Friday 25 September 2015

भाग्य-रेखा का प्रारम्भिक स्थान

भाग्य-रेखा या तो ( १) मणिबन्ध से प्रारम्भ होती है, (२) या उससे कुछ हटकर हथेली के आरम्भ से, ( ३ ) या कुछ टेढी चन्द्र- क्षेत्र के नीचे के भाग से, (४) या शुक्रक्षेत्र से प्रारम्भ होकर टेडी हाथ के मध्य भाग में आती है और फिर ऊपर की ओर (उगलियाँ की ओर) जाती है, (५) या जीवन-रेखा के नीचे के भाग से भिडी हुई प्रारम्भ होकर शनि-क्षेत्र को जाती है । (६) या हथेली के मध्य से, (७) या केवल शनि क्षेत्र पर होती है ।
(१) यदि मणिबन्ध की तृतीय रेखा से प्रारम्भ हो तो जातक को कोई भारी शोक होगा । किन्तु यदि मणिबन्ध की प्रथम रेखा से प्रारम्भ हो तो बचपन से ही उसके कंधों पर अपना या अन्य कुटम्बी जनों का भी बोझा पड़ जायगा । यदि मनिबन्ध की प्रथम रेखा से प्रारम्भ होकर हृदय-रेखा तक आवे तो ऐसे जातक को जीवन में या तो प्रेम-सम्बन्ध के कारण जीवन-भर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है या अन्य रोग-चिह हों तो हृदय-रोग होता है । यदि मणिबन्ध से निकलकर यह सीधी मध्यमा उगली के तृतीय पर्व तक (पर्व के ऊपर) चली जाय तो ऐसे मनुष्य के भाग्य में गहरा उलट-फेर होता है । यदि हाथ के अन्य लक्षण शुभ हो तो भाग्योदय यदि अन्य लक्षण अशुभ हो तो इसके विपरीत समझना चाहिए ।
(2) यदि करतल के नीचे से प्रारम्भ हो तो जातक को स्वयं अपने उद्योग और परिश्रम से आर्थिक सफलता प्राप्त होगी ।
3) यदि चन्द्र-क्षेत्र से यह रेखा प्रारम्भ होकर शनि-क्षेत्र तक जावे तो ऐसे पुरुष का किसी रुत्री की सहायता या सहयोग से भाग्योदय होता है । बहुत बार यह भी देखा है कि ऐसे पुरुष अपनी ही पत्नी की उचित और नेक सलाह मानते है और उन्हें सफलता प्राप्त होती है । यदि किसी स्त्री के हाथ में ऐसी रेखा हो तो अच्छे कुल में विवाह के कारण उसका भाग्यन्दिय होगा । यदि वह स्त्री स्वयं नौकरी या अन्य कार्य करती है तो किसी पुरुष की सहायता से उसकी पदोन्नति होगी ।
4) यदि शुक-क्षेत्र से भाग्य-रेखा प्रारम्भ हो तो यह प्रकट करती है कि जातक का भाग्योदय होगा और उसे आर्थिक सफलता मिलेगी । इसमें उसके सगें-सरूत्रदृधी सहायक होगे ।
5) यादे जीवन-रेखा से भिड़कर प्रारम्भ हो तो जातक को अपने उद्योग से सफलता मिलती है परन्तु कुटुस्वी लोग उसे इतना योग्य बना देते है कि वह अपने पैरो पर खडा हो सके । किन्तु यदि जीवन-रेखा के पास-पास कुछ दूर तक भाग्य-रेखा रहे और उससे भिड़ी हुई न हो तो जीवन के प्राररिभक भाग में घर के लोगों का जातक पर विशेष प्रभाव रहेगा यह सूचित होता है ।
6) यदि भाग्य-रेखा हथेली के मध्य से प्रारम्भ हो तो समझना चाहिए कि जातक के जीवन का प्राररिभक भाग अच्छी स्थिति में नहीं बीता । यदि जीवन-रेखा का प्रारम्भिक भाग अस्वास्थ्य प्रकट करता हो और जिस अवस्था से भाग्य-रेखा प्रारम्भ हो रही हो उस अवस्था से जीवन-रेखा भी स्वास्थ्य प्रदर्शन कर रही हो तो समझना चाहिए कि स्वास्थ्य अच्छा न होने के कारण जीवन के शुरू में भाग्योदय नहीं हो सका । इसी प्रकार यदि जीवन-रेखा तो प्रारम्भ से ही अकली हो किन्तु शीर्ष-रेखा अच्छी न हो तो दिमागी कमजोरी या पढाई में असफलता के कारण प्रारम्भिक काल में भाग्य में रुकावट हुई । यदि जीवन-रेखा, शीर्ष-रेखा तथा हृदय-रेखा भी कोई खराबी प्रकट न करे तो हाथ के अन्य भागो को देखकर यह निश्चय करना उचित है कि किस कारण प्राररिभक अवस्था में अच्छा समय नहीं बीता । उदाहरण के लिए यदि बाये हाथ में तो काफी नीचे से भाग्य-रेखा प्रारम्भ हुई हो किन्तु दाहिने हाथ में हथेली के मध्य भाग से प्रारम्भ हुई हो तो यह अनुमान लगाना चाहिए कि जब जातक पैदा हुआ तब स्थिति ठीक थी किन्तु बाद में स्थिति बिगड़ गई । यह स्थिति क्यों बिगडी इसका कारण ढूँढना चाहिए । जीवन के प्रारम्भिक भाग में जातक का अपना उतना दोष नहीं होता है जितना परिस्थिति का प्रभाव । उदाहरण के लिए यदि शुक्रक्षेत्र पर जीवन-रेखा के समानान्तर मंगल के द्वितीय-क्षेत्र से कोई प्रभाव-रेखा आए और कुछ दूर चलने पर उसके अन्त में तारे का चिह्न हो तो यह माता या पिता, किसी के प्रभाव का अन्त हो गया अर्थात् उसकी मृत्यु हो गई, यह प्रकट करता है । ऐसे हाथ में यदि भाग्य-रेखा हथेली के मध्य से प्रारम्भ हो तो यह परिणाम निकालना चाहिए कि पिता की मृत्यु के कारण आर्थिक परिस्थिति कमजोर हो जाने से, जीवन के प्रारम्भिक भाग में रुकावट रहीं ।
(७) यदि केवल शनि-क्षेत्र पर ही भाग्य-रेखा हो तो समझना चाहिए कि जीवन का मध्य भाग बहुत कठिनता से बीता और भाग्योदय पचास वर्ष की अवस्था के बाद हुआ ।

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