Monday, 1 February 2016

2016 में तुला राशि का हाल

नए साल को लेकर आपके मन में बहुत सारे सवाल उठ रहे होंगे। जैसे - नए साल में घर के निर्माण का कार्य शुरू होगा या नहीं? सफलता पाने के कौन-कौन से बेहतर तरीक़े आप अपना सकते हैं? कौन-कौन से दिन आपको सफलता दिलाने वाले होंगे? परंतु इन सवालों के जवाब जानने से पहले आइए देखते हैं कि सितारों की क्या स्थिति है? वर्ष की शुरूआत में शनि वृश्चिक के साथ एवं गुरू सिंह के साथ दिखाई दे रहें हैं। 31 जनवरी तक अपनी वर्तमान स्थान पर रहने के पश्चात् राहु सिंह में जबकि केतु कुम्भ में प्रवेश करेंगे। चलिए एक नज़र डालते हैं नए साल की की भविष्यवाणियों पर, लेकिन भविष्यवाणी बताने से पहले आपको बता दें कि यह भविष्यवाणी पूरी तरह से वैदिक ज्योतिष पर आधारित है।
पारिवारिक जीवन
तुला राशि के जातकों के लिए वर्ष 2015 का राशिफल।शनि भले ही आपके लिए योगकारक है, लेकिन अपने प्रभाव तो देगा ही। इसके प्रभाव के कारण परिवार में विच्छेद और परिवारजनों के बीच वैचारिक मतभेद होने की संभावना है। अविश्वास की भावना से लोगों के बीच दूरियाँ बढ़ेंगी। जीवनसाथी के साथ कहा-सुनी हो सकती है, लेकिन माता-पिता के साथ वास्तव में मधुर संबंध बने रहेंगे। आपके निजी ज़िन्दगी में माता जी की दख़लंदाजी बढ़ेगी, जो कि उचित नहीं है। ऐसी स्थिति पूरे साल रहने वाली है। संतान से बार-बार विवाद होने की संभावना है और उनकी सेहत को लेकर भी परेशानी हो सकती है।
स्वास्थ्य
आपकी सेहत की बात करें तो, आँखों में परेशानी, सरदर्द, जोड़ों में दर्द जैसी कुछ समस्याएँ हो सकती हैं। नियमित रूप से व्यायाम करने से ऐसी बीमारियों से निजात मिल सकता है। मालिश से भी आपको कुछ हद तक आराम मिल सकता है। पैरों की उचित देख-भाल करें। हालाँकि कुछ विशेष परेशानी नहीं होने वाली है, लेकिन स्वास्थ्य का ध्यान रखना कोई बुरी बात नहीं है। अतः सेहत का पूरा ख़्याल रखें।
आर्थिक जीवन
आर्थिक मामलों की तरफ़ रूख़ करें तो शनि का दूसरे भाव में होना और धन-कारक गुरू का राहु-केतु के अक्ष पर जाना किसी हानि की ओर संकेत कर रहा है। ऐसे समय में आपकी मुसिबतों का कारण आपका ग़लत निर्णय, ग़लत निवेश और अनुचित फ़ैसलें हो सकते हैं। इसलिए पूरी सावधानी बरतें। किसी के उपर विश्वास न करना और ख़ुद को तीस मार खान समझना भी नुकसान का कारण हो सकता है। अहंकार और अति आत्मविश्वास के कारण आपको शर्मिंदा होना पड़ सकता है, इसलिए इन पर काबू रखें। यह आप पर ही निर्भर करता है कि आप किसे ज़्यादा महत्व देते हैं, अपने कर्मों को या अहंकार और अति आत्मविश्वास को?
नौकरी पेशा
नौकरी-पेशे के मामलों में सितारों की बात करें तो छठे भाव का गुरू, राहु-केतु के बीच फँसा हुआ है और इसके उपर शनि की दृष्टि भी है। लेकिन अच्छी बात यह है कि इस समय गुरू के ग्यारहवें भाव में होने के कारण आपको ज़्यादा हानि नहीं वाली है। राहु और केतु जब तक क़रीब नहीं आ जाते, जब तक आपको ख़ुशियाँ मिलेगी। वरिष्ठों और सहकर्मियों का भरपूर सहयोग मिलेगा। सभी लोग आपके साथ कंधा-से-कंधा मिलाकर चलने के लिए तैयार रहेंगे। नई नौकरी मिल सकती है और सैलरी में बढ़ोत्तरी भी हो सकती है। हालाँकि 11 अगस्त के बाद आपको ज़्यादा सतर्क रहने की ज़रूरत है। कार्य-स्थल पर सभी लोगों के साथ शिष्टता से पेश आएँ और सकारात्मक रवैया अपनाएँ।
कारोबार
किसी भी प्रकार के भूमि संबंधी लेन-देन में दो-चार लोगों के सलाह लेकर ही फ़ैसला लेना आपके लिए हितकर होगा। जोश में आकर निर्णय लेना आर्थिक नुक़सान का कारण बन सकता है। इस वर्ष सोच-समझकर पैसे ख़र्च करेें और उधार लेने से परहेज़ करें। दोस्त और अन्य लोग आपको धोखा दे सकते हैं, इसलिए हर कदम फूँक-फूँक कर रखें। 11 अगस्त के बाद यदि आपके उपर गुरू की महादशा चल रही हैै तो भारी नुक़सान और अनावश्यक ख़र्च होने की संभावना है।
प्रेम-संबंध
इस वर्ष ऐसा लग रहा है कि आपके भविष्यफल की किताब से प्रेम वाला पन्ना कहीं ग़ायब हो गया है। यह सच भी है, इस वर्ष आपको प्रेम-संबंधों से सुख नहीं मिलने वाला है। अविवाहतों को अविवाहित ही रहना पड़ेगा और जो लोग किसी के साथ रिश्ते निभा रहें हैं उनको भी काफ़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है। दोनों तरफ़ से विश्वास की कमी रह सकती है। सुझ-बुझ से काम लें और रिश्तों को बरक़रार रखने की हर-संभव कोशिश करें। किसी प्रकार के शक़ को पैदा न होने दें।

2016 में कन्या राशिफल का हाल



नए साल का आग़ाज़ होने में मात्र कुछ ही दिन शेष बचें हैं। इसे लेकर आपके मन में कुछ हलचल भी हो रही होगी। जैसे - आने वाले साल में क्या कुछ ख़ास होगा? नौकरी मिलेगी या नहीं? आर्थिक स्थिति कैसी रहेगी? ऐसे ही बहुत सारे सवाल होगें जो आपको परेशान कर रहें होंगे। आइए सबसे पहले शुरू करते हैं सितारों (ग्रहों) की चाल से, क्योंकि पूरा ज्योतिष ग्रहों की चाल पर ही आधारित है। वर्ष की शुरूआत में शनि वृश्चिक और बृहस्पति सिंह के साथ हैं। 31 जनवरी के बाद राहु सिंह में और केतु कुम्भ में प्रवेश करेंगे। आइए अब एक नज़र डालते हैं नए साल की संभावनाओं पर।
पारिवारिक जीवन
कन्या राशि के जातकों के लिए वर्ष 2015 का राशिफल।नया साल आपका पारिवारिक जीवन के लिहाज़ से कुछ ख़ास नहीं बितने वाला है। जीवनसाथी के साथ अनबन होने की संभावना है। कुछ दिनों के लिए एक दूजे से दूर भी रहना पड़ सकता है, हालाँकि यह दीर्घकाल के लिए भी हो सकता है। इसके पीछे का कारण आप दोनों के विचारों में असमानता हो सकती है। इसका समाधान मामला ज़्यादा बिगड़ने से पहले ही कर लें तो बेहतर होगा। जीवनसाथी के साथ मतभेद होगा, लेकिन परिवारजनों के साथ रिश्ते मधुर रहेंगे, हालाँकि यहाँ भी वैचारिक मतभेद होने की संभावना है। भाई-बहनों के रिश्तों की बात करें तो यह अनुकूल नहीं रहेगा, यही हाल मामा के रिश्तों के साथ भी हो सकता है। 11 अगस्त के बाद समय आपकी झोली में आने वाला है, इसलिए ज़्यादा चिंता करने की कोई बात नहीं है।
स्वास्थ्य
वैसे तो आप बेहतर स्वास्थ्य के धनी हैं, लेकिन इस साल के 11 अगस्त तक स्वास्थ्य एक चिंता का विषय हो सकता है। इसके साथ-साथ कुछ हद तक मानसिक तनाव और शारीरिक परेशानी भी सकती है। चेहरा, पाचन-तंत्र, गला और आँत से संबंधित शिकायत हो सकती है। स्वस्थ्य आहार लेने और योग करने से इन परेशानियों से बचा जा सकता है। कोई पुरानी बीमारी फिर से आपको परेशान कर सकती है। अतः इस वर्ष अपनी सेहत का पूरी तरह से ख़्याल रखें और खान-पान पर भी विशेष ध्यान दें।
आर्थिक जीवन
नए साल में आर्थिक हानि स्पष्ट रूप से नज़र आ रही है, लेकिन इस मामलें में आप भाग्यशाली हैं। बृहस्पति के बारहवें भाव में बैठने के कारण कुछ लोगों को आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ सकता है। पैसों के मामले में कुछ लोग आपके साथ धोखा-धड़ी भी कर सकते हैं, इसलिए ऐसे मामलों में ज़्यादा सतर्क रहें। अपनी क्रिया-कलापों पर ध्यान दें तथा सच्चे और विश्वासी लोगों से ही संबंध रखें तो बेहतर होगा। कुछ ऐसे लोग आपको दग़ा दे सकते हैं जिन पर आप सबसे ज़्याादा यक़िन करते हों और वे आपसे बड़े भी हों। अपने स्व-विवेक का इस्तेमाल करें और ऐसे लोगोंं से दूरी बनाकर रहें।
नौकरी पेशा
आपके दशम भाव पर किसी ग्रह की दृष्टि नहीं है जो आपके लिए अच्छा शुभ-समाचार है। मीडिया से जुड़े लोगों को इस वर्ष लाभ मिलने वाला है। कार्यस्थल पर संतुष्टिजनक काम मिलेगा। अगस्त के बाद आपका प्रदर्शन और बेहतर होगा जिसके परिणामस्वरूप आपका नाम होगा। वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से सहायता मिलेगी। इससे आपका न केवल काम आसान हो जाएगा वरन आपको सफलता भी मिलेगी और पदोन्नती भी हो सकती है।
कारोबार
नौकरीपेशा लोगों को सफलता मिलेगी, लेकिन अगस्त के बाद, क्योंकि अच्छी चीज़े देर से ही मिलती हैं। यदि गुरू और शनि का प्रभाव आपके उपर पड़ रहा है तो संयम से काम लें और किसी प्रकार के निवेश करने से परहेज़ करें। किसी भी प्रकार से धन इक्कठा करने की कोशिश करें, भाग्य आपका साथ अवश्य देगा। व्यापार में अगस्त के बाद ही साझेदारी करें तो बेहतर होगा।
प्रेम-संबंध
2016 का यह साल आपके लिए शानदार साबित होगा। यदि आप किसी रिश्ते को शुरू करना चाहते हैं तो यह साल सबसे बेहतर है। दूसरी तरफ जो लोग किसी के साथ रिश्ते निभा रहें हैं उनको भी आत्मिय सुखों की प्राप्ति होगी। हालाँकि अगस्त तक अपने रिश्तों में किसी प्रकार के ख़टास को पैदा न होने दें, इससे आप दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ेंगी और रिश्ते ख़राब हो सकते हैं।

2016 में सिंह राशिफल का हाल

वर्ष की शुरूआत शनि के वृश्चिक और बृहस्पति के सिंह में जाने के साथ हो रही है। राहु और केतु अपनी वर्तमान अवस्था में रहने के पश्चात अर्थात् 31 जनवरी के बाद राहु सिंह में और केतु कुम्भ में प्रवेश करेंगे। यह तो सितारों की बात हो गई। परंतु कुछ सवालों का जवाब भी जानना ज़रूरी है। जैसे - आने वाला साल क्या ख़ास लेकर आ रहा है? कौन-कौन सी सावधानियाँ बरतनी होगी? कौन-कौन सा दिन शुभफल देने वाला होगा? आइए वैदिक ज्योतिष पर आधारित भविष्यफल में ढ़ूंढते हैं इन सवालों का जवाब।
पारिवारिक जीवन
सिंह राशि के जातकों के लिए वर्ष 2015 का राशिफल। आपकी राशि वर्ष 2016 की उन राशियों में से एक है जिनके सितारे चमकने वाले हैं। कुछ उतार-चढ़ाव भी होंगे, लेकिन वे आपकी ख़ुशियों में किसी प्रकार की बाधा नहीं पहुँचाएंगे। जीवनसाथी के साथ मधुर संबंध रहेंगे। राहु का सिंह पर धावा बोलने के कारण आप दोनों अलग हो सकते हैं या कुछ दिनों के लिए आपसी मतभेद हो सकता है। पिता के साथ संबंध अच्छे रहेंगे, लेकिन माता के साथ वैचारिक मतभेद हो सकता है। चिंता न करें इससे आपकी माता की भावनाएँ आहत नहीं होगी। रिश्तेदारों और चाहने वालों के साथ संबंध अच्छे रहेंगे।
स्वास्थ्य
इस वर्ष आप स्वास्थ्य के धनी रहेंगे। 31 जनवरी के बाद आपकी मानसिक स्थिति थोड़ी प्रभावित हो सकती है। लेकिन चिंता करने जैसी कोई बात नहीं है। वज़न बढ़ने का ख़तरा है, इसलिए मिठाई, घी और मक्खन से दूरी बनाकर रहें। आप अपनी सेहत से बेहद ही प्यार करते हैं, इसलिए ये सुझाव आपकी ज़िन्दगी के हर एक मोड़ पर मददगार साबित हो सकता हैं।
आर्थिक जीवन
इस वर्ष आपकी आर्थिक स्थिति बेहद ही शानदार रहने वाली है। इस सफर में आपको बहुत ही कम चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। ज़िन्दगी के इस सुनहरे पल का भरपूर आनंद लें और अपने कार्यों के प्रति दृढ संकल्पित रहें। कार्यों के प्रति आपके समर्पण से आय में किसी प्रकार की कोई नहीं रहेगी। 11 अगस्त के बाद आपकी आय में अप्रत्याशित वृद्धि होने वाली है।
नौकरी पेशा
नौकरी पेशा लोगों के लिए यह साल ख़ुशियों भरा रहेगा। सवाल यह नहीं उठता है कि आप किस प्रकार की नौकरी कर रहें हैं, प्रत्येक सूरत में आपको सराहना, सहयोग और ऐसी ख़ुशी मिलेगी जिसकी तलाश आप एक लम्बे अरसे से कर रहे थे। आपका प्रत्येक काम समय से पहले पूरा होगा। वर्तमान नौकरी के अलावा अन्य स्रोत से भी आपको लाभ मिलेगा। बृहस्पति की महादशा से गुजर रहे लोगों को दोगुना फ़ायदा होने वाला है।
कारोबार
किसी भी कारोबार का मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही होता है, वह है ज़्यादा-से-ज़्यादा मुनाफ़ा कमाना। यह वर्ष आपकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है। आपकी जन्म कुंडली के अनुसार इस वर्ष अपेक्षाकृत ज़्यादा मुनाफ़ा होने वाला है, लेकिन आपकी सभी मनोकामनाएँ अगस्त के बाद ही पूरी होगी। हालाँकि जो लोग कारोबार या रियल एस्टेट से जुड़े हैं, उनको थोड़ा मायूस होना पड़ सकता है। वैसे चिंता करने की बात नहीं है, आपलोगों को 11 अगस्त के बाद शेयर बाजा़र से अच्छा लाभ होने वाला है। यदि आपके राज्य में लॉटरी ग़ैरकानूनी नहीं है तो इसमें भाग्य आज़मा सकते हैं। सफल होने की संभावना है।
रेटिंग
पूरे साल प्रेम-संबंधों में मधुरता क़ायम रहेगी। रोमांस और वासना से आप परिपूर्ण रहेंगे। प्रेम-संबंध वैवाहिक संबंध में बदल सकता है। आपकी ज़िन्दगी शांति, प्यार-मोहब्बत, सामंजस्य और समझदारी से परिपूर्ण रहेगी। 11 अगस्त के बाद आपके प्यार में और प्रगाढ़ता आने वाली है।

साल 2016 में कर्क राशि का हाल

कैसा रहेगा आने वाला वर्ष? कौन-कौन से दिन होंगे शुभ? नौकरी मिलेगी या नहीं? लड़की की शादी इस वर्ष होगी या नहीं? ऐसे तमाम सवाल आपके जेहन में अवश्य ही उठ रहें होंगे। तो आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब, लेकिन इससे पहले एक नज़र डालते हैं ग्रहों की स्थिति पर। वर्ष की शुरूआत में शनि वृश्चिक के साथ और गुरू सिंह के साथ दिखाई दे रहें हैं। 31 जनवरी तक अपनी वर्तमान स्थान पर रहने के पश्चात् राहु सिंह में जबकि केतु कुम्भ में प्रवेश करेंगे। ग्रहों की बात भी हमलोगों ने कर लिया, चलिए अब जानते हैं उन सवालों के जवाब वैदिक ज्योतिष पर आधारित भविष्यफल के साथ।
पारिवारिक जीवन
मेष राशि के जातकों के लिए वर्ष 2015 का राशिफल। शास्त्रों में शनि को चंद्रमा का सबसे बड़ा शत्रु माना गया है और उनकी इस दुश्मनी का सीधा असर आपके वैवाहिक जीवन पर पड़ रहा है। जीवनसाथी की वज़ह से तो नहीं, लेकिन परिवार के अन्य सदस्यों की वज़ह से घरेलू परेशानियाँ बढ़ सकती हैं। जीवनसाथी के साथ आपका संबंध मधुर रहेगा। हालाँकि परिवारजनों के बीच दूरियाँ बढ़ सकती हैं। अगस्त के बाद स्थितियों में अप्रत्याशित सुधार होगा और प्रियतम के साथ सुनहरा पल व्यतीत होगा। इस माह के बाद दाम्पत्य जीवन में भी मधुरता आएगी।
स्वास्थ्य
यदि आपके सेहत के सितारों की ओर रूख़ किया जाए तो आँख, पेट, जाँघ और आहार नलिकाओं में कुछ दिक्क़तें आ सकती हैं। अच्छे सेहत के लिए दूषित आहार लेने से परहेज़ करें। ज़्यादा परेशानी होने पर आयुर्वेदिक दवा का सेवन करना उचित होगा। इसके बाद भी दिक्क़त कम नहीं हो रही है तो यह बेहतर होगा कि कोई दूसरा उपाय ढूंढ़ा जाए या चिकित्सक से परामर्श लिया जाए। रोज़ाना एक चम्मच नीम के पत्ते का चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लेने से भी कई बीमारियों से बचा जा सकता है।
आर्थिक जीवन
राहु आपके दूसरे भाव में लम्बे समय के लिए प्रवेश कर रहा है और बृहस्पति अगस्त के बाद आगे वाले घर में प्रवेश करेगा। इन दोनों परिस्थितियों में आर्थिक मामलों को लेकर आपको बहुत ज़्यादा सावधानी बरतने की ज़रूरत है। मीठे बातों में न आएँ और किसी के उपर पैसे ख़र्च करने से पूरी तरह से परहेज़ करें। आपके ख़िलाफ़ साजि़श भी रची जा सकती है। इस वर्ष धन प्राप्त होने का प्रबल योग है, अतः घबराएँ नहीं। हालाँकि आपकी कोई भी ग़लत कदम धन-हानि का कारण बन सकता है। अतः पूरी तरह से सतर्कता बरतें वरना कमाई हुई संपत्ति मुफ़्त में गँवानी पड़ सकती है।
नौकरी-पेशा
2016 का वर्ष आपको सफलता और प्रतिष्ठा दिलाने वाला होगा। छठे भाव के स्वामी की दृष्टि ख़ुद के घर के साथ-साथ दसवें घर भी है और राहु के साथ इसकी युति भी होने वाली है, जो कुछ परेशानियों को जन्म दे सकती है। परंतु घबराने की कोई बात नहीं है, ऐसा केवल आपके साथ ही नहीं हो रहा है। अधिनस्थों के साथ तर्क-वितर्क हो सकता है, अतः सावधानी बरतें। नई नौकरी के लिए समय उपयुक्त है। कुछ लोगों को पदोन्नती का तोहफ़ा भी मिल सकता है।
कारोबार
कारोबारियों को इस वर्ष अप्रत्याशित मुनाफ़ा प्राप्त हो सकता है। यदि ख़ुद का कारोबार है तो नाम भी मिलेगा और दाम भी। आपके प्रतिद्वंदी आपकी नक़ल करने की कोशिश करेंगे, लेकिन वे पूरी तरह से विफल रहेंगे। इस समय आपकी सफलता क्रोध और अहंकार को त्यागना में ही है। बृहस्पति की महादशा से गुजर रहेे लोगों को खुब सुख-समृद्धि मिलेगी। अन्य लोगों को भी फ़ायदा होगा, लेकिन कुछ ख़ास नहीं।
प्रेम-संबंध
प्यार-मोहब्बत के लिए यह साल सर्वथा अनुकूल है। अधेड़ के साथ प्यार हो सकता है। इसके अलावा भिन्न स्तर के इंसान के साथ भी प्रेम-संबंध पनपने की संभावना है। आपके रिश्ते अधिकांशतः ज़्यादा दिन तक नहीं टिकते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि शनि आपके आठवें भाव का स्वामी है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आपके संबंधों को खराब करता है। हालाँकि इस पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है। अपने रिश्तों की तरफ़ ध्यान दें और उसे सुदृढ़ बनाने का प्रयास करें।

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Saturday, 30 January 2016

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Wednesday, 27 January 2016

साल 2016 में वृषभ राशि का हाल

भविष्यफल के बारे में चर्चा करने से पहले यह आवश्यक है कि वर्ष 2016 में ग्रहों की स्थितियों का अध्ययन किया जाए, क्योंकि पूरा भविष्यफल ग्रहों के चाल पर ही निर्भर करता है। ग्रहों की तरफ़ रुख़ किया जाए तो वर्ष के प्रारंभ में शनि वृश्चिक में और गुरू सिंह में प्रवेश कर रहा है। राहु और केतु अपनी वर्तमान अवस्था में रहने के पश्चात् यानि 31 जनवरी के बाद क्रमशः सिंह तथा कुम्भ में प्रवेश करेंगे। पूरी तरह से वैदिक ज्योतिष पर आधारित इस भविष्यफल को पढ़ने के बाद आप साल 2016 में होने वाली गतिविधियों से पहले ही परिचित हो जाएंगे और नए साल की सटीक योजना बनाने में सफल रहेंगे।
पारिवारिक जीवन--नए साल में आपकी पारिवरिक स्थिति बेहतर रहने वाली है, बस ज़रूरत है सभी लोगों के साथ स्नेह और आपसी सौहार्द के साथ पेश आने की। परिवार के लोगों के सुझावों पर अमल करना आपके लिए फ़ायदे का सौदा हो सकता है, लेकिन इसके विरूद्ध जाना घातक हो सकता है। शनि के सातवें भाव में होने के कारण योगकारक योग बन रहा है, जो आपके लिए कुछ परेशानियों को जन्म दे सकता है, लेकिन कुछ ज़्यादा हानि होने की संभावना नहीं है। माँ के साथ कुछ नाराज़गी हो सकती है तथा उन्हें स्वास्थ्य संबंधी भी कुछ परेशानियाँ हो सकती हैं, अतः उनका समुचित ख़्याल रखें और व्यावहारों में संयम बरतें।। पिता जी के साथ आपके संबंध बेहतर रहेंगे। यह साल उनके लिए बेहतर साबित होगा और कारोबार में मुनाफ़ा होगा। ठीक आप ही की तरह आपके जीवनसाथी का भी संबंध माँ के साथ ख़राब रहेगा और पिता के साथ मधुर। आपके लिए यह अच्छा होगा कि आप ख़ुद भी माँ-बाप का ख़्याल रखें और जीवनसाथी से भी ऐसा करने के लिए कहें। परिवार से बैर करना कदापि उचित नहीं होता है।
स्वास्थ्य--सामान्यतः आप निरोगी काया के स्वामी होते हैं। इस वर्ष भी आप रोग-मुक्त रहने वाले हैं। लेकिन कुछ लोग मोटापे का शिकार हो सकते हैं, अतः खान-पान पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। अगस्त के बाद मसालेदार और तेल वाले आहार के प्रति आपका रूची बढेगी, इसे नियंत्रित करने की कोशिश करें। आलस्य का त्याग करें और स्फूर्ति के लिए व्यायाम करें। हालाँकि समय के साथ कुछ परेशानियाँ हो सकती हैं, जैसे - पेट, आँत और जोड़ों में दर्द के अलावा सिरदर्द और आँखों में दर्द रहने की संभावना है। अतः सेहत को लेकर कोई लापरवाही न करें।
आर्थिक स्थिति--आपकी आर्थिक स्थिति के बारें में क्या कहना, इस साल तो आपकी बल्ले-बल्ले रहने वाली है। अगस्त माह के बाद तो स्थिति और भी सुदृढ होने वाली है। विभिन्न स्रोतों से धन का आगमन होगा। शेयर बाज़ार से भी लाभ होने की संभावना है, लेकिन अगस्त के बाद। इससे माह से पहले अार्थिक स्थिति थोड़ी कमज़ोर रह सकती है। ख़र्चों पर नियंत्रण और भावनाओं पर काबू रखने की ज़रूरत है। व्यर्थ की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इस साल आपकी ज़िन्दगी एक धनवान सेठ के माफ़िक गुज़रने वाली है।
नौकरी पेशा--यदि आप नौकरी पेशा हैं तो यह साल कुछ ख़ास अच्छा नहीं रहेगा। लोग आपके विरूद्ध षड्यंत्र भी बना सकते हैं। बेवज़ह आपके ऊपर आरोप भी लगाया जा सकता है, जिससे आप काफ़ी तनाव महसूस करेंगे। अपने आँख-कान को खोलकर रखें, अन्यथा स्थितियाँ आपके काबू से बाहर हो सकती हैं। आपके लिए यह आवश्यक है कि जब तक आपकी नौकरी नहीं लग जाती है, वरिष्ठ लोगों के साथ अपने रिश्तेे को बनाए रखें। अन्यथा परेशानियाँ बढ़ सकती हैं और नौकरी भी हाथ से जा सकती है। सरकारी नौकरी वालों को ज़्यादा नुक़सान हो सकता है, अतः पूरी एहतियात बरतें।
व्यवसाय--व्यवसाय से जुड़े लोगों को उनके परिश्रमों का फल प्राप्त होगा। यदि आपका जीवनसाथी भी व्यापार में भागीदार है तो अपार मुनाफ़ा हो सकता है। हालाँकि आपके ऊपर धोखा-धड़ी और विश्वासघात का आरोप भी लग सकता है, अतः आर्थिक मामलों में पूरी एहतियात बरतें। ब्याज़ पर पैसे देते समय बहुत ज़्यादा सावधानी बरतने की आवश्यकता है, क्योंकि अगस्त तक समय आपके अनुकूल नहीं है। इस माह के बाद निश्चित ही आपके अच्छे दिन आएंगे और भाग्य आपके द्वार पर दस्तक़ देगा। भले ही आपको अनेक बाधाओं का सामना करना पड़े, लेकिन आपकी जेब कभी खाली नहीं रहने वाली है।
प्रेम-संबंध--नया साल आपके प्रेम-संबंधों में मिठास लाना वाला है। एक दूसरे के साथ आप हसीन पल बिताएंगे। शुरूआत में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन समय के साथ संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी। हालाँकि प्यार का वास्तविक एहसास और आनंद आपको अगस्त के बाद ही मिलेगा। इस साल जो बात को ध्यान रखना है वह यह कि जब भी कभी बुध अस्त हो या सिंह अथवा कुम्भ में प्रवेश करे, उस वक़्त अपने जीवनसाथी के ऊपर किसी प्रकार के शक़ करने से परहेज़ करें, वरना पूरा बना-बनाया खेल बिगड़ सकता है। अपने व्यवहारों में संयम बरतें और पार्टनर के ऊपर विश्वास करना सिखें।
उपाय--अपने आप को नियंत्रित रखना दुनिया का सबसे बड़ा उपाय है, लेकिन यह सभी के लिए संभव नहीं है। यदि आप शनि की अंतरदशा या महादशा से गुजर रहे हैं तो दशरथ रचित शनि स्त्रोत और हनुमान चालिसा का पाठ करना बेहद ही कारगर साबित हो सकता है। दूसरी ओर यदि आपके ऊपर बृहस्पति की अंतरदशा या महादशा चल रही है तो बृहस्पति बीज मंत्र का जप करें। पीला वस्त्र धारण करें और गुरूवार के दिन उपवास करें। जो लोग राहु या केतु की अंतरदशा या महादशा से गुजर रहें हैं, वे लोग दूर्गा सप्तशती का दिन में तीन बार पाठ करें।

साल 2016 में मेष राशिफल का हाल

नए साल में आपके सितारों की बात करें तो वर्ष की शुरूआत में शनि वृश्चिक में और गुरु सिंह में प्रवेश कर रहे हैं। राहु और केतु 31 जनवरी तक अपनी वर्तमान स्थान पर रहने के बाद राहु सिंह में तथा केतु कुम्भ में प्रवेश कर जाएंगे। यहाँ हम नए साल के भविष्यफल के साथ आपकी ज़िन्दगी की तमाम पहलूओं पर चर्चा करेंगे। जैसे - नए साल में आपकी ज़िन्दगी किस तरह गुज़रने वाली है? सफलता पाने के कौन-कौन से बेहतर तरीक़े आप अपना सकते हैं? कौन-कौन से दिन आपको सफलता दिलाने वाले होंगे? हमारी भविष्यवाणियों की मदद से आप पूरे साल की सुनिश्चित और बेहतर योजना बना सकते हैं, लेकिन भविष्यवाणी बताने से पहले आपको बता दें कि यह भविष्यवाणी पूरी तरह से वैदिक ज्योतिष पर आधारित है।
पारिवारिक जीवन--आपके गृहस्थ जीवन की बात की जाए तो इसमें कुछ उतार-चढ़ाव रहने की संभावना है। आपके सातवें भाव में पाप कर्तरी योग बन रहा है, जो की आपके पारिवारिक जीवन के लिए थोड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकता है। ऐसे समय में आपको धैर्य और सतर्कता के साथ काम लेना होगा। एक बात जो आपको सभी लोगों से ज़ुदा करती है, वह है आपका अचानक क्रोधित होना और जल्दी शांत नहीं होना। यह आपके दाम्पत्य जीवन के लिए क़तई अच्छा नहीं है। आपसी रिश्तों को बरक़रार रखने के लिए यह ज़रूरी है कि आप रिश्तों को लेकर थोड़ा सजग रहें। पूरे वर्ष माँ के साथ संबंध बेहतर रहेंगे और आप उनसे अपने मन की सभी बातें साझा भी करेंगे। चंद्रमा के सिंह, वृश्चिक या कुम्भ में प्रवेश करने पर कुछ परेशानियाँ आ सकती हैं, जैसे - पिता के साथ कुछ कुछ अनबन हो सकती है या वैचारिक मतभेद हो सकता है। इस समय थोड़ा सावधान रहें और वाद-विवाद करने से परहेज़ करें। बच्चों के साथ भी कुछ अनबन होने की संभावना है और उनके स्वास्थ्य को लेकर थोड़ी परेशानी हो सकती है, अतः उनका ख़्याल रखें।
स्वास्थ्य--इस वर्ष आप बेहतर निरोगी काया के स्वामी रहेंगे। यूँ कहें तो अगस्त तक आप सभी प्रकार के रोगों से मुक्त रहेंगे। आपकी ज़िन्दगी आपके सुचारु रूप से चलेगी। कुछ असमंजस की स्थिति पैदा हो सकती है, लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है और यह न ही कोई बीमारी है। इससे आप जल्द ही उबर जाएंगे। ऐसा सभी लोगों के साथ होता है, इसलिए इस पर ज़्यादा सोच-विचार करने की ज़रूरत नहीं है। यदि आपके स्वास्थ्य की तरफ़ ग़ौर से देखा जाए तो पेट-संबंधी कुछ दिक़्क़तें हो सकती हैं, जैसे – बदहज़मी, यौन समस्या, जोड़ों में दर्द तथा शरीर के निचले हिस्सों में भी कुछ दिक़्क़तें हो सकती हैं। मौसम बदलने के साथ स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ कुछ ज़्यादा हो सकती हैं। वर्ष के दूसरे चरण यानि अगस्त के बाद आपको सेहत के प्रति ज़्यादा सतर्क रहने की आवश्यकता है, वरना अस्पताल जाने की भी नौबत आ सकती है।
आर्थिक स्थिति--धन-संपत्ति हमारे कठोर परिश्रम और काम के प्रति पूरी निष्ठा की बदौलत हासिल होती है। इसलिए इसके मामले में जोख़िम उठाना क़दापि उचित नहीं होगा। शेयर बाज़ार से दूरी बनाना निश्चित तौर पर आपके लिए लाभदायक होगा। बिना सोचे-समझे कहीं भी निवेश करने से बचें। देर-सबेर आपको ज्ञात होगा कि यह वर्ष अनावश्यक रूप से पैसे ख़र्च करने के अनुकूल वास्तव में नहीं था। हालाँकि अगस्त के बाद आर्थिक स्थितियों में सुधार होगा और जमा-पूँजी मेें भी वृद्धि होगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आँख मूँद कर पैसे ख़र्च किए जाएँ। यदि आप शनि और राहु की अंतरदशा या महादशा से गुज़र रहें हैं तो ज़्यादा सतर्क रहने की आवश्यकता है।
नौकरी-आपके दसवें भाव का स्वामी आठवें भाव में बैठा है, यह ग्यारहवें भाव का भी स्वामी है, लेकिन ग्यारहवें भाव में केतु बैठा है। ऐसी स्थिति में अपने कार्यों में किसी प्रकार की कोताही न बरतें और उसे अविलंब पूरा करने की कोशिश करें। देर-सबेर आपको अपना लक्ष्य ज़रूर प्राप्त होगा। इस समय आपको व्याकुल होने की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है। आपका ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ आपके लक्ष्यों पर होना चाहिए। जैसे-जैसे अगस्त माह का समय व्यतीत होगा, वैसे-वैसे आपकी परेशानियाँ भी कम होंगी और आप पहले से बेहतर ज़्यादा सुकून महसूस करेंगे। इस माह के बाद गुरू की दृष्टि धनु पर होने वाली है और गुरू का राहु के साथ युति हो रहा है, इसलिए यह कहना मुश्किल है कि कब आपका भाग्य साथ देगा और कब नहीं। अतः सबसे बेहतर है यही है कि आप अपने कर्मों पर ध्यान दें।
कारोबार-नए साल में कारोबारियों को मिला-जुला परिणाम मिलने वाला है। एकाग्रचित होकर होकर व्यापार के विस्तार के और नए कारोबार को शुरू करने के लिए सोचना कारगर होगा। बेकार के कुछ मुद्दें आपके लिए परेशानी खड़ें कर सकते हैं। यह सदा सत्य है कि रात के बाद दिन ज़रूर होता है, इसलिए अपने प्रयासों को ज़ारी रखें, सफलता ज़रूर मिलेगी। पैसे की आवक निर्वाध रूप से होती रहेगी, लेकिन यदि आप आर्थिक क्षेत्रों से संबंध रखते हैं तो थोड़ी हानि होने की संभावना है। धैर्य बनाएँ रखें और आर्थिक मामलों में सतर्कता बरतें। अगस्त के बाद सारी परेशानियाँ ख़ुद-ब-ख़ुद दूर हो जाएंगी, ऐसा आपके सितारों का कहना है।
प्रेम-संबंध-प्रेम-संबंधों के लिए यह वर्ष अनुकूल नहीं है। हालाँकि सामाजिक उसूलों को ताक़ पर रखते हुए आपका प्यार परवान चढ सकता है, लेकिन उसमें आपकी छवि ख़राब होने की संभावना है। अतः जितना जल्दी हो सकें ऐसे रिश्ते से दूरी बना लें, यही आपके लिए बेहतर होगा। अगस्त के बाद से प्रेम-संबंधों में मधुरता आने की संभावना है। क्रोध पर काबू रखें, वरना रिश्तों में दरार आ सकती है।

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Tuesday, 26 January 2016

धन,पद और प्रतिष्ठा की हानि क्यों ? जाने कुंडली से

प्रत्येक मनुष्य के जीवन में शुभ अवसरों के संग अशुभ अवसर भी आते हैं, जिनके कारण वह आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक या पारिवारिक रुप से कुछ न कुछ कष्ट अवश्य झेलता है। ऐसे कष्टों से वह मनुष्य घोर उदासी, निराशा और विषाद की धुध से त्रस्त हाकर अपने जीवन को रसहीन, सारहीन, निर्रथक और बेजान जानकर अवसाद से ग्रस्त हो जाता है या आत्महत्या की ओर प्रेरित होने लगता है। ऐसे घातक समय के कारण और निवारण का बोध जातक की कुंडली के ज्योतिषीय अध्ययन से सहज ही हो सकता है। कुंडली में त्रिकोण के रुप में भाव 5 और 7, केन्द्र के रुप में 1. 4. 7 और 10 शुभ तथा त्रिक अथवा त्रिषडाय के रुप में भाव 6, 8 और 12 अशुभ संज्ञक हैं। विचारणीय भाव से उसका स्वामी सुस्थानों जैसे 4, 5, 7, 9 और 10 में हो तो उस भाव की समृद्धि होती है, किन्तु यदि 6, 8 या 12 वें जैसे कुस्थान पर हो तो वह भाव निर्बल होकर अवाॅछित फल देता है। इस श्लोक में सु या कु स्थान का निर्णय लग्न से करने का भी संकेत है। महर्षि पराशर ने षष्ठ से षष्ठ स्थान पर होने के कारण भाव 11 और अष्टम से अष्टम स्थान पर होने के कारण भाव 3 को भी अशुभ माना है। केन्द्र और त्रिकोण के स्वामियों की दशा में मनुष्य के धन, पद, प्रतिष्ठा और कीर्ति की वृद्धि होती है, किन्तु त्रिक अथवा त्रिषडायेश के काल में धन, पद, प्रतिष्ठा और कीर्ति का नाश होता है। यही वह काल है, जिसे भविष्य के रुप में हम सभी बोध करना चाहते हैं। ज्योतिष विद्वानों ने केन्द्र और त्रिकोण भावों को सदैव शुभ माना है। मानसागरी जैसे सभी ज्योतिष ग्रंथों में वर्णन है कि केन्द्र में एक भी शुभग्रह बली अवस्था में हो तो वह सभी दोषों का नाशक और दीर्घायु देने वाला होता है। जैसे बुध, गुरु और शुक्र इनमें से एक भी केन्द्र में हो और सभी दुष्ट ग्रह विरुद्ध भी हों तो भी सभी दोष नष्ट हो जाते हैं, जैसे सिंह को देखकर मृग भाग जाते हैं उसीप्रकार सभी दोष भाग जाते हैं। यह भी वर्णन है कि लग्नभावगत बुध से एक हजार, शुक्र होने से दस हजार और बृहस्पति होने से एक लाख दोषों का शमन होता है। हमारे विचार से यह अतिश्योक्तिपूर्ण कथन है। शुक्रो दशसहस्त्राणी बुधो दश शतानि च। लक्षमेकं तु दोषाणां गुरुर्लग्ने व्यपोहति।। मानसागरी त्रिकोणेश सौम्य या क्रूर कोई भी ग्रह हो, सदैव शुभफलप्रद होता है, किन्तु केन्द्रेश ? केन्द्रेश के रुप में शुभ ग्रह -चंद्रमा, बुध, गुरु और शुक्र वाॅछित शुभफल नहीं देते। इन्हें केन्द्र अधिपत्य दोष से दूषित मानते हैं, मगर पाप ग्रह -सूर्य, मंगल, और शनि अपने पापी स्वभाव छोडकर शुभफल देने लगते हैं। कर्क लग्न वालों के लिए मंगल और वृष तथा तुला लग्न वालों के लिए शनि केन्द्र और त्रिकोण के स्वामी होने के कारण सदैव शुभफलप्रद होते हैं। सूर्य और चंद्रमा को छोडकर अन्य सभी ग्रहों की दो-दो राशियाॅ होती हैं, जिनमें से एक राशि केन्द्र या त्रिकोण में होने के उपरांत दूसरी राशि पाप संज्ञक स्थान में पडती है। तब शुभ-अशुभ का निर्णय कैसे करें ? इस संबंध में यह मान सकते हैं कि यदि त्रिकोणेश और षष्ठाष्टमेश शुभ ग्रह है तो साधारण शुभफलदाता और यदि वह पाप ग्रह है तो अशुभफलदाता होगा। इसीप्रकार केन्द्रेश और षष्ठाष्टमेश शुभ ग्रह है तो अशुभफलदाता और यदि वह पाप ग्रह है तो मिश्रितफलदाता होगा। कर्क लग्न के लिए बृहस्पति षष्ठेश और नवमेश होने के कारण साधारण फल ही देता है, किन्तु चतुर्थेश और एकादशेश शुक अशुभफलदाता होगा, बशर्ते कि वह स्वराशिस्थ न हो, अर्थात् स्वराशिस्थ होकर ही शुभफलप्रद होगा। शुभ-अशुभ से संबन्धित साधारण विचार यह है कि जिस भाव का स्वामी अस्त हो, अपनी नीच या शत्रु राशि में हो, अपने स्थान से षष्ठाष्टम अथवा द्वादश स्थान पर हो या इनके स्वामियों से युक्त अथवा दृष्ट हो तो उस भाव के फल नष्ट हो जाते हैं। अतः षष्ठाष्टमेश द्वितीय भावगत होकर धनहानि, चतुर्थ भावगत होकर भू-संपत्ति, वाहन आदि के सुखों की हानि, पंचम भावगत होकर संतान सुख हानि को प्रकट करते है।

जन्मांग में आपका धन एवं आमदनी का साधन

जन्मांग में आपका धन एवं आमदनी का साधन पुर्नजन्म एवं कर्म फल का सिंद्धांत अकाट्य है, जन्मांग से यही परिलक्षित होता है। जन्मलग्न, सूर्य लग्न और चंद्र लग्न से श्रेष्ठ भाव फल की प्राप्ति धनागम को सुनिश्चित करतीहै। किस योग से किस जन्म लग्न में और किन ग्रहों से धन प्राप्त होता है,जानने के लिए पढ़िए यह लेख। सनातन धर्म संस्कृति में पुनर्जन्मऔर कर्मफल योग का सिद्धांतसर्वमान्य है।हर प्राणी पूर्व जन्मार्जित कर्म फलभोग के लिये निश्चित लग्न एवं ग्रहयोग में भूतल पर जन्म लेता है। पापकर्म एवं दुष्कर्म यदि पूर्व जन्म में कियेगये हों तो वर्तमान जीवन अभावों एवंकष्टों में बीतता है।ज्योतिष विज्ञान में धन एवंकर्म-व्यवसाय के लिए जन्म कुंडलीका द्वितीय भाव, नवम भाव, दशम एवंएकादश भाव ही आधार है। व्यवसायव्यापार का लाभ भाव एवं स्थिरताआदि का विचार सप्तम भाव से होताहै।द्वितीय भाव में शुभ ग्रह तथा द्वितीयेशकेंद्रस्थ हो या एकादश भाव में होऔर मित्र क्षेत्री, उच्च क्षेत्री, या स्वराशिका हो तो धन लाभ खूब होता है।द्वितीय भावस्थ राहु या केतु धनागममें बाधायें पैदा करते हैं। दशम भावका विचार जन्म लग्न, सूर्य लग्न एवंचंद्र लग्न से करें। इन तीनों लग्नों मेंजो लग्न बली हो उससे दशम भावविचारें। कुंडली में सर्वाधिक बलयुक्तग्रह भी आजीविका को प्रभावित करताहै। दशम भाव की राशि का तत्व भीआजीविका एवं धन मार्ग निर्धारित करताहै। मेष, सिंह, धनु अग्नि तत्व राशियांहै। इनमें से कोई भी राशि दशम भावकी हो तो जातक का कार्यक्षेत्र अग्निकार्य, धातु कार्य, बिजली, सेना यापुलिस होता है। वृष, कन्या, मकरपृथ्वी तत्व राशियां हैं। मिथुन, तुला,कुंभ वायु तत्व राशियां हैं। कर्क,वृश्चिक, मीन जल तत्व राशियां हैं। शम भाव में पृथ्वी तत्व राशि होने परजातक का कार्य क्षेत्र कृषि, बागवानी,फल-फूल व्यवसाय एवं वस्त्र व्यवसायहोता है। वायु तत्व राशि होने से व्यक्तिअध्यापक, वक्ता, ज्योतिषी, वकील आदिबनता है। जल तत्व राशि होने सेशीतल पेय पदार्थ, नाव, जलयान, जलसेना या जलीय पदार्थों से धन लाभहोता है।यदि कुंडली में अधिकांश ग्रह चरराशियों (मेष, कर्क, तुला, मकर) मेंस्थित हों तो जातक स्वतंत्र व्यवसायमें या राजनीति में कुशल होकर धनकमाता है। वृष, सिंह, कुंभ, वृश्चिकस्थिर राशियों में सर्वाधिक ग्रह होनेपर जातक सफल व्यवसायी,चिकित्सक या शासकीय नौकरी पाताहै। धनु, मीन, मिथुन, कन्या द्विस्वभावराशियां हैं। इनमें अधिक ग्रह होने परजातक सरकारी नौकरी, कमीशनएजेंसी, शिक्षा व्यवसाय या शासकीयशिक्षक आदि बन जाता है।जैसा कि ऊपर कहा गया है कि धनव्यवसाय के मामले में लग्न से, चंद्रलग्न से एवं सूर्य लग्न से दशम भावविचारणीय है। क्योंकि लग्न से दशमभाव जातक के उस कार्य का बोधकराता है जिसमें शारीरिक श्रम प्रमुख होता है। चंद्रमा से दशम भाव उसकार्य का बोध कराता है जिसमें मनुष्यकी मानसिक शक्ति का सर्वाधिकउपयोग होता है। सूर्य से दशम भावउस कार्य का बोध कराता है जिसमेंशारीरिक श्रम प्रमुख है। लग्न से दशममें कोई भी ग्रह व्यक्ति को कुशल एवंअपने कुल में प्रगतिशील बनाता है।यदि तीनों लग्नों से दशम में कोई ग्रहनहीं तो दशम भाव की नवमांश राशिसे व्यवसाय का विचार किया जाताहै। यदि सूर्य दशम भाव में है यादशम भाव की नवांश राशि का स्वामीहै तो जातक को पैतृक संपत्ति आसानीसे मिल जाती है। व्यवसाय में सरकारीनौकरी, ठेकेदारी, डॉक्टरी, सोने-चांदीका व्यवसाय, वस्त्र व्यवसाय आदि सेधन लाभ कमाता है। ज्योतिष ग्रंथों केअनुसार दिवार्ध या निशार्ध के बीचकी ढाई घड़ी में जो जातक पैदा होतेहैं, वे राजयोग लेकर पैदा होते है।कारण दिवार्ध में जन्म होने पर सूर्यदशम भाव में आयेगा तथा निशार्ध केबीच की ढाई घड़ी के मध्य जन्म होनेपर सूर्य चतुर्थ भाव में होगा।दशम भाव का चंद्रमा जातक को मातासे धन लाभ कराता है। जातक कोकृषि कार्य से, जलीय पदार्थों से तथावस्त्रों की दुकानदारी से लाभ कराताहै। दशम भाव स्थित मंगल अथवादशम भाव का नवमांशेश मंगल हो तोजातक शत्रुओं से अर्थात् शत्रुओं परविजय पाकर धन लाभ लेता है। खनिजपदार्थ का व्यवसाय, अतिशबाजी,आग्नेयास्त्र, सेना, पुलिस, बिजलीविभाग, पहलवानी, शारीरिक कलायें,इंजीनियरिंग, फौजदारी वकालत आदिसे धन कमाता है। बुध जातक कोमित्रों से धन लाभ कराता है। कवि,लेखक, ज्योतिषी, प्रवचनकर्ता, गणितज्ञ, शिल्पज्ञ एवं चित्रकार बना कर धनलाभ कराता है। गुरु भाई से धन लाभदेता है। पंडित, पुजारी, धर्मोपदेशक,धार्मिक संस्था, प्रधान न्यायाधीश आदिबनाकर जीविका देना गुरु का कामहै। गुरु शिक्षा से भी जोड़ता है। शुक्रहोने पर धनी महिलाओं से धन लाभपाता है। शृंगार प्रसाधन, इत्र फुलेलव्यवसाय, होटल, रेस्टारेंट, दुग्ध पदार्थोंके व्यवसाय, अभिनय, फल-फूल, वस्त्रआदि से धन लाभ देता है।उपरोक्तानुसार शनि सेवकों से धनलाभ कराता है अर्थात अन्त्यज जातिगतलोगों से, उनकी सेवा से धन लाभदेता है। काष्ठ व्यवसाय, पत्थरव्यवसाय, मजदूरों का मालिक, ठेकेदार,अदालती कार्यों से व्यवसाय व रोजगारप्राप्त होता है।जन्मांग के सप्तम भाव की भी व्यवसायके संबंध में महती भूमिका है। इसभाव में सूर्य होने पर व्यक्ति का व्यवसायस्थिर-सा रहता है। चंद्र होने परआमदनी में अस्थिरता रहती है।व्यवसाय भी बदलता रहता है। इसभाव का मंगल व्यवसाय में अविवेकपूर्णनिर्णय लेने की प्रवृत्ति देता है। नीलामीमें बोली लगाकर घाटा सहता है।घाटे के कारण व्यापार बंद होने केकगार पर पहुंच जाता है। सप्तम भावमें बुध हो तो जातक शीघ्र क्रय-विक्रयसे लाभ उठाता है। गुरु इस भाव मेंहोने पर जातक अपना व्यवसायईमानदारी से करता है और उन्नतिपाता है। शुक्र होने पर जातक अपनेव्यवसाय में लाभ एवं लोकप्रियता पाताहै। इस भाव में शनि एवं राहु या केतुका होना जातक के व्यवसाय में बड़ीउथल-पुथल देता है।यदि कुंडली में धन भाव और लाभभाव दोनों श्रेष्ठ हो तो व्यक्ति धन आसानी से कमा सकता है और बचतभी कर लेता है। यदि दूसरा भावअच्छा है और ग्यारहवां भाव बलहीनहै तो धन कठिनाई से प्राप्त होगा।बचत भी होगी। एकादश स्थान श्रेष्ठहो और द्वितीय स्थान कमजोर हो तोधन का आगमन बना रहता है लेकिनबचत मुश्किल से होती है।चंद्रमा पंचमभाव में हो और शुक्र सेदृष्ट हो तो जातक को सट्टा लॉटरीसे धन मिलता है। दूसरे भाव कास्वामी और चौथे भाव का स्वामी नवमभाव में शुभ राशि में हो तो जातक कोभूमि में गड़ी हुई संपत्ति प्राप्त हो जातीहै अथवा यदि धनेश और आयेश दोनोंचतुर्थ भाव में स्थित हों, उनके साथशुभ ग्रह हो और चतुर्थ भाव राशि शुभराशि हो तो भूमिगत संपत्ति प्राप्त होगीशुक्र का द्वादश भाव में होना भी व्यक्तिको सभी सुखोपभोग के लिये पर्याप्तधन देता है।विभिन्न लग्नों के धनदायक ग्रहों कीबलवान स्थिति व्यक्ति को खूब धनलाभ कराती है। मेष लग्न के लिये-मंगल व गुरु, वृषभ के लिये बुध वशनि, मिथुन के लिये- बुध व शुक्र,कर्क के लिये- चंद्र व मंगल, सिंह केलिये सूर्य तथा मंगल, कन्या के लिये-बुध तथा शुक्र-तुला के लिये- शुक्र वशनि, बुध, वृश्चिक के लिये- गुरुऔर चंद्र, धनु के लिये गुरु व सूर्य,मकर के लिये- शनि व शुक्र, कुंभ केलिये- शनि व शुक्र तथा मीन लग्नके लिये- गुरु और मंगल धनदायकग्रह हैं।

ज्योतिष में शिक्षा और अनुसंधान


ज्योतिष वेदांग है। वेदों की रचना स्वयं ब्रह्मा ने की थी। तब से वेद श्रवण-कथन द्वारा एक से दूसरे के पास और तब से आज हमारे पास पहुंचे हैं। इस प्रकार ज्योतिष अत्यंत ही प्राचीन ज्ञान है जो ऋषि मुनियों द्वारा हमें प्राप्त हुआ है। कुछ हजार वर्ष पूर्व भृगु, पाराशर व जैमिनी आदि ऋषियों ने इसे आधुनिक परिवेश में जनमानस के कल्याण के लिए प्रस्तुत किया। लेकिन जैसा हमें ज्ञात है किसी भी ज्ञान की लंबी यात्रा में परिवर्तन आ जाता है एवं लंबे समय उपरांत इतना परिवर्तन हो जाता है कि मौलिकता ही समाप्त हो जाती है और अर्थ का अनर्थ हो जाता है। दुभाग्यवश ऐसी ही ऐतिहासिकता ज्योतिष की भी रही है। इसके अतिरिक्त केवल भारत ही इस ज्ञान का केंद्र रहा अतः अन्य सभी देश व समुदायों ने इस ज्ञान को नष्ट करने का पूरा- पूरा प्रयास किया। ब्रिटिश साम्राज्य भी इससे आकर्षित हुआ व भारत से जाते-जाते इसे भी मूल रूप में लेकर चला गया। आज जिस ज्योतिष ज्ञान के इतिहास का हम गौरव गान करते हैं वह इन्हीं अवशेषों का आधार है। हमें नहीं मालूम कि मेष का स्वामी मंगल क्यों है ? सूर्य मेष के 100 पर क्यों उच्च का होता है? क्यों केतु की दशा 7 वर्ष की होती है? क्यों अश्विनी नक्षत्र का स्वामी केतु है? क्यों विंशोत्तरी दशा का प्रयोग ही उत्तम है? क्यों संतान के लिए पंचम भाव, विवाह के लिए सप्तम व व्यवसाय के लिए दशम भाव देखना चाहिए। इस प्रकार से ज्योतिष, जिसका आधार खगोल है व जिसके गवाह स्वयं सूर्य व चंद्रमा हैं, उसके मूल का ज्ञान बिल्कुल नहीं है। यदि वर्षा ऋतु सूर्य के जल राशि अर्थात् कर्क में आने से प्रारंभ होती है तो क्यों सूर्य के अग्नि राशि अर्थात सिंह राशि में अधिकतम वर्षा होती है। क्यों सूर्य के पुनः जल राशि अर्थात् वृश्चिक व मीन में होने पर वर्षा नहीं होती? निष्कर्षतः एक ही बात कहनी है। जिस प्रकार से पुरखो से प्राप्त जागीर को मरम्मत की आवश्यकता होती है उसी प्रकार ज्योतिष के भी नवीनीकरण की आवश्यकता है और साथ ही इसके मूलरूप को पुनः समझने व जानने की आवश्यकता है। यह न हो कि जिसे हम अपना भूत बताकर गौरवान्वित महसूस करते हैं उस पर अन्य कोई अनुसंधान कर नए रूप में आयुर्वेद के ऊपर एलोपैथी के रूप में हमारे ऊपर थोप दे और हम न चाहते हुए भी उसी विद्या को अपनाने के लिए मजबूर हो जाएं। मूल रूप में एक बात और जान लेनी चाहिए कि इस ब्रह्माण्ड में गुरुत्वाकर्षण बल एक मात्र बल है जिसके कारण सभी तारे, ग्रह व पिंड एक दूसरे से बंधे हैं एवं उनकी गति व कक्षा में बिल्कुल भी अंतर नहीं आता। पृथ्वी का दिन रात 24 घंटे का ही होता है, वर्ष 365.2422 दिनों का ही होता है - हजारों वर्ष पूर्व भी यही था और हजारों वर्ष बाद भी यही होगा। आसमान में तारे इधर-उधर फैले हुए से लगते हैं लेकिन प्रत्येक तारे की स्थिति की गणना हजारों वर्ष पूर्व भी की जा सकती है। अतः जो बहुत अव्यवस्थित दिखाई देता है वह भी पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार ही चल रहा है। यही इस जीवन का भी सच है। यह जिंदगी अनेक मोड़ों पर (यू-टर्न) विपरीत दिशा में चलती हुई प्रतीत होती है लेकिन सच यह है कि मोड़ आने थे और जिंदगी को मोड़ लेना था। इन मोड़ों को पूर्व में ही जानने के लिए ब्रह्मा ने ज्योतिष को रचा था। यदि हम सटीक पूर्वानुमान नहीं कर पा रहे हैं तो आवश्यकता है जर्जर ज्योतिष के नवीनीकरण की। यह जान लेना अति आवश्यक है कि ज्योतिष का आधार खगोल है, जिसका आधार है गुरूत्वाकर्षण और सभी प्राणी इससे पूर्ण रूप से प्रभावित हैं अतः ज्योतिष ही जीवन के पूर्वानुमान का एक मात्र विकल्प है। यदि ज्योतिष में शोध किए जाएं तो हम अनेकों संभावनाओं को पूर्व में जान सकते हैं और छतरी के रूप में उपाय कर बचाव कर सकते हैं। ज्योतिष का सबसे बड़ा लाभ मौसम के पूर्वानुमान लगाकर किया जा सकता है। अनेकों वर्ष पूर्व ही बाढ़ व सूखे का अनुमान लगाकर बड़ी हानि से बचा जा सकता है। इसी प्रकार जातक को कब कौन सी बीमारी हो सकती है उसके अनुसार बचपन से ही प्रयास किया जा सकता है। दो जातकों में समन्वय जानकर उनके वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाया जा सकता है। शोध कैसे करें: किसी विषय को विभिन्न लेखकों ने कैसे प्रस्तुत किया, उसमें क्या भिन्नता या समानताएं हैं यह जान लेना और उनका विवेचनात्मक विश्लेषण करते हुए अपने विचारों सहित पेश कर देना ज्योतिष में शोध नहीं है। इस प्रकार से किसी भाषा या साहित्यिक विषय में तो शोध हो सकता है लेकिन ज्योतिष में नहीं। यह विज्ञान स्वरुप है एवं इसमें शोध पूर्णतया वैज्ञानिक आधार पर जिस प्रकार से चिकित्सा विज्ञान में होता है- उसी तरह से होना चाहिए। इसके लिए जिस विषय में शोध करना है उस विषय में ज्ञान तो प्राप्त करें ही, साथ में दो समूह में डाटा एकत्रित करें। एक समूह जिस पर अनुसंधान करना चाह रहे हैं व दूसरा शेष समूह। जैसे यदि आप शोध करना चाहते हैं कि ज्योतिष के कौन से योग जातक को डाॅक्टर बनाते हैं तो एक समूह में डाॅक्टरों के जन्म विवरण एकत्रित करें व दूसरे समूह में जो डाॅक्टर नहीं है। फिर कम्प्यूटर द्वारा दोनों समूहों पर सभी ज्ञात योगों को लागू करें व दोनों समूहों में उन योगों का प्रतिशत जानने की कोशिश करें। डाॅक्टर के योगों का प्रतिशत दूसरे समूह की अपेक्षा में डाॅक्टर वाले समूह में अधिक उभर कर आना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो कह सकते हैं कि यह योग लागू नहीं है। अन्य नए योगों को भी खोजकर निकाल सकते हैं। कौन सा योग सटीक फलकथन में सक्षम है बता देना ही शोध है। इस गणना को एक पुस्तक के रूप में प्रेषित कर डाॅक्टरेट की डिग्री प्राप्त करें। आशा है इस प्रकार प्रकाशित किए अनेक शोध फल कथन में सटीकता का बोध कराएंगे। ज्योतिष में शोध का प्रमाण-पत्र देने के लिए फ्यूचर पाॅइंट व अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ ने यूजीसी से मान्यता प्राप्त राजस्थान स्थित मेवाड़ विश्वविद्यालय से करार किया है जिसके तहत संघ इच्छुक विद्यार्थियों को अनुसंधान कराने में मदद करेगा व मेवाड़ विश्वविद्यालय उन शोधों को परख कर डाक्टरेट की उपाधि के रूप में डिग्री प्रदान करेगा। आप भी इस सहभागिता का लाभ उठा सकते हैं। फ्यूचर पाॅइंट व संघ आपको अपने चयनित विषय संबंधित अनुसंधान हेतु कम्प्यूटर प्रोग्राम आदि द्वारा सहायता करने के लिए वचनबद्ध है। यदि आप किसी भी विषय से एम.ए. हैं और यूजीसी नियमानुसार आपके 55 प्रतिशत से अधिक अंक हंै तो प्रवेश परीक्षा देकर पीएच.डी. में प्रवेश ले सकते हैं। इस प्रकार आप यूजीसी से मान्यता प्राप्त डाॅक्टरेट की उपाधि तो प्राप्त करेंगे ही, ज्योतिष में आपके शोध का अंशदान ज्योतिष के नव निर्माण में मील का पत्थर साबित होगा।

जाने कुंडली से शिक्षा संबंधी समस्या निवारण

कुंडली में ग्रहों की स्थिति और सितारों की नजर बताती है। आपके करियर का राज:- हर विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में कठिन परिश्रम कर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है। अपने भाग्य और कड़ी मेहनत के बल पर ही कोई, विद्यार्थी परीक्षा में श्रेष्ठ अंकों को प्राप्त कर सकता है। किसी भी तरह की परीक्षा में इंटरव्यू में जाने के पूर्व बड़ों का अशीर्वाद लेना चाहिए। मीठे दही में तुलसी का पŸाा मिलाकर सेवन करना चाहिए इस तरह के उपायों से सफलता प्राप्त करने में सहायता मिलती है। इन्हीं में कुछ मंत्रों यंत्रों एवं सरल टोटकों के प्रभाव से अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकती है। मंत्र: ।। ¬ नमो भगवती सरस्वती बाग्वादिनी ब्रह्माणी।। ।। ब्रह्मरुपिणी बुद्धिवर्द्धिनी मम विद्या देहि-देहि स्वाहा।। अपनी जिह्ना को तालु में लगाकर माॅ सरस्वती के बीज मंत्रों का उच्चारण करने से माॅ सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। ‘‘एंे’’ किसी भी सफलता की प्राप्ति के लिए इस मंत्र का 11 बार या 21 बार इस मंत्र का जप करने से सफलता की प्राप्ति होती है और इस मंत्र का नित्य सुबह जप करें। ।। जेहि पर कृपा करहि जनु जानी।। ।। कबि उर अजिर नचकहि बानी।। गुरुवार के दिन केसर की स्याही से भोजपत्र पर इस यंत्र का निर्माण करें। इस यंत्र में सब तरह से योग करने पर जोड़ 20 आएगा। इस ताबीज को गले धारण करें। इससे परीक्षा में सफलता की प्राप्ति होगी। विद्यार्थियों को चाहिए कि वह अध्ययन करते समय उनका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। जिन विद्यार्थियों को परीक्षा देेने से पहले उŸार भूलने की आदत हो। उन्हें परीक्षा के समय जाने से पहले अपने पास कपूर व फिटकरी पास रखकर जाना चाहिए। यह नकारात्मक ऊर्जा को हटाते हैं। परीक्षा के समय जब कठिन विषय की परीक्षा हो तो पास में गुरुवार के दिन मोर पंख रखें। विद्यार्थियों को चाहिए कि वह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपनी पढ़ाई का अध्ययन करना चाहिए, जिससे लंबे समय तक विष का विद्यार्थी के ज़हन में ताजा बना रहता है। परीक्षा में जाने से पहले मीठे दही का सेवन करना चाहिए। दिन शुभ व्यतीत होता है। भगवान गणेश जी को हर बुधवार के दिन दूर्बा चढ़ाने से बच्चों की बुद्धि कुशाग्र होती है। इसलिए गणेश जी का सदैव स्मरण करें। जब आपका सूर्य स्वर (दायां स्वर) नासिका का चल रहा है। तब अपने कठिन विषयों का अध्ययन करें। तो वह शीघ्र याद हो जाएगा। इसी प्रकार कक्ष में प्रवेश करते समय भी चल रहे स्वर का ध्यान रखकर प्रवेश करें। ‘परीक्षा में सफलता प्राप्त करने हेतु’ परीक्षा भवन में प्रवेश करते समय भगवान राम का ध्यान करें और निम्नलिखित मंत्र का ग्यारह बार जप करें। ।। प्रबसि नगर कीजे सब काजा।। ।। हृदय राखि कौशलपुर राजा।। गुरु व अंत में चैपाई के संपुट अवश्य लगाएं। यह बहुत प्रभावी टोटके हैं। ‘शिक्षा दीक्षा में रुकावट दूर करने के लिए’’ क्रिस्टल के बने कछुए का उपयोग प्रमुख होता है। क्रिस्टल के कछुए को विद्यार्थी के मेज पर रखना चाहिए। एकाग्रता बनी रहती है। साथ ही सफेद चंदन की बनी मूर्ति टेबल पर रखनी चाहिए रुकावटें धीरे-धीरे दूर होने लगती है। परीक्षा में सफलता के लिए परीक्षा में जाते समय विद्यार्थी को केसर का तिलक लगाएं और थोड़ा सा उसकी जीभ पर भी रखें उसे सारा सबक याद रहेगा और सफलता मिलेगी। चांदी की दो अलग-अलग कटोरी में दही पेड़ा रखकर माॅ सरस्वती के चित्र के आगे ढककर रखें और बच्चे की सफलता के लिए कामना करें। मां सरस्वती का स्मरण कर बच्चे को परीक्षा के लिए निकलने से तीन घंटा पूर्व एक कटोरी खिलाना है और परीक्षा के लिए जाते भक्त दूसरी कटोरी का प्रसाद खिलएं सफलता मिलेगी। ‘विद्या में आने वाले विघ्न को दूर करेने हेतु’ मंदिर में सफेद काले कंबल तथा धार्मिक पुस्तकों का दान करें। 40 दिन तक प्रतिदिन एक केला गणेश जी के मंदिर में उनके आगे रखें। वारों के अनुसार परीक्षा देने के समय किए जाने वाले उपायः सोमवार के दिन पेपर देने जा रहे हों तो दर्पण में अपना प्रतिबिंव देखकर जाएं। शिवलिंग पर पान का पŸाा चढ़ाकर जाएं। मंगलवार: हनुमानजी को गुड़, चने का भोज लगाकर प्रसाद खाकर जाएं। बुधवार: गणेजजी को दूर्वा चढ़ाकर, धनिया चबाकर जाएं। बृहस्पतिवार: केसर का तिलक लगाकर परीक्षा देने जाएं और अपने साथ पीली सरसों रखें। शुक्रवार: श्वेत वस्त्र धारण करके, मीठे दूध में चावल देवी को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करें। शनिवार: अपनी जेब में राई के दाने रखकर परीक्षा देने जाएं। रविवार: दही व गुड़ अपने मुख में रखकर परीक्षा देने जाएं। इनमें किसी एक मंत्र का प्रयोग अवश्य करें।

स्वप्न क्यों आते है ? स्वप्नों का वास्तविक जीवन में महत्व

सपनों के विश्लेषण के संबंध में ‘सिगमंड फ्रायड’ का कथन है कि ‘सपने उन दमित इच्छाओं को व्यक्त करते हैं जो मस्तिष्क के अंधेरे कोने में घर किये रहते हैं’ परंतु आधुनिक विज्ञान एवं आधुनिक वैज्ञानिकों के मत फ्रायड के मत से एकदम भिन्न हैं। इससे पूर्व कि स्वप्नों के विषय में वैज्ञानिकों का मत जाना जाय, यहां यह जान लेना उचित होगा कि वैज्ञानिकों को सपनों के विषय में जानकारी जुटाने की आवश्यकता क्यों हुई? बिना इसे जाने स्वप्नों के विषय में फलित ज्योतिष का मत ही जान सकते हैं। परंतु आधुनिक वैज्ञानिकों एवं ऋषि-महर्षि रूपी वैज्ञानिकों में कितनी समानता है, इसे नहीं जान पायेंगे। फलतः स्वप्न एवं उनके फलों के विषय में स्पष्टता नहीं आ पायेगी। ब्रितानी मनोवैज्ञानिक एवं कम्प्यूटर मनोवैज्ञानिक क्रिस्टोफर इवांस ने मानव मस्तिष्क की तुलना कम्प्यूटर से की थी। स्वप्न एवं उनके फल दोनों ही अलग-अलग प्रकार के नेटवर्क हैं जो विद्युतीय संकेतों को लाने ले जाने का कार्य करते हैं। दोनों में ही ये संकेत विभिन्न स्विचों और फाटकों से गुजरते हुए अंत में एक सार्थक रूप ले लेते हैं। स्वप्नों के विषय में विगत पांच हजार वर्षों से बराबर शोध हो रहा है और अभी तक अधिकांश गुत्थियां ज्यों की त्यों उलझी हुई हंै कि ‘क्या स्वप्नों का वास्तविक जीवन में कोई महत्व है भी या नहीं। कुछ लोगों की यह धारणा है कि स्वप्न वास्तव में भविष्य के पथ प्रदर्शक हैं और जब व्यक्ति उलझ जाता है व जहां उसे कोई रास्ता दिखाई नहीं देता, वहां स्वप्न उसकी बराबर मदद करते हैं। इस संबंध में आधुनिक वैज्ञानिकों का कथन है कि, हमारे मस्तिष्क के आसपास चैबीस करोड़ रक्त वाहनियों और शिराओं की मोटी पट्टी बनी हुई है जो मानव चेतन और अचेतन व दृष्य और अदृष्य बिंबों को लेकर उस पट्टी पर सुरक्षित जमा रखते हैं और समय आने पर वे बिंब ही स्वप्न का आकार लेकर व्यक्ति के सामने प्रकट होते हैं। रूसी वैज्ञानिकों का भी मत है कि, ‘स्वप्न को व्यर्थ का समझ कर टाला नहीं जा सकता। वास्तव में स्वप्न पूर्ण रूप से यथार्थ और वास्तविक होते हैं। यह अलग बात है कि हम इसके समीकरण सिद्धांत व अर्थों को समझ नहीं पाते।’ दूसरी बात यह है कि ‘स्वप्न कुछ क्षणों के लिए आते हैं और अदृश्य हो जाते हैं, जिससे कि व्यक्ति प्रातःकाल तक उन स्वप्नों को भूल जाता है। परंतु यह निश्चित है कि एक स्वस्थ व्यक्ति, प्रत्येक रात्रि में तीन से सात स्वप्न अवश्य देखता है। अमेरिका के प्रसिद्ध स्वप्न विशेषज्ञ ‘जाॅर्ज हिच’ ने पुस्तक ड्रीम में प्रमाणों सहित यह स्पष्ट किया है कि, ”व्यक्ति स्वप्नों के माध्यम से ही अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त कर सकता है, प्रकृति ने मानव शरीर की रचना इस प्रकार से की है कि, “जहां मानव के जीवन में गुत्थियां और परेशानियां हैं, बाधायें और उलझनें हैं, वहीं उन उलझनों या समस्याओं का हल भी प्रकृति स्वप्नों के माध्यम से दे देती है। मानव शरीर के अंदर दो प्रकार की स्थितियां होती हैं चेतन व अवचेतन मन जैसा कि सर्व विदित है। चेतन मन जहां बाहरी दृश्य और परिवेश को स्वीकार कर जमा करता रहता है, वहीं आंतरिक मन हमारे पूर्व जन्मों की घटनाओं से पूर्ण रूप से संबंधित रहता है। इसमें अब तो कोई दो राय नहीं है कि व्यक्ति का बार-बार जन्म और बार-बार मृत्यु होेती है। हमारे आर्ष ऋषि आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने भी ‘चर्पटपंजरिका’ में कहा है ”पुनरपि जननं, पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनं“ पिछले जीवन के कार्यों, दृष्यों और घटनाओं का प्रभाव भी वह जीवन में प्राप्त करता रहता है, उसे वहन करता रहता है। यह अचेतन मन ही स्वप्नों का वास्तविक आधार है और इस अचेतन मन के पास अपनी बात को बताने या समझाने का और कोई रास्ता नहीं है, फलस्वरूप वह निद्राकाल में मानव को चेतावनी भी देता है, उन दृष्यों को स्पष्ट भी करता है और उसका पथ प्रदर्शन भी करता है। इस दृष्टि से अचेतन मन व्यक्ति के लिए ज्यादा सहयोगी और जीवन निर्माण में सहायक होता है। स्वप्न एक पूर्ण विज्ञान है हमारे जीवन की कोई भी घटना व्यर्थ नहीं है, सावधान और सतर्क व्यक्ति प्रत्येक घटना से लाभ उठाता है, वह उसको व्यर्थ समझकर नहीं छोड़ता। यदि जीवन में सफलता और पूर्णता प्राप्त करनी है तो जहां चेतन अवस्था में उसके जीवन के कार्य प्रयत्न तो सफल व सहायक हो हीे जाते हैं, इसके अलावा स्वप्नों के माध्यम से भी वह अपनी समस्याओं का निराकरण कर सकता है। संसार में देखा जाय तो स्वप्नों ने व्यक्ति के जीवन में बहुत बड़े-बड़े परिवर्तन किये हैं और वैज्ञानिक शोधों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। फ्रांस के दार्शनिक डी. मार्गिस की आदत थी कि वे बराबर काम में जुटे रहते थे और काम करते ही जब गणित के किसी समीकरण या विज्ञान की किसी समस्या का समाधान नहीं मिलता था तो वे वहीं काम करते-करते सो जाते, तब ‘स्वप्न’ में उन समस्याओं का समाधान उन्हें मिल जाता था। इससे यह सिद्ध होता है कि वास्तव में ही स्वप्न अपने आपमें एक अलग विज्ञान है। उसको उसी प्रकार से ही समझना होगा। कभी-कभी स्वप्न सीधे और स्पष्ट रूप से नहीं आते अपितु वे गूढ़ रहस्य के रूप में निद्राकाल में आते हैं और वे स्वप्न उन्हें स्मरण रहते हैं। व्यक्ति को चाहिए कि वह उस स्वप्न का अर्थ समझे व स्वप्न विशेषज्ञ से सलाह लें और उसके अनुसार अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करें। स्वप्नों के स्वरूप: फलित ज्योतिष में स्वप्नों को विश्लेषणों के आधार पर सात भागों में बांटा गया है:- 1. दृष्ट स्वप्न, 2. श्रृत स्वप्न, 3. अनुभूत स्वप्न, 4. प्रार्थित स्वप्न, 5. सम्मोहन स्वप्न, 6. काल्पनिक स्वप्न एवं 7. भावित स्वप्न। इनमें से उपरोक्त छः प्रकार के स्वप्न निष्फल होते हैं क्योंकि ये सभी छः प्रकार के सवप्न असंयमित जीवन जीने वाले व्यक्तियों के स्वप्न होते हैं।

मंगल एवं कुंडली मिलान

मनुष्य के जीवन में विवाह एक ऐसा मोड़ है, जहां उसका सारा जीवन एक निर्णय पर आधारित होता है। जिस व्यक्ति के साथ जीवन भर चलना है, वह अपने मन के अनुसार है, या नहीं, यह कुछ क्षणों में कैसे जानें? उसका भाग्य एवं भविष्य भी तो आपके साथ मिलने वाला है। अतः ऐसे निर्णय में ज्योतिष की एक अहम भूमिका है। कुंडली मिलान में मुख्य चार पक्षों पर विचार करते हैं। पहला, क्या एक की कुंडली दूसरे के लिए मारक तो नहीं है? दूसरा, वर-वधू में मानसिक तालमेल ठीक रहेगा, या नहीं? तीसरा, विवाह में संतान का पक्ष भी अहम है। यह वर-वधू की कुंडली में कैसा है एवं चैथा अर्थ एवं कुटुंब आदि पर असर। उपर्युक्त विचार के लिए अष्टकूट मिलान किया जाता है जिसमें आठ प्रकार के कूटों का मिलान कर 36 में से अंक दिये जाते हैं। 50 प्रतिशत से अधिक, अर्थात 18 से अधिक अंकों को स्वीकृति दे दी जाती है। यदि 50 प्रतिशत से अधिक अंक मिलते हैं, तो आखिरी तीन पक्ष-दूसरे, तीसरे एवं चतुर्थ की तो पुष्टि हो जाती है, लेकिन प्रथम पक्ष कि एक दूसरे के लिए मारक तो नहीं है, की पुष्टि नहीं होती। इसके लिए मंगलीक विचार किया जाता है एवं जन्मपत्री के अन्य ग्रहों को देखा जाता है। अष्टकूट में आठ गुण मिलाए जाते हैं - वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट एवं नाड़ी। इनको एक से ले कर आठ तक अंक दिये गये हैं। वर्ण एवं वश्य से मनुष्य की व्यावहारिकता का पता चलता है। तारा से संपन्नता का ज्ञान होता है। योनि दोनों के शारीरिक संबंधों में ताल-मेल दर्शाती है। ग्रह मैत्री एवं भकूट वर-वधू में आपसी मित्रता को दर्शाते हैं। गण से दोनों के मानसिक ताल मेल का पता चलता है। नाड़ी से संतान सुख के बारे में ज्ञान होता है। प्रत्येक गुण का अपना महत्व है। अतः किसी एक गुण को अधिक भार न देते हुए हम 50 प्रतिशत अंक आने पर गुण मिलान ठीक मान लेते हैं। वैसे भी कूटों को अंक उनके महत्व के आधार पर ही दिये गये हैं, जैसे संतान फल, अर्थात नाड़ी को सबसे अधिक 8 अंक दिये गये हैं। उसके बाद वर-वधू में ताल मेल और मित्र भाव को दर्शाने वाले भकूट एवं ग्रह मैत्री को 7 एवं 5 अंक दिये गये हैं। उसके उपरांत मानसिक ताल-मेल को 6, शारीरिक संबंध को 4, धन के कारक तारा को 3, एवं व्यावहारिकता को 2 और 1 अंक दिये गये हैं। अक्सर ऐसा देखने में आया है कि जिन वर-वधू में नाड़ी दोष होता है, उन्हें संतान प्राप्ति में बाधाएं आती हैं। कभी-कभी संतान पूर्ण रूप से विकसित नहीं होती, या संतान ही नहीं होती। इसी प्रकार भकूट दोष होने से वर-वधू दोनों में सामंजस्यता का अभाव रहता है। यदि ग्रह मैत्री ठीक हो, तो भकूट दोष के कारण उत्पन्न सामंजस्यता का अभाव बहुत हद तक कम हो जाता है। अन्य कूटों के अभाव का जीव पर बहुत असर नहीं पड़ता। यदि नाड़ी दोष हो, तो दोनों के पंचम भाव का विचार कर लेना चाहिए कि कहीं उसमें भी दोष तो नहीं है?इसी प्रकार यदि भकूट दोष हो, तो ग्रह मैत्री, अथवा दोनों के लग्नों में मित्रता देख सकते हैं। एक की कुंडली दूसरे के लिए मारक तो नहीं है?इस पक्ष पर विचार करने के लिए मंगलीक विचार की भूमिका अहम है और यही कारण है कि इसकी इतनी महत्ता है। अतः इस पक्ष को विस्तृत रूप से समझते हैं। मंगल यदि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव में हो, तो कुंडली मंगलीक होती है। यदि वर मंगली है, तो वधू का भी मंगली होना वांछनीय है। इस प्रकार एक कुंडली के दोष को दूसरी कुंडली काट देती है। लेकिन अनेक योगों में कुंडली को मंगली दोष नहीं लगता एवं अन्य अनेक स्थितियों में एक ही कुंडली दूसरे के मंगली दोष को काट देती है। जैसे: यदि लग्न में मंगल मेष अथवा मकर राशि, द्वादश में धनु राशि, चतुर्थ में वृश्चिक राशि, सप्तम में वृष, अथवा मकर राशि तथा अष्टम में कुंभ, अथवा मीन राशि में स्थित हो, तो मंगल दोष नहीं लगता। चतुर्थ, सप्तम, अथवा द्वादश में मेष, या कर्क का मंगल हो, तो दोष नहीं होता। स यदि द्वादश में मंगल बुध तथा शुक्र की राशियों में हो, तो दोष नहीं होता। स यदि बली गुरु और शुक्र स्वराशि, या उच्च हो कर लग्न, या सप्तम भाव में हों, तो मंगल का दोष नहीं होता है। स यदि मंगल वक्री, नीच, अस्त का हो, तो मंगल दोष नहीं होता है। यदि मंगल स्वराशि, अथवा उच्च का हो, तो मंगली दोष भंग हो जाता है। यदि मंगल-गुरु या मंगल-राहु या मंगल-चंद्र एक राशि में हों तो मंगली दोष भंग हो जाता है।

अष्टम भावस्थ शनि का विवाह पर प्रभाव

प्राचीन ज्योतिषाचार्यों ने एकमत से जातक की कुंडली के सप्तम भाव को विवाह का निर्णायक भाव माना है और इसे जाया भाव, भार्या भाव, प्रेमिका भाव, सहयोगी, साझेदारी भाव स्वीकारा है। अतः अष्टम भावस्थ शनि विवाह को क्यों और कैसे प्रभावित करता है यह विचारणीय हो जाता है क्योंकि अष्टम भाव सप्तम भाव का द्वितीय भाव है। विवाह कैसे घर में हो, जान - पहचान में या अनजाने पक्ष में हो, पति/पत्नी सुंदर, सुशील होगी या नहीं, विवाह में धन प्राप्ति होगी या नहीं आदि प्रश्न विवाह प्रसंग में प्रायः उठते हैं और यह आवश्यक भी है क्योंकि विवाह संबंध पूर्ण जीवन के लिए होते हैं। इन सब प्रश्नों का उत्तर सप्तम भाव से मिलना चाहिए। परंतु जब अष्टम भाव में शनि हो तो विवाह से जुड़े इन सब प्रश्नों पर प्रभाव पड़ता है। देखें कैसे? अष्टम भाव विवाह भाव (सप्तम) का द्वितीय भाव है तो यह विवाह का मारक स्थान होगा, जीवन साथी का धन होगा, परिवार तथा जीवन साथी की वाणी इत्यादि होगा। अतः अष्टम भावस्थ शनि इन सब बातों को प्रभावित करेगा। यदि शनि शुभ प्रभावी है तो जातक को जीवन साथी द्वारा परिवार, समाज में सम्मान, धन (दहेज या साथी द्वारा अर्जित) प्राप्ति, सुख, मधुर भाषी साथी प्राप्त हो सकता है। यदि शनि अशुभ प्रभाव में हो तो जातक के लिए मारक और उसके साथी द्वारा प्राप्त होने वाले शुभ फलों का ह्रास होगा। अष्टम भावस्थ शनि की दृष्टि दशम भाव पर होती है जो जातक का कर्म भाव है और उसके जीवन साथी का चतुर्थ भाव अर्थात परिवार, समाज, गृह सुख, विद्या आदि है; अतः जातक का यश, समाज में प्रतिष्ठा, परिवार सुख, धन समृद्धि, शिक्षा, व्यवसाय आदि प्रभावित होते हैं। अष्टम भावस्थ शनि की दूसरी दृष्टि द्वितीय भाव पर होती है तो जीवन साथी का अष्टम भाव है, अतः उसके दुःख कष्ट, आकस्मिक घटनाएं, गुप्त कृत्य आदि तथा स्वयं के संचित धन को प्रभावित करेगा। अष्टम भावस्थ शनि की तीसरी दृष्टि पंचम भाव पर होती है तो जीवन साथी का एकादश भाव है। अतः प्रभाव संतान पर, शिक्षा पर और जीवन साथी के हर लाभ पर होता है। विवाह जनित जितने भी सुख हैं वह अष्टम भावस्थ शनि से प्रभवित होते हैं जिनमें मुख्य हैं धन, संतान, शिक्षा, व्यवसाय, पैतृक संपत्ति, परिवार सुख आदि। शुभ शनि शुभ परिणाम देता है और अशुभ शनि शुभ फलों को कम कर देता है। इन धारणाओं को मन में रखते हुए कुछ कुंडलियों का अध्ययन किया गया है और पाया गया कि अष्टम भावस्थ शनि निश्चित रूप से विवाह जनित सुख-दुख को प्रभावित करता है।

राशियों अनुसार वास्तु भविष्य या ज्ञान

राशियों द्वारा वास्तु भविष्य प्रत्येक राशि के भी 4 चरण निर्धारित किये गये हैं। कहीं-कहीं इन चरणों को पाद या वर्ग कहकर पुकारा गया है। प्रत्येक राशि के चरणों में वास्तु का विचार एवं वास्तु के भविष्य का फलकथन निम्नलिखित रूप से किया गया है। मेष : प्रथम चरण : मकान गली में होगा। गली दक्षिण से उत्तर दिशा वाली होगी। मकान का खुला भाग (ब्रह्म स्थान) घर में पश्चिम दिशा की ओर होगा। मकान के दक्षिण दिशा की ओर मंदिर (पूजा स्थल) होगा, परंतु वहां नियमित पूजा नहीं होगी। गली में गणेश जी की मूर्ति ऊंचे स्थान या खुले मैदान में होगी, जहां आसपास कुआं या जल संग्रह का स्थान होगा। द्वितीय चरण : मकान की गली पश्चिम से पूर्व की ओर होती हुई उत्तर दिशा को जाएगी। गली के दक्षिण-पश्चिम (र्नैत्य) में एक मंदिर या तालाब होगा। उत्तरी दिशा की ओर बड़ा जल संग्रह होगा जिस कारण मकान जल्द ही खण्डहर में परिवर्तित हो जाएगा। तृतीय चरण : मकान गली में होगा जो उत्तर से दक्षिण की ओर जा रही होगी। मकान का खुला भाग (ब्रह्म स्थान) पश्चिम दिशा की ओर होगा। मकान के दोनों ओर खुली जगह होगी। मकान के पास ही शिव मंदिर होगा। सिंह एवं वृश्चिक राशि की दिशा में ऐसा मंदिर होगा, जहां छोटे देवताओं की पूजा होती होगी। वहीं पर एक कुआं (जल संग्रह स्थान) होना भी संभव है। चतुर्थ चरण : मकान ऐसा होगा, जिसकी गली पूर्व से पश्चिम की ओर होगी तथा मकान दक्षिणोन्मुखी होगा। मकान के दक्षिण में तालाब होगा। मकान के सिंह और मकर राशि के स्थान में एक मंदिर का बगीचा होगा। तुला एवं मेष के स्थन पर पूजा का छोटा सा स्थल होगा, जहां शिव के गणों की पूजा होगी।
वृष : प्रथम चरण : मकान पुर्वोन्मुखी हेगा तथा मकान के सामने दक्षिण में उत्तर की ओर गली होगी। जातक के मकान से तीसरा मकान टूटा-फूटा एवं त्रुटिपूर्ण होगा। उस स्थान में जगह-जगह से पानी टपकता होगा। मकान के आग्नेय में जल संग्रह होगा। वृष एवं वृश्चिक राशि के स्थान में देवी का मंदिर (पूजा स्थल) होगा। द्वितीय चरण : मकान दक्षिणोन्मुखी होगा एवं मकान के सामने पश्चिम से पूर्व की ओर मार्ग होगा। मकान के पश्चिम भाग में गणेश जी का मंदिर होगा। तुला, मिथुन एवं कुंभ के स्थान में मॉ दुर्गा का मंदिर होगा, जहां देवियों की पूजा होगी। मकान के पिछले हिस्से में गृहदेवता (पितृश्वरों) का वास होगा, जो घर की रक्षा करते रहेंगे। तृतीय चरण : मकान पश्चिमोन्मुखी होगा तथा मकान के सामने दक्षिण से उत्तर की तरफ मार्ग होगा। मकान के मार्ग में गणपति का मंदिर होगा। चतुर्थ चरण : मका उत्तरोमुन्खी होगा तथा मकान के सामने का मार्ग पश्चिम से पूर्व की ओर होगा। मकान में दो परिवारों का निवास होगा। उत्तर दिशा में मंदिर होगा, जहां काली एवं शक्ति की उपासना होगाी। पूर्वी भाग में गणपति का मंदिर होगा।
मिथुन : प्रथम चरण : मकान के सामने का मार्ग दक्षिण से उत्तर की ओर होगा। मकान का खाली भाग (ब्रह्मस्थान) पूर्व की ओर होगा। मार्ग में गणपति का मंदिर होगा। मकान के बाहर कार रखने का स्थान (पार्किग) होगा। मकान में पुरुष प्रधान देवता का पूजा होगा। द्वितीय चरण : मकान ऐसा होगा जिसके सामने पूर्व से पश्चिम की ओर मार्ग होगा। दक्षिण में कोई फव्वारा या झरना होगा। यहीं पर ईशान में मॉ दुर्गा का मंदिर होगा। मकान में शक्ति के रूप में देवी की पूजा होगी। तृतीय चरण : मकान के सामने दक्षिण से उत्तर की ओर राजमार्ग होगा। मकान में खुली जगह (ब्रह्म स्थान) पश्चिम में होगी। जातक ऐसे मकान में रहेगा जो उसके पिता या दादा द्वारा बनवाया गया होगा। वृष राशि के स्थान में शिव मंदिर तथा आग्नेय में देवी का मंदिर होगा। दक्षिण में छोटा-सा झरना या फव्वारा होगा। चतुर्थ चरण : मकान के सामने का मार्ग पूर्व से पश्चिम की ओर होगा। जातक जिस मकान में रह रहा होगा, वह उसके दादा का होगा। जातक के जन्म के बाद परिवार के खर्च में असाधारण वृद्धि होगी। मकान में अनेक प्रकार के छोटे देवताओं का पूजन होगा।
कर्क : प्रथम चरण : मकान ऐसी गली में होगा जो दक्षिण से उत्तर की ओर जा रही होगी। मकान का खुला स्थान पश्चिम की ओर होगा। मकान के पास सुंदर बगीचा, पुल तथा हरियाली होगी। मकान के मार्ग में गणपति का मंदिर होगा। तुला, कुंभ और मेष के स्थान में जल-स्थान अथवा मां दुर्गा का मंदिर होगा। द्वितीय चरण : मकान की गली पूर्व से पश्चिम की ओर होगी। मकान की खुली जमीन दक्षिण दिशा में होगी, जहां मोड़ होगा। मकान के सामने कोई अन्य मकान नहीं होगा। मकान में एक अन्य परिवार भी रह रहा होगा। मेष एवं तुला के स्थान में मंदिर होगा। कुंभ राशि के स्थान में मंदिर तथा मकान के मार्ग में प्रतिष्ठित साधु-संतों का स्थान होगा। तृतीय चरण : मकान ऐसी गली में होगा जो दक्षिण से उत्तर की ओर होगी। मकान का खुला भाग पूर्व दिशा में होगा। मकान में मेष, तुला एवं मीन स्थान में मंदिर होगा। मकान के कर्क एवं वृश्चिक स्थान की ओर बाजार होगा। परिवार में छोटे देवता इत्यादि की पूजा होगी। चतुर्थ चरण : पूर्व से पश्चिम गली वाला मकान होगा। मकान का खुला आंगन उत्तर दिशा में होगा। मकान के र्नैत्य (दक्षिण-पश्चिम) में विष्णु का मंदिर, पूर्व में शिव का मंदिर, उत्तर में दुर्गा का मंदिर या तालाब होगा।
सिंह : प्रथम चरण : मकान पूर्व से पश्चिम गली वाला होगा। मकान का खुला भाग (प्रांगण) दक्षिण की ओर होगा। मकान में तीन परिवारों का आवास होगा। मकान के दोनों ओर मोड़ होगा। इस मकान में रहने वाला व्यक्ति सुख-सम्पन्न एवं कीर्तिवान होगा। द्वितीय चरण : मकान ऐसी जगह होगा, जहां का मार्ग दक्षिण से उत्तर की ओर होगा। खुला आंगन पूर्व में होगा। वृष, कन्या मकर के स्थान में शिव मंदिर होगा। गृहस्वामी के पांच भाई-बहन होंगे। उसके पिता के दो भाई होंगे। तृतीय चरण : मकान पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर वाली गली में होगी। मकान के अग्रिम भाग में उत्तर की ओर खुला प्रांगण होगा। इस मकान के पास वाला मकान ध्वस्त हो जाएगा। मकान के मेष, धनु, मकर एवं मीन के स्थान में देवी का मंदिर होगा गृहस्वामी मां काली का उपासक होगा। चतुर्थ चरण : मकान ऐसी गली में होगा जो दक्षिण से उत्तर की ओर होगी। मकान का खुाला स्थान पश्चिम में होगा मकान दो भागों में विभक्त होगा। मकान के मेष, तुला एवं मकर स्थान में पानी का तालाव, कुंआ या मंदिर होगा। गृहस्वामी शिव भक्त होगा।
कन्या : प्रथम चरण : मकान दक्षिण से उत्तर राजमार्ग पर होगा। मकान का खुला आंगन उत्तर में होगा। पश्चिम की ओर गहरा तालाब होगा। दक्षिण की ओर सुंदर पार्क तथा पूर्व दिशा की ओर खुला तालाब होगा। मकान के खुले भाग में वृक्ष व गमले होंगे। उत्तर दिशा की ओर शिव जी का मंदिर होगा। द्वितीय चरण : मकान ऐसा होगा जिसका राजमार्ग दक्षिण से उत्तर की तरफ होगा। मकान का खुला भाग पूर्व की ओर होगा। मकान के दोनों और सुंदर मकान होंगे। मकान के पश्चिम की ओर तालाब होगा। मकान के मेष, कर्क एवं धनु राशि वाले हिस्से में देवी का मंदिर होगा। गृहस्वामी पुरुष देवता का उपासक होगा। तृतीय चरण : मकान पूर्व और पश्चिम की ओर गली में होगा। खुली जमीन अथवा आंगन दक्षिण में होगा। वहां वृक्ष, पौधे व गमलों का संग्रह होगा। मकान में वृश्चिक, मीन एवं मिथुन राशि के स्थान में शिव मंदिर होगा। मेष, तुला और मकर राशि के स्थान में तालाब या कुआं होगा। जातक गृह देवता के रूप में मां काली की उपासना करेगा। चतुर्थ चरण : मकान दक्षिण से उत्तर जाने वाले मार्ग पर होगा। खुली जमीन पश्चिम में होगी। मकान के पूर्वी भाग में बगीचा या कुआं होगा। घर के पास बाहर एक मोड़ होगा। गली में सप्त कन्या पीठ का एक मंदिर होगा। गृह देवता के रूप में व्यक्ति पुरुष प्रधान देवता का पूजन करेगा। तुला : प्रथम चरण : जातक का मकान ऐसी गली में होगा जो पूर्व से पश्चिम की ओर जा रही होगी। मकान का खुला आंगन उत्तर में होगा। पश्चिम की ओर गहरा तालाब होगा। दक्षिण की ओर सुंदर पार्क तथा पूर्व दिशा की ओर खुला तालाब होगा। मकान के खुले भाग में वृक्ष व गमले होंगे। उत्तर दिशा की ओर शिवजी का मंदिर होगा। द्वितीय चरण : मकान ऐसा होगा जिसका राजमार्ग दक्षिण से उत्तर की तरफ होगा। मकान का खुला भाग पूर्व की ओर होगा। मकान के दोनों ओर सुंदर मकान होंगे। मकान के पश्चिम की ओर तालाव होगा। मकान के मेष, कर्क एवं धनु राशि वाले हिस्से में देवी का मंदिर होगा। गृहस्वामी पुरुष देवता का उपासक होगा। तृतीय चरण : मकान पूर्व और पश्चिम की ओर गली में होगा खुली जमीन अथवा आंगन दक्षिण में होगा। वहां वृक्ष, पौधे व गमलों का संग्रह होगा। मकान में वृश्चिक, मीन एवं मिथुन राशि के स्थान में शिव मंदिर होगा। मेष, तुला और मकर राशि के स्थान में तालाव कुआं होगा। जातक गृहदेवता के रूप में मां काली की उपासना करेगा। चतुर्थ चरण : मकान दक्षिण से उत्तर जाने वाले मार्ग पर होगा। खुली जमीन पश्चिम में होगी। मकान के पूर्वी भाग में बगीचा या कुआं होगा। घर के पास बाहर एक मोड़ होगा। गली में सप्त देवता का पूजन होगा।
वृश्चिक : प्रथम चरण : घर के सामने राजमार्ग पूर्व से पश्चिक की ओर वाला होगा। घर का खुला भाग दक्षिण दिशा में होगा। पूर्व में झरना या फव्वारा होगा। उत्तर दिशा की ओर मंदिर अथवा राष्ट्रीय राजमार्ग होगा। द्वितीय चरण : घर के सामने की गली दक्षिण से उत्तर दिशा वाली होगी। खुली जगह पश्चिम में होगी। घर के पीछे वाले भाग में गृह देवता का स्थान होगा। कर्क, वृश्चिक एवं मीन राशि वाले स्थानों में पुष्प, गुच्छ, झाड़ियां अथवा मंदिर होगा। मेष और कन्या राशि वाले स्थानों में छोटे देवताओं का पूजन होगा तथा पास ही कोई तालाब होगा। तृतीय चरण : मकान गली में होगा। यह गली पूर्व से पश्चिम की ओर दिशा वाली होगी। खुली जमीन घर के उत्तर में होगी। मकान गली के मोड़ पर होगा। मेष एवं कन्या राशि वाले स्थान पर झरना या मंदिर होगा घर के पिछवाड़े गृहदेवता का स्थान होगा। चतुर्थ चरण : मकान के सामने का मार्ग उत्तर से दक्षिण दिशा वाला होगा घर में खुली जमीन पूर्व की ओर होगी। मकान में दो परिवारों का निवास होगा। मेष एवं धनु राशि के स्थान में जलस्रोत होगा। कर्क और कुंभ राशि वाले स्थान पर शिव अथवा मां दुर्गा का मंदिर होगा। गृहस्वामी पुरुष प्रधान देवता का उपासक होगा।
धनु : प्रथम चरण एवं द्वितीय चरण : खुली जमीन पश्चिम दिशा में होगी। घर के सामने का मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर होगा। पूर्व दिशा की ओर शिव मंदिर होगा। मिथुन व धनु राशि के स्थल पर झरना या फव्वारा होगा। गृहस्वामी शिव एवं शक्ति का उपासक होगा। तृतीय चरण : मकान ऐसी गली में होगा जिसकी दिशा पश्चिम से पूर्व की ओर होगी। मकान का खुला भाग उत्तर दिशा में होगा। घर के दोनों ओर मार्ग होगा। मेष, कन्या व धनु राशि के स्थल में विविध देवी देवताओं की पूजा होगी। घर में गृहदेवता का पूजन होगा। चतुर्थ चरण : मकान पूर्वोन्मुखी होगा। मकान के सामने की गली उत्तर से दक्षिण दिशा वाली होगी। मकान के सामने वाला मकान सुनशान रहेगा। मकान के मेष, कन्या, तुला व मीन राशि के स्थलों में मंदिर फव्वारा, तालाव और जल संग्रह होगा। गृहस्वामी पुरुष देवता का उपास होगा।
मकर : प्रथम चरण : मकान दक्षिणोन्मुखी होगा तथा सामने की गली पूर्व से पूर्व पश्चिम की ओर जाएगी। घर के सामने जल स्थान या मंदिर होगा। मकान के बाहरी क्षेत्र में वृक्ष होंगे। गृह प्रवेश के बाद गृहस्वामी के साले बहनोई की मृत्यु हो जाएगी। द्वितीय चरण : मकान ऐसे मार्ग पर होगा जो दक्षिण से उत्तर की तरफ गतिशील होगा। मकान पूर्वोन्मुखी होगा। मकान में तीन परिवारों का पड़ाव होगा। मेष, कर्क, तुला और मकर राशि के स्थल पर अग्नि का वास होगा। घर का स्वामी पुरुष देवता का उपास होगा। तृतीय चरण : मकान उत्तरोन्मुखी होगा। मकान के सामने की गली पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर गतिशील होगी। मकान के पास बगीचा एवं सुंदर झाड़ियां होंगी। ससुराल पक्ष में दो साल हो सकती हैं। चतुर्थ चरण : मकान कली में और दरबाजा पश्चिम की ओर होकर प्रवेश पूर्वोन्मुखी होगा। मकान के सामने गली उत्तर से दक्षिण की ओर गतिशील होगी। गृहस्वामी के दो चाचा एवं मामा होंगे परंतु उसके कोई साला नहीं होगा। मकान के ईशान अथवा आग्नेय में शिव मंदिर या जल संग्रह स्थल होगा। गृहस्वामी पुरुष देवता का उपासक होगा। सम्भवतः जातक का मकान पैतृक होगा।
कुंभ : प्रथम चरण : मकान उत्तरोन्मुखी होगा। मकान के सामने की गली पूर्व से पश्चिमी की ओर होगी। पश्चिम में गणपति की मूर्ति होगी। दक्षिण दिशा में विष्णु मंदिर होगा। गृहस्वामी के पांच चाचा-चाचियां एवं तीन मामा-मामियां होंगी। द्वितीय चरण : मकान दक्षिण से उत्तर की ओर गली में स्थित होगा। मकान की खुली जगह पश्चिम में होगी। मकान की गली में एक मोड़ होगा, जहां कुछ दुकानें होंगी। मकान के उत्तर दिशा की ओर झील, नदी या नाला होगा। पश्चिम में मंदिर होगा। तृतीय चरण : मकान दक्षिणोन्मुखी होगा जिसमें एक ओर मोड़ होगा। दक्षिण दिशा की ओर मंदिर या देवस्थान होगा जो मकान की रक्षा के लिए सहायक होगा। चतुर्थ चरण : मकान पुर्वोन्मुखी होगा जिसके सामने की गली दक्षिण से उत्तर की ओर गतिशील होगी। मकान के उत्तर और दक्षिण दोनों तरफ तालाब या कुएं तालाब या कुएं होंगे। पश्चिम की ओर झरना या फव्वारा होगा। मकान के वायव्य दिशा में एक मंदिर होगा।
मीन : प्रथम चरण : मकान उत्तरोन्मुखी होगा। गली पश्चिम से पूर्व की ओर गतिशील होगी। मकान के पास तालाब या नाला होगा। मकान के पश्चिम और पूर्व दिशा की ओर सुंदर मकान होंगे। उत्तर की ओर झाड़ी, बगीचा एवं मंदिर होगा। द्वितीय चरण : मकान का निर्माण आम मकानों से हटकर विचित्र रूप का होगा। मकान के दक्षिण-पश्चिम या र्नैत्य की ओर मंदिर होगा। मकान में शिव की उपासना होगी। मकान में मालिक की जगह सम्भवतः दूसरे का नाम होगा। तृतीय चरण : मकान गली में होगा। गली पश्चिम से पूर्व की ओर गतिशील होगी। मकान दक्षिणोन्मुखी होगा। कर्क, तुला व मकर राशि के स्थानों पर झाड़ी, कुआं या फव्वारा होगा। मेष, सिंह एवं मीन राशि के स्थल पर मंदिर होगा। मकान के पास ही एक मोड़ होगा। गृहस्वामी पुरुष देवता का उपासक होगा। चतुर्थ चरण : मकान पश्चिम में होगा। मकान की गली दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर होगी, मकान के पूर्व, पश्चिम र्नैत्य या आग्नेय में मंदिर अथवा तालाब होगा।

महिलाएं की कुंडली में ग्रहों का प्रभाव

जन्म -कुंडली में विभिन्न ग्रहों के साथ युति का अलग-अलग प्रभाव हो सकता है।
सूर्य
सूर्य एक उष्ण और सतोगुणी ग्रह है,यह आत्मा और पिता का कारक हो कर राज योग भी देता है। अगर जन्म कुंडली में यह अच्छी स्थिति में हो तो इंसान को स्फूर्तिवान,प्रभावशाली व्यक्तित्व, महत्वाकांक्षी और उदार बनाता है।
परन्तु निर्बल सूर्य या दूषित सूर्य होने पर इंसान को चिड़चिड़ा, क्रोधी, घमंडी, आक्रामक और अविश्वसनीय बना देता है।
अगर किसी महिला कि कुंडली में सूर्य अच्छा हो तो वह हमेशा अग्रणी ही रहती है और निष्पक्ष न्याय में विश्वास करती है चाहे वो शिक्षित हो या नहीं पर अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देती है।
परन्तु जब यही सूर्य उसकी कुंडली में नीच का हो या दूषित हो जाये तो महिला अपने दिल पर एक बोझ सा लिए फिरती है। अन्दर से कभी भी खुश नहीं रहती और आस -पास का माहौल भी तनाव पूर्ण बनाये रखती है। जो घटना अभी घटी ही ना हो उसके लिए पहले ही परेशान हो कर दूसरों को भी परेशान किये रहती है।
बात-बात पर शिकायतें, उलाहने उसकी जुबान पर तो रहते ही हैं, धीरे -धीरे दिल पर बोझ लिए वह एक दिन रक्त चाप की मरीज बन जाती है और न केवल वह बल्कि उसके साथ रहने वाले भी इस बीमारी के शिकार हो जाते है।
दूषित सूर्य वाली महिलायें अपनी ही मर्जी से दुनिया को चलाने में यकीन रखती हैं सिर्फ अपने नजरिये को ही सही मानती हैं दूसरा चाहे कितना ही सही हो उसे विश्वास नहीं होगा।
सूर्य का आत्मा से सीधा सम्बन्ध होने के कारण यह अगर दूषित या नीच का हो तो दिल डूबा-डूबा सा रहता है जिस कारण चेहरा निस्तेज सा होने लगता है।
सूर्य को जल देना ,सुबह उगते हुए सूर्य को कम से कम पंद्रह -मिनट देखते हुए गायत्री मन्त्र का जाप ,आदित्य-हृदय का पाठ और अधिक परेशानी हो तो रविवार का व्रत भी किया जा सकता है।
संतरी रंग (उगते हुए सूरज) का प्रयोग अधिक करें .
चंद्रमा
किसी भी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। स्त्री की कुंडली में इसका महत्व और भी अधिक है।
चन्द्र राशि से स्त्री का स्वभाव, प्रकृति, गुण -अवगुण आदि निर्धारित होते है।
चंद्रमा माता, मन, मस्तिष्क, बुद्धिमत्ता, स्वभाव, जननेन्द्रियाँ, प्रजनन सम्बंधी रोगों, गर्भाशय अंडाशय, मूत्र -संस्थान, छाती और स्तन का कारक है..इसके साथ ही स्त्री के मासिक -धर्म ,गर्भाधान एवं प्रजनन आदि महत्वपूर्ण क्षेत्र भी इसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
चंद्रमा मन का कारक है ,इसका निर्बल और दूषित होना मन एवं मति को भ्रमित कर किसी भी इंसान को पागल तक बना सकता है।
कुंडली में चंद्रमा की कैसी स्थिति होगी यह किसी भी महिला के आचार -व्यवहार से जाना जा सकता है।
अच्छे चंद्रमा की स्थिति में कोई भी महिला खुश -मिजाज होती है। चेहरे पर चंद्रमा की तरह ही उजाला होता है। यहाँ गोरे रंग की बात नहीं की गयी है क्योंकि चंद्रमा की विभिन्न ग्रहों के साथ युति का अलग -अलग प्रभाव हो सकता है।
कुंडली का अच्छा चंद्रमा किसी भी महिला को सुहृदय ,कल्पनाशील और एक सटीक विचारधारा युक्त करता है।
अच्छा चन्द्र महिला को धार्मिक और जनसेवी भी बनाता है।
लेकिन किसी महिला की कुंडली मंे यही चन्द्र नीच का हो जाये या किसी पापी ग्रह के साथ या अमावस्या का जन्म को या फिर क्षीण हो तो महिला सदैव भ्रमित ही रहेगी। हर पल एक भय सा सताता रहेगा या उसको लगता रहेगा कोई उसका पीछा कर रहा है या कोई भूत -प्रेत का साया उसको परेशान कर रहा है। कमजोर या नीच का चन्द्र किसी भी महिला को भीड़ भरे स्थानों से दूर रहने को उकसाएगा और एकांतवासी कर देता है धीरे-धीरे।
महिला को एक चिंता सी सताती रहती है जैसे कोई अनहोनी होने वाली है। बात-बात पर रोना या हिस्टीरिया जैसी बीमारी से भी ग्रसित हो सकती है। बहुत चुप रहने लगती है या बहुत ज्यादा बोलना शुरू कर देती है। ऐसे में तो घर-परिवार और आस पास का माहौल खराब होता ही है।
बार-बार हाथ धोना, अपने बिस्तर पर किसी को हाथ नहीं लगाने देना और देर तक नहाना भी कमजोर चन्द्र की निशानी है।
ऐसे में जन्म-कुंडली का अच्छी तरह से विश्लेषण करवाकर उपाय करवाना चाहिए।
अगर किसी महिला के पास कुंडली नहीं हो तो ये सामान्य उपाय किये जा सकते हैं, जैसे शिव आराध् ाना,अच्छा मधुर संगीत सुनें, कमरे में अँधेरा न रखंे, हल्के रंगों का प्रयोग करें।
पानी में केवड़े का एसेंस डाल कर पियें, सोमवार को एक गिलास ढूध और एक मुट्ठी चावल का दान मंदिर में दंे, और घर में बड़ी उम्र की महिलाओं के रोज चरण -स्पर्श करते हुए उनका आशीर्वाद अवश्य लें। छोटे बच्चों के साथ बैठने से भी चंद्रमा अनुकूल होता है।
मंगल
ग्रहों का सेनापति मंगल, अग्नितत्व प्रधान तेजस ग्रह है। इसका रंग लाल है और यह रक्त-संबंधो का प्रतिनिधित्व करता है। जिस किसी भी स्त्री की जन्म कुंडली में मंगल शुभ और मजबूत स्थिति में होता है उसे वह प्रबल राज योग प्रदान करता है। शुभ मंगल से स्त्री अनुशासित, न्यायप्रिय,समाज में प्रिय और सम्मानित होती है। जब मंगल ग्रह का पापी और क्रूर ग्रहों का साथ हो जाता है तो स्त्री को मान -मर्यादा भूलने वाली ,क्रूर और हृदय हीन भी बना देता है। मंगल रक्त और स्वभाव में उत्तेजना, उग्रता और आक्रामकता लाता है इसीलिए जन्म-कुंडली में विवाह से संबंधित भावों--जैसे द्वादश, लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम व अष्टम भाव में मंगल की स्थिति को विवाह और दांपत्य जीवन के लिए अशुभ माना जाता है। ऐसी कन्या मांगलिक कहलाती है। लेकिन जिन स्त्रियों की जन्म कुंडली में मंगल कमजोर स्थिति में हो तो वह आलसी और बुजदिल होती है,थोड़ी सी डरपोक भी होती है। मन ही मन सोचती है पर प्रकट रूप से कह नहीं पाती और मानसिक अवसाद में घिरती चली जाती है।कमजोर मंगल वाली स्त्रियाँ हाथ में लाल रंग का धागा बांध कर रखे और भोजन करने के बाद थोड़ा सा गुड़ जरुर खा लें। ताम्बे के गिलास में पानी पियें और अनामिका में ताम्बे का छल्ला पहन लें।
जिन स्त्रियों की जन्म कुंडली में मंगल उग्र स्थिति में होता है उनको लाल रंग कम धारण करना चाहिए और मसूर की दाल का दान करना चाहिए। रक्त-सम्बन्धियों का सम्मान करना चाहिए जैसे बुआ, मौसी, बहन,भाई और अगर शादी शुदा है तो पति के रक्त सम्बन्धियों का भी सम्मान करें .
हनुमान जी की शरण में रहना कैसे भी मंगल दोष को शांत रखता है।
बुध
बुध ग्रह एक शुभ और रजोगुणी प्रवृत्ति का है। यह किसी भी स्त्री में बुद्धि, निपुणता, वाणी ..वाकशक्ति, व्यापार, विद्या में बुद्धि का उपयोग तथा मातुल पक्ष का नैसर्गिक कारक है। यह द्विस्वभाव, अस्थिर और नपुंसक ग्रह होने के साथ-साथ शुभ होते हुए भी जिस ग्रह के साथ स्थित होता है, उसी प्रकार के फल देने लगता है। अगर शुभ ग्रह के साथ हो तो शुभ, अशुभ ग्रह के अशुभ प्रभाव देता है।
अगर यह पाप ग्रहों के दुष्प्रभाव में हो तो स्त्री कटु भाषी, अपनी बुद्धि से काम न लेने वाली यानि दूसरों की बातों में आने वाली या हम कह सकते हैं कि कानांे की कच्ची होती है। जो घटना घटित भी न हुई उसके लिए पहले से ही चिंता करने वाली और चर्मरोगों से ग्रसित हो जाती है।
बुध बुद्धि का परिचायक भी है अगर यह दूषित चंद्रमा के प्रभाव में आ जाता है तो स्त्री को आत्मघाती कदम की तरफ भी ले जा सकता है।
जिस किसी भी स्त्री का बुध शुभ प्रभाव में होता है वे अपनी वाणी के द्वारा जीवन की सभी ऊँचाइयों को छूती हैं, अत्यंत बुद्धिमान, विद्वान् और चतुर और एक अच्छी सलाहकार साबित होती हंै। व्यापार में भी अग्रणी तथा कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी समस्याओं का हल निकाल लेती हैं।
हरे मूंग (साबुत), हरी पत्तेदार सब्जी का सेवन और दान, हरे वस्त्र को धारण और दान देना उपुयक्त है। तांबे के गिलास में जल पीना चाहिए। अगर कुंडली न हो और मानसिक अवसाद ज्यादा रहता हो तो सफेद और हरे रंग के धागे को आपस में मिला कर अपनी कलाई में बाँध लेना चाहिए।
बृहस्पति
बृहस्पति एक शुभ और सतोगुणी ग्रह है। इसे गुरु की संज्ञा भी दी गयी है और बृहस्पति देवताओं के गुरु भी हैं।बृहस्पति बुद्धि, विद्वत्ता, ज्ञान, सदगुणों, सत्यता, सच्चरित्रता, नैतिकता, श्रद्धा, समृद्धि, सम्मान, दया एवं न्याय का नैसर्गिक कारक होता है। किसी भी स्त्री के लिए यह पति, दाम्पत्य,पुत्र और घर-गृहस्थी का कारक होता है। अशुभ ग्रहों के साथ या दूषित बृहस्पति स्त्री को स्वार्थी, लोभी और क्रूर विचारधारा की बना देता है।दाम्पत्य-जीवन भी दुखी होता है और पुत्र-संतान की भी कमी होती है। पेट और आँतों से सम्बन्धित रोग भी पीड़ा दे सकते है। जन्म- कुंडली में शुभ बृहस्पति किसी भी स्त्री को धार्मिक,न्याय प्रिय और ज्ञानवान, पति -प्रिय और उत्तम संतान वती बनाता है। स्त्री विद्वान होने के साथ -साथ बेहद विनम्र भी होती है। कमजोर बृहस्पति हो तो पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है पर किसी ज्योतिषी की राय ले कर ही। गुरुवार का व्रत रखा जा सकता है। स्वर्णाभूषण धारण, पीले रंग का वस्त्र धारण और पीले भोजन का सेवन किया जा सकता है। एक चपाती पर एक चुटकी हल्दी लगाकर खाने से भी बृहस्पति अनुकूल हो सकते हैं। उग्र बृहस्पति को शांत करने के लिए बृहस्पति वार का व्रत करना, पीले रंग और पीले रंग के भोजन से परहेज करना चाहिए बल्कि उसका दान करना चाहिए ,केले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए और विष्णु -भगवान् को केले अर्पण करना चाहिए और छोटे बच्चों ,मंदिर में केले का दान और गाय को केला खिलाना चाहिए। अगर दाम्पत्य जीवन कष्टमय हो तो हर बृहस्पति वार को एक चपाती पर आटे की लोई में थोड़ी सी हल्दी, देशी घी और चने की दाल ( सभी एक चुटकी मात्र ही ) रख कर गाय को खिलायें। कई बार पति-पत्नी अलग-अलग जगह नौकरी करते हैं और चाह कर भी एक जगह नहीं रह पाते तो पति -पत्नी दोनों को ही गुरुवार को चपाती पर गुड़ की डली रख कर गाय को खिलाना चाहिए। और सबसे बड़ी बात यह है कि झूठ से जितना परहेज किया जाय, बुजुर्गों और अपने गुरु, शिक्षकों के प्रति जितना सम्मान किया जाये उतना ही बृहस्पति अनुकूल होते जायेंगे।
शुक्र
शुक्र एक शुभ एवं रजोगुणी ग्रह है। यह विवाह, वैवाहिक जीवन, प्यार, रोमांस, जीवन साथी तथा यौन सम्बन्धों का नैसर्गिक कारक है। यह सौंदर्य, जीवन का सुख, वाहन, सुगंध और सौन्दर्य प्रसाधन का कारक भी है। किसी भी स्त्री की कुंडली में जैसे बृहस्पति ग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, वैसे ही शुक्र भी दाम्पत्य जीवन में प्रमुख भूमिका निभाता है। कुंडली का अच्छा शुक्र चेहरा देखने से ही प्रतीत हो जाता है। यह स्त्री के चेहरे को आकर्षण का केंद्र बनाता है। यहाँ यह जरुरी नहीं कि स्त्री का रंग गोरा है या सांवला। सुन्दर -नेत्र और सुंदर केशराशि से पहचाना जा सकता है। स्त्री का शुक्र शुभ ग्रहों के सान्न्ािध्य में है तो वह सौंदर्य-प्रिय भी होती है। अच्छे शुक्र के प्रभाव से स्त्री को हर सुख सुविधा प्राप्त होती है। वाहन, घर, ज्वेलरी, वस्त्र सभी उच्च कोटि के। किसी भी वर्ग की औरत हो, उच्च, मध्यम या निम्न उसे अच्छा शुक्र सभी वैभव प्रदान करता ही है। यहाँ यह कहना भी जरुरी है कि अगर आय के साधन सीमित भी हांे तो भी वह ऐशो आराम से ही रहती है। अच्छा शुक्र किसी भी स्त्री को गायन, अभिनय, काव्य-लेखन की ओर प्रेरित करता है। चन्द्र के साथ शुक्र हो तो स्त्री भावुक होती है और अगर साथ में बुध का साथ भी मिल जाये तो स्त्री लेखन के क्षेत्र में पारंगत होती है और साथ ही वाक्पटु भी, बातों में उससे शायद ही कोई जीत पाता हो।
अच्छा शुक्र स्त्री में मोटापा भी देता है। जहाँ बृहस्पति स्त्री को थुलथुला मोटापा देकर अनाकर्षक बनाता है वहीं शुक्र से आने वाला मोटापा स्त्री को और भी सुन्दर दिखाता है। यहाँ हम शुभा मुद्गल और किरण खेर, फरीदा जलाल का उदाहरण दे सकते हैं। कुंडली का बुरा शुक्र या पापी ग्रहों का सान्न्ािध्य या कुंडली के दूषित भावों का साथ स्त्री में चारित्रिक दोष भी उत्पन्न करवा सकता है। यह विलम्ब से विवाह, कष्टप्रद दाम्पत्य जीवन, बहु विवाह, तलाक की ओर भी इशारा करता है। अगर ऐसा हो तो स्त्री को हीरा पहनने से परहेज करना चाहिए। कमजोर शुक्र स्त्री में मधुमेह, थाइराईड, यौन रोग, अवसाद और वैभव हीनता लाता है। शुक्र को अनुकूल करने के लिए शुक्रवार का व्रत और माँ लक्ष्मी जी की आराधना करनी चाहिए। चावल, दही, कपूर, सफेद-वस्त्र, सफेद पुष्प का दान देना अनुकूल रहता है। छोटी कन्याओं को इलायची डाल कर खीर भी खिलानी चाहिए।
कनक - धारा, श्री सूक्त, लक्ष्मी स्तोत्र, लक्ष्मी चालीसा का पाठ और लक्ष्मी मन्त्रों का जाप भी शुक्र को बलवान करता है। माँ लक्ष्मी को गुलाब का इत्र अर्पण करना विशेष फलदायी है।
शनि
शनि ग्रह तमोगुणी और पाप प्रवृत्ति का है। यह सबसे धीमा चलने वाला, शीतल, निस्तेज, शुष्क, उदास और शिथिल ग्रह है। इसे वृद्ध ग्रह माना गया है। इसलिए इसे दीर्घायु प्रदायक या आयुष्कारक ग्रह कहा गया है। यह कुंडली में कान, दांत, अस्थियों, स्नायु, चर्म, शरीर में लौह तत्व व वायु तत्व, आयु, जीवन, मृत्यु , जीवन शक्ति, उदारता, विपत्ति, भूमिगत साधनों और अंग्रेजी शिक्षा का कारक है। किसी भी स्त्री की कुंडली में अच्छा शनि उसे उदार, लोकप्रिय बनाता है और तकनीकी ज्ञान में अग्रणी रखता है। वह हर क्षेत्र में अग्रणी हो कर प्रतिनिधित्व करती है। राजनीति में भी उच्च पद प्राप्त करती है। दूषित शनि विवाह में विलम्ब कारक भी है और निम्न स्तर के जीवन साथी की प्राप्ति की ओर भी संकेत करता है। दूषित शनि स्त्री को ईष्र्यालु और हिंसक भी बना देता है। यह स्त्री में निराशा, उदासीनता और नीरसता का समावेश कर उसके दाम्पत्य जीवन को कष्टमय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता और धीरे-धीरे स्त्री अवसाद की तरफ बढ़ने लग जाती है। स्त्रियों में कमर-दर्द, घुटनों का दर्द या किसी भी तरह का मांसपेशियों का दर्द दूषित शनि का ही परिणाम है। चंद्रमा के साथ शनि स्त्री को पागलपन का रोग तक दे सकता है। इसके लिए स्त्री को काले रंग का परहेज और अधिक से अधिक हल्के और श्वेत रंगों का प्रयोग करना चाहिए।
शनि को अनुकूल बनाने के लिए स्त्री को न केवल अपने परिवार के ही बल्कि सभी वृद्धजनों का सम्मान करना चाहिए। अपने अधीनस्थ कर्मचारियों और सेवकों के प्रति स्नेह और उनके हक और हितों की रक्षा भी करें। देश के प्रति सम्मान की भावना रखंे। शनि ईमानदारी और सच्चाई से प्रसन्न रहता है। शनि को न्यायाधीश भी माना गया है तो यह अपनी दशा-अंतर दशा में अपना सुफल या कुफल जरुर देता है कर्मों के अनुसार। शनि अगर प्रतिकूल फल दे रहा हो तो हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए। मंगलवार को चमेली के तेल का दीपक हनुमान जी के आगे जलाना चाहिए। शनि चालीसा, हनुमान चालीसा का पाठ विशेष लाभ देगा। अगर शनि के कारण हृदय रोग परेशान करता हो तो सूर्य को जल और आदित्य-हृदय स्तोत्र का पाठ लाभ देगा और अगर मानसिक रोग के साथ सर्वाइकल का दर्द हो तो शिव आराधना विशेष लाभ देगी। काले और गहरे नीले रंग का परित्याग शनि को अनुकूल बना सकता है। नीलम का धारण भी शनि को अनुकूल बनाता है पर किसी अच्छे ज्योतिषी से पूछ कर ही।
राहु
राहु एक तमोगुणी म्लेच्छ और छाया ग्रह माना गया है। इसका प्रभाव शनि की भांति ही होता है। यह तीक्ष्ण बुद्धि, वाकपटुता, आत्मकेंद्रिता, स्वार्थ, विघटन और अलगाव, रहस्य, मति भ्रम, आलस्य छल - कपट ( राजनीति ) , तस्करी ( चोरी ), अचानक घटित होने वाली घटनाओं, जुआ और झूठ का कारक है। राहु से प्रभावित स्त्री एक अच्छी जासूस या वकील, अच्छी राजनीतिज्ञ हो सकती है। वह आने वाली बात को पहले ही भांप लेती है। विदेश यात्राएं बहुत करती है। कुंडली में राहु जिस राशि में स्थित होता है वैसे ही परिणाम देने लगता है। अगर बृहस्पति के साथ या उसकी राशि में हो तो स्त्री को ज्योतिष में रूचि होगी। शनि के प्रभाव में हो तो तांत्रिक-विद्या में निपुण होगी। चंद्रमा के साथ हो तो वह कई सारे वहमों में उलझी रहेगी, जैसे उसे कुछ दिखाई दे रहा है (भूत-प्रेत आदि)...., या भयभीत रहती है। अगर वह ऐसा कहती है तो गलत नहीं कह रही होती क्योंकि अगर स्त्री के लग्न में राहु हो या राहु की दशा-अन्तर्दशा में ऐसी भ्रम की स्थिति हो जाया करती है। राहु से प्रभावित स्त्री की वाणी में कटुता आ जाती है। वह थोड़ी घमंडी भी हो जाया करती है। भ्रमित रहने के कारण वह कई बार सही गलत की पहचान भी नहीं कर पाती जिसके फलस्वरूप उसका दाम्पत्य जीवन भी नष्ट होते देखा गया है। राहु के दूषित प्रभाव के कारण स्त्री चर्म -रोग, मति-भ्रम, अवसाद रोग से ग्रस्त हो सकती है। राहु को शांत करने के लिए दुर्गा माँ की आराधना करनी चाहिए। खुल कर हँसना चाहिए। मलिन और फटे वस्त्र नहीं पहनना चाहिए। गहरे नीले रंग से परहेज करना चाहिए। काले रंग की गाय की सेवा करनी चाहिए। मधुर संगीत सुनना चाहिए। रामरक्षा स्तोत्र का पाठ भी लाभदायक रहेगा। इसकी शांति के लिए गोमेद रत्न धारण किया जा सकता है लेकिन किसी अच्छे ज्योतिषी की राय ले कर ही।
केतु
केतु ग्रह उष्ण, तमोगुणी पाप ग्रह है।केतु का अर्थ ध् वजा भी होता है। किसी स्वगृही ग्रह के साथ यह हो तो उस ग्रह का फल चैगुना कर देता है।यह नाना, ज्वर, घाव, दर्द, भूत-प्रेत, आंतों के रोग, बहरापन और हकलाने का कारक है। यह मोक्ष का कारक भी माना जाता है। केतु मंगल की भांति कार्य करता है। यदि दोनों की युति हो तो मंगल का प्रभाव दुगुना हो जाता है। राहु की भांति केतु भी छाया ग्रह है इसलिए इसका अपना कोई फल नहीं होता है। जिस राशि में या जिस ग्रह के साथ युति करता है वैसा ही फल देता है। केतु से प्रभावित महिला कुछ भ्रमित सी रहती है। शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती क्योंकि यह ग्रह मात्र धड़ का ही प्रतीक होता है और राहु इस देह का कटा सिर होता है। अच्छा केतु महिला को उच्च पद, समाज में सम्मानित, तंत्र-मन्त्र और ज्योतिष का ज्ञाता बनाता है। बुरा केतु महिला की बुद्धि भ्रमित कर उसे सही निर्णय लेने में बाधित करता है। चर्म रोग से ग्रसित कर देता है। काम-वासना की अधिकता भी कर देता है जिसके फलस्वरूप कई बार दाम्पत्य -जीवन कष्टमय हो जाता है। वाणी भी कटु कर देता है। केतु का प्रभाव अलग-अलग ग्रहों के साथ युति और अलग-अलग भावों में स्थिति होने के कारण ज्यादा या कम हो सकता है।
केतु के लिए लहसुनिया नग उपयुक्त माना गया है। मंगल वार का व्रत और हनुमान जी की आराधना विशेष फलदायी होती है।गणेश चालीसा का पाठ भी विशेष फलदायी हो सकता है। चिड़ियों को बाजरी के दाने खिलाना और भूरे-चितकबरे वस्त्र का दान तथा इन्हीं रंगों के पशुओं की सेवा करना उचित रहेगा।

Monday, 25 January 2016

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