Saturday 30 May 2015

शुक्र से जीवन हो सुखमय



सौरमंडल से आने वाली किरणें खास कर शुक्र से आने वाली किरणें मनुष्य के व्यक्तित्व व दांपत्य जीवन में गाहे-वगाहे अनेक प्रभाव डालती हैं। व्यक्ति को वैवाहिक जीवन का सुख न मिल पाए, पति-पत्नी के संबंधों मेंं मधुरता न रहे या दोनों मेंं से किसी की कमी उनकी इच्छा की पूर्ति करने मेंं सक्षम न हो रही हो तब शुक्र का ही अशुभ प्रभाव हो सकता है। स्त्री को गर्भाश्य से संबंधित रोग परेशान करें या संतति संबंधी परेशानि हो तो यह भी शुक्र की अशुभता का संकेत देते हैं।
सौरमंडल के 9 ग्रहों मेंं शुक्र आकाश मेंं सबसे चमकदार तारा है, इसका महत्व नवग्रहों मेंं धन संपत्ति, सुख-साधन से है। वैज्ञानिकों का मानना है कि शुक्र की किरणों का हमारे शरीर और जीवन पर अकाट्य प्रभाव पड़ता है। शुक्र का व्यास 126000 किलोमीटर है और गुरुत्व शक्ति पृथ्वी के ही समान। इसे सूर्य की परिक्रमा पूरी करने मेंं 225 दिन लगते हैं। शुक्र एवं सूर्य के बीच की दूरी वैज्ञानिकों ने लगभग 108000000 किलोमीटर मानी है, इसे आकाश मेंं आसानी से देखा जा सकता है। इसे संध्या और भोर का तारा भी कहते हैं, क्योंकि इस ग्रह का उदय आकाश मेंं या तो सूर्योदय के पूर्व या संध्या को सूर्यास्त के पश्चात होता है। पुराणों के अनुसार शुक्र को सुंदरता का प्रतीक माना गया है। ये दानवों के गुरु हैं, इनके पिता का नाम कवि और इनकी पत्नी का नाम शतप्रभा है। दैत्य गुरु शुक्र दैत्यों की रक्षा करने हेतु सदैव तत्पर रहते हैं। ये बृहस्पति की तरह ही शास्त्रों के ज्ञाता, तपस्वी और कवि हैं। शुक्र ग्रह को सुन्दर शरीर वाला, बड़ी आंखे दिखने मेंं आकर्षक, घुंघराले बाल, काव्यात्मक, कफमय, कम खाने वाला, छोटी कद-काठी, दिखने मेंं युवा बताया गया है। शुक्र के अस्त दिनों मेंं शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं इसका कारण यह कि उक्त वक्त पृथ्वी का पर्यावरण शुक्र प्रभा से दूषित माना गया है। यह ग्रह पूर्व मेंं अस्त होने के बाद 75 दिनों पश्चात पुन: उदित होता है उदय के 240 दिन वक्री चलता है, इसके 23 दिन पश्चात अस्त हो जाता है। पश्चिम मेंं अस्त होकर 9 दिन के पश्चात यह पुन: पूर्व दिशा मेंं उगता है। शनि व बुध शुक्र के मित्र ग्रहों मेंं आते है। शुक्र ग्रह के शत्रुओं मेंं सूर्य व चन्द्रमा है। शुक्र के साथ गुरु व मंगल सम सम्बन्ध रखते हैं। शुक्र वृषभ व तुला राशि के स्वामी हैं। शुक्र तुला राशि मेंं 0 अंश से 15 अंश के मध्य होने पर मूलत्रिकोण राशिस्थ होता है। शुक्र मीन राशि मेंं 27 अंश पर होने पर उच्च राशि अंशों पर होता है। शुक्र कन्या राशि मेंं 27 अंश पर होने पर नीच राशि मेंं होता है। शुक्र ग्रह की दक्षिण-पूर्व दिशा है। शुक्र का भाग्य रत्न हीरा है और उपरत्न जरकन होता है।
वैदिक ज्योतिष मेंं शुक्र को मुख्य रूप से पत्नी का कारक माना गया है। यह विवाह का कारक ग्रह है, ज्योतिष मेंं शुक्र से काम सुख, आभूषण, भौतिक सुख सुविधाओं का कारक ग्रह है। शुक्र से आराम पसन्द होने की प्रकृति, प्रेम संबन्ध, इत्र, सुगन्ध, अच्छे वस्त्र, सुन्दरता, सजावट, नृत्य, संगीत, गाना बजाना, काले बाल, विलासिता, व्यभिचार, शराब, नशीले पदारथ, कलात्मक गुण, आदि गुण देखे जाते है। पति- पत्नी का सुख देखने के लिए कुंडली मेंं शुक्र की स्थिति को विशेष रुप से देखा जाता है। शुक्र को सुंदरता, ऐश्वर्य तथा कला के साथ जुड़े क्षेत्रों का अधिपति माना जाता है।
रंगमंच, चित्रकार, नृत्य कला, फैशन, भोग-विलास से संबंधित वस्तुओं को शुक्र से जोड़ा जाता है। कुंडली मेंं शुक्र की प्रबल स्थिति जातक को शारीरिक रूप से सुंदर और आकर्षक बनाती है। शुक्र के प्रबल प्रभाव से महिलाएं अति आकर्षक होती हैं शुक्र के जातक आम तौर पर फैशन जगत, सिनेमा जगत तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्रों मेंं सफल होते हैं। शुक्र शारीरिक सुखों का भी कारक है प्रेम संबंधों मेंं शुक्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
ज्योतिष के अनुसार कुण्डली मेंं शुक्र ग्रह की शुभ स्थिति जीवन को सुखमय और प्रेममय बनाती है तो अशुभ स्थिति चारित्रिक दोष एवं पीड़ा दायक होती है। शुक्र के अशुभ होने पर व्यक्ति मेंं चारित्रिक दोष उत्पन्न होने लगते हैं। व्यक्ति बुरी आदतों का शिकार होने लगता है। शुक्र के अशुभ होने पर वैवाहिक जीवन मेंं कलह की स्थिति उत्पन्न होने लगती है और इस कलह से अलगाव या तलाक की नौबत भी आ सकती है। जीवन मेंं धन संपत्ति, सुख-साधन सभी वस्तुओं के होने पर भी आप इन सभी के उपभोग का सुख न ले पाए तो यह भी शुक्र के खराब होने के लक्षण हो सकते हैं।
व्यक्ति को वैवाहिक जीवन का सुख न मिल पाए, पति-पत्नी के संबंधों मेंं मधुरता न रहे या दोनों मेंं से किसी की कमी उनकी इच्छा की पूर्ति करने मेंं सक्षम न हो रही हो तब शुक्र का ही अशुभ प्रभाव हो सकता है। स्त्री को गर्भाशय से संबंधित रोग परेशान करें या संतति संबंधी परेशानि हो तो यह भी शुक्र की अशुभता का संकेत देते हैं। शुक्र के बुरे प्रभाव के कारण व्यक्ति के जीवन मेंं भी बदलाव देखा जा सकता है। उसके व्यवहार मेंं चालबाजी, धोखेबाजी जैसे अवगुण उभरने लगते हैं तथा वह उसकी कथनी और करनी मेंं अंतर आ सकता है। शुक्र के पीडि़त होने के कारण व्यक्ति गुप्त रोगों से पीडि़त होने लगता है, उसकी अपनी गलतियां या अनैतिक कार्यों द्वारा वह अपनी सेहत खराब भी कर सकता है। शुक्र के अशुभ होने के कारण व्यक्ति कम उम्र मेंं ही नशे की लत या रोगों का शिकार होने लगता है उसके अंदर नशाखोरी एवं गलत कार्यों द्वारा होने वाले रोग उत्पन्न होने लगते हैं। जब कोई व्यक्ति अपना दोहरा व्यक्तित्व अपना लेता है अर्थात दोहरी जिंदगी जीने लगता है तब यह शुक्र के अशुभ होने के लक्षण होते हैं।
शुक्र के व्यवसाय और कार्यक्षेत्र: शुक्र आजीविका भाव मेंं बली अवस्था मेंं हो, दशमेंश हो, या फिर दशमेंश के साथ उच्च राशि का स्थित हो, तो व्यक्ति मेंं कलाकार बनने के गुण होते है। वह नाटककार और संगीतज्ञ होता है, उसकी रुचि सिनेमा के क्षेत्र मेंं काम करने की हो सकती है. शुक्र से प्रभावित व्यक्ति कवि, चित्रकार, वस्त्र विक्रेता, वस्त्र उद्योग, कपड़े बनाने वाला, इत्र, वाहन विक्रेता, वाहन बनाने वाले, व्यापारिक संस्थान, आभूषण विक्रेता, भवन बनाने वाले इंजिनियर, दुग्धशाला, नौसेना, रेलवे, आबकारी, यातायात, बुनकर, आयकर, सम्पति कर आदि का कार्य करता है।
शुक्र से संबंधित रोग: शुक्र शरीर मेंं वायु, कफ, आंखें, जननागं, पेशाब, वीर्य का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र के कमजोर होने पर व्यक्ति को यौन संबंधित रोग, मधुमेंह, पेशाब की थैली, गुरदे मेंं पथरी, मोतियाबिन्द, बेहोशी, के दौरे, जननांग संबंधित परेशानियां, सूजन, शरीर मेंं यंत्रणात्मक दर्द, श्वेत प्रदर, मूत्र सम्बन्धित रोग, चेहरे, आंखों और गुप्तागों से संबंधित रोग, खसरा, स्त्रियों मेंं माहवारी और उससे संबंधित रोग परेशान कर सकते हैं।
शुक्र को शुभ करने के उपाय: शुक्र की अशुभता दूर करने के लिए सामथ्र्य अनुसार रुई और दही को मंदिर मेंं दान करना चाहिए। स्त्रीजाति का कभी भी अपमान या निरादर नहीं करना चाहिए उन्हें सदैव आदर और सम्मान देने का प्रयास करना चाहिए। शुक्र की शुभता के लिए शुक्रवार का व्रत करना चाहिए तथा नियमित रुप से माता के मंदिर मेंं दर्शन करना चाहिए। मन और हृदय पर काबू रखना चाहिए और भटकाव की ओर जाने से रोकना चाहिए. शुक्र के सम्बन्ध मेंं मन और इन्द्रियों को नियंत्रित रखने पर विशेष बल देता है। गाय को हरी चारा खिलानी चाहिए इससे शुक्र की अशुभता मेंं कमी आएगी। गाय का दूध या घी, चावल या शक्कर मंदिर मेंं दान करने से भी शुक्र को बल मिलता है।
शुक्र के लिए वस्तुओं का दान: शुक्र के लिए घी, कपूर, दही, चांदी, चावल, चीनी, सफेद वस्त्र और फूल या गाय, इन वस्तुओं का दान शुक्रवार को सूर्यास्त के समय करना चाहिए।
शुभ की निशानी: सुंदर शरीर वाले पुरुष या स्त्री मेंं आत्मविश्वास भरपूर रहता है फिल्म या साहित्य मेंं उसकी रुचि रहती है। व्यक्ति धनवान और साधन-सम्पन्न होता है।
अशुभ की निशानी: अगर शनि मंद अर्थात नीच का हो तब भी शुक्र का बुरा असर होता है इसके अलावा भी ऐसी कई स्थितियां हैं जिससे शुक्र को मंद माना गया है अंगूठे मेंं दर्द का रहना या बिना रोग के ही अंगूठा बेकार हो जाता है। त्वचा मेंं विकार, गुप्त रोग, पत्नी से अनावश्यक कलह अशुभ शुक्र की निशानी है। शुक्र के साथ राहु का होना अर्थात स्त्री तथा दौलत का असर खत्म।
उपाय: लक्ष्मी की उपासना करें जिसमेंं महालक्ष्म्यै नम: का जाप करें. सफेद वस्त्र दान करें, भोजन का कुछ हिस्सा गाय, कौवे, और कुत्ते को दें। शुक्रवार का व्रत रखें खटाई न खाएं, दो मोती लें, एक को पानी मेंं बहा दें और दूसरे को जिंदगीभर अपने पास रखें। स्वयं को और घर को साफ-सुथरा रखें और हमेंशा साफ कपड़े पहनें।
शुक्र का जाप मंत्र: ऊँ शुं शुक्राय नम:,
बीच मंत्र: ऊँ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राये नम:
वैदिक मंत्र : हमकुन्द मृ्णालाभं दैत्यानां परमं गुरुम। सर्व शास्त्र प्रवक्तारं भर्गव प्रणामाम्यहम।।


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वैवाहिक जीवन मेंं हस्तरेखा का प्रभाव

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किसी व्यक्ति का विवाह कब होगा, पत्नी कैसी मिलेगी, दाम्पत्य कैसा रहेगा, ये सारे तथ्य उसकी विवाह रेखा मेंं छिपे होते हैं। यह रेखा उसके जीवन मेंं अहम भूमिका निभाती है। इसे प्रणय रेखा व स्नेह रेखा भी कहते हैं। समाज मेंं एक भ्रांति है कि जितनी संख्या मेंं यह रेखा होगी, जातक के उतने ही विवाह होंगे। ऐसे अनेकानेक लोग हैं, जिनकी हथेलीे मेंं एक से अधिक विवाह रेखाएं हैं, किंतु उनका विवाह या तो एक ही बार हुआ, या हुआ ही नहीं। वहीं ऐसे भी अनेक लोग हैं, जिनके हाथ मेंं विवाह रेखा नहीं है, लेकिन उनका विवाह हुआ है और दाम्पत्य जीवन सुखमय रहा है। अत: उक्त मान्यता केवल भ्रम है, भ्रम के सिवा कुछ नहीं। कौन रेखा किस स्थिति मेंं जातक के विवाह पक्ष को किस तरह प्रभावित करेगी इसका विश्लेषण यहां प्रस्तुत है। जिस जातक की प्रणय अर्थात विवाह रेखाएं एक से अधिक हों उसका अपनी पत्नी के प्रति प्रेम गहरा होता है। यदि यह रेखा प्रारंभ मेंं गहरी और आगे चलकर पतली हो तो ऐसे जातक का प्रेम धीरे-धीरे उदासीनता मेंं बदल जाता है इसके विपरीत यदि रेखा पतली से गहरी हो तो प्रेम बढ़ता ही जाता है। इस रेखा पर द्वीप हो तो जातक विवाह करने मेंं सहमत नहीं होता और यदि क्रॉस हो तो विवाह अथवा प्रेम प्रसंग मेंं विघ्न की संभावना रहती है। यदि यह रेखा आगे चलकर दो शाखाओं मेंं बंटे तो जीवनसाथी से अलगाव तो हो सकता है, किंतु तलाक हो यह जरूरी नहीं। रेखा अनेक शाखाओं मेंं बंटे तो प्रेम का अंत समझना चाहिए। यदि किसी जातक की विवाह रेखा दो भागों मेंं बंटे और एक शाखा हृदय रेखा को छूए व्यक्ति तो विवाहेतर संबंध होने की संभावना रहती है। यदि किसी के शुक्र पर्वत पर द्वीप हो और उससे एक रेखा बुध पर्वत पर जाकर समाप्त होती हो तो इस स्थिति मेंं भी विवाहेतर संबंध की संभावना रहती है। यदि कोई रेखा विवाह रेखा से आकर मिले तो वैवाहिक जीवन कष्टमय हो सकता है। यदि विवाह रेखा पर कोई काला धब्बा हो, तो पत्नी का पर्याप्त सुख नहीं मिलता है। रेखाओं का विष्लेषण करते समय यह देखना भी जरूरी होता है कि जातक का हाथ किस पर्वत से प्रभावित है क्योंकि उसके जीवन पर उसके हाथों के विभिन्न पर्वत भी रेखाओं की तरह ही प्रभाव डालते हैं। जिस जातक का शनि पर्वत अधिक स्पष्ट हो उसमेंं विवाह करने की इच्छा प्रबल नहीं होती। यदि चंद्र पर्वत से कोई रेखा आकर विवाह रेखा से मिले तो ऐसा व्यक्ति भोगी और कामासक्त होता है। इस प्रकार रेखाओं के ऐसे बहुत से योग हैं जो किसी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन को प्रभावित करते हैं। ये योग यदि अनुकूल हों तो दाम्पत्य सुखमय होता है, अन्यथा उसके कष्टमय होने की प्रबल संभावना रहती है। प्रतिकूल होने की स्थिति मेंं किसी हस्तरेखा विशेषज्ञ से परामर्श लेकर उसमेंं सुधार लाने का प्रयास किया जा सकता है।
हमारे हाथों की अलग-अलग रेखाएं जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे मेंं बताती हैं। विवाह रेखा से वैवाहिक जीवन के भविष्य के निम्नानुसार बातें पता चलती हैं -
1. यदि बुध क्षेत्र के आसपास विवाह रेखा के साथ-साथ दो-तीन रेखाएं चल रही हों तो व्यक्ति अपने जीवन मेंं पत्नी के अलावा और भी स्त्रियों से संबंध रखता है।
2. शुक्र पर्वत पर टेढ़ी रेखाओं की संख्या यदि ज्यादा हैं तो ऐसे व्यक्ति के जीवन मेंं किसी एक स्त्री या पुरुष का विशेष प्रभाव रहता है।
3. यदि प्रारम्भ मेंं विवाह रेखा एक, किन्तु बाद मेंं दो से अधिक रेखाओं मेंं विभक्त हो जाए तो ऐसी स्थिति मेंं व्यक्ति एक साथ कई रिश्तों मेंं रहता है।
4. किसी व्यक्ति के विवाह रेखा मेंं आकर या विवाह रेखा स्थल पर आकर कोई अन्य रेखा मिल रही हो तो प्रेमिका के कारण उसका गृहस्थ जीवन नष्ट होने की संभावना रहती है।
5. यदि प्रणय रेखा आरम्भ मेंं पतली और बाद मेंं गहरी होने का मतलब है कि किसी स्त्री अथवा पुरुष के प्रति आकर्षण एवं लगाव आरम्भ मेंं कम था, किन्तु बाद मेंं धीरे-धीरे प्रगाढ़ होता गया है।
6. किसी की हथेली मेंं विवाह रेखा एवं कनिष्ठका अंगुली के मध्य से जितनी छोटी एवं स्पष्ट रेखाएं होंगी, उस स्त्री या पुरुष के विवाहोपरान्त अथवा पहले उतने ही प्रेम सम्बन्ध होते हैं।
7. विवाह रेखा आपके सुखी वैवाहिक जीवन के बारे मेंं भी बताती है। यदि आपकी विवाह रेखा स्पष्ट तथा ललिमा लिए हुए है तो आपका वैवाहिक जीवन बहुत ही सुखमय होगा।
8. गुरू पर्वत पर यदि क्रॉस का निशान लगा हो तो यह शुभ विवाह का संकेत होता है। यदि यह क्रॉस का निशान जीवन रेखा के नज़दीक हो तो विवाह शीघ्र ही होता है।
हस्तरेखा द्वारा विवाह का समय निर्धारण: हस्त रेखा के आधार पर विवाह का संभावित समय कैसे निकाल सकते हैं। इस पद्धति द्वारा वैवाहिक जीवन के बारे मेंं भविष्य कथन के नियम व विधि का विस्तारपूर्वक वर्णन करें। इस विषय पर भी चर्चा करें कि क्या वर-वधु का मिलान हस्त रेखा से संभव है? हस्तरेखा के आधार पर विवाह का संभावित समय देशकाल की परंपराओं के अनुसार जातक के विवाह की उम्र का अनुमान किया जाना चाहिये। सामान्य नियम यह है कि हृदय रेखा से कनिष्ठिका मूल तक के बीच की दूरी को पचास वर्ष की अवधि मानकर उसका विभाजन करके समय की गणना करनी चाहिये। इस संपूर्ण क्षेत्र को बीच से विभाजित करने पर पच्चीस वर्ष की आयु प्राप्त होती है। यदि इस क्षेत्र को चार बराबर भागों मेंं विभाजित करने के लिये इसके बीच मेंं तीन आड़ी रेखाएं खीच दी जायें तो हृदय रेखा के निकट की पहली रेखा वाले भाग से बचपन मेंं विवाह (लगभग 14 से 18वर्ष की अवस्था मेंं) होता है। दूसरी रेखा वाले भाग से युवावस्था मेंं विवाह (लगभग 21 से 28वर्ष की अवस्था मेंं) होता है। तीसरी रेखा वाले भाग से विवाह लगभग 28से 35 वर्ष की अवस्था मेंं होता है, जबकि चौथे भाग अर्थात् तीसरी रेखा व कनिष्ठिका मूल के बीच वाले भाग से प्रौढ़ावस्था मेंं अर्थात् 35 वर्ष की आयु के बाद विवाह समझना चाहिए। विवाह की उम्र का यथार्थ बोध और समय का अनुमान जीवन रेखा, भाग्य रेखा, सूर्य रेखा व उनकी अन्य प्रभाव रेखाओं के द्वारा अधिक यथार्थ और विश्वसनीय ढंग से होता है।
हस्तरेखा के आधार पर वैवाहिक जीवन: विवाह रेखा को अनुराग रेखा, प्रेम संबंध रेखा, ललना रेखा, जीवन साथी रेखा, आसक्ति रेखा आदि नामों से जाना जाता है। विवाह रेखा के स्थान के बारे मेंं प्राचीन विचारक एकमत नहीं थे। कुछ विचारकों ने शुक्र क्षेत्र की रेखाओं को, तो कुछ ने चंद्र क्षेत्र की रेखाओं को विवाह रेखा के रूप मेंं स्वीकार किया है। किंतु अधिकांश प्राचीन ग्रंथों विवेक विलास, शैव सामुद्रिक, हस्त संजीवन, प्रयोग पारिजात, करलक्खन आदि मेंं हृदय रेखा के ऊपर बुध क्षेत्र मेंं स्थित आड़ी रेशाओं को ही विवाह रेखा माना गया है। बुध क्षेत्र के भीतर आड़ी रेखाओं की तरह हों, वे विवाह की सूचक नहीं, बल्कि बुध क्षेत्र के गुणों मेंं विपरीत या दूषित प्रभाव उत्पन्न करती हैं। करतल के बाहर से आकर बुध क्षेत्र मेंं प्रवेश करने वाली सीधी, स्पष्ट और सुंदर रेखाएं ही सुखद वैवाहिक जीवन का संकेत देती है। यदि विवाह रेखा का आरंभ हृदय रेखा के भीतर से हो या उच्च मंगल क्षेत्र से निकलकर बुध क्षेत्र मेंं चाप खंड की तरह प्रवेश करे तो ऐसे जातक का विवाह अबोध अवस्था मेंं हो जाता है। ऐसे विवाह प्राय: बेमेंल होते हैं जो आगे चलकर अस्थिरता या दुख का कारण बनते हैं।
यदि इस योग के साथ जातक के हाथ मेंं मध्य बुध क्षेत्र मेंं दूसरी स्पष्ट विवाह रेखा मौजूद हो तो दूसरे विवाह की संभावना अधिक रहती है। यदि विवाह रेखा कनिष्ठिका के मूल से निकलकर चाप खंड की तरह बुध क्षेत्र मेंं प्रवेश करें तो जातक को वृद्धावस्था मेंं परिस्थितियों के दबाव मेंं विवाह करना पड़ता है। यदि विवाह रेखा का आरंभ द्वीप चिह्न से हो, तो जातक के विवाह के पीछे कोई गोपनीय रहस्य छिपा होता है। यदि किसी महिला के हाथ मेंं इस प्रकार का योग हो, तो उसको फंसाकर या धोखा देकर, मजबूरी मेंं शादी की जाती है, ऐसे मेंं आरंभिक वैवाहिक जीवन कष्टकर होता है। यदि बाद मेंं रेखा शुभ हो, तो परिस्थितियां सामान्य हो जाती हैं। यदि विवाह रेखा के आरंभ की एक शाखा कनिष्ठिका मूल की ओर जाये और दूसरी शाखा हृदय रेखा की ओर झुक जाये तो पति-पत्नी को आरंभिक वैवाहिक जीवन मेंं एक दूसरे से दूर रहना पड़ता है। यदि आगे जाकर ये दोनों शाखाएं मिल गयी हों तो पति-पत्नी का संबंध पुन: जुड़ जाता है। यदि विवाह रेखा सूर्य क्षेत्र मेंं समाप्त हो, तो जातक को विवाह के कारण प्रतिष्ठा और धन-लाभ होता है।
यदि विवाह रेखा ऊपर की ओर मुड़कर सूर्य रेखा से मिल जाये, तो जातक का जीवनसाथी उच्चकुल का तथा प्रतिभा से संपन्न होता है। ऐसा विवाह जातक के लिये शुभ होता है, किंतु आजीवन जीवन साथी के प्रभाव मेंं रहना पड़ता हैं यदि सूर्य क्षेत्र तक जाने वाली विवाह रेखा नीचे मुड़कर सूर्य रेखा को काट दे, तो जातक का वैवाहिक संबंध उससे निम्न कोटि के व्यक्ति के साथ होता है और इस विवाह के कारण उसकी प्रतिष्ठा को हानि पहुंचती है व दुख उठाना पड़ता है। यदि विवाह रेखा शनि क्षेत्र तक चली जाये, तो यह एक बहुत अशुभ योग माना जाता है। ऐसी स्थिति मेंं जातक अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिये जीवन-साथी को घायल करता है या उसे मार डालता है। यदि इस योग मेंं शनि क्षेत्र पर भाग्य रेखा के अंत मेंं क्रास का चिह्न हो, तो जातक को अपने जीवन-साथी की हत्या के आरोप मेंं मृत्युदंड दिया जाता है।
यदि विवाह रेखा नीचे की ओर मुड़कर हृदय रेखा की ओर झुक जाये, तो इस बात की सूचक है कि जातक के जीवन-साथी की मृत्यु उससे पहले होगी। यदि ऐसी रेखा धीरे-धीरे एक ढलान के साथ नीचे की ओर मुड़ जाये तो, ऐसा समझना चाहिये कि जीवन-साथी की मृत्यु का कारण कोई लंबी बीमारी होगी। ऐसी रेखा के ढलान मेंं यदि क्रॉस चिह्न हो या आड़ी रेखा हो तो मृत्यु अचानक किसी रोग या दुर्घटना के कारण होती है। द्वीप चिह्न होने से शारीरिक निर्बलता या बीमारी के कारण मृत्यु होती है। यदि विवाह रेखा शुक्र क्षेत्र मेंं जाकर समाप्त हो, और यह योग सिर्फ बायें हाथ मेंं ही हो, तो वैवाहिक संबंध विच्छेद करने की इच्छा ही व्यक्त करता है। दोनों हाथों मेंं यही योग हो तो निश्चित ही संबंध विच्छेद होता है। यदि विवाह रेखा बुध-क्षेत्र मेंं ऊपर की ओर मुड़ जाये और कनिष्ठका मूल को स्पर्श करने लगे, तो जातक आजीवन अविवाहित रहता है। यदि विवाह रेखा का समापन उच्च मंगल के मैदान मेंं हो तो जीवन साथी के व्यवहार के कारण वैवाहिक जीवन दुखी रहता है। यदि विवाह रेखा का अंत उच्च मंगल के क्षेत्र मेंं हो और समापन स्थान पर क्रॉस चिह्न हो, तो जातक के जीवन-साथी के जीवन मेंं अनियंत्रित ईष्र्या व द्वेष के कारण कोई प्राण घातक दुर्घटना घटित होती है। यदि विवाह रेखा का अंत त्रिशूल चिह्न से हो, तो जातक पहले अपने प्रेम की अति कर देता है और बाद मेंं संबंधों के प्रति उदासीन हो जाता है।

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जीवन में सुख और सफलता के उपाय




जीवन में सुख और सफलता के उपाय
- घर का हर व्यक्ति सूर्योदय के पहले उठे और उगते सूर्य के दर्शन करे।
इसी समय जोर से गायत्री मंत्र का उच्चारण करे तो घर के वास्तु दोष भी नष्ट हो जाते है।
- सूर्य दर्शन के बाद सूर्य को जल, पुष्प और रोली-अक्षत का अर्घ्य दे, सूर्य के साथ त्राटक करे।
- बिस्तर से उठते समय दोनों पैर जमीन पर एक साथ रखे, उसी समय इष्ट का स्मरण करे और हाथों को मुख पर फेरे।
- स्नान और पूजन सुबह 7 से 8 बजे के बीच अवश्य कर ले।
- घर में तुलसी और आक का पौधा लगाए और उनकी नियमित सेवा करे।
- पक्षियों को दाना डाले।
- शनिवार और अमावस्या को सारे घर की सफाई करें, कबाड़ बाहर निकले और जूते-चप्पलों का दान कर दे।
- स्नान करने के बाद स्नानघर को कभी गंदा न छोड़े।
- जितना हो सके भांजी और भतीजी को कोई न कोई उपहार देते रहे।
किसी बुधवार को बुआ को भी चाट या चटपटी वस्तु खिलाएँ।
- घर में भोजन बनते समय गाय और कुत्ते का हिस्सा अवश्य निकाले।
- बुधवार को किसी को भी उधार न दे, वापस नहीं आएगा।
- राहू काल में कोई कार्य शुरू न करें।
- श्री सूक्त का पाठ करने से धन आता रहेगा।
- वर्ष में एक या दो बार घर में किसी पाठ या मंत्रोक्त पूजन को ब्राह्मण द्वारा जरूर कराए।
- स्फटिक का श्रीयंत्र, पारद शिवलिंग, श्वेतार्क गणपति और दक्षिणावर्त शंख को घर या दुकान आदि में स्थापित कर पूजन करने से घर का भण्डार भरा-पूरा रहता है।
- घर के हर सदस्य को अपने-अपने इष्ट का जाप व पूजन अवश्य करना चाहिए।
- जहाँ तक हो सके अन्न, वस्त्र, तेल, कंबल, अध्ययन सामग्री आदि का दान करें।
दान करने के बाद उसका उल्लेख न करें।
- अपने राशि या लग्न स्वामी ग्रह के रंग की कोई वस्तु अपने साथ हमेशा रखे।
श्री गणेश को इन मंत्रों से चढ़ाएं 21 दूर्वा, हर काम होगा सफल
इंसान जब किसी काम की शुरूआत पूरी योजना और मनायोग से करे, किंतु फिर भी उम्मीदों और लक्ष्य के मुताबिक नतीजे पाने में सफल न हो तो निराशा घर करने लगती है।
अगर यह हताशा में बदलने लगे तो संभवत: जीवन में असफलता का बड़ा कारण बन सकती है।
जबकि ऐसे वक्त कमियों पर गौर करना जरूरी होता है। हिन्दू धर्म में ऐसे वक्त, नाकामियों और विघ्रों से बचने के लिए आस्था और श्रद्धा के साथ हर कार्य की शुरूआत विघ्रहर्ता श्री गणेश की उपासना से की जाती है। श्रीगणेश विनायक नाम से भी पूजनीय है।
विनायक पूजा और उपासना कार्य बाधा और जीवन में आने वाली शत्रु बाधा को दूर कर शुभ व मंगल करती है। यही कारण है हर माह के शुक्ल पक्ष को विनायक चतुर्थी पर श्री गणेश की उपासना कार्य की सफलता के लिए बहुत ही शुभ मानी गई है। यहां जानते हैं विनायक चतुर्थी के दिन श्री गणेश उपासना का एक सरल उपाय, जो कोई भी अपनाकर हर कार्य को सफल बना सकता है -
- चतुर्थी के दिन, बुधवार को सुबह और शाम दोनों ही वक्त यह उपाय किया जा सकता है।
- स्नान कर भगवान श्री गणेश को कुमकुम, लाल चंदन, सिंदूर, अक्षत, अबीर, गुलाल, फूल, फल, वस्त्र, जनेऊ आदि पूजा सामग्रियों के अलावा खास तौर पर 21 दूर्वा चढ़ाएं। दूर्वा श्री गणेश को विशेष रूप से प्रिय मानी गई है।
- विनायक को 21 दूर्वा चढ़ाते वक्त नीचे लिखे 10 मंत्रों को बोलें यानी हर मंत्र के साथ दो दूर्वा चढ़ाएं और आखिरी बची दूर्वा चढ़ाते वक्त सभी मंत्र बोलें। जानते हैं ये मंत्र
- ॐ गणाधिपाय नम:। ॐ विनायकाय नम:। ॐ विघ्रनाशाय नम:। ॐ एकदंताय नम:। ॐ उमापुत्राय नम:। ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नम:।ॐ ईशपुत्राय नम:। ॐ मूषकवाहनाय नम:। ॐ इभवक्त्राय नम:। ॐ कुमारगुरवे नम:।
- मंत्रों के साथ पूजा के बाद यथाशक्ति मोदक का भोग लगाएं। 21 मोदक का चढ़ावा श्रेष्ठ माना जाता है।
- अंत में श्री गणेश आरती कर क्षमा प्रार्थना करें। कार्य में विघ्र बाधाओं से रक्षा की कामना करें।
हिंदू धर्म के अंतर्गत मंत्रों का विशेष महत्व है।
इन मंत्रों के माध्यम से कई विशेष सिद्धियां प्राप्त की जा सकती है।
धर्म शास्त्रों में एक ऐसे मंत्र का उल्लेख है जो केवल एक अक्षर का है। इसे एकाक्षर मंत्र भी कहते हैं।
इस मंत्र में संपूर्ण सृष्टि समाई हुई है।
यह मंत्र है- ऊँ।
इसे ओंकार मंत्र भी कहते हैं। ऊँ प्रणव अक्षर है। इसमें तीन देव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु व महेश की शक्ति समाहित है। ऊँ को निराकार ब्रह्म का स्वरूप माना गया है। ऊँ की ध्वनि एक ऐसी ध्वनि है जिसकी तरंग बहुत प्रभावशाली होती है। ऊँ के उच्चारण सेकई सारे फायदे हैं, जैसे-
लाभ - विभिन्न ग्रहों से आने वाली अत्यंत घातक अल्ट्रावायलेट किरणों का प्रभाव ओम की ध्वनि की गूंज से समाप्त हो जाता है। मतलब बिना किसी विशेष उपाय के भी सिर्फ ऊँ के जप से भी अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को कम किया जा सकता है। - ऊँ का उच्चारण करने वाले के शरीर का विद्युत प्रवाह आदर्श स्तर पर पहुंच जाता है।
- इसके उच्चारण से इंसान को वाक्सिद्धि प्राप्त होती है।
- नींद गहरी आने लगती है। साथ ही अनिद्रा की बीमारी से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है। -मन शांत होने के साथ ही दिमाग तनाव मुक्त हो जाता है।
घर में रखें चांदी की गणेश प्रतिमा, पति-पत्नी के बीच नहीं होंगे झगड़े
घर में रखी हर वस्तु परिवार के सदस्यों के बीच संबंधों पर प्रभाव डालती है। सभी वस्तुओं की अलग-अलग सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार की ऊर्जा होती हैं। वास्तु के अनुसार बताई गई वस्तु सही जगह रखने पर घर में सकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय होती है।
सामान्यत: शादी के बाद पति-पत्नी के बीच छोटे-छोटे झगड़े होते रहते हैं लेकिन कई बार यही छोटे झगड़े काफी बढ़ जाते हैं।
इन झगड़ों की वजह से दोनों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में मानसिक तनाव बढऩे लगता है और वैवाहिक जीवन में खटास घुल जाती है। इससे बचने के लिए वास्तु और ज्योतिष में कई सटीक उपाय बताया गया है।
शास्त्रों के अनुसार श्रीगणेश को परिवार का देवता माना गया है।श्रीगणेश की आराधना से परिवार की सुख-समृद्धि और परस्पर प्रेम बना रहता है। इसी वजह से प्रथम पूज्य गणेशजी की मूर्ति घर में रखी जाती है। श्रीगणेश की चांदी की प्रतिमा घर में रखने से पति-पत्नी के बीच झगड़े नहीं होते और प्रेम बढ़ता रहता है।
चमत्कारी गणेश मंत्र..! जो करता है हर इच्छा पूरी
लगातार प्रयास एक ऐसा मूल मंत्र है, जिससे कामयाबी की राह में आने वाली हर बाधा दूर हो सकती है।
लेकिन इन कोशिशों के पीछे दृढ़ संकल्प ही अहम होता है।
संकल्प पर वही कायम रह सकता जो मानसिक रूप से सबल हो। ऐसी मानसिक शक्तियों को पाने के लिए व्यावहारिक रूप से बुद्धि और ज्ञान को बढ़ाना ही श्रेष्ठ उपाय है।
वहीं मनोबल को मजबूत करने के धार्मिक उपायों में भगवान गणेश ही बुद्धिदाता देवता के रूप में पूजनीय है
।भगवान गणेश की उपासना और कृपा से मिला बुद्धि कौशल सांसारिक जीवन के सभी कलह, विघ्र और भय का नाश कर मंगलकारी और संकल्पों की पूर्ति से मनचाहे नतीजे देने वाला माना गया है।
बुधवार और चतुर्थी का दिन भगवान गणेश की उपासना का विशेष दिन होता है। इस शुभ दिन गणेश भक्ति शीघ्र मनचाहे फल देती है। शास्त्रों में गणेश भक्ति के उपायों में एक चमत्कारी मंत्र ऐसा बताया गया है, जिसका जप और ध्यान कल्पवृक्ष की तरह सांसारिक जीवन से जुड़ी हर कामना को पूरा करने वाला माना गया है।
जानते हैं भगवान गणेश का यह चमत्कारी मंत्र विशेष और सरल पूजा विधि
-- बुधवार, चतुर्थी या हर रोज स्नान के बाद देवालय में भगवान गणेश की पूजा गंध, अक्षत, फूल, दूर्वा अर्पित कर करें। लड्डू नैवेद्य लगाकर नीचे लिखें मंत्र का जप एकांत व शांत स्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुख कर कुश के आसन पर बैठकर करें
- ॐ गं गौं गणपतये विघ्रविनाशिने स्वाहा।
- मंत्र जप के बाद भगवान गणेश की आरती गोघृत यानी गाय के घी के दीप और कर्पूर से करें।
- अंत में भगवान गणेश से हर पीड़ा, दु:ख, संकट, भय व बिघ्न का अंत करने की प्रार्थना कर सफलता की कामना करें। यह मंत्र जप किसी भी प्रतिकूल या संकट की स्थिति में पवित्र भावना से स्मरण करने पर शुभ फल देता है।
परिवार में बनी रहेगी सुख-शांति, करें यह उपाय
वर्तमान समय में जब लोग पारिवारिक सुख को भुलते जा रहे हैं आए दिन परिवार में क्लेश होता है। यह विवाद परिवार के किसी भी सदस्यों के बीच में हो सकता है। सास-बहू के बीच, पति-पत्नी के, भाई-भाई के बीच आदि। जब परिवार में रोज विवाद की स्थिति बनती है तो इंसान दूसरों काम भी ठीक से नहीं कर पाता।
परिवार में प्रेम व सामंजस्य बढ़ाने के कुछ साधारण उपाय नीचे दिए गए हैं
। इन्हें करने से परिवार के सदस्यों में प्रेम बढ़ता है।
उपाय-
गाय के गोबर का दीपक बनाकर उसमें गुड़ तथा मीठा तेल डालकर जलाएं।
फिर इसे घर के मुख्य द्वार के मध्य में रखें।
इस उपाय से भी घर में शांति बनी रहेगी तथा समृद्धि में वृद्धि होगी।
- एक नारियल लेकर उस पर काला धागा लपेट दें फिर इसे पूजा स्थान पर रख दें।
शाम को उस नारियल को धागे सहित जला दें।
यह टोटका 9 दिनों तक करें।
- घर में तुलसी का पौधा लगाएं तथा प्रतिदिन इसका पूजन करें।
सुबह-शाम दीपक लगाएं। इस उपाय को करने से घर में सदैव शांति का वातावरण बना रहेगा।
- अगर घर में सदैव अशांति रहती हो तो घर के मुख्य द्वार पर बाहर की ओर श्वेतार्क (सफेद आक के गणेश) लगाने से घर में सुख-शांति बनी रहेगी।
- यदि किसी बुरी शक्ति के कारण घर में झगड़े होते हों तो प्रतिदिन सुबह घर में गोमूत्र अथवा गाय के दूध में गंगाजल मिलाकर छिड़कने से घर की शुद्धि होती है तथा बुरी शक्ति का प्रभाव कम होता है।
जब भगवान के सामने आपका नारियल निकल जाए खराब, तो क्या करें?
शास्त्रों के अनुसार सभी देवी-देवताओं को नारियल अनिवार्य रूप से अर्पित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि नारियल अर्पित करने से श्रद्धालु की सभी इच्छाएं भगवान पूरी कर देते हैं। नारियल को महालक्ष्मी का प्रतीक भी माना जाता है। किसी भी प्रकार का कोई भी धार्मिक कर्म हो वहां नारियल का स्थान महत्वपूर्ण होता है।
इसी वजह से सभी मंदिरों द्वारा लगभग हर श्रद्धालु नारियल अवश्य अर्पित करता है।कभी-कभी भगवान के नाम पर नारियल फोडऩे पर वह खराब निकल जाता है। इस संबंध में कई प्रकार की शकुन या अपशकुन संबंधी बातें प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि नारियल का खराब निकलना अशुभ है तो कुछ लोग इसे शुभ मानते हैं।शास्त्रों के अनुसार पूजा में नारियल का खराब निकलना शुभ बताया गया है।
इस संबंध में ऐसा उल्लेख है कि भक्त द्वारा सच्चे मन से चढ़ाया गया नारियल पूर्ण रूप भगवान द्वारा ग्रहण कर लिया गया है।
ऐसा होने पर श्रद्धालु को प्रसन्नता के साथ देवी-देवताओं का आभार मानना चाहिए। इसके अलावा जब नारियल अच्छा निकले तब भगवान को अर्पित करने के पश्चात् अधिक से अधिक लोगों को प्रसाद स्वरूप बांट देना चाहिए।
जितने अधिक लोगों को आपके नारियल का प्रसाद मिलेगा, उतना अधिक शुभ रहता है। दोनों ही परिस्थितियों में भक्त की भावना ही प्रमुख है।
नारियल का खराब निकलना भक्त की मनोकामनाएं पूर्ण होने का संकेत ही है। उस समय श्रद्धालु ने भगवान के समक्ष जो भी प्रार्थना की होगी वह निश्चित ही पूर्ण होगी। ऐसा समझना चाहिए।
इस चमत्कारिक शंख से आप भी बन जाएंगे मालामाल
तंत्र प्रयोगों में शंख का उपयोग भी किया जाता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार दक्षिणावर्ती शंख को विधि-विधान पूर्वक जल में रखने से कई प्रकार की बाधाएं शांत हो जाती है और धन की भी कभी कमी नहीं होती। दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। इसका शुद्धिकरण इस प्रकार करना चाहिए-लाल कपड़े के ऊपर दक्षिणावर्ती शंख को रखकर इसमें गंगाजल भरें और कुश के आसन पर बैठकर इस मंत्र का जप करें-ऊँ श्री लक्ष्मी सहोरदया नम:इस मंत्र की कम से कम 5 माला जप करें और इसके बाद शंख को पूजा स्थान पर स्थापित कर दें। इससे यह लाभ होंगे-- दक्षिणावर्ती शंख जहां भी रहता है, वहां धन की कोई कमी नहीं रहती।
- दक्षिणावर्ती शंख को अन्न भण्डार में रखने से अन्न, धन भण्डार में रखने से धन, वस्त्र भण्डार में रखने से वस्त्र की कभी कमी नहीं होती।
शयन कक्ष में इसे रखने से शांति का अनुभव होता है।
- इसमें शुद्ध जल भरकर, व्यक्ति, वस्तु, स्थान पर छिड़कने से दुर्भाग्य, अभिशाप, तंत्र-मंत्र आदि का प्रभाव समाप्त हो जाता है।- किसी भी प्रकार के टोने-टोटके इस शंख के आगे निष्फल हो जाते हैं।
हल्दी का पानी छिड़के घर में, दूर हो जाएगी पैसों की तंग
इन दिनों जिस तेजी से महंगाई बढ़ रही है, इससे प्रतीत होता है कि आने वाले समय में चाहे जितना भी पैसा कमाओ कम ही लगेगा।
ऐसे में कमाई बढ़ाने के लिए कई और रास्ते खोजने होंगे। पैसों के संबंध में कहा जाता है कि जिन लोगों की किस्मत अच्छी होती है उन्हें ही अपार धन प्राप्त होता है।
अन्यथा पैसों की तंगी कभी पीछा नहीं छोड़ती है। वास्तु के अनुसार कुछ उपाय बताए गए हैं जिनसे आर्थिक तंगी को दूर किया जा सकता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार हमारे आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम कर दिया जाए और सकारात्मक ऊर्जा को अधिक सक्रिय कर दे तो निश्चित ही हमारे घर-परिवार में सुख और समृद्धि बढ़ती जाएगी।
परिवार के सभी सदस्यों को पैसों से जुड़ी कोई परेशानी नहीं रहेगी।
यदि किसी व्यक्ति के घर में कोई वास्तु दोष है तो उसे बहुत सी परेशानियां सहन करनी पड़ती हैं।
इन बुरे प्रभावों से बचने के लिए संबंधित वास्तु दोषों का निवारण किया जाना आवश्यक है।
धन की देवी महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के बाद ही पर्याप्त धन प्राप्त होता है।
माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए घर में हमेशा साफ-सफाई रखने के साथ ही यह उपाय अपनाएं। इस उपाय को अपनाने से कुछ ही समय में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगेंगे। प्रत्येक गुरुवार को पानी में हल्दी घोलकर पूरे में छिड़काव करें। ध्यान रहे घर का कोई भी भाग या कोना छुटना नहीं चाहिए। घर में किसी भी प्रकार की गंदगी न हो, ना ही कोई मकड़ी के जाले हो। हल्दी के छिड़काव से घर पवित्र होता है और पॉजीटिव एनर्जी की बढ़ोतरी होती है।
इससे परिवार के सदस्यों का मनोबल ऊंचा होता है और सभी कार्यों को पूरी मेहनत के साथ करते हैं। जिससे सफलता अवश्य प्राप्त होती हैं।
समृद्धि में अवरोध - कारण पूजा कक्ष तो नहीं...!!!!
पूजाघर भौतिक सुखों की प्राप्ति के साथ-साथ पारलौकिक सुखों एवं आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति का साधन हैं। यह वह कक्ष हैं, जिसमें विश्व का संचालक (ईश्वर) निवास करता हैं। अतः इसका निर्माण एवं इसकी साज सज्जा वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार करनी चाहिए।
कई बार वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों का हम उल्लंघन करते हैं और अपनी सुविधानुसार पूजा घर बना लेते हैं।
वास्तुसम्मत सिद्धान्तों के विपरीत पूजाघर मुसीबतों का कारण बन सकता है। वास्तुशास्त्र में पूजाघर के सम्बन्ध में विस्तृत दिशा-निर्देश मिलते हैं।
पूजा कक्ष का की स्थापना ईशान दिशा में होना चाहिए इसकी स्थापना किसी भी स्थिति में दक्षिण दिशा में नहीं करना चाहिए।
मूर्तियों की स्थापना इस प्रकार करनी चाहिए कि देवताओं का मुँह दक्षिण और उत्तर दिशा में रहे।
शयनकक्ष में पूजा घर की स्थापना नही होनी चाहिए।
दीप जलाने का स्थान आग्नेय कोण में निश्चित करना चाहिए।
पूजा कक्ष के ऊपर शौचालय या स्नानघर नहीं होना चाहिए।
कभी भी शयन कक्ष में पूजा कक्ष की ओर पांव कर नहीं सोना चाहिए।
वास्तु नियमों का उल्लंघन वास्तुदोष के नाम से जाना जाता हैं ।
वास्तुदोष का प्रभाव हमारे ऊपर न केवल शारीरिक एवं मानसिक रूप से पड़ता हैं, वरन् जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यथा कैरियर, आर्थिक स्थिति संतानसुख, यश, अपयश अच्छा एवं बुरा समय सभी पर पड़ता हैं ।
वास्तुदोष होने पर इमारत में रहने वाले अथवा कार्य करने वाले व्यक्तियों का जहाँ स्वास्थ्य खराब रहता हैं अर्थात् वे बीमार पड़ने लगते हैं, मानसिक तनाव बढ़ जाते हैं, अनिद्रा जैसी समस्याओं से उन्हें जूझना पड़ता हैं, व्यवसाय में अचानक हानि अथवा अच्छे चलते हुए व्यवसाय का ठप्प हो जाना, आर्थिक संकट, ऋणग्रस्तता, पत्नि या संतान का बीमार होना, नित नई समस्याएॅ आना जैसे दुष्परिणाम प्राप्त होने लगते हैं । यदि आपके भवन में उत्तर अथवा उत्तर पूर्व दिशा में भण्डार ग्रह अथवा वैसे ही टूटे-फूटे सामान एवं पूरानी वस्तुएं पड़ी हुई हैं तो भी आय में कमी होती हैं उन्हें तुरन्त हटा देना चाहिए ।
छत को साफ सुथरा रखना चाहिए ।
यदि घर के उत्तर पूर्व और उत्तरी कक्षों की ऊचाई अन्य कक्षों से ऊची हैं तो आय में कमी आती हैं ।
पूजा कक्ष में ईश्वर के विग्रहों या चित्रों को एक दूसरे के सम्मुख नहीं लगाना चाहिए ।
ध्यान रखे पूजा कक्ष में ईश्वर के चित्रों के साथ पितरों (पूर्वजों) के चित्र नहीं लगाना चाहिए। पूजा कक्ष की दीवारों का रंग हल्का पिला, सफेद या बादामी कलर का होना चाहिए ।
पूजा कक्ष में गहरें रंगों का प्रयोग वर्जित हैं तथा फर्श भी हल्के पिले, या सफेद रंग का होना चाहिए ।
काले या नीले (गहरे) रंगों के फर्श निशेध हैं, पूजा कक्ष में संगमरमर (ग्रेनाईट) का प्रयोग नहीं करना चाहिए। संगमरमर का प्रयोग कब्रगाह, मकबरों व मन्दिर में बाहरी प्रयोग हेतु किया जा सकता हैं ।
पूजा कक्ष यथा सम्भव ग्राउण्ड फ्लोर (भू-तल) पर होना चाहिए साथ ही प्रयास करें कि पूजा कक्ष की छत गुम्बदाकार या पिरामिडाकार हो ।
यथासंभव घर में पूजा के लिए पूजाघर का निर्माण पृथक से कराना चाहिए ।
यदि पूजा हेतु पृथक कक्ष का निर्माण स्थानाभाव के कारण संभव न हो, तो भी पूजा का स्थान एक निश्चित जगह को ही बनाना चाहिए तथा भगवान की तस्वीर, मूर्ति एवं अन्य पूजा संबंधी सामग्री को रखने के लिए पृथक से एक अलमारी अथवा ऊॅचे स्थान का निर्माण करवाना चाहिए ।
जिस स्थान पर बैठकर पूजा की जाए, वह भी भूमि से कुछ ऊँचा होना चाहिए तथा बिना आसन बिछाए पूजा नहीं करनी चाहिए
पूजाघर के लिए सर्वाधिक उपर्युक्त दिशा ईशान कोण होती हैं । अर्थात पूर्वोत्तर दिशा में पूजाघर बनाना चाहिए । यदि पूजाघर गलत दिशा में बना हुआ हैं तो पूजा का अभीष्ट फल प्राप्त नहीं होता हैं फिर भी ऐसे पूजाघर में उत्तर अथवा पूर्वोत्तर दिशा में भगवान की मूर्तियाॅ या चित्र आदि रखने चाहिए ।
पूजाघर की देहरी को कुछ ऊँचा बनाना चाहिए । पूजाघर में प्रातःकाल सूर्य का प्रकाश आने की व्यवस्था बनानी चाहिए ।
पूजाघर में वायु के प्रवाह को संतुलित बनाने के लिए कोई खिड़की अथवा रोशनदान भी होनी चाहिए ।
पूजाघर के द्वार पर मांगलिक चिन्ह, (स्वास्तीक, ऊँ,) आदि स्थापित करने चाहिए ।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश या सूर्य की मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम में होना चाहिए । गणपति एवं दुर्गा की मूर्तियों का मुख दक्षिण में होना उत्तम होता हैं ।
काली माॅ की मूर्ति का मुख दक्षिण में होना शुभ माना गया हैं । हनुमान जी की मूर्ति का मुख दक्षिण पश्चिम में होना शुभ फलदायक हैं । पूजा घर में श्रीयंत्र, गणेश यंत्र या कुबेर यंत्र रखना शुभ हैं । पूजाघर के समीप शौचालय नहीं होना चाहिए ।
इससे प्रबल वास्तुदोष उत्पन्न होता हैं । यदि पूजाघर के नजदीक शौचालय हो, तो शौचालय का द्वार इस प्रकार बनाना चाहिए कि पूजाकक्ष के द्वार से अथवा पूजाकक्ष में बैठकर वह दिखाई न दे । पूजाघर का दरवाजा लम्बे समय तक बंद नहीं रखना चाहिए ।
यदि पूजाघर में नियमित रूप से पूजा नहीं की जाए तो वहाॅ के निवासियों को दोषकारक परिणाम प्राप्त होते हैं ।
पूजाघर में गंदगी एवं आसपास के वातावरण में शौरगुल हो तो ऐसा पूजाकक्ष भी दोषयुक्त होता हैं चाहे वह वास्तुसम्मत ही क्यों न बना हो क्यांेकि ऐसे स्थान पर आकाश तत्व एवं वायु तत्व प्रदूषित हो जाते हैं जिसके कारण इस पूजा कक्ष में बैठकर पूजन करने वाले व्यक्तियों की एकाग्रता भंग होती हैं तथा पूजा का शुभ फला प्राप्त नहीं होता ।
पूजाघर गलत दिशा में बना हुआ होने पर भी यदि वहां का वातावरण स्वच्छ एवं शांतिपूर्ण होगा तो उस स्थान का वास्तुदोष प्रभाव स्वयं ही घट जाएगा ।
इस प्रकार बिना तोड़-फोड़ के उपर्युक्त उपायो के आधार पर पूजाकक्ष के वास्तुदोष दूर कर समृद्धि एवं खुशहाली पुनः प्राप्त की जा सकती हैं ।
सोते समय तकिए के नीचे इसे जरूर रखें, मस्त नींद आएगी...
हमारे दैनिक जीवन से कई छोटी-छोटी बातें जुड़ी हुई हैं, जिनका हम पूरी तरह से पालन करते हैं।
कुछ बातें हमारे पूर्वजों के समय से चली आ रही हैं।
अच्छी नींद और बुरे सपनों से बचाव के लिए शास्त्रों में कई प्रकार के सटीक उपाय बताए गए हैं।
काफी लोगों को बुरे, डरावने या भयानक सपने दिखाई देते हें। जिससे उनकी नींद खुल जाती है।
ऐसे में स्वास्थ्य का नुकसान तो होता है साथ ही मानसिक तनाव भी बढ़ता है।
पर्याप्त नींद के अभाव में किसी भी कार्य को सही ढंग से कर पाना काफी मुश्किल हो जाता है।
इसी वजह सही समय पर पर्याप्त नींद लेना आवश्यक है।
यदि किसी व्यक्ति को बुरे या डरावने सपनों के कारण नींद नहीं आती है तो उसे सोते समय अपने तकिए के नीचे लोहे का चाकू रखकर सोना चाहिए।
लड़का हो या लड़का, जवान हो या वृद्ध या चाहे कोई बच्चा हो, यदि इन्हें सोते समय बुरे सपने आते हैं या डर लगता है तो तकिए के नीचे लौहे का नुकिला चाकू रखकर सोएं।
ऐसा करने से अशुभ सपनों का भय नहीं रहता है और मस्त नींद आती है।
यह उपाय काफी पुराना है और आज भी शत-प्रतिशत प्रभावशाली है।
तकिए के नीचे चाकू रखने से हमारे आसपास की नकारात्मक शक्तियां या बुरी शक्तियां निष्क्रीय हो जाती हैं और वे हमारे दिमाग पर कब्जा नहीं कर पाती।
जिससे हमें डरावने या भूत-प्रेत या बुरे सपने नहीं दिखाई देते हैं।
ये 6 कहीं भी दिख जाए तो होगा सब अच्छा ही अच्छा
भारतीय समाज में काफी पुराने समय से शकुन और अपशकुन की मान्यताएं प्रचलित हैं।
कई छोटी-छोटी घटनाओं से भविष्य में होने वाली बड़ी घटनाओं की जानकारी प्राप्त की जाती है।
कभी-कभी कुछ जीवों या वस्तुओं के दिखाई देने पर भी शकुन या अपशकुन माना जाता है।
श्रीरामचरित मानस के रचियता गोस्वामी तुलसीदास ने शकुन-अपशकुन का विस्तृत उल्लेख किया है।
रामायण और श्रीरामचरित मानस में कई स्थानों पर शकुन और अपशकुन का वर्णन मिलता है।
अत: स्पष्ट है कि इस प्रकार की छोटी घटनाओं का हमारे जीवन में कितना गहरा महत्व है। तुलसीदासजी के अनुसार नेवला, मछली, दर्पण, क्षेमकरी चिडिय़ा, चकवा और नील कंठ, हमें जहां कहीं भी दिख जाए इसे शुभ समझना चाहिए।
इनके दिखाई पर ऐसा समझना चाहिए कि आपके कार्यों में आ रही बाधाएं स्वत: ही नष्ट होने वाली है।
बिगड़े कार्य बनने वाले हैं।
इनसे व्यक्ति की मनोकामएं पूर्ण होने के संकेत मिलते हैं। यदि किसी व्यक्ति को धन संबंधी कार्यों में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है और इनमें से कोई दिख जाए तो निकट भविष्य में आपके पैसों से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाएंगी।
श्रीयंत्र पूजा :
छप्पर फाड़ के बरसेगा धन धन यानी पैसा जीवन की अहम जरूरत है। किंतु मेहनत से कमाया धन ही वास्तविक सुख और शांति देता है। ऐसा कमाया पैसा आत्मविश्वास बढ़ाने के साथ दूसरों का भरोसा भी देता है, साथ ही रुतबा और साख भी बनाता है। धर्म में आस्था रखने वाला हर व्यक्ति ऐसे ही तरीकों में विश्वास रखता है। इसलिए शक्तिपूजा के विशेष दिन शुक्रवार के लिए एक ऐसा ही उपाय यहां बताया जा रहा है।
जिसको अपनाने से जीवन में किसी भी सुख का अभाव नहीं होता और पैसों की कमी कभी नहीं सताएगी। यह उपाय है श्रीयंत्र पूजा।
धार्मिक दृष्टि से लक्ष्मी कृपा के लिए की जाने वाली श्रीयंत्र साधना संयम और नियम की दृष्टि से कठिन होती है।
किंतु यहां बताई जा रही है श्रीयंत्र पूजा की सरल विधि, जिसे कोई भी सामान्य भक्त अपनाकर सुख और वैभव पा सकता है।
सरल शब्दों में यह पूजा पवित्रता और नियम से करने पर धनकुबेर बना सकती है। श्रीयंत्र पूजा की आसान विधि कोई भी भक्त शुक्रवार या प्रतिदिन कर सकता है।
श्रीयंत्र पूजा के पहले कुछ सामान्य नियमों का जरूर पालन करें -
- ब्रह्मचर्य का पालन करें और ऐसा करने का प्रचार न करें।
--साफ कपड़े पहनें।
-सुगंधित तेल, परफ्यूम, इत्र न लगाएं।
-बिना नमक का आहार लें।
- प्राण-प्रतिष्ठित श्रीयंत्र की ही पूजा करें।
यह किसी भी मंदिर, योग्य और सिद्ध ब्राह्मण, ज्योतिष या तंत्र विशेषज्ञ से प्राप्त करें।
- यह पूजा लोभ के भाव से न कर सुख और शांति के भाव से करें।
इसके बाद श्रीयंत्र पूजा की इस विधि से करें।
किसी विद्वान ब्राह्मण से कराया जाना बेहतर तरीका है -
- शुक्रवार या किसी भी दिन सुबह स्नान कर एक थाली में श्रीयंत्र स्थापित करें। - इस श्रीयंत्र को लाल कपड़े पर रखें।
- श्रीयंत्र का पंचामृत यानि दुध, दही, शहद, घी और शक्कर को मिलाकर स्नान कराएं। पवित्र गंगाजल से स्नान कराएं।
- इसके बाद श्रीयंत्र की पूजा लाल चंदन, लाल फूल, अबीर, मेंहदी, रोली, अक्षत, लाल दुपट्टा चढ़ाएं। मिठाई का भोग लगाएं।
- धूप, दीप, कर्पूर से आरती करें।
- श्री यंत्र के सामने लक्ष्मी मंत्र, श्रीसूक्त, दुर्गा सप्तशती या देवी का कोई भी आसान श्लोक का पाठ करें।
यह पाठ लालच से दूर होकर श्रद्धा और पूरी आस्था के साथ करें।
- अंत में पूजा में जाने-अनजाने हुई गलती के लिए क्षमा मांगे और माता लक्ष्मी का स्मरण कर सुख, सौभाग्य और समृद्धि की कामना करें। श्रीयंत्र पूजा की यह आसान विधि नवरात्रि में बहुत ही शुभ फलदायी मानी जाती है।
इससे नौकरीपेशा से लेकर बिजनेसमेन तक धन का अभाव नहीं देखते। इसे प्रति शुक्रवार या नियमित करने पर जीवन में आर्थिक कष्टों का सामना नहीं करना पड़ता।
गजानन
इस मंत्र से बिना तोड़-फोड़ व जल्द दूर होगा वास्तु दोष
अगर घर-परिवार में रोग, अभाव, दरिद्रता, शुभ कार्य में बाधा या असफलता से अशांति व विवाद बना रहता है, तो इसके पीछे वास्तु दोष भी एक कारण माना जाता है।
शास्त्रों के मुताबिक वास्तु का अर्थ है
- जिस भूमि पर मानव सहित अन्य जीव रहें। इसमें घर, देवालय, महल, गांव या नगर आदि सभी शामिल होते हैं।
इन स्थानों पर सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य व शांति के लिए न केवल वास्तु शास्त्र के अनुरूप आवास बनाना जरूरी होने के अलावा वास्तु देवता की पूजा व उपासना भी शुभ मानी गई है।
जानते हैं कौन है वास्तु देवता?
और कैसे खुशहाली के लिए करें वास्तु देव की नियमित पूजा व ध्यान? -
पौराणिक मान्यता है कि अंधकासुर को मारते हुए भगवान शंकर के मस्तक से गिरी पसीने की बूंदों से भयानक रूप वाला पुरुष प्रकट हुआ।
वह जगत को खाने के लिए आगे बढ़ा तो तब भगवान शंकर व सभी देवताओं ने उसे भूमि पर लेटाकर उसकी वास्तु पुरुष के रूप में प्रतिष्ठा कर स्वयं भी उसकी देह में निवास किया।
इस कारण वह वास्तुदेवता के रूप में पूजनीय हुआ।
वास्तुदेवता सभी देवशक्तियों का स्वरूप होने से ही नियमित देव पूजा में विशेष मंत्र से वास्तुदेव का ध्यान वास्तु दोष को दूर करने के लिए आसान उपाय माना गया है, जो घर में बिना किसी तोड़-फोड़ किए भी कारगर हो सकता है। जिसे इस तरह अपनाएं -
हर रोज इष्ट देव की पूजा के दौरान हाथों में सफेद चन्दन लगे सफेद फूल व अक्षत लेकर वास्तुदेव का नीचे लिखे वेद मंत्र से ध्यान कर घर-परिवार से सारे कलह, संकट व दोष दूर करने की कामना करें व फूल, अक्षत इष्टदेव को चढ़ाकर धूप, दीप आरती करें -
वास्तोष्पते प्रति जानीह्यस्मान् त्स्वावेशो अनमीवो: भवान्। यत् त्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे।।
ऋग्वेद के इस मंत्र का सरल शब्दों में अर्थ है
- हे वास्तु देवता, हम आपकी सच्चे हृदय से उपासना करते हैं।
हमारी प्रार्थना को सुन आप हमें रोग-पीड़ा और दरिद्रता से मुक्त करें।
हमारी धन-वैभव की इच्छा भी पूरी करें। वास्तु क्षेत्र या घर में रहने वाले सभी परिजनों, पशुओं व वाहनादि का भी शुभ व मंगल करें।

Pt.P.S Tripathi
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दत्तात्रेय पूजन विधि एवं स्तोत्र



दत्तात्रय याने अत्रि ऋषि और अनुसूया की तपस्या का प्रसाद ...
" दत्तात्रय " शब्द , दत्त + अत्रेय की संधि से बना है।
त्रिदेवों द्वारा प्रदत्त आशीर्वाद “ दत्त “ ... अर्थात दत्तात्रय !
मार्गशीर्ष (अगहन) मास की पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है।
शास्त्रानुसार इस तिथि को भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों देवताओं की परमशक्ति जब केंद्रित हुई तब 'त्रयमूर्ति दत्त' का जन्म हुआ।
अगहन पूर्णिमा को प्रदोषकाल में भगवान दत्त का जन्म होना माना गया है।
दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं और इसलिए उन्हें ' परब्रह्ममूर्ति सदगुरु ' और ' श्री गुरुदेव दत्त ' भी कहा जाता है।
उन्हें गुरु वंश का प्रथम गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक माना जाता है।
विविध पुराणों और महाभारत में भी दत्तात्रेय की श्रेष्ठता का उल्लेख मिलता है।
वे श्री हरि विष्णु का अवतार हैं।
वे पालनकर्ता, त्राता और भक्त वत्सल हैं तो भक्ताभिमानी भी।
वेदों को प्रतिष्ठा देने वाले महर्षि अत्रि और ऋषि कर्दम की कन्या अनुसूया के ब्रह्मकुल में जन्मा यह दत्तावतार क्षमाशील अंतकरण का भी है।
भारतीय भक्ति परंपरा के विकास में श्री दत्त देव एक अनूठे अवतार हैं।
रज-तम-सत्व जैसे त्रिगुणों,
इच्छा-कर्म-ज्ञान तीन भावों और
उत्पत्ति-स्थिति-लय के एकत्व के रूप में वे प्रतिष्ठित हैं।
उनमें शैव और वैष्णव दोनों मतों के भक्तों को आराध्य के दर्शन होते हैं।
शैवपंथी उन्हें शिव का अवतार और वैष्णव विष्णु अवतार मानते हैं।
नाथ, महानुभव, वारकरी, रामदासी के उपासना पंथ में श्रीदत्त आराध्य देव हैं।
तीन सिर, छ: हाथ, शंख-चक्र-गदा-पद्म, त्रिशूल-डमरू-कमंडल, रुद्राक्षमाला, माथे पर भस्म, मस्तक पर जटाजूट, एकमुखी और चतुर्भुज या षडभुज इन सभी रूपों में श्री गुरुदेव दत्त की उपासना की जाती है।
मान्यता यह भी है कि दत्तात्रेय ने परशुरामजी को श्री विद्या-मंत्र प्रदान किया था।
शिवपुत्र कार्तिकेय को उन्होंने अनेक विद्याएं दी थी।
भक्त प्रल्हाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय भी भगवान दत्तात्रेय को ही है।
महाराष्ट्र और कर्नाटक मे इन्ही के नाम से एक “ दत्त संप्रदाय “ भी है।
मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य प्रात:काल काशी की गंगाजी में स्नान करते थे। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका दत्त भक्तों के लिए पूजनीय है।
इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेलगाम में स्थित है। दत्तात्रेय को गुरु रूप में मान उनकी पादुका को नमन किया जाता है।
गिरनार क्षेत्र दत्तात्रय भगवान की सिद्धपीठ है , इनकी गुरुचरण पादुकाएं वाराणसी तथा आबू पर्वत आदि कई स्थानों पर हैं।
माना गया है कि भक्त के स्मरण करते ही भगवान दत्तात्रेय उनकी हर समस्या का निदान कर देते हैं इसलिए इन्हें “ स्मृति गामी व स्मृतिमात्रानुगन्ता “ भी कहा गया है। अपने भक्तों की रक्षा करना ही श्री दत्त का 'आनंदोत्सव' है।
श्री गुरुदेव दत्त , भक्त की इसी भक्ति से प्रसन्न होकर स्मरण करने समस्त विपदाओं से रक्षा करते हैं।
दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार मानते हैं। दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है।
यह भी मान्यता है कि रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक भी दत्तात्रेय थे।
भगवान दत्तात्रेय से वेद और तंत्र मार्ग का विलय कर एक ही संप्रदाय निर्मित किया था।
आदि शंकराचार्य के अनुसार –
‘ समस्त दैहिक – दैविक और भौतिक सुखों, आरोग्य, वैभव, सत्ता, संपत्ति सभी कुछ मिलने के बाद यदि मन गुरुपद की शरण नहीं गया तो फिर क्या पाया।'
दत्तात्रय भगवान का रूप तथा उनका परिवार भी आध्यात्मिक संदेश देता है ,
उनका भिक्षुक रूप अहंकार के नाश का प्रतीक है ... कंधे पर झोली , मधुमक्खी के समान मधु एकत्र करने का संदेश देती है ।
उनके साथ खड़ी गाय , कामधेनु है जो कि पृथ्वी का प्रतीक हैं ।
चार कुत्ते , चारों वेदों के प्रतीक माने गए हैं ... गाय और कुत्ते एक प्रकार से उनके अस्त्र भी हैं ,
क्यूंकी गाय अपने सींगों से प्रहार करती है और कुत्ते काट लेते हैं।
औदुंबर अर्थात ‘ गूलर वृक्ष ‘ दत्तात्रय का सर्वाधिक पूज्यनीय रूप है ... इसी वृक्ष मे दत्त तत्व अधिक है।
दत्तात्रय साधना -
भगवान शंकर का साक्षात रूप महाराज दत्तात्रेय में मिलता है और तीनो ईश्वरीय शक्तियो से समाहित महाराज दत्तात्रेय की साधना अत्यंत ही सफ़ल और शीघ्र फ़ल देने वाली है।
महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी,अवधूत,और दिगम्बर रहे थे ,वे सर्वव्यापी है और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले है,
यदि मानसिक रूप से , कर्म से या वाणी से महाराज दत्तात्रेय की उपासना की जावे तो साधकों को शीघ्र ही सफलता प्राप्त हो जाती है।
साधना विधि -
श्री दत्तात्रेय जी की प्रतिमा,चित्र या यंत्र को लाकर लाल कपडे पर स्थापित करने के बाद चन्दन लगाकर,फ़ूल चढाकर,धूप की धूनी देकर,नैवेद्य चढाकर दीपक से आरती उतारकर पूजा की जाती है,पूजा के समय में उनके लिये पहले स्तोत्र को ध्यान से पढा जाता है,
फ़िर मन्त्र का जप किया जाता है,
उनकी उपासना तुरत प्रभावी हो जाती है और शीघ्र ही साधक को उनकी उपस्थिति का आभास होने लगता है।
साधकों को उनकी उपस्थिति का आभास सुगन्ध के द्वारा,दिव्य प्रकाश के द्वारा,या साक्षात उनके दर्शन से होता है।
साधना के समय अचानक स्फ़ूर्ति आना भी उनकी उपस्थिति का आभास देती है।
विनियोग -
पूजा करने के आरम्भ में भगवान श्री दत्तात्रेय के लिय आवाहन किया जाता है,
एक साफ़ बर्तन में पानी लेकर पास में रखना चाहिये,
बायें हाथ में एक फ़ूल और चावल के दाने लेकर इस प्रकार से विनियोग करना चाहिये-
" ॐ अस्य श्री दत्तात्रेय स्तोत्र मंत्रस्य भगवान नारद ऋषि: अनुष्टुप छन्द:,श्री दत्त परमात्मा देवता:, श्री दत्त प्रीत्यर्थे जपे विनोयोग: ",
इतना कहकर दाहिने हाथ से फ़ूल और चावल लेकर भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा,चित्र या यंत्र पर चढाने चाहिये,
फ़ूल और चावल को चढाने के बाद हाथों को पानी से साफ़ कर लेना चाहिये,और दोनों हाथों को जोडकर प्रणाम मुद्रा में उनके लिये जप / ध्यान स्तुति को करना चाहिये।
जप स्तुति इस प्रकार है -
" जटाधाराम पाण्डुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम। सर्व रोग हरं देव,दत्तात्रेयमहं भज॥"
मंत्र
पूजा करने में फ़ूल और नैवेद्य चढाने के बाद आरती करनी चाहिये और आरती करने के समय यह स्तोत्र पढना चाहिये -
जगदुत्पति कर्त्रै च स्थिति संहार हेतवे। भव पाश विमुक्ताय दत्तात्रेय नमो॓‍ऽस्तुते॥
जराजन्म विनाशाय देह शुद्धि कराय च। दिगम्बर दयामूर्ति दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
कर्पूरकान्ति देहाय ब्रह्ममूर्तिधराय च। वेदशास्त्रं परिज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
ह्रस्व दीर्घ कृशस्थूलं नामगोत्रा विवर्जित। पंचभूतैकदीप्ताय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
यज्ञभोक्त्रे च यज्ञाय यशरूपाय तथा च वै। यज्ञ प्रियाय सिद्धाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णु: अन्ते देव: सदाशिव:। मूर्तिमय स्वरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
भोगलयाय भोगाय भोग योग्याय धारिणे। जितेन्द्रिय जितज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
दिगम्बराय दिव्याय दिव्यरूप धराय च। सदोदित प्रब्रह्म दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
जम्बूद्वीपे महाक्षेत्रे मातापुर निवासिने। जयमान सता देवं दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
भिक्षाटनं गृहे ग्रामं पात्रं हेममयं करे। नानास्वादमयी भिक्षा दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वक्त्रो चाकाश भूतले। प्रज्ञानधन बोधाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
अवधूत सदानन्द परब्रह्म स्वरूपिणे। विदेह देह रूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
सत्यरूप सदाचार सत्यधर्म परायण। सत्याश्रम परोक्षाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
शूल हस्ताय गदापाणे वनमाला सुकंधर। यज्ञसूत्रधर ब्रह्मान दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
क्षराक्षरस्वरूपाय परात्पर पराय च। दत्तमुक्ति परस्तोत्र दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
दत्तविद्याठ्य लक्ष्मीशं दत्तस्वात्म स्वरूपिणे। गुणनिर्गुण रूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
शत्रु नाश करं स्तोत्रं ज्ञान विज्ञान दायकम।सर्वपाप शमं याति दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
इस स्तोत्र को पढने के बाद एक सौ आठबार " ऊँ द्रां “ बीज मंत्र का मानसिक जप करना चाहिये।
इसके बाद रुद्राक्ष की माला से , दस माला का नित्य जप इस मंत्र से करना चाहिये " ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा "
भगवान दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि में प्रदोष काल यानी संध्या के समय ही माना गया है।
यही कारण है हर पूर्णिमा तिथि पर भी दत्तात्रेय की उपासना ज्ञान, बुद्धि, बल प्रदान करने के साथ शत्रु बाधा दूर कर कार्य में सफलता और मनचाहे परिणामों को देने वाली मानी गई है।
धार्मिक मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय भक्त की पुकार पर शीघ्र प्रसन्न होकर किसी भी रूप में उसकी कामनापूर्ति या संकटनाश करते हैं।
गुरुवार और हर पूर्णिमा की शाम भगवान दत्त की उपासना में विशेष मंत्र का स्मरण बहुत ही शुभ माना गया है।
इन मंत्रों के जप से भी शीघ्र सफलता प्राप्त होती है –
ॐ दिगंबराय विद्महे योगीश्रारय् धीमही तन्नो दत: प्रचोदयात्
ॐ ऐं क्रों क्लीं क्लूंप ह्रां ह्रीं ह्रूं सौ:
ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा
ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नमः
दत्तविद्याठ्य लक्ष्मीशं दत्तस्वात्म स्वरूपिणे, गुणनिर्गुण रूपाय दत्तात्रेय नमोस्तुते
ॐ आं ह्रीं क्रों दत्तात्रय नमः
!! ॐ नमः शिवाय !!

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कैन्सर ज्योतिष्य कारण और निदान

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ज्योतीषीय कारण की खोज में लोग कैन्सर महारोग का निदान और निवारण प्राप्त कर लाभान्वित होते हैं। प्राचीन और सर्वमान्य भारतीय दर्शन जीवन के हर पहलू पर व्यवस्था देते हुए जिंदगी में निरोगी काया को मनुष्य का प्रथम सुख बताते हुए कहती है ''पहला सुख निरोगी काया" और माना गया है यथा नाम यथा गुण अतएव कैंसर भी निरोग से दूर भागता। आइये ज्योतिष कारण निवारण पद्धति से कैंसर निदान के उपाय खोजे।
आगे पढ़ते हुए कैन्सर कारण और निदान अपने ज्योतीषीय अनुभव और विश्वास पर आधारित टिप्पणी जरूर करें।
यह बिल्कुल सत्य है कि निरोगी शरीर ही प्रथम सुख है और बाकी सभी सुख निरोगी शरीर पर ही निर्भर करते हैं। आजकल के दौड़ धूप के युग मेंं पूर्णत: निरोगी रहना अधिकांश व्यक्तियों के लिये एक स्वप्न के समान ही है. निरोगी शरीर का अर्थ है का शरीर रोग से रहित होना। रोग दो प्रकार के होते है एक- साध्य रोग जो कि उचित उपचार, आहार, व्यवहार से ठीक हो जाते हैं दूसरे असाध्य रोग जो कि उपचार के बाद भी व्यक्तिओं का पीछा नहीं छोड़ते है।
इस आलेख में कैंसर रोग के ज्योतिषीय पहलू का विवेचन करते है, आयुर्वेद के अनुसार त्वचा की छठी परत जिसे आयुर्वेद में रोहिणी कहते है जिसका संस्कृत मेंं अर्थ है ''कोशिकाओं की रचना। जब ये कोशिकायें क्षतिग्रस्त होती हैं तो शरीर के उस हिस्से में एक ग्रन्थि बन जाती है इस ग्रन्थि को असामान्य शोथ भी कहते है। तब यह ग्रन्थि कैंसर का रूप ले लेती हैं।
ज्योतिष पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों का आधार है अर्थात हम ज्योतिष द्वारा ज्ञात कर सकते हैं कि हमारे पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों का परिणाम हमें इस जन्म में किस प्रकार प्राप्त होगा। ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार कोई भी रोग पूर्व जन्मकृत कर्मों का ही फल होता है। ग्रह उन फलों के संकेतक हैं, ज्योतिष विज्ञान कैंसर सहित सभी रोगों की पहचान मेंं सहायक होता है। पहचान के साथ-साथ यह भी मालूम किया जा सकता है कि कैंसर रोग किस अवस्था मेंं होगा तथा उसके कारण मृत्यु आयेगी या नहीं, यह सभी ज्योतिष विधि द्वारा जाना जा सकता है। कैंसर रोग की पहचान निम्न ज्योतिषीय योग होने पर बड़ी आसानी से की जा सकती है:-
1.. राहु को विष माना गया है यदि राहु का किसी भाव या भावेश से संबंध हो एवं इसका लग्न या रोग भाव से भी सम्बन्ध हो तो शरीर में विष की मात्रा बढ़ जाती है।
2. षष्टेश लग्न, अष्टम या दशम भाव मेंं स्थित होकर राहु से दृष्ट हो तो कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
3. बारहवें भाव मेंं शनि-मंगल या शनि-राहु, शनि-केतु की युति हो तो जातक को कैंसर रोग देती है।
4. राहु की त्रिक भाव या त्रिकेश पर दृष्टि हो भी कैंसर रोग की संभावना बढ़ाती है।
5. षष्टम भाव तथा षष्ठेश पीडि़त या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थित हो।
6. बुध ग्रह त्वचा का कारक है अत: बुध अगर क्रूर ग्रहों से पीडि़त हो तथा राहु से दृष्ट हो तो जातक को कैंसर रोग होता है।
7. बुध ग्रह की पीडि़त या हीनबली या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थिति भी कैंसर को जन्म देती है।
बृहत पाराशरहोरा शास्त् के अनुसार षष्ठ पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद होता है यथा ''रोग स्थाने गते पापे, तदीशी पाप रोग कारक: अत: जातक रोगी होगा और यदि षष्ठ भाव मेंं राहु व शनि हो तो असाध्य रोग से पीडि़त हो सकता है।
विश्व भर मेंं हर आठ मेंं से एक व्यक्ति की मृत्यु कैंसर के कारण होती है। कैंसर से मरने वालों की संख्या एड्स, टीबी और मलेरिया से मरने वाले कुल मरीजों से अधिक है। दुनिया भर मेंं हृदय रोगों के बाद कैंसर ही मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। तंबाकू चबाना, सिगरेट, सैच्युरेटेड फैट से भरपूर आहार लेना, शराबखोरी, शारीरिक श्रम का अभाव जैसी अस्वास्थकर आदतें लोगों को कैंसर की ओर धकेल रही हैं। कैंसर के सौ से भी अधिक प्रकार हैं। हरेक प्रकार दूसरे से अलग होता है, सभी के कारण, लक्षण और उपचार भी अलग-अलग होते हैं।
कैन्सर अब एक सामान्य रोग हो गया है। हर दस व्यक्तियों मेंं से एक को कैंसर होने की संभावना है। कैन्सर किसी भी उम्र मेंं हो सकता है। परन्तु यदि रोग का निदान व उपचार प्रारम्भिक अवस्थाओं मेंं किया जावें तो इस रोग का पूर्ण उपचार संभव है।
कैन्सर का सर्वोतम उपचार बचाव है। यदि मनुष्य अपनी जीवन-शैली मेंं कुछ परिवर्तन करने को तैयार हो तो 60 प्रतशित मामलो मेंं कैन्सर होने से पूर्णत: रोका जा सकता है।
कैंसर के कुछ प्रारम्भिक लक्षण:-
शरीर मेंं किसी भी अंग मेंं घाव या नासूर, जो न भरे। लम्बे समय से शरीर के किसी भी अंग मेंं दर्दरहित गांठ या सूजन। स्तनों मेंं गांठ होना या रिसाव होना मल, मूत्र, उल्टी और थूंक मेंं खून आना। आवाज मेंं बदलाव, निगलने मेंं दिक्कत, मल-मूत्र की सामान्य आदत मेंं परिवर्तन, लम्बे समय तक लगातार खांसी। पहले से बनी गांठ, मस्सों व तिल का अचानक तेजी से बढना और रंग मेंं परिवर्तन या पुरानी गांठ के आस-पास नयी गांठो का उभरना। बिना कारण वजन घटना, कमजोरी आना या खून की कमी। औरतों मेंं स्तन मेंं गांठ, योनी से अस्वाभाविक खून बहना, दो माहवारियों के बीच व यौन सम्बन्धों के तुरन्त बाद तथा 40-45 वर्ष की उम्र मेंं महावारी बन्द हो जाने के बाद खून बहना आदि कैंसर के प्रारंभिक लक्षण हैं।
कैन्सर होने के संभावित कारण:-
धूम्रपान-सिगरेट या बीड़ी के सेवन से मुंह, गले, फेंफडे, पेट और मूत्राशय का कैंसर होता है। तम्बाकू, पान, सुपारी, पान मसालों, एवं गुटकों के सेवन से मुंह, जीभ खाने की नली, पेट, गले, गुर्दे और अग्नाशय (पेनक्रियाज) का कैन्सर होता है। शराब के सेवन से श्वांस नली, भोजन नली, और तालु मेंं कैंसर होता है। धीमी आंच व धूंए में पका भोजन (स्मोक्ड) और अधिक नमक लगा कर संरक्षित भोजन, तले हुए भोजन और कम प्राकृतिक रेशों वाला भोजन(रिफाइन्ड) सेवन करने से बडी आंतो का कैन्सर होता है।
कुछ रसायन और दवाईयों से पेट, यकृत(लीवर) मूत्राशय के कैंसर होता है। लगातार और बार-बार घाव पैदा करने वाली परिस्थितियों से त्वचा, जीभ, होंठ, गुर्दे, पित्ताशय, मूत्राशय का कैन्सर होता है। कम उम्र मेंं यौन सम्बन्ध और अनेक पुरूषों से यौन सम्बन्ध द्वारा बच्चेदानी के मुंह का कैंसर होता है।
कुछ आम तौर पर पाये जाने वाले कैन्सर:-
पुरूष:- मूंह, गला, फेंफडे, भोजन नली, पेट और पुरूष ग्रन्थी (प्रोस्टेट)।
महिला:- बच्चेदानी का मुंह, स्तन, मुंह, गला, ओवरी।
कैंसर से बचाव के उपाय:-
धूम्रपान, तम्बाकु, सुपारी, चना, पान, मसाला, गुटका, शराब आदि का सेवन न करें। विटामिन युक्त और रेशे वाला (हरी सब्जी, फल, अनाज, दालें) पौष्टिक भोजन खायें। कीटनाशक एवं खाद्य संरक्षण रसायणों से युक्त भोजन धोकर खायें। अधिक तलें, भुने, बार-बार गर्म किये तेल मेंं बने और अधिक नमक मेंं सरंक्षित भोजन न खायें।
अपना वजन सामान्य रखें। नियमित व्यायाम करें नियमित जीवन बितायें। साफ-सुथरे, प्रदूषण रहित वातावरण की रचना करने मेंं योगदान दें।
प्रारम्भिक अवस्था मेंं कैंसर के निदान के लिए निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान दें:-
मूंह मेंं सफेद दाग या बार-बार होने वाला घाव। शरीर मेंं किसी भी अंग या हिस्से मेंं गांठ होने पर तुरन्त जांच करवायें। महिलायें माहवारी के बाद हर महीने स्तनों की जांच स्वयं करें। दो माहवारी के बीच या माहवारी बन्द होने के बाद रक्त स्त्राव होना खतरे की निशानी है पैप टैस्ट करवायें।
शरीर मेंं या स्वास्थ्य मेंं किसी भी असामान्य परिवर्तन को अधिक समय तक न पनपने दें। नियमित रूप से जांच कराते रहें और अपने चिकित्सक से तुरन्त सम्पर्क करें।
याद रहे- प्रारम्भिक अवस्था मेंं निदान होने पर ही सम्पूर्ण उपचार सम्भव है।
कैन्सर से जुड़े भ्रम:- कैंसर एक ऐसा रोग है जिसमेंं तरह-तरह की भ्रांतियां और डर जुड़े हुए हैं। एक अध्ययन के अनुसार भारत मेंं कैंसर को नियंत्रित करने के लिए जागरुकता की कमी मुख्य रुप से जिम्मेदार है। कैंसर होने की स्थिति में जातक की जन्म पत्री किसी विद्वान ज्योतिषी से दिखा कर उपयुक्त ग्रहों की शांति करवाना, महामृत्युंजय जाप कराना और निरंतर योग्य चिकित्सक की निगरानी में रहना चाहिए।
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