Tuesday 29 March 2016

खरगोन का श्री नवग्रह मंदिर

खरगोन का श्री नवग्रह मंदिर संपूर्ण भारतवर्ष में अपना ऐतिहासिक महत्व रखता है। इस मंदिर में माता बगलामुखी देवी स्थापित हैं। यहां नवग्रहों की शांति के लिए माता पीताम्बरा की पूजा अर्चना एवं आराधना की जाती है, इसलिए यह पीताम्बरा ग्रह शांति पीठ के नाम से विख्यात है। नवग्रह देवता को नगर के देवता व स्वामी के रूप में पूजा जाता है, इसलिए खरगोन को नवग्रहों की नगरी कहते हैं। इस ऐतिहासिक मंदिर में प्रतिवर्ष नवग्रह मेला लगता है एवं मेले के अंतिम गुरुवार को नवग्रह की पालकी यात्रा निकाली जाती है। खरगोन नगर मध्यप्रदेश का अति विकासशील जिला है। यह इंदौर से 140 किमी, खंडवा से 88 किमी, ओंकारेश्वर से 87 किमी, सेंधवा से 67 किमी तथा बावनगजा से 96 किमी की दूरी पर स्थित है। श्री नवग्रह मंदिर कुंदा नदी तट पर स्थित है। मंदिर की स्थापना वर्तमान पुजारी के आदि पूर्वज श्री शेषाप्पा सुखावधानी वैरागकर ने लगभग 600 वर्ष पूर्व की। शेषाप्पा जी ने कुन्दा नदी के तट पर सरस्वती कुंड, सूर्य कुंड, विष्णु कुंड, शिव कुंड एवं सीताराम कुंड का निर्माण किया और इनके समीप तपस्या करके माता पीताम्बरा को प्रसन्न कर अनेक सिद्धियां प्राप्त कीं। फिर इन कुंडों के सम्मुख ही नवग्रह मंदिर की स्थापना की। मंदिर के रखरखाव का संपूर्ण प्रबंधन मंदिर के संस्थापक शेषाप्पा जी की छठी पीढ़ी के वंशज पं. लोकेश दत्तात्रय की देखरेख में चलता है। मंदिर में श्री ब्रह्मा के रूप में माता सरस्वती, मुरारी के रूप में भगवान राम तथा त्रिपुरांतकारी के रूप में श्री पंचमुखी महादेव तथा गर्भगृह में नवग्रह विराजमान हैं। गर्भगृह के मध्य में पीताम्बरा ग्रहशांति पीठ व सूर्यनारायण मंदिर तथा परिक्रमा स्थली में अन्य ग्रहों के दर्शन होते हैं। पीताम्बरा ग्रहशांति पीठ में माता बगलामुखी देवी व सिद्ध ब्रह्मास्त्र स्थापित हैं। सूर्यनारायण मंदिर में सात घोड़ों के रथ पर सवार भगवान सूर्यनारायण एवं सिद्ध अष्टदल सूर्ययंत्र स्थापित हैं। परिक्रमा स्थली में पूर्व दिशा में बुध, शुक्र व चंद्र, दक्षिण में मंगल, पश्चिम में केतु, शनि व राहु और उत्तर में गुरु ग्रह विराजमान हैं। सभी ग्रहों की स्थापना दक्षिण भारतीय पद्धति व नवग्रह दोषनाशक यंत्र के आधार पर की गई है। सभी ग्रह अपने-अपने वाहन व ग्रहमंडल सहित स्थापित हैं। सूर्य नारायण ग्रहों के राजा हैं, इसलिए इस मंदिर में सूर्य ग्रह को प्रधान रखा गया है। यह मंदिर संपूर्ण भारतवर्ष में एकमात्र सूर्यप्रधान नवग्रह मंदिर है। यहां नवग्रहों की शांति के लिए माता बगलामुखी की पूजा-अर्चना व आराधना होती है। नवरात्र पर यहां विशेष पूजन-अभिषेक होता है। पीताम्बरा ग्रह शांति पीठ श्री नवग्रह मंदिर के गर्भगृह के मध्य भगवान श्री सूर्यदेव विराजमान हैं। सूर्यदेव के पीछे माता बगलामुखी देवी विराजमान हैं। श्री बगलामुखी देवी के दायें हाथ में गदा और बायें हाथ में बकासुर राक्षस की जिह्वा है। उनका बायां पैर राक्षस के दायें पैर पर है। माता के इस स्वरूप को द्विभुज वाला स्वरूप कहा जाता है। माता बगलामुखी एवं श्री सूर्यदेव के मध्य श्री ब्रह्मास्त्र स्थापित है। यह ब्रह्मास्त्र माता बगलामुखी के यंत्र के रूप में वृत्त, षटकोण, अष्टकोण, चतुष्कोण, त्रिकोण, बिंदु एवं परिधि सहित पत्थर पर उकेरा गया है। जब माता बगलामुखी का अवतरण हुआ तभी माता के तेज से समस्त जगत को स्तंभित करने वाली ब्रह्मास्त्र विद्या उत्पन्न हुई। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर मंदिर में माता की स्थापना के साथ साथ ब्रह्मास्त्र की स्थापना भी की गई। श्री बगलामुखी देवी के साथ ब्रह्मास्त्र एकमात्र इसी मंदिर में देखने को मिलता है। माता बगलामुखी के दरबार में पूजा करने से नवग्रहों की शांति होती है। शत्रुओं से बचाने वाली माता पीतांबरी प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याएं क्रमशः काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला उल्लिखित हैं। माता बगलामुखी अष्टम महाविद्या हैं। ये शत्रुओं का नाश करने वाली, युद्ध, वाद-मुकदमों व प्रतियोगिता में विजय दिलाने वाली, प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करने वाली, चुनाव में विजय दिलाने वाली, विश्व कल्याण करने वाली, वांछित स्थान पर स्थानांतरण कराने वाली तथा विशेष रूप से नवग्रहों के दुष्प्रभाव को समाप्त करने वाली देवी हैं। ये देवी बगलामुखी तंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी साधना से प्रत्येक असंभव कार्य को संभव बनाया जा सकता है। माता बगलामुखी का पूजन-अर्चन ब्रह्मास्त्र की शक्ति का कार्य करता है। माता बगलामुखी की आराधना पीतवर्णा होेने के कारण यह देवी पीताम्बरा कहलाती हैं। माता को अर्पित की जाने वाले वस्त्र, नैवेद्य, फल आदि समस्त सामग्री पीले रंग की होनी चाहिए। साधक को भी पीले वस्त्र धारण कर ही माता की आराधना मंगलवार को करनी चाहिए। नवरात्र में यहां 9 दिनों तक माता का विशेष रूप से अभिषेक व शृंगार एवं महा आरती की जाती है। भक्तगण नवरात्र में मंदिर में स्थापित माता का पूजन-अर्चन व अभिषेक करते हैं एवं सर्वत्र यश, विजय, लाभ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ग्रहशांति के उद्देश्य से देवी के दर्शन हेतु देश के विभिन्न भागों से श्रद्धालुगण आते हैं।

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