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Friday 21 August 2015

वृश्चिक राशिफल 2015

वृश्चिक
वृश्चिक राशिफल 2015- स्वभाव
आप स्वतन्त्र रुप से कार्य करने की चाह होने के कारण आप अपने कार्यो में दूसरों का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करते है। आप एक अच्छे वक्ता और लेखक हो सकते हैं। आप उदार स्वभाव के होने के साथ-साथ कुछ व्यंग्यात्मक और आवेगी भी हो सकते हैं। आप अत्यधिक चंचल प्रवृति के व्यक्ति हैं और इस कारण आप प्यार में उत्साहित रहते हैं। आप परम्पराओं में एक हद तक ही विश्वास रखते हैं।
वृश्चिक राशिफल 2015- परिवार
यह वर्ष आपके पारिवारिक मामलों के लिए मिलेजुले परिणाम देने वाला रहेगा। साल के पहले भाग में परिवार की किसी स्त्री से आपके मतभेद हो सकते हैं अथवा संबंध बिगड सकते हैं। परिवार के कुछ लोगो का बर्ताव आपके साथ प्रतिकूल भी रह सकता है। यहां तक कि मित्र और रिश्तेदार अपनी कही बातों से मुकर सकते हैं। अत: परिवार से जुडे हर मामले में बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है। हालांकि साल के दूसरे भाग में स्थितियां धीरे-धीरे आपके पक्ष में आने लगेंगी। आप किसी धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन करवा सकते हैं या कोई शुभ कार्य हो सकता है जिसमें परिवार के सभी लोग एकत्र होकर वैमनस्य को भूल जाएंगे।
वृश्चिक राशिफल 2015- स्वास्थ्य
स्वास्थ्य के लिए यह वर्ष अनुकूल नहीं है। अत: स्वास्थ्य को लेकर किसी प्रकार की लापरवाही उचित नहीं होगी। एकादश भाव में राहु और लग्प का शनि आपको शारीरिक कष्ट देने का संकेत है। अत: साल के पहले भाग में कुछ न कुछ शारीरिक परेशानी रह सकती है। मानसिक चिन्ताओं के कारण तकलीफ सम्भव है या किसी पारिवारिक सदस्य को लेकर चिंता रह सकती है। हालांकि साल के दूसरे भाग में न केवल बृहस्पति से अनुकूलता जिससे अनुकूल फल प्राप्त होने लगेगा। परिणाम स्वरूप आप शुकून का अनुभव करेंगे।
वृश्चिक राशिफल 2015- कार्यक्षेत्र
साल की शुरुआत में कार्यक्षेत्र में कुछ व्यवधान रह सकते हैं। यदि आप कुछ नया करने जा रहे हैं तो उस क्षेत्र से जुडे अनुभवी लोगों की सलाह जरूर लें। यदि किसी ऐसे काम का प्रस्ताव आ रहा है जिसमें फटाफट पैसे बनने की बात कही जा रही हो तो सावधान हो जाएं यह धोखा भी हो सकता है। यदि आप का व्यापार भागीदारी में है तो सम्बंधों को बिगडऩे न दें। कुछ रुकावटे आने के बावजूद भी बीच-बीच में कुछ काम बनते रहेंगे। साल के दूसरे भाग में मेहनत का फल जरूर मिलेगा फिऱ भी जोखिम उठाने के लिये यह समय उपयुक्त नहीं है।
वृश्चिक राशिफल 2015- धन
साल की शुरुआत में धन को लेकर निरंतरता नहीं बन पाएगी। लिेकिन जोखिम उठाने के लिये समय ठीक नहीं है। इस समय पूंजी निवेश करने से मन चाहा परिणाम प्राप्त नहीं होगा। अत: शीघ्र पैसा बनाने के तरीकों पर अच्छी तरह सोच विचार कर अमल करें। यदि किसी को पैसे उधार दे रखे हैं तो उसे प्राप्त करने में कुछ कठिनाइयां आ सकती हैं। हालांकि साल के दूसरे भाग में स्थितियां बेहतर होंगी और भाग दौड़ रंग लाएगी।
वृश्चिक राशिफल 2015- विद्या
साल का पहला भाग विद्यार्थियों के लिए कडी मेहनत करने पर थोडी सफलता लेकर आया है। यदि शिक्षा के संदर्भ में कोई लुभावना प्रस्ताव मिल रहा है तो यह धोखा भी हो सकता है अत: इनसे सावधान रहें। साल के दूसरे भाग में दर्शन व साहित्य के विद्यार्थियों को अच्छी सफलता मिेलेगी। यदि आप दूर देश में जाकर शिक्षा लेना चाह रहे हैं तो उसके लिए भी समय अनुकूल रहेगा।
वृश्चिक राशिफल 2015- उपाय
1. प्रात:काल उठकर मंत्रजाप करें।
2. हनुमान जी को सिंदूर और चोला चढ़ाएं।
3. तंदूर की मीठी रोटी बनाकर गरीबों को खिलाएं।
4. पीपल और कीकर के वृक्ष को कभी न काटें।
5. किसी से कुछ भी मुफ्त में न लें।
6. बड़े भाई की अवहेलना न करें।
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कन्या राशिफल 2015

कन्या
कन्या राशिफल 2015- स्वभाव
आप मूल रूप से बौद्धिकता और ज्ञान से परिपूर्ण है। आपकी रुचि कला और साहित्य में हो सकती है। आप विवेकी, आर्थिक, कूटनीतिक और चतुर हैं। आपके व्यक्तित्व में आकर्षण का भाव है इस कारण लोग आपसे जल्द ही प्रभावित हो जाते हैं आपको भले-बुरे की पहचान है तथा स्वभाव से आप अन्तर्मुखी है। आप एक अच्छे लेखक, संगीत और ललित कला से प्यार करने वाले हो सकते हैं।
कन्या राशिफल 2015- परिवार
पारिवारिक दृष्टिकोण से यह वर्ष बहुत बढिय़ा रहेगा। आपको परिवारिक माहौल से सहारा मिलेगा। परिवार में सुख और शान्ति का वातावरण बनेगा। कोई मांगलिक कार्य सम्पन्न हो सकता है। भाई-बहनों से आपके सम्बंध और मधुर होंगे। उनकी उन्नति होगी। परिवार के सभी सदस्यों का वर्ताव आपके प्रति बहुत ही अच्छा रहेगा। लेकिन दूसरे भाव में शनि की उपस्थिति बीच-बीच में कुछ पारिवारिक मतभेद भी दे सकती है। हालांकि इस वर्ष यदि परिवार में कोई आदालती केश चल रहा होगा तो उससे छुटकारा मिलने की अच्छी उम्मीद है।
कन्या राशिफल 2015- स्वास्थ्य
स्वास्थ्य के लिए भी यह वर्ष अनुकूलता लिए हुए है। यदि आप किसी पुरानी बीमारी से परेशान हैं तो इस वर्ष आपको उससे छुटकारा मिल सकता है। हां यदि किसी कारणवश आप बीमार भी होते हैं अथवा मौसम जनित बीमारियों से आपको परेशानी होती है तो आपकी सेहत शीघ्र ही सुधर जाएगी। लेकिन अपने माता पिता के स्वास्थ्य का खयाल रखना जरूरी होगा। बहुत सम्भव है कि समय-समय पर आप जलवायु परिवर्तन करने जाते रहेंगे। मन को एकाग्र करने के लिए आप समाधि और योग क्रियाओं का सहयोग भी ले सकते हैं।
कन्या राशिफल 2015- कार्यक्षेत्र
इस साल आप व्यापार नौकरी या धन्धे में कुछ विशेष करेंगे। अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण विपरीत परिस्थिति में भी आपको मति भ्रम नहीं होगा और सही काम करेंगे। किसी अनुभवी व्यक्ति के मिलने के आपके काम धन्धे को एक नया अनुभव मिलेगा। व्यापार और नौकरी के सिलसिले में भ्रमण भी होगा। आपके कार्यक्षेत्र और व्यापार का विस्तार होगा और पद बढ़ेगा। नौकरी में भी तरक्की मिलने के मजबूत योगायोग हैं। इस वर्ष आप सफलता के साथ-साथ सम्मान भी प्राप्त करेंगे।
कन्या राशिफल 2015- धन
इस पूरे वर्ष आपकी आमदनी साधारण रूप से अच्छी रहेगी। यदि आपका पैसा कहीं रुका हुआ है तो थोडे से प्रयास से उसकी प्राप्ति हो सकती है। वहीं वर्ष के दूसरे भाग में आमदनी के किसी नए श्रोत के मिलने की भी उम्मीद है। इससे आपकी आर्थिक स्थिति और भी मजबूत होगी। विदेश के माध्यम से या किसी दूर की यात्रा के माध्यम से भी धनार्जन होने के योग बन रहे हैं।
कन्या राशिफल 2015- विद्या
अध्ययन के लिए यह वर्ष अनुकूल रहेगा। यदि आप कोई व्यसायिक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं तो उसमें सफलता मिलने की अच्छी उम्मीद है। इस वर्ष आप अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कडी से कडी मेहनत करने को तैयार हैं। यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेना चाह रहे हैं उसके लिए भी समय अनुकूल है यदि आप किसी नए शिक्षण संस्थान की तलास में हैं तो इस वर्ष आपको एक अच्छे संस्थान की प्राप्ति होगी जहां से शिक्षा लेने के बाद आप को नई और सही दिशा की प्राप्ति होगी। जो लोग दूर देश में जाकर शिक्षा लेना चाह रहे हैं, उनके लिए भी समय अनुकूल है।
कन्या राशिफल 2015- उपाय
1. कभी भी अपशब्द न बोलें न क्रोध करें।
2. दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
3. छोटी कन्याओं से आशीर्वाद लें।
4. सूक्ष्म जीवों की सेवा करें।
5. चांदी का छल्ला धारण करें।
6. शनि शांति का उपचार करें।



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Friday 12 June 2015

स्वास्थ्य और ग्रहों की दशा

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ग्रहों की दशा और मनुष्य का स्वास्थ्य
आधुनिक युग में अधिकांश मनुष्य चिंता, उन्माद, अवसाद, भय आदि से प्रभावित है। मनोविज्ञान में इन्हें मनोरोगों के एक प्रकार मनस्ताप (न्यूरोटाॅसिज्म) के अंतर्गत रखा गया है। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकार है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएॅं उत्पन्न होती हैं। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकास है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबधी गंभीर समस्याएॅं उत्पनन होती हैं। मनस्ताप के कारण व्यक्ति का व्यक्तिगत एवं सामाजिक समायोजन कठिन हो जाता है। साथ ही इससे व्यक्ति में अंतर्द्धंद्ध एवं कुंठा उत्पन्न होती है। मतस्ताप के लक्षण बहुत तीव्र नहीं होते और इससे पीडि़त रोगियों का व्यवहार भी आक्रामक नहीं होता । अतएव इन्हें मानसिक चिकित्सालयों में भरती कराने की अपेक्षा एक मनोचिकित्सक की अधिक आवश्यकता होती है। चूॅकि इन व्यक्तियों का संबध वास्तविकता से बना रहता है, अतः इन्हें अपने दैनिक कार्यो के निष्पादन मे थोड़ी परेशानी होती है।
मानवीय जीवन मुख्यतः विचारों, भावों से संचालित होता है। इनकी दिशा जिस ओर होती है, उसी के अनुसार व्यक्ति का जीवन भी गति करता है। मानवीय जीवन पर बहुत सारे कारकों, जैसे पारिवारिक वातावरण, परिस्थितियाॅं, सामाजिक स्थिति, सदस्यों से संपर्क आदि का प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूपा उसके विचारों एवं भावों में उतार-चढ़ाव आता रहता है। इसके अलावा भी जीवन की जो सबसे अधिक प्रभावित करता है, वह है अंतग्रही दशाओं का प्रभाव। यद्यपि ये ग्रह पृथ्वी से दूर स्थित है, लेकिन व्यक्ति के जीवन को क्षण-क्षण में प्रभावित करते हैं। इनकी स्थिति-परिस्थितियाॅें का निर्धारण व्यक्ति के पूर्वजन्म के कर्मो के अनुसार होता है। पूर्व जन्म के पाप एवं पुण्य कर्मो के अनुसार इन ग्रहों की गति, स्थिति व प्रभाव का निर्धारण होता है। प्राचीन भारतीय विद्याओं में जयोतिष विज्ञान एक ऐसी विद्या है, जिसमें ग्रहों की दशा तथा अंतर्दशा के आधार पर शुभ व अशुभ घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है। चिकित्सा ज्योतिष भी भारतीय ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण भाग है। चिकित्सा ज्योतिष के द्वारा जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति व दशा-चाल से मनुष्य को भविष्य में कौन-कौन से रोग होने की संभावना है, यह जाना जा सकता है । इसी चिकित्सा ज्योतिष के अंतर्गत मानसिक रोगों को समय से पूर्व जाना जा सकता है।
रोगी की जन्मकुंडली में वर्तमान मंे चल रही महादशा (विभिन्न समूय अंतरालों में ग्रहों की स्थिति), अंतर्दशा (उस समय अंतरालों में आने वाले ग्रहों के छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव), प्रत्यंतदशा (अंतर्दशा में ग्रहों के सूक्ष्म उतार-चढ़ाव) ज्ञात कर एवं गोचर (वर्तमान समय में ग्रहों की स्थिति) की सही स्थिति जानकर चिकित्सक रोग का सही निदान करके सफल चिकित्सा कर सकता है।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की शोधार्थी पूजा कौशिक ने सन् 2009 में ‘ग्रहों के ज्योतिषीय योगों का मनस्तापीयता पर पड़ने वाले प्रभाव का
अध्ययन‘ विषय पर शोधकार्य किया। यह शोधकार्य कुलाधिपति डाॅ0 प्रणव पण्डया के संरक्षण, प्रो0 देवीप्रसाद त्रिपाठी के निर्देशन एवं डाॅ0 प्रेरणा पुरी के सहनिर्देशन में किया गया। इस शोध अध्ययन में देहरादून के दो मनोचिकित्सालयों मे से आकस्मिक प्रतिचयन विधि द्वारा 200 मनस्तापी व्यक्तियों का चयन किया गया, जिसमें 108 पुरूष प्रयोज्य एवं 92 महिला प्रयोज्य शामिल थे। इस शोध अध्ययन में ग्रहों के ज्योतिषीय शेगों के मनस्तापीय स्तर को जाॅचने के लिए ज्योतिषीय उपकरण के रूपा में जन्मकुंडली (जिसके लिए मुख्य रूप से प्रयोज्यों की जन्म तारीख, जन्म समय एवं जन्म स्थान को नोट किया गया) एवं मनोवैज्ञानिक उपकरण के रूप में न्यूरेसिस मापनी स्केल का प्रयोग किया। प्राप्त आॅकड़ो के यंख्यिकीय विश्लेषण के लिए काई-टेस्ट को प्रयुक्त किया गया।
परिणामों में यह पाया गया कि 200 स्त्री-पुरूषोूं में से 150 स्त्री-पुरूषों की जन्मपत्रिका में ज्योतिष अध्ययन के अनुसार ग्रहयोग (चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरू, शनि और छाया ग्रह राहु) प्रभावित कर रहे थे। विशेषतः मनस्ताप एवं ग्रहयोगों से पीडि़त स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में लग्न भाव (जिससे संपूर्ण देह एवं मस्तिष्क का विचार किया जाता है), चतुर्थ भाव (जिसमे मन एवं विचार का) तथा पंचम भाव (जिससे बुद्धि का विचार किया जाता है) विशेष रूप से प्रभावित एव पीडि़त पाए गए, किंतु 200 स्त्री-पुरूषों में से 50 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में ग्रहयोग उपयुक्त स्थानों से अन्यत्र स्थान में होने पर भी अपनी महादशा, अंतर्दशा में व्यक्ति के मन को संतापित करते हुए पााए गए तथा साथ ही यह भी पाया गया कि 173 स्त्री-पुरूषों (86.5 प्रतिशत) की कुंडली में पापग्रह शनि, राहु, केतु तथा क्षीण चंद्रमा अपनी महादशा एवं अंतर्दशा से व्यक्ति को प्रभावित कर रहे थे।
इस अध्ययन में मनस्तापी व्यक्तियों की कुंडली की विवेचना करने पर यह भी ज्ञात हुआ है कि 200 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडलियों में से 118 जन्मकुंडलियाॅं ऐसे स्त्री-पुरूषों की पाई गई, जिनका जन्म कृष्णपक्ष मे हुआ, अर्थात 59 प्रतिशत मनस्तापी व्यक्तियों का जन्म शुक्ल-पक्ष की तुलना में कृष्णपक्ष में ज्यादा हुआ। मनस्तापी व्यक्तियों की जन्मकुंडलियों की विवेचना से यह भी ज्ञात हुआ कि 200 में से 123 मनस्तापी व्यक्तियों के चतुर्थ भाव तथा पंचम भाव पापग्रह-क्षीण चंद्रमा, अस्त बुध, शनि, राहु एवं केतु से प्रभावित पाए गए, अर्थात 61.5 प्रतिशत मनस्तापी स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली का चतुर्थ एवं पंचम भाव पापग्रहों के प्रभाव से प्रभावित पाया गया।
इस अध्ययन में 200 मनस्तापी व्यक्तियों मंे से 54 प्रतिशत पुरूष एवं 46 प्रतिशत स्त्रियाॅं मनस्ताव से प्रभावित पाई गई। साथ ही युवा वर्ग (21 से 32 आयु वर्ग) में मनस्ताप एवं ग्रहों का प्रभाव सर्वाधिक पाया गया एवं शिक्षा का स्तर भी ऐसे स्त्री-पुरूषों में सामान्य पाया गया। ऐसे स्त्री-पुरूष स्नातक स्तर तक शिक्षित पाए गए एवं ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक संख्या में शहरी क्षेत्र के मध्यम वर्ग से संबधित पाए गए । इस प्रकार 200 स्त्री-पुरूषों की कुंडलियों के अध्ययन से यह पता चला कि विभिन्न ग्रहयोगों का संबध व्यक्ति के मन की विभिन्न संतप् क्रियाओं से होता है। अतः निष्कर्ष रूप में यह कह सकते हैं कि मानचीय स्वास्थ्य, अंतग्रही गतिविधियों एवं परिवर्तनों से असाधारण रूप से प्रभावित होता है।
पं0 श्रीराम शर्मा आचार्या जी के अनुसार रोगों की उत्पत्ति में प्रत्यक्ष स्थूल कारणों को महत्व दिया जाता है और स्कूल उपचारों की बात सोची जाती है, यदि अदृश्य किंतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ग्रह-नक्षत्रों के ज्ञान का भी चिकित्सा अनुसंधान की कड़ी से जोड़ा जा सके, तो रोगों के कारण और निवारण में अनेक चमत्कारों, सूत्र हाथ लग सकते हैं, जिनसे अपरिचित बने रहने से रोगोपचार में चिकित्सक अपने को अक्षम पाते हैं। निदान और उपचार की प्रक्रिया में ऐसे अनेक रहस्य इस अनुसंधान-प्रक्रिया में खुलने की संभावना है। यद्यपि इस विषय पर वर्तमान में कई शोधकार्य किए जा रहे हैं और ऐसी संभावना है कि आने वाले समय में चिकित्सा विज्ञान में ज्योतिषीय चिकित्सा को स्वीकारा जाएगा और इसके लिए सर्वप्रथम वयक्ति को शुभकर्मो की ओर प्रेरित किया जाएगा। यह पूर्णतः व्यक्ति के हाथ में है।

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Friday 5 June 2015

सम्मान की प्राप्ति हेतु करें अन्न का दान-


जब किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि के क्षेत्र में चन्द्रमा स्थित हो और शनि से दृष्ट भी हो अथवा शनि व मंगल दृष्ट हो तो जातक विरक्ति का जीवन व्यतीत करता है परंतु इसके बाद भी संसार में ख्याति प्राप्त करता है। जब किसी व्यक्ति के लग्न, तीसरे, अष्टम या भाग्य स्थान में शनि तथा उस पर गुरू की किसी भी प्रकार से दृष्टि हो तो ऐसे लोग भोग विलास से दूर रहकर सादगीपूर्ण जीवन बिताते हैं। साथ ही यहीं ग्रह योग उन्हें जीवन में सफलता तथा मान भी प्रदान करता है। अतः किसी व्यक्ति को जीवन में सफलता के साथ मान भी प्राप्त करना हो तो अपने जीवन में सादगी तथा अनुषासन का पालन करना चाहिए और शनि तथा गुरू की शांति के साथ मंत्रजाप एवं दान करना चाहिए। विषेष रूप से अन्न का दान जीवन में सम्मान का कारक होता है। अतः जरूरतमंदों को अन्न का दान करना चाहिए।


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स्कीन एलर्जी और ज्योतिषीय कारण

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खुजली या एलर्जी दरअसल यह त्वचा की दर्द तंत्रिकाओं की उत्तेजना है। जब हमारी तंत्रिकाएं उत्तेजित होती हैं, तो हमें खुजलाहट का अनुभव होता है, इसमें दर्द का अहसास नहीं होता। त्वचा में एलर्जी अथवा खुजली की समस्या से कमोबेश सभी को कभी न कभी सामना करना पड़ता है, जो कि स्कैबीज, जुआ, दाद, पायोडरमा, तेज गर्मी, कीड़े के काटने, एलर्जी या त्वचा के सूख जाने इत्यादि से हो सकती है। किंतु कई लोगों की यह आम समस्या होती है जो उन्हें अकसर होती रहती है। जिसे मेडिकल सांईस द्वारा नहीं जाना जा सकता है कि किसी को क्यू लगातार एलर्जी होती है। किंतु ज्योतिषीय गणना द्वारा पता चलता है कि अगर लग्न, तीसरे, छठवे, एकादष अथवा द्वादष स्थान में शनि या इन स्थानों के ग्रह स्वामी शनि से आक्रांत हों अथवा लग्न तीसरे स्थान में राहु हो तो ऐसे जातक को स्कीन एलर्जी की संभावना होती है। अगर इनकी ग्रह दषाएॅ चले तो ये समस्या ज्यादा बढ़ जाती है। अतः किसी जातक को लगातार ऐसे परेषानी दिखाई दे तो अपनी कुंडली में इन स्थानों में उपस्थित शनि अथवा राहु की शांति कराना, आहार में एलर्जी उत्पन्न करने वाले खाद्य पदार्थो से परहेज करना चाहिए।


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Thursday 4 June 2015

करें ज्योतिषीय उपाय से नेतृत्व क्षमता का विकास-

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किसी व्यक्ति की नेतृत्व क्षमता यानी व्यक्ति किसी टीम का नेतृत्व कर सकता है या नहीं और व्यक्ति की तर्क क्षमता तथा वाक्यपटुता उसके नेतृत्व के गुण को बढ़ाती है। किसी भी व्यक्ति की कुंडली पर विचार करने पर उसके ये सारे गुण पता चलते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में गुरू उच्च या मित्र स्थान पर हो तो ऐसे व्यक्ति में नेतृत्व के गुण जन्मजात मौजूद होते हैं वहीं यदि गुरू के साथ बुध का अच्छा संबंध बने तो ऐसे लोग नेतृत्व क्षमता के बल पर ही सफलता के सोपान प्राप्त करते हैं। अतः यदि किसी को नेतृत्व क्षमता का विकास करना और ऐसे क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना हो तो अपनी कुंडली में गुरू की स्थिति तथा गुरू से संबंधित उपाय अपनाकर अपने गुणों को बढ़ाया जा सकता हैं।




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कोई अपना जब दूर होने लगे तो दिखायें अपनी कुंडली-


कोई अपना जब दूर होने लगे तो दिखायें अपनी कुंडली-
अगर आपका कोई भी रिश्ता चाहे वैवाहिक हो या दोस्ती का, टूटने की कगार पर आ गया है और आप इस उलझन में हैं कि अपने साथी या दोस्त या हमदर्द से अलग हों या नहीं और यह भी जानते हैं कि ऐसा करना आपके लिए आसान नहीं होगा और ना ही आपके साथी के लिए क्योंकि आपको जिंदगी को फिर से नए सिरे से शुरू करना होगा। जिसका मतलब होता है, हर चीज में बदलाव। इसलिए अपने रिश्ते को तोड़ने से बेहतर है कि उसे कम से कम एक मौका दें। व्यवहारिक रूप से अपने आपसी मतभेदों को प्यार और समझदारी से सुलझाने की कोशिश करें। रिश्ते बड़े नाजुक होते हैं इन्हें प्यार, सामंजस्य और समझदारी से निभाने की जरुरत होती है। इसके निभाने हेतु जहाॅ आपसी समझदारी की आवश्यकता होती है वहीं कुंडली के ग्रहों की आपस में मेलापक ज्ञात कर जिन ग्रहों के कारण आपसी तनाव की स्थिति निर्मित हो रही हो, उन ग्रहों की शांति कराना चाहिए। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में अगर सप्तम भाव या भावेश अपने स्थान से षड़ाषटक या द्वि-द्वादश बनाये तो ऐसे में आपस में मतभेद उभरने के कारण बनते हैं। ऐसी ग्रह स्थिति में विशेषकर इस प्रकार की ग्रह दशाओ के समय आपसी मतभेद उभरकर आते हैं अतः अगर रिश्तों में कटुआ आ जाए तो ग्रह दशाओं का आकलन कराया जाकर शांति कराने से आपसी मतभेद मिटाकर समझ और साथ को बेहतर किया जा सकता है।


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ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म- संतप्त दाम्पत्य जीवन -



किसी षिषु के जन्म के उपरांत सर्वप्रथम विचारणीय तथ्य होता है कि उसका जन्म कहीं मूल के नक्षत्रों में तो नहीं हुआ है। आजकल आधुनिक मत रखने वाले लोग भी सबसे पहले यह ज्ञात करते हैं कि कोई मूल का नक्षत्र तो नहीं है, उसके उपरांत अपने बच्चे का जन्म समय तथा दिनांक तय करते हैं। मूल नक्षत्र का जन्म जहाॅ जीवन में कष्ट तथा बाधा देता है उसी प्रकार से यह व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में भी बाधा विलंब तथा वैवाहिक सुख में कमी का कारण बनता है। ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म का अषुभ असर स्त्री तथा पुरूषों दोनों पर अषुभ फलकारी होता है। इस नक्षत्र में जन्म होने पर जातक के विवाह होने में कठिनाई होती है या विवाह के बाद पार्थक्य दोष लगता है, इस पर यदि सप्तम भाव या सप्तमेष किसी प्रकार पीडि़त हो तो कष्ट दोगुना हो जाता है। किसी व्यक्ति का ज्येष्ठा नक्षत्र हो तो उसका विवाह कभी भी घर के बड़े संतान से नहीं करना चाहिए और ना ही ज्येष्ठ मास में करना चाहिए। इस नक्षत्र में जन्में जातक को विवाह से पूर्व कुंडली मिलान करते समय वर तथा वधु दोनों के नक्षत्रों की जानकारी करनी चाहिए तथा समाधान हेतु विवाह से पहले नक्षत्र के मंत्र का कम से कम 28000 जाप संपन्न कराना चाहिए तथा नक्षत्र के मंत्रों का दषांष हवन कराने के उपरांत विवाह संपन्न कराना चाहिए जिससे वैवाहिक जीवन के अनिष्टकारी प्रभाव दूर हो सके।

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Wednesday 3 June 2015

पति-पत्नी के बीच अहंकार और प्रतियोगिता-ज्योतिषीय उपाय से पायें प्रेम और साहचर्य -

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पति-पत्नी के बीच अहंकार और प्रतियोगिता-ज्योतिषीय उपाय से पायें प्रेम और साहचर्य -

आज के भौतिक संसार में मनुष्य भौतिक सुखों के पीछे भाग रहा है, अच्छी आय, मकान, अच्छी गाड़ी जैसे भौतिक साधन जुटाने के उद्देष्य से जब विवाह करता है तो साथी भी समकक्ष अथवा योग्य पाना चाहता है। किंतु इन भौतिक साधन को जुटाने के प्रयास में आपसी रिष्तों को निभाने के लिए समय के अभाव में उन रिश्तों के प्रति उदासीन हो जाता है। मानव मन अपने घर में संसार के सारे सुखों को पा लेना चाहता है। किंतु भौतिक संसाधनों का संग्रह करते और आज के युग के पति-पत्नी के बराबर के भागीदार होने के कारण कई बार उनके अंहकार तथा सामथ्र्य उनके रिष्तों के बीच भी दिखाई देने लगते हैं। पति-पत्नी का नाजुक प्यार भरा रिष्ता एक दूसरे के अंहकार के कारण प्रेम विहीन हो जाता है तब यहीं सुख-साधन बेमानी हो जाते हैं। अतः रिष्तों में सभी कुछ होने के साथ अपनापन, एक दूसरे के लिए आदर और प्रेम हो ना कि अंहकार। ऐसा क्या करना चाहिए कि पति-पत्नी के बीच अहंकार की जगह प्रेम, प्रतियोगिता के स्थान पर सानिध्य मिले। सबसे पहले जाने के पति-पत्नी के बीच इस प्रकार के अंहकार का ज्योतिषय कारण और उसका ज्योतिषीय निदान क्या होगा। जब भी पति-पत्नी की कुंडली में दोनों का तीसरा, सप्तम व द्वादष स्थान एक दूसरे से षडाषटक, या द्वि-द्वादष हो तो ऐसे लोग एक दूसरे से अंहकार का भाव रखते हैं और यदि इनकी कुंडली में इस प्रकार के ग्रह योगो में कहीं भी सूर्य, मंगल अथवा शनि जैसे क्रूर ग्रहों का असर हो तो इनके रिष्तों में दूरी सिर्फ अंहकार के कारण ही आती है। इसी प्रकार यदि लग्न, पंचम, सप्तम या द्वादष स्थान पर शनि अथवा लग्न, चतुर्थ या द्वादष स्थान पर मंगल अथवा लग्न, छठवे या द्वादष स्थान पर सूर्य हो तो ऐसे पति-पत्नी के रिष्तों में भी एक दूसरे से प्रतियोगिता के कारण अंहकार का भाव आता है और इनके रिष्तों में प्रेम तथा आदर के स्थान पर अंहकार तथा प्रतियोगिता होती है। अतः यदि किसी के जीवन में इस प्रकार पति-पत्नी एक दूसरे से अहंकार अथवा प्रतियोगिता के कारण दूर हो रहे हों तो अपनी जन्मपत्रिका का विष्लेषण कराकर आवष्यक ग्रहों की शांति कराना चाहिए साथ ही मंगलागौरी का व्रत तथा गाय की सेवा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपस में प्रेम बढ़ेगा तथा जीवन में सुख साधन के साथ प्यार और अपनापन भी होगा।





विवाह मिलापक की कमियां - करें पूरी कुंडली का विष्लेषण

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सभी अभिभावक की यह हार्दिक कामना होती है कि उसकी संतान का विवाह समय से हो किंतु उससे प्रमुख कामना होती है कि वह विवाह के उपरांत सुख तथा खुष रहे। इस हेतु भारतीय समाज में कुंडली मिलान का प्रमुख स्थान है। अत्यंत आधुनिक माता भी अपनी संतान के विवाह से पूर्व कुंडली मिलान तथा सभी परंपराओं का निर्वाह करना चाहते हैं। विवाह- निर्णय के लिए वर-वधू मेलापक ज्ञात करने की विधि अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय समाज में ऐसी मान्यता है कि जीवनसाथी का श्रेष्ठ मिलान नहीं होता है तो उनका वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है। अतः इस हेतु हिंदु संस्कार में विवाह हेतु कुंडली मिलान का विशेष महत्व है।
साधारणतया अष्टकूट अर्थात् तारा, गुण, वश्य, वर्ण, नाड़ी, योनी, ग्रह गुण आदि के आधार पर वर-वधु मेलापक सारिणी के आधार पर गुणों की संख्या के साथ दोषों के संकेत होते हैं। सर्वश्रेष्ठ मिलान में 36 गुणों का होना श्रेष्ठ मिलान का प्रतीक माना जाता है। उससे आधे अर्थात् 18 गुण से अधिक होना ही कुंडली-मिलान का धर्म कांटा मान लिया जाता है। इससे अधिक जितने भी गुण मिले, वह वैवाहिक जीवन में सफलता का प्रतीक मान लिया जाता है। जहाॅ दोषों का संकेत होता है, उनमें भी शुभ नव पंचम, अशुभ नवपंचम अथवा सामान्य नव पंचम या श्रेष्ठ द्विद्र्वादश, प्रीति षडाष्टक, केंद्र के शुभ-अशुभ का आकलन करके सभी ज्योतिविर्द कुंडली का मिलान कर लेते हैं। किसी प्रकार का दोष होने पर उसका परिहार भी मिल जाता है। कहा जाता है की ‘‘ नाड़ी दोषःअस्ति विप्राणां, वर्ण दोषःअस्ति भूभुजाम्। वैश्यानां गणदोषाः स्यात् शूद्राणां योनि दूषणम् ’’ ब्राम्हणों में नाड़ी दोष मानना आवश्यक है, क्षत्रियों में वर्ण दोष की उपेक्षा नहीं की जा सकती, वैश्यों में गण दोष को प्रधान माना जाता है तथा शूद्रों के लिए योनि दोष की उपेक्षा शास्त्र सम्मत नहीं माना जाता है। आज के युग में जब कि सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह से बदल चुकी है तब हम ब्राम्हण किसे माने किसे क्षत्रिय की संज्ञा दे, किसको वैष्य कहा जाए और किसे शूद्र का दर्जा दिया जाए। इसके अलावा कुंडली मिलापक पूरी तरह चंद्रमा पर आधारित है जिसमें शेष सभी ग्रहों को अनुपयोगी माना गया है। जबकि देखा गया है कि चंद्रमा की तुलना में बाकी के ग्रह भी जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं अतः कुंडली मेलापक की वर्तमान विद्या से इतर सभी ग्रहों के अनुसार उनके ग्रहों की मैत्री का निधारण कर विवाह हेतु निर्णय लेना चाहिए। गुण मेलापक के स्थान पर ग्रह मेलापक पर ज्यादा जोर देने से सही रिष्तों का चयन कर जीवन सुखमय बनाया जा सकता है।


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सूर्य का उच्च राषि मेष में प्रवेष देगा जीवन में स्वास्थ्य एवं समृद्धि-


      समस्त ग्रहों की अपनी उच्च एवं निम्न स्थिति होती हैं जब कोई ग्रह अपने उच्च स्थान पर होता है तो वह अपना अच्छा असर प्राणी पर डालता है। ग्रहों के राजा सूर्य 14 अप्रेल को दोपहर 3.25 बजे मीन राशि को छोड़कर उच्च राशि मेष में प्रवेश करेंगे। ये यहां 15 मई तक रहेंगे। प्रतिवर्ष 13 या 14 अप्रैल को सूर्य मेष राशि में प्रवेश होते ही श्रेष्ठ एवं उच्च का होता है। मेष राशि चक्र की प्रथम राशि है। इस समय सूर्य नक्षत्र समूह के प्रथम नक्षत्र अश्विनी में भी प्रवेश करता है। कई स्थानों पर इस दिन नववर्ष वैशाखी पर्व मनाते हैं। सूर्य एक राशि में एक माह रहता है। सूर्य का उच्च राशि में प्रवेश उन्नतिदायक व खुशहाली देने वाला रहेगा। मेष के सूर्य में तेजी रहती है इसलिए वह सबसे ज्यादा तपता है। यह सूर्य अर्यमा के नाम से भी जाना जाता है। अर्यमा सूर्य 10 हजार किरणों के साथ तपते हुए पीले वर्ण के होते हैं। यह सूर्य प्राणियों में स्वास्थ्य एवं जीवन देते हैं। मेष राशि में सूर्य के प्रवेश के बाद फिर से मांगलिक कार्यों की शुरुआत होगी। जिस भी जातक की कुंडली में सूर्य प्रतिकूलकारी हो अथवा सूर्य राहु से पापाक्रांत हो जाए अथवा सूर्य अपने स्थान से छठवे, आठवे या बारहवे बैठ जाए उन जातकों के लिए सूर्य की मेष संक्रांति विषेष रूप से फलदायी होती है अतः इस समय अपने सूर्य को मजबूत बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए, उसके लिए सूर्य को अध्र्य देना, मंत्रो का जाप करना तथा सूर्य से संबंधित वस्तुओं जैसे गेंहू, गुड तथा माणिक का दान करना चाहिए। ऐसा करने से सूर्य से संबंधित कष्ट का निवारण होता हैं जिन भी जातक को आर्थराइटिस से संबंधित कष्ट हो उनके लिए मेष का सूर्य विषेष फलदायी होता है इस समय सूर्य स्नान से इस रोग से राहत प्राप्त होता है।




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क्या आपमें सेल्फ मोटिवेषन है:-


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क्यों समझते हैं बच्चें अपने पिता को दुष्मन जाने क्या है इसका ज्योतिषीय कारण और निदान करें-

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वाल्मिकी ने कहा है कि
न तो धर्मचरणं किंचिदस्ति महत्तरम्।
यथा पितरि शुश्रूषा तस्य वा वचनक्रिपा॥
(पिता की सेवा अथवा उनकी आज्ञा का पालन करने से बढकर कोई धर्माचरण नहीं है।)
किंतु आज एक पिता अपने ही बच्चों का दुष्मन समझा जाता है इसका ज्योतिषीय कारण क्या है??? कालपुरूष की कुंडली में दसम स्थान को पिता का स्थान माना जाता है जिसका स्वामी शनि है, जोकि न्यायकर्ता, पालनकर्ता होता है वहीं संतान को पंचम भाव से देखा जाता है जोकि सूर्य होता है सूर्य अर्थात् राजा मतलब उसे सभी सुख-साधन चाहिए। अतः यदि किसी भी कुंडली में सूर्य-षनि की युति बने या किसी भी प्रकार से पंचम एवं दसम स्थान के ग्रहों के आपमें संबंध विपरीतकारक हो जाएं या राहु मंगल, शनि तथा सूर्य जैसे ग्रहों से दृष्ट हों तो ऐसे पिता अपने बच्चों के जीवन सुधारने के लिए अपना सब कुछ करने के बाद भी बच्चों का भला नहीं कर पाते और बुरे ही बने रहते हैं। इसी प्रकार यदि किसी की कुंडली में पंचमेष या पंचम भाव छठवे, आठवे या बारहरवे स्थान पर हो तो ऐसे जातक अपने संतान को लेकर जीवनभर परेषान होते रहते हैं।
एक पिता अपने सुख-दुख, अपनी खुषी को निछावर कर अपने बच्चों को सुविधा संपन्न बनाने, एक अच्छा कैरियर देने के लिए प्रयास रत रहता है। अपनी संतान को योग्य बनाने के लिए जी-जान से कोषिष करने और अनुषाासन के लिए प्रेरित करने के कारण बच्चे पिता की अनुशासनप्रियता व सख्ती के चलते पिता को क्रूर समझते हैं किंतु उनके प्रयास को नजरअंदाज कर देते हैं। किशोर बच्चों को सँभालना माता-पिता के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। माता के प्यार तथा पिता से छिपाकर बहुत सहयोग करने के कारण बच्चे माता के तो करीब रहते हैं किंतु एक पिता के योगदान को भुला देते हैं। जब बच्चे युवा उम्र की कठिनाईयों से जुझते हैं जिसमें अपने राह से भटक जाते हैं। वे नियमों का पालन करने में असमर्थ हैं। उन्हें मेहनत करने की भी आदत नहीं होती है, सब कुछ आसानी से चाहिए। उनमें यह प्रवृत्ति माता-पिताओं की अतिशय उदारता (बल्कि दरियादिली) से आती है, जहाॅ अपनी सन्तान को अधिकाधिक सुविधाएँ सुलभ कराने की कोषिष करते हैं जिससे बच्चे अपने जीवन में सफल हो सकें वहीं बच्चों के जीवन में अनुशासन का घोर अभाव देखा जा रहा है। बात-बात में उत्तेजित होना, अपषब्द का प्रयोग करना, कई बार मादक पदार्थों का सेवन करना, फ्लर्ट करना, कई बार चोरी की आदत होना, आर्थिक समृध्दि के झूठे प्रदर्शन के लिए चोरियां करना और शिक्षकों से दुर्व्यवहार करना आदि आज के बच्चों में पाये जाने वाले आम दुर्गुण हैं। पिता जब बच्चों की इन आदतों से वाकिफ होकर सुधारने का प्रयास करता है तो बच्चें अपने पिता को ही अपना दुष्मन समझने लगते हैं। उपाय हेतु शनि की शांति, मंत्रजाप तथा बच्चों को प्रारंभ से ही अनुषासन एवं आवष्यक सुविधा संपन्न बनाना तथा समय रहते दंडाधिकारी की तरह नियमों का पालन कराना चाहिए।


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क्या है अष्टकूट की धारणा-क्यू महत्वपूर्ण हैं नाड़ी और भकुट दोष-


भारतीय ज्योतिष में कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की विधि में मिलाएॅ जाने वाले अष्टकूटों में नाड़ी और भकूट को सबसे अधिक गुण प्रदान किये जाते हैं। नाड़ी को 8 और भकूट को 7 गुण प्रदान किय जाते हैं। मिलान की विधि में यदि नाड़ी और भकूट के गुण मिलते हैं तो गुणों को पूरे अंक और ना मिलने की स्थिति में शून्य अंक दिया जाता है। इस प्रकार से अष्टकूटों के मिलान में प्रदान किये जाने वाले 36 गुणों में 15 गुण केवल इन दो कूटों के मिलान से ही आ जाते हैं। भारतीय ज्योतिष में प्रचलित धारणा के अनुसार इन दोनों दोषों को अत्यंत हानिकारक माना जाता है। इन गुणों के ना मिलने की स्थिति में माना जाता है कि वैवाहिक जीवन में कठिनाई, संतान सुख में कमी तथा वर या वधु की मृत्यु का कारण बनता है। इन दोनों कूटों के मान का इतना महत्व माना जाता है जिसके लिए किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा की किसी नक्षत्र विषेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। नक्षत्र संख्या में कुल 27 होते हैं तथा इनमें से किन्हीं 9 विषेष नक्षत्रों में चंद्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है। इसी प्रकार यदि वर-वधु की कुंडलियों में चंद्रमा परस्पर 6-8, 9-5 या 12-2 राषियों में स्थित हो तो भकूट मिलान के 0 अंक और इन स्थानों पर ना होने पर पूरे 7 अंक प्राप्त होती है। किंतु व्यवहारिक स्वरूप में देखा जाए तो कुंडली मिलान की यह विधि अपूर्ण होने के साथ अनुचित भी है। सिर्फ चंद्रमा का महत्व यदि व्यक्ति के जीवन में आधा मान लिया जाए जैसा कि 36 में से 15 गुण प्रदान करना है तो बाकि के आठ ग्रहों का व्यक्ति की कुंडली में महत्व ही नहीं माना जायेगा। हालांकि भारतीय मत के अनुसार विवाह दो मनों का पारस्पिरिक मिलन होता है तथा चंद्रमा व्यक्ति के मन पर सीधे प्रभाव डालता है इस दृष्टि से चंद्रमा की स्थिति का महत्व माना जा सकता है किंतु किसी व्यक्ति की कुंडली में सुखमय वैवाहिक जीवन के लक्षण, सुख, संतान पक्ष, आर्थिक सुदृढ़ता, अच्छे स्वास्थ्य एवं आपस में मित्रवत् व्यवहार तथा सामंजस्य को देखा जाना ज्यादा आवष्यक है ना कि सिर्फ नाड़ी और भकूट दोष के आधार पर कुंडली के मिलान ना स्वीकारना या नाकारना। इस प्रकार कुंडली मिलान की प्रचलित रीति सुखी वैवाहिक जीवन बताने में न तो पूर्ण है और ना ही सक्षम। इस प्रकार से कुंडली मिलान को मिलान की एक विधि का एक हिस्सा मानना चाहिए न कि अपने आप में एक संपूर्ण विधि। सिर्फ चंद्रमा के अनुसार मिलान की प्रक्रिया के अतिरिक्त अन्य ग्रहों की स्थिति तथा मिलान के अनुसार ग्रह दोषों के अनुसार मिलान ज्यादा सुखी तथा वैवाहिक रिष्तों की नींव होगी जिससे आज के युग में चल रही अलगाव या तलाक की स्थिति को कम कर आपसी सद्भावना तथा तनाव को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।


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बच्चों में मोटापा कहीं कुंडली की गड़बड़ तो नहीं????


किसी भी बच्चें में यदि लग्न में राहु या गुरू अथवा शुक्र राहु के साथ लग्न में हों या इसी प्रकार के योग दूसरे, तीसरे अथवा एकादष स्थान में बन जाए साथ ही लग्नेष शुक्र छठवे, आठवे या बारहवें स्थान में आ जाए तो ऐसे लोग ओवरइटर के षिकार होते हैं अथवा राहु के कारण कम्प्यूटर, मोबाईल जैसे इलेक्टानिक गैजेट के शौकिन होते हैं, जिससे शारीरिक कार्य नहीं होती और कई बार डिप्रेषन के कारण लोगो से कम मिलना अथवा घर में रहकर खाते रहने के आदी हो जाते हैं जिससे मोटापा बढ़ सकता है इसके आलावा कई बार यह जैनिटिकल बीमारी भी होती है इसे भी कुंडली के अष्टम भाव या अष्टमेष के लग्न में होने अथवा राहु से पापक्रांत होने से देखा जा सकता है। मोटापे या स्थूलता से ग्रस्त बच्चों में पहली समस्या यह होती है कि वे आमतौर पर भावुक होते हैं या मनोवैज्ञानिक रूप से समस्याग्रस्त होते हैं। बच्चों में मोटापा जीवन भर के लिए खतरनाक विकार भी उत्पन्न कर सकता है जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, निद्रा रोग और अन्य समस्याएं। कुछ अन्य विकारों में यकृत रोग, यौवन का जल्दी आना, या लड़कियों में मासिक धर्म का जल्दी शुरू होना, आहार विकार, त्वचा में संक्रमण और अस्थमा और श्वसन से सम्बंधित अन्य समस्याएं शामिल हो सकती हैं। अधिक वजन वाले बच्चों को अक्सर उनके साथी चिढ़ाते हैं ऐसे कुछ बच्चों के साथ तो खुद उनके परिवार के लोगों के द्वारा भेदभाव किया जाता है, इससे उनके आत्मविश्वास में कमी आती है और वे अपने आत्मसम्मान को कम महसूस करते हैं और अवसाद से भी ग्रस्त हो सकते हैं। अगर आपके परिवार में किसी बच्चे में ऐसी स्थिति दिखाई दे तो उसकी कुंडली का विष्लेषण कराया जाकर ग्रहों की स्थिति के अनुसार उचित ग्रहषांति, बच्चें के व्यवहार एवं खानपान, रहनसहन में परिवर्तन कर इस समस्या से बचा जा सकता है।

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कैसे रोके बच्चों के भटकाव को-


आज के आधुनिक युग में जहाॅ सभी प्रकार की सुख-सुविधाएॅ जुटाने का प्रयास हर जातक करता है, वहीं पर उन सुविधाओं के उपयोग से आज की युवा पीढ़ी भटकाव की दिषा में अग्रसर होती जा रही है। पैंरेंटस् जिन वस्तुओं की सुविधाएॅ अपने बच्चों को उपयेाग हेतु मुहैया कराते हैं, वहीं वस्तुएॅ बच्चों को गलत दिषा में ले जाती है। कई बार देखने में आता है कि जो बच्चे बहुत अच्छा प्रदर्षन करते रहे हैं वे भी ठीक अपनी दिषा, अपने अध्ययन तथा लक्ष्य से भटकर अपना पूरा कैरियर खराब कर देते हैं। कई बार माता-पिता इन सभी बातों से पूर्णतः अंज्ञान रहते हैं और कई बार जानते हुए भी कोई हल निकालने में असमर्थ होते हैं। स्कूल षिक्षा तक बहुत अच्छा प्रदर्षन करने वाला अचानक अपने एजुकेषन में गिरावट ले आता है तथा इससे कैरियर में तो प्रभाव पड़ता ही है साथ ही मनोबल भी प्रभावित होता हैं अतः यदि आपके भी उच्च षिक्षा या कैरियर बनाने की उम्र में पढ़ाई प्रभावित हो रही हो या षिक्षा में गिरावट दिखाई दे रही हो तो सर्वप्रथम व्यवहार तथा अपने दैनिक रूटिन पर नजर डालें। इसमें क्या अंतर आया है, उसका निरीक्षण करने के साथ ही अपनी कुंडली किसी विद्धान ज्योतिष से दिखा कर यह पता करें कि क्या कुंडली में राहु या शुक्र प्रभावकारी है। यदि कुंडली में राहु या शुक्र दूसरे, तीसरे, अष्टम या भाग्यस्थान में हो साथ ही इनकी दषा, अंतरदषा या प्रत्यंतरदषा चल रही हो तो गणित या फिजिक्स जैसे विषय की पढ़ाई प्रभावित होती है साथ ही ऐसे लोगों के जीवन में कल्पनाषक्ति प्रधान हो जाती है। पहली उम्र का असर उस के साथ ही राहु शुक्र का प्रभावकारी होना एजुकेषन या कैरियर में बाधक हो सकता है। यदि इस प्रकार की बाधा दिखाइ्र दे तो शांति के लिए भृगुरा पूजन साथ कुंडली के अनुरूप आवष्यक उपाय आजमाने से कैरियर की बाधाएॅ समाप्त होकर अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकती है।




मंगल के दोषों को दूर करें रक्तदान द्वारा -

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अनेक रोगों से पीडित व्यक्तियों के शरीर को बार-बार रक्त की आवश्यकता रहती है जिसके कारण उनको खून चढाना अनिवार्य हो जाता है। समय पर खून ना प्राप्त होने की स्थिति में उनका जीवन खतरे में रहता है। ऐसे लोगों को जिन्हें समय पर रक्त मिल जाए और उनका जीवन सुरक्षित हो तो उनके तथा उनके अपनो द्वारा जो दुआ दी जाती है वह दानकर्ता के जीवन में सुख का संचार कर सकती है। अतः कलयुग का सबसे पुण्यदायी कार्य रक्तदान करना माना जा सकता है क्योंकि इस समय घटनाएॅ दुर्घटनाएॅ तथा सर्जरी के निरंतर बढ़ते काल में रक्तदान सबसे प्रभावी और प्रासंगिक दान कहा जा सकता है। रक्तदान करना ना सिर्फ दान के लिए अपितु अपने ग्रहों की शांति के लिए भी आवश्यक है। अगर हम रक्तदान और ज्योतिषीय गणना को देखें तो किसी भी जातक की कुंडली में अगर मंगल या केतु लग्र, द्वितीय, तृतीय, एकादश अथवा द्वादश स्थान में हों या इन स्थानों के स्वामी होकर छठवे, आठवे या बारहवे स्थान पर बैठ जाए तो ऐसे लोगों तो चोट-मोच तथा दुर्घटना की आशंका रहती है। अगर ऐसे लोग रक्तदान कर अपना रक्त पहले ही निकाल दें तो आकस्मिक चोट से रक्त बहने की स्थिति नहीं निर्मित होगी अर्थात रक्तदान द्वारा मंगल के दोषों की निवृत्ति होती है। साथ ही अगर किसी की कुंडली में शनि तथा केतु का योग किसी भी स्थान में हो अथवा मंगल और शनि की युति बने तो ऐसे लोगों को अचानक सर्जरी की आवश्यकता आ पड़ती है अतः ऐसे लोगों की कुंडली का विश्लेषण कराया जा कर इनकी दशाओं और अंतरदशाओं के पूर्व रक्तदान करने से सर्जरी से बचा जा सकता है। किसी गर्भवती महिला की कुंडली में यदि मंगल तृतीय, चतुर्थ, पंचम भाव या इन भाव का स्वामी होकर छठवे, आठवे या बारहवे स्थान में हो जाए तो ऐसी स्थिति में अगर संतान के जन्म के समय ज्यादा रक्त बहने या रक्तबहाव ना रूकने की स्थिति बन जाती है ऐसी स्थिति में मंगल की शांति करने से भी रक्त बहना रूकता है अतः मंगल और रक्त का संबंध है। रक्त का सीधा संबंध पृथ्वी व जल तत्व से है तथा ग्रहों में इसका रिश्ता मंगल से है जो कि लाल रंग का प्रतिनिधि कहा जाता है। बार-बार दुर्घटनाओं में रक्त बहने जैसी समस्याएं सामने हों, उनके लिए मंगल के सभी दोषों का परिहार रक्तदान से हो जाता है। व्यक्ति के जीवन में जितना रुधिर शरीर से निकलना लिखा होगा, उतना निकलेगा ही। चाहे वह दुर्घटना से निकलकर बह जाए या और किसी कारण से। ऐसे में रक्तदान कर लिए जाने मात्र से इस होनी को टाला जा सकता है और जीवन में दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है।
जिन लोगों को मांगलिक दोष है और इस वजह से दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा है, घर में कलह है, शादी नहीं हो पा रही है, उनके लिए मंगल को प्रसन्न करने के लिए रक्तदान से बड़ा कोई पुण्य है ही नहीं। रक्तदान कर लिए जाने से भी मंगल दोष का परिहार हो सकता है। शेष सभी प्रकार के दान उपयोग के बाद नष्ट हो जाते हैं, सिर्फ रक्तदान ही एकमात्र ऐसा दान है जो किसी के जीवन को बचा सकता है अतः यह दान महादान कहा जाता है।

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मांगलिक दोष एवं उसका आध्यात्मिक निदान-

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विवाह के अवसर पर वर एवं वधू की कुण्डली मिलान करते समय अष्टकूट के साथ-साथ मांगलिक दोष पर भी विचार किया जाता है। इसे शास्त्रों में कुज दोष या भौम दोष का नाम भी दिया गया है। इस दोष को गहराई से समझना आवश्यक है, ताकि इसका भय दूर हो सके। भारतीय ज्योतिष के अनुसार यदि मंगल प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में स्थित हो तो मंगल दोष माना जाता है। विद्वानों ने राशि से भी उक्त स्थानों पर मंगल के होने पर यह दोष बताया है। किसी भी पत्रिका में यह योग हो तो उस कुण्डली को मंगली कहा जाता है। वर-वधू में से किसी एक की कुण्डली के इन भावों में मंगल हो तथा दूसरे की पत्रिका में नहीं तो ऐसी परिस्थिति को वैवाहिक जीवन के लिए अनिष्टकारक कहा गया है तथा ज्योतिषी उन दोनों का विवाह न करने की सलाह दे देते हैं। यदि वर-वधू दोनों की कुण्डली में उक्त दोष हो तो दोष समाप्त समझा जाता है। यह दोष तब और प्रबल हो जाता है जब जन्म कुण्डली में इन पांचों भावों में मंगल के साथ अन्य क्रूर ग्रह (शनि, राहू, केतु) बैठे हों। बृहत् पाराशर के अनुसार विकलरू पाप संयुतरू अर्थात पापी ग्रह से युक्त ग्रह विकल अवस्था का होगा तथा दोष कारक होगा। अतः शनि या राहु की युति से मांगलिक दोष में अभिवृद्धि हो जाती है।
मांगलिक दोष की निवृत्ति हेतु मंगल तथा अन्य ग्रहों की शांति एवं सफल वैवाहिक जीवन हेतु लडको का अर्क विवाह एवं कन्याओं हेतु कुंभ विवाह कराना चाहिए। साथ ही पावर्ती-मंगल स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। वैवाहिक जीवन के कष्ट को दूर करने के लिए मंगल का व्रत करने से मंगल दोष की निवृत्ति होती है।


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Monday 1 June 2015

जानें विश्व में ख्याति कैसे प्राप्त करें जानें हाथों की रेखाओं से

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नेम एंड फेम दिलाने वाली रेखा
हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार हथेली में एक विशेष रेखा ऐसी बताई गई है जो बता देती है कि कोई व्यक्ति नेम एंड फेम प्राप्त करेगा या नहीं। यदि आप भी जानना चाहते हैं कि आपको प्रसिद्धि मिलेगी या नहीं तो यहां दी गई खबर से जानिए आपके भविष्य से जुड़ी खास बातें।
हाथों में दिखाई देने वाली रेखाएं हमारा भूत, भविष्य और वर्तमान बता देती हैं। हाथों की सभी रेखाओं का अलग-अलग महत्व होता है। हर रेखा अलग विषय की भविष्यवाणी करती है।
नेम एंड फेम दिलाने वाली रेखा रिंग फिंगर (अनामिका उंगली) के नीचे वाले हिस्से पर होती है। ये रेखा खड़ी अवस्था में दिखाई देती है। आमतौर पर ये रेखा सभी लोगों के हाथों में नहीं होती है। कई परिस्थितियों में ये रेखा होने के बाद भी व्यक्ति को पैसों की तंगी भी झेलना पड़ सकती है और प्रसिद्धि भी प्राप्त नहीं होती है।
हथेली में अनामिका उंगली (रिंग फिंगर) के ठीक नीचे वाले भाग सूर्य पर्वत पर सूर्य रेखा होती है। इस भाग पर जो रेखाएं खड़ी अवस्था में होती हैं, वे ही सूर्य रेखा कहलाती हैं। यदि किसी व्यक्ति के हाथ में ये रेखा दोष रहित हो तो व्यक्ति को जीवन में भरपूर मान-सम्मान और पैसा प्राप्त होता है।
सूर्य रेखा सूर्य पर्वत से हथेली के नीचले हिस्से मणिबंध या जीवन रेखा की ओर जाती है। सूर्य रेखा यदि अन्य रेखाओं से कटी हुई हो या टूटी हुई हो तो इसका शुभ प्रभाव समाप्त हो सकता है।
- हथेली में भाग्यरेखा से निकलकर सूर्य रेखा अनामिका उंगली की ओर जाती है तो यह भी शुभ प्रभाव दर्शाने वाली स्थिति होती है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति बहुत नाम और पैसा कमा सकता है।
- यदि किसी व्यक्ति के हाथ में मणिबंध से अनामिका उंगली तक सूर्य रेखा है तो यह बहुत शुभ स्थिति मानी जाती है। ऐसे लोग जीवन में बहुत कामयाब होते हैं और भरपूर धन लाभ प्राप्त करते हैं।सूर्य रेखा लहरदार हो तो
यदि किसी व्यक्ति के हाथ में सूर्य रेखा लहरदार होती है तो व्यक्ति किसी भी कार्य को एकाग्रता के साथ नहीं कर पाता है। यदि यह रेखा बीच में लहरदार हो और सूर्य पर्वत पर सीधी एवं सुंदर हो गई हो तो व्यक्ति किसी विशेष कार्य में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त कर लेता है।
सूर्य रेखा पर क्रॉस का निशान हो तो
यदि सूर्य रेखा पर किसी क्रॉस का निशान हो तो व्यक्ति को जीवन में कई बार दुखों का सामना करना पड़ता है। ऐसे लोग कठिनाइयों के साथ कार्य को पूरा करते हैं और फिर भी इन्हें उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं हो पाता है।इन लोगों को मिलता है मान-सम्मान और सुख-सुविधाएं
यदि किसी व्यक्ति के हाथों में जीवन रेखा से निकलकर सूर्य रेखा अनामिका उंगली की ओर जाती है तो यह रेखा व्यक्ति को भाग्यशाली बनाती है। ऐसे लोग जीवन में सभी सुख और सुविधाओं के साथ मान-सम्मान भी प्राप्त करते हैं।
सूर्य रेखा चंद्र पर्वत से निकली हो तो
यदि किसी व्यक्ति के हाथ में चंद्र पर्वत से निकलकर कोई रेखा सूर्य पर्वत की ओर जाती है तो यह भी सूर्य रेखा ही कहलाती है। चंद्र पर्वत हथेली में अंगूठे के ठीक दूसरी ओर अंतिम भाग को कहते हैं। यहां से रेखा निकलकर अनामिका उंगली की ओर जाती है तो व्यक्ति की कल्पना शक्ति बहुत तेज रहती है। इन लोगों की भाषा पर अच्छी पकड़ रहती है।जब सूर्य रेखा के साथ हों अन्य रेखाएं
यदि किसी व्यक्ति के हाथ में सूर्य के साथ ही एक या एक से अधिक खड़ी समानांतर रेखाएं चल रही हों तो ये रेखाएं सूर्य रेखा के शुभ प्रभावों को और अधिक बढ़ा देती हैं। इस प्रकार की रेखाओं के कारण व्यक्ति समाज में प्रसिद्ध होता है और धन-ऐश्वर्य प्राप्त करता है।
लंबी सूर्य रेखा से होता है ज्यादा लाभ
हथेली में सूर्य रेखा जितनी लंबी और स्पष्ट होती है, उतना अधिक लाभ देती है। यदि यह रेखा अन्य रेखाओं से कटी हुई हो या बीच-बीच में टूटी हुई हो तो इसके शुभ प्रभाव खत्म हो जाते हैं। लंबी, साफ एवं स्पष्ट सूर्य रेखा होने पर व्यक्ति बुद्धिमान होता है और घर-परिवार के साथ ही समाज में भी एक खास मुकाम हासिल करता है।जब सूर्य रेखा से निकलती हों शाखाएं
यदि किसी व्यक्ति की हथेली में सूर्य पर्वत (अनामिका की उंगली यानी रिंग फिंगर के ठीक नीचे वाला भाग सूर्य पर्वत कहलाता है।) पर पहुंचकर सूर्य रेखा की एक शाखा शनि पर्वत (मध्यमा उंगली के नीचे वाला भाग शनि पर्वत कहलाता है।) की ओर तथा एक शाखा बुध पर्वत (सबसे छोटी उंगली के ठीक नीचे वाला भाग बुध पर्वत होता है।) की ओर जाती हो तो ऐसा व्यक्ति बुद्धिमान, चतुर, गंभीर होता है। ऐसे लोग समाज में मान-सम्मान प्राप्त करते हैं और बहुत पैसा कमाते हैं।
ऐसे लोगों का जीवन होता है शाही
ऐसे लोग राजा-महाराजाओं के समान शाही जीवन व्यतीत करते हैं, जिनके हाथों में सूर्य रेखा बृहस्पति पर्वत (इंडेक्स फिंगर के नीचे वाला भाग बृहस्पति पर्वत कहलाता है।) तक जाती है। बृहस्पति पर्वत पर पहुंचकर सूर्य रेखा के अंत में यदि किसी तारे का निशान बना हो तो व्यक्ति किसी राज्य का बड़ा अधिकारी हो सकता है।
हथेली में सूर्य रेखा न हो तो
यदि किसी व्यक्ति के हाथ में सूर्य रेखा न हो तो इसका मतलब यह नहीं माना जा सकता है कि व्यक्ति जीवन में सफल नहीं होगा। सूर्य रेखा कुछ लोगों के हाथों में नहीं होती है। यह रेखा जीवन में व्यक्ति की सफलता को आसान बनाती है। सूर्य रेखा न होने पर व्यक्ति को परिश्रम अधिक करना पड़ सकता है, लेकिन व्यक्ति सफल भी हो सकता है। हथेली में सूर्य रेखा न हो और अन्य रेखाओं का प्रभाव शुभ हो तो व्यक्ति जीवन में उल्लेखनीय कार्य कर सकता है।सूर्य रेखा पर बिंदु का निशान हो तो
सूर्य रेखा पर बिंदु का निशान हो तो व्यक्ति को अशुभ प्रभाव प्राप्त होते हैं। ऐसी रेखा वाले इंसान की बदनामी होने का भय बना रहता है। यदि बिंदु एक से अधिक हों और अधिक गहरे हों तो यह स्थिति समाज में अपमानित होने का योग बनाती है। अत: ऐसी रेखा वाले इंसान को सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए।
- यदि सूर्य रेखा से छोटी-छोटी शाखाएं निकल रही हों और वे ऊपर उंगलियों की ओर जा रही हो तो यह शुभ लक्षण होता है।
- यदि सूर्य रेखा से छोटी-छोटी शाखाएं निकलकर नीचे की ओर जा रही हो तो ये रेखाएं सूर्य रेखा को कमजोर करती हैं।सूर्य रेखा के दोष दूर करने के उपाय
- यदि किसी व्यक्ति के हाथ में सूर्य रेखा न हो तो उसे समाज में मान-सम्मान बड़ी कठिनाइयों से प्राप्त होता है। साथ ही पैसा कमाने में भी कड़ी मेहनत करना होती है।
- सूर्य रेखा का संबंध सूर्य देव से है। सूर्य मान-सम्मान का कारक ग्रह है। अत: सूर्य रेखा के दोषों को दूर करने के लिए सूर्य देव की आराधना करनी चाहिए।
- प्रतिदिन सूर्य को जल अर्पित करने से सूर्य रेखा के दोष दूर हो जाते हैं।
- अपने सामर्थ्य के अनुसार सूर्य देव के निमित्त गरीब लोगों को पीले रंग की वस्तुएं दान करनी चाहिए।
- शिवलिंग पर जल चढ़ाएं, इससे भी सूर्य संबंधी दोषों की शांति होती है।
हथेली की सभी रेखाओं का अलग-अलग महत्व होता है। एक रेखा के गुण, दूसरी रेखा के अवगुणों को समाप्त कर सकते हैं। अत: हथेली की स्थिति, बनावट और सभी रेखाओं का अध्ययन गहनता से किया जाना चाहिए। तभी सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है।

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