Wednesday, 6 May 2015

सकारात्मक सोच आपको बदल सकता है

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सोच भला तो हो भला -

यजुर्वेद तथा भगवदगीता के अनुसार हमारा व्यवहार, विचार, भोजन और जीवनषैली तीन चीजों पर आधारित होती है वह है सत्व, तमस और राजस। सात्विक विचारों वाला व्यक्ति निष्चित स्वभाव का होता है जोकि उसे सृजनषील बनाता है वहीं राजसी विचारों वाला व्यक्ति महत्वाकांक्षी होता है जोकि स्वभाव में लालच भी देता है तथा तामसी व्यवहार वाला व्यक्ति नाकारात्मक विचारों वाला होने पर गलत कार्यो की ओर अग्रसर हो सकता है। मानव व्यवहार मूल रूप से राजसी और तामसी प्रवृत्ति का होता है, जिसके कारण जीवन में नाकारात्मक उर्जा बढ़ती है, जिससे साकारात्मक बनाने हेतु पुराणों में व्रत तथा उपवास पर जोर दिया गया है। मानव जीवन में व्रत की उपयोगिता वैदिक काल से जारी है। जिसका आधार होता है कि उपवास पाॅच ज्ञानेंद्रियों और पाॅच कर्मेद्रिंयों पर नियंत्रण करता है। अनुषासित बनाने तथा मन को आध्यामिक प्रवृत्ति की ओर अग्रसर करने हेतु उपवास तथा मंत्र जीवन में साकारात्मक दिषा देता है। उपवास जीवन में मानसिक शुद्धिकरण के अलावा शारीरिक शुद्धि हेतु भी सहायक होता है चूॅकि उपवास के दौरान अनुष्ठान करने की परंपरा भी है अतः अनुष्ठान के दौरान किया जाना वाला जाप, ध्यान, सत्संग, दान शारीरिक शुद्धता के लिए भी कार्य करती है। भोग लगाने वाले पदार्थ जैसे फल, मेवा, दूध, धी आदि का सेवन भी सात्विक गुणों को बढ़ता है।


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मैनेजमेंट में कैरिअर कैसे बनाएँ जाने ज्योतिष द्वारा

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मैनेजमेंट में कैरिअर कैसे बनाएँ जाने ज्योतिष द्वारा

इस वैष्वीकयुग में अनेक प्रकार के व्यवसायिक प्रतिष्ठान तथा कंपनियाॅ कार्य कर रहीं हैं। अब देष में ही बैठकर विदेषी कंपनियों में सर्विस प्राप्त करने के चांस उपलब्ध हैं। हर कंपनी में मार्केटिंग मैनेजमेंट, फायनेंस मैनेजमेंट, ह्मेन रिसोर्स मैनेजमेंट, एड मैनेजमेंट, कंसल्टेंसी, टूरिज्म के साथ कई अनेक क्षेत्र मैनेजमेंट हेतु खुले हुए हैं, जिसमें कार्य तथा वेतन का स्तर लुभावना होता है। आज का हर युवा तथा परिवार चाहता है कि अच्छी आय तथा जीवन सुखपूर्वक हो। किसी जातक के जीवन में आय तथा बहुराष्टीय कंपनी में कार्य हेतु कितनी संभावना है इसका पता आपके मैनेजमेंट संबंधी षिक्षा की संभावना से जाना जा सकता है। एमबीए की षिक्षा हेतु ज्योतिषीय गणना में कुंडली कके लग्न या लग्नेष, तृतीयेष, पंचम या पंचमेष, गुरू तथा प्रबंध का कारक बुध तथा इन सभी का संबंध व्यक्ति के एमबीए में सफलता तथा क्षेत्र को दर्षाता है। यदि गुरू तथा बुध का संबंध या दृष्टि संबंध लाभभाव से बन रहा हो तो जातक फायनेंस से संबंधित क्षेत्र में एमबीए करता है। सूर्य से संबंध स्थापना करने पर कंसल्टेंट से संबंधित एमबीए का कार्य करता है। वहीं शनि या मंगल से संबंधित होने पर मार्केटिंग से संबंधित क्षेत्र बनता है। इस प्रकार अन्य ग्रहों का संबंध गुरू या बुध से बनने पर एमबीए कर उच्च पद पर आसीन होने तथा प्रारंभ से ही उच्च वेतन प्राप्ति हेतु जानकारी लेने तथा कमी को दूर करने हेतु ज्योतिष विष्लेषण करना कैरियर के नये क्षेत्र में सफलता का द्वार खोल सकता है।



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संतानहीनता योग- ज्योतिषीय कारण और निवारण -



संतानहीनता योग- ज्योतिषीय कारण और निवारण -

संतानहीनता के लिए महर्षि पाराषर ने अनेक कारणों का उल्लेख किया है, जिसमें प्रमुख कारण जातक का किसी ना किसी प्रकार से शाप से ग्रस्त होना भी बताया है। यदि जन्मांग में पंचमस्थान का स्वामी शत्रुराषि का हो, छठवे, आठवे या बारहवें भाव में हो या राहु से आक्रांत हो या मंगल की पूर्ण दृष्टि हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है। यदि संतान बाधाकारक ग्रह सूर्य हो तो पितरों का शाप संतान में बाधा देता है। वहीं यदि चंद्रमा प्रतिबंधक ग्रह हो तो माता या किसी स्त्री को दुख पहुॅचाने के कारण संतानबाधक योग बनता है। यदि मंगल से संतान बाधक हो तो भाईबंधुओं के शाप से संतानसुख में कमी होती है। यदि गुरू संतानहीनता में कारक ग्रह बनता हो तो कुलगुरू के शाप के कारण संतानबाधा होती है। यदि शनि के कारण संतान बाधा हो तो पितरों को दुखी करने के कारण संतान में बाधा होती है तथा राहु के कारण संतान प्राप्ति के मार्ग में बाधा हो तो सर्पदोष के कारण संतानसुख बाधित होता है। इसी प्रकार ग्रहों की युक्ति या ग्रह दषाओं के कारण भी संतान में बाधा या हीनता का कारण बनता हो तो उचित ज्योतिषीय निदान द्वारा संतानहीनता के दुख को दूर किया जा सकता है। उक्त ग्रह दोष निवारण उपाय के साथ पयोव्रत करना लाभकारी होता है। पयोव्रत का व्रत फाल्गुनमास की शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से त्रयोदषी तक किया जाता है। विधिविधान से किया गया व्रत संतानहीनता का दोष दूर कर संतान सुख प्रदान करता है।


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संतान हानि-गर्भपात का ज्योतिषीय कारण

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संतान हानि-गर्भपात का ज्योतिषीय कारण -
विवाह के बाद प्रत्येक व्यक्ति ना सिर्फ वंष पंरपरा को बढ़ाने हेतु अपितु अपनी अभिलाषा तथा सामाजिक जीवन हेतु संतान सुख की कामना करता है। शादी के दो-तीन साल तक संतान का ना होना संभावित माना जाता है किंतु उसके उपरांत सुख का प्राप्त ना होना कष्ट देने लगता है उसमें भी यदि संतान सुख में बाधा गर्भपात का हो तो मानसिक संत्रास बहुत ज्यादा हो जाती है। कई बार चिकित्सकीय परामर्ष अनुसार उपाय भी कारगर साबित नहीं होते हैं किंतु ज्योतिष विद्या से संतान सुख में बाधा गर्भपात का कारण ज्ञात किया जा सकता है तथा उस बाधा से निजात पाने हेतु ज्योतिषीय उपाय लाभप्रद होता है। सूर्य, शनि और राहु पृथकताकारक प्रवृत्ति के होते हैं। मंगल में हिंसक गुण होता है, इसलिए मंगल को विद्यटनकारक ग्रह माना जाता है। यदि सूर्य, शनि या राहु में से किसी एक या एक से अधिक ग्रहों का पंचम या पंचमेष पर पूरा प्रभाव हो तो गर्भपात की संभावना बनती है। इसके साथ यदि मंगल पंचम भाव, पंचमेष या बृहस्पति से युक्त या दृष्ट हो तो गर्भपात का होना दिखाई देता है। आषुतोष भगवान षिव मनुष्यों की सभी कामनाएॅ पूर्ण करते हैं अतः संतानसुख हेतु पार्थिवलिंगार्चन और रूद्राभिषेक से संतान संबंधी बाधा दूर होती है।


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संतानसुख में बाधा-कारण और ज्योतिषीय निवारण -

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संतानसुख में बाधा-कारण और ज्योतिषीय निवारण -

पिता बनने की आकांक्षा हर व्यक्ति का स्वभावतः रहता है वहीं हर स्त्री के मन मे अलक्षित रूप से मातृत्व के लिए उत्सुकता विद्यमान होती है। यह प्रकृति का सहज रूप है, इसमें कोई अवरोध है तो इसका कारण क्या है और इसका विष्लेषण कई बार चिकित्सकीय परामर्ष द्वारा प्राप्त किया जाना संभव नहीं होता है किंतु ज्योतिषीय आकलन से इसका कारण जाना जा सकता है। चूॅकि ज्योतिष एक सूचना शास्त्र है जिसमें ग्रहों के माध्यम से एक विष्लेषणात्मक संकेत प्राप्त होता है अतः ग्रहों की स्थिति तथा दषाओं के आकलन से कारण जाना जा सकता है। संतान संबंधी ज्ञान कुंडली के पंचम भाव से जाना जाता है अतः पंचम स्थान का स्वामी, पंचमस्थ ग्रह और उनका स्वामीत्व तथा संतानकारक ग्रह बृहस्पति की स्थिति से संतान संबंधी बाधा या विलंब को ज्ञात किया जा सकता है। पंचमेष यदि 6, 8 या 12 भाव में हो तो संतानपक्ष से चिंता का द्योतक होता है। जिसमें संतान का ना होना, बार-बार गर्भपात से संतान की हानि, अल्पायु संतान या संतान होकर स्वास्थ्य या कैरियर की दृष्टि से कष्ट का पता लगाया जा सकता है। पंचम भाव में बृहस्पति हो तो भी उस स्थान की हानि होती है चूॅकि स्थानहानिकरो जीवः गुरू की अपनी स्थान पर हानि का कारक होता है अतः पंचम में गुरू संतान से संबंधी हानि दे सकता है। पंचम भाव पर मंगल की दृष्टि या राहु से आक्रांत होना भी संतान से संबंधित कष्ट देता है। संतान से संबंधित कष्ट से राहत हेतु संतान गोपाल का अनुष्ठान और मंगल का व्रत करना चाहिए।


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Tuesday, 5 May 2015

अनुषासन लड़को को सिखाने से रूक सकता है अपराध

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जानिये आज 05/05/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से " अनुषासन लड़को को सिखाने से रूक सकता है अपराध"

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जानिये आज के सवाल जवाब 05/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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जानिये आज का राशिफल 05/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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जानिये आज का पंचांग 05/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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आपके कर्म से निर्धारित होता भाग्य -



आपके कर्म से निर्धारित होता भाग्य  -

पुरूषार्थ का महत्व भाग्य से अधिक है साथ ही अधिकांष लोगो की मान्यता होती है कि भाग्य नाम की कोई चीज नहीं होती जितना कर्म किया जाता है उसी के अनुरूप फल मिलता है किंतु जीवन की कई अवस्थाओं पर नजर डाले तो भाग्य की धारणा से इंकार नहीं किया जा सकता। भारतीय शास्त्र में कर्म को तीन श्रेणियों में बांटा गया है जोकि क्रमषः संचित कर्म, क्रियामाण कर्म और प्रारब्ध है। जो वर्तमान में कर्म किया जाता है वहीं क्रियामाण कर्म कहा जाता है जिसका कोई फल अभी हमें प्राप्त नहीं है अर्थात् वहीं कर्म भविष्य में संचित कर्म बनता है। इन्हीं संचित कर्म में से जिसका फल हमें प्राप्त हो जाता है वह चाहें अच्छा हो या बुरा प्रारब्ध कहा जा सकता है। अब देखें कि संचित कर्म का विचार - वह कर्म जिसका परिणाम हमें वर्तमान में नहीं प्राप्त होता माना जाता है कि वह किसी भी जनम में प्राप्त हो सकता है जिसका उल्लेख आप वंषषास्त्र से कर सकते हैं क्योंकि जन्म के समय किसी भी प्रकार के कर्म के बिना भी जीव उच्च-नीच, अमीर-गरीब, स्वस्थ या अस्वस्थ होने के तौर पर प्राप्त करता है जिसका वर्णन ज्योतिष शास्त्र में जातक के जन्मकुंडली के पंचम या पंचमेष के आधार पर किया जा सकता है। कर्म का दूसरा भाग है प्रारब्ध। प्रारब्ध को अपने इसी जन्म में भोगना हेाता है अर्थात इसे उत्पति कर्म भी कहा जा सकता है जोकि व्यक्ति के जींस तय कर देते हैं कि उसका प्रारब्ध क्या होगा अर्थात् गर्भधारण के समय ही उसका प्रारब्ध निर्धारित हो जाता है। प्रयत्न के बिना ही पैदा होते ही जो कुछ प्राप्त होता है या अप्राप्त रह जाता है वह प्रारब्ध होता है। कुंडली में प्रारब्ध केा नवम भाव या नवमेष से देखा जा सकता है। अब कर्म के तीसरे स्वरूप क्रियामाण को देखें। क्रियामाण अर्थात् जो वर्तमान में कर्म चल रहा है मतलब इसे हम पुरूषार्थ कह सकते हैं। भारतीय मान्यता है कि इंसान के 12 वर्ष अर्थात् कालपुरूष के भाग्य के एक चक्र के पूरा होने के उपरांत क्रियामाण का दौर शुरू हो जाता है जोकि जीवन के अंत तक चलता है। अब व्यक्ति की षिक्षा उसकी रूचि सामाजिक स्थिति पारिवारिक तथा निजी परिस्थिति पसंद नापसंद, प्रयास तथा उसमें सकाकरात्मक या नाकारात्मक सोच से व्यक्ति का क्रियामाण उसके जीवन को प्रतिकूल या अनुकूल स्थिति हेतु प्रभावित करता है अतः पुरूषार्थ या क्रियामाण कर्म ही संचित होकर प्रारब्ध बनता है अतः जीवन के सिर्फ कर्म के आधार पर नहीं वरन् कर्म और भाग्य के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है जोकि कुंडली के पंचम, नवम और दषम स्थान से देखा जाता है इसमें प्रयास का स्तर, मनोभाव या सहयोग कि स्थिति देखना भी आवष्यक होता है जोकि कुंडली के अन्य भाव से निर्धारित होता है अतः मानव जीवन में भाग्य का भी अहम हिस्सा होता है।


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विवाह का समय निर्धारण या विलंब योग को दूर करने का उपाय -



विवाह का समय निर्धारण या विलंब योग को दूर करने का उपाय -

बदले और बदलते हुए परिवेष में विवाह एक चिंता का विषय है। ज्यादातर युवा और उनके अभिभावक कैरियर को प्राथमिकता देते हुए एजूकेषन तथा कैरियर के बारे में तो गंभीर होते हैं कि शादी संबंधी विचार टालते रहते हैं, जिसके कारण विवाह की उचित आयु कब निकल जाती है, पता भी नहीं चलता। स्वावलंबी बनने के फेर में साथ ही मनवांछित जीवनसाथी पाने की आष में अपना सामाजिक या आर्थिक स्थिति समकक्ष करने के कारण विवाह में देर कई बार विवाह में बाधा का भी कारण बनता है। किंतु वास्तव में स्थिति इसके विपरीत होती है। विवाह में बाधा का क्या कारण बनना है और विवाह कब होना है। यह सब कुछ कुंडली के अध्ययन से जाना जा सकता है। सप्तमाधिपति यदि सबल शुभग्रह से युत, लग्नस्थ, द्वितीयस्थ, सप्तमस्थ या एकादषस्थ हो तो विवाह उचित समय में होता है। यदि किसी की भी कुंडली में शुक्र पाप रहित होकर मित्र राषिस्थ तथा चंद्रमा से अनुकूल हो तो विवाह का समय उचित होता है अर्थात् भारतीय दर्षन के अनुसार सही समय पर विवाह का कारक बनाता है। उचित समय में विवाह की कामना तथा उत्तम जीवनसाथी की कामना से किसी शुभ मूहुर्त में दस हजार गंधर्वराज मंत्रोपासना कर उसके उपरांत हवन, हवन का दषांष तर्पण तथा तर्पण का दषांष मार्जन, मार्जन का दषांष ब्राम्हण भोजन कराना चाहिए। इससे जीवन की वैवाहिक बाधा दूर हो सकती है।


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शनि प्रदोष व्रत से पायें कैरियर में सफलता-

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शनि प्रदोष व्रत से पायें कैरियर में सफलता-

कालपुरूष के जन्मांग में सूर्य हैं राजा, बुध हैं मंत्री, शनि हैं जज, राहु और केतु प्रशासक हैं, गुरू हैं मार्गदर्शक, चंद्रमा हैं मन और शुक्र है वीर्य। जब कभी भी कोई व्यक्ति अपराध करता है तो राहु और केतु उसे दण्डित करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। पर शनि के न्यायालय में सबसे पहला दण्ड प्राप्त होता है। इसके बाद अच्छे व्यवहार से और सदाचरण से शनि को प्रसन्न करके बचा जा सकता है। शनि के दया के व्यवहार से प्रसन्न होते हैं। वहीं निर्दयता, झूठ या पाखंड उनकी अप्रसन्नता का कारण होता है।
माघ का महिना सभी प्रकार के श्री की प्राप्ति कराने वाला महिना है। इस महिने में त्रयोदषी के दिन पड़ने वाले शनिवार के दिन घर की साफ-सफाई करके प्रातःकाल स्नान कर सभी प्रकार के कष्टों की निवृत्ति के लिए तथा अक्षय कल्याण की प्राप्ति के लिए सूर्यास्त के बाद दरवाजे पर दीया रोशन करें तथा पूजन स्थल पर पूर्व की ओर मुख करके सामने कलश स्थापित कर गौरी गणेश नवग्रह तथा षोडश मातृका आदि का स्थापन कर सोलह उपचार सामग्री से सभी का पूजन करें। उसके पश्चात् रात्रिकाल में ओं शं शनैश्चराय नमः का 11 हजार जाप कर अगले दिन प्रातः स्नान करें फिर तिल जौ आदि से दशांश हवन करें पश्चात् जरूरत मदों को भोजन करावें तथा यथाशक्ति आचार्य तथा याचकों को दान करें। ऐसा करने से भगवान शनि की कृपा होती है और जीवन में सफलता मिलती है।




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ज्यादा दोस्ती से पढ़ाई में बाधा- कारण और निवारण -



ज्यादा दोस्ती से पढ़ाई में बाधा- कारण और निवारण -

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में जिस प्रकार ग्रहों में आपस में मित्रता-श्षत्रुता तथा समता होती है, उसी का असर जीवन में दोस्तो या साथियों तथा उसके लाभ तथा हानि से होता है। जिस प्रकार जीवन साथी के चयन में गुण मेलापक को महत्व दिया जाता है, उसी के अनुरूप कैरियर या षिक्षा के दौरान दोस्त या सहपाठियों में गुण-दोषों का मिलान कर जीवन में कैरियर या अध्ययन के प्रयास में सफलता तथा दोस्तों के गुण-दोष से लाभ या हानि की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए दोस्त का चयन करते समय अपनी ग्रह स्थितियों के अलावा, अपने ग्रहों की दिषा, दषा तथा स्थिति के अनुरूप व्यक्तियों से नजदीकी या दूरी बनाकर तथा किस व्यक्ति का संबंध किस स्थान है, जानकारी प्राप्त कर उस व्यक्ति से उस स्तर का संबंध बनाकर समस्या से निजात पाया जा सकता है। दोस्तो के चुनाव तथा व्यवहारगत संबंध तथा साथ में अध्ययन या प्रतियोगिता में लाभ-हानि तथा मानसिक शांति हेतु आवष्यक भूमिका का निभाता है।




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केतु के अधीन पौरूष्र्य



चरावेती-चरावेती प्रचलाम्ह निरंतरम् - केतु के अधीन पौरूष्र्य -
निरंतर चलायमान रहने अर्थात् किसी जातक को अपने जीवन में निरंतर उन्नति करने हेतु प्रेरित करने तथा बदलाव हेतु तैयार तथा प्रयासरत रहने हेतु जो ग्रह सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है, उसमें एक महत्वपूर्ण ग्रह है केतु। ज्योतिष शास्त्र में राहु की ही भांति केतु भी एक छायाग्रह है तथा यह अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसका स्वभाग मंगल ग्रह की तरह प्रबल और क्रूर माना जाता है। केतु ग्रह विषेषकर आध्यात्म, पराषक्ति, अनुसंधान, मानवीय इतिहास तथा इससे जुड़े सामाजिक संस्थाएॅ, अनाथाश्रम, धार्मिक शास्त्र आदि से संबंधित क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। केतु ग्रह की उत्तम स्थिति या ग्रह दषाएॅ या अंतरदषाओं में जातक को उन्नति या बदलाव हेतु प्रेरित करता है। केतु की दषा में परिवर्तन हेतु प्रयास होता है। पराक्रम तथा साहस दिखाई देता है। राहु जहाॅ आलस्य तथा कल्पनाओं का संसार बनाता है वहीं पर केतु के प्रभाव से लगातार प्रयास तथा साहस से परिवर्तन या बेहतर स्थिति का प्रयास करने की मन-स्थिति बनती है। केतु की अनुकूल स्थिति जहाॅ जातक के जीवन में उन्नति तथा साकारात्मक प्रयास हेतु प्रेरित करता है वहीं पर यदि केतु प्रतिकूल स्थिति या नीच अथवा विपरीत प्रभाव में हो तो जातक के जीवन में गंभीर रोग, दुर्घटना के कारण हानि,सर्जरी, आक्रमण से नुकसान, मानसिक रोग, आध्यात्मिक हानि का कारण बनता है। केतु के शुभ प्रभाव में वृद्धि तथा अषुभ प्रभाव को कम करने हेतु केतु की शांति करानी चाहिए जिसमें विषेषकर गणपति भगवान की उपासना, पूजा, केतु के मंत्रों का जाप, दान तथा बटुक भैरव मंत्रों का जाप करना चाहिए जिससे केतु का शुभ प्रभाव दिखाई देगा तथा जीवन में निरंतर उन्नति बनेगी।


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बुरा जो करें, सो बुरा पावें



बुरा जो करें, सो बुरा पावें -

पुरूषार्थ का महत्व भाग्य से अधिक है साथ ही अधिकांष लोगो की मान्यता होती है कि भाग्य नाम की कोई चीज नहीं होती जितना कर्म किया जाता है उसी के अनुरूप फल मिलता है किंतु जीवन की कई अवस्थाओं पर नजर डाले तो भाग्य की धारणा से इंकार नहीं किया जा सकता। भारतीय शास्त्र में कर्म को तीन श्रेणियों में बांटा गया है जोकि क्रमषः संचित कर्म, क्रियामाण कर्म और प्रारब्ध है। जो वर्तमान में कर्म किया जाता है वहीं क्रियामाण कर्म कहा जाता है जिसका कोई फल अभी हमें प्राप्त नहीं है अर्थात् वहीं कर्म भविष्य में संचित कर्म बनता है। इन्हीं संचित कर्म में से जिसका फल हमें प्राप्त हो जाता है वह चाहें अच्छा हो या बुरा प्रारब्ध कहा जा सकता है। अब देखें कि संचित कर्म का विचार - वह कर्म जिसका परिणाम हमें वर्तमान में नहीं प्राप्त होता माना जाता है कि वह किसी भी जनम में प्राप्त हो सकता है जिसका उल्लेख आप वंषषास्त्र से कर सकते हैं क्योंकि जन्म के समय किसी भी प्रकार के कर्म के बिना भी जीव उच्च-नीच, अमीर-गरीब, स्वस्थ या अस्वस्थ होने के तौर पर प्राप्त करता है जिसका वर्णन ज्योतिष शास्त्र में जातक के जन्मकुंडली के पंचम या पंचमेष के आधार पर किया जा सकता है। कर्म का दूसरा भाग है प्रारब्ध। प्रारब्ध को अपने इसी जन्म में भोगना हेाता है अर्थात इसे उत्पति कर्म भी कहा जा सकता है जोकि व्यक्ति के जींस तय कर देते हैं कि उसका प्रारब्ध क्या होगा अर्थात् गर्भधारण के समय ही उसका प्रारब्ध निर्धारित हो जाता है। प्रयत्न के बिना ही पैदा होते ही जो कुछ प्राप्त होता है या अप्राप्त रह जाता है वह प्रारब्ध होता है। कुंडली में प्रारब्ध केा नवम भाव या नवमेष से देखा जा सकता है। अब कर्म के तीसरे स्वरूप क्रियामाण को देखें। क्रियामाण अर्थात् जो वर्तमान में कर्म चल रहा है मतलब इसे हम पुरूषार्थ कह सकते हैं। भारतीय मान्यता है कि इंसान के 12 वर्ष अर्थात् कालपुरूष के भाग्य के एक चक्र के पूरा होने के उपरांत क्रियामाण का दौर शुरू हो जाता है जोकि जीवन के अंत तक चलता है। अब व्यक्ति की षिक्षा उसकी रूचि सामाजिक स्थिति पारिवारिक तथा निजी परिस्थिति पसंद नापसंद, प्रयास तथा उसमें सकाकरात्मक या नाकारात्मक सोच से व्यक्ति का क्रियामाण उसके जीवन को प्रतिकूल या अनुकूल स्थिति हेतु प्रभावित करता है अतः पुरूषार्थ या क्रियामाण कर्म ही संचित होकर प्रारब्ध बनता है अतः जीवन के सिर्फ कर्म के आधार पर नहीं वरन् कर्म और भाग्य के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है जोकि कुंडली के पंचम, नवम और दषम स्थान से देखा जाता है इसमें प्रयास का स्तर, मनोभाव या सहयोग कि स्थिति देखना भी आवष्यक होता है जोकि कुंडली के अन्य भाव से निर्धारित होता है अतः मानव जीवन में भाग्य का भी अहम हिस्सा होता है।



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षट्तिला एकादषी -



षट्तिला एकादषी -
षट्तिला एकादषी का व्रत माघ माह की कृष्णपक्ष की एकादषी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा का विधान है। एकादषी का व्रत रखने वाले दषमी के सूर्यास्त से भोजन नहीं करते। एकादषी के दिन ब्रम्हबेला में भगवान कृष्ण की पुष्प, जल, धूप, अक्षत से पूजा की जाती है। इस व्रत में केवल तिल से बने पकवान का ही भोग लगता है। यह ब्रम्हा, विष्णु, महेष त्रिदेवों का संयुक्त अंष माना जाता है। इस वत्र में तिल का षिवलिंग बनाकर पूजन कर तिल से बने पकवान का भोग लगाकर दान करने के उपरांत व्रत का पारण किये जाने का विधान है। यह मोक्ष देने वाला वत्र माना जाता है।


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तात्कालिक लाभ हानि - चंद्रमा के विपरीत प्रभाव शांति हेतु उपाय -



तात्कालिक लाभ हानि - चंद्रमा के विपरीत प्रभाव शांति हेतु उपाय -

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को प्रमुख स्थान दिया गया है तथा माना गया है कि चंद्रमा मन का कारक होता है। चूॅकि किसी मानव के जीवन में उसकी सफलता तथा असफलता का बहुत बड़ा कारण उसका मन होता है अतः यदि कोई व्यक्ति सफल है या असफल इसका बहुत कुछ निर्धारण चंद्रमा की स्थिति से किया जा सकता है। चंद्रमा यदि लग्न में हो तो जातक ऐष्वर्यषाली, सुखी, मधुरभाषी, स्थूल शरीर वाला, द्वितीय स्थान में सुंदर, परदेषवासी, भ्रमणषील तृतीय स्थान में तपस्वी, आस्तिक, कलाप्रेमी, गले का रोगी, चतुर्थभाव में होने पर दानी, रागद्धेष रहित, क्रोधी, पंचम स्थान में विनीत, व्यसनी, मित्रयुक्त छठवे स्थान में होने पर विलासी, धार्मिक, लोकप्रिय, सप्तम स्थान पर होने पर अस्थिर, दुखी,प्रवासी अष्टम स्थान पर मातृभक्त, कलाप्रेमी, विवादी, मिथ्याभाषी नवम स्थान पर सात्विक, तेजस्वी, मानी दसम स्थान पर विद्धान, दयालु, कला में माहिर एकादष स्थान पर आलसी, दानी मधुरवाणी युक्त तथा द्वादष स्थान पर क्रोधी, व्यसनी, कलाकार हो सकता है। किंतु चंद्रमा के विपरीत स्थान में होने पर विपरीत असरकारी भी होता है अतः मानसिक कमजोर तथा निर्णय लेने में बाधा दे सकता है अतः चंद्रमा के दोषों को दूर करने हेतु चंद्रमा के वस्तुओं का दान जिसमें विषेषकर शंख, कपूर, दूध, दही, चीनी, मिश्री, श्वेत वस्त्र, इत्यादि तथा मंत्रजाप जिसमें उॅ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः या उॅ नमः षिवाय का 11 हजार जाप तथा रूद्राभिषेक प्रमुख माना जाता है। इन उपायो के आजमाने से शुभ फल में वृद्धि तथा अषुभ फलों में कमी होती है।




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तनाव से प्रभावित होता कर्म -कारण और निवारण -



तनाव से प्रभावित होता कर्म -कारण और निवारण -

आज की आधुनिक जीवनषैली में तनाव का होना लाजिमी है। सुबह उठने से लेकर रात के अंतिम प्रहर तक कोई ना कोई बात या कार्य या व्यवहार तनाव का कारण बनता ही है। किंतु कई बार व्यक्ति तनाव के कारण इतना ज्यादा परेषान हो जाता है कि इस तनाव का असर उसके कैरियर या व्यवसायिक कार्य को भी प्रभावित करती है। तनाव के ज्यादा होने के कारण जातक का कार्य के प्रति अनिच्छा तथा अरूचि होने से उसके व्यवसायिक रिष्तों को तो प्रभावित करते ही हैं साथ ही इससे उसके इन रिष्तों का असर उसके व्यवसायिक कार्य पर पड़ने के कारण हानि उठाने की नौबत आने लगती है। इसके होने का कारण होता है कि जब भी जातक तनाव में होता है तो वह या तो किसी से बात करना पसंद नहीं करता या बात करता है तो उसकी शैली से नाराजगी जाहिर होती है, जिससे लोग उससे दूरी बनाने लगते हैं। ऐसा होने का कारण तनाव तो होता है चिकित्सकीय सलाह तनाव को कम करने हेतु दवाईयों द्वारा तथा उस परिस्थिति को ठहराया जा सकता है किंतु ज्योतिष आधार पर इस तनाव का कारण ज्ञात किया जाना ज्यादा आसान होता है। जब भी किसी जातक का तृतीयेष षष्ठम, अष्टम या द्वादष भाव में हो तो ऐसा व्यक्ति तनाव का जल्दी ही षिकार होता है। जब भी इस ग्रह स्थिति में उस ग्रह की दषा या अंतरदषा चलती है तो व्यक्ति का तनाव उभरकर दिखाई देता है। इस तनाव से उस जातक का मनोबल कमजोर पड़ता है, जिससे उसके कार्य करने की अनिच्छा, लगातार बीमारी का अहसास तथा अकेले रहने की प्रवृत्ति उत्पन्न होने से उसका व्यवसाय प्रभावित होता है। इस तनाव का कारण ज्ञात कर तनाव को कम करने की ज्योतिषीय उपाय कर तनाव को समाप्त कर व्यवसाय में लाभ की स्थिति बनाई जा सकती है। जातक की कुंडली का विवेचन कर तृतीयेष ग्रह की शांति, मानसिक तनाव का कारण दूर कर तथा सौंदर्य लहरी का नित्य पाठ कर व्यवसायिक स्थिति में वापस लाभ प्राप्त किया जा सकता है।


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शाकंभरी पूर्णिमा -



शाकंभरी पूर्णिमा -

पौष शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को प्रदोषव्यापिनी उत्सव विधान से मनाने का आदि काल से महत्व है। पूर्णिमा का व्रत गृहस्थों के लिए अति शुभ फलदायी होता है। प्रायः स्नान कर व्रत के साथ भगवान सत्यनारायण की पूजा कथा कर दिनभर उपवास करने के उपरांत चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अध्र्य देने के साथ खीर का भोग लगाकर मीठा भोजन ग्रहण करने का रिवाज है। इस दिन गंगा, यमुना या किसी नदी का स्नान कर दीपदान करने से महापुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत करके चंद्रोदय होने पर दीपदान करने के उपरांत बैल या गाय करने की प्रथा प्राचीन समय में थी। ब्राम्हणों को दान तथा भोजन कराने के उपरांत व्रत का पारण करने से सर्वमनोकामना की पूर्ति होती है। साथ ही मान्यता है कि चंद्रमा मन का कारक ग्रह है अतः पूर्णिमा व्रत के करने से मानसिक शांति के साथ पारिवारिक सामंजस्य और सौहार्द बढ़ता है। उस दिन सभी देवों ने मिलकर महादेव की आरती लेने हेतु दीपदान किया। उस दिन से किसी भी प्रकार के कष्ट, रोग तथा दुख को हरने हेतु दीपदान कर चंद्रोदय के समय शिवजी की आराधना करने से सभी दुख और पाप समाप्त होते हैं ऐसी मान्यता है।


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परीक्षा का तनाव -कारण और निवारण


Image result for exam stress
परीक्षा का तनाव -कारण और निवारण -

परीक्षा के समय ज्यादा से ज्यादा अंक लाने की होड़, साथी बच्चों से तुलना, लक्ष्य का पूर्व निर्धारित कर उसके अनुरूप प्रदर्षन तथा इसी प्रकार के कई कारण से परीक्षा के पहले बच्चों के मन में तनाव का कारण बनता है। परीक्षा में अच्छे अंक की प्राप्ति के लिए किया गया तनाव अधिकांषतः नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है क्योंकि तनाव के कारण स्मरणषक्ति कम होती है, जिसके कारण पूर्व में तैयार विषय भी याद नहीं रह जाता, घबराहट के कारण स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है, साथ ही अनिद्रा, सिरदर्द तथा स्टेसहार्मोन के कारण एकाग्रता की कमी से परीक्षा का परिणाम भी विपरीत आता है, जोकि डिप्रेषन का कारण बनता है। अतः परीक्षा के डर के कारण उत्पन्न तनाव को दूर करने हेतु ज्योतिषीय तथ्य का सहारा लिया जा सकता है। जब भी परीक्षा से पहले तनाव के कारण सिरदर्द या अनिद्रा की स्थिति बने तो तृतीयेष ग्रह को शांत करने का उपाय आजमाते हुए चंद्रमा तथा राहु की स्थिति तथा दषाओं एवं अंतरदषाओं का निरीक्षण कर उक्त ग्रहों के लिए उचित मंत्र जाप, दान द्वारा मनःस्थिति पर नियंत्रण किया जा सकता है। साथ ही ऐसे में जातक को चाहिए कि हनुमान जी के दर्षन कर हनुमान चालीसा का पाठ कर एकाग्रता बढ़ाते हुए शांत मन से पढ़ाई करनी चाहिए साथ ही मन को प्रसन्न करने का उचित उपाय आजमाने से तनाव से मुक्त हुआ जा सकता है।



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पढ़ाई में परेषानी दूर करने का ज्योतिषीय निदान -



पढ़ाई में परेषानी दूर करने का ज्योतिषीय निदान -

स्कूल षिक्षा तक बहुत अच्छा प्रदर्षन करने वाला अचानक अपने एजुकेषन में गिरावट ले आता है तथा इससे कैरियर में तो प्रभाव पड़ता ही है साथ ही मनोबल भी प्रभावित होता हैं अतः यदि आपके भी उच्च षिक्षा या कैरियर बनाने की उम्र में पढ़ाई प्रभावित हो रही हो या षिक्षा में गिरावट दिखाई दे रही हो तो सर्वप्रथम व्यवहार तथा अपने दैनिक रूटिन पर नजर डालें। इसमें क्या अंतर आया है, उसका निरीक्षण करने के साथ ही अपनी कुंडली किसी विद्धान ज्योतिष से दिखा कर यह पता करें कि क्या आपकी कुंडली में राहु प्रभावकारी है। यदि आपकी कुंडली में राहु दूसरे, तीसरे, अष्टम या भाग्यस्थान में हो साथ ही राहु की दषा, अंतरदषा या प्रत्यंतरदषा चल रही हो तो गणित या फिजिक्स जैसे विषय की पढ़ाई प्रभावित होती है साथ ही ऐसे लोगों के जीवन में  कल्पनाषक्ति प्रधान हो जाती है। पहली उम्र का असर उस के साथ ही राहु का प्रभावकारी होना एजुकेषन या कैरियर में बाधक हो सकता है। यदि इस प्रकार की बाधा दिखाइ्र दे तो फौरन राहु की शांति के साथ कुंडली के अनुरूप आवष्यक उपाय आजमाने से कैरियर की बाधाएॅ समाप्त होकर अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकती है।


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