Monday 2 November 2015

वृश्चिक लग्न में मंगल का प्रभाव

वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाले जातकों की कुंडली के विभिन्न भावों मे मंगल का प्रभाव
अगर लग्न (प्रथम भाव) में मंगल हो तो जातक को व्यवसाय आदि में कुछ कठिनाइयों के साथ सफलता मिलती है | उसकी शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है, किन्तु कभी-कभी बीमार भी होना पड़ता है । उसे होने वाली कोई भी बीमारी जानलेवा सिद्ध नहीं होती । प्रारंभ में स्त्री की तरफ से कुछ असंतोष रहता है, मगर बाद में सब कुछ ठीक-ठाक हो जाता है । द्वितीय भाव में मंगल के होने से जातक परिश्रम द्वारा धनोपार्जन करता है तथा परिवार का सुख कुछ कठिनाइयों के साथ मिलता है । शारीरिक सुख एवं स्वास्थ्य में कमी रहती है । संतान, विद्या और बुद्धि के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है । यदि तृतीय भाव में मंगल हो तो जातक का पारिवारिक लोगों से कुछ वैमनस्य रहता है। वह जलने वालों पर प्रभाव बनाए रखता है । भाग्य की अपेक्षा पुरुषार्थ पर अधिक भरोसा रखता है । धर्म का यथाविधि पालन नहीं करता । व्यावसायिक रूप से वह बहुत सफल रहता है ।चतुर्थ भाव में कुंभ राशि पर स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को स्त्री से मतभेद के बावजूद सहयोग मिलता है । परिश्रम द्वारा वह सफलता, यश, सुख एवं सम्मानादि की प्राप्ति करता है । पंचम भाव स्थित मंगल से जातक को परेशानी और कठिनाइयों के साथ संतान, विद्या, नौकरी या कारोबार, सुशील पत्नी, माता-सिता का स्नेह तथा सफलता की प्राप्ति होती है । षष्ठ भाव में मंगल से प्रभावाधीन व्यक्ति का भाग्य उसका बहुत अधिक साथ नहीं देता । यही कारण है कि उसके लाभ, यश और सम्मान में कमी आती है । जीवन-यापन के लिए उसे बहुत अधिक परिश्रम करना पड़ता है । सप्तम भाव में मंगल के स्थित रहने से जातक को स्त्री की और से परेशानी रहती है तथा जननेन्दिय में कुछ विकार होता है । उसके व्यक्तित्व का विकास होता है तथा शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है ।
अष्टम भाव में मंगल के रहने से जातक के शारीरिक सुख एवं आकर्षण में भी आती है । उसके पेट में विकार रहता है । किन्तु वह जो भी कार्य करता है, उसमें अच्छी आमदनी होती है । यदि नवम भाव में मंगल हो तो जातक का माता की ओर से वैमनस्य रहता है । भूति, मकान और व्यवसाय आदि के सुख में भी कमी रहती है | दशम भाव में मंगल के होने से जातक स्वस्थ, पुष्ट तथा स्वाभिमानी होता है । उसे पत्नी और पुत्र का पूर्ण सुख मिलता है । आजीविका में कोई कमी नहीं होती । एकादश भाव में मंगल से प्रभावाधीन जातक शारीरिक रोगों से पीड़ित, पारिवारिक सुख प्राप्त करने वाला, स्वाभिमानी तथा प्रभावशाली होता है । द्वादस भाव में मंगल के रहने से जातक का व्यय अधिक होता है । उसे बाहरी स्थानों से शांति तथा सम्मान की प्राप्ति होती है । उसका शरीर दुर्बल रहता है ।
Pt.P.S.Tripathi
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