Saturday, 14 May 2016

आनंद और सुख का दाता –भृगु

शुक्र ग्रह को वैदिक अथवा पश्चिमी ज्योतिषाचार्यों ने स्त्री ग्रह का दर्जा दिया है। शुक्र को वास्तव मेंं स्त्री ग्रह का दर्जा तो दिया गया है, लेकिन इसका वास्तविक प्रभाव प्रत्येक जीवधारी मेंं बराबर का मिलता है, पुरुष के अन्दर स्त्री अंगों की उपस्थिति भी इस ग्रह का भान करवाती है। जिस प्रकार से मंगल की गर्मी गुस्सा और उत्तेजना को पुरुष और स्त्री दोनों के अन्दर समान भाव मेंं पाया जाना है, उसी प्रकार से शुक्र का प्रभाव स्त्री और पुरुष दोनों के अन्दर समान भाव मेंं पाया जाता है।
शुक्र आनन्द और सुन्दरता का प्रदाता:
शुक्र को आनन्द का ग्रह कहा जाता है, वैसे सभी ग्रह अपने अपने प्रकार का आनन्द प्रदान करते है, सूर्य राज्य का आनन्द प्रदान करवाता है, मंगल वीरता और पराक्रम का आनन्द प्रदान करवाता है, चन्द्र भावुकता का आनन्द देता है, बुध गाने बजाने का आनन्द देता है, गुरु ज्ञानी होने का आनन्द देता है, शनि समय पर कार्य को पूरा करने का आनन्द देता है। शुक्र आनन्द की अनुभूति जब देता है, जब किसी सुन्दरता के अन्दर प्रवेश हो, भौतिक रूप से या महसूस करने के रूप से, जैसे भौतिक रूप से किसी वस्तु या व्यक्ति को सुन्दरता के साथ देखा जाये, महसूस करने के रूप से जैसे किसी की कला का प्रभाव दिल और दिमाग पर हावी हो जावे। शुक्र आनन्द के साथ दर्द का कारक भी है, जब हम किसी प्रकार से सुन्दरता के अन्दर प्रवेश करते हैं तो आनन्द की अनुभूति होती है, और जब किसी भद्दी जगह या बुरे व्यक्ति से सम्पर्क करते है तो कष्ट भी होता है।
शुक्र एक तेज कारक ग्रह है:
दूसरे ग्रहों की तरह से शुक्र के संबन्ध मेंं पुराणों मेंं अनेक रोचक उदाहरण मिलते है, मत्स्य पुराण के अनुसार शुक्र भृगु ऋषि के पुत्र है, उनकी माता का नाम ख्याति था। इन्द्र की पुत्री जयंती से शुक्र का विवाह हुआ था, इनकी दूसरी पत्नी जो गो है, वह पितरों की कन्या थी, उनकी गो नामक पत्नी से त्वष्ठा वरुत्री शंड और अमर्क नामक चार पुत्र पैदा हुये थे, शुक्र को दानवों का पुरोहित कहा जाता है, शुक्र ने अपने तपोबल से मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की थी, इसी विद्या के बल पर शुक्र मृत दानवों को पुन: जीवित कर देते थे, बृहस्पति के पुत्र कच ने शुक्र का सानिध्य पाकर उनके शिष्य बन गये थे, और उनकी पुत्री देवयानी की सेवा करने के बाद मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की थी, शुक्र ने एक हजार वर्ष वाले भयंकर धूम्रवत को सम्पन्न कर शिव से वरदान प्राप्त किया था। शिव ने उन्हे वरदान दिया कि वे अपने तप बुद्धि शास्त्र ज्ञान बल और तेज से समस्त देवताओं को पराजित करेंगे। ब्रह्मा की प्रेरणा से शुक्र ने ग्रह का रूप धारण किया था। यह शास्त्र कथा है, शास्त्र कथाओं का उद्देश्य केवल कथा के रूप मेंं याद करवाने की क्रिया होती है, उस कथा का अर्थ और कहीं जा कर निकलता है।
खगोलीय विज्ञान मेंं शुक्र:
सूर्योदय या सूर्यास्त के समय तीव्र द्युति वाले इस ग्रह को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है, इसलिये इसे भोर का तारा या साध्य तारा भी कहते हैं। सूर्य से शुक्र की मध्यम दूरी 67200000 मील है, इसका आकार पृथ्वी जैसा ही है। पृथ्वी का भूमध्यीय व्यास 7927 मील है, और शुक्र का 7700 मील है। 218मील प्रति सेकेण्ड की गति से शुक्र सूर्य की एक परिक्रमा 244 दिन 7 घंटे मेंं पूरी करता है।
ज्योतिष मेंं शुक्र:
ज्योतिष शास्त्र मेंं शुक्र को गुरु की भांति ही नैसर्गिक शुभ ग्रह की उपाधि प्रदान की गयी है। शुक्र स्त्री ग्रह है, जल का स्वामी, ब्राह्मण जाति, रजोगुणी शुभ्र ग्रह है। इसमेंं भी चन्द्रमा की तरह से सफेद किरणें दिखाई देती है, शरीर मेंं इसका स्थान जीभ तथा जननेन्द्रिय है। यह इन स्थानों से जीव को सब रसों का रसास्वादन कराता है, अर्थात सभी प्रकार के रसों का स्वाद जीभ से और मैथुन के समय जननेन्द्रिय को तिक्त और चरपरा आभास करवा कर आनन्द की अनुभूति प्रदान करता है। शुक्र के अस्त होने के समय कोई शादी सम्बन्ध जैसा शुभ कार्य नहीं किया जाता है, जातक का शुक्र कुंडली मेंं अस्त होता है, तो तमाम प्रकार के वीर्य विकार पाये जाते है, पुरुष की कुन्डली मेंं सूर्य के साथ शुक्र होने पर संतान बड़ी मुश्किल से पैदा होती है, और अधिकतर गर्भपात के कारण देखे जाते है, स्त्री की कुन्डली मेंं शुक्र और मंगल की युति होने पर पति पत्नी हमेंंशा एक दूसरे से झगडते रहते है, और जीवन भर दूरियां ही बनी रहती है। अक्सर शुक्र अस्त वाला जातक पागलों जैसी हरकतें किया करता है, उसके दिमाग मेंं बेकार के विकार पैदा हुआ करते है, वह बे?जूल के संकल्प मन मेंं ग्रहण किया करता है, और उन संकल्पं के माध्यम से अपने आसपास के लोगों को परेशान किया करता है। शुक्र की धातु के लिये कोई भी धातु जिस पर कलाकारी और खूबशूरती का जामा पहिनाया गया हो मानी जाती है, अनाजों और सब्जियों तथा फलों मेंं इसके स्वाद के साथ पकाने और प्रयोग करने की क्रिया को माना गया है। शुक्र ग्रह के कारण पैदा किसी भी बीमारी के लिये जातक को भूत-डामर तंत्र के अनुसार तुलादान करना चाहिये, तुलादान मेंं प्रयोग किये जाने वाले कारकों मेंं सफेद वस्त्र चावल फल पका हुआ स्वच्छ अन्न प्रयोग किया जाता है। शुक्र मीन राशि मेंं उच्च का और कन्या राशि मेंं नीच का माना जाता है।
शुक्र के नक्षत्र:
शुक्र के नक्षत्रों मेंं पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार भरणी, पूर्वाषाढ़ और पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र बताये गये है, भरणी नक्षत्र के अनुसार जो महिलायें इस नक्षत्र मेंं जन्म लेती है, वे किसी न किसी प्रकार से दूसरी महोलाओं के प्रति किसी न किसी प्रकार की कमी निकालने मेंं माहिर मानी जाती है, तथा पुरुषों मेंं नीचे के अंगों मेंं किसी न किसी प्रकार की कमजोरी मिलती है, और इस नक्षत्र मेंं पैदा हुये जातकों के प्रति दूसरे लोग अपने अपने अनुसार छिद्रान्वेषण किया करते हैं। इस नक्षत्र के पहले पद मेंं जन्म लेने वाला जातक अपने भाई बहिनों के द्वारा खूब सम्मानित किया जाता है, जातक या जातिका के पास काफी वाहन होते है, और जीवन भर वाहनों के द्वारा वह सुखी रहता है, पहले पद मेंं जन्म लेने वाला जातक हमेंंशा आज की सोचता है, और कल की उसे चिन्ता नहीं होती है। दूसरे पद मेंं जन्म लेने वाला जातक या तो सम्पत्ति अपने ननिहाल से प्राप्त करता है, अथवा वह अपनी सेवा से दूसरों से प्राप्त करता है, अपने विचारों को दूसरों के साथ मिलाकर चलता है, और विचारों का आधुनिक तरीकों से आदान प्रदान भी करता है। तीसरे पद मेंं जन्म लेने वाले जातक होटल कृषि रसायनों आदि के बारे मेंं काफी जानकार बनता है, चौथे पद मेंं जन्म लेने वाला जातक या तो नदी के किनारों पर या बन्दरगाहों पर अपना काम करता है, या रहने के लिये निवास बनाता है। अथवा पानी के जहाजों पर अपना कार्य करता है, और सामान को भेजने और मंगाने के काम मेंं माहिर होता है।पूर्वाषाढ नक्षत्र मेंं पैदा होने वाले महिला जातकों मेंं वे खूबसूरती की मिसाल मानी जाती है, जबकि पुरुष दूसरों की सेवा करने के लिये हमेंंशा आगे रहते है, इस नक्षत्र के चारों पदों मेंं जन्म लेने वाले जातक कार्य शैली मेंं अपने प्रकार के ही माने जाते है, उनको अधिकतर अपनी माताओं का दुख किसी न किसी प्रकार से झेलना पडता है। इसी प्रकार से अन्य नक्षत्रों के बारे मेंं आप वैदिक ज्योतिष की किताबों मेंं देख सकते है।
शुक्र की राशियां:
वृष और तुला शुक्र की राशियां है, वृष राशि भौतिक सुखों की तरफ अग्रसर करती है, और तुला राशि शारीरिक सुखों की तरफ अपना प्रभाव देती है, वृष राशि वाले जातक मेंहनती और सोच समझ कर काम करने वाले होते है, उनका उद्देश्य मात्र धन कमाना होता है, और धन वाले मामलों मेंं अपनी सोच रखते है, जबकि तुला राशि वाले जातक अपने आसपास के माहौल के साथ जो भी करते है, आपस का सामजस्य बिठाने के काम करते है, तराजू की तरह तौल कर अपना काम करते है, और न्याय के साथ व्यापारिक गतिविधियों की तरफ अपना प्रभाव दिखाते है, तुला राशि का स्थान कालपुरुष के अनुसार विवाह जीवन साथी और साझेदार के अनुसार देखा जाता है, जबकि वृष राशि वाले जातक अगर अपने पास पूजा पाठ या किसी प्रकार से रहने वाले साधनो मेंं धार्मिक विश्वास के साथ चलें तो उनका जीवन सुखी रहता है, इस प्रकार के कथन ‘‘मानसागरी’’ नामक ग्रंथ मेंं कहे गये हैं।
हाथ की रेखाओं मेंं शुक्र:
महिलाओं के बायें हाथ मेंं और पुरुषों के दाहिने हाथ मेंं शुक्र का स्थान अंगूठे के नीचे माना जाता है, एक उंचा स्थान अंगूठे के नीचे होता है, वही शुक्र का स्थान होता है, शुक्र पर्वत के नाम से जाने वाले इस स्थान से जातक की शुक्र की क्षमता का ज्ञान किया जा सकता है, जितना साफ और लालिमा लिये यह स्थान होता है, उतना ही जातक धनी और आराम पसंद होता है, इस पर्वत पर जितनी आडी तिरछी रेखायें होती है, उतनी ही परेशानियां जातक को धन कमाने के अन्दर आती है। जीवन रेखा से ऊपर यह स्थान जीवन रेखा के निकास से जो कि मंगल का स्थान माना जाता है, से शुरु होकर जीवन रेखा की समाप्ति पर जो कि राहु का स्थान माना जाता है, वहां पर समाप्त होता है, शुक्र एक पहाड़ की तरह से हाथ पर होता है, और जीवन रेखा इस पहाड़ के नीचे से बहने वाली नदी के रूप मेंं मानी जाती है। इस रेखा से जितनी रेखायें शुक्र पर्वत पर ऊपर की तरफ जा रही होती है, उतनी ही कमाई की सहायक नदियां जीवन मेंं अलग अलग समय मेंं अलग अलग तरीकों से धन और कार्य की उत्पत्ति का वृतांत बताती है, और जितनी रेखायें जीवन रेखायें नीचे की तरफ जा रही होती है, उतनी ही खर्च करने की रीतियां जीवन के अन्दर आ रही होती है, शुक्र पर्वत पर जाल राहु का प्रभाव बताता है, चौकोर चिन्ह गुरु का प्रभाव बताता है, सीधा त्रिकोण पुरुष संतान का द्योतक होता है, जो मंगल के रूप मेंं जाना जाता है, और उल्टा त्रिकोण स्त्री संतान का प्रभाव बताता है, एक समान्तर रेखा अगर शुक्र पर्वत के नीचे जीवन रेखा के साथ अगर जाती है तो कोई बुरी बला ऊपर से आने वाले भाग्य को रोकती है। शुक्र पर्वत पर जितने द्वीप होते है, उतने ही मकान जातक के पास पाये जाते हैं।
अंकशास्त्र मेंं शुक्र:
अंकविद्या मेंं 6का अंक हम शुक्र के लिये प्रयोग करते है, जिस तारीख को जातक का जन्म हुआ होता है, वही अंक जातक का भाग्यांक होता है, जो जातक 6, 15, 24 तारीखों मेंं पैदा हुये होते है, उनका स्वामी शुक्र माना जाता है। ऐसा जातक अपनी कार्योजनाओं को द्रढता पूर्वक पूरा करता है, और वह प्रकृति से प्रेमी होता है, उसका व्यक्तित्व आकर्षक होता है, वह अपने प्रेमी पर सर्वस्व अर्पित कर देता है। अर्थात किसी प्रकार का छल कपट इस तारीख को जन्में जातक के ह्रदय के अन्दर नहीं होता है, इस प्रकार के जातक को देखने वाले और कुछ ही सनझ बैठते है, लेकिन वह किसी के प्रति दुर्भावना नहीं रखता है, वह गणमान्य और कलाकार होता है और इसी प्रकार के व्यक्तियों पर अपना धन खर्च करने मेंं अपनी दूरदर्शिता समझता है, इस प्रकार के राग द्वेश ईर्ष्या से सख्त नफरत करते है, इस प्रकार का जातक किसी प्रकार विरोध और दुर्भावना का शिकार कभी कभी ही होता है, दूसरों को पटाने मेंं सिद्ध हस्त होता है, अगर 3, 6, 9, 12, 15, 18, 24, 27 और 30 तारीखों मेंं शुक्रवार का दिन हो तो जातक के विशेष शुभ होता है। जिन जातकों का जन्म 6तारीख के जोड मेंं हुआ हो वे शुक्र की पूजा अर्चना करने के बाद जाप करें तथा हीरा या जर्किन नामका पत्थर धारण करें, फिरोजा साढ़े पांच रत्ती का भी लाभदायक होता है। शुक्र प्रधान व्यक्ति प्राय: सुखी होते है, संगीत काव्यकला मनोरंजन मेंं अधिक मन लगाते है, लडाई दंगे मेंं मन नहीं लगाते है, और जल्दी किसी पर विश्वास भी नहीं करते है, हंसी मजाक करने वाले स्वच्छ वस्त्र धारण करने वाले बुद्धिमान विनम्र चतुर प्रसन्नचित्त कला प्रेमी शांति प्रिय सौन्दर्य के उपासक धन की इच्छा रखने वाले एवं भाग्यशाली होते है, वह देखते ही आदमी को पहिचान लेते है, कि वह क्या चाहता है, इस प्रकार के जातक गायन वादन अभिनय की शिक्षा प्राप्त करते है, उनका सुन्दर चेहरा रसीली बातें आकर्षण का केन्द्र होती है, वे काम प्रधान होते है, शुक्र प्रधान जातक इश्कबाज चंचल मद्यपानी एवं स्त्रियों से लाभ कमाने वाले होते है, खट्टी वस्तुयें के बहुत शौकीन होते है, स्वभाव से भुलक्कड और तर्क वितर्क मेंं दक्ष अधिक कामी स्वार्थी जैसे तैसे वह धन प्राप्त करने वाले होते है, सौम्य भोगी एवं सरल ह्रदय के स्वामी होती है, वे सौन्दर्य प्रसाधनों का अधिक उपयोग करते है, और स्त्री पुरुषों को और पुरुष स्त्रियों को प्रिय लगते हैं।
शुक्र से सम्बन्धित रोग:
शुक्र जनन सम्बन्धी रोग अधिक पैदा करता है, स्त्रियों मेंं रज और पुरुषों मेंं वह वीर्य का मालिक होता है, शुक्र जब खराब फल देता है, तो जातक को प्रमेंह मन्दबुद्धि वीर्य और रज विकार नपुंसकता और जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोग होते है। यदि किसी प्रकार से दवाई के प्रयोग करने के बाद भी रोग का अन्त नहीं हो तो समझना चाहिये कि कुन्डली मेंं शुक्र किसी न किसी प्रकार से खराब है, और शुक्र का समय भी चल रहा होता है मान लेना चाहिये। शुक्र का प्रभाव जब अच्छा होता है तो जातक के पास जमीन जो खेती के काबिल होती है, प्राप्त होती है, स्त्री सम्बन्धी सुख प्राप्त होता है, घर की सजावटें होने लगती है, कम्प्यूटर और टीवी घर मेंं अपना स्थान बना लेते है, व्यक्ति का नाम मीडिया मेंं चमकने लगता है।
शुक्र के रत्न और उपरत्न:
शुक्र के रत्नों मेंं हीरा करगी और सिम्मा का नाम मुख्य माना जाता है। हीरा संसार प्रसिद्ध है, करगी कहीं कहीं ही मिलती है, और सिम्मा जिसका दूसरा नाम जरकन है, कृत्रिम रूप से बनाया हुआ पत्त्थर है। इन रत्नों मेंं हीरा सबसे महंगा रत्न है, और सेन्ट के हिसाब से मिलता है, सवा पांच रत्ती का हीरा बहुत महंगा होता है, इसलिये इनको 6की संख्या मेंं या नौ की संख्या मेंं लेकर सोने की अंगूठी मेंं जडवा लेना चाहिये, और मध्यमा उंगली मेंं शुक्रवार के दिन जब भरणी नक्षत्र हो उस दिन शुक्र के मन्त्र का जाप करते हुये धारण करना चाहिये, रत्न की विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो जाती है, तब तक वह पूर्ण प्रभाव नहीं दे पाता है, जब तक उसकी प्रतिष्ठा नहीं की जाती है, वह केवल पत्थर है, जिसे प्रकार से मंदिर मेंं किसी प्रतिमा को लगा दिया जाये और उसकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो, तब तक वह केवल पत्थर का तरासा हुआ रूप ही समझा जायेगा।
शुक्र की जड़ी बूटियां:
शुक्र के लिये जो जातक हीरा धारण नहीं कर पाते है वे शुक्रवार को सरपोंखा की जड भरणी नक्षत्र मेंं सफेद धागे मेंं पुरुष दाहिने और स्त्री बायें बाजू मेंं बांध कर शुक्र का जाप करें, इससे भी जातकों को शुक्र का फल प्राप्त होना शुरु हो जाता है। सरपोंखा के साथ अरंड की जड को भी शुक्र की जडी माना गया है, अरंडी के फल की सफेद रंग की मिगी को लेकर उसे गर्म पानी के साथ डालने पर जो तेल पानी के ऊपर छहरा जाता है, उसे नित्य माथे से लगाने पर और शुक्र के रोगों मेंं उसे पीने पर जातक को शुक्र सम्बन्धी विकार खत्म होते हैं।
शुक्र के लिये दान:
भरणी पूर्वाफाल्गुनी पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र मेंं स्वयं के वजन के बराबर चावल उसमें थोड़ी सी चांदी थोडा सा घी सफेद वस्त्र चन्दन दही गंध द्रव्य चीनी हीरा या जरकन सफेद फूल मिलाकर दान करना चाहिये, किसी बड़ी पीड़ा मेंं गोदान भी किया जाता है, गोदान करने के लिये जहां पर गाय का दान करना संभव नहीं है, वहां पर सवा गज सफेद कपडे मेंं सवा सेर चावल और सफेद चन्दन को रख कर बांध लिया जाता है, उसे संकल्प के साथ किसी ब्राह्मण को दक्षिणा सहित दान कर दिया जाता है।
शुक्र से जुड़े व्यापार:
हीरे का व्यापार, आभूषणों के बनाने और आयात निर्यात करने का काम, लेन देन करने का काम, ब्याज के काम, इत्र सुगन्धित तेल साबुन सोडा मनिहारी
फैंसी स्टोर का काम फिल्म बनाने का काम फूलों से जुडे काम फर्नीचर और पुरातत्व वस्तुओं का व्यापार पशुधन की बिक्री और खरीद का काम शराब बनाने का और बेचने का काम कलाकारी और सौन्दर्य से जुड़ी वस्तुओं का काम आदि माने जाते हैं।
शुक्र से सम्बन्धित नौकरी:
फिल्मी पत्रिका संपादन, मूवी बनाना, कम्प्यूटर से एनीमेंशन बनाना, बेबसाइट बनाना, अभिनेता या अभिनेत्री बनकर दूसरों की फिल्मों मेंं काम करना, फिल्मी गीत और कहानी लिखना डायरेक्टर बनकर काम करना संगीत निर्देशक का काम करना फिल्म वितरक बनकर कमीशन कमाना संगीत की शिक्षा देना नाचने का काम करना, आकाशवाणी की नौकरी करना, टीवी मेंं कलाकारी का काम करना हड्डियों के जोडने और तोडने का काम करना नर्सिंग की ट्रेनिंग देना पुरातत्व विभाग की नौकरी करना आदि नौकरियां शुक्र के क्षेत्र मेंं आते हैं।
शुक्र का वैदिक मंत्र:
शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करने के लिये वैदिक रीति से ही उसे अपनाया जाता है, और इसे प्रयोग करते वक्त अक्षर और शब्द को मिलाकर जीभ को शरीर रूपी मशीन का बटन मानकर उच्चारण करने से आशातीत फायदा मिलता देखा गया है। शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय जो विधि प्रयोग की जाती है वह इस प्रकार से है:-
शुक्र के वैदिक मंत्र का विनियोग:
अन्नात्परिस्त्रुतेति मन्त्रस्य प्रजापतिऋषि:, अनुष्टुप छन्द:, शुक्रो देवता, शुक्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग:। शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय देहांगन्यास अनात्परिस्त्रुत: शिरसि (सिर)। रसं ब्रह्मणा ललाटे (माथा)। व्यपिबत्क्षत्रं मुखे (मुख)। पय: सोमं ह्रदये (हृदय)। प्रजापति: नाभौ (नाभि)। ऋतेन सत्यं कट्याम (कमर)। इन्द्रियं विपान र्ठंगुदे (गुदा)। शुक्रं वृषणे (लिंग)। अन्धस ऊर्वो: इन्द्रस्येन्द्रियं जानुनो: (घुटने)। इदं पय: गुल्यो: (गुल्फ)। अमृतं मधु पादयो: (पैर)।
शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय करन्यास:
अन्नात्परिस्त्रतो रसं अंगुष्ठाभ्याम नम:। ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं तर्ज्जनीभ्याम नम:। पय: सोमम्प्रजापति: मध्यमाभ्याम नम:। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं अनामिकाभ्याम नम:। विपानर्ठ: शुक्रमन्धस कनिष्ठिकाभ्याम नम:। इन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयोमृतं मधु करतल पृष्ठाभ्याम नम:।
शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय ह्रदयादिन्यास:
अन्नात्परिस्त्रतो रसं ह्रदयाय नम:। ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं शिरसे स्वाहा:। पय: सोमम्प्रजापति: शिखायै वषट। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं कवचाय हुम। विपानर्ठ: शुक्रमन्धस नेत्रत्राय वौषट। इन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयोमृतं अस्त्राय फट।
शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय ध्यान का मंत्र:
श्वेताम्बर: श्वेतवपु: किरीटी चतुर्भुजो दैत्यगुरु: प्रशान्त:। तथाऽक्षसूत्रंच कमण्डलुंच दण्डंच बिभ्रद्वरदोऽस्तु मह्यम॥
शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय शुक्र-गायत्री का प्रयोग
ॐ भृगुवंशजाताय विद्यमहे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्न: कवि: प्रचोदयात॥
शुक्र का वैदिक मंत्र:
ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: भूर्भुव: स्व: ú अन्नात परिस्त्रुतो रसम्ब्रह्मणा व्यापिबत्क्षत्रम्पय: सोमं प्रजापति:। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं व्विपानर्ठं शुक्रमन्धसऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयो मृतम्मधु। ú स्व: भुव: भू: ú स: द्रौं द्रीं द्रां ú स: शुक्राय नम:॥
शुक्र का वैदिक जाप मंत्र:
ॐ द्राँ द्रीँ द्रौ स: शुक्राय नम:। इस मंत्र का उपरोक्त विधि से 16000 प्रतिदिन, सोलह दिन तक लगातार शुक्र के नक्षत्र से शुरु करने के बाद लगातार जारी रखा जाना चाहिये, जिव्हा का अभ्यास सोलह दिन मेंं पूरा हो जाता है, उसके बाद रोजाना त्रिसंध्या (सुबह दोपहर शाम) मेंं कम से कम एक माला का जाप (108बार) शुक्र के बुरे प्रभाव को रोकने और सुख समृद्धि को बढ़ाने के लिये करना चाहिये।
शुक्र का स्तवराज:
जो लोग वैदिक मंत्र को क्रिया से नहीं कर सकते है, और अपनी श्रद्धा से शुक्र का जाप करना चाहते है, अथवा आज की भौतिक जिन्दगी मेंं उनके पास फुर्सत नहीं है, तो शुक्र स्तवराज को सोलह दिन तक देश काल और परिस्थिति के अनुसार 108बार और उसके बाद नित्य तीन बार पाठ करने से भी फायदा मिलता है।
अस्य श्रीशुक्रस्त्वराजस्य प्रजापतिऋषि: अनुष्टुप छन्द:। शुक्रो देवता शुक्रप्रीत्यर्थम जपे विनोयोग:॥
नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ दैत्य दानव पूजित:। वृष्टि रोध प्रंकत्रे च वृष्टि कत्रे नमो नम:॥
देवयानि पित: तुभ्यम वेद वेदांग पारग। परेण तपसा शुद्ध: शंकर: लोक सुन्दर:॥
प्राप्त: विद्यां जीवनाख्यां तस्मै शुक्रात्मने नम:। नम: तस्मै भगवते भृगु पुत्राय वेधसे॥
तारा मण्डल मध्यस्थ स्व भासा सित अम्बर। यस्य उदये जगत सर्वम मंगलं अर्ह भवेत इह॥
अस्तम य: ते हि अरिष्टम स्यात तस्मै मंगल रूपिणे। त्रिपुरा वासिन: दैत्यान शिव बाण प्रपीडितान॥
विद्याया अजीवय: शुक्र: नमस्ते भृगु नन्दन। ययाति गुरुवे तुभ्यम नमस्ते कवि नन्दन॥
बलि राज्य प्रद: जीव: तस्मै जीवात्मने नम:। भार्गवाय नम: तुभ्यम पूर्व गीर्वाण वन्दित:॥
जीव पुत्राय य: विद्याम प्रादात तस्मै नम: नम:। नम: शुक्राय काव्याय भृगुपुत्राय धीमहि॥
नम: कारण रूपाय नमस्ते कारणात्मने। स्तवराजम इमम पुण्यम भार्गवस्य महात्मन:॥
य: पठेत श्रुणुयात वा अपि लभते वांछितं फलम। पुत्रकाम: लभेत पुत्रान श्रीकाम: लभते श्रियम॥
राज्यकम: लभेत राज्यं स्त्रीकाम: स्त्रियम उत्तमाम। भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यम समाहितै:॥
अन्य वारे तु होरायाम पूजयेत भृगु नन्दनम। रोगार्त: मुच्यते रोगात भयार्त: मुच्यते भयात॥
यत यत प्रार्थयते जन्तु: तत तत प्राप्नोति सर्वदा। प्रात:काले प्रकर्तव्या भृगु पूजा प्रयत्नत:॥
सर्वं पाप विनिर्मुक्त: प्राप्नुयात शिव सन्निधिम। नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ दैत्य दानव पूजित:॥
शुक्र क्यों प्रताडि़त करता है?
पिछले संदर्भों मेंं हमने शुक्र की महिमा का अलग अलग रूप से वर्णन किया है। इस संदर्भ मेंं हम यह बताना चाहेंगे कि शुक्र अति शुभ ग्रह है, लेकिन यह जातक को महान कष्टों के सागर मेंं क्यों और किस प्रकार से फेंक देता है। क्यों जातक को कष्ट प्रदान करता है, क्यों कष्टों की बौछार शुक्र करता है, या प्राणी अपने किये हुये अशुभ कर्मों का ही फल जन्म जन्मानतर सुख दुख रूप मेंं प्राप्त करता है। शुक्र क्यों रति सुख नहीं लेने देता, क्यों रति सुख से वंचित कर देता है। सारा वैभव होते हुये उस वैभव का सुख नहीं लेने देता, आदि तत्वों का सूक्षम प्रमाणिक स्पष्ट शास्त्रोलिखित सरस व्याख्या यहां करेंगे।
शुक्र अति शुभ ग्रह है, शुक्र भगवान शंकर की घनघोर तपस्या कर वरदान मेंं अमरत्व तथा मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त की, यही कारण था कि शुक्र मरे हुये राक्षसों को पुन: जीवित कर देते थे। शुक्र प्राणीमात्र के ब्रह्मरन्ध्र मेंं अमृत संचार करता है। दूसरा वरदान शुक्र के पास भगवान शंकर का यह था कि गुरु बृहस्पति से तीन गुना बल अधिक था, और उसी बल के द्वारा उसने अतुलित बल और वैभव की प्राप्ति कर ली थी। अर्थात जो भी संपत्ति कोई कथिन परिश्रम से प्राप्त करे उसे वह साधारण से मार्ग से प्राप्त कर ले। तीसरा वरदान उसे शंकरजी से यह मिला कि सभी ग्रह 6, 8, 12 भाव मेंं बलहीन हो जाते है, और अपना प्रभाव नहीं दे पाते है, लेकिन शुक्र को वरदान मिला कि 6भाव को छोडकर वह 8और 12 मेंं और अधिक बलवान हो जायेगा, और जातक को जो शुक्र को मानेगा और जानेगा, उसे अनुलित सम्पत्ति का मालिक बना देगा। चौथा वरदान भगवान शंकर ने उसे दिया कि जो भी उसे मानेगा, उसकी सेवा और पूजा करेगा उसे वह उच्च पदासीन कर देगा, और कुशल प्रशासक बना देगा, यह चार वरदान भगवान शंकर से शुक्र को प्राप्त हुये।
कामकला रति सुख शुक्र की कृपा से प्राप्त होता है, यदि शुक्र जीव को कामोत्तेजक नहीं करे, तो संसार की उत्पत्ति ही समाप्त हो जावे, यद्यपि रति का स्वामी कामदेव है, लेकिन बगैर शुक्र के वह भी नीरस है। जन्मांक मेंं जब शुक्र भा 6मेंं या अस्त होता है, या शुक्र हाथ के पर्वत मेंं नीचे बैठ जाता है, तो जातक को संतान सुख नहीं प्राप्त होता है, उसका कारण जातक के वीर्य मेंं शुक्राणुओं की कमी मानी जाती है। और यह प्रभाव शुक्र जातक को पिछले अनैतिक कार्यों की वजह से देता है। शुक्र के अस्त हो जाने से शादी विवाह आदि सभी मंगल कार्य जो संतान को बढ़ाने वाले होते है बन्द हो जाते है, और लोग उस समय को तारा डूबने का समय कहते है, भगवान शुक्राचार्य दैत्य गुरु है, दैत्य दानवों पर इनकी नित्य कृपा बनी रहती है, महाराजा बलि का नाम शास्त्रों मेंं लिखा मिलता है, की सहायता के लिये शुक्राचार्य ने भगवान विष्णु को बामन अवतार धारण करते वक्त पृथ्वी को दान मेंं न देने के लिये अपनी एक आंख कमंडल मेंं संकल्प के लिये जल नहीं आने देने के लिये ? तभी से शुक्र का रूप एक आंख का माना जाता है, तभी से कहा जाने लगा है कि माया के एक आंख होती है, वह या तो आती नहीं और आती है तो टिकाने के लिये एक ही लक्षय को याद रखना पडता है, या तो अच्छा या फिर बुरा। शुक्र के सम्बन्ध के बारे मेंं एक कथा और प्रचलित है कि जो व्यक्ति भोर का तारा यानी शुक्र के उदय के समय जागकर अपने नित्य कर्मों मेंं लग जाता है, वह तो लक्ष्मी का धारक बन जाता है, और जो व्यक्ति सूर्योदय के समय जग कर अपने नित्य कर्मों के अन्दर लगता है, वह संसार के साथ चल कर केवल पेट भरने का काम कर सकता है।

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Thursday, 12 May 2016

शुक्र-चंद्रमा की युति सौंदर्यप्रदायक



शुक्र-चंद्रमा की युति सौंदर्यप्रदायकसुंदरता अपने आप में काफी मनमोहक होती है। हर व्यक्ति, हर नर-नारी अपने आप को सुंदर दिखाने की कोशिश करता है और इसके लिए अनेक प्रयास भी करता है। लेकिन प्राकृतिक सौंदर्य अपने आप में अलग होती है। यहां सौंदर्य से तात्पर्य व्यक्ति की बनवाट से है जो व्यक्ति को आकर्षित करती है। ज्योतिष शास्त्र के आधार पर देखा गया है कि कुंडली में शुक्र-चंद्रमा की युति व्यक्ति को सौंदर्य प्रदान करती है जो इस बात पर निर्भर करती है कि शुक्र और चंद्र कुंडली के किस भाव में बैठे हैं और किस ग्रह से प्रभावित हैं। इस लेख में किस राशि में चंद्र और शुक्र की युति होने से व किसी अन्य ग्रह का प्रभाव पड़ने पर व्यक्ति कैसा होगा इसका विवेचन किया जा रहा है। मेष तथा वृश्चिक: इस राशि में शुक्र और चंद्र की युति होने से व्यक्ति सुंदर होने के साथ-साथ गेहंुआं रंग तथा लालिमा लिये हुए होता है। वृषभ तथा तुला: इस राशि में यह युति होने से जातक का रंग गोरा तथा सफेदपन पर होता है। मिथुन तथा कन्या: इस राशि में यह युति होने से व्यक्ति लंबा, गेहुंआं तथा कुछ -कुछ पक्का हुआ रंग का होता है। किन्हीं-किन्हीं परिस्थितियों में जहां कि इस युति पर राहु अथवा केतु की पूर्ण दृष्टि पड़ रही हो तो व्यक्ति सांवला होता है किंतु होता है आकर्षक। कर्क राशि: कर्क राशि में यह युति होने से व्यक्ति एकदम गोरा एवं आकर्षक होता है। सिंह राशि: सिंह राशि पर यह युति होने से मनुष्य का रंग सांवला एवं ललाई लिये होता है तथा पक्का-पक्का सा होता है। ऐसे में यदि केतु की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसे व्यक्ति का रंग कभी-कभी चितकबरा भी होता है। धनु एवं मीन: इस राशि में शुक्र-चंद्रमा की युति व्यक्ति को अत्यधिक सुंदर बनाती है। ऐसे जातक का रंग बिल्कुल गोरा, साफ एवं आकर्षक होता है तथा व्यक्ति की चमड़ी काफी कोमल होती है एवं रंग पीलापन लिये हुए होता है। मकर तथा कुंभ: इस राशि में यह युति होने से व्यक्ति सुंदर होने के साथ-साथ सांवलापन लिये हुए होता है। चमड़ी कठोर तथा पकी-पकी सी होती है। ऐसे में यदि इस युति पर राहु अथवा केतु की पूर्ण दृष्टि पड़ रही हो तो व्यक्ति काले रंग का होता है। फिर भी उसका चेहरा एवं शरीर की बनावट आकर्षक होती है।

राशिफल 13 मई 2016

ग्रह-स्थिति के कारण शुक्रवार को कुछ लोग ऑफिस, फिल्ड, निवेश, लेन-देन या प्रॉपर्टी से जुड़े गलत फैसले भी ले सकते हैं। जिससे नुकसान होगा। बिना सोचे-समझे बोलकर कुछ लोग अपनी इमेज खराब कर लेंगे। वहीं कुछ राशियों के लिए ग्रहों की अनुकूल स्थिति होने से दिन अच्छा रहेगा। सोचे हुए काम पूरे होंगे। धन और प्रेम संबंधी मामलों में भी कुछ लोगों के लिए दिन अच्छा रहेगा।
मेष - पॉजिटिव -खुद पर भरोसा रखें। करियर को लेकर कुछ नए अवसर मिलेंगे। कुछ नए रास्ते खुलते नजर आएंगे। आप जिस रास्ते पर चल रहे हैं, उस पर आगे बढ़ते रहें और मेहनत करें। धैर्य जरूरी है। आज कई जगह लोगों को आपकी जरूरत महसूस होगी। अदालती काम में सफलता मिलेगी। प्रेम प्रस्ताव मिल सकता है। नया रोमांस शुरू हो सकता है। अपनी भावनाएं व्यक्त करेंगे। चली आ रही पुरानी परेशानी खत्म होने से संतोष रहेगा। आज आपको कोई अच्छी खबर भी मिल सकती है।
नेगेटिव -आत्मविश्वास में कमी न आने दें। दिन भर आपकी भावनाओं में उतार-चढ़ाव रहेगा। एक तरह से सुस्ती भी हो सकती है। कुछ बातों को लेकर मन में अनिश्चितता जरूर हो सकती है। अपनी ही योजना को लेकर मन में संदेह भी हो सकते हैं। दिन थोड़ा परेशानियों वाला भी रहेगा। कोई फैसला लेने में आप खुद को थोड़ा परेशान महसूस करेंगे।
वृष - पॉजिटिव -आज सुबह की घटनाएं ही बहुत खुशनुमा रहेंगी। आज आप घर के लिए खरीदारी कर सकते हैं। परिवार के साथ समय बीतेगा। आज आप पुराने मामलों से बाहर निकलें। जो भी पुराने मसले परेशानी दे रहे हैं, उन्हें पूरी तरह भूल जाएं। काम का जुनून रहेगा। ऑफिस में आपको किसी नए काम की जिम्मेदारी दी जा सकती है। पैसों से आपका कोई काम नहीं रुकेगा। अचानक धन लाभ होगा। धैर्य रखेंगे और आप सक्सेस हो जाएंगे। रुके हुए कामों में गति आएगी। फालतू यात्रा के भी योग बन रहे हैं। आपके कामकाज की तारीफ होगी। लोगों का सहयोग मिलेगा।
नेगेटिव -झुंझलाहट और बेचैनी हो सकती हैं। सेहत संबंधी परेशानियां हो सकती है। अपमानजनक स्थिति से भी परेशान हो सकते हैं। अधिकारियों पर गुस्सा आ सकता है।
मिथुन - पॉजिटिव -किसी भी तरह की जल्दबाजी करने से बचें। आज आगे बढ़ने के कुछ नए मौके मिल सकते हैं। नौकरी के मामलों में आप बेहद व्यावहारिक भी हो सकते हैं। आपके सामने कई तरह के मामले रहेंगे। बहुत सी चीजों में व्यस्त रहेंगे। समस्या से आसानी से निपट लेंगे। आपके मन में जो योजना है , वो आज आपको कोई बड़ा फायदा करवा सकती है। आपके ज्यादातर काम जो अधूरे थे वो पूरे हो जाएंगे। आप वाणी के दम पर सोचे हुए सारे काम पूरे कर सकते हैं और करेंगे भी। कारोबारी छोटी यात्रा हो सकती है। न्यायालयीन कामकाज में सफल भी रहेंगे।
नेगेटिव -आज होने वाले नुकसान को भी देख लें। कोई भी फैसला अचानक करने से बचें। आज कुछ कठिन स्थितियां दिन भर आपको उलझाए रखेंगी। आज कोई बड़ा निवेश न करें। किसी को पैसा उधार देने से भी बचें।
कर्क - पॉजिटिव -किसी व्यक्ति के साथ आपके संबंध बहुत अच्छे हो जाएंगे। दिन आपके लिए अच्छा है। बिगड़े हुए रिश्ते और काम आज सुधर जाएंगे और सुलह भी हो जाएगी। आज साथ के लोगों से आपका व्यवहार दोस्ती भरा रहेगा। आप खुश भी रहेंगे। नौकरी और करियर से संबंधित कुछ नए मौके आज आपको मिल सकते हैं। आज स्वतंत्रता से काम करने लेने की इच्छा रहेगी। ऑफिस की समस्याएं आज हल होंगी। स्थिति का नियंत्रण अपने हाथ में लेने की कोशिश करेंगे। लोग आपसे सलाह लेंगे। आने वाले दिनों की योजना बनेंगी। पिछले निवेश से फायदा होगा। रूटीन और इनकम के कामों में पार्टनर का सहयोग मिलेगा।
नेगेटिव -दूसरों की रोक-टोक आपको अच्छी नहीं लगेगी। अधीरता और छटपटाहट भी महसूस होगी। आप हर हालत में जरूरत से ज्यादा जोखिम लेने से बचें। फालतू खर्चों से भी बचकर ही रहें।
सिंह - पॉजिटिव -आज आपको मेहनत का अच्छा फल भी मिलेगा। आत्मविश्वास और आपकी उम्मीदें बढ़ी हुई रहेगी। जो निमंत्रण मिलेगा, जो अवसर मिलेगा, आप सभी को बेधड़क स्वीकार करते जाएंगे। आज कुछ अच्छे फैसले भी आप ले सकते हैं। कुछ बेहद व्यावहारिक फैसले भी आप करेंगे। महत्वपूर्ण मामलों में अनुभवी लोगों की सलाह से कोई अच्छा फैसला भी ले सकते हैं। नौकरी में प्रगति होगी। मन प्रसन्न रहेगा। जीवनसाथी का सहयोग मिलेगा। धन लाभ होने के योग हैं।
नेगेटिव -ज्यादा काम करना पड़ सकता है। ऐसे परिणाम आपके फेवर में नहीं होंगे तो आपका मूड भी खराब हो जाएगा। दौड़-भाग भी ज्यादा करनी पड़ सकती है। बिजनेस और कार्यक्षेत्र से जुड़ी यात्राएं भी करनी होंगी। लापरवाही और उतावले होकर कुछ फैसले करने से नुकसान भी हो सकता है। ज्यादा लापरवाही के कारण कोई समस्या में भी पड़ सकते हैं। थोड़े सावधान रहें।
कन्या - पॉजिटिव -किसी काम से आपको अच्छा फायदा मिलेगा। गुप्त रूप से कई घटनाएं हो सकती हैं, जो आपके पक्ष में रहेंगी। आज आपको अचानक किसी परेशानी का समाधान मिल जाएगा। मन बहुत सशक्त स्थिति में है। अपने आसपास मौजूद लक्षणों और इशारों को समझने की कोशिश करें। धैर्य और सकारात्मक दृष्टिकोण रखें। कोई व्यक्ति आपके लिए बहुत ही मददगार रहेगा। आपको समय पर जरूरी मदद या सलाह भी मिल जाएगी। दूसरों के साथ मिलजुल कर काम करने के लिए बहुत अच्छा समय है। आप किसी को अपने विचार से सहमत कराने का प्रयास करते हैं, तो आपके लिए दिन शुभ रहेगा। अधिकारी लोग आज आपसे प्रसन्न रहेंगे। मांगलिक समारोह में शामिल होने का मौका मिल सकता है। नए दोस्तों से मुलाकात फायदेमंद साबित होगी।
नेगेटिव -आज कोई खास काम टल सकता है। आज आप किसी मामले में हैरान हो सकते हैं। क्या करना है और किस दिशा में बढऩा है, इसे समझने में आपको थोड़ी परेशानी महसूस होगी। गलतफहमी हो सकती है, ध्यान रखें।
तुला - पॉजिटिव -तुला राशि के लोगों के लिए दिन थोड़ा ठीक है। दोस्तों और प्रेमीजनों से मन की बात कहने के लिहाज से अच्छा दिन है। दोस्त आज आपके लिए बहुत मददगार रहेंगे। सामूहिक कामों में आपको सफलता मिलेगी। ऑफिस का काम तेजी से और आसानी से निपटता जाएगा। आदर्शवादी विचार रहेंगे, लेकिन कई मामलों में आप बेहद व्यावहारिक भी रहेंगे। आज कम से कम समय में बहुत से काम निपटाने की कोशिश करेंगे। किसी की मदद करेंगे। आप सभी को साथ को लेकर चलने में सफल होंगे। बिजनेस में फायदा मिलेगा। अधिकारियों का सहयोग भी मिलेगा।
नेगेटिव -दूसरों की समस्याओं से आप भी परेशान हो सकते हैं। कुछ झगड़ालू लोगों से उलझ सकते हैं। आज आप लोगों की बातों में न आएं। कुछ लोग आज आपसे झूठे वादे भी कर सकते हैं।
वृश्चिक - पॉजिटिव -धन और परिवार के सहयोग से खुश हो जाएंगे। किस्मत का भी बहुत साथ मिलेगा। सोचे हुए काम पूरे होंगे। कार्यक्षेत्र में जिस पहचान और सम्मान के लिए कोशिश करते आ रहे हैं, वह अब आपके बेहद नजदीक है। गोचर कुंडली में भाग्य स्थान का चंद्रमा आपकी महत्वाकांक्षाओं को और बढ़ा सकता है। समय अनुकूल है। करियर और अपने पेश में प्रगति के लिए हर संभव कोशिश करेंगे। आज लोगों पर अच्छा प्रभाव छोडऩे का मौका मिल सकता है। जो आगे चलकर आपको फायदा देगा। मेहनत के दम पर ज्यादा से ज्यादा काम निपटाने की कोशिश करेंगे और सफल भी हो जाएंगे। आज कुछ लोग आपको प्रभावित करने की कोशिश करेंगे। भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। दलाली का काम करने वाले को फायदा हो सकता है।
नेगेटिव -आज आप विद्रोही तेवर न अपनाएं। अपने से बड़े लोगों का सहयोग नहीं मिलेगा। परम्पराओं या नियमों का विरोध करने से आपका ही नुकसान होगा। एकाग्रता बनाए रखने में थोड़ी परेशानी महसूस करेंगे। जोखिम भरे निवेश में नुकसान होगा। साथी की उपेक्षा न करें।
धनु - पॉजिटिव -आज आपके साथ कुछ सुखद घटनाएं भी अचानक और आश्चर्यजनक ढंग से हो सकती है। शिक्षा और यात्रा के कुछ नए मौके आज आपको मिल सकते हैं। महत्वाकांक्षा और मनोबल के दम पर आज आप करियर में आगे बढ़ सकते हैं। किसी नौकरी की कोशिश कर रहे हैं तो आपको जल्दी ही सफलता मिल सकती है। जब तक सकारात्मक रहेंगे, आपके साथ भी सब सकारात्मक रहेगा। समय के साथ चलें। अपना मनोबल बनाए रखें।
नेगेटिव -आज आपको कोई नुकसान की खबर मिल सकती है। थोड़ा सावधान भी रहना होगा, लेकिन साथ ही किसी भी स्थिति का विरोध न करें। धैर्य रखें। खुद को शांत रखें। कोई नया काम शुरू न करें। आज आपकी गुप्त बातें या प्लान सबके सामने आ सकते हैं। महत्वपूर्ण बातों को सार्वजनिक होने से बचाएं। आज आप बहुत सारे कामों में बिजी रहेंगे। परिणाम, मेहनत से कुछ कम ही मिलेगा। वाणी पर संयम रखें। अनैतिक कामों में रूचि होगी। सावधान रहें। व्यापार में थोड़ी परेशानी हो सकती है।
मकर - पॉजिटिव -आपको अपने कामों की वजह से सम्मान मिलेगा। पार्टनर से सहयोग ओर फायदा मिलेगा। दिन शुभ रहेगा। रोजमर्रा के काम समय पर पूरे हो जाएंगे। थोड़े तैश में रहेंगे। जो भी फैसला करें, सोच विचार कर और अपने विवेक से करें। परिवार के लोगों और दोस्तों से सलाह जरूर करें। उन लोगों की सलाह से ही आपको सही रास्ते का अंदाज लगेगा। आज किसी योजना में बदलाव भी करना पड़ सकता है। आप किसी भी स्थिति पर जितने शांत रहेंगे, आपके लिए उतना अच्छा रहेगा। परिवार के साथ घूमने जा सकते हैं। घर-परिवार और ऑफिस में लाभ और सहयोग मिलेगा। जमीन से संबंधित व्यापार करने वाले को लाभ मिलेगा। गरीब को अन्न का दान करें।
नेगेटिव -कोई भी बड़ा फैसला तैश में आकर न लें। पैसों के मामलों में सावधान रहें। आप पर किसी तरह का दबाव भी बनाया जा सकता है। फालतू पैसा खर्च हो सकता है।
कुंभ - पॉजिटिव -आज आप लोगों से भी अपना काम करवा लेंगे। दुश्मनों पर जीत हो सकती है। करियर को सुरक्षित करने के लिए सबसे अच्छा समय है। जिम्मेदारी की भावना के दम पर आपको सफलता मिलेगी। कोई खास काम आपको दिया जा सकता है। जिसमें आपको आनंद आएगा। महत्वपूर्ण सूचनाएं मिल सकती हैं। आपका आकर्षण चरम पर होगा। सबकी निगाहें आप पर होंगी। लोग आपको किसी न किसी काम के लिए तलाश करेंगे। आज आप दूसरों को खुश रखने की हर संभव कोशिश करेंगे। उदारता रहेगी। कोर्ट-कचहरी से जुड़े कामों में आपकी जीत होगी। कोई पुराना लोन बाकी रहा हो तो वो चुका देंगे। रुके हुए काम आज पूरे हो जाएंगे। ऑफिस में अधिकारी आपसे खुश रहेंगे। काम के लिए समर्पण रहेगा।
नेगेटिव -भाइयों के साथ छोटी-मोटी बहस भी हो सकती है। आज आपकी बातों से साथ के या आसपास के लोगों को परेशानी हो सकती है। दूसरों को खुश करने के चक्कर में आप कुछ गलत बात या ऐसे ही वादे भी कर सकते हैं। जरूरत से ज्यादा खर्चा हो सकता है।
मीन - पॉजिटिव -आज आपको अपनी अहमियत पता चल सकती है। आपके काम की तारीफ होगी। सम्मान की इच्छा आपके लिए एक भावनात्मक मुद्दा बन सकती है। ऑफिस में अधिकारी आपसे प्रभावित होंगे। समस्याएं निपटाने में आप सफल रहेंगे। आज आपके रोजमर्रा के काम पूरे हो जाएंगे। कोई काम रुकेगा नहीं। लिखा-पढ़ी के कामों में आपको फायदा होगा। आज आप हर मामले को अपने स्तर से निपटा लेंगे। राजनीतिज्ञों को कोई बड़ा पद मिल सकता है। आज आपकी ही कोई योजना चल जाएगी। उससे आपको फायदा भी होगा। नौकरी में पदोन्नति के योग बन रहे हैं। बिजनेस करने वाले लोगों को कोई बड़ा फायदा हो सकता है। बिजनेस में फायदा होगा। पुराने दोस्तों से बातचीत या मुलाकात हो सकती है।
नेगेटिव -साथ के कुछ लोगों के कारण आज कार्यक्षेत्र में कठिन स्थितियां बन सकती हैं। हो सकता है आज आपको सोचने-समझने के लिए समय न मिल सके। कोई बड़ा या आर-पार का फैसला जल्दबाजी में करने से बचें। उस व्यक्ति से कॉन्टैक्ट करने में जरा भी संकोच न करें, जो आपके लिए मददगार हो सकता हो। कर्ज लेना चाह रहे हैं तो रुक जाएं। कर्ज लेने की न सोचें, वरना लंबे समय तक परेशान रहेंगे। अपनी सेहत का ध्यान रखें।

हाथों में विभिन्न तरह के चिह्न

तीनों ओर से परस्पर मिली हुई रेखाएँ त्रिभुज कहलाती हैं, गहरी रेखाओं से निर्मित त्रिभुज शुभ फलदायी होता है। वैसे तो त्रिभुज बहुत कम हाथों में पाये जाते हैं। यह जितना ज्यादा बड़ा होगा, उतना श्रेष्ठ एवं फलदायी माना जाता हैं। जिस व्यक्ति के हाथ के मध्य में त्रिभुज होगा। वह सद्गुणी, सच्चरित्र वाला, भाग्यवान, क्रियाशील, ईश्वर में आस्था रखने वाला और उन्नतिशील होता है। ऐसा व्यक्ति शान्त एवं मधुरभाषी, तथा धीर-गम्भीर होता है। त्रिभुज जितना बड़ा होगा, व्यक्ति उतना ही विशाल हृदय तथा कठिनाईपूर्वक सफलता प्राप्त करने वाला व्यक्ति होता है तथा आत्मविश्वास कम होता है। यदि बड़े त्रिभुज में एक ओर छोटा त्रिभुज बन जाये तो वह अवश्य ही उच्च पद को प्राप्त करता है। मंगल क्षेत्र पर निर्दोश त्रिभुज होने से व्यक्ति धैर्यवान, रणकुशल तथा वीरता के लिए राष्ट्रीय पुरष्कारों से सम्मानित होता है, युद्ध में वह अपूर्व वीरता दिखलाता है। मुसीबत में भी अपने लक्ष्य से विचलित नहीं होता। ऐसा व्यक्ति सेना का कोई बड़ा आफीसर हो सकता है। किन्तु दूषित त्रिभुज होगा तो व्यक्ति निर्दयी और कायर होगा।
बुध क्षेत्र पर त्रिभुज होने से सफल वैज्ञानिक या अच्छा व्यापारी होता है। उसका व्यापार देश-विदेश में फैला होता है तथा ये दूसरे की कमजोरी समझने में माहिर होते हैं। गुरु क्षेत्र में ़ित्रभुज होने से व्यक्ति चतुर, कार्य में दक्ष, कुशाग्र बुद्धि वाला एवं सदैव उन्नति की आकांक्षा वाला होता है। ऐसे व्यक्ति धूर्त एवं सफल कूटनीति वाले भी होते हैं। लोगों को अपने प्रभाव में रखने की कला इनमें खूब होती है त्रिभुज में दोष होने पर व्यक्ति घमण्डी, बातूनी तथा स्वयं की तारीफ करने वाला होता है। शुक्र क्षेत्र में निर्दोश त्रिभुज होने से व्यक्ति का आंशिक मिजाज, सरल तथा सौम्य स्वभाव का स्वामी होता है। ऐसे व्यक्ति ललित कला, संगीत, नृत्य आदि में रुचि रखने वाले होते हैं। दूषित त्रिभुज होने से व्यक्ति को कामान्ध बनाता है। अगर स्त्री के हाथ में ऐसा त्रिभुज होगा, तो वह परपुरुष गामिनी होती है। शनि क्षेत्र पर निर्दोष त्रिभुज होने से व्यक्ति तंत्र-मंत्र साधना में दक्ष एवं गुप्त विद्या तथा वशीकरण का ज्ञाता होता है। दोषपूर्ण त्रिभुज होने पर व्यक्ति को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का ठग एवं धूर्त बनाता है। हृदय रेखा पर यह चिह्न होने से लेखन कार्य में ख्याति प्राप्त होती है। भाग्य रेखा पर होने से भाग्योन्नति में बाधाएं आती हैं। चन्द्र रेखा पर होने से विदेश यात्रायें होती हैं। विवाह रेखा पर होने से विवाह में बाधा होती है। आयु रेखा पर होने से दीर्घायु मिलती है।
वर्ग
चार भुजाओं से घिरे हुए क्षेत्र को वर्ग कहते हैं। कुछ लोगों के मत से इसे समकोण भी कहा जाता है। जब एक सुविकसित वर्ग से होकर भाग्य रेखा निकल रही हो तो व्यक्ति के भौतिक जीवन में यह संकट का द्योतक है। जिसका सम्बन्ध आर्थिक दुर्घटना या हानि से है। परन्तु वर्ग को पार करके आगे बढ़ती हुई भाग्य रेखा खतरा नहीं उत्पन्न करती। जब वर्ग रेखा से बाहर हो तथा स्पर्श मात्र हो एवं शनि पर्वत के नीचे हो तो यह दुर्घटना से रक्षा का सूचक है। जब मस्तिष्क रेखा सुनिर्मित वर्ग से निकलती है तो यह स्वयं मस्तिष्क की शक्ति और सुरक्षा का चिह्न माना जाता है। जब वर्ग मस्तिष्क रेखा के ऊपर उठ रहा हो और शनि के नीचे हो तो सिर में किसी प्रकार के खतरे का सूचक है। हृदय रेखा किसी वर्ग में प्रवेश करने से प्रेम के कारण भारी संकट का सामना करना पड़ता है। जब जीवन रेखा वर्ग में से गुजरती हो तो यह इस बात का सूचक है कि उस आयु पर व्यक्ति की दुर्घटना होगी, परन्तु मृत्यु से रक्षा होगी। शुक्र पर्वत पर होने से काम संवेगों के कारण संकट से रक्षा होती है, ऐसी स्थिति में व्यक्ति काम वासना के कारण अनेक तरह के खतरे में पड़ता है, लेकिन हमेशा बच निकलता है। वर्ग जीवन रेखा के बाहर हो तथा मंगल क्षेत्र से आकर जीवन रेखा को छू रहा हो, तो इस स्थान पर वर्ग के होने से कारावास या भिन्न प्रकार का रहन सहन होता है। जब वर्ग किसी भी पर्वत पर होता है तो उस पर्वत के गुणों के कारण होने वाले किसी भी अतिरेक से रक्षा का सूचक होता है। गुरु पर होने से व्यक्ति की आकांक्षा से उसे रक्षा प्रदान करता है। शनि पर होने से खतरों से रक्षा करता है। सूर्य पर होने से प्रसिद्धि की इच्छा को बढ़ाता है। चन्द्र पर होने से अधिक कल्पना एवं अन्य रेखा के दुष्प्रभाव से बचाव होता है। मंगल पर होने से शत्रुओं से होने वाले खतरों से बचाताहै। बुध पर होने से उद्विग्नता एवं चंचल वृत्ति से बचाता है।
द्वीप
हाथ में द्वीप का होना अधिक शुभ नहीं माना जाता है। द्वीप का सम्बन्ध जिस रेखा एवं क्षेत्र से होता है, उनमें अधिकतर बुराइयों से सम्बन्धित होता हैं। उदाहरण के तौर पर जीवन रेखा पर होने से विरासत में मिली दुर्बलता या रोग का सूचक होता है।जब यह द्वीप सूर्य रेखा पर हो तो यह यश और प्रतिष्ठा की हानि का सूचक होता है या किसी प्रकार की बदनामी अथवा अपयश का सामना होता है। भाग्य रेखा पर होने से सांसारिक कार्यों में हानि का सूचक है। मस्तिष्क रेखा के केन्द्र में स्पष्ट चिह्न के रुप में होने से मानसिकता से सम्बन्धी पैतृक दुर्बलता का लक्षण है। हृदय रेखा पर होने से विरासत में मिली हृदय से सम्बन्धी बीमारी का सामना करना होता है। स्वास्थ्य रेखा पर होने से गम्भीर रोग का सूचक है। यदि कोई रेखा द्वीप में मिल रही हो या फिर द्वीप बनाती हो तो यह हाथ के जिस भाग में होगा उसके सम्बन्ध में एक बुरा लक्षण है। यदि शुक्र पर्वत पर एक सहायक रेखा द्वीप में मिल रही हो तो यह जीवन को प्रभावित करने वाले स्त्री, पुरुष के लिए काम वासना के कारण परेशानी उत्पन्न कर सकता है।
शुक्र पर्वत की ओर से द्वीप बनाती हुई कोई रेखा यदि विवाह रेखा तक जाती है, तो उस विन्दु पर विवाह से सम्बन्धी या अन्य प्रकार से बदनामी होगी। इसी प्रकार अन्य कोई रेखा हृदय रेखा की ओर जाती हो तो प्रेम सम्बन्धों में बदनामी और संकट उत्पन्न करेगी। गुरु पर्वत पर होने से आत्मविश्वास और आकांक्षा को आघात पहुंचाता है। शनि पर्वत पर होने से व्यक्ति को दुर्भाग्य का शिकार बनाता है। चन्द्र पर्वत पर होने से कल्पना की क्षमता को प्रभावित करता है। मंगल पर्वत पर होने से भावना की कमी और कायरता उत्पन्न करता है। बुध पर होने से परिवर्तनशील बनाता है। (व्यवसाय या विज्ञान क्षेत्र में) शुक्र पर होने से काम संवेग एवं कल्पना के क्षेत्र में परिचालित होने का संकेत देता है।
वृत्त
छोटे-छोटे गोल घेरों को वृत्त कहते हैं, इन्हें सूर्य, कन्दुक एवं घेरा भी कहा जाता है। चन्द्र क्षेत्र पर वृत्त का चिह्न होने से व्यक्ति को जल से नुकसान होता है तथा जल तत्व से सम्बन्धित बीमारी का सामना करना पड़ता है। मंगल क्षेत्र पर वृत्त होने से व्यक्ति को कायर तथा रणभीरु बना देता है। बुध क्षेत्र पर होने से व्यापार में सफलता एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। गुरु क्षेत्र पर होने से उच्चपद की प्राप्ति तथा लोगों पर प्रभाव एवं विवाह में दहेज की प्राप्ति होती है। शनि क्षेत्र पर वृत का चिह्न होने से अचानक धनलाभ तथा भाग्योन्नति होती है। शुक्र क्षेत्र पर वृत्त का निशान होने से व्यक्ति को कामातुर एवं इन्द्रिय लोलुप
तथा भोगी बना देता है। ऐसे लोगों में नपुंसकता भी पायी जाती हैं।राहु क्षेत्र पर होने से व्यक्ति को निष्क्रिय एवं पुरुषार्थ हीन बना देता है। हृदय रेखा पर वृत्त का चिह्न होने से व्यक्ति को हृदय हीन एवं पत्थरदिल
बना देता है। जीवन रेखा पर होने से आंखों में बिमारी या कमजोरी होती है। भाग्य रेखा पर होने से व्यक्ति में कमजोरी एवं भ्रम उत्पन्न करता है। मस्तिष्क रेखा पर होने से व्यक्ति को स्नायु रोग उत्पन्न करता है। विवाह रेखा पर वृत्त का चिह्न होने से व्यक्ति कुंवारा रहता है, या फिर विवाहोपरान्त शीघ्र ही विधुर होकर जीवन व्यतीत करता है।
जाल
आड़ी रेखा पर खड़ी रेखाओं के होने से जाल सा बन जाता है, यह मानव हाथों पर अधिकाशं पाया जाता है। हस्त रेखा विज्ञान में जाल का भी अपना महत्वपूर्ण स्थान है। अतः इसका
अध्ययन भी अति आवश्यक है। रवि क्षेत्र-सूर्य क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति समाज में निन्दा तथा उपहास का पात्र बन जाता है।
चन्द्र क्षेत्र- चन्द्र क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति निरन्तर चंचल स्वभाव युक्त, अधीर एवं असन्तुष्ट रहता है।
मंगल क्षेत्र-मंगल क्षेत्र पर जाल होने से मानसिक अशान्ति एवं उद्विग्नता रहती है।
बुध क्षेत्र-बुध क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति को स्वतः के कार्यो में हानि का सामना एवं पश्चाताप होता है।
गुरु क्षेत्र-गुरु क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति घमण्डी, स्वार्थी और निर्लज्ज हो जाता है।
शुक्र क्षेत्र-शुक्र क्षेत्र पर जाल होने से भोगी, लम्पट, अधीर तथा कामातुर होता है।
शनि क्षेत्र-शनि क्षेत्र पर जाल होने से व्यक्ति आलसी, कंजूस अर्कमण्य एवं अस्थिर चित्त वाला होता है।
राहु-राहु केतु क्षेत्र पर होने से व्यक्ति द्वारा जीवन हत्या जैसे अपराध होते हैं एवं दुर्भाग्य का सामना होता है।
केतु क्षेत्र-केतु क्षेत्र पर जाल होने से चेचक या चर्म रोग जैसे रोगों का सामना होता है।
मत्स्य (मछली)
यह मणिबन्ध के उपर भाग्य रेखा या आयु रेखा किसी एक में भी हो सकती है या दोनों में इसे शुभ चिह्न माना जाता है। बृहस्पति भी ऐसे व्यक्ति को हाथ में जिनके मत्स्य रेखा होती है, वह अच्छा होता है। वह मीन का बृहस्पति ज्योतिष के अनुसार अपने राशि का स्वामी होगा। मत्स्य रेखा वाला व्यक्ति धार्मिक, उदार, दानी और समाज में प्रतिष्ठित होगा। मत्स्य रेखा का उपरी भाग जितना अधिक नुकीला होगा उतना ही अधिक समय तक सुख प्राप्त होगा। स्त्रियों के हाथ में इस रेखा के होने से अच्छे पति प्राप्त करने वाली, उनका सम्मान करने वाली, दीर्धजीवन, सौभाग्यशालिनी और पुत्र-पौत्र वाली भी होंगे। मत्स्य पुच्छ चिह्न वाला व्यक्ति धनवान और विद्वान होता है।
चक्र
चक्र का अर्थ वृत्त से है, जो अंगुलियों की त्वचा एवं रेखाओं पर पाया जाता है। यह वर्तुलाकार एक होने से चालाक, दो होने से सुन्दर, तीन से ऐशो आरामी, चार से गरीब, पांच वाला विद्वान, छः वाला विद्वान मेंचतुर, सातवाला योगी, आठवाला गरीब, नौं चक्र वाला राजा या धनी और दसवाला एक सरकारी अधिकारी होता है। साथ ही ईश्वर प्रेमी और थोड़ी आयु वाला होता है। तर्जनी में चक्र होने पर व्यक्ति को मित्रों से लाभ होगा। मध्यमा में होने से इष्ट पूजा से धन लाभ होगा। अनामिका में हो तो समाज की सहायता से पैसा आएगा और कनिष्ठा में चक्र हो जाने पर तैयार माल द्वारा धनार्जन होगा। उपर्युक्त अंगुलियों में यदि शंख हो तो तत्संबन्धी नुकसान होगा।
शख
यह चिह्न किसी महान् व्यक्ति के हाथ में ही होता है। तमाम चिह्नों में यह दुर्लभ होता है। तर्जनी में शंख होने पर मित्रों से धनहानि होती है। मध्यमा में हो तो उसे पुजारी नहीं बनना चाहिये। अनामिका में शंख होने पर धन का अचानक नाश व कनिष्ठा में भी यही फल होवे।
त्रिभुज
भारतीय पद्धति मे त्रिभुज बृहस्पति पर्वत पर ही अच्छा होता हैं। उंचे दर्जे के राजनीतिज्ञों के धार्मिक पुरुषों के व योगी महापुरूषों के हाथों में यह पाया जाता है। ऐसा व्यक्ति मनुष्य मात्र का कल्याण चाहने वाला होता है।जिस व्यक्ति के हाथ में यह त्रिभुज होता है। वह अपने निकटवर्ती लोगों को अच्छी तरह से और चतुराई से किसी न किसी तरीके से काम में लगा सकते है।
देवस्थान
संतयोगी व राजघराने के व्यक्तियों के हाथों में यह होता हैं। इसका दूसरा नाम शिवालय भी है। समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति के हाथों में यह चिह्न पाया जाता है। टैगोर, बेलन, ब्रामन, रमन के हाथों में यह चिह्न था।
घ्वज
जिस व्यक्ति के हाथ में यह चिह्न होगा, वह जिस काम में हाथ डालेगा, उसमें उसकी विजय होगी। इस चिह्न वाले व्यक्ति के पास सवारी के साधन अधिक होंगे। सफल और गुणी मनुष्यों के हाथों में यह चिह्न अधिक पाया जाता है।
स्वस्तिक
हर प्रकार से धन धान्य, भू-भाग से परिपूर्ण लाभ उस व्यक्ति के पास होगा। जिसके हाथ में स्वस्तिक का चिह्न होगा, वह शक्ति सम्पन्न भी होगा यह चिह्न शुभ माना जाता है।
चन्द्रमा
जिस व्यक्ति के हाथ में यह चिह्न होगा, वह व्यक्ति जिस किसी के यहाँ नौकरी भी करेगा, तो अपने मालिक अथवा आॅफीसर की ओर से सम्मानित होगा। यह चिह्न भद्र, सम्मानित और यशस्वी व्यक्ति के हाथों में पाया जाता है।
धनुष
यह चिह्न अपूर्व साहस और शक्ति देने वाला होता है। राजा, राजकुमारों व समृद्धि, धनी व्यक्ति के हाथों में यह चिह्न पाया जाता है।
कमल
महापुरुषों के हाथ में इस प्रकार के संकेत होते है, जो अवतार लेते है। उनके हाथों में ऐसा कहा जाता है कि चार चीजें होती हैं- हल, कमल,घड़ा और शंख। इनमें से एक भी हो, तो उसके महत्व का द्योतक माना
जाता है।
सर्प
किसी व्यक्ति के हाथ में यह चिह्न हो, तो उसे अच्छा नहीं माना जाता है। हाथ में यह चिह्न होने पर मनुष्य को शत्रुओं से या विरोधियों से नुकसान होने का अंदेशा रहता है।

अंगूठे का अध्ययन

शरीर के प्रमुख अंगों में अंगूठा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में हाथ की परीक्षा में अनेक ठंग काम में लाये जाते हैं, लेकिन कोई भी तरीका हो उसमें अंगूठे की परीक्षा को प्रमुख स्थान दिया जाता है। मुख्यतः अंगूठा ही ईश्वर की इच्छा को व्यक्त करता है, तथा अंगूठे का सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क से है। कभी-कभी कुछ चिकित्सक पक्षाघात के लिए अंगूठे का परीक्षण करके बता देते हैं कि अमुक समय तक पक्षाघात होगा। अंगूठे की त्वचा में जो लहरदार सूक्ष्म धारियां होती हैं, उनके द्वारा अपराधी को पकड़ा जाता है। जन्म लेने वाला शिशु जन्म से लेकर कुछ दिनों तक अपने अंगूठे को अगर मुंह में दबाये रखता है तो उसकी शरीर प्रभावित होती है और वह निर्बल होता है। अगर बुद्धिहीन लोगों का अध्ययन किया जाए, तो अंगूठा या तो अविकसित होगा या तो उसमें निर्बलता होगी। अंगूठा ही मनुष्य की चैतन्यता का केंन्द्र होता है यह प्रायः हथेली में समकोण पर स्थित होता है। अंगूठे को तीन भागों में विभाजित किया गया है। जो प्रेम (अनुराग) तर्क शाक्ति और इच्छा शक्ति का सूचक है। अंगूठे का पहला भाग इच्छा शक्ति, दूसरा भाग तर्कशक्ति, तीसरा भाग (शुक्र क्षेत्र) को प्रेम का सूचक कहा गया है। अंगूठे का अध्ययन करते समय यह देखना आवश्यक होगा कि पहले जोड़ पर लचीला है, कड़ा है या तना हुआ है। यदि तीसरा भाग लम्बा और अंगूठा छोटा हो दूसरा भाग अधिक लम्बा हो तो व्यक्ति शान्तिप्रिय होता है। लेकिन इसमें निर्णयशक्ति कम होती है। अंगूठे प्रायः सात प्रकार के पाये जाते हैं।
(क) गदा के आकार का अंगूठा। (ख) लचीला अंगूठा (पिछे मुड़ने वाला)
(ग) कठोर अंगूठा। (घ) दूसरा भाग बीच से पतला।
(ड़) वर्गाकार अंगूठा। (च) नुकीला अंगूठा। (छ) छोटा अंगूठा।
सीधा अंगूठा
ऐसे व्यक्ति अंतर्मुखी व्यक्तित्व वाले होते हैं, अर्थात भावुकतावश उल्टा-सीधा बोल देने वाले और ’’क्षणे रुष्टः क्षणे तुष्टः’’, यानी क्षण में क्रोध आना क्षण भर बाद प्रसन्न मुद्रा में बात करना इनकी प्रमुख विशेषता होती है। ये ’’प्राण जाय पर वचन न जाए सिद्धांत को मानने वाले, रूढ़िवादी परंपराओं से जुड़े, बुजुर्गो से डरने वाले होते हैं। अतः पे्रम विवाह में यदि लड़की इन्हें साहस दिलाये, तो ये, हनुमान की तरह, अपनी शक्ति से पूर्ण समर्थ हो कर, घर से अलग हो कर भी, हर स्थिति का सामना कर लेते हैं। इसलिए ये लोग मनचाही लड़की प्राप्त कर लेते हैं। स्वयं डरपोक, भीरु, कायर, एवं स्वार्थी प्रकृति के होते हैं। इन्हें मितव्ययी या कंजूस भी कहा जा सकता है। किन्तु मौका आने पर, भावुकताव’श, अपना सर्वस्व दान कर देते हैं। केवल इनके सामने वाले को प्रभावित करने की कला आनी चाहिए, तो फिर ये उसपर तन-मन-धन से
न्योछावर हो जाते हैं। लेकिन लोकप्रियता इन्हें कम मिल पाती है। इनके हर कार्य के पूर्ण होने में काफी विलंब होता है। शरीर में गर्मी अधिक होने से ये जातक बहुत कर्मठ होते हैं। दुर्भाग्य से इन्हें दांपत्य जीवन का सुख और न ही कर्म के अनुसार पूर्ण फल ही मिल पाता है। ऐसे लोग अपने कार्य को गुप्त रखना पसंद करते हैं। अपयश इन्हें जल्दी मिलता है। कंजूसी और स्वार्थीपन, प्रचार से बचने की भावना, असामाजिकता, व्यवहार कुशलता की कमी, अत्यधिक औपचारिकता निभाने की प्रवृत्ति, मौन, गंभीर व्यक्तित्व, दयालुता का अभाव इन्हें लोकप्रियता देने में बाधक होते हैं। नियमितता, ईमानदारी, सत्यवादिता इनकी प्रमुख विशेषताएँ होती हैं। इस कारण इन्हें अधिक कष्ट उठाने पड़ते है। सीधे अंगूठे वाले बहुत जल्दी ही किसी से प्रभावित हो जाते हैं। कट्टरपंथी, अतिभाग्यवादिता, रूढ़िवादिता के कारण ज्योतिष, तंत्र,मंत्र, देवी,देवताओं के प्रति इनकी आस्था अधिक होती है। भूत-पे्रत में भी ये वि’वास करते हैं। इनकी इस कमजोरी का लाभ उठा कर अन्य इनके संचित धन से फायदा उठाते हैं। इनको सही समय पर पैसों का लाभ नहीं मिलता, या बहुत कम मिलता है। अतः इन्हें झुकने वाले अंगूठे के जातकों से ही लेन-देन करनी चाहिए, अन्यथा इन्हें हानि होती है, स्त्री पक्ष से भी इन्हें हानि होती है।
पीछे की ओर झुका अंगूठा: व्यापार में साझेदारी या भागीदारी उन्हीं लोगों से आजीवन निभ पाती है, जिनके अंगूठे एक समान न हों। एक समान अंगूठा वाले, प्रभुसत्ता जमाने की प्रकृति के कारण, एक दूसरे पर अधिकार जमाने के कारण बिगाड़ कर लेते हैं। स्वयं का पत्नी के प्रति अधिक आकर्षण नहीं होता। 20 वर्ष से 29 वर्ष की आयु में श्रेष्ठतर समय, 40 से 49 के बीच श्रेष्ठतम समय, फिर यदि दीर्घायु होती है, तो 80 से 89 में भी अच्छा यश देने वाले कार्य होते हैं।
किंतु लंबी बीमारी, जैसे तपेदिक, कैंसर आदि “यंकर रोग इन्हें बुढ़ापे में धर दबोचते हैं। संतान सुख भी इन्हें कम मिल पाता है। इन्हें आयुर्वेदिक, प्राकृतिक योग, चिकित्सा, होम्योपैथिक, प्राणायाम आदि के द्वारा की गयी चिकित्सा शीघ्र लाभ करती हैं। प्रवाल या मोती भी इन्हें शीघ्र लाभ पहुंचाती हैं। ये पानी के विशेष शौकीन होते हैं। ये दिन में एक से अधिक बार नहाते हैं। इन्हें अधिक पसीना आता है (गर्मी के दिनों में) और लू लग जाती है (गर्मी की तासीर होने से) डाक्टरी दवा आदि का इन पर उल्टा असर हो जाता है, जिससे इनको गर्मी करने वाली वस्तुओं से बच कर रहना चाहिए। इन्हें अनायास कहीं से पैसा नहीं मिलता है। इन्हें अपने नाम से कभी भी लाॅटरी नहीं लेनी चाहिए। “गवान इन्हें केवल मेहनत का ही देता है। इन लोगों की इच्छा’ाक्ति बलवती होती है, किंतु बिना गुणों के दूसरे व्यक्तियों से ये परिचित नहीं हो पाते । इनमें
मिलनसारिता का अभाव रहता है। ये व्यक्ति स्वयं गहरे रंग के वस्त्र पहनना पसंद करते हैं, जबकि पत्नी हल्के रंग के वस्त्र की शौकीन होती है।
लम्बा अंगूठा
लम्बा अंगूठा होने से व्यक्ति में सुदृढ़ इच्छा शक्ति और विकसित चरित्र पाया जाता है। साधारणतया अंगूठे की लम्बाई तर्जनी के आधार से कुछ ऊँचा होता है, इससे ज्यादा या कम स्थिति में छोटा-बड़ा अंगूठा माना जाता है। लम्बे अंगूठे वाले लोग व्यापार में लाभ कमाते हैं तथा आवश्यक जीवन दर्शन को मानने वाले होते हैं। अगर यह पीछे की ओर झुका हुआ होता है तो व्यक्ति प्रतिभावान और सफल होता है तथा हर परिस्थित में अपने आप को अनुकूल बना लेता है। यदि यही अंगूठा ऊपर की ओर नुकीला और पतला होता है तो व्याक्ति में स्नायुविक असन्तुलन पाया जाता है।
छोटा अंगूठा
छोटा अंगूठा बीच में पतला और पोर मोटा तथा निचला भाग भी मोटा होगा तो अपराधी वर्ग का व्यक्ति कहा जायेगा ये अंगूठे प्रायः गदे की तरह गोल, मांसल और सकरे नाखून वाले अंगूठे होते हैं जो कि कातिलों और अपराधियों में अधिक पाये जाते हैं, इनकी इच्छा शक्ति अविकसित स्वभाव अस्थिर तथा खूंखार होता है। इन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं होता तथा इन्हें हमेशा खून की पिपासा प्रताड़ित करती है।
वर्गाकार मोटा अंगूठा
ऐसे लोग नशे के आदी होते हैं घर में अधिक खर्च करने वाले एवं अन्याय होने पर चिल्ला-चिल्लाकर न्याय मांगते हैं। वर्गाकार अंगूठे के स्वामी सफल व्यक्ति माने जाते हैं, अपने व्यवहार, के द्वारा सफलता प्राप्त करते हैं। अगर यही अंगूठा पुष्ट होगा तो स्वास्थ्य अच्छा होता है तथा स्फूर्ति खूब होती है।
विचित्र आकृति का अंगूठा
विचित्र आकृति का अंगूठा अपराधी वर्ग के लोगों का होता है ये हथियारों के भयानक उपयोग से भी नहीं घबराते और बिना सोचे समझे भयावह कार्य कर बैठते हैं। इनका स्वभाव अस्थिर और खूंखार होता है।

भाग्य का आंकलन



भाग्य के साथ देने पर व्यक्ति का पुरूषार्थ भी सफल होता है। एक स्वस्थ, सुशिक्षित, धनी, सुशील पत्नी तथा पुत्रों सहित सुखी जीवन का आनंद लेते व्यक्ति को देखकर सभी उसे भाग्यशाली कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपना भाग्य (भविष्य) जानने के लिए उत्सुक रहता है। भाग्य व्यक्ति के प्रारब्ध (पिछले जन्म के कर्मफल) को दर्शाता है। जन्मकुंडली के नवम् भाव को भाग्य स्थान माना गया है। नवम् भाव से भाग्य, पिता, पुण्य, धर्म, तीर्थ यात्रा तथा शुभ कार्यों का विचार किया जाता है। नवम भाव कुंडली का सर्वोच्च त्रिकोण स्थान है। उसे लक्ष्मी का स्थान माना गया है। नवम भाव, एकादश (लाभ) भाव से एकादश होने के कारण ‘लाभ का लाभ’, अर्थात जातक के जीवन की बहुमुखी समृद्धि दर्शाता है। ‘मानसागरी’ ग्रंथ के अनुसार:- ‘‘विहाय सर्वं गणकैर्विचिन्त्यो भाग्यालयः केवलमन्न यलात्।’’ अर्थात्’ ‘‘एक ज्योतिषाचार्य को दूसरे सब भावों को छोड़कर केवल नवम् भाव का यत्नपूर्वक विचार करना चाहिए, क्योंकि नवम् भाव का नाम भाग्य है। जब नवम भाव अपने स्वामी या शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो तो मनुष्य भाग्यशाली होता है। नवमेश भी शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो तो सर्वदा शुभकारी होता है। यदि पाप ग्रह भी अपनी, मित्र, मूल त्रिकोण अथवा उच्च राशि में नवम् भाव में स्थित हो तो अपने बलानुसार शुभ फल देता है। जैसे शनि भाग्येश होकर भाग्य भाव में स्थित हो तो जातक जीवन पर्यन्त भाग्यशाली रहता है। (भाग्य योग करें सौरे स्थिते च जन्मनि। - मानसागरी)। लग्नेश यदि भाग्य भाव में स्थित हो तब भी जातक परम भाग्यशाली होता है। बृहस्पति नवम भाव का कारक ग्रह है। जब बलवान बृहस्पति नवम भाव में हो, या लग्न, तृतीय अथवा पंचम भाव में स्थित होकर नवम् भाव पर दृष्टिपात करें तो विशेष भाग्यकारक होता है। नवम भाव में सुस्थित बृहस्पति यदि शुक्र और बुध के साथ हो तो पूर्ण शुभ फलदायक होता है। परंतु इन पर शनि, मंगल व राहु की दृष्टि हो तो आधा ही शुभ फल मिलता है। नवम् भाव व नवमेश निर्बल अथवा पीड़ित हो तो जातक भाग्यहीन होता है। भाग्य भाव पंचम भाव लग्न भाव होता है। अतः उसका स्वामी (लग्नेश) भी भाग्यकारक होता है। ‘भावात् भावम्’ सिद्धांत के अनुसार नवम् से नवम् अर्थात पंचम भाव और पंचमेश भी भाग्यकारक होते हैं। ज्ञातव्य है कि नवम और पंचम (त्रिकोण भाव) को लक्ष्मी स्थान की संज्ञा दी गई है। जब ये तीनों ग्रह (नवमेश, लग्नेश और पंचमेश) बलवान हों तथा शुभ भाव में अपनी स्वयं, उच्च, अथवा मूलत्रिकोण राशि में शुभ दृष्ट हों, तो व्यक्ति जीवन पर्यन्त भाग्यशाली होता है। कारक बृहस्पति का संबंध शुभ फल में वृद्धि करता है। भाग्योदय काल त्रिक भावों (6, 8, 12) के अतिरिक्त अन्य भाव में स्थित नवमेश अपने बलानुसार उस भाव के कारकत्व के फल में वृद्धि करता है। नवमेश, नवम भाव स्थित ग्रह तथा नवम भाव पर दृष्टि डालने वाले ग्रहों की दशा में भाग्योदय होता है। ‘फलित मार्तण्ड’ ग्रंथ के अनुसार नवमेश, नवम भाव स्थित ग्रह व नवम भाव पर दृष्टिपात करने वाले बलवान ग्रह अपने निर्धारित वर्ष में जातक का भाग्योदय करते हैं। ग्रहों के भाग्योदय वर्ष इस प्रकार हैंः- सूर्य- 22, चंद्रमा- 24, मंगल- 28, बुध-32, बृहस्पति -16 (40), शुक्र-21 (25), शनि-36, राहु-42 और केतु -48 वर्ष। बृहत पाराशर होरा शास्त्र ग्रंथ के अनुसार 1. भाग्य स्थान में बृहस्पति और भाग्येश केंद्र में हो तो 20वें वर्ष से भाग्योदय होता है। 2. यदि नवमेश द्वितीय भाव में और द्वितीयेश नवम भाव में हो तो 32वें वर्ष से भाग्योदय, वाहन प्राप्ति और यश मिलता है। 3. यदि बुध अपने परमोच्चांश (कन्या राशि-150 ) पर और भाग्येश भाग्य स्थान में हो तो जातक का 36वें वर्ष से भाग्योदय होता है। सौभाग्यकारी गोचर 1. जब गोचर में नवमेश की लग्नेश से युति हो, या फिर परस्पर दृष्टि विनिमय हो अथवा लग्नेश का नवम भाव से गोचर हो तो भाग्योदय होता है। परंतु उस समय नवमेश निर्बल राशि में हो तो शुभ फल नहीं मिलता। 2. नवमेश से त्रिकोण (5, 9) राशि में गुरु का गोचर शुभ फलदायक होता है। 3. जब जन्म राशि से नवम्, पंचम या दशम भाव में चंद्रमा आए उस दिन जातक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। उपरोक्त ज्योतिष सूत्रों को दर्शाती कुछ कुंडलियां इस प्रकार हैं:- नवमेश बुध, एकादशेश सूर्य तथा बृहस्पति तृतीय भाव से नवम भाव पर दृष्टिपात कर रहे हैं। योगकारक शनि लग्न में ‘शश’ योग बना रहा है। लग्नेश शुक्र दशमेश चंद्रमा के साथ द्वितीय भाव में है। साधारण परिवार में जन्म लेकर अंततः वे देश के प्रधानमंत्री बने।

अँगुलियों में दुरी का महत्व

तर्जनी अनामिका दोनों ही अगर मध्यमा की ओर झुकी हों, तो व्यक्ति किसी भी बात को गुप्त रखने में असमर्थ होता है। ऐसे व्यक्ति साहसी होते हैं, सतर्कता भी इनमें होती है, परन्तु किसी पर विश्वास नहीं करते। अंगुलियां सीधी हों और गाँठ रहित हों, तर्जनी और मध्यमा तथा अनामिका और कनिष्ठा की दूरी का समान अन्तर होने पर व्यक्ति प्रत्येक के साथ व्यवहार कुशल होते हुए भी ज्यादा सतर्क नहीं रहता और न ही किसी पर शंका करता है। समाज में हर प्रकार के मनुष्यों के साथ सूझ-बूझ से कार्य करने कीं क्षमता रखता है। तर्जनी और मध्यमा की दूरी अनुपात से ज्यादा होने पर व्यक्ति की विचारधारा स्वतन्त्र होती है और जीवनयापन के लिए उनका मार्ग भिन्न होता है। इन्हें नेता भी कहा जा सकता है। यही दूरी कम होने पर विचारों में संकीर्णता आ जाती है, और स्वतन्त्रता भी कम हो जाती है। यदि अनामिका और मध्यमा के बीच का अन्तर अधिक हो तो परिस्थितियों की आजादी होती है। ये किसी ऋतु के दास नहीं होते, इन्हें पैसों की परवाह नहीं होती, समाज में ये समाज सुधारक नाम से जाने जाते हैं। अनामिका और मध्यमा की लम्बाई बराबर होने पर नये उद्योग धन्धे करके अनेक तरह का खतरा मोल ले सकते हैं। कभी-कभी इन्हें फायदा भी होता है, जुआ खेलना और अपनी जीत पर खुश होना इनका पहला काम होता है। छोटी अंगुलियों वालों के स्वभाव में शीघ्रता या जल्दबाजी होती है। ये दिखावे की परवाह न करके समस्याओं का तत्काल निर्णय कर डालते हैं। बातचीत में इन्हे मुंहफट भी कहा जा सकता है। छोटी-छोटी बातों पर ये ध्यान नहीं देते हैं।अंगुलियाँ बेडौल हों एवं छोटी हों तो ऐसे व्यक्ति प्रायः स्वार्थी एवं क्रूर कहे जाते हैं। अंगुलियाँ अगर तनी हुई हों, उनमें लोच न हो अन्दर की ओर मुड़ी हो या संकुचित हों, तो व्यक्ति कम बोलने वाला तथा कम मेल-जोल रखने वाला, कायर और अधिक सावधानी बरतने वाले होते हैं। अगर अंगुलियाँ धनुष के समान पीछे मुड़ने वाली हों तो व्यक्ति का स्वभाव आर्कषक और सौम्य होगा। उसमें मित्रता का गुण पाया जाता है। इन्हें सामान्य ज्ञान की जिज्ञासा होती है तथा समाज में हृदयस्पर्शी होते है। अंगुलियाँ टेढ़ी -मेढ़ी एवं बेडौल सी होंगी, तो व्यक्ति धोकेबाज गलत रास्ते का अनुयायी विकृत मस्तिष्क का स्वामी एवं निन्दक होता है। अच्छे हाथ पर इस प्रकार की अंगुलियाँ कम ही पायी जाती है। अंगुलियों के पोर पर अंदर की ओर मांश की गद्दी हो तो वह व्यक्ति अत्यन्त सवंदेनशील ओर व्यवहारकुशल होगा तथा हर क्षेत्र में सहयोग मिलता है। अंगुलियाँ अगर मूल स्थान पर मोटी हों तो व्यक्ति खाने-पीने का शौकीन और आरामतलबी होता है तथा वेहद शौकीन होता है। मूल स्थान पर पतली अंगुलियों का स्वामी स्वतः के स्वार्थ में लापरवाह होता है, खान-पान, रहन-सहन में सावधानी रखता है तथा मनपसंद वस्तुओं का प्रयोग करता है। अनामिका और तर्जनी की समान लम्बाई हो तो व्यक्ति में अपनी कला के द्वारा धन और यश कमाने की महत्वाकांक्षा होती है। वह चाहता है कि विश्व भर में विख्यात हो जाये। हथेली की लम्बाई से अधिक लम्बी अंगुलियां होगी, तो उसे लम्बी अंगुलियों की संज्ञा दी जाती है। अनामिका और कनिष्ठा की समान लम्बाई हो तो व्यक्ति बोलचाल और भाषण कला में कुशल होता है। अनामिका और मध्यमा की समान लम्बाई हो तो ऐसे व्यक्ति जुआड़ी होते हैं साथ ही जीवन के साथ खिलवाड़ कर जाते हैं, ऐसे व्यक्तियों की अलग ही दुनिया होगी, तथा ये व्यक्ति जुए में लाभ कमाते हैं एवं पैसों के सौदे में हमेशा जीत होती है। तर्जनी बहुत ज्यादा लम्बी हो तो ऐसे व्यक्ति किसी के कहने सुनने में नहीं होते ऐसे व्यक्ति शूरबरी भी कहे जा सकते हैं या शासक कहे जा सकते हैं। अनामिका का लम्बा होना काम तत्व को प्रदर्शित करता है। कनिष्ठा का काम भी अनामिका की भांति ही है वह उत्तेजनाओं को दमन न करके उसका परिशमन कर लेती है और वे अपनी शक्ति व्यापार, काम-काज और बौद्धिक कार्यों में खर्च करते हैं। कनिष्ठा यदि मुड़ी हुई हो तो व्यक्ति धूर्त और चालाक होता है यह अंगुली व्यक्ति के गुणों का मूल्यांकन करने वाली होती है। चारो अंगुलियों का इकट्ठी करने पर उसमें बारीक छेद नजर आता है, इसमें तर्जनी की ओर से तीन छिद्र होते हैं। पहला छिद्र विचार स्वतंत्र को स्पष्ट करता है, दूसरा लापरवाही को, तीसरा महत्वाकांक्षा को ।

अँगुलियों और नखों का वर्णन

मानव की ऊर्जा हमेशा खर्च होती रहती है, ऐसी स्थिति में उसे आहार की आवश्यकता होती है। आयुर्वेद के अनुसार व्यक्ति के भोजन से रस बनता है रस से मांश, मांश से मेदा, मेदा से मज्जा, मज्जा से शुक्र बनता है। शुक्र भोजन करने के 28 दिन के पश्चात् बनता है। प्रत्येक धातु का एक मैल भी निकलता है, परन्तु शुक्र धातु का कोई मैल नहीं निकलता। वह बिल्कुल शुद्ध होता है। नख हड्डी का मैल होता है। तर्जनी मध्यमा और अनामिका का गर्भावस्था में नख 124 दिन बाद पूरा आ जाता है। कनिष्ठा 121 दिन लेती है और अंगूठे का नख 140 दिन बाद पूरा निकलकर बाहर आता है। नखों से विशेषतः शरीर की व्याधि और कुछ अन्य रोगों की जानकारी प्राप्त होती है। नखों पर होने वाला चिह्न किसी आने वाले अग्रिम खतरे को सूचित करता है।, साफ, और चैड़ा नख अच्छे स्वास्थ्य का सूचक होता है। सात प्रकार के नखों वाली अंगुलियां 1. लम्बा नाखून- लम्बे नाखून शारीरिक शक्ति के प्रतीक नहीं होते, इनकी अपेक्षा छोटे और चैड़े नाखून वालों की शारीरिक शक्ति अधिक होती है। ऐसे लोग ज्यादा बहसबाजी नहीं करते और न आलोचना करते हैं। कविता, कला, संगीत, चित्रकारिता आदि के प्रेमी होते हैं तथा सिरदर्द, गले में खराबी आदि की बीमारी होने की स्थिति उत्पन्न होती है।
2. छोटा नाखून- छोटे नख वाले व्यक्ति तार्किक होते हैं तथा अन्य लोगों से भिन्न मतवाले होकर कठोर आलोचक होते है। इनमें सोचने की शक्ति अधिक होती है। परन्तु निर्णय में उतावले होते हैं। दिल के कुछ कठोर होते है तथा उनमें सहन शक्ति कम होती है, कभी-कभी तथ्य को न समझ पाने की स्थिति में उसे मजाक बनाकर बच निकलते हैं, ऐसे लोगों में दिल के दौरे की बीमारी होने की सम्भावनायें पायी जाती हैं तथा चिड़चिड़ापन होता है।
3. चैकोर और छोटा नख- यह सामान्य कमजेारी का सूचक होता है ऐसे लोगों में हृदय से सम्बन्धी अनेक रोग पाये जाते हैं। नख पर किसी प्रकार का गड्ढा आदि होने पर डेगूं बुखार एवं आन्तरिक पीड़ा का संकेत
पाया जाता है तथा बदला लेने की भावना इनमें खूब होती है।
4. त्रिभुजकार नख- ऐसे नख वालों को गला, लकवा, और श्वास प्रवास से सम्बन्धी बीमारी होती है तथा ऐसे नाखून में चन्द्राकृति न होने पर व्यक्ति सनकी स्वभाव का होता है।
5. चैड़ा नख- चैड़ा नख अच्छे स्वास्थ्य का संकेत है, ऐसे व्यक्ति खाने-पीने के शौकीन तथा स्वास्थ्य के धनी होते हैं।
6. उभरा हुआ नख- ऐसे नख के स्वामी का फेफड़ा कमजोर होता है, तथा कण्ठमाला बीमारी का सामना करना पड़ता है।
7. गरारियाँ सहित नख- ऐसे नख वाले व्यक्ति को कमला की बीमारी होती है, तथा कभी-कभी श्वास एवं दमा की शिकायत होती है। नाखूनों की देखभाल कैसे भी कर लें, परन्तु उनके प्रभाव को नहीं बदला जा सकता | मुख्यत: ये चार के ही पाए जाते हैं | लम्बे, चौड़े, छोटे, सकीर्ण, आदि |
अँगुलियों पर निशान और उनके प्रभाव
अँगुलियों पर अगर सफेद धब्बा होगा, तो बातचीत में अधिक लगाव अगर यही काला होगा, तो प्रेम में अंधापन और अपराधी प्रवृति की होती है। तर्जनी पर अगर सफेद धब्बा होगा, तो अच्छी आमदनी तथा काले धब्बे से धनहानि होती है। मध्यमा पर सफेद धब्बे होने से यात्रायें होती है तथा काले धब्बे होने से भय और क्षति। अनामिका पर सफेद धब्बा होने से प्रतिष्ठा प्राप्त होती है तथा काला से बदनामी और नुकसान होता है। कनिष्ठा पर काला धब्बा होने से व्यापारिक सफलता और काले धब्बे से अविश्वास और असफलता काले नखों वाला व्यक्ति अच्छा कृषक (किसान) होता है। चैड़ा नखवाला-साधु और निष्कपटी होता है। नीले रंग के नख वाला व्यक्ति स्वास्थ्य से परेशान रहता है, तथा दूसरों के लिए सरदर्द बनता है। बेतुके, अटपटे और भद्दे नखों वाला व्यक्ति समाज के लिए अयोग्य माना जाता है तथा लोगों को हानि पहुंचाता है और दुष्कर्मों में लीन रहना उसका स्वभाव होता है। नखों के नीचे अंगुलियों के पारों में एक ऐसा तरल पदार्थ होता है, जो अत्यन्त संवेदनशील होता है, उदाहरण के तौर पर अंधा व्यक्ति इसी हिस्से के स्पर्श से अपनी पहचान का आधार साबित करता है तथा डाक्टर जब किसी रोगी का नब्ज पकड़ता है तो इस हिस्से में स्पन्दन होता है यह क्रिया अंगुलियों के पोर में स्थित तरल पदार्थ द्वारा होती है अंगे्रेजी में इसे (कोर्नीफिकेशन) कहते है। जिसे हिन्दी भाषा में श्रृगोत्पादन या शल्कीभवन कहते हैं। हस्तरेखा परीक्षण के समय स्वास्थ्य रेखा में जो रोग या व्याधि नजर आती है, उसे नखों से ही प्रमाणित की जाती है।

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Tuesday, 10 May 2016

वास्तु द्वारा भूमि चयन व भवन निर्माण

वास्तु का प्रचलन कुछ वर्षो से बहुत अधिक हो गया है। वैसे तो वास्तु का इस्तेमाल हजारों वर्षों से हो रहा है एवं इसका उल्लेख नारद संहिता में भी मिलता है, लेकिन आज यह कई रूपों में उभर कर सामने आ रहा है। वास्तु का प्रमुख उद्देश्य घर, कार्य या उद्योग में समृद्धि एवं शांति लाना है। यह केवल भूमि चयन या भवन निर्माण के समय तक ही सीमित नहीं है, वरन् इससे हम यह भी जान सकते हैं कि घर में फर्नीचर कैसे स्थापित करें, रसोई घर में चूल्हा कहां रखा जाए, या ड्राॅइंग रूम में आगंतुक को किस स्थान पर बैठाया जाए; इसी प्रकार कार्यालय में किस ओर मुंह कर के बैठा जाए, जिससे अधिक से अधिक लाभ हो एवं शांति से काम होता रहे। भारत में छोटे-बड़े लाखों उद्योग हैं एवं सब उद्योगपति किसी वास्तुकार से सलाह, कई कारणवश, नहीं लेना चाहते। उनके लिए वास्तु के कुछ नियम नीचे बताये जा रहे हैं, जिनको अपनाने से नब्बे प्रतिशत तक वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं। भूमि चयन: चैकोर या आयताकार भूमि सबसे अच्छी होती है। भूमि तिकोनी नहीं होनी चाहिए। उत्तर या पूर्व से प्रवेश अच्छा होता है। भूमि का उत्तर-पूर्व कोना कटा हुआ नहीं होना चाहिए। यह कोना लंबा या न्यून कोण का होना चाहिए। दक्षिण-पश्चिम का कोना समकोण होना चाहिए। दक्षिण-पश्चिम में ऊंचाई होनी चाहिए, अर्थात् उत्तर-पूर्व की ओर ढलान होनी चाहिए। यदि ऐसा न हो, तो उसे मिट्टी से भरवा कर ऐसा अवश्य करना चाहिए। यदि दक्षिण-पश्चिम नीचा होगा, तो मालिक का स्वास्थ्य खराब रहेगा। पूर्व-पश्चिम कटा हो, तो मालिक को मानसिक तनाव रहेगा।
यदि आप भवन निर्माण करवा रहे हैं, तो हमेशा ध्यान रखें कि दक्षिण-पश्चिम के कोने से निर्माण कार्य शुरू करवाएं और जैसे-जैसे भवन का निर्माण होता जाए, दक्षिण-पश्चिम का निर्माण उत्तर-पूर्व से हमेशा ऊंचा रहे। ऐसा करने से काम में बाधा नहीं आती और निर्माण कार्य शीघ्र संपन्न होता है। कुल मिला कर भवन निर्माण के दौरान दक्षिण-पश्चिम भाग सबसे भारी एवं ऊंचा होना चाहिए एवं इस ओर कोई गड्ढे आदि नहीं होने चाहिएं। वास्तु में नलकूप या पानी की टंकी का विशेष महत्व है। नलकूप आप उत्तर-पूर्व में लगवाएं। पानी की टंकी को दक्षिण या पश्चिम में लगवाने का प्रयत्न करें, पर दक्षिण-पश्चिम में नहीं।बिजली या ऊर्जा का स्रोत दक्षिण-पूर्व में सबसे अच्छा होता है। अतः उद्योग में इस ओर जेनरेटर, बाॅयलर एवं ट्रांसफार्मर इत्यादि रखने चाहिएं। गंदे पानी का निकास उत्तर-पश्चिम
में अच्छा रहेगा। इसी ओर पक्के माल का गोदाम होना चाहिए। इस ओर रखी हुई वस्तु कभी टिकती नहीं और जल्द ही उसकी निकासी हो जाती है। कच्चा माल उत्तर या पूर्व में होना चाहिए। ध्यान रखें कि दक्षिण-पश्चिम की ओर कोई द्वार न हो, क्योंकि यह चोरी या घाटे का द्वार होगा। दक्षिण-पश्चिम में द्वार हो, तो घाटा होता है। यदि पानी का बहाव दक्षिण-पश्चिम को हो, तो सारी मेहनत बेकार जाती है और सारे खर्चे हानि में परिवर्तित हो जाते हैं। पश्चिम या दक्षिण की ओर दरवाजे-खिड़कियां कम एवं उत्तर-पूर्व की ओर अधिक होनी चाहिएं। इससे धूप एवं हवा का अच्छा असर रहता है, रोग दूर होते हैं तथा मजदूर खुश रहते हैं एवं मेहनत से कार्य करते हैं। उत्पादन प्रकिया दक्षिण से उत्तर एवं पश्चिम से पूर्व की ओर चलनी चाहिए। इससे उत्पादन के कार्यों में विघ्न नहीं आते। प्रशासनिक विभाग उत्तर-पूर्व में रखें। वहीं कोई मंदिर आदि रखें एवं मुख्य प्रवेश द्वार भी वहीं रखें। प्रवेश द्वार पर घोड़े की नाल अथवा एक लोहे की कील ठोक देनी चाहिए। इससे नज़र नहीं लगती है। उत्तर-पूर्व में खुला मैदान रखें, या बगीचा बनाएं। मालिक को अपना मुंह पूर्व की ओर कर के बैठना चाहिए एवं आगंतुक का मुंह पश्चिम की ओर होना चाहिए। इससे आगंतुक हमेशा मालिक से प्रभावित रहता है एवं उसकी शर्त मान लेता है। उपर्युक्त नियमों का ठीक से पालन तभी संभव है, जब भूमि में प्रवेश उत्तर या पूर्व से हो। यदि प्रवेश दक्षिण या पश्चिम से रहता है, तो सब तरह के आराम संभव नहीं है। आपके समझने के लिए एक नक्शा दिया जा रहा है। आम तौर पर यह मुमकिन नहीं है कि उद्योग में आप हमेशा इस प्रकार का नक्शा अपना सकें। लेकिन इसका प्रयास निश्चित ही संभव है।

मादक पदार्थो के सेवन से परेशान: जाने इसके ज्योतिष्य विश्लेषण

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक की कुंडली से यह पता चल जाता है की वह मादक पदार्थो का सेवन करता है या नहीं | इससे उसे ठीक करने में भी मदद मिलती है | अच्छी दशा आने पर वह खुद अपना इलाज कराता है और जीवन में सफल रहता है | खाने – पीने वाली वस्तुओ का सम्बन्ध चन्द्रमा से है और राहू के नक्षत्र – आद्रा , स्वाती , शतभिषा में दोनों की उपस्थिति , दुसरे भाव के स्वामी की नीच राशी में मौजूदगी और खुद राहू का साथ बैठना जातक द्वारा मादक पदार्थो के सेवन का स्पष्ट संकेत कराता है | अपनी नीच राशी वृश्चिक में चन्द्रमा अक्सर जातक को मादक पदार्थो का सेवन कराता है | क्रूर गृह शनि , राहू पीड़ित बुध और क्षीण चन्द्रमा इसमें इजाफा करते है |
कलियुग में राहु का प्रभाव बहुत है अगर राहु अच्छा हुआ तो जातक आर.एस. या आई.पी.एस., कलेक्टर राजनैता बनता है। इसकी शक्ति असीम है। सामान्य रूप से राहु के द्वारा मुद्रण कार्य फोटोग्राफी नीले रंग की वस्तुए, चर्बी, हड्डी जनित रोगों से पीडि़त करता है। राहु के प्रभाव से जातक आलसी तथा मानसिक रूप से सदैव दुःखी रहता है। यह सभी ग्रहों में बलवान माना जाता है तथा वृष और तुला लग्न में यह योगकारक रहता है।
ग्रहों से निकलने वाली विभिन्न किरणों के विविध प्रभाव के कारण प्राणी के स्थूल एवं सूक्ष्म शरीर में अनेक भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन होते रहते है. इनमें कुछ प्रभाव क्षणिक होते है. जो ग्रहों के अपने कक्ष्या में निरंतर संचरण के कारण बनते मिटते रहते है. किन्तु कुछ ग्रह अपना स्थाई प्रभाव छोड़ देते है. जैसे रोग व्याधि आदि ग्रह नक्षत्रो के संचरण के अनुरूप आते है. तथा समाप्त हो जाते है. प्रायः इनका सदा ही स्थाई कुप्रभाव देखने में नहीं आया है. किन्तु चोट-चपेट एवं दुर्घटना आदि में अँग भंग या विकलांगता स्थाई हो जाते है.
ऐसे ग्रहों में मंगल, राहू, केतु एवं शनि के अतिरिक्त सूर्य भी गणना में आता है. राहू अन्तरंग रोग या धीमा ज़हर या मदिरापान आदि व्यसन देता है. मंगल शस्त्राघात या ह्त्या आदि देता है. केतु गर्भाशय, आँत, एवं गुदा संबंधी रोग देता है. शनि मानसिक संताप, बौद्धिक ह्रास, रक्त-क्षय, राज्यक्षमा आदि देता है. सूर्य कुष्ट, नेत्र रोग एवं प्रजनन संबंधी रोग देता है. वैसे तों अशुभ स्थान पर बैठने से गुरु राजकीय दंड, अपमान, कलंक, कारावास आदि देता है. किन्तु यह अशुभ स्थिति में ही संभव है.
हालाँकि वृश्चिक पर वृहस्पति की द्रष्टि इसमे कुछ कमी करती है और जातक बदनाम होने से बच जाता है | जिस जातक की कुंडली में एक या दो ग्रह नीच राशी में होते है और चन्द्रमा पीड़ित होकर शत्रु ग्रह में दूषित होता है उसमे मादक पदार्थो के सेवन की इच्छा प्रबल होती है | द्वितीय भाव जिसे भोजन , कुटुंब , वाणी आदि का भाव भी कहा जाता है , के स्वामी की स्थति से भी उसके द्वारा मादक पदार्थो के सेवन का ब्यौरा मिल जाता है | कलयुग में राहू शनि मंगल व् क्षीण चन्द्रमा ग्रहों की मानसिक चिन्ताओ को उजागर करने में आगे रहते है | शुक्र की अपनी नीच राशी कन्या में मौजूदगी मादक पदार्थो के सेवन का प्रमुख कारण बनती है | नीच गृह लोगो को नशा कराते है , जिससे जातक अपने साथ ही साथ अपने परिवार को भी अपमानित कराता है |
मेष , सिंह, कुम्भ एवं वृश्चिक लग्न वालो के लिये यदि राहू छठे, आठवें या बारहवें बैठे तों व्यक्ति निश्चित रूप से मदिरा सेवी होता है. वृषभ, कर्क, तुला एवं मकर लग्न वालो क़ी कुंडली में यदि मंगल पांचवें स्थित हो तों यौन रोग या अल्प मृत्यु या नपुंसकता होती है. किन्तु इन्ही लग्नो में यदि मंगल सातवें बैठा हो तों वह व्यभिचारी या परस्त्रीगामी होता है. किसी भी लग्न में यदि केंद्र में राहू-मंगल युति बनती है तों पुरा परिवार ही इस व्यक्ति के कारण धन एवं यश क़ी हानि भुगतता है. नित्य नए उपद्रव खड़े होते है. किसी भी लग्न में यदि मंगल एवं शनि केंद्र में हो तों वह व्यक्ति हो सकता है धनाधिप हो, किन्तु राजकीय दंड एवं सामाजिक बहिष्कार का भागी होता है. किन्तु यदि दशम भाव में मंगल उच्च का होकर शनि के साथ हो तों वह व्यक्ति बलपूर्वक समाज या शासन में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करता है. ऐसा व्यक्ति जघन्य हत्यारा भी हो सकता है यदि लग्न में सूर्य हो.
किसी भी लग्न में यदि शनि एवं राहू केंद्र में हो तों वह भयंकर गुदा, भगंदर, अर्बुद एवं कर्कट रोग से युक्त होगा. और ऐसी अवस्था में यदि किसी भी केंद्र में मेष राशि का राहू-शनि योग हो तों वह व्यक्ति असाध्य रक्त रोग से युक्त होता है. आज का एड्स रोग इसी ग्रह युति का परिणाम है. देश विदेश के 47 एड्स रोगियों के सर्वेक्षण से यह तथ्य पुष्ट हुआ है.
जन्म के समय यदि चन्द्र-मंगल सप्तम एवं सूर्य राहू अष्टम में हो तों वह शिशु विद्रूप- अर्थात लकवा या पक्षाघात से ग्रस्त हो जाता है. यदि चन्द्र मंगल लग्न तथा सूर्य-राहू अष्टम में हो तों बालक विक्षिप्त होता है. यदि सूर्य-शनि-मंगल-राहु किस के जन्म नक्षत्र में एकत्र हो जाय तों उस व्यक्ति क़ी रक्षा भगवान कैसे करेगें यह वही जाने.
यदि सिंह, वृश्चिक, कुम्भ या मेष राशि में सातवें सूर्य-मंगल युति हो तों विवाह क़ी कोई संभावना नहीं बनती है.
राहू के साथ चन्द्र दूसरे और पांचवे घर में होने जातक सट्टा खेलने का बड़ा शोकिन होता है| राहू के साथ बुध कही भी हो किसी भी भाव में हो, सट्टा,लोटरी, जुहा, आदि एबो की तरफ जातक का धयान जायगा|यदि बुध अस्त हो तो जातक जुए में लूट जाता है|राहू के साथ मंगल हो तो यक्ति मारधाड़ में विश्वास रखता है| और आतिशबाजी का शोकिन हो जाता है| राहू के साथ गुरु होने पैर राहू ठीक हो जाता है| और शंनी के साथ होने पर राहू बहूत ख़राब हो जाता है| और इनकी दशा , महादशा में सबकुछ चोपट हो जाता है| अत राहू से पीड़ित जातको के लिए राहू का जाप करवाना चाहिए|जो जातक पागल हो गया हो उसे चन्दन की माला पहनाये| तथा राहू के बीज मंत्र का जप गोमेद या सफ़ेद चन्दन की माला से करे भूरे रंग के कुते को बूंदी के लड्डू बुधवार या शनिवार को खिलाये|इसके साथ ही बंदरो को चना, गुड, और भूरे रंग की गाय को चारा खिलाये| जब राहू लग्न में हो या गोचर में नीच का होकर अशुभ फल दे रहा हो यो ऐसे जातको को अपने वजन के बराबर जो का तुलादान शनिवार या पूर्णिमा को करना चाहिए|
लग्न में नीच का वृहस्पति जातक को अफीम का शौकीन बनता है | द्वादश भाव के स्वामी का शत्रु या नीच राशी में होना जातक को नशेडी बनता है | कमजोर लग्न भी मित्र ग्रहों से सहयोग न मिलाने से नशे की तरफ बदता है लग्न पर पाप ग्रहों की द्रष्टि भी मादक पदार्थो का सेवन करती है | पेट , जीभ और स्नायु केन्द्रों पर बुध का अधिकार होता है | बुध को मिश्रित रस भी पसंद है | शुक्र का वीर्य , काफ , जल , नेत्र और कमंगो पर अधिकार है | अत : इन दोनों के द्वितीय भाव से सम्बंधित होने से पीड़ित होने से और द्रष्टि होने से जातक द्वारा मादक पदार्थो का सेवन करने और नहीं करने का पता चलता है | मंगल , शनि , राहू और क्षीण चन्द्रमा की द्रष्टि उत्तेजना बढाती है | जो जातक को नशेडी बनने पर मजबूर कर देती है |
राहु धरातल वाला ग्रह नहीं होने से छाया ग्रह कहा जाता है| लेकिन राहू की प्रतिष्ठा अन्य ग्रहों की भांति ही है|शनि की भांति लोग राहु से भी भयभीत रहते है|दक्षिण भारत में तो लोग राहुकाल में कोई भी कार्य नहीं करते है| राहू को अन्धकार युक्त ग्रह कहा गया है राहू के नक्षत्र आद्रा,स्वाति, और सात्भिसा है| राहु को कन्या राशी का अधिपत्य प्राप्त है| कुछ ज्योतिषी राहु को मिथुन राशी में उच्च का एवं धनु राशी में नीच का मानते है| राहू का वर्ण नीलमेघ के समान है| सरीर में इसे पेट और पिंडलियों में स्थान मिला है गोमेद इसकी मणि, पूर्णिमा इसका दिन, व अभ्रक इसकी धातु है| राहू रोग कारक ग्रह है| काला जादू, हिप्नोटीज्म में रूचि यही ग्रह देता है| अचानक घटने वाली घटनायो के योग राहू के कारण ही होते है|
कुंडली में पंचम भाव के स्वामी पर नीच या पीड़ित शनि , राहू की द्रष्टि मादक पदार्थो का सेवन कराती है | सूर्य की नीच राशी तुला में ये स्पष्ट लिखा है की जातक शराब बनाने और बचने वाला होता है | कर्क राशी में मंगल नीच का होता है | अत : वह चंचल मन वाला और जुआ खेलने में विशेष रूचि रखता है | बुध की नीच राशी मीन है| यह जातक को चिंतित रखता है और उस की स्मरण शक्ति भी ख़राब होती है | कन्या में शुक्र पीड़ित होकर मद्यपान की और ले जाता है | शनि मेष में नीच होता है | वह जातक से जालसाजी , फरेब करने के साथ ही नशा भी करता है | राहू वृश्चिक में नीच का होता है , वह जातक को शराब के आलावा कोकीन , अफीम , हिरोइन आदि का भी टेस्ट कराना चाहता है |