Thursday 24 September 2015

शीर्ष-रेखा की दिशा तथा रूप, गुण, अवगुण आदि

यदि शीर्ष-रेखा अपने स्वाभाविक स्थान की अपेक्षा नीची हो; (अर्थात् जालियों की जड से जितनी दूर होना चाहिये उसकी अपेक्षा अधिक दूर हो) तो आत्मविश्वास की कमी होती है और थोडी सी बात या कष्ट से ऐसे व्यक्ति नाराज तथा दु:खी हो जाते है ।
यदि शीर्ष-रेखा अपने स्वाभाविक स्थान पर हो और सीधी, स्पष्ट तथा समान रूप से गहरी हो तो मनुष्य में व्यावहारिक बुद्धि अच्छी होती है और उसकी पुस्तक पढने, दर्शन, काव्य या कलात्मक अनुसंधान की बजाय धन-दौलत की ओर विशेष प्रवृत्ति रहती है किन्तु यदि प्रारम्भिक आधे भाग में सीधी हो और उसके बाद नीचे की ओर कुछ झुकी हुई हो तो दोनों ओर (धन-दौलत तथा विद्या- सम्बन्धी) समान रूप से प्रवृति रहती है । ऐसे व्यबित मस्तिष्क- सम्बन्धी, कल्पना-प्रधान या दार्शनिक ग्रंथियों को सुलझाते हुए भी सांसारिक मव्यावहारिकता का ध्यान रखते है । किन्तु यदि शीर्ष-रेखा प्रारम्भ से ही गोलाई लिये चन्द्र-क्षेत्र की ओर जाती हो तो काव्य, दर्शन कला आदि की ओर विशेष झुकाव होता है । काव्य, दर्शन, नव आविष्कार किंवा मशीन आदि की भी नई योजना बनाने की ओर इनका मानसिक झुकाव विशेष होता है । यदि हाथ चतुष्कोणाकार हो तो सांशांरेक उन्नति के साधन में (यथा नई प्रकार की योजना या क्षेम-निर्माण मे) इनका दिमाग लगता है, यदि हाथ लम्बा और नुकीला हो तो काव्य या दर्शन-शास्त्र में मन लगता है ।
यदि यह रेखा बहुत अधिक झुकी हुई हो तो कल्पना-शक्ति बहुत अधिक बढी हुई होती है । ऐसा जातक कल्पना-जगत् में  अधिक रहता है तथा वास्तविक जगत् में कम । यदि 'प्रेम' हो गया तो उसे 'स्वर्ग' समझ बैठता है यदि निराशा हुई तो जीवन को बिल्कुल निस्सार समझने लगेगा । प्रेम के पीछे
लोक-व्यवहार की उपेक्षा कर बैठेगा । यदि झुकाव अधिक होते हुए चन्द्र-क्षेत्र पर शीर्ष-रेखा चली जावे और दो शाखामुक्त (एक प्रधान रेखा, एक शाखा) हो जावे ऐसे जातक की साहित्य तथा काव्य की ओर विशेष रुचि तथा इन विषयों में विशेष योग्यता भी होती है ।
यदि शीर्ष-रेखा बिलकुल सीधी और बहुत लम्बी हो और सारी हथेली पार कर मंगल के प्रथम क्षेत्र पर होती हुई हथेली के बाहर तक चली जावे तो यह प्रकट होता है कि जातक बहुत अधिक बुद्धिमान है किंतु उसकी बुद्धि स्वार्थ में अधिक लगेगी, परमार्थ में कम । यदि मगल-क्षेत्र साथ-ही-साथ उन्नत हो और अंगूठे का प्रथम पव बलिष्ठ हो तो जातक की किसी से शत्रुता हो जाने पर वह उससे बदला अवश्य लेगा और यदि अँगुष्ठ का द्वितीय पर्व भी लम्बा हो तो नीतिज्ञ होने से शत्रु पर विजयी भी होगा ।
यदि शीर्ष-रेखा मंगल के प्रथम क्षेत्र तक तो सीधी जावे और उस क्षेत्र पर जाकर कुछ ऊपर को मुड़ जावे तो जातक को व्यापार में अत्यधिक सफलता मिलती है और शीघ्र धन-संग्रह करने में सफल होता है ।
यदि शीर्ष-रेखा छोटी हो (अर्थात् हाथ के मध्य भाग तक ही हो) तो सांसारिक बातों में तो जातक चतुर होता कि किन्तु विद्या, कल्पना, दर्शन, साहित्य आदि में बुद्धि विशेष नहीं चलती ।
यदि शीर्ष-रेखा अत्यन्त छोटी हो और अन्य लक्षण भी यदि अत्पायु होना प्रकट करते हो तो जातक अत्पायु होता है और शिरो-रोग के कारण मृत्यु होती है ।
1) यदि बीच में कुछ ह्रदय-रेखा की ओर झुककर शीर्ष रेखा इस प्रकार सीधी जावे कि ह्रदय-रेखा से क्रमश: दूर होती जावे और हथेली के उस पार तक लम्बी हो तो बुद्धि और आत्मिक शक्ति दोनों सबल होती है ।
2) यदि शीर्ष-रेखा हृदय-रेखा के बहुत पास-पास जावे अर्थात् दोनों में क्या अन्तर हो तो दमा या high fever होता है । दोनों के बीच का स्थान संकीर्ण होने से जातक रोगी तथा हृदय का क्षुद्र होता है ।
3) यदि शीर्ष-रेखा हृदय-रेखा की ओर झुकती चली जावे और जीवन-रेखा से निकलकर स्वास्थ्य-रेखा इनको काटे तो मुच्छा रोग हो । पाचन-शक्ति बिगड़ने पर प्राय: यह रोग होता है ।
4) यदि शोर्ष-रेखा करीब-करीब शनि-क्षेत्र की सीध तक हृदय-रेखा की ओर झुकती चली आवे और फिर मुड़कर नीचे की ओर (चन्द्र-क्षेम की ओर) चली जावे तो जिनको जातक स्नेह करता है उनके कारण घोर मानसिक कष्ट प्रकट होता है ।
5) यदि शीर्ष-रेखा इतनी ऊंची हो कि उसके और ह्रदय- रेखा के बीच बहुत कम अन्तर रहे तो (1) यदि शीर्ष-रेखा दृढ़ और पुष्ट हो तो दिमाग दिल को काबू में रखेगा तथा (2) यदि
हृदय-रेखा दृढ़ और पुष्ट हो तो दिल दिमाग पर काबू पा लेगा ।

No comments: