Friday 22 April 2016

कुंडली से जाने शिक्षा के क्षेत्र में सफलता या विफलता

प्रत्येक व्यक्ति का भावी जीवन स्तर उसके द्वारा अध्ययनकाल में किया गया परिश्रम ही तय करता है। अध्ययनकाल में यदि उसका परीक्षा परिणाम निरंतर अच्छा रहता है, तो प्रायः यह निश्चित होता है कि वह व्यक्ति आगे जाकर सुखी जीवन व्यतीत करेगा और उसका जीवन स्तर अच्छा होगा। यही कारण है, शिक्षा के प्रति वर्तमान समय में जागरूकता बढ़ती जा रही है। प्रत्येक अभिभावक की यह ईच्छा होती है कि उसकी संतान जीवन में अच्छे मुकाम पर पहुंचे और उसका नाम रोशन करे, लेकिन इस उद्देश्य की प्राप्ति प्रत्येक विद्यार्थी के लिए आसान नहीं होती है। शिक्षा के इतना महत्वपूर्ण होने पर भी देखा जाता है कि सभी विद्यार्थी शिक्षा के क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते हैं। एक विद्यार्थी की कई समस्याएं हो सकती हैं। जैसे अध्ययन में मन नहीं लगना, ध्यान एकाग्र नहीं होना, स्मरण शक्ति कम होना, अध्ययनेतर गतिविधियों में अधिक लिप्त रहना आत्मविश्वास की कमी होना, मेहनत करने पर भी अनुकूल परिणाम प्राप्त नहीं होना इत्यादि। यदि ऐसी किसी समस्या से आप अथवा आपकी संतान रूबरू हो रही है तो ऐसी स्थिति में ज्योतिष आपके लिए एक अच्छे सहायक का कार्य कर सकती है। किसी व्यक्ति के स्वभाव, उसकी शिक्षा, उसके भावी जीवन इत्यादि का निर्णय उसकी जन्मपत्रिका देखकर किया जा सकता है। यहां ज्योतिष के अनुसार उक्त स्थितियों से संबंधित कतिपय योगों का उल्लेख किया जा रहा है। शिक्षा के लिए जन्मकुंडली में पंचम भाव, पंचमेश, द्वितीय भाव, द्वितीयेश, चतुर्थेश, गुरु व बुध इनका मुख्य रूप से विचार करना चाहिए। यदि इनमें से अधिकतर की स्थिति शुभ नहीं है, अर्थात नीच, अस्तगत, शत्रुगत या पापकर्तरीगत है तो प्रायः ऐसे विद्यार्थियों का अध्ययन में मन नहीं लगता है। बहुत प्रयास करने पर भी वे एक सीमा तक ही अध्ययन कर पाते हैं। लग्न से जातक की प्रकृति, उसके स्वभाव एवं आचार विचार का पता लगाया जाता है। यदि शनि का लग्नेश पर या लग्न पर प्रभाव हो व राहु की भी लग्न या लग्नेश पर दृष्टि हो तो प्रायः ऐसे विद्यार्थी अधिक आलसी होते हैं। सुबह उठकर पढ़ना उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। पढ़ते समय भी उन्हें अध्ययन के दौरान ही नींद आ जाती है। यदि लग्न एवं लग्नेश दोनों ही चर राशियों में एवं चंद्रमा पाप पीड़ित या निर्बल हो तो अध्ययन में ध्यान एकाग्र नहीं हो पाता है, किताब तो सामने होती है, लेकिन ध्यान कहीं और ही रहता है। घंटों पढ़ने के बाद भी पता चलता है कि याद तो कुछ हुआ ही नहीं। जन्म कुंडली में लग्नेश यदि अष्टम भाव में हो, निर्बल हो, पाप पीड़ित हो या अस्तगत हो अथवा सूर्य नीच राशिगत हो या शनि के साथ हो, तो आत्मविश्वास बहुत कम होता है। ऐसे विद्यार्थी प्रायः कक्षा में सबसे पीछे बैठते हैं। जन्मकुंडली में बुध एवं गुरु ये दोनों अध्ययन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। यदि ये पापकर्तरी योग में हों, निर्बल हों अथवा अशुभ स्थिति में हों या पंचम भाव में पाप ग्रह स्थित हो, तो स्मरण शक्ति कमजोर होती है और विषय वस्तु याद करने के बाद भी परीक्षा आने तक मस्तिष्क से गायब सी हो जाती है। अध्ययनकाल के दौरान शनि या राहु की अंतर्दशा चल रही हो एवं जन्मपत्रिका में भी इनकी स्थितियां अनुकूल नहीं हो, शुक्र, मंगल की युति जन्मकुंडली में हो, राहु मंगल का संबंध लग्न अथवा पंचम भाव में बन रहा हो, तो ऐसे जातक अध्ययन काल में अध्ययन की अपेक्षा अन्य असामयिक एवं अनैतिक गतिविधियों में अधिक संलग्न रहते हैं। पढ़ाई इनके लिए दूसरे नंबर का कार्य होता है। अध्ययन के दौरान यदि साढ़ेसाती अथवा ढैया चल रही हो, राहु-मंगल या शुक्र मंगल की युति लग्न, पंचम या ग्यारहवें भाव में हो, तो ऐसे जातक प्रायः कुसंगति में पड़कर अध्ययन पर ध्यान नहीं देते हैं। यह भी देखा गया है कि कुशाग्र बुद्धि से युक्त होने पर भी ऐसे जातक कुसंगति में पड़कर पढ़ाई से भागने लगते हैं। द्वितीय भाव में या लग्न में राहु या शनि स्थित हो और चंद्रमा भी राहु, शनि या केतु के साथ स्थित हो, साथ ही पंचमेश एवं लग्नेश भी पाप प्रभाव में हो तो विद्यार्थियों को अध्ययनकाल में सिगरेट, गुटका या अन्य दुव्र्यसन शीघ्र अपनी ओर खींच लेते हैं। इसके अतिरिक्त शुक्र यदि अधिक बली हो, चंद्रमा या मंगल से संबंध बनाए, मंगल पंचम या तृतीय भाव में स्थित हो एवं बुध-गुरु निर्बल हो, तो ऐसे विद्यार्थी अध्ययनकाल में फिल्म देखने में अथवा घूमने-फिरने में अपना समय बर्बाद करते हैं और इनका पढ़ाई में मन नहीं लगता है। लग्न व लग्नेश चर या द्विस्वभाव राशि में हो और शनि या राहु लग्न में स्थित हो, तो ऐसे विद्यार्थी प्रायः अध्ययन के प्रति लापरवाह होते हैं, अध्ययन कार्य को गंभीरता से नहीं लेते हैं। आलस्य से युक्त होते हैं और परीक्षा के दिनों में ही पढ़कर परीक्षा पास करना इनकी फितरत होती है। जन्मकुंडली में गुरु यदि नीच राशिगत हो, निर्बल हो या पाप प्रभाव में हो एवं लग्नेश की भी ऐसी ही स्थिति हो, तो विद्यार्थी निःसंदेह अध्ययन करता है अर्थात उसमें दूरदर्शिता की कमी होती है। वह अध्ययन तो करता है लेकिन अध्ययन से संबंधित उद्देश्यों या लक्ष्यों का निर्धारण वह नहीं करता है। भाग्य उसे जहां ले जाता है, वहीं वह चला जाता है। शुक्र और चंद्रमा यदि त्रिक भावगत हों, नीच राशिगत हों या पाप प्रभाव मंे हो एवं मंगल की अपेक्षा शनि अधिक बली हो, तो ऐसे विद्यार्थी व्यवस्थित ढंग से न तो रहते हैं और न ही अध्ययन करते हैं। उनका अध्ययन कक्ष प्रायः अस्त व्यस्त ही रहता है। अध्ययन का कोई निश्चित समय भी नहीं होता है।

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