न्यायालयीन प्रकरण में जय-पराजय के ज्योतिष योग -
महत्वाकांक्षा ही व्यक्ति से नैतिक-अनैतिक, वैधानिक-अवैधानिक, सामाजिक-असाजिक कार्य कराती है साथ ही किसी विषय पर विवाद, कोई गुनाह, संपत्ति से संबंधित झगड़े इत्यादि का होना आपकी कुंडली में स्पष्ट परिलक्षित होता है। अगर इस प्रकार के कोई प्रकरण न्यायालय तक पहुॅच जाए तो उसमें जय प्राप्त होगी या पराजय का मुॅह देखना पड़ सकता है इसका पूर्ण आकलन ज्योतिष द्वारा किया जाना संभव है। सामान्यतः कोर्ट-कचहरी, शत्रु प्रतिद्वंदी आदि का विचार छठे भाव से किया जाता है। सजा का विचार अष्टम व द्वादष स्थान से इसके अतिरिक्त दषम स्थान से यष, पद, प्रतिष्ठा, कीर्ति आदि का विचार किया जाता है। साथ ही सप्तम स्थान में साझेदारी तथा विरोधियों का प्रभाव भी देखा जाता है। इन सभी स्थान पर यदि कू्रर, प्रतिकूल ग्रह बैठे हों तो प्रथमतया न्यायालयीन प्रकरण बनती है। इनकी दषाओं एवं अंतदषाओं में निर्णय की स्थिति में जय-पराजय का निर्धारण किया जा सकता है। इसके साथ ही षष्ठेष किस स्थिति में है उससे किस प्रकार का प्रकरण होगा तथा क्या फल मिलेगा इसका निर्धारण किया जा सकता है। कुछ महत्वपूर्ण स्थिति जिसके द्वारा न्यायालयीन प्रकरण, विवाद, पुलिस से संबंधित घटना हो सकती है निम्न है: सूर्य- छठे स्थान में सूर्य होने से शासकीय/ राजकीय प्रकरण से संबंधित विवाद हो सकता है। चंद्रमा- छठे स्थान पर चंद्र होने से मामा/ माता पक्ष से संपत्ति संबंधी विवाद संभव है। मंगल- मंगल के विपरीत होने पर पुलिस या सैन्य से संबंधित प्रकरण हो सकते हैं। बुध- बुध के विपरीत होने से व्यापार या लेनदेन से संबंधित विवाद या प्रकरण संभावित है। गुरू-गुरू के विपरीत होने पर धार्मिक, ब्राम्हण, षिक्षक, न्यायिक संस्था से संबंधित विवाद हो सकता है। शुक्र के विपरीत होने पर होटल, स्त्री, कलाकार या भोग से संबंधित स्थानों पर विवाद हो सकता है। शनि के नीच या विपरीत होने पर कुटिलता, शासन से विपरीत स्वभाव या अन्याय से संबंधित केस संभावित है। राहु या केतु होने पर अनैतिक आचरण या सामाजिक प्रकरण पर विवाद हो सकता है। जिन ग्रहों की विपरीत स्थिति या परिस्थितियों में कष्ट उत्पन्न हों, उसके ग्रहों की स्थिति, दषाओं का ज्ञान कर उसके अनुरूप आवष्यक उपाय जीवन में कष्टों की समाप्ति कर जीवन सुखमय बनाता हैं। इस सभी परिस्थितियों में जातक को दुर्गा सप्तषती का सकाम अनुष्ठान शुक्लपक्ष की पंचमी से कलष स्थापन कर अष्टमी तक विद्धान आचार्य के निर्देष में निष्पादित करना चाहिए। इस समय आहार, व्यवहार का संयम रखना चाहिए। निष्चित ही सभी परेषानियाॅ दूर होती हैं तथा विजयश्री प्राप्त होती है। इसके अलावा जब समय अभाव हों तो बंगलामुखी का अनुष्ठाान करना भी श्रेयस्कर होता है। परंतु इस ब्रम्हविद्या का इस्तेमाल करने से पहले साधक का सामथ्र्य तथा तपोबल के बारे में अच्छी तरह से निष्चय कर लेना चाहिए।
Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in
No comments:
Post a Comment