Tuesday 20 October 2015

द्वादश राशियों में शनि का फल

मेष से मीन तक कुल बारह राशियाँ है। इन बारह राशियों में स्थिर होकर शनि पृथक-पृथक परिणाम प्रदान करता है । शनि कौन-सी राशि में स्थित होकर क्या फल प्रदान करता है, यह निम्नवत रूप से जाना जा सकता है।
मेष राशिस्थ शनि
मेष राशि में शनि की उपस्थिति से जातक अत्यंत क्रोधी स्वभाव का और कुत्सित कर्मों में रुचि लेने वाला होता है । वह विवादों का अवसर खोजता है एवं व्यर्थ के परिश्रम से पराभूत तथा प्रकृति से अनियमित होता है । वह आत्म बलहीन और निर्बल होता है । किसी का एहसान जल्दी भुला देता है, गलत कामों में समय बर्बाद करता है एवं निरंतर अशांति का अनुभव करता है ।
वृष राशिस्थ शनि 
यदि शनि वृष राशि में हो तो जातक स्पष्टवादी, दुराचारी, मुर्ख, झूठा एवं विभिन्न कार्यों को करने में अग्रसर रहता है । उसमें दासवृत्ति को प्रमुखता होती है । ये स्त्रियों से उसकी विशेष आसक्ति रहती है । स्त्रियाँ भी उस पर सर्वस्व न्योछावर करने को उत्सुक रहती हैं । किन्तु ऐसे व्यक्ति पर यकीन करना मुश्किल होता है । '
मिथुन राशिस्थ शनि
यदि कुँडली में मिथुन राशि का शनि हो तो जातक यात्राबहुल जीवन व्यतीत करता है । निरंतर प्रवास एवं विदेशवास उसकी नियति होती है । जातक कपटी,दुराचारी और पाखंडी होता है तथा अपव्यय के कारण आर्थिक संबंधों से दुखी रहता है। वह उधोगी होता है। अपनी रसपूर्ण-अलंकऱयुक्त वाणी से जनप्रियता अर्जित करता है, राजकार्यों में दक्ष होता है, आडंबर में निपुणा होता है और जीवनचर्या में नितांत गोपनीयता रखता है । वह अत्यधिक कामातुर भी होता भी होता है |
कर्क राशिस्थ शनि
यदि शनि कर्क राशि में हो तो जातक बाल्यावस्था में अत्यंत दुखी रहता रहता है |माता का स्नेह उसे न के बराबर मिलता है। उसका स्वभाव चंचल और अस्थिर होता है । वह दूसरे व्यक्तियों के कार्यों में निरंतर अवरोध उत्पन्न करने वाला, अपनेकार्यों से ख्याति अर्जित करने वाला, आत्मीय-निकटस्थ जनों के प्रति किंचित असहिष्णु व्यवहार करने वाला, अंतर्विरोधी आचरण से आक्रांत, जीवन के मध्य भाग में पर्याप्त समृद्धि-सुयश संपन्न एवं स्पर्द्धायुक्त होता है । वह सुदर्शन और सौभाग्ययुक्त होने के बावजूद संघर्ष भरा बाल्यकाल व्यतीत करता है। इस समय व्याधियां उसे दुखी करती है। मातृ-सुख में क्षीणता होती है। पुर्वायु में आर्थिक विकलता रहती है । रुग्ण रहना नियति होती है । उदात कार्यो को वह तत्परता से पूर्ण करता है । यदि सप्तम भाव का प्रभाव हो तो द्वि-विवाह भी संभव है ।
सिंह राशिस्थ शनि
सिंह राशिस्थ शनि के प्रभाव से जातक अध्ययन, अनुसंधान एवं लेखन के विशिष्ट क्षेत्रों में निष्ठापूर्वक प्रवृत्त होता है । बहुज्ञ होने के बाबजूद वह कुचर्चा के वृत्त में रहता है । परिणाम स्वरूप उसमें रुक्षता अथवा उद्दंडता का अभ्युदय होता है । पत्नी-सुख क्षीण रहता है । बहदास सदृशा कार्यों से आजीविका का भीग करता है । निकटस्थ व्यक्तियों से रुष्ट रहता है एवं उनसे उपेक्षित होता है । संतति अल्प होती है । प्राय: विरोचीजनों से सुखोपभोग के साधन उपलब्ध करता है । उसे पत्नी पक्ष से समृद्धि और सम्मान प्राप्त हो सकता है।
कन्या राशिस्थ शनि
यदि शनि कन्या राशि में हो तो जातक अधम कोटि का जनहितकारी, नारी वर्ग के गाते भोगवादी दृष्टिकोण रखने वाला, मितभाषी, पवित्र स्थलों की यात्रा करने वाला और धन-संपन्न होता है। यदि शनि अशुभ प्रभाव में हो तो जातक नपुंसक जैसा रूपाकार धारण करने वाला, व्यभिचारी, शिल्पी एवं पान्नजीवी होता है । उसके स्वभाव में कुटिलता एवं जीवन में विशिष्ट महत्वाकांक्षा होती है । ऐसा जातक कृशकाय, मिव-विरोधी एवं संतोष से विरहित रहता है ।
तुला रांशिस्थ शनि
यदि शनि तुला राशि में हो तो जातक नेतृत्व वहन करने में सक्षम होता है ।वह सदैव अपनी उन्नति की ओर अग्रसर रहता है तथा अपने भुजबल से यश अजित करता है। ज्योतिविर्दों के अनुसार ऐसा जातक समृद्ध, नृपतुल्य जीवन का व्यतीत्तकर्ता एवं संपति संग्राहक होता है।
वृश्चिक राशिस्थ शनि
वृश्चिक राशि का शनि होने से जातक शुभ-पवित्र कृत्यों के संपादन में अरुचि प्रदर्शित करता है । वह कुटिल बुद्धि का होता है । उसे विष अथवा शस्त्र से भय होता है । उसकी प्रवृति प्रचंड, रोषयुक्त, लोभयुक्त, परधनापहारी एवं अहंयुफ्त होती है। वह अनेक अधम कृत्य करता है तथा क्षति, अति व्यय एवं व्याधि से आक्रांत रहता है । उसका जीवन अवरोधों से परिपूर्ण रहता है । पुत्र का आनंद बाधित होता है । उसके मन में दृढ़त्ता निवास करती है । वह शत्रुओँ को दुरभिसंधि से उद्विग्न रहता है । उसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दंड पीडित करते हैं ।
धनु राशिस्थ शनि
यदि जातक को जन्मकाल में धनु राशि का शनि हो तो वह अध्ययन, मनन, वाद-विवाद, शास्त्र ज्ञान एवं लौकिक ज्ञान आदि में निष्णात होता है । वह अपने उत्तम आचार-व्यवहार तथा प्रकृष्ट प्रवृत्तिवों से सुयश अर्जित करता है । उसका आत्मज इस क्रीर्तिध्वजा का सक्षम संवाहक होता है। वह मृदु और अल्प वार्तालाप करता है । आयु के उत्तरार्द्ध में अपार वैभव, प्रतिष्ठा एवं आदर अर्जित करता है । स्त्री और संतान का सूख भोगता है तथा सत्ताधीशों का प्रिय एवं विश्वस्त होता है। उसमें नेतृत्व करने की अपार क्षमता होती है ।
मकर राशिस्थ शनि
यदि कुंडली में मकर राशि का 'शनि हो तो जातक पर-स्त्रिगामी, दूसरों की संपत्ति यहाँ भूमि का उपभोग करने में समर्थ तथा दर्शनीय स्थलों और आभूषणों का अनुरागी होता है । वह बहुमुखी कलाओं का व्यवहारिक ज्ञान रखता है तथा दृढ़ उद्यमी होता है । विद्वानों का कहना है कि ऐसा जातक अपने वैदिक पांडित्य तथा शेल्पिक अभिज्ञान के लिए उत्तमोत्तम लोगों द्वारा अभिनंदित किया जाता है ।
कुंभ राशिस्थ शनि
यदि शनि कुंभ राशि में हो तो जातक व्यसनी, देबी-देवताओं पर श्रद्धा न रखने वाला, परिश्रमी तथा उन्मादी स्वभाव का होता है । विचारकों ने एक मत से कुंभ राशिस्थ शनि को अधिकतर गर्हित सिद्ध किया है । उनके मतानुसार ऐसा जातक मिथ्या भाषण में पटु, कुटिल, धूर्ताचारी और आलसी होता है । पर-स्त्रियों का भोग उसे आनंद देता है।
मीन राशिस्थ शनि
यदि कुंडली में मीन राशि का शनि हो तो जातक यज्ञादि शुभ कर्मों को संपादित करने में विशेष रुचि लेता है तथा शैल्पिक सामर्थ से युक्त होता है । यह नीति के गहन त्तत्वों का विवेचक, संपत्तिवान तथा कुल एवं आत्मीयजनों में शीर्षस्थ होता है । बहुमूल्य रत्नों का पारखी होता है । ऐसा व्यक्ति व्यावहारिकता में सक्षम, नृपतुल्य, तेजोगुणयुक्त, सर्वहित चिंतक, पुत्र कलत्र से सुखी, शासक का विश्वसनीय एवं सकारात्मक क्षमताओं की प्रशंसा करने वाला होता है ।

Pt.P.S.Tripathi
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