Monday, 13 April 2015

आत्मविश्वास की कमी ज्योतिषीय कारण


आत्मविश्वास वस्तुत: एक मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति है। आत्मविश्वास से ही विचारों की स्वाधीनता प्राप्त होती है और इसके कारण ही महान कार्यों में सरलता और सफलता मिलती है। इसी के द्वारा आत्मरक्षा होती है। जो व्यक्ति आत्मविश्वास से ओत-प्रोत है, उसे अपने भविष्य के प्रति किसी प्रकार की चिन्ता नहींं सताती। दूसरे व्यक्ति जिन सन्देहों और शंकाओं से दबे रहते हैं, वह उनसे सदैव मुक्त रहता है। यह प्राणी की आंतरिक भावना है। इसके बिना जीवन में सफल होना अनिश्चित है। आत्मविश्वास वह अद्भुत शक्ति है जिसके बल पर एक अकेला मनुष्य हजारों विपत्तियों एवं शत्रुओं का सामना कर लेता है। निर्धन व्यक्तियों की सबसे बड़ी पूंजी और सबसे बड़ा मित्र आत्मविश्वास ही है। इस संसार में जितने भी महान कार्य हुए हैं या हो रहे हैं, उन सबका मूल तत्व आत्मविश्वास ही है। संसार में जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, यदि हम उनका जीवन इतिहास पढ़ें तो पाएंगे कि इन सभी में एक समानता थी और वह समानता थी- आत्मविश्वास की।
जब किसी व्यक्ति को यह अनुभव होने लगता है कि वह उन्नति कर रहा है, ऊंचा उठ रहा है, तब उसमें स्वत: आत्मविश्वास से पूर्ण बातें करने की शक्ति आ जाती है। उसे शंका पर विजय प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति के मुखमण्डल पर विजय का प्रकाश जगमगा रहा हो, सारा संसार उसका आदर करता है और उसकी विजय, विश्वास में परिणीत हो जाती है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है, वह स्वत: दिव्य दिखाई पडऩे लगता है, जिसके कारण हम उसकी ओर खिंच जाते हैं और उसकी शक्ति पर विश्वास करने लगते हैं। कहते हैं उस व्यक्ति के लिए मौके की और सफलता की कोई कमी नहींं है जिसमें आत्मविश्वास होता है। परफेक्ट पर्सनलिटी वही होता है जिसमें कॉन्फीडेन्स होता है। आत्मविश्वास वह चॉबी है जो जिस व्यक्ति के हाथ में होती है उसके लिए हर ताले को खोलने की कला सिखा देता है। कोई व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान हो, कितना भी सुन्दर हो लेकिन अगर उसमें आत्मविश्वास नहींं है तो वह चाहकर भी वह सफलता प्राप्त नहींं कर पाता है।
आत्मविश्वास की कमी से हममें असुरक्षा और हीनता का भाव आ जाता है। अगर हमारा आत्मविश्वास कम हो तो हमारा रवैया नकारात्मक् रहता है और हम तनाव से ग्रस्त रहते हैं। नतीजतन हमारी एकाग्रता भी कम हो जाती है और हम निर्णय लेते समय भ्रमित और गतिहीन से हो जाते हैं। इससे हमारा व्यक्तित्व पूरी तरह से खिल नहींं पाता। ऐसे में सफलता तो कोसों दूर रहती है।
कैसे बढ़ाएं आत्मविश्वास:
हमें सर्वप्रथम् खुद को अपनी ही नजरों में उठना पड़ेगा। इसलिए हमें देखना पड़ेगा की हम कभी अपने को किसी से कम न समझें और न ही किसी और के साथ अपना मुल्याँकन करें या करने दें। यह जान लें कि हम सब अपनी-अपनी जगह पर सही व पूर्ण हैं। और जब-जब हम अपनी तुलना किसी और से करते हैं तब-तब हम अपने साथ एक बहुत बड़ा अपराध करते हैं।
आत्मविश्वास को बढ़ाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम होगा जब हम खुद को मायूस कर देने वाले व्यक्तियों व नकारात्मक् परिस्थितियों से कोसों दूर रखें क्योंकि यह हमारे आत्मविश्वास को एकदम क्षीण कर देती हैं। इनसब के विपरीत हमें अपना उत्साह बढ़ाने के लिए खुद को सकारात्मक वैचारिक-संदेश देते रहना चाहिए कि मैं श्रेष्ठ हूँ, पूर्ण हूँ, सम्पूर्ण हूँ। मुझमें कोई कमी नहींं है। मैं कोई भी कार्य करने में सक्षम् हूँ। मैं सही हूँ।
यह भी याद रखें कि हमारे हाथ में केवल कर्म करना होता है, और कर्मठता से प्रयास करने वाले ही को प्रभु सफलता देता है। अगर हम किसी कार्य को करते हुये विफल भी होते हैं तो इसमें किसी प्रकार का दुख या रंज करने की जरूरत नहींं होनी चाहिए, क्योंकि हमने तो उक्त कार्य में अपनी १०० फीसदी क्षमता का पूर्ण उपयोग किया है। इस तरह के सोच से आपमें अवसाद और निराशा नहीं रहेगी बल्कि एक प्रकार की नई स्फूर्ति और तेज आयेगा कि हम तो ईश्वर के दिये हुये कार्य को मन लगाकर कर रहे हैं, बाकि तो सब उसके हाथ है।
ज्योतिषीय शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। यदि सूर्य कमजोर होता है तो ऐसा व्यक्ति चाहकर भी आगे नहींं बढ़ पाता है। क्योंकि ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह माना गया है। उसी तरह कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मन का कारक ग्रह होता है। अगर कुंडली में सूर्य, पाप ग्रहों से पिडि़त हो या कुंडली में खराब घर यानी छठे, आंठवें या बारहवें भाव में हो तो अशुभ फल देता है। इससे व्यक्ति का आत्मविश्वास कम होने का योग बनता है। चंद्रमा अगर कुंडली में नीच राशि, वृश्चिक के साथ अपने शत्रु ग्रह की राशि में हो या कुंडली के अशुभ घर में हो तो व्यक्ति का मन कमजोर तो हो ही जाता है साथ ही वह डरपोक होता है और उसमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।
अगर चंद्रमा के साथ ही गुरू और बुद्धि का स्वामी बुध, अच्छी स्थिति में हो तो वो व्यक्ति बहुत ही बुद्धिमान होता है। मतलब जन्मकुंडली में सूर्य और चन्द्र अच्छी स्थिति में हो तो उसका व्यक्तित्व, आत्मविश्वास से भरा होता है। वैसे तो इंसान अपना आत्मविश्वास खुद बढ़ाता है लेकिन ज्योतिष के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। अत: किसी भी जातक की कुंडली में इन ग्रहों के कमजोर होने, नीच के होने या शत्रु स्थान या ग्रहों से पीडि़त होने की स्थिति में इन ग्रहों के उपाय कर तथा उचित कर्मकाण्ड से ग्रहों को मजबूत कर के भी आत्मविश्वास को बढ़ाया जा सकता है।
आत्मविश्वास को बढ़ाने के ये उपाय करें-
* तृतीयेश के मंत्रों का जाप करना, उस ग्रह के पदार्थ का दान करना चाहिए।
* लग्रेश को बली करने के लिए लग्र के रत्न को धारण करना, लग्रेश ग्रह का व्रत, मंत्रजाप तथा दान करना चाहिए।
* आत्मविश्वास का कारक ग्रह सूर्य है, अत: प्रत्येक व्यक्ति को सूर्य को मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए सूर्य का मंत्र ''ú घृणि सूर्याय नम: का सूर्योदय के समय जाप करना चाहिए।
* चंद्रमा को बलवान करने के लिए चंद्रमा के मंत्र का जाप सफेद पदार्थ जैसे चावल, दूध, शक्कर आदि का दान करना चाहिए।
* कालपुरुष की कुंडली में तीसरा स्थान बुध को प्रदान किया गया है, अत: बुध के मंत्रों का जाप, गणेश जी की उपासना, हरी चीजों का दान, गणेश जी को भोग लगाकर प्रसाद वितरण करना चाहिए।

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राशियों के अनुसार तय करें व्यापार


किसी भी व्यक्ति के लिए आजीविका का साधन चयन करना तथा उसके बाद उस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना सिर्फ उसके प्रयास पर ही निर्भर नहीं करता है बल्कि उसके प्रयास के लिए उचित समय तथा उस समय के अनुसार सहीं दिशा में किया गया प्रयास बहुत हद तक सफलता प्राप्त करने में कारक होता है। कई बार बहुत प्रयास करने के बाद भी हानि से बचना मुश्किल हो जाता है वहीं कोई ऐसा भी होता है जिसके बिना प्रयास करने के बाद भी उसे लाभ प्राप्त होता रहता है। यह ना केवल भाग्य के बल पर होता है अपितु इसके पीछे उस जातक की कुंडली के अनुसार उसके व्यापार का प्रकार, उस व्यापार से संबंधित ग्रह एवं उस से संबंधित दिशा में किए गए व्यापार जातक को पूर्ण लाभ तथा सफलता की उचाईयों पर लेके जाता है। प्राचीन भारतीय शास्त्र अनुसार प्रत्येक ग्रह की अपनी एक दिशा तथा स्थान निर्धारित है जोकि आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भी सच साबित हुई है। माना जाता है कि प्रत्येक ग्रह की अपनी एक उॅर्जा होती है उसी के अनुरूप उसकी दिशा तथा स्थान तय करते हैं। सूर्य के लिए पूर्व दिशा निर्धारित है चूॅकि सूर्य तेजोमय तथा प्रकाश का कारक है अत: सूर्य को पूर्व दिशा तथा उच्च स्थान का स्वामी माना जाता है। अत: सरकारी सेवा, उच्च स्तरीय प्रशासनिक सेवा, विदेश सेवा, उड्डयन, ओषधि व चिकित्सा, सभी प्रकार के अनाज, लाल रंग के पदार्थ, प्लाई वुड का कार्य, सर्राफ ा, वानिकी, ऊन व ऊनी वस्त्र, पदार्थ विज्ञान, अन्तरिक्ष विज्ञान, एफोटोग्राफी फिल्मों का निर्देशन राजनीति इत्यादि सूर्य के क्षेत्र हैं। उत्तर पूर्व पर गुरू का अधिकार है चूॅकि गुरू को सकारात्मक और तेज का ग्रह माना जाता है अत: उत्तर पूर्व दिशा तथा धनु एवं मीन राशि प्रदान किया गया है। बैंकिंग, न्यायालय, पीले पदार्थ, स्वर्ण, शिक्षक, पुरोहित, शिक्षण संस्थाएं, राजनीति, पुस्तकालय, सभी प्रकार के फल, मिठाइयाँ, मोम, घी, प्रकाशन, प्रबंधन, दीवानी, वकालत इत्यादि गुरू के क्षेत्र हैं। उत्तर पर बुध का अधिकार इस उद्देश्य से दिया गया है कि बुध सक्रियता तथा रचनात्मकता का स्वामी होता है अत: उत्तर दिशा में इस प्रकार के कर्म से जीवन में रचनात्मकता तथा सक्रियता के कारण सफलता प्राप्ति में सहायता मिल सकती है। मिथुन तथा कन्या राशियों वालों के लिए उत्तर दिशा लाभदायी होती है। व्यापार, गणित, संचार क्षेत्र, मुनीमी, दलाली, आढ़त, हरे पदार्थ जैसे सब्जियां, शेयर मार्किट, लेखाकार, कम्प्यूटर, फोटोस्टेट, मुद्रण, ज्योतिष, लेखन, डाक-तार, समाचार-पत्र, दूतकर्म, टाइपिस्ट, कोरियर-सेवा, बीमा, सैलटैक्स, आयकर विभाग, सेल्स, गणित व कोमर्स के अध्यापक, हास्य-व्यंग के चित्रकार या कलाकार इत्यादि बुध के क्षेत्र है। उसी प्रकार चंद्रमा को उत्तर पश्चिम का स्वामी माना जाता है क्योंकि यह रचनात्मकता विचार ज्यादा करने का कारक होता है। कर्क राशि वाले इस क्षेत्र में ज्यादा सफल हो सकते हैं। श्वेत पदार्थ जैसे चांदी, जल से उत्पन्न पदार्थ, डेयरी उद्योग, कोल्ड ड्रिंक्स, मिनरल वाटर, आइस क्रीम, आचार, चटनी-मुरब्बे, नेवी, जल आपूर्ति विभाग, नहरी एवं सिंचाई विभाग, नमक, चावल, चीनी, पुष्प सज्जा, मशरूम, नर्सिंग, यात्राएं, मत्स्य से सम्बंधित क्षेत्र, सब्जियां, लांड्री, आयात-निर्यात, मोती, आयुर्वेदिक औषधियां, कथा-कविता लेखन इत्यादि चंद्रमा के क्षेत्र हैं। शनि को पश्चिम दिशा का अधिकार है क्योंकि शनि ग्रह को नाकारात्मक तथा धीमा ग्रह माना जाता है। पश्चिम दिशा तथा कमजोर लोग के साथ मकर तथा कुंभ राशि वाले सफल होते हैं। नौकरी, मजदूरी, ठेकेदारी, लोहे का कार्य, मैकेनिकल, इंजिनियर, चमड़े का काम, कोयला, पेट्रोल, प्लास्टिक व रबर उद्योग, काले पदार्थ, स्पेयर पाट्र्स, पत्थर, चिप्स, श्रम, समाज कल्याण विभाग, प्रेस, टायर उद्योग, पलम्बर, मोटा अनाज, कुकिंग गैस, घडिय़ों का काम, कबाड़ी का काम, भवन निर्माण सामग्री इत्यादि शनि के कार्य हैं। दक्षिण दिशा में मंगल का अधिकार है चूंकि मंगल उग्र तथा दाह देने वाला ग्रह माना जाता है अत: मेष तथा वृश्चिक राशि वाले दक्षिण दिशा में क्रूर तथा भारी कार्य में सफल बनते हैं। धातुओं से सम्बंधित कार्य क्षेत्र, सेना, पुलिस, चोरी, बिजली का कार्य, विद्युत्-विभाग, इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रोनिक, इंजीनियर, लाल रंग के पदार्थ जैसे जमीन का क्रय-विक्रय, बेकरी, कैटरिंग, हलवाई, इंटों का भ_ा, रक्षा विभाग, खनिज पदार्थ, बर्तनों का कार्य, वकालत, शस्त्र निर्माण, बॉडी बिल्डिंग, साहसिक खेल, ब्लड बैंक, फायर ब्रिगेड, आतिशबाजी, रसायन शास्त्र, होटल एवं रेस्तरां, फास्ट-फूड, जूआ, मिटटी के बर्तन व खिलोने, शल्य चिकित्सक इत्यादि से संबंधित मंगल का कार्य है। उसी प्रकार दक्षिण पश्चिम दिशा को राहु का कारक माना जाता है क्योंकि रहस्य और नाकारात्मक प्रभाव राहु से आता है। इलेक्ट्रानिक तथा लिंक से हटकर कार्य करने में राहु से प्रभावित कुंडली ज्यादा सक्षम होती है। दक्षिण-पूर्व पर शुक्र का राज है क्योंकि उष्ण और तेजयुक्त माना जाता है अत: दक्षिण-पूर्व दिशा तथा सुख तथा भोग के साधन एवं वृषभ तुला राशि वाले उन्नति प्राप्त करते हैं। चांदी के जेवर या अन्य पदार्थ अगरबत्ती व धूप, श्वेत पदार्थ, कला क्षेत्र, अभिनय, टूरिज्म, वाहन, दूध-दही, चावल, शराब, श्रृंगार के साधन, गिफ्ट हॉउस, चाय-कोफी, गारमेंट्स, इत्र, ड्रेस-डिजायनिंग, मनोरंजन के साधन, फिल्म उद्योग, वीडियो पार्लर, मैरिज ब्यूरो, इंटीरियर, डेकोरेशन, हीरे के आभूषण, पालतू पशुओं का व्यापार या चिकित्सा, चित्रकला तथा स्त्रियों के काम में आने वाले पदार्थ, मैरिज पैलेस एवं विवाह में काम आने वाले सभी कार्य व पदार्थ इत्यादि शुक्र के कार्य हैं। साथ ही उत्तर पूर्व पर केतु का अधिकार काल्पनिक तथा तेज के कारण प्रदान किया गया है। अत: यदि जीवन में अपनी राशि एवं दिशा के अनुरूप व्यवसाय या कार्य का चयन किया जाय तो परिणाम साकारात्मक हो सकता है।

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लक्ष्मी कहाँ रहती हैं और कहाँ नहीं.......?



जातक की कुंडली में यदि शुभ ग्रहों का वास हो तभी उसके परिश्रम और उद्यम का उचित फल प्राप्त होता है अन्यथा वह सदा अलक्ष्मी या निर्धन ही बना रहता है। इसलिए यह जानना जरूरी है कि ज्योतिषाचार्यों के अनुसार लक्ष्मी का वास किस वस्तुओं और किन दशाओं में होता है...
इस भौतिकवादी युग में जीवनयापन के लिए धन का होना परम आवश्यक है और धनोपार्जन के लिए श्रम के साथ-साथ धन की देवी भगवती लक्ष्मी की निष्ठापूर्वक पूजा उपासना करना जरूरी है। साथ ही यह जानना भी उतना ही जरूरी है कि भगवती किस स्थान पर और किस तरह के आचरण के व्यक्ति के घर में स्थायी रूप से वास करती हैं। इस जानकारी के अभाव में उपार्जित धन भी हाथ से निकल जाता है। यहां इसी बात को ध्यान में रखते हुए कुछ महत्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत किए जा रहे हैं जिनका अनुसरण कर सुधी पाठकगण अपने घर में लक्ष्मी के स्थायी वास के उपाय कर सकते हैं। सबसे पहले देखें कि लक्ष्मीजी किन-किन जगहों पर निवासरत रहना चाहती हैं जैसा कि हमारे शास्त्रों में कहां गया है-
लक्ष्मी कहां रहती हैं
* मधुर बोलने वाला, कर्तव्यनिष्ठ, ईश्वर भक्त, कृतज्ञ, इन्द्रियों को वश में रखने वाले, उदार, सदाचारी, धर्मज्ञ, माता-पिता की भक्ति भावना से सेवा करने वाले, पुण्यात्मा, क्षमाशील, दानशील, बुद्धिमान, दयावान और गुरु की सेवा करने वाले लोगों के घर में लक्ष्मी का स्थिर वास होता है।
* जिसके घर में पशु-पक्षी निवास करते हों, जिसकी पत्नी सुंदर हो, जिसके घर में कलह नहीं होता हो, उसके घर में लक्ष्मी स्थायी रूप से रहती हैं।
* जो अनाज का सम्मान करते हैं और घर आए अतिथि का स्वागत सत्कार करते हैं, उनके घर लक्ष्मी निश्चत रूप से रहती हैं।
* जो व्यक्ति असत्य भाषण नहीं करता, अपने विचारों में डूबा हुआ नहीं रहता, जो घमंडी नहीं होता, जो दूसरों के प्रति प्रेम रखता है, जो दूसरों के दुख से दुखी होकर उसकी सहायता करता है और जो दूसरों के कष्ट को दूर करने में आनंद अनुभव करता है, लक्ष्मी उसके घर में स्थायी रूप से वास करती हैं।
* जो नित्य स्नान करता है, स्वच्छ वस्त्र धारण करता है, जो दूसरी स्त्रियों पर कुदृष्टि नहीं रखता, उसके जीवन तथा घर में लक्ष्मी सदा बनी रहती हैं।
* आंवले के फल में, गोबर में, शंख में, कमल में और श्वेत वस्त्र में लक्ष्मी का वास होता है।
* जिसके घर में नित्य उत्सव होता है, जो भगवान शिव की पूजा करता है, जो घर में देवताओं के सामने अगरबत्ती व दीपक जलाता है, उसके घर में लक्ष्मी वास करती है।
* जो स्त्री पति का सम्मान करती है, उसकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करती, घर में सबको भोजन कराकर फिर भोजन करती है, उस स्त्री के घर में सदैव लक्ष्मी का वास रहता है।
* जो स्त्री सुंदर, हरिणी के समान नेत्र वाली, पतली कटि वाली, सुंदर केश श्रृंगार करने वाली, धीरे चलने वाली और सुशील हो, उसके शरीर में लक्ष्मी वास करती हैं।
* जो सूर्योदय से पहले (ब्रह्म मुहूर्त में) उठकर स्नान कर लेता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है।
* जो गया धाम में, कुरुक्षेत्र में, काशी में, हरिद्वार में अथवा संगम में स्नान करता है, वह लक्ष्मीवान होता है।
* जो एकादशी तिथि को भगवान विष्णु को आंवला फल भेंट करता है, वह सदा लक्ष्मीवान बना रहता है।
* जिन लोगों की देवता, साधु और ब्राह्मण में आस्था रहती है, उनके घर में लक्ष्मी का स्थायी वास होता है।
* जो घर में कमल गट्टे की माला, लघु नारियल, दक्षिणावर्त शंख, पारद शिवलिंग, श्वेतार्क गणपति, मंत्रसिद्ध श्री यंत्र, कनकधारा यंत्र, कुबेर यंत्र आदि स्थापित कर नित्य उनकी पूजा करता है, उसके घर से लक्ष्मी पीढिय़ों तक वास करती हैं।
* धर्म और नीति पर चलने वाले तथा कन्याओं का सम्मान करने लोगों के जीवन और घर में लक्ष्मी स्थायी रूप से वास करती हैं।
लक्ष्मी कहां नहीं रहती हैं
* जो लोग आलसी होते हैं, जो ईश्वर में विश्वास नहीं करते, जो भ्रष्टाचारी, चोर तथा कपटी होते हैं, उनके पास लक्ष्मी नहीं रहती हैं।
* जो लोग बुद्धिमान नहीं होते, धन-प्राप्ति के लिए प्रयत्न नहीं करते, उनके जीवन में लक्ष्मी कभी नहीं आती हैं ।
* जो व्यक्ति गुरु का अनादर करता है, जो गुरु के घर चोरी करता है, जो गुरु पत्नी पर बुरी नजर रखता है, उसके जीवन और घर में लक्ष्मी नहीं रहतीं।
* जो व्यक्ति देवताओं को बासी पुष्प अर्पित करता है, जो गंदा रहता है, जो टूटे-फूटे या फटे हुए आसन पर बैठता है, उसे लक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती है।
* जो व्यक्ति घर में आया हुआ या घर में बनाया हुआ मिष्टान्न घर में रहने वालों को दिए बिना ही खा लेता है, जो घर की रसोई में भेद-भाव रखता है, लक्ष्मी उसका साथ छोड़ देती हैं।
* दूसरों का धन हड़पने वाले, पर-स्त्री गमन करने वाले, सूर्योदय के बाद तक सोने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी त्याग देती हैं।
* जो देवताओं की पूजा नहीं करता, उसके जीवन तथा घर में लक्ष्मी कभी नहीं रहती हैं।
* जो व्यक्ति व्यर्थ ही हंसता रहता है, जो खाते वक्त हंसता है, लक्ष्मी उसके पास कभी नहीं रहती हैं।
* जो स्त्री गंदी और पाप कर्म में रत रहती है, जो पर-पुरुषों में मन लगाती है, जिसका स्वभाव दूषित होता है, जो बात-बात पर क्रोध करती है, जो अपने पति को दबाने के लिए रोष प्रदर्शन, छल या मिथ्या भाषण करती है, उसके घर लक्ष्मी नहीं रहती।
* जो स्त्री अपने घर को सजा कर नहीं रखती, जिसके विचार उत्तम नहीं होते, जो अपना घर छोड़ दूसरों के घर नित्य जाती रहती है, जिसे लज्जा नहीं आती, उसके घर में लक्ष्मी कभी नहीं रहती हैं।
* जो स्त्री दयाहीन होती है, स्वभाव से निर्दयी होती है, दूसरों की चुगली करने में लगी रहती है, जो दूसरों को लड़ा-भिड़ाकर स्वयं को चतुर समझती है, उसके घर में लक्ष्मी वास नहीं होता है।
* जो स्त्री स्वयं को सजा-संवार कर नहीं रखती या जिस स्त्री का घर सजा-संवरा नहीं होता, उसके घर लक्ष्मी नहीं रहतीं।
* नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों के साथ लक्ष्मी नहीं रहती हैं।
* जो स्त्री अपने पति की प्रिय नहीं होती, उसके घर में लक्ष्मी नहीं रहती हैं।
* जो स्त्री अपने घर में पूजा का स्थान नहीं रखती, जो देवताओं की आरती नहीं उतारती, उन्हें धूप नहीं दिखाती, जो आरती नहीं गाती, लक्ष्मी उसका साथ नहीं देती हैं।
* जिसका कोई गुरु नहीं होता, उसे लक्ष्मी की कृपा नहीं मिलती।
* जो स्त्री दिन में सोती रहती है, माता-पिता, सास-ससुर का आदर नहीं करती, उसके घर में लक्ष्मी कभी नहीं रहती हैं।
* जो व्यक्ति पुरुषार्थहीन और अकर्मण्य होता है, उसके घर लक्ष्मी नहीं आती।
* जो अपने घर में शिव, विष्णु, गणपति और शालिग्राम को स्थापित नहीं करता और उनकी नित्य पूजा नहीं करता, उसके घर लक्ष्मी नहीं रहती हैं।
* जो लक्ष्मी के स्तोत्र का पाठ या मंत्र का जप नहीं करता, धन का अपव्यय करता है, या केवल भोग में ही जीवन का सुख समझता है, उसे लक्ष्मी कृपा कभी प्राप्त नहीं होती।
* जिसके घर में कलह होता है, जो अपनी पत्नी का बात बात पर अपमान करता है, उसे नौकरानी समझता है, उसके घर लक्ष्मी का वास नहीं होता।
लक्ष्मीजी के निवास से संबंधित ज्योतिषीय गणना:
जब गुरू एवं शुक्र चंद्रमा से युत या दृष्ट हों, अथवा सूर्य बुध का योग कारक स्थिति में हो या विपरीत राजयोग बन रहा हो, अथवा बलवान मंगल या राहु दशम भाग में हों, अथवा मंगल योगकारक होकर शुभ स्थान में हों, तब लक्ष्मी प्राप्ती का योग होता है। इसके विपरीत यदि तृतीयेश अशुभ स्थान अथवा राहु जैसे पापाक्रांत ग्रहों से दृष्ट हों तो ऐसा व्यक्ति हीन मनोबल, व्यसनी, आलस्य या क्रोध के कारण श्रीहीन होता है। कुछ परिस्थितयों में शनि से आक्रांत राहु अथवा चंद्रमा राहु या सुर्य राहु या भाग्येश के साथ राहु अथवा अष्टमगत राहु कुछ परिस्थितियों में आर्थिक कष्ट देते हैं। इसके अलावा भाग्येश के छटवे, आंठवे या बारहवे स्थान में हो तो जीवन में लक्ष्मी की कमी बनी रहती है।
जिस जातक के द्वितीयेश, चतुर्थेश अथवा भाग्येश उच्च, स्वग्रही अथवा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो ऐसे जातक के घर पर लक्ष्मीजी का स्थाई निवास होता है। जिस जातक की कुंडली में इन ग्रहों पर पाप ग्रहों का वास, इन ग्रहों के स्वामी छठवे, आठवे या बारहवें हों, अथवा इन स्थानों में राहु आ जावें, तो उनके यहां लक्ष्मी जी रूठ कर चली जाती हैं अथवा जिनके शुभ ग्रहों पर राहु की वक्र दृष्टि हो अथवा शुभ ग्रह नीच अथवा पापीग्रहों के साथ निवास करें उनके यहां लक्ष्मी जी का निवास नहीं होता है। अत: लक्ष्मी जी के स्थाई निवास के लिए अपने इन ग्रहों की स्थिति किसी विद्धान ज्योतिष से दिखकर उक्त ग्रहों की शांति, ग्रहों के मंत्रों का जाप, संबंधित ग्रहों से संबंधित दान आदि कर अपने उक्त स्थान को मजबूत करने तथा लक्ष्मी जी के अपने पास स्थाई निवासरत रहने की चेष्टा करनी चाहिए।

क्या आप भी बिना अर्थ जाने पढ़ते हैं हनुमान चालीसा।।।।।


क्या आप भी बिना अर्थ जाने पढ़ते हैं हनुमान चालीसा।।।।।
शक्ति व बल के प्रतीक पवन पुत्र हनुमान, भगवान राम के परम भक्त थे. भक्तगण उन्हें भय और कष्ट से मुक्ति पाने के लिए पूजते हैं व उनकी अराधना में ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ पढ़ते हैं. यह पाठ हमारे लिए किसी भी विकार व डर को दूर करने में सहायक होता है. लेकिन क्या आपने कभी हनुमान चालीसा के प्रत्येक अक्षर का अर्थ समझा है? यदि नहीं, तो आईए जानने की कोशिश करते हैं. दोहा: श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि। बरनउ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥ बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार॥ अर्थ: इन पंक्तियों में राम भक्त हनुमान कहते हैं कि चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को स्वच्छ कर, श्रीराम के दोषरहित यश का वर्णन करता हूं जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चार फल देने वाला है. इस पाठ का स्मरण करते हुए स्वयं को बुद्धिहीन जानते हुए, मैं पवनपुत्र श्रीहनुमान का स्मरण करता हूं जो मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करेंगे और मेरे कास्ट रहे. जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥ राम दूत अतुलित बल धामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥ महाबीर बिक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥ कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥ अर्थ: इसका अर्थ है कि हनुमान स्वंय ज्ञान का एक विशाल सागर हैं जिनके पराक्रम का पूरे विश्व में गुणगान होता है. वे भगवान राम के दूत, अपरिमित शक्ति के धाम, अंजनि के पुत्र और पवनपुत्र नाम से जाने जाते हैं. हनुमान महान वीर और बलवान हैं, उनका अंग वज्र के समान है, वे खराब बुद्धि दूर करके शुभ बुद्धि देने वाले हैं, आप स्वर्ण के समान रंग वाले, स्वच्छ और सुन्दर वेश वाले हैं व आपके कान में कुंडल शोभायमान हैं. हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे,काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥ शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥ विद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥७॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मनबसिया॥८॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा, विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥ भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥ अर्थ: अर्थात हनुमान के कंधे पर अपनी गदा है और वे हरदम श्रीराम की अराधना व उनकी आज्ञा का पालन करते हैं. हनुमान सूक्ष्म रूप में श्रीसीताजी के दर्शन करते हैं, भयंकर रूप लेकर लंका का दहन करते हैं, विशाल रूप लेकर राक्षसों का नाश करते हैं. आप विद्वान, गुणी और अत्यंत बुद्धिमान हैं व श्रीराम के कार्य करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं. हनुमान के महान तेज और प्रताप की सारा जगत वंदना करता है. लाय सजीवन लखन जियाए, श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥ रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥ सहस बदन तुम्हरो जस गावै, अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥ अर्थ: भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण की जान बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाकर हनुमान जी ने अपने आराध्य श्रीराम का मन मोह लिया. श्रीराम इतने खुश हुए कि उन्होंने अपने भाई भरत की तरह अपना प्रिय भाई माना. इससे हमें सीख लेनी चाहिए. किसी काम को करने में देर नहीं करनी चाहिए, अच्छे फल अवश्य मिलेंगे. सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥ जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥ अर्थ: हनुमान जी का ऐसा व्यक्तित्व है जिसका कोई भी सनक आदि ऋषि, ब्रह्मा आदि देव और मुनि, नारद, यम, कुबेर आदि वर्णन नहीं कर सकते हैं, फिर कवि और कोई क्या।तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥ अर्थ: भाव, हनुमान ने ही श्रीराम और सुग्रीव को मिलाने का काम किया जिसके चलते सुग्रीव अपनी मान-प्रतिष्ठा वापस हासिल कर पाए. तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना, लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥ अर्थ: हनुमान की सलाह से ही विभीषण को लंका का सिंघासन हासिल हुआ. जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥ प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही, जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥ अर्थ: इन पंक्तियों से हनुमान के बचपन का ज्ञात होता है जब उन्हें भीषण भूख सता रही थी और वे सूर्य को मीठा फल समझकर उसे खाने के लिए आकाश में उड़ गए. आपने वयस्कावस्था में श्रीराम की अंगूठी को मुंह में दबाकर लंका तक पहुंचने के लिए समुद्र पार किया. दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥ राम दुआरे तुम रखवारे, होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥ अर्थ: जब आपकी जिम्मेदारी में कोई काम होता है, तो जीवन सरल हो जाता है. आप ही तो स्वर्ग यानी श्रीराम तक पहुंचने के द्वार की सुरक्षा करते हैं और आपके आदेश के बिना कोई भी वहां प्रवेश नहीं कर सकता. सब सुख लहैं तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥ आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥ भूत पिशाच निकट नहि आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥ नासै रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥ अर्थ: अर्थात हनुमान के होते हुए हमें किसी प्रकार का भय सता नहीं सकता. हनुमान के तेज से सारा विश्व कांपता है. आपके नाम का सिमरन करने से भक्त को शक्तिशाली कवच प्राप्त होता है और यही कवच हमें भूत-पिशाच और बीमारियों बचाता है. संकट तै हनुमान छुडावै, मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥ सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥ और मनोरथ जो कोई लावै,सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥ अर्थ: इसका अर्थ है कि जब भी हम रामभक्त हनुमान का मन से स्मरण करेंगे और उन्हें याद करेंगे तो हमारे सभी काम सफल होंगे. हनुमान का मन से जाप करने से सभी संकट दूर हो जाते हैं. चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥ साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥ अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥ अर्थ: आप सभी जगह समाए हो, आपकी छवि चारों लोकों से भी बड़ी है व आपका प्रकाश सारे जगत में प्रसिद्ध है. आप स्वंय साधु- संतों की रक्षा करने वाले हैं, आप ही तो असुरों का विनाश करते हैं जिसके फलस्वरूप आप श्रीराम के प्रिय भी हैं. इतने बल व तेज के बावजूद भी आप कमजोर व मददगार की सहायता करते हैं व उनकी रक्षा के लिए तत्पर तैयार रहते हैं. राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥ तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥ अंतकाल रघुवरपुर जाई, जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥ और देवता चित्त ना धरई,हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥ अर्थ: इस पंक्ति का अर्थ है कि केवल हनुमान का नाम जपने से ही हमें श्रीराम प्राप्त होते हैं. आपके स्मरण से जन्म- जन्मान्तर के दुःख भूल कर भक्त अंतिम समय में श्रीराम धाम में जाता है और वहाँ जन्म लेकर हरि का भक्त कहलाता है. दूसरे देवताओं को मन में न रखते हुए, श्री हनुमान से ही सभी सुखों की प्राप्ति हो जाती है. संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥ जै जै जै हनुमान गुसाईँ, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥ अर्थ: अर्थात हनुमान का स्मरण करने से सभी दुख-दर्द खत्म हो जाते हैं. आपका दयालु हृदय नम्र स्वभाव लोगों पर हमेशा दया करता है. जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥ जो यह पढ़े हनुमान चालीसा, होय सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥ अर्थ: इस पंक्ति से तात्पर्य है कि यदि आप सौ बार हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं तो आपको सिर्फ सुख व शांति प्राप्त होगी बल्कि शिव-सिद्धी भी हासिल होगी और साथ ही मनुष्य जन्म-मृत्यु से भी मुक्त हो जाता है. तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥ अर्थ: महान कवि तुलसीदास ने अपनी इस कविता का समापन करते हुए बताया है कि वे क्या हैं?...वे स्वयं को भगवान का भक्त कहते हैं, सेवक मानते हैं और प्रार्थना करते हैं कि प्रभु उनके हृदय में वास करें। पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥ अर्थ: आप पवनपुत्र हैं, संकटमोचन हैं, मंगलमूर्ति हैं व आप देवताओं के ईश्वर श्रीराम, श्रीसीता जी और श्रीलक्ष्मण के साथ मेरे हृदय में वास करे।

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ॐ के 11 शारीरिक लाभ:


ॐ के 11 शारीरिक लाभ:
ॐ , ओउम् तीन अक्षरों से बना है। अ उ म् । "अ" का अर्थ है उत्पन्न होना, "उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास, "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है। जानें, ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक और अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग...
1. ॐ और थायरायडः ॐ का उच्‍चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
2. ॐ और घबराहटः अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।
3. ॐ और तनावः यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।
4. ॐ और खून का प्रवाहः यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।
5. ॐ और पाचनः ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है।
6. ॐ लाए स्फूर्तिः इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।
7. ॐ और थकान: थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।
8. ॐ और नींदः नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चिंत नींद आएगी।
9. ॐ और फेफड़े: कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है।
10. ॐ और रीढ़ की हड्डी: ॐ के पहले शब्‍द का उच्‍चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है।
11. ॐ दूर करे तनावः ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है।
आशा है आप अब कुछ समय जरुर ऊँ का उच्चारण करेंगे। साथ ही साथ इसे उन लोगों
तक भी जरूर पहुंचायेगे जिनकी आपको फिक्र है पहला सुख निरोगी काया अपना ख्याल रखिये,खुश रहें।

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मेटल- माह की शुरूआत में मंगल मूल नक्षत्र में रहेगा, अत: मेटल में भारी उतार-चढ़ाव दिख सकता है किंतु बाद में तेजी की उम्मीद है। निवेशकों को टाटा स्टील, सेल, हिडको, नलको जैसी कंपनियों में गिरावट पर खरीदारी की सलाह दी जा सकती है।
फर्मा और हेल्थ केयर- मंगल ग्रह की दृष्टि बृहस्पति पर है, फर्मा और हेल्थ केयर में माह के उत्तारार्ध में तेजी देखी जा सकती है, गिरावट पर अथवा मौजूदा भाव पर निवेश लाभ प्रद हो सकता है। डरेडी, फोर्टीस, सनफर्मा, सीपला आदि पर सुरक्षित निवेश के स्थान हो सकते हैं।
बैंकिंग और फायनेंस- बृहस्पति का अश£ेषा नक्षत्र में भ्रमण बैंकिंग और फायनेंस के शेयरों में ऊपरी स्तर पर सावधान रहने की सलाह देता है। उतार-चढ़ाव के कारण निवेशक दुविधा में फस सकता है, बाजार ऊपर जाने पर मुनाफा वसूल जरूर करेगा। खास कर पीसीयू बैंक में अचानक गिरावट दिखने मिल सकती है।
आईटी सेक्टर- माह के पूर्वाध में इस क्षेत्र में कुछ खरीदारी की स्थिति रहेगी, किंतु माह के उत्तरार्ध में इस क्षेत्र में अचानक गिरावट देखने को मिल सकती है। 13-14 और 27-28नवंबर को इस क्षेत्र में विशेष रैली हो सकती है।
एफएमसीजी- इस क्षेत्र में इस माह निवेश बनाये रखने, हर गिरावट पर खरीदने और माह के अंत में मुनाफा वसूल कर सकते हैं।
आयल-गैस- इस माह के प्रथम दस दिनों में क्रुड आयल में मिला-जुला रुझान रहेगा। किंतु शनि के प्रभाव में शुक्र के रहने से द्वितीय दस दिनों में भारी गिरावट हो सकती है। कैरन और ओएमसी के शेयर में ऊपर के स्तरों पर बिकवाली हो सकती है। रिलायंस, ओएनजीसी आदि को गिरावट पर खरीद सकते हैं।
मिडिया सेक्टर- मिडिया सेक्टर के क्षेत्र में तेजी बरकरार रहेगी किंतु माह के अंतिम दस दिनों में मुनाफा वसूली दिखाई दे सकती है।
केमिकल और फर्टिजाईजर- 2-3 नवंबर और 17-18नवंबर को इस क्षेत्र में विशेष रूप से तेजी हो सकती है। अन्य दिनों में मिला-जुला रुझान रहेगा।
पावर सेक्टर- माह के पूर्वाध में सूर्य के निचस्थ होने के कारण इस क्षेत्र में गिरावट होगी किंतु अंतिम सप्ताह में तेजी लौट आयेगी।
इंडेक्स- नवंबर माह में इंडेक्स में भारी उतार-चढ़ाव दिखने को मिल सकता है। किंतु अश£ेषा नक्षत्र में बृहस्पति होने के कारण मुख्य क्षेत्र बैंकिंग ऊपर के स्तर पर नहीं टिक सकेगी और मार्केट बार-बार नई ऊंचाई तक पहुंचने में सफल होता दिखेगा। पीसीयू बैंकस में अचानक भारी गिरावट हो सकती है। सावधान रहें।
विशेष आकलन- 7-8और 13-14 नंवबर को शराब कंपनियों के शेयर जैसे यूनाइटेड स्पिरिट और यूबीएल आदि में तेजी रह सकती है। इस माह ऑटो के क्षेत्र में खरीदारी देखने मिल सकती है। कैपिटर गूड्स, रियलटी और इनफ्रा के संबंधित शेयर में बिकवाली के असर दिख सकते हैं। चीनी, होटल और पेंट के क्षेत्र में 16-17 नंवबर और 27-नवंबर को रैली हो सकती है। माह के पूर्वाध में ही ये क्षेत्र सुरक्षित दिखाते हैं।

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कर्णवेध संस्कार


सनातन अथवा हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को पवित्र एवं मर्यादित बनाने के लिये संस्कारों का अविष्कार किया। धार्मिक ही नहींं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति की महानता में इन संस्कारों का महती योगदान है। प्राचीन काल में हमारा प्रत्येक कार्य संस्कार से आरम्भ होता था। उस समय संस्कारों की संख्या भी लगभग चालीस थी। जैसे-जैसे समय बदलता गया तथा व्यस्तता बढ़ती गई तो कुछ संस्कार स्वत: विलुप्त हो गये। इस प्रकार समयानुसार संशोधित होकर संस्कारों की संख्या निर्धारित होती गई। गौतम-स्मृति में चालीस प्रकार के संस्कारों का उल्लेख है। महर्षि अंगिरा ने इनका अंतर्भाव पच्चीस संस्कारों में किया। व्यास-स्मृति में सोलह संस्कारों का वर्णन हुआ है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गई है। इनमें पहला गर्भाधान संस्कार और मृत्यु के उपरांत अंत्येष्टि अंतिम संस्कार है।
शिशु की शारीरिक व्याधियों से रक्षा करने के उद्देश्य से किया जाने वाला यह कर्णवेधन संस्कार, दशम संस्कार है। कर्णवेधन का अर्थ होता है, कान छेदना। कर्णवेध संस्कार का आधार बिल्कुल वैज्ञानिक है। कान हमारे श्रवण के दरवाजे हैं, कर्ण वेधन से व्याधियां दूर होती हैं और सुनने की शक्ति भी बढ़ती है। हवन करने के बाद इस संस्कार को करने का विधान है। इस संस्कार में पिता प्रार्थना करता है कि हे विद्वानों! हम कानों से अच्छी बातें सुने, आँखों से अच्छी वस्तुएँ देखें और हमारे शरीर के भिन्न अंग सुदृढ़ और अपने- अपने कर्तव्य पालने में समर्थ हो और हमारी आयु संसार के हित में व्यय हो। इसका यह अर्थ है कि पिता यह प्रार्थना करता है कि बालक का जीवन भी समाज के हितों में व्यय हो। बौधायन गृह्य-शेष-सूत्र के अनुसार बालक के जन्म से सातवें या आठवें महीने में उसके कानों की पालि छेदनी चाहिए।
कर्णवेध का महत्व:
एक संस्कार विशेष अथवा अनुष्ठान विशेष के रुप में इसे प्रतिष्ठापित किये जाने के संबंध में ऐसा प्रतीत होता है कि कालांतर में आयुर्विज्ञान संबंधी ग्रंथों में कर्णवेधन को स्वास्थ्यरक्षक तथा रोगोवरोधक माने जाने के कारण व्यक्ति की स्वास्थ्य रक्षा के लिए इसकी अनिवार्यता को ध्यान में रखकर इसे एक संस्कार का रुप देकर अन्य संस्कारों के समान ही इसे भी अनिवार्य कर दिया गया। इस संदर्भ में आचार्य सुश्रुत का कहना है, रोगादि से रक्षा एवं कर्णाभूषणों को धारण करने के लिए कानों का वेधन कराना चाहिए। इसके साथ ही उनका यह भी कहना है कि अंडकोष की वृद्धि, आंतों की वृद्धि ( हर्निया ) के निरोध के लिए भी कर्णवेध कराना चाहिए। उल्लेख है कि यह औकूपंचर के नाम से जानी जाने वाली आधुनिक चिकित्सा प्रणाली का ही एक रुप था।
क्रियाविधि:
कर्मकाण्डप्रदीप के अनुसार बालक का पिता प्रात: कालीन स्नान संध्या से निवृत्त होकर पूर्वांग पूजा के निमित्त संकल्प लेकर गणेशपूजन, गौर्यादि षोडश मातृका पूजन, नान्दीश्राद्ध, पुण्याहवाचन करके कलशस्थापन पूर्वक नवग्रहपूजन करे। माता की गोदी में स्थित भूषणवस्रादि से अलंकृत शिशु को खाने के लिए तिलादि के लड्डू देकर लग्नदान संकल्प के बाद सोने या चाँदी की बाली से पहले भद्रंकर्णेभि मंत्र के साथ दाहिने कान को फिर वक्ष्यंत्री वेदागनीगन्ति से बांये कान को बींधे। ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर उनसे अभिषेक, तिलक, रक्षाबंधन, घृतच्छाया आदि करवा कर जीव मातृ का पूजन, नीराजन करे। यह संस्कार इसलिए किया जाता है कि ताकि संतान स्वस्थ रहे, उन्हें रोग और व्याधि परेशान न करें। गौर करने वाली बात यह है कि बालक शिशु का पहले दाहिना कान फिर बायां कान और कन्या का पहले बायां कान फिर दायां कान छेदना चाहिए यानी कर्णवेधन करना चाहिए।
समय का आंकलन:
कर्ण वेध के विषय में कहा जाता है कि यह संस्कार बालक के जन्म से दसवें, बारहवें, सोलहवें दिन या छठे, सातवें आठवें महीने में किया जा सकता है।
कर्णवेधन का नक्षत्र:
कर्णवेध संस्कार के लिए मुहुर्त ज्ञात करते समय यह देखना चाहिए कि नक्षत्र कौन सा है। इस संस्कार के लिए मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजीत, श्रवण, घनिष्ठा और पुनर्वसु अति शुभ माने जाते हैं। इन नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र में आप यह संस्कार कर सकते हैं।
वार:
वार का विचार करते समय देखना चाहिए कि कर्णवेध के दिन सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार में से कोई वार हो। इन वारों को इस कर्म हेतु शुभ और उत्तम माना गया है।
तिथि:
कर्णवेध संस्कार के लिए चतुर्थ, नवम एवं चतुर्दशी तिथियों एवं अमावस्या तिथि को छोड़कर सभी तिथि शुभ मानी गयी है। आप जब भी अपनी संतान का कर्णवेध करवाएं उस समय ध्यान रखें कि ये तिथि न हो, बाकि किसी भी तिथि में उपरोक्त स्थिति होने पर यह संस्कार सम्पन्न किया जा सकता है।
लग्न:
ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि वैसे तो सभी लग्न जिसके केन्द्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम) एवं त्रिकोण (पंचम, नवम) भाव में शुभ ग्रह हों तथा (तृतीय, षष्टम, एकादश) भाव में पापी ग्रह हों तो वह लग्न उत्तम कहा जाता है। यहां वृष, तुला, धनु व मीन को विशेष रूप से शुभ माना जाता है। यदि बृहस्पति लग्न में हो तो यह सर्वोत्तम स्थिति कही जाती है।
निषेध:
कर्णवेध के लिए खर मास यानी (जब सूर्य धनु/ मीन राशि में हो), क्षय तिथि, हरिशयन (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक जन्म मास (चन्द्र मास), सम वर्ष (द्वितीय, चतुर्थ) इत्यादि को कर्ण-वेध संस्कार में त्याज्य किया जाना चाहिए। चन्द्र शुद्धि एवं तारा शुद्धि अवश्य की जानी चाहिए।

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मास शिवरात्रि व्रत


मास शिवरात्रि व्रत कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। इस दिन एक दिन पूर्व भोजन कर दिनभर निराहार रहकर पत्रपुष्प तथा सुंदर वस्त्रों से मंडल तैयार करके वेदी पर कलश की स्थापना कर गौरी शंकर की स्वर्णमूर्ति तथा नंदी की चॉदी की मूर्ति रखकर अथवा सामान्य रूप से उपयोग करने वाली मूर्ति स्थापित कर कलश में जल से भरकर रोली, मोली, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, चंदन, दूध, घी, शहद, कमलगट्टा, धतूरा, बेलपत्र आदि का प्रसाद शिवजी पर अर्पित करके पूजा करनी चाहिए। दूसरे दिन प्रात: जौ, तिल, खीर तथा बेलपत्र का हवन करके ब्राम्हणों को भोजन करवाकर व्रत का पारण करना चाहिए। इस प्रकार इस व्रत के करने से भगवान महादेव तथा भगवती गौरी का आशीर्वाद प्राप्त होने से जीवन के कष्ट समाप्त होकर सांसारिक दुखों से निवृत्ति प्राप्त होती है।

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बृहस्पति का ज्योतिष महत्व

ज्योतिषीय महत्व: उत्तर कालामृत के अनुसार बृहस्पति की प्रमुख विशेषताएं-
1. ब्राह्मण 2. शिक्षक 3. गाय 4. खजाना 5. विशाल या मोटा शरीर 6. यश 7. तर्क 8. खगोल विद्या और ज्योतिष विद्या 9. पुत्र 10. पौत्र 11.बड़ा भाई 12. इन्द्र 13. बहुमूल्य रत्न 14. धर्म 15. पीला रंग 16. शारीरिक स्वास्थ्य 17. निष्पक्ष दृष्टिकोण 18. उत्तर की ओर मुख 19. मंत्र 20. पवित्र जल या धार्मिक स्थल 21. बुद्धि या ज्ञान 22. भगवान ब्रम्हा 23. सोना और बेहतरीन पुखराज 24. भगवान शिव की पूजा 25. शास्त्रीय ग्रन्थों का ज्ञान 26. वेदांत
सामान्यत: यह देखा गया है कि मजबूत बृहस्पति उपर्युक्त मामलों में अच्छा होता है, वहीं बृहस्पति कमजोर हो तो इनका अभाव दिखता है। ज्योतिष में बृहस्पति के अलावा किसी अन्य से निष्पक्ष लाभ नहीं मिलता। लग्न या केंद्र में बृहस्पति की उपस्थिति मात्र ही कुंडली के कई कष्टों को कम करता है। बृहस्पति सबसे बड़ा और शुभ ग्रह है। अगर बृहस्पति बलवान हो तो अन्य ग्रहों की स्थिति ठीक न रहने पर भी अहित नही होता।
जिसका बृहस्पति बलवान होता है उसका परिवार समाज एवं हर क्षेत्र में प्रभाव रहता है। बृहस्पति बलवान होने पर, शत्रु भी सामना होते ही ठंडा हो जाता है। बृहस्पति प्रधान व्यक्ति को सामने देखकर हमारे हाथ अपने आप उन्हें नमस्कार करने के लिए उठ जाते हैं। बृहस्पति व्यक्ति कभी बोलने की शुरूआत पहले नही करते यह उसकी पहचान है। निर्बल बृहस्पति व्यक्ति का समाज एवं परिवार में प्रभाव नही रहता। ज्योतिष विद्या बृहस्पति की प्रतीक है।
न्यायाधीश, वकील, मजिस्ट्रेट, ज्योतिषी, ब्राम्हण, बृहस्पति, धर्मगुरू, शिक्षक, सन्यासी, पिता, चाचा, नाटा व्यक्ति इत्यादि बृहस्पति के प्रतीक हैं तो ज्योतिष, कर्मकांड, शेयर बाजार, शिक्षा, शिक्षा से संबंधित किताबों का व्यवसाय, धार्मिक किताबों और चित्रों का व्यवसाय, वकालत, शिक्षा संस्थाओं का संचालन इत्यादि बृहस्पति के प्रतीक रूप व्यवसाय है। इनमें सफलता प्राप्त करने के लिए बृहस्पति प्रतीकों का उपयोग करना चाहिए। बैंक मैनेजर,कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर आदि बृहस्पति के प्रतीक है। फाइनेंस कंपनी, अर्थ मंत्रालय भी बृहस्पति के प्रतीक है।
चना दाल, शक्कर, खांड, हल्दी, घी, नमक, बृहस्पति की प्रतीक रूप चीजें है। संस्कृत बृहस्पति की प्रतीक भाषा है। ईशान्य या उत्तर बृहस्पति की दिशाएं है। शरीर में जांघ बृहस्पति का प्रतीक है। मंदिर मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च बृहस्पति के प्रतीक है। बृहस्पति का रंग पीला है।
घर की तिजोरी में बृहस्पति का वास है। बृहस्पति अर्थतंत्र का कारक है। ज्योतिषशास्त्र खजाने को बृहस्पति का प्रतीक मानता है। घर में रखे धर्मग्रंथ देखने से भी व्यक्ति के बृहस्पति का अंदाजा मिल जाता है।
रोग: अशुभ गुरु शरीर में कफ, धातु एवं चर्बी (मोटापा) की वृद्धि करता है। मधुमेह, गुर्दे का रोग, सूजन, मूर्च्छा, हर्निया, कान के रोग, स्मृति विकार, जिगर के रोग, पीलिया, फेफड़ों के रोग, मस्तिष्क की रक्तवाहिनियों के रोग, हृदय को धक्का पहुंचना, पेट खराब करता है। मोटापे के बहुत सारे कारणों में से एक कारण आपकी कुंडली में बृहस्पति ग्रह का गलत जगह पर बैठना भी हो सकता है। जिन जातक की जन्म (लग्न) कुंडली में देव गुरू बृहस्पति किसी पापी ग्रह से दृष्ट हो, किसी पापी ग्रह के साथ युति हो अथवा गुरू की महादशा,अन्तर्दशा अथवा प्रतांतर चल रहा हो तब भी मोटापे का प्रभाव देखने में आता है। गुरू ग्रह की डिग्री (अंश) की भी भूमिका महत्वपूर्ण होती है, यदि बृहस्पति जन्मपत्रिका में अस्त या वक्री हों तो मोटापे से संबंधित दोष आते हैं और पाचन तंत्र के विकार परेशान करते हैं। जब-जब गोचर में बृहस्पति लग्न, लग्नेश तथा चंद्र लग्न को देखते हैं तो वजन बढने लगता है।
वास्तव में हमारे शरीर की संरचना हमारी कुंडली निर्धारित करती है। चंद्रमा, बृहस्पति और शुक्र ये तीन ग्रह शरीर में वसा की मात्रा को नियंत्रित करते हैं। वात, पित्त व कफ की मात्रा बढऩे से शरीर में मोटापा बढ़ता है। इसके अलावा यदि लग्न में जलीय राशि जैसे कर्क, वृश्चिक हो और इनके स्वामी भी शुभ हो या लग्न में जलीय प्रकृति का ग्रह हो तो शरीर पर मोटापा बढ़ेगा ही। ऐसी स्थिति में बाहरी उपाय की बजाय ग्रहों को मजबूत करना फायदा देगा।
बृहस्पति आशावाद के प्रतीक हैं, गुरू हैं तथा देवताओं के मुख्य सलाहकार हैं। वे उपदेशक हैं, प्रवाचक हैं तथा सन्मार्ग पर चलने की सलाह देते हैं। वे विज्ञान हैं, दृष्टा हैं तथा उपाय बताते हैं जिनसे मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो। यदि गुरू अपने सम्पूर्ण अंश दे दें तो व्यक्ति महाज्ञानी हो जाता है।
बृहस्पति के उपाय हेतु जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए उनमें चीनी, केला, पीला वस्त्र, केशर, नमक, मिठाईयां, हल्दी, पीला फूल और भोजन उत्तम कहा गया है। इस ग्रह की शांति के लिए बृहस्पति से संबंधित रत्न का दान करना भी श्रेष्ठ होता है। दान करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए कि दिन बृहस्पतिवार हो और सुबह का समय हो। दान किसी ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को देना विशेष फलदायक होता है। बृहस्पतिवार के दिन व्रत रखना चाहिए। कमज़ोर बृहस्पति वाले व्यक्तियों को केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों, पक्षियों विशेषकर कौओं को देना चाहिए। ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावल खिलाना चाहिए। पीपल के जड़ को जल से सींचना चाहिए। गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवास होता है अत: इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है।
1. ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए।
2. सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
3. ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर नि:शुल्क सेवा करनी चाहिए।
4. किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
5. ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
6. गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
7. गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
8. गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं। इन उपायों से होगा लाभ।
* गुरू आध्यात्मिक ज्ञान का कारक है अत: ब्राम्हण देवता, गुरू का सम्मान करे।
* वृहस्पति वार को ब्रम्ह वृहस्पताये नम: का जाप करे।
* यदि कुंडली में बृहस्पति खराब हो या उच्च स्थित हो (बुरे भाव का स्वामी होकर) तो तैलीय-मसालेदार भोजन से परहेज रखें। गले में हल्दी की गाँठ गुरूवार को धारण करने से मोटापे पर नियंत्रण हो सकता है। पीली वस्तुओं का दान और गुरू के मंत्र का जाप लाभ दे सकता है।
* कई बार गोचर के ग्रहों का लग्न से भ्रमण होने पर भी मोटापा बढ़ता है। अत: इन ग्रहों का अध्ययन करके अन्य उपायों के साथ इन उपायों को अपनाने से उपयुक्त फल प्राप्त हो सकते हैं।
* गुरूवार के दिन गुरू यानि देवगुरू बृहस्पति के वैदिक मंत्र जप से पेट रोग और मोटापे से पैदा हुई परेशानियों से निजात मिलती है। इनमें अपेंडिक्स, हार्निया, मोटापा, पीलिया, आंत्रशोथ, गैस की समस्या आदि प्रमुख है।
* बृहस्पति के दोषों के निवारण के लिए शिव सहस्त्र नाम जप, गऊ और भूमि का दान तथा स्वर्ण दान करने से अरिष्ट शांति होती है।
* गुरूवार के दिन देवगुरू बृहस्पति की पूजा में गंध, अक्षत, पीले फूल, पीले पकवान, पीले वस्त्र अर्पित कर इस गुरू का यह वैदिक मंत्र बोलें या किसी विद्वान ब्राह्मण से इस मंत्र के जप कराएं -
ऊँ बृहस्पतेति यदर्यो अर्हाद्युमद्विभार्ति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवसे ऋतु प्रजात तदस्मासु द्रविणं देहि चितम्।
संभव हो तो यह मंत्र जप करने या करवाने के बाद योग्य ब्राह्मण से हवन गुरू ग्रह के लिए नियत हवन सामग्री से कराना निश्चित रूप से पेट रोगों में लाभ देता है।
* गुरूवार को बृहस्पति पूजन में केले का पूजन लाभ देता है।

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इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है।

1. ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए।
2. सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
3. ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर नि:शुल्क सेवा करनी चाहिए।
4. किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
5. ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
6. गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
7. गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
8. गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं। इन उपायों से होगा लाभ।
* गुरू आध्यात्मिक ज्ञान का कारक है अत: ब्राम्हण देवता, गुरू का सम्मान करे।
* वृहस्पति वार को ब्रम्ह वृहस्पताये नम: का जाप करे।
* यदि कुंडली में बृहस्पति खराब हो या उच्च स्थित हो (बुरे भाव का स्वामी होकर) तो तैलीय-मसालेदार भोजन से परहेज रखें। गले में हल्दी की गाँठ गुरूवार को धारण करने से मोटापे पर नियंत्रण हो सकता है। पीली वस्तुओं का दान और गुरू के मंत्र का जाप लाभ दे सकता है।
* कई बार गोचर के ग्रहों का लग्न से भ्रमण होने पर भी मोटापा बढ़ता है। अत: इन ग्रहों का अध्ययन करके अन्य उपायों के साथ इन उपायों को अपनाने से उपयुक्त फल प्राप्त हो सकते हैं।
* गुरूवार के दिन गुरू यानि देवगुरू बृहस्पति के वैदिक मंत्र जप से पेट रोग और मोटापे से पैदा हुई परेशानियों से निजात मिलती है। इनमें अपेंडिक्स, हार्निया, मोटापा, पीलिया, आंत्रशोथ, गैस की समस्या आदि प्रमुख है।
* बृहस्पति के दोषों के निवारण के लिए शिव सहस्त्र नाम जप, गऊ और भूमि का दान तथा स्वर्ण दान करने से अरिष्ट शांति होती है।
* गुरूवार के दिन देवगुरू बृहस्पति की पूजा में गंध, अक्षत, पीले फूल, पीले पकवान, पीले वस्त्र अर्पित कर इस गुरू का यह वैदिक मंत्र बोलें या किसी विद्वान ब्राह्मण से इस मंत्र के जप कराएं -
ऊँ बृहस्पतेति यदर्यो अर्हाद्युमद्विभार्ति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवसे ऋतु प्रजात तदस्मासु द्रविणं देहि चितम्।
संभव हो तो यह मंत्र जप करने या करवाने के बाद योग्य ब्राह्मण से हवन गुरू ग्रह के लिए नियत हवन सामग्री से कराना निश्चित रूप से पेट रोगों में लाभ देता है।
* गुरूवार को बृहस्पति पूजन में केले का पूजन लाभ देता है।खगोलशास्त्रीय विवरण: बृहस्पति लघु ग्रहों की झुण्ड से परे है। सूर्य से इसकी दूरी 500मिलियन मील है और यह हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसका व्यास 88,000 मील है जो पृथ्वी के व्यास का लगभग 12 गुना है। यह सूर्य का एक चक्कर लगभग 12 सालों में पूरा करता है।
पौराणिक कथा: बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं। उनके पिता हैं महर्षि अंगीरा। महर्षि की पत्नी ने सनत कुमार से ज्ञान लेकर पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत शुरू किया। उनकी श्रद्धा और भक्ति देखकर भगवान खुश हुए और उनके घर में पुत्र का जन्म हुआ। यही पुत्र बुद्धि के देवता बृहस्पति हैं।
ज्योतिषीय विवेचना: बृहस्पति धनु और मीन राशि का स्वामी है। यह कर्क राशि में 5 डिग्री उच्च का तथा मकर में 5 डिग्री नीच का होता है। इसका मूल त्रिकोण राशि धनु है। बृहस्पति ज्ञान और खुशी का दाता है। यह सौर मंडल में मंत्री की भूमिका में है। इसका रंग पीलापन लिए हुए भूरा है। बृहस्पति के इष्टदेव देवराज इंद्र हैं। यह पुल्लिंग ग्रह है। इसका तत्व आकाश है। यह ब्राह्मण वर्ण का और मुख्य रूप से सात्त्विक ग्रह है।
बृहस्पति देव का शरीर विशालकाय, आंखे शहद के रंग की और बाल भूरे हैं। ये बुद्धिमान और सभी शास्त्रों के ज्ञाता हैं। यह शरीर में मोटापा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये खजाने वाले कमरे में पाए जाते हैं। यह एक माह की अवधि को दिखाते हैं। यह मीठे स्वाद का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये पूर्व दिशा में सबल हैं। सूर्य, चन्द्र और मंगल के साथ इनका मैत्रीपूर्ण संबंध है। बुध, शुक्र के साथ इनका विरोधी संबंध है और शनि के साथ ये निष्पक्ष रहते हैं। राहु के साथ इनका संबंध मित्रवत और केतु के साथ निष्पक्ष रहता है। एक दिलचस्प बात यह है कि कोई भी ग्रह बृहस्पति को अपना विरोधी नहीं मानता जबकि बृहस्पति शुक्र और बुध को अपना शत्रु मानते हैं।

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