Saturday, 22 August 2015

कैंसर और कुंडली के ग्रह योग

कैंसर: मृत्यु का सबसे बड़ा कारण-
विश्व भर मेंं हर आठ मेंं से एक व्यक्ति की मृत्यु कैंसर के कारण होती है। कैंसर से मरने वालों की संख्या एड्स, टीबी और मलेरिया से मरने वाले कुल मरीजों से अधिक है। दुनिया भर मेंं हृदय रोगों के बाद कैंसर ही मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। तंबाकू चबाना, सिगरेट, सैच्युरेटेड फैट से भरपूर आहार लेना, शराबखोरी, शारीरिक श्रम का अभाव जैसी अस्वास्थकर आदतें लोगों को कैंसर की ओर धकेल रही हैं। कैंसर के सौ से भी अधिक प्रकार हैं। हरेक प्रकार दूसरे से अलग होता है, सभी के कारण, लक्षण और उपचार भी अलग-अलग होते हैं।
कैन्सर अब एक सामान्य रोग हो गया है। हर दस व्यक्तियों मेंं से एक को कैंसर होने की संभावना है। कैन्सर किसी भी उम्र मेंं हो सकता है। परन्तु यदि रोग का निदान व उपचार प्रारम्भिक अवस्थाओं मेंं किया जावें तो इस रोग का पूर्ण उपचार संभव है।
कैन्सर का सर्वोतम उपचार बचाव है। यदि मनुष्य अपनी जीवन-शैली मेंं कुछ परिवर्तन करने को तैयार हो तो 60 प्रतशित मामलो मेंं कैन्सर होने से पूर्णत: रोका जा सकता है।
कैंसर के कुछ प्रारम्भिक लक्षण:-
शरीर मेंं किसी भी अंग मेंं घाव या नासूर, जो न भरे। लम्बे समय से शरीर के किसी भी अंग मेंं दर्दरहित गांठ या सूजन। स्तनों मेंं गांठ होना या रिसाव होना मल, मूत्र, उल्टी और थूंक मेंं खून आना। आवाज मेंं बदलाव, निगलने मेंं दिक्कत, मल-मूत्र की सामान्य आदत मेंं परिवर्तन, लम्बे समय तक लगातार खांसी। पहले से बनी गांठ, मस्सों व तिल का अचानक तेजी से बढना और रंग मेंं परिवर्तन या पुरानी गांठ के आस-पास नयी गांठो का उभरना। बिना कारण वजन घटना, कमजोरी आना या खून की कमी। औरतों मेंं स्तन मेंं गांठ, योनी से अस्वाभाविक खून बहना, दो माहवारियों के बीच व यौन सम्बन्धों के तुरन्त बाद तथा 40-45 वर्ष की उम्र मेंं महावारी बन्द हो जाने के बाद खून बहना आदि कैंसर के प्रारंभिक लक्षण हैं।
कैन्सर होने के संभावित कारण:-
धूम्रपान-सिगरेट या बीड़ी के सेवन से मुंह, गले, फेंफडे, पेट और मूत्राशय का कैंसर होता है। तम्बाकू, पान, सुपारी, पान मसालों, एवं गुटकों के सेवन से मुंह, जीभ खाने की नली, पेट, गले, गुर्दे और अग्नाशय (पेनक्रियाज) का कैन्सर होता है। शराब के सेवन से श्वांस नली, भोजन नली, और तालु मेंं कैंसर होता है। धीमी आंच व धूंए में पका भोजन (स्मोक्ड) और अधिक नमक लगा कर संरक्षित भोजन, तले हुए भोजन और कम प्राकृतिक रेशों वाला भोजन(रिफाइन्ड) सेवन करने से बडी आंतो का कैन्सर होता है।
कुछ रसायन और दवाईयों से पेट, यकृत(लीवर) मूत्राशय के कैंसर होता है। लगातार और बार-बार घाव पैदा करने वाली परिस्थितियों से त्वचा, जीभ, होंठ, गुर्दे, पित्ताशय, मूत्राशय का कैन्सर होता है। कम उम्र मेंं यौन सम्बन्ध और अनेक पुरूषों से यौन सम्बन्ध द्वारा बच्चेदानी के मुंह का कैंसर होता है।
कुछ आम तौर पर पाये जाने वाले कैन्सर:-
पुरूष:- मूंह, गला, फेंफडे, भोजन नली, पेट और पुरूष ग्रन्थी (प्रोस्टेट)।
महिला:- बच्चेदानी का मुंह, स्तन, मुंह, गला, ओवरी।
कैंसर से बचाव के उपाय:-
धूम्रपान, तम्बाकु, सुपारी, चना, पान, मसाला, गुटका, शराब आदि का सेवन न करें। विटामिन युक्त और रेशे वाला (हरी सब्जी, फल, अनाज, दालें) पौष्टिक भोजन खायें। कीटनाशक एवं खाद्य संरक्षण रसायणों से युक्त भोजन धोकर खायें। अधिक तलें, भुने, बार-बार गर्म किये तेल मेंं बने और अधिक नमक मेंं सरंक्षित भोजन न खायें।
अपना वजन सामान्य रखें। नियमित व्यायाम करें नियमित जीवन बितायें। साफ-सुथरे, प्रदूषण रहित वातावरण की रचना करने मेंं योगदान दें।
प्रारम्भिक अवस्था मेंं कैंसर के निदान के लिए निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान दें:-
मूंह मेंं सफेद दाग या बार-बार होने वाला घाव। शरीर मेंं किसी भी अंग या हिस्से मेंं गांठ होने पर तुरन्त जांच करवायें। महिलायें माहवारी के बाद हर महीने स्तनों की जांच स्वयं करें। दो माहवारी के बीच या माहवारी बन्द होने के बाद रक्त स्त्राव होना खतरे की निशानी है पैप टैस्ट करवायें।
शरीर मेंं या स्वास्थ्य मेंं किसी भी असामान्य परिवर्तन को अधिक समय तक न पनपने दें। नियमित रूप से जांच कराते रहें और अपने चिकित्सक से तुरन्त सम्पर्क करें।
याद रहे- प्रारम्भिक अवस्था मेंं निदान होने पर ही सम्पूर्ण उपचार सम्भव है।
कैन्सर से जुड़े भ्रम:- कैंसर एक ऐसा रोग है जिसमेंं तरह-तरह की भ्रांतियां और डर जुड़े हुए हैं। एक अध्ययन के अनुसार भारत मेंं कैंसर को नियंत्रित करने के लिए जागरुकता की कमी मुख्य रुप से जिम्मेंदार है।
कैन्सर का ज्योतीषीय कारण व निवारण- भारतीय दर्शन मेंं निरोगी रहना प्रथम सुख माना गया है. यथा- ''पहला सुख निरोगी काया यह बिल्कुल सत्य है कि निरोगी शरीर ही प्रथम सुख है और बाकी सभी सुख निरोगी शरीर पर ही निर्भर करते हैं। आजकल के दौड़ धूप के युग मेंं पूर्णत: निरोगी रहना अधिकांश व्यक्तियों के लिये एक स्वप्न के समान ही है. निरोगी शरीर का अर्थ है का शरीर रोग से रहित होना। रोग दो प्रकार के होते है एक- साध्य रोग जो कि उचित उपचार, आहार, व्यवहार से ठीक हो जाते हैं दूसरे असाध्य रोग जो कि उपचार के बाद भी व्यक्तिओं का पीछा नहीं छोड़ते है।
इस आलेख में कैंसर रोग के ज्योतिषीय पहलू का विवेचन करते है, आयुर्वेद के अनुसार त्वचा की छठी परत जिसे आयुर्वेद में रोहिणी कहते है जिसका संस्कृत मेंं अर्थ है ''कोशिकाओं की रचनाÓÓ। जब ये कोशिकायें क्षतिग्रस्त होती हैं तो शरीर के उस हिस्से में एक ग्रन्थि बन जाती है इस ग्रन्थि को असमान्य शोथ भी कहते है। जिसे आयुर्वेद में विभिन्न स्थान और प्रकार के नामों से जाना जाता है जैसे: अबुर्द, गुल्म, शालुका आदि। जब ये शोथ त्रिदोषों (वात, पित्त, कफ) के नियंत्रण से परे हो जाते हैं, तब यह ग्रन्थि कैंसर का रूप ले लेती हैं।
ज्योतिष पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों का आधार है अर्थात हम ज्योतिष द्वारा ज्ञात कर सकते हैं कि हमारे पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों का परिणाम हमें इस जन्म में किस प्रकार प्राप्त होगा। ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार कोई भी रोग पूर्व जन्मकृत कर्मों का ही फल होता है। ग्रह उन फलों के संकेतक हैं, ज्योतिष विज्ञान कैंसर सहित सभी रोगों की पहचान मेंं सहायक होता है। पहचान के साथ-साथ यह भी मालूम किया जा सकता है कि कैंसर रोग किस अवस्था मेंं होगा तथा उसके कारण मृत्यु आयेगी या नहीं, यह सभी ज्योतिष विधि द्वारा जाना जा सकता है। कैंसर रोग की पहचान निम्न ज्योतिषीय योग होने पर बड़ी आसानी से की जा सकती है:-
1. राहु को विष माना गया है यदि राहु का किसी भाव या भावेश से संबंध हो एवं इसका लग्न या रोग भाव से भी सम्बन्ध हो तो शरीर में विष की मात्रा बढ़ जाती है।
2. षष्टेश लग्न, अष्टम या दशम भाव मेंं स्थित होकर राहु से दृष्ट हो तो कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
3. बारहवें भाव मेंं शनि-मंगल या शनि-राहु, शनि-केतु की युति हो तो जातक को कैंसर रोग देती है।
4. राहु की त्रिक भाव या त्रिकेश पर दृष्टि हो भी कैंसर रोग की संभावना बढ़ाती है।
5. षष्टम भाव तथा षष्ठेश पीडि़त या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थित हो।
6. बुध ग्रह त्वचा का कारक है अत: बुध अगर क्रूर ग्रहों से पीडि़त हो तथा राहु से दृष्ट हो तो जातक को कैंसर रोग होता है।
7. बुध ग्रह की पीडि़त या हीनबली या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थिति भी कैंसर को जन्म देती है।
बृहत पाराशरहोरा शास्त् के अनुसार षष्ठ पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद होता है यथा ''रोग स्थाने गते पापे , तदीशी पाप..... अत: जातक रोगी होगा और यदि षष्ठ भाव मेंं राहु व शनि हो तो असाध्य रोग से पीडि़त हो सकता है।
Pt.P.S.Tripathi
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