Monday, 18 May 2015

वास्तुदोष को दूर करें : नकारात्मक ऊर्जा दूर करें


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आपको मालूम होना चाहिए कि मकान के प्रवेश द्वार के सामने कोई रोड, गली या टी जक्शन हो, तो ये गंभीर वास्तुदोष उत्पन्न करते हैं, खासकर उन भवनों में जो दक्षिण व पश्चिम मुखी होते हैं। ऐसा माना जाता है कि ऐसे मकान में निवास करने वाले लोगों को प्रत्येक काम में असफलता ही हाथ लगती है।

वास्तुदोष से मुक्ति के लिए यह उपाय करें :-

- आप अपने मकान के बाहर उस नकारात्मक टी की तरफ मुँह किए 6 इंच का एक अष्टकोण आकार का मिरर लटका दें। ऐसा करने से दक्षिण एवं पश्चिम दिशाओं की टी का सम्पूर्ण वास्तुदोष ठीक हो जाता है।

- आपके मकान में कमरे की खिड़की, दरवाजा या बॉलकनी ऐसी दिशा में खुले, जिस ओर कोई खंडहरनुमा मकान स्थित हो। या वहाँ कोई उजाड़ जमीन या प्लाट पड़ा हो या फिर बरसों से बंद पड़ा मकान हो, श्मशान या कब्रिस्तान स्थित हो, तो यह अत्यंत अशुभ है। ऐसे मकान में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए किसी शीशे की प्लेट में कुछ छोटे-छोटे फिटकरी के टुकड़े आदि खिड़की या दरवाजे या बालकनी के पास रख दें तथा उन्हें हर महीने नियम से बदलते रहें, तो वास्तुदोष से मुक्ति मिलती है।

- यदि मकान के किसी कमरे में सोने पर तरह-तरह के भयावह सपने आते रहते हों, इसके कारण आपको रात में नींद नहीं आती
हो, बुरे सपने देखने के बाद छोटे बच्चे सो नहीं पाते और रतजगा करने लगते हैं अथवा रोते रहते हैं, इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए कमरे में एक जीरो वॉट का पीले रंग का नाइट लैम्प या बल्ब जलाए रखें। यह उस कमरे में बाहर से आने वाली नकारात्मक ऊर्जा को मार भगाता है।

- कभी-कभी बच्चों को मकान के किसी कमरे में अकेले जाने से डर लगता है, उस कमरे में सोने के नाम से ही उनके रोंगटे खड़े
हो जाते हैं, ऐसे में बेड या पलंग के सिरहाने के पास वाले दोनों किनारों में ताँबे के तार से बने स्प्रिंगनुमा छल्ले डाल दें। ये छल्ले
नकारात्मकता को दूर करते हैं। छल्लों को कोने पर डालने से और तेजी से लाभ प्राप्त होगा।

- यदि किसी मकान की छत पर पूर्व, उत्तर या पूर्वोत्तर दिशाओं में कमरा, स्टोर या सर्वेन्ट रूम आदि बने हों तथा ये तीनों दिशाएँ दक्षिण-पश्चिम के नैऋत्य कोण से ऊँची बन गई हों, तो ऐसा मकान गृह स्वामी को कभी सुख नहीं देता। गृह स्वामी हमेशा परेशान व दुखी रहता है।

ऐसा गृह स्वामी अपने जीवन में नौकरियाँ बदलते रहता है अथवा व्यापार में भाग्य आजमाते रहता है। इस समस्या से मुक्ति व वास्तुदोष से छुटकारा पाने के लिए मकान के दक्षिण-पश्चिम कोने में छत पर एक पतला-सा लोहे का पाइप एवं उस पर पीली या लाल रंग की झंडी लटका दें। इससे दक्षिण-पश्चिम का कोना सबसे ऊँचा हो जाता है।


घर में विविध तस्वीरें लगाना, मूर्तियाँ रखना हमारा शौक होता है। मगर यह करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए अन्यथा घर की सुख-शांति नष्ट होते देर नहीं लगती।

1. स्नेह-शांति व सुख का प्रतीक (प्रदर्शन) करने वाली मूर्तियाँ या तस्वीरें लगाएँ। क्रोध, वैराग्य, भयकारी, वीभत्स, दुख की भावना वाली वस्तुएँ न रखें।

2. युद्ध प्रसंग, रामायण या महाभारत के युद्ध के चित्र, राक्षसों की मूर्तियाँ, तलवार लिए योद्धा आदि घर में न रखें।

3. करुण रस से ओतप्रोत स्त्री, रोता बच्चा, अकाल, सूखे पेड़ आदि की तस्वीरें कतई न लगाएँ।

4. बंदर, सर्प, गिद्ध, कबूतर, बाघ, कौआ, गरुड़, उल्लू, भालू, सियार, सुअर आदि की तस्वीरें या मूर्ति कतई न रखें।

5. ऐतिहासिक-पौरा‍णिक घटनाओं को दिखाने वाली तस्वीरें न लगाएँ।

6. घोड़ा, ऊँट या हिरण घर में लगाया जा सकता है।

7. घर में स्थान-स्थान पर भगवान की मूर्तियाँ या चित्र न लगाएँ। इनसे लाभ की बजाय हानि होती हैं।

8. उन्हीं तस्वीरों या मूर्तियों को चुनें जो देखने पर मन को शांति और सुख प्रदान करें।

9. हंस की तस्वीर से घर में समृद्धि आती है।

जानिये आपके कुंडली में तीसरा स्थान क्या है और योग

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तृतीय स्थान संबंधी योग----
स्थिति अनुसार भाव की क्षमता का आकलन----

तृतीय स्थान से हम भाई-बहनों से संबंधों का विचार करते हैं। तृतीय भाव से कान, व्यक्ति की अभिरुचि, छोटे-मोटे प्रवास, मन की स्थिति, लेखन, साहित्य में रुचि, आर्थिक स्थिति, पराक्रम आदि का अंदाज लगाते हैं।

तृतीय स्थान का स्वामी तृतीयेश कहलाता है। इसकी विभिन्न भाव में स्थिति के अनुसार इस भाव की क्षमता का आकलन किया जाता है।

1. तृतीयेश लग्न में हो तो महत्वाकांक्षा व आत्मविश्वास प्रबल रहता है। भाई-बहनों का सुख श्रेष्ठ होता है।
2. तृतीयेश द्वितीय में हो तो संयुक्त परिवार रहता है, भाई-बहनों में स्नेह बना रहता है।
3. तृतीयेश यदि तृतीय भाव में ही हो तो इस भाव से संबंधित सारे सुख पुष्ट हो जाते हैं। लेखन से यश मिलता है।
4. तृतीयेश चतुर्थ में हो तो मनमाफिक घर-वाहन सुख मिलता है।
5. तृतीयेश पंचम में हो तो संतति कर्तव्यदक्ष होती है, भाई-बहनों से संबंध पुष्ट रहते हैं व कला में प्रगति होती है।
6. तृतीयेश षष्ठ में हो तो शरीर में अस्वस्थता बनी रहती है। परिवार सुख में कमी आती है।
7. तृतीयेश सप्तम में हो तो जमीन-जायदाद के मुकदमों में जीत, जीवनसाथी से सुख व पार्टनरशिप में परिवारजनों से लाभ होता है।
8. तृतीयेश अष्टम में हो तो परिवार से, भाई-बहनों से बैर होता है। वैवाहिक जीवन भी तनावपूर्ण रहता है।
9. तृतीयेश नवम में हो तो आध्यात्मिक प्रवास व प्रगति के योग आते हैं, लेखन के क्षेत्र में नाम चमकता है।
10. तृतीयेश दशम में हो तो दो-तीन मार्गों से आय होती रहती है। उच्च अधिकार के मार्ग प्रशस्त होते हैं।
11. तृतीयेश ग्यारहवें में हो तो स्व परिश्रम से धनार्जन होता है, मित्र परिवार से लाभ सहयोग मिलता है।
12. तृतीयेश व्यय में हो तो आर्थिक स्थिति साधारण रहती है, परिवार से वैमनस्य बना रहता है। वाद-विवाद से नुकसान होता है।

ज्योतिष द्वारा जानें पित्रदोष के उपाय


जन्म कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी एक भाव पर सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का योग हो तो जातक को पितृ दोष होता है। यह योग कुंडली के जिस भाव में होता है उसके ही अशुभ फल घटित होते हैं। जैसे प्रथम भाव में सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि आदि अशुभ योग हो तो वह व्यक्ति अशांत, गुप्त चिंता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ होती हैं।

दूसरे भाव में यह योग बने तो परिवार में वैमनस्य व आर्थिक उलझनें हों, चतुर्थ भाव में पितृ योग के कारण भूमि, मकान, माता-पिता एवं गृह सुख में कमी या कष्ट होते हैं। पंचम भाव में उच्च विद्या में विघ्न व संतान सुख में कमी होने के संकेत हैं। सप्तम में यह योग वैवाहिक सुख में नवम में भाग्योन्नति में बाधाएँ तथा दशम भाव में पितृ दोष हो तो सर्विस या कार्य व्यवसाय संबंधी परेशानियाँ होती हैं। प्रत्येक भावानुसार फल का विचार होता है। सूर्य यदि नीच में होकर राहु या शनि के साथ पड़ा हो तो पितृदोष ज्यादा होता है।

किसी कुंडली में लग्नेश ग्रह यदि कोण (6,8 या 12) वें भाव में स्थित हो तथा राहु लग्न भाव में हो तब भी पितृदोष होता है। पितृयोग कारक ग्रह पर यदि त्रिक (6, 8,12) भावेश एवं भावों के स्वामी की दृष्टि अथवा युति का संबंध भी हो जाए, तो अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेत बाधा, ज्वर, नेत्र रोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धन हानि आदि अनिष्ट फल होते हैं। ऐसी स्थिति में रविवार की संक्रांति को लाल वस्तुओं का दान कर तथा पितरों का तर्पण करने से पितृ आदि दोषों की शांति होती है।

चंद्र राहु, चंद्र केतु, चंद्र बुध, चंद्र, शनि आदि योग भी पितृ दोष की भाँति मातृ दोष कहलाते हैं। इनमें चंद्र-राहु एवं सूर्य-राहु योगों को ग्रहण योग तथा बुध-राहु को जड़त्व योग कहते हैं।

इन योगों के प्रभावस्वरूप भी भावेश की स्थिति अनुसार ही अशुभ फल प्रकट होते हैं। सामान्यतः चन्द्र-राहु आदि योगों के प्रभाव से माता अथवा पत्नी को कष्ट, मानसिक तनाव,आर्थिक परेशानियाँ, गुप्त रोग, भाई-बंधुओं से विरोध, अपने भी परायों जैसे व्यवहार रखें आदि फल घटित होते हैं।

दशम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो इसका राहु से दृष्टि या योग आदि का संबंध हो तो भी पितृदोष होता है। यदि आठवें या बारहवें भाव में गुरु-राहु का योग और पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि कू्र ग्रहों की स्थिति हो तो पितृ दोष के कारण संतान कष्ट या संतान सुख में कमी रहती है।

अष्टमेश पंचम भाव में तथा दशमेष अष्टम भाव में हो तो भी पितृदोष के कारण धन हानि अथवा संतान के कारण कष्ट होते हैं। यदि पंचमेश संतान कारक ग्रह राहु के साथ त्रिक भावों में हो तथा पंचम में शनि आदि कू्र ग्रह हो तो भी संतान सुख में कमी होती है।

इस प्रकार राहु अथवा शनि के साथ मिलकर अनेक अनिष्टकारी योग बनते हैं, जो पितृ दोष की भाँति ही अशुभ फल प्रदान करते हैं। बृहत्पाराशर होरा शास्त्र में कुंडली में इस प्रकार के शापित योग कहे गए हैं। इनमें पितृ दोष श्राप, भ्रातृ श्राप,मातृ श्राप, प्रेम श्राप आदि योग प्रमुख हैं। अशुभ पितृदोषों योगों के प्रभाव स्वरूप जातक के स्वास्थ्य की हानि, सुख में कमी, आर्थिक संकट, आय में बरकत न होना, संतान कष्ट अथवा वंशवृद्धि में बाधा, विवाह में विलम्ब्, गुप्त रोग, लाभ व उन्नति में बाधाएं तनाव आदि अशुभ फल प्रकट होते हैं।

यदि किसी जातक की जन्म कुंडली सूर्य-राहू, सूर्य-शनि आदि योगों के कारण पितृ दोष हो, तो उसके लिए नारायण बलि, नाग पूजा अपने दिवंगत पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्रह्म भोज, दानादि कर्म करवाने चाहिए। पितृदोष निवारण के लिए अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों के फोटो लगाकर उन पर हार चढ़ाकर सम्मानित करना चाहिए तथा उनकी मृत्यु तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा सहित दान, पितृ तर्पण एवं श्राद्ध कर्म करने चाहिए।

जीवित माता-पिता एवं भाई-बहनों का भी आदर-सत्कार करना चाहिए। हर अमावस को अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल पर कच्ची लस्सी, गंगाजल, थोड़े काले तिल, चीनी, चावल, जल, पुष्पादि चढ़ाते हुए ॐ पितृभ्यः नमः मंत्र तथा पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ होगा।

हर संक्रांति, अमावस एवं रविवार को सूर्य देव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन गंगाजल, शुद्ध जल डालकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्घ्य दें। श्राद्ध के अतिरिक्त इन दिनों गायों को चारा तथा कौए, कुत्तों को दाना एवं असहाय एवं भूखे लोगों को भोजन कराना चाहिए।

भक्तों को संकट से उबारती हैं माँ

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भक्तों को संकट से उबारती हैं माँ: सच्चे मन से पुकारिए

जब-जब भी भक्तों ने अपने हृदय से मातेश्वरी का स्मरण किया है, तो समय साक्षी है कि माँ जगदम्बा तत्काल किसी भी रूप में अपने भक्तों का संकट दूर कर उसे अपार स्नेह और वात्सल्य प्रदान करती हैं लेकिन कोई छल-कपट या दंभ से माँ को चुनौती देता है तो उस पर अपार कोप ढाती हैं।

माँ तो बस प्रेम की भूखी हैं। अतः पाखण्ड न करके केवल प्रेम से, सच्चे हृदय से माँ का सुमिरन करो। माँ तुम्हारे सब दुख दूर कर तुम्हें मोक्ष प्रदान करेंगी। नवरात्र उपासना के दौरान जहाँ विधि-विधान से अनुष्ठान हो रहे थे। वहीं ज्ञानी पंडितों द्वारा लोगों को आदि शक्ति की उपासना का महत्व भी बताया गया।

कहा जाता है कि माता जानकी जी ने गौरी माँ की उपासना से ही श्रीराम को प्राप्त किया तथा माँ सीता की भक्ति से हनुमान जी आठों सिद्धियों और नौ निधियों को देने वाले बन गए। अतः नवरात्रि उपासना यदि श्री हनुमान की अध्यक्षता में की जाती है तो माता भगवती तुरंत फलदायी हो जाती हैं।

भगवती दुर्गा के आगे-आगे विजय ध्वज लेकर चलने वाले हनुमान जी ही होते हैं। अतः श्री हनुमान सदैव माँ की सेवा में तत्पर रहते हैं।
नवरात्रि में पाँचवाँ दिन स्कंदमाता का होता है। यह भगवान स्कंद कुमार कार्तिकेय के नाम से भी जाने जाते हैं। भगवान स्कंद अर्थात् कार्तिकेय की माता होने के कारण माँ दुर्गा के इस पाँचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है, इनकी वाणी शुभ है। कमल के आसन पर ये विराजमान हैं, इसलिए इन्हें पदासना देवी भी कहते हैं। इनका वाहक सिंह है।

दुर्गा शक्तियों में से छठवें दिन कात्यायन देवी का पूजन किया जाता है। माँ कात्यायनी अमोद फलदायिनी हैं। दुर्गा पूजा के छठवें दिन इस स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है।

आदि शक्ति दुर्गा का सप्तम स्वरूप कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इनके तीन नेत्र, साँसों से अग्नि निकलती है, हाथों में ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा से भगवती कालिका अपने भक्तों को निर्भयता का वरदान देती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र, मध्य ललाट में स्थिर कर साधना करनी चाहिए।

माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति महागौरी है। नवरात्र के आठवें दिन इनकी पूजा का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कल्मष घुल जाते है। उसके पूर्व संचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं आते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।

माँ दुर्गाजी की नवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियाँ होती हैं। ब्रह्मावैवर्त्त पुराण में श्रीकृष्ण जन्मखंड में ये सिद्धियाँ अठारह बताई गई हैं। माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं।

आपका घर और ज्योतिष

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खुद बदलें अपनी रसोई---

पहले के समय में महिलाओं के गुणों को उसकी रसोई से आँका जाता था क्योंकि ज्यादातर महिलाएँ घर पर रहती थीं। भले ही आज महिलाएँ कामकाजी हैं फिर भी यह विचार आज भी मौजूद है। इसीलिए महिलाओं और रसोई के संबंध से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता। हर महिला रसोई अपनी सुविधा अनुसार रखना चाहती है। पहले के मुकाबले आजकल ज्यादातर रसोइयाँ छोटी होती हैं इसलिए हर तरह का सामान लगाना इसमें बहुत मुश्किल है। कई बार ट्रांसफर की वजह से हमें शिफ्टिंग करनी पड़ती है। हर जगह अच्छी व बड़ी रसोई मिले यह जरूरी नहीं इसीलिए अपनी रसोई के लिए कुछ ऐसे कैबिनेट बनवाएँ जो आसानी से फिट हो जाते हैं और शिफ्ट करते समय जिन्हें निकालने में दिक्कत भी नहीं होती। इससे आप कहीं भी रहें रसोई फैली नहीं लगेगी। और सामान रखने की जगह भी रहती है। साथ ही अपने कैबिनेट का लुक बदलने के लिए इसे पेंट वगैरह करवाती रहें। इससे आपको नयापन महसूस होगा। ऐसे ही कुछ छोटी-छोटी चीजों से आप अपनी रसोई को न केवल काम की बल्कि आकर्षक भी बना सकती हैं।

पार्टी के इंतजाम में रखें इन्‍हें याद...

1. अगर आपने पार्टी का समय 7 बजे रखा है तो अपने डेकोरेटर, केटरिंग वाले को कहें कि वे 7 बजे से पहले ही सब रेडी रखें। 2. आपके घर का फंक्शन है। सो, जाहिर है कि आप ज्यादा व्यस्त होंगे। ऐसे में किसी भरोसेमंद करीबी पर यह जिम्मेदारी डाल दें कि वह सारे इंतजाम समय से पहले और सही ढंग से करवाए। 3. पार्टी का समय होने से पहले वेटरों को बुलाकर समझाएँ कि वे स्नैक्स, ड्रिंक्स आदि को हॉल-पंडाल में हर जगह, हर किसी के पास लेकर जाएँ। यह न हो कि आगे की कुर्सियों पर बैठे लोग तो मजे लेकर खाते-पीते रहें और दूर बैठे मेहमान मुंह ताकते रहें। 4. डेकोरेशन वाले या घर के किसी आदमी को कह कर समय से पहले पूरे पंडाल, हॉल में किसी सोंधी खुशबू वाले फ्रेशनर का छिड़काव माहौल को खुशनुमा बनाएगा। 5. अगर पनीर टिक्का, तंदूरी चाट जैसे आइटम रखे गए हैं तो बार-बे-क्यू वाले से कहें कि वह पहले ही तैयारी करके बैठे क्योंकि ऐसे आइटम बनते देर में हैं मगर इनकी माँग ज्यादा रहती है।

ऐसा हो लॉकर रूम---

1. उत्तर दि‍शा लॉकर रूम के लि‍ए सबसे उपयुक्त दि‍शा है। उत्तर में यदि‍ कि‍सी वजह से लॉकर रूम नहीं बनाया जा सकता है तो इसे पूर्व में रखें। 2. कि‍सी वजनदार चीज के नीचे ति‍जोरी नहीं रखनी चाहि‍ए। 3. ति‍जोरी को कमरे के कि‍सी भी कोने में नहीं रखना चाहि‍ए। 4. ति‍जोरी कक्ष में कचरा न होने दें। ति‍जोरी कक्ष को हमेशा साफ-सुथरा होना चाहि‍ए। 5. सोना और चाँदी जैसी चीजें लॉकर के पश्चि‍मी या दक्षि‍णी साइड में रखना चाहि‍ए। 6. ति‍जोरी के सामने एक शीशा रखना चाहि‍ए जि‍समें ति‍जोरी का प्रति‍बिंब दि‍खाई दे। ऐसा कहा जाता है कि‍ इससे पैसा दुगुना होता है। 7. ति‍जोरी कक्ष में बहते हुए पानी के झरने का चि‍त्र या कोई शोपीस होना चाहि‍ए। इससे कक्ष में सकारात्‍मक ऊर्जा फैलती है और लक्ष्मी आती है।

प्रदूषण मुक्त हो आपका घर---

अक्सर हम सोच लेते हैं कि प्रदूषण सिर्फ बाहर होता है और घर के भीतर का वातावरण बिलकुल स्वच्छ होता है तो यह सोचना बिलकुल गलत है। घर को पॉल्यूशन फ्री बनाने के लिए कुछ बातों पर गौर करें तो इससे छुटकारा पाया जा सकता है। घर के भीतर हवा में भी धूलकण, केमिकल्स और विषाणु मौजूद होते हैं, जिनकी वजह से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएँ होती हैं। अपने लिविंग रूम में ज्यादा पौधे न रखें क्योंकि यहाँ पूरा परिवार सबसे ज्यादा वक्त-बिताता है, इसलिए फर्नीचर और सोफे की नियमित रूप से डस्टिंग करें। अक्सर पेट्स परिवार के सदस्यों के साथ लिविंग रूम में ही रहना पसंद करते हैं। ऐसी स्थिति में पालतू जानवर की सफाई का विशेष रूप से ध्यान रखें, क्योंकि उनसे सबसे ज्यादा एलर्जी फैलती है। लिविंग रूम में ज्यादा पौधे न रखें, क्योंकि रात में जब घर बंद होता है तो इन पौधों से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस सेहत के लिए नुकसानदेह साबित होगा।

कहाँ बनाएँ ओवरहैड टैंक---

1. घर में ओवरहैड टैंक का स्‍थान बहुत महत्‍वपूर्ण होता है इसलि‍ए जरूरी है कि‍ इसे वास्‍तु के अनुसार बनाया जाए। पानी की टंकी हमेशा पश्चि‍मी या दक्षि‍ण पश्चि‍म दि‍शा में होनी चाहि‍ए। 2. यदि‍ ओवरहैड टैंक दक्षि‍ण पश्चि‍म दि‍शा में बनाया गया है तो उसे दो फीट ऊँचे स्‍लैब या चबूतरे पर बनाना चाहि‍ए। 3. वैसे उत्तर पूर्व की दि‍शा पानी से संबंधि‍त है लेकि‍न फि‍र भी इस भाग में ओवरहैड टैंक नहीं बनाना चाहि‍ए क्‍योंकि‍ इस दि‍शा को वास्‍तु के अनुसार कि‍सी भी तरह भारी नहीं होना चाहि‍ए। हालाँकि‍ यहाँ एक छोटी पानी की टंकी रखी जा सकती है। 4. दक्षि‍ण पश्चि‍म दि‍शा में बनाया गया ओवरहैड टैंक अशुभ परि‍णाम देता है। इससे लक्ष्मी की हानि‍ और दुर्घटनाओं की संभावना बनती है। ओवरहैड टैंक का लीक करना भी अशुभफल देता है

आफिस बनाने से पहले ध्यान रखें वास्तुशास्त्र के नियम

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वास्तु सम्मत ऑफिस हो तो उसमें कार्य करने में मन लगता है और कार्य भी भली-भांति होता है। अपने ऑफिस को बनाते समय वास्तु नियमों का पालन करना चाहिए क्योंकि वास्तु सम्मत ऑफिस में कार्य करने से सम्यक कार्य और सम्यक निर्णय लेने की शक्ति मिलती है जिससे उन्नति पथ प्रशस्त होता है। वास्तु सम्मत ऑफिस मे अधोलिखित नियमों का ध्यान रखना चाहिए- एक अच्छे आफिस में बैठते हुए यह ध्यान रखना आवश्यक हैं कि स्वामी की कुर्सी आफिस के दरवाजे के ठीक सामने ना हो। पीठ के पीछे ठोस दीवार होनी चाहिए। यह भी ध्यान रखे कि आफिस की कुर्सी पर बैठते समय आपका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रहे। आपका टेलिफोन आपके सीधे हाथ की तरफ, दक्षिण या पूर्व दिशा में रहें तथा कम्प्यूटर भी आग्नेय कोण में (सीधे हाथ की तरफ) होना चाहिए। इसी प्रकार स्वागत कक्ष आग्नेय कोण मे होना चाहिए लेकिन स्वागतकर्ता (रिसेप्सनिष्ट) का मुंह उत्तर की ओर होना चाहिए जिससे गलतियां कम होगी। ऑफिस में पूजा स्थल ईशान कोण में होना चाहिए परन्तु इस स्थान पर एक गमला अवश्‍य रखें जिससे ऑफिस की शोभा बढ़ेगी। फॉईल या किताबों की रेक वायव्य या पश्चिम में रखना हितकारी होगा। परन्तु पूरब की तरफ मुंह करके बैठते समय अपने उल्टे हाथ की तरफ कैश बॉक्स(धन रखने की जगह) बनाए इससे धनवृद्धि होगी। उत्तर दिशा में पानी का स्थान बनाए। पश्चिम दिशा में प्रमाण पत्र, शील्ड व मेडल तथा अन्य प्राप्त पुरस्कार को सजा कर रखें। ऐसा करने से आपका आफिस निश्चित रूप से वास्तु संम्मत कहलाएगा व आपको शांति व संमृद्धि देने के साथ साथ आपकी उन्नति में भी सहायक होगा। विभिन्न कार्यालयों हेतु शुभ रंग ऑफिस में इंटीरीयर कराते समय रंगों का भी ध्यान रखना चाहिए। रंग भी तन व मन पर विशेष प्रभाव डालते हैं। किसी डॉक्टर के क्लिनिक में स्वयं का चैम्बर सफेद या हल्के हरे रंग का होना चाहिए। किसी वकील का सलाह कक्ष काला, सफेद अथवा नीले रंग का होना चाहिए। किसी चार्टर्ड एकाउन्टेंट का चैम्बर सफेद एवं हल्के पीले रंग का हो सकता हैं। किसी ऐजन्ट का कार्यालय गहरे हरे रंग का हो सकता हैं। जीवन को समृद्धशाली बनाने के लिए व्यवसाय की सफलता महत्वपूर्ण हैं इसके लिए कार्यालय को वास्तु सम्मत बनाने के साथ साथ विभिन्न रंगों का उपयोग लाभदायक सिद्ध हो सकता हैं। वास्तु सम्मत ऑफिस उन्नतिकारी होता है। आप भी अपना ऑफिस वास्तु द्वारा निर्मित करके लाभ उठा सकते हैं।

हस्तरेखा और रिश्तों में प्यार

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अधिकतर लोगों के मुँह से यह सुनने में आता है कि हमारे तो गुण मिल गए थे परन्तु हमारे (पति-पत्नि) विचार नहीं मिल रहे हैं या हम लोगों ने एक-दूसरे को देखकर समझ-बूझकर शादी की थी। परन्तु बाद में दोनों में झगड़े बहुत होने लगे हैं। आप हस्तरेखा के द्वारा होने वाले धोखे, मंगेतर के बारे में या प्रेमी-प्रेमिका के बारे में जान सकते हैं।

किसी भी स्त्री या पुरुष के प्रेम के बारे में पता लगाने के लिए उस जातक के मुख्य रूप से शुक्र पर्वत, हृदय रेखा, विवाह रेखा को विशेष रूप से देखा जाता है। इन्हें देखकर किसी भी व्यक्ति या स्त्री का चरित्र या स्वभाव जाना जा सकता है।

शुक्र क्षेत्र की स्थिति अँगूठे के निचले भाग में होती है। जिन व्यक्तियों के हाथ में शुक्र पर्वत अधिक उठा हुआ होता है। उन व्यक्तियों का स्वभाव विपरीत सेक्स के प्रति तीव्र आकर्षण रखने वाला तथा वासनात्मक प्रेम की ओर झुकाव वाला होता है। यदि किसी स्त्री या पुरुष के हाथ में पहला पोरू बहुत छोटा हो और मस्तिष्क रेखा न हो तो वह जातक बहुत वासनात्मक होता है। वह विपरीत सेक्स के देखते ही अपने मन पर काबू नहीं रख पाता है।

अच्छे शुक्र क्षेत्र वाले व्यक्ति के अँगूठे का पहला पोरू बलिष्ठ हो और मस्तक रेखा लम्बी हो तो ऐसा व्यक्ति संयमी होता है। यदि किसी स्त्री के हाथ में शुक्र का क्षेत्र अधिक उन्नत हो तथा मस्तक रेखा कमजोर और छोटी हो तथा अँगूठे का पहला पर्व छोटा, पतला और कमजोर हो, हृदय रेखा पर द्वीप के चिह्न हों तथा सूर्य और बृहस्पति का क्षेत्र दबा हुआ हो तो वह शीघ्र ही व्याकियारीणी हो जाती है।
यदि किसी पुरुष के दाएँ हाथ में हृदय रेखा गुरू पर्वत तक सीधी जा रही है तथा शुक्र पर्वत अच्छा उठा हुआ है तो वह पुरुष अच्छा व उदार प्रेमी साबित होता है। परन्तु यदि यही दशा स्त्री के हाथ में होती है तथा उसकी तर्जनी अँगुली अनामिका से बड़ी होती है तो वह प्रेम के मामले में वफादार नहीं होती है।

यदि हथेली में विवाह रेखा एवं कनिष्ठा अँगुली के मध्य में दो-तीन स्पष्ट रेखाएँ हो तो उस स्त्री या पुरुष के उतने ही प्रेम संबंध होते हैं।

यदि किसी पुरुष की केवल एक ही रेखा हो और वह स्पष्ट तथा अन्त तक गहरी हो तो ऐसा जातक एक पत्निव्रता होता है और वह अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम भी करता है। जैसा कि बताया गया है कि विवाह रेखा अपने उद्गम स्थान पर गहरी तथा चौड़ी हो, परन्तु आगे चलकर पतली हो गई हो तो यह समझना चाहिए कि जातक या जातिका प्रारम्भ में अपनी पत्नि या पति से अधिक प्रेम करती है, परन्तु बाद में चल कर उस प्रेम में कमी आ गई है।

नया मकान बनाने से पहले ध्यान रखें कुछ खास बातें

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नए भवन के निर्माण कराते समय आप अपने शहर के किसी अच्छे वास्तु के जानकार से सलाह अवश्य लें। वास्तु का प्रभाव भवन के रहने वाले व्यक्तियों पर अवश्य पढ़ता है। परंतु इसके साथ-साथ व्यक्ति विशेष के ग्रह योग भी वास्तु के प्रभाव को घटाते-बढ़ाते हैं। हो सकता है कि एक व्यक्ति को कोई विशेष स्थान तकलीफ न दे पर वही स्थान दूसरे व्यक्ति को अत्यंत तकलीफदायक हो।

नए भवन निर्माण के समय कुछ मुख्य बातों पर ध्यान अवश्य दें..

- भवन के लिए चयन किए जाने वाले प्लॉट की चारों भुजा राइट एगिंल (90 डिग्री अंश कोण) में हों। कम ज्यादा भुजा वाले प्लॉट अच्छे नहीं होते।

- प्लाट जहाँ तक संभव हो उत्तरमुखी या पूर्वमुखी ही लें। ये दिशाएँ शुभ होती हैं और यदि किसी प्लॉट पर ये दोनों दिशा (उत्तर और पूर्व) खुली हुई हों तो वह प्लॉट दिशा के हिसाब से सर्वोत्तम होता है।
- प्लॉट के पूर्व व उत्तर की ओर नीचा और पश्चिम तथा दक्षिण की ओर ऊँचा होना शुभ होता है।

- प्लाट के एकदम लगे हुए, नजदीक मंदिर, मस्जिद, चौराह, पीपल, वटवृक्ष, सचिव और धूर्त का निवास कष्टप्रद होता है।

- पूर्व से पश्चिम की ओर लंबा प्लॉट सूर्यवेधी होता है जो कि शुभ होता है। उत्तर से दक्षिण की ओर लंबा प्लॉट चंद्र भेदी होता है जो ज्यादा शुभ होता है ओर धन वृद्धि करने वाला होता है।

- प्लॉट के दक्षिण दिशा की ओर जल स्रोत हो तो अशुभ माना गया है। इसी के विपरीत जिस प्लॉट के उत्तर दिशा की ओर जल स्रोत (नदी, तालाब, कुआँ, जलकुंड) हो तो शुभ होता है।

- जो प्लॉट त्रिकोण आकार का हो, उस पर निर्माण कराना हानिकारक होता है।

- भवन निर्माण कार्य शुरू करने के पहले अपने आदरणीय विद्वान पंडित से शुभ मुहूर्त निकलवा लेना चाहिए।

- भवन निर्माण में शिलान्यास के समय ध्रुव तारे का स्मरण करके नींव रखें। संध्या काल और मध्य रात्रि में नींव न रखें।

- नए भवन निर्माण में ईंट, पत्थर, मिट्टी ओर लकड़ी नई ही उपयोग करना। एक मकान की निकली सामग्री नए मकान में लगाना हानिकारक होता है।

- भवन का मुख्य द्वार सिर्फ एक होना चाहिए तो उत्तर मुखी सर्वश्रेष्ठ एवं पूर्व मुखी भी अच्छा होता है। मुख्य द्वार की चौखट चार लकड़ी की एवं दरवाजा दो पल्लों का होना चाहिए।

- भवन के दरवाजे अपने आप खुलने या अपने आप बंद न होते हों यह भी ध्यान रखना चाहिए। दरवाजों को खोलने या बंद करते समय आवाज होना अशुभ माना गया है।

- भवन में सीढ़ियाँ वास्तु नियम के अनुरूप बनानी चाहिए, सीढ़ियाँ विषम संख्या (5,7, 9) में होनी चाहिए।