गुरुओं के गुरु भगवान दक्षिणामूर्ति की आराधना में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा विरचित दक्षिणामूर्ति स्तोत्र को गुरु भक्ति के स्तोत्र साहित्य में अद्वितीय स्थान प्राप्त है। गुरु कृपा की प्राप्ति हेतु इसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह स्तोत्र ब्रह्मांड के तत्व विज्ञान ‘‘अद्वैत दर्शन’’ की व्याख्या करता है और ब्रह्मांड, आत्मा व इनके संबंधों के गुप्त रहस्यों को उजागर करता है। यदि इसे सूक्ष्मता से समझ लें और इसके अर्थ का मनन करते हुए आत्म मंथन करें तो यह सत्य को समझने व मोक्ष प्राप्ति कराने में सक्षम है। इसलिए इसे मोक्ष शास्त्र के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिणामूर्ति भगवान शिव का वह रूप् हैं जिन्हें संसार के युवा गुरु के रूप् में जाना जाता है। उन्हें दक्षिणामूर्ति इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका मुंह दक्षिण की ओर है। दक्षिणामूर्ति शब्द का अर्थ कुशल भी होता है। इसलिए दक्षिणामूर्ति वो हैं जो कठिनतम विचारों को कुशलतम तरीके से पढ़ा सकते हैं। भगवान शिव का यह रूप सर्वश्रेष्ठ का जिक्र किया गया है उसी ज्ञान त्रको यह स्तोत्र प्रकटित करता है। इस स्तोत्र को काव्य का सर्वोत्कृष्टतम रूप भी माना गया है। श्री शंकराचार्य की समस्त कृतियों में यह कृति वास्तव में ही एक चैंधियाने वाला रंगीन रत्न है। श्री शंकराचार्य ने न केवल अपने शिष्यों को उपदेश दिए बल्कि इस बात का भी समुचित ध्यान रखा कि उनका ज्ञान उनकी कृतियों के माध्यम से भावी पीढ़ियों तक पहुंच सके। जो विद्वान साधक श्रीमदभगवद्गीता, उपनिषद, नारद भक्ति सूत्र, योग सूत्र व ध्यान की बारीकियों की जानकारी प्राप्त करके आध्यात्मिक साधना के मार्ग पर अग्रसर हो रहे हैं वे श्रेष्ठ साधक बनकर इस स्तोत्र में उजागर किए गए गुप्त ज्ञान को समझने के लिए सुपात्र हैं क्योंकि साधना साधक को इन गुप्त रहस्यों को समझने के योग्य बनाती है। इस स्तोत्र में गहन व जटिल दर्शन का वर्णन है इसलिए इस स्तोत्र को समझने हेतु वेदांत की अच्छी समझ व आध्यात्मिक परिपक्वता परमावश्यक है। जानकारी, समझ और ज्ञान का साकार रूप है। ये योग, संगीत, बुद्धिमत्ता व शीघ्रफलदायी ध्यान के ईश्वर, ज्ञानमुद्रा को धारण करने वाले, अज्ञानता के नाशक व ज्ञानदाता हैं। हिंदु परंपरा गुरु को विशेष सम्मान देती है और इसमें दक्षिणामूर्ति को सर्वश्रेष्ठ गुरु माना जाता है। ज्ञान प्राप्ति के लिए अहंकार व भ्रम से निर्लिप्त होना परमावश्यक है। जब मनुष्य गुरु कृपा से अहंकार भ्रम व पूर्वजन्म संचित पापकर्मों के फल से मुक्त होता है तो उसे ज्ञान की प्राप्ति होने लगती है इसलिए ज्ञान प्राप्ति के मार्ग में अहंकार व भ्रम को सबसे बड़ा अवरोध माना गया। दक्षिणामूर्ति स्तोत्र का प्रकट रूप् से उद्देश्य है श्री दक्षिणामूर्ति की उपासना और गौण उद्देश्य है किसी भी गुरु की ईश्वर के रूप में आराधना। गुरु भक्ति का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष की नहीं बल्कि ईश्वर की गुरु के रूप में आराधना है। शंकराचार्य के समय में भी इस स्तोत्र के गूढ़ अर्थ व रहस्य को समझना कठिन माना जाता था इसलिए इनके सर्वप्रमुख शिष्य सुरेश्वराचार्य ने इसके ऊपर मानसोल्लास नामक भाष्य लिखा। बाद में इस भाष्य के ऊपर बहुत सी भाष्य व टीकाएं लिखी गईं। कहते हैं कि गुरु बिना ज्ञान नहीं होता। इस लोकोक्ति में जिस ज्ञान का जिक्र किया गया है उसी ज्ञान को यह स्तोत्र प्रकटित करता है।इस स्तोत्र को काव्य का सर्वोत्कृष्टतम रूप भी माना गया है। श्री शंकराचार्य की समस्त कृतियों में यह कृति वास्तव में ही एक चैंधियाने वाला रंगीन रत्न है। श्री शंकराचार्य ने न केवल अपने शिष्यों को उपदेश दिए बल्कि इस बात का भी समुचित ध्यान रखा कि उनका ज्ञान उनकी कृतियों के माध्यम से भावी पीढ़ियों तक पहुंच सके। जो विद्वान साधक श्रीमदभगवद्गीता, उपनिषद, नारद भक्ति सूत्र, योग सूत्र व ध्यान की बारीकियों की जानकारी प्राप्त करके आध्यात्मिक साधना के मार्ग पर अग्रसर हो रहे हैं वे श्रेष्ठ साधक बनकर इस स्तोत्र में उजागर किए गए गुप्त ज्ञान को समझने के लिए सुपात्र हैं क्योंकि साधना साधक को इन गुप्त रहस्यों को समझने के योग्य बनाती है। इस स्तोत्र में गहन व जटिल दर्शन का वर्णन है इसलिए इस स्तोत्र को समझने हेतु वेदांत की अच्छी समझ व आध्यात्मिक परिपक्वता परमावश्यक है।
best astrologer in India, best astrologer in Chhattisgarh, best astrologer in astrocounseling, best Vedic astrologer, best astrologer for marital issues, best astrologer for career guidance, best astrologer for problems related to marriage, best astrologer for problems related to investments and financial gains, best astrologer for political and social career,best astrologer for problems related to love life,best astrologer for problems related to law and litigation,best astrologer for dispute
No comments:
Post a Comment