खगोलशास्त्रीय विवरण: बृहस्पति लघु ग्रहों की झुण्ड से परे है। सूर्य से इसकी दूरी 500मिलियन मील है और यह हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसका व्यास 88,000 मील है जो पृथ्वी के व्यास का लगभग 12 गुना है। यह सूर्य का एक चक्कर लगभग 12 सालों में पूरा करता है।पौराणिक कथा: बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं। उनके पिता हैं महर्षि अंगीरा। महर्षि की पत्नी ने सनत कुमार से ज्ञान लेकर पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत शुरू किया। उनकी श्रद्धा और भक्ति देखकर भगवान खुश हुए और उनके घर में पुत्र का जन्म हुआ। यही पुत्र बुद्धि के देवता बृहस्पति हैं।ज्योतिषीय विवेचना: बृहस्पति धनु और मीन राशि का स्वामी है। यह कर्क राशि में 5 डिग्री उच्च का तथा मकर में 5 डिग्री नीच का होता है। इसका मूल त्रिकोण राशि धनु है। बृहस्पति ज्ञान और खुशी का दाता है। यह सौर मंडल में मंत्री की भूमिका में है। इसका रंग पीलापन लिए हुए भूरा है। बृहस्पति के इष्टदेव देवराज इंद्र हैं। यह पुल्लिंग ग्रह है। इसका तत्व आकाश है। यह ब्राह्मण वर्ण का और मुख्य रूप से सात्त्विक ग्रह है।बृहस्पति देव का शरीर विशालकाय, आंखे शहद के रंग की और बाल भूरे हैं। ये बुद्धिमान और सभी शास्त्रों के ज्ञाता हैं। यह शरीर में मोटापा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये खजाने वाले कमरे में पाए जाते हैं। यह एक माह की अवधि को दिखाते हैं। यह मीठे स्वाद का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये पूर्व दिशा में सबल हैं। सूर्य, चन्द्र और मंगल के साथ इनका मैत्रीपूर्ण संबंध है। बुध, शुक्र के साथ इनका विरोधी संबंध है और शनि के साथ ये निष्पक्ष रहते हैं। राहु के साथ इनका संबंध मित्रवत और केतु के साथ निष्पक्ष रहता है। एक दिलचस्प बात यह है कि कोई भी ग्रह बृहस्पति को अपना विरोधी नहीं मानता जबकि बृहस्पति शुक्र और बुध को अपना शत्रु मानते हैं।ज्योतिषीय महत्व: उत्तर कालामृत के अनुसार बृहस्पति की प्रमुख विशेषताएं-1. ब्राह्मण 2. शिक्षक 3. गाय 4. खजाना 5. विशाल या मोटा शरीर 6. यश 7. तर्क 8. खगोल विद्या और ज्योतिष विद्या 9. पुत्र 10. पौत्र 11.बड़ा भाई 12. इन्द्र 13. बहुमूल्य रत्न 14. धर्म 15. पीला रंग 16. शारीरिक स्वास्थ्य 17. निष्पक्ष दृष्टिकोण 18. उत्तर की ओर मुख 19. मंत्र 20. पवित्र जल या धार्मिक स्थल 21. बुद्धि या ज्ञान 22. भगवान ब्रम्हा 23. सोना और बेहतरीन पुखराज 24. भगवान शिव की पूजा 25. शास्त्रीय ग्रन्थों का ज्ञान 26. वेदांतसामान्यत: यह देखा गया है कि मजबूत बृहस्पति उपर्युक्त मामलों में अच्छा होता है, वहीं बृहस्पति कमजोर हो तो इनका अभाव दिखता है। ज्योतिष में बृहस्पति के अलावा किसी अन्य से निष्पक्ष लाभ नहीं मिलता। लग्न या केंद्र में बृहस्पति की उपस्थिति मात्र ही कुंडली के कई कष्टों को कम करता है। बृहस्पति सबसे बड़ा और शुभ ग्रह है। अगर बृहस्पति बलवान हो तो अन्य ग्रहों की स्थिति ठीक न रहने पर भी अहित नही होता।जिसका बृहस्पति बलवान होता है उसका परिवार समाज एवं हर क्षेत्र में प्रभाव रहता है। बृहस्पति बलवान होने पर, शत्रु भी सामना होते ही ठंडा हो जाता है। बृहस्पति प्रधान व्यक्ति को सामने देखकर हमारे हाथ अपने आप उन्हें नमस्कार करने के लिए उठ जाते हैं। बृहस्पति व्यक्ति कभी बोलने की शुरूआत पहले नही करते यह उसकी पहचान है। निर्बल बृहस्पति व्यक्ति का समाज एवं परिवार में प्रभाव नही रहता। ज्योतिष विद्या बृहस्पति की प्रतीक है।न्यायाधीश, वकील, मजिस्ट्रेट, ज्योतिषी, ब्राम्हण, बृहस्पति, धर्मगुरू, शिक्षक, सन्यासी, पिता, चाचा, नाटा व्यक्ति इत्यादि बृहस्पति के प्रतीक हैं तो ज्योतिष, कर्मकांड, शेयर बाजार, शिक्षा, शिक्षा से संबंधित किताबों का व्यवसाय, धार्मिक किताबों और चित्रों का व्यवसाय, वकालत, शिक्षा संस्थाओं का संचालन इत्यादि बृहस्पति के प्रतीक रूप व्यवसाय है। इनमें सफलता प्राप्त करने के लिए बृहस्पति प्रतीकों का उपयोग करना चाहिए। बैंक मैनेजर,कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर आदि बृहस्पति के प्रतीक है। फाइनेंस कंपनी, अर्थ मंत्रालय भी बृहस्पति के प्रतीक है।चना दाल, शक्कर, खांड, हल्दी, घी, नमक, बृहस्पति की प्रतीक रूप चीजें है। संस्कृत बृहस्पति की प्रतीक भाषा है। ईशान्य या उत्तर बृहस्पति की दिशाएं है। शरीर में जांघ बृहस्पति का प्रतीक है। मंदिर मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च बृहस्पति के प्रतीक है। बृहस्पति का रंग पीला है।घर की तिजोरी में बृहस्पति का वास है। बृहस्पति अर्थतंत्र का कारक है। ज्योतिषशास्त्र खजाने को बृहस्पति का प्रतीक मानता है। घर में रखे धर्मग्रंथ देखने से भी व्यक्ति के बृहस्पति का अंदाजा मिल जाता है।रोग: अशुभ गुरु शरीर में कफ, धातु एवं चर्बी (मोटापा) की वृद्धि करता है। मधुमेह, गुर्दे का रोग, सूजन, मूर्च्छा, हर्निया, कान के रोग, स्मृति विकार, जिगर के रोग, पीलिया, फेफड़ों के रोग, मस्तिष्क की रक्तवाहिनियों के रोग, हृदय को धक्का पहुंचना, पेट खराब करता है। मोटापे के बहुत सारे कारणों में से एक कारण आपकी कुंडली में बृहस्पति ग्रह का गलत जगह पर बैठना भी हो सकता है। जिन जातक की जन्म (लग्न) कुंडली में देव गुरू बृहस्पति किसी पापी ग्रह से दृष्ट हो, किसी पापी ग्रह के साथ युति हो अथवा गुरू की महादशा,अन्तर्दशा अथवा प्रतांतर चल रहा हो तब भी मोटापे का प्रभाव देखने में आता है। गुरू ग्रह की डिग्री (अंश) की भी भूमिका महत्वपूर्ण होती है, यदि बृहस्पति जन्मपत्रिका में अस्त या वक्री हों तो मोटापे से संबंधित दोष आते हैं और पाचन तंत्र के विकार परेशान करते हैं। जब-जब गोचर में बृहस्पति लग्न, लग्नेश तथा चंद्र लग्न को देखते हैं तो वजन बढने लगता है।वास्तव में हमारे शरीर की संरचना हमारी कुंडली निर्धारित करती है। चंद्रमा, बृहस्पति और शुक्र ये तीन ग्रह शरीर में वसा की मात्रा को नियंत्रित करते हैं। वात, पित्त व कफ की मात्रा बढऩे से शरीर में मोटापा बढ़ता है। इसके अलावा यदि लग्न में जलीय राशि जैसे कर्क, वृश्चिक हो और इनके स्वामी भी शुभ हो या लग्न में जलीय प्रकृति का ग्रह हो तो शरीर पर मोटापा बढ़ेगा ही। ऐसी स्थिति में बाहरी उपाय की बजाय ग्रहों को मजबूत करना फायदा देगा।बृहस्पति आशावाद के प्रतीक हैं, गुरू हैं तथा देवताओं के मुख्य सलाहकार हैं। वे उपदेशक हैं, प्रवाचक हैं तथा सन्मार्ग पर चलने की सलाह देते हैं। वे विज्ञान हैं, दृष्टा हैं तथा उपाय बताते हैं जिनसे मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो। यदि गुरू अपने सम्पूर्ण अंश दे दें तो व्यक्ति महाज्ञानी हो जाता है।बृहस्पति के उपाय हेतु जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए उनमें चीनी, केला, पीला वस्त्र, केशर, नमक, मिठाईयां, हल्दी, पीला फूल और भोजन उत्तम कहा गया है। इस ग्रह की शांति के लिए बृहस्पति से संबंधित रत्न का दान करना भी श्रेष्ठ होता है। दान करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए कि दिन बृहस्पतिवार हो और सुबह का समय हो। दान किसी ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को देना विशेष फलदायक होता है। बृहस्पतिवार के दिन व्रत रखना चाहिए। कमज़ोर बृहस्पति वाले व्यक्तियों को केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों, पक्षियों विशेषकर कौओं को देना चाहिए। ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावल खिलाना चाहिए। पीपल के जड़ को जल से सींचना चाहिए। गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवास होता है
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आँख जीव जंतुओं के शरीर का आवश्यक अंग हैं। आँख या नेत्रों के द्वारा हमें वस्तु का दृष्टिज्ञान होता है। दृष्टि वह संवेदन है, जिस पर मनुष्य सर्वाधिक निर्भर करता है। दृष्टि एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें प्रकाश किरणों के प्रति संवेदिता, स्वरूप, दूरी, रंग आदि सभी का प्रत्यक्ष ज्ञान समाहित है। आँखें अत्यंत जटिल ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, जो दायीं-बायीं दोनों ओर एक-एक नेत्र कोटरीय गुहा में स्थित रहती है। ये लगभग गोलाकार होती हैं तथा इनका व्यास लगभग एक इंच (2.5 सेंटीमीटर) होता है। इन्हें नेत्रगोलक कहा जाता है। नेत्र कोटरीय गुहा शंक्वाकार होती है। इसके सबसे गहरे भाग में एक गोल छिद्र (फोरामेन) होता है, जिसमें से होकर द्वितीय कपालीय तन्त्रिका (ऑप्टिक तन्त्रिका) का मार्ग बनता है। नेत्र के ऊपर व नीचे दो पलकें होती हैं। ये नेत्र की धूल के कणों से सुरक्षा करती हैं। नेत्र में ग्रन्थियाँ होती हैं। जिनके द्वारा पलक और आँख सदैव नम बनी रहती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति के वर्तमान जीवन में जो भी उसकी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक या अध्यात्मिक परिस्थितियां या प्रवृत्ति है वह उसके पूर्व जन्म के संचित कर्मो के आधार पर निर्धारित होती है। व्यक्ति की कुंडली में उसी प्रकार ग्रहों की स्थितियाँ या युतियाँ होती हैं जैसी उसके पिछले जन्म के कर्म या संचित पुण्य होते हैं। चूँकि प्रत्येक ग्रह व्यक्ति के शरीर में उपस्थित किसी न किसी तत्व का प्रतिनिधित्व भी करता है और कारक होता है अत: उस ग्रह की किसी विशेष भाव में उपस्थिति, युति या उसका बल व्यक्ति में किसी न किसी प्रकार की शारीरिक, मानसिक व्याधि को जन्म देता है। मानव शरीर में आँखें सबसे कीमती और जरूरी अंग है। यह संसार चक्र देखने एवं इसमें आसानी से जीवन यापन करने के लिए आँखों का होना अति आवश्यक है। किंतु किसी व्यक्ति की आँखें जन्म से ही नहीं होती तो किसी को बाद में अंधा होना पड़ जाता है। किसी जातक को मोतियाबिंद हो जाता है जिससे उसे दिन में दिखाई नहीं देता तो किसी को रतौंधी होने से रात की रोशनी में दिखाई नहीं देती। कभी आँखों से पानी गिरना, आँख आना, आँखों की दुर्बलता, आँखों की थकान, आँखों में चोट लगी हो जल गई हों, मिर्च मसाला गिरा हो, कोई कीड़ा गिर गया हो या डंक मारा हो, आँख लाल हो, दुखती हो, कीचड़ आती हो, प्रकाश सहन न, आँखों के आगे अँधेरा आता हो या कभी किसी बिमारी से रोशनी चली या कम हो जाती है। इस प्रकार यदि देखें तो जीवन में घटित इन आकस्मिक सी दिखाई देनी वाली घटनाओं को ज्योतिष के अनुसार पूर्ण निर्धारित कारण माना जाता है।प्रश्र यह उठता है कि आखिर यह सब क्यों? इस प्रश्र का उत्तर ज्योतिष शास्त्र के द्वारा प्राप्त होता है। सूर्य धरती का जीवनदाता, लेकिन एक क्रूर ग्रह है, वह मानव स्वभाव में तेजी लाता है। यह ग्रह कमजोर होने पर सिर में दर्द, आँखों का रोग आदि देता हैं। जब भी किसी जातक के जन्मपत्र में दूसरे और बारहवें भाव में शुक्र का वर्ग हो या स्वयं शुक्र निर्बल बैठा हो अथवा शुक्र सूर्य के साथ किसी भी भाव में बैठा हो तो आँखों से संबंधित रोग होते हैं। इसके साथ ही अगर मंगल सूर्य की युति अथवा दृष्टि, सूर्य नीचोंन्मुख होकर शनि से युत अथवा चंद्रमा या मंगल से दृष्ट हो तो नेत्र ज्योति क्षीण होती है। इसके साथ इन दशाओं में शारीरिक लापरवाही मोतियाबिंद अथवा रतौंधी संबंधी बीमारी का कारण बनता है। जिसमें चंद्रमा के होने से रतौंधी तथा शुक्र के होने से मोतियाबिंद होने का कारण होता है। जिस मनुष्य के जन्म में षष्ठेश मंगल लग्र या षष्ठेश मेष या वृश्चिक को हो अथवा मंगल के साथ चंद्रमा या सूर्य बारहवें स्थान में हो या शनि 5, 7, 8, 9 स्थान में सिंह राशि का हो अथवा पापी ग्रहों के साथ नीच का हो जायें अथवा राहु से पापाक्रांत हो तो आँखों से पानी आना अथवा फुंसी होना जैसी बीमारी होती है। यदि सूर्य शनि की युति द्वितीय अथवा बारहवें स्थान में अथवा द्वितीयेश अथवा द्वादशेश होकर 6, 8, 12 स्थान में हो जाये तो आखों से पानी निकलता तथा रोशनी मंद होना संबंधित बीमारी होती है। यदि सूर्य अथवा चंद्रमा मंगल के साथ पाप अथवा नीच स्थानों पर हो तो नेत्र में जाला बनना, मस्सा, गुहेरी अथवा घाव होने जैसी बीमारी इन दशाओं में होती है। व्ययेश अथवा धनेश होकर शुक्र सूर्य की युति में अथवा षष्ठम, अष्टम अथवा द्वादश स्थान में हो जाये अथवा राहु से दृष्ट हो तो नेत्र ज्योति क्षीण होने की आशंका होती है। धनेश-व्ययेश सूर्य शुक्र हो, युति बनाये अथवा दृष्टि हो, मंगल शनि की किसी भी प्रकार की दृष्टि इन ग्रहों पर हो, द्वितीयेश, व्ययेश, इन ग्रहों के छठे, आठवे अथवा बाहरवें स्थान में हो, कू्रर ग्रहों के प्रभाव में हो, तो नेत्र रोग अवश्य होता है। इन ग्रहों की दशाओं अथवा अंतरदशाओं में इन रोगों के होने की संभावना होती है।शुक्र की बुध के साथ समीपी 6, 8, 12 स्थानों में हो या त्रिक स्थानों में स्थिति हो तो रतौंधी रोग होता है। यदि षष्ठेश मंगल लग्र में हो अथवा द्वितीयेश या द्वादशेश सूर्य राहु से पापाक्रांत होकर नीच स्थानों में हों तो आँखों के रोग बचपन में ही हो जाते हैं। कुण्डली के दूसरे अथवा बारहवें दोनों घरों में से जिसमें सूर्य अथवा शुक्र बैठा होता है उस आंख में तकलीफ होने की संभावना अधिक रहती है। ज्योतिषशास्त्र के ग्रंथ सारावली में बताया गया है कि जिनकी कुण्डली में सूर्य और चन्द्रमा एक साथ बारहवें घर में होते हैं उन्हें नेत्र रोग होता है। ये दोनों घर मंगल, शनि, राहु एवं केतु के अशुभ प्रभाव में होने पर भी आंखों की रोशनी प्रभावित होती है। इससे स्पष्ट होता है कि सूर्य, शुक्र और चंद्रमा जो कि ज्योतिकारक ग्रह हैं। धनेश और व्ययेश जोकि नेत्रस्थ ज्योति हैं और इसके अतिरिक्त दूसरा, लग्र और बारहवां स्थान नेत्र भाव का स्थान है यदि इन में से किसी का भी संबंध छठवे, आठवे अथवा बारहवें स्थानों से या उनके अधिपतियों से अथवा किसी भी प्रकार से बने अथवा शत्रु, नेष्ट, अस्त, नीच अथवा नीचास्त, पापी क्रूर ग्रहों से संबंध इन में से किसी भी ग्रहों का बनें तो नेत्र से संबंधित कष्ट देता है।उपाय:नेत्र रोग के कई योग ज्योतिषशास्त्र में बताये गये हैं। साथ ही बताया गया है कि मंत्रों एवं ग्रहों के उपायों से नेत्र रोग देने वाले अशुभ योगों के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इनमें सबसे आसान उपाय है नियमित सूर्योदय के समय उगते सूर्य को तांबे के बर्तन में जल भरकर अर्पित करना। नियमित ऐसा करने से नेत्र रोग होने की संभावना कम रहती है। कृष्ण यजुर्वेद साखा का एक उपनिषद् है चाक्षुषोपनिषद। इस उपनिषद् में आंखों को स्वस्थ रखने के लिए सूर्य प्रार्थना का मंत्र दिया गया है। माना जाता है कि इस मंत्र का नियमित पाठ करने से नेत्र रोग से बचाव होता है। जिन लोगों की आंखों की रोशनी अल्पायु में ही कमज़ोर हो गयी है, उन्हें भी इस मंत्र के जप से लाभ मिलता है।सूर्य के गलत प्रभाव सामने आ रहे हों तो सूर्य के दिन यानी रविवार को उपवास तथा माणिक्य लालड़ी तामड़ा अथवा महसूरी रत्न को धारण किया जा सकता है। सूर्य को अनुकूल करने के लिए मंत्र-ऊस: सूर्याय नम: का एक लाख 47 हजार बार विधिवत जाप करना चाहिए। यह पाठ थोड़ा-थोड़ा करके कई दिन में पूरा किया जा सकता है।अन्य उपाय:भरपूर नींद लें जिससे आँखों को भरपूर आराम मिल सके। भागदौड़ भरी जिंदगी में सबसे आगे रहने की टेंशन लेने के बजाय सामान्य रूप से जीने की आदत डालें और टेंशन को कम करने के लिए योग, मेडिटेशन, हॉबी क्लास, गेम्स आदि का सहारा लें। सिरदर्द आँखों की बीमारी का एक लक्षण है, इससे बचाव में एक्सरसाइज की भूमिका काफी अहम है, क्योंकि इससे शरीर में एंडॉर्फिन रिलीस होता है, जोकि शरीर के लिए नैचरल पेनकिलर का काम करता है। स्मोकिंग से खून की नलियां और ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है, जिससे मसल्स में ब्लड सर्कुलेशन सही ढंग से नहीं हो पाता और तेज सिरदर्द हो जाता है। अल्कोहल कम लें। साथ ही, डीहाइड्रेशन से बचने के लिए ड्रिंक करने के बाद खूब सारा पानी पीना चाहिए। कई बार डीहाइड्रेशन से भी सिरदर्द हो जाता है। खूब पानी और दूसरे हेल्दी लिक्विड लेकर माइनर सिरदर्द अथवा आँखों से संबंधित रोगो को रोका जा सकता है। आप जो खाते हैं, उससे ब्रेन की केमिस्ट्री प्रभावित होती है और इससे खून की नलियों का साइज भी बदल सकता है। जिसके कारण नेत्र ज्योति कमजोर होना, सिरदर्द होना अथवा आँखों के रोग हो सकते हैं। काम के स्ट्रेस से बचने के लिए लोग काफी ज्यादा चाय, कॉफी आदि पीते रहते हैं, जिनमें कैफीन होता है। ज्यादा कैफीन लेने से आँखों की रोशनी कम होती है, सिरदर्द की आशंका बढ़ती है।सुबह उठकर अपने मुंह मे पानी भर ले और ठन्डे पानी से आंखों में छीटे मारना चाहिए। यह नेत्र ज्योति के लिए बहुत लाभ दायक पाया गया है। गाजर और पालक की भाजी का जूस तो यदि संभव हो तो हर दिन एक कप पीना ही चाहिए यह आंखों के लिए बहुत लाभ दायक रहा है। सुबह उठकर सूर्य भगवान को अध्र्य भी देने का क्रम बना ले, भले ही इसकी उपयोगिता समझ मे आज ना आये पर आखों कि ज्योति के अधिपति सूर्य, चंद्र हैं अत: सूर्य अध्र्य से समस्या के समाधान मे बहुत सहायता मिलाती है। दैनिक जीवन मे सुर्योपासना के महत्व को समझना चाहिए। सूर्य देव से संबंधित कोई भी मंत्र को अपने जीवन मे महत्व अवश्य दें, कम से कम 11 माला मंत्र जप तो करे। कई बार अनेको उपाय करने के बाद भाई सफलता या नेत्र रोग या दोष दूर नही हो रहे होते हैं क्योंकि ग्रह वाधा या ग्रह दोष का बहुत प्रभाव जो कि किसी भी चिकित्सीय उपाय को सफल नहीं होने देता हैं इस अवस्था में सूर्य और चंद्र के तांत्रिक मंत्रो का जप करना, बहुत लाभदायक माना गया है।
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वर्ष 2014 के शुरुआत से ही वरन 2013के मध्य से ही राजनीति के सरोकार हिन्दुस्तान में बदलते दिखाई दिए आप सभी सोचते होंगे क्यों? हमने भी इस प्रश्न की पड़ताल की... असल में हिन्दुस्तान की राजनीति में 68 वर्षों चली आ रही, भर्रा शाही के चलते देश को बहुत अव्यवस्था झेलनी पड़ी। नीतियां बनी पर व्यवहार में असफल रही, कानून जो थे पुराने और अप्रासंगिक हो गए, व्यवस्था चरमरा गयी, नेताओं ने समाज तथा देश हित में जो कठोर कदम उठाने थे नहीं उठाए। केवल तुष्टिकरण से काम चला लिया जिसका परिणाम देश के अंदर अव्यवस्था फैली। वो भी इस कदर कि जरुरी निर्णय भी राजनैतिक हानि के वजह से नहीं लिए गए। ज्यादातर नेता कमजोर और भीरु हुए, सारे निर्णय नफा-नुकसान के गणित से प्रभावित रहे। यही समय था कि देश के अंदर भयंकर असंतोष पनपने लगा, यहाँ तक की चाय के विज्ञापन में खुले तौर कहा गया ''कि देश उबल रहा है मगर लोगों ने ध्यान नहीं दिया। ऐसा प्रतीत होता है की देश के स्वतन्त्रता के समय का लग्नस्थ 'राहु देश की व्यवस्था को घुन लगा गया। लोग आये, चले गए पर नीतियों के केंद्र में नफा नुकसान का गणित बढ़ता गया। देश की स्वतंत्रता के समय का जन्म लग्न वृषभ और राशि कर्क हुई। देश में ग्रहों के अनुसार छोटे परिवर्तन तो बहुत बार आये परन्तु किसी भी परिवर्तन को गंभीर सामाजिक निर्देश मानकर नेता तथा ब्यूरोक्रेट अपने को बदलने को तैयार नहीं थे।यहाँ तक नेता और ब्यूरोक्रेट इतने उद्दंड हो गए की वो शक्ति तथा अधिकार का दुरूपयोग कर लाभ लेते और दमन करते रहे। मगर जब तुला के शनि आये और चौथे राहु से आक्रांत हुए। जिसके प्रभाव से देश में बढ़े घोटाले उजागर हुए, हालाँकि तब तक कुछ बड़े महत्वपूर्ण कानून पास हो चुके थे इसी के कारण ऐसा संभव हो सका।जनता इन हरकतों से आजि़ज आ चुकी थी अन्तत: अगस्त 2012 में पहले रामदेव और फिर अन्ना ने आंदोलन किया। चुंकि शनि राहु से आक्रांत था इस लिए नेताओं को क्या करना नहीं सुझा। और वे इस आंदोलन को कुचलने में लग गए। यही भूल हुई उन्होंने समझा की सब ठीक हो गया है परन्तु बहुत कुछ बदल चुका था। देश संगठित हो चुका था परिवर्तन के लिए, व्यवस्था चरमरा गयी थी। परिणाम सत्ता बदल गई। याद रहे सत्ता बदलने के बाद भी राजनैतिक बिरसे की कमी थी। और फिर आ गए गुरु महराज कर्क राशि में, यहीं से एक दूसरा परिवर्तन शुरू हुआ, सारे वही आरोप सरकार पर लगे जो पूर्व की सरकार पर लगे, क्यों की एक तरफ ऊच्च के गुरु थे और दूसरी तरफ उच्च के शनि। परिणाम उपचुनाव में सत्ता की पराजय। मगर एक अच्छी बात कि उच्च के गुरु ऊंचे मानदंड समाज में स्थापित करेंगे ही। अत: सत्ता ने इसे स्वीकारा और आने वाले समय में इसका परिणाम भी दिखाई देगा। बड़ा प्रश्न, क्या देश इस परिस्थिति से उबर पायेगा? जवाब है हाँ, बशर्ते कि सभी की सक्रियता लोकतंत्र में हो। और अब ये बात सरकार को भी मालूम है कि जो हो चुका वो हो चुका, पर अब ऐसा नहीं चलने वाला। राजनीति और ब्यूरोक्रेसी को जवाबदेही तय करनी होगी। तभी हम कह सकेंगे कि अच्छे दिन आने वाले हैं। देश फिर से सिरमौर बनेगा। मगर रचना हमेशा ध्वंस के बाद ही शुरू होती है, तो इसके कुछ बुरे दृश्य के लिए भी देश को तैयार होना पड़ेगा। असल में आज गुरू कर्कगत एवं शनि वृश्चिकगत हैं तो सरकार को ताबड़तोड़ सुधारवादी कठोर निर्णय दिलेरी से ले लेने चाहिए वर्ना जुलाई 2014 के पश्चात जब गुरू सिंहगत होंगे, तब सरकार देर कर चुकी होगी और आज हर बदलते दिन में सरकार दबाव में आयेगी क्योंकि इस सरकार ने बड़ी जोर से परिवर्तन के नारे से सत्ता हासिल की थी। तो मीडिया, विपक्ष और जनता सभी की अपेक्षा इनसे बहुत ज्यादा है। अत: जल्दी ही सुधारवादी आर्थिक निर्णयों को जुलाई से पूर्व ले लेना चाहिए। आगे सरकार को आलोचनाओं का शिकार होना पड़ सकता है।आगे एक और संभावना है कि केंद्र सरकार को कुछ राज्यों के चुनाव तथा लोकनिकाय के आगामी चुनाव में सुधारवादी नीतियों के संभावित कुछ राजनैतिक दुष्परिणाम (नफा-नुकसान) भुगतने पड़ सकते हैं। इसके मद्देनजर सरकार, या तो इन निर्णयों से तौबा कर ले या इसे विलंबित ही कर दें। ...और कहीं ऐसा न हो जावे कि ''आधी छोड़ पूरी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै मतलब सरकार को समय पर ही चेतना होगा और कुछ कठोर सुधारवादी निर्णय लेने ही होंगे वर्ना....।
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प्राचीन काल में सरगुजा दण्डकारण्य क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता था। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम दण्डकारण्य में इसी क्षेत्र से प्रवेश किये थे। इसीलिए इस क्षेत्र का पौराणिक महत्व हैं। सरगुजा प्रकृति की अनुपम देन हैं। प्राकृतिक सौन्दर्यता के कारण यह ऋषि-मुनियों की तपोस्थली के रूप में विख्यात रहा हैं। इस क्षेत्र में अनेक संस्कृति का अभ्यूदय हुआ। उनके पुरातात्विक धरोहर आज भी इनकी स्मृति में विद्यमान हैं। जैसे रामगढ़, लक्ष्मणगढ़, कुदरगढ़, देवगढ़, महेशपुर, सतमहला, जनकपुर, डीपाडीह, मैनपाट, जोकापाट, सीताबेंगरा-जोगीमारा (प्राचीन नाट्यशाला) तथा यहाँ के अनेक जलप्रपात भी हैं। यहाँ की सुरम्य वादियाँ पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। सरगुजा का नामकरण स्वर्ग-जा अर्थात् स्वर्ग की पुत्री के रूप में की जाती हैं। गजराज की भूमि सरगुजा आज भी अतीत का गौरवशाली इतिहास बताते हुए विद्यमान हैं।छत्तीसगढ़ का शिमला:मैनपाट भारत के राज्य छत्तीसगढ़ का एक पर्यटन स्थल है। यह स्थल अम्बिकापुर नगर, जो भूतपूर्व सरगुजा, विश्रामपुर के नाम से भी जाना जाता है, से 75 किमी. की दूरी पर अवस्थित है। अम्बिकापुर छत्तीसगढ़ राज्य का सबसे ठंडा नगर है। मैनपाट में भी काफ़ी ठंडक रहती है, यही कारण है कि इसे छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है। 1962 ई. से यहाँ पर तिब्बती लोगों के एक समुदाय को भी बसाया गया है।मैंनपाट विंध्य पर्वतमाला पर स्थित है। मैनपाट की लम्बाई 28किमी. और चौड़ाई 10-12 किमी. है। यह प्राकृतिक सम्पदा से भरपुर और एक बहुत ही आकर्षक स्थल है। सरभंजा जल प्रपात, टाईगर प्वांइट और मछली प्वांइट यहाँ के श्रेष्ठ पर्यटन स्थल हैं। छत्तीसगढ़ के इस स्थान से ही रिहन्द एवं मांड नदियाँ निकलती हैं। यहाँ पर तिब्बती का भी बड़ी संख्या में निवास है। एक प्रसिद्ध बौद्ध मन्दिर भी यहाँ है, जो तिब्बतियों की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। शायद यही कारण है कि यह छत्तीसगढ़ का तिब्बत भी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ के मैनपाट की वादियां शिमला का अहसास दिलाती हैं, खासकर सावन और सर्दियों के मौसम में। प्रकृति की अनुपम छटाओं से परिपूर्ण मैनपाट को सावन में बादल घेरे रहते हैं। लगता है, जैसे आकाश से बादल धरा पर उतर रहे हों। रिमझिम फुहारों के बीच इस अनुपम छटा को देखने पहुंच रहे पर्यटकों की जुबां से निकलता है...वाकई यह शिमला से कम नहीं है। मैनपाट में पहाडिय़ों से बादलों के टकराने के कारण यह नजारा देखने को मिलता है।अंबिकापुर से दरिमा होते हुए मैनपाट जाने का रास्ता है। मार्ग में जैसे-जैसे चढ़ाई ऊपर होती जाती है, सड़क के दोनों ओर साल के घने जंगल अनायास ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। सावन में बादलों के कारण इसकी खूबसूरती और बढ़ जाती है। बादलों से घिरे मैनपाट के दर्शनीय स्थल हैं दलदली, टाइगर प्वाइंट और फिश प्वाइंट, जहां पहुंचकर लोग बादलों को नजदीक से देखने का नया अनुभव प्राप्त कर रहे हैं। अंबिकापुर से दरिमा होते हुए कमलेश्वरपुर तक पक्की घुमावदार सड़क और दोनों ओर घने जंगल मैनपाट पहुंचने से पहले ही हर किसी को प्रफुल्लित कर देते हैं।बेनगंगा जल प्रपात:कुसमी- सामरी मार्ग पर सामरीपाट के जमीरा ग्राम के पूर्व -दक्षिण कोण पर पर्वतीय श्रृंखला के बीच बेनगंगा नदी का उदगम स्थान है। यहा साल वृक्षो के समूह मे एक शिवलिंग भी स्थापित है । वनवासी लोग इसे सरना का नाम देते है और इस स्थान को पूजनीय मानते है। सरना कुंज के निचले भाग के एक जलस्त्रोत का उदगम होता है। यह जल दक्षिण दिशा की ओर बढता हुआ पहाडी के विशाल चट्टानो के बीच आकार जल प्रपात का रुप धारण करता है। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण सघन वनों, चट्टानों को पार करती हुयी बेनगंगा की जलधारा श्रीकोट की ओर प्रवाहित होती है । गंगा दशहारा पर आस -पास के ग्रामीण एकत्रित होकर सरना देव एवं देवाधिदेव महादेव की पूजा - अर्चना करने के बाद रात्रि जागरण करते है । प्राकृतिक सुषमा से परिपूर्ण यह स्थान पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है।जलजली नदी:सरगुजा जिले के मुख्यालय अम्बिकापुर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर मैनपाट में धरती हिलती है। न तो वहां भूचाल आता है और न किसी नक्सली हिंसा के कारण धरती में घबराहट का कंपन है। जलजली नाम की नदी के पास जमीन पर पैर रखते ही वह कांपने लगती है। जमीन पर कूदते ही वह धंसती है और गेंद की तरह वापस ऊपर आ जाती है। कुदरत के इस खेल को देखने पहुंचे सैलानी कुछ देर तक बच्चों की तरह उछलते रहते हैं।छत्तीसगढ़ पर्यटन के सुंदर सैला रिसार्ट से साढ़े तीन किलोमीटर की दूरी साल वन के बीच से पार करने पर जलजली नदी दिखाई देती है। नदी का किनारा दूब की हरी परत से ढंका हुआ है। पचासों किस्म की बहुरंगी वनस्पतियां हैं। रंग-बिरंगे फूल हैं। पीले, लाल, नीले, पत्तियों से मिलते-जुलते रंग के। जमीन पर कूदने से वह हिलती क्यों है? दुनिया के किसी भी इलाके में जमीन के हलके कंपन से घबराहट फैल जाती है। भूचाल में भारी क्षति होती है। यही एकमात्र भूचाल है जिसका लोग आनंद लेते हैं और चकित होकर दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं। जलजली नदी पर जलजली स्थल से कुछ दूर पर झरना है। वन गहन होने के कारण पास जाकर निर्झर देखने के लिए मार्ग नहीं बना है। पैर रखते ही डोलती जमीन, जलप्रपात आदि मन मोह लेती है।भेडिय़ा पत्थर जलप्रपात:कुसमी चान्दो मार्ग पर तीस किमी की दुरी पर ईदरी ग्राम है । ईदरी ग्राम से तीन किमी जंगल के बीच भेडिया पत्थर नामक जलप्रपात है। यहां भेडिया नाला का जल दो पर्वतो के सघन वन वृक्षो के बीच प्रवाहित होता हुआ ईदरी ग्राम के पास हजारो फीट की उंचाई पर पर्वत के मध्य मे प्रवेश कर विशाल चट्टानो. के बीच से बहता हुआ 200 फीट की उंचाई से गिरकर अनुपम प्राकृतिक सौदर्य निर्मित करता है। दोनो सन्युक्त पर्वत के बीच बहता हुआ यह जल प्रपात एक पुल के समान दिखाई देता है। इस जल प्रपात के जलकुंड के पास ही एक प्राकृतिक गुफा है, जिसमे पहले भेडिये रहा करते थे। यही कारण है की इस जल प्रपात को भेडिया पत्थर कहा जाता है।सुदूर बसा एक और तिब्बत:साठ के दशक के शुरुआती दिनों में जब चीन ने तिब्बत पर अपना अधिकार मज़बूत करना शुरु किया तो बड़ी संख्या में तिब्बतियों को भाग कर भारत आना पड़ा. भारत सरकार ने इन शरणार्थियों को देश भर में पाँच जगहों पर बसाया था. उन्हीं में से एक था छत्तीसगढ़ के सरगुजा जि़ले में बसा मैनपाट. सुदूर बसा एक और तिब्बत. गाँव में एक बार घुस जाएँ तो लगता ही नहीं कि ये कोई और देश है.ठिनठिनी पत्थर:अम्बिकापुर नगर से 12 किमी. की दुरी पर दरिमा हवाई अड्डा हैं। दरिमा हवाई अड्डा के पास बडे - बडे पत्थरो का समुह है। इन पत्थरो को किसी ठोस चीज से ठोकने पर आवाजे आती है। सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि ये आवाजे विभिन्न धातुओ की आती है। इनमे से किसी -किसी पत्थर खुले बर्तन को ठोकने के समान आवाज आती है। इस पत्थरो मे बैठकर या लेटकर बजाने से भी इसके आवाज मे कोइ अंतर नही पडता है। एक ही पत्थर के दो टुकडे अलग-अलग आवाज पैदा करते है। इस विलक्षणता के कारण इस पत्थरो को अंचल के लोग ठिनठिनी पत्थर कहते है।जोगीमारा गुफाएँ:छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक जोगीमारा गुफ़ाएँ अम्बिकापुर रामगढ़ में स्थित है। यहीं पर सीताबेंगरा, लक्ष्मण झूला के चिह्न भी अवस्थित हैं। इन गुफ़ाओं की भित्तियों पर 300 ई.पू. के कुछ रंगीन भित्तिचित्र विद्यमान हैं। सम्राट अशोक के समय में जोगीमारा गुफ़ाओं का निर्माण हुआ था जो देवदासी सुतनुका ने करवाया था।चित्रों में भवनों, पशुओं और मनुष्यों की आकृतियों का आलेखन किया गया है। एक चित्र में नृत्यांगना बैठी हुई स्थिति में चित्रित है और गायकों तथा नर्तकों के खुण्ड के घेरे में है। यहाँ के चित्रों में झाँकती रेखाएँ लय तथा गति से युक्त हैं। इस गुफ़ा के अंदर एशिया की अतिप्राचीन नाट्यशाला है। भास के नाटकों में इन चित्रशालाओं के सन्दर्भ दिये हैं।कैलाश गुफा:अम्बिकापुर नगर से पूर्व दिशा में 60 किमी. पर स्थित सामरबार नामक स्थान है, जहां पर प्राकृतिक वन सुषमा के बीच कैलाश गुफा स्थित है। इसे परम पूज्य संत रामेश्वर गहिरा गुरू जी नें पहाडी चटटानो को तराशंकर निर्मित करवाया है। महाशिवरात्रि पर विशाल मेंला लगता है। इसके दर्शनीय स्थल गुफा निर्मित शिव पार्वती मंदिर, बाघ माडा, बधद्र्त बीर, यज्ञ मंड्प, जल प्रपात, गुरूकुल संस्कृत विद्यालय, गहिरा गुरू आश्रम है।तातापानी:अम्बिकापुर-रामानुजगंज मार्ग पर अम्बिकापुर से लगभग 80 किमी. दुर राजमार्ग से दो फलांग पश्चिम दिशा मे एक गर्म जल स्त्रोत है। इस स्थान से आठ से दस गर्म जल के कुन्ड है। इस गर्म जल के कुन्डो को सरगुजिया बोली में तातापानी कहते है। इन गर्म जलकुंडो मे स्थानीय लोग एवं पर्यटक चावल ओर आलु को कपडे मे बांध कर पका लेते है तथा पिकनिक का आनंद उठाते है। इन कुन्डो के जल से हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गन्ध आती है। ऐसी मान्यता है कि इन जल कुंडो मे स्नान करने व पानी पीने से अनेक चर्म रोग ठीक हो जाते है। इन दुर्लभ जल कुंडो को देखने के लिये वर्ष भर पर्यटक आते रहते है।तमोर पिंगला अभयारण्य:1978में स्थापित अम्बिकापुर-वाराणसी राजमार्ग के 72 कि. मी. पर तमोर पिंगला अभ्यारण्य है जहां पर डांडकरवां बस स्टाप है। 22 कि.मी. पश्चिम में रमकोला अभ्यारण्य परिक्षेत्र का मुख्यालय है। यह अभ्यारंय 608.52 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल पर बनाया गया है जो वाड्रफनगर क्षेत्र उत्तरी सरगुजा वनमंडल में स्थित है। इसकी स्थापना 1978में की गई। इसमें मुख्यत: शेर तेन्दुआ, सांभर, चीतल, नीलगाय, वर्किडियर, चिंकारा, गौर, जंगली सुअर, भालू, सोनकुत्ता, बंदर, खरगोश, गिंलहरी, सियार, नेवला, लोमडी, तीतर, बटेर, चमगादड, आदि मिलते हैं।सीता लेखनी:सुरजपुर तहसील के ग्राम महुली के पास एक पहाडी पर शैल चित्रों के साथ ही साथ अस्पष्ट शंख लिपि की भी जानकारी मिली है। ग्रामीण जनता इस प्राचीनतम लिपि को सीता लेखनी कहते हैं।सतमहला:अम्बिकापुर के दक्षिण में लखनपुर से लगभग दस कि.मी. की दूरी पर कलचा ग्राम स्थित है, यहीं पर सतमहला नामक स्थान है। यहां सात स्थानों पर भग्नावशेष है। एक मान्यता के अनुसार यहां पर प्राचीन काल में सात विशाल शिव मंदिर थे, जबकि जनजातियों के अनुसार इस स्थान पर प्राचीन काल में किसी राजा का सप्त प्रांगण महल था। यहां पर दर्शनीय स्थल शिव मंदिर, षटभुजाकार कुंआ और सूर्य प्रतिमा है।
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अगर रास्ता सही मिल जाए तो मंजिल तक पहुंचना आसान होता है। इसी प्रकार अगर कैरियर का सही चुनाव कर लिया जाए तो कामयाबी कदम चूमती है और व्यक्ति सफलता की राह पर आगे बढ़ता रहता है। लेकिन जब कैरियर के चुनाव की बात आती है तब अक्सर लोग चुनाव करने में ग़लती कर बैठते हैं जिससे काफी संघर्ष करने के बाद भी निराशा और असफलता का दर्द महसूस होता रहता है। इस समस्या से बचने के लिए हस्तरेखा की सहायता ले सकते हैं। हाथों की बनावट और हस्तरेखाओं से आप यह जान सकते हैं कि ईश्वर आपको किन क्षेत्रों में सफलता प्रदान करेगा। अगर रेखाओं को ध्यान से देखें तो जान सकते हैं कि भाग्य ने आपके लिए किस तरह का करियर चुना है।उच्चाधिकारी बनाती हैं ऐसी रेखाएं:सूर्य को सरकार एवं सरकारी क्षेत्र में सफलता का कारक माना जाता है। जिस व्यक्ति की हथेली में सूर्य रेखा स्पष्ट और गहरी होती है तथा इस रेखा पर शुभ चिन्ह जैसे त्रिभुज, चतुर्भुज या सितारों का चिन्ह होता है वह सरकारी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त करते हैं। छोटी उंगली का अनामिका उंगली के तीसरे पोर की जड़ तक पहुंचना। मंगल पर्वत अथवा जीवनरेखा से किसी रेखा का निकलकर सूर्य पर्वत तक पहुंचना भी शुभ माना जाता है। ऐसे व्यक्ति सरकारी क्षेत्र में अधिकारी होते हैं। निष्कंलक अर्थात् शुद्घ भाग्य रेखा अनामिका की तुलना में लम्बी तर्जनी, कनिष्ठा, अनामिका के पहले पोरे को पारकर जाए। शाखायुक्त मस्तिष्क रेखा, अच्छा मजबूत दोषयुक्त सूर्य क्षेत्र तथा श्रेष्ठ अन्य रेखाएं जातक को प्रशासन संबंधी कार्यों की ओर ले जाने का संकेत करती हैं।इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफलता:इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कैरियर बनने के लिए शनि पर्वत यानी मध्यमा उंगली की जड़ के पास हथेली उभरी हुई हो। भाग्य रेखा शनि पर्वत पर आकर रुक गई हो। गुरू पर्वत यानी तर्जनी के पास हथेली का उभरा हुआ होना भी इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कैरियर बनाने में सहायक होता है। मजबूत शनि, लम्बी गहरी मस्तिष्क रेखा, लम्बी एवं गांठदार अंगुलियां जातक का रूझान मशीनरी क्षेत्र में होता है।चिकित्सा के क्षेत्र में कामयाबी:जिनकी हथेली में बुध, मंगल एवं सूर्य पर्वत उभरा हुआ होता है वह चिकित्सा के क्षेत्र में सफल एवं प्रसिद्घ होते हैं। कनिष्ठा उंगली पर कई सीधी रेखाएं हों और मंगल उभरा हुआ होना बताता है कि व्यक्ति शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में कामयाब होगा। अच्छे बुध पर तीन-चार खड़ी लाइनें, लम्बी एवं गांठदार अंगुलियां तथा वर्गाकार हथेली तथा अच्छी आभास रेखा चिकित्सा क्षेत्र के लिए उपयुक्त है।फिल्म एवं टेलीविजन में कैरियर:हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार अगर कोई व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में कैरियर बनाने की सोच रहा है तो जरूरी है कि सूर्य पर्वत और शुक्र पर्वत उभरा हुआ हो। सूर्य पर्वत अनामिका के जड़ के पास के भाग को कहते हैं और शुक्र पर्वत अंगूठे के जड़ वाले भाग को कहा जाता है। इसके साथ ही हाथ की सभी उंगलियां कोमल और हथेली के पीछे की ओर झुकती हों। अनामिका उंगली की लंबाई मध्यमा की जड़ तक हो। और भाग्य रेखा को कोई अन्य रेखा नहीं काटती हो। जिनकी हथेली ऐसी होती है वह अभिनय के क्षेत्र में सफल होते हैं। ऐसे व्यक्ति लोकप्रिय एवं धन-संपन्न होते है। इसमे भी अभिनय के क्षेत्र में सफलता लम्बी एवं शाखा युक्त मस्तिष्क रेखा जिसकी एक शाखा बुध पर जाए, विकसित बुध तथा शुक्र तथा सूर्य एवं अच्छा चन्द्र एवं लम्बी कनिष्ठा अंगुली ऐक्टिंग के लिए उपयुक्त है। अंगुलियों की तुलना में लम्बी हथेली, कोणाकार अंगुलियां, मस्तिष्क एवं जीवन रेखा में प्रारम्भ से ही गैप तथा शाखा युक्त मस्तिष्क रेखा एवं शुक्र व चन्द्र अच्छे हों, तो गायकी के क्षेत्र में सफलतादायी होती है। लचीला अंगूठा, लचीली एवं हथेली की तुलना में लम्बी अंगुलियां होने पर नृत्य के क्षेत्र में नाम प्रदान करती है। अगर सूर्य, बुध पर्वत उभरे हुए हों, भाग्य रेखा, सूर्य रेखा अच्छी हो, मस्तिष्क रेखा चंद्र पर्वत के नीचे तक आए तो छोटी आयु में ही बडा संगीतज्ञ बनने के योग बनते हैं।कानून के क्षेत्र में कैरियर:अपने उदय के समय मस्तिष्क रेखा एवं जीवन रेखा थोड़ा गैप लेकर चले तथा मस्तिष्क रेखा के अंत में कोई द्विशाखा हो, कनिष्ठा का पहला पोरा लम्बा एवं मजबूत हो तथा अच्छा बुध, तीन खड़ी लाइन युक्त हो तथा मजबूत अंगूठे का दूसरा पोर सबल हो तो यह न्याय के क्षेत्र में ले जाने का संकेत है। मस्तिष्क रेखा अंत में अर्ध वृत्ताकार चलती हुई बुध पर्वत की ओर मुड जाए तो उसे नीति और चतुराई से समस्या को हल करने में महारत प्राप्त होता है।सैन्य सेवाओ के क्षेत्र में कैरियर:लम्बा एवं सख्त मजबूत अंगूठा, उन्नत शुक्र एवं मंगल अच्छी सूर्य एवं भाग्य रेखा तथा वर्गाकार या चमसाकार अंगुलियां सैन्य सेवा के लिए अच्छी हैं। इसके साथ यदि मंगल अति विकसित एवं सख्त है तो थल सेना के लिए उपयुक्त है। यदि उक्त के साथ विकसित बृहस्पति एवं मजबूत एवं थोड़ा सा अन्तराल लिए मस्तिष्क एवं जीवन रेखा का उदय हो तो हवाई सेना के लिए संकेत हैं। जीवन रेखा और भाग्य रेखा के मध्य कोई त्रिभुज हो तो सेना में उच्च पद प्राप्त होता है।अकाउट के क्षेत्र में कैरियर:अगर भाग्य रेखा एवं प्रभाव रेखा गुरू पर्वत की ओर जाए तो व्यक्ति धन से संबंधित हिसाब-किताब का कार्य करता है। अच्छा बुध, सूर्य एवं अच्छी भाग्यरेखा तथा मजबूत अंगूठा एवं अंगुलियों की सबल विकसित दूसरी संधि गांठ हो, तो अकांटिंग का कार्य करता है।व्यापार के क्षेत्र में कैरियर:अगर भाग्य रेखा का बुध पर्वत पर अंत हो तो जातक को व्यापार में सफलता प्राप्त होती है। अगर मस्तिष्क रेखा अंत में तीन शाखाओं में बँट जाए तो व्यक्ति डिप्लोमेट होता है। इसमें से अगर एक शाखा चंद्र पर्वत तक जाए और दूसरी शाखा बुध पर्वत तक जाए तो व्यक्ति में गजब की व्यापारिक क्षमता होती है और अपनी योग्यता से धन कमाने में सफल होता है। स्वास्थ्य रेखा से कोई प्रभाव रेखा निकल कर नीचे ओर सूर्य रेखा को स्पर्श करें तो यह व्यापार में अच्छी सफलता प्रदान करता है। पर यदि यह रेखा सूर्य रेखा को काट दे तो साझेदारी के लिए हानिकारक होता है।ज्योतिष के क्षेत्र में कैरियर:अगर मस्तिष्क रेखा चंद्र पर्वत के बीच तक जाएॅ और तर्जनी के दूसरे पर्व में खडी रेखाएॅ हों तो व्यक्ति ज्योतिष तथा तंत्रमंत्र विद्याओं में पारंगत होता है। बुध पर्वत से चंद्रक्षेत्र तक कोई गोलाई लिये हुए रेखा आए, उसे अंत: प्रेरणा रेखा कहते हैं, तो उसे ज्योतिष का अच्छा ज्ञान होता है। यदि अंत: प्रेरणा रेखा, भाग्य रेखा और मस्तक रेखा मिलकर कोई छोटा क्रास बनाये तो गुप्त विद्यओं का अच्छा ज्ञान होता है। यदि शनि पर्वत के नीचे चतुर्भुज में क्रास हो जिसे कोई भी बडी रेखा स्पर्श ना करें तो उसकी बोली हुई बातें सच साबित होती है तथा ज्योतिष के क्षेत्र में उसे बडी सफलता प्राप्त होती है।
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किसी भी व्यक्ति के लिए उसके किसी कीमती सामान की चोरी होना या गुम जाना अथवा अपने किसी अपनो का गायब हो जाना अथवा किसी भी प्रकार की हानि व्यक्ति को बेहद तकलीफ दायी होती है। किंतु इस तकलीफको ज्योतिष के रमल प्रश्र-कुंडली के द्वारा कुछ हद तक कम किया जा सकता है। रमल प्रश्र में गुम हुई वस्तु अथवा इंसान के बारे में प्रश्र किया जाए तो उसका जवाब बहुत हद तक सच साबित होता है। फलित ज्योतिष की शाखा प्रश्र जीवाध्याय में प्रश्र-प्रकरण, चोरी अथवा खोई हुई वस्तु की प्राप्ति के संबंध में है। ऐसे पीडित जातक की स्थिति जानते हुए प्रश्र कुंडली का निर्माण कर उस जातक की गुम या खोई वस्तु के संबंध में फल कहा जा सकता है। चोरी, लापता व्यक्त्-िपशु अथवा मनुष्य के बारे में होराशास्त्र के अनुसार काफी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। चोरी का संबंध कई प्रकार की अवस्थाओं से हो सकता है। अत: प्रश्र कुंडली का बारीकी से विश£ेषण कराना सार्थक हो सकता है।प्रश्र कुंडली में चंद्रमा बीज स्वरूप है। लग्र फूल स्वरूप है, जबकि नवांश लग्र फल स्वरूप है। खोई हुई वस्तु्, संपत्ति, नौकरी, वाहन अथवा अन्य वस्तुओं आदि से संबंधित भावेश के अनुसार अच्छा या बुरा फल का नवांश कुंडली में लग्र एवं ग्रहों की स्थिति के कारण मिलेगा। सर्वप्रथम देखना होगा कि चंद्रमा पर दूषित ग्रहों का प्रभाव योग प्रतियोग की स्थिति तो नहीं निर्मित हो रही है। यदि प्रश्र कुंडली में चंद्रमा पाप अथवा शत्रुग्रहों से दूषित होगा तो जो परिणाम मिलेगा वह कटु होगा अर्थात् खोयी वस्तु या अन्य सामग्री की प्राप्ति आसानी से नहीं होगी। यदि लग्र, लग्रेश अथवा प्रश्रकृत वस्तु का भाव भावेश या कारक ग्रह भी पापग्रहों से दूषित हो तो भी यही स्थिति निर्मित होती है। शुभ ग्रहों में से कोई भी ग्रह केंद्र या त्रिकोण भाव में हो तो वस्तु के प्राप्त होने के अवसर आशाजनक रहते हैं।प्रश्र कुंडली में पापग्रह यदि उपचय भावों अर्थात् 3, 6, 11 भाव में या दसम भाव में हों तो खोई वस्तु मिल सकती है। प्रश्र कुंडली में यदि लग्र पर शुभ ग्रह हो तो शुभ परिणाम निकलता है। यदि प्रश्र कुंडली में शाीर्षोदय राशि अर्थात् 3, 5, 6,8, 11, 12 हो तो उद्देश्य शुभ निकलता है वहीं पर यदि पृष्ठोदय राशि अर्थात् 1, 2, 4, 9, 10 हो तो खोई हुई वस्तु मिलना कठिन होता है। प्रश्र कुंडली में यदि पूर्ण चंद्र लग्र में हों और गुरू अथवा शुक्र की उस पर पूर्ण दृष्टि हो तो कार्य की सफलता निश्चित होती है। इस प्रकार ग्याहरवे भाव में गया कोई भी शुभग्रह यदि षडग्रह में बलवान हो तो भी कार्य सफलता निर्धारित समय में संभव है। लग्रेश और कार्येश एक दूसरे की राशि में अथवा भाव में स्थित हो तो भी कार्य की सिद्धि होती है।लग्र में उदित राशि का द्रेष्काण बताता है कि चोर का हुलिया कैसा होगा और गत दे्रष्काम की संख्या से स्थिति पता चलती है कि यदि पहला दे्रष्काम हो तो वस्तु घर के भीतर या घर के बाहर है? दूसरे में वस्तु घर के अंदर ही है तीसरे से ज्ञात होता है कि वस्तु घर के पिछवाडे से कहीं दूर जा चुकी है। इसके साथ ही सप्तम स्थान चोर के लिए देखा जाता है अत: प्रश्र कुंडली में सप्तम भावेश चोर ग्रह होता है सप्तम स्थान में पडी राशि के नाम पर ही चोर के नाम के अक्षर होते हैं। कोई वस्तु चोरी चली ही गई है यह तब माना जाता है जब सप्तेश का किसी भी तहर लग्र राशि अथवा इसके स्वामी से शुभ संबंध हो या योगप्रतियोग हो। यदि प्रश्र लग्र में स्थिर राशि अर्थात् 2, 5, 8, 11 हो तो जातक का सगा संबंधी ही चोर होता है। वर्गाोत्तम नवांश हो तो भी चोर अपना आदमी होता है।
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नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के तौर पर कार्य शुरू करते ही अपनी कूटनीतिक योजना पूरी तरह तैयार करली थी कि किस तरह दक्षिण ऐशियाई देशों का एक बड़ा संगठन तैयार करना है, ब्रिक्स देशों में किस तरह अपनी पैठ बनानी है और यूरोप के देशों के साथ विशेषकर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों के साथ किस तरह बारगेन करना है। असल मे मोदी एक विचार का पर्याय है, महात्मा गांधी के बाद देश में निश्चित धारणाओं के साथ राजनीति करने वाले ये दूसरे राजनेता होंगे जो इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान बनायेंगे और भारत को विश्व मेें सम्मान दिला पाने में कामयाब रहेंगे।उन्होंने अपने पहले १०० दिनों में ही जितनी देशों की यात्राएं की और समझौते किये, ये अपने आप में कीर्तिमान है। आजकल राजनीति का मोडीफिकेशन हो रहा है। सभी राजनेता प्रशासन के आठ मूल धारणाओं के आधीन ही प्रयास कर रहे हैं। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है जवाबदेही, शुचिता, तत्परता, दूरदृष्टि, पारदर्शिता, समयवद्ध कार्यक्रम, मितव्ययीता, कठोर अनुशासन एवं कठोर परिश्रम। इन धारणाओं के साथ गाँधी के बाद दूसरा कोई नेता राजनीति में नहीं हुआ, मोदी को छोड़कर। ऐसा मोदी के अब तक के प्रयासों से दृष्टिगत होता है। यह संभव है कि कुछ मुद्दों में आलोचना की जा सकती है, जैसे चाईना के व्यवहार एवं पाकिस्तान के व्यवहार के पश्चात प्रतिक्रिया। शायद यह देश की परिस्थितियों की विवशता भी हो सकती है। पर उनके द्वारा अब तक लिये गये निर्णयों के दूरगामी परिणाम होंगे। उन्होंने अपने अब तक के प्रयासों से यह साबित किया है कि एक सामान्य व्यक्ति अपनी दूरदृष्टि और लगन के साथ बहुत उंचाईयों तक जा सकता है। देश की आर्थिक ढंाचे के लिए देश में मोदीनोमिक्स है, जिसे आप गुजरात मॉडल कहते हंै। इसमें पूंजीवाद और समाजवाद का तड़का जरूर दिखाई पड़ेगा। जहां एक ओर वे उद्योगपतियों को उद्योग प्रारंभ करने के लिए तत्परता से हर तरह की सहायता दे रहें हैं वहीं उद्योगों के विकास के रोड-ट्रांसपोर्ट पर तेजी से काम करने का आदेश दिया। वहीं रेल को गतिमान बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समझोते किये। साथ ही देश के कुछ क्षेत्रों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों में विकसित करने के भी समझौते किये। उन्होंने तत्संबंध में बहुत से देशों की यात्राएं कीं। उनकी यह यात्रा सामरिक और वैश्विक सहयोगों को नए स्तर पर ले जाए जाने की आकांक्षाओं से भरी हुई हैं। वे यात्राएं तो जरूर कर रहे हैं, देशों से मधुर संबध बनाने के प्रयास कर रहे हैं, पर देखने लायक बात तो यह होगी कि वे किस तरह सभी देशों के साथ निर्विवाद परस्पर संबंध कायम कर सकेंगे? साथ ही वे धनाड्य और हाईली डेव्लप्ड् देशों को भारत के हित में बातचीत के टेबल पर कैसे लायेंगे। इन सभी से कैसे अधिकतम सहयोग सम्मानपूर्वक ले सकेंगे। यही होगी इनकी असली कूटनीति की परीक्षा।जापान, ऑस्ट्रेलिया, चीन और अमेरिका के साथ एक के बाद एक, चार उच्चस्तरीय वार्ताओं को अंजाम देते हुए प्रधानमंत्री मोदी भारत की विदेश नीति की वरीयताओं को फिर से गढऩे की राह पर हैं। उनकी जापान यात्रा के दौरान जैसी निजी केमेस्ट्री और विश्वास बहाली देखने को मिली, वह पहले कभी नहीं दिखी। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि उनके नेपाल की यात्रा में उनका कुछ इस तरह का स्वागत हुआ कि ऐसा अबतक के ईतिहास में कभी भी किसी भी विदेशी मंत्री का किसी देश में ऐसा भग्व स्वागत हुआ हो। नेपाल में मोदी को एक नजर देखने के लिए एक ऐसा जनसमूह उमड़ा, जो अभूतवूर्व था। इतनी बड़ी संख्या में लोग किसी विदेश राजनायिक को कम ही देखना पंसद करते हैं।अगर मोदी की अब तक वैश्विक यात्राओं की बात की जाए तो जापान यात्रा सबसे कामयाब कहलाएगी परंतु सबसे अधिक प्रतिष्ठा देने वाली यात्रा तो नेपाल की ही थी। सवाल! मोदी ने सबसे पहले नेपाल को ही क्यूं चुना। क्योंकि मोदी एक सच्चे हिंदु हैं और हिंदु के सम्मान को फिर से कायम करने के लिए अन्य राष्ट्रों में फैले हिंदुओं को संगठित करना होगा, जिससे हिंदुत्व की जड़ें और मजबूत हो सकेंगी। साथ ही भारत के ही समान सांसकृतिक मूल्यों वाले देश नेपाल में ही मोदी के हिंदु विचारों को सही प्रतिसाद मिल सकता था।इन सब में कई खास तत्व हैं, जो ध्यान में रहने चाहिए। पहला, पड़ोसियों ने नई सरकार के लिए अपनी विदेश नीति में प्राथमिकता अपनाई है। लेकिन उनकी आर्थिक कूटनीति पर प्रमुखता अतीत से एकदम अलग है। दूसरा, मोदी ने आर्थिक कूटनीति व पुरानी सुर्खियों की जगह को पश्चिम से एशिया में केंद्रित किया। तीसरा, मोदी ने वर्तमान सच्चाइयों पर अतीत के कूटनीतिक पूर्वाग्रहों की छाया नहीं पडऩे दी। चीन, पाकिस्तान व अमेरिका के साथ संबंध के उनके प्रयास बताते हैं कि भारत के प्रबुद्ध राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए वह कुछ अतिरिक्त कदम उठाने को तत्पर हैं। और अंत में, मोदी की विदेश नीति घरेलू प्राथमिकताओं के साथ-साथ और आपस में जुड़ी हुई आगे बढ़ रही है। विदेशी निवेश व सहयोग पर उनका जोर 'मेक इन इंडिया के जरिये विनिर्माण क्रांति के आह्वान, आधारभूत संरचनाओं के सुधार से बड़े पैमाने पर रोजगार के मौके मुहैया कराने, स्मार्ट शहरों के विकास, हाई स्पीड रेलवे नेटवर्क बनाने और नदी-तंत्रों के कायाकल्प पर है। यह सब करते हुए मोदी वह 'लाल रेखाÓ खींचने से परहेज नहीं करते, जो भारत की खाद्य सुरक्षा को पर्याप्त संरक्षण न देने वाली कारोबारी व्यवस्था को दरकिनार करती है और बताती है कि अपने हितों की रक्षा में यह देश कहां तक जा सकता है। हालांकि, विदेश नीति के ये प्रारूप तभी सचमुच में प्रासंगिक होंगे, जब यह देश विकास की अपनी कहानी को फिर से दोहराने में सफल होगा। मोदी का अपना नेतृत्व आर्थिक मोर्चे पर सफलता से जुड़ा हुआ है। यही वह मोर्चा है, जहां भारत की विदेश नीति को अनुकूल बनाने की दूर-दृष्टि मोदी अपना रहे हैं।नरेन्द्र मोदी का जन्म लग्र वृश्चिक और राशि भी वृश्चिक है। शुक्र की महादशा और शनि के अंतर में उनके राजनैतिक जीवन की शुरूआत २००१ से २०१३ अनवरत प्रसिद्धि, ताकत और गरिमा प्राप्त करते रहे। लग्रस्थ: मंगल के कारण एक आक्रामक एवं कठोर हिन्दुवादी नेता की छवि रखते हैं जिनके कुछ भी बोलने पर विवाद हो जाता है मगर ये विवाद इन्हें जनता के बीच बहुत प्रसिद्धी दिलाते हैं। मार्च २०१३ से राहु का अंतर शुरू हुआ, पंचमस्थ राहु इन्हें सत्ता के शीर्ष पर ले आया। आने वाले समय में अक्टूबर २०१४ से जब गुरू की अंतर्दशा प्रारंभ होगी तब चुंकि गुरू इनकी कुंडली में द्वितीयेश एवं पंचमेश होकर चतुर्थ भाव में बैठा है अत: गुरू की अंतर्दशा में घरेलू स्तर पर अर्थात भारतीय परिप्रेक्ष्य में मोदीजी के फैसले अहम होंगे जो इन्हें एक दूरदृष्टा एवं भविष्यकर्ता के रूप में स्थापित करेंगे। गुरू पर लग्रस्थ मंगल की दृष्टि इन्हें अपने व्यवहार एवं फैसलों पर कठोरता से अमल करने एवें अमलीजामा पहनाने में सफलता दिलाता है। जिससे इनके ये फ ैसले इन्हें भारतीय जमीन एवं अनेक देशों मे फैले भारतियों को गर्विता का एहसास करा पाने में सफलता दिलाऐंगे। गुरू की अंतर्दशा के चलते ही मोदी आने वाले समय में वैश्विक राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा बनकर सामने आयेंगे। आने वाले दिनों में मोदी न सिर्फ एशिया के सिरमौर होंगे बल्कि पूरे विश्व में अपनी ताकत और कूटनीति की धार दिखा पाएंगे।
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मातृशक्तियों की पुजा-आराधना हमारें धर्म की सबसे बड़ी विषेशता ही नहीं, बल्कि मुलाधार भी है। भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी जी शिवजी के साथ पार्वती जी, श्रीराम के साथ सीता माता और नटवर नागर गिरधारी के साथ राधारानी जी की पूजा तो होती है, स्वतंत्र रूप से भगवती भवानी की पूजा आराधना तथा माता के भवानी जागरण भी होते ही रहते है। मातेश्वरी भवानी के अनेक रूप और अवतारों की नवरात्रि के नौ दिन भगत अपनी भावना और श्रृद्धा के अनुसार पूजा-आराधना करते है. हमारें नववर्ष के प्रथम दिन अर्थात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के नवमी तक के नौ दिन प्रथम नवरात्रि कहलाते है और अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक के नौ दिन शारदीय नवरात्र कहलाते है. इन दोनों ही नवरात्रो मेंं दुर्गा मंदिरों में विशेष उत्सव और समारोह तो होते ही है, प्रत्येक परिवार में देवी की विशेष पूजा और हवन भी किया जाता है। नवरात्रों के इन नौ दिनों में देवी के निभित्त व्रत रखने का विशिष्ट विधान है। शास्त्रों के अनुसार, ''रवैतीति रावणÓ जो अपने कथित ज्ञान का स्वयं ढोल पीटता है। वही रावण है। यही वृत्ति राक्षसी है। जिस पर नियंत्रण करने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम की आवश्यकता होती है। इसी वृत्ति पर विजय प्राप्त करने का त्योहार है विजयदशमी। आश्विन शुक्ल दशमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, विजयदशमी। क्षत्रियों के यहाँ शस्त्र की पूजा होती है। ब्रज के मन्दिरों में इस दिन विशेष दर्शन होते हैं। इस दिन नीलकंठ का दर्शन बहुत शुभ माना जाता है। यह त्योहार क्षत्रियों का माना जाता है। इसमें अपराजिता देवी की पूजा होती है। यह पूजन भी सर्वसुख देने वाला है। दशहरा या विजया दशमी नवरात्रि के बाद दसवें दिन मनाया जाता है। इस दिन राम ने रावण का वध किया था। रावण राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लंका ले गया था। भगवान राम युद्ध की देवी मां दुर्गा के भक्त थे, उन्होंने युद्ध के दौरान पहले नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की और दसवें दिन दुष्ट रावण का वध किया। इसके बाद राम ने भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान, और बंदरों की सेना के साथ एक बड़ा युद्ध लड़कर सीता को छुड़ाया। इसलिए विजयादशमी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन है। इस दिन रावण, उसके भाई कुम्भकर्ण और पुत्र मेघनाद के पुतले खुली जगह में जलाए जाते हैं। कलाकार राम, सीता और लक्ष्मण के रूप धारण करते हैं और आग के तीर से इन पुतलों को मारते हैं जो पटाखों से भरे होते हैं। पुतले में आग लगते ही वह धू धू कर जलने लगता है और इनमें लगे पटाखे फटने लगते हैं और जिससे इनका अंत हो जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।शास्त्रों के अनुसार:आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को विजयदशमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसका विशद वर्णन हेमाद्रि, सिंधुनिर्णय, पुरुषार्थ-चिंतामणि, व्रतराज, कालतत्त्वविवेचन, धर्मसिंधु आदि में किया गया है।कालनिर्णय के मत से शुक्ल पक्ष की जो तिथि सूर्योदय के समय उपस्थित रहती है, उसे कृत्यों के सम्पादन के लिए उचित समझना चाहिए और यही बात कृष्ण पक्ष की उन तिथियों के विषय में भी पायी जाती है जो सूर्यास्त के समय उपस्थित रहती हैं। हेमाद्रि ने विजयादशमी के विषय में दो नियम प्रतिपादित किये हैं-1. वह तिथि, जिसमें श्रवण नक्षत्र पाया जाए, स्वीकार्य है।2. वह दशमी, जो नवमी से युक्त हो।स्कंद पुराण में आया है- जब दशमी नवमी से संयुक्त हो तो अपराजिता देवी की पूजा दशमी को उत्तर पूर्व दिशा में अपराह्न में होनी चाहिए। उस दिन कल्याण एवं विजय के लिए अपराजिता पूजा होनी चाहिए।यह द्रष्टव्य है कि विजयादशमी का उचित काल है, अपराह्न, प्रदोष केवल गौण काल है। यदि दशमी दो दिन तक चली गयी हो तो प्रथम (नवमी से युक्त) अवीकृत होनी चाहिए। यदि दशमी प्रदोष काल में (किंतु अपराह्न में नहीं) दो दिन तक विस्तृत हो तो एकादशी से संयुक्त दशमी स्वीकृत होती है। जन्माष्टमी में जिस प्रकार रोहिणी मान्य नहीं है, उसी प्रकार यहाँ श्रवण निर्णीत नहीं है। यदि दोनों दिन अपराह्न में दशमी ना अवस्थित हो तो नवमी से संयुक्त दशमी मान ली जाती है, किंतु ऐसी दशा में जब दूसरे दिन श्रवण नक्षत्र हो तो एकादशी से संयुक्त दशमी मान्य होती है। ये निर्णय, निर्णय सिंधु के हैं।
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कौन कहता है कि आज की फिल्मों में पहली वाली बात नहीं, पहले जितनी अच्छी कहानी नहीं, डायरेक्शन में पकड़ नहीं, पाश्चात्य फिल्मों जैसा फिक्शन नहीं, अगर ये सब आपको देखना हो तो एक ही विकल्प हो सकता है, वह आमिर खान की फिल्में। जैसा कि कहा ही जाता है आमिर की फिल्मों को किसी तरह के रिव्यू सर्टीफिकेट की दरकार नहीं होती, आमिर खुद ही सर्टिफिकेट हैं। जी हां, आमिर खान की मौजूदगी ही आपको आश्वस्त करने के लिए काफी होती है कि फिल्म अच्छी है। अब तक कई फिल्म फेयर पुरस्कार और राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके ये अभिनेता आज के दौर में भी कुछ हटकर फिल्में बनाते हैं, जिनकी कहानी में एक ताज़गी और नयापन तो होता ही है साथ ही उस कहानी को कहने का तरीका भी अलग होता है। यह भी गौरतलब है कि ये इनके समसक्ष अन्य हीरोज़ की तरह फिल्मों का प्रमोशन के लिए न तो कॉमेडी नाईट्स में कपिल के साथ टाईम पास करते हैं और न ही किसी तरह का पब्लिसिटी स्टंट, जैसा कि कथित तौर पर शाहरूख खान और अक्षय कुमार किया करते हैं। फिर भी इनकी फिल्में हमेशा सारे रिकोर्ड तोड़ देती है। एक यही अभिनेता हैं जिनको सच्चे मायने में विश्वास है कि आज के दौर में भी अच्छी और बिना फूहड़ता के फिल्म चल सकती हैं। सच देखें तो इनकी सारी फिल्में हर स्तर पर परफेक्ट होतीं हैं तभी तो इन्हें कहा जाता है मिस्टर परफैक्टनिस्ट।अगर मि. परफैक्टनिस्ट आमिर के भाग्य का ज्योतिष आकलन करें तो देखने को मिलता है कि उनका अंक बड़ा प्रबल है। आमिर का जन्म तारीख १४ मार्च १९६५ है, याने मूलांक ५ तथा पूर्णांक ८ है। इनका स्ट्राईकर अंक १ है। अंकशास्त्र के हिसाब से यह जातक १ नंबर के कारण गंभीर, ५ नंबर के कारण बेहद संवेदनशीन और ८ नंबर बेहद संघर्षशील है। जबदस्त प्रतिभा के धनी, पारिवारिक पृष्ठभूमि कला की, अच्छे डायरेक्टर, अच्छे राईटर, अच्छे एक्टर। इन्होंने अपनी पहली फिल्म 'यादों की बारात बतौर बाल-कलाकार की। बतौर कैरियर इन्होंने लीड रोल में 'कयामत से कयामत तक की, जो कि एक ब्लॉकबस्टर साबित हुई। यह पिक्चर हमारी इंडस्ट्री में 'हम आपके हैं कौन और 'दिल वाली दुल्हनिया ले जाएंगे के बराबर की सफल मानी जाती है। यह फिल्म १९८८ में रिलीज हुई जो कि इनके लिए लकी नंबर था, क्योंकि इसमें पूर्णांक ८ बनता है। इस पिक्चर में आमिर को फिल्म फेयर अवॉर्ड से भी नवाजा गया। इसके बाद 'दिल है कि मानता नहीं १९९१ में रिलीज हुई, जिसका पूर्णांक-२ है, यह भी सुपहिट रही। इसके बाद इनकी पिक्चर आई 'रंगीला जो १९९५ में रिलीज हुई। ये ८ सितंबर को रिलीज हुई जिसका मूलांक बना ८, जिसके कारण इस फिल्म को क्रिटिक्स ने जमकर सराहा और साथ ही एक बड़ी कॉमर्सियल हिट भी साबित हुई। 'राजा हिंदुस्तानी१५ नवंबर १९९६ में रिलीज हुई, इसका पूर्णांक बना ६, मूलांक बना ६, इसके गाने अब तक के सबसे बेहतरीन गाने साबित हुये, म्यूजिक कंपनियों को भारी मुनाफा हुआ, पक्चिर भी ब्लॉकबस्टर रही।इसके बाद वर्ष २००१ में 'लगान आई। इस पिक्चर ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर बहुत ख्याति प्राप्त की, ये पिक्चर १५ जून को रिलीज हुई जिसका पूर्णांक हुआ ६, गौरतलब है कि पूर्णांक ६ का संबंध सीधे तौर पर ख्याति से होता है। इसके बाद क्रिटिकल एक्लेम मूवी 'रंग दे बसंती २६ जनवरी २००६ में रिलीज हुई, जिसका पूर्णांक बना ८। 'धूम-३ २० दिसंबर २०१३ को रिलीज हुई, जिसका पूर्णांक बना-२, यानी आमिर खान की लाइफ में १, २, ६, ८ इन नंबरों का जबरदस्त प्रभाव देखा। इस बीच यह भी देखने लायक बात है कि २००५ को जिसका वर्षांक ७ है, केतन मेहता निर्देशित 'मंगल पांडे आई जो कि डिजास्टर साबित हुई साथ ही फिल्म समीक्षकों ने भी इस पिक्चर को नकारा। यानी ७ नंबर आमिर के लिए बहुत फेवरेवल नहीं है।२०१४ वैसे मौटे तौर आमिर खान के लिए अच्छा नहीं रहा। इसके उत्तरार्ध में कुछ छींटाकसी भी हुई, पर साल २०१५ इनके लिए अभूतपूर्व ख्याति देने वाला होगा। इनकी फिल्में निश्चित तौर पर सारे रिकॉर्ड तोड़ डालेंगी। कुल मिलाकर एक बात समझ में आती है कि १४ तारीख को जन्मे आमिर अपने मूलांक के कारण परफ ेक्ट हैं और ऐसे व्यक्ति को समय की विपरीतताएं बहुत असर नहीं करती।
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करवा चौथ की कथा:इस पर्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें एक बहन और सात भाइयों की कथा बहुत प्रसिद्ध है। बहुत समय पहले की बात है एक लड़की के सात भाई थे। उसकी शादी एक राजा से हो गई। शादी के बाद पहले करवाचौथ पर वह अपने मायके आ गई। उसने करवाचौथ का व्रत रखा लेकिन पहला करवाचौथ होने की वजह से वह भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी और बड़ी बेसब्री से चांद निकलने की प्रतीक्षा कर रही थी।उसके सातों भाई उसकी यह हालत देख कर परेशान हो गए। उन्होंने बहन का व्रत समाप्त कराने के लिए पीपल के पत्तों के पीछे से आईने में नकली चांद की छाया दिखा दी। बहन के व्रत समाप्त करते ही उसके पति की तबीयत खराब होने लगी। खबर सुन कर वह अपने ससुराल चली तो रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती जी के साथ मिले। पार्वती जी ने उसे बताया कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है क्योंकि उसने नकली चांद को देखकर व्रत समाप्त कर लिया था। यह सुनकर बहन ने अपने भाइयों की करनी के लिए क्षमा मांगी। पार्वती जी ने कहा कि तुम्हारा पति फिर से जीवित हो जाएगा लेकिन इसके लिए तुम्हें करवा चौथ का व्रत पूरे विधि-विधान से करना होगा। इसके बाद माता पार्वती ने करवा चौथ के व्रत की पूरी विधि बताई और उसी के अनुसार बहन ने फिर से व्रत किया और अपने पति को वापस प्राप्त कर लिया।महाभारत से संबंधित अन्य पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आन पड़ते हैं। द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं।चंद्रमा की पूजा का महत्व:छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार जो चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। उसे जीवन में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता। उसे लंबी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है। व्रत का समापन चंद्रमा को अर्ध्य देकर किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से महिलाएं अखंड सौभाग्यवती होती हैं,और उनका पति दीर्घायु होता है। इस व्रत को पालन करने वाली पत्नी अपने पति के प्रति मर्यादा से,विनम्रता से,समर्पण के भाव से रहे और पति भी अपने समस्त कर्तव्य एवं धर्म का पालन सुचारु रुप से पालन करें, तो ऐसे दंपत्ति के जीवन में सभी सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहती है।
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करवाचौथ का त्योहार हिन्दू धर्म में विवाहित स्त्रियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। सभी विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की लंबी आयु, सुखी जीवन और भाग्योदय के लिए व्रत करती हैं। कार्तिक माह की कृष्ण चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी के दिन किया जाने वाला यह करक चतुर्थी व्रत अखंड सौभाग्य की कामना के लिए स्त्रियां करती हैं। करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है। सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाने वाली आशीर्वाद रूपी अमूल्य भेंट होती है।करवाचौथ पूजन-विधि:सम्पूर्ण सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें। व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें तथा शृंगार भी कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।करवाचौथ का व्रत पूरे दिन बिना कुछ खाए-पिए किया जाता है। दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें, इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है। आठ पूरियों की अठावरी, हलवा और पक्के पकवान बनाएं। उसके बाद पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेश जी बनाकर बिठाएं। ध्यान रहे गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का शृंगार करें। उसके बाद जल से भरा हुआ लोटा रखें।बायना देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवे में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें तथा उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवा पर स्वस्तिक बना लें, अब गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परम्परानुसार पूजा करें तथा पति की दीर्घायु की कामना करें।शाम को 'नम: शिवाय शर्वाण्य सौभाग्यं संतति शुभाम। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥ कहते हुए, करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवाचौथ की कथा कहें या सुनें। कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासू जी के पैर छू कर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें। तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्ध्य दें। इसके बाद छलनी से पति का दर्शन कर आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें। पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर अपने व्रत को संपन्न करें।
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