Friday 10 April 2015

शापित गावं कुलधारा

          भारत अपने आप में आश्चर्य भरा देश है। यहां की परंपरा, रीतिरिवाज और मान्यतायें बड़ी ही आश्चर्य जनक हैं। कई विश्वास तथा मान्यताएं रहस्यमयी सी प्रतीत होती हैं। अनेक प्रांतों में भाषा की विभिन्नता के साथ ही मान्यताएं तथा परंपराएं भी विचित्रता लिये हुये हैं। ऐसी ही विचित्रता से पूर्ण है राजस्थान के जैसलमेर जिले का कुलधरा गाँव। यह गांव पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा है। कुलधरा गाँव के हजारों लोग एक ही रात में इस गांव को खाली कर के चले गए थे और जाते-जाते श्राप दे गए थे कि यहाँ फिर कभी कोई नहींं बस पायेगा। तब से गाँव वीरान पड़ा हैं।
                कहा जाता है कि यह गांव अज्ञात ताकतों के कब्जे में है, कभी हंसता खेलता यह गांव आज एक खंडहर में तब्दील हो चुका है। कुलधरा गांव घूमने आने वालों के मुताबिक यहां रहने वाले पालीवाल ब्राह्मणों की आहट आज भी सुनाई देती है। उन्हेंं वहां हरपल ऐसा अनुभव होता है कि कोई आसपास चल रहा है। बाजार के चहल-पहल की आवाजें आती हैं, महिलाओं के बात करने, उनकी चूडिय़ों और पायलों की आवाज हमेशा ही वहां के माहौल को भयावह बनाती है। प्रशासन ने इस गांव की सरहद पर एक फाटक बनवा दिया है जिसके पार दिन में तो सैलानी घूमने आते रहते हैं लेकिन रात में इस फाटक को पार करने की कोई हिम्मत नहींं करता हैं।
वैज्ञानिक तरीके से हुआ था गाँव का निर्माण-
कुलधरा, जैसलमेर से लगभग अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है। पालीवाल समुदाय के इस इलाके में चौरासी गांव थे और कुलधरा उनमें से एक था। मेहनती और रईस पालीवाल ब्राम्हणों की कुलधरा शाखा ने सन 1291 में तकरीबन छह सौ घरों वाले इस गांव को बसाया था। कुलधरा गाँव पूर्ण रूप से वैज्ञानिक तौर पर बना था। ईंट-पत्थर से बने इस गांव की बनावट ऐसी थी कि यहां कभी गर्मी का अहसास नहींं होता था। कहते हैं कि इस कोण में घर बनाए गये थे कि हवाएं सीधे घर के भीतर होकर गुजरती थीं। कुलधरा के ये घर रेगिस्तान में भी वातानुकूलन का अहसास देते थे। इस जगह गर्मियों में तापमान 45 डिग्री रहता हैं पर आप यदि कभी भरी गर्मी में इन वीरान पड़े मकानों में जायेंगे तो आपको शीतलता का अनुभव होगा। गांव के तमाम घर झरोखों के जरिए आपस में जुड़े थे इसलिए एक सिरे वाले घर से दूसरे सिरे तक अपनी बात आसानी से पहुंचाई जा सकती थी। घरों के भीतर पानी के कुंड, ताक और सीढिय़ां कमाल के हैं ।
                पालीवाल, ब्राम्हण होते हुए भी बहुत ही उद्यमी समुदाय था। अपनी बुद्धिमत्ता, कौशल और अटूट परिश्रम के रहते पालीवालों ने रेतीली धरती पर सोना उगाया था। हैरत की बात ये है कि पाली से कुलधरा आने के बाद पालीवालों ने रेगिस्तानी सरजमीं के बीचोंबीच इस गांव को बसाते हुए खेती पर केंद्रित समाज की परिकल्पना की थी। रेगिस्तान में खेती पालीवालों के समृद्धि का रहस्य था। जिप्सम की परत वाली जमीन को पहचानना और वहां पर बस जाना। पालीवाल अपनी वैज्ञानिक सोच, प्रयोग और आधुनिकता की वजह से उस समय भी इतनी तरक्की कर पाए थे।
                पालीवाल समुदाय आमतौर पर खेती और मवेशी पालने पर निर्भर रहता था और बड़ी शान से जीता था। जिप्सम की परत बारिश के पानी को जमीन में अवशोषित होने से रोकती और इसी पानी से पालीवाल खेती करते और जबर्दस्त फसल पैदा करते। पालीवालों के जल-प्रबंधन की इसी तकनीक ने थार रेगिस्तान को इंसानों और मवेशियों की आबादी या तादाद के हिसाब से दुनिया का सबसे सघन रेगिस्तान बनाया। पालीवालों ने ऐसी तकनीक विकसित की थी कि बारिश का पानी रेत में गुम नहींं होता था बल्कि एक खास गहराई पर जमा हो जाता था, जो उनकी समृद्धि का कारक था।
कुलधरा गाँव के खंडहर: कुलधरा के वीरान होने कि कहानी
इतना विकसित गाँव रातों रात वीरान हो गया, इसकी वजह था गाँव का अय्याश दीवान सालम सिंह जिसकी नजर गाँव कि एक खूबसूरत लड़की पर पड़ गयी थी। दीवान उस लड़की के पीछे इस कदर पागल था कि बस किसी तरह से उसे पा लेना चाहता था। उसने इसके लिए ब्राह्मणों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। हद तो तब हो गई कि जब सत्ता के मद में चूर उस दीवान ने लड़की के घर संदेश भिजवाया कि यदि अगले पूर्णमासी तक उसे लड़की नहींं मिली तो वह गांव पर हमला करके लड़की को उठा ले जाएगा। गांववालों के लिए यह मुश्किल की घड़ी थी। उन्हेंं या तो गांव बचाना था या फिर अपनी बेटी। इस विषय पर निर्णय लेने के लिए सभी 84 गांव वाले एक मंदिर पर इक_ा हो गए और पंचायतों ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए अपनी लड़की उस दीवान को नहींं देंगे।
                फिर क्या था, गांव वालों ने गांव खाली करने का निर्णय कर लिया और रातोंरात सभी उस गांव से ओझल हो गए। जाते-जाते उन्होंने श्राप दिया कि आज के बाद इन घरों में कोई नहींं बस पाएगा। आज भी वहां की हालत वैसी ही है जैसी उस रात थी जब लोग इसे छोड़ कर गए थे।
                पालीवाल ब्राह्मणों के श्राप का असर यहां आज भी देखा जा सकता है। जैसलमेर के स्थानीय निवासियों की मानें तो कुछ परिवारों ने इस जगह पर बसने की कोशिश की थी, लेकिन वह सफल नहींं हो सके। स्थानीय लोगों का तो यहां तक कहना है कि कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो वहां गए जरूर लेकिन लौटकर नहींं आए। उनका क्या हुआ, वे कहां गए कोई नहींं जानता।
                पर्यटक यहां इस चाह में आते हैं कि उन्हेंं यहां दबा हुआ सोना मिल जाए। इतिहासकारों के मुताबिक पालीवाल ब्राह्मणों ने अपनी संपत्ति जिसमें भारी मात्रा में सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात थे, उसे जमीन के अंदर दबा रखा था। यही वजह है कि जो कोई भी यहां आता है वह जगह-जगह खुदाई करने लग जाता है। इस उम्मीद से कि शायद वह सोना उनके हाथ लग जाए। यह गांव आज भी जगह-जगह से खुदा हुआ मिलता है।
कुलधरा गाँव में एक प्राचीन मंदिर के अवशेष:

दिल्ली से आई भूत-प्रेत व आत्माओं पर रिसर्च करने वाली पेरानार्मल सोसायटी की टीम ने कुलधरा गांव में एक रात बिताई। टीम ने माना कि यहां कुछ न कुछ असामान्य जरूर है। टीम के एक सदस्य ने बताया कि उस रात में कई बार मैंने महसूस किया कि किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, जब मुड़कर देखा तो वहां कोई नहींं था। पेरानॉर्मल सोसायटी के अनुसार उनके पास एक डिवाइस है जिसका नाम गोस्ट बॉक्स है। इसके माध्यम से वे ऐसी जगहों पर रहने वाली आत्माओं से सवाल पूछते हैं। कुलधरा में भी ऐसा ही किया जहां कुछ आवाजें आई तो कहीं असामान्य रूप से आत्माओं ने अपने नाम भी बताए। टीम के सदस्य जब कुलधरा गांव में घूमकर वापस लौटे तो उन्होंने अपनी गाडिय़ों की कांच पर बच्चों के पंजे के निशान देखे, जबकि आप-पास तो कोई बच्चा नहीं था। इस प्रकार एक बसा-बसाया गांव किस अज्ञात कारण से वीरान हो गया, इसकी सच्चाई आज तक रहस्य ही है।





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गरियबंध

                पैरी नदी के आंचल में हरे-भरे सघन वनों     और पहाडिय़ों के मनोरम प्राकृतिक दृश्यों से सुसज्जित गरियाबंद जिले का निर्माण 690 गांवों, 306 ग्राम पंचायतों और 158 पटवारी हल्कों को मिलाकर किया गया है। जमीन के ऊपर बहुमूल्य वन सम्पदा के साथ-साथ यह जिला अपनी धरती के गर्भ में अलेक्जेण्डर और हीरे जैसी मूल्यवान खनिज सम्पदा को भी संरक्षित किए हुए है। गिरि यानी पर्वतों से घिरे होने (बंद होने) के कारण संभवत: इसका नामकरण गरियाबंद हुआ। गरियाबंद जिले की कुल जनसंख्या पांच लाख 75 हजार 480 है। लगभग चार हजार 220 वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक क्षेत्रफल वाले इस जिले में दो हजार 860 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र और एक हजार 360 वर्ग किलोमीटर राजस्व क्षेत्र है। नये गरियाबंद जिले का कुल वन क्षेत्र लगभग 67 प्रतिशत है। इस नये जिले में वन्य प्राणियों सहित जैव विविधता के लिए प्रसिध्द उदन्ती अभ्यारण्य भी है। इस अभ्यारण्य के नाम से वन विभाग का उदन्ती वन मण्डल भी यहां कार्यरत है।
                गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर विकासखण्ड (तहसील) में ग्राम कोपरा स्थित कोपेश्वर महादेवफिंगेश्वर स्थित कर्णेश्वर महादेव और पंचकोशी महादेव सहित विकासखण्ड छुरा में ग्राम कुटेना में सिरकट्टी आश्रम, जतमई माता का मंदिर ओर घटारानी का पहाड़ी मंदिर तथा जल प्रपात भी इस जिले की सांस्कृतिक और नैसर्गिक पहचान बनाते हैं। पैरी नदी पर निर्मित सिकासार जलाशय सहित उदन्ती अभ्यारण्य, देवधारा (मैनपुर) और घटारानी के जल प्रपात यहां सैलानियों को यहां आकर्षित करते रहे हैं। सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्व की दृष्टि से देखा जाए तो नये गरियाबंद जिले को अनेक प्रसिध्द हस्तियों की जन्म भूमि और कर्म भूमि होने का गौरव प्राप्त है। पहाड़ी क्षेत्र में घूमने के लिए राजिम मार्ग सबसे अच्छी जगह है। जहा प्रकृति की सौंदर्यता का आनंद लिया जा सकता है। राजिम मार्ग में 70 मीटर की उंचाई से गिरते हुए झरने का आनंद सबसे मनमोहक है। इस पहाड़ की खास बात यह है की पहाड़ को देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो जैसे वहां के सारे पत्थर किसी ने अपने हाथो से जमाये हो।
जतमई और घटारानी में माता का दरबार:   
झरनों की रिमझिम फुहार के बीच यह है जतमई माता का दरबार। राजधानी रायपुर से करीब 70 किलो मीटर की दूरी पर राजिम मार्ग में है, जतमई। जतमई का रास्ता इतना रोमांचक है कि यहां हर कोई जाना चाहता है। एक तो माता का दरबार, उस पर प्रकृति के अद्भुत नजारे हैं। छल छल करते मनोरम झरने और जतमई - घटारानी मंदिर। जतमई और घटारानी दो अलग-अलग जगहें हैं। पटेवा के निकट स्थित जतमई पहाड़ी एक 200 मीटर क्षेत्र में फैला पहाड़ है, जिसकी उंचाई करीब 70 मीटर है। यहां शिखर पर विशालकाय पत्थर एक-दूसरे के ऊपर इस कदर टिके हैं, जैसे किसी ने उन्हेंं जमाया हो। जतमई में प्रमुख मंदिर के निकट ही सिद्ध बाबा का प्राचीन चिमटा है, जिसके बारे में किवंदती है कि यह 1600 वीं शताब्दी का है. बारिश के दिनों झरनों की रिमझिम फुहार इसे बेहतरीन पिकनिक की जगह बना देता है , यहाँ पर्यटक नहाने का बहुत आनंद उठाते हैं। ऊपर है जतमई माता का दरबार। यहां के नजारें आंखों को बहुत प्यारे लगते हैं। जतमई के रास्ते का प्राकृतिक सौंदर्य भी देखने लायक और रोमांचक है नवरात्रि के समय यहां दर्शनार्थियों की बहुत भीड़ लगने लगी है। घटारानी जतमई से 25 कि.मी. है। यहाँ पर भी बेहतरीन जल -प्रपात है। घटारानी मंदिर कि भी बहुत मान्यता है। घटारानी प्रपात तक पहुंचना आसान नहींं है, पर पर्यटकों के जाने के लिए पर्याप्त साधन हैं। प्रकृति प्रेमियों के लिए इन जगहों पर जाने का सबसे अच्छा समय अगस्त से दिसंबर तक है। गरियाबंद का जतमई और घटारानी धाम के वाटर फॉल को देखकर पर्यटक खासे रोमांचित होते हैं और जो एक बार यहां आ जाता है दोबारा आने की हसरत लिए वापस जाता है। बरसात के समय मंदिर में पानी भरा रहता है और ऐसी मान्यता है की जल भी माता के चरणों को छूकर आगे प्रवाहित होता है।
                माँ जतमई के मंदिर में चैत्र नवरात्र और कुंवार नवरात्र में मनोकामना ज्योति प्रज्वलित किये जाते हैं एवं इस समय मेला भी लगता है। जतमई मार्ग पर और भी पर्यटक स्थल है यहाँ पास में छोटा सा बांध है जो पिकनिक स्पॉट भी है। 
अदृश्य रहस्यमय गाँव:
धरती पर गाँव-नगर, राजधानियाँ उजड़ी, फिर बसी, पर कुछ जगह ऐसी हैं जो एक बार उजड़ी, फिर बस न सकी। कभी राजाओं के साम्राज्य विस्तार की लड़ाई तो कभी प्राकृतिक आपदा, कभी दैवीय प्रकोप से लोग बेघर हुए। बसी हुयी घर गृहस्थी और पुरखों के बनाये घरों को अचानक छोड़ कर जाना त्रासदी ही है। बंजारों की नियति है कि वे अपना स्थान बदलते रहते हैं, पर किसानों का गाँव छोड़ कर जाना त्रासदीपूर्ण होता है, एक बार उजडऩे पर कोई गाँव बिरले ही आबाद होता है। गरियाबंद जिले का एक ऐसा ही बांव है केडी आमा (अब रमनपुर), जो150 वर्षों के बाद अब पुन: आबाद हो रहा है। ऐसा ही एक गाँव गरियाबंद जिले में फिंगेश्वर तहसील से 7 किलो मीटर की दूरी पर चंदली पहाड़ी के नीचे मिला है। सूखा नदी के किनारे चंदली पहाड़ी की गोद में बसा था टेंवारी गाँव। यह आदिवासी गाँव कभी आबाद था, जीवन की चहल-पहल यहाँ दिखाई देती थी। अपने पालतू पशुओं के साथ ग्राम वासी गुजर-बसर करते थे। दक्षिण में चंदली पहाड़ी और पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती सूखा नदी आगे चल कर महानदी में मिल जाती है। इस सुरम्य वातावरण के बीच टेंवारी आज वीरान-सुनसान है। इस गाँव के विषय में मिली जानकारी के अनुसार इसे रहस्यमयी कहने में कोई संदेह नहींं है। उजड़े हुए घरों के खंडहर आज भी अपने उजडऩे की कहानी स्वयं बयान करते हैं। ईमली के घने वृक्ष इसे और भी रहस्यमयी बनाते हैं। ईमली के वृक्षों के बीच साँपों की बड़ी-बड़ी बांबियाँ दिखाई देती हैं। परसदा और सोरिद ग्राम के जानकार कहते हैं कि गाँव उजडऩे के बाद से लेकर आज तक वहां कोई भी रहने की हिम्मत नहींं कर पाया। ग्राम सोरिद खुर्द से सूखा नदी पार करने के बाद इस वीरान गाँव में एक मंदिर और आश्रम स्थित है। जंगल के रास्ते में साल के वृक्ष की आड़ में विशाल शिवलिंग है, जो पत्तों एवं घास की आड़ छिपा था। आश्रम, खपरैल की छत का बना है, सामने ही एक कुंवा है। कच्ची मिटटी की दीवारों पर सुन्दर देवाकृतियाँ बनी हैं। शिव मंदिर की दक्षिण दिशा में सूखा नदी है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह शिवलिंग प्राचीन एवं मान्य है। इसे टानेश्वर नाथ महादेव कहा जाता है, यह एकमुखी शिवलिंग तिरछा है। कहते हैं कि फिंगेश्वर के मालगुजार इसे ले जाना चाहते थे, खोदने पर शिवलिंग कि गहराई की थाह नहींं मिली। तब उसने ट्रेक्टर से बांध कर इसे खिंचवाया। तब भी शिवलिंग अपने स्थान से टस से मस नहींं हुआ। थक हार इसे यहीं छोड़ दिया गया। तब से यह शिवलिंग टेढ़ा ही है।
प्राचीन बंदरगाह:
गरियाबंद से 15 किलोमीटर पर पैरी नदी के तट पर स्थित एक ग्राम का नाम मालगाँव है। यहाँ नावों द्वारा लाया गया सामान (माल) रखा जाता था। इसलिए इस गांव का नाम मालगाँव पड़ा। वर्षाकाल में रायपुर से देवभोग जाने वाले यात्री मालगाँव से भली भांति परिचित होते थे, क्योंकि यहीं से पैरी नदी को नाव द्वारा पार करना पड़ता था। यहाँ से महानदी के जल-मार्ग के माध्यम द्वारा कलकत्ता तथा अन्य स्थानों से वस्तुओं का आयात-निर्यात हुआ करता था। पू्र्वी समुद्र तट पर 'कोसल बंदरगाहÓ नामक एक विख्यात बन्दरगाह भी था। जहाँ से जल परिवहन के माध्यम से व्यापार होता था। इससे ज्ञात होता है कि वन एवं खनिज संपदा से भरपूर छत्तीसगढ प्राचीन काल से ही समृद्ध रहा है। नदियाँ इसे धन धान्य से समृद्ध करते रही हैं। पैरी नदी के तट पर कुटेना में स्थित यह बंदरगाह (गोदी) पाण्डुका ग्राम से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। अवलोकन करने पर प्रतीत होता है कि इस गोदी का निर्माण कुशल शिल्पियों ने किया है। इसकी संरचना में 90 अंश के कई कोण बने हैं। कठोर लेट्राईट को काटकर बनाई गयी गोदियाँ तीन भागों में निर्मित हैं, जो 5 मीटर से 6.60 मीटर चौड़ी तथा 5-6मीटर गहरी हैं। साथ ही इन्हें समतल बनाया गया, जिससे नाव द्वारा लाया गया सामान रखा जा सके। वर्तमान में ये गोदियाँ नदी की रेत में पट चुकी हैं। रेत हटने पर गोदियाँ दिखाई देने लगती हैं। इस स्थान पर महाभारत कालीन मृदा भांड के टुकटे भी मिलते हैं। नदी से कोसला वज्र (हीरा) प्राप्त होता था तथा जल परिवहन द्वारा आयात-निर्यात होता था। पैरी नदी का उद्गम मैनपुर से लगे हुए ग्राम भाटीगढ़ से हुआ है। पहाड़ी पर स्थित पैरी उद्गम स्थल से जल निरंतर रिसता है। अब इस स्थान पर छोटा सा मंदिर भी बना दिया गया है। पैरी और सोंढूर नदी का मिलन रायपुर-गरियाबंद मार्ग पर स्थित मालगाँव के समीप मुहैरा ग्राम के समीप हुआ है। यहाँ से चल कर दोनों नदियाँ महानदी से जुड़ जाती है।
सिरकट्टी आश्रम:
पैरी नदी के तट पर कुटेना ग्राम का सिरकट्टी आश्रम स्थित है। आश्रम का नाम सिरकट्टी इसलिए पड़ा कि यहाँ मंदिर के अवशेष के रुप में सिर कटी मूर्तियाँ प्राप्त हुई, जिन्हे बरगद के वृक्ष के नीचे स्थापित कर दिया। तब से इसे सिरकट्टी आश्रम के नाम से जाना जाता है। आश्रम में स्थित सिरकटी मूर्तियाँ एक दीमक की बांबी से प्राप्त हुई थी। कुछ द्रव्य के साथ दो शिवलिंग भी यहाँ प्राप्त हुए, जिसमें से एक पेड़ के नीचे स्थापित है, दूसरा मंदिर में स्थापित है। इस स्थान पर सुदूर प्रांतों से आये संत आश्रम की सेवा करते हैं।
प्राकृतिक शिवलिंग-             भूतेश्वरनाथ महादेव:
गरियाबंद से 3 किलो मीटर दूर मरौदा के जंगलो में विश्व का सबसे बड़ा प्राकृतिक शिवलिंग है। यह अर्धनारीश्वर प्राकृतिक शिव लिंग हैं जो विश्वप्रसिध्द विशालतम शिव लिंग के नाम से प्रसिध्द है। यह शिव लिंग प्रतिवर्ष अपने आप में बढ़ता जा रहा हैं इसे भुतेश्वर महादेव कहा जाता है। हर वर्ष महाशिवरात्रि एवं सावन माह के पर्व पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। सुरम्य वनों एवं पहाडिय़ों से घिरे अंचल में प्रकृति प्रदत्त विश्व का सबसे विशाल शिवलिंग विराजमान है। यह समस्त क्षेत्र गिरी (पर्वत) तथा वनों से आच्छादित हैं इसे गिरिवन क्षेत्र कहा जाता था जो कालांतर में गरियाबंद कहलाया। भूमि, जल, अग्नि, आकाश और हवा पंचभूत कहलाते हैं, इन सबके ईश्वर भूतेश्वर हैं, समस्त प्राणियों का शरीर भी पंचभूतों से बना हैं इस तरह भूतेश्वरनाथ सबके ईश्वर हैं उनकी आराधना सम्पूर्ण विश्व की आराधना हैं।
                इस तरह भुतेश्वर महादेव ने ज्ञान रूपी गंगा, शांति रूपी चन्द्रमा, विवके रूपी तीसरी आंख तथा कटुता रूपी सर्प और मृत्यु रूपी मुंड धारण किया हैं। भूतेश्वर नाथ प्रांगण अत्यंत विशाल हैं यहां पर  गणेश मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, राम जानकी मंदिर, यज्ञ मंडप, दो सामुदायिक भवन, एक सांस्कृतिक भवन तथा बजरंग बली का मंदिर है। यहां के मंदिर व भवन, भूतेश्वर नाथ समिति तथा अनेक श्रध्दालुओं के द्वारा यह निर्माण किये गए हैं जो भूतेश्वर नाथ धाम को भव्यता प्रदान कर रहे हैं।
उदन्ती अभ्यादरण्य:
उड़ीसा से लगे रायपुर-देवभोग मार्ग पर यह अभयारण्य रायपुर से 140 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। पश्चिम से पूर्व की ओर बहने वाली उदंती नदी के नाम पर इस अभयारण्य का नामकरण हुआ है। छोटे-छोटे पहाडिय़ों की श्रृंखलाओं एवं उनके बीच फैली हुई मैदानी पट्टियों से इस अभयारण्य की विशेषाकृति तैयार हुई है। इस अभ्यारण्य में 10 वनग्राम है जिसमें मुख्यत: जनजाति के लोग रहते है।
                उदंती की लहलहाती पहाडिय़ां, घने वनों से आच्छादित हैं। इन वनों में साजा, बीजा, लेंडिया, हल्दु, धाओरा, आंवला, सरई एवं अमलतास जैसी प्रजातियों के वृक्ष भी पाए जाते हैं। वनभूमि घास, पेड़ों, झाडिय़ों व पौधों से ढंकी हुई हैं। अभयारण्य का उत्तरी-पिश्चमी भाग साल के वृक्षों से सुसज्जित है। फरवरी माह में उदंती नदी का बहाव रूक जाता है। बहाव रूकने से नदी तल में पानी के सुंदर एवं शांत ताल निर्मित हो जाते हैं। जिनमें वनभैंसा, गौर, शेर, तेन्दुआ, चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर, सियार, भालू, जंगली कुत्ते, जंगली बिल्ली, साही, लोमड़ी, धारीदार लकड बग्घा देखे जा सकते हैं। उदंती में पक्षियों की 120 से भी ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें कई प्रवासी पक्षी शामिल हैं। इनमें से कुछ हैं जंगली मुर्गे, फेजेन्ट, बुलबुल, ड्रोंगो, कठफोड़वा आदि। उदंती संपूर्ण रूप से एक विशिष्ट अनुभव है।
उदंती में स्थित अन्य दर्शनीय स्थल:
1.गोडेना जलप्रपात: यह जलप्रपात कर्रलाझर से 8कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह स्थान बहुत ही मनोरम एवं एकांतमय है जहां झरने की कलकल ध्वनी से पहाड़ी गूंजती सी प्रतीत होती है। यह पर्यटकों के लिये पिकनिक का एक उत्तम स्थान है।
2.देवधारा जलप्रपात: तौरेंगा से 12 कि.मी. की दूरी पर यह जलप्रपात है। यहां पहुचने के लिये 1.5 कि.मी. पैदल चलना पड़ता है। यह स्थान भी बहुत ही खुबसूरत है एवं यह बांस एवं मिश्रित वन से घिरा हुआ है।
पहुंच मांर्ग:
वायुमार्ग- रायपुर (45कि.मी.) निकटतम हवाई अड्डा है जो दिल्ली, मुंबई, नागपुर, भुवनेश्वर, कोलकाता, रांची, विशाखापट्नम एवं चैन्नई से जुड़ा हुआ है।
रेलमार्ग-रायपुर निकटतम रेल्वे स्टेशन है तथा यह हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर स्थित है।
सड़क मार्ग- नियमित बस तथा टैक्सी सेवा रायपुर तथा महासुमंद से जुड़ा हुआ है।
आवास व्यवस्था-

यहां पर पी.डब्लू.डी का विश्रामगृह है तथा अधिक आरामदायक सुविधा के लिए रायपुर में विभिन्न प्रकार के होटल्स उपलब्ध है।\


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Colour Therapy as Remedial Measure

Colour Therapy as Remedial Measure
Diseases like Constipation, depression, heart or blood problem can be controlled / cured by using colour therapy as remedial measure.
Orange color
• Orange color can be considered as power of energy. It is also considered as a color of peace.
• Children who do not share their views with others they do not like orange color.
• If child does not talk openly, he has gas problem or energy is less or they may have depression or they have stomach problem; they should wear orange color.
• If child have depression, negative thinking and also have weakness then he should use orange color.
• Breathe problem occur if orange level decrease in the body.
• If one has depression they have to wear orange color clothes.
How to use
• Take sunlight on face and head by keeping selofin in front.
• Take white bottle and covered it with orange selofin and keep it in sunlight for 11 days and can give this water to children to drink.
• Use orange bottle while doing yoga so that breathe problem can be solved.
• Take one bottle and covered it with orange selofin and keep it 2-3 hours in sunlight and do Anuloam Vilom by using this bottle.
• If one has depression they have to wear orange color clothes.






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ग्रहों की दशा और मनुष्य का स्वास्थ्य

ग्रहों की दशा और मनुष्य का स्वास्थ्य
आधुनिक युग में अधिकांश मनुष्य चिंता, उन्माद, अवसाद, भय आदि से प्रभावित है। मनोविज्ञान में इन्हें मनोरोगों के एक प्रकार मनस्ताप (न्यूरोटाॅसिज्म) के अंतर्गत रखा गया है। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकार है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएॅं उत्पन्न होती हैं। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकास है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबधी गंभीर समस्याएॅं उत्पनन होती हैं। मनस्ताप के कारण व्यक्ति का व्यक्तिगत एवं सामाजिक समायोजन कठिन हो जाता है। साथ ही इससे व्यक्ति में अंतर्द्धंद्ध एवं कुंठा उत्पन्न होती है। मतस्ताप के लक्षण बहुत तीव्र नहीं होते और इससे पीडि़त रोगियों का व्यवहार भी आक्रामक नहीं होता । अतएव इन्हें मानसिक चिकित्सालयों में भरती कराने की अपेक्षा एक मनोचिकित्सक की अधिक आवश्यकता होती है। चूॅकि इन व्यक्तियों का संबध वास्तविकता से बना रहता है, अतः इन्हें अपने दैनिक कार्यो के निष्पादन मे थोड़ी परेशानी होती है।
मानवीय जीवन मुख्यतः विचारों, भावों से संचालित होता है। इनकी दिशा जिस ओर होती है, उसी के अनुसार व्यक्ति का जीवन भी गति करता है। मानवीय जीवन पर बहुत सारे कारकों, जैसे पारिवारिक वातावरण, परिस्थितियाॅं, सामाजिक स्थिति, सदस्यों से संपर्क आदि का प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूपा उसके विचारों एवं भावों में उतार-चढ़ाव आता रहता है। इसके अलावा भी जीवन की जो सबसे अधिक प्रभावित करता है, वह है अंतग्रही दशाओं का प्रभाव। यद्यपि ये ग्रह पृथ्वी से दूर स्थित है, लेकिन व्यक्ति के जीवन को क्षण-क्षण में प्रभावित करते हैं। इनकी स्थिति-परिस्थितियाॅें का निर्धारण व्यक्ति के पूर्वजन्म के कर्मो के अनुसार होता है। पूर्व जन्म के पाप एवं पुण्य कर्मो के अनुसार इन ग्रहों की गति, स्थिति व प्रभाव का निर्धारण होता है। प्राचीन भारतीय विद्याओं में जयोतिष विज्ञान एक ऐसी विद्या है, जिसमें ग्रहों की दशा तथा अंतर्दशा के आधार पर शुभ व अशुभ घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है। चिकित्सा ज्योतिष भी भारतीय ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण भाग है। चिकित्सा ज्योतिष के द्वारा जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति व दशा-चाल से मनुष्य को भविष्य में कौन-कौन से रोग होने की संभावना है, यह जाना जा सकता है । इसी चिकित्सा ज्योतिष के अंतर्गत मानसिक रोगों को समय से पूर्व जाना जा सकता है।
रोगी की जन्मकुंडली में वर्तमान मंे चल रही महादशा (विभिन्न समूय अंतरालों में ग्रहों की स्थिति), अंतर्दशा (उस समय अंतरालों में आने वाले ग्रहों के छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव), प्रत्यंतदशा (अंतर्दशा में ग्रहों के सूक्ष्म उतार-चढ़ाव) ज्ञात कर एवं गोचर (वर्तमान समय में ग्रहों की स्थिति) की सही स्थिति जानकर चिकित्सक रोग का सही निदान करके सफल चिकित्सा कर सकता है।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की शोधार्थी पूजा कौशिक ने सन् 2009 में ‘ग्रहों के ज्योतिषीय योगों का मनस्तापीयता पर पड़ने वाले प्रभाव का
अध्ययन‘ विषय पर शोधकार्य किया। यह शोधकार्य कुलाधिपति डाॅ0 प्रणव पण्डया के संरक्षण, प्रो0 देवीप्रसाद त्रिपाठी के निर्देशन एवं डाॅ0 प्रेरणा पुरी के सहनिर्देशन में किया गया। इस शोध अध्ययन में देहरादून के दो मनोचिकित्सालयों मे से आकस्मिक प्रतिचयन विधि द्वारा 200 मनस्तापी व्यक्तियों का चयन किया गया, जिसमें 108 पुरूष प्रयोज्य एवं 92 महिला प्रयोज्य शामिल थे। इस शोध अध्ययन में ग्रहों के ज्योतिषीय शेगों के मनस्तापीय स्तर को जाॅचने के लिए ज्योतिषीय उपकरण के रूपा में जन्मकुंडली (जिसके लिए मुख्य रूप से प्रयोज्यों की जन्म तारीख, जन्म समय एवं जन्म स्थान को नोट किया गया) एवं मनोवैज्ञानिक उपकरण के रूप में न्यूरेसिस मापनी स्केल का प्रयोग किया। प्राप्त आॅकड़ो के यंख्यिकीय विश्लेषण के लिए काई-टेस्ट को प्रयुक्त किया गया।
परिणामों में यह पाया गया कि 200 स्त्री-पुरूषोूं में से 150 स्त्री-पुरूषों की जन्मपत्रिका में ज्योतिष अध्ययन के अनुसार ग्रहयोग (चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरू, शनि और छाया ग्रह राहु) प्रभावित कर रहे थे। विशेषतः मनस्ताप एवं ग्रहयोगों से पीडि़त स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में लग्न भाव (जिससे संपूर्ण देह एवं मस्तिष्क का विचार किया जाता है), चतुर्थ भाव (जिसमे मन एवं विचार का) तथा पंचम भाव (जिससे बुद्धि का विचार किया जाता है) विशेष रूप से प्रभावित एव पीडि़त पाए गए, किंतु 200 स्त्री-पुरूषों में से 50 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में ग्रहयोग उपयुक्त स्थानों से अन्यत्र स्थान में होने पर भी अपनी महादशा, अंतर्दशा में व्यक्ति के मन को संतापित करते हुए पााए गए तथा साथ ही यह भी पाया गया कि 173 स्त्री-पुरूषों (86.5 प्रतिशत) की कुंडली में पापग्रह शनि, राहु, केतु तथा क्षीण चंद्रमा अपनी महादशा एवं अंतर्दशा से व्यक्ति को प्रभावित कर रहे थे।
इस अध्ययन में मनस्तापी व्यक्तियों की कुंडली की विवेचना करने पर यह भी ज्ञात हुआ है कि 200 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडलियों में से 118 जन्मकुंडलियाॅं ऐसे स्त्री-पुरूषों की पाई गई, जिनका जन्म कृष्णपक्ष मे हुआ, अर्थात 59 प्रतिशत मनस्तापी व्यक्तियों का जन्म शुक्ल-पक्ष की तुलना में कृष्णपक्ष में ज्यादा हुआ। मनस्तापी व्यक्तियों की जन्मकुंडलियों की विवेचना से यह भी ज्ञात हुआ कि 200 में से 123 मनस्तापी व्यक्तियों के चतुर्थ भाव तथा पंचम भाव पापग्रह-क्षीण चंद्रमा, अस्त बुध, शनि, राहु एवं केतु से प्रभावित पाए गए, अर्थात 61.5 प्रतिशत मनस्तापी स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली का चतुर्थ एवं पंचम भाव पापग्रहों के प्रभाव से प्रभावित पाया गया।
इस अध्ययन में 200 मनस्तापी व्यक्तियों मंे से 54 प्रतिशत पुरूष एवं 46 प्रतिशत स्त्रियाॅं मनस्ताव से प्रभावित पाई गई। साथ ही युवा वर्ग (21 से 32 आयु वर्ग) में मनस्ताप एवं ग्रहों का प्रभाव सर्वाधिक पाया गया एवं शिक्षा का स्तर भी ऐसे स्त्री-पुरूषों में सामान्य पाया गया। ऐसे स्त्री-पुरूष स्नातक स्तर तक शिक्षित पाए गए एवं ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक संख्या में शहरी क्षेत्र के मध्यम वर्ग से संबधित पाए गए । इस प्रकार 200 स्त्री-पुरूषों की कुंडलियों के अध्ययन से यह पता चला कि विभिन्न ग्रहयोगों का संबध व्यक्ति के मन की विभिन्न संतप् क्रियाओं से होता है। अतः निष्कर्ष रूप में यह कह सकते हैं कि मानचीय स्वास्थ्य, अंतग्रही गतिविधियों एवं परिवर्तनों से असाधारण रूप से प्रभावित होता है।
पं0 श्रीराम शर्मा आचार्या जी के अनुसार रोगों की उत्पत्ति में प्रत्यक्ष स्थूल कारणों को महत्व दिया जाता है और स्कूल उपचारों की बात सोची जाती है, यदि अदृश्य किंतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ग्रह-नक्षत्रों के ज्ञान का भी चिकित्सा अनुसंधान की कड़ी से जोड़ा जा सके, तो रोगों के कारण और निवारण में अनेक चमत्कारों, सूत्र हाथ लग सकते हैं, जिनसे अपरिचित बने रहने से रोगोपचार में चिकित्सक अपने को अक्षम पाते हैं। निदान और उपचार की प्रक्रिया में ऐसे अनेक रहस्य इस अनुसंधान-प्रक्रिया में खुलने की संभावना है। यद्यपि इस विषय पर वर्तमान में कई शोधकार्य किए जा रहे हैं और ऐसी संभावना है कि आने वाले समय में चिकित्सा विज्ञान में ज्योतिषीय चिकित्सा को स्वीकारा जाएगा और इसके लिए सर्वप्रथम वयक्ति को शुभकर्मो की ओर प्रेरित किया जाएगा। यह पूर्णतः व्यक्ति के हाथ में है।
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future for you astrological news panchang 10 04 2015

Future for you March 2015 Magazine

भाग्य रेखा

1.गहरी रेखा -
हाथ में भाग्य रेखा गहरी है तो यह इस बात का संकेत है कि आपको अपने भाग्य की मदद से पैतृक सम्पत्ति और विभिन्न प्रकार के लाभ मिलेंगे। आपकी उन्नति में आपके बुजुर्गों का सहयोग रहेगा।
2.कमजोर रेखा -
भाग्य रेखा कमजोर होने से इस बात का संकेत मिलता है कि आपको जीवन में असफलताओं एवं मुश्किलों का सामना करना होगा। आपकी जिन्दग़ी में निराशा के बादल छाये रहेंगे। लेकिन अगर आपके हाथ में सूर्य रेखा मजबूत है तो आप सफलता प्राप्त कर सकते हैं, इसी प्रकार अन्य रेखाओं एवं पर्वतों के प्रभाव से भी परिणाम बदल सकता है।
3.विभाजित रेखा -
भाग्य रेखा अगर दो भागों में विभाजित हो या टूटकर अंग्रेजी के ङ्घ की तरह दिखे तो यह द्वंद की स्थिति बनाता है यानी आप अपना लक्ष्य सही प्रकार से निर्घारित नहीं कर पाते हैं और मन में उठते विचारों से लड़ते हैं। एक शब्द में कहें तो आप दो नाव की सवारी करते हैं।
4.आड़ी तिरछी रेखा -
हथेली में भाग्य रेखा अगर आड़ी तिरछी हो तो समझ लीजिए आपकी जिन्दगी में काफी उतार-चढ़ाव व परिवर्तन आने वाला हैं। आप जीवन में संघर्ष और बाधाओं को पार करके ही अपने भाग्य का फल प्राप्त कर पाएगे। आपको आसानी से कुछ भी मिलने वाला नहीं है। इस प्रकार की रेखा यह भी बताती है कि आप निर्णय की घड़ी में उहापोह में रहते हैं अर्थात क्या करें क्या न करें वाली स्थिति आपकी हो जाती है।
5.टूटी रेखा -
भाग्य रेखा अगर टूटी हुई है तो जहां पर यह रेखा टूटी है वहां पर आपको खतरा हो सकता है अर्थात उस उम्र में आपके साथ कोई दुर्घटना घट सकती है अथवा आप गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं। कुल मिलाकर कहा जाय तो उम्र के इस पड़ाव में कुछ भी ऐसा हो सकता है जिससे जीवन पर संकट आ सकता है। आपका यह समय कष्टमय रहेगा।
6.जंजीरदार या लहरदार रेखा -
भाग्य रेखा जंजीरदार या लहरदार हो तो यह इस बात का संकेत है कि आपके कार्यो में उतार चढ़ाव बना रहेगा, आप सफलता और असफलता के बीच हिचकोले खाते रहेंगे। आपका काम कभी तो असानी से बन जाएगा तो कभी छोटा मोटा काम निकलवाने के लिए भी आपको कड़ी मेहनत करनी होगी।
7.अदृश्य रेखा -
यह जरूरी नहीं कि जिनकी हथेली में भाग्य रेखा होती है उन्हीं का भाग्य होता है, जिनकी हथेली में भाग्य रेखा नहीं होती है उनका भी भाग्य होता है ऐसा हस्त रेखा विज्ञान कहता है। जिनकी हथेली में भाग्य रेखा नहीं होती है उनका भाग्य अन्य रेखाओं के आंकलन के आधार पर ज्ञात किया जाता है। कह सकते हैं कि, जिनकी हथेली में भाग्य रेखा नहीं दिखती हो उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं है।
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Thursday 9 April 2015

Historic Page of Dongargarh

36745960
Still there is many history are hidden behind bamleshwari temple. In the mountain remains of sages auterity were found. Also on the second side there is inaccessible cliff. Down to the hills there is Ashram and lake of sages. Many People believed that bathing into the lake and by drinking it they get rid of all diseases. Today that ashram is called as ascetic temple.
There is a story that there is fort on that hill on which there is a house of kaamkandla who is the lover of an anecdote named Madhavnal-kaamkandla . In this fort both meet. This love story is very famous in Chhattisgarh.
In the history of dongargarh this love story penetrates. Nearly around two thousand five years ago this place was called kamakhya which was ruled by a king called kaamsen who was the contemporary of king of ujjain Vikramaditya. This city is famous for the art, dance and music in which there is a dancer named kamkandla . She is maste in dance and she is very beautiful. One day she was dancing in the darbar then at that time a singer named madhavnal came but the concierge didn't allow him to go inside. Then he sits down there and enjoying music inside. Then he felt that the dance left feet thumb is fake and there in pebble in the dancer gunghrun so there inaccuracy in the rhythm in the music. He thought that he came here for just vain. He told there is no one in the fort who understands the impurities in music. Gatekeeper heared all these thing and he goes infront of the king and he tell all about what he is saying. Then king allows him to came inside. To prove his words king allow him to sing. From here madhavnal and kamkandla's love story started. But the king himself is fascinated at her but they did not get together. For their life bot madhavnal and kamkandla moved to ujjain infront of king vikramaditya they begged infront of him for their survival. King Vikramaditya give justice to them and he reconcile them both. There is a legend that for giving justice to them Vikramaditya had to fight with the king of kaamwati to stop them goddess Bhawani and lord Shiva came. Dongargarh 'Kamkandla-Madhavanl lake is the witness for this.
There is one more legend (story) behind dongargarh. According to that 147 dancers came here from nandgaonraj to perform. When queen heared this news then she was upset because she was in fear that his son could not be fascinate on anyone. So she made a paste with turmeric and water mixed and asked his son to spread on all dancers before going to dance. By doing this all dancers changed in boulder. There are so many boulders in the dongargarh hills which is known as these boulders are of dancers.
In dongargarh a lake called Motibeer in that there is a stone pillar in which there is an article engraved on that in French. This pillar was kept now in the Ghasidas museum in Raipur. Similarly, there is another pillar there is an inscription which had no been read till now. Regardless of all that, in dongargarh the bamleshwari temple is so famous that today also people go there for worship

future for you astrological news swal jwab 1 09 04 2015

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Wednesday 8 April 2015

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Tuesday 7 April 2015

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