Showing posts with label Pt.p.s.tripathi. Show all posts
Showing posts with label Pt.p.s.tripathi. Show all posts

Friday 21 August 2015

वृश्चिक राशिफल 2015

वृश्चिक
वृश्चिक राशिफल 2015- स्वभाव
आप स्वतन्त्र रुप से कार्य करने की चाह होने के कारण आप अपने कार्यो में दूसरों का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करते है। आप एक अच्छे वक्ता और लेखक हो सकते हैं। आप उदार स्वभाव के होने के साथ-साथ कुछ व्यंग्यात्मक और आवेगी भी हो सकते हैं। आप अत्यधिक चंचल प्रवृति के व्यक्ति हैं और इस कारण आप प्यार में उत्साहित रहते हैं। आप परम्पराओं में एक हद तक ही विश्वास रखते हैं।
वृश्चिक राशिफल 2015- परिवार
यह वर्ष आपके पारिवारिक मामलों के लिए मिलेजुले परिणाम देने वाला रहेगा। साल के पहले भाग में परिवार की किसी स्त्री से आपके मतभेद हो सकते हैं अथवा संबंध बिगड सकते हैं। परिवार के कुछ लोगो का बर्ताव आपके साथ प्रतिकूल भी रह सकता है। यहां तक कि मित्र और रिश्तेदार अपनी कही बातों से मुकर सकते हैं। अत: परिवार से जुडे हर मामले में बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है। हालांकि साल के दूसरे भाग में स्थितियां धीरे-धीरे आपके पक्ष में आने लगेंगी। आप किसी धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन करवा सकते हैं या कोई शुभ कार्य हो सकता है जिसमें परिवार के सभी लोग एकत्र होकर वैमनस्य को भूल जाएंगे।
वृश्चिक राशिफल 2015- स्वास्थ्य
स्वास्थ्य के लिए यह वर्ष अनुकूल नहीं है। अत: स्वास्थ्य को लेकर किसी प्रकार की लापरवाही उचित नहीं होगी। एकादश भाव में राहु और लग्प का शनि आपको शारीरिक कष्ट देने का संकेत है। अत: साल के पहले भाग में कुछ न कुछ शारीरिक परेशानी रह सकती है। मानसिक चिन्ताओं के कारण तकलीफ सम्भव है या किसी पारिवारिक सदस्य को लेकर चिंता रह सकती है। हालांकि साल के दूसरे भाग में न केवल बृहस्पति से अनुकूलता जिससे अनुकूल फल प्राप्त होने लगेगा। परिणाम स्वरूप आप शुकून का अनुभव करेंगे।
वृश्चिक राशिफल 2015- कार्यक्षेत्र
साल की शुरुआत में कार्यक्षेत्र में कुछ व्यवधान रह सकते हैं। यदि आप कुछ नया करने जा रहे हैं तो उस क्षेत्र से जुडे अनुभवी लोगों की सलाह जरूर लें। यदि किसी ऐसे काम का प्रस्ताव आ रहा है जिसमें फटाफट पैसे बनने की बात कही जा रही हो तो सावधान हो जाएं यह धोखा भी हो सकता है। यदि आप का व्यापार भागीदारी में है तो सम्बंधों को बिगडऩे न दें। कुछ रुकावटे आने के बावजूद भी बीच-बीच में कुछ काम बनते रहेंगे। साल के दूसरे भाग में मेहनत का फल जरूर मिलेगा फिऱ भी जोखिम उठाने के लिये यह समय उपयुक्त नहीं है।
वृश्चिक राशिफल 2015- धन
साल की शुरुआत में धन को लेकर निरंतरता नहीं बन पाएगी। लिेकिन जोखिम उठाने के लिये समय ठीक नहीं है। इस समय पूंजी निवेश करने से मन चाहा परिणाम प्राप्त नहीं होगा। अत: शीघ्र पैसा बनाने के तरीकों पर अच्छी तरह सोच विचार कर अमल करें। यदि किसी को पैसे उधार दे रखे हैं तो उसे प्राप्त करने में कुछ कठिनाइयां आ सकती हैं। हालांकि साल के दूसरे भाग में स्थितियां बेहतर होंगी और भाग दौड़ रंग लाएगी।
वृश्चिक राशिफल 2015- विद्या
साल का पहला भाग विद्यार्थियों के लिए कडी मेहनत करने पर थोडी सफलता लेकर आया है। यदि शिक्षा के संदर्भ में कोई लुभावना प्रस्ताव मिल रहा है तो यह धोखा भी हो सकता है अत: इनसे सावधान रहें। साल के दूसरे भाग में दर्शन व साहित्य के विद्यार्थियों को अच्छी सफलता मिेलेगी। यदि आप दूर देश में जाकर शिक्षा लेना चाह रहे हैं तो उसके लिए भी समय अनुकूल रहेगा।
वृश्चिक राशिफल 2015- उपाय
1. प्रात:काल उठकर मंत्रजाप करें।
2. हनुमान जी को सिंदूर और चोला चढ़ाएं।
3. तंदूर की मीठी रोटी बनाकर गरीबों को खिलाएं।
4. पीपल और कीकर के वृक्ष को कभी न काटें।
5. किसी से कुछ भी मुफ्त में न लें।
6. बड़े भाई की अवहेलना न करें।
Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions

कन्या राशिफल 2015

कन्या
कन्या राशिफल 2015- स्वभाव
आप मूल रूप से बौद्धिकता और ज्ञान से परिपूर्ण है। आपकी रुचि कला और साहित्य में हो सकती है। आप विवेकी, आर्थिक, कूटनीतिक और चतुर हैं। आपके व्यक्तित्व में आकर्षण का भाव है इस कारण लोग आपसे जल्द ही प्रभावित हो जाते हैं आपको भले-बुरे की पहचान है तथा स्वभाव से आप अन्तर्मुखी है। आप एक अच्छे लेखक, संगीत और ललित कला से प्यार करने वाले हो सकते हैं।
कन्या राशिफल 2015- परिवार
पारिवारिक दृष्टिकोण से यह वर्ष बहुत बढिय़ा रहेगा। आपको परिवारिक माहौल से सहारा मिलेगा। परिवार में सुख और शान्ति का वातावरण बनेगा। कोई मांगलिक कार्य सम्पन्न हो सकता है। भाई-बहनों से आपके सम्बंध और मधुर होंगे। उनकी उन्नति होगी। परिवार के सभी सदस्यों का वर्ताव आपके प्रति बहुत ही अच्छा रहेगा। लेकिन दूसरे भाव में शनि की उपस्थिति बीच-बीच में कुछ पारिवारिक मतभेद भी दे सकती है। हालांकि इस वर्ष यदि परिवार में कोई आदालती केश चल रहा होगा तो उससे छुटकारा मिलने की अच्छी उम्मीद है।
कन्या राशिफल 2015- स्वास्थ्य
स्वास्थ्य के लिए भी यह वर्ष अनुकूलता लिए हुए है। यदि आप किसी पुरानी बीमारी से परेशान हैं तो इस वर्ष आपको उससे छुटकारा मिल सकता है। हां यदि किसी कारणवश आप बीमार भी होते हैं अथवा मौसम जनित बीमारियों से आपको परेशानी होती है तो आपकी सेहत शीघ्र ही सुधर जाएगी। लेकिन अपने माता पिता के स्वास्थ्य का खयाल रखना जरूरी होगा। बहुत सम्भव है कि समय-समय पर आप जलवायु परिवर्तन करने जाते रहेंगे। मन को एकाग्र करने के लिए आप समाधि और योग क्रियाओं का सहयोग भी ले सकते हैं।
कन्या राशिफल 2015- कार्यक्षेत्र
इस साल आप व्यापार नौकरी या धन्धे में कुछ विशेष करेंगे। अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण विपरीत परिस्थिति में भी आपको मति भ्रम नहीं होगा और सही काम करेंगे। किसी अनुभवी व्यक्ति के मिलने के आपके काम धन्धे को एक नया अनुभव मिलेगा। व्यापार और नौकरी के सिलसिले में भ्रमण भी होगा। आपके कार्यक्षेत्र और व्यापार का विस्तार होगा और पद बढ़ेगा। नौकरी में भी तरक्की मिलने के मजबूत योगायोग हैं। इस वर्ष आप सफलता के साथ-साथ सम्मान भी प्राप्त करेंगे।
कन्या राशिफल 2015- धन
इस पूरे वर्ष आपकी आमदनी साधारण रूप से अच्छी रहेगी। यदि आपका पैसा कहीं रुका हुआ है तो थोडे से प्रयास से उसकी प्राप्ति हो सकती है। वहीं वर्ष के दूसरे भाग में आमदनी के किसी नए श्रोत के मिलने की भी उम्मीद है। इससे आपकी आर्थिक स्थिति और भी मजबूत होगी। विदेश के माध्यम से या किसी दूर की यात्रा के माध्यम से भी धनार्जन होने के योग बन रहे हैं।
कन्या राशिफल 2015- विद्या
अध्ययन के लिए यह वर्ष अनुकूल रहेगा। यदि आप कोई व्यसायिक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं तो उसमें सफलता मिलने की अच्छी उम्मीद है। इस वर्ष आप अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कडी से कडी मेहनत करने को तैयार हैं। यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेना चाह रहे हैं उसके लिए भी समय अनुकूल है यदि आप किसी नए शिक्षण संस्थान की तलास में हैं तो इस वर्ष आपको एक अच्छे संस्थान की प्राप्ति होगी जहां से शिक्षा लेने के बाद आप को नई और सही दिशा की प्राप्ति होगी। जो लोग दूर देश में जाकर शिक्षा लेना चाह रहे हैं, उनके लिए भी समय अनुकूल है।
कन्या राशिफल 2015- उपाय
1. कभी भी अपशब्द न बोलें न क्रोध करें।
2. दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
3. छोटी कन्याओं से आशीर्वाद लें।
4. सूक्ष्म जीवों की सेवा करें।
5. चांदी का छल्ला धारण करें।
6. शनि शांति का उपचार करें।



Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
Feel free to ask any questions 

Friday 5 June 2015

क्या आपकी शादी लगकर टूट रही है???



विवाह की उम्र में अच्छा जीवनसाथी मिल जायें और विवाह तय हो जाएॅ। इससे ज्यादा खुशी का पल पूरे परिवार के कुछ नहीं होता किंतु कई बार सब कुछ अच्छा चलते चलते अचानक किसी मामूली बात पर भी रिश्ता टूट जाता है। सामाजिक तौर पर कारण चाहे जो भी बताया जाए, किंतु सच है कि ज्योतिषीय दृष्टि से देखा जाए तो किसी जातक की कुंडली में अगर लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम या दसम स्थान पर शनि हो अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा जैसे सौम्य ग्रह शनि से आक्रांत हो अथवा शनि की दशा चल रही हो तो रिश्ता तय होकर टूट सकता है। अतः कुंडली का विवेचन किसी विद्धान ज्योतिष से कराकर पहले ग्रह शांति कराना चाहिए, इसके लिए लड़के का अर्क विवाह के साथ कात्यायनी मंत्र का जाप और लड़की का कुंभ विवाह के साथ मंगल का व्रत करने से विवाह लगने में आने वाली परेशानी से बचा जा सकता है साथ ही योग्य जीवनसाथी का साथ मिलने के योग बनते हैं।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


वट सावित्री व्रत-स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व



स्कन्दपुराण में कहा गया है-
अश्वत्थरूपी विष्णुः स्याद्वरूपी शिवो यतः
अर्थात् पीपलरूपी विष्णु व जटारूपी शिव हैं। वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा जी, तने में विष्णु और डालियों एवं पत्तों में शिव का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा कहने और सुनने से मनोकामना पूरी होती है। अतः किसी मंदिर में या बरगद (वट) के पेड़ के नीचे बैठ कर इस दिन व्रत पूजा करने का विधान है। अग्निपुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है। इसीलिए संतान के लिए इच्छित लोग इसकी पूजा करते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत रखकर वट वृक्ष के नीचे सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करने से पति की आयु लंबी होती है और संतान सुख प्राप्त होता है। मान्यता है कि इसी दिन सावित्री ने यमराज के फंदे से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि को हिन्दू महिलाएं वट सावित्री का व्रत रखती हैं । भारतीय धर्म में वट सावित्री अमावस्या स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है। मूलतः यह व्रत-पूजन सौभाग्यवती स्त्रियों का है।
वट सावित्री व्रत और पूजन---

सुहागन स्त्रियां वट सावित्री व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें। वट वृक्ष की जड़ को दूध और जल से सींचें। इसके बाद कच्चे सूत को हल्दी में रंगकर वट वृक्ष में लपेटते हुए कम से कम तीन बार परिक्रमा करें। पूजा के बाद सावित्री और यमराज से पति की लंबी आयु एवं संतान हेतु प्रार्थना करें। व्रती को दिन में एक बार मीठा भोजन करना चाहिए। इस वर्ष वट सावित्री का व्रत रविवार (17  मई, 2015 ) को भरणी नक्षत्र और वृषभ राशि में हैं।

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in



मधुमेह की बीमारी और ज्योतिषीय वजह-

Image result for diabetes clipart
मधुमेह या चीनी की बीमारी एक खतरनाक रोग है। बीमारी में शरीर में अग्नाशय द्वारा इंसुलिन का स्त्राव कम हो जाने के कारण होती है। रक्त में ग्लूकोज स्तर बढ़ जाता है, साथ ही इन मरीजों में रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा के अवयव भी असामान्य हो जाते हैं। किंतु इसका ज्योतिषीय कारण भी है। अगर किसी जातक की कुंडली में शुक्र शुभ भाव में हो और शुक्र की दषा चले अथवा शुक्र क्रूर ग्रहों से पापाक्रांत हो जाए तो शुक्र या राहु की दषा में मधुमेह जैसी बीमारी की शुरूआत होती है। अतः अपनी कुंडली का समय पूर्व विष्लेषण कराकर अपने ग्रह दषाओं का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। अगर आपकी कुंडली में शुक्र इत्यादि ग्रहों की उपयुक्त स्थिति बन रही हो तो चिकित्सकीय निदान के साथ आवष्यक ज्योतिषीय उपाय भी आजमाना चाहिए जिससे बेहतर स्वास्थ्य एवं सुख की प्राप्ति हो सके।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


अब शनि का ही भरोसा -

Image result for shani dev

वर्तमान परिवेष में जब शुचिता और न्याय का अपना कार्य प्रषासन स्तर पर संभव नहीं और लोगो का भरोसा शासन और प्रषासन से उठता जा रहा है। वहीं पर कुछ समय से लगातार वरिष्ठ और ताकतवर लोगों के न्यायिक प्रक्रिया द्वारा दोषी ठहराये जाने से ये साबित होता है कि अब धरातल पर न्याय और शुचिता स्थापित करने में कानून व्यवस्था को आगे आना ही पड़ेगा। किंतु कानून अपना कार्य भी तब ही कर पा रहा है जब दंडाधिकारी की महती भूमिका का निर्वाह संभव है अर्थात् तुला एवं वृष्चिक का शनि अब अपना काम कर रहा है और न्याय की धारा बहती दिख रही है। अतः जिस ने भी अन्याय किया या अन्याय का साथ दिया उसे जरूर ही अब सोचना चाहिए। शनि ने अपना दंड उठा लिया है...सावधान वृष्चिक का शनि अपनी चाल से चल


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


Wednesday 3 June 2015

क्या करें कि डिग्री प्राप्ति के बाद जाॅब मिल जाये -

Image result for job after college cartoon
सभी लोगों की कामना होती है कि उसकी पढ़ाई पूरी होते ही या उसके बच्चे की डिग्री आते ही उसे एक अच्छी जाॅब मिल जायें किंतु इसमें कोई सफल होता है तो कई बार लोगों को असफलता भी हाथ लगती है। पढ़ाई समाप्त करते ही किसी जातक के पास आय का साधन कितना तथा कैसा होगा इसकी पूरी जानकारी उस व्यक्ति की कुंडली तथा उस समय के ग्रह गोचर से जाना जा सकता है। कुंडली में दूसरे स्थान से धन की स्थिति, तीसरे स्थान से मन की स्थिति, दसम स्थान से कर्म की स्थिति तथा एकादष स्थान से आय की स्थिति एवं नवम स्थान से भाग्य के संबंध में जानकारी मिलती है अतः इस स्थान का स्वामी अगर अनुकूल स्थिति में है या इस भाव में शुभ ग्रह हो तो षिक्षा, धन जीवन में बनी रहती है तथा जीवनपर्यन्त धन तथा संपत्ति बनी रहती है। दूसरे भाव या भावेष के साथ कर्मभाव या लाभभाव तथा भावेष के साथ मैत्री संबंध होने से जीवन में धन की स्थिति तथा अवसर निरंतर अच्छी बनी रहती है। जन्म कुंडली के अलावा नवांष में भी इन्हीं भाव तथा भावेष की स्थिति अनुकूल होना भी आवष्यक होता है। अतः जीवन में इन भाव एवं भावेष के उत्तम स्थिति तथा मैत्री संबंध बनने से व्यक्ति के जीवन में अस्थिर या अस्थिर संपत्ति की निरंतरता तथा साधन बने रहते हैं। इन सभी स्थानों के स्वामियों में से जो भाव या भावेष प्रबल होता है, धन के निरंतर आवक का साधन भी उसी से निर्धारित होता है। अतः जीवन में धन तथा सुख समृद्धि निरंतर बनी रहे इसके लिए इन स्थानों के भाव या भावेष को प्रबल करने, उनके विपरीत असर को कम करने का उपाय कर जीवन में सुख तथा धन की स्थिति को बेहतर किया जा सकता है। जाॅब प्राप्ति हेतु किसी भी जातक की कुंडली में ग्रह दषाओं का आकलन करें, यदि शनि या बुध की शुक्र की दषाओं में जाॅब मिलने में बाधा आती है अतः अपने ग्रह दषाओं का आकलन करया जाकर ग्रह शांति कराना चाहिए। आर्थिक स्थिति को लगातार बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक जातक को निरंतर एवं तीव्र पुण्यों की आवष्यकता पड़ती है, जिसके लिए जीव सेवा करनी चाहिए। सूक्ष्म जीवों के लिए आहार निकालना चाहिए। अपने ईष्वर का नाम जप करना चाहिए। कैरियर को बेहतर बनाने के लिए शनिवार का व्रत करें।

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in





बच्चों को घर से दूर भेजने से पूर्व करें उसकी कुंडली का विष्लेषण और पाएं पूर्ण सफलता-


बच्चों को घर से दूर भेजने से पूर्व करें उसकी कुंडली का विष्लेषण और पाएं पूर्ण सफलता-
नामी संस्थानों में पढ़ने का सपना आमतौर पर हर स्टूडेंट का होता है। पैरेंट्स भी इसके लिए खासे परेशान रहते हैं। अच्छी पढ़ाई, बेहतरीन सुविधाएं और सबसे बड़ी बात बेस्ट प्लेसमेंट इसकी सबसे बड़ी वजह हो सकती है। पर क्या सभी के अरमान पूरे हो पाते हैं? जाने-माने संस्थान में एडमिशन न मिलने पर भी सिर्फ बाहर पढ़ने के नाम पर किसी भी इंस्टीट्यूट में दाखिला लेना कितना उचित है? बाहर पढ़ने की जिद आपकी जरूरत की बजाय कहीं महज दिखावा तो नहीं? अगर ऐसा है, तो सोचने की बात यह है कि आखिर बाहर पढ़ने के नाम पर दिखावा क्यों करें? लाखों खर्च करके बाहर के कथित संस्थानों में एडमिशन लेने की बजाय घर-शहर के करीब रहते हुए अपेक्षाकृत किसी बेहतर संस्थान में पढ़ाई करके भी करियर की राह चमकदार बनाई जा सकती है। किंतु बच्चें और कई बार अभिभावक भी इसके लिए सोचे बिना अपने बच्चें को घर से दूर भेजते हैं किंतु बाहर जाकर बच्चा पढ़ाई से दूर डिप्रेषन और गलत संगत का षिकार हो जाता है। अतः किसी भी बच्चे को घर से दूर रहने के लिए उसके ज्योतिषीय विष्लेषण कराया जाकर उसके लग्न, तीसरा और एकादष स्थान का विष्लेषण कराकर देखें कि अगर उसका तीसरा या एकादष स्थान छठवे, आठवें या बारहवें स्थान अथवा सातवें स्थान पर हो जाए तो ऐसे लोग दूसरों के उपर भरोसा कर अपना जीवन खराब कर बैठते है। अतः ऐसी स्थिति में दूर भेजने के अपने फैसले से पूर्व कुंडली दिखा लें।

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in







बच्चों को घर से दूर भेजने से पूर्व करें उसकी कुंडली का विष्लेषण और पाएं पूर्ण सफलता-



नामी संस्थानों में पढ़ने का सपना आमतौर पर हर स्टूडेंट का होता है। पैरेंट्स भी इसके लिए खासे परेशान रहते हैं। अच्छी पढ़ाई, बेहतरीन सुविधाएं और सबसे बड़ी बात बेस्ट प्लेसमेंट इसकी सबसे बड़ी वजह हो सकती है। पर क्या सभी के अरमान पूरे हो पाते हैं? जाने-माने संस्थान में एडमिशन न मिलने पर भी सिर्फ बाहर पढ़ने के नाम पर किसी भी इंस्टीट्यूट में दाखिला लेना कितना उचित है? बाहर पढ़ने की जिद आपकी जरूरत की बजाय कहीं महज दिखावा तो नहीं? अगर ऐसा है, तो सोचने की बात यह है कि आखिर बाहर पढ़ने के नाम पर दिखावा क्यों करें? लाखों खर्च करके बाहर के कथित संस्थानों में एडमिशन लेने की बजाय घर-शहर के करीब रहते हुए अपेक्षाकृत किसी बेहतर संस्थान में पढ़ाई करके भी करियर की राह चमकदार बनाई जा सकती है। किंतु बच्चें और कई बार अभिभावक भी इसके लिए सोचे बिना अपने बच्चें को घर से दूर भेजते हैं किंतु बाहर जाकर बच्चा पढ़ाई से दूर डिप्रेषन और गलत संगत का षिकार हो जाता है। अतः किसी भी बच्चे को घर से दूर रहने के लिए उसके ज्योतिषीय विष्लेषण कराया जाकर उसके लग्न, तीसरा और एकादष स्थान का विष्लेषण कराकर देखें कि अगर उसका तीसरा या एकादष स्थान छठवे, आठवें या बारहवें स्थान अथवा सातवें स्थान पर हो जाए तो ऐसे लोग दूसरों के उपर भरोसा कर अपना जीवन खराब कर बैठते है। अतः ऐसी स्थिति में दूर भेजने के अपने फैसले से पूर्व कुंडली दिखा लें।

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in




विवाह मिलापक की कमियां - करें पूरी कुंडली का विष्लेषण

Image result for hindu marriage

सभी अभिभावक की यह हार्दिक कामना होती है कि उसकी संतान का विवाह समय से हो किंतु उससे प्रमुख कामना होती है कि वह विवाह के उपरांत सुख तथा खुष रहे। इस हेतु भारतीय समाज में कुंडली मिलान का प्रमुख स्थान है। अत्यंत आधुनिक माता भी अपनी संतान के विवाह से पूर्व कुंडली मिलान तथा सभी परंपराओं का निर्वाह करना चाहते हैं। विवाह- निर्णय के लिए वर-वधू मेलापक ज्ञात करने की विधि अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय समाज में ऐसी मान्यता है कि जीवनसाथी का श्रेष्ठ मिलान नहीं होता है तो उनका वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है। अतः इस हेतु हिंदु संस्कार में विवाह हेतु कुंडली मिलान का विशेष महत्व है।
साधारणतया अष्टकूट अर्थात् तारा, गुण, वश्य, वर्ण, नाड़ी, योनी, ग्रह गुण आदि के आधार पर वर-वधु मेलापक सारिणी के आधार पर गुणों की संख्या के साथ दोषों के संकेत होते हैं। सर्वश्रेष्ठ मिलान में 36 गुणों का होना श्रेष्ठ मिलान का प्रतीक माना जाता है। उससे आधे अर्थात् 18 गुण से अधिक होना ही कुंडली-मिलान का धर्म कांटा मान लिया जाता है। इससे अधिक जितने भी गुण मिले, वह वैवाहिक जीवन में सफलता का प्रतीक मान लिया जाता है। जहाॅ दोषों का संकेत होता है, उनमें भी शुभ नव पंचम, अशुभ नवपंचम अथवा सामान्य नव पंचम या श्रेष्ठ द्विद्र्वादश, प्रीति षडाष्टक, केंद्र के शुभ-अशुभ का आकलन करके सभी ज्योतिविर्द कुंडली का मिलान कर लेते हैं। किसी प्रकार का दोष होने पर उसका परिहार भी मिल जाता है। कहा जाता है की ‘‘ नाड़ी दोषःअस्ति विप्राणां, वर्ण दोषःअस्ति भूभुजाम्। वैश्यानां गणदोषाः स्यात् शूद्राणां योनि दूषणम् ’’ ब्राम्हणों में नाड़ी दोष मानना आवश्यक है, क्षत्रियों में वर्ण दोष की उपेक्षा नहीं की जा सकती, वैश्यों में गण दोष को प्रधान माना जाता है तथा शूद्रों के लिए योनि दोष की उपेक्षा शास्त्र सम्मत नहीं माना जाता है। आज के युग में जब कि सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह से बदल चुकी है तब हम ब्राम्हण किसे माने किसे क्षत्रिय की संज्ञा दे, किसको वैष्य कहा जाए और किसे शूद्र का दर्जा दिया जाए। इसके अलावा कुंडली मिलापक पूरी तरह चंद्रमा पर आधारित है जिसमें शेष सभी ग्रहों को अनुपयोगी माना गया है। जबकि देखा गया है कि चंद्रमा की तुलना में बाकी के ग्रह भी जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं अतः कुंडली मेलापक की वर्तमान विद्या से इतर सभी ग्रहों के अनुसार उनके ग्रहों की मैत्री का निधारण कर विवाह हेतु निर्णय लेना चाहिए। गुण मेलापक के स्थान पर ग्रह मेलापक पर ज्यादा जोर देने से सही रिष्तों का चयन कर जीवन सुखमय बनाया जा सकता है।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


Sunday 31 May 2015

घर में बगीचे वास्तु की नज़र से



Image result for house and garden
वास्तु ऐसा माध्यम है जिससे आप जान सकते हैं कि किस प्रकार आप अपने घर को सुखी व समृद्धशाली बना सकते हैं। नीचे वास्तु सम्मत ऐसी ही जानकारी दी गई है जो आपके लिए उपयोगी होगी-
1- ऐसे मकान जिनके सामने एक बगीचा हो, भले ही वह छोटा हो, अच्छे माने जाते हैं, जिनके दरवाजे सीधे सड़क की ओर खुलते हों क्योंकि बगीचे का क्षेत्र प्राण के वेग के लिए अनुकूल माना जाता है। घर के सामने बगीचे में ऐसा पेड़ नहीं होना चाहिए, जो घर से ऊंचा हो।
2- वास्तु नियम के अनुसार हर दो घरों के बीच खाली जगह होना चाहिए। हालांकि भीड़भाड़ वाले शहर में कतारबद्ध मकान बनाना किफायती होता है लेकिन वास्तु के नियमों के अनुसार यह नुकसानदेय होता है क्योंकि यह प्रकाश, हवा और ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के आगमन को रोकता है।
3- आमतौर पर उत्तर दिशा की ओर मुंह वाले कतारबद्ध घरों में तमाम अच्छे प्रभाव प्राप्त होते हैं जबकि दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाले मकान बुरे प्रभावों को बुलावा देते हैं। हालांकि पूर्व और पश्चिम की ओर मुंह वाले कतारबद्ध मकान अनुकूल स्थिति में माने जाते हैं क्योंकि पश्चिम की ओर मुंह वाले मकान सामान्य ढंग के न्यूट्रल होते हैं।
4- पूर्व की ओर मुंह वाले घर लाभकारी होते हैं। कतार के आखिरी छोर वाले मकान लाभकारी हो सकते हैं यदि उनका दक्षिणी भाग किसी अन्य मकान से जुड़ा हो या पूरी तरह बंद हो। ऐसी स्थिति में जहां कतारबद्ध घर एक-दूसरे के सामने हों, वहां सीध में फाटक या दरवाजे लगाने से बचना चाहिए।
5- यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दक्षिण की ओर मुंह वाले घर यदि सही तरीके से बनाए जाएं तो लाभकारी परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। घर और वास्तु का गहरा नाता है। यही वजह है कि अपने सपनों का घर बनवाते हुए लोग आर्किटेक्ट से सुझाव लेना नहीं भूलते। कई बार वास्तु के हिसाब से चूक होने पर लोग घर में तोड़-फोड़ कराकर इसे दुरुस्त करने में हजारों-लाखों रुपये बर्बाद कर देते हैं। शायद आपको मालूम न हो, इस स्थिति में पेड़-पौधे ये नुकसान रोक सकते हैं। ज्योतिष और वास्तु में ये घर को सकारात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत करने वाले बताए गए हैं। बस जरूरत है थोड़ी जानकारी और प्रयास की। यदि आपके घर में वास्तु दोष है तो इसे मिटाने के लिए हरियाली का दामन थामना आपके लिए हर लिहाज से बेहतर विकल्प है।
ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अनुसार जीवनदायिनी प्रकृति के सहारे आशियाने को सेहत, सौंदर्य और समृद्धि से सराबोर किया जा सकता है। अगर मकान के खुले स्थान पर बगीचा लगा दें तो पूरा घर तरोताजा हवा एवं प्राकृतिक सौंदर्य से महक उठेगा। वास्तुशास्त्र के नजर से पेड़-पौधे उगाते हैं तो घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी होगा। चूंकि पेड़-पौधों जीवित होते हैं, इसलिए इनकी जीवंत ऊर्जा का सही उपयोग हमारे शरीर और चित्त को प्रसन्न रख सकता है। बस थोड़ा ध्यान रखना होगा कि पेड़-पौधे वास्तुशास्त्र के लिहाज से लगाए जाएं।
वास्तु और पौधे-
वास्तु में माना जाता है कि सकारात्मक ऊर्जा तरंगें हमेशा पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तथा पूर्वोत्तर से दक्षिण-पश्चिम में नैऋत्य कोण की ओर बहती है। ऐसे में ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व एवं उत्तर की ओर हल्के, छोटे व कम घने पेड़-पौधे उगाए जाएं। ताकि घर में आने वाली सकारात्मक ऊर्जा के रास्ते में कोई अवरोध न हो।
तुलसी बेहद उपयोगी-
इन दिशाओं से होकर घर में आने वाली हवा में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के खातिर तुलसी के पौधे बेहद उपयोगी माने जाते हैं। वास्तु के लिहाज से माना जाता है कि तुलसी के पौधों से होकर आने वाली वायु में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है साथ ही ये शुद्ध व स्वास्थ्यवर्धक भी हो जाती है।
इसके अतिरिक्त इन दिशाओं में अन्य औषधीय पौधों का रोपण भी वास्तु में लाभकारी बताया गया है। घर के पूर्व, उत्तर और पूर्वोत्तर में पुदीना, लेमनग्रास, खस, धनिया, सौंफ, हल्दी, अदरक आदि की उपस्थिति भी तन-मन को ताजगी देते हुए चुस्ती-फुर्ती और आरोग्य देने वाली मानी जाती है।
मनी प्लांट और क्रिसमस ट्री-
मनी प्लांट और क्रिसमस ट्री भी लोग घर में लगाते हैं। दोनों पौधे वास्तु की दृष्टि से समृद्धि कारक माने जाते हैं। शहर में कई परिवारों ने इन पौधों को अपने घरों में लगा रखा है। क्रिसमस ट्री इसाई परिवारों ने अपने घरों में तो मनी प्लांट का पौधा हर धर्म और जाति के लोगों के घरों में देखा जा सकता है।
खूबसूरत बालकनी-
अपने मकान के मुख्य द्वार के आसपास, पूर्व, उत्तर और पूर्वोत्तर में बालकनी पर गुलाब, बेला, चमेली, ग्लेडियोलाई, कॉसमोस, कोचिया, जीनिया, गेंदा और सदाबहार जैसे फूलों के पौधे लगाए जा सकते हैं। अगर जगह कम हो तो स्टैंड वाले गमले में इन्हें लगाया जा सकता है।
पश्चिम या दक्षिणमुखी घर होने पर-
घर पश्चिम और दक्षिणमुखी होने की दशा में उसके आगे या मुख्य द्वार की ओर बड़े-बड़े पेड़-पौधों समेत लताओं वाले पौध लगाए जा सकते हैं।
* पेड़ों को घर की दक्षिण या पश्चिम दिशा में लगाएं। पेड़ सिर्फ एक दिशा में ही न लग कर इन दोनों दिशाओं में लगे होने चाहिए।
* एक तुलसी का पौधा घर में जरूर लगाएं। इसे उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्वी दिशा या फिर घर के सामने भी लगा सकते हैं।
* मुख्य द्वार पर पेड़ कभी भी न लगाएं। श्वेतार्क मुख्य द्वार पर लगाना वास्तु की दृष्टि से शुभ फलदायक होता है।
* नीम, चंदन, नींबू, आम, आवला, अनार आदि के पेड़-पौधे घर में लगाए जा सकते हैं।
* काटों वाले पौधे नहीं लगाएं। गुलाब के अलावा अन्य काटों वाले पौधे घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करते हैं।
* ध्यान रखें कि आपके आगन में लगे पेड़ों की गिनती 2, 4, 6, 8.. जैसी सम संख्या में होनी चाहिए, विषम में नहीं।
लोग अपने घरों की फुलवारी में या लॉन में छोटे-छोटे पौधे लगाया करते हैं। भवन में छोटे पौधों का अपने आप में बहुत महत्व होता है। घर में लगाए जाने वाले छोटे पौधों में कई पौधे ऐसे होते हैं जिनका औषधीय महत्व है। साथ ही उनका रसोई या सौंंदर्यवद्र्धन संबंधी महत्व भी है।
आज के समय में स्थान के अभाव में प्राय: लोग गमलों में ही पौधे लगाते हैं या लॉन तथा ड्राइंगरूम में सजाकर रख देते हैं। इन पौधों एवं लताओं की वजह से छोटे फ्लैटों में निवास करने वाले खुद को प्रकृति के नजदीक महसूस करते हैं एवं स्वच्छ हवा तथा स्वच्छ वातावरण का आनंद उठाते हैं।
तुलसी का पौधा इसी प्रकार का एक छोटा पौधा है जिसके औषधीय एवं आध्यात्मिक दोनों ही महत्व हैं। प्राय: प्रत्येक हिन्दू परिवार के घर में एक तुलसी का पौधा अवश्य होता है। इसे दिव्य पौधा माना जाता है। माना जाता है कि जिस स्थान पर तुलसी का पौधा होता है वहां भगवान विष्णु का निवास होता है। साथ ही वातावरण में रोग फैलाने वाले कीटाणुओं एवं हवा में व्याप्त विभिन्न विषाणुओं के होने की संभावना भी कम होती है। तुलसी की पत्तियों के सेवन से सर्दी, खांसी, एलर्जी आदि की बीमारियां भी नष्ट होती हैं।
किस दिशा में लगाए जाएं कौन से पौधे:
वास्तुशास्त्र के अनुसार छोटे-छोटे पौधों को घर की किस दिशा में लगाया जाए ताकि उन पौधों के गुणों को हम पा सकें, इसकी विवेचना यहां की जा रही है।
1. तुलसी के पौधों को यदि घर की उत्तर-पूर्व दिशा में रखा जाए तो उस स्थान पर अचल लक्ष्मी का वास होता है अर्थात उस घर में आने वाली लक्ष्मी टिकती है।
2. घर की पूर्वी दिशा में फूलों के पौधे, हरी घास, मौसमी पौधे आदि लगाने से उस घर में भयंकर बीमारियों का प्रकोप नहीं होता।
3. पान का पौधा, चंदन, हल्दी, नींबू आदि के पौधों को भी घर में लगाया जा सकता है। इन पौधों को पश्चिम-उत्तर के कोण में रखने से घर के सदस्यों में आपसी प्रेम बढ़ता है।
4. घर के चारों कोनों को ऊर्जावान बनाने के लिए गमलों में भारी प्लांट को लगाकर भी रखा जा सकता है। दक्षिण -पश्चिम कोने में अगर कोई भारी प्लांट है तो उस घर के मुखिया को व्यर्थ की चिंताओं से मुक्ति मिलती है।
5. कैक्टस जैसे रुप के पौधे जिनमें नुकीले कांटे होते हैं उन्हें घर के अंदर लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित नहीं।
6. पलाश, नागकेशकर, अरिष्ट, शमी आदि का पौधा घर के बगीचे में लगाना शुभ होता है। शमी का पौधा ऐसे स्थान पर लगाना चाहिए जो घर से निकलते समय दाहिनी ओर पड़ता हो।
7. घर के बगीचे में पीपल, बबूल, कटहल आदि का पौधा लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार ठीक नहीं। इन पौधों से युक्त घर के अंदर हमेशा अशांति का अम्बार लगा ही रहता है ।
8. फूल के पौधों में सभी फूलों, गुलाब, रात की रानी, चम्पा, जास्मीन आदि को घर के अंदर लगाया जा सकता है किन्तु लाल गेंदा और काले गुलाब को लगाने से चिंता एवं शोक की वृद्धि होती है।
9. शयनकक्ष के अंदर पौधे लगाना अच्छा नहीं माना जाता। बेल (लता) वाले पौधों को अगर शयनकक्ष के अंदर दीवार के सहारे चढ़ाकर लगाया जाता है तो इससे दाम्पत्य संबंधों में मधुरता एवं आपसी विश्वास बढ़ता है।
10. अध्ययन कक्ष के अंदर सफेद फूलों के पौधे लगाने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। अध्ययन कक्ष के पूर्व एवं दक्षिण के कोने में गमले को रखा जाना चाहिए।
11. रसोई घर के अंदर गमलों में पुदीना, धनिया, पालक, हरी मिर्च आदि के छोटे-छोटे पौधों को लगाया जा सकता है। वास्तुशास्त्र एवं आहार विज्ञान के अनुसार जिन रसोईघरों में ऐसे पौधे होते हैं वहां मक्खियां एवं चींटियां अधिक तंग नहीं करतीं तथा वहां पकने वाली सामग्री सदस्यों को स्वस्थ रखती है।
12. घर के अंदर कंटीले एवं वैसे पौधे जिनसे दूध निकलता हो, नहीं लगाने चाहिएं। ऐसे पौधों के लगाने से घर के अंदर वैमनस्य का भाव बढ़ता है एवं वहां हमेशा अशांति का वातावरण बना रहता है।
13. बोनसाई पौधों को घर के अंदर लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित नहीं क्योंकि बोनसाई को प्रकृति के विरुद्ध छोटा कद प्रदान किया जाता है। जिस प्रकार बोनसाई का विस्तार संभव नहीं होता, उसी प्रकार उस घर की वृद्धि भी बौनी ही रह जाती है।
१४. छोटे पौधों को उत्तर या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। इस बात का खयाल रखें कि उत्तर-पूर्व में खुला स्थान बना रहे। लम्बे वृक्षों को बगीचे/भवन के पश्चिम, दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगाएं। इन्हें लगाते हुए यह खयाल रखें कि ये भवन की इमारत से पर्याप्त दूरी पर हों व सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच इनकी छाया इमारत पर न पड़े।
१५. विशाल दरख्तों जैसे पीपल, नीम आदि को भवन से पर्याप्त दूरी पर लगाना चाहिए, क्योंकि इनकी जड़ें भवन की नींव को क्षति पहुंचा सकती हैं। इस बात का भी खयाल रखें कि इन दरख्तों की छाया सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच इमारत पर न पड़े।
१६. कांटेदार पौधों को घर में कभी नहीं लगाना चाहिए क्योंकि ऐसे पौधे नकारात्मक ऊर्जा के वाहक होते हैं। खासकर कैक्टस तो बिल्कुल भी नहीं। इनकी घर में उपस्थिति अशुभ मानी जाती है। अगर आपके घर में कोई कांटेदार पौधा है भी, तो उसे तुरंत उखाड़ फेंकें।
१७. लताओं यानी बेलनुमा पौधों को आंगन या घर की दीवार पर न फैलने दें। इन्हें बगीचे में ही लगाएं और इन्हें अपनी सहायता से आप फैलने दें, लेकिन इन्हें बढऩे के लिए घर या आंगन की दीवार का सहारा न दें। मनी प्लांट अवश्य घर के भीतर लगाया जा सकता है। जो वृक्ष सांप, मधुमक्खी, कीड़े, चीटिंयों, उल्लू आदि को आमंत्रित करते हैं, ऐसे वृक्षों को बगीचे में न लगाएं।


Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


Saturday 30 May 2015

दत्तात्रेय पूजन विधि एवं स्तोत्र



दत्तात्रय याने अत्रि ऋषि और अनुसूया की तपस्या का प्रसाद ...
" दत्तात्रय " शब्द , दत्त + अत्रेय की संधि से बना है।
त्रिदेवों द्वारा प्रदत्त आशीर्वाद “ दत्त “ ... अर्थात दत्तात्रय !
मार्गशीर्ष (अगहन) मास की पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है।
शास्त्रानुसार इस तिथि को भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों देवताओं की परमशक्ति जब केंद्रित हुई तब 'त्रयमूर्ति दत्त' का जन्म हुआ।
अगहन पूर्णिमा को प्रदोषकाल में भगवान दत्त का जन्म होना माना गया है।
दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं और इसलिए उन्हें ' परब्रह्ममूर्ति सदगुरु ' और ' श्री गुरुदेव दत्त ' भी कहा जाता है।
उन्हें गुरु वंश का प्रथम गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक माना जाता है।
विविध पुराणों और महाभारत में भी दत्तात्रेय की श्रेष्ठता का उल्लेख मिलता है।
वे श्री हरि विष्णु का अवतार हैं।
वे पालनकर्ता, त्राता और भक्त वत्सल हैं तो भक्ताभिमानी भी।
वेदों को प्रतिष्ठा देने वाले महर्षि अत्रि और ऋषि कर्दम की कन्या अनुसूया के ब्रह्मकुल में जन्मा यह दत्तावतार क्षमाशील अंतकरण का भी है।
भारतीय भक्ति परंपरा के विकास में श्री दत्त देव एक अनूठे अवतार हैं।
रज-तम-सत्व जैसे त्रिगुणों,
इच्छा-कर्म-ज्ञान तीन भावों और
उत्पत्ति-स्थिति-लय के एकत्व के रूप में वे प्रतिष्ठित हैं।
उनमें शैव और वैष्णव दोनों मतों के भक्तों को आराध्य के दर्शन होते हैं।
शैवपंथी उन्हें शिव का अवतार और वैष्णव विष्णु अवतार मानते हैं।
नाथ, महानुभव, वारकरी, रामदासी के उपासना पंथ में श्रीदत्त आराध्य देव हैं।
तीन सिर, छ: हाथ, शंख-चक्र-गदा-पद्म, त्रिशूल-डमरू-कमंडल, रुद्राक्षमाला, माथे पर भस्म, मस्तक पर जटाजूट, एकमुखी और चतुर्भुज या षडभुज इन सभी रूपों में श्री गुरुदेव दत्त की उपासना की जाती है।
मान्यता यह भी है कि दत्तात्रेय ने परशुरामजी को श्री विद्या-मंत्र प्रदान किया था।
शिवपुत्र कार्तिकेय को उन्होंने अनेक विद्याएं दी थी।
भक्त प्रल्हाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय भी भगवान दत्तात्रेय को ही है।
महाराष्ट्र और कर्नाटक मे इन्ही के नाम से एक “ दत्त संप्रदाय “ भी है।
मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य प्रात:काल काशी की गंगाजी में स्नान करते थे। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका दत्त भक्तों के लिए पूजनीय है।
इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेलगाम में स्थित है। दत्तात्रेय को गुरु रूप में मान उनकी पादुका को नमन किया जाता है।
गिरनार क्षेत्र दत्तात्रय भगवान की सिद्धपीठ है , इनकी गुरुचरण पादुकाएं वाराणसी तथा आबू पर्वत आदि कई स्थानों पर हैं।
माना गया है कि भक्त के स्मरण करते ही भगवान दत्तात्रेय उनकी हर समस्या का निदान कर देते हैं इसलिए इन्हें “ स्मृति गामी व स्मृतिमात्रानुगन्ता “ भी कहा गया है। अपने भक्तों की रक्षा करना ही श्री दत्त का 'आनंदोत्सव' है।
श्री गुरुदेव दत्त , भक्त की इसी भक्ति से प्रसन्न होकर स्मरण करने समस्त विपदाओं से रक्षा करते हैं।
दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार मानते हैं। दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है।
यह भी मान्यता है कि रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक भी दत्तात्रेय थे।
भगवान दत्तात्रेय से वेद और तंत्र मार्ग का विलय कर एक ही संप्रदाय निर्मित किया था।
आदि शंकराचार्य के अनुसार –
‘ समस्त दैहिक – दैविक और भौतिक सुखों, आरोग्य, वैभव, सत्ता, संपत्ति सभी कुछ मिलने के बाद यदि मन गुरुपद की शरण नहीं गया तो फिर क्या पाया।'
दत्तात्रय भगवान का रूप तथा उनका परिवार भी आध्यात्मिक संदेश देता है ,
उनका भिक्षुक रूप अहंकार के नाश का प्रतीक है ... कंधे पर झोली , मधुमक्खी के समान मधु एकत्र करने का संदेश देती है ।
उनके साथ खड़ी गाय , कामधेनु है जो कि पृथ्वी का प्रतीक हैं ।
चार कुत्ते , चारों वेदों के प्रतीक माने गए हैं ... गाय और कुत्ते एक प्रकार से उनके अस्त्र भी हैं ,
क्यूंकी गाय अपने सींगों से प्रहार करती है और कुत्ते काट लेते हैं।
औदुंबर अर्थात ‘ गूलर वृक्ष ‘ दत्तात्रय का सर्वाधिक पूज्यनीय रूप है ... इसी वृक्ष मे दत्त तत्व अधिक है।
दत्तात्रय साधना -
भगवान शंकर का साक्षात रूप महाराज दत्तात्रेय में मिलता है और तीनो ईश्वरीय शक्तियो से समाहित महाराज दत्तात्रेय की साधना अत्यंत ही सफ़ल और शीघ्र फ़ल देने वाली है।
महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी,अवधूत,और दिगम्बर रहे थे ,वे सर्वव्यापी है और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले है,
यदि मानसिक रूप से , कर्म से या वाणी से महाराज दत्तात्रेय की उपासना की जावे तो साधकों को शीघ्र ही सफलता प्राप्त हो जाती है।
साधना विधि -
श्री दत्तात्रेय जी की प्रतिमा,चित्र या यंत्र को लाकर लाल कपडे पर स्थापित करने के बाद चन्दन लगाकर,फ़ूल चढाकर,धूप की धूनी देकर,नैवेद्य चढाकर दीपक से आरती उतारकर पूजा की जाती है,पूजा के समय में उनके लिये पहले स्तोत्र को ध्यान से पढा जाता है,
फ़िर मन्त्र का जप किया जाता है,
उनकी उपासना तुरत प्रभावी हो जाती है और शीघ्र ही साधक को उनकी उपस्थिति का आभास होने लगता है।
साधकों को उनकी उपस्थिति का आभास सुगन्ध के द्वारा,दिव्य प्रकाश के द्वारा,या साक्षात उनके दर्शन से होता है।
साधना के समय अचानक स्फ़ूर्ति आना भी उनकी उपस्थिति का आभास देती है।
विनियोग -
पूजा करने के आरम्भ में भगवान श्री दत्तात्रेय के लिय आवाहन किया जाता है,
एक साफ़ बर्तन में पानी लेकर पास में रखना चाहिये,
बायें हाथ में एक फ़ूल और चावल के दाने लेकर इस प्रकार से विनियोग करना चाहिये-
" ॐ अस्य श्री दत्तात्रेय स्तोत्र मंत्रस्य भगवान नारद ऋषि: अनुष्टुप छन्द:,श्री दत्त परमात्मा देवता:, श्री दत्त प्रीत्यर्थे जपे विनोयोग: ",
इतना कहकर दाहिने हाथ से फ़ूल और चावल लेकर भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा,चित्र या यंत्र पर चढाने चाहिये,
फ़ूल और चावल को चढाने के बाद हाथों को पानी से साफ़ कर लेना चाहिये,और दोनों हाथों को जोडकर प्रणाम मुद्रा में उनके लिये जप / ध्यान स्तुति को करना चाहिये।
जप स्तुति इस प्रकार है -
" जटाधाराम पाण्डुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम। सर्व रोग हरं देव,दत्तात्रेयमहं भज॥"
मंत्र
पूजा करने में फ़ूल और नैवेद्य चढाने के बाद आरती करनी चाहिये और आरती करने के समय यह स्तोत्र पढना चाहिये -
जगदुत्पति कर्त्रै च स्थिति संहार हेतवे। भव पाश विमुक्ताय दत्तात्रेय नमो॓‍ऽस्तुते॥
जराजन्म विनाशाय देह शुद्धि कराय च। दिगम्बर दयामूर्ति दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
कर्पूरकान्ति देहाय ब्रह्ममूर्तिधराय च। वेदशास्त्रं परिज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
ह्रस्व दीर्घ कृशस्थूलं नामगोत्रा विवर्जित। पंचभूतैकदीप्ताय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
यज्ञभोक्त्रे च यज्ञाय यशरूपाय तथा च वै। यज्ञ प्रियाय सिद्धाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णु: अन्ते देव: सदाशिव:। मूर्तिमय स्वरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
भोगलयाय भोगाय भोग योग्याय धारिणे। जितेन्द्रिय जितज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
दिगम्बराय दिव्याय दिव्यरूप धराय च। सदोदित प्रब्रह्म दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
जम्बूद्वीपे महाक्षेत्रे मातापुर निवासिने। जयमान सता देवं दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
भिक्षाटनं गृहे ग्रामं पात्रं हेममयं करे। नानास्वादमयी भिक्षा दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वक्त्रो चाकाश भूतले। प्रज्ञानधन बोधाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
अवधूत सदानन्द परब्रह्म स्वरूपिणे। विदेह देह रूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
सत्यरूप सदाचार सत्यधर्म परायण। सत्याश्रम परोक्षाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
शूल हस्ताय गदापाणे वनमाला सुकंधर। यज्ञसूत्रधर ब्रह्मान दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
क्षराक्षरस्वरूपाय परात्पर पराय च। दत्तमुक्ति परस्तोत्र दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
दत्तविद्याठ्य लक्ष्मीशं दत्तस्वात्म स्वरूपिणे। गुणनिर्गुण रूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
शत्रु नाश करं स्तोत्रं ज्ञान विज्ञान दायकम।सर्वपाप शमं याति दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
इस स्तोत्र को पढने के बाद एक सौ आठबार " ऊँ द्रां “ बीज मंत्र का मानसिक जप करना चाहिये।
इसके बाद रुद्राक्ष की माला से , दस माला का नित्य जप इस मंत्र से करना चाहिये " ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा "
भगवान दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि में प्रदोष काल यानी संध्या के समय ही माना गया है।
यही कारण है हर पूर्णिमा तिथि पर भी दत्तात्रेय की उपासना ज्ञान, बुद्धि, बल प्रदान करने के साथ शत्रु बाधा दूर कर कार्य में सफलता और मनचाहे परिणामों को देने वाली मानी गई है।
धार्मिक मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय भक्त की पुकार पर शीघ्र प्रसन्न होकर किसी भी रूप में उसकी कामनापूर्ति या संकटनाश करते हैं।
गुरुवार और हर पूर्णिमा की शाम भगवान दत्त की उपासना में विशेष मंत्र का स्मरण बहुत ही शुभ माना गया है।
इन मंत्रों के जप से भी शीघ्र सफलता प्राप्त होती है –
ॐ दिगंबराय विद्महे योगीश्रारय् धीमही तन्नो दत: प्रचोदयात्
ॐ ऐं क्रों क्लीं क्लूंप ह्रां ह्रीं ह्रूं सौ:
ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा
ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नमः
दत्तविद्याठ्य लक्ष्मीशं दत्तस्वात्म स्वरूपिणे, गुणनिर्गुण रूपाय दत्तात्रेय नमोस्तुते
ॐ आं ह्रीं क्रों दत्तात्रय नमः
!! ॐ नमः शिवाय !!

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


जानिये आज का पंचांग 30/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in


कैन्सर ज्योतिष्य कारण और निदान

Image result for cancer patient cartoon
ज्योतीषीय कारण की खोज में लोग कैन्सर महारोग का निदान और निवारण प्राप्त कर लाभान्वित होते हैं। प्राचीन और सर्वमान्य भारतीय दर्शन जीवन के हर पहलू पर व्यवस्था देते हुए जिंदगी में निरोगी काया को मनुष्य का प्रथम सुख बताते हुए कहती है ''पहला सुख निरोगी काया" और माना गया है यथा नाम यथा गुण अतएव कैंसर भी निरोग से दूर भागता। आइये ज्योतिष कारण निवारण पद्धति से कैंसर निदान के उपाय खोजे।
आगे पढ़ते हुए कैन्सर कारण और निदान अपने ज्योतीषीय अनुभव और विश्वास पर आधारित टिप्पणी जरूर करें।
यह बिल्कुल सत्य है कि निरोगी शरीर ही प्रथम सुख है और बाकी सभी सुख निरोगी शरीर पर ही निर्भर करते हैं। आजकल के दौड़ धूप के युग मेंं पूर्णत: निरोगी रहना अधिकांश व्यक्तियों के लिये एक स्वप्न के समान ही है. निरोगी शरीर का अर्थ है का शरीर रोग से रहित होना। रोग दो प्रकार के होते है एक- साध्य रोग जो कि उचित उपचार, आहार, व्यवहार से ठीक हो जाते हैं दूसरे असाध्य रोग जो कि उपचार के बाद भी व्यक्तिओं का पीछा नहीं छोड़ते है।
इस आलेख में कैंसर रोग के ज्योतिषीय पहलू का विवेचन करते है, आयुर्वेद के अनुसार त्वचा की छठी परत जिसे आयुर्वेद में रोहिणी कहते है जिसका संस्कृत मेंं अर्थ है ''कोशिकाओं की रचना। जब ये कोशिकायें क्षतिग्रस्त होती हैं तो शरीर के उस हिस्से में एक ग्रन्थि बन जाती है इस ग्रन्थि को असामान्य शोथ भी कहते है। तब यह ग्रन्थि कैंसर का रूप ले लेती हैं।
ज्योतिष पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों का आधार है अर्थात हम ज्योतिष द्वारा ज्ञात कर सकते हैं कि हमारे पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों का परिणाम हमें इस जन्म में किस प्रकार प्राप्त होगा। ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार कोई भी रोग पूर्व जन्मकृत कर्मों का ही फल होता है। ग्रह उन फलों के संकेतक हैं, ज्योतिष विज्ञान कैंसर सहित सभी रोगों की पहचान मेंं सहायक होता है। पहचान के साथ-साथ यह भी मालूम किया जा सकता है कि कैंसर रोग किस अवस्था मेंं होगा तथा उसके कारण मृत्यु आयेगी या नहीं, यह सभी ज्योतिष विधि द्वारा जाना जा सकता है। कैंसर रोग की पहचान निम्न ज्योतिषीय योग होने पर बड़ी आसानी से की जा सकती है:-
1.. राहु को विष माना गया है यदि राहु का किसी भाव या भावेश से संबंध हो एवं इसका लग्न या रोग भाव से भी सम्बन्ध हो तो शरीर में विष की मात्रा बढ़ जाती है।
2. षष्टेश लग्न, अष्टम या दशम भाव मेंं स्थित होकर राहु से दृष्ट हो तो कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
3. बारहवें भाव मेंं शनि-मंगल या शनि-राहु, शनि-केतु की युति हो तो जातक को कैंसर रोग देती है।
4. राहु की त्रिक भाव या त्रिकेश पर दृष्टि हो भी कैंसर रोग की संभावना बढ़ाती है।
5. षष्टम भाव तथा षष्ठेश पीडि़त या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थित हो।
6. बुध ग्रह त्वचा का कारक है अत: बुध अगर क्रूर ग्रहों से पीडि़त हो तथा राहु से दृष्ट हो तो जातक को कैंसर रोग होता है।
7. बुध ग्रह की पीडि़त या हीनबली या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थिति भी कैंसर को जन्म देती है।
बृहत पाराशरहोरा शास्त् के अनुसार षष्ठ पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद होता है यथा ''रोग स्थाने गते पापे, तदीशी पाप रोग कारक: अत: जातक रोगी होगा और यदि षष्ठ भाव मेंं राहु व शनि हो तो असाध्य रोग से पीडि़त हो सकता है।
विश्व भर मेंं हर आठ मेंं से एक व्यक्ति की मृत्यु कैंसर के कारण होती है। कैंसर से मरने वालों की संख्या एड्स, टीबी और मलेरिया से मरने वाले कुल मरीजों से अधिक है। दुनिया भर मेंं हृदय रोगों के बाद कैंसर ही मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। तंबाकू चबाना, सिगरेट, सैच्युरेटेड फैट से भरपूर आहार लेना, शराबखोरी, शारीरिक श्रम का अभाव जैसी अस्वास्थकर आदतें लोगों को कैंसर की ओर धकेल रही हैं। कैंसर के सौ से भी अधिक प्रकार हैं। हरेक प्रकार दूसरे से अलग होता है, सभी के कारण, लक्षण और उपचार भी अलग-अलग होते हैं।
कैन्सर अब एक सामान्य रोग हो गया है। हर दस व्यक्तियों मेंं से एक को कैंसर होने की संभावना है। कैन्सर किसी भी उम्र मेंं हो सकता है। परन्तु यदि रोग का निदान व उपचार प्रारम्भिक अवस्थाओं मेंं किया जावें तो इस रोग का पूर्ण उपचार संभव है।
कैन्सर का सर्वोतम उपचार बचाव है। यदि मनुष्य अपनी जीवन-शैली मेंं कुछ परिवर्तन करने को तैयार हो तो 60 प्रतशित मामलो मेंं कैन्सर होने से पूर्णत: रोका जा सकता है।
कैंसर के कुछ प्रारम्भिक लक्षण:-
शरीर मेंं किसी भी अंग मेंं घाव या नासूर, जो न भरे। लम्बे समय से शरीर के किसी भी अंग मेंं दर्दरहित गांठ या सूजन। स्तनों मेंं गांठ होना या रिसाव होना मल, मूत्र, उल्टी और थूंक मेंं खून आना। आवाज मेंं बदलाव, निगलने मेंं दिक्कत, मल-मूत्र की सामान्य आदत मेंं परिवर्तन, लम्बे समय तक लगातार खांसी। पहले से बनी गांठ, मस्सों व तिल का अचानक तेजी से बढना और रंग मेंं परिवर्तन या पुरानी गांठ के आस-पास नयी गांठो का उभरना। बिना कारण वजन घटना, कमजोरी आना या खून की कमी। औरतों मेंं स्तन मेंं गांठ, योनी से अस्वाभाविक खून बहना, दो माहवारियों के बीच व यौन सम्बन्धों के तुरन्त बाद तथा 40-45 वर्ष की उम्र मेंं महावारी बन्द हो जाने के बाद खून बहना आदि कैंसर के प्रारंभिक लक्षण हैं।
कैन्सर होने के संभावित कारण:-
धूम्रपान-सिगरेट या बीड़ी के सेवन से मुंह, गले, फेंफडे, पेट और मूत्राशय का कैंसर होता है। तम्बाकू, पान, सुपारी, पान मसालों, एवं गुटकों के सेवन से मुंह, जीभ खाने की नली, पेट, गले, गुर्दे और अग्नाशय (पेनक्रियाज) का कैन्सर होता है। शराब के सेवन से श्वांस नली, भोजन नली, और तालु मेंं कैंसर होता है। धीमी आंच व धूंए में पका भोजन (स्मोक्ड) और अधिक नमक लगा कर संरक्षित भोजन, तले हुए भोजन और कम प्राकृतिक रेशों वाला भोजन(रिफाइन्ड) सेवन करने से बडी आंतो का कैन्सर होता है।
कुछ रसायन और दवाईयों से पेट, यकृत(लीवर) मूत्राशय के कैंसर होता है। लगातार और बार-बार घाव पैदा करने वाली परिस्थितियों से त्वचा, जीभ, होंठ, गुर्दे, पित्ताशय, मूत्राशय का कैन्सर होता है। कम उम्र मेंं यौन सम्बन्ध और अनेक पुरूषों से यौन सम्बन्ध द्वारा बच्चेदानी के मुंह का कैंसर होता है।
कुछ आम तौर पर पाये जाने वाले कैन्सर:-
पुरूष:- मूंह, गला, फेंफडे, भोजन नली, पेट और पुरूष ग्रन्थी (प्रोस्टेट)।
महिला:- बच्चेदानी का मुंह, स्तन, मुंह, गला, ओवरी।
कैंसर से बचाव के उपाय:-
धूम्रपान, तम्बाकु, सुपारी, चना, पान, मसाला, गुटका, शराब आदि का सेवन न करें। विटामिन युक्त और रेशे वाला (हरी सब्जी, फल, अनाज, दालें) पौष्टिक भोजन खायें। कीटनाशक एवं खाद्य संरक्षण रसायणों से युक्त भोजन धोकर खायें। अधिक तलें, भुने, बार-बार गर्म किये तेल मेंं बने और अधिक नमक मेंं सरंक्षित भोजन न खायें।
अपना वजन सामान्य रखें। नियमित व्यायाम करें नियमित जीवन बितायें। साफ-सुथरे, प्रदूषण रहित वातावरण की रचना करने मेंं योगदान दें।
प्रारम्भिक अवस्था मेंं कैंसर के निदान के लिए निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान दें:-
मूंह मेंं सफेद दाग या बार-बार होने वाला घाव। शरीर मेंं किसी भी अंग या हिस्से मेंं गांठ होने पर तुरन्त जांच करवायें। महिलायें माहवारी के बाद हर महीने स्तनों की जांच स्वयं करें। दो माहवारी के बीच या माहवारी बन्द होने के बाद रक्त स्त्राव होना खतरे की निशानी है पैप टैस्ट करवायें।
शरीर मेंं या स्वास्थ्य मेंं किसी भी असामान्य परिवर्तन को अधिक समय तक न पनपने दें। नियमित रूप से जांच कराते रहें और अपने चिकित्सक से तुरन्त सम्पर्क करें।
याद रहे- प्रारम्भिक अवस्था मेंं निदान होने पर ही सम्पूर्ण उपचार सम्भव है।
कैन्सर से जुड़े भ्रम:- कैंसर एक ऐसा रोग है जिसमेंं तरह-तरह की भ्रांतियां और डर जुड़े हुए हैं। एक अध्ययन के अनुसार भारत मेंं कैंसर को नियंत्रित करने के लिए जागरुकता की कमी मुख्य रुप से जिम्मेदार है। कैंसर होने की स्थिति में जातक की जन्म पत्री किसी विद्वान ज्योतिषी से दिखा कर उपयुक्त ग्रहों की शांति करवाना, महामृत्युंजय जाप कराना और निरंतर योग्य चिकित्सक की निगरानी में रहना चाहिए।
Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in