Sunday 27 March 2016

अजा एकादशी व्रत

अजा एकादशी महान पुण्यफल को देने वाली है। यह एकादशी भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष में होती है। बालक, वृद्ध, स्त्री-पुरुष एवं श्रेष्ठ मुनियों को भी इसका अनुष्ठान करना चाहिए। इस तिथि के सेवन से मनुष्य कायिक, वाचिक और मानसिक पाप से मुक्त हो जाता है। व्रत करने वाला वैष्णव पुरुष दशमी तिथि को कांस, उड़द, मसूर, चना, कोदो, शाक, मधु, दूसरे का अन्न, दो बार भोजन तथा मैथुन इन दस वस्तुओं का परित्याग कर दे। एकादशी को जुआ खेलना, नींद लेना, पान खाना, दातुन करना, दूसरे की निंदा करना, चुगली, चोरी, हिंसा, क्रोध तथा असत्य भाषण को त्याग दें। दैनिक कृत्यों को पूर्ण कर एकादशी व्रत का विधिवत् संकल्प लेकर नियमानुसार व्रत का पालन करें। द्वादशी को व्रत पूर्ण करें। एक समय प्रसन्न मुद्रा में धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण भगवान के श्री चरणों में प्रणाम कर पूछा - जनार्दन, नंद नंदन, गोपिका बल्लभ अखिलेश्वर भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का महात्म्य बतलाने की कृपा करें। भगवान श्रीकृष्ण बोले - राजन ! एकाग्रचित्त होकर सुनो । भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम 'अजा' है, वह सब पापों का नाश करने वाली बतायी गयी है। जो भगवान्‌् हृषीकेश का पूजन करके इसका व्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। पूर्वकाल में हरिश्चंद्र नामक एक विखयात चक्रवर्ती राजा हुए थे, जो समस्त भूमंडल के स्वामी और सत्यप्रतिज्ञ थे। एक समय किसी कर्म का फलभोग प्राप्त होने पर उन्हें राज्य से भ्रष्ट होना पड़ा। राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेचा। फिर अपने को भी बेच दिया। पुण्यात्मा होते हुए भी उन्हें चांडाल की दासता करनी पड़ी। वे मुर्दों के कफन की सिलाई करते थे। इतने पर भी नृपश्रेष्ठ हरिश्चंद्र सत्य से विचलित नहीं हुए। इस प्रकार चाण्डाल की दासता करते उनके अनेक वर्ष व्यतीत हो गये। इससे राजा को बड़ी चिंता हुई। वे अत्यंत दुखी होकर सोचने लगे - 'क्या करूँ? कहां जाऊँ? कैसे मेरा उद्धार होगा?' इस प्रकार चिंता करते-करते वे शोक के समुद्र में डूब गये। राजा को आतुर जानकर कोई मुनि उनके पास आये, वे महर्षि गौतम थे। श्रेष्ठ ब्राह्मण को आया देख नृपश्रेष्ठ ने उनके चरणों में प्रणाम किया और दोनों हाथ जोड़ गौतम के सामने खड़े होकर अपना सारा दुःखमय समाचार कह सुनाया। राजा की बात सुनकर गौतम ने कहा - 'राजन् ! भादों के कृष्णपक्ष में अत्यंत कल्याणमयी 'अजा' नाम की एकादशी आ रही है, जो पुण्य प्रदान करने वाली है। इसका व्रत करो। इससे पाप का अंत होगा। तुम्हारे भाग्य से आज के सातवें दिन एकादशी है। उस दिन उपवास करके रात में जागरण करना।' ऐसा कहकर महर्षि गौतम अंतर्ध्यान हो गये। मुनि की बात सुनकर राजा हरिश्चंद्र ने उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया। उस व्रत के प्रभाव से राजा सारे दुखों से पार हो गये। उन्हें पत्नी का सन्निधान और पुत्र का जीवन मिल गया। आकाश में दुन्दुभियां बज उठीं। देवलोक से फूलों की वर्षा होने लगी। एकादशी के प्रभाव से राजा ने अकण्टक राज्य प्राप्त किया और अंत में वे पुरजन तथा परिजनों के साथ स्वर्गलोक को प्राप्त हो गये। राजा युधिष्ठिर ! जो मनुष्य ऐसा व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त हो स्वर्गलोक में जाते हैं। इसके पढ़ने और सुनने से अश्वमेध-यज्ञ का फल मिलता है।

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