वर्तमान आधुनिम परिवेष खुला वातावरण एवं टी.वी. संस्कुति के कारण हमारी
युवा पीढी अपने लक्ष्यों से भटक रही है। विना सोच विचार किये गये प्रेम
विवाह शीघ्र ही मन मुटाव के चलते तलाक तक पहुंच जाते हैं। टी.वीत्र
धारावाहिकों एवं फिल्मो की देखादेखी युवक युवती एक दूसरे को आकर्षित करने
प्रयास करते हैं। रोज डे, वेलेन्टाईन डे जैसे अवसर इस कार्यको बढावा देते
है। पयार मोहब्बत करें लेकिन सोच समझकर। अवसाद कार षिकार होने आत्माहत्या
से बचने या बदनामी से बचने हेतु दिल लगान से पूर्व अपने साथी से अपने
गुण-विचार ठीक प्रकार से मिला लें ताकि भविष्य में पछताना न पडे। सोच-समझ
कर ही निर्णय लें।
ग्रहों के कारण व्यत्ति प्रेम करता है और इन्हीं
ग्रहों के प्रभाव से दिल भी टूटते हैं। ज्योतिष शास्त्रों में प्रेम विवाह
के योगों के बारे में स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता है, परन्तु जीवनसाथी के बारे
में अपने से उच्च या निम्र का विस्तृत विवरण है। कोई भी स्त्री-पुरूष अपने
उच्च या निम्र कुल मं तभी विवाह करेगा जब वे दोनों प्रेम करते होंगे। आज
की पढी-लिखी और घोर भोैतिकवादी युवा पीढी ओधिकतर प्रेम विवाह की ओर आकर्षित
हो रही है। कई बार प्रेम एक-दूसरे की देखी या फेषन के तौर पर भी होता है
किनतु जीवनपर्यत निभ नहीं पाता। ग्रह अनुकूल नहीं होन के कारण ऐसी स्थिति
बनाती है। शास्त्रों मे प्रेम विवाह को गांधर्व विवाह के नाम से जाना
जावाहै। किसी युवक-युवती के मध्य प्रेम की जो भावना पैदा होती है, वह सब
उनके ग्रहों का प्रभाव ही होता है, जो कमाल दिखाता है। ग्रह हमारी मनोदषा,
पसंद नापसंद और रूचियों को वय करते और बदलते है। वर्तमान में प्रेम विवाह
बजुत हद तक गंधर्व विवाह का ही परिवर्तित रूप है।
प्रेम विवाह के कुछ मुख्य योग:
1
-लेग्रेष का पंचक से संबंध हो और जन्मपत्रिका में पंचमेष-सम्तमेष का किसी
भी रूप मे संबंध हो। शुक्र, मंगल की युति, शुम्र की राषि में स्थिति और
लग्र त्रिकोण का संबंधप्रेम संबंधो का सूचक है। पंचम या सप्तक भाव में
शुक्र सप्तमेष या पंचमेष के साथ हो।
2 -किसी की जन्मपत्रिका में लग्न
, पंचम , सप्तम भाव व इनके स्वामियों और शुक्र तथा चन्द्रमा जातक के
वैवाहिक जीवन व प्रेम संबेधों को समान रूप से प्रभावित करते हैं। लग्र या
लग्रेष का सप्तम और सप्तमेष का पंचम भाव व पंचमेष से किसी भी रूप में संबंध
प्रेम संबंध की सूचना देता है। यह संबंध सफल होगा अथवा नही, इसकी सूचना
ग्रह योगों की शुभ-अषुभ स्थिति देती है।
3 -यदि सप्तकेष लग्रेष से
कमजोर हो अथवा यदि सप्तमेष अस्त हो अथवा मित्र राषि में हो या नवाष मे नीच
राषि हो तो जातक का विवाह अपने से निम्र कुल में होता है। इसमे विपरित लगेष
से सप्तवेष बाली हो, शुभ नवांष मे ही तो जीवनसाथी उच्च कुल का होता है।
4
-पंचमेष सप्तम भाव में हो अथवा लग्रंेष और पंचमेष सप्तम भाव के स्वामी के
साथ लग में स्थित हो। सप्तमेष पंचम भाव मं हो और लग्र से संसबंध बना रहा
हो। पंचमेष सप्तम में हो और सप्तमेष पंचम में हो। सप्तमेष लग्र में और
लग्रेष सप्तम मे हो, साथ ही पंचम भाव के स्वामी से दृष्टि संबंधहो तो भी
प्रेम संबंध का योग बनता है।
5 -पंचम में मंगल भी प्रेम विवाह करवाता
हैं। यदि राहू पंचम या सप्तम में हो तो प्रेम विवाह की संभावना होती हैं।
सप्तम भाव में यदि मेष राषि में मंगल हो तो प्रेम विवाह होता हैं सप्तमेष
और पंचमेष एक-दूसरे के नक्षत्र पर हों तो भी प्रेम विवाह का योग बनता हैं।
6
-पंचमेष वथा सप्तमेष कहीं भी, किसी भी तरह से द्वादषेष से संबंध बनायें
लग्रेष या सप्तमेष का आपस मं स्थान परिवर्तन अथवा आपस में युकत होना अथवा
दृष्टि संबंधं।
7 -जैमिनी सूत्रानुसार दाराकारक और पुत्रकारक की युति भी प्रेम विवाह कराती है। पेचमेष और दाराकार का संबंध भी प्रेम विाह करवाताहै।
8-सप्तमेष
स्वगृही हो, एकाादष स्थान पापग्रहों के प्रभाव में बिलकुल न हो, शुक्र
लग्र मे ं लग्रेष के साथ, मंगल सप्तक भाव में हो, सप्तमेषके साथ, चन्द्रमा
लग्र में लग्रेष के साथ हो, तो भी प्रेम विवाह का योग बनताहै।
प्रेम विाह असफल रहने के कारण:
9
शुक्र व मंगल की स्थिति व प्रभाव प्रेम संबेधें को प्रभावित करने की
क्षमता रखते है। यदि किसी जातक की कुण्डली में सभीर अनुकूल स्थितियां होते
हुई थी , शुक्र की स्थिति अनुकूल हो तो प्रेम संबंध टूटकर दिल टूटने की
घटना होती र्है।
10 सपतम भाव या सव्तमेषका पाप पीडित होनापापयोग में
होना प्रेम विवाह की सफलता पा प्रश्रचिह् लगाता है। पंचमेष व सप्तमेष
देानों की स्थिति इस प्रकार हो कि उनका सपतम-पंचम से कोई संबंध न हो तो
प्रेम की असफलता दुष्टिगत होतो है।
11 शुक्र का सुर्य के नक्षत्र में
होनाऔर उस पर चन्द्रमा का प्रभाव होने की स्थिति में प्रेम संबेधहोने के
उपरांत या परिस्थितिवष विवाह हो जाने पर भी सफलता नहीं मिलती । शुक्र का
सूर्य-चन्द्रमा के मध्य में होना असफल प्रेम का कारण हौ।
12 पंचम व
सप्तम भाव के स्वामी ग्रह यदि धीमी गति के ग्र्रह हों तो प्रेम संबंधों का
योग होने पा चिर स्थाइ्र प्रेम की अनुभूति दर्षाता है। इस प्रकार के जातक
जीवन भर प्रेम प्रसंगों को नहीं भूलते चाहे वे सफल हों या असफल।
प्रेम विवाह को बल देने या मजबूत करने के उपाय: 13 शुक्र देव की पूजा करें।
14 पंचमेश व सप्तमेष की पूजा करें।
15 पंचमेश का रत धारण करें ।
16 ब्ल्यू टोपाज सुखद दाम्पत्य एवं वषीकरएा हेतु पहनें।
17 चन्द्रमणी प्रेम प्रसंग में सफलता प्रदान करती है।
प्रेम
विवाह के लिये जन्मकुण्डली के पहले, पांचवें सप्तम भाव के साथ-साथ बारहवें
भाव को भी देखे क्योंकि विवाह के लिये बारहवां भाव भी देखा जाता हैं यह
भाव शया सुख का भी है। इन भावों के साथ-साथ उन भावों के स्वामियों की
स्थिति का पता करना होता है। यदि इन भावों के स्वामियों का संबंध किसी भी
रूप् में अपने भावों से बन रहा हो तो निश्रित रूप से जातक प्रेम विवाह करता
है।
अन्तरजातीय विवाह के मामले में शनि की मुख्य भूमिका होती है।
यदि कुण्डली मे शनि का संबंध किसी भी रूप से प्रेम विवाह कराने वाले भावेषो
के भाव से हो तो जातक अन्तरजातीय विवाह करेगा। जीवनसाथी का संबंध सातवें
भाव से होता है, जबकि पंचम भाव को सन्तान, उदन एवं बुद्धि का भाव माना गया
है, लेमिन यह भाव प्रेम को भी दर्षाता है। प्रेम विवाह के मामलों मे यह भाव
विषेष भूमिका दर्षाता है।
कबीरदास जी, ने कहा है-
पोथी पढ-पढ जग मुआ पडित भयो ना कोई।
ढाई आखर प्रेम के, पढे सो पण्डित होई।।
प्रेम
एक दिव्य, अलौकिक एवं वंदनीय तथा प्रफुलता देने वाली स्थिति है। प्रेम
मनुष्य में करूणा , दुलार स्नेह की अनुभूति देताहै। फिर चाहे वह भक्त का
भगवान से हो, माता का पुत्र से या प्रेमी का प्रेमिका के लिये हो, सभी का
अपना महत्व है। प्रेम और विवाह ,विवाह और प्रेम दोनां के समान अर्थ है
लेमिन दोनों के क्रम में परिवर्तन है। विवाह पश्रत पति या पत्नी के बीच
समर्पण व भावनात्मकता प्रेम का एक पहलू है। प्रेम संबेध का विवाह में
रूपांतरित होना इस बात को दर्षाता है कि प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे से
भावनात्मक रूप् से इतनाजुडे हुये है िकवे जीवन भर साथ रहना चाहते है
सर्वविदित है कि हिनदू संस्कृति में जिन सोलह संस्कारें का वर्णन कियाहै
उनमें से विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कर है। जीवन के विकास, उसमें सरलता और
सृष्टि को नये आयाम देने के लिये विवाह परम आवष्यक प्रकिगय है, इस सच्चाइ्र
को नकारा नहीं जा सकता है। प्रेम और विवाह आदर्ष स्थितियों में वन्दनीय,
आनन्ददायक और प्रफुलता देन वाला है।प्रेम संवंध का परिणाम विवाह होगा या
नहीं इस प्राकर की स्थिति में ज्योतिष का आश्रय लेकर काफी हद तक भविष्य के
संभावित परिणामों के बारे में जाना जा सकता है। दिल लगाने से पूर्व या
टूटने की स्थिति न आये, इस हेतु प्रेमी प्रेमिका को अपनी जन्मपत्रिका के
ग्रहों की स्थिति किसी योग्य ज्योतिषी से अवष्य पूछ लेनी चाहिये कि उनके
जीवन में प्रेम की घटना होगी या नहीं। प्रेम ईश्रृर का वरदान है। प्रेम करे
अवष्य लेकिन सोच समझकर।