदिक ज्योतिष को गहराई से समझ पाना कठिन है अत: ज्योतिष को सरल बनाने हेतु कुछ ज्योतिषशास्त्रियों ने ज्योतिष की अलग विधा को भी जन्म देने का प्रयास किया। ज्योतिष की ऐसी विधाओं मे से एक है कृष्णमूर्ति पद्धति। इस पद्धति की खोज 20वीं सदी में दक्षिण भारत में हुई, इस पद्धति के जन्मदाता महान ज्योतिषशास्त्री कृष्णमूर्ति महोदय थे।
कृष्णमूर्ति पद्धति का प्रयोग प्रश्न कुण्डली (Methods of Krishnamurthy on prashna kundli) के अन्तर्गत किया जाता है। इस पद्धति से फलादेश (Prediction) करते समय लग्न का निर्धारण अंकों से किया जाता है । कृष्णमूर्ति महोदय की इस पद्धति में 1से लेकर 249 अंकों को शामिल किया गया है जिनसे लग्न तैयार किया जाता है। कृष्णमूर्ति महोदय के इस ज्योतिष पद्धति में सभी बारह राशियों (Twelve signs) को पहले उप विभाग फिर उसके भी उप अर्थात उप-उप (Sub-Sub) भागों में विभाजित किया गया है। इन उपविभागों को 1 से लेकर 249 तक के अंक प्रदान किये गये हैं।
इस पद्धति के अन्तर्गत जब आप ज्योतिषी महोदय के पास अपना प्रश्न लेकर उपस्थित होते हैं तब वे आपसे 1 से 249 तक के अंकों में से अपनी पसंद के अनुसार कोई अंक चुनने के लिए कहते हैं। आप जो अंक चुनते हैं या बताते हैं उस अंक से आपकी कुण्डली में लग्न का निर्धारित किया जाता (Numbers detremine the ascendant) है। अन्य ग्रहों को इस पद्धति में भी उसी प्रकार स्थापित किया जाता है जैसे कि वैदिक ज्योतिष में किया जाता है।
वैदिक जन्म कुण्डली से यहां हम कृष्णमूर्ति पद्धति की विवेचना करें तो पाते हैं कि कृष्णमूर्ति पद्धति में जहां लग्न निर्धारण का आधार अंक हैं वहीं वैदिक जन्म कुण्डली में जन्म समय को आधार माना जाता है, जन्म समय से ही ज्ञात किया जाता है कि आपके जन्म के समय आकाश में कौन से लग्न उदित था और वह कितने अंशों पर था।
वैदिक ज्योतिष एवं कृष्णमूर्ति पद्धति में एक अंतर यह भी हैं कि कृष्णमूर्ति पद्धति में नक्षत्रों को प्रमुखता (Krishnamurthy's importance on nakshatra) दी गई है। कृष्णमूर्ति पद्धति में नक्षत्रों को आधार मानकर फलादेश (Prediction on the basis of nakshatra) किया जाता है, जबकि वैदिक ज्योतिष में इन 27 नक्षत्रों (27 nakshatras in vedic astrology) को गौण स्थान दिया गया है।
वैदिक ज्योतिष में जिन नवग्रहों को प्रमुखता (Importance on nine planets in vedic astrology) प्राप्त है उन नवग्रहों को कृष्णमूर्ति महोदय गौण स्थान देते हैं। कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार एक राशि को उप-उप स्तर तक विभाजित करके जो नक्षत्र भागेश (Lord of destiny) आता है उसी से प्रश्न कुण्डली का फलादेश (prediction of prashna kundli) आता है।
ज्योतिषशास्त्रियों का मानना है कि कृष्णमूर्ति महोदय ने ये विभाजन विंशोत्तरी दशा पद्धति के (Vinshottari dasha method) आधार पर किया है। विंशोत्तरी दशा (Vinshottari dasha) में जिस तरह महादशा-अन्तर्दशा एवं प्रत्यन्तरदशा (Mahadasha-antardasha and pratyantar dasha) आता है उसी प्रकार कृष्णमूर्ति ने राशिपति-नक्षत्रपति (Lord of sign and Lord of nakshatra) एवं नक्षत्र भागेश (Lord of destiny) के क्रम को लिया है।
ज्योतिष मर्मज्ञ बताते हैं कि जो लोग नई नई खोज में लगे रहते हैं तथा जिनका नए नए तथ्यों पर अनुसंधान करने का स्वभाव है उनके लिए कृष्णमूर्ति पद्धति पर कार्य करना सन्तोषप्रद रहता है। इससे ज्योतिष की प्रगति में सहायता मिलती है।

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