एक राशि में 9 नवमांश तथा 12 राशियों में 108, कुल एक सौ आठ नवाश होते हैं | प्रत्येक नवांश नक्षत्र के एक चरन या पाद से सम्बद्ध रहता है । जन्म लग्न एवं प्रशन लग्न के उदित नवांश (नक्षत्र चरण) के कर्मज व्याधियों जैसे किसी महारोग, कूष्ठादि या असाध्य रोग से ग्रसित होना, वक्या नपुंसक, निसंतान या कन्या संतति वाला होना, अतिनिर्धन होना, वार-बार गर्भस्राव या गर्भपात होना, पुत्रों एव कन्याओं का दुश्चरिन्द्र होना, पागल होना, अंधा लूला लंगड़। या विकलांग आदि होना आदि का बिचार किया जाता है । ये व्याधियाँ इस जन्म से पूर्ब के अनेक जन्म में दिये गए दुष्कर्मों का परिणाम होती हैं । नीचे 108 (एक सों आठ) नवाशों अथवा उदित लग्न के चरणों के आधार पर प्रारब्ध बिचार जिया जा रहा है । 27 (सत्ताईस) नक्षत्रों में प्रत्येक के 4-4 चरण होने से कुल 108 चरण होते हैं 1 इतने में 12 राशियों कं विमप्ता से प्रत्येक राशि के अधिकार से 9 (नौ) चरण आते है । इस प्रकार नक्षत्र चरण तथा नवांश एक ही बात है । चस्पा नक्षत्रों में होते है तथा नवांश राशि में होते हैं ।
मेष राशि (लग्न) का प्रथम नवांस या अश्विनी प्रथम चरण-यदि जन्म के समय मेष लग्न का प्रथम नवाश हो तो उस जातक कं संतति होकर यदि मर जाती है तथा पत्नी रोगिणी रहती है तब यह सब पूर्व के किसी उम्र से किसी ब्राह्मण श्री हत्या के लाभ करने के कारण होती है । दूसरों के पुत्रों को मारने के कारण ही उसके पुत्र मर जाते हैं ऐसा समझना चाहिए और उसका विधिपूर्वक प्रायश्चित करना चाहिए । प्रायश्चित्तरचरूप किसी विद्वान सदाचार ब्राहाण को स्वर्ण प्रतिभा का दान करना चाहिए तथा भगवान संकर का विधिपूर्वक पूजन भी करे और उनसे पूर्वजन्म कृत अपराधों के लिए क्षमा-प्रार्थना करनी चाहिए 1 ऐसा करने से न केवल कल्याण होगा वरन पति-पत्नी दोनों निरोग होकर श्रेष्ठ प्राणवान बनेंगे । परन्तु यह कार्य 45 वर्ष की आयु के पूर्व करें ।
2. मेष राशी (लग्न) का द्वितीय नवाश जा अश्विनी का द्वितीय चरण-यदि किसी जातक का उन का द्वितीय नवाश हो तथा जो निसंतान हो पत्नी रोगिणी हो तथा पति भी रोगी हो और स्वास, खाँसी, विषम ज्वर आदि के पीडित रहता हो तब यह उस जातक के द्वारा पूर्व-जन्म में स्वर्ण छोभ से मामा श्री हत्या किये जाने का फल जानना चाहिए । इसके प्रायश्चित के लिए हरिवंश पुराण को पढ़े तथा यज्ञ यागादिका एक्र स्वर्ण प्रतिमा सत्पात्र ब्राह्मण को दे ।
3. मेष राशि (लग्न) का तृतीय नवांश या अश्वनी का तृतीय चरण-जिस व्यक्ति की लग्न का तृतीय नवांश हो तथा यह व्यक्ति धन-धान्य सम्प्रन्न होने के पश्चात भी उसका उपभोग नही कर पाता है और उसकी रत्री मृत वत्स, या काकबंध्या हो तो पूर्व जन्म में किसी द्वेषी ब्राह्मण की हत्या करने के कारण यह फल भोगना पडता है प्रायश्चित हेतु जातक को पुत्र-कश्वामना से तालाब, कुएँ, बावडी, बगीचे आदि का निर्माण सार्वजनिक उपभोग के लिए करना चाहिए । जिससे जातक की पत्नी मृत वत्स वंध्यत्वादि दोषों से मुक्त होकर एक सुदर्शन पुत्र की माता बनती है|
4. मेष राशि (लग्न) का चतुर्थ नवांश या अश्विनी का चतुर्थ चरण-जिन लोगों की जन्म कुण्डली से लग्न का प्रथम नवांष हो तथा वह व्यक्ति अपने मित्रों के द्रोह के कास्प दुखित हो और पुत्र मृत्यु को प्राप्त हो गया हो, पत्नी काक बंध्यत्व को प्राप्त हो ऐसा व्यक्ति अपने पूर्वजन्म ने कृत ब्राह्मण को धोखा देने का परिणाम भुगतता है । इन पापी के शमन के लिए उस व्यक्ति को सुन्दर, दूध देने वाली सुसज्जित वत्स का दान करना चाहिए । ऐसा करने के पत्नी का गोपन सूट जाता है तथा पुत्र-पौत्र की परिवार में वृद्धि होती है ।
5. मेष लग्न का पंचम नवांश या भरणी का प्रथम चरण-जो व्यक्ति पूर्व-जन्म में ब्राह्मण होता है तथा अन्य ब्राह्मणी का व्यापार हेतु धन ग्रहण कर उसे लौटाता नहीं है अगले जन्म में वह व्यक्ति मेष के प्रथम नवांश से जन्म लेता है तथा उस जातक के पुत्र फलित नहीं होती है के एक ही संतति होती है जो कि विवाह पश्चात् विधवा हो जाती है । इन दुखों का शमन करने के लिए जातक को एक लक्ष सूर्य मंत्रों का जप तथा राजमार्ग, कुआँ, बावडी आदि का निर्माण कराना चाहिए ।
6. भरणी द्वितीय चरण या मेष लग्न का छठवां नवांश- जिन व्यक्ति पूर्व-जन्म में घर पर आए हुए अतिथि को लौटा देते हैं तथा भिक्षुक ब्राह्मणों का तिरस्कार करते हैँ वे दूसरे उस में शराबी. निसंतान तथा कुष्ठ रोग से पीडित होते हैं ऐसे व्यक्ति को सवालाख गायत्री जप, दशांश हवन तथा सुवर्णालंकार युक्त भी का किसी विद्वान ब्राह्मण को दान देना चाहिए ।
7. मेंष लगन का सातवाँ नवांश या भरणी तृतीय चरण-जिस व्यक्ति का जन्म मेष लग्न के सप्तम् नवांश का हो या भरणी के तृतीय नवांश का हो तथा उस व्यक्ति के घर पुत्र संतति उत्पन्न नही होती हो बार-बाए गर्भपात हो जाता हो तथा बेटी संतति ही उत्पत्र होती हो और शरीर से सदैव ज्वर रहता हो ऐसा व्यक्ति पूर्वजन्म म पशुओं को अकारण दुखित करने के परिणाम को भोगता है । प्रायश्चित के लिए उस व्यक्ति को भगवान निर्मित पाँच बैलों का दान वरना चाहिए और "ऊँ नम: शिवाय" इस मंत्र का एक लाख बार जाप करना अथवा करवाना चाहिए ।
3. मेष लग्न का अष्टम नवांस या भरणी का चतुर्थ चरण-जिसका मेष लग्न का आठवां नवांश हो या भरणी के चतुर्थ चरण का जन्म हो तथा वह जातक नीसंतान हो उसकी रची मृतवत्सा हो तथा अनेकानेक उदर रोगों से ग्रस्त हो एबं ज्वरादि से पीडित रहती हो ऐसा व्यक्ति पूर्व जन्म में शावकों सहित मृगों का भक्षग्ना तथा पक्षियों का भक्षणा करने कै फ़ल को भोगता है ऐसे जातक को प्रायश्चित रूप में सोने व चाँदी के मृग व पक्षियों का दान करना चाहिए । ऐसा करने से वह पुत्र संतति वाला तथा निरोगी हो जाता है ।
9. मेष लग्न का अन्तिम नवांश तथा द्वितीय प्रथम चरण-मेष लग्न के अन्तिम नवांश या कृतिका के प्रथम चरण से जन्मा व्यक्ति जो कि बहुत धन-धान्य युक्त हो तथा अपुबी हो ऐसा व्यक्ति पूर्व जन्म में गर्भिणी हिरणी की हत्या कर उसका माँस भक्षण करने के फल को भोगता है । पापों का शमन करने के लिए जातक को एक लाख गायत्री मंत्र का जप तथा दशांश हवन करना चाहिए और स्वर्ण की शावक सहित हिरणी का दान किसी सत्पात्र ब्राह्मण को करना चाहिए ।
मेष राशि (लग्न) का प्रथम नवांस या अश्विनी प्रथम चरण-यदि जन्म के समय मेष लग्न का प्रथम नवाश हो तो उस जातक कं संतति होकर यदि मर जाती है तथा पत्नी रोगिणी रहती है तब यह सब पूर्व के किसी उम्र से किसी ब्राह्मण श्री हत्या के लाभ करने के कारण होती है । दूसरों के पुत्रों को मारने के कारण ही उसके पुत्र मर जाते हैं ऐसा समझना चाहिए और उसका विधिपूर्वक प्रायश्चित करना चाहिए । प्रायश्चित्तरचरूप किसी विद्वान सदाचार ब्राहाण को स्वर्ण प्रतिभा का दान करना चाहिए तथा भगवान संकर का विधिपूर्वक पूजन भी करे और उनसे पूर्वजन्म कृत अपराधों के लिए क्षमा-प्रार्थना करनी चाहिए 1 ऐसा करने से न केवल कल्याण होगा वरन पति-पत्नी दोनों निरोग होकर श्रेष्ठ प्राणवान बनेंगे । परन्तु यह कार्य 45 वर्ष की आयु के पूर्व करें ।
2. मेष राशी (लग्न) का द्वितीय नवाश जा अश्विनी का द्वितीय चरण-यदि किसी जातक का उन का द्वितीय नवाश हो तथा जो निसंतान हो पत्नी रोगिणी हो तथा पति भी रोगी हो और स्वास, खाँसी, विषम ज्वर आदि के पीडित रहता हो तब यह उस जातक के द्वारा पूर्व-जन्म में स्वर्ण छोभ से मामा श्री हत्या किये जाने का फल जानना चाहिए । इसके प्रायश्चित के लिए हरिवंश पुराण को पढ़े तथा यज्ञ यागादिका एक्र स्वर्ण प्रतिमा सत्पात्र ब्राह्मण को दे ।
3. मेष राशि (लग्न) का तृतीय नवांश या अश्वनी का तृतीय चरण-जिस व्यक्ति की लग्न का तृतीय नवांश हो तथा यह व्यक्ति धन-धान्य सम्प्रन्न होने के पश्चात भी उसका उपभोग नही कर पाता है और उसकी रत्री मृत वत्स, या काकबंध्या हो तो पूर्व जन्म में किसी द्वेषी ब्राह्मण की हत्या करने के कारण यह फल भोगना पडता है प्रायश्चित हेतु जातक को पुत्र-कश्वामना से तालाब, कुएँ, बावडी, बगीचे आदि का निर्माण सार्वजनिक उपभोग के लिए करना चाहिए । जिससे जातक की पत्नी मृत वत्स वंध्यत्वादि दोषों से मुक्त होकर एक सुदर्शन पुत्र की माता बनती है|
4. मेष राशि (लग्न) का चतुर्थ नवांश या अश्विनी का चतुर्थ चरण-जिन लोगों की जन्म कुण्डली से लग्न का प्रथम नवांष हो तथा वह व्यक्ति अपने मित्रों के द्रोह के कास्प दुखित हो और पुत्र मृत्यु को प्राप्त हो गया हो, पत्नी काक बंध्यत्व को प्राप्त हो ऐसा व्यक्ति अपने पूर्वजन्म ने कृत ब्राह्मण को धोखा देने का परिणाम भुगतता है । इन पापी के शमन के लिए उस व्यक्ति को सुन्दर, दूध देने वाली सुसज्जित वत्स का दान करना चाहिए । ऐसा करने के पत्नी का गोपन सूट जाता है तथा पुत्र-पौत्र की परिवार में वृद्धि होती है ।
5. मेष लग्न का पंचम नवांश या भरणी का प्रथम चरण-जो व्यक्ति पूर्व-जन्म में ब्राह्मण होता है तथा अन्य ब्राह्मणी का व्यापार हेतु धन ग्रहण कर उसे लौटाता नहीं है अगले जन्म में वह व्यक्ति मेष के प्रथम नवांश से जन्म लेता है तथा उस जातक के पुत्र फलित नहीं होती है के एक ही संतति होती है जो कि विवाह पश्चात् विधवा हो जाती है । इन दुखों का शमन करने के लिए जातक को एक लक्ष सूर्य मंत्रों का जप तथा राजमार्ग, कुआँ, बावडी आदि का निर्माण कराना चाहिए ।
6. भरणी द्वितीय चरण या मेष लग्न का छठवां नवांश- जिन व्यक्ति पूर्व-जन्म में घर पर आए हुए अतिथि को लौटा देते हैं तथा भिक्षुक ब्राह्मणों का तिरस्कार करते हैँ वे दूसरे उस में शराबी. निसंतान तथा कुष्ठ रोग से पीडित होते हैं ऐसे व्यक्ति को सवालाख गायत्री जप, दशांश हवन तथा सुवर्णालंकार युक्त भी का किसी विद्वान ब्राह्मण को दान देना चाहिए ।
7. मेंष लगन का सातवाँ नवांश या भरणी तृतीय चरण-जिस व्यक्ति का जन्म मेष लग्न के सप्तम् नवांश का हो या भरणी के तृतीय नवांश का हो तथा उस व्यक्ति के घर पुत्र संतति उत्पन्न नही होती हो बार-बाए गर्भपात हो जाता हो तथा बेटी संतति ही उत्पत्र होती हो और शरीर से सदैव ज्वर रहता हो ऐसा व्यक्ति पूर्वजन्म म पशुओं को अकारण दुखित करने के परिणाम को भोगता है । प्रायश्चित के लिए उस व्यक्ति को भगवान निर्मित पाँच बैलों का दान वरना चाहिए और "ऊँ नम: शिवाय" इस मंत्र का एक लाख बार जाप करना अथवा करवाना चाहिए ।
3. मेष लग्न का अष्टम नवांस या भरणी का चतुर्थ चरण-जिसका मेष लग्न का आठवां नवांश हो या भरणी के चतुर्थ चरण का जन्म हो तथा वह जातक नीसंतान हो उसकी रची मृतवत्सा हो तथा अनेकानेक उदर रोगों से ग्रस्त हो एबं ज्वरादि से पीडित रहती हो ऐसा व्यक्ति पूर्व जन्म में शावकों सहित मृगों का भक्षग्ना तथा पक्षियों का भक्षणा करने कै फ़ल को भोगता है ऐसे जातक को प्रायश्चित रूप में सोने व चाँदी के मृग व पक्षियों का दान करना चाहिए । ऐसा करने से वह पुत्र संतति वाला तथा निरोगी हो जाता है ।
9. मेष लग्न का अन्तिम नवांश तथा द्वितीय प्रथम चरण-मेष लग्न के अन्तिम नवांश या कृतिका के प्रथम चरण से जन्मा व्यक्ति जो कि बहुत धन-धान्य युक्त हो तथा अपुबी हो ऐसा व्यक्ति पूर्व जन्म में गर्भिणी हिरणी की हत्या कर उसका माँस भक्षण करने के फल को भोगता है । पापों का शमन करने के लिए जातक को एक लाख गायत्री मंत्र का जप तथा दशांश हवन करना चाहिए और स्वर्ण की शावक सहित हिरणी का दान किसी सत्पात्र ब्राह्मण को करना चाहिए ।
No comments:
Post a Comment