Saturday 24 October 2015

गया मध्याष्टमी में पिृतऋण से उऋण होने के लिए करें गया श्राद्ध -

श्राद्ध कर्म की चर्चा हो तो बिहार स्थित गया का नाम बड़ी प्रमुखता व आदर से लिया जाता है। समूचे भारत वर्ष में हीं नहीं सम्पूर्ण विश्व में दो स्थान श्राद्ध तर्पण हेतु बहुत प्रसिद्द है बोध गया और विष्णुपद मन्दिर, विष्णुपद मंदिर वह स्थान जहां माना जाता है की स्वयं भगवान विष्णु के चरण उपस्थित है, जिसकी पूजा करने के लिए लोग देश के कोने-कोने से आते हैं दूसरा प्रमुख स्थान, गया जिसके लिए लोग दूर दूर से आते है वह स्थान एक नदी है, उसका नाम ‘फल्गु नदी’ है। ऐसा माना जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने स्वयं इस स्थान पर अपने पिता राजा दशरथ का पिंड दान किया था। माना जाता है कि इस स्थान पर आकर कोई भी व्यक्ति अपने पितरो के निमित्त पिंड दान करेगा तो उसके पितृ उससे तृप्त रहेगे और वह व्यक्ति अपने पितृऋण से उरिण हो जायेगा। इस स्थान का नाम ‘गया’ इसलिए रखा गया क्योंकि भगवान विष्णु ने यहीं के धरती पर असुर गयासुर का वध किया था। आज गया मध्याष्टमी है। इस तब से इस स्थान का नाम भारत के प्रमुख तीर्थस्थानो मे आता है और बड़ी ही श्रद्धा और आदर से ‘गया जी’ बोला जाता है। गया में श्राद्ध करने के बाद श्राद्धकर्म की पूर्णता हो जाती है तथा पितृ को शाश्वत् संतुष्टि मिलती है। मातृ-पितृभक्त प्रातःकाल फल्गु में स्नान कर तर्पण करें. यहीं पितरों के लिए पिंडदान करें. मंदिर परिसर में 16 वेदी तीर्थ पर श्राद्ध के लिए तिल, चावल, जौ, दूध, दही व घी का उपयोग कर पिंडदान के बाद अक्षयवट में पिंडदान करके सुफल लें.
Pt.P.S.Tripathi
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