Sunday 14 February 2016

दक्षिणावर्ती शंख और उसके उपयोग

भारतीय संस्कृति में शंख की अपार महिमा एवं उपयोगिता बताई गई है। शंख समृद्धिदायक, दरिद्रता नाशक, आयुवर्द्धक के साथ-साथ देवी-देवताओं के पूजन के लिए, ज्योतिष और तांत्रिक साधनाओं में एवं शुभ कार्य के प्रारंभ में इसकी विशेष उपयोगिता बताई गई है। ये समुद्र में लगभग सभी जगह मुख्य रूप से पाए जाते हैं। मालदीव, श्री लंका, अंडमान निकोबार, हिंद महासागर, अरब सागर व प्रशांत महासागर में मुख्य रूप से पाए जाते हैं। मुख्यतः शंख वामवर्ती होते हैं एवं दक्षिणावर्ती शंख दस प्रतिशत से भी कम पाए जाते हैं। इसको जानने के लिए कि यह दक्षिणावर्ती है या वामवर्ती शंख के मस्तक को अपनी और व धारा मुख को बाहर की तरफ रखे और दायां भाग खुला हो तो वह दक्षिण् ाावर्ती शंख होता है तथा जिसका बायां भाग खुला हो वह वामवर्ती शंख होता है। सामन्यतः दक्षिण् ाावर्ती शंख बाएं हाथ से पकड़ने में सुविधापूर्वक आता है एवं वामवर्ती शंख को दाएं हाथ से पकड़ने में सुविधा होती है। यदि शंख को बजाना हो तो वामवर्ती शंख को दाएं हाथ में पकड़ कर ही बजा पाएंगे। दक्षिणावर्ती शंख को दांए हाथ में पकड़कर बजाने में असुविधा होती है। इसलिए बजाने वाले शंख वामवर्ती ही होते हैं। प्रकृति में पचास हजार से भी अधिक प्रकार के शंख पाए जाते हैं। कुछ खारे पानी में तो कुछ मीठे पानी में इनके आकर भी एक मिली मीटर से लेकर चालीस इंच तक होते हैं।
ये अनेकों रंगों में एवं एक ग्राम से कई किलो तक के वजन में पाएं जाते हैं। शंख भगवान विष्णु के चतुर्भज स्वरूप में हस्त का एक आभूषण हैं, महाभारत में भी भगवान कृष्ण ने पांचजन्य शंख बजाकर युद्ध की शुरुआत की थी। आयुर्वेद में शंख भस्म अनेकों प्रकार के रोगों को दूर करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है। बौद्ध धर्म में शंख को अष्ट मंगल (शंख, श्रीवत्स, मत्स्य, पद्म छत्र कलश चक्र ध्वज) पदार्थों में से एक है। दक्षिणावर्ती शंख एक बड़े समुद्री जीव का बाहरी हिस्सा है जो कि भारत के दक्षिण में हिंद महासागर में पाया जाता है इसका जीव विज्ञान में टर्बिनेला पायरम नाम हैं शंख को बजाने से बातावरण की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। इससे आशा, आत्मबल, शक्ति व दृढ़ता बढ़ती है, तथा भय नष्ट होता है। श्रद्धा व विश्वास जागृत होता है। भाग्य और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड एवं शंख की आकृति समान है। शंख के अंदर का घेरा ब्रह्मांड की कुंडली (स्पाइरल) की तरह होता है। शंख में गूंजने वाला स्वर ब्रह्मांड की गूंज के समान है, शब्द की गूंज भी शंख के द्वारा गुंजायमान ध्वनि जैसी ही होती है।
योग मंे शंख मुद्रा का भी वर्णन है शंख नांद से अनेकों प्रकार के कीटाणुओं का नाश होता है रुद्राभिषेक करते समय या किसी देवता के जलाभिषेक करते समय शंख में जल या दूध डाला जाए तो पाप नष्ट होते हें व सुख समृद्धि बढ़ती है। पुराण में शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुए थी, इसके धारा मुख पर गंगा, सरस्वती, मध्य में प्रजापति एवं सिर पर सूर्य, चंद्र, वरुण का स्थान माना गया है। वराह पुराण में कहा गया है कि मंदिर के दरवाजे खुलने से पहले शंख अवश्य बजाना चाहिए शंख के बजाने से सात्विक स्पंदन (बाइवे्रशन) आती है और तामसिक व राजसिक स्पंदन (वाइवे्रशन) समाप्त हो जाती है।
शंख की मौलिकता की पहचान के लिए एक्स-रे द्वारा जांचा जाता है कभी-कभी शंख के दोषों को दूर करने के लिए शंख पाउडर द्वारा फिलिंग कर दी जाती है या कोने आदि बना दिए जाते हैं लेकिन केवल महंगे शंख ही दक्षिणावर्ती शंख होते हैं ऐसा सत्य नहीं है अनेकों किस्मों में दक्षिणावर्ती शंख पाए जाते हैं। किसी में रेखाएं होती है किसी में नहीं, बिना रेखाओं वाले शंख भी नकली नहीं होते बल्कि अन्य जाति के होते है और इनको भी दक्षिणावर्ती शंख की तरह माना व पूजा गया है।
दक्षिणावर्ती शंख और उसके उपयोग
दक्षिणवर्ती शंख से लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है इसके बिना लक्ष्मी जी की आराधना पूजा सफल नहीं मानी जाती।
दक्षिणावर्ती शंख से पितृ-तर्पण करने पर पितरों की शांति होती है।
दक्षिणावर्ती शंख में जलभर कर गर्भवती स्त्री को सेवन कराने से संतान स्वस्थ व रोग मुक्त होती है।
दक्षिणावर्ती शंख से शालिग्राम व स्फटिक श्री यंत्र को स्नान कराने से वैवाहिक जीवन सुखद व लक्ष्मी का चिर स्थायी वास होता है।
चंद्रमा ग्रह की प्रतिकूलता से होने वाले श्वास संबंधी व हृदय रोगों की शांति के लिए दक्षिणावर्ती शंख की नित्य पूजा करें।
दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना से वास्तु दोषों का निराकरण होता है।

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