Sunday, 10 May 2015

प्रेम विवाह आपकी कुंडली में-


प्रेम विवाह आपकी कुंडली में-

सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे प्राचीन काल में गंर्धव विवाह के रूप में मान्यता प्राप्त थी। आज के आधुनिक काल में इसे ही प्रेम विवाह का रूप माना जा सकता है। सामाजिकता का हवाला दिया जाकर विरोध के बावजूद आज भी यह परंपरा अपारंपरिक तौर पर मौजूद है। अतः इसका ज्योतिषीय कारण देखा जाना उचित प्रतीत होता है। जन्मांग में प्रेम विवाह संबंधी संभावनाओं का विष्लेषण करते समय सर्वप्रथम पंचमभाव पर दृष्टि डालनी चाहिए। पंचम भाव से किसी जातक के संकल्प-षक्ति, इच्छा, मैत्री, साहस, भावना ओर योजना-सामथ्र्य आदि का ज्ञान होता है। सप्तम भाव से विवाह, दाम्पत्य सुख, सहभागिता, संयोग आदि का विचार किया जाता है। अतः प्रेम विवाह हेतु पंचम एवं सप्तम स्थान के संयोग सूत्र अनिवार्य हैं। सप्ताधिपति एवं पंचमाधिपति की युति, दोनों में पारस्परिक संबंध या दृष्टि संबंध हेाना चाहिए। प्रेम विवाह समान जाति, भिन्न जाति अथवा भिन्न धर्म में होगा इसका विचार करने हेतु नवम भाव पर विचार किया जाना चाहिए। एकादष स्थान इच्छापूर्ति और द्वितीय भाव पारिवारिक सुख संतोष के अस्तित्व को प्रकट करता है। चंद्रमा मन का कारक ग्रह है। इन सभी ग्रहों अथवा स्थानों पर शनि की पूर्ण दृष्टि व्यक्ति को प्रेम विवाह हेतु प्रेरित करती है। प्रेम विवाह हेतु चंद्रमा की स्थिति प्रबलता, ग्रहयुति आदि का भी प्रभाव पड़ता है। जिनके जीवन में इस प्रकार के प्रभाव से विवाह में रूकावट या कष्ट हों उन्हें क्रमषः अर्क या कुंभ विवाह कराना चाहिए। षिव-पावर्ती की पूजा सोमवार का व्रत करते हुए करना चाहिए तथा शंकर मंत्र का जाप करने से बाधा दूर होती है।



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महाशिवरात्रिः

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महाशिवरात्रिः
चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने आती है परंतु फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्यदेव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा इसी दिन से ऋतु परिवर्तन की भी शुरुआत हो जाती है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चन्द्रमा अपनी सबसे कमजोर अवस्था में पहुँच जाता है जिससे मानसिक संताप उत्पन्न हो जाता है। चूँकि चन्द्रमा शिवजी के मस्तक पर सुशोभित है इसलिए चन्द्रमा की कृपा प्राप्त करने के लिए शिवजी की आराधना की जाती है। भगवान भोलेनाथ को इस पर्व पर दूध या जल से अभिषेक कर बेलपत्र, आम के बौर, मटर की फली, धतूरे का फूल, गेहूँ की बाली, बेर के फल, फूल आदि चढ़ाए जाते हैं। इससे मानसिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान भोलेनाथ कालेश्वर के रूप में प्रकट हुए थे। महाकालेश्वर भगवान शिव की वह शक्ति है जो सृष्टि का समापन करती है। शिवरात्रि के दिन शिव का दर्शन करने से हजारों जन्मों का पाप मिट जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।



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पितृ-दोष के ज्योतिषीय उपाय -


पितृ-दोष के ज्योतिषीय उपाय -
भारतीय सामाजिक परंपरा में जीव को अमर माना गया है तथा मान्यता है कि जीवन में किए गए कर्मो के शुभ-अषुभ, नैतिक-अनैतिक तथा पाप-पुण्य के आधार पर संचित प्रारब्ध के अनुसार जीवन में सुख-दुख का सामना करना पड़ता है। हिंदु रिवाज है कि पूर्वजो के किसी प्रकार के अषुभ या नीति विरूद्ध आचरण का दुष्परिणाम उनके वंषजो को भोगना पड़ता हैं। पितृदोष का प्रत्यक्ष कुंडली में जानकारी प्राप्त करने हेतु जातक के जन्म कुंडली के द्वितीय, तृतीय, अष्टम या भाग्य स्थान में प्रमुख ग्रहों का राहु से पापाक्रांत होना पितृदोष का कारण माना जाता हैं माना जाता है कि प्रमुख ग्रह जिसमें विषेषकर शनि यदि राहु से आक्रांत होकर इन स्थानों पर हो तो जीवन में कष्ट का सामना जरूर करना पड़ सकता हैं। इसके निवारण के लिए किसी नदी के किनारे स्थित देवता के मंदिर में किसी भी माह के शुक्लपक्ष की पंचमी अथवा एकादषी अथवा श्रवण नक्षत्र में विद्वान आचार्य के निर्देष में अज्ञात पितृदोषों की निवृत्ति के लिए पलाष विधि के द्वारा नारायणबलि, नागबलि तथा रूद्राभिषेक कराना चाहिए।


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ज्योतिष से आय और आर्थिक परेषानी का कारण और निवारण



ज्योतिष से आय और आर्थिक परेषानी का कारण और निवारण-
आज के भौतिक युग में प्रत्येक व्यक्ति की एक ही मनोकामना होती है की उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ रहें तथा जीवन में हर संभव सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती रहे। किसी व्यक्ति के पास कितनी धन संपत्ति होगी तथा उसकी आर्थिक स्थिति तथा आय का योग तथा नियमित साधन कितना तथा कैसा होगा इसकी पूरी जानकारी उस व्यक्ति की कुंडली से जाना जा सकता है। व्यक्ति की कुंडली में क्रमशः दूसरे व ग्यारहवें भाव को धन स्थान व आय स्थान कहा जाता है। इसके साथ ही आर्थिक स्थिति की गणना के लिए चैथे व दसवें स्थान की शुभता भी देखी जाती है। यदि इन स्थानों के कारक प्रबल हों तो अपना फल देते ही हैं। निर्बल होने पर अर्थाभाव बना रहता है विशेषतर यदि धनेश सुखेश या लाभेश छठे आठवें या बारहवें स्थान में हो या इसके स्वामियों से युति करें तो धनाभाव कर्ज व परेशानी बनी ही रहती है।


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विनाष काले विपरीत बुद्धि:



विनाष काले विपरीत बुद्धि:
काल या समय डंडा मारकर किसी का सिर नहीं तोड़ता। उसका बल इतना ही है कि वह बुद्धि को विपरित करके भले को बुरा व बुरे को भला दिखलाने लगता है। विनाशकाल समीप आ जाने पर बुद्धि खराब हो जाती है, अन्याय भी न्याय के समान दिखने लगती है। मनुष्य का जीवन उसके निर्णयों पर आधारित है। हर व्यक्ति को दो या अधिक रास्तों में से किसी एक को चुनना पड़ता है और बाद में उसका वही चुनाव उसके आगे के जीवन की दिशा और दशा को निर्धारित करता है। एक सही व सामयिक निर्णय राष्ट्र, संस्था व व्यक्ति के जीवन को समृद्धि के शिखर पर पहुँचा सकता है तो गलत निर्णय बर्बादी के कगार पर ले जा सकता है। कुशलता का अर्थ ही सही काम, सही ढंग से, सही व्यक्तियों द्वारा, सही स्थान व सही समय पर होना है। निर्णय लेना अनिवार्य है किन्तु सही समय पर सही निर्णय लेना सक्षम व कुशल प्रबंधक का ही कार्य है। इसे हम ज्योतिषीय गणना में कालपुरूष की कुंडली द्वार उसके लग्नेष, तृतीयेष, भाग्येष और एकादषेष द्वारा देख सकते हैं। अगर किसी जातक की कुंडली में ये स्थान उच्च तथा उसके स्वामी अनुकूल स्थिति में हों तो उसके निर्णय सही साबित होते हैं और अगर क्रूर ग्रहों से आक्रांत होकर पाप स्थानों पर बैठ जाये तो निर्णय गलत हो जाता है। किंतु कई बार ऐसे विपरीत बैठे ग्रह दषाओं में लिए गए निर्णय बेहद कष्टकारी साबित होते हैं, जिसे कहा जा सकता है कि विनाष काले विपरीत बुद्धि। जैसे किसी की राहु की दषा प्रारंभ हो रही हो या होने वाली हो तो वह नौकरी छोड़ने या व्यापार करने का निर्णय ले ले, जिसमें हानि की संभावना शतप्रतिषत होती है।



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भाषा शैली और ज्योतिष -



भाषा शैली और ज्योतिष -
जीवन में किसी व्यक्ति की पहचान उसकी आवाज होती है। कोई व्यक्ति किस प्रकार के जबान से पहचाना जायेगा और उसका लोग आदर करेंगे, उसे बात करना पसंद करेंगे या उससे बचते हुए रहना चाहेंगे यह सब कुछ ज्योतिषीय ग्रहों की गणना का विषय है। उसके सभी रिश्ते और अपनापन उसके जुबान के द्वारा बनती और बिगड़ती हैं वहीं यदि हम ज्योतिषीय नजरिये से देखें तो किसी की कुंडली में उसका यही काम उसका तीसरा स्थान या तीसरे स्थान का स्वामी करता है। अतः यदि किसी जातक को लगातर उसके जुबान के कारण अपमानित होना पड़ रहा हो अथवा उसके जुबान या भाषाशैली के कारण उसके रिश्तों में कटुता आ रही हो या रिश्ते खराब हो रहे हों तो ऐेसे व्यक्ति को अपनी कुंडली के तीसरे स्थान का विवेचन कर उससे संबंधित ग्रहों की शांति, मंत्रजाप अथवा उस ग्रह से संबंधित वस्तुओं के दान एवं उस ग्रह के अनुकूल व्यवहार रखकर अपना तीसरा घर सुधारने का प्रयास करना चाहिए और अपने बिगड़ कार्य या बिगड़े रिश्तों में मधुरता लाना चाहिए।


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मनुष्य का चरित्र निर्माण और ज्योतिष:



मनुष्य का चरित्र निर्माण और ज्योतिष:
मनुष्य स्वयं अपना स्वामी है। अपना चरित्र वह स्वयं बनाता है। चरित्र-निर्माण के लिए उसे परिस्थितियों को अनुकूल या सबल बनाने की नहीं बल्कि आत्मनिर्णय की शक्ति को प्रयोग में लाने की आवश्यकता है। हर व्यक्ति का कुछ निश्चित क्षेत्र होता है जहाॅ उसे आत्म-गौरव का स्थायी भाव आता है; उस क्षेत्र से सम्बन्धित वस्तुएँ उसके ‘स्व’ के क्षेत्र में आती है और यहीं पर यदि यह ‘स्व’ अनुकूल हो तो चरित्र उत्तम और प्रतिकूल दिषा में संचालित हो तो चरित्र का निर्माण विघवंसक हो जाती है। अतः किसी भी व्यक्ति के चरित्र निर्माण में सहायक उसके इस स्व क्षेत्र को ज्योतिष में लग्न, तीसरे एवं एकादष स्थान से देखा जाता है। अगर ये स्थान उच्च, अनुकूल तथा सौम्य ग्रहों के साथ हों तो चरित्र का आकार अनुकूल दिषा में बढता है वहीं पर यदि इन क्षेत्रों पर कू्रर ग्रहों एवं प्रतिकूल स्थिति में हो जाए तो उसका चरित्र दुषित हो सकता है। अतः चरित्र के निर्माण के समय इन ग्रहों तथा इन ग्रहों की दषाओं को ज्ञात कर उचित ज्योतिषीय उपाय द्वारा चरित्र को सुधारा जा सकता है।


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Saturday, 9 May 2015

पेड़-पौधों से पायें अषुभ ग्रहों के दुष्प्रभावों से राहत -


पेड़-पौधों से पायें अषुभ ग्रहों के दुष्प्रभावों से राहत -
जीवन के विभिन्न भागों पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता है, यह प्रभाव सकारात्मक भी होता है और नकारात्मक भी... नकारात्मक प्रभाव को रोकने या कम करने के लिए विभिन्न प्रकार के तरीके अपनाए जाते हैं....इन्ही में से एक आसान तरीका है पेड़-पौधों का रोपण और पूजन.... भगवान विष्णु और हनुमान जी को तुलसी अर्पित करने से आर्थिक बाधाएं दूर होती हैं। अगर शुक्र कमजोर है, तो तुलसी का पौधा लगाकर नियमित रूप से उसकी पूजा-उपासना करनी चाहिए, फायदा मिलेगा...ज्योतिष और धार्मिक रूप से केला का भी विशेष महत्व है... ग्रहों में इसका संबंध बृहस्पति से जोड़ते हैं और भगवान विष्णु तथा बृहस्पति देवता का स्वरूप माना जाता है... बृहस्पति के कमजोर होने पर इस पौधे को घर में लगाकर पूजन करना चाहिए...ज्योतिष में राहु-केतु को नियंत्रित करने के लिए अनार एक ऐसा अदभुत और जादुई पौधा है, जिसको लगाने से घर पर तंत्र-मंत्र और नकारात्मक ऊर्जा असर नहीं कर सकते... शमी वृक्ष के नीचे नियमित रूप से सरसों के तेल का दीपक जलाएं, इससे शनि का प्रकोप और पीड़ा कम होगी और आपका स्वास्थ्य बेहतर बना रहेगा...हरसिंगार छोटे-छोटे फूलों वाला और अपनी अदभुत सुगंध के लिए जाना जाने वाला यह पौधा चंद्र से संबंध रखता है। घर के बीचोबीच या घर के पिछले हिस्से में इसको लगाना लाभकारी होता है... इसके पत्तों से जोड़ों का दर्द दूर होता है और इसकी सुगंध से मानसिक शांति मिलती है....गुडहल का फूल जल में डालकर सूर्य को अघ्र्य देना आंखों, हड्डियों की समस्या और नाम एवं यश प्राप्ति में लाभकारी होता है... मंगल ग्रह की समस्या, संपत्ति की बाधा या कानून संबंधी समस्या हो, तो हनुमान जी को नित्य प्रातः गुडहल का फूल अर्पित करना चाहिए... इस प्रकार विभिन्न प्रकार के पौधे लगाकर हम पर्यावरण को भी बेहतर कर सकते हैं और अपने ग्रहों को भी अपने अनुकूल बना सकते हैं।


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कुण्डली में बनने वाले योग ही बनाते है प्रशासनिक अधिकारियों -



कुण्डली में बनने वाले योग ही बनाते है प्रशासनिक अधिकारियों -
कुण्डली में बनने वाले योग से ही व्यक्ति की आजीविका का क्षेत्र क्या रहेगा, इसकी जानकारी प्राप्त होती है.... प्रशासनिक सेवाओं में प्रवेश की लालसा अधिकांश लोगों में रहती है, बनते बिरले ही हैं.... आई. ए. एस. जैसे उच्च पद की प्राप्ति के लिये व्यक्ति की कुण्डली में सर्वप्रथम शिक्षा का स्तर सर्वोत्तम होना चाहिए.... कुंडली के दूसरे, चतुर्थ, पंचम एवं नवम भाव व भावेशों के बली होने पर जातक की शिक्षा उत्तम होती है.... शिक्षा के कारक ग्रह बुध, गुरु व मंगल बली होने चाहिए, यदि ये बली हैं तो विशिष्ट शिक्षा मिलती है और जातक के लिए सफलता का मार्ग खोलती है.... सूर्य को राजा और गुरु को ज्ञान का कारक कहा गया है... ये दोनों ग्रह मुख्य रूप से प्रशासनिक प्रतियोगिताओं में सफलता और उच्च पद प्राप्ति में सहायक हैं.... जनता से अधिक वास्ता पड़ता है इसलिए शनि का बली होना अत्यन्त आवश्यक है... शनि जनता व प्रशासनिक अधिकारियों के बीच की कड़ी है.... मंगल को स्याही व बुध को कलम कहा जाता है और ये बली हों तो जातक अपनी कलम का लोहा नौकरी में अवश्य मनवाता है...



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मकान सुख की प्राप्ति का ज्योतिषीय विवेचन -



मकान सुख की प्राप्ति का ज्योतिषीय विवेचन -
व्यक्ति के जीवन पुरुषार्थ, पराक्रम एवं अस्तित्व की पहचान उसका निजी मकान है... महंगाई और आबादी के अनुरूप हर व्यक्ति को मकान मिले यह संभव नहीं है...घर का सुख देखने के लिए मुख्यतः चतुर्थ स्थान को देखा जाता है... फिर गुरु, शुक्र और चंद्र के बलाबल का विचार प्रमुखता से किया जाता है। जब-जब मूल राशि स्वामी या चंद्रमा से गुरु, शुक्र या चतुर्थ स्थान के स्वामी का शुभ योग होता है, तब घर खरीदने, नवनिर्माण या मूल्यवान घरेलू वस्तुएँ खरीदने का योग बनता है...शुक्र जब राहु, केतु के सम्बन्ध से अछूता हो और शुभ ग्रहों के साथ बैठा हो तो मकान ही मकान बनवायेगा लेकिन जब केवल राहु, केतु के साथ हो तो मकान बनने से बर्बाद होगा और हानि देगा... पुष्य नक्षत्र से शुरू कर इसी नक्षत्र में पूर्ण किया मकान अति उत्तम होता है तथा पूर्ण होने पर मकान की प्रतिष्ठा प्राप्त होती है....



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शीघ्र उन्नतिकारक पूजा - शालिग्राम की पूजा



शीघ्र उन्नतिकारक पूजा - शालिग्राम की पूजा
सात्विक आचार, विचार और आहार वाले लोगों के लिए शालिग्राम की पूजा, अर्चना अधिक सिद्धिदायक होती है... भगवान विष्णु की भक्ति करने वाले लोगों के लिए शालिग्राम शीघ्र उन्नतिकारक एवं शुभफलदायक होता है... शालिग्राम की पूजा में तुलसी पत्रों की विशेष भूमिका होती है... जैसे शिवलिंग पर जलाभिषेक के साथ मात्र बिल्वपत्र चढ़ाने से शिव प्रसन्न होते हैं उसी भांति यदि कोई व्यक्ति नित्य जलाभिषेक करके शालिग्राम पर मात्र तुलसी पत्र अर्पण करता है तो इसी से भगवान नारायण शीघ्र प्रसन्न होते हैं... शालिग्राम की नित्य पूजा करने से जन्म जन्मान्तर के पाप, ताप, शाप नष्ट होते हैं... सुख, शांति एवं धन, मान, पद प्रतिष्ठा की वृद्धि होती है... घर-परिवार में अशांति, कलह एवं पितृदोष भी समाप्त होता है....इस शनिवार को कन्याराषि में स्थित चंद्रमा और राहु के दोषों की निवृत्ति हेतु शालिग्राम की पूजा से पायें सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति और करें अपने सुखों में वृद्धि....



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केजरीवाल अभी कायम हैं



केजरीवाल अभी कायम हैं
      गत कुछ वर्षों में भारतीय राजनीति में किसी बड़ी क्रांति की तरफ देखते हैं तो वह क्रांति है आरटीआई का कानून। इसे पारित करवाने वाले थे अरविंद केजरीवाल। जो केजरीवाल आप पार्टी के सर्वेसर्वा माने जाते थे उनका अपनी पार्टी में ही विरोध होने लगा। एक बार तो विरोधियों को लगा होगा कि केजरीवाल खत्म। परंतु ज्योतिष ऐसा नहीं कहता। अरविंद केजरीवाल की राशि और लग्न दोनों वृषभ है। वर्तमान में गुरू की महादशा में शुक्र का अंतर १ मार्च को समाप्त हो रहा है और दिल्ली के चुनाव फरवरी माह में समाप्त हो रहे। अगर इनके निकटतम भविष्य को देखें, 2015 से प्रारंभ होने वाली सूर्य की अंतर्दशा उन्हें नए पंख प्रदान करेगी। सूर्य की अंतर्दशा उन्हें जरूर बड़ा पद या हैसियत प्रदान। यदि बहुत बुरा हुआ तो भी केजरीवाल विपक्ष के नेता के तौर पर दिल्ली की राजनीति में कायम रहेंगे।
अजय माकन जो कि कांग्रेस से मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं, का जन्म 12 जनवरी, 1964 को दिल्ली में हुआ। इनका मूलांक 3 और भाग्यांक 6 जो कि उनके लिए लाभकारी नहीं होगा।
भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद की दावेदार किरण बेदी का जन्म 09 जून, 1949 को अमृतसर में हुआ। मूलांक 9 और भाग्यांक 2 इस समय केतु के अंक 7 के कारण किरण बेदी को अपनो से ही हानि हो सकती है।
आप पार्टी के मुख्यमंत्रीजी पद के दावेदार अरविंद केजरीवाल का जन्म 16 अगस्त, 1968, सिवानी में हुआ। मूलांक 7 और भाग्यांक 3 है। दिल्ली में चुनाव 07 फरवरी, 2015 का मूलांक 7 और भाग्यांक 8 है। इसके अनुसार अरविंद केजरीवाल के मूलांक को लाभ होता दिख रहा है।
नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर, 1950 का है। इनका जन्मलग्न और राषि दोनों वृष्चिक है। इनकी चंद्रमा की महादषा में गुरू की अंतरदषा तथा उसमें शुक्र की प्रत्यांतर दषा चल रही है। अप्रेल तक थोडा संभलकर रहना होगा।


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कैसे करें अपनी योग्यता का पूर्ण उपयोग -



कैसे करें अपनी योग्यता का पूर्ण उपयोग -
श्री गणेश का नाम लिया तो बाधा आस-पास फटक नहीं सकती, ऐसा देवों का वरदान है। कहा जाता है कि ऊॅ का वास्तिविक रूप ही गणेश जी का रूप है... जब किसी बालक का व्यवहार लापरवाह भरा हो तो उसके तीसरे एवं छइवें स्थान का विवचन करना चाहिए, क्योंकि इन स्थानों के स्वामी बुध ग्रह हैं यदि ये स्थान दुषित हों तो उसे गणपति की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हिंदू धर्म के अंदर अक्षरों की पूजा की जाती है... ऊॅ के ऊपर चंद्र बिंदु का स्थान चंद्रमा की दक्षिण भुजा का रूप है... अ, उ और म के ऊपर शक्ति के रूप में चंद्र बिंदु का रूपण केवल इस भाव से किया गया है कि अ से अज यानि ब्रम्हा, उ से उदार यानि विष्णु और म से मकार यानि शिवजी... ऊॅ गं गणपतये नमः का जाप करते वक्त गं अक्षर में संपूर्ण ब्रम्हविद्या का निरूपण होता है... गं बीजाक्षर को लगातार जपने से तालू के अंदर और नाक के अंदर की वायु शुद्ध होती है और बुद्धि की ओर जाने वाली शिरायें और धमनियाॅ अपना रास्ता खोल लेती हैं, जिससे बुद्धि का विकास होता है... इस ब्रम्ह विद्या का उच्चारण नियमित रूप से किया जाए तो एकाग्रता बढ़ने से स्मरण शक्ति तेज होती है, जिसके कारण विद्या में पारंगत हो सकते हैं... जिससे जातक अपनी योग्यता का पूर्ण सदुपयोग कर जीवन में सफलता प्राप्त करता है....



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कर्म का भोग ही है जन्म -



कर्म का भोग ही है जन्म -
‘‘कथम उत्पद्यते मातुः जठरे नरकागता गर्भाधि दुखं यथा भुंक्ते तन्मे कथय केषव’’ गरूड पुराण में उक्त पंक्तियाॅ लिखी हैं, जिससे साबित होता है कि गर्भस्थ षिषु के ऊपर भी ग्रहों का प्रभाव शुरू हो जाता है... गर्भ के पूर्व कर्मो के प्रभाव से माता-पिता तथा बंधुजन तथा परिवार तय होते हैं... इसी लिए कहा जाता है कि शुचिनाम श्रीमतां गेहे योग भ्रष्ट प्रजायते अर्थात् जो परम् भाग्यषाली हैं वे श्रीमंतो के घर में जन्म लेते हैं... जिन बच्चों का ग्रह नक्षत्र उत्तम होता है, उनका जन्म तथा परवरिष भी उसी श्रेणी का होता है... कहा तो यहाॅ तक जाता है कि जिस व्यक्ति के प्रारब्ध में कष्ट लिखा होता है उसका जन्म विपरीत ग्रह नक्षत्र एवं कष्टित परिवार में होता है... गरूड पुराण में वर्णन है और देखने में भी आया है कि जिनके प्रारब्ध उत्तम नहीं होते उन्हें बचपन से ही कष्ट सहना होता है.... उनका जन्म परिवार के विपरीत परिस्थितियों में होता है और जिन्हें बड़ी उम्र में कष्ट सहना होता है, उनका कार्य व्यवसाय या बच्चों का भाग्य बाधित हो जाता है... इससे जाहिर होता है कि आपका प्रारब्ध कभी ही आप पर असर दिखा सकता है...अतः अपने भाग्यवृद्धि तथा सुख समृद्धि हेतु अपने कर्म अच्छे रखने चाहिए....




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पुष्य नक्षत्र का माघ पूर्णिमा देगा सभी सूर्य-चंद्रमा के कष्टों से निवृत्ति-


पुष्य नक्षत्र का माघ पूर्णिमा देगा सभी सूर्य-चंद्रमा के कष्टों से निवृत्ति-
माघ मास की पूर्णिमा को गंगा स्नान करने से मनुष्य का तन-मन पवित्र हो जाता है.. माघी पूर्णिमा में किसी नदी, सरोवर, कुण्ड अथवा जलाशय में सूर्य के उदित होने से पहले स्नान करने मात्र से ही पाप धुल जाते हैं और हृदय शुद्ध होता है... शास्त्रों में भी कहा गया है कि व्रत, दान और तप से भगवान विष्णु को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघी पूर्णिमा में स्नान करने मात्र से होती है... यह स्नान समस्त रोगों को शांत करने वाला है... इस समय ओम नमः भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करते हुए स्नान व दान करना चाहिए...धार्मिक मान्यता है कि माघ पूर्णिमा में स्नान करने से सूर्य और चन्द्रमा युक्त दोषों से मुक्ति प्राप्त होती है... यह महीना जप-तप व संयम का महीना माना गया है इस महीने तामसी प्रवृत्ति के लोगो में भी सात्विकता आ जाती है, मंगल को पुष्य नक्षत्र होना भी श्रेष्ठ है... इस वर्ष माघमाह की पूर्णिमा पर पुष्य नक्षत्र योग रहेगा... यह आयुष्मान योग है... सर्वार्थसिद्धि योग भी दिन भर रहेगा... पुष्य नक्षत्र 3 फरवरी को रात 7.57 मिनट तक रहेगा... इसी दिन माघी पूर्णिमा है, जो इस योग की शुभता में वृद्धि करेगी... अतः इस वर्ष जिन भी जातक की कुंडली में सूर्य या चंद्रमा राहु युक्त अथवा कमजोर हों, ऐसे जातक को माघी स्नान द्वारा अपने ग्रहीय दोषों की निवृत्ति हेतु इस स्नान से लाभ प्राप्त करना चाहिए....



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कैसे पायें जगत में ख्याति -


कैसे पायें जगत में ख्याति -
किसी व्यक्ति के अस्तित्व का महत्वपूर्ण पहलू उसका क्रियाकलाप होता है.. कोई धन, सुख का अभिलाषी होता है तो कोई दुनिया में अपना नाम रोषन करना चाहता है... दुनिया में विख्यात होने के लिए मेहनत के साथ कुछ ज्योतिषीय योग होने जरूरी होते हैं, जिनके आधार पर कई बार व्यक्ति अर्ष से फर्ष तक पहुॅच जाता है तो कई बार बिना कुछ बुरा किए सब गवा भी देता है...
दसम भाव कर्म स्थान होता है। जिसका मुख्य रुप से यह अर्थ होता है कि जातक जीवन में क्या करेगा... यदि शनि के क्षेत्र में चन्द्रमा स्थित हो और शनि से दृष्ट भी हो अथवा यदि शनि व मंगल के नवांष में चन्द्रमा हो और शनि से दृष्ट हो तो जातक विरक्ति का जीवन व्यतीत करता है और संसार में ख्याति प्राप्त करता है.... शुक्र व बुध का दशम व दशमेश से संबंध जातक को भाग्य बल प्रदान कर सफलता एवं प्रसिद्घि देता है... मेष, कर्क या वृश्चिक लग्न में राहु नवम, दशम या एकादश भाव में हो तो परमसुख योग के फलस्वरूप जातक को यश, सम्मान, धन, कीर्ति और समृद्धि प्राप्त होती है... जन्म लग्न, चन्द्र लग्न एवं सूर्य लग्न से दशम भाव पर शुक्र का प्रभाव सफलता का योग बनाता है... साथ ही शुक्र व बुध का दशम व दशमेश से संबंध जातक को भाग्य बल प्रदान कर सफलता एवं प्रसिद्घि देता है...अगर किसी को जगत में ख्याति प्राप्ति करने की अभिलाषा हो तो उस व्यक्ति को अपना दषम भाव मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिए, जिससे उसके कर्म का फल उच्च होगा और उसे ख्याति प्राप्ति होगी।


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आस्था और अन्धविश्वास का ज्योतिषीय नजरिया....


आस्था और अन्धविश्वास का ज्योतिषीय नजरिया....
भगवान की कृपा के कारण ही सब अपनी जगह पर अडिग है। अब आप इसे शिव की कृपा मानें या जो भी हो इन सभी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है। किन्तु हमारे देश में आस्था जीवन का आधार है...इस के द्वारा न केवल गाँव के अनपढ बल्कि उच्च शिक्षित लोग जो अपने आप को नास्तिक बताते हैं वे भी आस्था और अन्धविश्वास में विष्वास करते दीखते है....ये देखने में तो बहुत ही सामान्य बात लगती है किन्तु यदि हम इसके मूल में जाये और इसे ज्योतिषीय नजरिये से देखे तो समझ में आता है की किसी भी जातक में आस्था या विश्वास कब अन्धविश्वास में बदल जायेगा इसकी गणना उस जातक की कुंडली के नवम भाव से देखा जाता है यदि नवम भाव और तीसरा भाव कमजोर, नीच या क्रूर ग्रहों से पापाक्रांत हो तो व्यक्ति परेशानी या हताशा की स्थिति में आस्था से अंधविश्वास की राह में चला जाता है... यदि कोई व्यक्ति जरूरत से ज्यादा अंधविष्वासी हो तो उसके तीसरे तथा नवम स्थान का अंकलन कर उसके अनुरूप उपाय करने से इन अंधविष्वासों से छुटकारा पाया जा सकता है....



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जानिये आज 09/05/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से " विवाह के बाद जीवन में परिवर्तन -कारक द्वितीय श्रेणी का राजयोग"

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जानिये आज के सवाल जवाब(1) 09/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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जानिये आज के सवाल जवाब 09/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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जानिये आज का राशिफल 09/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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जानिये आज का पंचांग 09/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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प्रदूषण से प्रभावित स्वास्थ्यः ज्योतिषीय कारक-



प्रदूषण से प्रभावित स्वास्थ्यः ज्योतिषीय कारक-

सभी प्रमुख न्यूज पेपर की यह हेडलाईन थी... ‘‘दिल्ली में तीन दिनों तक रहने के कारण राष्ट्रपति बराक ओबामा के जिंदगी के छह घंटे कम हो गए’’.. दिल्ली में वायु प्रदूषण का उल्लेख करते हुए अमेरिकी मीडिया की एक रिपोर्ट आई है... इसमें कहा गया है कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा है और इसका असर ओबामा की सेहत पर पड़ सकता...यह भी सच है कि प्रदूषण से उतनी ही हानि होती है... जितनी की एक दिन में आठ सिगरेट पीने से होती है...हम हिंदुस्तानी इस प्रदूषण में जीने के आदि हैं क्योकि भारत की जन्मकुंडली में लग्नस्थ राहु, कर्क का चंद्रमा तथा तुला का गुरू होने से प्रदूषण, जिसमें सभी प्रकार के प्रदूषण शामिल हैं, जैसे राजनैतिक प्रदूषण, आर्थिक यानि भ्रष्टाचार प्रदूषण, सामाजिक प्रदूषण तथा वातावरणीय प्रदूषण शुरू से ही रहा है... किंतु अब जबसे उच्च का गुरू और उच्च का शनि गोचर में है... अब हमें इन सभी प्रदूषणों से आपत्ति होने लगी है... अब जब सभी प्रदूषणों का हर स्तर में विरोध हो रहा है तो भारतीय परिवेष में इन सभी प्रकार के प्रदूषणों से जरूर निजात मिल सकता है... जरूरत है हमें ज्योतिषीय गणना और उनके अनुसार निदान लेने की.. सरकार जो स्वाच्छता अभियान चला रही है वह एक पाखंड ना हो कर रह जाए... इसलिए इस समय जब ग्रहों की स्थिति बेहद अनुकूल है... प्रदूषण अर्थात् हर क्षेत्र में फैली गंदगी को साफ करने की आवष्यकता है....



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बराक ओबामा का गणतंत्र दिवस पर आगमन के महत्व पर ज्योतिषीय नजर...


 बराक ओबामा का गणतंत्र दिवस पर आगमन के महत्व पर ज्योतिषीय नजर...
गणतंत्र दिवस के अवसर पर बराक ओबामा का आगमन इस देष की फिजा को कितना बदलेगा...इसकी ज्योतिषीय गणना क्या कहती है....गणतंत्र दिवस न सिर्फ हिन्दुस्तान की शांति, विनम्रता द्वारा शक्ति का अभिनंदन है... बल्कि यह उसकी मजबूत सामरिक सैन्य शक्ति का उद्घोष भी है... जो हर भारतीय के सीने को गर्व से भरता है... बदलते राजनयिक वक्त में देखें तो आज की कुंडली के अनुसार जब वृषभ लग्न की कुंडली की बात करें तो दषमेंष शनि सप्तमस्थ और लग्नेष और सप्तमेष शुक्र तथा मंगल दषम स्थान पर है...इसका सीधा सा अर्थ है कि आज के दौर में राजनयीक लाभ जिसमें सभी प्रकार के कार्य जैसे विदेषनीति...सैन्यनीति जैसे क्षेत्र में भारत को विषेष लाभ होता दिख रहा है....साथ ही परमाणु और आर्थिक साझेदारी से भारत के विकास के नये आयाम खुलते दिख रहे हैं...भारत के उज्जवल भविष्य पर ही हम भारतीयो का भविष्य खुलता है....


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भाग्य या कर्म कौन बलि?????


भाग्य या कर्म कौन बलि?????
भारतीय मान्यता है कि इंसान के 12 वर्ष अर्थात् कालपुरूष के भाग्य के एक चक्र के पूरा होने के उपरांत क्रियामाण का दौर शुरू हो जाता है जोकि जीवन के अंत तक चलता है। अब व्यक्ति की षिक्षा उसकी रूचि सामाजिक स्थिति पारिवारिक तथा निजी परिस्थिति पसंद नापसंद, प्रयास तथा उसमें सकाकरात्मक या नाकारात्मक सोच से व्यक्ति का क्रियामाण उसके जीवन को प्रतिकूल या अनुकूल स्थिति हेतु प्रभावित करता है अतः पुरूषार्थ या क्रियामाण कर्म ही संचित होकर प्रारब्ध बनता है अतः जीवन के सिर्फ कर्म के आधार पर नहीं वरन् कर्म और भाग्य के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है जोकि कुंडली के पंचम, नवम और दषम स्थान से देखा जाता है इसमें प्रयास का स्तर, मनोभाव या सहयोग कि स्थिति देखना भी आवष्यक होता है जोकि कुंडली के अन्य भाव से निर्धारित होता है अतः मानव जीवन में भाग्य का भी अहम हिस्सा होता है.....



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क्यों महत्वपूर्ण है ग्रह दषाओं का विष्लेषण -



क्यों महत्वपूर्ण है ग्रह दषाओं का विष्लेषण -
किसी भी जातक के जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अलावा उसके ग्रह दषाओं के अनुरूप उसका व्यवहार तथा कर्म निर्धारित होता है... जिसके कारण कुंडली के विष्लेषण के समय उस जातक के ग्रह दषाओं का असर उसके जीवन मे महत्वपूर्ण होता है... चूॅकि इंसान के जीवन में ग्रहो का प्रभाव विषेष प्रभाव शाली होता है अतः उसके प्रष्न के समय चलित दषाओं के अनुरूप लाभ या हानि दृष्टि गोचर होती है... ऐसी स्थिति ग्रहों के अनुकूल और प्रतिकूल स्थान पर होने से भी प्रभावी होती है किंतु उसकी ग्रह दषाओं का पूरा असर उसके जीवन पर दिखाई देता है... सूर्य, चंद्रमा, बुध, गुरू राजसीय स्वभाव से उत्तम फल प्रदान करते हैं यदि उसकी कुंडली में स्थिति अनुकूल हो तो... साथ ही सूर्य अपनी या बुध की दषा में सात्विक गुण के कारण श्रेष्ठ फल प्रदाय करने में सक्षम होता है... बुध की महादषा में स्वयं या गुरू या चंद्रमा की दषाओं में सात्विक भाव से प्रथम या द्वितीय श्रेणी का फल प्रदाय करता है... गुरू या किसी भी सौम्य ग्रह की दषाओं में राहु या केतु की दषाओं में अषुभ फल प्रदाय करता है फिर कुंडली में ग्रहों की स्थिति कुछ भी हों कुछ मात्रा मंें अषुभ फल जरूर प्राप्त होते हैं... शुक्र, चंद्रमा या गुरू की दषाओं में मिश्रित फल प्रदाय करता है, जिसमें कोई पक्ष अच्छा तो दूसरा पक्ष विपरीत कारक होता है.... जैसे शनि की दषा में कार्यक्षेत्र में उत्तमफल प्राप्त होता है तब वहीं पर रिष्तों में मतभेद या अलगाव का कारण बनता है... गुरू या शुक्र की दषाओं में मंगलकारक फल प्रदाय करता है यदि ये ग्रह उत्तम स्थिति में हों तो.... स्वभाव से तामसिक ग्रह प्रतिकूल स्थिति में उत्तमफल प्रदाय करने में सक्षम होते हैं वहीं पर सात्विक गुण वाले ग्रह प्रतिकूल स्थिति में खराब फल प्रदाय करते हैं... इस प्रकार जीवन में ग्रह दषाओं के अनुरूप लाभ या हानि सफलता या असफलता तथा शुभ या अषुभ फल प्राप्त होता है...


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सरस्वती मां की पूजा से पायें सफलता -



सरस्वती मां की पूजा से पायें सफलता -
माघ मास के शुक्ल पक्ष के पंचमी तिथि के (24 फरवरी 2015) को सरस्वती मां की पूजा की जाती है... क्योंकि इस दिन विद्या की देवी सरस्वती का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन पूरे भारत में देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है... भोर में सरस्वती देवी की पूजा करे ... कलश के स्थापना व वाग्देवी के आवाहन कर... विधि पूर्वक देवी सरस्वती के पूजा करें... फिर पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा के बाद षष्टी तिथि को संध्या काल में मूर्ति को प्रणाम करके जल में प्रवाहित कर देना चाहिए....सरस्वती वाणी एवं ज्ञान की देवी है. ज्ञान को संसार में सभी चीजों से श्रेष्ठ कहा गया है. इस आधार पर देवी सरस्वती सभी से श्रेष्ठ हैं... सरस्वती माता कला की भी देवी मानी जाती हैं अतः कला क्षेत्र से जुड़े लोग भी माता सरस्वती की विधिवत पूजा करते हैं... व्यावहारिक रूप से विद्या तथा बुद्धि व्यक्तित्व विकास के लिए जरूरी है...शास्त्रों के अनुसार विद्या से विनम्रता, विनम्रता से पात्रता, पात्रता से धन और धन से सुख मिलता है... देवी सरस्वती की पूजा की जाए तो विद्या व बुद्धि के साथ सफलता भी निश्चित मिलती है...
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पितृ-दोष के कारण और निदान के संबंध में स्थान की किवंदंती -


पितृ-दोष के कारण और निदान के संबंध में स्थान की किवंदंती -
भारतीय सामाजिक परंपरा में जीव को अमर माना गया है... तथा मान्यता है कि जीवन में किए गए कर्मो के शुभ-अषुभ, नैतिक-अनैतिक तथा पाप-पुण्य के आधार पर संचित प्रारब्ध के अनुसार जीवन में सुख-दुख का सामना करना पड़ता है... हिंदु रिवाज है कि पूर्वजो के किसी प्रकार के अषुभ या नीति विरूद्ध आचरण का दुष्परिणाम उनके वंषजो को भोगना पड़ता हैं... माना जाता है कि व्यक्ति का अपना प्रारब्ध ही उसके जन्म का आधार बनता है... जिसके तहत उसका पालन-पोषण तथा संस्कार निर्धारित होते हैं... जातक द्वारा पूर्व जन्म में किए गए या इसी जन्म में पूर्वजों द्वारा किए गए गलत, अषुभ, पाप या अधर्म का फल जातक को कष्ट, हानि, बाधा तथा पारिवारिक दुख, शारीरिक कष्ट, आर्थिक परेषानी के तौर पर भोगना होता है... यह प्रभाव पितृदोष के हैं यह पता लगाने के लिए जातक या परिवारजनों के जीवनकाल में विपरीत स्थिति या घटना जिसमें अकल्पित असामयिक घटना-दुर्घटना, जन-धन हानि, वाद-विवाद, अषांति, वंष परंपरा में बाधक, स्वास्थ्य, धन अपव्यय, असफलता आदि की स्थिति बनने पर पितृदोष का कारक माना जा सकता है... पितृदोष का प्रत्यक्ष कुंडली में जानकारी प्राप्त करने हेतु जातक के जन्म कुंडली के द्वितीय, तृतीय, अष्टम या भाग्य स्थान में प्रमुख ग्रहों का राहु से पापाक्रांत होना पितृदोष का कारण माना जाता हैं... माना जाता है कि प्रमुख ग्रह जिसमें विषेषकर शनि यदि राहु से आक्रांत होकर इन स्थानों पर हो तो जीवन में कष्ट का सामना जरूर करना पड़ सकता हैं... इसके निवारण के लिए किसी नदी के किनारे स्थित देवता के मंदिर में किसी भी माह के शुक्लपक्ष की पंचमी अथवा एकादषी अथवा श्रवण नक्षत्र में विद्वान आचार्य के निर्देष में अज्ञात पितृदोषों की निवृत्ति के लिए पलाष विधि के द्वारा नारायणबलि, नागबलि तथा रूद्राभिषेक कराना चाहिए... किंवदति है कि यह पूजा किसी विषेष स्थान पर ही हो सकती है पर ऐसा नहीं है... यह पूजा किसी भी नदी के किनारे संभव है परंतु इस विषय में ग्रंथ का अभाव है इस स्थिति में यह सुनिष्चित करना जरूरी है कि जिन आचार्यो से आप पूजा करा रहे हैं, उनके पास यह ग्रंथ अवष्य हों... ऐसा करने से संतति अवरोध, वंष परंपरा में बाधा, अज्ञात रोगों की व्याप्ति, व्यवसायिक असफलता तथा पारिवारिक अषांति व असमृद्धि जैसे पीड़ा से मुक्ति पाई जा सकती है... ऐसा धर्म सिंधु ग्रंथ में तथा कौस्तुभ ग्रंथों में लिखा है....



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क्या करें परीक्षा में सफलता हेतु उपाय-


क्या करें परीक्षा में सफलता हेतु उपाय-
हर माता-पिता की एक ही कामना होती है कि उसके बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण करें, हर परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त करें... किंतु हर संभव प्रयास करने के उपरांत भी कई बार असफलता आती है, जिसके कई कारण हो सकते हैं ... प्रयास में कमी, परिस्थितियों का विपरीत होना या कोई मामूली सी गलती भी असफलता का कारण हो सकती है... घर तथा गुरूकुल में अनुकूल वातावरण का ना होना....कठोर तथा अनुषासित इच्छाषक्ति का अभाव... किंतु ज्योतिष दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह सभी घटना आकस्मिक ना होकर ग्रहीय है... परीक्षा का संबंध स्मरणशक्ति से होता है... जिसका कारक ग्रह है बुध ... परीक्षा भवन में मानसिक संतुलन का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसका कारक ग्रह है चंद्रमा ... परीक्षा में विद्या की स्थिरता, विकास का आकंलन मूख्य होता है, जिसका कारक ग्रह है गुरू... भाषा या शब्द ज्ञान होना भी परीक्षा में आवश्यक गुण माने जा सकते हैं, जिसका कारक ग्रह होता है शनि... अतः इनके अनुकूल या प्रतिकूल या दशा अंतदशा का प्रभाव भी परीक्षा में पड़ सकता है.. इसके अलावा परीक्षार्थी के पंचम स्थान, जहॉ से विद्याविचार.... द्वितीय स्थान जहॉ से विद्या योग देखा जाता है... इस सबो के अलावा जातक के विंशोतरी दशाओं पर भी विचार करना चाहिए... सामाधान ...अपने बच्चों की जन्म कुंडलियॉ विद्धान आचार्यो को दिखाकर उन ग्रहों के विधिवत् उपाय कर अनुशासन तथा आज्ञापालन नियमितता तथा एकाग्रता सुनिश्चित करें... ताकि वह कठोर परिश्रमी... अनुषासित और आज्ञाकारी हो... विपरीत ग्रह की शांति कराने से...नियमित होने के साथ परीक्षा हाल में अच्छे से प्रदर्षन कर पायेंगे....तभी बच्चें अपने कैरियर में ग्रहों के प्रभाव से ऊपर सफलता प्राप्त कर सकते हैं।


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दुनिया में इतने ज्यादा अपराध क्यों?????


दुनिया में इतने ज्यादा अपराध क्यों?????
दुनिया में बढते अपराध की वजह है... भयंकर बढती जनसंख्या...अषिक्षा...बेरोजगारी...बेलगाम महत्वाकांक्षा... गरीब और अमीर के बीच बढता फर्क... तेजी से बढ रही भौतिकता... भोग पर निरंकुषता... प्रयोगवादी सामाजिक परिस्थितियाॅ... नैतिकता का अभाव... घर तथा गुरूकुल में अनुकूल वातावरण का ना होना....कठोर तथा अनुषासित राजनैतिक इच्छाषक्ति का अभाव... लोगों में शासन की इच्छा से जनता के खिलाफ षडयंत्र... अदूरदर्षी राजनैतिक नितियाॅ... ये कुछ बातें हैं... जो दुनिया में भयंकर मारकाट मचा रही है
सामाधान ...बच्चों को बाल्यकाल से ही राष्टीय... सामाजिक...पारिवारिक ढांचे के अनुकूल परवरिष देनी होगी... ताकि वह कठोर परिश्रमी... अनुषासित और आज्ञाकारी बनाना होगा... कार्यषील...  उत्पादक और समाज के लिए उदार तथा सहिष्णु हो... आज शनि...राहु...गुरू.. शुक्र के कारण ... बच्चों में समय से पूर्व वयस्कता और भटकाव की जबरदस्त सुविधा हर जगह आसानी से उपलब्ध है... और यह समय दर समय बढ़ने वाला है... इन सब की वजह है .... ग्रहीय व्यवस्थाएं... वैष्विक दृष्टि से देखें तो... सूर्य तूफान जब-जब आया...दुनिया में अपराध और हिंसा में वृद्धि देखी गई...


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Friday, 8 May 2015

जानिये आज 07/05/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "सलमान पर मंगल और राहु की छाया "

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जानिये आज के सवाल जवाब (1) 07/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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जानिये आज का सवाल जवाब 07/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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जानिये आज का पंचांग 07/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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Thursday, 7 May 2015

वैवाहिक सुख में बाधा को दूर करने के ज्योतिषीय उपाय -

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वैवाहिक सुख में बाधा को दूर करने के ज्योतिषीय उपाय -

लग्न या लग्नेष तथा नवांष और नवांषेष की बलवान और शुभ स्थान पर स्थिति गृहस्थ जीवन में आनंद या दुख का कारण बनता है। लग्नेष एवं सप्तमेष का जन्म कुंडली में शुभ भावों में युति या दृष्टि संबंध हो अथवा दोनों का एक दूसरे के नवांष में हों तो पति-पत्नी में परस्पर प्रगाढ़ प्रेम होता है। इन पर किसी भी ग्रह की क्रूर दृष्टि का ना होना उनके रिष्तों में कभी भी मतभेद नहीं ला सकता है। लग्नेष एवं सप्तमेष एक दूसरे से 6, 8 या 12 भाव में हो तो परस्पर शत्रु भाव से गृहस्थ जीवन बाधित होता है। 6, 8 या 12 भाव के स्वामी होकर सप्तम भाव से संबंध स्थापित होने पर वैवाहिक सुख में बाधा का कारण बनता है। इसके अलावा लग्नेष या सप्तमेष का निर्बल होकर क्रूर स्थान या क्रूर ग्रहों के साथ होना भी वैवाहिक जीवन में दुख तथा कष्ट का कारण बनता है। द्वितीय, पंचम, सप्तम, अष्टम या द्वादष भाव पर क्रूर ग्रह का होना भी वैवाहिक जीवन में कष्ट का कारण बनता है। यदि किसी के जीवन में वैवाहिक कष्ट उत्पन्न हो रहा हो तो उसे अपने जीवन में मधुर तथा सामंजस्य लाने हेतु विधि पूर्वक नकुल मंत्र का जाप कराना चाहिए या स्वयं करना चाहिए। जिस प्रकार नकुल ने अहि का विच्छेद करके सत्य का रूप धारण किया उसी प्रकार अपने जीवन में मधुरता की कामना से नकुल मंत्र -‘‘ यथा नकुलो विच्छिद्य संदधात्यहिं पुनः। एवं कामस्य विच्छिन्नं स धेहि वो यादितिः।। का जाप दुर्गादेवी के षोडषोपचार पूजन के उपरांत विधिवत् संकल्प लेकर इस मंत्र का जाप करने से समस्त विषमाताएॅ समाप्त होकर जीवन में सुख प्राप्त होता है।



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तनाव से व्यसन और वैवाहिक जीवन की बाधा-



तनाव से व्यसन और वैवाहिक जीवन की बाधा-
जीवन के सुख साधन प्राप्ति हेतु व्यक्ति हर संभव प्रयास करता है। किंतु कभी अवसर की कमी तो कभी प्रयास में चूक या कोई अन्य कारण से इच्छित सफलता प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होने से व्यक्ति कई बार असफलता प्राप्त होती है। इस असफलता के कारण तनाव कई बार इतना ज्यादा हो जाता है कि उसे तनाव से बाहर आने के लिए व्यसन का सहारा लेना पड़ता है और यह व्यसन शौक या तनाव दूर करने से शुरू होते हुए व्यसन या लत की सीमा तक चला जाता है। इसका ज्योतिष कारण व्यक्ति के कुंडली से जाना जाता है। किसी व्यक्ति का तृतीयेष अगर छठवे, आठवें या द्वादष स्थान पर होने से व्यक्ति कमजोर मानसिकता का होता है, जिसके कारण उसके प्रयास में कमी या असफलता से डिप्रेषन आने की संभावना बनती है। अगर यह डिपे्रषन ज्यादा हो जाये तथा उसके अष्टम या द्वादष भाव में सौम्य ग्रह राहु से पापाक्रांत हो तो उस ग्रह दषाओं के अंतरदषा या प्रत्यंतरदषा में शुरू हुई व्यसन की आदत लत बन जाती है। लगातार व्यसन मनःस्थिति को और कमजोर करता है साथ ही इस व्यसन की आदत के कारण करीबी रिष्तों विषेशकर वैवाहिक जीवन में सुख की कमी, दूरी तथा असंतुश्टि के कारण विवाद, तलाक आदि की स्थिति निर्मित हो जाती है। अतः यह व्यसन समाप्त होने की संभावना कम होती है। अतः व्यसन से बाहर आने के लिए मनोबल बढ़ाने के साथ राहु की शांति तथा मंगल का व्रत मंगल स्तोत्र का पाठ करना जीवन में व्यसन मुक्ति के साथ सफलता का कारक होता है।

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शनि का असर- प्रेम विवाह का होना


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शनि का असर- प्रेम विवाह का होना -

सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे प्राचीन काल में गंर्धव विवाह के रूप में मान्यता प्राप्त थी। आज के आधुनिक काल में इसे ही प्रेम विवाह का रूप माना जा सकता है। इस विवाह में वर-वधु की पारस्परिक सहमति के अतिरिक्त किसी की आज्ञा अपेक्षित नहीं होती। पुराणों में वणिर्त पुरूष और प्रकृति के प्रेम के साथ आज के युग में प्रचलित प्रेम विवाह देष और काल के निरंतर परिवर्तनषील परिस्थितियों में प्रेम और उससे उत्पन्न विवाह का स्वरूप सतत रूपांतरित होता रहा है किंतु एक सच्चाई है कि सामाजिकता का हवाला दिया जाकर विरोध के बावजूद आज भी यह परंपरा अपारंपरिक तौर पर मौजूद है। अतः इसका ज्योतिषीय कारण देखा जाना उचित प्रतीत होता है। जन्मांग में प्रेम विवाह संबंधी संभावनाओं का विष्लेषण करते समय सर्वप्रथम पंचमभाव पर दृष्टि डालनी चाहिए। पंचम भाव से किसी जातक के संकल्प-षक्ति, इच्छा, मैत्री, साहस, भावना ओर योजना-सामथ्र्य आदि का ज्ञान होता है। सप्तम भाव से विवाह, दाम्पत्य सुख, सहभागिता, संयोग आदि का विचार किया जाता है। अतः प्रेम विवाह हेतु पंचम एवं सप्तम स्थान के संयोग सूत्र अनिवार्य हैं। सप्ताधिपति एवं पंचमाधिपति की युति, दोनों में पारस्परिक संबंध या दृष्टि संबंध हेाना चाहिए। प्रेम विवाह समान जाति, भिन्न जाति अथवा भिन्न धर्म में होगा इसका विचार करने हेतु नवम भाव पर विचार किया जाना चाहिए। स्फुट रूप से एकादष और द्वितीय स्थान भी विचारणीय है, क्योंकि एकादष स्थान इच्छापूर्ति और द्वितीय भाव पारिवारिक सुख संतोष के अस्तित्व को प्रकट करता है। चंद्रमा मन का कारक ग्रह है। किसी व्यक्ति की कुंडली में इन स्थिति में शनि का प्रभाव या किसी भी स्थान पर शनि की उपस्थिति व्यक्ति को स्व-प्रेरणा से कार्य करने की आदत देता है यदि लग्न या पंचम या सप्तम तथा सप्तमेष पर शनि किसी भी प्रकार से प्रभाव डालें तो व्यक्ति अपनी पसंद के अनुसार रिष्ता स्वीकार करता है। जिनके जीवन में इस प्रकार के प्रभाव से विवाह में रूकावट या कष्ट हों उन्हें षिव-पावर्ती की पूजा सोमवार का व्रत करते हुए करना चाहिए तथा शंकर मंत्र का जाप करने से बाधा दूर होती है।

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सप्तमस्थ शनि से जीवनसाथी पर शक और अलगाव-

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सप्तमस्थ शनि से जीवनसाथी पर शक और अलगाव-

सप्तम भाव में यदि शनि स्थित होता है या सप्तमेष शनि से आक्रांत हो तो जातक का विवाह में अपनी पसंद तथा परिवारिक बाधा का संकेत माना जाता है। यदि सप्तम भाव में षनि हो तो या सप्तमेष से युक्त शनि हो तो जातक का वैवाहिक जीवन पारिवारिक सदस्यों के कारण बाधित होता है। वहीं पर यदि शनि के साथ चंद्रमा हो तो जातक का अपने जीवनसाथी के प्रति लगाव ना होकर अन्य किसी से प्रेम संबंध जातक के वैवाहिक जीवन में दुख का कारण बनता है। यदि शनि से युत राहु हो तो जातक का वैवाहिक जीवन एक रहस्य की तरह असफल माना जाती है। सप्तम स्थान पर शनि मंगल के होने से जातक को जीवनसाथी से प्रताडित होने के योग बनते हैं। इस प्रकार सप्तम भाव व सप्तमेष का शनि से युत होने पर वैवाहिक जीवन बाधित ही होता है। किंतु सप्तमभाव में शनि शुक्र या बृहस्पति के साथ हो तो वैवाहिक जीवन की शुरूआत तो प्यार से होती है किंतु बाद में किसी और के प्रति झुकाव या प्यार एवं आपसी समझ किंतु अपने जीवनसाथी पर शक तथा लगातार शक के कारण अलगाव दिखाई देती है। यदि किसी जातक की कुंडली में वैवाहिक विलंब तथा कष्ट का कारण शनि हो तो बाधा को दूर करने हेतु सौभाग्याष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् का पाठ किसी विद्वान आचार्य के द्वारा कराया जाकर हवन, तर्पण, मार्जन आदि कराने से वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।



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केतु का प्रभाव - निरंतर उन्नति का प्रेरणास्त्रोत-


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केतु का प्रभाव - निरंतर उन्नति का प्रेरणास्त्रोत-

निरंतर चलायमान रहने अर्थात् किसी जातक को अपने जीवन में निरंतर उन्नति करने हेतु प्रेरित करने तथा बदलाव हेतु तैयार तथा प्रयासरत रहने हेतु जो ग्रह सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है, उसमें एक महत्वपूर्ण ग्रह है केतु। ज्योतिष शास्त्र में राहु की ही भांति केतु भी एक छायाग्रह है तथा यह अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसका स्वभाग मंगल ग्रह की तरह प्रबल और क्रूर माना जाता है। केतु ग्रह विषेषकर आध्यात्म, पराषक्ति, अनुसंधान, मानवीय इतिहास तथा इससे जुड़े सामाजिक संस्थाएॅ, अनाथाश्रम, धार्मिक शास्त्र आदि से संबंधित क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। केतु ग्रह की उत्तम स्थिति या ग्रह दषाएॅ या अंतरदषाओं में जातक को उन्नति या बदलाव हेतु प्रेरित करता है। केतु की दषा में परिवर्तन हेतु प्रयास होता है। पराक्रम तथा साहस दिखाई देता है। राहु जहाॅ आलस्य तथा कल्पनाओं का संसार बनाता है वहीं पर केतु के प्रभाव से लगातार प्रयास तथा साहस से परिवर्तन या बेहतर स्थिति का प्रयास करने की मन-स्थिति बनती है। केतु की अनुकूल स्थिति जहाॅ जातक के जीवन में उन्नति तथा साकारात्मक प्रयास हेतु प्रेरित करता है वहीं पर यदि केतु प्रतिकूल स्थिति या नीच अथवा विपरीत प्रभाव में हो तो जातक के जीवन में गंभीर रोग, दुर्घटना के कारण हानि,सर्जरी, आक्रमण से नुकसान, मानसिक रोग, आध्यात्मिक हानि का कारण बनता है। केतु के शुभ प्रभाव में वृद्धि तथा अषुभ प्रभाव को कम करने हेतु केतु की शांति करानी चाहिए जिसमें विषेषकर गणपति भगवान की उपासना, पूजा, केतु के मंत्रों का जाप, दान तथा बटुक भैरव मंत्रों का जाप करना चाहिए जिससे केतु का शुभ प्रभाव दिखाई देगा तथा जीवन में निरंतर उन्नति बनेगी।


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शुक्र का प्रभाव - ऐष्वर्या में वृद्धि या कैरियर में बाधक?-

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शुक्र का प्रभाव - ऐष्वर्या में वृद्धि या कैरियर में बाधक?-

ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को प्रमुखता प्राप्त है। कालपुरूष की कुंडली में शुक्र ग्रह दूसरे अर्थात् संपत्ति एवं सुख तथा सप्तम स्थान अर्थात् पार्टनर का स्वामी होता है। शुक्र ग्रह सुख, संपत्ति, प्यार, लाभ, यष, क्रियात्मकता का प्रतीक है। शुक्र ग्रह की उच्च तथा अनुकूल स्थिति में होने पर सभी प्रकार के सुख साधन की प्राप्ति, कार्य में अनुकूलता तथा यष, लाभ तथा सुंदरता की प्राप्ति होती है। इस ग्रह से जीवन में ऐष्वर्या तथा सुख की प्राप्ति होती है किंतु यदि विपरीत स्थिति या प्रतिकूल स्थान पर हो तो सुख में तथा धन ऐष्वर्या में कमी भी संभावित होती है। शुक्र ग्रह की दषा या अंतरदषा में सुख तथा संपत्ति की प्राप्ति का योग बनता है। किंतु शुक्र ग्रह भोग तथा सुख का साधन होने से इन दषाओं में मेहनत या प्रयास में कमी भी प्रदर्षित होती है। यदि ये दषाएॅ उम्र की परिपक्वता की स्थिति में बने तो लाभ होता है किंतु शुक्र की दषा या अंतरदषा कैरियर या अध्ययन के समय चले तो पढ़ाई में बाधा, कैरियर की राह में प्रयास में भटकाव से सफलता बाधित होती है। एकाग्रता में कमी तथा स्वप्न की दुनिया में विचरण से दोस्ती या सुख तो प्राप्त होता है किंतु अच्छा पद या प्रतिष्ठा प्राप्ति के मार्ग में प्रयास में विचलन से कैरियर बाधित हो सकता है। कैरियर की उम्र में शुक्र की दषाएॅ चले तो अभिभावक को बच्चों के व्यवहार में नियंत्रण रखते हुए अनुषासित रखते हुए लगातार अपने प्रयास करने पर जोर देने से कैरियर की बाधाएॅ दूर होती है। साथ ही ज्योतिष से सलाह लेकर यदि शुक्र का असर व्यवहार पर दिखाई दे तो ग्रह शांति के साथ नियम से दुर्गा कवच का पाठ लाभकारी होता है।



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क्यों हो जाता है कोई आक्रामक - मंगल की शांति से पायें राहत -

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क्यों हो जाता है कोई आक्रामक - मंगल की शांति से पायें राहत -

भारतीय वैदिक ज्योतिष में मंगल को मुख्य तौर पर ताकत और आक्रमण का कारक माना जाता है। मंगल के प्रबल प्रभाव वाले जातक आमतौर पर दबाव से ना डरने वाले तथा अपनी बात हर प्रकार से मनवाने में सफल रहते हैं। मंगल से मानसिक क्षमता, शारीरिक बल और साहस वाले कार्यक्षेत्र होते हैं। मंगल शुष्क और आग्नेय ग्रह है तथा मानव के शरीर में अग्नि तत्व का प्रतिनिधि करता है तथा रक्त एवं अस्थि का प्रतीक होता है। मंगल पुरूष राषि को प्रदर्षित करता है। मकर राषि में सर्वाधिक बलषाली तथा उच्च का होता है। मंगल के निम्न प्रकार से उच्च या अनुकूल होने पर बालक पर मंगल की आक्रामकता का पूर्ण प्रभाव दिखाई देता है। जिसके कारण जातक उर्जा से भरपूर तथा तेज होता है, जिससे तर्कषक्ति, विवाद तथा खेल में विषेष रूचि होती है। जिसके कारण उसमें आक्रामकता का ज्यादा प्रभाव होने से नियंत्रित तथा अनुषासित रख पाना कठिन होता है। यदि कोई व्यक्ति अपने गुस्से को नियंत्रित ना कर पायें एवं अति क्रोध, तोड़फोड़ करना, लड़ना या हिंसक होने लगे तो किसी विद्धान ज्योतिष से कुंडली में मंगल की स्थिति का विष्लेषण कराकर मंगलस्तोत्र का पाठ, तुला दान तथा मंगल की शांति कराना लाभकारी होता है। स्वअनुषासन में रखने एवं व्यवहार में नियंत्रण हेतु बचपन से हनुमान चालीसा का जाप करने की आदत डालना भी अच्छा होगा।


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