Monday, 31 August 2015

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर इस बार (5 सितंबर) 24 घंटे रोहिणी नक्षत्र रहेगा। 50 साल बाद यह स्थिति बनी है। इस दिन अमृत तथा सर्वार्थसिद्धि योग का विशेष संयोग भी बन रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार ध्ाार्मिक कार्य व खरीदारी के लिए यह दिन श्रेष्ठ रहेगा।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार जन्माष्टमी शनिवार के दिन वृषभ राशि के चंद्रमा की साक्षी में हर्षल योग, बालव करण तथा रोहिणी नक्षत्र में आ रही है। इस दिन रोहिणी नक्षत्र का प्रभाव करीब 90 फीसद रहेगा।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र का होना विशेष शुभ माना जाता है। क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी नक्षत्र में हुआ है। इस नक्षत्र में योगेश्वर श्रीकृष्ण का पूजन सुख-शांति तथा समृद्धि देने वाला माना गया है। साधना तथा नवीन वस्तुओं की खरीदी के मान से भी यह दिन सर्वोत्तम है।
ऐसे बना दोहरा संयोग
जन्माष्टमी पर शनिवार के दिन बालव करण के होने से अमृत तथा सर्वार्थसिद्धि को दोहरा संयोग बना है। यह दोनों योग शुभ कार्यों में सिद्धि देने वाले माने गए हैं।

तुलसी विवाह की पूजन विधि और मान्यता

देवोत्थान एकादशी के दिन मनाया जाने वाला तुलसी विवाह विशुद्ध मांगलिक और आध्यात्मिक प्रसंग है। देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का आयोजन माना जाता है। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आहावान। कार्तिक, शुक्ल पक्ष, एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव मनाया जाता है। वैसे तो तुलसी विवाह के लिए कार्तिक, शुक्ल पक्ष, नवमीकी तिथि ठीक है, परन्तु कुछ लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन कर पाँचवें दिन तुलसी विवाह करते हैं। आयोजन बिल्कुल वैसा ही होता है, जैसे हिन्दू रीति-रिवाज से सामान्य वर-वधु का विवाह किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के दिन से सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु विश्रामावस्था अर्थात अपने शयनकक्ष में चले जाते हैं। इसी दिन से शादी-ब्याह, ब्रतबंध, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। देवउठनी एकादशी की तिथि से भगवान के जागने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी और समस्त मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाएगी।
धार्मिक मान्यता:
मंडप, वर पूजा, कन्यादान, हवन और फिर प्रीतिभोज, सब कुछ पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ निभाया जाता है। इस विवाह में शालिग्राम वर और तुलसी कन्या की भूमिका में होती है। यह सारा आयोजन यजमान सपत्नीक मिलकर करते हैं। इस दिन तुलसी के पौधे को यानी लड़की को लाल चुनरी-ओढऩी ओढ़ाई जाती है। तुलसी विवाह में सोलह शृंगार के सभी सामान चढ़ावे के लिए रखे जाते हैं। शालिग्राम को दोनों हाथों में लेकर यजमान लड़के के रूप में यानी भगवान विष्णु के रूप में और यजमान की पत्नी तुलसी के पौधे को दोनों हाथों में लेकर अग्नि के फेरे लेते हैं। विवाह के पश्चात प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है। कार्तिक मास में स्नान करने वाले स्त्रियाँ भी कार्तिक शुक्ल एकादशी को शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती है। समस्त विधि विधान पूर्वक गाजे बाजे के साथ एक सुन्दर मण्डप के नीचे यह कार्य सम्पन्न होता है विवाह के स्त्रियाँ गीत तथा भजन गाती है ।
विधि-विधान से तुलसी पूजन एवं तुलसी विवाह करने से भगवत कृपा द्वारा घर में सुख-शांति, समृद्धि का वास होता है। हिन्दुओं के संस्कार अनुसार सभी शुभ मांगलिक कार्यों में तुलसीदल अनिवार्य माना गया है। तुलसी घर-आँगन के वातावरण को सुखमय तथा स्वास्थ्यवर्धक बनाती है इसलिए प्रतिदिन तुलसी में जल देना तथा उसकी पूजा करना आरोग्यदायक है। कार्तिक माह में सुबह स्नान आदि से निवृत होकर तांबे के बर्तन में जल भरकर तुलसी को जल देना चाहिए तथा संध्या समय में तुलसी जी के चरणों में शुद्ध देसी घी का दीपक अवश्य जलाना चाहिए। तत्पश्चात श्रद्धा एवं सामथ्र्य अनुसार धूप, सिंदूर, चंदन लगाकर नैवेध तथा पुष्प अर्पित कर घर में सुख, शांति का वरदान मां तुलसी ए वं विष्णु भगवान से मांगना चाहिए। केवल कार्तिक माह में ही नहीं बलिक प्रतिदिन तुलसी को देवी रुप में हर घर में पूजा जाता है। इसकी नियमित पूजा से व्यक्ति किे पापों से मुक्ति तथा पुण्य फल में वृद्धि मिलती है।
तुलसी पूजन की सामान्य सामग्री:
तुलसी पूजा के लिए गन्ना (ईख), विवाह मंडप की सामग्री, सुहागन स्त्री की संपूर्ण सामग्री, घी, दीपक, धूप, सिंदूर, चंदन, नैवद्य और पुष्प आदि।
तुलसी पूजन का श्रेष्ठ मुहूर्त: शाम 7.50 से 9.20 तक शुभ चौघडिय़ां में तुलसी पूजन करें।
तुलसी के आठ नाम
धर्मशास्त्रों के अनुसार तुलसी के आठ नाम बताए गए हैं- वृंदा, वृंदावनि, विश्व पूजिता, विश्व पावनी, पुष्पसारा, नन्दिनी, तुलसी और कृष्ण जीवनी।
तुलसी विवाह की पूजन विधि:
तुलसीजी के विवाह हेतु मां तुलसी के पौधे के गमले को गेरु से सजाना चाहिए, गमले के चारों ओर ईख (गन्ने) का मंडप बनाकर गमले के ऊपर ओढनी या सुहाग की प्रतीक चुनरी ओढ़ाई जाती है। उसके बाद गमले को साड़ी में लपेटकर तुलसीजी को चूड़ी पहनाकर उनका श्रंगार किया जाता है। पूजन श्री गणेश जी की वन्दना के साथ प्रारम्भ करके सभी देवी-देवताओं का तथा श्री शालिग्रामजी का विधिवत पूजन करना चाहिए। पूजन करते समय तुलसी मंत्र (तुलस्यै नम:) का जप करें। इसके बाद एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखें। भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा करें। आरती के पश्चात विवाहोत्सव पूर्ण किया जाता है। विवाह में जो सभी रीति-रिवाज होते हैं उसी तरह तुलसी विवाह के सभी कार्य किए जाते हैं। विवाह से संबंधित मंगल गीत भी गाए जाते हैं। तुलसी पूजा करने के कई विधान शास्त्रों में वर्णित हैं, उनमें से गृहस्थों के लिए तुलसी नामाष्टक का पाठ करने का विधान है। तुलसी विवाह के समय एवं प्रतिदिन कार्तिक मास में तुलसी नामाष्टक का पाठ विशेष लाभदायक रहता है।
जो व्यक्ति तुलसी नामाष्टक का नियमित पाठ करता है उसे अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है। तुलसी नामाष्टक:
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी, पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।
एतभामांष्टक चौव स्तोत्रं नामर्थं संयुतम, य: पठेत तां च सम्पूज सौश्रमेघ फलंलमेता।।
पुराणों में वर्णित है, लक्ष्मी और तुलसी का सम्बन्ध भगवान विष्णु के साथ होने के कारण जिस घर में नियमित रूप से तुलसीजी का पूजन विधि-विधान एवं श्रद्धापूर्वक होता है, वहीं लक्ष्मी जी निवास करती हैं।
तुलसी विवाह कथा:
प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ़ बड़ा उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वजंयी बना हुआ था। जालंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गये तथा रक्षा की गुहार लगाई। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया। उधर, उसका पति जालंधर, जो देवताओं से युद्ध कर रहा था, वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया। जब वृंदा को इस बात का पता लगा तो क्रोधित होकर उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया, जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम भी अपनी स्त्री का छलपूर्वक हरण होने पर स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्यु लोक में जन्म लोगे। यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। जिस जगह वह सती हुई वहाँ तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। विष्णु बोले, हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा। बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के विवाह का प्रतीकात्मक विवाह है।
तुलसी की पूजा से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है, धन की कोई कमी नहीं होती। इसके पीछे धार्मिक कारण है। तुलसी में हमारे सभी पापों का नाश करने की शक्ति होती है, इसकी पूजा से आत्म शांति प्राप्त होती है। तुलसी को लक्ष्मी का ही स्वरूप माना गया है। विधि-विधान से इसकी पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और इनकी कृपा स्वरूप हमारे घर पर कभी धन की कमी नहीं होती। कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है। इस एकादशी पर तुलसी विवाह का विधिवत पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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आत्मविश्वास

आत्मविश्वास वस्तुत: एक मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति है। आत्मविश्वास से ही विचारों की स्वाधीनता प्राप्त होती है और इसके कारण ही महान कार्यों में सरलता और सफलता मिलती है। इसी के द्वारा आत्मरक्षा होती है। जो व्यक्ति आत्मविश्वास से ओत-प्रोत है, उसे अपने भविष्य के प्रति किसी प्रकार की चिन्ता नहीं सताती। दूसरे व्यक्ति जिन सन्देहों और शंकाओं से दबे रहते हैं, वह उनसे सदैव मुक्त रहता है। यह प्राणी की आंतरिक भावना है। इसके बिना जीवन मे सफल होना अनिश्चित है। आत्मविश्वास वह अद्भुत शक्ति है जिसके बल पर एक अकेला मनुष्य हजारों विपत्तियों एवं शत्रुओं का सामना कर लेता है। निर्धन व्यक्तियों की सबसे बड़ी पूंजी और सबसे बड़ा मित्र आत्मविश्वास ही है। इस संसार में जितने भी महान कार्य हुए हैं या हो रहे हैं, उन सबका मूल कारण आत्मविश्वास ही है। संसार में जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, यदि हम उनका जीवन इतिहास पढ़ें तो पाएंगे कि इन सभी में एक समानता थी और वह समानता थी- आत्मविश्वास की।
जब किसी व्यक्ति को यह अनुभव होने लगता है कि वह उन्नति कर रहा है, ऊंचा उठ रहा है, तब उसमें स्वत: आत्मविश्वास से पूर्ण बातें करने की शक्ति आ जाती है। उसे शंका पर विजय प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति के मुखमण्डल पर विजय का प्रकाश जगमगा रहा हो, सारा संसार उसका आदर करता है और उसकी विजय विश्वास में परिणत हो जाती है। आपने भी अनेक बार अनुभव किया होगा कि जो व्यक्ति आप पर अपनी शक्ति का प्रभाव डालते हैं, आप उनका विश्वास करने लगते हैं। इस सबका कारण उनका आत्मविश्वास है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है, वह स्वत: दिव्य दिखाई पडऩे लगता है, जिसके कारण हम उसकी ओर खिंच जाते हैं और उसकी शक्ति पर विश्वास करने लगते हैं।
कहते हैं उस व्यक्ति के लिए मौके की और सफलता की कोई कमी नहीं है जिसमें आत्मविश्वास होता है। परफेक्ट पर्सनलिटी वही होता है जिसमें कॉन्फीडेन्स होता है। आत्मविश्वास वह चॉबी है जो जिस व्यक्ति के हाथ में होती है उसके लिए हर ताले को खोलना आसान होता है। कोई व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान हो। कितना भी सुन्दर हो लेकिन अगर उसमें आत्मविश्वास नहीं है तो वह चाहकर भी वह सफलता प्राप्त नहीं कर पाता है।
आत्मविश्वास की कमी से हममें असुरक्षा और हीनता का आभास होता है। अगर हमारा आत्मविश्वास कम हो तो हमारा रवैय्या नकारात्मक् रहता है और हम तनाव से ग्रस्त रहते हैं। नतीजतन हमारी एकाग्रता भी कम हो जाती है और हम निर्णय लेते समय भ्रमित और गतिहीन से हो जाते हैं। इससे हमारा व्यक्तित्व पूरी तरह से खिल नहीं पाता। ऐसे में सफलता तो कोसों दूर रहती है।
आत्मविश्वास क्या है?
हर परिस्थिति एक व्यक्ति से कुछ अपेक्षा करती है और हर व्यक्ति की उस अपेक्षा को पूरा करने की अलग-अलग क्षमता होती है। अगर किसी स्थिति की अपेक्षा उसकी क्षमता से ज़्यादा हो तो वह आत्मविश्वास की कमी महसूस करता है। और अगर उसकी क्षमता उस स्थिति की अपेक्षा पूरी करने के बराबर हो तो वह आत्मविश्वास से भरपूर महसूस करता है। इसलिए आत्मविश्वास को कायम रखने के लिए हम यह साफ़ तौर पर देख सकते हैं कि एक तरफ़ तो हमें परिस्थितियों से जूझने की अपनी क्षमता को बढ़ाना चाहिए और दूसरी ओर हमें दुर्गम परिस्थितियों की अपेक्षाओं को सम्भालना सीखना चाहिए।
हम परिस्थितियों से जूझने की अपनी क्षमता कैसे बढ़ाएं ?
हमें सर्वप्रथम् ख़ुद को अपनी ही नजऱों में उठना पड़ेगा। इसलिए हमें देखना पड़ेगा की हम कभी अपने को किसी से कम न समझें और न ही किसी और के साथ अपना मुल्याँकन करें या करने दें। यह जान लें कि हम सब अपनी-अपनी जगह पर सही व पूर्ण हैं। और जब-जब हम अपनी तुलना किसी और से करते हैं तब-तब हम अपने साथ एक बहुत बड़ा अपराध करते हैं।
आत्मविश्वास को बढ़ाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम होगा जब हम ख़ुद को मायूस कर देने वाले व्यक्तियों व नकारात्मक् परिस्थितियों से कोसों दूर रखें क्योंकि यह हमारे आत्मविश्वास को एकदम क्षीण कर देती हैं। इनसब के विप्रीत हमें अपना उत्साह बड़ाने के लिए ख़ुद को सकारात्मक् वैचारिक-संदेश देते रहना चाहिए मैं श्रेष्ठ हूँ, पूर्ण हूँ, सम्पूर्ण हूँ। मुझमें कोइ कमी नहीं है। मैं कोइ भी कार्य करने में सक्षम् हूँ। मैं सही हूँ।...
कई बार अपने में आत्मविश्वास जगाने के लिए आत्मविश्वास से भरपूर व्यक्ति का अभिनय करना या उस जैसा बर्ताव करना काफ़ी मददगार साबित होता है। एक आत्मविश्वास से प्रफुल्लित व्यक्ति के शारीरिक संकेत कुछ खास होते हैं। उसके चहरे के हाव-भाव विश्रामपूर्ण होते हैं जिससे आत्मविश्वास और प्रभावनीयता झलकती है। उसकी शारीरिक क्रीया आरामदाय, सहज व शाँत होती है। उसकी दृष्टी सीधी, ध्यानपूर्ण, रूचीपूर्ण और प्रभावशाली होती है। उसकी आवाज़ सुरीली व आसानी से सुने जाने की सीमा तक ऊँची होती है।
कहते हैं -- पहली छाप ही आपकी अंतिम छाप होती है -- इसलिए हमें अपनी दिखावट, वेशभूषा, बर्ताव इत्यादी को ठीक-ठाक रखना चाहिए जिससे कि अन्य व्यक्ति पर अच्छा प्रभाव पड़े। हमें निरंतर अपने सामान्य-ज्ञान को बढ़ाते रहना चाहिए। इन सभी उपरोक्त कदमों से हम ख़ुद को अपनी ही नजऱों में उठा पायेंगे। कुछ और कदम भी हैं जो हम अपनी जूझने की क्षमता को बढ़ाने के लिए ले सकते हैं। जब हम अपने को विलक्षण व कठिन परिस्थितियों में पाते हैं तब उनसे भाग जाने की बजाए हमें उनका डटकर मुकाबला करने को चुनना चाहिए। हमें अपने को हमेशा प्रशिक्षित् करते रहना चाहिए जिससे हम अपने ज्ञान में लगातार वृद्धी करते रहें। हम सब में एक प्रतिभा छिपि रहती है और हमारा उद्देष्य होना चाहिए कि हम वह खोजें व उभारें।
आत्मविश्वास बढ़ाने की प्रक्रिया कोई रातों-रात सम्पन्न नहीं होती यह धीरे-धीरे नन्हे-नन्हे कदमों को मिला-मिला कर बनती है। इसलिए हमें धीरे-धीरे अपने को कठिन परिस्थितियों से सामना करवा कर और उन पर विजय पाकर आगे बडऩा होगा। कई बार हम विफल होंगे मगर हमें हार माने बिना फिर भी उसी पथ पर चलते रहना पड़ेगा।
कईं बार तनाव व बेचैनी को संभालने की तकनीक काफ़ी लाभप्रद होती हैं जैसे -- शारीरिक तनाव कम करने की तकनीक, गहरे साँस लेने की तकनीक, बुरे परिणामों के बारे में न सोचने की आदत, हर परिणाम में कुछ अच्छा ही देखना, अंदर से बेचैनी होने पर भी उसे दूसरों को ज़ाहिर न होने देना, अपने जीवन के अच्छे पलों को याद करते रहना। और जो सबसे महत्वपूर्ण है -- अभ्यास, अभ्यास, अभ्यास। इस तरह दुर्गम परिस्थितियों से जूझने की क्षमता को बड़ा कर हम अपने आत्मविश्वास को बड़ा सकते हैं। हम इनपरिस्थितियों की अपेक्षाओं को किस प्रकार बख़ूबी से संभालें जिससे हमारे आत्मविश्वास में सेंध न लगने पाए। सबसे पहले हमें अनुप्युक्त और असंगत अपेक्षाओं को कम करने की ओर ध्यान देना चाहिए। यह तभी सम्भव है जब हम पूर्णतावादी बनना बंद करें। हमें यह समझ लेना चाहिए कि हम हर काम पूर्णता व पराकाष्ठा से नहीं कर सकते क्योंकि हम कोई भगवान नहीं हैं। और ऐसा ध्यय रखना अपनी शक्तियों पर बे वजह ज़ोर डालना ही होगा। हमें औरों को बे-वजह हर समय प्रभावित करना व उनकी वाह-वाही लूटने की चाह को भी छोडऩा पड़ेगा। कईं बार किसी-किसी को न कहने की या मना करने की आदत डालनी पड़ेगी। हम हर वक्त हर कहा गया काम करनें में जुट जाएँ तो एक काम भी ढंग से पूरा नहीं कर पाएँगे और नतीजा होगा -- आत्मविश्वास में सेंध।
अपने से अपेक्षाओं को महत्व अनुसार क्रमबद्ध करने पर भी हम उनपर अपनी पकड़ को संभाल सकते हैं और अडिग रह सकते हैं। इन सब कदमों के अलावा हम अपने विचारों में यह हमेशा अपने को याद दिलाते रहें कि अपनी तरफ़ से प्रयास सर्वोत्तम् रखो और बाकी ईश् वर पर छोड़ दो।
ज्योतिषीय शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। यदि सूर्य कमजोर होता है तो ऐसा व्यक्ति चाहकर भी आगे नहीं बढ़ पाता है। क्योंकि ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह माना गया है। उसी तरह कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मन का कारक ग्रह होता है। अगर कुंडली में सूर्य, पाप ग्रहों से पिड़ीत हो या कुंडली के खराब घर यानी छठे, आंठवें या बारहवें भाव में हो तो अशुभ फल देता है। इससे व्यक्ति का आत्मविश्वास कम होने का योग बनता है। चंद्रमा अगर कुंडली में नीच राशि, वृश्चिक के साथ अपने शत्रु ग्रह की राशि में हो या कुंडली के अशुभ घर में हो तो व्यक्ति का मन कमजोर तो हो ही जाता है साथ ही वह डरपोक होता है और उसमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।
अगर चंद्रमा के साथ ही गुरू और बुद्धि का स्वामी बुध अच्छी स्थिति में हो तो वो व्यक्ति बहुत ही बुद्धिमान होता है। मतलब जन्मकुंडली में सूर्य और चन्द्र अच्छी स्थिति में हो तो उसका व्यक्तित्व आत्मविश्वास से भरा होता है। वैसे तो इंसान अपना आत्मविश्वास खुद बढ़ाता है लेकिन ज्योतिष के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। अत: किसी भी जातक की कुंडली में इन ग्रहों के कमजोर होने, नीच के होने या शत्रु स्थान या ग्रहों से पीडित होने की स्थिति में इन ग्रहों के उपाय तथा ग्रहों को मजबूत कर भी आत्मविश्वास को बढाया जा जाग्रत किया जा सकता है।
आत्मविश्वास को बढाने के ये उपाय करें-
- रविवार के दिन तांबे के बर्तन का दान दें।
- शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाएं।- सोमवार को सफेद गाय को गुड़, चावल आदि खिलाएं।
- तांबे के दो टुकड़े लाकर एक को रविवार के दिन बहती हुई नदी में बहा दें।
- दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली यानि रिंग फिंगर में 5 रत्ती का उत्तम किस्म का माणिक्य सोने या तांबे की अंगूठी में पहने। यह अंगूठी रविवार के दिन सुबह ब्रह्ममुहूर्त में ही पहनें ।
- कोई महत्वपूर्ण काम करने से पहले या कहीं यात्रा पर जाने से पहले थोड़ा गुड़ खाकर तथा पानी पीकर ही निकलें।
- रविवार के दिन नमक का सेवन न करें हो सके तो पूरे दिन उपवास रखें ।
- अपने साथ हमेशा एक चांदी का सिक्का रखें।
- हर सोमवार बबूल के पेड़ की जड़ों में दूध चढ़ाएं।
- पीपल को रोज जल चढ़ाएं।
- सूर्य के पीडित होने पर सूर्य के मंत्रों तथा चंद्रमा के पीडित होने पर चंद्रमा के मंत्रो का जाप कर उनसे संबंधित वस्तुओं का दान करने से आत्मविश्वास में बढोतरी होती है।
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हस्तरेखा से व्यक्ति के चरित्र चित्रण

हस्तरेखाओ के माध्यम से व्यक्ति के चरित्र का चित्रण भी बहुत अच्छी तरह से किया जाता है हस्त रेखाओं के माध्यम से हाथ में वह कौन सी रेखाएँ अथवा चिन्ह हैं जिनके माध्यम से हम यह कह सकते हैं कि यह हाथ एक अच्छे चरित्र वाले व्यक्ति का है. जिसमें गुणों की खान हैं और वह अपने जीवन में यश की प्राप्ति करेगा।
हाथ में स्थित गुरु प्रधान व सूर्य प्रधान व्यक्ति के कुमार्ग पर चलने की संभावना नहीं होती है. ऐसे लोग किसी भी तरह से बुरे कामो से संबंध नहीं रखते हैं. ऐसा कोई काम नहीं करते हैं जिसे करने से वह बदनामी के घेरे में ना आ जाएँ. वे लक्षण जो किसी व्यक्ति को यश दिलाते हैं- पर एक निगाह डालने का प्रयास करें.
जिस व्यक्ति के नाखूनों का आकार गोल होता है, वह व्यक्ति मित्रता के सभी कर्तव्य निभाता है. और ऐसे व्यक्ति को अच्छे मित्रता के लिए यश की प्राप्ति होती है।
नाखूनों में गुलाबी रंग की चमकीली आभा व्यक्ति के सहृदय को दिखाती है. ऐसा व्यक्ति अच्छे दिल वाला होता है और ऐसे व्यक्ति की पहचान खुले दिल के तौर पर होती है।
यदि किसी व्यक्ति के हाथ में ह्रदय रेखा और मस्तिष्क रेखा शाखाओं से युक्त हो लेकिन उनकी शाखाएँ एक्-दूसरे से टकराती ना हों. साथ ही इन दोनो मुख्य रेखाओं के बीच फासला भी अच्छा हो तब ऐसा व्यक्ति सदगुणों से भरा होता है.
हाथ की रेखाएँ पतली हों और बिना किसी दोष के स्थित हों तो ऐसा व्यक्ति सदगुणी होता है.
व्यक्ति के हाथ में मंगल रेखा पतली हो और वह जीवन रेखा से दूर हो, हाथ में गुरु मुद्रिका बनी हो या हाथ में गुरु पर्वत पर क्रॉस बना हो या गुरु पर्वत पर आड़ी, तिरछी अथवा खड़ी रेखा बनी हो तो ऐसे व्यक्ति के अंदर बहुत से गुणो का भंडार होता है, और ऐसे व्यक्ति को सभी लोग पसंद करते हैं।
यदि हाथ में सीधी तथा लंबी अंगुलियाँ हों और जब हाथ को फैलाएँ तब यह अंगुलियाँ जापानी पंखे की तरह अलग - अलग फैल जाएँ तथा इन सभी अंगुलियों का झुकाव हथेली से बाहर की ओर हो.
अपयश योग:
किसी जातक को जीवन में अपयश का सामना करना पड़ता है. निम्नलिखित योगो में से जितने अधिक लक्षण व्यक्ति के हाथ में होगें उतने अधिक उसके अपयश के कारण बनते हें.
जिन व्यक्तियों के हाथ में बुध पर्वत विकसित होता है वह व्यक्ति कुछ ज्यादा ही चतुर होते ह ैं और ज्यादा चतुराई के कारण लोग उन्हें बुरा बोलते हैं।
जिनकी कनिष्ठिका अंगुली लंबी और मोटी होती है अथवा टेढ़ी होती है ण्ेसे व्यक्ति बहुत चालाक होते हैं. ऐसे व्यक्ति बहुत जल्दी कुमार्ग पर जा सकते हैं जिसके कारण उनके जीवन में अपयश आती है।
व्यक्ति कि हथेली में सूर्य रेखा पर धब्बे या गड्ढे हों या क्रॉस बना हो तब व्यति के एक उम्र विशेष में बदनामी के योग बनते हैं. यदि इसके बाद भी सूर्य रेखा बन रही हो तब कुछ समय मानसिक परेशानी के बाद सब कुछ शांत हो जाता है.
यदि किसी के हाथ में अन्य उपरोक्त दोषो के साथ बुध रेखा लहरदार हो या बुध पर्वत पर जाल बना हो या बुध पर्वत पर स्टार बना हो तब ऐसा व्यक्ति अपयश प्राप्त कर सकता है.
हाथ में तर्जनी अंगुली छोटी है और गुरु पर्वत दबा हुआ हो तब बदनामी के योग बनते हैं.
अन्य दोषो के साथ व्यक्ति का हाथ पतला भी हो तब बदनामी के योग बनते हैं.
हाथ में शनि रेखा मोटी हो या दूषित हो तब भी अपयश मिल सकता है.
यदि शनि रेखा मध्यमा अंगुली के तीसरे पोर तक प्रवेश कर जाए तब बुढ़ापे में अपयश मिलने की संभावना बनती है.
यदि किसी व्यक्ति के हाथ में दूषित मस्तिष्क रेखा हो तब भी अपयश मिलने की संभावना बनती है.
हाथ में ह्रदय बनी ही ना हो या फिर ह्रदय रेखा छोटी हो तब भी अपमान मिलने की संभावना बनती है.
हाथ में मंगल रेखा की एक शाखा चंद्र पर्वत तक जा रही हो और व्यक्ति का हाथ गुदगुदा हो या पतला हो तब ऐसे व्यक्ति को व्यसन की आदत होती है, जिसके कारण उसे अपयश प्राप्त होता है।
यदि हाथ में मंगल रेखा की एक शाखा चंद्र पर्वत पर जा रही हो और व्यक्ति का हाथ भारी व सख्त हो तब वह अत्यधिक कामी हो सकता है. जो उसके जीवन में कई बार अपयश दिलाता है।
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अंक ज्योतिष से जानें अपने बच्चे का स्वभाव:

प्रत्येक अंक व्यक्ति का मूल स्वभाव दिखाता है। बच्चे का मूल स्वभाव जानकर ही माता-पिता उसे सही तालीम या गाइडेन्स दे सकते हैं। आइए, जानें कैसा है आपके बच्चे का स्वभाव...
मूलांक 1:
ये बच्चे क्रोधी जिद्दी व अंहकारी होते है ये सदा स्वंतत्र रहना चाहते है और इनका अपना अलग ही व्यक्तित्व होता हैं । ये बच्चे अपने किसी भी कार्य में किसी का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करते, हर समय कोई इन्हें टोकता रहे या सुझाव देता रहे ये भी इन्हें पसन्द नहीं होता। ये लोग अच्छे प्रशासनिक अधिकारी बनते हैं। इन्हें तर्क से नहीं, प्यार से समझाएँ ।
मूलांक 2:
ये शांत समझदार भावुक व होशियार बच्चे होते हैं। पढऩे-लिखने में इन्हें खास रूचि होती हैं । आमतौर पर ये जिद्दी नहीं होते हैं लेकिन ये अपनी चीजों के प्रति काफी संजिदा होते हैं इसलिए इनका बर्ताव कभी-कभी अडिय़ल भी हो जाता है।इनको अपने माता-पिता का सेवा करना अच्छा लगता हैं। जरा सा तेज बोलना इन्हें ठेस पहुँचा सकता है। इनसे शांति व समझदारी से बात करें।
मूलांक 3:
ये बच्चे काफी तेज दिमाग के, समझदार, ज्ञानी होते हैं। इसी के चलते इन में अक्सर घमंड की भावना आ जाती हैं। लोकप्रियता एवं आकर्षण का केन्द्र बनने की इनमें गहरी चाहत होती है। जहां इन्हें ये चीजें नहीं मिलती हैं वहां जाना यह पसंद नहीं करते हैं,  इसलिए इन्हें कभी इग्नोर ना करें। इन्हें समझाने के लिए आपके पास खुद पर्याप्त कारण व ज्ञान होना जरूरी है ।
मूलांक 4:
ये बच्चे बेपरवाह, खेलने में अव्वल और एकदम कारस्तानी होते हैं। रिस्क लेना इनका स्वभाव होता है। इन्हें अनुशासन में रखना मुश्किल लेकिन बेहद जरूरी है। ये बच्चे बहुत ही संवेदनशील होते है, इनकी भावनाओ को शीघ्र ही ठेस पहुंचती है और फिर यह अपने आपको अकेला महसुस करते है। डांट से नहीं प्यार से काम लें।
मूलांक 5:
ऐसे बच्चे बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं। 5 अंक साहस, उत्साह और बदलाव का प्रतीक है। ये बुद्धिमान, शांत और आशावादी होते हैं। रिसर्च के कामों में रूचि लेते हैं। इनके साथ धैर्य से व शांति से बातचीत करें।
मूलांक 6:
अगर आपके बच्चे जा मूलांक 6 है तो इस बात का ध्यान रखें की वो हमेशा झूठ बोलने से कतराएगा। इसलिए जब वह आपसे कोई बात करे तो उसकी बात हमेशा सुनें। ये बच्चे हँसमुख, शौकीन मिजाज व कला प्रेमी होते हैं। खाओ पियो मस्त रहो पर जीते हैं। इन्हें सही संस्कार व सही दिशा-निर्देश जरूरी है। जब इनको गुस्सा आता है तो ये किसी प्रकार का विरोध सहन नही करते है
मूलांक 7:
ऐसे बच्चे जल की तरह ही चंचल और स्वतंत्र प्रवर्ती की होते हैं। ये लोग भावुक, निराशावादी, तनिक स्वार्थी मगर तीव्र बुद्धि के होते हैं। विचारों मे मौलिकता के कारण ही ये बच्चे लेखक या अच्छे पत्रकार बन सकते है, पर इन्हें कड़े अनुशासन व सही मार्गदर्शन की जरूरत होती है।
मूलांक 8:
ये बच्चे थोड़े भावुक, अति व्यावहारिक, मेहनती व व्यापार बुद्धि वाले होते हैं। इनके जीवन में देर से गति आती है पर ये अपनी धुन के पक्के होते हैं। अनजाने में भी यह किसी के मन को तकलीफ देना नहीं चाहते हैं। इन्हें अपनी सादगी एवं सीधेपन के कारण कई बार नुकसान भी उठाना पड़ता है। इन्हें सतत सहयोग व अच्छे साथियों की जरूरत होती है इसलिए इनके उपर नजऱ रखने और कभी भी इन्हें डांटते समय कठोर शब्द का प्रयोग ना करें।
मूलांक 9:
9 का अंक सबसे श्रेष्ठ अंक है। ऐसे बच्चे ऊर्जावान, शैतान व तीव्र बुद्धि के होते हैं पर एकदम विद्रोही। माता-पिता से अधिक बनती नहीं है। प्रशासन में कुशल होते हैं। इनकी ऊर्जा को सही दिशा देना व इन्हें समझना बहुत जरूरी होता है।



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भरणी नक्षत्र और शनि

यदि शनि भरणी नक्षत्र के पहले चरण में उपस्थित हो तो जातक मधुर भाषी तथा शिरो रोगी होता है । वह धार्मिक प्रवृत्ति का होता है । वह शोधपूर्ण कार्यक्षेत्र से अत्यधिक धन अजित करता है तथा बुद्धिमान एबं कर्मठ छोरों से सम्मान प्राप्त करता है। यदि शनि भरणी नक्षत्र के दूसरे चरण में हो तो जातक बहुत तीक्ष्ण बुद्धि का होता है । वह लापरवाह, आलसी, उच्चाधिकारी वर्ग का सलाहकार तथा चर्म रोगी होता है । उसका जीवन मुख्यत : सुखमय और खुशहाल रहता है। यदि शनि भरणी नक्षत्र के तीसरे चरण में उपस्थित हो तो जातक दूसरों पर
आश्रित रहता है। उसका पालन-पोषण भी किसी दूसरे परिवार में होता है । ऐसे जातक के को पिता अथवा दो माताएं होती है । माता-गिता में से कोई भी एक उसके बाल्यकाल में ही स्वर्ग सिधार सकता है । भरणी के चौथे चरण में शनि की उपस्थिति से जातक दूसरों पर आश्रित रहता है । उसके माता-पिता खात्त्यकाल में ही बिछुड़ जाते है। वह स्वभाव से आलसी और अकर्मण्य होता है । युवावस्था में सरकारी नौकरी पाता है।

शिव जी का पूजन सभी मनोकामनाएं और परेशानियाँ दूर होंगी

यदि कोई व्यक्ति शिवजी की कृपा प्राप्त करना चाहता है तो उसे रोज शिवलिंग पर जल अर्पित करना चाहिए। विशेष रूप से हर सोमवार शिवजी का पूजन करें। इस नियम से शिवजी की कृपा प्राप्त की जा सकती है। भगवान की प्रसन्नता से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और परेशानियों दूर सकती हैं। सोमवार को शिव पूजन की सामान्य विधि... इस विधि से कोई भी व्यक्ति पूजन कर सकता है...
ऐसे करें शिव पूजन
सोमवार को सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर शिवजी के मंदिर जाएं। मंदिर पहुंचकर भगवान के सामने व्रत का संकल्प लें। इस व्रत में एक समय रात्रि में भोजन चाहिए। दिन फलाहार किया जा सकता है। साथ ही दूध का सेवन भी किया जा सकता है।
संकल्प के बाद शिवलिंग पर जल अर्पित करें। गाय का दूध अर्पित करें। इसके बाद पुष्प हार और चावल, कुमकुम, बिल्व पत्र, मिठाई आदि सामग्री चढ़ाएं।
पूजन में शिव मंत्र का जप करें
शिव मंत्र 1- ऊँ महाशिवाय सोमाय नम:।
या
शिव मंत्र 2- ऊँ नम: शिवाय।
मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए। जप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग सर्वश्रेष्ठ रहता है। शिव परिवार (प्रथम पूज्य श्री गणेश, माता पार्वती, कार्तिकेय, नंदी, नाग देवता) का भी पूजन करें।

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Saturday, 29 August 2015

यदि शनि की उपस्थिति अश्चिनी नक्षत्र के प्रथम पाद रानी पहले चरण में हो, तो जातक धीमी गति के साथ कार्य करने चाला तथा मंदबुद्धि का होता है।ऐतिहासिक विषयों में उसकी गहरी रुचि होती है । उसे लेखन कार्यं से ष्ट्रयाति मिल सकती है । जीवन का प्रारंभिक काल गरीबी में बिताकर भी वह प्रसन्न रहने का प्रयास करता है । ऐसा जातक लंबी आयु जीता है । यदि जन्य समय में शनि दूसरे चरण में हो तो जातक दुबले-पतले शरीर का होता है । वह सामान्य बातों में बुद्धिहीन, व्यावहारिक ज्ञान में कमजोर किंतु धन कमाने में चतुर होता है । ऐसा जातक क्रोधित होने पर हिंसक हो जाता है । यदि तीसरे चरण में शनि हो तो जातक भ्रमपत्कारी, व्यापारिक कयों में चतुर, मातहतों से कार्य लेने वाला, अत्यधिक महत्वाकग्रेक्षो तथा शीघ्र क्रोधित हो जाने वाला होता है । वह सभी से मधुर संबंध बनाने का अभिलाषी होता है । यदि चौथे चरण में ज्ञाति का प्रभाव हो तो जातक व्यसनी होता है, किन्हें फिर भी वह सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करता है ।

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ज्योतिष शाश्त्र में मंगल ग्रह

सूर्य मंडल में सूर्य को राजा और मंगल को सेनापति कहा गया है। आकाश मंडल में यह लाल रंग का दमकता हुआ साफ-साफ दिखाई देता है। उसके लाल गुण के कारण अग्नि पर उसका प्रभाव माना जाता है। सूर्य भी अग्निकारक है, परन्तु सूर्य से मिलने वाली अग्नि जीव-जगत के लिए आवश्यक है और मंगल की अग्नि धर्म प्रलयकारक है। सूर्य उष्ण है और मंगल तप्त। सेनापति होने के कारण शक्ति, अधिकार, पुरुषत्व, शोरगुल, वासना, पशुता इत्यादि बातों पर मंगल का अधिकार है। मंगल अग्नि का कारक है इसलिए समस्त स्नायु मंगल का कारक माना जाता है। प्रथमभाव मेष मंगल की राशि है अत: चेहरा और सिर का विचार भी मंगल से किया जाता है। कालपुरुष कुण्डली में अष्टम भाव में मंगल की राशि (वृश्चिक राशि) होने से मूत्राशय, गर्भाशय, गुप्तद्वार और बाहरी अंग लिंग पर मंगल का अधिकार होता है। प्रोटेस्ट ग्रंथि पर भी मंगल का प्रभाव है।
भारतीय वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह को मुख्य तौर पर ताकत का कारक माना जाता है। मंगल प्रत्येक व्यक्ति में शारीरिक ताकत तथा मानसिक शक्ति एवम मजबूती का प्रतिनिधित्व करते हैं। मानसिक शक्ति का अभिप्राय यहां पर निर्णय लेने की क्षमता और उस निर्णय पर टिके रहने की क्षमता से है। मंगल के प्रबल प्रभाव वाले जातक आम तौर पर तथ्यों के आधार पर उचित निर्णय लेने में तथा उस निर्णय को व्यवहारिक रूप देने में भली प्रकार से सक्षम होते हैं। ऐसे जातक सामान्यतया किसी भी प्रकार के दबाव के आगे घुटने नहीं टेकते तथा इनके उपर दबाव डालकर अपनी बात मनवा लेना बहुत कठिन होता है और इन्हें दबाव की अपेक्षा तर्क देकर समझा लेना ही उचित होता है।
मंगल आम तौर पर ऐसे क्षेत्रों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें साहस, शारीरिक बल, मानसिक क्षमता आदि की आवश्यकता पड़ती है जैसे कि पुलिस की नौकरी, सेना की नौकरी, अर्ध-सैनिक बलों की नौकरी, अग्नि-शमन सेवाएं, खेलों में शारीरिक बल तथा क्षमता की परख करने वाले खेल जैसे कि कुश्ती, दंगल, टैनिस, फुटबाल, मुक्केबाजी तथा ऐसे ही अन्य कई खेल जो बहुत सी शारीरिक उर्जा तथा क्षमता की मांग करते हैं। इसके अतिरिक्त मंगल ऐसे क्षेत्रों तथा व्यक्तियों के भी कारक होते हैं जिनमें हथियारों अथवा औजारों का प्रयोग होता है जैसे हथियारों के बल पर प्रभाव जमाने वाले गिरोह, शल्य चिकित्सा करने वाले चिकित्सक तथा दंत चिकित्सक जो चिकित्सा के लिए धातु से बने औजारों का प्रयोग करते हैं, मशीनों को ठीक करने वाले मैकेनिक जो औजारों का प्रयोग करते हैं तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्र एवम इनमे काम करनेवाले लोग। इसके अतिरिक्त मंगल भाइयों के कारक भी होते हैं तथा विशेष रूप से छोटे भाइयों के। मंगल पुरूषों की कुंडली में दोस्तों के कारक भी होते हैं तथा विशेष रूप से उन दोस्तों के जो जातक के बहुत अच्छे मित्र हों तथा जिन्हें भाइयों के समान ही समझा जा सके।
मंगल एक शुष्क तथा आग्नेय ग्रह हैं तथा मानव के शरीर में मंगल अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा इसके अतिरिक्त मंगल मनुष्य के शरीर में कुछ सीमा तक जल तत्व का प्रतिनिधित्व भी करते हैं क्योंकि मंगल रक्त के सीधे कारक माने जाते हैं। ज्योतिष की गणनाओं के लिए मंगल को पुरूष ग्रह माना जाता है। मंगल मकर राशि में स्थित होने पर सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं तथा मकर में स्थित मंगल को उच्च का मंगल भी कहा जाता है। मकर के अतिरिक्त मंगल को मेष तथा वृश्चिक राशियों में स्थित होने से भी अतिरिक्त बल मिलता है जोकि मंगल की अपनी राशियां हैं। मंगल के प्रबल प्रभाव वाले जातक शारीरिक रूप से बलवान तथा साहसी होते हैं। ऐसे जातक स्वभाव से जुझारू होते हैं तथा विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत से काम लेते हैं तथा सफलता प्राप्त करने के लिए बार-बार प्रयत्न करते रहते हैं और अपने रास्ते में आने वाली बाधाओं तथा मुश्किलों के कारण आसानी से विचलित नहीं होते। मंगल का कुंडली में विशेष प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को तर्क के आधार पर बहस करने की विशेष क्षमता प्रदान करता है जिसके कारण जातक एक अच्छा वकील अथवा बहुत अच्छा वक्ता भी बन सकता है। मंगल के प्रभाव में वक्ता बनने वाले लोगों के वक्तव्य आम तौर पर क्रांतिकारी ही होते हैं तथा ऐसे लोग अपने वक्तव्यों के माध्यम से ही जन-समुदाय तथा समाज को एक नई दिशा देने में सक्षम होते हैं। युद्ध-काल के समय अपनी वीरता के बल पर समस्त जगत को प्रभावित करने वाले जातक मुख्य तौर पर मंगल के प्रबल प्रभाव में ही पाए जाते हैं।
कर्क राशि में स्थित होने पर मंगल बलहीन हो जाते हैं तथा इसके अतिरिक्त मंगल कुंडली में अपनी स्थिति विशेष के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव के कारण भी कमजोर हो सकते हैं। कुंडली में मंगल की बलहीनता कुंडली धारक की शारीरिक तथा मानसिक उर्जा पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है तथा इसके अतिरिक्त जातक रक्त-विकार संबधित बिमारियों, त्वचा के रोगों, चोटों तथा अन्य ऐसे बिमारीयों से पीडित हो सकता है जिसके कारण जातक के शरीर की चीर-फाड़ हो सकती है तथा अत्याधिक मात्रा में रक्त भी बह सकता है। मंगल पर किन्हीं विशेष ग्रहों के बुरे प्रभाव के कारण जातक किसी दुर्घटना अथवा लड़ाई में अपने शरीर का कोई अंग भी गंवा सकता है। इसके अतिरिक्त कुंडली में मंगल की बलहीनता जातक को सिरदर्द, थकान, चिड़चिड़ापन तथा निर्णय लेने में अक्षमता जैसी समस्याओं से भी पीडि़त कर सकती है। मंगल के प्रभाव स्वरुप जातक सामान्यतया किसी भी प्रकार के दबाव के आगे नहीं झुकता. मंगल के द्वारा साहस, शारीरिक बल, मानसिक क्षमता प्राप्त होती है. पुलिस, सेना, अग्नि-शमन सेवाओं के क्षेत्र में मंगल का अधिकार है खेल कूद इत्यादि में जोश और उत्साह मंगल के प्रभाव से ही प्राप्त होता है.
मंगल को ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति के साहस, छोटे भाई-बहन, आन्तरिक बल, अचल सम्पति, रोग, शत्रुता, रक्त शल्य चिकित्सा, विज्ञान, तर्क, भूमि, अग्नि, रक्षा, सौतेली माता, तीव्र काम भावना, क्रोध, घृ्णा, हिंसा, पाप, प्रतिरोधिता, आकस्मिक मृत्यु, हत्या, दुर्घटना, बहादुरी, विरोधियों, नैतिकता की हानि का कारक ग्रह है. सेनापति मंगल के पास अधिकार, वृत्ति, प्रभुता, नेतृत्व, लड़ाई आदि गुण होते हैं। मंगल शीघ्र प्रकोपी होने के कारण उतावला और दहशत जमाने वाला है। बाहरी अंग-लिंग पर मंगल का प्रभाव होने से मंगल में वासना और लोभ भी है। यौन सुख प्राप्त करते हुए इसका सेनापति का स्वभाव जाग्रत हो जाता है। यह अपने जीवन साथी को कुछ पीड़ा भी प्रदान करता है। यौन सुख के लिए अमानवीय तरीका भी अपनाता है।
बीमारियां- मंगल का अग्नि तत्व होने के कारण गर्मी की बीमारियां, प्रत्येक तरह के बुखार, फोड़ा, खुजली आदि पर मंगल का अधिकार होता है। मंगल का चेहरे पर अधिकार होने के कारण मुंहासे, दिमागी बीमारियां जैसे पागलपन व सिर में रक्त के बहाव पर इसका प्रभाव होता है। लिंग पर प्रभाव व होने से गुप्त रोग, भगंदर, पिस्तुला और यौन रोग, महिलाओं में रक्त प्रदर, हार्निया आदि बीमारियां मंगल के अधिकार में आती हैं। स्नायु पर मंगल का अधिकार होने से स्नायु की बीमारियां, पोलियो, लकवा, दु:ख देने वाला ग्रह होने से वेदना देने वाली बीमारियां जैसे- अल्सर, पेट दर्द, जहर का प्रयोग, जहरीली गैस या उससे उत्पन्न बीमारियों पर इसका अधिकार है। मंगल के खराब होने या पिडी़त होने से व्यक्ति को शरीर के किसी भाग का कटना, घाव, दुखती आंखें, पित्त, रक्तचाप. बवासीर, जख्म, खुजली, हड्डियों का टूटना. पेशाब संबन्धित शिकायतें, पीलिया, खून गिरना, ट्यूमर, मिरगी जैसे रोग प्रभावित कर सकते हैं.
कारोबार- मंगल सेनापति है इसलिए सुरक्षा, सेनादल, पुलिस, जासूसी, हथियार, नुकीली वस्तुएं आदि का कारोबार मंगल के अधिकार में है। साथ ही कसाई, सर्जरी, हथियार का प्रयोग करने वाला कारोबार, खदानों से निकलने वाला लोहा, तांबा आदि धातुओं का कारोबार तथा अग्नि तत्व होने से प्रत्येक प्रकार की भ_ियां, वायलर, भांप के इंजन, ऊर्जा प्रकल्प जैसे कारोबार मंगल के अधिकार में हैं।
उत्पाद- मंगल के तीखे गुण के कारण मिर्च-मसाले की वस्तुएं, दालचीनी, अदरक, लहसुन, हथियारों का कारक होने से तलवार, बंदूक, बम और प्रत्येक प्रकार के हथियारों का निर्माण, भूमि का कारक होने से घरों का निर्माण, कांटेदार पेड़ और अग्नि का कारक होने से शराब व तम्बाकू इसके उत्पाद हैं।
स्थान- मंगल का स्वभाव आक्रामक होने से लड़ाई का मैदान, सैनिक छावनी, इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी संस्थान इसके स्थान हैं। मंगल निर्दयी ग्रह है अत: कसाईखाना और आपरेशन थियेटर इसके प्रभाव में हैं। उष्ण प्रधान होने से घर में रसोई, गीजर, शौचालय, तहखाना आदि मंगल के अधिकार क्षेत्र में हैं।
जानवर व पेड़-पौधे- शेर, लोमड़ी, कुत्ता आदि पर मंगल का प्रभाव है। कांटेदार पेड़, मसाले की वस्तुओं के पौधे, तम्बाकू, लहसुन आदि तथा लाल रंग के फल व कड़े छिलके वाले फल मंगल के अधिकार क्षेत्र में हैं।
मंगल ग्रह से संबंधित अन्य तथ्य-
मंगल के मित्र ग्रह सूर्य, चन्द्र और गुरु है. मंगल से शत्रु सम्बन्ध रखने वाला ग्रह बुध है. मंगल के साथ शनि और शुक्र सम सम्बन्ध रखते है. मंगल मेष व वृश्चिक राशि का स्वामी है. मंगल की मूलत्रिकोण राशि मेष राशि है, इस राशि में मंगल 0 अंश से 12 अंशों के मध्य होने पर अपनी मूलत्रिकोण राशि में होता है. मंगल वृषभ राशि में उच्च स्थान प्राप्त करता है. मंगल कर्क राशि में स्थित होने पर नीचस्थ होता है. मंगल पुरुष प्रधान ग्रह है. मंगल दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करता है. मंगल के सभी शुभ फल प्राप्त करने के लिए मूंगा, रक्तमणी जिसे तामडा भी कहा जाता है, इनमें से किसी एक रत्न को धारण किया जा सकता है. मंगल के लिए लाल रंग धारण किया जाता है. मंगल का भाग्य अंक 9 है. मंगल के लिए गणपति, हनुमान, सुब्रह्मामन्यम, कार्तिकेय आदि देवताओं की उपासना करनी चाहिए.
मंगल के दुष्प्रभावों से बचने के लिए तथा शुभ फलों की प्राप्ति के लिए मंगल से संबंधित वस्तुओं का दान किया जा सकता है. तांबा, गेहूं, घी, लाल वस्त्र, लाल फूल, चन्दन की लकडी, मसूर की दाल. मंगलवार को सूर्य अस्त होने से 48 मिनट पहलें और सूर्यास्त के मध्य अवधि में ये दान किये जाते है.
मंगल के बीज मंत्र का जाप करना चाहिए
क्रां क्रौं क्रौं स: भौमाय नम:
मंगल का वैदिक मंत्र
घरणीगर्भसंभूतं विद्युत कन्ति सम प्रभम।
कुमार भक्तिहस्तं च मंगल प्रणामाभ्यहम।।
मंगल के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए ज्योतिषशास्त्र में और भी कई उपाय बताए गए हैं। सबसे आसान तरीका तो यह है कि किसी भी मंगलवार के दिन हनुमान जी को लाल रंग का लंगोटा और सिंदूर भेंट कीजिए। हनुमान जी मंगलवार के स्वामी माने जाते हैं इसलिए मंगल के उपाय में हनुमान जी को खुश करने का विधान है। हनुमान जी की कृपा पाने के लिए मंगलवार के दिन व्रत करके शाम के समय बूंदी का प्रसाद बांटने से भी मंगल का अमंगल दूर होता है। हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ भी मंगल को शुभ बनाने में सहायक होता है।
सभी ग्रह के अपने रत्न होते हैं जो ग्रहों की उर्जा को अवशोषित करके अनुकूल स्थिति बनाते हैं। मंगल का रत्न है मूंगा। मंगल को अनुकूल बनाने के लिए मूंगा रत्न धारण किया जा सकता है।
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नक्सलवाद की समस्या और उसका समाधान

शोषण और भ्रष्टाचार में लिप्त हमारी पतित व्यवस्थाओं के विरोधस्वरूप उत्पन्न विद्रोहपूर्ण विचारधारा से प्रारम्भ होकर एक जन-आन्दोलन के रूप में विकसित होते हुये आतंक के पर्याय बने नक्सलवाद ने बंगाल से लेकर सम्पूर्ण भारत में आज अपने पैर पसार लिये हैं। इस लम्बी यात्रा के बीच इस विदोह के जनक कनु सान्याल ने विकृतावस्था को प्राप्त हुयी अपनी विचारधारा के हश्र से निराश होकर आत्महत्या भी कर ली। यह कटु सत्य है कि भ्रष्ट व्यवस्था और पतित नैतिक मूल्यों के प्रतिकार से अस्तित्व में आये नक्सलवाद को आज भी वास्तविक पोषण हमारी व्यवस्था द्वारा ही मिल रहा है। व्यवस्था, जिसमें सबकी भागीदारी है सरकार की भी और समाज की भी।
व्यवस्थायें आंकड़ों से चल रही हैं और आंकड़े कागज पर होते हैं, ज़ाहिर है कि हक़ीक़त भी ज़मीन पर नहीं कागज पर है। लूटमार के निर्लज्ज आखेट में हम सबने अपना-अपना नक्सलवाद विकसित कर लिया है। पूरे राष्ट्र की व्यवस्था में भ्रष्टाचार का वायरस विकराल रूप ले चुका है।
नक्सलियों को सत्ता चाहिए, वह भी हिंसा से। पर विचारणीय यह भी है कि लोकतंत्र का नक़ाब ओढ़कर देश में होने वाले चुनाव भी तो हिंसा से ही जीते जा रहे हैं। कहीं मतदान स्थल पर आक्रमण करके, कहीं मतदान दल को नजऱबन्द करके, कहीं मतदाता को डरा-धमका कर, तो कहीं उसे शराब और पैसे बाँटकर। भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं को दिखावे के लिये टिकट नहीं दी जाती किंतु उनकी पत्नियों को टिकट देकर पति के अपराध का पुरस्कार प्रदान कर दिया जाता है।
भारत में सभी समर्थों की केवल एक ही आति और एक ही धर्म है, इसे भी समझने की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार की खुली प्रतियोगिता में सम्पूर्ण नीति निर्धारक तंत्र से लेकर पालनकर्ता तक सभी अपनी-अपनी सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं। शिक्षा से लेकर नौकरी तक हर जगह पहुॅच या पैसे का बोलबाला है। सड़कें बनती हैं तो पहली वर्षा में बह जाती हैं, भवन बनते हैं तो अधिग्रहण के पहले ही खण्डहर होने की सूचना देने लगते हैं।
अमेरिका कहीं भी आक्रमण करके अपनी सरकार चलाने लगता है। भारत के विभिन्न प्रांतों में चीन द्वारा प्रायोजित आज के नक्सली जो भी कर रहे हैं उसे उन्होंने सामाजिक विद्रोह का छद्म नाम दिया है जबकि यह विद्रोह नहीं है अपितु स्पष्टत: सत्ता प्राप्ति के लिये किया जा रहा गुरिल्ला युद्ध है। सत्ता के मूल में हिंसा है, इसे नकारा नहीं जा सकता। विश्व के सभी युद्धों का सत्य यही है। कहीं तो यह हिंसा दिखायी दे जाती है और कहीं पर नहीं। जहाँ दिखायी नहीं पड़ती वहाँ भी सत्ता के मूल में हिंसा ही है। केवल हत्या ही तो हिंसा नहीं है, कई रूप हैं उसके, हत्या से भी अधिक निर्मम और वीभत्स।
श्रीलंका में गृहयुद्ध, म्यांमार में दमन चक्र, नेपाल में माओवादी हिंसा, भारत में नक्सलवाद एवं पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के पीछे भी केवल सत्ता की ही आदिम भूख ही छिपी हुयी है। मानव समाज विकास की किसी भी स्थिति में क्यों न रहा हो वह अपने प्रभुत्व और सत्ता के लिये हिंसायें करता रहा है। किंतु इस सबके बाद भी सत्ता के लिये हिंसा को किसी मान्य सिद्धांत का प्रशस्तिपत्र नहीं दिया जा सकता। सत्ताधारियों की अरक्त हिंसा ने ही नक्सलियों की रक्त हिंसा को जन्म दिया है। हमारी राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक नीतियाँ इन्हें पोषण दे रही हैं। यदि हमारी व्यवस्थायें सबको जीने एवं विकास करने का समान अवसर प्रदान कर दें तो नक्सली या किसी भी उग्रवादी हिंसा को पोषण मिलना बन्द हो जायेगा और ये विचारधारायें दम तोड़ देंगी। आरक्षण के बटते कटोरों, राजनीतिक भ्रष्टाचार, बौद्धिक विकास हेतु अनुर्वरक स्थितियाँ, सरकारी नौकरियों तथा पदोन्नतियों की खुलेआम निर्लज्ज खऱीद-फऱोख़्त, त्रुटिपूर्ण कृषिनीतियाँ, कुटीर उद्योगों की हत्या एवं असंतुलित आर्थिक उदारीकरण आदि ऐसे पोषक तत्व हैं जो नक्सलवाद को मरने नहीं देंगे, कम से कम अभी तो नहीं। तमाम सरकारी व्यवस्थाओं, भारी भरकम बजट, पुलिस और सेना के जवानों की मौत, रेल संचालन पर नक्सली नियंत्रण से उत्पन्न आर्थिक क्षति और बड़े-बड़े रणनीतिकारों की मंहगी बैठकों के बाद भी नक्सली समस्या में निरंतर होती जा रही वृद्धि एक राष्ट्रीय चिंता का विषय है।
भारत में नक्सलवाद के कारण:
1- अनधिकृत भौतिक महत्वाकांक्षाओं के अनियंत्रित ज्वार- महत्वाकांक्षी होने में कोई दोष नहीं पर बिना श्रम के या कम से कम श्रम में अधिकतम लाभ लेने की प्रवृत्ति ही सारी विषमताओं का कारण है। सारा उद्योग जगत इसी विषमता की प्राणवायु से फलफूल रहा है। आर्थिक विषमता से उत्पन्न विपन्नता की पीड़ा वर्गसंघर्ष की जनक है।
2- मौलिक अधिकारों के हनन पर नियंत्रण का अभाव - अनियंत्रित महत्वाकाक्षाओं के ज्वार ने आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर डाका डालने की प्रवृत्ति में असीमित वृद्धि की है। नक्सलियों द्वारा जिस वर्गसंघर्ष की बात की जा रही है उसमें समर्थ और असमर्थ ही मुख्य घटक हैं, दलित या आदिवासी जैसे शब्द तो केवल भोले-भाले लोगों को बरगलाने के लिये हैं। समर्थ होने की होड़ में हर कोई शामिल है। मनुष्य की इस आदिम लोलुपता पर अंकुश लगाने के लिये वर्तमान में हमारे पास कोई वैधानिक उपाय नहीं है। मौलिक अधिकारों के हनन में नक्सलवादी भी अब पीछे नहीं रहे, शायद इसी कारण कनु सान्याल को आत्महत्या करनी पड़ी।
3- शोषण की पराकाष्ठायें - सामान्यत: आम मनुष्य सहनशील प्रवृत्ति का होता है, वह हिंसक तभी होता है जब शोषण की सारी सीमायें पार हो चुकी होती हैं। नक्सलियों के लिये शोषण की पराकाष्ठायें पोषण का काम करती हैं। शोषितों को एकजुट करने और व्यवस्था के विरुद्ध हिंसक विद्रोह करने के लिये अपने समर्थक बनाना नक्सलियों के लिये बहुत आसान हो जाता है।
4- सामाजिक विषमता - सामाजिक विषमता ही वर्गसंघर्ष की जननी है। आज़ादी के बाद भी इस विषमता में कोई कमी नहीं आयी। नक्सलियों के लिये यह एक बड़ा मानसिक हथियार है।
5- जनहित की योजनाओं की मृगमरीचिका - शासन की जनहित के लिए बनने वाली योजनाओं के निर्माण एवं उनके क्रियान्वयन में गंभीरता, निष्ठा व पारदर्शिता का अभाव रहता है जिससे वंचितों को भड़काने और नक्सलियों की नयी पौध तैयार करने के लिये इन माओवादियों को अच्छ बहाना मिल जाता है।
6- राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव - आमजनता को अब यह समझ में आने लगा है कि सत्ताधीशों में न तो सामाजिक विषमतायें समाप्त करने, न भ्रष्टाचार को प्रश्रय देना बन्द करने और न ही नक्सली समस्या के उन्मूलन के प्रति लेश भी राजनीतिक इच्छाशक्ति है। आर्थिक घोटालों के ज्वार ने नक्सलियों को देश में कुछ भी करने की मानसिक स्वतंत्रता प्रदान कर दी है।
7- लचीली कानून व्यवस्था, विलम्बित न्याय एवं कड़े कानून का अभाव -अपराधियों के प्रति कड़े कानून के अभाव, विलम्ब से प्राप्त होने वाले न्याय से उत्पन्न जनअसंतोष एवं हमारी लचीली कानून व्यवस्था ने नक्सलियों के हौसले बुलन्द किये हैं।
8- आजीविकापरक शिक्षा का अभाव एवं महंगी शिक्षा - रोजगारोन्मुखी शिक्षा के अभाव, उद्योग में परिवर्तित होती जा रही शिक्षा के कारण आमजनता के लिये महंगी और दुर्लभ हुयी शिक्षा, अनियंत्रित मशीनीकरण और कुटीर उद्योंगो के अभाव में आजीविका के दुर्लभ होते जा रहे साधनों से नक्सली बनने की प्रेरणा इस समस्या का एक बड़ा नया कारण है।
9- स्थानीय लोगों में प्रतिकार की असमर्थता - निर्धनता, शैक्षणिक पिछड़ेपन, राष्ट्रीयभावना के अभाव, नैतिक उत्तरदायित्व के प्रति उदासीनता और पुलिस संरक्षण के अभाव में स्थानीय लोग नक्सली हिंसाओं का सशक्त विरोध नहीं कर पाते जिसके कारण नक्सली और भी निरंकुश होते जा रहे हैं।
10- पर्वतीय दुर्गमता का भौगोलिक संरक्षण - देश के जिन भी राज्यों में भौगोलिक दुर्गमता के कारण आवागमन के साधन विकसित नहीं हो सके वहाँ की स्थिति का लाभ उठाते हुये नक्सलियों ने अपना आतंक स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली है और अब वे इस अनुकूलन को बनाये रखने के लिये आवागमन के साधनों के विकास में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। यद्यपि, अब तो उनका बौद्धिक तंत्र नगरों और महानगरों में भी अपनी पैठ बना चुका है।
11- पड़ोसी देशों के उग्रवाद को भारत में प्रवेश की सुगमता - विदेशों से आयातित उग्र विचारधारा को भारत में प्रवेश करने से रोकने के लिये सरकार के पास राजनैतिक और कूटनीतिक उपायों का अभाव है जिसके कारण विचार और हथियार दोनो ही भारत में सुगमता से प्रवेश पाने में सफल रहते हैं।
नक्सलवाद की समस्या का समाधान - जन असंतोष के कारणों पर नियंत्रण और विकास के समान अवसरों की उपलब्धता की सुनिश्चितता के साथ-साथ कड़ी दण्ड प्रक्रिया नक्सली समस्या के उन्मूलन का मूल है। अधोलिखित उपायों पर ईमानदारी से किये गये प्रयास नक्सलवाद की समस्या के स्थायी उन्मूलन का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
नक्सली समस्या के उन्मूलन के प्रति दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का विकास जरूरी है क्योंकि बिना दृढ़ संकल्प के किसी भी उपलब्धि की आशा नहीं की जा सकती।
आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के उपायों से विकास के समान अवसरों की उपलब्धता की सुनिश्चितता।
शासकीय योजनाओं का समुचित क्रियान्वयन एवं उनमें पारदर्शिता की सुनिश्चितता, जिससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके।
समुचित एवं सहयोगपूर्ण कानून व्यवस्था- जिससे स्थानीय लोग नक्सलवादियों का प्रतिकार कर सकें और उन्हें जीवनोपयोगी आवश्यक चीजें उपलब्ध न कराने के लिये साहस जुटा सकें।
कानून व न्याय व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर बल, जिससे लोगों को सहज और समय पर न्याय मिलने की सुनिश्चितता हो सके।
आजीविकापरक एवं सर्वोपलब्ध शिक्षा की व्यवस्था, जिससे सामाजिक विषमताओं पर अंकुश लग सके।
कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवित करने के समुचित प्रयास, जिससे वर्गभेद की सीमायें नियंत्रित की जा सकें।
राष्ट्र के विकास की मुख्यधारा में नक्सलियों को लाने और उनके पुनर्व्यवस्थापन के लिये रोजगारपरक विशेष पैकेज की व्यवस्था।
चीन और पाकिस्तान से नक्सलियों को प्राप्त होने वाले हर प्रकार के सहयोग को रोकने के लिये दृढ़ राजनीतिक और सफल कूटनीतिक उपायों पर गम्भीरतापूर्वक चिंतन और तद्विषयक प्रयासों का वास्तविक क्रियान्वयन।
अगर झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा को देखा जाए तो नक्सलवाद की वजह से आदिवासी समाज को भारी क्षति हो रही है। झारखंड में हजारों निर्दोष आदिवासियों को नक्सली होने के आरोप में विभिन्न जेलों में डाल दिया गया है, वहीं छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में भी कई हजार निर्दोष लोग जेलों में हैं। इसी तरह कई हजार लोग फर्जी मुठभेड़ में मारे गये हैं और महिलाओं के साथ सुरक्षा बलों ने बलात्कार किया है। वहीं हजारों लोगों को पुलिस मुखबिर होने के आरोप में नक्सलियों ने मार गिराया है और बड़ी संख्या में आम ग्रामीणों को नक्सलियों ने मौत के घाट उतार दिया है। कुल मिला कर कहें तो दोनों तरफ से आदिवासियों की ही हत्या हो रही है और उनका जीवन तबाह हो रहा है। यहां यह भी चर्चा करना जरूरी होगा कि बंदूक की नोंक पर नक्सलियों को खाना खिलाने, पानी पिलाने व शरण देने वाले आदिवासियों पर सुरक्षा बल लगातार अत्याचार कर रहे हैं लेकिन अपना व्यापार चलाने के लिए नक्सलियों को लाखों रुपये, गोला-बारूद और अन्य जरूरी समान देने वाले औद्योगिक घरानों पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होती है।
देश में आदिवासियों के संवैधानिक, कानूनी और पारंपरिक अधिकारों का घोर उल्लंघन हुआ है। पांचवीं अनुसूची के प्रावधान राज्यों में लागू नहीं हैं। इसके साथ ट्राइबल सब-प्लान का पैसा भी दूसरे मदों में खर्च किया जा रहा है, जो आदिवासी हक को लूटने जैसा है। आदिवासियों की इस हालत के लिए उनके जनप्रतिनिधि ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं, जिन्होंने कभी भी ईमानदारी से उनके सवालों को विधानसभा और संसद में नहीं उठाया। फलस्वरूप, आज नक्सलवाद देश की सबसे बड़ी समस्या बन गयी है लेकिन आदिवासियों की समस्या कभी भी देश की समस्या नहीं बन सकी बल्कि आदिवासियों को ही तथाकथित मुख्यधारा की समस्या मान लिया गया है क्योंकि वे ही प्राकृतिक संसाधनों को पूंजीपतियों को सौंपना नहीं चाहते हैं और यही देश की सबसे बड़ी समस्या है। बस्तर में नक्सलियों की समानांतर सरकार चल रही है, कश्मीर में उग्रवादियों की, प्रदेशों में बाहुबलियों की और देश में अंतर्राष्ट्रीय माफिय़ाओं की समानांतर अंतर्सरकारें चल रही हैं।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज का एक सदस्य है और समाज के अन्य सदस्यों के प्रति प्रतिक्रिया करता है, जिसके फलस्वरूप समाज के सदस्य उसके प्रति प्रक्रिया करते हैं। यह प्रतिक्रया उस समय प्रकट होती है जब समूह के सदस्यों के जीवन मूल्य तथा आदर्ष ऊॅचे हों, उनमें आत्मबोध तथा मानसिक परिपक्वता पाई जाए साथ ही वे दोषमुक्त जीवन व्यतीत करते हों। परिणाम स्वरूप एक स्वस्थ समाज का निमार्ण होगा तथा समाज में नागरिकों का योगदान भी साकारात्मक होगा। सामाजिक विकास में सहभागी होने के लिए ज्योतिष विषलेषण से व्यक्ति की स्थिति का आकलन कर उचित उपाय अपनाने से जीवन मूल्य में सुधार लाया जा सकता है साथ ही लगातार होने वाले अपराध, हिंसा से समाज को मुक्त कराने में भी उपयोगी कदम उठाया जा सकता है। समाज और संस्कृति व्यक्ति के व्यवहार का प्रतिमान होता है, जिसमें आवश्यक नियंत्रण किया जाना संभव हो सकता है। सामाजिक तौर पर व्यवहार को नियंत्रण करने के लिए प्राथमिक स्तर पर विद्यालय जिसमें स्कूल में बच्चों के आदर्ष उनके शिक्षक होते हैं। शिक्षकों के आचरण व व्यवहार, रहन-सहन का बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ता है, उनके सौहार्दपूण व्यवहार से साकारात्मक और विपरीत व्यवहार से असुरक्षा, हीनता की भावना उत्पन्न होती है, जिसको देखने के लिए ज्योतिषीय दृष्टि है कि किसी की कुंडली में गुरू की स्थिति के साथ उसका द्वितीय तथा पंचम भाव या भावेष की स्थिति उसके गुरू तथा स्कूल षिक्षा से संबंधित क्षेत्र को दर्षाता है ये सभी अनुकूल होने पर सामाजिक विकास में सहायक होते हैं किंतु प्रतिकूल होने पर षिक्षा तथा षिक्षकों के प्रति असंतोष व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार तथा उसके प्रतिक्रिया स्वरूप सामाजिक विकास में सहायक या बाधक हो सकता है। उसके उपरांत बच्चों के विकास में आसपडोस का बहुत प्रभाव पड़ता है, अक्सर अभिभावक अपने बच्चों को आसपड़ोस में खेलने से मना करते हैं कि पड़ोस के बच्चों का व्यवहार प्रतिकूल होने से उनके बच्चों पर दुष्प्रभाव पड़ेगा, जिसके ज्योतिष दृष्टि है कि पड़ोस को जातक की कुंडली में तीसरे स्थान से देखा जाता है अगर तीसरा स्थान अनुकूल हो तो पड़ोस का वातावरण अनुकूल होगा, जिससे जातक का व्यवहार भी बेहतर होगा क्योंकि तीसरा स्थान मनोबल का भी होगा अत: मनोबल उच्च होगा। उसी प्रकार समुदाय और संस्कृति का प्रभाव देखने के लिए चूॅकि सकुदाय या जाति, रीतिरिवाज, नगरीय या ग्रामीण वातावरण का प्रभाव भी विकास में सहायक होता है, जिसे ज्योतिष गणना में पंचम तथा द्वितीय स्थान से देखा जाता है। पंचम स्थान उच्च या अनुकूल होने से जातक का सामाजिक परिवेष अच्छा होगा जिससे उसके सामाजिक विकास की स्थिति बेहतर होने से उस जातक के सामाजिक विकास में सहायक बनने की संभवना बेहतर होगी। इस प्रकार उक्त स्थिति को ज्योतिषीय उपाय से अनुकूल या प्रतिकूल बनाया जाकर समाज और राष्ट्र उत्थान में योगदान दिया जा सकता है।
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वृद्धवस्था में रोग ज्योतिष उपचार



55वें वर्ष की आयु के बाद मनुष्य का शरीर कमजोर होने लगता है तथा कई प्रकार की बीमारियों से वह ग्रस्त हो जाता है। आर्थिक और शरीर से कमजोर होने के साथ ही संतान एवं परिवार का व्यवहार उपेक्षापूर्ण हो जाता है। क्या ज्योतिष में इसका कोई समाधान है? आइए जानते हैं:कौन से ग्रहों से कौन सा रोग होता है? एवं इसका उपचार क्या है?बुढ़ापा आने के प्रथम लक्षण की शुरुआत सर के बाल सफेद होना होता है। सर के बाल सफेद होना शुरु होते हि मानना चाहिए कि शरीर कमजोर पडऩे लगा है। उसके बाद पैरों और घुटनों में दर्द तथा फिर दांतों का ढीला होना। भुख कम होना, कब्ज होना यह सब कमजोरी के प्रथम लक्षण है। इन सभी की वजह ग्रहों की दुर्बलता भी होती है। सूर्य यदि लग्न द्वितीय द्वादश भाव में स्थित होता है तो जातक के बाल जल्दी झड़ जाते हैं तथा आंखें कमजोर होकर चश्मा चढ़ जाता है। वृद्धावस्था में आंखें अत्यधिक कमजोर हो जाती है तथा आंखों के रोग मोतियाबिंद आदि होते हैं। बाल भी जल्दी झड़ जाते हैं। सूर्य के उपचार के लिए उसको जल चढ़ाना एवं सूर्य को कभी देखना नहीं चाहिए। पूर्णिमा के चंद्रमा को ज्यादा देर देखनें से आंखों के रोगों में आराम मिलता है। इसी क्रिया से मानसिक तनाव, सरदर्द, भुलने की आदत आदि रोगो ंसे भी आराम मिलता है। मंगल की दुर्बलता से रक्त विकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। यदि मंगल पष्ठम, सप्तम, अष्टम होतो पैरों और घुटनों में खिंचाव, साइटिका, नस कमजोरी पेशाब में जलन एवं रुकावट जैसे रोग उत्पन्न होते हैं। 35 वर्ष की आयु में इनमें तीव्रता आ जाती है तथा धीरे-धीरे यह उग्र रूप धारण कर लेते हैं। यही मंगल यदि चतुर्थ या दशम स्थान में हो तो किडनी, अंपेडिक्स, कमर दर्द, पेट का आपेरशन जैसे रोग का कारक होता है। मंगल के उपचार हेतु लाल रंग के खाद्य पदार्थ जैसे टमाटर, सेवफल, अनार का खाने में प्रयोग करें। नियमित रूप से। लाल रंग के वस्त्र एवं गाड़ी का रंग भी लाल रखें। शराब, मांस, गरिष्ठ पदार्थों का सेवन न करें। सहिजन का सेवन (सुजना की फली) भी लाभ देता है।राहु यदि सप्तम स्थित होता है तो गुप्त रोग, पाईल्स, भगंदर जैसे रोग होते हैं। यह बड़े कष्टदायी होते हैं। राहु के उपचार हेतु किसी गरीब को कंबल का दान करें। शनिवार को उड़द की दाल से बना हुआ, तला हुआ पदार्थ ही खाएं (दही बड़े आदि)।बुध, शुक्र, शनि भी कई रोग के जन्मदाता होते हैं। जैसे लकवा, हृदयाघात, उच्च एवं निम्न रक्तचाप परंतु इन ग्रहों पर नियंत्रण करें तो बीमारियों से आसानी से बचा जा सकता है।

वास्तु अनुसार बनाए अपने सपनों का घर

घर की साज सज्जा बाहरी हो या अंदर की वह हमारी बुद्धि मन और शरीर को जरूर प्रभावित करती है। घर में यदि वस्तुएं वास्तु अनुसार सुसज्जित न हो तो वास्तु और ग्रह रश्मियों की विषमा के कारण घर में क्लेश, अशांति का जन्म होता है। घर के बाहर की साज-सज्जा बाहरी लोगों को एवं आंतरिक शृंगार हमारे अंत: करण को सौंदर्य प्रदान करता है। जिससे सुख-शांति सौम्यता प्राप्त होती है।भवन निर्माण के समय ध्यान रखें। भवन के अंदर के कमरों का ढलान उत्तर दिशा की तरफ न हो। ऐसा हो जाने भवन स्वामी हमेशा ऋणी रहता है। ईशान कोण की तरफ नाली न रखें। इससे खर्च बढ़ता है।शौचालय: शौचालय का निर्माण पूर्वोत्तर ईशान कोण में न करें। इससे सदा दरिद्रता बनी रहती है। शौचालय का निर्माण वायव्य दिशा में हो तो बेहतर होता है।कमरों में ज्यादा छिद्रों का ना होना आपको स्वस्थ और शांतिपूर्वक रखेगा।घरों में रंगों का संयोजनघर में अत्यधिक सफेद एवं काले रंग का प्रयोग नहीं करें। काला रंग राहु के प्रभाव को बढ़ाता है एवं अत्यधिक सफेद रंग विलासिता बढ़ाता है।- किचन में लाल रंग।- बेडरुम मे हल्का नीला।- शौचालय और उसके बाहर गहरा नीला।- पूजा घर में नारंगी।- ड्राइंग रूम में क्रिम रंग का इस्तेमाल करें।
अटैच बाथरुमअटैच बाथरुम बनाते समय यह ध्यान रखें कि कमरे के बायी और उसका निर्माण नहीं हो तथा उसका एक्जास्ट बाहर की ओर हो।
फर्श कैसा होफर्श पर भगवान या उनके चित्र नहीं बनाना चाहिए। इसके अलावा पशु, पक्षी, वीणा आदि भी नहीं बनाना चाहिए। ऐसा करने पर मानसिक विकार, धन-हानि की संभावना रहती है।सात, आठ दल वाले कमल के पुष्प का चिन्ह आदि का फर्श का निर्माण करने पर शुभ फल प्राप्त होते हैं। फर्श ऊंचा नीचा न हो इससे विरोध बढ़ता तथा विकास रुक जाता है।कमरों का निर्माण कैसा होकमरों का निर्माण में नाप महत्वपूर्ण होते हैं। उनमें आमने-सामने की दिवारें आकार में बिल्कुल एक जैसी हों उनमें विषमता न हो। कमरों का निर्माण भी सम आकार में ही करें। 20-10, 16-10, 10-10, 20-16 आदि विषमता में करें जैसे 19-16, 18-11 आदि।शयन कक्ष में शयन की क्या स्थितिशयन कक्ष में सोने की व्यवस्था कुछ इस तरह हो कि सिर दक्षिण मे एवं पावं उत्तर में हो।यदि यह संभव न हो सिरहाना पश्चिम में और पूर्व दिशा में हो तो बेहतर होता है। रोशनी व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि आंखों पर जो न पड़े। बेड रुम के दरवाजे के पास पलंग स्थापित न करें। इससे कार्य में विफलता पैदा होती है।
फर्नीचर: घर में फर्नीचर बनवाने के लिए बहेड़ा, पीपल, वटवृक्ष, पाकर, कैथ, करंज, गुलर आदि लकडिय़ों का प्रयोग न करें। ऐसा करने पर सुख का नाश होता है। पलंग के सिरहाने पर अशुभ आकृति न हो इसका ध्यान रखें जैसे सिंह, गिद्द, बाज या अन्य हिंसक पशु ऐसा होने पर वह मानसिक विकार उत्पन्न करती है। जो कलह का कारण होता है।फर्नीचर में शीशम, महूआ, अर्जुन, बबूल, खैर, नागकेशर वृक्ष की लकड़ी का में ले सकते हैं।
टीवी कहां रखेंघर के आग्नेय कोण में ही टीवी रखें। इसी प्रकार अलमारी दक्षिणमुखी नहीं होनी चाहिए। गद्दा, तकिया, पलंग, पर्दे आदि का वास्तु अनुरूप हो तो जीवन में सदा सुख का अनुभव करेंगे।

छत्तीसगढ़ में अद्भुत शिव रूद्र प्रतिमा वाला पर्यटन स्थल -ताला

रायपुर से बिलासपुर राजमार्ग पर 85 किलोमीटर दूर है ग्राम ताला। यहां अनूठी और अद्भुत मूर्तियां मिली है, जिसमें शैव संस्कृति के 2 मंदिर देवरानी-जेठानी के नाम से विख्यात है। यहां ढाई मीटर ऊंची और 1 मीटर चौड़ी जीव-जंतुओं की मुखातियों से बने अंग-प्रत्यंगों वाली प्रतिमा मिली है, जिसे रूद्र शिव का नाम दिया गया है। महाकाल रूद्र शिव की प्रतिमा भारतीय कला में अपने ढंग की एकमात्र ज्ञात प्रतिमा है। कुछ विद्वान धारित बारह राशियों के आकार पर इसका नाम कालपुरूष भी मानते हैं। महाकाल रूद्रशिव की प्रतिमा भारी भरकम है। 2.54 मीटर ऊंची और 1 मीटर चौडी प्रतिमा के अंग-प्रत्यंग अलग-अलग जीव-जंतुओं की मुखाकृतियों से बने हैं, इस कारण प्रतिमा में रौद्र भाव साफ नजर आता है। प्रतिमा संपादस्थानक मुद्रा में है। इस महाकाय प्रतिमा के रूपांकन में गिरगिट, मछली, केकड़ा, मयूर, कछुआ, सिंह और मानव मुखों की मौलिक रूपाति का अद्भूत संयोजन है। मूर्ति के सिर पर मंडलाकार चक्रों में लिपटे 2 नाग पगडी के समान नजर आते हैं। नाक नीचे की ओर मुंह किए हुए गिरगिट से बनी है। गिरगिट के पिछले 2 पैरों ने भौहों का आकार लिया है। अगले 2 पैरों ने नासिका रंध्र की गोलाई बनाई है। गिरगिट का सिर नाक का अगला हिस्सा है। बडे आकार के मेंढक के खुले मुख से नेत्रपटल और बडे अण्डे से गोलक बने हैं। छोटे आकार की मछलियों से मुछें और निचला होंठ बना है। कान की जगह बैठे हुए मयूर स्थापित हैं। कंधा मगर के मुंह से बना है। भुजाएं हाथी के सूंड के समान हैं, हाथों की उंगलियों सांप के मुंह के आकार की है, दोनों वक्ष और उदर पर मानव मुखातियां बनी है। कछुए के पिछले हिस्से कटी और मुंह से शिश्न बना है। उससे जुडे अगले दोनों पैरों से अण्डकोष बने हैं और उन पर घंटी के समान लटकते जोंक बनी है। दोनों जंघाओं पर हाथ जोडे विद्याधर और कमर के दोनों हिस्से में एक-एक गंधर्व की मुखाति बनी है। दोनों घुटनों पर सिंह की मुखाति है, मोटे-मोटे पैर हाथी के अगले पैर के समान है। प्रतिमा के दोनों कंधों के ऊपर 2 महानाग रक्षक की तरह फन फैलाए नजर आते हैं। प्रतिमा के दाएं हाथ में मोटे दंड का खंडित भाग बचा हुआ है। प्रतिमा के आभूषणों में हार, वक्षबंध, कंकण और कटिबंध नाग के कण्डलित भाग से अलंकृत है। सामान्य रूप से इस प्रतिमा में शैव मत, तंत्र और योग के सिद्धांतों का प्रभाव और समन्वय दिखाई पडता है। ताला गांव पुरातत्व महत्व के देवरानी-जेठानी मंदिरों के कारण विख्यात है। ये मंदिर 1986 में ही अनावृत्त किए गए। एक विशाल परिसर में स्थित ये मंदिर आज खंडहर अवस्था में है। किंतु 5वीं-6वीं शताब्दी के आसपास बने यह मंदिर पुरातत्व महत्व तथा यहां से प्राप्त अनोखी मूर्तियों के कारण दर्शनीय बन गए। लाल पत्थर से बना जेठानी मंदिर शैव संप्रदाय के उपासकों का साधनापीठ माना जाता है। दक्षिणाभिमुख मंदिर की स्थापत्य शैली कुछ विशिष्ट है। मंदिर के तल विन्यास में अर्धमंडप एवं गर्भगृह का धरातल उतरोत्तर ऊंचा होता गया है। दीवारों तथा स्तंभों पर अनोखी भाव-भंगिमा वाली मूर्तियों का अंकन देखने को मिलता है। देवरानी मंदिर भी प्राचीन शिव मंदिर है। इसके द्वार तथा शाखाओं पर बनी मूर्तियों में लक्ष्मी, उमा, महेश्वर, शिव-पार्वती, कीर्तिमुख मिथुन दंपती आदि का खूबसूरत अंकन है।
मंदिरों की खोज के साथ ही इस क्षेत्र से कई अनोखी मूर्तियां, शिलाखंड, लघुफलक, बाण फलक, मृणमयी वस्तुएं एवं सिक्के मिले थे। यहां से प्राप्त एक अजीब मूर्ति तो पर्यटकों ही नहीं, पुरातत्वप्रेमियों के लिए भी कौतूहल का विषय है। मूर्ति को देख यह कह पाना कठिन है कि यह किस देवता या देवपुरुष की मूर्ति होगी। इस प्रतिमा में एक शरीर पर दस मुख हैं। एक मुख तो यथास्थान है। दो मुख वक्ष स्थल पर बने हैं, एक मुख पेट पर, दो मुख जांघों पर, दो मुख घुटनों पर तथा दो मुख पृष्ठ भाग में बने हैं। इस अद्भुत मूर्ति में विचित्र कल्पना तथा कलात्मकता का संगम नज़र आता है। मूर्ति में पशु पक्षियों का चित्रण भी किया गया है।
पर्यटन हेतु सड़क पेयजल एवं छाया दार स्थलों का निर्माण, आसपास के स्थल पर आकर्षक उद्यान, फव्वारे, समीप ही बहने वाली मनियारी नदी पर एनीकट बनाकर पानी को रोकने और उसमें नौकायन की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। सिंचाई विभाग उद्यान तथा मनियारी नदी के दोनों ओर 150-150 मीटर घाट निर्माण किये गये है तथा मनियारी नदी पर ताला एनीकट बनाया गया। आसपास के मंदिरों के जीर्णोद्वार के कार्य किये गये है। ताला पहुंच मार्ग के दोनों ओर वृक्षारोपण कर हरियाली लाने का प्रयास किया गया है।
मदकुद्वीप:
ताला से कुछ दूरी पर प्रसिध्द ऐतिहासिक स्थल मदकुद्वीप स्थित है। जहां प्रतिवर्ष मसीही मेला का आयोजन किया जाता है। द्वीप तीन ओर से शिवनाथ नदी और मनियारी नदी के संगम से घिरा हुआ है। वन विभाग द्वारा द्वीप में स्थित प्राचीनतम शिव मंदिर का जीर्णोद्वार कराया गया है। विश्राम गृह का निर्माण तथा हरियाली के लिए वृक्षारोपण किये गये है। द्वीप के चारों ओर मदकुद्वीप पीचिंग कर नदी के कटाव को रोका गया। द्वीप के समीप शिवनाथ नदी पर एनीकट है। साथ ही नदी के दोनों ओर 50-50 मीटर तक घाट निर्माण किया गया है। मदकू द्वीप का इतिहास गौरवशाली रहा है। वर्तमान प्रचलित नाम मदकू संस्कृत के मण्डुक्य से मिश्रित अपभ्रंश नाम है। शिवनाथ की धाराओं से आवृत्त इस स्थान की सुरम्यता और रमणीयता मांडुक्य ॠषि को बांधे रखने में समर्थ सिद्ध हुई और इसी तपश्चर्या स्थली में निवास करते हुए मांडुक्योपनिषद जैसे धार्मिक ग्रंथ की रचना हुई। शिव का धूमेश्वर नाम से ऐतिहासिकता इस अंचल में विभिन्न अंचल के प्राचीन मंदिरों के गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंगों से होती है अर्थात पुरातात्विक दृष्टि से दसवीं शताब्दी ईंसवी सन में यह लोकमान्य शैव क्षेत्र था। दसवीं शताब्दी से स्थापित तीर्थ क्षेत्र के रुप में इसकी सत्ता यथावत बनी हुई है। खुदाई में 11 वीं शताब्दी के कलचुरी कालीन मंदिरों की श्रृंखला मिली है। अब हमारी मान्यता है कि मण्डूक ॠषि ने यहीं पर आकर अपना आश्रम बनाया था और मांडूकोपनिषद की रचना की थी। यह स्थल इसलिए पवित्र है कि चारों तरफ़ शिवनाथ नदी से घिरा हुआ है और यही पर आकर शिवनाथ नदी दक्षिण से आकर उत्तर-पूर्व की ओर कोण बनाते हुए ईशान कोण में बहने लगती है।
हिन्दु धर्म में एवं हमारे प्राचीन वास्तु शास्त्र के हिसाब से ईशान कोण में बहने वाली नदी सबसे पवित्र मानी जाती है। हिन्दु धर्म में ऐसे ही स्थान पर मन्दिरो, बड़े नगरों एवं राजधानियों की स्थापना की जाती है। यहाँ आकर शिवनाथ नदी भी ईशान कोण में बहती है। इसलिए पुरातन काल से ही धार्मिक स्थल होने के कारण यहां पूजा पाठ एवं विशाल यज्ञ होते थे। शंकराचार्य ने पंचायतन मंदिर की प्रथा प्रारंभ की। उन्होने पांचो सम्प्रदायों के उपासक देवताओं के पाँच लिंगो को एक ही प्लेट्फ़ार्म पर स्थापित किया। जिसे स्मार्त लिंग कहते हैं। जिससे पांचों सम्प्रदाय के लोग एक ही स्थान पर आकर पूजा कर लें। भारत में मद्कुद्वीप ही एक मात्र ऐसा स्थान है जहाँ 13 स्मार्त लिंग मिले हैं। यहाँ दो युगल मंदिर भी मिले हैं। पहला मंदिर स्थानीय नागरिकों को मिला था जिसे बना दिया गया और दुसरा मंदिर अभी की खुदाई में मिला है। एक ही प्लेटफ़ार्म पर जब दो मंदिर होते हैं उन्हे युगल मंदिर कहते हैं। ये दोनो मंदिर शिव जी हैं योनी पीठ वाले। इस स्थान का महत्व इसलिए है कि एक छोटे से द्वीप में एक ही स्थान पर द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं 13 स्मार्त लिंग मिले हैं जो एक ही पंक्ति में स्थापित हैं। यहाँ गणेश जी, लक्ष्मीनारायण, राजपुरुषों एवं एक उमामहेश्वर की मूर्ति भी मिली हैं। जिन-जिन राजाओं ने यहां मंदिर बनवाए उन्होने अपनी-अपनी मूर्ति भी यहाँ लगा दी है। ये मुर्तियाँ लाल बलुवा पत्थर की बनी हैं जो शिवनाथ नदी में ही मिलते हैं। इन पत्थरों पर सुन्दर बेल बूटे एवं मुर्तियां उत्कीर्ण की गयी है। यह सम्पुर्ण संरचना जमीन से मात्र डेढ मीटर गहराई पर ही प्राप्त हो गयी।
ेकबीरपंथियों का तीर्थ दामाखेड़ा:
रायपुर-बिलासपुर मार्ग पर सिमगा से 10 किमी दूर स्थित दामाखेड़ा कबीरपंथियों के तीर्थ के रूप में विख्यात है। इस पंथ के मानने वालों का यह छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ा आस्था का केंद्र माना जाता है। यहां कबीर मठ की स्थापना 100 साल पहले पंथ के 12वें गुरु उग्रनाम साहब ने की थी। यहां के समाधि मंदिर में कबीर की जीवनी बड़े ही मन मोहक और कलात्मक ढंग से दीवारों पर नक्काशी कर उकेरा गया है। दामाखेड़ा में हर साल माघ शुक्ल दशमी से माघ पूर्णिमा तक संत समागम समारोह आयोजित किया जाता है। यहां दशहरा पर्व भी बड़े ही उल्लास के साथ मनाने की परंपरा है, क्योंकि इसी दिन दामाखेड़ा में वंश की स्थापना हुई थी।
प्रसिध्द स्थल सोमनाथ:
धार्मिक एवं प्राक्रितिक सौर्दंय से परिपुर्ण छत्तीसगढ का गौरव बढाता है शिवनाथ नदी के तट स्थित सोमनाथ। यह रायपुर -बिलासपुर मार्ग पर स्थित ग्राम सांकरा से पश्चिम दिशा मे आठ कि.मी. की दुरी पर स्थित है। यह छत्तीसगढ का प्रसिध्द धार्मिक स्थल है। लाखों श्रध्दालु भगवान शिव का दर्शन करने यहां माघ मास के महिने मे आते है। यहां की प्राक्रितिक सौर्दंयता के कारण दुर दुर से लोग यहां पिकनिक मनाने आते हैं। धरसींवा से आगे सिमगा से 10 किमी की दूरी पर पहले बायीं ओर खारून नदी और शिवनाथ नदी का संगम सोमनाथ तीर्थ स्थल जाने का रास्ता है। प्रमुख मार्ग से 3 किमी की दूरी पर खारून नदी के तट पर लखना ग्राम है और लखना से एक किमी दूर सोमनाथ का तीर्थ स्थल है। सोमनाथ में खारून नदी एवं शिवनाथ नदी के संगम पर सोमनाथ महादेव का मन्दिर ऊँचे टीले पर स्थित है। गोलाकार शिवलिंग 3 फीट ऊँचा है। प्राक्रितिक सौन्दर्य से परिपुर्ण शिवनाथ नदी के तट पर यह भगवान शंकर का बसेरा है जहां प्रतिवर्ष माघ पुर्णिमा को मेला लगता है जिसमे हजारों श्रध्दालु शिव जी का दर्शन करने यहां पहुचंते है।
मंदिर में शिव परिवार पार्वती देवी, गणेश जी, कार्तिकेय एवं नन्दी की प्रतिमायें स्थापित हैं। इसी मन्दिर में उत्खनन के समय सोमनाथ महादेव शिवलिंग के ही प्रतिरूप शिवलिंग प्रतिमा मिली थी, जिसे निषाद समाज द्वारा निर्मित मन्दिर में स्थापित किया गया है। उस शिव लिगं की खासियत यह है की वह अभी भी भुमि मे गडा हुआ है और धीरे -धीरे बडा होता जा रहा है। संगम के मध्य एक मंदिर है, जहाँ शिवलिंग व हनुमान की मूर्तियाँ हैं। सोमनाथ तीर्थ स्थल छत्तीसगढ़ का एक मनोहारी पर्यटन स्थल है।
दामाखेडा जाने के लिये मार्ग:
थल मार्ग: रायपुर से बिलासपुर की ओर रायपुर से साठ कि.मी.
वायु मार्ग: निकटतम विमान स्थल माना (रायपुर )
मदकू द्वीप जाने के लिये मार्ग:
रायपुर से हावड़ा मुंबई रेलमार्ग पर 64 किलो मीटर के फ़ासले पर भाटापारा नगर प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र है। यहाँ से कड़ार-कोतमी गांव होते हुए मदकू द्वीप लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। रायपुर-बिलासपुर राजमार्ग के 76 वें माईल स्टोन पर स्थित बैतलपुर से यह दुरी 4 किलोमीटर है। रेल और सड़क मार्ग दोनो से इस स्थान पर पहुंचा जा सकता है।
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हथेली में विवाह रेखा

प्रेम प्रसंग और शादी से जुड़ी बातें जानने के लिए हथेली की विवाह रेखा का अध्ययन मुख्य रूप से किया जाता है।
कहां होती है विवाह रेखा
हमारी हथेली में थोड़े-थोड़े समय में कई रेखाएं बदलती रहती हैं। जबकि कुछ खास रेखाएं ऐसी हैं, जिनमें ज्यादा बदलाव नहीं होते हैं। इन महत्वपूर्ण रेखाओं में जीवन रेखा, भाग्य रेखा, हृदय रेखा, मणिबंध, सूर्य रेखा, विवाह रेखा शामिल है। हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार, विवाह रेखा से किसी भी व्यक्ति के प्रेम प्रसंग और वैवाहिक जीवन पर विचार किया जाता है। विवाह रेखा सबसे छोटी उंगली (लिटिल फिंगर) के नीचे वाले भाग पर आड़ी स्थिति में होती है। छोटी उंगली के नीचे वाले भाग को बुध पर्वत कहा जाता है। विवाह रेखा एक या एक से अधिक भी हो सकती है।
यहां जानिए विवाह रेखा से जुड़ी खास बातें...
1. यदि किसी व्यक्ति के हाथ में विवाह रेखा और हृदय रेखा के बीच की दूरी बहुत ही कम है तो ऐसे लोगों का विवाह कम उम्र में होने की संभावनाएं होती हैं। आमतौर पर विवाह रेखा और हृदय रेखा के बीच की दूरी ही व्यक्ति के विवाह की उम्र बताती है। इन दोनों रेखाओं के बीच जितनी अधिक दूरी होगी विवाह उतने ही अधिक समय बाद होता है। ऐसी संभावनाएं काफी अधिक रहती हैं।
2. यदि किसी व्यक्ति के दोनों हाथों में विवाह रेखा की शुरुआत में दो शाखाएं हों तो उस व्यक्ति की शादी टूटने का डर रहता है।
3. यदि किसी स्त्री के हाथ में विवाह रेखा की शुरुआत में द्वीप का चिह्न हो तो ऐसी स्त्री की शादी किसी धोखे से होने की संभावनाएं रहती हैं। साथ ही, यह निशान जीवन साथी के खराब स्वास्थ्य की ओर भी इशारा करता है।
4. यदि किसी व्यक्ति के हाथ में विवाह रेखा बहुत अधिक नीचे की ओर झुकी हुई दिखाई दे रही है और वह हृदय रेखा को काटते हुए नीचे की ओर चले जाए तो यह शुभ लक्षण नहीं माना जाता है। ऐसी रेखा वाले व्यक्ति के जीवन साथी की मृत्यु उसकी मौजूदगी में ही हो सकती है।
5. यदि किसी व्यक्ति की हथेली में विवाह रेखा लम्बी और सूर्य पर्वत तक जाने वाली है तो यह संपन्न और समृद्ध जीवन साथी का प्रतीक है।
6. यदि बुध पर्वत से आई हुई कोई रेखा विवाह रेखा को काट दे तो व्यक्ति का वैवाहिक जीवन परेशानियों भरा होता है।
10. यदि दाएं हाथ में दो विवाह रेखा हैं और बाएं हाथ में एक विवाह रेखा है तो ऐसे लोगों की पत्नी अधिक ध्यान रखने वाली नहीं होती है।
11. दोनों हाथों में विवाह रेखा समान लंबाई की और शुभ लक्षणों वाली है तो ऐसे लोगों का वैवाहिक जीवन सुखी होता है। इन लोगों का अपने जीवन साथी से काफी अच्छा तालमेल होता है।
12. यदि किसी व्यक्ति के हाथ में विवाह रेखा ऊपर की ओर मुड़ जाए और छोटी उंगली तक पहुंच जाए तो ऐसे व्यक्ति के विवाह में काफी परेशानियां आती हैं। आमतौर पर ऐसी विवाह रेखा वाले इंसान का विवाह होना बहुत मुश्किल होता है यानी इन लोगों के अविवाहित रहने की संभावनाएं काफी अधिक होती हैं।
13. यदि विवाह रेखा के अंत में त्रिशूल के समान चिह्न दिखाई दे रहा है तो व्यक्ति अपने जीवनसाथी से बहुत अधिक प्रेम करने वाला होता है। कुछ वर्षों के बाद ऐसा व्यक्ति जीवनसाथी के प्रति उदासीन भी हो जाता है।
14. यदि विवाह रेखा को कोई खड़ी रेखाएं काट रही हैं तो यह विवाह में देरी और बाधाओं का संकेत है।
15. ऊपर की ओर मुड़ी हुई विवाह रेखा शुभ नहीं मानी जाती है। यदि ये रेखा थोड़ी-सी ऊपर की ओर मुड़ गई है तो व्यक्ति का विवाह होने में बहुत परेशानियां आती हैं और विवाह हो भी जाता है तो वैवाहिक जीवन सुखी नहीं कहा जा सकता है।
16. हथेली में एक से अधिक विवाह रेखाएं प्रेम-प्रसंग की संख्या की ओर इशारा करती हैं। साथ ही, यह रेखा यह भी बताती है कि आपका वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा। यदि विवाह रेखा नीचे की ओर बहुत अधिक झुकी हुई हों तो वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
17. यदि किसी व्यक्ति के हाथ में विवाह रेखा पर क्रॉस का निशान है तो हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार, ऐसे लोगों का जीवन साथी जल्दी गुजर सकता है।
18. यदि विवाह रेखा पर किसी वर्ग के समान चिह्न दिखाई दे रहा है तो यह जीवन साथी के खराब स्वास्थ्य का संकेत देता है।
19. यदि विवाह रेखा के प्रारंभ में किसी द्वीप के समान चिह्न है तो जीवन साथी का कोई अनैतिक संबंध हो सकता है। द्वीप का चिह्न अंत में हो तो यह जीवन साथी के स्वास्थ्य के लिए बुरा संकेत है।
20. यदि किसी व्यक्ति की हथेली में विवाह रेखा के प्रारंभ में तिल है तो यह जीवन साथी के बुरे स्वास्थ्य की ओर इशारा करता है। यदि यह तिल अधिक गहरा हो तो यह जीवन साथी के जीवन के लिए खतरे की ओर इशारा करता है।
ध्यान रखें यहां बताई गई बातें सिर्फ विवाह रेखा के आधार पर बताई गई हैं। अन्य रेखाओं के प्रभाव से विवाह रेखा का फलादेश बदल भी सकता है। दोनों हाथों की सभी रेखाओं और हाथों की बनावट की गहनता से अध्ययन करने पर सटीक जानकारी मिल सकती है।

हाथ की हथेली से जाने डाक्टर बनने के योग

हस्तरेखा अध्ययन ज्योतिष की कई विद्याओं में से एक है। हाथों की रेखाओं से किसी भी व्यक्ति का स्वभाव मालूम हो सकता है। व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान की जानकारी मिल सकती है। करियर से जुड़ी बातें भी हस्तरेखा से मालूम हो जाती है। यहां जानिए हथेली के कुछ विशेष योग जो बताते हैं कि व्यक्ति डॉक्टर या वैद्य बनेगा या नहीं...
1. जिस व्यक्ति के हाथ के मंगल व बुध पर्वत उच्च हों, उंगलियां लंबी, आगे से गोल, पतली या चपटी हो, साथ ही सभी उंगलियों का दूसरा भाग भरा हुआ दिखाई दे रहा हो और बुध पर्वत पर तीन-चार खड़ी रेखाएं हों, हथेली मजबूत हो, सूर्य रेखा तथा मस्तिष्क रेखा भी गहरी हो तो व्यक्ति वैद्य या डाॅक्टर बनता है।
2. जिस व्यक्ति के हाथ में चंद्र पर्वत उच्च और मोटा हो तथा सूर्य रेखा स्पष्ट, शुभ हो तो व्यक्ति नाड़ी विशेषज्ञ होता है।
3. जिस व्यक्ति के हाथ में सूर्य रेखा श्रेष्ठ हो, बुध पर्वत उच्च हो और उस पर छोटी-छोटी तीन खड़ी रेखाएं हों, उंगलियां लंबी हों, उंगलियों का प्रथम भाग भी भरा हुआ हो, हृदय रेखा, मस्तिष्क रेेखा भी श्रेष्ठ हो, चंद्र और शुक्र पर्वत समान हो तो व्यक्ति किसी विशेष रोग का विशेषज्ञ होता है।
4. जिस व्यक्ति के हाथ का मध्य भाग भरा हुआ हो, उंगलियों का आगे वाला भाग मोटा हो तथा सूर्य रेखा भी श्रेष्ठ हो तो व्यक्ति पशु चिकित्सक बनता है।
5. जिस स्त्री का हाथ गोल, पतला, चपटा हो और हाथ मजबूत हो, साथ ही बुध पर्वत पर खड़ी रेखाएं हों, चंद्र-शुक्र पर्वत भी श्रेष्ठ हो तो वह स्त्री नर्स बनती है।
6. जिस व्यक्ति के हाथ में बुध पर्वत पर छोटी-छोटी खड़ी रेखाएं होती हैं, मंगल पर्वत श्रेष्ठ होता है और उस पर दो खड़ी रेखाएं हों तो व्यक्ति रसायन शास्त्र का जानकार होता है।

हस्तरेखा में चतुष्कोण

हथेली में किसी भी रेखा के साथ या किसी भी पर्वत (शुक्र पर्वत को छोड़कर) पर चतुष्कोण बनता है तो उस रेखा या पर्वत के शुभ फल बढ़ जाते हैं। साथ ही, इस निशान से टूटी रेखाओं के दोष भी कम हो सकते हैं। हथेली में चतुष्कोण भाग्य का साथ दिलाने वाला निशान माना जाता है। हथेली में शुक्र पर्वत पर चतुष्कोण से विपरीत फल मिल सकते हैं। शुक्र पर्वत पर चतुष्कोण अच्छा नहीं माना गया है।
चतुष्कोण की आकृति
चतुष्कोण चार भुजाओं वाली एक चौकोर आकृति होती है। चार रेखाओं से बनने वाली ये आकृति असमान, अलग-अलग लंबाई व चौड़ाई वाली हो सकती है। हथेली में रेखाएं और निशान बनते-बिगड़ते रहते हैं। अत: जब हथेली के शुभ स्थानों पर चतुष्कोण बनता है तो व्यक्ति को भाग्य की ओर से ज्यादा लाभ मिलने लगते हैं।
हथेली पर चतुष्कोण की उपस्थिति का फल
यदि हथेली की कोई रेखा सही स्थिति में है और उस पर चतुष्कोण है तो यह उस रेखा से प्राप्त होने वाले शुभ परिणामों को अधिक बढ़ा देता है। यदि रेखा टूटी हुई है तो यह उसके बुरे प्रभावों को कम करने वाला होता है। साथ ही, उस रेखा से होने वाले दुष्परिणामों को बदल भी सकता है।
जीवन रेखा पर चतुष्कोण का फल
लंबी जीवन रेखा पर चतुष्कोण हो तो ये स्थिति उम्र को बढ़ाने वाली मानी गई है। यदि जीवन रेखा टूट रही हो और उस पर चतुष्कोण बन जाए तो यह शारीरिक परेशानियों को कम कर सकता है।
हथेली पर नीले, काले या लाल बिंदु के पास चतुष्कोण
यदि हथेली पर कहीं नीले, काले या लाल बिंदु का निशान हो और यदि उसके पास कहीं चतुष्कोण बन रहा हो तो दुर्घटनाओं से शरीर की सुरक्षा की ओर इशारा करता है।
विवाह रेखा पर चतुष्कोण
हथेली में विवाह रेखा सबसे छोटी उंगली के नीचे बुध पर्वत पर स्थित होती है। यदि विवाह रेखा सीधी न हो और नीचे की ओर झुक रही हो या आकार में गोल हो रही हो तो यह स्थिति जीवनसाथी के स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं मानी गई है। विवाह रेखा में ये दोष हो और उस पर चतुष्कोण बन जाए तो जीवनसाथी के जीवन से जुड़ी परेशानियों में राहत प्रदान करता है।
भाग्य रेखा पर चतुष्कोण
हथेली में भाग्य रेखा टूटी हो तो कार्यों में रुकावटें आती हैं। ऐसे में भाग्य रेखा के आस-पास ही चतुष्कोण बन जाए तो समस्याएं आती हैं, लेकिन वह सफलता भी मिल जाती है
मंगल ​पर्वत पर चतुष्कोण
मंगल पर्वत हथेली में दो जगह होता है। एक तो जीवन रेखा के ठीक नीचे अंगूठे के पास वाले स्थान पर होता है। दूसरा हृदय रेखा के ठीक नीचे मस्तिष्क रेखा के पास वाले स्थान पर होता है। मंगल पर्वत की दबी हुई स्थिति साहस की कमी करती है। मंगल पर्वत पर चतुष्कोण होने से साहस की कमी होने पर भी असफल होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त होती है।
शनि पर्वत पर चतुष्कोण
शनि पर्वत अशुभ स्थिति में हो तो कुछ कार्यों से स्वयं का ही अहित हो सकता है। शनि पर्वत मध्यमा उंगली के नीचे होता है। इस पर चतुष्कोण होने से बुरी संगत दूर होती है। ऐसे चतुष्कोण से व्यक्ति समाज के कल्याण के लिए कार्य करने लगता है।
मस्तिष्क रेखा पर चतुष्कोण
मस्तिष्क रेखा अधिक लंबी हो तो मानसिक रूप से असंतोष उत्पन्न हो सकता है। यह स्थिति निराशा भी बढ़ा सकती है। यदि इस रेखा पर चतुष्कोण बन जाए तो व्यक्ति निराशा से बाहर आ सकता है। साथ ही, मानसिक रूप से संतुष्टि भी मिलती है।
हृदय रेखा पर चतुष्कोण
हृदय रेखा पर चतुष्कोण होने से व्यक्ति में मनोबल अधिक होता है। साथ ही, हृदय रेखा की अशुभ स्थिति से हृदय संबंधी रोग हो सकते हैं। अशुभ हृदय रेखा पर ये निशान हो तो रोगों से बचाव होता है।
शुक्र पर्वत पर शुभ नहीं होता है चतुष्कोण
हथेली में शुक्र पर्वत पर चतुष्कोण शुभ परिणाम नहीं देता है। शुक्र पर्वत पर चतुष्कोण के होने से किसी भी प्रकार की सजा या जुर्माना भरने की संभावनाएं बन सकती हैं।

सहनशीलता

एक विद्धान थे, जो कई वेदों के ज्ञाता था तथा बच्चों को ज्ञान भी दिया करते थे। वह लोगों की समस्याएं सुनकर उनका समाधान भी बताया करते थे। वह बड़े नेक और सच्चे थे, इसलिए उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। हर समाज का व्यक्ति उनका सम्मान करता था। वह किसी से कभी नाराज नहीं होते थे, लेकिन जिसका सम्मान जितना अधिक होता है, उसके विरोधियों को वह उतना ही खलने लगता है। विरोधी खेमे में भी यह चर्चा आम थी। विरोधी गुट के आचार्य ने सोचा- देखता हूं, उसे कैसे उसे गुस्सा नहीं आता। मैं आज यह भ्रम तोड़ कर रहूंगा।
यह कह कर वह अपने घर आए और भेष बदल कर विद्धान की कुटिया में जा पहुंचे। वहां बहुत लोग पहले से ही बैठे थे। उन्होंने पास जाकर अभिवादन किया और बैठ गए। कुछ देर बाद उन्होंने कहा, मुझे कुछ जानना है। आपकी इजाजत हो तो पूछूं विद्धान ने कहा, क्या जानना चाहते हो? अगर रब ने चाहा तो तुम्हें जवाब जरूर मिलेगा। आचार्य ने पूछा- मल का स्वाद कैसा होता है? यह अटपटा सवाल सुनकर सभी हैरान रह गए। विद्धान बोले, मल का स्वाद शायद कुछ-कुछ मीठा होता है। उसने पूछा, आपको कैसे पता, मीठा होता है या कड़वा। क्या आपने चख कर देखा है? आचार्य का सवाल सुनकर वहां बैठे लोग आगबबूला हो गए कि इसकी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की? लेकिन विद्धान ने सभी को शांत किया और बोले- मैंने मीठा इसलिए कहा कि अक्सर देखा जाता है कि उस पर मक्खियां भिनभिनाती रहती हैं और वे आम तौर पर मीठे पर ही बैठती हैं। यह सुनकर आचार्य नतमस्तक हो गए और अपना परिचय देते हुए बोले, आपकी सहनशीलता वंदनीय है। आपके बारे में जैसा सुना, वैसा ही पाया।
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