Friday 5 June 2015

वट सावित्री व्रत-स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व



स्कन्दपुराण में कहा गया है-
अश्वत्थरूपी विष्णुः स्याद्वरूपी शिवो यतः
अर्थात् पीपलरूपी विष्णु व जटारूपी शिव हैं। वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा जी, तने में विष्णु और डालियों एवं पत्तों में शिव का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा कहने और सुनने से मनोकामना पूरी होती है। अतः किसी मंदिर में या बरगद (वट) के पेड़ के नीचे बैठ कर इस दिन व्रत पूजा करने का विधान है। अग्निपुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है। इसीलिए संतान के लिए इच्छित लोग इसकी पूजा करते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत रखकर वट वृक्ष के नीचे सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करने से पति की आयु लंबी होती है और संतान सुख प्राप्त होता है। मान्यता है कि इसी दिन सावित्री ने यमराज के फंदे से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि को हिन्दू महिलाएं वट सावित्री का व्रत रखती हैं । भारतीय धर्म में वट सावित्री अमावस्या स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है। मूलतः यह व्रत-पूजन सौभाग्यवती स्त्रियों का है।
वट सावित्री व्रत और पूजन---

सुहागन स्त्रियां वट सावित्री व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें। वट वृक्ष की जड़ को दूध और जल से सींचें। इसके बाद कच्चे सूत को हल्दी में रंगकर वट वृक्ष में लपेटते हुए कम से कम तीन बार परिक्रमा करें। पूजा के बाद सावित्री और यमराज से पति की लंबी आयु एवं संतान हेतु प्रार्थना करें। व्रती को दिन में एक बार मीठा भोजन करना चाहिए। इस वर्ष वट सावित्री का व्रत रविवार (17  मई, 2015 ) को भरणी नक्षत्र और वृषभ राशि में हैं।

Pt.P.S Tripathi
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