तिजोरी से सम्बन्धित वास्तु के सिद्धातों का उल्लेख करने से पहले नकदी, घन-दोलत का सही अर्थ समझना उचित रहेगा। हिन्दी भाषा में दौलत को 'धन' और संस्कृत में 'अर्थ' कहते हैं। गणित में धन शब्द को जमा (है) के चिह्न के लिए भी प्रयोग करते है। इसलिए जो भी चीज जोड़ने योग्य है, सकारात्मक है शुभ है या इच्छित है- वह धन कहलाती है। धन का अर्थ है- जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारी प्राप्तियाँ। संस्कृत के शास्वीय ग्रंथ विभिन्न प्रकार के धन के उल्लेखों से भरे पहुँ है; जैसे रूपधन (सुंदरता रूपी धन), यौवनघन (जवानी रूपी धन) पुत्रधन (संतान रूपी धन) , स्वीघन (जीवनसाथी रूपी धन) हैं गोधन ( पालतू पशु रूपी धन) आदि। राजस्थान में पति को अवसर 'धणी' कहा जाता है जिसका अर्थ हुआ- ऐसा व्यक्ति जिसके पास स्वी रूपी धन है। जीवन में प्रत्येक अर्थवान् वस्तु या धन है। अत: धन का अर्थ लेवल मात्र करेंसी नोट या मुद्रा की नहीं है। ज्योतिष अनुसार, कुंडली के द्वितीय भाव को धनस्थान कहते है। इसी भाव से खान-पन और भोज्य पदार्थों आदि का भी विचार किया जाता है। हमारा मूलभूत धन जैन और खाद्य वस्तुएँ है। प्राचीन काल में जब कभी मनुष्य जंगलों में रहता था तो चौवन रक्षा के संघर्ष में भोजन ही उसका मुख्य धन था। जन्मपवी में द्वितीय भाव ईशान के पूर्व कौ और पड़ता है। इसलिए मिठाइयाँ, पेय पदार्थ , फल , सब्जियाँ, शर्बत, मसाले और अचार आदि खाने-पीने की वस्तुएँ इंसां में रखनी चाहिए। इनमें जल्दी ख़राब होने वाली वस्तुएँ ईशान के उत्तर की और रखें। अन्य खाद्य वस्तुएँ जिन्हें मात्रा में सौर ऊजा की जरूरत होती है हैं ईशान के पूर्व को और रखें। ये खाद्य पदार्थ ही हमारे मूलभूत धन है। आँरिसीजन और पेयजल के पश्चात भोजन ही हमारी मूल आवश्यकता है। करेंसी मुद्रा, गहने-जेवरात और अन्य मूल्यवान वस्तुओं के लिए नैव्रर्द्धत्य सबसे उत्तम है। एकात, सुरक्षा और ' की इन वस्तुओं की मुख्य आवश्यकताएँ है। उत्तर में कुबेर का निवास है। वह सभी प्रकार के संचित धन का स्वामी इसलिए कई तथाकथित वास्तुशास्त्री नकदी और गहनों को उतर दिशा में रखने की वकालत करते है । उतर दिशा और खुली रखी जाती है और यहाँ कोई भी आसानी से पहुँच सकता है। इस प्रकार मूल्यवान वस्तुओ की सुरक्षा संरक्षा का हमारा उद्धेश्य पूरा नहीं हो पाता। उसी दिशा होने के कारण उतर दिशा में पहले खान-पान की ऐसी रखी जाती थी जो जल्दी ख़राब हो जाती थीं। कुबेर को घटोदर " में दर्शाया गया है। वह भोजन-अटूट व्यक्ति है। तिजोरी गृहस्वामी के शयन कक्ष में रखें। यह स्थान गोपनीय, सुरक्षित व संरक्षित हो। तिजोरी घर के मुख्य "अधिकतम दूरी पर हो और अजनबी लोगों को कभी न दिख पाए। तिजोरी को मज़बूत, समतल आधार पर रखें। ' कभी भी टेढी नहीं होनी चाहिए। समतल आधार पर चार पायों पर खडी तिजोरी स्थिर रहती है और इसी प्रकार सचित धन भी स्थिर रहता है। आपकी आधिक स्थिति भी स्थिर रहती है|
इस क्षेत्र की दीवारों और टाइलों का रंग पीला रखें। पीला रंग पके अनाजों व फलों और सोने का रग है। इससे धन में बृद्धि होती है। इस क्षेत्र में मकडी के जालों से दरिद्रता आती है। तिजोरी को शहतीर के नीचे न रखें। इससे आपके स्रोतों का शमन होता है। जो की और बही संस्थाओं का मुख्य द्वार से अधिकतम दूरी पर होना चाहिए। जहाँ तक हो सके, इसे नेतृत्व में रखें। तिजोरी की पीठ नेतृत्व की और रखे ताकि इसका मुख उत्तर या पूर्व की और खुले। रूम का दरवाजा हमेशा उत्तर या पूर्व दिशा में रखें। उत्तर या पूर्व दिशा में कुछ केंद्र पर एक खिड़की बनाएँ। इस कमरे की ऊँचाई अन्य कमरों से कम न हो।
No comments:
Post a Comment