Thursday 3 September 2015

वैवाहिक विलम्ब में शुक्र की विशिष्ट संस्थिति

शुक्र और चन्द्रमा की पारस्परिक शत्रुता है । चन्द्र और सूर्य दोनों ही शुक्र के शत्रु हैं । यदि शुक्र, सूर्यं अथवा चन्द्रमा की राशि कर्क या सिंह में स्थित हो एवं सूर्य और चन्द्रमा उससे द्वितीयस्थ एवं द्वादशस्थ हों तो विवाह नहीं होता अथवा उसमें अनेकानेक बाधाएं समुपस्थित होती हैं । बहुधा वैवाहिक सम्बन्ध निश्चित होकर भी भंग हो जाता है ।28 वैवाहिक विलम्ब कै विविध आयाम एवं सत्र शुक्र और चन्द्रमा की सप्तम भाव में स्थिति भी पर्याप्त चिन्तनीय है । यदि शनि व मंगल उनसे सप्तम हों अर्थात लग्न में हों तो विवाह निश्चित रूप से नहीं हो पाता । यदि यह योग बृहस्पति से दुष्ट हो तो विवाह पर्याप्त विलम्ब के बाद सम्पन्न होता है । शुक्र और चन्द्र यदि सप्तम भाव में कर्क, सिंह, तुला या वृषभ राशिगत होकर स्थित हों या नवांश लग्न से सप्तमस्थ हों अथवा शुक्र और चन्द्रमा षडाष्टक हों तो विवाह में अवरोध जाता है । यदि शुक्र शत्रु राशिगत होकर सप्तमस्य हो और चन्द्रमा उसे देख रहा हो अर्थात् कुम्भ या मकर लग्न में चन्द्रमा स्थित हो तथा शुक्र सप्तमस्य हो तो विवाह में अनेक अवरोध जाते हैं और विलम्ब होता है । यदि सप्तमेश शुक्र हो और उसके साथ सूर्य और चन्द्रमा स्थित हों तो शुक्र अत्यन्त पापी हो जाता है । ऐसी स्थिति में विवाह नहीं होता । यदि हो जाय तो अविवाहित की तरह ही जीवनयापन करना पड़ता है । इसी प्रकार यदि शुक्र सूर्य और चन्द्रमा से युक्त होकर सप्तमस्थ हो तब भी विवाह का सुख-निषेध होता है । यह स्थिति सतर्कतापूर्वक देखनी चाहिए ।

वैवाहिक विलंभ के संदर्भ में शनि की स्तिथि

शनि सर्वाधिक मन्द गति से भ्रमण करने वाला ग्रह है । द्वादशराशियों में भ्रमण करने के निमित्त उसे 30 वर्ष अपेक्षित होते हैं । अत: विवाह के विलम्ब से होने में शनि की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका है किसी भी जन्मकुण्डली में विवाह-काल का निर्णय करते समय सर्वप्रथम विचारणीय यह है की जातिका (कन्या) या जातक का विवाह उचित आयु में होगा या विलम्ब से होगा अथवा नहीं होगा । प्राय: कन्या के विवाह में विलम्ब होने की स्थिति में ही अभिभावक चिंताग्रस्त होते हैं । जब विलम्ब अधिक होने लगता है तो स्वयं जातिका की व्यग्रता भी बढ़ जाती है । विवाह की समुचित अवस्था, विशेषतया कन्या के लिए 18-25 वर्ष तक है । परन्तु 22वें वर्ष के समाप्त होने के साथ-साय कन्या के अविवाहित रहने की स्थिति में, अभिभावकों को कुछ विलम्ब का अनुभव होने लगता है । 25वें वर्ष से अभिभावकों के संगन्ती। वज्या स्वयं भी विवाह की ओर से अनिश्चितता की स्थिति में आ जाती है । विवाह में विलम्ब होगा अथवा विवाह होगा ही नहीं, इसके ज्ञान के लिए ज्योतिष से अधिक कोई अन्य विद्वान उपयोगी सिद्ध नहीं हुआ है । सर्वप्रथम निम्नलिखित प्रश्नों पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए । विवाह में अवरोध का क्या कारण है 7 कौंन-कौंन से ग्रह बाधक हैं, किस प्रयोग के कारण अनेक गम्भीर प्रयत्न भी लगातार विफल होते जा रहे हैं । जव किसी कन्या की जन्मकुंडली में शनि, चन्द्रमा अथवा सूर्यं से युक्त या दृष्ट होकर सप्तम भाव अथवा लग्न में क्रमश: संस्थित हो तो विवाह नहीं होता । नवांश चक्र भी अवश्य देखना चाहिए ।

घर में तिजोरी वास्तु अनुसार

सभी के घरों में पैसा या धन, ज्वेलरी या अन्य कोई मूल्यवान सामान रखने के लिए कोई विशेष स्थान होता है। सामान्यत: यह सभी सामान तिजोरी या किसी अलमारी में रखे जाते हैं।
तिजोरी और अलमारी के लिए यहां एक चमत्कारी उपाय बताया जा रहा है जिससे आपके घर में बरकत बनी रहेगी और कभी भी पैसों की कमी नहीं होगी...
चूंकि तिजोरी में सभी मूल्यवान सामान ही रखा जाता है अत: इस संबंध वास्तु उपाय अपनाने से घर में हमेशा बरकत बनी रहती है और धन की कमी नहीं होती। तिजोरी में पैसा रखते हैं और इसी वजह से यहीं धन की देवी महालक्ष्मी का भी वास होता है।
इस स्थान को एकदम पवित्र एवं साफ-स्वच्छ रखना चाहिए। इसके अलावा एक सटीक उपाय बताया गया है जिसे अपनाने से परिवार के सभी सदस्यों को आर्थिक तंगी से परेशान नहीं होना पड़ेगा।
घर की तिजोरी के दरवाजे पर महालक्ष्मी की अद्भुत और चमत्कारी फोटो लगाएं। फोटो ऐसा हो जिसमें देवी लक्ष्मी बैठी हुईं हों, चित्र सुंदर और परंपरागत होना चाहिए। साथ ही दो हाथी सूंड उठाए नजर आते हों।
ऐसा फोटो लगाने पर आपके घर पर महालक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहेगी और पैसों की कमी कभी नहीं आएगी। इसके साथ ही ध्यान रखें कि खुद को किसी भी प्रकार के अधार्मिक कर्मों से दूर ही रखें। जिस कमरे में तिजोरी रखी गई है उस कमरे में हल्का क्रीम रंग पेंट करेंगे तो अच्छा रहेगा।
वास्तु के अनुसार धन के देवता कुबेर का स्थान उत्तर दिशा में माना गया है। उत्तर दिशा में कुबेर के प्रभाव से धन की सुरक्षा होती है और समृद्धि बनी रहती है। इसका मतलब यही है कि हमें अपने नकद धन को उत्तर दिशा में रखना चाहिए।
हर व्यक्ति के लिए नकद धन के लिए अलग कमरा बनवाना संभव नहीं है। कुछ लोगों के यहां ही पैसा रखने के लिए अलग कमरे की सुविधा उपलब्ध रहती है।
जिन लोगों के यहां पैसा रखने के लिए अलग कमरा नहीं है वे अपना धन उत्तर दिशा के किसी भी कमरे में रख सकते हैं। ध्यान रखें कमरा पूरी तरह सुरक्षित हो और वहां चोरी आदि का भय नहीं होना चाहिए। धन को इस स्थान पर रखने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
कुछ विद्वानों का मानना है कि नकद धन को उत्तर दिशा में रखना चाहिए और रत्न, आभूषण आदि दक्षिण दिशा में रखना चाहिए। इसके पीछे यह कारण है कि नकद धन आदि हल्के होते है, इसलिए इन्हें उत्तर दिशा में रखना वृद्धिदायक माना जाता है।
जबकि रत्न आभूषण में वजन और मूल्य अधिक होता है, इसलिए ये चीजें विशेष स्थान पर ही रखी जा सकती है। इन चीजों के लिए तिजोरी या अलमारी श्रेष्ठ रहती है और ये काफी भारी होती है। भारी सामान रखने के लिए दक्षिण दिशा श्रेष्ठ मानी जाती है। अत: रत्न और आभूषण को दक्षिण दिशा में रखा जा सकता है।

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वैवाहिक विलम्ब एवं प्रयोग :ज्योतिषीय विश्लेषण

क्षणजीवी भौतिकता की दिशा में समग्र सामर्ध्व के साथ उधत मानव समाज में सर्वाधिक आहत एवं क्षत-विक्षत हैं सम्बन्धों के समीकरण । समाज क्री समस्त इकाइयों और संस्थाएं इस दुष्कातिक आक्रमण से स्तब्ध हैं । विवाह नामक केन्दीय संस्कार भी समस्याओं के चक्रव्यूह में मोहाविष्ट है । इस संदर्भ में अनागत दर्शन की क्षमता से संपन्न ज्योतिष शास्त्र की भूमिका अत्यन्त उत्तरदायी एवं अनाविल हो उठती है । विवाह एक संश्लिष्ट और बहुआयामी संस्कार है । इसके संबंध में किसी प्रकार की फलप्राप्ति के लिए विस्तृत एव धैर्यपूर्ण अध्ययन-मनन-चिंतन की अनिवार्यता होती है | किसी जातक के जन्मांग से विवाह संबधी ज्ञानप्राप्ति के लिए द्वितीय, पंचम, सप्तम एवं द्वादश भादों का विश्लेषण करना चाहिए । द्वितीय भाव परिवार का धोतक है तथा पति-पत्नी परिवार की भूल इकाई हैं । सातवें भाव से अष्टमस्थ होने के कारण विवाह के प्रारंभ व अंत का ज्ञान देकर यह भाव अपनी स्थिति महत्वपूर्ण बनाता है । प्राय: पापाक्रांत द्वितीय भाव विवाह से वंचित रखता है । सन्तान सुख वैवाहिक जीवन का प्रसाद पक्ष है, जिसके लिए पंचम माय का समुचित विश्लेषण आवश्यक है । सप्तम भाव से तो मुख्यत: विवाह से संबंधित अनेक तथ्यों का उदूघाटन होता ही है । द्वादश भाव शैया सुख के लिए विचारणीय है । अनेक ज्योतिषी एकादश भाव का विवेचन भी आवश्यक समझते हैं । एक बहुख्यात सूत्र है कि यदि एकादश भाव में दो ग्रह संस्थित हों तो जातक के दो विवाह होते हैं। फलदीपिका में मन्वेथ्वर ने शुक्र और बृहस्पति क्रो क्रमश: पुरुष व स्त्री का विवाह कारक ग्रह बाताया है । जबकि प्रश्नमार्ग के मतानुसार स्त्रियों के विवाह का कारक ग्रह शनि है । बृहस्पति और शनि पर विचार करने के साथ-साथ शुक्र पर भी अवश्य विचार करना चाहिए अन्यथा निर्णय में अशुद्धि होगी । सप्तामाधिपति की स्थिति भी विवाह के विषय में पर्याप्त बोध कराती है । यदि सप्तामाधिपति अपनी उच्च राशि में स्थिति हो तो उच्च कूल की श्रेष्ठ कन्या के साथ विवाह संपन्न होता है, यदि निम्न राशि में स्थित हो तो सामान्य परिवार से परिणय सूत्र जुड़ता है । इसके केन्द्र में श्रेष्ठ स्थिति में स्थित होने पर वैवाहिक संस्कार अत्यन्त वैभवशाली ढंग से सम्पन्न होता है । सप्तमाधिपति यदि षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हो तो विवाह प्राय: दुःखपूर्ण होता है ।

आईटी सॉफ्टवेयर बनने के ग्रह योग

सूचनाओं का महत्व आदि काल से ही रहा है । इस बदलते परिवेश में अब सूचनाओं का महत्व सर्वोपरि हो गया है। इस प्रगतिशील संसार में यदि आपका ज्ञान अपटूडेट नहीं है, तो जाप प्रगति की दोड़ में पिछड़ सकते हैं। प्रतिष्ठित व्यवसायिक संस्थानों द्वारा अब इस ओर विशेष ध्यान देकर इनफारमेशन टेक्नोलॉजी विषय को पाठ्यक्रमों में शामिल करते हुए इस कंप्यूटर युग में नये-नये सॉफ्टवेयर बनाये जाने के हेतु पढाई कराई जा रही है । अब सभी काम कंप्यूटर मशीन के माध्यम से बिना समय गवांऐ ज्ञान व सूचनाएँ हर एक के पास उपलब्ध हो रहीं है । यहीं तक की ज्योतिष जैसे गूढ विषय को भी कंप्यूटर के माध्य से गणित व फलित किया जा रहा है । इसके लिए भी नये-नये सॉफ्टवेयर डिजाइन किये जा रहे हैं । कोई भी क्षेत्र हो, बिना आईटी के सब अधूरे नजर आते है। ई-गर्वनेश, इं-बैंकिग ईं-फाइनेंसिंग, ई-मेनेजमेंट आदि-आदि तेजी से बढते नज़र आ रहे हैं । अब सभी व्यापारिक संस्थान,कार्यालय, शिक्षण संस्थाओं में आईटी अपने पैर जमा चुका है । रोजगार के नये अवसरों, विदेशों में कार्य करने के अवसर, पद एवं प्रतिष्ठा के कारण आज प्रत्येक युवक का सपना आईटी सेक्टर में ज्ञान अर्जित कर माहिरी हासिल करना हो गया है । हमारे महषि ऋशियों द्वारा इस तरह के क्षेत्र को ज्योतिषीय विवेचन कर कहीं भी नहीं दिया गया है, परंतु आज के इस युग में शोघपूरक ज्योतिष के माध्यम से कुछ ग्रह, भागो, ग्रहसंबंधों, ग्रह दृष्टि  संबंधों, ग्रह नक्षत्रों, ग्रहगोचरों को ध्यान में रखते हुए इस सूचना प्रोद्योगिक क्षेत्र का विवेचन किया गया है । इन्हें सब को ध्यान को रखते हुए सर्वप्रथम हमने इस आईटी सेक्टर से जुडे घटकों जैसे कंप्यूटर, इलेवट्रानिक,  उपकरण एवं सेटेलाइट संबंधी कारकत्वों पर विशेष ध्यान दिया है । इस तरह
पाया गया कि शुक्र ग्रह कंप्यूटर एवं टेलीवीजन का कारक होने के कारण मंगल विधुत एव सिविल इंजीनियरिंग बुध ग्रह शिल्प,तर्क, विश्लेषणात्मक विज्ञान, सांख्यकी, कंप्यूटर का कारक होते के कारण, हैं शनि तकनीकी कार्यों एव अभ्यास, यंत्रों का ज्ञान तथा उनका निर्माण इंजीनीरिंग का कारक होने के कारण आईटी सेक्टर के लिए महत्वपूर्ण कारक ग्रह माने जा रहे हैं । सूर्य ग्रह स्वतंत्र रुप से तो तकनीकी ज्ञान का कारक नहीं है, परन्तु मंगल के साथ युति या दृष्टि संबंध करने से इंजीनोयर बनाने में सहयोग कारक होता है । अत: उक्त तत्यों को ध्यानभे रखते हुए कुछ इन्हें से संबंधित ग्रह योग, ग्रह संबंध,ग्रह दृष्टि संबंध, नक्षत्रों, दशाएँ एवं ग्रह गोचरों क्रो समाहित कर कुछ योग निम्नानुसार दिये जा रहे हैं । इन्हें देखकर कोई भी जातक आईटी सेक्टर में अपना कार्य-व्यवसाय बाबत् भविष्य ज्ञान कर सकता है

आईआईटी या अन्य बड़े संस्थानों से इंजीनियरिंग करने के योग

आजकल हर माँ-बाप यहीं चाहते हैं कि उसके बेटा-बेटी उच्च तकनीकी या व्यवसायिक शिक्षा अच्छे से अच्छे संस्थान से केरे । यह इसलिए भी इच्छा बलवती होती है, चुंकि तकनीकी ज्ञान में रोजगार के अवसर ज्यादा से ज्यादा देश व विदेशों से मिलते दिख रहे हैं । तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में तंरह-तरह के नये विषय जैसे कंप्यूटर, इलेवट्रानिक्स, केमिकल, पेट्रोकेमिकल, आईटी, माइनिंग, मेकेनिकल, सिविल, कम्युनिकेशन आदि-आदि में इंजीनियरिग डिग्री दी जा रही है । संचार एव इलेवट्रानिक्स के क्षेत्र में विकास लगातार ज्यादा से ज्यादा होने के कारण रोजगार के अवसर भी खुलते जा रहे हैं । तकनीकी संस्थानों में भी तरह-तरह के संस्थान है, जैसे आईआईटी हैं एनआईटी है रीजनल इंजीनियरिग कालेज, प्राइवेट इजीनियरिग कालेज आदि देश में तकनीकी शिक्षा दे रहे हैं । इनमें भी हर एक आईआईटी जैसी उच्च तकनीकी संस्थान में पढ़ना चाहता
है, जिसमें अति कठिन परीक्षा के माध्यम से प्रवेश हो पाता है । इसके अतिरिक्त
अन्य परीक्षाएँ जैसे एआईईईई, पीईटी, जेईई आदि भी अन्य संस्थाओं के प्रवेश हेतु देनी पड़ती है । आखिर कुंडली में ऐसे कौन से ग्रह ,ग्रहृयोग, विशिष्ठ ग्रह संबंध योग होते है, जिनके कारण जातक अलग-अलग विषयों में तकनीकी शिक्षा की पढाई करता है ।
मंगल औजार का काराक है, शनि इनका प्रयोग करना और शुक्र औजारों में प्रयोग करने का रिफाइन्मेंट देता है । यदि इनका संबंध दशम भाव एवं दशमेश से हो, तो जातक इंजीनियर बन सकता है ।
शनि बलवान होकर लग्न, दशम या दशमेश को प्रभावित को, तो भी जातक का इंजिनियर बनने का योग बनता है।
यदि दशम भाव या दशमेश का संबंध सप्तम भाव या सप्तमेश से हो व मंगल बली होकर इनमें से किसी पर भी दृष्टि करे, तो जातक यन्तु से संबधित
इंजीनियर होता है ।
मंगल-राहू का योग केन्द्र या त्रिकोंण में यदि हो, तो जातक के इंजीनियर बनने का योग बनता है ।
बुध,सूर्य,मंगल का आपसी संबंध होने पर भी इंजीनियर बनता है ।
मंगल एव शुक्र की युति या दृष्टि यदि भाव 5 या 10 में हो और शनि की दृष्टि पड़ती हो, तो भी जातक को इंजीनियर बनाने के योग बनते हैं ।
भाव 10 या 11 में यदि सूर्य और मंगल की युति हो और शनि की इन पर दृष्टि हो या मंगल की शनि पर दृष्टि हो, तो भी जातक की इंजीनियर बनने की संभावना रहती है।
सूर्यं-चंद्र की युति पर शनि और मंगल की दृष्टि हो रही हो, तब भी माइनिंग इंजीनियर बनने के योग बनते हैं ।
यदि शनि की मंगल पर दृष्टि और मंगल की शनि पर दृष्टि हो रही हो, तो जातक सिविल इंजीनियर बनता है ।
मेष लग्न में यदि लग्नेश मंगल व शनि दोनों उच्च के होकर केन्द्र भाव 10 व 7 में हों तथा पंचमेश सूर्य नवंम भाव में केतु, बुध व शुक्र के साथ युति करके बैठा हो तथा राहू भाव 3 में उच्च का होकर शनि पर दृष्टि कर रहा हो, तो जातक उच्च संस्थान आईआईटी से इंजीनियरिग करता है ।

वास्तु से बढाएं दाम्पत्य सुख

भास्तीय समाज में सोलह संस्कार मुख्य माने गए है । जिनमे विवाह सर्वोपरि संस्कार है ।नव बधू के स्वागत हेतु प्रत्येक परिवारजन आतुर रहता है । नव-वधू भी यथा संभव उनकी आकांक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास करती है । फिर क्या कारण है कि सास-बहू के सबंध आत्मिक नहीं रह पाते हैं? क्यों बहू-ननद को अपनी अंतरंग सखी न मानकर उसे अवाछ्नीय समझने लगती है? क्यों पति गृह को सर्वस्व: मानने घाली पत्नी मायके चली जाती है? तलाक जो "मास्तीय समाज के लिए अपरिचित शब्द था क्यों आज इतना प्रचलित शब्द बनता जा रहा है ।
वास्तु के सहयोग से इन समस्याओं को सुलझाया जा सकता है | नव बधू के आवास स्थान, शयनकक्ष, सिरहाने की रिशति जैसे गौण लगने बाले तथ्यों को वास्तु की मदद से परिवर्तित करके सुखी भी सुदृढ़ दाम्पत्य जीवन की नींव रखी
जा सकती है |
नव दंपत्ति को कमी भी वायव्य दिशा वाला कमरा रहने के लिए नहीं देना चाहिए| वायव्य दिशा में रहने से पत्नी का ससुराल में मन नहीं लगेगा और वह मायके रहना ही ज्यादा पसंद करेगी | पति भी वास्तु रने प्रभावित होकर ज्यादातर समय इस कमरे के बाहर बिताएगा ।
नव वधु तहखाने में सोए तो वह तनावग्रस्त रहेगी| पति-पत्नी के सबंध परिवार जनो से खराब हो जाएगे । अधिकतर ऐसे मामलों में पत्नी के सबंध सास व् ननद से व पति कं सम्बन्ध पिता व् भाइयों रनै मधुर नही रहेगा और उनमे आत्मिक सबंध नहीं रहेंगे |
बीम अथवा गाटर के नीचे भी उन्हें नहीं सोना चाहिए । बीम के नीचे सोने के अनावश्यक तनाव बढ़ता है और पत्नी-पति कं बीच कलह और तलाक जैसी स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है ।
वास्तु के आग्नेय कोने मे शयनकक्ष होने से पति-पत्नी में बिना वजह कलह होते है फालतू खर्च बढते हैं और किसी न किसी मुसीबत का सामना करना पड़ता है। जिससे उनका दाम्पत्य जीवन दुखमय हो जाता है । पूर्व दिशा में भी नव-दम्पत्ति को नहीं चुकाना चाहिए ।
वायव्य व उतर दिशा के बीच वाले कमरे में नव दम्पत्ति को रहना चाहिए । प्रेम में बढोतरी होती है और दाम्पत्य जीवन सुखमय बना रहता है । नव दम्पत्ति अपना सिरहाना अगर उचित दिशा में नहीं रखेंगे तो उनके प्रेम से बाधा लेगी और संतान कष्ट रहेगा। दक्षिण की और पैर करके सोने से स्वस्थ गहरी नीद नहीं आती है दुस्वप्न आते हैं मन में बुरे विचार आते है । कभी-कभी सीने पर बडे बोझ का अनुभव होता है मानसिक संतुलन बिगड़ता है ओर आयु कम होती है । अत: सोते समय हमेशा सिर दक्षिण व पैर उतर की ओर रखने चाहिए ।
कभी भी पति-पत्नी को हाथों से मुह ढंककर नहीं सोना चाहिए। आत्मविश्वास में कमी होती है। हमेशा बाएं करवट लेकर सोना चाहिए।
नव-दम्पत्ति को चाहिए कि वह अपनी  पलंग चंदन, शीशम, सागवान, देवदार और शाल की बनाएं। तेन्दूक या तेन्दु एवं आम की पलंग पर कमी भी न सोएं, क्योंकि ये रोग देने वाली व प्राण हरने वाली होती है ।
नव वधू को चाहिए कि वह वास्तु के ईशान दिशा को हमेशा साफ सुथरा रखें । ईशान दिशा में कूड़ा-करकट होने पर पति दुश्चरित्र बन जाता है । झाडू को भी ईशान दिशा में नहीं रखना चाहिए ।
शयनकक्ष में अधिक मात्रा ने ताजे फुलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा परदों पर भी फूलों की जगह छोटे फूलों कं चित्र बेहतर माने जाते है ।शयनकक्ष में पूजाघर नहीं बनाना चाहिए| यदि घर में केवल एक कमरा हो तो पूजाघर कं सामने पर्दा अवश्य लगाना चाहिए ।मुख्य द्वार के ठीक सामने वृक्ष होने पर संतान नष्ट व खम्बा होने से स्त्री वियोग संभव है |
शयनकक्ष में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए जि फर्नीचर, अलमारी या सजावटी वस्तुओ के कोने सोते समय आपकी और निशाना तो नहीं बना रहे । नव वधू को हमेशा सोते समय ताम्बे के पात्र में पानी डालकर पलंग के ईशाण कोण में रखकर सोना चाहिए| सुबह उठने पर मन प्रसन्न रहेगा|
नव वधू को पूर्वी दिशा में मुंह करके भोजन बनाना चाहिए । भोजन करते समय पति और पारिवारिक सदस्यों का मुंह भी पूर्व की और होना चाहिए । इसके अतिरिक्त घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाएं । नव वधू लाल वस्त्रों का प्रयोग अधिकाधिक करें | पूजा-अर्चना पूर्व, उत्तर अथवा ईशाण दिशा में मुंह करके करें ।
सोते समय कमरे में हल्का प्रकाश रखें|




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Wednesday 2 September 2015

हस्त रेखा और भविष्य

मानव जाति में कदाचित ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो अपने अतीत का भलीभांति अध्ययन करने के बाद यह अनुभव न करता हो कि उसके विकसित जीवन के कितने वर्ष या कितना भाग उसके अपने और माता-पिता के अनभिज्ञता के कारण बेकार ही बीत चुके हैं। अपने बारे में पूरा-पूराज्ञान प्राप्त करने के बाद ही हम स्वयं को नियन्त्रित करने में सक्षम और समर्थ हो सकेंगे। साथ ही अपनी उन्नति करके मानव जाति की उन्नति कर सकेंगे। हस्त विज्ञान का स्वयं को पहचानने से सीधा सम्बन्ध है। इस विज्ञान की उत्पत्ति पर विचार करने के लिए हमें विश्व इतिहास के प्रारम्भिक काल में लौटना होगा। आदि काल के मनीषियों का स्मरण करना होगा जिन्होंने विश्व के महान साम्राज्यों सभ्यताओं, जातियों और राजवंशों को नष्ट हो जाने के बाद भी अपने इस भण्डार को सुरक्षित रखा। विश्व इतिहास के प्रारम्भिक काल का अध्ययन करने पर हमें ज्ञात होगा कि हस्त विज्ञान से सम्बन्धित सामाग्री इन्हीं मनिषियों की धरोहर थी। सभ्यता के उस आदिकाल केा मानव इतिहास में आर्य सभ्यता के नाम से पुकारा जाता है। हस्त रेखा विज्ञान के मूल विन्दुओं को जांचते-परखते समय हमें प्रतीत होने लगता है कि हाथों की रेखाओं का यह विज्ञान विश्व के पुरातन विज्ञान में से एक है। इतिहास साक्षी है कि भारत के उत्तर-पश्चिमी प्रान्तों की जोशी नामक जाति न जाने किस काल से हस्त रेखा विज्ञान को व्यवहार में लाती रही है। स्थूल या सूक्ष्म गतिविधि को संचालित करने वाले स्नायु जिनसे ठीक वैसी ही सलवटें या रेखाएँ बनती हैं। उनका निर्माण प्रमुखरूप से गतिशील देशों
से होता है। लेकिन सम्भवतः उनमें कुछ अन्य ऐसे तन्तु भी होते हैं जो अर्जित या अन्र्तनिहित प्रवृत्तियों के मिश्रित प्रभावों का कम्पनों द्वारा सम्प्रेषण करते हुए और उनका जीवन रेखा के प्रभावित होने वाले भाग से मुख्य रेखा या उसकी शाखा के जोड़ पर क्राश चिह्न बनाते हुए दोनों का सम्बन्ध स्थापित करते हैं। कुछ कोशिकाओं की ऐसी वृत्ति है जिनके कारण
उनमें आगामी घटनाओं का प्रभाव उत्पन्न हो जाता है। शायद कम्पन्न उत्पन्न हो जाता है। कोशिकाओं में उत्पन्न कम्पन्न अपने साथ जुड़े तर्क प्रक्रियाओं में लगे कोणों में कोई गतिविधि तो उत्पन्न नहीं करवा सकता लेकिन उनमें चेतनात्मक कम्पन्न अवश्य जगा देता है और इन कम्पनों का सम्पे्रषण हाथ पर बने विभिन्न आकार-प्रकार के चिह्नों के साथ में अंकित हो जाता है। एक तर्कयुक्त जीवन के रुप में मनुष्य का हाथ विशेष रुप से विकाश की उच्च स्थिति का द्योतक है। उसकी गति से क्रोध प्रेम आदि प्रवृत्तियों का
ज्ञान होता है। यह गति स्थूल अथवा सूक्ष्म होती है, इसलिए उससे हाथं पर बड़ी या छोटी सलवटें या रेखाएं बनती है। चिकित्सा विज्ञान से कान का रक्त अर्बुद काफी समय पहले जाना जा चुका है, यह कान के ऊपरी भाग में विभिन्न आकार में बनता है, यह फिर उपरी भाग के फूल जाने से उसी की शक्ल में बन जाता है। जिसमें रक्त अर्बुद होता है, यह अर्बुद अक्सर पागलों के कान में ही बनता है सामान्य रुप से उन लोगों के कान में जिनका पागलपन पैतृक होता है। इस बात का विशेष अध्ययन पेरिस में किया गया। विज्ञान अकादमी के तमाम
परीक्षणों के जो परिणाम निकले उनसे सिद्ध हो गया कि केवल कान की परख करके वर्षो पहले भविष्यवाणी की जा सकती है। इसलिए यह तर्क सिद्ध हो चुका है कि जब केवल कान की जांच-परख करके सही-सही भविष्यवाणी की जा सकती है, तो क्या हाथों का निरीक्षण करके अन्य भविष्यवाणी करना असम्भव है? हाथ के विषय में स्नायु मण्डल और उनके
गति संचालन को देखते हुए यह माना जा चुका है कि हाथ ही पूरे मानव शरीर का सर्वाधिक विचित्र अंग है, और हाथ का मस्तिष्क के साथ सबसे ज्यादा गहरा सम्बन्ध है।
किन्हीं दो हाथों पर अंकित रेखाएं और चिह्न कभी भी एक जैसे नहीं पाये जाते। इसके अलावा जुड़वा बच्चों की हस्तरेखा में भी परस्पर अन्तर पाया जाता है। यह भी पाया गया है कि हाथ की रेखाएँ किसी परिवार की किसी विशिष्ट प्रवृत्ति केा स्पष्ट कर देती है और आने वाली पीढि़यों में यह प्रवृत्ति निरन्तर बनी रहती है, लेकिन यह भी देखा गया है कि कुछ बच्चों
के हाथ पर अंकित रेखाओं की स्थिति में अपने माता-पिता से कोई समानता नहीं होती। अगर गहराई से अध्ययन किया जाय, तो इस सिद्धान्त के अनुसार वे बच्चे अपने माता-पिता से पूरी तरह भिन्न होते हैं। एक प्रचलित धारणा है कि हाथ की रेखाओं पर व्यक्ति के कार्यों का गहरा प्रभाव पड़ता है। वे उनके अनुसार ही चलती रहती हैं। लेकिन सच्चाई
इसके विल्कुल विपरीत है, शिशु के जन्म के समय ही उसके हाथ की चमड़ी मोटी और कुछ सख्त हो जाती है, अगर व्यक्ति के हंथेली की चमड़ी को पुल्टिस या किसी अन्य साधनों से मुलायम बना दिया जाये तो उसपर अंकित चिह्न किसी भी समय देखे जा सकते हैं। इनमें अधिकांश चिह्न उसकी हथेली पर जीवन के अंतिम क्षण तक बने रहते हैं। इस संदर्भ में हाथ में विद्यमान कोषाणुओं पर ध्यान देना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मैरनर ने अपनी पुस्तक हाथ की रचना और विधान में लिखा है कि हाथ के इन कोषाणुओं का अर्थ बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह अद्भुत आणविक पदार्थ अंगुलियों की पोरों में और हाथ की रेखाओं में पाये जाते हैं, तथा कलाई तक पहुंचते पहुँचते-2 लुप्त हो जाते हैं। यह शरीर के जीवित रहने
की अवधि में कुछ विशेष कम्पन्न भी उत्पन्न करते हैं तथा जैसे जीवन समाप्त होता है यह रुक जाते हैं। अब हम हाथों की चमड़ी, स्नायु और स्पर्श करने की अनुभूति पर ध्यान देते
हैं। सर चाल्र्सवेल ने चमड़ी के सम्बन्ध में लिखा है- चमड़ी त्वरित स्पर्श अनुभूति का महत्त्वपूर्ण अंश है। यही वह माध्यम है जिसके द्वारा बाहरी प्रभाव हमारे स्नायुओं तक पहुंचते हैं। उंगलियों के सिरे इस अनुभूति की व्यवस्थाओं का श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं। नाखून उंगलियों को सहारा देते हैं और लचीले गद्दे के प्रभाव को बनाये रखने के लिए ही उसके सिरे बने हैं।
उनका आकार चैड़ा और ढालनुमा है। यह बाहरी उपकरणों का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। इसकी लचक और भराव इसे प्रशंसनीय ढंग से स्पर्श के अनुकूल ढालते हैं। यह एक अद्भुद् सत्य है कि हम जीभ से नाड़ी नहीं देख सकते, लेकिन उंगलियों से देख सकते हैं। गहराई से निरीक्षण करने पर हमें मालूम होता है, उंगलियों के सिरों में उन्हें स्पर्श के अनुकूल ढालने
के लिए उनका विशेष प्रावधान है। जहां भी अनुभूति की आवश्यकता अधिक स्पष्ट होती है, वहीं हमें त्वचा की छोटी-छोटी घुमावदार मेड़ें-सी महसूस होती हैं। इन मेड़ों की इस अनुकूलता में आन्तरिक सतह पर दबी हुई प्रणालिकाएं होती हैं जो पौपिला कहलाने वाली त्वचा की कोमल और मांसल प्रक्रियाओं को टिकाव और स्थापन प्रदान करती हैं। जिनमें स्नायुओं
के अन्तिम सिरों का आवास होता है। इस प्रकार स्नायु पर्याप्त सुरक्षित होते हैं और साथ ही साथ इतने स्पष्ट भी दिखाई देते हैं कि लचीली त्वचा द्वारा उन्हें सम्पेषित प्रभावों को ग्रहण कर सकें और इस प्रकार स्पर्श अनुभूति को जन्म दे सकें।

शनि व्रत की विधि विधान

शनिवार का व्रत शनिदेव की पूजा अथवा आराधना नहीं, परंतु इस दिशा में पहला कदम अवश्य है । शनिदेव के आराधकों और उपासकों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए । वैसे शनि ग्रह दशा से पीडित व्यक्ति यह व्रत रखते ही हैं । इस बारे में शास्त्रों का कथन है कि शनि ग्रह की शांति तथा सुखों की इच्छा रखने वाले स्त्री-पुरुषों को शनिवार का वत करना चाहिए ।
विधिपूर्वक शनिवार का व्रत करने से शनिजनित संपूर्ण दोष तथा रोणा-शोक नष्ट हो जाते हैं । धन का लाभ होता है । स्वास्थ्य, सूख तथा बुद्धि की बृद्धि होती है । विश्व के समस्त उधोग, व्यवसाय, कल-कारखाने, धातु उद्योग, लौह वस्तुएं, समस्त तेल, काले रंग की सभी वस्तुएं काले जीव, जानवर, अकाल, पुलिस भय, कारागार, रोग भय, गुर्दे का रोग, जुआ, सट्टा, लाटरी, चोर भय तथा क्रूर कार्यों के स्वामी शनिदेव हैं । अत: जन्मराशि के आधार पर शनि की साढेसाती से पीड़ित होने पर शनिवार का व्रत कष्ठों में काफी कमी कर देता है ।
शनिदेव आडंबर से दूर रहने वाले, मस्त और औघड़देव हैं । यहीं कारण है कि वे धर्मं, जाति, उम तथा ऊंच-नीच आदि किसी भी बंधन को नहीं मानते ।प्रत्येक स्त्री-पुरुष तथा बालक-वृद्ध इस व्रत को कर सकता है । इसे किसी भी शनिवार से प्रारंभ किया जा सकता है । वैसे श्रावण मास के पहले अथवा तीसरे शनिवार से यह व्रत प्रारंभ करना विशेष लाभप्रद रहता है ।
व्रतधारकों को चाहिए कि वे प्रात:काल नदी या तालाब में अथवा कुएं पर स्नान करके ऋषि-पितृ तर्पणा करने के बाद एक कलश में जल भरकर ले आएं ।
शमी अथवा पीपल के पेड़ के नीचे जड़ के पास उस कलश को रखकर एक वेदी बनाएं और वेदी पर काले रंग से रंगे हुए चावलों द्वारा चौबीस दल का कमल बनाएं । फिर लोहे अथवा टिन की चादर काटकर बनाई गई शनिदेव की प्रतिमा को स्नान कराकर चावलों से बनाए हुए चौबीस दल के कमल पर स्थापित करे । काले रंग के गंध, पुष्प, अष्टांग, धूप, फूल तथा उत्तम प्रकार के नैवेद्य आदि से पूजन की । फिर शनिदेव के इन नामों का श्रद्धापूर्वक उच्चारण करें-कोणास्थ,पिंगलो बभ्रु,कृष्ण रौद्रोतको, यम, सौरि, मंद, शनैश्चर एवं पिप्पला ।शमी अथवा पीपल के वृक्ष में सूत के सात धागे लपेटकर सात परिक्रमा करके वृक्ष का पूजन करें। शनि पूजन सूर्योदय से पूर्व तारों की छांव में करना चाहिए । शनिवार व्रत-कथा को भक्ति और प्रेमपूर्वक सुने । कथा कहने वाले को दक्षिणा दें । तिल, जौ, उड़द, गुड़, लोहा, सरसों का तेल तथा नीले वस्त्र का दान कों । आरती केरे और प्रार्थना करके प्रसाद बांटें ।
पहले शनिवार को उड़द का भात और दही, दूसरे शनिवार को खीर, तीसरे शनिवार को खजला तथा चौथे शनिवार को घी एवं पूरियों का भोग लगाएं । इस प्रकार तेंतीस शनिवार तक इस व्रत को करें। अंतिम शनिवार को व्रत का उद्यापन की । तेंतीस ब्राह्मणों को भोजन एवं दक्षिणा से संतुष्ट करके व्रत का विसर्जन कों । इस प्रकार व्रत करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं । सर्वप्रकार के कष्ट एबं अरिष्ट आहि व्याधियों का नाश होता है । अनेक प्रकार के सुख, साधन, धन, पुत्र एवं पौत्रादि की प्राप्ति तथा मनोकामना की पूर्ति होती है ।
राहु और केतु के कष्ट निवारण हेतु भी शनिवार के व्रत का विधान है । ऐसे में शनि की लोहे की तथा राहु व केतु की सीसे की मूर्ति बनवाएँ । कृष्या वर्ण वस्त्र, दो भुजदंड और अक्षमता धारी, काले रंग के आठ घोड़े वाले शीशे के रथ में बैठे शनिदेव का ध्यान करें। कराल बदन, खडग, चर्म और शूल से युक्त नीले सिंहासन पर विराजमान वरप्रद राहु का ध्यान करें । धूम्रवर्ण, भुजदंडों, गदादि आयुध एवं गुध्रासन पर विराजमान, विकटासन और वरप्रद केतु का ध्यान करें। इन्हीं स्वरूपों में मूर्तियों का निर्माण कराएं अथवा गोलाकार मूर्ति बनाएं । काने रंग के चावलों से चौबीस दल का कमल निर्माण कों । कमल के मध्य में शनि, दक्षिण भाग में राहु और वाम भाग में केतु को स्थापना कों । रक्त चंदन में केशर मिलाकर गंध, चावल में काजल मिलाकर काले चावल; काकमाची, कागलहर के काले पुष्प, कस्तूरी आदि से "कृष्ण धूप' और तिल आदि के संयोग से कृष्णा नैवेद्य (भोग) अर्पण करें। फिर शनैश्चर नमस्तुभ्यं नमस्तेतवथ राहुवे केतवेऽथ नमस्तुभ्यं सर्वशांति प्रदो भव मंत्र से उनकी प्रार्थना करें ।
सात शनिवार तक यह व्रत करें । शनि हेतु शनि मंत्र से शनि की समिधा में, राहु हेतु राहु मंत्र से पूर्वा की समिधा में तथा केतु हेतु केतु मंत्र से कुशा की समिधा में कृष्णा जी और काले तिल मिश्रित हवन सामग्री से प्रत्येक के लिए 108 आहुतियां दे । इसके पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराएं । इस प्रकार शनिवार के व्रत के प्रभाव से शनि, राहु एवं केतु जनित सभी प्रकार के अरिष्ट, कष्ट तथा व्याधियों का सर्वथा नाश को जाता है ।

मंगल सप्तम, अष्टम या नवम भाव में हो तो...

मंगल सप्तम भाव में स्थित हो तो...
- अपने चांदी की कोई वस्तु अवश्य रखें।
- बहन एवं बुआ को कपड़े उपहार में दें।
- शनि का उपाय करें।
- हनुमानजी का विशेष पूजन अर्चन करें।
- अधार्मिक कार्यों से दूर रहें।

मंगल अष्टम भाव में स्थित हो तो...
- तीन धातुओं की अंगूठी पहनें।
- एक तरफ से सिकी हुई रोटियां कुत्ते को खिलाएं।
- चांदी की चेन पहनें।
- बहते पानी में बताशे और रेवडिय़ां बहाएं।

मंगल नवम भाव में स्थित हो तो...
- मंगलवार के दिन हनुमानजी को सिंदूर और तेल चढ़ाएं।
- मूंगा धारण करें।
- लाल रंग का कोई वस्त्र सदैव अपने पास रखें।
- बड़े भाई का अनादर ना करें।
- चावल, दूध, गुड़ और धन का दान करें।

मंगल दशम, एकादश या द्वादश भाव में हो तो...

मंगल दशम भाव में स्थित हो तो...
- हनुमान जी की विशेष पूजा-अर्चना करें।
- भोजन में कुछ ना कुछ मीठा अवश्य खाएं।
- सोना कभी ना बेचे।
- शनि की पूजा कराएं।
- मंगलवार को मंगल की पूजा कराएं।

मंगल एकादश भाव में स्थित हो तो...
- सफेद-काला रंग का कुत्ता पालें।
- हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाएं।
- किसी मिट्टी के बर्तन में सिंदूर भरे और घर में रखें।
- घर में शहर अवश्य रखें।
- मंगलवार को मंगल की पूजा करें।

मंगल द्वादश भाव में स्थित हो तो...
- मित्रों को मिठा खिलाएं।
- हनुमानजी की पूजा करें।
- घर में कभी भी कोई हथियार ना रखें।
- सुबह शहद का सेवन करें।
- 12 दिनों तक निरंतर नदी में गुड़ बहाएं।

मंगल चतुर्थ, पंचम या षष्ठम भाव में हो तो..

मंगल चतुर्थ भाव में स्थित हो तो...
- सोना, चांदी, तांबा तीनों मिलाकर अंगूठी पहनें।
- विधवा स्त्रियों को धन का दान करें।
- बहते पानी में रेवडिय़ां बहाएं।
- चावल को दूध में धोएं और 7 मंगलवार तक नहीं में बहाएं।
- अपनी माता की सेवा करें। साधु-संतों तथा बंदरों को खाना खिलाएं।
मंगल पंचम भाव में स्थित हो तो...
- रात को सोते समय सिर के पास पानी का बर्तन भरकर रखें और सुबह पेड़-पौधों में वह पानी डाल दें।
- अधार्मिक कार्यों से बचें।
- दूध तथा दूध से बनें खाद्य पदार्थ दान करें।
मंगल षष्ठम भाव में स्थित हो तो...
- बच्चों को सोना नहीं पहनाएं।
- शनिदेव की विशेष पूजा अर्चना करें।
- हनुमानजी को सिंदूर-तेल चढ़ाएं।
- कन्याओं को दूध, चांदी का दान दें।
- अमावस्या को धर्म स्थान में खीर व मीठा भोजन दान करें।

आद्रा नक्षत्र और ज्ञानि

यदि शनि आद्रा नक्षत्र के पहले चरण में हो तो जातक दीन-हीन तथा कर्ज में डूबा रहता है । वह स्वभाव से कठोर, परिश्रमी, चोर और तस्कर होता है । ऐसा जातक धन के लिए कुछ भी कर सकता है।
दूसरे चरण में शनि की उपस्थिति से जातक दूसरों की संपत्ति हड़पने वाला होता है । पिता-पक्ष से उसे कोई लाभ नहीं मिलता । वह धार्मिकता का दोंग करता है और दूसरों को मूर्ख बनाकर धन इकटठा करता है।
यदि तीसरे चरण में शनि हो तो जातक पत्नी पर आश्रित रहता है । परेशानी और कठिनाइयों से घिरा रहता है । पत्नी अथवा परिवार से उसके संबंध कटु होते हैं । वह किसी असामाजिक संगठन का मुखिया, चीर या बदमाश होता है ।
यदि शनि चौथे चरण में हो तो जातक अपने श्वसुर की दौलत पर गुल्छर्रे उड़ने वाला होता है । वह व्यसनी, मदिरासेवी, कोर्ट-कचहरी में दंडित होने वाला और धन तथा सुख से हीन होता है । ऐसे जातक को पत्नी कुलटा और परपुरुष से शारीरिक संबंध स्थापित करने वाली होती है।

मृगशिरा नक्षत्र और शनि

यदि शनि मृगशिरा नक्षत्र के पहले चरण में हो तो जातक लंबा, सिकुड़े कंधों वाला तथा घुंगराले बालों से युक्त काले रंग का होता है । उसकी पत्नी कुलटा होती है| उसका स्वास्थ्य अंतिम समय तक खराब ही रहता है । ऐसे जातक को धन का आभाव सदैव सालता रहता है ।
यदि शनि दुसरे चरण में हो तो जातक बहुत खर्चीला एवं बुरी संगत में रहकर धन को बर्बाद करने वाता होता है । वह अपना काम खुद बिगाड़ता है, अत: सफलता उससे कोसों दूर रहती है। उसका अंतिम समय धनाभाव में बीतता है ।
यदि तीसरे चरण में शनि हो तो जातक सरकारी सुरक्षाकर्मी होता है । उसकी केवल एक संतान होती है । वह जीवन भर उतार-चढाव करता रहता है ।
यदि चौथे चरण में शनि हो तो जातक को विकलांगता का शिकार होना पड़ता है । यह गुप्त रूप से पाप कर्म करने वाला तथा श्वास रोगी होता है ।

मंगल प्रथम, द्वितीय या तृतीय भाव में हो तो...

मंगल प्रथम भाव में स्थित हो तो...
- हनुमानजी एवं मंगल की आराधना करें।
- सूर्य एवं चंद्रमा की वस्तुओं का दान करें।
- गुरु एवं शुक्र का उपाय करें।
- कभी भी झूठ ना बोलें।
- कोई भी चीज मुफ्त में ना ले।
- भाई और साले की सेवा करें, उनका ध्यान रखें।
मंगल द्वितीय भाव में स्थित हो तो...
- हनुमानजी एवं मंगल की आराधना करें।
- रेवडिय़ां और बताशे नदी में प्रवाहित करें।
- बिजली के व्यवसाय से दूर रहे, हानि हो सकती है।
- रोज नाश्ते में कुछ मीठा अवश्य खाएं।
- भाई और मित्रों की सहायता करें।
मंगल तृतीय भाव में स्थित हो तो...
- हनुमानजी एवं मंगल की आराधना करें।
- घर में असली हाथी दांत रखें।
- चांदी की अंगूठी बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली में धारण करें।
- सफेद रंग की कोई वस्तु हमेशा साथ रखें।

असहनीय पीड़ाओं से रक्षा करे शनि व्रत

हिन्दू धर्म में शनि ग्रह को न्यायधीश माना जाता है। वह किसी भी व्यक्ति को बुरे कर्मों के लिए दण्ड देने वाले दण्डाधिकारी के रुप में रुप में भी जाने जाते हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शनि कुण्डली में अन्य ग्रहों के साथ अच्छे योग होने पर शुभ फल देता है। वहीं अन्य ग्रहों के साथ बुरे योग होने पर बुरे फल देता है। प्रत्येक राशि में शनि ढाई वर्ष तक रहता है। किंतु शनि का प्रभाव किसी राशि की अगली राशि में प्रवेश से लेकर उसी राशि की पिछली राशि से निकलने तक दूसरों ग्रहों के साथ अच्छे या बुरे योग के आधार पर रहता है। इसलिए शनिवार के दिन शनि की प्रसन्नता के लिए भी इस व्रत का विधान है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शनि ग्रह के शुभ प्रभाव जहां व्यक्ति को सुखों से परिपूर्ण कर देता है वहीं अशुभ प्रभाव से व्यक्ति को असहनीय कष्ट और संकटों से गुजरना होता है।
भविष्यपुराण में लिखी शनिवार के व्रत विधान अनुसार शनिवार के दिन शनिदेव की लोहे से बनी प्रतिमा की पूजा का विधान है। जब शनिवार का संयोग पुष्य और अनुराधा नक्षत्र से बने तो व्रत विशेष फलदायी होता है।
इस दिन प्रात: स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ भगवान शनिदेव की पूजा यथोपचार करना चाहिए।
शनिदेव के पूजन में काले गंध, काले अक्षत, यथा संभव कागलहर या काकमाची के काले फूल, काला तिल, काला, कपड़ा, काली उड़द और तेल अर्पित करना चाहिए।
सायंकाल शनिदेव के सामने घर या मंदिर में जाकर तेल का दीपक प्रज्जवलित करना चाहिए। भोग में तेल से बनी और काली सामग्री चढ़ाना चाहिए। शनिदेव से अपने बुरे कर्मों और अपराधों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए।
शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव की शांति के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराकर काली वस्तुओं या लोहे से बनी वस्तुओं के दान का भी विधान है। ब्रह्मभोज के बाद ही व्रती को रात्रि को एक बार बिना नमक भोजन करना चाहिए। ऐसे सात शनिवार को अखंडित व्रत करना चाहिए। इससे शनि ग्रह के कुण्डली में बने बुरे योग और दोष की शांति होती है और ग्रह बाधा नष्ट होती है। साथ ही साढ़े सात साल के दौरान शनि ग्रह के बुरे प्रभाव से आने वाले अनिष्ट योग और पीड़ाओं को टाला जा सकता है।

पराक्रम से ही खुश होते हैं शनिदेव

शनि के रोहिणी-शकट भेदन करने मात्र से पृथ्वी पर बारह वर्षों तक घोर त्राही-त्राही मच जाए और सभी जीवों का जीवित रहना भी मुश्किल हो जाए। शनि ग्रह का जब रोहिणी भेदन कर बढ़ जाता है, तब यह योग आता है। यह योग महाराजा दशरथ के समय में आया था। इस योग के प्रभाव से राज्य की प्रजा बेहाल हो गई। राजा ने बहुत तरह से राज्य में आए संकट से निपटने के प्रयास किए परंतु सभी निष्फल हुए। जब राज्य के ज्योतिषियों और विद्वानों ने दशरथ को बताया कि यह योग शनिदेव की वजह से आया है। यदि शनि ने अपना प्रकोप समाप्त नहीं किया तो पूरी पृथ्वी से जीवन समाप्त हो जाएगा। तब राजा दशरथ पृथ्वी और अपनी प्रजा के संकट को दूर करने के लिए शनि देव के लोक पहुंच गए और शनिदेव से प्रकोप हटाने का निवेदन किया। जब शनिदेव नहीं माने तो राजा दशरथ ने युद्ध प्रारंभ कर दिया। परंतु दशरथ शनिदेव पर किसी काबू ना पा सके। अंत में दशरथ ने संहारास्त्र का संधान किया। तब शनिदेव उनकी वीरता से प्रसन्न हो गए और उन्हें वर मांगने के लिए कहा। राजा ने शकट भेदन योग से पृथ्वी को मुक्त करने का वर मांग लिया और शनि ने तथास्तु कहकर अंतध्र्यान हो गए।

शनिदेव के प्रकोप से बचने के उपाय
- श्री हनुमान का पूजन करें।
- शनिवार को शनि की विशेष आराधना करें।
- महामृत्युंजय-जप करना चाहिए।
- नीलम धारण करने से भी शनि का प्रकोप शांत होता है।
- ब्राह्मण को काला वस्त्र, उड़द, भैंस, लोहा, तिल, तेल, नीलम, काली गौ, जूता, कस्तूरी और सोना दान देना चाहिए।
- शनि को न्याय का देवता बताया गया है अत: किसी का बुरा ना करें।
- नि:सहायों और गरीबों की मदद करें।
- धार्मिक आचरण करें, बुराइयों से बचें।

जहां जीवन से भय, बाधा दूर करते हैं शनिदेव

हिन्दू धर्म अनुसार नवग्रहों में शनिग्रह न्याय के देवता हैं। इसलिए ऐसा माना जाता है कि शनिदेव इस जगत के सभी प्राणियों को दण्डित करते हैं और वह इस कार्य को बहुत क्रूरता से करते हैं। यही कारण है कि शनिदेव को पीड़ा देने वाला ग्रह माना जाता है। किंतु इन बातों से यह भी स्पष्ट है कि चूंकि शनि न्याय के देवता है और न्याय जब भी होता है वह उचित-अनुचित, सही-गलत, नैतिक-अनैतिक या पाप-पुण्य के आधार पर ही होता है। इसलिए शनिदेव का दण्ड का आधार भी यही सब बातें होती हैं। हर व्यक्ति से जाने-अनजाने कोई न कोई अनुचित कार्य, विचार या व्यवहार होता है। इनके बुरे फल या परिणाम आने पर हम स्वयं को निर्दोष मानकर ही चलते हैं और शनिदेव को सभी दु:खों का कारण मान बैठते हैं। वास्तव में यह मानकर ही हम अपने आचरण को पवित्र बना सकते और दु:खों और पीड़ा से मुक्त हो सकते हैं कि अपने मन, वचन या कर्म में आए दोष ही हमारी पीड़ा का मूल कारण है। जिससे शनि के दण्ड के रुप में हम प्रभावित हुए हैं। अपने दोष मिटने पर ही यही शनिदेव हमारे लिए कल्याणकारी और हितकारी बन जाते हैं। इन बातों का उद्देश्य ज्योतिष विज्ञान को नकारना नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति को यह प्रेरणा देना है कि जीवन में खुशी और प्रसन्नता के लिए सदा अच्छे कर्मों और विचारों में ही अपनी ऊर्जा व्यय करे।
भारतीय कालगणना और ज्योतिष विज्ञान आज पूरी दुनिया में हो रही अंतरिक्ष विज्ञान की प्रगति का आधार है। इसके अनुसार ग्रह का मूल अर्थ ही होता है असर करने वाला या प्रभाव डालने वाला। ज्योतिष विद्या मूलत: ग्रहों की चाल और उनके चर-अचर जगत पर पडऩे वाले अच्छे या बुरे असर को जानने का विज्ञान है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार नवग्रह एक दूसरे पर अपना प्रभाव डालते हैं। जिसके कारण कोई ग्रह दूसरे ग्रह के साथ अनुकूल होने पर अच्छा फल देते हैं और प्रतिकूल होने पर बुरे परिणाम प्राप्त होते हैं। यह ठीक उसी तरह है जैसे किसी भी व्यक्ति का जीवन उससे जुड़े अन्य लोगों के कार्य-व्यवहार से प्रभावित होता है और इससे उस व्यक्ति की अच्छी या बुरी छबि बनती है। यही बात शनि ग्रह के बारे में कही जा सकती है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जब शनि अन्य ग्रहों के साथ विपरीत स्थिति में होते हैं तो व्यक्ति का समय भी विपरीत हो जाता है, किंतु दूसरे ग्रहों या नक्षत्र विशेष के साथ अनुकूल होने पर यही शनि अपार सुख देते हैं।
शनि की साढ़े साती का संबंध भी उसके द्वारा सूर्य का एक चक्कर लगाने में बिताए वाले समय से ही है। यह समय ३० वर्ष का होता है। इस दौरान वह सभी १२ राशियों में से हर राशि में गुजरने में ढाई वर्ष लगाता है। शनि का अच्छा या बुरा प्रभाव एक राशि की पहले वाली राशि में आने से लेकर उसी राशि के बाद आने वाली राशि में ढाई वर्ष का समय गुजारने तक रहता है। इस प्रकार एक राशि पर इसका प्रभाव साढ़े सात साल तक रहता है। लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि यह समय बुरा ही गुजरे। अनेक पौराणिक प्रसंगों को अन्यथा अर्थों में प्रस्तुत करते चले आने से भी लोगों के मन में इस काल और शनिदेव को लेकर पीड़क की छबि उतरी। जो सर्वथा अनुचित है। इसलिए जब भी शनिदेव का पूजन या दर्शन करें तो वह भय से न करने के बजाय भाव से करें। भय मात्र अपने बुरे कर्म और विचारों से करें, क्योंकि तभी शनि की दृष्टि वक्र हो जाती है। क्योंकि वह न्याय के देवता हैं। इन्हीं की आराधना का स्थान है शनि शिंगणापुर का शनि मन्दिर। जहां दर्शन से भय, संशय से पैदा हुई मानसिक और शारीरिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

जीवन में अंकों का महत्व

अंक इंसानी जिंदगी में अहं भूमिका निभाते हैं। भविष्य की जानकारी देने वाला ज्योतिष शास्त्र तो पूरी तरह अंक-विज्ञान पर ही आधारित है। वैसे तो सारे ही अंक महत्वपूर्ण हैं किन्तु किसी व्यक्ति विशेष के लिये कुछ विशेष कारणों से किसी अंक को ज्यादा तवज्जो दी जाती है। वास्तव में अंकज्योतिष में नौ ग्रहों सूर्य, चन्द्र, गुरू, यूरेनस, बुध, शुक्र, वरूण, शनि और मंगल की विशेषताओं के आधार पर गणना की जाती है। इन में से प्रत्येक ग्रह के लिए 1 से लेकर 9 तक कोई एक अंक निर्धारित किया गया है, जो कि इस बात पर निर्भर करता है कि कौन से ग्रह पर किस अंक का असर होता है। ये नौ ग्रह मानव जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। अंकज्योतिष शास्त्र के अनुसार केवल एक ही नाम व अंक किसी एक व्यक्ति का स्वामी हो सकता है। जातक जीवन में अपने अंकों के प्रभाव के अनुसार ही अवसर व कठिनाइयों का सामना करता है। अंकज्योतिष शास्त्र में कोई भी अंक भाग्यशाली या दुर्भाग्यपूर्ण नहीं हो सकता, जैसे कि अंक-7 को भाग्यशाली व अंक -13 को दुर्भाग्यपूर्ण समझा जाता है। यह संयोगवश उपजी भ्रांतिपूर्ण धारणा है।

ऋण से जीवन में आर्थिक कष्ट:ज्योतिष्य उपाय

संसार में सभी को कभी न कभी ऋण यानि कर्ज लेने की आवश्यकता पड़ती है। अधिकतर लोग कर्ज लेकर उलझ जाते है तथा उनका कर्ज कभी समाप्त ही नहीं होता वह जीवनभर कर्ज में ही डूबे रहते है, कई बार तो कर्ज कई पुश्तों तक चलता है। आखिर क्या है, इसका कारण? ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल ग्रह कर्ज का मूल कारण होता है। मंगल अष्टम हो नीच का हो या शत्रु राशि में हो तो ऋण से जातक परेशान हो जाता है। मंगलवार को ऋण लेने वाला सदैव ऋणी बना रहता है, उसका यह कर्ज संतान भी नही उतार पाती। अत: मंगलवार को कर्ज लेने से बचें। इसी तरह बुधवार को किसी को न कर्ज न देवें अन्यथा कर्ज वापस मिलने में परेशानी आ जाती है। रोजाना इसका पाठ करने से ऋण समाप्त होता है। ऋणमोचन मंगल स्तोत्रम् मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रद:। स्थिरामनो महाकाय: सर्वकर्मविरोधक:।। लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां। कृपाकरं। वैरात्मज: कुजौ भौमो भूतिदो भूमिनंदन:।। धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्। कुमारं शक्तिहस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम्। अंगारको यमश्चैव सर्वरोगापहारक:। वृष्टे: कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रद:।। एतानि कुजनामानि नित्यं य: श्रद्धया पठेत्। ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्रुयात् ।। स्तोत्रमंगारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभि:। न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्।। अंगारको महाभाग भगवन्भक्तवत्सल। त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय:।। ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यव:। भयक्लेश मनस्तापा: नश्यन्तु मम सर्वदा।। अतिवक्र दुराराध्य भोगमुक्तजितात्मन:। तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।। विरञ्चि शक्रादिविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा। तेन त्वं सर्वसत्वेन ग्रहराजो महाबल:।। पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गत:। ऋणदारिद्रयं दु:खेन शत्रुणां च भयात्तत:।। एभिद्र्वादशभि: श्लोकैर्य: स्तौति च धरासुतम्। महतीं श्रियमाप्रोति ह्यपरा धनदो युवा:। ।। इति श्रीस्कन्दपुराणे भार्गवप्रोक्त ऋणमोचन मंगलस्तोत्रम् ।।

क्या करें अच्छे स्वास्थ्य के लिए?????

अच्छा स्वास्थ्य यानि समय और धन की बचत साथ ही प्रसन्नता किन्तु आज के तनाव भरे प्रतियोगिता के युग में तथा प्रदूषण युक्त वातावरण में अच्छा स्वास्थ्य पाना एक चुनौती से कम नहीं है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म पत्रिका का षष्ठम भाव स्वास्थ्य का कारक होता है। छठे भाव में कोई ग्रह शत्रु राशि, नीच का या मंगल, शनि, राहु, सूर्य ,चंद्र ग्रह हो तो इन ग्रहों से संबंधित रोग जातक को होता है। मंगल से नस, रक्त, कमर दर्द आदि रोग होते हैं। शनि से हड्डी, दांत, हृदय आदि रोग होते हैं। राहु से आंतों का, बवासीर, आदि गुप्त रोग होते हैं। सूर्य से सिरदर्द तथा आंखों के रोग होते हैं तथा चंद्र से सर्दी संबंधित रोग होते है। गुरु और बुध इस स्थान पर रोग शमन करने वाले होते है। शनि स्वराशि या शत्रुराशि होकर षष्ठम स्थान बैठा हो तथा शनि की महादशा लगी हो तो किडनी संबंधी रोग होते हैं। क्या हैं इन रोगों से बचने के उपाय? - ओम नम: शिवाय का जाप करें। - बीज मंत्र ऊँ हौं जूँ स: का २४ घंटे जाप करें। - षष्ठम स्थान स्थित ग्रह का उपचार करें। - महामृत्युजंय मंत्र का जाप करें। - शिवजी का पंचामृत अभिषेक करें। - झाडू से उडऩे वाली धूल, बिल्ली, बकरी के बैठने के स्थान की धूल, चिता का धुअं। आदि का सेवन न करें। - बासी भोजन, दिन में सोना, रात्रि जागरण, सूर्योदय के बाद तक सोना यह सब त्याग करने योग्य है।

त्वचा रोग: ज्योतिष्य उपाय

शहर में त्वचा रोग एक विकराल समस्या है। गांवों में यह कम देखने को मिलती है। खासतौर पर युवा पीढ़ी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है। ज्योतिष में इसका कारक ग्रह बुध है तथा कुण्डली का षष्ठ भाव इसमें प्रमुख होता है। इसके अलावा शनि, राहु, मंगल के अशुभ होने पर तथा सूर्य, चंद्र के क्षीण होने पर त्वचा रोग होते हैं। सप्तम स्थान पर केतु भी त्वचा रोग का कारण बन सकता है। बुध यदि बलवान है तो यह रोग पूरा असर नहीं दिखाता, वहीं बुध के कमजोर रहने पर यह कष्टकारी हो सकता है। लक्षण - पानी, मवाद से भरी फुंसी व मुंहासे चंद्र के कारण होती है - मंगल के कारण रक्त विकार वाली फुंसी व मुंहासे होती है। - राहु के प्रभाव से कड़ी दर्द वाली फुंसी होती है। उपाय - षष्ठ स्थान पर स्थित अशुभ ग्रह का उपचार कराएं। - सूर्य मंत्रों या आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें। - शनिवार को कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं। - सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें। - पारद शिवलिंग का पूजन करें। 

सूर्य को जल चढ़ाने का महत्व

हिंदू धर्म पद्धति सहित कई धर्मो में सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य देने (जल चढ़ाने) का महत्व है। इससे कई फायदे बताए गए हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या सूर्य को जल चढ़ाने से सीधे कोई लाभ मिलता है या नहीं। वास्तव में सूर्य को जल चढ़ाने से हमारे व्यक्तित्व पर सीधा असर पड़ता है। 
इसके दो कारण हैं। सूर्य को अघ्र्य देने के पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि जब हम सुबह जल्दी उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हैं तो इससे सीधे-सीधे हमारे स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। सुबह की ताजी हवा और सूर्य की पहली किरणों हम पर पड़ती हैं। इससे हमारे चेहरे पर तेज दिखाई देता है। 
दूसरा कारण है जब हम सूर्य को जल चढ़ाते हैं और पानी की धारा के बीच उगते सूरज को देखते हैं तो नेत्र ज्योति बढ़ती है, पानी के बीच से होकर आने वाली सूर्य की किरणों जब शरीर पर पड़ती हैं तो इसकी किरणों के रंगों का भी हमारे शरीर पर प्रभाव पड़ता है। जिससे विटामिन डी जैसे कई गुण भी मौजूद होते हैं। इसलिए कहा गया है कि जो उगते सूर्य को जल चढ़ाता है उसमें सूर्य जैसा तेज आता है।

सूर्य से जीवन स्वस्थ और उर्जावान

अंग्रेजी में छोटे बच्चों की एक कविता है अरली टू बेड एंड अरली टू राइस, अर्थात् जल्दी सोओ एवं जल्दी उठो। बचपन में सिखाई गई इस बात का हम पालन नहीं करते अगर ब्रह्म मुहूर्त में नहीं तो कम से कम सूर्योदय के पहले तो उठ ही जाना चाहिए। जो हमारे स्वास्थ्य मानसिक शांति एवं स्थिरता प्रदान करने के लिए अति लाभदायक है। सूर्योदय के पूर्व नित्य कर्मों से निपटकर सूर्य को उदय होते ही उसे अध्र्य प्रदान करना चाहिए। सूर्योदय के समय सूर्य से निकलने वाली किरणे ऊर्जा का भंडार होती है। उस समय वह जिस प्राणी पर पड़ती है। वही ऊर्जावान स्वस्थ तथा निरोगी हो जाता है। इस बारे में हम पेड़-पौधे, पशु-पक्षी का उदाहरण ले सकते हैं। यह सभी सूर्योदय के पहले उठते है एवं सूर्य उदय की पूर्ण ऊर्जा को ग्रहण करते हैं। तथा स्वयं की कमजोरी से कभी बीमार अथवा कमजोर नहीं होते। अत: सूर्योदय के वक्त सूर्य को अध्र्य देने वाला सभी लाभों को प्राप्त करता है।सूर्य ऊर्जा का स्रोत है तथा पंच देवताओं में भी उसकी गणना होती है। अत: सूर्य को अध्र्य देना हम अपनी दिनचर्या में शामिल कर ले तो वह हमें कई परेशानीयों से बचाता तथा स्वस्थ्य एवं निरोगी रखता हैँ। सूर्यको कभी नंगी आंखो नही देखना चाहिए अत: अघ्र्य देते वक्त हमारी आंखे निचे झुकी होनी चाहिए तथा दाये पैर की एड़ी उपर उठी होनी चाहिए। सूर्य को सिधे देखने से आंखो से देखने पर उनको नुकसान होने क संभावन होती है

स्मरण शक्ति बढ़ाने के ज्योतिष्य उपाय

35 वर्ष की आयु के पश्चात याद रखने की क्षमता कमजोर होने लगती है। इसके कई कारण हो सकते हैं। जैसे देर से उठना, अत्यधिक सहवास करना, देर रात तक काम करना आदि। साथ ही इसके अलावा आजकल बच्चों में भी यह परेशानी पर देखने को मिल रही है कि उन्हें काफी कुछ याद नहीं रहता वे जल्द ही पढ़ाई संबंधी बातें भुल जाते हैं। क्या कारण है इसका? ज्योतिष शास्त्र के अनुसार याददाश्त और बुद्धि के कारक ग्रह गुरु, बुध और सूर्य है। जन्म पत्रिका में लग्र में गुरु, बुध हो तो जातक तीक्ष्ण बुद्धि का होता है। ऐसे ही यदि गुरु लग्र में उच्च का या मित्र राशि का हो तो याददाश्त बहुत तेज होती है। वह घटनाओं को जीवनभर भूलता नहीं हैं। यही तीनों ग्रह सुर्य, बुध, गुरु नीच के हो और शत्रु राशि में या अस्त हो तो जातक कमजोर बुद्धिवाला होता है और उसकी निर्णय लेने की क्षमता भी कमजोर होती है। बढ़ती उम्र के साथ ज्यादा सोने, गलत आदतें, अत्यधिक सहवास, किसी भी प्रकार का नशा, तंबाकू का सेवन, देर से सोना और देर से उठना, दिन में सोना आदि से याददाश्त कमजोर हो जाती है। कैसे बढ़ाएं याददाश्त: - आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करें। - प्रात: सूर्य नमस्कार कर गायत्री मंत्र का जाप करें। - रात्रि में समय पर सोएं और ब्रह्म मुहूर्त में उठें या सूर्योदय तक तो उठ ही जाएं। - किसी भी प्रकार के नशे, तंबाकू का सेवन न करें।

फैशन के करिअर में सफलता प्राप्ति के उपाय

फैशन में सफलता को स्थायित्व रखना आसान काम नहीं है, यहां हर दिन बदलाव होता है। खासकर मॉडलों के लिए अपनी स्थायित्व बनाएं रखना सबसे ज्यादा मुश्किल है।शुक्र आपको सफलता के साथ-साथ स्थायित्व एवं अंतरराष्ट्रीय मंच तक दिला सकता है। सुख संपत्ति एवं वैभव का कारक शुक्र आपके पक्ष में कैसे हो जानिए जिनके वृषभ, तुला एवं मीन राशि में स्थित शुक्र द्वितीय एकादश सप्तम चतुर्थ दशम होवे तो उन्हें यह सब मिलेगा ही। परंतु जिन जातकों के साथ ऐसा न हो उन्हें निम्न उपाय करना चाहिए:दूध चावल की खीर, केला, खोपरा खाएं।नमकीन सेव खाएं।शुक्रवार को सफेद वस्त्र पहनें।अपने प्रचार में सफेद रंगों का ज्यादा उपयोग करें।विशेष: शुक्र द्वादश भाव में स्थित होने व्यक्ति जल्दी मोटा और धुलधुला हो जाता है।

कुंडली में अभिनय करने के योग

शुक्र और शनि यदि यह दोनों ग्रह एक साथ प्रबल हो तो जातक अभिनय जगत में उत्कृष्ट नाम कमाता है तथा धन, वैभव, ऐश्वर्य सम्मान प्राप्त करता है। शुक्र अभिनय जगत का कारक ग्रह है तथा शनि लौह तत्व का कारक है। जो डायरेक्टर, एडीटर तथा अन्य तकनीकि कलाकारों का सहयोग करता है।शुक्र प्रथम, सप्प्तम, दशम, एकादश भाव मे स्थित हो तो जातक फिल्म लाइन में प्रवेश करने का इच्छुक होता है। साथ हि यदि शनि भी मजबूत स्थिती में हो तो सफलता अवश्य हि मिलती है। शुक्र् के लिए हिरे की अगुंठी धारण करे। सफेद चीनी या प्लास्टिक कि बोतल में पानी पिये। शनिवार को एक लिफाफे में शकर का पानी भर दें तथा उसमें चिटीं लगने दे,उसके बाद अपने पर से उतारकर बाहर रख दे, जल्दी काम मिलेगा।शनि की प्रसन्नता के लिए गरिबों में अन्नदान करें।

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Tuesday 1 September 2015

विभिन्न समस्याओं के ज्योतिष्य उपाय

हर व्यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ परेशानी जरूर होती है।
डिप्रेशन के लिए...
रोज सुबह स्नान करने के बाद तुलसी के पौधे की 11 परिक्रमा करें और गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं। साथ ही जल भी चढ़ाएं। यही प्रक्रिया शाम को भी करें। ऐसा करने से डिप्रेशन कम होगा। तुलसी की माला धारण करें तो और भी बेहतर लाभ मिलेगा।
नींद न आए तो...
जब आप सोने जाएं तो बिस्तर पर लेटने के बाद शरीर को थोड़ी देर के लिए ढीला छोड़ दें और धीरे-धीरे 100 तक गिनती बोलें। उसके बाद सांस रोककर ऊं कुंभकर्णाय नम: बोलें और सांस छोड़ दें। इस तरह 108 बार करें। कुछ दिनों तक थोड़ी परेशानी होगी, लेकिन बाद में आपकी समस्या का निदान हो जाएगा और आपको भरपूर नींद आने लगेगी।
बिजनेस की सफलता के लिए...
किसी रविवार को दोपहर के समय पांच कागजी नींबू काटकर व्यवसाय स्थल (ऑफिस या दुकान) पर रखकर उसके साथ एक मुट्ठी काली मिर्च, एक मुट्‌ठी पीली सरसों रख दें। अगले दिन जब दुकान या व्यवसाय स्थल खोलें तो सभी सामान कहीं दूर जाकर सुनसान स्थान पर दबा दें। इस प्रयोग से व्यवसाय चलने लगेगा या अगर किसी की बुरी नजर होगी तो उसका प्रभाव भी समाप्त हो जाएगा।
धन लाभ के लिए...
किसी शनिवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद किसी पीपल के पेड़ से एक पत्ता तोड़ लाएं। उस पर सफेद चंदन से गायत्री मंत्र लिखें और उसका पूजन करें। अब इस पत्ते को अपने कैश बॉक्स, गल्ला, तिजोरी या जहां आप पैसा रखते हैं, वहां इस प्रकार रखें कि यह किसी को दिखाई न दे। इस पीपल के पत्ते को हर शनिवार को बदलते रहें। इससे घर में सुख-शांति रहेगी और धन-संपत्ति बढऩे को योग बनेंगे।
सुख-समृद्धि के लिए...
तुलसी नामाष्टक मंत्र का जाप करें-
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
जाप विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद तुलसी के पौधे की पूजा व परिक्रमा करें तथा दीप लगाएं। इसके बाद एकांत में जाकर कुश के आसन पर बैठकर तुलसी की माला से इस मंत्र का जाप करें। मंत्र जाप करते समय मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। कम से कम 5 माला जाप अवश्य करें।
सुखी पारिवारिक जीवन के लिए...
- अगर घर में सदैव अशांति रहती हो तो घर के मुख्य द्वार पर बाहर की ओर श्वेतार्क (सफेद आकड़े के गणेश) लगाने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
- प्रतिदिन सुबह घर में गोमूत्र अथवा गाय के दूध में गंगा जल मिलाकर छिड़कने से घर की शुद्धि होती है तथा नकारात्मकता कम होती है। इससे भी परिवार में अच्छा माहौल बनता है।
- गाय के गोबर का दीपक बनाकर उसमें गुड़ तथा तेल डालकर जलाएं। फिर इसे घर के मुख्य द्वार के मध्य में रखें। इस उपाय से भी घर में शांति बनी रहेगी तथा समृद्धि में वृद्धि होगी।
शीघ्र विवाह के लिए...
- हर सोमवार को समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाएं। भगवान शिव को दूध में काले तिल मिलाकर चढ़ाएं तथा जल्दी विवाह के लिए प्रार्थना करें।
- गुरुवार को उपवास रखें तथा पीली वस्तुओं का दान करें। इस उपाय से गुरु बृहस्पति प्रसन्न होंगे, जिससे विवाह के योग बनने लगेंगे।
- जन्म कुंडली के अनुसार यदि सूर्य के कारण विवाह में विलंब हो रहा हो तो रोज सुबह सूर्यदेव को नियमित रूप से अर्घ्य दें। साथ ही ऊं सूर्याय नम: मंत्र का जाप करें।
- किसी मित्र या सहेली के विवाह में उसके हाथों से अपने हाथों में मेहंदी लगवाने से भी शीघ्र ही विवाह हो जाता है।
रूका हुआ पैसा पाने के लिए...
शुक्ल पक्ष के किसी सोमवार से यह उपाय शुरू कर लगातार 21 दिनों तक करें। सुबह जल्दी उठें। स्नान आदि कामों से निपटकर एक लौटे में साफ पानी लेकर उसमें 5 गुलाब के फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें और भगवान सूर्य से समस्या निराकरण के लिए प्रार्थना करें। शीघ्र ही आपकी मनोकामना पूरी हो सकती है।

पृथ्वी पूजन

ब्रह्म वैवर्त पुराण के प्रकृति खंड में पृथ्वी माता के प्रकट होने से लेकर पुत्र मंगल को उत्पन्न करने तक की पूरी कहानी दी गई है। साथ ही देवी का पूजन किन मंत्रों व स्तुति से किया जाए कि देवी प्रसन्न हो। और भूमि सुख प्रदान करें। श्री वसुधा के पूजन में इन मंत्रों व स्तुति का पाठ पूरी श्रद्धा और विश्वास से किया जाने से पृथ्वी माता को प्रसन्न किया जा सकता है।
पृथ्वी पूजन मंत्र
मंत्र इस प्रकार है- ऊँ ह्रीं श्रीं वसुधायै स्वाहा।
पृथ्वी पूजन स्तोत्र
यज्ञसूकरजाया त्वं जयं देहि जयावहे। जयेऽजये जयाधरे जयशीले जयप्रदे।।
सर्वाधारे सर्वबीजे सर्वशक्तिसमन्विते। सर्वकामप्रदे देवि सर्वेष्टं देहि मे भवे।।
सर्वशस्यालये सर्वशस्याढये सर्वशस्यदे। सर्वशस्यहरे काले सर्वशस्यात्मिके भवे।।
मंगले मंगलाधरे मंगल्ये मंगलप्रदे। मंगलार्थे मंगलेशे मंगलं देहि मे भवे।।
भूमे भूमिपसर्वस्वे भूमिपालपरायणे। भूमिपाहंकाररूपे भूमि देहि च भूमिदे।।
अर्थ- सफलता प्रदान करने वाली देवी हे वसुधे। मुझे सफलता दो। आप यज्ञवराह की पत्नि हो। हे जये! आपकी कभी भी हार नहीं होती है। इसलिए आप विजय का आधार, विजय दायिनी, विजयशालिनी हो। देवी! आप सबकी आधारभूमि हो। सर्वबीजस्वरूपिणी और सभी शक्तियों से सम्पन्न हो। समस्त कामनाओं को देने वाली देवि! आप इस संसार में सभी चाही गई वस्तुओं को प्रदान करो। आप सब प्रकार के सुखों का घर हो। आप सब प्रकार के सुखों से सम्पन्न हो। सभी सुखों को देने वाली भी हो और समय आने पर उन सुखों को छुपा देने वाली भी हो। इस संसार में आप सर्वसुखस्वरूपिणी भी हो। आप मंगलमयी हो। मंगल का आधार हों मंगल के योग्य हो। मंगलदायिनी हो। मंगलदेने वाली वस्तुएं आपका ही स्वरूप हैं। मंगलेश्वरि! आप इस संसार में मुझे मंगल प्रदान करो। आप ही भूमिपालों का सर्वस्व हो। भूमिपालपरायणा हो। भूपालों के अहंकार का मूर्तिरूप हो। हे भूमिदायिनी देवी! मुझे भूमि दो।

कुंडली में धन योग

भविष्य से जुड़ी बातें जानने के लिए कुंडली अध्ययन एक श्रेष्ठ उपाय माना गया है। कुंडली में बारह भाव होते हैं और इन भावों में स्थित सभी नौ ग्रह अलग-अलग योग बनाते हैं। ग्रहों की स्थिति और अन्य ग्रहों के साथ युति के आधार पर ही व्यक्ति के सुख-दुख और धन संबंधी मामलों पर विचार किया जाता है।
जन्म कुंडली का दूसरा घर या भाव धन का होता है। इस भाव से धन, खजाना, सोना-चांदी, हीरे-मोती आदि बातों पर विचार किया जाता है। साथ ही, इस भाव से यह भी मालूम हो सकता है कि व्यक्ति के पास कितनी स्थाई संपत्ति रहेगी। ये हैं इस भाव से जुड़े कुछ योग...
1. जिस व्यक्ति की कुंडली में द्वितीय भाव पर शुभ ग्रह स्थित हो या शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो ऐसे व्यक्ति को बहुत धन प्राप्त हो सकता है।
2. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के द्वितीय भाव में बुध हो तथा उस पर चंद्रमा की दृष्टि हो, तो वह व्यक्ति हमेशा गरीब होता है। ऐसे लोग कठिन प्रयास करते हैं, लेकिन धन एकत्र नहीं कर पाते हैं।
3. यदि कुंडली के द्वितीय भाव में किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो, तो वह व्यक्ति धनहीन हो सकता है। ये लोग कड़ी मेहनत के बाद भी पैसों की तंगी का सामना करते हैं।
4. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में द्वितीय भाव में चंद्रमा स्थित हो तो वह बहुत धनवान होता है। उसके जीवन में इतना धन होता है कि उसे किसी भी सुख-सुविधा को प्राप्त करने में अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता है।
5. यदि जन्म कुंडली के द्वितीय भाव में चंद्रमा स्थित हो और उस पर नीच के बुध की दृष्टि पड़ जाए तो उस व्यक्ति के परिवार का धन भी समाप्त हो जाता है।
6. यदि कुंडली में चंद्रमा अकेला हो तथा कोई भी ग्रह उससे द्वितीय या द्वादश न हो तो व्यक्ति आजीवन गरीब ही रहता है। ऐसे व्यक्ति को आजीवन अत्यधिक परिश्रम करना होता है, परंतु वह अधिक पैसा नहीं प्राप्त कर पाता।
7. यदि जन्म पत्रिका में सूर्य और बुध द्वितीय भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति के पास पैसा नहीं टिकता।
इन उपायों से मिल सकता है धन का सुख
1. सोमवार का व्रत करें। सोमवार शिवजी का दिन है और शिवजी की भक्ति से धन और ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
2. सोमवार को अनामिका उंगली (रिंग फिंगर) में सोने, चांदी और तांबे से बनी अंगुठी पहनें।
3. शिवलिंग पर प्रतिदिन जल, बिल्वपत्र और चावल चढ़ाएं।
4. प्रतिदिन शाम को शिवजी के मंदिर में दीपक लगाएं।
5. पूर्णिमा को चंद्र का पूजन करें।
6. श्री लक्ष्मीसूक्त का पाठ करें।

ग्रहों की शांति हेतु मंत्र

ज्योतिष में नौ ग्रह बताए गए हैं और सभी ग्रहों का अलग-अलग फल होता है। कुंडली में जिस ग्रह की स्थिति अशुभ होती है, उससे शुभ फल प्राप्त करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। इन्हीं उपायों में से एक उपाय ये है कि अशुभ ग्रह के मंत्र का जप किया जाए। ग्रहों के मंत्र जप से अशुभ असर कम हो सकता है।
मंत्र जप की सामान्य विधि: जिस ग्रह के निमित्त मंत्र जप करना चाहते हैं, उस ग्रह की विधिवत पूजा करें। पूजन में सभी आवश्यक सामग्रियां अर्पित करें। ग्रह पूजा के लिए किसी ब्राह्मण की मदद भी ली जा सकती है। पूजा में संबंधित ग्रह के मंत्र का जप करें। मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए। जप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग किया जा सकता है।
सूर्य मंत्र - ॐ सूर्याय नम:। सूर्य अर्घ्य देकर इस मंत्र के जप से पद, यश, सफलता, तरक्की सामाजिक प्रतिष्ठा, स्वास्थ्य, संतान सुख प्राप्त हो सकता है और इस मंत्र से दरिद्रता दूर हो सकती है।
चंद्र मंत्र - ॐ सोमाय नम:। इस मंत्र जप से मानसिक परेशानियां दूर होती हैं। पेट व आंखों की बीमारियों में राहत मिलती है।
मंगल मंत्र- ॐ भौमाय नम:। इस मंत्र जप से भूमि, संपत्ति व विवाह बाधा दूर होने के साथ ही सांसारिक सुख मिलते हैं।
बुध मंत्र- ॐ बुधाय नम:। यह मंत्र जप बुद्धि व धन लाभ देता है। घर या कारोबार की आर्थिक समस्याएं व निर्णय क्षमता बढ़ाता है।
गुरु मंत्र - ॐ बृहस्पतये नम:। इस मंत्र जप से सुखद वैवाहिक जीवन, आजीविका व सौभाग्य प्राप्त होता है।
शुक्र मंत्र- ॐ शुक्राय नम:। यह मंत्र जप वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाता है। वैवाहिक जीवन में कलह व अशांति को दूर करता है।
शनि मंत्र- ॐ शनैश्चराय नम:। ये मंत्र तन, मन, धन से जुड़ी तमाम परेशानियां दूर करता है। भाग्यशाली बनाता है।
राहु मंत्र- ॐ राहवे नम:। यह मंत्र जप मानसिक तनाव, विवादों का अंत करता है। आध्यात्मिक सुख भी देता है।
केतु मंत्र - ॐ केतवे नम:। यह मंत्र जप हर रिश्तों में तनाव दूर कर सुख-शांति देता है।

पूजा या हवन में कलश का महत्व

किसी भी पूजन या शुभ कार्य में कलश की बड़ी महिमा बताई गई है। कलश पूजन सुख व समृद्धि को बढ़ाता है। हिंदू रीति से किए जाने वाले हर पूूजन में कलश की स्थापना होती है। कलश में डाली जाने वाली वस्तुएं इसे अधिक पवित्र बना देती हैं। संपूर्णता प्रदान करती हैं।
कलश
देव पूजन में लिया जाने वाला कलश तांबे या पीतल धातु से बना हुआ होना शुभ कहा गया है। मिट्टी का कलश भी श्रेष्ठ कहा गया है।
पंच पल्लव
पीपल, आम, गूलर, जामुन, बड़ के पत्ते पांचों पंचपल्लव कहे जाते है। कलश के मुख को पंचपल्लव से सजाया जाता है। जिसके पीछे कारण है ये पत्तें वंश को बढ़ाते हैं।
पंचरत्न
सोना, चांदी, पन्ना, मूंगा और मोती ये पंचरत्न कहे गए हैं। वेदों में कहा गया है पंचपल्लवों से कलश सुशोभित होता है और पंचरत्नों से श्रीमंत बनता है।
जल
जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। जल शुद्ध तत्व है। जिसे देव पूजन कार्य में शामिल किए जाने से देवता आकर्षित होकर पूजन स्थल की ओर चले आते हैं। जल से भरे कलश पर वरुण देव आकर विराजमान होते हैं।
नारियल
नारियल की शिखाओं में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार पाया जाता है। नारियल की शिखाओं में मौजूद ऊर्जा तरंगों के माध्यम से कलश के जल में पहुंचती है। यह तरंगें काफी सूक्ष्म होती हैं। नारियल को कलश पर स्थापित करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि नारियल का मुख हमारी ओर हो।
सोना
ऐसी मान्यता है कि सोना अपने आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलाता है। सोने को शुद्ध कहा जाता है। यही वजह है कि इसे भक्तों को भगवान से जोड़ने का माध्यम भी माना जाता है।
तांबे का पैसा
तांबे में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अधिक होती है। कलश में उठती हुई तरंगे वातावरण में प्रवेश कर जाती हैं। कलश में पैसा डालना त्याग का प्रतीक भी माना जाता है। यदि आप कलश में तांबे के पैसे डालते हैं, तो इसका मतलब है कि आपमें सात्विक गुणों का समावेश हो रहा है।
सात नदियों का पानी
गंगा, गोदावरी, यमुना, सिंधु, सरस्वती, कावेरी और नर्मदा नदी का पानी पूजा के कलश में डाला जाता है। अगर सात नदियों के जल की व्यवस्था नहीं हो तो केवल गंगा का जल का ही उपयोग करें। यदि वह भी उपलब्ध नहीं हो तो सरलता से जो भी जल प्राप्त हो उसे ही सात नदियों का जल मानकर कलश में भरें।
सुपारी
यदि हम जल में सुपारी डालते हैं, तो इससे उत्पन्न तरंगें हमारे रजोगुण को समाप्त कर देती हैं और हमारे भीतर देवता के अच्छे गुणों को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है।
पान
पान की बेल को नागबेल भी कहते हैं। नागबेल को भूलोक और ब्रह्मलोक को जोड़ने वाली कड़ी माना जाता है। इसमें भूमि तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है। साथ ही इसे सात्विक भी कहा गया है।
दूर्वा
दूर्वा हरियाली का प्रतीक है। कलश में दूर्वा को डाला जाना जीवन में हरियाली यानी खुशियां बढ़ाता है।
कलश पूजन व स्थापना की विधि
सबसे पहले पूूजन किए जाने वाले स्थान को साफ कर लें। अब वहां एक पाटा रखें जिस पर हल्दी और कुमकुम से कोई शुभ मांगलिक चिह्न बनाएं। इस पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। अब सबसे पहले श्रीगणेश की मूर्ति स्थापित करें। देव स्थापना करें। अब कलश स्थापित करें। दीपक स्थापित करें। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कलश देव मूर्ति के दाहिनी ओर स्थापित किया गया हो। कलश की स्थापना चावल या अन्न की ढेरी पर करें।
कलश पूूजन मंत्र
कलश पूूजन के समय इस मंत्र का जप किया जाना चाहिए-
कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः
मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः।
कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा,
ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः
अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिताः।
अर्थ है कलश के मुख में संसार को चलाने वाले श्री विष्णु, कलश के कंठ यानी गले में संसार को उत्पन्न करने वाले श्री शिव और कलश के मूल यानी की जड़ में संसार की रचना करने वाले श्री ब्रह्मा ये तीनों शक्ति इस ब्रह्मांड रूपी कलश में उपस्थित हैं। कलश के बीच वाले भाग में पूजनीय मातृकाएं उपस्थित हैं।
समुद्र, सातों द्वीप, वसुंधरा यानी धरती, ब्रह्माण्ड के संविधान कहे जाने वाले चारों वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद) इस कलश में स्थान लिए हैं। इन सभी को मेरा नमस्कार हैं।
वरुण देव को नमस्कार करें।
ऊँ अपां पतये वरुणाय नमः।
यानी कि जलदेवता वरुणदेव को नमस्कार है।
इन मंत्रों के साथ कलश पूजन करें। कलश पर गंध, पुष्प्प और चावल अर्पित करें

बहुला चतुर्थी व्रत

भादौ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला चतुर्थी व बहुला चौथ के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान श्रीगणेश के निमित्त व्रत किया जाता है। वर्ष की प्रमुख चार चतुर्थी में से एक यह भी है। इस बार यह चतुर्थी 1 सितंबर, मंगलवार को है।
ऐसे करें व्रत
महिलाएं इस दिन सुबह स्नान कर पवित्रता के साथ भगवान गणेश की आराधना आरंभ करें। भगवान गणेश की प्रतिमा के सामने व्रत का संकल्प लें। धूप, दीप, गंध, पुष्प, प्रसाद आदि सोलह उपचारों से श्रीगणेश का पूजन संपन्न करें। चंद्र उदय होने से पहले जितना हो सके कम बोलें।
शाम होने पर फिर से स्नान कर इसी पूजा विधि से भगवान श्रीगणेश की उपासना करें। इसके बाद चन्द्रमा के उदय होने पर शंख में दूध, दूर्वा, सुपारी, गंध, अक्षत से भगवान श्रीगणेश, चंद्रदेव और चतुर्थी तिथि को अर्ध्य दें। इस प्रकार बहुला चतुर्थी व्रत के पालन से सभी मनोकामनाएं पूरी होने के साथ ही व्रती (व्रत करने वाला) के व्यावहारिक व मानसिक जीवन से जुड़े सभी संकट, विघ्न और बाधाएं समूल नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत संतान दाता तथा धन को बढ़ाने वाला है।

रोहिणी नक्षत्र और शनि

यदि शनि रोहिणी नक्षत्र के पहले चरण में हो तो जातक धन, जायदाद तथा वाहनादि अर्जित करने जाला, 35 वर्ष की आयु तक पारिवारिक जीवन से दुखी तथा बाद में विवाह-विच्छेद से मानसिक तनाव प्राप्त करने जाला होता है। किंतु उसके उपरांत जातक के जीवन में सुधार होता है । उसकी दूसरो पत्नी बहुत सुंदर और पतिव्रता होती है, परंतु वह सदा गंभीर रोगों से ग्रस्त रहती है।
दूसरे चरण में शनि पशुधन से लाभ देता है। इस चरण में उत्पन्न जातक आकर्षक मधुर वाणीयुक्त एबं विद्वान होता है । उसे गले के रोग से भारी कष्ट होता है समय से पहले ही उसके सिर के बाल उसका साथ छोड़ जाते हैं ।
तीसरे चरण में शनि श्रेष्ट फलदायक होता है। ऐसा जातक मीठा बोलने और बौद्धिक विचारों का होता है । वह छोटी आयु में भी उचित शिक्षा ग्रहण करके यश और धन दोनों अजित कर लेता है ।
चौथे चरण में शनि की उपस्थिति से जातक अपने जीवन में अनगिनत कठिनाइयों को भोगता हुआ अंतत: अपने लक्ष्य तक पहुंच जाता है और आगे चलकर कोई उच्चाधिकारी अथवा राजनेता बनता है ।

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