Wednesday 23 September 2015

दशम भाव में शनि

दशम भाव में शनि की स्थिति अपना एक विशेष महत्व रखती है |ऐसे जातक के संपूर्ण कर्मक्षेत्र पर शनि के प्रभाव का सकारात्मक या नकारात्मक- दृष्टिगत होता है । वह श्रेष्ठ संपति वाला, सम्मानित, अनुचरवर्ग में नीति द्वारा प्रशंसित (पूजित), शत्रु संहारक तथा प्रवासकाल में उत्त्मोतम यश-भोग प्राप्त करने वाला होता है ।
दशम भावस्थ शनि का जातक मातृ-सुख से वंचित होकर अजा (बकरी) के दुग्ध पर जीवित रहता है और पितृ-स्नेह का विनाश होता है । वह मातृ-पितृ विहीन स्थिति में अपने श्रम पर विश्वास करता है । उसका वैभव भुजार्जित होता है । निरंतर श्रम से जातक अनेक प्रकार के सुखों का भोग करता है । वह राजगृह में विश्वसनीय होता है तथा कोषाधिकारी अथवा दंडाधिकारी सदृश महत्वपूर्ण पद प्राप्त करता है । वह पैतृक संपत्ति का उपभोग नहीं कर पाता, किंतु अपने उधोग से भौतिक सुख-यश प्राप्त करता है ।ऐसा जातक नीति-विशारद, विनम्र एवं सत्ताधिश का सचिव होता है। उसे अनेक श्रेष्ठ अधिकार प्राप्त होते हैं। दैवज्ञ महेश का कहना है कि ऐसा जातक अपने बुंद्धि कौशल से संपत्ति तथा सुयश प्राप्त करता है।
मकर,तुला,कुम्भ तथा मिथुन राशिस्थ एवं शुभ ग्रहयुत शनि श्रेष्ठ परिणाम देता है |ऐसे व्यक्ति विधि एवं न्यायालय के क्षेत्र में ख्याति, उच्च पद एवं धन प्राप्त करता है |निरंतर कर्मठता, उच्चाकांक्षा, विश्वसनीयता, भविष्य दृष्टि, सुव्यवस्था और शालीनता लक्षण प्रकट होते हैं । जातक का भाग्य सर्वतोमुखी होता है । वह अपने पुरुषार्थ एवं सौभाग्य से निरंतर विकास करता रहता है | प्रतिष्ठित और प्रभावी संस्थाओं के प्रमुख अधिकारी के रूप में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करता है | यदि शनि पापाक्रांत हो तो जातक पद के मद में उचित-अनुचित का विवेक नहीं रखता । वह आचारहीन, अविश्वसनीय तथा दुरभिसंधिकारी होता है । जितनी तीव्रता से उसका उत्थान होता है, उतनी गति से पतन भी हो जाता है ।
यदि शनि सूर्य, मंगल या गुरु से युत हो तो दुष्परिणामों में अत्यंत वृद्धि होती है। माता, पिता एवं पैतृक संपत्ति का सुख बाल्यकाल में समाप्त हो जाता है। आजीविका में निरंतर असफलता, योग्यता से निम्न पद, उच्चाधिकारी से विवाद एवं जनसेवा में अपयश जैसे फल प्राप्त होते हैं । आजीविका में निरंतर अवरोध उपस्थित होता है । सम्मान को संकट बना रहता है एवं जातक कभी स्वावलंबी नहीं हो पाता ।
यदि दशम भावस्थ शनि सूर्य अथवा चंद्रमा से आक्रांत हो तो हर प्रकार के अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं । इस भाव में मेष, वृश्चिक एवं मीन राशियों घोर अशुभ होती है।
ऐसे जातक को नौकरी में विविध अवरोध, बुद्धि-विभ्रम, दीर्घ व्याधि एवं दुर्भाग्य प्रकट होते है। वह आजीविका विहीन होने पर परिवार और समाज से अपमानित होता है। न्यूनतम आवश्यकताओं तथा सुविधाओँ के निमित भीषण संघर्ष होता है । पैतृक संपत्ति का किंचित सुख प्राप्त नहीं होता । भाग्योदय जन्मभूमि से दूर होता है ।
मेष, सिंह, धनु एवं मिथुनगत शनि गंभीर विद्या में प्रवीणता, अध्यापन, संशोधन एवं व्यापार की संभावना उजागर करता है। अन्य राशियों में प्रव्रज्या, लेखन, संपादन, धार्मिक नेतृत्व तथा ज्योतिष कार्य आदि प्रवृत्तियां मुखर रहती हैं । स्थानीय प्रशासनिक संस्थाओं की सदस्यता प्राप्त हो सकती है। मेष, सिंह, धनु, कर्क, वृश्चिक तथा मीनगत शनि रासायनिक या विधिक पूर्ण शिक्षा योग निर्मित करता है । ऐसा जातक न्यायालय, पुलिस, रोना अथवा तकनीकी कार्यों से आजीविका प्राप्त करता है । यदि शनि वृष, कन्या, तुला या कुंभगत्त हो तो जातक व्यवसाय में निपुण होता है, किंतु लेखन है उपदेश, अनुबंध, ठेकेदारी तथा आयातित वस्तु की दलाली से जीवन-यापन करता है । उसे पुत्र एवं पत्नी का सुख नहीं मिलता । उसके भीतर काम की ज्वाला धधकती रहती है।
यदि शनि का शुक्र और चंद्रमा से अप्रीतिकारक संबंध हो तो जातक अपनी आयु से बड़ी स्त्री से दैहिक संबंध स्थापित करता है । आयुवृद्धि के साथ कामोपभोग की वासना भी वेगवती हो जाती है। वस्त्र अव्यवस्थित रहते है। जातक अपनेपरिवार की अपेक्षा सामाजिक संचरण का अधिक ध्यान रखता है। सामाजिक कार्यों के निमित्त जातक अपने सुखों का उत्सर्ग कर देता है । यह उसके जीवन का
एक विशिष्ट उद्देश्य होता है, जिसकी पूर्ति में वह समग्र शक्ति लगा देता है|

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