Friday 25 September 2015

सूर्यरेखा

जिस प्रकार भाग्य-रेखा मणिबन्ध या चन्द्र-क्षेत्र या हथेली के मध्य से, या जीवन- रेखा से निकल कर शनि-क्षेत्र किया गुरु-क्षेत्र को जाती है उसी प्रकार सूर्य-रेखा मणिबन्ध या जीवन-रेखा से या चन्द्र किंवा भौम-क्षेत्र से या अनामिका उंगली और मणिबन्ध के बीच के किसी स्यान से निकलकर सूर्यक्षेत्र को जाती है । इसे सूर्य-रेखा कहते हैं ।
सूर्य-रेखा और भाग्य-रेखा के फलों में समानता
बहुत से हाथों में यह होती ही नहीं ; बहुत से हाथों में होती है किन्तु अस्पष्ट और छोटी । एक प्रकार से यह भाग्य-रेखा की सहायिका है । यदि भाग्य-रेखा टूटी हो और सूर्य-रेखा पुष्ट हो तो भाग्य-रेखा के दोष को कम करती है । जिस अवस्था में भाग्य-रेखा टूटी हो-उसी अवस्था में सूर्य-रेखा पुष्ट और सुन्दर हो तो निश्चयपूर्वक यह कहा जा सकता है कि जातक का वह जीवन- काल-भाग्य-रेखा के टूटे रहने पर भी यश और मान से पूर्ण होगा ।भाग्य-रेखा के खण्डित होने पर, उसके पास कोई सहायिका समानान्तर-रेखा थोडी दूर तक चलकर भाग्य-रेखा के खण्डित होने के दोष को जो दूर करती है, उसकी अपेक्षा स्वतन्त्र सूर्य-रेखा का कहीं अधिक महत्व है ।सीध में मणिबन्ध से-या इस बीच में कहीं से प्रारम्भ हो और सूर्य-क्षेत्र तक न पहुंचे, बीच में कहीं रुक जावे तो भी सूर्य-क्षेत्र के बिलकुल नीचे खडी रेखा होने से तो भी यह सूर्य-रेखा ही कहलायेगी किन्तु सूर्य-क्षेत्र पर न पहुंच पाने के कारण सूर्य-क्षेत्र के सब गुण पूर्ण मात्रा में ऐसी रेखा में नहीं मिलेगे । इसका फल श्रेष्ठ है । इस रेखा से मनुष्य विद्वान्,यशस्वी, पुण्यशील होता हैं ।

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