Saturday, 16 May 2015

वास्तु से पाएँ जीवन सुख और समृद्धि


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प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन आनन्दमय, सुखी व समृद्ध बनाने में हमेशा लगा रहता हैं । कभी-कभी बहुत अधिक प्रयास करने पर भी वह सफल नहीं हो पाता हैं । ऐसे में वह ग्रह शांति, अपने ईष्ट देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करता हैं । परन्तु उससे भी उसे आशाअनुरूप फल प्राप्त नहीं होने पर वह अपने भाग्य को कोसता हैं और कहता हैं मैरे भाग्य में कुछ ऐसा ही लिखा हुआ हैं ।
    जैसा की सर्वविदित हैं कि भाग्य और वास्तु का गहरा सम्बन्ध हैं यदि आपका भाग्य (कुण्डली) उत्तम हैं और यदि वास्तु (निवास) में कुछ त्रुटियां हैं तो मनुष्य उतनी प्रगति नहीं कर पाता जितनी करनी चाहिए अर्थात मनुष्य की समृद्धि में भाग्य एवं वास्तु का बराबर-बराबर सम्बन्ध होता हैं । ग्रह शांति देवी-देवताओं की पूजा अर्चना और प्रयत्नों के अतिरिक्त भी मनुष्य को एक विषय पर और ध्यान देना चाहिए और वह हैं उसके घर एवं दूकान की वास्तु । वास्तु दोष निवारण करने से मुनष्य के जीवन की पूर्ण काया पलट हो सकती हैं वह सभी सुख व साधनों को प्राप्त कर सकता हैं । मकान का निर्माण इस प्रकार करें जो प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप हो तो वह मनुष्य प्राकृतिक ऊर्जा स्त्रोतों को भवन के माध्यम से अपने कल्याण हेतु उपयोग कर सकता हैं ।
    वास्तु निर्माण कार्य वर्तमान समय में अत्यावश्यक हो गया हैं क्योंकि निर्माण के पश्चात् यदि वास्तु दोष निकले और तक मकान में तोड़-फोड करनी पड़े तो वह अत्यंत कष्टकारक होता हैं । आर्थिक बोझ भी बढ जाता हैं। अतः उसका ध्यान रखकर वास्तु निर्माण के पूर्व वास्तुकार से सलाह लेकर यदि भवन या मकान निर्माण करें तो वास्तु दोष से बच सकते हैं ।
    जन्मकुंडली के ग्रहों की प्रकृति व स्वभाव अनुसार सृजन प्रक्रिया बिना लाग लपेट के प्रभावी होती हैं और ऐसे में अगर कोई जातक जागरूकता को अपनाकर किसी विद्वान जातक से परामर्श कर अपना वास्तु ठीक कर लेता हैं तो वह समृद्धि प्राप्त करने लगता हैं। बने हुए भवनों एवं नवनिर्माण होने वाले भवनों में वास्तुदोष निवारण का प्रयास करना चाहिए बिना तोड़-फोड़ के प्रथम प्रयास में दिशा परिवर्तन कर अपनी दशा को बदलने का प्रयास करें । यदि इसमें सफलता नहीं मिले तो पिरामिड एवं फेंगशुई सामग्री का उपयोग कर गृह क्लेश से मुक्ति पाई जा सकती हैं । संक्षेप में कहाँ क्या होना चाहिए -
1 -दक्षिण दिशा में रोशनदान खिड़की व शाट भी नहीं होना चाहिए। दक्षिण व पश्चिम में पड़ोस में भारी निर्माण से तरक्की अपने आप होगी व उत्तर पूर्व में सड़क पार्क होने पर भी तरक्की खुशहाली के योग अपने आप बनते रहेगें।
2   - मुख्य द्वार उत्तर पूर्व में हो तो सबसे बढ़िया हैं। दक्षिण , दक्षिण - पश्चिम में हो तो अगर उसके सामने ऊँचे व भारी निर्माण होगा तो भी भारी तरक्की के आसार बनेगें , पर शर्त यह हैं कि उत्तर पूर्व में कम ऊँचे व हल्के निर्माण तरक्की देगें।
3   - यदि सम्भव हो तो घर के बीच में चौक (बरामदा ) अवश्य छोड़े एवं उसे बिल्कूल साफ-स्वच्छ रखें । इससे घर में धन-धान्य की वृद्धि होती हैं ।
4   - घर का प्रवेश द्वार यथासम्भव पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। प्रवेश द्वार के समक्ष सीढियॉ व रसोई नहीं होनी चाहिए । प्रवेश द्वार भवन के ठीक बीच में नहीं होना चाहिए। भवन में तीन दरवाजे एक सीध में न हो ।
5    -भवन में कांटेदार वृक्ष व पेड़ नहीं होने चाहिए ना ही दूध वाले पोधे - कनेर, ऑकड़ा केक्टस, बाैंसाई आदि । इनके स्थान पर सुगन्धित एवं खूबसूरत फूलों के पौधे लगाये ।
6  -  घर में युद्ध के चित्र, बन्द घड़ी, टूटे हुए कॉच, तथा शयन कक्ष में पलंग के सामने दर्पण या ड्रेसिंग टेबल नहीं होनी चाहिए ।
7    -भवन में खिड़कियों की संख्या सम तथा सीढ़ियों की संख्या विषम होनी चाहिए ।
8    -भवन के मुख्य द्वार में दोनों तरफ हरियाली वाले पौधे जैसे तुलसी और मनीप्लान्ट आदि रखने चाहिए । फूलों वाले पोधे घर के सामने वाले आंगन में ही लगाए । घर के पीछे लेगे होने से मानसिक कमजोरी को बढावा मिलता हैं ।
9    -मुख्य द्वार पर मांगलिक चिन्ह जैसे स्वास्तिक, ऊँ आदि अंकित करने के साथ साथ गणपति लक्ष्मी या कुबेर की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए ।
10    -मुख्य द्वार के सामने मन्दिर नहीं होना चाहिए । मुख्य द्वार की चौड़ाई हमेशा ऊँचाई की आधी होनी चाहिए ।
11    -मुख्य द्वार के समक्ष वृक्ष, स्तम्भ, कुआं तथा जल भण्डारण नहीं होना चाहिए । द्वार के सामने कूड़ा कर्कट और गंदगी एकत्र न होने दे यह अशुभ और दरिद्रता का प्रतिक हैं ।
12    -रसोई घर आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण पूर्व दिशा में होना चाहिए । गैस सिलेण्डर व अन्य अग्नि के स्त्रोतों तथा भोजन बनाते समय गृहणी की पीठ रसोई के दरवाजे की तरफ नहीं होनी चाहिए । रसोईघर हवादार एवं रोशनीयुक्त होना चाहिए । रेफ्रिजरेटर के ऊपर टोस्टर या माइक्रोवेव ओवन ना रखे । रसोई में चाकू स्टैण्ड पर खड़ा नहीं होना चाहिए । झूठें बर्तन रसोई में न रखे ।
13    -ड्राइंग रूम के लिए उत्तर दिशा उत्तम होती हैं । टी.वी., टेलिफोन व अन्य इलेक्ट्रोनिक उपकरण दक्षिण दिशा में रखें । दीवारों पर कम से कम कीलें प्रयुक्त करें । भवन में प्रयुक्त फर्नीचर पीपल, बड़ अथवा बेहडे के वृक्ष की लकड़ी का नहीं होना चाहिए ।
14    -किसी कौने में अधिक पेड़-पौधें ना लगाए इसका दुष्प्रभाव माता-पिता पर भी होता हैं वैसे भी वृक्ष मिट्टी को क्षति पहुॅचाते हैं ।
15    -घर का मुख्य द्वार छोटा हो तथा पीछे का दरवाजा बड़ा हो तो वहॉ के निवासी गंभीर आर्थिक संकट से गुजर सकते हैं ।
16    -घर का प्लास्टर उखड़ा हुआ नहीं होना चाहिए चाहे वह आंगन का हो, दीवारों का या रसोई अथवा शयनकक्ष का । दरवाजे एवं खिड़किया भी क्षतिग्रस्त नहीं होनी चाहिए। मुख्य द्वार का रंग काला नहीं होना चाहिए । अन्य दरवाजों एवं खिडकी पर भी काले रंग के इस्तेमाल से बचे ।
17    -मुख्य द्वार पर कभी दर्पण न लगायें । सूर्य के प्रकाश की और कभी भी कॉच ना रखे। इस कॉच का परिवर्तित प्रकाश आपका वैभव एवं ऐश्वर्य नष्ट कर सकता हैं ।
18    -घर एवं कमरे की छत सफेद होनी चाहिए, इससे वातावरण ऊर्जावान बना रहता हैं ।
19    -भवन में सीढियॉ पूर्व से पश्चिम या दक्षिण अथवा दक्षिण पश्चिम दिशा में उत्तर रहती हैं । सीढिया कभी भी घूमावदार नहीं होनी चाहिए । सीढियों के नीचे पूजा घर और शौचालय अशुभ होता हैं । सीढियों के नीचे का स्थान हमेशा खुला रखें तथा वहॉ बैठकर कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए।
20    -पानी का टेंक पश्चिम में उपयुक्त रहता हैं । भूमिगत टंकी, हैण्डपम्प या बोरिंग ईशान (उत्तर पूर्व) दिशा में होने चाहिए । ओवर हेड टेंक के लिए उत्तर और वायण्य कोण (दिशा) के बीच का स्थान ठीक रहता हैं। टेंक का ऊपरी हिस्सा गोल होना चाहिए ।
21    -शौचालय की दिशा उत्तर दक्षिण में होनी चाहिए अर्थात इसे प्रयुक्त करने वाले का मुँह दक्षिण में व पीठ उत्तर दिशा में होनी चाहिए । मुख्य द्वार के बिल्कुल समीप शौचालय न बनावें । सीढियों के नीचे शौचालय का निर्माण कभी नहीं करवायें यह लक्ष्मी का मार्ग अवरूद्ध करती हैं । शौचालय का द्वार हमेशा बंद रखे । उत्तर दिशा, ईशान, पूर्व दिशा एवं आग्नेय कोण में शौचालय या टेंक निर्माण कदापि न करें ।
22    -भवन की दीवारों पर आई सीलन व दरारें आदि जल्दी ठीक करवा लेनी चाहिए क्योकि यह घर के सदस्यों के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं रहती ।
23    -घर के सभी उपकरण जैसे टीवी, फ्रिज, घड़ियां, म्यूजिक सिस्टम, कम्प्यूटर आदि चलते रहने चाहिए। खराब होने पर इन्हें तुरन्त ठीक करवां लें क्योकि बन्द (खराब) उपकरण घर में होना अशुभ होता हैं ।
24    -भवन का ब्रह्म स्थान रिक्त होना चाहिए अर्थात भवन के मध्य कोई निर्माण कार्य नहीं करें ।
25    -बीम के नीचे न तो बैठंे और न ही शयन करें । शयन कक्ष, रसोई एवं भोजन कक्ष बीम रहित होने चाहिए ।
26    -वाहनों हेतु पार्किंग स्थल आग्नेय दिशा में उत्तम रहता हैं क्योंकि ये सभी उष्मीय ऊर्जा (ईधन) द्वारा चलते हैं ।
27    -भवन के दरवाजें व खिड़कियां न तो आवाज करें और न ही स्वतः खुले तथा बन्द हो ।
28    -व्यर्थ की सामग्री (कबाड़) को एकत्र न होने दें । घर में समान को अस्त व्यस्त न रखें । अनुपयोगी वस्तुओं को घर से निकालते रहें ।
29    -भवन के प्रत्येक कोने में प्रकाश व वायु का सुगमता से प्रवेश होना चाहिए । शुद्ध वायु आने व अशुद्ध वायु बाहर निकलने की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए । ऐसा होने से छोटे मोटे वास्तु दोष स्वतः समाप्त हो जाते हैं ।
30    -दूकान में वायव्य दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए । अपना सेल काउंटर वायव्य दिशा में रखें, किन्तु तिजौरी एवं स्वयं के बैठने का स्थान नैऋत्य दिशा में रखें, मुख उत्तर या ईशान की ओर होना चाहिए ।
31    -भवन के वायव्य कोण में कुलर या ए.सी. को रखना चाहिए जबकि नैऋत्य कोण में भारी अलमारी को रखना चाहिए । वायव्य दिशा में स्थायी महत्व की वस्तुओं को कभी भी नहीं रखना चाहिए ।
    इस प्रकार हम पाते हैं कि वास्तु के नियमों का पालन कर हम सुख एवं समृद्धि में वृद्धि कर खुशहाल रह सकते हैं । यदि दिशाओं का ध्यान रखकर भवन का निर्माण एवं भूखण्ड की व्यवस्था की जाए तो समाज में मान सम्मान बढ़ता हैं । इस प्रकार भारतीय वास्तु शास्त्र के सिद्धान्तों का पालन कर हम सुख एवं वैभव की प्राप्ति कर सकते हैं । 

जानिये आज 15/05/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से ""स्कीन एलर्जी का ज्योतिष कारण"









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Friday, 15 May 2015

जानिये आज 15/05/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "मधुमेह रोग और ज्योतिष"







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Thursday, 14 May 2015

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जानिये आज 14/05/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "प्रेम में पंगा"









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The Introduction and Necessity of Vastu Shastra


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Vaastu -Shastra is a Vast and ancient science of living. The word Vaastu is derived from the root .Vas. which means .to reside.. Dr. Havell have suggested that Vastu Shastra developed between 6000 BCE and 3000 BCE. It is not an equivalent of the word architecture. Vaastu is architecture and much more. While architecture is the science, art or profession of designing and constructing buildings etc., the definition of Vaastu extend into the realm of occultism. The use of Vastu shastra in the modern era has been controversial. Some architects, particularly during India's colonial era, considered it arcane and superstitious. Vaastu Shastra, the edifice science of Bhawan Sthapatya Kala, being the applied aspects of ATHARVAVEDA,is an ancient science and one of the eminent features of our heritage.Vaastu means dwelling of Humans and Gods in the original Sanskrit literature.Many factors govern the life of a human being ; his fate, Karma and surroundings. BUT VAASTU CAN MAKE SWEET THINGS SWEETER AND BITTER LESS BITTER.Like many of our traditions, Vaastu too got neglected over the centuries for want of patronage; hence the present society could not very much appreciate and utilise this science in their construction of house, shops, office or industrial complexes. If construction is not according to the principles of .VAASTU. then thinking and action of the people dwelling or working in these places is not harmonious and evolutionary; leading to disorder & illness.This is one of the main reason of discontent and sufferings of the society at present. On the contrary, if the laws of nature which are elaborated and incorporated in the science of Vaastu are followed, then all the Divine powers support the thinking and action of the people associated with such concerns.
Building a house in ancient India was not only a house-craft but also a sacred ceremony and the house was considered a living organism. The spirit of the house was called the Vaastu Purusha and different cardinal directions and sectors were assigned to different Gods like Brahma,Ishwara, Agni, Varun, Wind, Yam and Demon, since the waves flowing in a particular direction have a specific influence. Eeshan or north east is presided over by God and is therefore suitable for a prayer room. The southeast belongs to Agni. The central space is Brahma.s and should be left open to the heavens. The head and limbs of the Vaastu
Purusha are to be left alone too.If the various activities in a house, shop, office or industry are directionally channelised as per principles of Vaastu, we begin to draw power from nature in a natural way. "ONCE THIS IMMENSE FORCE OF ALMIGHTY BEGINS TO SUPPORT US, ALL OUR OBJECTIVES ARE FULFILLED IN EASY, SPONTANEOUS AND EFFORTLESS MANNER".The Shastra is being gradually applied not only in Houses but also in Commercial buildings and industries, where the clients stakes are high. For example, Vaastu assigns the kitchens, chimneys, Furnace, boiler etc. to a certain corner
on the basis of wind directions to prevent the smoke and cooking fumes from flowing into the living/working area and affecting the health of the residents/ workers. Thus there is a great need for the architects and Vaastu Engineers to coordinate; since an architect can build a posh house but can.t assure happy life to the people living in that house, whereas Vaastu -science assures peace, prosperity and progress to the owner as also the inmates. This happy admixture of ancient heritage and modern science can go a long way in reviving this edifice science. Gradually this science is spreading fast from Kerala,Tamilnadu, Andhra Pradesh, Maharashtra, Madhya Pradesh,Rajasthan to Delhi. In nutshell . Vaastu. lays down principles for construction of the houses, commercial buildings and industries etc. Which harmonies with the neighborhood,nature and the entire universe.Many rules are common sense as they relate to ventilationand sunlight But some like the subtle energy in natural and built environments that affect humans have also been verified and appreciated by those who did not believe in them initially.Sun is the major cosmic entity which radiates light & heat in entire universe. It is called soul of the universe .SURYA ATMA JAGATAS TASTHU KHASHCHA.. The principles of Vaastu allows human beings & society with inexhaustiblesource of energy and thus make them to live in fully satisfied manner.We live on earth, which nourishes all beings like a mother and is treasure of all comforts & pleasure. The all embarrassing motherly role of earth is best tapped by use of principles of .Vaastu..Along with construction, the internal decoration in the house,shop or factory is equally important. IF SETTING OF THINGS ARE ACCORDING TO PRINCIPLES OF VAASTU, THE THOUGHTS, SPEECH & ACTION ARE SUPPORTED BY NATURE AND LEAD TO HEALTH WEALTH AND HAPPINESS.
Vaastu.s current revival may be confined to human dwellings,but the scope of the shastra, also known as Sthapatya-Veda extends to temple-design, iconometry, town planning & civil engineering as well.Most well known temples in South India like Lord Venkateswara Temple at Tirupathi, Meenakshi Temple at Madurai etc. are Vaastu -perfect. It terms of entire city Jaipur was founded in 1727 by Maharaja Sawai Jai Singh II in accordance with Vaastu Shastra.In addition to Karmas in this life, two things fate and Vaastu affect the life of a person; each responsible for 50% happiness in life. If Vaastu is poor the result as compared to
efforts will be half even if the stars are exalted & the fate is very strong. As against this if .Vaastu. is right and the planetary position is unfavorable than also the ill effects will not be so bad, as to that when both are poor. This means that if a house or industry is constructed according to .Vaastu.


Wednesday, 13 May 2015

जानिये आज 13/05/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "मैथ्स फोबिया"







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पाप मोचनी एकादशी व्रत-

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पाप मोचनी एकादशी व्रत-

पाप मोचनी एकादशी व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है. पापमोचनी एकादशी व्रत व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्त कर मोक्ष के मार्ग खोलती है. इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी का पूजन करना चाहिए. इस पूजा को षोडशोपचार के रुप में करने पर व्रत के शुभ फलों में वृद्धि होती है.
पापमोचनी व्रत विधि-एकादशी व्रत में श्री विष्णु जी का पूजन किया जाता है. पापमोचनी एकादशी व्रत करने के लिये व्रत के पूर्व की तिथि में सात्विक भोजन करना चाहिए. एकादशी व्रत की अवधि 24 घंटों की होती है. व्रत के दिन सूर्योदय काल में उठना चाहिए। और स्नान आदि सभी कार्यो से निवृत होने के बाद व्रत का संकल्प करना चाहिए। संकल्प लेने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। जिसमें  भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर श्रीमद भागवत कथा का पाठ करना चाहिए. एकादशी व्रत का समापन द्वादशी तिथि के दिन प्रातःकाल में स्नान करने के बाद, भगवान श्री विष्णु कि पूजा करने के बाद ब्राह्माणों को भोजन व दक्षिणा देकर करना चाहिए. उसके उपरांत ही व्रत खोलना चाहिए. एकादशी व्रत में दिन के समय में श्री विष्णु जी का स्मरण करना चाहिए. और रात्रि में भी पूरी रात जाकर श्री विष्णु का पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए. यह व्रत व्यक्ति के सभी जाने- अनजाने में किये गये पापों से मुक्ति दिलाता है.      



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विवाह के बाद भटकाव क्यू??



विवाह के बाद भटकाव क्यू??

आज समाज में व्यक्ति के आत्मकेन्द्रित हो जाने से परिवार के अन्दर स्नेहसूत्र का डोर कमजोर होता जा रहा है और इस स्नेहसूत्र की मुख्य कड़ी वैवाहिक रिष्तों की डोर टूटकर कहीं बिखरती जा रही है। सामाजिकता के प्रभावहीन हो जाने के कारण मनुष्य निरन्तर अकेला होता जा रहा है और इसी अकेलेपन से मुक्ति पाने के लिये व्यक्ति ने भारत में परिवार की संस्था का विनाश करना आरम्भ कर दिया है। समाज में हो रहे कई परिवर्तन इसके कारण हैं. और इन कई कारणों में से हो सकता है कि पति या पत्नि की एक दूसरे से असंतुष्टि, पति या पत्नी का एक दूसरे से लगाव या प्रेम की कमी, एक दूजे के लिए समय का अभाव, आपसी समझ या सदभावना का अभाव। वैवाहिक रिष्तों में आपसी प्रेम के अलावा अन्य किसी से संबंध का होना, कमजोर होते सामाजिक और मानवीय रिष्तों के अलावा, इसका ज्योतिषीय कारण भी है-
पंचम भाव और पंचमेष का स्वामी विवाह से इतर प्रेम सम्बन्ध, शारीरिक सम्बन्ध आदि के होते है अन्य बातों के अलावा, शुक्र काम का मुख्य कारक ग्रह है और रोमांस प्रेम आदि पर इसका अधिपत्य है. मंगल व्यक्ति में पाशविकता और तीव्र कामना भर देता है और शनि सामाजिक रीति रिवाज के इतर अपनी मर्जी से रिष्तों में नयी तकनीक तलाष करता है अतः यदि शनि लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम या दषम स्थान पर हो तो परिवार या समाज में प्रचलित तरीके से रिष्तों का निर्वाह न कर अपनी पसंद या सुविधा के अनुसार संबंध बनाता और निभाता है। अतः इस प्रकार इन ग्रहों की स्थिति तथा दषा एवं अंतरदषा में विषेषकर शनि या शुक्र की दषाओं में ऐसे रिष्तों की शुरूआत होती है। अतः इन दषाओं में अनुषासन का पालन करना तथा ग्रहों की शांति कराना चाहिए।



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पीलिया रोग का ज्योतिषीय कारण-


पीलिया रोग का ज्योतिषीय कारण-
यकृत शरीर के अत्यंत महत्वपूर्ण अंगों में से है। यकृत की कोशिकाएँ आकार में सूक्ष्मदर्शी से ही देखी जा सकने योग्य हैं, परंतु ये बहुत कार्य करती हैं। एक कोशिका इतना कार्य करती हैं कि इसकी तुलना एक कारखाने से (क्योंकि यह अनेक रासायनिक यौगिक बनाती है), एक गोदाम से (ग्लाइकोजन, लोहा और बिटैमिन को संचित रखने के कारण), अपशिष्ट निपटान संयंत्र से (पिपततवर्णक, यूरिया और विविध विषहरण उत्पादों को उत्सर्जित करने के कारण) और शक्ति संयंत्र से (क्योंकि इसके अपचय से पर्याप्त ऊष्मा उत्पन्न होती है) की जा सकती है। यकृत समस्त प्राणियों में पाचन संबंधी समस्त क्रियाएं, शरीर में रक्त की आपूर्ति के साथ शारीरिक पोषण का मुख्य आधार है। यकृत ही रक्चचाप से लेकर अन्य सभी क्रियाओं के जिए जिम्मेदार होता है। यकृत के क्षतिग्रस्त हो जाने पर जीवन असंभव हो जाता है। यकृत से संबंधित एक अत्यंत घातक बीमारी है ‘‘पीलिया’’। रक्त में पित्तारूण या बिलीरूबिन के आधिक्य से यह रोग होता है, जो नेत्र श्लेष्मला और त्वचा के पीलेपन से प्रकट होता है। ज्योतिष में कुंडली के द्वादश भावों में यकृत का संबंध पंचम भाव से होता है। पंचम भाव का कारण ग्रह गुरु है। गुरु का अपना रंग पीला ही होता है और पीलिया रोग में भी जब रक्त में पित्तारूण की अधिकता हो तो शरीर के सभी अंग पीले हो जाते हैं। ऐसा पित्त के बिगडने से भी होता है। गुरु ग्रह भी पित्त तत्व से संबंध रखता है। पीलिया रोग में बिलीरूबिन पदार्थ रक्त की सहायता से सारे शरीर में फैलता है। रक्त के लाल कण मंगल के कारण होते हैं और तरल चंद्र से। इसलिए मंगल और चंद्र भी इस रोग के फैलने में अपना महत्व रखते है। इस प्रकार पंचम भाव, पंचमेंश, गुरु, मंगल और चंद्र जब अशुभ प्रभावों में जन्मकुंडली एवं गोचर में होते हैं, तो व्यक्ति को पीलिया रोग हो जाता है। जब तक गोचर और दशांतर दशा अशुभ प्रभाव में रहेंगे, तब तक जातक को पीलिया रोग रहेगा उसके उपरांत नहीं। अतः पीलिया रोग होने की स्थिति में पंचम भाव, पंचमेष, गुरू, मंगल तथा चंद्रमा की दषा-अंतरदषा का ज्ञान कर इनकी शांति कराना चाहिए।


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न्माद मस्तिष्क रोग



पागलपन रोग और ज्योतिष -
पागलपन या उन्माद मस्तिष्क रोग है। यह रोग सिर की कोई नस दबने या रक्त का थक्का जमने या निराशा, दुःख, दर्द, शोक या पितृदोष अथवा परिवार में अकाल मृत्यु के कारण होता हैं। इस रोग के मुख्य लक्षण है - अधिक भोजन, आकस्मिक हंसना, शोर मचाना, अचानक नाचना या गाना, ज्यादा बात करना, कभी-कभी हमला कर देना या कपड़े फाड़ देना या रोने लगना अथवा वस्तुओं या व्यक्तियों को नुकसान करना आदि। ज्योतिष शास्त्र केे अनुसार लग्न या लग्नेष या चन्द्रमा राहु से पापाक्रांत हो या इन स्थानों पर राहु या शनि की दृष्टि या तीसरा स्थान या उस स्थान का स्वामी राहु से आक्रांत या छठवे, आठवे या बारहवे हो जाए या राहु से दृष्ट हो, तो जातक अपने को अकेला अनुभव करता है, जिससे डिप्रेषन के कारण रोग का आरम्भ होता हैं। यदि बीमारी चिकित्सकी निदान से ठीक ना हो रही हो तो उस व्यक्ति की कुंडली का विष्लेषण कराया जा कर ज्योतिषीय निदान लेना चाहिए।



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कैसे करें अपनी पूर्ण अंतर शक्ति का उपयोग


कैसे करें अपनी पूर्ण अंतर शक्ति का उपयोग
कहा जाता है कि ऊॅ का रूप ही प्रणव अर्थात् ब्रम्हा, विष्णु एवं महेष यानि तीनों देवताओं का रूप है... क्योंकि हिंदू धर्म के अंदर अक्षरों की पूजा की जाती है... ऊॅ के ऊपर चंद्र बिंदु का स्थान चंद्रमा की दक्षिण भुजा का रूप है... अ, उ और म के ऊपर शक्ति के रूप में चंद्र बिंदु का रूपण केवल इस भाव से किया गया है कि अ से अज यानि ब्रम्हा, उ से उदार यानि विष्णु और म से मकार यानि शिवजी... ऊॅ गं गणपतये नमः का जाप करते वक्त गं अक्षर में संपूर्ण ब्रम्हविद्या का निरूपण होता है... गं बीजाक्षर को लगातार जपने से तालू के अंदर और नाक के अंदर की वायु शुद्ध होती है और बुद्धि की ओर जाने वाली शिरायें और धमनियाॅ अपना रास्ता खोल लेती हैं, जिससे बुद्धि का विकास होता है... इस ब्रम्ह विद्या का उच्चारण नियमित रूप से किया जाए तो एकाग्रता बढ़ने से स्मरण शक्ति तेज होती है, जिसके कारण विद्या में पारंगत हो सकते हैं... जिससे जातक अपनी योग्यता का पूर्ण सदुपयोग कर जीवन में सफलता प्राप्त करता है.... जब किसी बालक का व्यवहार लापरवाह भरा हो तो उसके तीसरे एवं छठवें स्थान का विवेचन करना चाहिए, क्योंकि इन स्थानों के स्वामी बुध ग्रह हैं यदि ये स्थान दुषित हों तो उसे इस प्रकार गणपति की पूजा करनी चाहिए, जिससे जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त हो सके।


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पितृदोष का एक प्रमुख कारण भू्रण हत्या -


पितृदोष का एक प्रमुख कारण भू्रण हत्या -
वैदिक शास्त्रों तथा पुराणों में सौभाग्यवती पतिव्रता नारी तथा कुमारी कन्याओं को देवी का प्रतीक माना गया है, वहीं मनुस्मृति में तो यहाँ तक कह दिया है कि- ‘‘एक आचार्य दस अध्यापकों से श्रेष्ठ हैं, एक पिता सौ आचार्यों से श्रेष्ठ है और एक माता एक हजार पिताओं से श्रेष्ठ है।’’ इतनी सारी विशेषताओं से समन्वित एक नारी अपनी स्वाभाविक ममता का गला घोंटकर उसके गर्भ में पल रहे जीव की हत्या या भू्रण हत्या जैसे कर्म की साक्षी बनती है तब उसके ममता तथा नारित्व पर जो बीतती है वह उस माॅ को ही पता होता है। उस हत्या को कैसे सामान्य हत्या से परे माना जा सकता है? गर्भ का जीव भी एक स्वतंत्र मानव-प्राणी है। गर्भधान के प्रथम क्षण से ही उसकी विकास यात्रा प्रारंभ हो जाती है। यह उत्तरोत्तर विकास-क्रिया जीव के बिना असंभव है। जब एक कण में आत्मा का वास होता है तब एक भू्रण या मानव का किसी भी रूप में समय से पूर्व मृत्यु को प्राप्त करने पर उसकी अतृप्त वासनायें बाकी रह ही जाती हैं। चूॅकि उस भू्रण का गर्भ में आते ही आत्म का वास हो जाता है अतः उसको मारने का प्रयास किया जाय या मार दिया जाय तो पितृ दोष का असर शुरू हो जाता है, इस तरह जीव हत्या का पाप पूरे वंष को भोगना होता है।
धर्म सिंधु ग्रंथ के पेज नं.-222 एवं 223 उल्लेख है कि ऐसे जातक को जिन्हें इस प्रकार के पितृदोष को दूर करने वास्तु नारायणबलि और नागबलि करना उचित है। यह नारायणबलि और नागबलि शुक्लपक्ष की एकादषी में, पंचमी में अथवा श्रवण नक्षत्र में किसी नदी के किनारे देवता के मंदिर में करना चाहिए। ये पूजा अम्लेष्वर घाम में खारून नदी के तट पर भगवान शंकरजी के मंदिर में शास्त्रोक्त विधि विधान से होती है।



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Tuesday, 12 May 2015

जानिये आज 12/05/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "मन नहीं लगता"

जानिये आज के सवाल जवाब 12/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से









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जानिये आज के सवाल जवाब 12/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से







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जानिये आज का पंचांग 12/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) स2





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होलिका की पूजा के लाभ-

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होलिका की पूजा के लाभ-
होली के पर्व को नवसंवत्सर का आरम्भ तथा वसन्तागम के उपलक्ष में किया हुआ यज्ञ भी माना जाता है। होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। यह पर्व हिंदूपंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते है। आज हम इसी पर्व यानि हालिका दहन के शुभ मुहूर्त, दहन की पूजा से होने वाले लाभ और परंपरा के बारे में बात करेंगे.... होली की पूजा का इस वर्ष शुभ मुहूर्त है रात्रि 10 बजकर 37 मिनट से...इस दिन भद्रा की समाप्ति हो जायेगी प्रातः 09 बजकर 34 मिनट पर अतः इस दिन स्वास्थ्य लाभ एवं किसी भी प्रकार के नजर दोष से बचाव हेतु होलिका की पूजा करनी चाहिए...किसी की भी कुंडली में लग्न या अष्टम स्थान पर राहु या अष्टमेष राहु से पापाक्रांत हो जाए तो उन्हें ये पूरा जरूर करनी चाहिए, जिससे स्वास्थ्य एवं आर्थिक स्थिति के साथ सामाजिक परिवेष में भी साकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है.... पूजा करते समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा नई फसल के धान्यों जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखी जाती है। होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका की पूजा करें।
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विकृत मानसिकता का ज्योतिषीय कारण-


विकृत मानसिकता का ज्योतिषीय कारण-

किसी भी तरह से क्रूर कर्म करने वाले वास्तव में कोई शातिर अपराधी नहीं बल्कि विकृत मानसिकता वाले आम लोग ही होते है, जब भी ऐसे व्यक्तियों की मर्जी से कोई कार्य नहीं होता या उनका मकसद पूरा नहीं होता है तो ऐसे लोग कू्ररता की हद पार कर दूसरों को प्रताडि़त करते हैं। इसका ज्योतिषीय कारण है कि किसी भी व्यक्ति में अगर उसका तृतीयेष या एकादषेष अष्टम स्थान में हो या केतु के साथ हो जाए इसमें भी विषेषकर मंगल या चंद्रमा राहु से आक्रांत हो जाए तो ऐसा व्यक्ति गुस्से में क्रूरता की हद पार करता है या मनोरोग के साथ विकृत मानसिकता का होता है। इस प्रकार अगर किसी व्यक्ति में कभी भी किसी प्रकार का अतिरेक दिखाई पड़े तो उसकी कुंडली का विष्लेषण कराकर समय से पहले नियंत्रण करना एवं उन ग्रहों की शांति कराना साथ ही अनुषासित रखना चाहिए।




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क्या अच्छे दिन आयेंगे: ज्योतिषीय गणना

क्या अच्छे दिन आयेंगे: ज्योतिषीय गणना

संसद में पेश वित्तीय बजट में आने वाले वर्षों में आर्थिक वृद्धि हासिल करने के लिये कारोबारी माहौल सुधारने और कर दरों को नरम रखने का दावा पेष करते हुए एनडीए सरकार का पहला पूर्ण आम बजट पेश किया। इसमें कॉरपोरेट जगत, गांव और गरीब के लिए कई योजनाओं की घोषणा तो की गई है लेकिन एक बड़े तबके यानि मध्य वर्ग के लिए कोई बड़ी राहत नहीं है। जिनके पहले से ही अच्छे दिन थे उनके और अच्छे दिन हो गए, और जो लोग अच्छे दिनों की उम्मीद कर रहे थे उनके अच्छे दिन कब आएंगे यह बड़ा सवाल है।’’ विकास की ओर टकटकी लगाई जनता मोदी की बातों से सम्मोहित होकर उन्हें विकास का मसीहा समझ बैठी थी। अब लोग अपने मसीहा की ओर देख रहे हैं और पूछ रहे है कि जो बातें उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान कही थी और जिस विकास और अच्छे दिनों के सपने दिखाए थे वह सपने कब पूरे होंगे। किंतु ये वादे तो सिर्फ वादों हैं वादों का क्या????देखा जाए तो भारत की वृषभ लग्न की कुंडली में इस समय गोचर में शनि सप्तम स्थान पर होकर भाग्यस्थान, लग्न एवं चतुर्थ स्थान को देख रहा है, जिससे भाग्य बाधित है, लग्न अर्थात् देष और चतुर्थ अर्थात् घरेलू स्तर पर किसी बड़े बदलाव की अपेक्षा करना बेमानी होगा। वैसे भी उच्च वर्ग यानि काॅरपोरेट पर सरकार की जर्रानवाजी होना लाजिमी है क्योंकि यहीं से अर्थ आता है और निम्नवर्ग पर दया रखना जरूरी क्योंकि यहीं से पद आता है परंतु मध्यवर्ग किसी के भी कोई काम का नहीं इसलिए यह वर्ग लगातार उपेक्षा का षिकार रहा और आने वाले समय में भी रहने वाला है, अतः ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो अच्छे दिन ना अब ना कब आने वाले हैं।

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बच्चों में कार्टून देखने का आकषर्ण और ज्योतिष-

बच्चों में कार्टून देखने का आकषर्ण और ज्योतिष-

एकल परिवार और पड़ोसियों तथा रिष्तों में बढ़ती दूरी ने टेलीविजन को भारतीय परिवार का एक महत्वपूर्ण सदस्य बना दिया है। महिलाएं अक्सर टीवी सीरियल की काल्पनिक दुनिया में खोई रहना चाहती हैं। पुरुष समाचार, राजनीति और खेल के चैनलों को प्राथमिकता देते हैं तो बच्चे सदैव कार्टून ही देखना चाहते हैं। टेलीविजन जहाॅ बड़ों को स्वस्थ मनोरंजन उपलब्ध नहीं करा पा रहा है, तो बच्चों के कोमल, नाजुक एवं अपरिपक्व मस्तिष्क पर कोई सकारात्मक प्रभाव छोड़ सके इसकी अपेक्षा करना ही बेमानी है। टी.वी. से बच्चों में कल्पनाशीलता कम हुई है, पडोस के बच्चों के साथ उनका खेलना और धमा-चैकडी मचाना अब आकर्षित नहीं करता वहीं कार्टून कार्यक्रमों की विषयवस्तु और चरित्र बच्चों के लिए किसी भी प्रकार से हितकर नहीं कहा जा सकता। चूॅकि ये हर बच्चे की बात है अतः हम देखें कि आज के युग में राहु का प्रभाव है अतः हर व्यक्ति विषेषकर आज के युग का बच्चा राहु से प्रभावित होगा ही अतः राहु प्रभावित वस्तुएं जैसे टीवी, मोबाईल जैसी वस्तुए उन्हें आकर्षित करेंगी ही। अतः सबसे पहले राहु के प्रभाव को कम करने के लिए राहु जनित वस्तुओं के प्रति आकर्षण कम करने का प्रयास करना चाहिए, उसके अलावा राहु के दुष्प्रभाव दूर करने के लिए उन्हें शारीरिक कार्य, जीवन में अनुषासित रहना एवं अपने व्यवहार में कल्पना के पुट देने से बचाने का उपाय अजमाना चाहिए। इसके लिए मंगल के मंत्रों का जाप, लगातार खेल या शारीरिक गतिविधि में लगाना इत्यादि करने से राहु प्रभावित कार्यो को रोका जा सकता है। जिससे कि टीवी में कार्टून देखने पर भी अंकुष लगाया जा सकता है।


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आमलकी एकादशी अथवा रंगभरी एकादषी -



आमलकी एकादशी अथवा रंगभरी एकादषी -
भारतीय शास्त्र बहुत उन्नत है इसका हर दिन और प्रत्येक व्रत-त्योहार का अपना एक अलग महत्व है। आजकल लोग आधुनिकता के कारण अपने संस्कार और संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। मेरा संकल्प है कि मैं इस बहुत उन्नत संस्कृति को बरकार रख पाउ। अतः हम समय समय पर व्रत एवं त्योहार के बारे में चर्चा करते रहेंगे। आज फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी है इस एकादषी को आमलकी या रंगभरी एकादशी कहते हैं। यह एकादशी सभी पापों का नाश करने वाली है। इस दिन व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। इस दिन विशेष रूप से आंवला वृक्ष की पूजा की जाती है। आमलकी यानी आंवला को हिंदू धर्म शास्त्रों में उसी प्रकार श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है, नदियों में गंगा को प्राप्त है और देवों में भगवान विष्णु को। मान्यता के अनुसार विष्णुजी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को आदेश दिया, उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया। आंवला वृक्ष को, भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है। आमलकी एकादशी के दिन आंवला वृक्ष का स्पर्श करने से दुगुना व इसके फल खाने से तिगुना पुण्य प्राप्त होता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार आंवला वृक्ष के मूल भाग में विष्णु, ऊपर ब्रह्मा, तने में रुद्र, शाखाओं में मुनिगण, टहनियों में देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुदण और फलों में समस्त प्रजापति वास करते हैं। पुराणों में भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं, उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है, उस एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। फाल्गुन माह में होने के कारण और होली से पहले आने वाली इस एकादशी से होली का हुड़दंग या कहें एक-दूसरे को रंग लगाने की शुरुआत होती है, इसलिए इसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है।



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विवाह में सप्तम भाव का महत्व

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सप्तम भाव को विवाह का भाव कहा जाता है. इस भाव से संबन्ध रखने वाले ग्रह वैवाहिक जीवन को प्रभावित करते है. सप्तम भाव की राशि, इस भाव में स्थित ग्रह व्यक्ति के जीवनसाथी के स्वभाव व आचरण को दर्शाते हैं.
विवाह भाव, विवाह भाव के स्वामी तथा विवाह के कारक ग्रह शुभ ग्रहों से संबन्ध बनाते हैं तो दाम्पत्य जीवन में सुख-शान्ति की वृद्धि होती है. इसके विपरीत जब इन तीनों पर अशुभ या पापी ग्रहों का प्रभाव होता है तो गृहस्थी में तनाव बढ़ता है. आईये देखे कि सप्तम भाव में होने वाली ग्रहों की युति किस प्रकार अपना प्रभाव डालती है.
सप्तम भाव में मंगल- बुध कि युति (Combination of Mars, Jupiter and Saturn with Other Planets in Seventh House)
अगर किसी व्यक्ति की जन्म कुण्डली में विवाह भाव में मंगल व बुध दोनों एक साथ स्थित हों तो व्यक्ति के जीवनसाथी के स्वास्थ्य में कमी के योग बनते है. इस योग के व्यक्ति के जीवनसाथी को बेवजह इधर-उधर भटकना पड़ सकता है. इनके साथी को वाद-विवाद कि स्थिति से बचने का प्रयास करना चाहिए तथा अच्छे कार्य करना चाहिए.
सप्तम भाव में मंगल-गुरु की युति (Combination of Mars-Jupiter in Seventh House)
सप्तम भाव में जब मंगल व गुरु कि युति हो रही हों तो व्यक्ति के जीवनसाथी के साहस में वृद्धि की संभावनाएं बनती है. इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति का जीवनसाथी पराक्रमी होता है. उसे अपने मित्रों व बंधुओं का सुख प्राप्त होता है. घूमने का शौकीन होता है. इस योग के व्यक्ति को अपने जीवनसाथी से कुछ कम सहयोग मिल सकता है.
सप्तम भाव में मंगल-शुक्र की युति (Combination of Mars-Venus in Seventh House)
कुण्डली में सप्तम भाव में मंगल व शुक्र की युति व्यक्ति के जीवनसाथी को रोमांटिक बनाती है. इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति का जीवनसाथी विशेष स्नेह करने वाला होता है. ऎसे व्यक्ति को अपने जीवनसाथी के कारण कई बार अपयश का भी सामना करना पड़ सकता है. कुण्डली में यह योग होने पर व्यक्ति को अपने जीवन साथी से संबन्धों में ईमानदार रहना चाहिए.
सप्तम भाव में मंगल-शनि की युति (Combination of Mars-Saturn in Seventh House)
अगर कुण्डली के सप्तम भाव में मंगल व शनि दोनों एक साथ स्थित हों तो संतान सुख में कमी हो सकती है. इस योग में किसी कारण से जीवनसाथी से कुछ समय के लिए दूर रहना पड़ता है. जीवनसाथी के स्वास्थ्य में कमी भी आती है. वैवाहिक जीवन में इन्हें अपयश से बचने का प्रयास करना चाहिए.
सप्तम भाव में बुध-गुरु की युति (Combination of Mercury-Jupiter in Seventh House)
यह योग व्यक्ति के जीवनसाथी के सौन्दर्य में वृद्धि करता है. विवाह भाव में बुध व गुरु कि युति होने से मित्रों की संख्या अधिक होती है. उन्हें अपने छोटे भाई-बहनों का सहयोग प्राप्त होता है. इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के जीवनसाथी के धन में वृद्धि होती है.
यह योग व्यक्ति के जीवनसाथी के स्वभाव में मृ्दुता का भाव रहने की संभावनाएं बनाता है. अपने मधुर स्वभाव के कारण उसके सभी से अच्छे संबन्ध होते है. ऎसे व्यक्ति को अपने पिता के सहयोग से लाभ प्राप्त होने की भी संभावनाएं बनती है.
सप्तम भाव में बुध-शुक्र की युति (Combination of Mercury-Venus in Seventh House)
जब कुण्डली में विवाह भाव में बुध व शुक्र दोनों शुभ ग्रह एक साथ स्थित हों तो व्यक्ति के जीवनसाथी के सहयोग से धन व वैभव में वृद्धि की संभावना बनती हैं. योग के शुभ प्रभाव से व्यक्ति के पारिवारिक स्तर में भी वृद्धि होती है. उन्हें सरकारी क्षेत्रों से भी लाभ प्राप्त होने की संभावना बनती है. इस योग के व्यक्ति का जीवन साथी स्वभाव, गुण व योग्यता से उत्तम होता है.
सप्तम भाव में बुध-शनि की युति (Combination of Mercury-Saturn in Seventh House)
इस योग वाले व्यक्ति की शादी में विलम्ब की संभावना रहती है. इनके जीवनसाथी को परोपकारी बनना चाहिए तथा सच बोलने का प्रयास करना चाहिए.
सप्तम भाव में गुरु-शुक्र की युति (Combination of Jupiter-Venus in Seventh House)
यह योग व्यक्ति के जीवनसाथी को सुन्दर, सुशील व जीवनसाथी से स्नेह करने वाला बनाता है. इसके फलस्वरुप व्यक्ति के धन, वैभव में वृद्धि होती है. उत्तम वाहनों का सुख प्राप्त होने का योग बनता है. इस योग के कारण व्यक्ति के यश में भी बढ़ोतरी होती है.
सप्तम भाव में गुरु-शनि की युति (Combination of Jupiter-Saturn in Seventh House)
यह योग जीवनसाथी को जिद्दी बना सकता है. इस योग के व्यक्ति को अपने पिता के धन को अनावश्य व्यय नहीं करना चाहिए. इन्हें आर्थिक नुकसान का भी सामना करना पड़ सकता है.

सप्तम भाव में शुक्र-शनि की युति (Combination of Venus-Saturn in Seventh House)
विवाह भाव में शुक्र व शनि की युति से व्यक्ति के जीवनसाथी को धन, वैभव तथा अनेक प्रकार के सुख प्राप्त होने कि संभावना बनती है.