Monday, 14 September 2015

ब्रेन हेमरेज और ज्योतिष्य विश्लेषण

परिणामतः, काम के बोझ, तनाव, भाग-दौड़ के कारण मानव शरीर में कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जिनमें एक मस्तिष्क रक्तस्राव (ब्रेन हेमरेज) है। शरीर एवं मानसिक विकलांगता, लकवा तथा दर्दनाक मौत का कारण बनने वाले 'ब्रेन हेमरेज' के प्रकोप में आजकल तेजी से वृद्धि हो रही है। कभी इसका शिकार अधिक उम्र के लोग हुआ करते थे, लेकिन आधुनिक युग में यह कम उम्र के लोगों को भी मौत का शिकार बना रहा है। मस्तिष्क रक्तस्राव के मुखय कारण तो उच्च रक्तचाप, एन्यूरिज्म और आर्टिरियोवीनस मालफार्मेशन है। लेकिन मधुमेह, मोटापा, शराब, भाग-दौड़, दिमागी तनाव और धूम्रपान आदि ब्रेन हेमरेज की आशंका को बढ़ाते हैं। मधुमेह रोगियों तथा उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोग, जो रक्तचाप को नियंत्रण में नही रखते हैं, उनमें दिमाग की नस का फटना आम बात है। लेकिन कभी-कभी ऐसा भी देखने में आया है कि सामान्य रक्तचाप वालों की भी दिमागी नस फट जाती है, जिसे स्पांटेनियस हेमरेज कहते हैं। ऐसा मस्तिष्क के अंदर एन्युरिज्म, या आर्टिरियोवीनस मालफार्मेशन के कारण होता है। मस्तिष्क विशेषज्ञों (न्यूरो सर्जन) का मानना है कि एन्युरिज्म में दिमाग में खून की नलियों के अंदर एक प्रकार का गुब्बारा, रोग के कारण, फट जाता है, तो रोगी को ब्रेन हेमरेज हो जाता है और मरीज बेहोश हो जाता है, जबकि आर्टिरियोवीनस मालफार्मेशन में दिमाग में खून की नसों का एक असामान्य गुच्छा बन जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह गुच्छा पैदाइशी होता है और व्यक्ति की उम्र बढ़ने के साथ-साथ यह भी बढ़ता रहता है और एक समय ऐसा आता है कि मस्तिष्क का अधिक से अधिक रक्त इस आर्टिरियोवीनस मालफार्मेशन से हो कर जाने लगता है, जिस कारण मस्तिष्क के दूसरे भाग में, रक्त की आपूर्ति कम कर के, अधिकांश रक्त को अपने अंदर इक्ट्ठा कर लेता है। दूसरे भाग को रक्त की आपूर्ति नहीं मिल पाती। इस स्थिति को स्त्री लिंग फेनोमेना कहते हैं और इसमें आर्टिरियोवीनस मालफार्मेशन मस्तिष्क के दूसरे भाग में, रक्त की आपूर्ति कम कर के, अधिकांश रक्त को अपने अंदर इक्ट्ठा कर लेता है, जिसकी वजह से वह फट जाता है। एन्युरिज्म के रोगी का इलाज यदि गुब्बारा फटने के चार घंटे के अंदर शुरू हो जाए, तो रोग का पता लगाया जा सकता है और तुरंत शल्य चिकित्सा द्वारा फटे हुए गुब्बारे को सील कर दिया जाता है। एन्युरिज्म का इलाज जल्द न होने पर इसके दोबारा फटने की आशंका बहुत ज्यादा होती है। अगर पहले ब्रेन हेमरेज से रोगी बच भी जाए, तो दूसरी या तीसरी बार नस फटने पर रोगी का जीवित रहना मुश्किल हो जाता है। इसी प्रकार अर्टिरियोवीनस मालफार्मेशन में भी रोगी का जल्द इलाज होना आश्यक है। एन्युरिज्म, या अर्टिरियोवीनस मालफार्मेशन के कारण होने वाला ब्रेन हेमरेज युवा और मध्य वर्ग के लोगों में ज्यादा पाया जाता है, जबकि रक्तचाप और मधुमेह के कारण होने वाला ब्रेन हेमरेज बुजुर्ग लोगों में अधिक होता है। इसलिए जिस परिवार में किसी व्यक्ति को मधुमेह, या उच्च रक्तचाप की समस्या नहीं रही हो और उस परिवार के किसी व्यक्ति को ब्रेन हेमरेज हो जाता है, तो उसका कारण मधुमेह और रक्तचाप नहीं, बल्कि 75 प्रतिशत एन्युरिज्म, या आर्टिरियोवीनस मालफार्मेशन होता है। एन्युरिज्म और आर्टिरियोवीनस मालफांर्मेशन ज्यादातर 20 से 40 वर्ष के लोगों को ही होता है और इन्हीं लोगों पर पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियां होती हैं। इसलिए ऐसे मामलों में जरा भी देर नहीं करनी चाहिए तथा, जितनी जल्दी हो सके, जांच करवा कर इलाज करवाना चाहिए। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि एन्युरिज्म और आर्टिरियोवीनस मालफार्मेशन का रोग पुरुषों और महिलाओं में सामान्य रूप से पाया जाता है। लेकिन उच्च रक्तचाप के कारण होने वाला ब्रेन हेमरेज ज्यादातर पुरुषों में ही अधिक होता है, क्योंकि उन पर सामाजिक और व्यावसायिक तनाव अधिक होते हैं, जबकि एन्युरिज्म्म तथा आर्टिरियोवीनस मालर्फोशन का तनाव से कोई संबंध नही होता। यह तो खूनी नसों और नाड़ियों की कमजोरी है। नस फटने के बाद रोगी के सिर में अचानक बहुत तेज दर्द होता है और रोगी बेहोश हो जाता है, या रोगी को मिर्गी का दौरा आता है, या उसका एक हाथ, या पैर काम करना बंद कर देते हैं। यह रोग 10 साल के बच्चे को भी हो सकता है।
रोग के लक्षण : जब किसी व्यक्ति को लगातार सिर और गर्दन में तेज दर्द हो और आंखों के आगे अंधेरा छा जाता हो, जो आम दवाओं से ठीक नहीं हो रहा हो, तो इसे मामूली नहीं समझना चाहिए। इसका इलाज फौरन न्यूरो सर्जन से करवाना चाहिए। ब्रेन हेमरेज के यही लक्षण हैं। उपाय : बेन हेमरेज का एक मात्र उपाय शल्य चिकित्सा ही है। दवाइयों से यह ठीक नहीं होता। इसलिए जब भी सिर और गर्दन में दर्द हो और दवाइयों से ठीक नहीं हो रहा हो, तो शल्य चिकित्सा द्वारा ब्रेन हेमरेज से बचा जा सकता है। ब्रेन हेमरेज होने के बाद शल्य चिकित्सा के अलावा और कोई चारा नहीं रहता।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण : ज्योतिष के अनुसार ब्रेन हेमरेज प्रथम भाव, लग्नेश, सूर्य, बुध और मंगल के दुष्प्रभावों में रहने से होता है। काल पुरुष की कुंडली में प्रथम भाव सिर, मस्तिष्क का नेतृत्व करता है। इसलिए प्रथम भाव और लग्ेनश (प्रथमेश) अगर दुष्प्रभावों से रहित हो, तो जातक को मस्तिष्क से संबंधित रोग नहीं होता और इसके विपरीत होने पर रोग की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसी तरह ग्रहों में सूर्य भी सिर, मस्तिष्क का नेतृत्व करता है और शरीर में ऊर्जा के प्रभाव का कारक है। मंगल भी ऊर्जा का कारक है, लेकिन वह रक्त कणों का भी नेतृत्व करता है। बुध त्वचा और नसों का नेतृत्व करता है। रक्त नसों में बहता है। ब्रेन हेमरेज में, नस की कमजोरी से, रक्त के बहाव में कहीं रुकावट के कारण, गुब्बारा बन कर फट जाता है। कारण सिर की नसों में कमजोरी तथा उसमें बहने वाले रक्तचाप का उच्च होना है। इसलिए सूर्य, मंगल, बुध, लग्नेश और लग्न अगर दुष्प्रभावों से रहित हो कर बलवान हों, तो ब्रेन हेमरेज नहीं होता और इसी की विपरित स्थिति में ब्रेन हेमरेज होने की संभावना बढ़ जाती है। जब इन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा होती है और गोचर में इन्हीं ग्रहों की स्थिति कमजोर होती है, तब ब्रेन हेमरेज होता है। विभिन्न लग्नों में ब्रेन हेमरेज मेष लग्न : लग्नेश अष्टम भाव में, शनि षष्ठ भाव में, बुध लग्न में, सूर्य द्वितीय भाव में राहु-केतु से दृष्ट, या/ युक्त हो, तो जातक को ब्रेन हेमरेज होता है। वृष लग्न : गुरु लग्न में, मंगल दशम में, शुक्र षष्ठ भाव में बुध से युक्त हो और सूर्य सप्तम भाव में हो तथा चंद्र चतुर्थ, या अष्टम भाव में राहु से युक्त, या दृष्ट हो, तो संबंधित दशांतर्दशा में रोग हो सकता है। मिथुन लग्न : मंगल लग्न में हो, या लग्न पर दृष्टि रखे, बुध षष्ठ भाव में, अष्टम भाव में हो, या किसी भी भाव में अस्त हो, गुरु त्रिकोण भाव में हो और चंद्र पर मंगल की दृष्टि, या युति हो, तो मंगल या गुरु की दशांतर्दशा में ब्रेन हेमरेज होने की संभावना होती है। कर्क लग्न : मंगल और लग्नेश चंद्र कुंडली में इस प्रकार स्थित हों कि राहु, या केतु किसी एक से युक्त हो और दूसरे पर दृष्टि लगा रहे हों, अर्थात् अगर राहु-मंगल से युक्त है, तो उसकी दृष्टि चंद्र पर अवश्य पड़े और बुध लग्न में स्थित हो तथा इस पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक ब्रेन हेमरेज का रोगी होता है। सिंह लग्न : लग्नेश सूर्य, राहु, केतु से युक्त हो और बुध अस्त न हो कर लग्न में रहे और शनि से दृष्ट हो, मंगल इन स्थानों में रहे, तो जातक में, सूर्य या मंगल की दशांतर्दशा में, मस्तिष्क संबंधित रोग उत्पन्न होता है। कन्या लग्न : लग्नेश अस्त हो, लग्न में गुरु-मंगल की युति, या दृष्टि, सूर्य राहु-केतु से दृष्ट, या युक्त हो, चंद्र भी अस्त हो, तो जातक को मंगल की दशांतर्दशा में ब्रेन हेमरेज होता है। तुला लग्न : सूर्य-बुध लग्न में और बुध अस्त हो, मंगल सप्तम, या दशम भाव में हो, शुक्र-चंद्र तृतीय भाव में राहु-केतु से दृष्ट हों, गुरु लग्न पर दृष्टि लगाए, तो सूर्य, या गुरु की दशांतर्दशा में ब्रेन हेमरेज होता है। वृश्चिक लग्न : लग्नेश नीच का और चंद्र से युक्त तथा राहु से दृष्ट हो, लग्न में बुध, द्वादश भाव में सूर्य-शनि से दृष्ट, या युक्त हो, तो जातक को बुध, या शनि की दशांतर्दशा में ब्रेन हेमरेज होने की संभावना होती है। धनु लग्न : शुक्र और शनि लग्न भाव में युक्त हों और मंगल-शनि एक दूसरे पर दृष्टि रखें, लग्नेश गुरु जिन भावों में और बुध तृतीय भाव में सूर्य के साथ अस्त नहीं हो, तो ब्रेन हेमरेज का योग बनता है। मकर लग्न : मंगल लग्न में गुरु से दृष्ट हो, बुध पंचम भाव में गुरु से दृष्ट, या युक्त हो, लग्नेश अष्टम भाव में, सूर्य-शनि चतुर्थ भाव में हों और शनि अस्त हो, तो मस्तिष्क संबंधित रोग का योग बनाते हैं। कुंभ लग्न : शनि गुरु से युक्त हो कर पंचम भाव में हो, मंगल लग्न पर दृष्टि रखे, सूर्य लग्न में हो और बुध अस्त हो, राहु-केतु पर मंगल की दृष्टि हो और राहु-केतु लग्न पर दृष्टि रखें, तो ब्रेन हेमरेज जैसे रोग देते हैं। मीन लग्न : शुक्र लग्न में बुध से युक्त हो और बुध अस्त नहीं हो, सूर्य द्वादश भाव में राहु-केतु के प्रभाव में हो, लग्नेश शनि से युक्त सप्तम भाव हो और त्रिक भावों में रहने से ब्रेन हेमरेज का योग बनाते हैं। शनि, या बुध की दशांतर्दशा में रोग की संभावना प्रबल होती है।

अंकशास्त्र और आपका स्वास्थ्य

अंकशास्त्र की उपयोगिता जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लक्षित होती है। जातक का स्वभाव, वाहन, मकान व लॉटरी के नंबर, कंपनी का चयन, मेलापक, शेयर बाजार आदि सभी में अंकों की उपयोगिता सर्वोपरि होती है। आपके मूलांक में ही वे सभी योग्यताएं, प्रभाव और स्वास्थ्य सन्निहित है जो आपका मार्गदर्शन करते हैं। यदि आप स्वस्थ हैं तो आशा है कि आप इस संसार में कुछ कर पाएंगे और यदि सदा बीमार ही रहते हैं तो दवाईयां खाने या पड़े-पड़े कराहते रहने के अतिरिक्त और क्या करेंगे? (एक अरबी कहावत) यहां हम सर्वप्रथम स्वास्थ्य को इसलिए ले रहे हैं कि स्वास्थ्य मनुष्य की सबसे अमूल्य व महत्वपूर्ण धरोहर है। जिंदगी की हजारों सौगातें भी स्वास्थ्य की बराबरी नहीं कर सकती। आपकी जन्म तारीख तो आपको मालूम ही है। उसी को मूल अंक में परिवर्तित करें और देखें कि आपको क्या-क्या बीमारी हो सकती है और आपको उनसे किस प्रकार बचना है। आपके मूलांक में वे सभी गुप्त योग्यताऐं प्रभाव और स्वास्थ्य सन्निहित है, जिनका यदि आप ध्यान रखेंगे तो अस्वस्थ्य होने पर भी निम्नलिखित सुझावों की सहायता से आप अपना बचाव कर सकते हैं। मूलांक ज्ञात करने का तरीका यह है कि जैसे आपका जन्म किसी भी माह की 1, 10, 19, 28 तारीख को हुआ है तो आपका मूलांक 1 है। 2, 11, 20, 29 तारीख का मूलांक 2 है। 3, 12, 21, 30 तारीख का मूलांक 3 है। 4, 13, 22, 31 तारीख का मूलांक 4 है। 5, 14, 23 तारीख का मूलांक 5 है। 6, 15, 24 तारीख का मूलांक 6 है। 7, 16, 25 तारीख का मूलांक 7 है। 8, 17, 26 तारीख का मूलांक 8 है। 9, 18, 27 तारीख का मूलांक 9 है। मूलांक 1: जिन व्यक्तियों का मूलांक 1 होता है वे किसी न किसी हृदय रोग से पीड़ित रहने की प्रवृत्ति होती है। हृदय रोग प्रायः मूत्र रोग आदि से संबंधित रोगों द्वारा उत्पन्न हो जाता है। धड़कन तेज होना, रक्त का ठीक तरह से संचार न होना और बुढापे में रक्तचाप। उनको आंख की परेशानी हो सकती है, अतः समय-समय पर नजर का परीक्षण कराते रहना चाहिए। आधुनिक हृदय रोग चिकित्सा में रोग ग्रस्त व्यक्ति को आराम करने की सलाह दी जाती है, परंतु यह रोग अधिकांशतः उन्हीं व्यक्तियों को होता है जो आरंभ से ही श्रमहीन कार्य करते हैं और अनेक कारणों से अपने शरीर को स्थूल बना लेते हैं। ऐसे व्यक्तियों को निम्न निर्देशों का पालन अवश्य करें। इनसे वे लोग हृदय रोगों से बचे रहेंगे। व्यायाम: सूर्य नमस्कार आसनों का क्रम से एक चक्र निम्न प्रकार करें। लेकिन हृदय रोग हो चुका है तो न करें। व्रत: इन्हें रविवार का व्रत रखना चाहिए। भोजन एक समय करना चाहिए और नमक नहीं खाना चाहिए। हृदय रोगियों के लिए नमक वैसे भी ठीक नहीं होता। यदि वे नमक का त्याग कर दें तो और भी अच्छा है। उपासना: इन लोगों का इष्ट सूर्य है। इन्हें पूर्व दिशा में उगते हुए सूर्य के दर्शन करने चाहिए और उसी की उपासना भी करना चाहिए। जड़ी, बूटी व खाद्य पदार्थ: केसर, लौंग, संतरा, नीबू, खजूर, अदरक, जौ, शहद आदि। इन्हें शहद का अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए। अनुकूल रंग: इनके लिए सबसे उपयुक्त और अनुकूल रंग सुनहरी पीला या पीलापन लिए हुए भूरा होता है। अनेक ज्योतिषियों रंगों का विधान तो कर दिया परंतु वे यह भूल गये कि हर व्यक्ति समाज के अनुकूल ही कपड़े पहनेगा और पहनने भी चाहिए। पीले या सुनहरे रंग के कपड़े पहनकर कोई भी व्यक्ति बाजार में घूमना पसंद नही कर सकता। आपको अपनी पोशाक या परिधान उसी प्रकार के बनाने होंगे जो समाज में भद्दे अथवा अशोभनीय न समझे जाएं। इसके लिए सबसे अच्छा उपाय यह है कि आप अपने घरों की दीवारों का रंग अपने अनुरूप रखें और वस्त्रों में अपने समान को हमेशा उसी रंग का रखें। यदि आप टाई पहनते हैं तो उसमें सुनहरी धारियां हों। इससे आपकी पोशाक का मुख्य अंग आपके अनुकूल हो जाएंगे। 1 मूलांक वाली महिलाऐं सुनहरे पल्लू वाली साड़ी पहने तो वह आपके अनुकूल रहेगी। ब्लाउज भी सुनहरी धारी वाला या भूरे पीले रंग का पहने तो अच्छा रहेगा। रत्न व धातु: माणिक्य आपका मुख्य रत्न है। इसे अंग्रेजी में रूबी कहा जाता है। धातुओं में स्वर्ण को प्राथमिकता देनी चाहिए। अंगूठी आदि भी स्वर्ण में ही बनवाकर पहननी चाहिए। सोने की अंगूठी में रत्न इस प्रकार जड़वायें कि वह आपकी त्वचा से स्पर्श करता रहे। महत्वपूर्ण: जीवन के 19वें, 28वें, 37वें, 55वें, 64वें वर्ष में उनके स्वास्थ्य में अच्छा या बुरा कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन आएगा। अक्तूबर, दिसंबर तथा जनवरी में उन्हें स्वास्थ्य की ओर से सावधान रहना चाहिए और अधिक परिश्रम से बचना चाहिए। परेशानी के समय निम्न यंत्रों को अपने घर की दीवार पर या कागज पर अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार स्वर्ण, चांदी, तांबे के ऊपर अंकित कराकर हमेशा अपने पास रखें। आपकी परेशानी दूर होगी। अंकित करने के पश्चात यंत्र की पंचोपचार पूजा अवश्य करें। मूलांक 2: जिन व्यक्तियों का मूलांक 2 होता है वह प्रायः पेट से संबंधित रोगों से पीड़ित रहते हैं। इन्हें प्रायः अपच, गैस, अफरा, मंदाग्नि या अतिसार इत्यादि रोग ग्रसित कर सकते हैं। इन्हें चाहिए कि वे आरंभ से ही भले ही इन्हें कोई भी रोग न हो अपने खान-पान पर नियंत्रण रखना चाहिए। नियमित भोजन करें और सदैव भूख से कम भोजन करें। व्यायाम: इस मूलांक वाले व्यक्तियों को योगसनों में मयूरासन, सर्वांगासन, उत्तानपादासन और पवनमुक्तासन का नियमित व्यायाम करना चाहिए। भले ही दस मिनट के लिए करें। इन्हें चाहिए कि रात का खाना दिन टलने के साथ ही कर लेना चािहए, जिससे अच्छी नींद आएगी और भोजन से रस बनने में मदद मिलेगी। सूर्य नमस्कार भी अति उत्तम आसन है। रात को ऐसे पदार्थों का सेवन करें जिनसे गैस बनती हो। व्रत: ऐसे व्यक्तियों को सोमवार का व्रत करना चाहिए। साथ ही पूर्णिमा एवं प्रदोषत व्रत भी रखें। उपासना: आपके आराध्यदेव श्री शंकर जी है। प्रतिदिन घर में या मंदिर शिवजी का पूजन करें तथा शिव स्तोत्र, शिव चालिसा का पाठ करना चाहिए। जड़ी बूटी व खाद्य पदार्थ: आपके लिए प्रमुख खाद्य पदार्थ है गोभी, शलजम, खीरा, खबूजा, अलसी इत्यादि। अनुकूल रंग: हल्का हरा रंग आपके लिए उपयुक्त है। काले और अत्यधिक गहरे रंगों से बचना चाहिए तथा हल्के हरे रंग का रूमाल सदा अपनी जेब में रखना चाहिए। घर के पर्दे, सोफे, आदि हरे रंग के ही रखें। घर में चार-छह गमले भी रखें जिनमें हरे पौधे लहलहाते रहें। रत्न व धातु: आपके लिए सर्वाधिक लाभकारी रत्न मोती है। धातु के रूप में चांदी आवश्यक है। पुरूष चांदी में मोती जड़वाकर पहनें व महिलाएं नाक में छोटे-छोटे मोती जड़वाकर पहने तो अप्रत्याशित लाभ होगा। महत्वपूर्ण: आपके जीवन के 20,25,29,43,47,52वें तथा 65वें वर्ष में स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन होगा। जनवरी, फरवरी तथा जुलाई में आपको रोगों तथा अधक परिश्रम से बचकर रहना चाहिए। मूलांक 1 में बताई गई विधि के अनुसार परेशानी के समय निम्न यंत्रों का उपयोग अवश्य करें। मुलांक 3: इस अंक के व्यक्तियों को स्नायु-संस्थान निर्बल होने से हड्डियों में दर्द और थकान की शिकायत रहेगी। चर्म रोग की भी संभावना है। व्यायाम: इन व्यक्तियों को शीर्षासन, धनुरासन एवं सूर्य नमस्कार इत्यादि योगासनों का अभ्यास करना चाहिए। यदि योगासनों से अथवा वैसे ही अधिक थकान महसूस करे तो शवासन भी करें। यदि आप शवासन या उसी प्रकार के अन्य योगासनों आदि की सही प्रक्रिया जान लेंगे तो आपको थकान की शिकायत से सदा के लिए छुटकारा प्राप्त हो जाएगा। व्रत: आपको पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। यदि बीमार हो तो गुरुवार को भोजन न करें। उपासना: आपको श्री विष्णु की उपासना करना चाहिए। विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र का जप करें तथा श्रीसत्यनारायण जी की कथा करें या करावें। जड़ी-बूटी व खाद्य पदार्थः चुकंदर, चैरी बेर, स्ट्राबेरी, सेब, शहतूत, नाशपाती, जैतून, अनार, अनानास, अंगूर, केसर, लौंग, बादाम, अंजीर व गेहूं इत्यादि पदार्थ आपको अनुकूल रहेंगे। अनुकूल रंग: आपको पीला रंग सर्वथा अनुकूल है। रत्न व धातु: पुखराज आपके लिए सर्वश्रेष्ठ रत्न है। धातु स्वर्ण है। सवर्ण मुद्रिका में पुखराज जड़वाकर तर्जनी उंगली में पहनें। महत्वपूर्ण: 12, 21, 39, 48 तथा 57वें वर्ण स्वास्थ्य में परिवर्तन की दृष्टि से महत्वपूर्ण होंगे। दिसंबर, फरवरी, जून तथा सितंबर में स्वास्थ्य के प्रति विशेष सावधान रहना चाहिए तथा अधिक परिश्रम से बचना चाहिए। वर्णित विधि के अनुसार निम्न यंत्र धारण करें व परेशानियों से छुटकारा पायें। मूलांक 4ः इस मूलांक के व्यक्ति प्रायः रक्त की कमी से पीड़ित रहते हैं, जिसे अंग्रेजी में एनीमिया कहते हैं तथा रहस्यमय रोगों से ग्रस्त होने की संभावना है जिनका निदान कठिन होगा। वे न्यूनाधिक उदासीपन, रक्ताल्पता तथा सिर एवं कमर दर्द रहेंगे। इन्हें विद्युत चिकित्सा तथा सम्मेहन विद्या से लाभ होगा। थोड़ा सा ही बीमार होने पर रक्त की भी कष्ट रहेगा। इसलिए इन लोगों को भोजन में ऐसे तत्वों का समावेश रखना चाहिए जिनमें लौह तत्व प्रधान हो। व्यायाम: यह व्यक्ति आरंभ से ही कुछ योगासन करते रहेंगे तो उन्हें रक्ताल्पता का कष्ट ही नहीं होगा। सूर्य नमस्कार, शीर्षासन, सर्वांगासन तथा श्वसासन करना चाहिए। यदि कोई से भी दो आसन करने के पश्चात वे लोग शीर्षासन को सही ढंग से प्रतिदिन नियमपूर्वक पांच मिनट भी कर लेंगे तो इन्हें कभी भी रक्त की कमी अथवा उसके अशुद्ध होने की शिकायत नहीं होगी। व्रत: इन्हें सोमवार और गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिए। गणेश चतुर्थी का व्रत समस्त प्रकार से शुभ रहेगा। उपासना: इन्हें श्रीगणेश भगवान की उपासना करना चाहिए। घर में उनकी प्रतिमा या चित्र भी रख सकते हैं। श्रीगणेश जी का उपासना से धन-धान्य की कमी नहीं रहेगा। नारदपुराणोक्त संकष्टनाशक श्री गणेश स्तोत्र का नियमित पाठ करें। जड़ी-बूटी व खाद्य पदार्थः हरी सब्जियों का प्रयोग अत्यधिक करें जैसे पालक, लौकी, तोरई मेथी, इत्यादि। नशीले पदार्थ व अत्यधिक मसालेदार पदार्थों का सेवन से बचना चाहिए। अनुकूल रंग: चमकदार नीला रंग इनके लिए अनुकूल है। टाई भी इसी रंग की पहनें या नीले रंग का रूमाल तो अवश्य हमेशा अपने पास रखना चाहिए। रत्न व धातु: आपके लिए सौभाग्यवर्धक रत्न नीलम है। नीलम अनुकूल न हो तो गोमेद धारण करें तो धन धान्य की कमी कभी नहीं रहेगी। नीलम या गोमेद पंच धातु की अंगूठी में मध्यमा उंगली में धारण करें। महत्वपूर्ण: 13, 22, 31, 40, 49 और 58वां वर्ष स्वास्थ्य में परिवर्तन की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहेंगे। जनवरी, फरवरी, जुलाई, अगस्त व सितंबर माह में स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें व अत्यधिक परिश्रम से बचें। वर्णित विधि अनुसार निम्न यंत्रों का प्रयोग करें। मूलांक 5 इस अंक वाले व्यक्ति प्रायः सर्दी जुकाम व फ्लू इत्यादि से पीड़ित रहते हैं। इन्हें नर्वस ब्रेक डाउन का भी भय बना रहता है। थका लेने वाली प्रवृति हेती है। वे मन से बहुत अधिक सोचतेहैं और स्नायविक रोगों तथा अनिद्रा से ग्रस्त हो जाते हैं। निद्रा, विश्राम और शांति इनके लिए सर्वोत्तम औषधियां है। व्यायाम: इनके लिए शवासन ठीक रहेगा। यदि नजला जुकाम रहता है तो जलनेति आदि हठयोग की क्रियाऐं करनी चाहिए। नवर्स टेंशन रहता है तो शवासन करें। व्रत: इन लोगों को पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। इसके साथ श्री सत्यनारायण कथा करें या करावें। उपासना: इनके प्रधान देवता श्री लक्ष्मीनारायण भगवान है। इनकी पूजा करना चाहिए और उन्हीं से संबंधित श्रीयंत्र का पाठ करना चाहिए। जड़ी-बूटी व खाद्य पदार्थः गाजर, जौ व सूखे मेवे इत्यादि है। महत्वपूर्ण: 14, 23, 41 तथा 50वां वर्ष स्वास्थ्य परिवर्तन की दृष्टि से महत्वपूर्ण होंगे। जून, सितंबर तथा दिसंबर से स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हुए कठिन परिश्रम से बचना चाहिए। अनुकूल रंग: इसके लिए हरा बहुत ही अनुकूल और सौभाग्यवर्धक है। वैसे पेस्टल कलर भी अनुकूल रहेंगे। रत्न व धातु: पन्ना धारण करना श्रेष्ठ है। पन्ना हमेशा स्वर्ण धातु में ही धारण करें। मूलांक 6ः इस अंक वाले को गले, नाक और फेफडे़ के ऊपरी हिस्से के रोगों से ग्रस्त होने की संभावना रहती है। साधारणतः इनका शरीर गठीला होता है। विशेषकर खुल वातावरण में या देहात के रहने वालों का। यूं तो आजकल फेफड़ों से संबंधित तपेदिक रोगों का इलाज साधारण बात हो गयी है। परंतु कुछ अन्य रोगों का संबंध भी फेफड़ों से है। मूलतः यह कामवासना का प्रधान अंक है। इन्हें इस प्रकार के रोगों के होने का भी भय बना रहता है। ेव्यायाम: इन व्यक्तियों को प्रायः स्वच्छ एवं शुद्ध वायु में दीर्घ श्वांस लेना चाहिए। यदि यह प्रणायाम की सरल प्रक्रिया सीख लें तो इनका स्वास्थ्य हमेशा ठीक रहेगा। प्राणायाम के साथ शलभासन करना भी अधिक उपयोगी रहेगा। व्रत: इन्हें शुक्रवार का व्रत करना चािहए। महिलाऐं मां संतोषी का व्रत करें। उपासना: इनके प्रधान देवता श्री कतिवीर्याजुन हैं। अतः इन व्यक्तियों को इनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। जड़ी-बूटी व खाद्य पदार्थः इनके लिए सर्वोत्तम खाद्य पदार्थ है दालें, मूली, खरबूजा, अनार, सेब, नाशपाती, बादाम, अंजीर व अखरोट इत्यादि है। अनुकूल रंग: सभी प्रकार के हल्के नीले रंग इनके लिए अनुकूल है। गुलाबी रंग भी अच्छा है। परंतु गहरे रंग कभी भी नहीं पहनना चाहिए। रत्न व धातु: इनका रत्न हीरा व धातु चांदी या प्लैटिनम में ही धारण करना चाहिए। महत्वपूर्ण: 15, 24, 42, 51 तथा 60वें वर्ष स्वास्थ्य परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण है। मई, अक्तूबर, नवंबर में स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हुए कठिन परिश्रम से बचना चाहिए। मूलांक 7 इस अंक वाले को प्रायः फोड़े-फुन्सी या अन्य प्रकार के चर्म रोग होनेकी संभावना रहती है। इस रोग से संबंधित शिकायत बनी ही रहेगी। अन्यों के अपेक्षा यह चिंता तथा चिढ़न से अधिक शीघ्र प्रभावी होते हैं। जब तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहे वे कितना भी कार्य कर सकते हैं। किंतु परिस्थितियों की तथा व्यक्तियों की चिंताऐ उन्हें घेर लेने पर वे ऐसी-ऐसी बातें सोचने लगते हैं जो वस्तु स्थिति से कहीं बदतर है। वे शीघ्र निराश तथा उदास हो जाते हैं। वे अपने वातावरण के प्रति अति संवेदनशील होते हैं। अपने प्रशंसकों के लिए कोई भी दायित्व प्रसन्नता से अपने ऊपर ले लेते हैं। अपनी रुचि का कार्य करने में असामान्य रूप से चेतन रहते हैं किंतु वे भौतिक के बजाय मानसिक रूप से अधिक सबल होते हैं। इनका शरीर दुबला-पतला होता है और वे अपनी सामथ्र्य से कहीं अधिक कार्य करने का प्रयास करते हैं। इनकी त्वचा विशेष कोमल होती है। जरा सी भी खरोंच इन्हें परेशान कर देती है। अथवा पसीने के संबंध में उन्हें कोई विचित्र बात हो सकती है। ेव्यायाम: चर्म रोगों से बचाव हेतु इन्हें हठ योग की शंख प्रक्षालन विधि का अभ्यास करना चाहिए और यदा-कदा इसकी प्रक्रिया करते रहने चाहिए। सूर्य नमस्कार भी इस प्रकार के रोगों से बचने की सरल प्रक्रिया है। व्रत: इन लोगों को मंगलवार के व्रत रखना चाहिए और हनुमान जी के दर्शन करना चाहिए। उपासना: श्रीनृसिंह भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए। इनकी उपासना से इस मूलांक वालों के सारे कष्ट दूर होंगे तथा धन धान्य की वृद्धि होगी। जड़ी-बूटी व खाद्य पदार्थः गोभी, खीरा, अलसी, मशरूम, सेब, अंगूर व फलों का रस इत्यादि इन्हें सेवन करना लाभकारी रहेगा। अनुकूल रंग: सफेद, हल्का हरा, हल्का पीला रंग अनुकूल व शुभ है। रत्न व धातु: इन्हें लहसुनिया सौभाग्यवर्धक रहता है। जिसे स्वर्ण में जड़वाकर पहनें। महत्वपूर्ण: 7, 16, 25, 34, 43, 52 तथा 61वें वर्ष स्वास्थ्य परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण है। जनवरी, फरवरी, जुलाई व अगस्त में स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। मूलांक 8ः इस मूलांक के व्यक्ति जिगर से संबंधित रोग लगे रहते हैं। वित्त तथा आंतों की परेशानियों से ग्रस्त हो सकते हैं। इन्हें सिरदर्द तथा गठिया रोग की भी प्रवृत्ति होत है। लीवर खराब होने से अन्य बीमारियां भी हो सकती है। इसलिए यथासंभव इन रोगों से बचने का प्रयत्न करना चाहिए। ेव्यायाम: इन्हें सूर्य नमस्कार, भुजंगासन, धनुरासन, हलासन और शीर्षासन बहुत उपयुक्त हैं इन आसनों की यह विशेषता है कि इनसे जहां लीवर से संबंधित रोग दूर होंगे साथ ही शरीर भी सुदृढ होकर रोग प्रतिरोधक शक्ति से भरपूर होगा। व्रत: शनिवार का व्रत उपयोगी रहेगा। भोजन एक समय करें व खटाई व नमक का सेवन न करें। उपासना: श्री शनिदेव की उपासना करें। तेल कपड़ा तथा काले तिलों का दान करें। जड़ी-बूटी व खाद्य पदार्थः मांस व घी से बच कर रहें। यथासंभव ताजे फल साग सब्जियों का सेवन करना चाहिए। अनुकूल रंग: काला। काले रंग की पैंट इत्यादि तो प्रायः पहनी जाती है। टाई भी काली धारियों की पहनेंगे तो अच्छा रहेगा। घर से सोफे के कुशन आदि भी काली धारी वाले हो सकते हैं। रत्न व धातु: रत्न नीलम है। इसे लौह की अंगूठी में जड़वाकर पहनें। महत्वपूर्ण: 17, 26, 35, 44, 53 तथा 62वें वर्ष स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहेंगे। दिसंबर, जनवरी, फरवरी तथा जुलाई में स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें। मूलांक 9ः इन अंक वालों को न्यूनाधिक सभी प्रकार के ज्वर, खसरा, चेचक, चर्म रोग तथा नासारन्ध्र से संबंधित जुकाम आदि रोगों से पीड़ित हो सकते हैं। इन्हें चाहिए कि वे इन रोगों से बचाव रखने का भरपूर प्रयत्न करें। ेव्यायाम: यदि जुकाम आदि नासारन्ध्र से संबंधित रोग हो तो इन्हें जलनेति आदि हठयोग की क्रियाऐं करनी चाहिए। इससे जहां इनके जुकाम की शिकायत हमेशा के लिए दूर होगी वहीं जुकाम के प्रभाव से होने वाले रोग समय से पूर्व बालों का सफेद होना या नेत्र ज्योति क्षीण होना भी नहीं होंगे। इन्हें प्राणायाम दीर्घ श्वासोच्छवास का भी अभ्यास करना चाहिए। इससे चेहरे पर आभा उत्पन्न होगी। सूर्य नमस्कार की क्रिया भी लाभदायी है। व्रत: इन लोगों को मंगलवार का उपवास करना चाहिए व भोजन से पूर्व श्रीहनुमान जी महराज के दर्शन करना चाहिए। उपासना: इन्हें श्री हनुमान जी को ईष्ट मानकर इनकी आराधना करने के साथ हनुमानाष्टक हनुमान चालीसा व बजरंग बाण का प्रतिदिन पाठ करना चाहिए। जड़ी-बूटी व खाद्य पदार्थः गरिष्ठ भोजन तथा मदिरापान से हमेशा बच कर रहें। प्याज, लहसुन, सरसों, अदरक, मिर्च इत्यादि का सेवन उचित रहेगा। अनुकूल रंग: लाल। लाल रंग का रूमाल हमेशा अपने पास रखें तथा इसी रग का अधिकाधिक प्रयोग करें। रत्न व धातु: मूंगा। स्वर्ण या तांबे की अंगूठी में जड़वाकर पहनें। महत्वपूर्ण: 9, 18, 27, 36, 45 तथा 63वें वर्ष स्वास्थ्य की परिवर्तन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। अप्रैल, मई, अक्तूबर व नवंबर में स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें।

Electing right time for starting (मुहर्त)

Every moment in life is an indication of the time ahead. Practically It is not possible to select time for our routine activities like going to office for work/job, coming back home, etc. But choosing the most auspicious moments for major events in our life, electional astrology should be considered, because work started in an auspicious moment is likely to be successfully accomplished. If you take care of the beginning, end will take care of itself is the rationale of Muhurata. In fact, Muhurata is a measure of time which means 2 Ghatis = 1 muhurata = 48 minutes. Muhurata signifies auspicious moment when planetary transition favors us in order to accomplish our work successfully. Once the auspicious moment is decided, our next step is to match its auspiciousness with the person concerned. Sun and Moon play significant role in Muhurata. An auspicious day is decided by Panchang Shudhi that is Tithi, Vaar, Nakshatra, Karan and Yoga are taken into consideration. After selection of day one is to choose an auspicious point of time which is called lagna shudhi. Decision of one’s destiny, wealth, richness and longevity is done by the creator at the time of his/her birth itself. The birth time of the child is an auspicious time of his life which has stored in itself all the data of the ups and downs i.e. auspicious and inauspicious moments. In the similar manner, muhurata of an important work takes care of the future of that work. For example Muhurata for marriage works as a window to preview the status of married life. And selection of time for a entering into a new house decides the happy and peaceful environment at home. This is the theory which is the root cause of its importance in life and that is the reason, by choosing the most auspicious moments; we can turn that work in our favour. Vedic astrology is based on three principles - 1. Sidhanta 2. Samhita 3. Hora Hora astrology deals with the analysis of native’s horoscope. Sidhanta astrology calculates planetary transition, and lunar and solar calendars. In Samhita astrology muhurata, rising and setting of planets,. Matching etc. are considered and analysed. In this way, Muhurata is an important part of samhita Astrology. For calculation of Muhurata, Muhurat chintamani, the main scripture, is written by Ram Daivagya who was the younger brother of Nilkantha. The most famous interpretation on Muhuratachintamani known as Peeyushdhara was done by Shri Govind, son of Nilkantha. Selection of time (Muhurata) is decided in the following ways- 1. Ask the native, for which event he wants the muhurata to be decided and the favorable period i.e. which month, day etc suit him best. 2. Then select the month based on the event. 3. To take out the auspicious time for marriage, month may be selected on Sun’s strength also. 4. The month should be purified. Keeping in view planetary strength, holashatak, pitra paksha, combustion of Venus and Jupiter etc. 5. Panchang shudhi and lagna shudhi should be done. Panchang shudhi means - a good lunar day, beneficial week day, an auspicious constellation, a good yoga and a fertilizing karana. In the same way lagna shudhi should be done. 6. Decide chandra bal after calculating Moon’s strength. Avoid debilitated Moon and the transit period of Moon in 4, 8, 12 rashi from birth rashi. 7. The best Tithis should be selected and tell the native accordingly. Then select two or three tithis for commencing the work. 8. Now, to find out the auspicious time perform lagna shudhi. If the native is short of time and can not wait for months to accomplish the work, month purification may be avoided and Muhurta is selected just after panchang shudhi and lagna shudhi. If, the native is unable to afford even this much period then just perform lagna shudhi. If possible time can be selected on the basis of an auspicious hora or chaughadia. One more opinion which is prevalent about the Muhurata is whenever one has high spirit to perform the task, it is the best muhuratha..Secondly, the strength of lagna takes precedence over planetary strength. Muhurata taken out on the basis of lagna shudhi is more auspicious than any other auspicious tithi. This rule is applicable in that case, when it becomes difficult to find out an auspicious tithi. Muhurata can be calculated just after lagna shudhi. Abhijit Muhurata is also considered very important in selecting auspicious time. Abhijit muhurata is a period of 48 minutes which stays 24 minutes before and 24 minutes after mid-day or mid night. Work started in Abhijit Muhurata gets successfully accomplished. Abhijit Muhurata can be used in case one is short of time. Our scholars and seers of astrology stand uniformly at least on the subject of calculation of Muhurata. Generaly, they have difference of opinions in predictive astrology and differ more on remedial measures. It may be because many items are related to planets and remedies suggested either in form of donation, immersion or in acceptance of those items by our astrologers. Some astrologers emphasize on chanting the mantras to ward off the malefic effects. Diversification of opinion is a common phenomemon among the astrologers since long. But astrologers win the faith of masses in elective astrology as base of calculating the muhurata is same, hence they come out with the same muhurata for any important event. Subject like Muhurata has been widely written by our astrologers, but the discussion regarding its basis of the calculation has not been checked. That is why, Muhurata can not be termed scientific rather it is left with the crutch of faith and reverence only. For example selection of day and time to perform marriage is not sufficient to predict marriage performed in this period shall yield fruitful results. A majority of astrologers have tested the importance of muhurata for successful accomplishment of the work and found failure if work is done without considering Muhurata. So, it is mandatory to utilize electional astrology in life in order to make our life more prosperous and happy.

Marital problems

The 7th house of the horoscope relates to partnership, marriage, spouse and sexual relationship. The sign falling in the 7th house, and any benefic or malefic influence of planets on it and its lord, correspondingly reflects on the married life of the individual. From every Lagna, the 7th house is diametrically opposite, the two have different characteristics (Fiery, Earthy, Airy or Watery), and their lords are seldom friendly. Hence some difference in attitude or opinion between the husband and wife is natural. Marital problems become unbearable when the 7th house, its lord, Jupiter and Venus are also afflicted.
Besides the 7th house, the other houses connected with married life are the 2nd house (family and longevity of spouse), the 4th house (home and family happiness), 5th house (love and progeny), the 8th house (duration of married life) and the 12th house (bed comforts). Affliction of these houses, Kalatrakarka Venus, and Jupiter (Karka for husband) by Saturn, Mars, Rahu, Ketu, and the Sun to a lesser degree, create problems in married life in keeping with the nature of the afflicting planet. Mars and Ketu cause hot temper, quarrel, accident and even death. Rahu causes unorthodox marriages, unfaithfulness and sudden shortcut in married life. Saturn delays and make the married life dull and dreary. The combined affliction by two or more of these planets of marriage factors, without any favourable benefic aspect, makes married life severely problematic and in extreme cases the native is denied conjugal bliss or it is short lived.
Astrological reasons for widowed
1. Weak and afflicted 8th house or 8th lord, and 3rd house or 3rd lord (i.e., 8th to 8th house) in the girl's horoscope results in widowhood.
2. Cruel impact of Mars is invariably seen in the horoscopes of widows. Mars as the 8th lord remaining debilitated or combust causes widowhood at young age during the major or sub-period of Mars.
In addition, adverse transit of malefic planets also cause sudden problems in married life as under :
1. Transit of Saturn is always very important in causing damage to marriage. If Saturn happens to be the 7th or 8th lord in a nativity, the Sadesati period brings tense moments. Ashtam Shani, Ardhastama Sani, and transit Saturn crossing the ascendant, the 7th house or the 8th house from Lagna also causes discordance in married life.
2 Transit of Mars in 12, 1, 2, 4, 7 and 8th house from the ascendant creates havoc in the marriage. The retrogression period when Mars transits over the 4th house from Lagna is also problematic.
3. Transit of Rahu over the 12th, 1st, 7th or the 8th house from the ascendant is also troublesome.

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Saturday, 12 September 2015

Health Problems and Astrological analysis

Health is wealth' highlights the importance of health. A healthy person only can work hard, achieve success, earn well and live happily. On the contrary, a wealthy but sick person cannot enjoy good food and other luxuries available to him, his wealth decreases and he remains unhappy. The Vedic science of astrology, through analysis of one's horoscope, correctly foretells about the nature and timing of disease which enables him to take timely preventive measures and remain happy.
The disease signification of different planets is as under :
1. Sun - Vitality, digestion, bile disturbance, high fever, head, brain, back and head diseases.
2. Moon - Cold, cough, chest, digestion, blood, mind and sleep related diseases.
3. Mars - Stomach ache, fever, blood and muscle diseases, injuries from fi re/arms and boils.
4. Mercury - Mental and nervous weakness, speech defect, allergy, nose, throat infection and skin diseases.
5. Jupiter - Liver, pancreas, fat, vertigo, breathing and cough problem.
6. Venus - Eyes, pancreas, kidney, urinary and generative organ diseases.
7. Saturn- Depression, digestion, constipation, leg ailments, chronic diseases like rheumatism and paralysis and injury from stone/tree.
8. Rahu - Mental confusion, poison, snake-bite, heart palpitation, leprosy and diffi culty in diagnosis of disease.
9. Ketu - Fear, phobias, boils, injury, physical and mental agony.
Strong Lagna, Lagna lord, the Sun and the Moon give sound health and occasional minor ailments. When the Sun and Lagna lord are posited in 6th, 8th or 12th house or conjoined with or aspected by their lords, the person frequently suffers from fever and stomach ailments. If Lagna lord and Rashi (Moon sign) lord are associated with 6th, 8th or 12th house or their lords the person has weak body and is susceptible to disease. When the Moon is weak and receives evil aspect, the individual frequently suffers from cold, cough and chest complaint. The conjunction of the Sun and the Moon in Kendra or their exchange of signs, adversely affects individual's health. Evil effect on the Lagna, the Sun and the Moon decreases disease resistance power of the body. The Lagna in Papkartari Yoga formed by Saturn, Mars, Rahu and Ketu spoils health and eyesight.
6th, 8th and 12th house
When there are malefic planets in 6th house or 6th lord conjoined with malefics occupies Lagna or 8th house, the native frequently suffers from disease, injury and wound. The location of 6th house karaka planets (Mars and Saturn) in Lagna, or in 6th house from Moon also indicates injury/ wound to the native.
The 6th or 8th house lord with Mars in 5th house cause stomach ailment. If 6th lord with malefic planet is posited in 7th or 8th house, it causes boil in rectum or piles.
Mars and Ketu in 6th or 8th house cause injury or operation in lower abdomen or rectum.
When planets in 6th house and 6th lord are aspected by Saturn or Rahu, the individual remains perennially ill.
Mars and Saturn in 6th house give related ailments. Mars causes stomach ache, injury, muscle and blood diseases, while Saturn causes problem in legs, rheumatism and lameness. Saturn is called Mandah (lame). Its location in 6th house causes problem in legs. As karak of 6th house, Saturn's aspect on the 8th and 12th house gives problem in legs.
Rahu or Ketu in 6th house causes diseases of teeth, lips and intestines.
Lagna lord and 8th lord located in 6th house causes diseases of the navel area.
Longevity and death is assessed from 8th house. Benefics in 8th house are good for longevity. When 8th lord is associated with benefi c planets, it is good for longevity.
The 8th lord, whether benefic or malefic, located in 8th house increases longevity. The location of Saturn (Ayushkarka) in 8th, as an exception to Karko Bhava Nashaya, increases longevity.
Lagna lord and 8th lord in 6th or 12th house is detrimental to longevity. Similarly, 8th lord with malefics in 6th or 12th house adversely affects longevity. Lagna lord and 8th lord in 8th house, if afflicted, cause unnatural death.
Lagna lord, 8th lord and 4th lord in 6th house cause vehicular accident. Saturn with 4th lord in 6th house has same effect. The 4th lord with Rahu in 6th house causes injury by thieves. Ketu with 4th house lord in 6th causes injury from weapons.
The 12th house from any house harms that house matters. The 12th house in the horoscope shows harm to self denoted by Lagna. Malefics in 12th house cause illness and expenditure. The Sun or Saturn in 12th house makes one disease prone. Benefic aspect reduces malefic effect.
Eye Diseases : The 2nd and 12th house relate to right and left eye respectively. The Sun and the Moon are significator, for eyesight. Venus represents eye-gland. Lord of Lagna, 2nd and 12th house posited in 6th, 8th or 12th, or similar location of the Sun, the Moon and Venus, or their affliction, weakness eyesight. The Sun or the Moon located in 2nd or 12th house with Mars and Saturn cause weak eyesight due to injury. Saturn in 8th house reduces eyesight. Rahu in Lagna and the Sun in 7th house make eyesight very weak.
The location of Venus with malefi cs in Lagna or 8th house causes excessive fl ow of tears and weak eyesight. Afflicted Venus in 6th house causes problem in right eye.
The location of Lagna and 2nd lord in 6th, 8th or 12th house causes cataract in middle age. Conjunction of Ketu and the Sun in 6th, 8th, 2nd and 12th house causes inflammation of eye leading to cataract. The location of the Sun in Cancer, Scorpio and Pisces Lagna causes cataract in early middle life.
Heart Diseases : The 4th house and the Sun are assessed for heart ailment. The Sun with malefic planet in 4th house or the Sun as 6th lord in 4th house makes one susceptible to heart disease. Jupiter as 6th lord in 4th and aspected by malefics causes palpitation of heart. Saturn as 6th lord in 4th house with a malefic planet causes heart disease.
Mars and Saturn, or afflicted Jupiter, in 4th house causes heart disease and operation in heart area.
Mutual aspect between Saturn and Mars, and Mars aspecting Lagna causes high blood pressure. Conjunction of Moon and Ketu causes problem of B.P.
Chest Diseases : Chest and lungs are governed by Moon. Those born in Cancer Lagna are prone to catch cold. Afflicted Moon makes one susceptible to cold and cough. Weak or debilitated Moon with malefic planet in Watery sign causes serious chest problem.
The combination of the Sun and the Moon in Watery sign (Cancer, Scorpio and Pisces) causes lung disease. Malefic aspect complicates matters. Rashi exchange by the Sun and the Moon makes one susceptible to chronic cough and even T.B. When the 4th house is afflicted by Mars, Rahu or Saturn, the person is susceptible to Bronchitis.
When Lagna is a watery sign and Lagna lord occupies duststhana, it causes Asthma. Exchange of 4th and 6th house lords, and one of them in Watery sign, causes Asthma. Affliction of 4th house by Saturn makes one liable for Asthmatic effect. Mars and Saturn in Lagna in Watery sign causes Asthma. Lagna lord and Saturn conjoined in 4th house or duststhana causes chronic Asthma.
Stomach Diseases : 5th house governs abdomen in general and stomach and intestines in particular. The karaka for digestion is the Sun. Lord of 5th conjoined with lord of 6th, 8th or 12th house cause stomach disease. The Sun becomes malefic when with Rahu or Debilitated.
Taste is governed by Venus. Venus without affliction in 5th house gives good taste and digestion, but is overpowered by afflicting malefic. When Venus is combust, the person likes fried food. When Venus is associated with Saturn, the person eats anything without discrimination which causes upset digestion.
Any malefic in 5th house, except strong Sun, upsets digestion. Mars in 5th house gives liking for hot food which causes gastric ulcer. Mars in own sign gives healthy digestion. Debilitated Mars in any house causes sluggish digestion. Mars afflicted in 5th house causes hyperacidity and some operation in its dasha-bhukti.
Saturn in 5th house or Jupiter and the Sun there, makes one voracious eater and he suffers from diseases of over-eating. Rahu in 5th gives inclination for alcohol use, causes hyper acidity, peptic ulcer and stomachache. Ketu in 5th causes intestinal worm, upsets digestion and ulcers due to mental worry. Rahu with Saturn and Mercury causes chronic peptic ulcer. Saturn associated with Ketu causes Cancer in digestive system.
Jupiter rules over liver and pancreas. Affliction of Jupiter causes some defect in bile production. It becomes serious when the Sun is also afflicted. The association of Jupiter and Saturn harms liver function. If in 5th house, their dasha bhukti gives liver disease.
Saturn and Mars combined with 5th lord cause jaundice. When this combination is in 6th, 8th or 12th house, it is quite serious. Affliction of Jupiter and Venus causes diabetes when located in 5th house in particular. Saturn and Mars in 6th or 12th house cause intestinal colic. Saturn with Jupiter there causes biliary colic. Saturn with Mars and Mercury or Venus there cause urinary colic.
Skin Diseases : Affliction of Lagna (body), Mercury (skin/allergy), Moon (blood) and Venus (beauty) by Rahu, Ketu, Saturn and Mars causes skin problem. Saturn with Mercury and Venus in Lagna, 2nd or 12th house causes white patches. Moon and Mars with Rahu or Ketu anywhere causes leprosy. Lagna lord and Mercury with Rahu/ Ketu has the same effect.
Lagna lord in 8th house aspected by malefics causes skin diseases. exalted in 9th house, but afflicted by Ketu. Sixth and 7th lord Saturn is posited with 8th lord Jupiter and debilitated Mercury in 8th house. Mars aspects 8th house. The native was a chronic patient of constipation and piles during Saturn Dasha - Jupiter Bhukti
All the Kendras are vacant. Lagna lord Mars is posited in its other sign Scorpio in 8th house with 6th lord Mercury and 7th lord Venus. 5th lord Sun is located in 9th house with 9th lord Jupiter, but conjoined with Rahu. Moon is in 5th house in Kemadrum Yoga and aspected by Rahu. Saturn and Mars are in Kendra to Moon. During Moon dasha (1997) he tried to go abroad for doing M.Tech. but failed and went into depression. He remained under medical and psychiatric treatment for many years.
Lagna lord Saturn is in 6th house. The Sun in 7th house at the fag end of Leo sign is in Papkartari yoga and aspected by Ketu. Due to eye disease in Mars dasha which afflicts Venus his eyesight became weak. Treatment at AIIMS, Delhi did not help. The native cannot bear sunlight, puts on sun-glasses during day, and lacks confidence.
Lagna lord Venus is debilitated in 12th house with 6th lord Jupiter, Yogakaraka Saturn and Moon, and aspected by Ketu. Debilitated 11th lord Sun and 12th lord Mercury are located in Libra lagna. Mars in 2nd house is aspected by Rahu and Saturn. Moon in 12th house is at the fag end of Virgo sign. During Moon, Mars and Rahu dasha the native suffered from one disease or the other. The dasha of 3rd and 6th lord Jupiter located in 12th house (Virgo) from May, 2002 has not helped much. The native is weak in health and uses spectacles.
Lagna is in RahuKetu axis. Lagna lord Mercury is in 4th house (Sagittarius) with Saturn, lord of 5th and 6th house.
Ketu in Lagna is aspected by 6th lord Saturn located in 4th house. The 3rd and 8th lord debilitated Mars aspects 6th house. The 4th lord Jupiter is Retrograde in 10th house (Gemini). Saturn and Mercury are in 8th from Moon and aspected by Badhak Jupiter. Thus Lagna, 4th and 6th house are afflicted.

Effectivity of Ashtakoot Milan in Matching Horoscopes

Ashtakoot Milan or Melapak Table is the most popular astro system in North Indian for matching of horoscopes of the boy and the girl intending to marry. It is simple to understand and apply without assistance from any expert. In South India, a more comprehensive and complicated Dashakoot system is followed. Eight factors are considered in Ashtakoot namely 1. Varna 2. Vashya 3. Tara 4. Yoni 5. Graha-Maitri 6. Gana 7. Bhakoot and 8. Nadi. The weightage or Guna alloted to each factor is same as its serial number i.e 1 to 8 and totalling 36 as the maximum score.
In this system only Rashi or Moon charts and birth Nakshatras of the partners are taken into account for assessing the compatability between them. No importance is attached to the lagna charts, strength of the 7th house, 7th lord and significator of marriage in birth or moon charts, Dashas prevailing, Navmansh chart, natural friendship between lagna or 7th lords in lagna and Navmansh charts strength of other relevent houses and yogas in the birth charts etc. At the best Manglik Dosha is considered and the prevailing popular formula is that a Manglik person be married to a Manglik and a non -Manglik to a non-Manglik. The Guna score ought to be 18 plus that is 50% or more.
Matching of horoscopes of the intending partners has been gaining increasing popularity. There are various reasons for that. Socio-economic scenario has been changing fast. Female folk in our country are no more confined to the homes, completely engaged in tending to their children and be in whole time service to their husbands and the family. They are now going out of their homes like menfolk, doing service jobs of all kinds at par with men and earning equal income. Daily chores of home are now joint responsibility of both. In cities women enjoy equal social and economic status. In rural hinerland also the changes can be easily noticed thengh the equality status has not come about. The fallout of this socio-economic equality is the rise of ego factor in mutual relationship Husband can no more dominate or ignore the wishes of his wife the result is ego clash, strifes, quarrels, breaking of relations separation and divorce. Year after year the situation has been deteriorating. Parents are scared. Even the young generation is scared, whether the marriage would be successful, enjoy able or a burden and a forced compromise which no one is sure. Four five decades ago, matching of horoscopes before marriage was limited nad confined to a small percentage of population but now the trend is piching up fast parties only parents were keen for prior matching of horoscopes, now the young and highly educated boys and girls are equally interested in astrological matching.

What is Manglik Dosh??????

What is Manglik Dosh????
When Mars is placed in Lagna, 4th, 7th, 8th or 12th house in the horoscope, the native is said to be Manglik or Mangli.
In South India Mars' placement in the 2nd house is also considered for Manglik Dosha.
How does it affect Married Life?
For a happy married life, the following requirements are most important :
(i) Good Health
(ii) Availability of goods and items of necessity like house, vehicle, modern gadgets.
(iii) Conjugal bliss or sex pleasure
(iv) Good Longevity and safety from sudden calamities.
(v) Good purchasing power to spend on planned or sudden expenditures.
The above mentioned requirements are signified from houses 1, 4, 7, 8 and 12 of the horoscope. The 2nd house of the horoscope is also important because it signifies wealth, assets and family relations.
Mars being a malefic planet, its presence in these houses spoils their significations and consequently causes setback to a happy married life.
Why Mars is singled out?
There are 5 natural malefic planets viz. Mars, Saturn, Rahu, Ketu and Sun in the decreasing order of their malefic intensity. Moon and Mercury are conditional malefics and their intensity is still lower than Sun.
The presence of any malefic planet in house 1, 2, 4, 7, 8 and 12 shall adversely affect their significations and consequently the marital life but since Mars is the most malefic planet, its affect will be the most adverse.
If we take into consideration all the six houses i.e 1,2,4,7,8 and 12th, then going by the law of averages, 50% of the population is Manglik. In North India, 2nd house is not considered for Manglik Dosha, so only 5 houses are involved. These 5 houses indicate that on an average 42% population is Manglik.
Thus a large number of people are affected by Manglik dosha and it is worth while to find out the actual truth about this dreaded Dosha in the horoscope.

हड्डियों की बीमारी: ज्योतिष्य विश्लेषण

स्लिप डिस्क : यह कोद्गिाकाएं शरीर में रक्त, त्वचा, मांसपेद्गिायों, हड्डियों तथा अन्य अंगों का निर्माण करती हैं। अस्थि तंत्र शरीर का विद्गोष अंग है, जिसकी प्रत्येक हड्डी की, उसके कार्य के अनुरूप, एक विद्गिाष्ट आकृति होती है। एक मनुष्य के शरीर में 206 विभिन्न हड्डियां होती हैं। शरीर का पूरी तरह से परीक्षण करने पर मालूम होता है कि मानव शरीर में दृढ़ और कठोर हड्डियां होती हैं। अगर शरीर में हड्डियां न होतीं, तो शरीर का कोई आकार भी न होता। शरीर के पीछे के भाग में रीढ़ की हड्डी होती है, जो लगभग 33 छोटी-छोटी हड्डियों से मिल कर बनी होती है। हर एक-दो हड्डियों के बीच कार्टिलेज, अर्थात मांस की तह गद्दी की तरह स्थित होती है। यह लचीली तह रीढ़ में लचीलापन बनाए रखती है, आपस में टकराती नहीं है; अर्थात आपसी रगड़ से बची रहती हैं। गिरने पर, झटका लगने पर, चलने-फिरने, कूदने पर यही गदि्दयां, या डिस्क शरीर को सुरक्षा प्रदान करती हैं। रीढ़ की हड्डी के बीच से ही विभिन्न तंत्र नलिकाएं गुजरती हैं। अतः कार्टिलेज उन्हे भी सुरक्षित रख कर मस्तिष्क पर, या शरीर के अंगों पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ने देती है। रेशों से बना कार्टिलेज का बाहरी भाग कुछ सखत होता है, जबकि इसका भीतरी भाग जेली की तरह मुलायम होता है। अचानक झटका लगने, चोट लगने, या भारी वजन आदि उठाने पर रीढ़ की हड्डी के निचले भाग पर विद्गोष जोर पड़ता है, जिससे कार्टिलेज का एनूलस फाइब्रोरस फट जाता है और जेली वाला भाग फूल कर बाहर आ जाता है। इसे 'स्लिप डिस्क' कहते हैं। डिस्क के फूलने के साथ-साथ ही वहां से गुजरने वाली तंत्र नलिकाएं, जो शरीर के निचले भाग और पैरों तक मस्तिष्क के संकेत पहुंचाती हैं, प्रभावित हो जाती हैं। उनमें दर्द होने लगता है। यही दर्द साइटिका कहलाता है। अतः यह स्पष्ट है कि कार्टिलेज पर दबाव, या जोर पड़ने से 'स्लिप डिस्क' और साइटिका का दर्द हो जाता है। स्लिप डिस्क होने पर पीठ के निचले भाग पर तेज दर्द महसूस होता है। यह प्रायः एक ओर के सिरे पर होता है। कभी-कभी यह दर्द एक तरफ के पूरे पैर पर फैल जाता है। कभी यह घुटनों के नीचे और कभी सामने की तरफ जांघ में भी होने लगता है। दर्द की शुरुआत कहां से होगी, यह कौनसी स्लिप डिस्क है, इस पर निर्भर है। स्लिप डिस्क (साइटिका) होने के कारणः स्लिप डिस्क की समस्या स्त्री, या पुरुष दोनों में हो सकती है। अधिक आयु में गर्भ धारण करने पर, बच्चे के भार के कारण, एकाएक वजन उठाने पर, या मोटापा इसका कारण होते हैं। कुदरत ने हर जोड़ को मशीन की तरह बनाया है और इस मशीन पर एक निद्गिचत वजन ही पड़ना चाहिए। वजन बढ़ने से कमर की हड्डियों के बीच की डिस्क धीरे-धीरे घिस कर कमजोर हो जाती है और नीचे झुक कर उठने, झुक कर काम करने पर 'साइटिका' स्लिप डिस्क हो जाता है। स्लिप डिस्क अगर नाड़ी पर दबाव डालती है, तो उसी को साइटिका कहते हैं। आजकल प्रायः लोग व्यायाम नहीं करते, जिस कारण, उम्र के साथ-साथ, सारी चीजों एवं जोड़ों में विघटन होने लगता है। ऐसे व्यक्ति, जो लगातार सड़को पर स्कूटर, साइकिल, या मोटर से चलते हैं, सड़कों के गड्ढे़, स्पीड ब्रेकर पर झटकों को झेलते हैं, उनको सारा दबाव कमर के निचले भाग पर सहन करना पड़ता है, जिससे स्लिप डिस्क हो सकता है। उपचार : दर्द महसूस करने पर कुछ दिनों के लिए जमीन पर, या तखत पर करवट ले कर, दोनों पैर मोड़ कर लेटना चाहिए। सीधे चित्त न लेटें। ऐसा करने पर डिस्क अपने आप अंदर चला जाता है और आराम मिल जाता है। साइटिका दर्द यदि एक, या दो सप्ताह से हो रहा है और दवाइयों के सेवन से भी ठीक न हो, तो डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए। कभी-कभी डाक्टर टै्रक्शन लेने की सलाह भी देते हैं। इससे मांसपेद्गिायों को अहसास बना रहता है कि कमर में तकलीफ है, ताकि वह आगे झुक कर काम न कर सके। यदि किसी भी तरह से आराम न हो, तो ऑपरेद्गान द्वारा नाड़ियों पर पड़ने वाले दबाव, या भार को हटा कर इलाज किया जाता है। ऑपरेद्गान द्वारा प्रभावित स्थान के डिस्क को हटा कर, या उसे ठीक कर के 'की होल सर्जरी' की जाती है। सावधानियां : जमीन पर गिरी वस्तु को उठाने के लिए एकाएक न झुकें; बल्कि घुटने मोड़ कर जमीन पर बैठ जाएं और वस्तु उठा कर फिर खड़े हो जाना चाहिए। दायें-बायें अचानक कलाई मोड़ कर वस्तु उठाने की अपेक्षा स्वयं घूम कर वस्तु उठाएं। दोनों हाथों में समान भार उठाना चाहिए, न कि एक में अधिक भार और दूसरे में कम। पीठ की मांसपेद्गिायां एकदम सीधी रखनी चाहिएं। पीठ को एकदम सीधा रख कर नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। 'स्लिप डिस्क' के लिए तैराकी सर्वोत्तम व्यायाम है। नियमित तौर पर तैराकी करने वाले को 'स्लिप डिस्क' नहीं होता।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण : स्लिप डिस्क होने पर पीठ के निचले भाग पर तेज दर्द होता है, जो काल पुरुष की कुंडली में सप्तम भाव पर आता है। सप्तम भाव का कारक ग्रह शुक्र है। डिस्क जो स्लिप होता है, उसका बाहरी भाग रेशे से बना सखत और भीतर का भाग जेली, अर्थात चर्बी की तरह होता हैं, जिसका कारक ग्रह गुरु है। इसलिए जब कुंडली में लग्न, लग्नेद्गा, सप्तम भाव, सप्तमेद्गा, शुक्र, गुरु दुष्प्रभावों में रहते है, तो 'स्लिप डिस्क' होता है। विभिन्न लग्नों में स्लिप डिस्क : मेष लग्न : लग्नेद्गा षष्ठ भाव में सप्तमेद्गा से युक्त हो और शनि से दृष्ट हो, चंद्र और बुध से युक्त हो कर सप्तम भाव में हो और सूर्य अष्टम भाव में हो, तो जातक को 'स्लिप डिस्क' होता है। वृष लग्न : लग्नेद्गा अष्टम भाव में, सप्तमेद्गा मंगल से युक्त हो और गुरु केतु से युक्त हो कर सप्तम भाव में हो, चंद्र लग्न में शनि से युक्त, या दृष्ट हो, तो स्लिप डिस्क होता है। मिथुन लग्न : गुरु एकादद्गा भाव में, बुध षष्ठ भाव में अस्त हो, मंगल चतुर्थ भाव में, शुक्र सप्तम भाव में केतु से युक्त, या दृष्ट हो और चंद्र अष्टम भाव में हो, तो 'स्लिप डिस्क' होता है। कर्क लग्न : लग्न और लग्नेद्गा दोनों राहु-केतु से युक्त, या दृष्ट हों, बुध, शुक्र सप्तम भाव में, शनि षष्ठ, या अष्टम भाव में और गुरु शनि से युक्त, या दृष्ट हो, तो 'स्लिप डिस्क' होता है। सिंह लग्न : लग्नेद्गा और सप्तमेद्गा दोनों की युति चतुर्थ, या दद्गाम भाव में हो, मंगल त्रिक भावों में हो, चंद्र शुक्र से युक्त, या दृष्ट हो, गुरु-बुध में आपसी संबंध हो, तो 'स्लिप डिस्क' होता है। कन्या लग्न : मंगल लग्न में हो, गुरु चतुर्थ भाव, या अष्टम भाव में हो, सप्तम भाव में चंद्र केतु से दृष्ट हो, लग्नेद्गा और शुक्र शनि से दृष्ट, या युक्त केंद्र भावों में हों, तो 'स्लिप डिस्क' होता है। तुला लग्न : लग्नेद्गा और सप्तमेद्गा दोनों की युति षष्ठ, या अष्टम भाव में हो, गुरु सप्तम भाव में सूर्य से युक्त हो और राहु-केतु से दृष्ट भी हो, चंद्र केंद्राधिपति दोष में हो कर शनि से दृष्ट हो, तो 'स्लिप डिस्क' होता है। वृद्गिचक लग्न : लग्नेद्गा अष्टम भाव में सप्तमेद्गा से युक्त हो, बुध सप्तम भाव में चंद्र से युक्त हो, शुक्र और गुरु दोनों चतुर्थ, या पंचम भाव में हों और शनि से, या राहु से दृष्ट हों, तो 'स्लिप डिस्क' होता है। धनु लग्न : लग्नेद्गा अष्टम भाव में शनि से दृष्ट, या युक्त हो, शुक्र सप्तम भाव में चंद्र से युक्त हो कर राहु से दृष्ट हो, सूर्य-बुध षष्ठ भाव में हों, तो 'स्लिप डिस्क' होता है। मकर लग्न : गुरु सप्तम भाव में, अष्टमेद्गा लग्न में, लग्नेद्गा अष्टम भाव में केतु से युक्त हो, सप्तमेद्गा षष्ठ भाव में, शुक्र-बुध द्वादद्गा भाव में हों, तो 'स्लिप डिस्क' होता है। कुंभ लग्न : गुरु शुक्र से युक्त हो कर षष्ठ, या अष्टम भाव में हो, लग्नेद्गा षष्ठ भाव में सूर्य से अस्त हो, मंगल सप्तम भाव में केतु से दृष्ट हो, तो 'स्लिप डिस्क' होता है। मीन लग्न : सप्तमेद्गा और लग्नेद्गा अष्टम भाव में, शुक्र सप्तम भाव में राहु से युक्त, या दृष्ट हो, शनि लग्न में हो, मंगल चतुर्थ भाव में चंद्र से युक्त हो, तो 'स्लिप डिस्क' होता है।

Migrating to abroad:Astrological preview

If Venus influences the lord of 12th, whom Venus should be friendly, residence abroad is permanent.
If the aspecting planet happens to be the Sun, the residence will be in a small township.
If the 12th lord from the placement of ascendant is combust, it could be in some significant place.
If however 12th lord is otherwise strong it could be a metropolis.
Travel abroad, if we look at it logically, must involve houses, signs and planets which indicate movement.
Out of moveable signs, Aries, Cancer, Libra and Capricorn, more particular signs are Cancer (being a watery sign) and Libra (being an airy sign.
Out of dual signs, Gemini, Virgo, Sagittarius and Pisces, particular signs are Gemini (being an airy sign) and Pisces (being a watery sign as well as ruler of 12th of natural zodiac. Sagittarius too has its importance since it rules over 9th house of natural zodiac. Out of fixed signs, Taurus, Leo, Scorpio and Aquarius, particular signs are Scorpio (being a watery sign) and Aquarius (being an airy sign.
Of the planet/planets - the Moon, a watery and changeable in nature has an important say along with the lords of concerned houses. Of the houses, 9th and 12th figure in most often in charts showing foreign travel/lands. Some times 3rd house can also carry some clue because it is related with travels and planet/planets placed in 3rd house aspect 9th house a house indicating foreign travel.
Broader Rules & Foreign Travel
Venus, Mars and/or Moon placed in a moveable sign.
When Rahu is placed in a moveable sign one will get help of other communities in a foreign land.
The ascendant lord be placed in 7th house identical to a moveable sign.
Ascendant lord posited in a moveable sign aspected by a planet posited in a moveable sign.
Saturn in constellation of Swati, Poorvashada, Ashwini, Krittika, Uttaraphalguni or Uttarashada.
The lord of 10th house in 9th house identical to a moveable sign.
The 10th house and 10th lord in a moveable sign.
Mercury in the constellation of Ashlesha, Jyestha or Rewati.
Rahu in the constellation of Ashlesha, Jyeshta, Rewati, Punarvasu, Vishakha or Poorvabhadra.
The 12th lord placed in a moveable sign.
Ketu posited in 9th or 12th house in moveable sign.
The lords of 6th or 9th or 12th posited in 6th, 9th or 12th respectively.
Jupiter posited in 4th, 6th, 8th or 12th house in a sign indicating foreign travel.
The lord of 10th house posited in star of Rahu or Ketu or Saturn.
The ascendant lord as well as Moon sign lord be placed in a moveable sign/signs.
The lords of 9th and 12th posited in moveable signs or there should be exchange between 9th and 12 lords or there should be exchange between lord of ascendant and the lord of 9th house.
The Sun, the Moon, Venus and Mercury conjunct any where in the chart.
Lord of 3rd house posited in a moveable sign.
Lord of 2nd posited in 7th house in a moveable sign.
Rahu or Ketu in 4th, 9th or 11th house.
Navamsha lagna being Capricorn or Pisces or lord of 12th be placed in sign Pisces in navamsha chart.
The lord of 8th house aspecting 12th house or 12th lord.
Lord of 8th house aspecting 2nd house or lord of 2nd, one will get higher education in foreign land.
Lord of 12th posited in 4th house, one will get education in foreign land.
Lord of 12th house posited in 9th house in a moveable sign.
Jupiter aspecting 12th house or lord of 12th.

Nadi dosh

For assessing married life of bride and bridgegroom, there is an elaborate system in Astrology called Nakshatra Melapak. In north India, under this system eight factors or kootas are taken into considration viz. (i) Varna (ii) Vashya (iii) Tara (iv) Yoni (v) Graha Maitri (vi) Gana (vii) Bhakoot and (viii) Nadi
Each of these factors carry compatability points commencing from one for Varna, two for Vashya etc. increasing in that order with Nadikoot carrying maximum 8 points out of a total of 36 points or Gunas. From this it is evident that maximum importance is attached to Nadi with 8 points, Bhakoot with 7 and Gana with 6 points. Thus the last three kootas account for 21 out of maximum 36 points, i.e. more than 58%. That is why these 3 Doshas are termed as Mahadoshas in Guna Milan system.
Effects of Nadi Dosha
एक नाड़ी विवाहश्च गुणैः सर्वे समन्वितः।
वर्जनीय प्रयत्नेन दाम्पत्योः निधनं यतः।।-नारद
That means according to sage Narada, even if all other kootas are compatible, Nadi Dosha till needs to be avoided because this dosha is highly inauspicious and deadly for the couple.
अधैक नाड़ी कुरूते वियोगं, मध्याख्य नाड्यामृतयोर्विनाशं।
अन्ते च वैधव्यमतीव्र दुःखं, तस्माच्च तिस्रः परिवर्जनीयाः।।-वराह मिहिर
According to Varahminir if both have Aadi Nadi, it would result in separation or divorce, if they have Madhya Nadi then both would be destined to death and if they have Antya Nadi, it would result into extremely miserable married life with widowhood.
अग्रनाड़ी व्यधेभर्ता मध्य नाड़ी व्यधेद्वयम्।
पृष्ठनाडी व्यधेत्कन्या म्रियतेनात्र संशय।।-ज्योतिष सार
That means Aadi Nadi is deadly for the husband, Madhya is deadly for both while Antya Nadi would result into death of wife.
Sage visishtha is said to differ from the above views. he professed death of husband in case of Madhya Nadi and death of wife in case of Aadi and Antya Nadi.
नाड़ी दोषस्तु विप्राणां, वर्ण दोषस्तु क्षत्रिये।
गण दोषश्य वैश्येषु, योनि दोषस्तु पादजान्।।
Source of the above shloka is not known but this shloka is often quoted. It means Nadi Dosha matters most for Brahmins, Varna Dosha for Kshatriyas, Gana Dosha for Vaishyas and Yoni Dosha for Shudras. In this context, it is also pertinent to note that 12 Rashis are divided in 4 Varnas. Karka, Vrishchika and Meena Rashis are Brahmin Rashis. Perhaps this shloka is meant for Brahmin Rashis rather than Brahmin caste. According to some scholars, Nadi Dosha affects the health of progeny.
It is widely accepted fact, among majority of Hindus, that same Gotra marriage shouldn't take place. The idea is that even if the race or caste is the same, genetically the distance between husband and wife should be as wide as possible. To ensure this, the more conservative Brahmins believe in different "Shashan" of the two families ("shashan" represents to the place where the ancestors of Gotra used to live or originated from). In modern science also, it is believed that health of cross breed children is always better. Perhaps the Nadi matching is the astrological endorsement of cross breeding for good health of the next generation. In nutshell, we can infer that Nadi Dosha is the most serious Dosha among the 8 kootas of matching. The couple would be deprived of marital happiness either due to separation or loss of partner or due to severe health problem to them or their children.
Exceptions to Nadi Dosha or Cancellation are there.
According to Muhurta Martanda
विभैक चरणे भिन्नर्दां राश्यैककं भिन्नाङध्रयेक भमेतयोर्गण खगौ नाड़ी नृदूरंचन- मुहूर्त मार्तण्ड 4/6
This means, if
-the bride and bridegroom have same Nakshatra but different charans
- same Nakshatra but different Rashis
- same Rashis but different Nakshatras
then this would destroy the ill effects of gana, graha maitri, Nadi and Nridoor Doshas.
In accordance with the above mentioned rules, Keshwark has given example of Krittika and Rohini Nakshatras. Both these nakshatras belong to Antya Nadi and lie in Vrisha Rashi. The same rule can be extended to Swati and Vishakha, Uttarashada and Shravan which lie in Tula and Makar Rashis respectively and are free from Nadi Dosha.
Ardra and Punarvasu (Mithun), Uttar Phalguni and Hasta (Kanya) and Shatbisha - Poorva Bhadrapada (Kumbha Rashi) belong to Aadi nadi but exempted from Nadi Dosha.
We have got nine Nakshatras viz. Krittika, Mrigshira, punarvasu, Uttarphalguni, Chitra, Vishaka, Uttarshada, Dhanishtha and poorva Bhadrapad which fall in two Rashis and thus are exempted from Nadi Dosha.
राश्यैक्ये चेद् भिन्नमृक्षं द्वयोः स्यान्नक्षत्रैक्ये राशियुग्मं तथैव।
नाड़ी दोषों नो गणानां च दोषो नक्षत्रैक्ये पादभेदे शुभंस्यात्।।-मुहूर्त संग्रह दर्पण
The above shloka also endoreses the same conditions that is - if both have same Rashi but different Nakshatras, or same Nakshatra but different RAshis, or same nakshatra but different charans then Nadi Dosha gets nullified.
एक नक्षत्र जातानां नाड़ी दोषो न विद्यते। अन्यक्र्षनाड़ी वेधेषु विवाहो वर्जितः सदा।।- ज्योतिष तत्व प्रकाश
Though same Nakshatra or same Rashi of the bride and bridgroom amounts to cancellation of Nadi Dosha but if the nakshatra charans are same or there is "padavedha" then marriage cannot take place.
आद्यांशेन चतुर्थांश चतुर्थांशेन यादिमम्।
द्वितीयेन तृतीयं तु तृतीयेन द्वितीयकम्।।
ययो भांशव्यधश्चैवं जायते वर कन्ययौ।
तयो मृत्युर्न सन्देहः शेषांशाः स्वल्प दोषदाः।।-नरपतिजयचर्या
Accordingly 'Pada Vedha' extends to Charan 1&4, 2&3, 4&1 and 3&2 while the ill effect is negligible in case of charan 1&3, and 2&4.
रोहिण्याद्र्रा मृगेन्द्राग्नी पुष्यश्रवणपौष्णमम्।
अहिर्बुध्न्यक्र्षमेतेषां नाड़ी दोषो न विद्यते।।-ज्योतिष चिन्तामणि
Accordingly if bride and bridgegrooms Nakshatra belongs to Rohini, Mrigshira, Ardra, Jyeshtha, Krittika, Pushya, Shravan, Revati or utar Bhadrapada, then Nadi Dosha is not applicable.
Keshwark has stated in Vivah Vrindavan
पराशरः ग्राहनवांरा भेदादेकक्र्ष राश्योरपि सोमनस्यम।- विवाह वृन्दावन ¾
If the Navamsha falls in different Rashis, in case of same Nakshatra of bride and bridegroom, Nadi Dosha is cancelled.
एक राशि पृथक्धिष्ण्येऽप्युत्तमं पाणिपीडनम्।
एकधिष्ण्ये पृथग्राशौ, सर्वेक्तोऽपि मृत्युदम्।।-वसिष्ठ संहिता 32/194
According to sage Vashishtha, same Rashi but different Nakshatras and same Nakshatra but different Rashis are auspiicous but same Rashi, same Nakshatra and same charan will be inauspicious like death.
न वर्ग वर्णों न गणो न योनिः द्र्विद्वादशे चैव षडष्टकेवा।
तारा विरोधे नव पंचमे ना मैत्री यदास्याच्छुमदो विवाहः।।-बृहज्जयोतिषसार
न वर्ण वर्गो न गणो न योनिद्र्विद्वादशे चैव षडष्टके वा।
वरेऽपि दूरे नवपंचमे वा मैत्री यदि स्याच्छुभदो विवाहः।।-ज्योतिर्निबन्ध
नाड़ी विविेद्ये यदि स्याद्विवाहः करोति वैधव्य युतां च कन्याम्।
स एव माहेन्द्र -दिनादि युक्तो राशीश-योनि सहितो न दोषः।।-वसिष्ठ संहिता
एकाधिपत्ये त्वथ मित्रभावे स्त्री पुंसराश्योर्न रज्जुदोषे।
षड्काष्टकादिष्वपि शर्मद स्यादुद्वाह कर्माचरतोस्तयोश्च।।-वसिष्ठ संहिता
राशीशयोः सुहृदभावे मित्रत्वेवांशनाथयोः।
गणादिदौष्ट्येऽप्युद्वाह पुत्र-पौत्र विवर्धनः।।-अत्रि
The above quoted shlokas lay high emphasis on natural friendship of Rashi lords, same Rashi Lords, friendship of Navmansha lords and same Navamsha lords for nullifying the adverse effects of various koot Doshas including Nadi Dosha. Now this is an important addition to the Nadi Dosha cancellation conditions stated earlier viz.
1. When the Rashi of bride and bridegroom is same but nakshatras are different.
2. When both have same Nakshatra but Rashis are different.
3. When Nakshatra is same but charans are different.

वक्री गुरु का कुंडली या जीवन में प्रभाव

वक्री ग्रहों के संबंध में ज्योतिष प्रकाशतत्व में कहा गया है कि-“क्रूरा वक्रा महाक्रूराः सौम्या वक्रा महाशुभा।।” अर्थात क्रूर ग्रह वक्री होने पर अतिक्रूर फल देते हैं तथा सौम्य ग्रह वक्री होने पर अति शुभफल देते हैं। जातक तत्व और सारावली के अनुसार यदि शुभग्रह वक्री हो तो मनुष्य को राज्य, धन, वैभव की प्राप्ति होती है किंतु यदि पापग्रह वक्री हो तो धन, यश, प्रतिष्ठा की हानि होकर प्रतिकूल फल की संभावना रहती है। जन्म समय में वक्री ग्रह जब गोचरवश वक्री होता है तो वह शुभफल प्रदान करता है बशर्ते ऐसे जातक की शुभ दशांतर्दशा चल रही हो। क्या हैं वक्री ग्रह: फलित ज्योतिष के अनुसार जब कोई ग्रह किसी राशि में गतिशील रहते हुए अपने स्वाभाविक परिक्रमा पथ पर आगे को न बढ़कर पीछे की ओर (उल्टा) गति करता है तो वह वक्री कहा जाता है। जो ग्रह अपने परिक्रमा पथ पर आगे को गति करता है तो वह मार्गी कहा जाता है। वक्री ग्रह कुंडली में जातक विशेष के चरित्र-निर्माण की क्रिया में सहायक होते हैं। जिस भाव और राशि में वे वक्री होते हैं उस राशि और भाव संबंधी फलादेश में काफी कुछ परिवर्तन आ जाता है। सूर्य एवं चंद्र मार्गी ग्रह हैं, ये कभी भी वक्री नहीं होते हैं। वक्री होने पर शुभाशुभ परिवर्तन: भारतीय ज्योतिष के अनुसार बृहस्पति जिस भाव में स्थित होकर वक्री होता है, उस भाव के फलादेशों में अनुकूल व सुखद परिवर्तन आते हैं। आमतौर पर बृहस्पति के वक्री होने पर व्यक्ति अपने परिवार-कुटुंब, देश, संतान, जिम्मेदारियों, धर्म व कत्र्तव्य के प्रति ज्यादा चितिंत हो जाता है। जन्म कुंडली के दूसरे स्थान में आकर जब बृहस्पति वक्री होता है, तब अपनी दशा-अन्तर्दशा में अपार धन-दौलत देता है। नवम भाव में वक्री होने पर जातक के भाग्य द्वार खोल देता है एवं द्वादश स्थान में वक्री होने पर जातक को जन्मभूमि की ओर ले जाता है। मकर राशि में भले ही नीच का गुरु विराजमान हो परंतु यदि वह वक्री हो तो उच्च की तरह ही शुभ फल प्रदान करेगा। वक्री गुरु का प्रभाव: गुरु विद्या-बुद्धि और धर्म-कर्म का स्थाई कारक ग्रह है। मनुष्य के विकास के लिए यह अति महत्वपूर्ण ग्रह है। गुरु का मनुष्य के आंतरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक जीवन पर समुचित प्रभाव पड़ता है। गोचरवश गुरु के वक्री रहते हुए धैर्य व गम्भीरता से कार्य की पकड़ कर नई योजना व नए कार्यों को गति देनी चाहिए। जिन जातकों के जन्म समय में गुरु वक्री हो, उनको गोचर भ्रमणवश वक्री होने पर अटके कार्यों में गति एवं सफलता मिलेगी और शुभ फलों की प्राप्ति होगी। बृहस्पति और अन्य राशिगत प्रभाव: वर्तमान में कर्क राशि में गोचर भ्रमणवश पहले, चैथे, आठवें, बारहवें गुरु के अशुभ प्रभाव से प्रभावित कर्क, मेष, धनु एवं सिंह राशि के व्यक्तियों को राहत मिलेगी, जब बृहस्पति वक्री होता है तो ऐसे व्यक्तियों के भाग्य में परिवर्तन आता है। कर्क राशि में गतिशील वक्री गुरु अपनी पंचम पूर्ण दृष्टि से वृश्चिक राशि में गतिशील नैसर्गिक रूप से पापग्रह शनि को देखेगा। जब कोई शुभ ग्रह वक्री होकर किसी अशुभ ग्रह से दृष्टि संबंध बनाता है तो उसके अशुभ फलों में कमी आकर शुभत्व में वृद्धि होती है। अतः इस दौरान शनि की ढैया से पीड़ित मेष व सिंह राशि के जातक एवं साढ़ेसाती से प्रभावित तुला, वृश्चिक व धनु राशि के व्यक्तियों को राहत मिलेगी, उनके बिगडे़ और अटके काम बनने लगेंगे। वक्री गुरु के प्रभाव से अन्य समस्त राशियां भी प्रभावित होंगी। कब होते हैं गुरु वक्री: बृहस्पति अपनी धुरी पर 9 घंटा 55 मिनट में पूरी तरह घूम लेता है। यह एक सेकेंड में 8 मील चलता है तथा सूर्य की परिक्रमा 4332 दिन 35 घटी 5 पल में पूरी करता है। स्थूल मान से गुरु एक राशि पर 12 या 13 महीने रहता है। एक नक्षत्र पर 160 दिन व एक चरण पर 43 दिन रहता है। बृहस्पति ग्रह अस्त होने के 30 दिन बाद उदय होता है। उदय के 128 दिन बाद वक्री होता है। वक्री के 120 दिन बाद मार्गी होता है तथा 128 दिन बाद पुनः अस्त हो जाता है। कर्क राशि में वक्री गुरु के गोचर भ्रमण से पहले, चैथे, आठवें, बारहवें बृहस्पति के अशुभ प्रभाव से प्रभावित कर्क, मेष, धनु एवं सिंह राशि के जातकों को राहत मिलेगी। साथ ही शनि पर वक्री गुरु की कृपा दृष्टि से मेष, सिंह राशि पर गतिशील शनि की ढैया एवं तुला, वृश्चिक, धनु राशि के जातकों को शनि की साढे़साती के अशुभ प्रभाव से मुक्ति मिलेगी। गुरु की दशा लगने पर बड़ों का आदर सम्मान करें। अपने बुजुर्गों का आशीर्वाद लें तथा गुरुवार का व्रत करने से गुरु के शुभ फलों में वृद्धि हो जाती है जबकि अशुभ फलों में कमी आती है। वक्री गुरु की दशा होने पर गुरु से संबंधित वस्तुओं यथा केसर, हल्दी, पीले कपड़े, फूल, सोना, पीतल आदि का दान देना भी शुभ फल देता है।

सूर्य

आदिकाल में जब ब्रह्माण्ड से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई तो उन्होंने सर्वप्रथम ॐका उच्चारण किया। यही ॐ सृष्टि का प्रथम शब्द तथा सूर्य का शरीर कहा जाता है। जब ब्रह्मा के चारों मुखों से वेद प्रकट हुए तब वे सूर्य के तेज से प्रकाशित हुए। सूर्य के सर्वव्यापी प्रकाश ने उन्हें एकीकृत कर शक्ति पुंज बना दिया। यही एकीकृत शक्ति पुंज वास्तव में वैदिक सूर्य देवता के रूप में जाना जाता है। यह भी मान्यता है कि समस्त ज्ञात जगत इसी सूर्य के द्वारा उत्पन्न किया गया है तथा उसी के कारण अस्तित्व में है। सूर्य सृष्टि के प्रारम्भ से ही उपस्थित रहा है तथा आदित्य के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य की उत्पत्ति से जुड़ी ये कथाएं उसे उन्नत संभावनाओं और शक्ति के स्रोत के रूप में चित्रित करती हैं। हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी पर सूर्य ही समस्त प्राणियों के जीवन का आधार है चाहे वे पेड़-पौधे हों, जानवर या मनुष्य। यदि सूर्य का प्रकाश किसी भी कारण से मिलना बंद हो जाये तो वे निश्चित ही कुछ समय में नष्ट हो जायेंगे और पृथ्वी पर जीवन ही समाप्त हो जायेगा। वास्तव में समस्त जीवन का आधार सूर्य ही है। ब्रह्मांड की प्रथम शक्ति के रूप में सूर्य ज्ञान का मार्गदर्शक है तथा पृथ्वी पर जीवन के शुरू होने का ही नहीं बल्कि उसके समायोजित रूप से चलते रहने का कारण है। सूर्य की कथा से स्पष्ट संकेत मिलता है कि वह सृष्टि के प्रारम्भ से ही उपस्थित था तथा वही इस जगत के लिए प्रकाश और शक्ति का मूल स्रोत है। ऐसी मान्यता है कि वैदिक काल में ज्ञान चहुंमुखी था। वैदिक सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। ज्ञान को भी प्रकाश का ही रूप माना जाता है तथा सूर्य की किरणों के तेज से प्रकाशित होकर वह नया आयाम प्राप्त करता है और ‘आप्त दीपो भव’ के भाव को चरितार्थ करता है। इसी कारण सूर्य समस्त ऊर्जा और प्रकाश का प्राचीनतम स्रोत है। अतः आश्चर्य नहीं कि ज्योतिष में सूर्य को समस्त शक्ति, पद, मान और उपाधि से जोड़कर देखा जाता है। सूर्य सौरमंडल का केंद्र है तथा सभी ग्रह उसके चारों ओर चक्कर लगाते हैं। ज्योतिष में सूर्य को निज से जोड़कर देखते हैं तथा वही व्यक्ति को उसका निजत्व प्रदान करता है। सूर्य को मानव मन की मूल वृत्तियों में से एक मान सकते हैं। इस वृत्ति का महत्व इसलिए भी बहुत अधिक है क्योंकि वह व्यक्ति के निज का प्रतीक है तथा वह निजत्व ही समस्त से व्यक्ति को जोड़ता है। जन्मकुंडली मनुष्य के चारों ओर उसी प्रकार घूमती जान पड़ती है जैसे सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। यह तथ्य सूर्य को मानव स्वभाव में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करता है जिसे हम व्यक्ति का प्राण या आत्मा कह सकते हैं। यही वह मूल शक्ति है जिसके साथ हमारा जन्म होता है तथा जिस पूर्ण की संभावनाओं को जानकर उसे प्राप्त करना ही जीवन की उच्चतम उपलब्धि है जिसमें मनुष्य जीवन भर लगा रहता है। जन्मकुंडली में सूर्य की भूमिका हमें यह ज्ञान देती है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में पूर्णतः स्वतंत्र और विशिष्ट होते हुए भी अपने से जुड़े अथवा पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करने की शक्ति और संभावना रखता है। सूर्य जीवन के बहुत से पक्षों पर प्रभाव रखता है जैसे-शक्ति, बल, रचनात्मकता, क्रियाशीलता, सामथ्र्य, ऊर्जा तथा जीवनशक्ति, व्यक्ति की शक्ति समय-समय पर इन्हीं पक्षों को सिद्ध करने में व्यय होती है। उदार आत्मा ग्रह सूर्य के स्वभाव से जुड़े हुए अन्य महत्वपूर्ण गुण हैं-स्वतंत्रता, ईच्छाशक्ति, आत्मविश्वास, उदारता, उद्देश्यपूर्णता, सभ्यता, निष्ठा तथा चमत्कारी नेतृत्व। कुंडली में सूर्य के अलाभकारी होने पर व्यक्ति में निम्न दुर्वृत्तियों का उदय हो सकता है जैसे कि अयोग्यता, निर्दयता, अहंकार, आत्मरति, आत्मनिर्णय का अभाव, आत्मप्रेरणा या उत्साह में ह्रास आदि। सूर्य मनुष्य की आत्मा का भी द्योतक है। आत्मा प्रत्येक में परमेश्वर का अंश रूप ही है। यह ही मानव का सम्बन्ध विश्व की निर्माणकारी शक्तियों से जोड़कर उसमें रचनात्मकता को जन्म देती है किन्तु विरला ही अपने वास्तविक सत्य को जानकर अपने सूर्य की पूर्ण क्षमता का प्रयोग कर पाता है। अधिकांशतः तो विभिन्न रूप में ही उलझकर रह जाते हैं। यदि कोई अपने सूर्य की पूर्ण क्षमता को जान पाए तो वह अपने व्यक्तित्व पर पूर्ण अधिकार प्राप्त कर लेता है। ज्योतिष द्वारा मानव स्वभाव को 12 रूपों में जाना जाता है जो सूर्य द्वारा राशिचक्र के बारह चित्रों पर होने से जाने जाते हैं। सूर्य का रंग लाल तथा उसका वाहन रथ है जिसका एक ही चक्र है जो वर्ष को दर्शाता है। इस चक्र के बारह भाग हैं जो 12 मासों के द्योतक हैं। इस चक्र के मध्य में छह भाग हैं जो छह ऋतुओं के द्योतक हैं। सूर्य अनाज, तांबे और स्वर्ण पर प्रभाव रखता है। इससे संबंधित रत्न माणिक है। ज्योतिष के अनुसार सूर्य सिंह राशि का स्वामी है तथा सिंह राशि जो कि राशिचक्र की पांचवीं राशि है, वह रचनात्मकता, बुद्धि, संतति तथा प्रारब्ध (पूर्व जन्म का प्रभाव) को दर्शाती है। मेष राशि में सूर्य उच्च का होता है तथा इसका उच्चतम स्थान 15 अंश पर होता है। तुला राशि का सूर्य नीच का कहलाता है तथा 20 अंश पर सबसे अधिक नीच का माना जाता है। सिंह राशि में सूर्य अपने मूल त्रिकोण में होता है तथा उसमें 4.20 अंश पर वह पूर्ण स्वगृही माना जाता है। सूर्य और चंद्र जैसे प्रकाशित ग्रहों के अतिरिक्त अन्य पांच ग्रहों को दो-दो राशियों का स्वामी माना जाता है। यह देखा गया है कि स्वभावानुसार ग्रहों में आपस में निश्चित मैत्री संबंध होते हैं। जब भी ग्रह अपने स्वयं के अथवा मित्रों के स्थान पर होते हैं तो बहुत लाभकारी होते हैं। इसी प्रकार सम अथवा शत्रु ग्रह के स्थान पर इनका पूर्ण दुष्प्रभाव भी देखने में आता है। जन्मकुंडली के विभिन्न भावों पर सूर्य का प्रभाव प्रथम भाव जब सूर्य प्रथम भाव में होता है तो व्यक्ति बलवान, आत्मविश्वासी तथा आलसी किंतु कुछ भी ठान लेने पर पूर्ण शक्ति लगाकर लक्ष्य को प्राप्त करने वाला होता है। प्रभावी सूर्य होने पर शासन से लाभ, न्यायप्रिय, परिवार तथा ज्ञान से प्रेम करने वाला, उच्च आदर्शों वाला किंतु लोभी होता है। नीच का सूर्य उसे प्रतिशोधी, मिथ्याभिमानी और आत्मलीन बनाता है। द्वितीय भाव दूसरे भाव का सूर्य व्यक्ति को अपव्ययी, उदारमना, ऋणी तथा चेहरे अथवा नेत्र के रोग से पीड़ित करता है। परिवार तथा पत्नी से संतप्त किंतु विरोधियों और शत्रुओं पर प्रभावी होता है। वह प्रभावी वक्ता होता है। तृतीय भाव तृतीय भाव का सूर्य व्यक्ति को साहसी व निर्भीक करता है। वह दयावान और अपनी संपदा व उपलब्धियों के लिए विख्यात होता है। शास्त्रों में रुचि वाला, कुशल, आत्मविश्वास से भरपूर, भ्रमणशील तथा कार्यक्षेत्र में पूर्ण स्वतंत्रता चाहने वाला होता है। चतुर्थ भाव चतुर्थ भाव में सूर्य बहुत लाभकर नहीं होता क्योंकि वह व्यक्ति को पैतृक संपदा से वंचित रखता है। मानहानि का कारण होता है तथा भाई-बहनों में मेल का भी विरोधी होता है किंतु अच्छे ग्रहों के प्रभाव से व्यक्ति धनवान और बड़ी उम्र में शासन द्वारा सम्मान का अधिकारी होता है। पंचम भाव पंचम भाव का सूर्य व्यक्ति को अधीर, भ्रमण में रुचि लेने वाला तथा नाटक, सिनेमा व टेलीविजन को चाहने वाला बनाता है। षष्ठम भाव छठे भाव का सूर्य व्यक्ति को आत्मसम्मान, साहस, शासन से सम्मान तथा प्रसिद्धि प्रदान करता है। वह आयुर्वेद एवं अन्य चिकित्सा पद्धतियों में रुचि रखता है। नौकरी से लाभ, व्यवहार कुशल, दूसरों की सहायता करने वाला, खुशमिजाज, भोजन का प्रेमी तथा स्पष्टवादी होने के कारण बहुत से शत्रुओं वाला होता है। सप्तम भाव सप्तम् भाव का सूर्य व्यक्ति को क्रोधी बनाता है। पत्नी से सुख में कमी तथा कुछ समय के लिए वियोग भी हो सकता है। ईमानदार, साझेदारी में लाभ, पत्नी के प्रभाव में बहुत बातें बनाने वाला किंतु सुनने वालों का प्रिय होता है। अष्टम भाव अष्टम् भाव: आठवें भाव में सूर्य होने पर व्यक्ति हृदय से असंतुष्ट रहने वाला, रोगी देह वाला, अन्यों से अनादर पाने वाला तथा जीवन के तीसरे वर्ष में मृत्यु तुल्य कष्ट पाने वाला होता है। पति-पत्नी में तालमेल की कमी होती है। बुरा स्वभाव, चंचल, उपद्रवी नेत्र रोगी तथा अपने परिजनों द्वारा ठगा जाने वाला होता है। नवम भाव नवें भाव का सूर्य व्यक्ति को माता-पिता व गुरु का द्रोही तथा अपने से अन्य धर्म को मानने वाला बनाता है। जीवन के प्रारम्भ में रोगी किंतु बाद में स्वस्थ तथा धनवान होकर संतान के साथ खुशमय तथा सुखी लंबा जीवन बिताता है। दशम भाव दशम् भाव का सूर्य व्यक्ति को पिता द्वारा सम्पत्ति तथा सुख प्राप्त कराने वाला होता है। अपने स्वभाव के कारण अच्छे मित्रों वाला, राजसी सुख भोगने वाला, अच्छे स्वभाव का स्वामी, बहुत बुद्धिमान, लेखक, शासन से लाभ पाने वाला तथा उच्च पद का लाभ प्राप्त करने वाला होता है। कलात्मक अभिरुचि होने के कारण वह किसी भी कला में सहज ही निपुणता प्राप्त कर लेता है। एकादश भाव ग्यारहवें भाव में सूर्य के प्रभाव से व्यक्ति अत्यन्त धनवान, बहुत-से भृत्यों वाला, बुद्धिमान तथा ईच्छानुसार बल प्रयोग करने वाला होता है। धार्मिक कष्टों पर विजय पाने वाला, शत्रुओं का नाश करने वाला, उच्च वर्ग में मैत्री रखने वाला, ज्ञानवान, पत्नी को समझने वाला, सभी सुखों का भोक्ता किंतु पुत्र से सुख में कमी वाला होता है। द्वादश भाव बारहवें भाव का सूर्य व्यक्ति को पिता के साथ नहीं चलने देता अथवा पिता से स्नेह में कमी करता है। जीवन में आर्थिक कष्ट आते ही रहते हैं। सूर्य के प्रभाव में कमी आने पर शासन व अधिकारियों से दंड का भागी होता है। नीच का सूर्य कारावास का कारक होता है। विभिन्न राशियों में सूर्य का प्रभाव मेष इस राशि में सूर्य उच्च का माना जाता है। वैसे तो वह राशि के तीसों अंशों पर उच्च का रहता है किन्तु दस अंश पर वह विशेष रूप से पूर्ण उच्चता का माना जाता है। मेष राशि का स्वामी उग्र ग्रह मंगल है तथा मंगल और सूर्य में विशेष मैत्री के कारण मंगल उच्च के सूर्य के लिए विशेष लाभकर होता है। मेष राशि मं सूर्य परिवार से आर्थिक लाभ, पैतृक संपदा, संतान और पत्नी का सुख प्रदान करता है। व्यक्ति अपनी धार्मिक पृष्ठभूमि पर मान रखने वाला अत्यन्त आदर्शवादी, प्रखर बुद्धिमान एवं अत्यन्त महत्वाकांक्षी होता है। वृष वृष राशि का स्वामी शुक्र है तथा शुक्र और सूर्य में मैत्री न होने के कारण सूर्य यहां असहज रहता है। ग्रह असहज राशि में अपना प्रभाव खो देता है तथा बुरे परिणाम देता है। वृष राशि का सूर्य इसी कारण पत्नी तथा संतान के सुख में कमी लाता है। परिवार में सदा तनाव रहता है। मिथुन मिथुन राशि का स्वामी उद्दीप्त ग्रह बुध है। सूर्य और बुध में विशेष मैत्री है। यहां सूर्य विशेष प्रभावी होता है और बहुत अच्छे प्रभाव देता है। इस राशि में सूर्य होने पर व्यक्ति को प्राचीन शास्त्रों में विशेष श्रद्धा होती है। वह ज्ञानवान और धनी होता है। कर्क कर्क राशि का स्वामी चन्द्र है जो सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशवान है। अतः सूर्य इस राशि में विशेष सहजता अनुभव करता है किंतु कुछ हद तक हठी हो जाता है। शासन व समाज में विशेष पद पाने वाला, उच्च वर्ग में मैत्री रखने वाला होता है। सिंह इस राशि का स्वामी होने के कारण सूर्य का इस राशि से विशेष प्रेम है। यह राशि सूर्य का मूल त्रिकोण है। सिंह राशि का सूर्य व्यक्ति को साहसी, विश्वस्त, सहायक, दयावान, धैर्यवान एवं भव्यता प्रदान करता है। आर्थिक रूप से संपन्न तथा दूसरों पर प्रभाव रखने वाला होता है। कन्या कन्या: इस राशि से विशेष संबंध के कारण सूर्य इसमें बुध की आशावादी वृत्ति को बढ़ावा देता है। वह ज्ञानी जनों से विचारों का आदान-प्रदान करने में रुचि लेता है। वह वाहन सुख का भोक्ता तथा भूमि और संपदा से लाभ पाने वाला होता है। मृदुभाषी होने के कारण वह विपरीत लिंग वाले लोगों को विशेष रूप से प्रभावित करता है। तुला यह सूर्य के नीच का स्थान है। यहां वह अपने प्रभाव को ही नहीं, अपने स्वभाव को भी खो देता है। नीच का ग्रह कभी भी अच्छे परिणाम नहीं देता। आर्थिक हानि, पत्नी से सुख का अभाव तथा बहुत बुरी अवस्था में संपत्ति की हानि भी होती है। वृश्चिक वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल है। अतः मित्र ग्रह की राशि में सूर्य मुक्ति और स्वतंत्रता का अनुभव करता है। वृश्चिक राशि में सूर्य व्यक्ति को साहसी, उग्र, बहानेबाज बनाता है। उसे शत्रु तथा विषैले जीवों से हानि का भय रहता है। धनु धनु राशि का स्वामी गुरु है। अतः सूर्य यहां बलवान और संयमी हो जाता है। सूर्य इस राशि में कल्पना को बढ़ावा देने और व्यक्ति को नये आयाम छूने की प्रेरणा देता है। व्यक्ति बहुत धन कमाता है तथा पत्नी व संतान के साथ सुख-शान्ति से जीवन के आनंद का भोग करता है। मकर मकर राशि का स्वामी शनि है। अतः सूर्य यहां सहज नहीं रहता क्योंकि सूर्य और शनि में परस्पर विशेष विरोध है जो कि इस राशि में सूर्य के होने पर मिलने वाले परिणामों से सहज ही स्पष्ट होता है। सूर्य मकर राशि में शोक व भय का कारण होता है तथा जातक को बहुत कम सुख प्रदान करता है। कुंभ शनि कंुभ राशि का भी स्वामी है। अतः यहां भी सूर्य के संबंध में विशेष अंतर नहीं आता किंतु यहां सूर्य कुछ अच्छे परिण् ााम देता जान पड़ता है। कुंभ का सूर्य जातक को धन और संतान से सुख प्रदान करता है किंतु पत्नी के कारण कष्ट तथा बढ़ी हुई आयु में हृदय रोग व मानसिक कष्ट की संभावना रहती है। मीन मीन का स्वामी बृहस्पति है। हालांकि सूर्य व बृहस्पति मित्र ग्रह हैं तथापि इस राषि (मीन) में सूर्य कुछ अपने सकारात्मक गुणों को खो देता है। यह इसलिए होता है क्योंकि इस राषि की प्रकृति और सूर्य की प्रकृति आपस में मेल नहीं रखती।