Friday 30 October 2015

करवाचौथ का व्रत

करवाचौथ का व्रत
करवाचौथ का त्योहार हिन्दू धर्म में विवाहित स्त्रियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। सभी विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की लंबी आयु, सुखी जीवन और भाग्योदय के लिए व्रत करती हैं। कार्तिक माह की कृष्ण चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी के दिन किया जाने वाला यह करक चतुर्थी व्रत अखंड सौभाग्य की कामना के लिए स्त्रियां करती हैं। करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है। सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाने वाली आशीर्वाद रूपी अमूल्य भेंट होती है।
करवाचौथ पूजन-विधि:
सम्पूर्ण सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें। व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें तथा शृंगार भी कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-
मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री
प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।
करवाचौथ का व्रत पूरे दिन बिना कुछ खाए-पिए किया जाता है। दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें, इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है। आठ पूरियों की अठावरी, हलवा और पक्के पकवान बनाएं। उसके बाद पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेश जी बनाकर बिठाएं। ध्यान रहे गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का शृंगार करें। उसके बाद जल से भरा हुआ लोटा रखें।
बायना देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवे में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें तथा उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवा पर स्वस्तिक बना लें, अब गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परम्परानुसार पूजा करें तथा पति की दीर्घायु की कामना करें।
शाम को 'नम: शिवाय शर्वाण्य सौभाग्यं संतति शुभाम। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥ कहते हुए, करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवाचौथ की कथा कहें या सुनें। कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासू जी के पैर छू कर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें। तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्ध्य दें। इसके बाद छलनी से पति का दर्शन कर आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें। पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर अपने व्रत को संपन्न करें।
करवा चौथ की कथा:
इस पर्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें एक बहन और सात भाइयों की कथा बहुत प्रसिद्ध है। बहुत समय पहले की बात है एक लड़की के सात भाई थे। उसकी शादी एक राजा से हो गई। शादी के बाद पहले करवाचौथ पर वह अपने मायके आ गई। उसने करवाचौथ का व्रत रखा लेकिन पहला करवाचौथ होने की वजह से वह भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी और बड़ी बेसब्री से चांद निकलने की प्रतीक्षा कर रही थी।
उसके सातों भाई उसकी यह हालत देख कर परेशान हो गए। उन्होंने बहन का व्रत समाप्त कराने के लिए पीपल के पत्तों के पीछे से आईने में नकली चांद की छाया दिखा दी। बहन के व्रत समाप्त करते ही उसके पति की तबीयत खराब होने लगी। खबर सुन कर वह अपने ससुराल चली तो रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती जी के साथ मिले। पार्वती जी ने उसे बताया कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है क्योंकि उसने नकली चांद को देखकर व्रत समाप्त कर लिया था। यह सुनकर बहन ने अपने भाइयों की करनी के लिए क्षमा मांगी। पार्वती जी ने कहा कि तुम्हारा पति फिर से जीवित हो जाएगा लेकिन इसके लिए तुम्हें करवा चौथ का व्रत पूरे विधि-विधान से करना होगा। इसके बाद माता पार्वती ने करवा चौथ के व्रत की पूरी विधि बताई और उसी के अनुसार बहन ने फिर से व्रत किया और अपने पति को वापस प्राप्त कर लिया।
महाभारत से संबंधित अन्य पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आन पड़ते हैं। द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं।
चंद्रमा की पूजा का महत्व:
छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार जो चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। उसे जीवन में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता। उसे लंबी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है। व्रत का समापन चंद्रमा को अर्ध्य देकर किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से महिलाएं अखंड सौभाग्यवती होती हैं,और उनका पति दीर्घायु होता है। इस व्रत को पालन करने वाली पत्नी अपने पति के प्रति मर्यादा से,विनम्रता से,समर्पण के भाव से रहे और पति भी अपने समस्त कर्तव्य एवं धर्म का पालन सुचारु रुप से पालन करें, तो ऐसे दंपत्ति के जीवन में सभी सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहती है।

Pt.P.S.Tripathi
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