Friday 2 December 2016

ज्योतिष में विभिन्न योग एवं उसके उपाय

ज्योतिष में योग दो तरह के शुभ व अशुभ होते हैं। ज्योतिष में 6, 8 व 12 भाव को त्रिक भाव कहते हैं। फलदीपिका के अनुसार जिस भाव का स्वामी त्रिक भाव (6, 8, 12) में स्थित हो या जो भावेश पाप प्रभाव में हो तो क्रमशः लग्न में ‘अवयोग’, द्वितीय भाव में ‘निस्व’, तृतीय में ‘मृति’, चतुर्थ में ‘कुहु’, पंचम में ‘पामर’, षष्ठ में ‘हर्ष’, सप्तम में ‘दुष्कृति’, अष्टम में ‘सरल’, नवम में ‘निर्भाग्य’, दशम में ‘दुर्योग’, एकादश में दरिद्र’, द्वादश में ‘‘विमल’’ योग बनाता है। इनमें से जब त्रिक भाव के स्वामी स्वगृही हों क्रमशः हर्ष, सरल, विमल योग बनाते हैं, तो कुछ हद तक शुभ प्रभाव देते हैं। लेकिन इन त्रिक भावों के स्वामी, लग्नेश से शत्रुता रखते हैं तो ये भी मारकेश का कार्य कर जातक को अशुभ परिणाम देते हैं। जब लग्नेश त्रिक भाव में स्थित हो तथा पाप प्रभाव (युति/दृष्टि द्वारा) में हो तो ‘‘अवयोग’’ में जातक अप्रसिद्ध, निर्बल, अल्पायु, दीन-हीन, दुष्टांे द्वारा अपमानित, कुपित, चंचल आदि स्थिति वाला होता है। यदि लग्नेश त्रिक भाव में बली हो अर्थात् उच्च, स्वगृही, मित्रराशिगत हो तो कुछ हद तक शुभ प्रभाव जातक को देता है। यदि लग्नेश नीच, शत्रु राशि, अस्त, वक्री व पाप प्रभाव में हो जैसे: चंद्र, अमावस्या का हो, नीच के साथ, राहु, केतु शनि से पीड़ित हो तो यह स्थिति अत्यंत अशुभ होती है। इसी तरह इसके साथ ही त्रिक भाव में नीचस्थ ग्रह भी अशुभ स्थिति के योग बनाते हैं। द्वितीयेश से बनने वाला ‘निस्व’ योग जातक को शिक्षा से हीन, शत्रुओं द्वारा धन का नाश, दुरूपयोग करने वाला, कुटुंब सुख से विहीन, वाणी विकार (हकलाहट आदि) तथा दांत व आंख खराबी वाला आदि दुष्प्रभाव से युक्त बनाता है। तृतीयेश से बनने वाला ‘मृति’ योग जातक को भाई-बहनों से रहित, बल व पराक्रम से रहित, खराब गुणांे वाला, गलत कार्यों से परेशान आदि दुष्प्रभाव से युक्त बनाता है। चतुर्थेश से बनने वाला ‘कुहु’ योग जातक को, माता, भूमि, निवास, धन, वाहन, मित्र व उत्तम वस्त्रों से हीन बनाता है तथा गलत स्त्री से प्रेम करने वाला आदि होता है। पंचमेश से बनने वाला ‘पामर’ योग शेयर से हानि उठाने वाला, संतान विहीन, कुबुद्धि व विवेकहीन, शिक्षाविहीन, दुःख व कष्ट से जीवन बिताने वाला, झूठा, धोखेबाज व दुष्ट व्यक्तियों से मेलजोल रखने वाला आदि दुष्प्रभाव से युक्त बनाता है। षष्ठेश से बनने वाला हर्ष योग शत्रुहंता होता है लेकिन मारकेश हो तो जातक अस्वस्थ व कर्जदार भी होता है। सप्तमेश से बनने वाला ‘दुष्कृति’ योग जातक को पर पुरूष या पर स्त्रीगामी, जीवन साथी से विरक्त, प्रमेह व मधुमेह आदि रोगों से पीड़ित, साझेदारी में नुकसान उठाने वाला, सरकार से कष्ट पाने वाला, बंधु-बांधवों से तिरस्कार पाने वाला आदि दुष्प्रभाव भोगने वाला बनाता है। अष्टमेश से बनने वाला सरल योग मृत्य तुल्य कष्ट भोगने वाला, अस्वस्थ, ससुराल से कष्ट पाने वाला, यात्रा में कठिनाई पाने वाला, बुरे कर्मों से युक्त होता है। लेकिन जातक महत्वाकांक्षी भी होता है। नवमेश से बनने वाला निर्भाग्य योग, फटे कपड़े धारण करने वाला, पिता द्वारा धन संपत्ति से विहीन या इनकी संपत्ति को नष्ट करने वाला, गुरुओं व संतों की निंदा करने वाला, गंदा रहने वाला, बहुत दुख व कष्ट भोगने वाला, नास्तिक आदि अवगुण से युक्त बनाता है। दशमेश से बनने वाला दुर्योग जातक को अथक प्रयास के बाद भी असफलता देने वाला, पिता के सुख से विहीन, सरकार से नुकसान उठाने वाला, आलसी, बुरे कर्मों में लिप्त, दिन में अधिक सोने वाला, अपमानित व अपना पेट भरने हेतु प्रवास भी करता है। एकादशेश से दरिद्र योग जातक को आय व लाभ से वंचित, गरीब, कर्जदार, उग्र स्वभाव वाला, अच्छे मित्रों से रहित, पराधीन, कटुभाषी, गलत मार्ग पर चलने वाला, गुप्त रोगी व गुप्त शत्रुओं से पीड़ित बनाता है। द्वादशेश से बनने वाला विमल योग के कारण जातक कंजूस लेकिन हानि करवाने वाला मुकदमेबाजी, व्यय, भ्रमण करने वाला होता है। गजकेसरी योग: चंद्र से गुरु के केंद्र में होने पर शुभ योग बनता है। परंतु चंद्र से दशम में गुरु हो तो सम्मान तो देता है परंतु जातक पत्नी व बच्चों का त्याग कर संन्यासी हो जाता है। चंद्र व गुरु की युति निर्बल होने पर निर्बल गजकेसरी योग जातक को मोटापा बढ़वाता है। हठहंता योग: यदि सूर्य व चंद्र की राशियों में भाव परिवर्तन हो तो जातक हठ से नष्ट होता है। साथ ही यदि लग्न में पाप ग्रह हो तो जातक बहुत ही हठी होता है। सर्पदंश योग: लग्न से सप्तम भाव में शनि व राहु के साथ शत्रु सूर्य हो तो जातक को साधारणतया तो क्या स्वप्न में भी सर्पदंश का भय होता है। वृक्षात् पतन योग: यदि लग्न पर राहु का पाप प्रभाव हो तो इंद्र के समान होने पर भी वृक्षादि से पतन होता है। महापातक योग: राहु से युक्त चंद्र यदि गुरु से भी दृष्ट हो तो इंद्र समान होने पर भी महापातक करने वाला होता है। वृषहंता योग: जन्म लग्न को यदि मंगल और सूर्य देखते हों और गुरु-शुक्र न देखते हांे तो उसे बैल से आघात मिलता है। खंज योग: शुक्र से युक्त शनि और गुरु से युक्त सूर्य हो और उनपर जन्म शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तो जातक लंगड़ा हो सकता है। खड़गघात योग: यदि शुक्र की राशि में चंद्र व कर्क राशि में शनि हो तो तलवार या शस्त्र से चोट लग सकती है। लालटिक योग: लग्न से अष्टम भाव में चंद्रमा हो और कर्क राशि में सूर्य, शनि, शुक्र तीनों हो तथा पूर्ण केमद्रुम योग हो तो जातक गरीब होता है तथा अगले जन्म में भी गरीबी उसका पीछा नहीं छोड़ती है। व्याघ्रघात योग: यदि कुंडली में मंगल कुंभ या मकर राशि में हो तथा बुध धनु या मीन राशि में हो तो बाघ से आघात योग हो सकता है। शरघात योग: नवम भाव में मंगल हो, शनि-सूर्य दोनों राहु से युक्त हो तथा इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तो वह शर से आहत होता है। वंश नाशक: लग्न से नवम् या दशम भाव में चंद्र, सप्तम भाव में शुक्र और चतुर्थ भाव में कोई भी पाप ग्रह हो तो जातक वंश नाशक होता है। म्लेच्छ योग: लग्न से दशम भाव में राहु हो और चतुर्थ व नवम भाव में पाप ग्रह हो तो जातक म्लेच्छ होता है। मातृ हन्ता योग: यदि शनि व मंगल के बीच में चंद्रमा स्थित हो तो जातक मातृहंता होता है। यदि सूर्य, मंगल, शनि में से कोई नीच का ग्रह हो तथा राहु व केतु से युति कर स्थित हो तो जातक मातृ हंता होता है। यदि लग्न में पाप ग्रह स्वगृही हो तथा 4 व 10 भाव में भी पाप ग्रह हो तो जातक दुखी होकर जीवन यापन करता है तथा माता को दुख, कष्ट देने वाला होता है। 2-12 भाव में पाप ग्रह हों तो जातक माता को डराने-धमकाने वाला होता है। पितृ हन्ता योग: यदि शनि-मंगल के बीच में सूर्य हो तो जातक पितृहंता होता है। चैथे-दसवें भाव में कोई भी पाप ग्रह स्थित हो तो जातक, पिता को डराने-धमकाने वाला होता है। यदि लग्न में गुरु, द्वितीय भाव में बुध के साथ पाप ग्रह सूर्य, मंगल, शनि हो तो जातक के विवाह के समय पिता का मरण होता है। दशम भाव में मंगल शत्रु राशि का या कोई ग्रह नीच का हो या सूर्य दशमेश होकर 6, 8, 12 त्रिक भाव में स्थित हो तो जातक के पिता की शीघ्र मृत्यु हो सकती है। यदि पंचम भाव में चंद्र तथा सातवें या बारहवें भाव में कोई पाप ग्रह हो तो जातक स्त्री व संतान सुख से विहीन होता है। यदि लग्न में चंद्र, दूसरे में शुक्र, 5 में राहु और 12वें बुध व सूर्य स्थित हो तो जातक अपने भाई को बंधन दिलाने वाला होता है। यदि गुरु वक्री होकर मकर या कुंभ राशि में हो और बुध व सूर्य सप्तम भाव में हो तो जातक वांछित मृत्यु पाता है और यदि शनि 11वें भाव में हो तो जातक शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त करता है। लग्न से अष्टम त्रिक भाव में यदि चर राशि हो तो विदेश में, स्थिर राशि हो तो अपने देश में तथा द्विस्वभाव राशि हो तो मार्ग में मृत्यु होती है। यदि लग्न में पाप ग्रह और लग्नेश पाप ग्रह की राशि में हो तो जातक कष्ट से परेशान होकर आत्महत्या कर सकता है। साथ ही चंद्र नीच अमावस्या का हो तथा इस पर पाप प्रभाव हो तो स्थिति और भी अधिक खराब होती है। यदि जातक का जन्म अमावस्या का हो अर्थात् सूर्य युक्त चंद्र त्रिक भाव 6 या 8 में स्थित हो तो जातक की मृत्यु हाथी या शेर से होती है। शुभ ग्रह के लग्न में गुरु हो, अष्टम भाव में शनि हो और उसी त्रिक में अन्य पाप ग्रह भी स्थित हो तो जातक की मृत्यु शीघ्र होती है। लग्न या लग्नेश पाप कर्तरी प्रभाव में हो या पाप ग्रहों की युति में हो तो जातक आत्मघाती होता है। देहकष्ट योग: लग्नेश पाप ग्रहों के साथ त्रिक भाव में हो तथा लग्न व चंद्र पर पाप प्रभाव हो। लग्न से 12वें भाव में कोई भी ग्रह हो तो जातक दुष्ट स्वभाव वाला, दुखी, पापी, दुष्ट व बहुत सारा धन खर्च करने वाला होता है। यदि लग्न 1, 8, 3, 6 हो तथा मंगल-बुध का लग्न पर प्रभाव (दृष्टिगत) हो तो जातक को मुख का रोग होता है। यदि कर्क राशि में बुध हो तो जातक कुष्ठ या क्षय रोग से पीड़ित होता है। यदि षष्ठेश लग्न में स्वराशिगत हो (यह केवल 2, 8 लग्न में ही संभव होता है) या 8वें भाव में हो तो ग्रहानुसार निम्न अंगों में रोग होते हैं- षष्ठेश सूर्य हो तो मस्तक में रोग, चंद्र हो तो मुख में, मंगल हो तो गले में, बुध हो तो नाभि में, गुरु हो तो नाक में, शुक्र हो तो आंख में, शनि हो तो पैर में, राहु हो तो पेट में, केतु हो तो भी पेट में ही रोग की संभावना रहती है। यदि मंगल कर्क राशि में स्थित हा तो जातक रक्तपित्त के विकार से हीन और कई प्रकार की बीमारियों से युक्त होता है। यदि जातक का जन्मलग्न सिंह हो उसमें शनि स्थित हो तो जातक नेत्रहीन या आंखों के रोग से पीड़ित होता है। यदि शुक्र हो तो जन्मांध या छोटी आंखों वाला होता है। यदि लग्न से बारहवें भाव में चंद्र और दूसरे भाव में सूर्य हो तो जातक क्रमशः बाईं आंख से काना और अंधा होता है। यदि बारहवें एवं दूसरे भाव में क्रमशः शनि और मंगल निर्बल हो तो आंखों में कोई न कोई रोग अवश्य होता है। यदि लग्न से बारहवें भाव में सूर्य हो तो जातक दायीं आंख से काना होता है और दूसरे भाव में चंद्र हो तो जातक अंधा हो सकता है। यदि जन्मपत्री में लग्न में मंगल, अष्टम में सूर्य और चतुर्थ में सूर्य हो तो वह कुष्ठ रोग से पीड़ित होता है। यदि लग्न या सातवें भाव में शनि हो और त्रिक भाव अष्टम में चंद्र हो तो कोई भी संतान जीवित नहीं होती। यदि लग्न में एक भी पाप ग्रह हो तो वह स्थान से हीन होकर दुष्कर जीविका जीने वाला होता है। यदि लग्न में राहु और छठे घर में चंद्र हो तो जातक को मिर्गी का रोग होता है। यदि लग्न में चंद्र और अष्टम भाव में शनि हो तो जातक उदर रोग से पीड़ित होता है तथा किसी अंग से विहीन होता है। यदि सूर्य, मंगल, राहु और बृहस्पति पाप ग्रहों की राशि में हो तथा लग्न से सप्तम भाव में शुक्र हों तो जातक के शरीर में सदा कष्ट रहता है। यदि लग्न या षष्ठ भाव में बुध या मंगल हो तो वह जातक चोरी का कार्य करने वाला होता है तथा इसीलिए उसके हाथ, पांव भी नष्ट होते हैं। यदि चैथे भाव में राहु, शनि व सूर्य तथा षष्ठ भाव में चंद्र, बुध व शुक्र के साथ मंगल हो तो जातक अपने घर का नाश करता है। यदि द्वादश भाव में चंद्र या सूर्य या दोनों ही साथ मौजूद हों और मंगल की दृष्टि भी हो तो उसका धन सरकार ले जाती है। यदि षष्ठ भाव में राहु, शनि के साथ मंगल की युति हो तो उसे सरकार से पीड़ा मिलती है तथा वह अपने स्थान पर नहीं बैठ पाता है। कालसर्प योग: जब राहु व केतु के बीच सभी सातों ग्रह आ जाते हैं तो अशुभ कालसर्प योग बनता है। यदि एक ग्रह बाहर चला जाये तो आंशिक कालसर्प योग बनता है। ये मुख्यतः 12 प्रकार के होते हैं। इसमें जातक प्रत्येक भाव से संबंधित अशुभ घटना या दुष्प्रभाव भोगता है। जब राहु व केतु के बीच सारे ग्रह आ जाते हैं तो उदित कालसर्प योग बनता है तथा केतु व राहु के बीच सारे ग्रह आ जाने से अनुदित कालसर्प योग बनता है। उदित से अनुदित नामक कालसर्प योग अति अशुभ व कष्टदायी होता है। इससे जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति रूक जाती है। पितृदोष: जब सातांे ग्रह राहु, केतु के साथ आ जाते हैं तब पितृ दोष बनता है। सूर्य, चंद्र से ग्रहण योग, मंगल से अंगारक योग, बुध से जड़ योग, गुरु से चांडाल योग, शुक्र से अभोत्वक या लंपट योग, शनि से शश योग नामक अशुभ योग बनते हैं इससे जीवन के हर क्षेत्र में बाधा आती है। केमद्रुम योग: जब चंद्र के साथ या दोनों ओर कोई ग्रह स्थित नहीं हो तो केमद्रुम योग बनता है। इससे जातक माता को कष्ट देता है। साथ ही मन की अस्थिरता रहती है तथा मानसिक रोग भी होता है। संघर्ष योग: जब लग्नेश त्रिक भाव में पाप ग्रह से पीड़ित हो या लग्न या चंद्र पाप कर्तरी प्रभाव में हो तो संघर्ष योग कहलाता है। इससे व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में संघर्ष कर जीवन बिताना पड़ता है। शूल योग: जब सातों ग्रह किन्हीं तीन राशि में स्थित हों तो शूल योग बनता है। इसमें उत्पन्न जातक धन से वंचित व कठोर होता है। युग योग: जब सातों ग्रह किन्हीं दो राशि में स्थित हो तो युग योग बनता है। इसमें जन्म लेने वाला जातक समाज द्वारा बहिष्कृत, शराबी, निकम्मा और गरीब होता है। गोल योग: जब सातों ग्रह किसी एक ही राशि में स्थित हों तो यह योग बनता है जिससे जातक अज्ञानी, अकर्मण्य, अनामी, गंदा व गरीब होता है। सर्प योग: जब सभी अशुभ ग्रह केंद्र भावों में स्थित हों तो सर्प योग बनता है जिससे जातक निर्दयी, दुष्ट होता है। मूक योग: जब द्वितीयेश अष्टम त्रिक भाव में बृहस्पति के साथ स्थित हो तो जातक गंूगा होता है। नेत्रनाश योग: यदि दसवें और छठे भाव के अधिपति, द्वितीयेश के साथ लग्न में स्थित हों या वे नीचांश में हों तो इस अशुभ योग के कारण जातक शासकों की अप्रसन्नता के कारण नेत्र दृष्टि खोता है। अंध योग: यदि बुध और चंद्रमा द्वितीय भाव में हो तथा साथ ही लग्नेश व द्वितीयेश सूर्य के साथ द्वितीय भाव में स्थित हो तो जातक जन्म से अंधा होता है या उसकी दृष्टि कमजोर होती है। विष योग: जब चंद्र के साथ शनि की युति हो तो इस अशुभ योग के कारण जातक मानसिक परेशानी से ग्रस्त, अल्पायु, कष्ट भोगने वाला, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बाधा पाने वाला होता है। इस योग को निष्ठुर भावी योग भी कहते हैं क्योंकि इसमें जन्मा जातक निष्ठुर होता है। कामुक/भोगी योग: जब शुक्र के साथ मंगल की युति हो तो यह योग बनता है। इसके जातक भोग-विलासी प्रवृत्ति के होते हंै। यदि यह युति चंद्र के साथ 1, 5, 7, 10, 12, 3, 6 भाव में हो तो उपरोक्त प्रवृत्ति और भी बढ़ जाती है। जार योग: यदि द्वितीयेश और सप्तमेश दशम भाव में दशमेश के साथ स्थित हो तो यह योग बनता है जिससे जातक अनेक स्त्रियों के साथ संबंध बनाता है। यदि शुक्र व शनि सप्तम भाव में स्वगृही हो तो उपरोक्त योग बनता है। बुद्धि जड़ योग: यदि लग्नेश पाप प्रभाव में हो तथा शनि पंचम भाव में हो तथा लग्नेश शनि से दृष्ट हो तो उपरोक्त योग बनने के कारण जातक मंद बुद्धि होता है। कपट योग: यदि चतुर्थ भाव अशुभ ग्रह से युक्त हो तथा चतुर्थेश भी अशुभ ग्रहों से युक्त/दृष्ट हो तो उपरोक्त योग के कारण जातक मिथ्याकारी होता है। पित्तरोग योग: यदि छठे भाव में सूर्य किसी पाप या अशुभ ग्रह से प्रभावित हो तो यह रोग होता है। वात रोग योग: यदि लग्न व सप्तम भाव में क्रमशः गुरु व शनि ग्रह स्थित हो तो जातक इस रोग से पीड़ित रहता है। कफ रोग योग: यदि अष्टम भाव या त्रिक भाव में चंद्र व शुक्र पाप प्रभाव में हो तो यह रोग होता है। उपरोक्त वर्णित अशुभ योग तब ही अधिक दुष्प्रभावी होते हैं, जब संबंधित ग्रह निर्बल हों (नीच, शत्रुराशिगत, अस्त, वक्री आदि) तथा इन पर पाप प्रभाव भी हो तथा इनकी दशाओं का समय भी चल रहा हो। उपाय: शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य हेतु लग्नेश, पंचमेश व नवमेश के रत्न धारण करना शुभ रहता है। लग्नेश रत्न से अवयोग, पंचमेश रत्न से पामर योग, नवमेश रत्न से निर्भाग्य, जो अशुभ योग है, इनके दुष्प्रभाव दूर होते हैं तथा जातक जीवन में उन्नति करता है। बाकी अन्य भावों (1, 5, 9 को छोड़कर) के स्वामी यदि लग्नेश से मित्रता रखते हों तो इनके भावेशों के रत्न धारण कर इनसे संबंधित अशुभ प्रभाव दूर कर सकते हैं। बाकी अन्य भावों (1, 5, 9 को छोड़कर) के स्वामी यदि लग्नेश से शत्रुता रखते हांे तो इनके मंत्र के साथ मंत्र जप व दान से अशुभ योग के दुष्प्रभाव को कम कर सकते हैं। कभी-कभी कुंडली से 1-2 ग्रहों को छोड़कर बाकी सभी ग्रह बली हांे और इन्हीं 1-2 ग्रहों की महादशा चल रही हो और ये अशुभ योग का भी निर्माण कर रहे हों तो तालिका के अनुसार उपाय कर सकते हैं। जिस ग्रह की महादशा चल रही हो उसके यंत्र को बीच में रखकर उसके उपर उससे संबंधित रत्न व इनके दोनों ओर इनके मित्र रत्नों का त्रिशक्ति मेडल धारण कर अशुभ योगों के समय के दुष्प्रभाव को कम कर सकते हैं। यदि किसी के पास जन्मपत्री न भी हो (हो तो और भी अच्छा है) तो इसके लिए अशुभ योग के दुष्प्रभाव को कम करने हेतु नवरत्न पैंडल गले में धारण करवाया जाता है। इसके लिए 9 ग्रह के रत्नों का आदर्श वजन 1 ग्राम लेकर रत्नों को संबंधित धातु/अष्टधातु ने तैयार निम्न प्रकार से करते हैं। नवग्रह यंत्र को गले में धारण कर सकते हैं। इसे पूजा स्थल में भी स्थापित कर नित्य घी, तेल, दीपक डालकर मंत्र जाप कर सकते हैं। दोनों उपाय रामबाण हैं क्योंकि महादशा में भी अंतर, प्रत्यंतर, सूक्ष्म, प्राण दशा आदि कई छोटी दशाएं गोचर आदि चलते हैं और नवग्रह यंत्र व लाॅकेट इनसे संबंधित दुष्प्रभावों को दूर कर शुभ प्रभाव देता है। नवग्रह शांति हेतु गायत्री जी, दुर्गा मां, शिवजी, विष्णु जी की पूजा शुभ रहती हैं। इससे अशुभ योगों के दुष्प्रभाव तो कम होते ही हैं साथ ही कालसर्प योग, पितृदोष, विषयोग आदि के दुष्प्रभाव भी कम होते हैं। गायत्री जी मंत्र, नवदुर्गा मंत्र, दसमहाविद्या मंत्र, द्वादशज्योतिर्लिंग, महामृत्युंजय यंत्र, श्री हरि के नवग्रह रूप की पूजा व इनके समक्ष इनके मंत्र जप शुभ रहते हैं। दुर्गासप्तशती का नित्य पाठ अति शुभ रहता है। कालसर्प योग हेतु महाकालरूप शिवजी, पारद शिवलिंग की पूजा शुभ रहती है। कालसर्पयोग निवारण शांति कवच पहनना शुभ रहता है। कालसर्प यंत्र स्थापित कर पूजा (मंत्र जप) शुभ रहता है। मोती, रुद्राक्ष माला में 11 मुखी रुद्राक्ष कवच धारण करना भी शुभ रहता है। इससे व्यक्ति अकाल मृत्यु से निकलकर आयु वृद्धि प्राप्त करता है तथा स्वस्थ रहता है। इसके अलावा पारद के पंचमुखी हनुमानजी की पूजा भी उपरोक्त अशुभ योगों में शुभ फल देने वाली है। केमद्रुम योग के अशुभ प्रभाव दूर करने हेतु चंद्र यंत्र के नीचे मोती व बायीं ओर पन्ना व बायीं ओर पुखराज (पीला) से कवच तैयार करवाकर धारण करने से केमद्रुम योग के अशुभ प्रभाव को दूर कर सकते हैं। इससे गजकेसरी योग का दुष्प्रभाव भी कम होता है। प्रतिदिन प्रातः पीपल वृक्ष में परिक्रमा लगाने हेतु जल देना व दीपक, अगरबत्ती प्रज्ज्वलित करना शुभ रहता है। इससे प्रत्येक ग्रह से संबंधित उपरोक्त अशुभ फल में कमी आती है। बुद्धि जड़ योग हेतु गणेशजी के साथ सरस्वती जी की पूजा भी शुभ रहती है। इससे शिक्षा में शुभ फल की प्राप्ति होती है तथा जातक प्रतियोगी परीक्षा में भी सफल रहता है। रुद्राक्ष चुनाव/धारण द्वारा भी उपरोक्त अशुभ योगों के दुष्प्रभाव में कमी ला सकते हैं।

कुंडली में ग्रह की अशुभ स्थिति

सूर्य/चंद्रमा के राहु/ केतु के साथ होने से ग्रहण योग बनता है - इस योग में अगर सूर्य ग्रहण योग हो तो व्यक्ति में आत्म विश्वास की कमी रहती है और वह किसी के सामने आते ही अपनी पूर्ण योग्यता का परिचय नहीं दे पाता है उल्टा उसके प्रभाव में आ जाता है। कहने का मतलब कि सामने वाला व्यक्ति हमेशा ही हावी रहता है। चन्द्र ग्रहण होने से कितना भी घर में सुविधा हो मगर मन में हमेशा अशांति ही बनी रहती है कोई न कोई छोटी-छोटी बातों का डर भी सताता है। कोई अज्ञात भय मन में बना रहता है। संतुष्टि का हमेशा आभव रहता है। मंगल के राहु के साथ होने से अंगारक योग बनता है - इस योग के कारण जिस काम को दूसरा कोई आसानी से कर लेता है उसी काम को करने में अनेक प्रकार की बाधाएं, अड़चन आदि बनी रहती है यानि कोई काम सुख शांति पूर्वक सम्पन्न नहीं होता है। गुरु की राहु/केतु के साथ युति हो तो चांडाल योग बनता है- इस योग के कारण व्यक्ति का धन से संबंधित कोई काम सफल नहीं होता है। कितना भी धन अच्छे समय में कमा ले लेकिन जैसे ही इन ग्रहों की महादशा- अन्तर्दशा- प्रत्यंतर दशा आएगी तो वो सब कमाया हुआ धन एकदम से खत्म हो जाता है और इस योग के कारण व्यक्ति को कर्ज लेने के बाद चुकाने में दिक्कत होती है और एक दिन उसको ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है कि कहीं से कुछ रुपये उधार लेकर खाना खाना पड़ता है। शुक्र और राहु की युति से लम्पट योग का निर्माण होता है - इस योग के कारण जातक का ध्यान पराई स्त्रियों में लगा रहता है और कई-कई प्रेम सम्बन्ध बनते हैं लेकिन ज्यादातर का अंत बहुत बुरा, लड़ाई- झगडे़ के साथ और अपमान के साथ होता है। कर्कशा स्त्री जीवन में बनी रहती है। शनि राहु की युति हो तो नंदी योग बनता है- इस योग के कारण व्यक्ति सच्चाई के मार्ग पर चलना चाहते हुए भी हमेशा झूठ और फरेब का शिकार होता है और कई बार जेल जाने तक की नौबत आती है। अपराध की दुनिया से सम्बन्ध बनता है और जीवन अनेक संकटों में फंस जाता है। इसके अलावा भी कुछ और अशुभ स्थितियां अगर आपकी कुंडली में है तो वो आप मिलान करें और देखंे की क्या ऐसा है आपकी कुंडली में। सप्तम, जीवनसाथी के स्थान का स्वामी ग्रह अगर छठे, आठवंे या बारहवें भाव मै बैठा हो या फिर सूर्य के साथ बैठकर अस्त है तो विवाह सुख का नाश करने वाला योग बन जाता है और अगर पुरुष की कुंडली में शुक्र अस्त हो या पापी ग्रह से युक्त हो तो भी ऐसा योग बनता है, अगर महिला की कुंडली में गुरु अस्त हो या गुरु के साथ कोई अशुभ या पापी ग्रह बैठा हो तो महिला का वैवाहिक जीवन अनेक समस्या से भरा या निराश या सपने जो देखे हों पति को लेकर वह सभी टूटे हुए लगते हैं। कुंडली में अगर लग्नेश कमजोर अवस्था का या अशुभ स्थति में है तो आपका स्वास्थ्य कभी भी सम्पूर्ण अच्छा नहीं रहेगा। धनेश और लाभेश अगर अशुभ स्थति में हो तो धन के कारण सम्पूर्ण जीवन संघर्ष करना पड़ता है। कर्मेश यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो या फिर अशुभ युति में हो तो अनेक काम बदलने के बाद भी स्थायित्व नहीं रहता है और धन प्राप्ति में बाधा होती है। सूर्य, मंगल, शनि, राहु और केतु ये पांच पापी ग्रह माने गए हैं और चन्द्र, बुध, गुरु और शुक्र ये चार ग्रह बहुत ही शांत और शुभ माने जाते हैं। अगर इन चार ग्रहों के साथ कोई भी पापी ग्रह बैठा हो या शुभ ग्रहों में से कोई अस्त हो या फिर नीच का हो या फिर कमजोर अवस्था का हो तो जीवन में शुभता की कमी रहती है, योग्यता के अनुसार जीवन यापन नहीं होता है।

नक्षत्रों से कैसे देखे शुभ मुहूर्त

नामकरण, मुंडन तथा विद्यारंभ जैसे संस्कारों के लिए तथा दुकान खोलने, सामान खरीदने-बेचने और ऋण तथा भूमि के लेन-देन और नये-पुराने मकान में प्रवेश के साथ यात्रा विचार और अन्य अनेक शुभ कार्यों के लिए शुभ नक्षत्रों के साथ-साथ कुछ तिथियों तथा वारों का संयोग उनकी शुभता सुनिश्चित करता है। आइए, इस लेख से जाने कि किस कार्य के लिए इस संयोग का स्वरूप क्या और कैसा हो? नक्षत्र ही भारतीय ज्योतिष का वह आधार है जो हमारे दैनिक जीवन के महत्वपूर्ण कार्यों को प्रभावित करता है। अतः हमें कोई भी कार्य करते हुए उससे संबंधित शुभ नक्षत्रों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए जिससे हम सभी कष्ट एवं विघ्न बाधाओं से दूर रहकर नयी ऊर्जा को सफल उद्देश्य के लिए लगा सकें। विभिन्न कार्यों के लिए शुभ नक्षत्रों को जानना आवश्यक है। नामकरण के लिए : संक्रांति के दिन तथा भद्रा को छोड़कर 1, 2, 3, 5, 7, 10, 11, 12, 13 तिथियों में, जन्मकाल से ग्यारहवें या बारहवें दिन, सोमवार, बुधवार अथवा शुक्रवार को तथा जिस दिन अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, हस्त, चित्रा, अनुराधा, तीनों उत्तरा, अभिजित, पुष्य, स्वाति, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा इनमें से किसी नक्षत्र में चंद्रमा हो, बच्चे का नामकरण करना चाहिए। मुण्डन के लिए : जन्मकाल से अथवा गर्भाधान काल से तीसरे अथवा सातवें वर्ष में, चैत्र को छोड़कर उत्तरायण सूर्य में, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार अथवा शुक्रवार को ज्येष्ठा, मृगशिरा, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पुनर्वसु, अश्विनी, अभिजित व पुष्य नक्षत्रों में, 2, 3, 5, 7, 10, 11, 13 तिथियों में बच्चे का मुंडन संस्कार करना चाहिए। ज्येष्ठ लड़के का मुंडन ज्येष्ठ मास में वर्जित है। लड़के की माता को पांच मास का गर्भ हो तो भी मुण्डन वर्जित है। विद्या आरंभ के लिए : उत्तरायण में (कुंभ का सूर्य छोड़कर) बुध, बृहस्पतिवार, शुक्रवार या रविवार को, 2, 3, 5,6, 10, 11, 12 तिथियों में पुनर्वसु, हस्त, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, मूल, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मूल, पूष्य, अनुराधा, आश्लेषा, रेवती, अश्विनी नक्षत्रों में विद्या प्रारंभ करना शुभ होता है। दुकान खोलने के लिए : हस्त, चित्रा, रोहिणी, रेवती, तीनों उत्तरा, पुष्य, अश्विनी, अभिजित् इन नक्षत्रों में, 4, 9, 14, 30 इन तिथियों को छोड़कर अन्य तिथियों में, मंगलवार को छोड़कर अन्य वारों में, कुंभ लग्न को छोड़कर अन्य लग्नों में दुकान खोलना शुभ है। ध्यान रहे कि दुकान खोलने वाले व्यक्ति की अपनी जन्मकुंडली के अनुसार ग्रह दशा अच्छी होनी चाहिए। कोई वस्तु/सामान खरीदने के लिए : रेवती, शतभिषा, अश्विनी, स्वाति, श्रवण, चित्रा, नक्षत्रों में वस्तु/सामान खरीदना चाहिए। कोई वस्तु बेचने के लिए : पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाषाढ़ा, कृत्तिका, आश्लेषा, विशाखा, मघा नक्षत्रों में कोई वस्तु बेचने से लाभ होता है। वारों में बृहस्पतिवार और सोमवार शुभ माने गये हैं। ऋण लेने-देने के लिए : मंगलवार, संक्रांति दिन, हस्त वाले दिन रविवार को ऋण लेने पर ऋण से कभी मुक्ति नहीं मिलती। मंगलवार को ऋण वापस करना अच्छा है। बुधवार को धन नहीं देना चाहिए। कृत्तिका, रोहिणी, आर्द्रा, आश्लेषा, उत्तरा तीनों, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल नक्षत्रों में, भद्रा, अमावस में गया धन, फिर वापस नहीं मिलता बल्कि झगड़ा बढ़ जाता है। भूमि के लेन-देन के लिए : आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, मृगशिरा, मूल, विशाखा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में, बृहस्पतिवार, शुक्रवार 1, 5, 6, 11, 15 तिथि को घर जमीन का सौदा करना शुभ है। नूतन ग्रह प्रवेश : फाल्गुन, बैशाख, ज्येष्ठ मास में, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, रेवती नक्षत्रों में, रिक्ता तिथियों को छोड़कर सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार को नये घर में प्रवेश करना शुभ होता है। (सामान्यतया रोहिणी, मृगशिरा, उत्तराषाढ़ा, चित्रा व उ. भाद्रपद में) करना चाहिए। यात्रा विचार : अश्विनी, मृगशिरा, अनुराधा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, श्रवण, धनिष्ठा, रेवती नक्षत्रों में यात्रा शुभ है। रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तरा-3, पूर्वा-3, मूल मध्यम हैं। भरणी, कृत्तिका, आर्द्रा, मघा, आश्लेषा, चित्रा, स्वाति, विशाखा निन्दित हैं। मृगशिरा, हस्त, अनुराधा, रिक्ता और दिक्शूल को छोड़कर सर्वदा सब दिशाओं में यात्रा शुभ है। जन्म लग्न तथा जन्म राशि से अष्टम लग्न होने पर यात्रा नहीं करनी चाहिए। यात्रा मुहूर्त में दिशाशूल, योगिनी, राहुकाल, चंद्र-वास का विचार अवश्य करना चाहिए। वाहन (गाड़ी) मोटर साइकिल, स्कूटर चलाने का मुहूर्त : अश्विनी, मृगशिरा, हस्त, चित्रा, पुनर्वसु, पुष्य, ज्येष्ठा, रेवती नक्षत्रों में सोमवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार व शुभ तिथियों में गाड़ी, मोटर साइकिल, स्कूटर चलाना शुभ है। कृषि (हल-चलाने तथा बीजारोपण) के लिए : अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, उत्तरा तीनों, अभिजित, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, मूल, धनिष्ठा, रेवती, इन नक्षत्रों में, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार को, 1, 5, 7, 10, 11, 13, 15 तिथियों में हल चलाना व बीजारोपण करना चाहिए। फसल काटने के लिए : भरणी, कृत्तिका, आर्द्रा, मृगशिरा, पुष्य, आश्लेषा, मघा, हस्त, चित्रा, स्वाति, ज्येष्ठा, मूल, पू.फाल्गुनी, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा तीनों, नक्षत्रों में, 4, 9, 14 तिथियों को छोड़कर अन्य शुभ तिथियों में फसल काटनी चाहिए। कुआँ खुदवाना व नलकूप लगवाना : रेवती, हस्त, उत्तरा भाद्रपद, अनुराधा, मघा, श्रवण, रोहिणी एवं पुष्य नक्षत्र में नलकूप लगवाना चाहिए। नये-वस्त्र धारण करना : अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, धनिष्ठा, रेवती शुभ हैं। नींव रखना : रोहिणी, मृगशिरा, चित्रा, हस्त, ज्येष्ठा, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा एवं श्रवण नक्षत्र में मकान की नींव रखनी चाहिए। मुखय द्वार स्थापित करना : रोहिणी, मृगशिरा, उ.फाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद एवं रेवती में स्थापित करना चाहिए। मकान खरीदना : बना-बनाया मकान खरीदने के लिए मृगशिरा, आश्लेषा, मघा, विशाखा, मूल, पुनर्वसु एवं रेवती नक्षत्र उत्तम हैं। उपचार शुरु करना : किसी भी क्रोनिक रोग के उपचार हेतु अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, हस्त, उत्तराभाद्रपद, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा एवं रेवती शुभ हैं। आप्रेशन के लिए : आर्द्रा, ज्येष्ठा, आश्लेषा एवं मूल नक्षत्र ठीक है। विवाह के लिए : रोहिणी, मृगशिरा, मघा, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, स्वाति, अनुराधा, मूल, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती शुभ हैं। दैनिक जीवन में शुभता व सफलता प्राप्ति हेतु नक्षत्रों का उपयोगी एवं व्यावहारिक ज्ञान बहुत जरूरी है। वास्तव में सभी नक्षत्र सृजनात्मक, रक्षात्मक एवं विध्वंसात्मक शक्तियों का मूल स्रोत हैं। अतः नक्षत्र ही वह सद्शक्ति है जो विघ्नों, बाधाओं और दुष्प्रभावों को दूर करके हमारा मार्ग दर्शन करने में सक्षम है।

Thursday 1 December 2016

Presence of Mercury in different signs in horoscope

Strong Mercury gives intellect, wisdom, power, authority, skill in Craft and sculptor. He takesinterest in agricultural activities and religious rites. The native gains from, trade or industry. He gets new clothes, ornaments and house. He loves dance and music and enjoys social or religious gatherings in his house. (2) Mercury with medium strength gives wit and humour, skilful and impressive speech, oratory power modesty, love for wife and children and loving support of preacher and the noble wise people. '(3) Mercury with very little strength gives loss of wealth and disease due to imbalance of three humors vizbile, cough and wind in the body.
1 Mercury in Aries
(1) It gives tour and travel to different places. The native fears from theft, falsehood, cruelty poverty and wickedness during this period.
(2) Mercury in Taurus
It increases expenditure, gives pain and problems to the mother. The native is worried for his wife, children and friends. He may also suffer from disease of throat.
(3) Mercury in Gemini
It gives wit and wisdom. The native gets chance to explain his ideas and thoughts to others. He gets pleasure and happiness from wife, children and relatives. Sometimes he is worried for his mother.
(4) Mercury in Cancer
It gives stay in a foreign country. The native gains through art, crafi, poetry or literature. He may have conflict or dispute with his fiiends and suffer the pains of separation and loneliness During this period the native earns wealth through many activities.
(5) Mercury in Leo
It increases expenditure on his friends and relatives. The native may lose money and feel insecure. A wrong decision or harsh words would lower down native's position in the eyes of his associates. '
(6) Mercury in Virgo
(i) The period of exalted Mercury gives wealth and wisdom. The native is interested in poetry literature, journalism and art and craft. (ii) He gains victory over his rivals and is skilled in policy formulation. Mercury in its positive sign gives knowledge, virtue, wisdom and foreign travel. (i) The native is modest hard working and skilled in public dealing. However the descending Mercury causes physical ailments, enemity with relatives, dispute in family, loss of wealth and happiness.
(7) Mercury in Libra
It gives weakness of sight, intellect and speech. He gains expertise in craft and sculptor. He earns profit in commerce and trade. Sometimes the native suffers from loss of cattle or transport vehicle.
(8) Mercury in Scorpio
It causes unrest and anxiety due to huge expenditure and separation from friends and relatives. The native is modest truthful and righteous.
(9) Mercury in Sagittarius
It gives power, position, honour and fame to the native. He become a minister or head of the village, town or district. He earns profit through trade, agriculture or industry.
(10) Mercury in Capricorn
It gives loss of wealth and wisdom. The native wanders aimlessly in various places and suffers from falsehood, cheating and company of wicked people.
(11) Mercury in Aquarius
It gives loss of wealth and power. The native visits abroad and suffers from bad habits. He gets sorrows and grief due to separation of friends and relatives.
(12) Mercury in Pisces
It causes loss of intellect and wisdom. He visits many places for his livelihood. He suffers from physical weakness, poor health and falsehood.

Presence of Mars in different signs in horoscope

Mars and other planets occupying their own or exalted sign but conjucted by Sun or being retrograde gives mixed results during their planetary periods. (2) (i) Exalted Mars gives profits and prosperity through weapons, industry, animal products, medicines or the favour of king or government. (ii) Contrary to it, debilitated Mars gives pain and sorrow due to biles, fever, unconsciousness, dispute in family, bad deeds and fear from king. (3) Mars in own or positive sign gives happiness from wife and children. The native gains by defeating enemies or competitors. He gets wealth, fame and prosperity by doing noble deeds of courage and valour.
Mars in Aries
(1) It gives bliss of auspicious socio religious ceremonies, happiness of children and increase of vigour and valour. Sometimes the native gets fear from fire and increased number of enemies.
(2) Mars in Taurus
It gives interest in charities and social welfare. The native warships deities, noble and the learned people. He gets peace and prosperity in this period.
(3) Mars in Gemini
It gives stay abroad or in a distant place. The native suffers from windly and bilious disease. He incurs heavy expenditure and quarrels with his own people. However the native is skilled in various arts and crafts. He is expert in public dealing and well versed in social behaviour.
(4) Mars in Cancer
(i) It causes agony and grief due to separation from wife, children and friends. The native suffers from weakness and poor health. (ii) He may earn profits from public parks, gardens and fire based activities, like bakery, sweetshop, foundry, welding or forging workshop. (iii) Please remember here Mars is placed in its sign of debilitation. However, if Mars has crossed 28° of Cancer and is ascending Mars, then the native would gain wealth, strength, authority, fame and virtues. He may also suffer from some complex disease.
(5) Mars in Leo
It gives administrative power and control over many people. The native fears from fire, weapon and separation of wife and children.
(6) Mars in Virgo
It gives noble and virtuous conduct, interest in religious rites, wealth and grain, besides happiness from wife, children and land and property.
(7) Mars in Libra
It gives loss of wealth, physical disability or deformity of limbs, dispute in family and grief due to wife, relatives and animals. Here Mars, occupying sign of enemy planet Venus, usually gives bad results.
(8) Mars in Scorpio
It gives encouragement and enthusiasm to acquire wealth through agriculture, construction of house, or other land related activities. The native may have dispute or envy with many people. He might also suffer from useless and excessive or absurd talking.
(9) Mars in Sagittarius
It gives interest in worshipping of deities and the noble learned people. The native gets wealth, honour and other benefits from the king. Sometimes he suffers from anger, anxiety and agony due to conflict or confrontation with own people.
(10) Mars in Capricorn
(i) It gives power, authority, wealth and victory in debate or competition. The native gains kingdom, gold, jewellery and pleasure of luxury vehicle. (ii) Please remember it is the exaltation sign for Mars. However if Mars has crossed 28° of Capricorn this period will give success with great difficulty or after doing lot of hard work. The native gets fear of weapon and attack by wild animals. He gets opportunity to prove his worth andvigour in a debate or competition.
(11) Mars in Aquarius
It increases expenditure, unrest, agony and anxiety. The native suffers from immoral behaviour, bad conduct and worries due to progeny.
(12) Mars is Pisces
It gives anxiety, grief and unrest, on account of children, huge expenditure, disease, foreign travel or skin and than many reaction.

Presence of Venus in different signs of horoscope

(1) Venus with full strength gives gems, jewellery, gold ornaments, clothes and happiness from wife and children. The native enjoys dance, drama and music. He gets wealth, wisdom and higher education. He is righteous, religious, charity minded and expert in trading. (2) Venus with medium strength gives cows, elephants, horses, vehicles and happiness from children and grand children. The native gains ancestral property. Sometimes there is dispute with own people and the native goes elsewhere leaving his birth place. (3) Venus with very little strength gives ill heath and disease due to cough, cold or wind. The native is worried because of anger of deity and the noble wise man. He may have enmity with low class and his friendship with the wicked, may also give trouble.
Venus in Aries
(1) It destroys happiness from wife and wealth. The native travels aimlessly. His mind is agitated, flickering and bad habits also increase his unrest and anxiety.
(2) Venus in Taurus
It gives pleasure and profits through agriculture, animal husbandry or dairy farming. He takes keen interest in the study of holy scriptures. He is generous and gives charities to the needy and poor people. During this period he may get a daughter as well.
(3) Venus in Gemini
It gives knowledge and skill in various arts, music and poetry. The native desires to go abroad and enjoys the company of his friends. He loves wit and humor.
(4) Venus in Cancer
It gives vigour and vitality. The native is active and optimistic. He gets happiness from wife, success in ventures and is grateful for the help and support he gets.
(5) Venus in Leo
It gives profits and pleasures through women. The native utilises funds and finance of other. However he gets very little happiness from progeny and cattle.
(6) Venus in Virgo
It destroys peace, pleasure and profits. The native loses wealth, honour and place or position. His wishes are not fulfilled. He suffers from agony and anxiety. Sometimes he is forced to go elsewhere, leaving his friends and family behind. Please remember here Venus is debilitated hence bad results should be expected.
(7) Venus in Libra
It gives profits and prosperity through agriculture, horticulture or dairy farming. The native gets wealth, honour, Vehicle and happiness from own people.
(8) Venus in Scorpio
It gives courage, valour and the fighting spirit. The native goes to a distant place (or abroad). He works for others. His power, skill and competitive strength increases many fold. Sometimes the native suffers from heavy debt and tendency to pick up quarrel for no valid reason.
(9) Venus in Sagittarius
It gives knowledge and skill in various arts. The native gets royal honour from the king or government. He may also suffer from agony, anxiety and increased number of enemies.
(10) Venus and Capricorn
It gives victory over enemies and disease due to Wind (gas) and cough. The native is firm stable and patient. Sometimes he is worried for his relatives and friends.
(11) Venus in Aquarius
It gives sorrow and grief due to bad habits, ill health and wicked deeds. The native breaks his promise, is averse to noble deeds and uses falsehood in his dealings.
(12) Venus in Pisces
It gives progeny, promotion, power and prestige. The native gets wealth, wisdom, happiness and a post of minister _or executive. He is interested in agriculture and enjoys physical comforts or luxuries. Venus in Pisces (up to 27”) is exalted. During this period the native gets land, gold, gems, jewellery, elephants, horses and Vehicle. The native gets fame and honour from his relatives.

Presence of Moon in different signs of horoscope

Ascending Moon gives success fame, wealth and prestige while the descending Moon causes delay in all activities and native suffers from lack of intellect and mental confusion. (2) Moon with full strength gives peace, pleasure, power and prestige. The native gets wealth, Wisdom, skill and efficiency to achieve splendid success. He worships the noble, learned and deities. He gets many benefits from the king and his ministers. (3) Moon with medium strength gives modesty, charity, noble thoughts, a desire for tour and travel and birth of a female child. (4) Moon with low strength gives sleepiness, laziness, unrest, interest ‘in water related activities or agricultural pursuits. He speaks too much, quarrels with his own people and three humor in his body i.e., bile, wind and cough increase disproportionally. Sometimes cleanliness becomes his passion.
Moon in Aries
(1) It gives happiness from wife and children. The native loves to go abroad for expansion of his business and more profit. He suffers from anger, anxiety, disease of head and obstacles caused by the relative or enemy. Remember Aries is fiery and friendly sign to Moon. Here Moon is very close to its sign of exaltation. Hence good results should be expected.
(2) Moon in Taurus
(i) It gives power, prestige and prosperity to the native during its period. He gets pleasure from wife, children, ornaments, cows, horses, elephants and other luxuries. It is the sign of exaltdtion for moon hence most benefic effects should be excepted.‘ (ii) Please remember Moon in positive sign helps the native to go abroad. He gains through import export but may suffer from cold and cough or hostility of relatives. (iii) Moon associated with an evil planet placed in first half of sign gives death to mother but if posited in second half of Taurus it destroys health and happiness of father.
(3) Moon in Gemini
It gives wealth, wisdom, pleasure and prosperity. The native worships deities and the noble and learned people. Sometimes he gets a benefic transfer of his choice during this period.
(4) Moon in Cancer
It increases animal wealth, harvest and prosperity. The native loves to wander in mountains (hilly places) or forest. He gains expertise and skill in various arts but fears from a complex disease.
(5) Moon in Leo
It gives profits, praise and position of prestige. The native might suffer from physical weakness, deformity of limbs or loss of sex potency.
(6) Moon-in Virgo
It gives foreign travel, skill and adeptness in various arts, marital bliss and partial success in ventures.
(7) Moon in Libra
It gives conflict with wife, quarrel with own people, loss of wealth, company of bad people and mental agony, unrest and despair.
(8) Moon in Scorpio
(i) It increases the intensity of disease. The native loses his honour, prestige and suffers from sorrow and grief because of separation from family and friends. (ii) Remember Scorpio is the sign of debilitation for Moon, hence malefic effects should be expected. However above 3 degrees, the ascending Moon will give profits in trade and cooperation with friends. (iii) Sometimes the native would suffer from anxieties in performing religious and noble deeds. He must refrain from irreligious and evil deeds.
(9) Moon in Sagittarius .
It gives elephants, horses, fortune, wealth and prosperity to the native during its period. Sometimes the native ‘oves and enjoy previously acquired wealth and old items of comforts or luxury.
(10) Moon in Capricorn
It gives tour, travel and transfer to some other place. The native gains happiness of wealth and progeny. He maysuffer from wind disease and physical weakness.
(11) Moon in Aquarius
It gives pain and disease of stomach. The native suffers from debt, physicalydebility, unrest, grief and bad habits. If moon happens to occupy Aquarius sign in natal as well in D-9 chart, the native will have conflict with people in power. He would lose money and happiness from wife, children and friends. He might also suffer from dental or mouth disease. ‘.
(12) Moon in Pisces
(i) It gives profits and prosperity through water related activities. The native gains happiness from wife children and’ friends. His enemies are defeated and his intellect gets sharpened. If Moon occupies this sign in D—9 chart as well the native gets buffalows, elephants, horses and happiness from children, victory over enemy, good reputation, noble thoughts and intelligence.

Tuesday 29 November 2016

विवाह के समय पर राशियों का प्रभाव

राशियों का वर्गीकरन अनेक प्रकार से किया गया है, राशियों के तत्व भी अग्नि, पृथ्वी, वायु और जल होते है, जो विवाह का समय तथा जीवनसाथी के स्वभाव व मानसिकता से परिचित कराने से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । विवाह के समय के निर्धारण में भी राशियों का अग्रांक्ति वाश्किरण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, 1 शुभ फल प्रदायक राशिया - कर्क, वृश्चिक, मीन 2 अर्ध फल प्रदायक राशिया - वृषभ, तुला, कूम्भ 3 अर्ध राशिया तो मेष, 4 बांधव राशिया - मिथुन, सिंह, कन्या विवाह का समय निर्धारण करने में इन ग्रहों राशियों के वर्गीकरण का ध्यान में रखकर विचार करना चाहिए । यदि बंध्या राशियों में ग्रह होगे तो विवाह के सम्पत्र होने में अवरोध उत्पत्र काँपे । सर्वप्रथम लग्न, लग्नेश, सप्तमेश, सूर्य, चन्द्र, मंब्बाल, बृहस्पति, गुप्त, लग्नस्थ ग्रह, लग्नेश का नक्षत्राधिपति, सप्तमेश का नक्षवाधिपति तथा सप्तमस्थ ग्रहों की राशि और नक्षत्र पर सतर्कतापूर्वक विचार करना चाहिए, कि विवाह का योग है अथवा नहीं । यदि पापाकान्त राहु पुरुष या सहिता के ज़न्मग्रेग में नवम भाव में हो तो भी विवाह मै अवरोध उत्पन्न करता है । सप्तमस्थ शनि भी विवाह से अप्रत्याविरत विलम्ब उत्पन्न करता है । उपसंकित सूत्रों के आधार पर विवाह हेतु सर्वाधिक सशक्त समय का अनुमान सुगमता से लगाया जा सकता है । महादशा एव अन्तर्दशा का निश्चय हो जाने के पश्चात गोचर के ग्रहों का आश्रय लेना चाहिए । गोबर का वृहस्पति जब लग्न या चन्द्रमा पर से प्रण को या वहीं से सप्तम अथवा त्रिक्रोण स्थान से भ्रमण बने, तो विवाह निश्चित होता है । शनि भी विवाह में मुख्य भूमिका का निर्वाह करता है । शनि ग्रह द्वारा विवाह प्रतिबन्धक योग भी निर्मित होते है । अत: शनि के गोबर भ्रमणश्वा की अवहेलना नहीं की जानी चाहिए । सप्तम भाव पर शनि का प्रभाव, यदि सकारात्मक है, तो विवाह राशि विशेष में गोबर के शनि के भ्रमणाकात्त में सम्पन्न होता है । यह ध्यान रखना चाहिए कि गोचर के शनि का सप्तमभाव पर प्रभाव, गोचर के वृहस्पति का परम, नवम, लग्न या सप्तम भाव पर प्रभाव के साथ अन्तर्दशश्वा में समान अन्तराल में ही विवाह तय होता है । उस समान समय के माग को एक स्थान पर पृथक लिख कर उसी अन्तराल में जिन ग्रहों की प्रत्यन्तर्दशा हो उस पर सतर्कतापूर्वक विचार करना चाहिए । किस माह में विवाह होगा इसका निर्णय करना किंचित् जटिल प्रक्रिया है, परन्तु इसे ज्ञात कर सकना संभव अवश्य है । विवाह का साल जानने हेतु कतिपय नवांश सूत्रों, गोचर तथा प्रत्यन्तर्दइग़ का उपयोग करना चाहिए । प्रथम चरण : विवाह की संभावना है अथवा नहीं कन्या या युवक का विवाह होगा अथवा नहीँ, इस तथ्य का भलीभाँति विचार कस्ता चाहिए । विवाह प्रतिबन्थक योग से शीर्षाविन्त अध्याय में अनेक ऐसे सूत्र प्रतिपादित किये गये है, जो विवाह की सभावना को दशति हैं 1 बंध्या राशियों अथवा नवांश सादे में संस्थित सप्तमेश, द्वितीयेश एव जन्य ग्रहों की स्थिति, शुक्र पर चन्द्रमा अथवा तूर्य का प्रभाव, सूर्य तथा चन्द्रमा का शनि से संबंध, शनि और मंज्जाल का विनिमय टुष्टिसम्बन्ध्र तथा समान अंष्टगें पर सांप, मंगल और चुप का सम्बन्ध, शनि और चन्द्रमा में विनिमय सम्बन्ध आदि अनेक ऐसे सूत्रों का उल्लेख तथा उदाहरण, इस अध्याय में प्रस्तुत किये गये है । यदि विवाह योग विद्यमान नहीं है, तो विवाह समय की गणना करना निरर्थक है । यदि जन्मग्रेम में विवाह प्रतिबन्धक रोग, अनुपस्थित है, तो विवाह में बिलम्ब से सम्बद्ध कतिपय योगों पर सतर्कता पूर्वक विचार करना चाहिए 1 विलम्बित विवाह-अभिनव अभिज्ञान नामक अध्याय में, विवाह में विलम्ब की स्थिति यया विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की गई है, जिसे इस अध्याय में प्रतिपादित सूत्रों त्तचा उदाहरण के अध्ययन द्वारा भलीभाँति समझा जा सकता है । विवाह समय संज्ञान' हेतु सर्वप्रथम यह ज्ञान अनिवार्य है कि विवाह होगा अथवा नहीं और यदि विवाह में विलम्ब का योज्जा है, तो सामान्य रूप से विलम्ब की सम्भावना है, अथवा अत्यधिक दिलम्ब का योग है । यह अनुमान और आकलन इस विषय के अध्ययन, अनुभव और अनुसंधान पर ही आधारित है ।
द्वितीय चरण : सर्वप्रथम महादशा का अनुमान लगाया जाना चाहिए, कि किस महादशा में विवाह होगा 1 विवाह हेतु संभावित महादशा का उल्लेख उपरोक्त आधार पर ही क्रिया जाना चाहिए । महादशा के अनुमान के उपरान्त अन्तर्दशा पर विचार करना चाहिए, कि क्रिस अन्तर्दशा में विवाह होगा ।
तृतीय चरण : अन्तर्दशब्द विवाह के सम्पादन हेतु उपयुक्त अन्तदंशऱ पर विचार करते समय अग्राकित विशिष्ट तथ्यों का ध्यान अवश्य रखना वाहिए । 1 सप्तम या द्वितीय भाव से सम्बन्धित ग्रहों की अन्तदंशा में विवाह होता है, यह तो सर्वविदित है । 2 लग्न से चतुर्थ तथा सप्तम से चतुर्थ भाव अन्तर्दशा से विवाह होने की सबल सम्भावना होती है । अर्थात् चतुर्थ व दशम भाव भी समान रूप से विचारणीय है । चतुर्थ भाव, परिवार के सुख तथा माधुर्य से सम्बन्धित होता है, घिवाहोपरान्त पति और पली जिस प्रेप के घरौंदे का निर्माण करते है, वह चतुर्थ भाव द्वारा ही विचारणीय है । मन मे, जीवन मे, विचारों मेँ, जीवन साथी के पति सम्बन्धों की आत्मीयता से सम्बद्ध, जो भावना अंकुरित और विकसित होती है, उसका आधिपत्य कम हो जाता है!

Effect of Ketu in twelfth or 12th house of horoscope

The shadow planet Ketu is one of the most malefic planets in the celestial arena which provides harshness and difficulties to the natives of this placement but as Ketu is exalted here, the natives of this placement would be blessed with strong wealth & achievements in life.The natives of this placement of Ketu in 12th house would walk through a path of hurdles but they will get paid for their hard work and endeavor as this harsh path would take them towards admirable heights of profession and finances. These people would make good utilization of their intellect and time.On the other part, the placement of Rahu & Mercury in the 6th bhava along with this placement would bring more pleasant impacts to the native’s life. The natives of this placement of Ketu in twelfth house would possess comfort and luxuries in life and would lead a satisfying and happy life.The malefic placement of Ketu in 12th house would make losses to the person and worthless expenditure.These natives having Ketu in twelfth house should never slay or harm dogs as it will bring malefic impacts upon them. Besides this, the placement of Moon, Venu or Mars in 2nd house would further enhance the malefic impacts of this placement.They should worship Lord Ganesha and should stay on the moral and true path upon life. It would be beneficial for them to keep a dog in house and to keep saunf & khand under the pillow during the nights.

Effect of Ketu in eleventh or 11th house of horoscope

The shadow planet Ketu is one of adverse presence in the astrological arena which would bring difficulties for most of the times and would keep the path harsh and difficult for the native. Besides this, these natives having Ketu in 11th house would be blessed with good wealth and strong position in the social arena.The arrival of Ketu in eleventh house would bring goodness of finance & social stature to the person though the results would be impacted by the planet Jupiter & Saturn as well which would bring variations in result depending upon their horoscope placements. The presence of Ketu would bring some difficulties in the social & financial path as it won't be a easier path for them.The benefic placement of ketu in 11th house along with Saturn in the 3rd house would bring high affluence to the person and he/she would attain wealth more than the paternal one. These natives would confront much stress and worries throughout life in this placement.Besides this, the placement of Mercury in the 3rd bhava would bestow Raj Yoga to the native as taking him/her towards supreme heights of success.The malefic placement of ketu in eleventh would bring harshness in the social arena and difficulties with finances to the person. The malefic ketu could also bring problems in the abdomen of the person and mental stress would be high.This placement of Ketu in 11th house would also bring adverse impacts upon the grandmother & mother of the natives. The malefic placement of Saturn along with malefic Ketu would not let the person get benefited from the son and he/she would not be able to have a house.The natives of this placement should keep a black dog in house and should wear emerald for reducing the malefic effects of this placement.Ketu in 11th House consider good. 11th house is Upchaya house and any Melific planet in Upchaya house is consider good regarding materialistic matters. Native may be deposited a lots of wealth and property.Native have habits of hoarding. Native may earn through speculating type things such as stock market,Batting,lottery,racing etc. As Ketu also belongs to spiritual or religious matter so native may be earn through spirituality and religious work. Some time native may earn through alter way.Ketu in 11th house makes native royal in behavior, Native may be kind and good heart. Native may be very intelligent and having good skilled.Native may be very well in speech.Through all this quality native may be success in all his undertakings.Ketu in 11th house indicating native fulfill all his desires. Native got all sorts of comforts and conveyance. Native may be inclinations regarding Luxuriouse life.Native may be charectoreless regarding sexual matter. It may also cause for trouble in marrige relation.

Effect of Ketu in tenth or 10th house of horoscope

The Shadow planet Ketu is a well perceived malefic presence in the astrological arena for which it could be either positive or negative depending upon other planetary placements in the horoscope chart. The results of Ketu in tenth house would highly depend upon the position of planet Saturn in the birth chart.The positive placement of Saturn in the horoscope chart would also keep the Ketu in 10th house in the pleasing appearance and that will bless the person with great fortune in life. The natives of this placement would carry a serious approach towards life and would be very concern about themselves. They would be bestowed with good opportunities in their life but his/her father would have a quiet short life span.Besides this, the placement of Saturn in the 6th bhava would lead the native towards heights in sports arena. The natives born with positively placed Ketu in 10th house would be generous in attitude and would be truly benefited if they would keep their character true & pure.These people would always forgive their brothers for their misdeeds and that will keep them growing throughout.Apart from this, the malefic presence of Ketu in 10th house would bring difficult and harsh path in life as especially with the aspects of finance & career. They will confront health problems associated with urinary system & ear and would face body aches.There will be high stress & lack of peace in the professional as well as personal life of these natives. The native's three sons could die.The natives of this placement of Ketu in tenth house should stay away from adultery and immoral deeds and should keep a dog at home as especially after the forty eight years of age. They should keep a silver pot filled with honey within the house. Following all of these remedies and the remedies associated with Moon & Jupiter would reduce the negative impacts of this placement.

Effect of Ketu in ninth or 9th house of horoscope

The placement of Ketu is a well perceived malefic presence but it could also appear somewhat positive at times as it becomes here in the 9th house as here Ketu becomes exalted in this position for which the native will receive positive impacts upon his/her life though some difficulties would surely be there for Ketu being a malefic presence.The presence of Ketu in ninth house would keep the Ketu surrounded by positive energy for its being in pleasant relation with the ruler of 9th bhava that is Jupiter and for the same reasons, here in this position Ketu in 9th house would emerge high with most of pleasing results for the native and reduction in its adverse shades. This will bring good life and goodness in life to the natives.The natives of this placement of Ketu in ninth house would receive great fortune through this position and would be bestowed with good affluence and success in life but that will come only though his/her own hard work and efforts. They are obedient and sincere beings who would attain great heights upon land and would possess good social & professional position of respect. The natives of this placement would attain higher affluence if he/she would keep a gold brick within the house.The natives of this placement of Ketu in 9th house would be blessed to have son who will be capable of predicting the future while they can have three sons in life. These natives could spent most of their life in foreign lands due to variant reasons.  The positive placement in 2nd house would further enhance the positive brilliance of Ketu here. Besides this, the auspicious placement of Moon will keep the person devoted towards the mother and mother’s family while the malefic placement of Ketu here in the 9th house would bring urinary problems, back aches and problems in leg to the person. This would also bring consequent deaths of sons.The natives of this placement ketu in 9th bhava should pursue some remedies for the adverse impacts of ketu for which keeping a dog at home would be really beneficial for the native. He should establish a rectangular piece of gold somewhere in the house and should wear gold in the ear. They should always pay respect and services to their father-in-law.

Effect of Ketu in eighth or 8th house of horoscope

The Shadow planet Ketu is one of well perceived malefic presence though some placements makes it appear benefic for the native but it will always arrive along with some difficulties and hurdles for the person. The arrival of Ketu in 8th house would provide the blend of both positive and negative impacts upon the native.The presence of Ketu in eighth house will definitely bring some hurdles as making his/her life quiet difficult for the native but if the ketu would be placed benefic in this house then, it will bestow a son after 34yrs of age to the native or after the marriage of any girl form his/her family like sister or daughter. Besides this, the absence of planet Jupiter & Mars from the 6th and 12th bhava would reduce most of adverse impacts of Ketu here while placement of Moon in 2nd bhava will bring pleasant impacts.On the other part, the malefic placement of Ketu in 8th house would bring some adverse impacts upon the native’s wife as she may suffer form bad health. This won’t let the native have Son or if he/she would have then, the son won’t live longer.Besides this, the native will also suffer form diabetes and urinary problems. The placement of Saturn or Mars in 7th bhava would bring more misfortune to the natives. This placement will highly effect the family life of the native after the 26yrs of his/her age.The natives of this placement of ketu in eighth house should keep a dog at home and nurture him for the reduction of malefic effects. They should donate a black & white blanket in a sacred and worshiping place and should worship and adore Lord Ganesha with true devotion. These people should wear gold in the ear and should put a saffron tilak over the head to reduce the misfortune and to stay safe.8th house belongs to Ayu(Life span) as ketu is Paap Grah so when Ketu occupy 8th house native may have short life span. If Ketu is well placed or aspects by beneficial planet then evil effect may reduced or native may long lived.8th house belongs to Incurable disease or long term disease. When Ketu occupy 8th house then native may suffering from many type of disease.This disease may be incurable.Ketu In 8th House may cause for piles in anus.8th House belongs to physical loss and ketu may be one of karak of accidents type events so Ketu In 8th House may cause for physical damage of body or physical attacks on body.Ketu In 8th may also cause of physical loss through Weapons.Ketu In 8th House makes native Tamsic. Native may be suffering from Bad sexual habits. It may also caused for unnatural sexual habits to the native.If Ketu in effect of sattvic elements then this Tamsic effect may be reduced or native may be detached with sexual activity or lives like a sanyasi.In simple Sattvic elements controling Tamsic quality of Ketu regarding 8th House.

Effect of Ketu in fifth or 5th house of horoscope

The placement of shadow planet Ketu in fifth house would be very much affected by the placement of planet Jupiter in the horoscope chart besides which they are some other factors as well which would result either in benefic or adverse impacts for the naives life path.The placement of Jupiter, Sun or Moon in the 4th, 6th or 12th bhava would make this placement pleasant and would bring much goodness to the person. The natives of this placement would be bestowed with strong stature of wealth and would endow the person with five sons.Besides this, the malefic presence of Ketu in 5th house will make the native seriously suffer form asthma.The malefic placement of Ketu in 5th house gives adverse results till the five years of age to the native besides which it would harmfully affect the sons of the person as their would be problems in their birth and they could also have bad health till death.These natives of Ketu in fifth house should donate milk and sugar for the reduction of malefic effects of this placement and should pursue the remedies for planet Jupiter.Ketu is natural Melific when ketu occupy 5th house its create Putra Dosh(5th house belongs to children). Native may face problem regarding child birth. It may be late child birth or trouble in child birth or may be child less situation depanding on ketu position.If ketu is badly placed then evil effect increase or if ketu is in better position then evil effect may be reduce.Ketu In 5th house also not good for children health. Child may be faces health problem or accidents depanding on chart. If ketu is in bad influence then native may faces loss of child from above region.Ketu is a planet of disattchment there may be disattchment between native or child may be live away from native.5th house also belongs to mentality.Ketu belongs to violence,explosivness,emotinol tension,immorality so according ketu quality native have same mentality. Native may be evil minded or unstable mind.If ketu is wellplaced and influence of jupiter or saturan or may be in watery sign or simply any indication regarding spirituality then native may be spiritual or religious.

Effect of Ketu in sixth or 6th house of horoscope

The Shadow planet ketu in 6th house is perceived to be a malefic presence but other planetary placements could even make it appear benefic at times besides which it really gets impacted with the placement of planet Jupiter. It will bring positive results and goodness to the native’s life.The pleasing placement of Jupiter would bring a long path of life to the person having Ketu in 6th house which would be a peaceful and blissful life. The mother of the native would also receive the goodness in life while the placement of any of the two from Sun, Jupiter and Mars are positively placed then, it would further enhance the pleasing impacts of this Ketu placement.The malefic placement of Ketu in sixth house would bring some problems to the maternal uncles besides which it would make the person wander without reason and travel without benefits. He native would have many enemies and foes around as people would carry much malice and ill-feelings for the native and that will be without any particular reason.The natives having malefic placement of Ketu in sixth house would confront skin problems. Besides this, the placement of Moon in the 2nd bhava would bring sufferings for the mother and the native would have a quiet difficult and harsh path of old age.The natives should wear a golden ring in the left hand for reducing the negative impacts of this placement. These people should keep a dog as a pet in home and should nurture him for attaining the good results. The natives should drink milk with saffron and should wear gold in the ear besides this, heat a rod of gold and dip the same in milk after with drinking the same milk would bring betterment in the native’s life. These remedies would bring peace and harmony in the natives lives.6th house is house for enemy when Ketu occupy 6th house then native will be vanquished all his enemy.So native may be enjoying enemy free life.6th house is house for disease when Ketu occupy 6th house native may be disease free. Native have good and sound health. If ketu is ill placed in 6th house it may caused for accidents. Accidents type depanding on rashi and planet which is afflicted by ketu.Ketu belongs to spirituality and occult science. So When Ketu occupy 6th house native have mental strength to got Vidya of Occult science. If Saturan influence ketu then native may got black magic sidhhi.Overall Ketu In 6th native may have power to got success in Isht sidhhi. If Ketu In influence of Jupiter native may got spiritual wake up.

साप्ताहिक राशिफल -28 नवंबर से 04 दिसंबर, 2016

मेष -
यह सप्ताह आपके लिए यात्रा को होगा, नये लोगों से मिलने के लिए होगा तथा नये अनुभव प्राप्त करने के लिए है। कोई नया काम शुरू करने के लिए, नौकरी बदलने के लिए और बच्चे के जन्म के लिए समय शुभ है। आप मानसिक शांति और खुशी का अनुभव करेंगे। हर तरफ से अच्छी खबर मिलने के संकेत हैं। व्यक्तिगत और पारिवारिक सुख में भी वृद्धि का अनुभव करेंगे। प्यार करने वालों के लिए भी समय शुभ है। इस प्रकार नाम कमाना या संपर्क बढ़ाने का अच्छा समय है लेकिन आपको सलाह है कि इस समय व्यापारिक और आर्थिक निर्णय थोड़ा सोच-समझ कर लें। आय में भी कुछ गिरावट आने के संकेत हैं। लेकिन समय आपके अनुकूल हैं इसका लाभ उठाएँ।
उपाय-
सिद्ध गायत्री मंत्र का लाल चंदन की माला से जप करें, कन्या को खट्टे फल खिलायें...
वृषभ -
यह सप्ताह आपको मिले-जुले परिणाम देगा। इस समय धैर्य और संयम से काम लें और कोई ऐसी बात ना कहें जो दूसरों को दुःख पहुँचाये। शत्रुओं से हानि नहीं होगी किंतु बार-बार विवाद की स्थिति निर्मित होने से तनाव होगा साथ ही मानसिक उलझनें आपको घेरे रहेंगी। परिवार से सुखद समाचार मिलने के संकेत कम नजर आ रहे हैं। बच्चों या परिवार की तरफ से भी मानसिक परेशानी रह सकती है। आर्थिक मामलों में यह समय आपको आपकी मेहनत के अनुसार फल देगा, लेकिन कोई बड़ा आर्थिक निर्णय लेने के लिए समय सही नहीं है। अपनी सेहत का ध्यान रखें और बाहर के खाने से परहेज करें।
उपाय-
गाय की सेवा करें, भीगे हुए गेहूॅ खिलायें. मंगल मंत्र का पाठ करें...
मिथुन
यह सप्ताह आपके लिए कई आर्थिक फायदे लिए हुए है, आय में अभूतपूर्व वृद्धि होगी और व्यवसाय में भी मुनाफा होने के प्रबल योग हैं। लेकिन आपको सलाह है कि कोई भी आर्थिक निर्णय जल्दबाजी में ना लें, समय आपके साथ है पर अपनी बुद्धि का भी सही इस्तेमाल करें, क्योंकि तीसरे स्थान में राहु है, बिना विचारे या बड़ों के सलाह के कोई बड़े निर्णय ना लें। परिवार के लोगों के साथ मामूली मनमुटाव या असंतोष संभव है। प्यार करने वालों के लिए समय थोड़े उतार-चढ़ाव लेकर आएगा, लेकिन चिंता करने की बात नहीं है क्योंकि यह ज्यादा समय तक नहीं रहेंगे। स्वास्थ्य की दृष्टि से एलर्जी का समय है अतः धूल, खटाई से बच कर रहें।
उपाय-
दुर्गा कवच का पाठ करें और माता के दरबार में चुनरी चढ़ायें...
कर्क -
इस सप्ताह आप अपना खाली समय सोशल-नेटवर्किंग साइट्स पर बिता सकते हैं, लेकिन इसके साथ ही जरूरी है कि परिवार और दोस्तों को भी नजरअंदाज ना करें। आपकी नौकरी में तरक्की या तबादला संभव है। नयी नौकरी की तलाश कर रहे लोंगो के लिए भी समय शुभ है, तो इसके लिए प्रयास करते रहें। आपकी कार्य क्षमता इस समय चरम पर होगी, सभी कार्यों को बड़ी ही आसानी से अंजाम दे पाएंगे। सप्ताह के अंत में अपने जीवन-साथी या परिवार के साथ कहीं घूमने का प्रोग्राम भी बना सकते हैं। इस सप्ताह आपके स्वास्थ्य की दृष्टि से पेट संबंधी रोग कष्ट दे सकते हैं अतः सावधानी रखना एवं दही रायता या बाहर का जूस पीने से बचना चाहिए।
उपाय-
शिव अराधना करें और रूद्राक्ष की माला से शिवमंत्र का जाप करें...
सिंह -
इस सप्ताह दो चीजों पर आपको अधिक ध्यान देने की जरूरत है, पहला है आपका स्वास्थ्य और दूसरा आपका गुस्सा। अपने स्वास्थ्य का अधिक ध्यान रखें, बाहर की चीजों से परहेज करें खान-पान पर भी ध्यान दें। इस समय आपका गुस्सा आपके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है, इस पर नियंत्रण रखना बहुत आवश्यक होगा, अन्यथा आपके अपने भी आपसे दूर हो जाएंगे। कोर्ट-कचहरी के मामलों को अभी टालने का प्रयास करें क्योंकि समय इसके लिए उचित नहीं है। आग और विद्युत उपकरणों से भी सावधानी बनाये रखें।
उपाय-
सूर्य यंत्र की पूजा करें तथा सूर्य को अध्र्य देते हुए सूर्य मेंत्र का जप करें, रूके काम बनेंगे. बेहतर स्वास्थ्य लिए महा-मृत्युंजय मंत्र का जप करें।
कन्या -
लग्नस्थ गुरू होने से कन्या राशि वालों के लिए यह सप्ताह शुभ है। आपकी निर्णय लेने की क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि होगी, तथा सभी निर्णयों का परिणाम भी आपके पक्ष में आएगा। इस समय आपको आपकी मेहनत के पूर्ण परिणाम मिलेंगे। आय में जबरदस्त वृद्धि होगी और पिता तथा उच्च अधिकारिओं का सहयोग मिलेगा। लेकिन इस समय अपने परिवार के बड़े सदस्यों तथा पिता की सेहत का ध्यान रखें। घर की सजावट तथा विद्युत उपकरणों पर खर्च की सम्भावना भी बन रही है।
उपाय-
सर्वकार्य सिद्धि यंत्र धारण करें और कुत्ते को रोटी खिलाएँ।
तुला -
आपके घर में किसी शुभ कार्य का आयोजन भी किया जा सकता है जैसे बच्चे का जन्मदिन मनाना या शादी की सालगिरह। इस प्रकार इस सप्ताह उत्सव के साथ खर्च की अधिकता होगी और महत्वपूर्ण कार्य के अलावा अन्य कार्यो में देरी के योग बनते हैं। इस लिए अपने कार्यो की महत्वता के अनुसार सूची बनायें और महत्वपूर्ण कार्य ना छूटे इसका ध्यान रखना होगा। इस समय आप शांत रहेंगे और आतंरिक सुख की अनुभूति होगी। घर-परिवार में भी माहोल खुशनुमा बना रहेगा। जीवन-साथी के साथ सम्बन्ध मधुर बने रहेंगे और प्यार करने वालों के लिए भी अच्छा समय है। व्यापारिक तथा आर्थिक मामलों में समय बहुत सामान्य नजर आ रहा है, इसलिए कोई भी बड़ा निर्णय बहुत सोच-विचार के बाद ही लें।
उपाय-
राहु शान्ति हेतु राहु मंत्र का जाप करें, दवाईयों का दान करें...
वृश्चिक -
इस सप्ताह आप अपने शत्रुओं को परास्त करने में सफल होंगे साथ ही कुछ नए दोस्त भी बनाएँगे। शिक्षा-प्रतियोगिता में भाग ले रहे प्रतियोगियों और नौकरी की तलाश कर रहे लोगों को भी अधिक परिश्रम करने की जरूरत है। लेकिन अच्छी बात यह है कि आपकी बुद्धि और पराक्रम इस समय चरम पर होगा अर्थात् आपकी एकाग्रता और मेहनत दोनों इस समय आपके लिए अनुकूल है। पिता और भाई का भी भरपूर सहयोग मिलेगा। अपनी बुद्धि के बल पर विपरीत परिस्थितियों को भी अपने बस में करने में सफल होंगे। आपको अपने कामों को अंजाम तक पहुँचाने के लिए अधिक प्रयास करने होंगे, जिसे आप करने में भी सफल रहेंगे। कुल मिलाकर यह सप्ताह आपके लिए बेहद अनुकूल है।
उपाय-
माँ लक्ष्मी की आराधना करें और सिद्ध लक्ष्मी यंत्र की पूजा करें।
धनु -
इस सप्ताह आपका सप्तमेश लग्न में और अष्टमेश द्वादस्थ है जिसके कारण इस समय किसी और के कार्य अथवा पार्टनरशील के कार्य या धन सम्बन्धी विवादों से भी इस समय दूरी बनाये रखें, अन्यथा सफाई देना या कोर्ट के चक्कर काटना पड़ सकता है। कुछ मानसिक उलझनें आपको परेशान कर सकती हैं लेकिन जल्द ही आप विपरीत परिस्थितियों को अपने बस में करने में सफल होंगे। प्यार करने वालों के लिए अच्छा समय है, वे अपने रिश्ते को शादी में बदलने का प्रस्ताव भी घर वालों के आगे रख सकते हैं। शिक्षा-प्रतियोगिता में भाग ले रहे प्रतियोगियों को अपने प्रयास बढ़ाने की आवश्यकता है, जिससे कामयाबी प्राप्त की जा सकें। अपनी माँ के स्वास्थ्य की चिंता आपको परेशान कर सकती है, उनका ध्यान रखें। इस समय आपके भाग्य स्थान में राहु होने से बाधा और रूकावट आयेंगी उसके लिए निम्न उपाय करना चाहिए।
उपाय-
जगतगुरू कृष्ण जी की पूजा करें...पीले वस्त्र या पीले फूल चढ़ायें...बड़ों को आदर दें...
मकर -
इस सप्ताह समय आपके धैर्य की परीक्षा ले सकता है क्योंकि आपके लग्न में मंगल और अष्टम में राहु है, इस समय अपने आपको शांत रखेें, नियमानुकूल चलें और प्रयास तथा निरंतरता को बढ़ायें, अंत में परिणाम आपके हक में ही होंगे। पारिवारिक सुख में वृद्धि होगी और जीवन-साथी का भरपूर साथ मिलेगा। आपका स्वास्थ्य उत्तम बना रहेगा लेकिन अपने घर के बड़े सदस्यों की सेहत का ध्यान रखें। बच्चों से भी कोई अच्छी खबर सुनने को मिल सकती है। नया वाहन, घर या जमीन खरीदने के लिए समय उचित नहीं है तो थोड़ा रुक जाएँ। आपके लिए हुए निर्णय सार्थक होंगे और सफलता दिलाने में आपकी मदद करेंगे।
उपाय-
हनुमान मंदिर में बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करें.. मसूर की दाल का दान करें..
कुम्भ -
क्रोध और वाणी पर नियंत्रण रखने की स्थिति में ही समय आपको शुभ परिणाम देगा। विवादों से जितना हो सके उतना दूर रहें और कड़वे शब्दों प्रयोग ना करें। पिता या बड़े भाई से वैचारिक मतभेद संभव है, इसलिए सावधानी बरतें और अपनी बात को विनम्रता के साथ उनके सामने रखें। आपकी यात्रा लम्बी तथा परेशानी भरी रह सकती है, तो हो सके तो उन्हें कुछ समय के लिए टाल दें। इस समय पार्टनर, जीवनसाथी या जितने लोगों पर भरोसा है ऐसे लोग भी आपको परेशान कर सकते हैं अतः तनाव ना लें और धैर्य से समय निकलने का इंतजार करें...
उपाय-
शनि की शांति के लिए शनि मंत्र का जाप और गरीबों को काला कंबल देना आपके लिए शुभ होगा...
मीन -
आपकी मानसिक उलझनें बढ़ सकती हैं और पराक्रम में भी गिरावट आएगी, ऐसी स्थिति से बचने का प्रयास करें और स्वयं पर भरोसा रखें। धन का आगमन सामान्य रूप से कम होगा इसलिए भी बड़े आर्थिक फैसले लेते समय सावधानी बरतें। वाहन भी सावधानी से तथा धीमी गति पर चलाएँ। इस समय आपका लोन आसानी से पास हो जाएगा, तो अगर लोन लेने की सोच रहे हैं तो अभी प्रयास करें। भूमि, भवन, वाहन खरीदने के लिए समय उचित है, इस समय सभी रूके कार्य को करने का प्रयास करें। परिवार के किसी सदस्य के स्वास्थ्य की समस्या मानसिक तथा आर्थिक परेशानी का कारण बन सकती है। कुलमिलाकर यह सप्ताह मिलाजुला होगा।
उपाय-
बृहस्पति मंत्र का जाप तथा पुरोहित या गुरू को एक समय का आहार करायें...