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Sunday 31 May 2015

घर में बगीचे वास्तु की नज़र से



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वास्तु ऐसा माध्यम है जिससे आप जान सकते हैं कि किस प्रकार आप अपने घर को सुखी व समृद्धशाली बना सकते हैं। नीचे वास्तु सम्मत ऐसी ही जानकारी दी गई है जो आपके लिए उपयोगी होगी-
1- ऐसे मकान जिनके सामने एक बगीचा हो, भले ही वह छोटा हो, अच्छे माने जाते हैं, जिनके दरवाजे सीधे सड़क की ओर खुलते हों क्योंकि बगीचे का क्षेत्र प्राण के वेग के लिए अनुकूल माना जाता है। घर के सामने बगीचे में ऐसा पेड़ नहीं होना चाहिए, जो घर से ऊंचा हो।
2- वास्तु नियम के अनुसार हर दो घरों के बीच खाली जगह होना चाहिए। हालांकि भीड़भाड़ वाले शहर में कतारबद्ध मकान बनाना किफायती होता है लेकिन वास्तु के नियमों के अनुसार यह नुकसानदेय होता है क्योंकि यह प्रकाश, हवा और ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के आगमन को रोकता है।
3- आमतौर पर उत्तर दिशा की ओर मुंह वाले कतारबद्ध घरों में तमाम अच्छे प्रभाव प्राप्त होते हैं जबकि दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाले मकान बुरे प्रभावों को बुलावा देते हैं। हालांकि पूर्व और पश्चिम की ओर मुंह वाले कतारबद्ध मकान अनुकूल स्थिति में माने जाते हैं क्योंकि पश्चिम की ओर मुंह वाले मकान सामान्य ढंग के न्यूट्रल होते हैं।
4- पूर्व की ओर मुंह वाले घर लाभकारी होते हैं। कतार के आखिरी छोर वाले मकान लाभकारी हो सकते हैं यदि उनका दक्षिणी भाग किसी अन्य मकान से जुड़ा हो या पूरी तरह बंद हो। ऐसी स्थिति में जहां कतारबद्ध घर एक-दूसरे के सामने हों, वहां सीध में फाटक या दरवाजे लगाने से बचना चाहिए।
5- यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दक्षिण की ओर मुंह वाले घर यदि सही तरीके से बनाए जाएं तो लाभकारी परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। घर और वास्तु का गहरा नाता है। यही वजह है कि अपने सपनों का घर बनवाते हुए लोग आर्किटेक्ट से सुझाव लेना नहीं भूलते। कई बार वास्तु के हिसाब से चूक होने पर लोग घर में तोड़-फोड़ कराकर इसे दुरुस्त करने में हजारों-लाखों रुपये बर्बाद कर देते हैं। शायद आपको मालूम न हो, इस स्थिति में पेड़-पौधे ये नुकसान रोक सकते हैं। ज्योतिष और वास्तु में ये घर को सकारात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत करने वाले बताए गए हैं। बस जरूरत है थोड़ी जानकारी और प्रयास की। यदि आपके घर में वास्तु दोष है तो इसे मिटाने के लिए हरियाली का दामन थामना आपके लिए हर लिहाज से बेहतर विकल्प है।
ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अनुसार जीवनदायिनी प्रकृति के सहारे आशियाने को सेहत, सौंदर्य और समृद्धि से सराबोर किया जा सकता है। अगर मकान के खुले स्थान पर बगीचा लगा दें तो पूरा घर तरोताजा हवा एवं प्राकृतिक सौंदर्य से महक उठेगा। वास्तुशास्त्र के नजर से पेड़-पौधे उगाते हैं तो घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी होगा। चूंकि पेड़-पौधों जीवित होते हैं, इसलिए इनकी जीवंत ऊर्जा का सही उपयोग हमारे शरीर और चित्त को प्रसन्न रख सकता है। बस थोड़ा ध्यान रखना होगा कि पेड़-पौधे वास्तुशास्त्र के लिहाज से लगाए जाएं।
वास्तु और पौधे-
वास्तु में माना जाता है कि सकारात्मक ऊर्जा तरंगें हमेशा पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तथा पूर्वोत्तर से दक्षिण-पश्चिम में नैऋत्य कोण की ओर बहती है। ऐसे में ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व एवं उत्तर की ओर हल्के, छोटे व कम घने पेड़-पौधे उगाए जाएं। ताकि घर में आने वाली सकारात्मक ऊर्जा के रास्ते में कोई अवरोध न हो।
तुलसी बेहद उपयोगी-
इन दिशाओं से होकर घर में आने वाली हवा में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के खातिर तुलसी के पौधे बेहद उपयोगी माने जाते हैं। वास्तु के लिहाज से माना जाता है कि तुलसी के पौधों से होकर आने वाली वायु में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है साथ ही ये शुद्ध व स्वास्थ्यवर्धक भी हो जाती है।
इसके अतिरिक्त इन दिशाओं में अन्य औषधीय पौधों का रोपण भी वास्तु में लाभकारी बताया गया है। घर के पूर्व, उत्तर और पूर्वोत्तर में पुदीना, लेमनग्रास, खस, धनिया, सौंफ, हल्दी, अदरक आदि की उपस्थिति भी तन-मन को ताजगी देते हुए चुस्ती-फुर्ती और आरोग्य देने वाली मानी जाती है।
मनी प्लांट और क्रिसमस ट्री-
मनी प्लांट और क्रिसमस ट्री भी लोग घर में लगाते हैं। दोनों पौधे वास्तु की दृष्टि से समृद्धि कारक माने जाते हैं। शहर में कई परिवारों ने इन पौधों को अपने घरों में लगा रखा है। क्रिसमस ट्री इसाई परिवारों ने अपने घरों में तो मनी प्लांट का पौधा हर धर्म और जाति के लोगों के घरों में देखा जा सकता है।
खूबसूरत बालकनी-
अपने मकान के मुख्य द्वार के आसपास, पूर्व, उत्तर और पूर्वोत्तर में बालकनी पर गुलाब, बेला, चमेली, ग्लेडियोलाई, कॉसमोस, कोचिया, जीनिया, गेंदा और सदाबहार जैसे फूलों के पौधे लगाए जा सकते हैं। अगर जगह कम हो तो स्टैंड वाले गमले में इन्हें लगाया जा सकता है।
पश्चिम या दक्षिणमुखी घर होने पर-
घर पश्चिम और दक्षिणमुखी होने की दशा में उसके आगे या मुख्य द्वार की ओर बड़े-बड़े पेड़-पौधों समेत लताओं वाले पौध लगाए जा सकते हैं।
* पेड़ों को घर की दक्षिण या पश्चिम दिशा में लगाएं। पेड़ सिर्फ एक दिशा में ही न लग कर इन दोनों दिशाओं में लगे होने चाहिए।
* एक तुलसी का पौधा घर में जरूर लगाएं। इसे उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्वी दिशा या फिर घर के सामने भी लगा सकते हैं।
* मुख्य द्वार पर पेड़ कभी भी न लगाएं। श्वेतार्क मुख्य द्वार पर लगाना वास्तु की दृष्टि से शुभ फलदायक होता है।
* नीम, चंदन, नींबू, आम, आवला, अनार आदि के पेड़-पौधे घर में लगाए जा सकते हैं।
* काटों वाले पौधे नहीं लगाएं। गुलाब के अलावा अन्य काटों वाले पौधे घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करते हैं।
* ध्यान रखें कि आपके आगन में लगे पेड़ों की गिनती 2, 4, 6, 8.. जैसी सम संख्या में होनी चाहिए, विषम में नहीं।
लोग अपने घरों की फुलवारी में या लॉन में छोटे-छोटे पौधे लगाया करते हैं। भवन में छोटे पौधों का अपने आप में बहुत महत्व होता है। घर में लगाए जाने वाले छोटे पौधों में कई पौधे ऐसे होते हैं जिनका औषधीय महत्व है। साथ ही उनका रसोई या सौंंदर्यवद्र्धन संबंधी महत्व भी है।
आज के समय में स्थान के अभाव में प्राय: लोग गमलों में ही पौधे लगाते हैं या लॉन तथा ड्राइंगरूम में सजाकर रख देते हैं। इन पौधों एवं लताओं की वजह से छोटे फ्लैटों में निवास करने वाले खुद को प्रकृति के नजदीक महसूस करते हैं एवं स्वच्छ हवा तथा स्वच्छ वातावरण का आनंद उठाते हैं।
तुलसी का पौधा इसी प्रकार का एक छोटा पौधा है जिसके औषधीय एवं आध्यात्मिक दोनों ही महत्व हैं। प्राय: प्रत्येक हिन्दू परिवार के घर में एक तुलसी का पौधा अवश्य होता है। इसे दिव्य पौधा माना जाता है। माना जाता है कि जिस स्थान पर तुलसी का पौधा होता है वहां भगवान विष्णु का निवास होता है। साथ ही वातावरण में रोग फैलाने वाले कीटाणुओं एवं हवा में व्याप्त विभिन्न विषाणुओं के होने की संभावना भी कम होती है। तुलसी की पत्तियों के सेवन से सर्दी, खांसी, एलर्जी आदि की बीमारियां भी नष्ट होती हैं।
किस दिशा में लगाए जाएं कौन से पौधे:
वास्तुशास्त्र के अनुसार छोटे-छोटे पौधों को घर की किस दिशा में लगाया जाए ताकि उन पौधों के गुणों को हम पा सकें, इसकी विवेचना यहां की जा रही है।
1. तुलसी के पौधों को यदि घर की उत्तर-पूर्व दिशा में रखा जाए तो उस स्थान पर अचल लक्ष्मी का वास होता है अर्थात उस घर में आने वाली लक्ष्मी टिकती है।
2. घर की पूर्वी दिशा में फूलों के पौधे, हरी घास, मौसमी पौधे आदि लगाने से उस घर में भयंकर बीमारियों का प्रकोप नहीं होता।
3. पान का पौधा, चंदन, हल्दी, नींबू आदि के पौधों को भी घर में लगाया जा सकता है। इन पौधों को पश्चिम-उत्तर के कोण में रखने से घर के सदस्यों में आपसी प्रेम बढ़ता है।
4. घर के चारों कोनों को ऊर्जावान बनाने के लिए गमलों में भारी प्लांट को लगाकर भी रखा जा सकता है। दक्षिण -पश्चिम कोने में अगर कोई भारी प्लांट है तो उस घर के मुखिया को व्यर्थ की चिंताओं से मुक्ति मिलती है।
5. कैक्टस जैसे रुप के पौधे जिनमें नुकीले कांटे होते हैं उन्हें घर के अंदर लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित नहीं।
6. पलाश, नागकेशकर, अरिष्ट, शमी आदि का पौधा घर के बगीचे में लगाना शुभ होता है। शमी का पौधा ऐसे स्थान पर लगाना चाहिए जो घर से निकलते समय दाहिनी ओर पड़ता हो।
7. घर के बगीचे में पीपल, बबूल, कटहल आदि का पौधा लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार ठीक नहीं। इन पौधों से युक्त घर के अंदर हमेशा अशांति का अम्बार लगा ही रहता है ।
8. फूल के पौधों में सभी फूलों, गुलाब, रात की रानी, चम्पा, जास्मीन आदि को घर के अंदर लगाया जा सकता है किन्तु लाल गेंदा और काले गुलाब को लगाने से चिंता एवं शोक की वृद्धि होती है।
9. शयनकक्ष के अंदर पौधे लगाना अच्छा नहीं माना जाता। बेल (लता) वाले पौधों को अगर शयनकक्ष के अंदर दीवार के सहारे चढ़ाकर लगाया जाता है तो इससे दाम्पत्य संबंधों में मधुरता एवं आपसी विश्वास बढ़ता है।
10. अध्ययन कक्ष के अंदर सफेद फूलों के पौधे लगाने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। अध्ययन कक्ष के पूर्व एवं दक्षिण के कोने में गमले को रखा जाना चाहिए।
11. रसोई घर के अंदर गमलों में पुदीना, धनिया, पालक, हरी मिर्च आदि के छोटे-छोटे पौधों को लगाया जा सकता है। वास्तुशास्त्र एवं आहार विज्ञान के अनुसार जिन रसोईघरों में ऐसे पौधे होते हैं वहां मक्खियां एवं चींटियां अधिक तंग नहीं करतीं तथा वहां पकने वाली सामग्री सदस्यों को स्वस्थ रखती है।
12. घर के अंदर कंटीले एवं वैसे पौधे जिनसे दूध निकलता हो, नहीं लगाने चाहिएं। ऐसे पौधों के लगाने से घर के अंदर वैमनस्य का भाव बढ़ता है एवं वहां हमेशा अशांति का वातावरण बना रहता है।
13. बोनसाई पौधों को घर के अंदर लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित नहीं क्योंकि बोनसाई को प्रकृति के विरुद्ध छोटा कद प्रदान किया जाता है। जिस प्रकार बोनसाई का विस्तार संभव नहीं होता, उसी प्रकार उस घर की वृद्धि भी बौनी ही रह जाती है।
१४. छोटे पौधों को उत्तर या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। इस बात का खयाल रखें कि उत्तर-पूर्व में खुला स्थान बना रहे। लम्बे वृक्षों को बगीचे/भवन के पश्चिम, दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगाएं। इन्हें लगाते हुए यह खयाल रखें कि ये भवन की इमारत से पर्याप्त दूरी पर हों व सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच इनकी छाया इमारत पर न पड़े।
१५. विशाल दरख्तों जैसे पीपल, नीम आदि को भवन से पर्याप्त दूरी पर लगाना चाहिए, क्योंकि इनकी जड़ें भवन की नींव को क्षति पहुंचा सकती हैं। इस बात का भी खयाल रखें कि इन दरख्तों की छाया सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच इमारत पर न पड़े।
१६. कांटेदार पौधों को घर में कभी नहीं लगाना चाहिए क्योंकि ऐसे पौधे नकारात्मक ऊर्जा के वाहक होते हैं। खासकर कैक्टस तो बिल्कुल भी नहीं। इनकी घर में उपस्थिति अशुभ मानी जाती है। अगर आपके घर में कोई कांटेदार पौधा है भी, तो उसे तुरंत उखाड़ फेंकें।
१७. लताओं यानी बेलनुमा पौधों को आंगन या घर की दीवार पर न फैलने दें। इन्हें बगीचे में ही लगाएं और इन्हें अपनी सहायता से आप फैलने दें, लेकिन इन्हें बढऩे के लिए घर या आंगन की दीवार का सहारा न दें। मनी प्लांट अवश्य घर के भीतर लगाया जा सकता है। जो वृक्ष सांप, मधुमक्खी, कीड़े, चीटिंयों, उल्लू आदि को आमंत्रित करते हैं, ऐसे वृक्षों को बगीचे में न लगाएं।


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Saturday 30 May 2015

वास्तु अनुसार कैसे बनाएँ अपना रसोई घर

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हमारे घर में किचन किस दिशा में स्थित है, वह कौन सा कोण बना रहा है और वह वास्तु के अनुरूप है कि नहीं। क्या कारण है कि घर में सबकुछ है पर शांति नहीं, संतोष नहीं। वैसे आप को बता दें कि घर की खुशहाली किचन से ही होकर निकलती है, सो आज हम आपको बताते हैं कैसी होनी चाहिए आपके किचन का वास्तु:
हमारी प्राचीन वैदिक संस्कृति का अभिन्न अंग वास्तु शास्त्र पूर्ण रूप से प्रकृति की लाभकारी ऊर्जा पर आधारित वैज्ञानिक तथ्यों एवं सिद्धान्तों पर आधारित है। प्राकृतिक ऊर्जा एवं पंचतत्वों के प्रभाव का गहन अध्ययन करने के उपरान्त ही हमारे ऋषि-मुनियों ने वास्तु शास्त्र के सूत्रों की रचना मानव जाति के कल्याण की मूलभूत भावना से की थी, जिनका लाभ मनुष्य आज हजारो वर्षों के बाद भी आसानी से प्राप्त कर सकता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार पाकशाला (रसोईघर/ किचन) का प्रावधान, अत्यन्त सूक्ष्म परीक्षणों के पश्चात ही घर की दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशा में किया गया। पूर्व से प्राप्य अवरक्त तथा दक्षिण से प्राप्य पराबैंगनी किरणों का उचित सामंजस्य, दक्षिण-पूर्व स्थित रसोई में न सिर्फ वहां प्रात:काल से लेकर मध्याह्न (भोजन बनाने का समय) तक स्वास्थ्यप्रद प्रकाश एवं ऊर्जा प्रदान करता है बल्कि पाकशाला में आसानी से फैल सकने वाले कीटाणुओं, वायरस, सीलन एवं दुर्गन्ध से भी रक्षा करता है। पूर्व एवं उत्तर दिशा की खिड़कियों से तैलीय गन्ध एवं धुंआ भी बगैर घर के अन्य भागों को प्रभावित किये आसानी से बाहर निकल जाते हैं।
वस्तुत: किचन दक्षिण-पूर्व के अलावा कुछ अन्य दिशाओं में भी आसानी से बनाया जा सकता है एवं वहां ऊर्जा के उचित प्रवाह के माध्यम से सम्पूर्ण लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं। आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) के अलावा मध्य दक्षिण एवं वायव्य के किचन भी किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाते हैं बशर्ते वहां की अन्य व्यवस्था वास्तु नियमों के अनुसार की गई हो। रसोईघर आपके घर का पावर हाऊस है, जहां गृहिणी का अधिकांश समय बीतता है एवं वहाँ बने भोजन को परिवार के सभी सदस्य ग्रहण करते हैं, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव उनके तन तथा मन पर पड़ता है एवं वास्तु अनुरूप रसोईघर में बने भोजन से तन एवं मन स्वस्थ तथा प्रसन्न रहते हैं, तो धन भी भला पीछे कैसे रह सकता है?
आग्नेय कोण: इस कोण में रसोईघर होना काफी शुभ माना जाता है। इससे घर की महिलाएं प्रसन्न रहती हैं और सभी तरह के सुखों का घर में वास होता है।
नैत्रत्य कोण: इस कोण में रसोई होने पर गृहस्वामिनी उत्साहित एंव उर्जायुक्त रहती है।
वायव्य कोण: इस कोण में रसोई होने पर गृहस्वामी आशिक मिजाज होता है। मालिक की बदनामी का भी भय रहता है और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से रूबरू होना पड़ सकता है।
ईशान कोण: इस कोण में रसोईघर होने से पारिवारिक सदस्यों को कोई खास सफलता नहीं मिलती है और घर में क्लेश रहने की संभावना बनी रहती है।
कौन सी दिशा सही है रसोईघर के लिए:
रसोईघर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त दिशा दक्षिण-पूर्व होती है। अत: इस दिशा में रसोई घर के निर्माण से घर में शान्ति और समृद्धि बनी रहती है
रसोई वास्तु के अनुसार: किचन की ऊँचाई 10 से 11 फीट होनी चाहिए और गर्म हवा निकलने के लिए वेंटीलेटर होना चाहिए। यदि 4-5 फीट में किचन की ऊँचाई हो तो महिलाओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। कभी भी किचन से लगा हुआ कोई जल स्त्रोत नहीं होना चाहिए। किचन के बाजू में बोर, कुआँ, बाथरूम बनवाना अवाइड करें, सिर्फ वाशिंग स्पेस दे सकते हैं।
रसोई को घर के आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) में बनाना चाहिए क्योंकि इसे ही अग्नि का स्थान माना गया है। यहां रसोई होने से अग्नि देव नित्य प्रदीप्त रहते हैं और घर का संतुलन बना रहता है। किंतु, इससे यह भी देखा गया है कि अक्सर दिन में तीन या उससे अधिक बार भोजन बनता है यानी खर्च बना ही रहता है। ऐसे में एकदम अग्निकोण को छोड़कर पूर्व की ओर रसोई बनाएं। यदि पूर्व की रसोई बनी हुई हो तो चूल्हे को थोड़ा पूर्व की ओर खिसका दें। चूल्हा इस तरह लगाएं कि सिलेंडर भी उसके एकदम नीचे रहे। रसोई तैयार करते समय मुख की स्थिति पूर्व में रहनी चाहिए। यह भी ध्यान रखें कि यदि रसोई के दक्षिण में एग्जॉस्ट फैन हो तो व्यय की संभावना रहती है। ऐसे में पूर्व की दीवार पर एग्जॉस्ट फैन लगाना चाहिए। रसोई बन जाने के बाद भोजन कभी घर के ब्रह्मस्थान पर बैठकर नहीं करें। न ही वहां पर झूठा डालें।
अगर आपके घर का रसोईघर वास्तु के नियमानुसार नहीं है एवं उसके प्रतिकूल परिणाम आपको प्राप्त हो रहे हैं एवं किचन की स्थिति या घर बदलना सम्भव नहीं है, तो डरने या घबड़ाने की जरूरत नहीं है। वास्तु की सहायता से आप आसानी से अधिकांश वास्तु-दोष बिना किसी तोड़-फोड़ के सुधार सकते हैं। निम्नलिखित बातों का ध्यान अवश्य रखें:
* किचन के ईशान में सिंक तो ठीक है, परन्तु वहां जूठे बर्तन न तो रखें या धुलाई करें।
* किचन के ईशान से सटाकर चूल्हा कदापि न रखें, वहां गैस सिलिन्डर भी न रखें।
* घर में प्रवेश करते वक्त एवं घर से बाहर जाते समय परिवार के सदस्यों को चूल्हे के दर्शन न हो, ऐसी व्यवस्था अवश्य करें। ड्राइंग टेबल पर भोजन करते समय भी चूल्हा नहीं दिखना चाहिये।
* भोजन बनाने की व्यवस्था सीढिय़ों के नीचे कदापि न करें। वहाँ अत्यन्त नकारात्मक ऊर्जा रहती हैं।
* किचन में दवाइयाँ कदापि न रखें। वहां पूजा/ मन्दिर भी न रखें।
* किचन के दक्षिण-पूर्व में एक छोटा सा पीला, नारंगी या हरा बल्ब लगायें, शुभ परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
* किचन के वायव्य कोण में परदा हरगिज न लगायें। यह छोटी सी भूल अत्यन्त प्रतिकूल परिणाम दे सकती है। किचन में झाड़ू न रखें।
* रसोईघर की दीवार, देहरी, खिड़कियाँ, अलमारियाँ, विद्युत उपकरण, भोजन पकाने के प्लेटफार्म, बर्तन इत्यादि टूटी-फूटी अवस्था में न रखें। उन्हें तुरंत ठीक करवायें या बदलने की व्यवस्था करें। मुड़े हुए कांटे चम्मच, चाकू आदि भी तुरंत हटा दें। अपने रसोईघर को पूर्ण रूप से साफ अवश्य करें, ताकि आपका पावर हाऊस सदैव पावर फुल बना रहे।
* नित्य प्रात:काल अपने रसोईघर के ईशान की खिड़की से थोड़ा सा जल बाहर प्रवाहित करके सूर्य देवता का एवं आग्नेय में कपूर जला कर अग्नि देवता का ध्यान करके उनकी कृपादृष्टि हेतु प्रार्थना करें। परिवार में सौहार्द एवं समरसता की वृद्धि होने लगेगी और रसोईघर की रौनक सारे घर में रौनक लाकर सुख एवं समृद्धि के दरवाजे खोलने लगेगी।
* किचन में सूर्य की रोशनी सबसे ज्यादा आए। इस बात का हमेशा ध्यान रखें। किचन की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि इससे सकारात्मक व पॉजिटिव एनर्जी आती है।
* किचन में लॉफ्ट, अलमारी दक्षिण या पश्चिम दीवार में ही होना चाहिए।
* पानी फिल्टर ईशान कोण में लगाएँ।
* किचन में कोई भी पावर प्वाइंट जैसे मिक्सर, ग्रांडर, माइक्रोवेव, ओवन को प्लेटफार्म में दक्षिण की तरफ लगाना चाहिए। फ्रिज हमेशा वायव्य कोण में रखें।
* भोजन कभी वायव्य कोण में बैठकर या खड़े-खड़े भी नहीं करें। इससे अधिक खाने की आदत हो जाती है। इसी तरह नैऋत्य कोण में बैठकर भोजन नहीं करें। यह राक्षस कोना है और इससे पेटू हो जाने की आशंका रहती है।
* भोजन बनाकर खाने से पूर्व एकाध कौर आग की ज्वाला में अर्पित कर दें।
अगर आपके घर में किचन ईशान या नैऋत्य (ये दिशाएं किचन हेतु वर्जित है) दिशा में हैं जिसका स्थान परिवर्तन सम्भव नहीं है, तो उसे पिरामिड यंत्रों की सहायता से आसानी से सुधारा जा सकता है। अगर किसी कारणवश पूर्व दिशा की तरफ मुख करके भोजन बनाना सम्भव न हो तो जिस दिशा की तरफ मुख करके भोजन बनाते हैं, वहां चूल्हे के पास तीन पिरामिड लगाकर इस दोष को दूर किया जा सकता है। अगर सिंक एवं चूल्हा पास-पास रखे हों और उन्हें अलग जगह हटाना सम्भव न हो तो मध्य में एक छोटा सा पार्टीशन करके या सिंक पर एक पिरामिड लगाकर इस दोष से मुक्ति पा सकते हैं।
किचन के अगल-बगल या ऊपर-नीचे टायलेट अथवा पूजाघर हो या किचन के दरवाजे के ठीक सामने अन्य कमरों के दरवाजे पड़ते हों, तो सिंक पर पिरामिड लगाकर यह दोष सफलतापूर्वक दूर किया जा सकता है। अगर रसोईघर में बीम या दुच्छती हो, तो पिरामिड यंत्रों से उनकी नकारात्मकता को दूर किया जा सकता है। रसोई घर में रंगों का आयोजन बहुत हल्का होना चाहिए। वास्तु अनुसार ही रंगों का चयन हो तो रसोई समृद्धशाली बनती है। हल्का हरा, हल्का नींबू जैसा रंग, हल्का संतरी या हल्का गुलाबी।
इस तरह के कुछ सरल उपाए के द्वारा आप अपने घर कि स्त्रियो कि सेहत ठीक रखे व सेहतमंद भोजन करे|

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Keep this tips in mind for office

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Keep in mind these matters in office
1. Never sit and back toward the door.
2. beam neither sit down nor work.
3. Sitting in his cabin and face north or the south-west corner of East remain.
4. your room / cabin southwest corner never leave empty. Keep the file cabinet or a plant.
5. Computer Monitor Keep southeast or northwest direction. When working on the computer should be in Apakamuk east or north.
6. to sustainability Hang on the wall behind the picture of mountains or high-rise buildings.
7. Do not sit by the back door or side window, otherwise you will be Sikar of Chuglion your Apaneuchchadikarion, staff, clients and colleagues will fight. If you keep close behind the back window of a window coinciding Touse put a plant.

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Saturday 23 May 2015

क्‍या होता है वास्‍तु दोष, जाने कारण और निवारण

क्‍या होता है वास्‍तु दोष, जाने कारण और निवारण
वास्‍तु दोष के कई कारण होते हैं। ये किसी भी वजह से हो सकता है। अपने आस पास की भूमि के दोषों, वातावरण के साथ सामंजस्य की कमी, मकान की बनावट के दोषों, घरेलू उपकरणों को गलत जगह रखे होने आदि से उत्पन्न होते हैं। हमारा शरीर और समस्त ब्रह्माण्ड पंच महाभूतों से मिल कर बना है। महाभूतों , दिशाओं, प्राकृतिक ऊर्जाओं के तारतम्य से भवन का निर्माण होने पर जीवन में शुभता आती है और जीवन में सभी प्रकार से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। पंचभूतों के सही समायोजन के अनुसार, दिशाओं के वास्तुनियमों के अनुसार भवन का निर्माण हमारे जीवन को, हमारे विचारों की दिशा, हमारी जीवन पद्धति और स्वास्थ्य आदि सभी भावों को पूर्णतया प्रभावित करते हैं। हम आपको बता रहे हैं वास्‍तु दोष के मुख्‍य कारण और उसके उपाय। पढ़ें और जानें...
मकान कैसी भूमि पर स्थित है ?
मकान जिस भूमि पर स्थित है, उसका आकार क्या है ?
भवन में कमरों, खिड़कियों, स्तम्भों, जल निकास व्यवस्था, मल के निकास की व्यवस्था, प्रवेश द्वार, मुख्य द्वार आदि का संयोजन किस प्रकार का है ?
भवन में प्रकाश, वायु और विद्युत चुम्कीय तरंगों के प्रवेश और निकास की क्या व्यवस्था है ?
भवन के चारों ओर अन्य इमारतें किस प्रकार बनी हुई हैं ?
भवन के किस हिस्से में परिवार का कौन सा व्यक्ति रहता है ?
भवन में किस दिशा में निर्माण सबसे भारी और किस दिशा में हल्का है ?
भवन की कौनसी दिशा ऊँची है और कौनसी नीची ?
भवन में किस दिशा में खुला स्थान है ?
इस प्रकार की सभी बातें घर के वास्तु को प्रभावित करती हैं। वास्तुशास्त्र में इन सब बातों के लिए नियम बनाए गए हैं, इनमें रहे दोष ही वास्तु दोष कहलाते हैं। भवन निर्माण में रहे वास्तु दोष जीवन में गंभीर दुष्परिणाम देते हैं।
इस प्रकार भवन से जुड़ी हर गतिविधि का प्रभाव भवन में रहने वाले व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है। इन्हीं सब व्यवस्थाओं पर जीवन निर्भर होने के कारण जीवन का हर पहलू वास्तु संबंधी कारणों से जुड़ा होता है। जीवन का हर पहलू इनसे कभी अछूता नहीं रह पाता।
भवन के निर्माण और उपयोग में रहे दोषों को ही वास्तुदोष कहा जाता है। भवन के निर्माण से पहले वास्तु पुरुष की पूजा आवयश्क रूप से की जाती है, ताकि भवन के निर्माण में रही खामियों से भवन और भवन में रहने वाले लागों के जीवन को वास्तु दोष के प्रभावों से मुक्त रखा जा सके।
वास्तु दोष के कारण होने वाले दुष्प्रभाव
आर्थिक समस्याएं – आर्थिक उन्नति न होना, धन का कहीं उलझ जाना, लाभों का देरी से मिलना, आय से अधिक व्यय होना, आवश्यकता होने पर धन की व्यवस्था ना हो पाना, धन का चोरी हो जाना आदि।
पारिवारिक समस्याएं – वैवाहिक संबंधों में विवाद, अलगाव, विवाह में विलम्ब, पारिवारिक शत्रुता हो जाना, पड़ोसियों से संबंध बिगड़ना, पारिवारिक सदस्यों से किसी भी कारण अलगाव, विश्वासघात आदि।
संतान संबंधी चिन्ताएं – संतान का न होना, देरी से होना, पुत्र या स्त्री संतान का न होना, संतान का गलत मार्ग पर चले जाना, संतान का गलत व्यवहार, संतान की शिक्षा व्यवस्था में कमियां रहना आदि।
व्यावसायिक समस्याएं – कैरियर के सही अवसर नहीं मिल पाना, मिले अवसरों का सही उपयोग नहीं कर पाना, व्यवसाय में लाभों का कम होना, साझेदारों से विवाद, व्यावसायिक प्रतिद्वन्द्विता में पिछड़ना, नौकरी आदि में उन्नति व प्रोमोशन नहीं होना, हस्तान्तरण सही जगह नहीं होना, सरकारी विभागों में काम अटकना, महत्वाकांक्षाओं का पूरा नहीं हो पाना आदि।
स्वास्थ्य समस्याएं – भवन के मालिक और परिवार जनों की दुर्घटनाएं, गंभीर रोग, व्यसन होना, आपरेशन होना, मृत्यु आदि।
कानूनी विवाद, दुर्घटनाएं, आग, जल, वायु प्रकोप आदि से भय, राज्य दण्ड, सम्मान की हानि आदि भयंकर परिणाम देखने को मिलते हैं।
वास्तुदोषों के निराकरण के लिए करते हैं वास्तु संबंधी उपकरणों की स्थापना
वास्तु संबंधी दोषों के उपचार दोषों की प्रकृति पर और उससे होने वाले परिणामों की गंभीरता पर निर्भर होते हैं। हल्के वास्तु दोषों का उपचार कम प्रयासों से संभव हो जाता है, जबकि कई बार कमियां इतनी बड़ी हो जाती हैं कि उनके दुष्प्रभावों से मुक्ति के लिए बड़े बदलावों की आवश्यकता पड़ती है। वास्तु संबंधी उपचार कई प्रकार से किए जाते हैं। ये उपचार शास्त्रोक्त पद्धतियों के साथ साथ बदलते हुए परिवेश में विशेषज्ञ के अनुभवों पर भी निर्भर करते हैं।
वास्तु दोषों को शान्त करने के लिए संभवतया पहला प्रयास निर्माण संबंधी बड़ी खामियों को दूर करना होता है। इसमें भवन में आमूल चूल परिवर्तन करके दिशाओं के अनुरूप पुनः निर्माण करवाया जाता है। लेकिन ऐसा कर पाना कई बार संभव नहीं हो पाता है।
भवन की किस दिशा में किस व्यक्ति को रहना चाहिए, इसके अनुसार भवन के उपयोग में बदलाव लाकर भी वास्तु संबंधी कमियों को दूर किया जाता है। जैसे भवन के दक्षिण पश्चिम में घर के मालिक को रहना चाहिए, विवाहयोग्य संतान को उत्तर पश्चिम दिशा में।
भवन में काम में लिए जाने वाले घरेलू संसाधनों जैसे टी वी, सोफा, डाइनिंग टेबल, बेड, अलमारी आदि की दिशा बदलकर भी वास्तु संबंधी समस्याओं को दूर किया जा सकता है।
मुख्य द्वार का स्थान बदलकर भी वास्तु दोषों का निवारण किया जा सकता है।
घर में उपयुक्त पालतू पशु या पक्षी रखकर भी वास्तु दोषों से मुक्ति पायी जाती है।
उपयुक्त व शुभ वृक्षों और पौधों के सही दिशा में संयोजन से भी वास्तु दोषों के दुष्परिणाम कम होते हैं।
जल संग्रह की दिशा बदलने से वास्तु दोषों के दुष्परिणामों में बड़ी सफलता मिलती है।
भूमि की आकृतियों को सुधार कर वास्तु के बड़े दुष्परिणामों से मुक्ति मिलती है।
पूजन, हवन व यज्ञ आदि कर्मों द्वारा भवन में शुभता व सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने से भी वास्तु संबंधी दोषों के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है। ऐसी स्थिति में जब घर के निर्माण संबंधी या अन्य बदलावों से यथेच्छ परिणाम मिलने की स्थिति ना बन पाए तब वास्तु संबंधी उपकरणों की उपयुक्त दिशा में स्थापना करके वास्तु दोषों का निराकरण किया जाता है।
जल से भरे पात्रों , झरनों व चित्रों आदि की स्थापना।
वास्तुयंत्र की स्थापना
विभिन्न यंत्रों की स्थापना ( वास्तु दोषों के अनुरूप श्रीयंत्र, कुबेर यंत्रादि )
विभिन्न देवों की मूर्तियों व चित्रों की स्थापना
गणपति की मूर्तियों व चित्रों आदि की स्थापना ( वास्तु दोषों के अनुरूप विघ्न विनायक, सिद्धि दायक आदि विभिन्न मुद्राओं में )
श्री लक्ष्मी की मूर्ति व चित्रों की स्थापना ( वास्तु दोषों के अनुरूप विभिन्न मुद्राओं में )
श्री बालगोपाल की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री दुर्गा व नवदुर्गा की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री हनुमान की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री कृष्ण की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री सरस्वति की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री राम दरबार की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री शिव की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री शिव परिवार की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री लक्ष्मी गणेश की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री लक्ष्मीनारायण की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
पारिवारिक सदस्यों के सुखद चित्रों की स्थापना
सांकेतिक चित्रों की स्थापना
दिशाओं के अनुरूप रंगों का प्रयोग करके
गाय और बछड़े की शुभ आकृतियों की स्थापना
शुभ वृक्षों और पौधों की स्थापना


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