Tuesday 28 April 2015

हस्त रेखा में चक्रों की संख्या के आधार पर निर्णय .....

हस्त रेखा में चक्रों की संख्या के आधार पर निर्णय .....
1-यदि किसी जातक की अंगुलियों में एक चक्र का निशान हो तो, वह मनुष्य चालाक तथा अवसर को भुनाने वाले होते है। ऐसे जातक अपने निहित स्वार्थ के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते है।
2- यदि किसी जातक की अंगुलियों में 2 चक्रों के निशान हो तो, ऐसे लोग सुन्दर, गुणवान, तथा समाज में प्रशंसा के पात्र होते है। इन लोगों को तमाम भौतिक वस्तुओं का सुख प्राप्त होता है।
3-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 3 चक्रों के निशान हो तो, ऐसे मनुष्य अपना अधिकतर समय भोग-विलास में व्यतीत करते है। इनका पारिवारिक जीवन दुःखमय बना रहता है।
4-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 4 चक्रों के निशान हो तो, वह व्यक्ति अपने कार्यो में निरन्तर संघर्ष करते है, परन्तु उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं हो पाती है। ऐसे लोग अपने जीवन में कई बार अपमान भी सहते है। इन लोगों का 50वर्ष के उपरान्त ही समय अच्छा होता है।
5-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 5 चक्रों के निशान हो तो ऐसे लोग अपनी विद्वता से समाज का कल्याण करते है। जैसे- सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक, अधिवक्ता, कथावाचक आदि होते है।
6-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 6 चक्रों के निशान हो तो, वह लोग बौद्धिक होते है। ऐ अच्छे पद पर आसीन होकर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते है, परन्तु इनका दाम्प्तय जीवन दुःखमय रहता है।
7-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 7 चक्रों के निशान हो तो, ऐसे लोग पहाड़ों की खूब यात्रा करते है तथा अपने साहस व पराक्रम के बल से शीघ्र ही अपने लक्ष्य को को प्राप्त कर लेते है। ऐ लोग यात्राओं से भी धन कमाते है।
8-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 8 चक्रों के निशान हो तो, वह लोग मेहनत तो अत्यधिक करते है, परन्तु उनको सफलता न के बराबर ही मिलती है। ये लोग निम्नकोटि का कोई भी कार्य न करें तो बेहतर होगा।
9-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 9 चक्रों के निशान हो तो, ऐसे लोग उच्च पद को प्राप्त कर सुखमय जीवन व्यतीत करते है। ये लोग समाज में कुछ ऐसा कार्य भी करते है जिससे इनको पुरस्कार मिलते है।
10-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 10 चक्रों के निशान हो तो ऐसे लोग राजा के समान जीवन व्यतीत करते है। ये लोग राज्य के सलाह, मन्त्री, सेनापति, राज्यपाल या मुख्यमन्त्री होते है।



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हस्त रेखा में सूर्य पर्वत का महत्व

हस्त रेखा में सूर्य पर्वत का महत्व
अनामिका अंगुली के मूल में सूर्य का स्थान होता है। सूर्य का उभार जितना अधिक होगा, प्रभाव भी उतना ही अधिक प्राप्त होता है। सूर्य पर्वत का उभार अच्छा हो तथा स्पष्ट और सरल सूर्य रेखा हो तो व्यक्ति श्रेष्ठ प्रशासक, सवो या पुलिसकर्मी, सफल उद्यागे पति हातो है। पर्वत अधिक उभार वाला हो तथा रेखा कटी या टूटी हुई हो तो व्यक्ति घमंडी, अभिमानी, स्वार्थी, क्रूर, कंजूस तथा अविवेकी होता है।
यदि हथेली में सूर्य पर्वत शनि की ओर झुका या संयुक्त होता है तो व्यक्ति न्यायाधीश, पंच या सफल अधिवक्ता होता है। दूषित पर्वत की स्थिति में अपराधी, कुखयात अपराधी या बदनाम व्यक्तित्व वाला होता है।
सूर्य पर्वत तथा बुध पर्वत के संयुक्त उभार की स्थिति में योग्यता, चतुराई तथा निर्णय शक्ति अधिक होती है। श्रेष्ठवक्ता सफल व्यापारी या उच्च स्थानों का प्रबंधक होता है। ऐसे व्यक्तियों की धन पा्रप्ति की महत्वाकाक्षां असीमित होती है। दूषित उभार या अव्यवस्थित रेखाएं धनाभाव की स्थिति बनाती है तथा व्यक्ति जीवन के उत्तरार्ध में अवसाद से पीड़ित हो सकता है।
हथेली में सूर्य पर्वत के साथ यदि बृहस्पति का पर्व उन्नत है तो व्यक्ति विद्वान, ज्ञानवान, मेधावी और धार्मिक विचारों वाला होता है और यदि सूर्य तथा शुक्र पर्वत उभार वाले है तो विपरीत लिंग के प्रति शीघ्र व स्थायी प्रभाव डालने वाला, धनवान, परोपकारी, सफल प्रशासक, सौंदर्य और विलासिताप्रिय होता है तथा दूषित पर्वत से कामी, लाभेी, लम्पट तथा घमडंी आरै दुष्ट चरित्र वाला हो जाता है।
सूर्य पर्वत पर जाली हो तो गर्व करने वाला किंतु कुटिल स्वभाव वाला होता है तथा किसी पर भी विश्वास न करने वाला होता है। तारा का चिन्ह हो तो धनहानि कारक किंतु प्रसिद्धि, अप्रत्याशित रूप से प्राप्त होती है। गुणा का चिन्ह हो तो सट्टा या शयेर में धन का नाश हो सकता है। सूर्य पर्वत पर त्रिभुज हो तो उच्च पद की प्राप्ति, प्रतिष्ठा तथा प्रशासनिक लाभ होते हैं। सूर्य पर्वत पर बिंदु या वृत्त हो तो निश्चित रूप से सूर्योदय के पहले या बाद का जन्म समय तथा आंखों में विशेष परेशानी होती है।
सूर्य पर्वत पर चौकड़ी हो तो सर्वत्र लाभ तथा सफलता की प्राप्ति होती है। त्रिशूलाकार चिन्ह यश, आनंद, विलासिता व सफलता प्रदान करता है।


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जानिये आज 28/04/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "नेपाल का भूकंप और गर्मियों की बारिश ज्योतिषीय वजह"

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जानिये आज के सवाल जवाब(1) 28/04/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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जानिये आज का पंचांग 28/04/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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Monday 27 April 2015

जानिये आज 27/04/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "सीता नवमी के व्रत से पायें स्वास्थ्य एवं सुख"

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Sunday 26 April 2015

विवाह में बाधा दूर करने हेतु करायें कुंभ एवं अर्क विवाह


विवाह में बाधा दूर करने हेतु करायें कुंभ एवं अर्क विवाह- जाने क्यों और कैसे -
यदि लड़के अथवा लड़की की कुंडली में सप्तम भाव अथवा बारहवां भाव क्रूर ग्रहों से पीडि़त हो अथवा शुक्र, सूर्य, सप्तमेष अथवा द्वादशेष, शनि से आक्रांत हों। अथवा मंगलदोष हो अर्थात वर-कन्या की कुंडली मेें १,२,४,७,८,१२ इन भावों में मंगल हो तो यह वैवाहिक विलंब, बाधा एवं वैवाहिक सुखों में कमी करने वाला योग होता है। धर्म सिंधु ग्रंथ में तत्संबंध में अर्क-विवाह (लड़के के लिए) एवं कुंभ विवाह (लड़की के लिए) कराना चाहिए। कुंभ विवाह जब चंद्र-तारा अनुकूल हों, तब तथा अर्क विवाह शनिवार, रविवार अथवा हस्त नक्षत्र में कराना ऐसा शास्त्रमति है। मान्यता है कि किसी भी जातक (वर) की कुंडली में इस तरह के दोष हों, तो सूर्य कन्या अर्क वृक्ष से व्याह करना, अर्क विवाह कहलाता है। कहते हैं इस प्रक्रिया से दाम्पत्य सुखों में वृद्धि होती है और वैवाहिक विलंब दूर होता है। इच्छित विवाह याने लव मेरिज करने में भी सफलता मिलती है। इसी तरह किसी कन्या के जन्मांग इस तरह के दोष होने पर भगवान विष्णु के साथ व्याह कराया जाता है। इसलिए कुंभ विवाह क्योंकि कलश में विष्णु होते हैं। अश्वत्थ विवाह (पीपल पेड़ से विवाह)- गीता में लिखा श्वृक्षानाम् साक्षात अश्वत्थोहम्ं्य अर्थात वृक्षों में मैं पीपल का पेड़ हूं। विष्णुप्रतिमा विवाह- ये भगवान विष्णु की स्वर्ण प्रतिमा होती है, जिसका अग्नी उत्तारण कर प्रतिष्ठा पश्चात वैवाहिक प्रक्रिया संकल्प सहित पूरी करना, ऐसा शास्त्रमति है। मगर ध्यान रहे बहुत सारे विद्वान केले, तुलसी, बेर आदि के पेड़ से ये प्रक्रियाएं निष्पादित करते हैं जो कतई शास्त्रसम्मत नहीं हैं। अतः विद्वान यजमान, आचार्य की योग्यता को देखकर यह प्रक्रिया करवावें। क्यों कि यह जीवन में एक बार होती है। इसमें अधिकतम दो घंटे का समय और अधिकतम २५०० रू. का खर्च आता है। नांदीमुख श्राद्ध के साथ गौरी गणेश नवग्रह षोडष मातृका, कलश आदि की पूजा कर यह प्रक्रिया सम्पन्न कराएं।

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जानिये "कुंभ और अर्क विवाह विधान" प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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जानिये "अर्क और कुंभ विवाह क्यों और कैसे" प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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जानिये आज के सवाल जवाब 26/04/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से

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जानिये आज 25/04/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "फोबिया का ज्योतिषीय कारक"

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Friday 24 April 2015

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Thursday 23 April 2015

जानिये आज 23/04/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "क्या करें कि डिग्री प्राप्ति के बाद जाॅब मिल जाये "

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Wednesday 22 April 2015

जानिये आज 22/04/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "बच्चों को घर से दूर भेजने से पूर्व करें उसकी कुंडली का विष्लेषण और पाएं पूर्ण सफलता"

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Tuesday 21 April 2015

ऑफिस में रखें इन बातो का ध्यान

ऑफिस में रखें इन बातो का ध्यान
1. दरवाजे की ओर पीठ करके कभी न बैंठें।
2. बीम के नीचे न तो कभी बैठें और न ही काम करें।
3. अपने केबिन के दक्षिण-पश्चिम कोने में बैठे और मुख उत्तर अथवा पूर्व दिशा में रहें।
4. अपने कक्ष/केबिन का दक्षिण-पश्चिम कोना कभी भी रिक्त न रहने दें। वहां फाइल केबिनेट अथवा कोई पौधा रखें।
5. कम्प्यूटर का मॉनिटर दक्षिण-पूर्व अथवा उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर रखें। कम्प्यूटर पर कार्य करते समय आपकामुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा में रहना चाहिए।
6. स्थिरता के लिए अपनी पीछे की दीवार पर पर्वतों अथवा गगनचुंबी भवनों की तस्वीर लटकाएं।
7. दरवाजे अथवा खिड़की की ओर पीठ करके न बैठें अन्यथा आप चुगलियों का शिकर बनेंगे और आपका अपनेउच्चाधिकारियों, स्टाफ, ग्राहकों व सहकर्मियों से झगड़ा रहेगा। यदि आपको पीठ के पीछे कोई खिड़की हो तोउसे बन्द ही रखें और खिड़की के हाने पर कोई पौधा रख दें।


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जाने नेतृत्व क्षमता हाथों की रेखाओं से


हाथों की रेखाओं से जाने नेतृत्व क्षमता--
हमारे आस-पास के सभी लोगों की पसंद-नापसंद एक-दूसरे से भिन्न होती हैं। आमतौर पर अन्य लोगों के स्वभाव को जानने, समझने की जिज्ञासा सभी में रहती हैं, हम जानना चाहते हैं कि हमारे आस-पास के रहने वाले लोगों का व्यवहार कैसा है? उनकी सोच क्या है? किसी भी व्यक्ति की तर्जनी उंगली देखकर भी मालूम किया जा सकता है कि उसकी नेतृत्व क्षमता कैसी है।
हस्तरेखा ज्योतिष में हाथों की रेखाओं के साथ ही हथेली और उंगलियों की बनावट का असर व्यक्ति के स्वभाव पर पड़ता है। यहां जानिए तर्जनी उंगली यानी इंडेक्स फिंगर को देखकर कैसे किसी व्यक्ति का स्वभाव मालूम किया जा सकता है.
तर्जनी उंगली का परिचय-
हमारी हथेली में अंगूठे से पहली उंगली यानी इंडेक्स फिंगर को ही तर्जनी उंगली कहा जाता है। इस उंगली के नीचे गुरु पर्वत स्थित होता है, इसी वजह से इसे गुरु की उंगली भी कहते हैं। सामान्यत: इस उंगली के आधार पर व्यक्ति की नेतृत्व क्षमता यानी व्यक्ति किसी टीम का नेतृत्व कर सकता है या नहीं और व्यक्ति की महत्वकांक्षा पर विचार किया जाता है।
- यदि किसी व्यक्ति के हाथों में इंडेक्स फिंगर (तर्जनी उंगली) मीडिल फिंगर (मध्यमा उंगली) के बराबर हो यानी सामान्य से थोड़ी लंबी हो तो वह व्यक्ति अन्य लोगों पर राज या हुकुमत करने वाला होता है। ऐसे लोग अच्छे बॉस बनते हैं।
- यदि ऐसी उंगली वाले हाथ के अन्य लक्षण भी अच्छे हो तो वह व्यक्ति हजारों लोगों पर राज करने वाला होता है। ये लोग थोड़े घमंडी स्वभाव के होते हैं।
- यदि हथेली में इंडेक्स फिंगर मीडिल फिंगर से अधिक लंबी हो तो व्यक्ति अत्यधिक घमंड करने वाला होता है। ऐसे लोग खुद को अधिक श्रेष्ठ समझते हैं और इनका स्वभाव तानाशाही करने वाला होता है।
- यदि किसी व्यक्ति के हाथों में तर्जनी उंगली की लंबाई सामान्य लंबाई से छोटी है तो इंसान महत्वकांक्षी नहीं होता है। ऐसे लोगों में किसी कार्य को करने के लिए कोई उत्साह नहीं रहता।
- यदि इंडेक्स फिंगर (तर्जनी उंगली) रिंग फिंगर (अनामिका उंगली) से बड़ी हो तो व्यक्ति अति महत्वकांक्षी होता है। ऐसे लोग कभी-कभी अति उत्साह में कार्य बिगाड़ भी लेते हैं, जिससे इन्हें धन हानि का भी सामना करना पड़ता है।
- यदि किसी व्यक्ति की हथेली में रिंग फिंगर और इंडेक्स फिंगर दोनों एक समान हैं तो व्यक्ति अधिक पैसा और मान-सम्मान प्राप्त करने की इच्छा रखता है। यदि इंडेक्स फिंगर रिंग फिंगर से थोड़ी छोटी हो तो व्यक्ति हर परिस्थिति में संतुष्ट रहने वाला होता है।
- सामान्यत: हमारी उंगलियों पर तीन भाग होते हैं। इन तीनों भागों के आधार पर भी व्यक्ति के स्वभाव की बातें मालूम की जा सकती हैं। यदि तर्जनी उंगली का पहला भाग (नाखून के पीछे वाला हिस्सा) अन्य दो भागों से बड़ा हो तो व्यक्ति की नेतृत्व क्षमता काफी अच्छी होती है। ये लोग हर काम को कुशलता से करते हैं।
- जिन लोगों की तर्जनी उंगली का पहला भाग अन्य दोनों भागों से छोटा होता है वे लोग स्वयं को दूसरों से कमजोर समझते हैं। इन लोगों में हीन भावना हो सकती है।
हथेली में तर्जनी उंगली का बीच वाला भाग अन्य दोनों भागों से अधिक बड़ा दिखाई देता है तो व्यक्ति अहंकारी होता है। ऐसे लोग किसी भी काम को पूरी दक्षता के साथ पूर्ण करते हैं। इन लोगों का घर-परिवार और समाज में विशेष स्थान होता है। इसके विपरीत यदि किसी व्यक्ति की हथेली में यह भाग अन्य दोनों भागों से छोटा होता है तो व्यक्ति किसी भी कार्य को कुशलता के साथ पूर्ण नहीं कर पाता है।
जिन लोगों की उंगली का तीसरा और अंतिम भाग अन्य दोनों भागों से अधिक बड़ा होता है, वे लोग शारीरिक रूप से अधिक बलशाली होता है। ऐसे लोग अपना बल दिखाने का मौका तलाशते रहते हैं। सामान्यत: ये लोग ऐसे काम करना अधिक पसंद करते हैं, जहां उन्हें शारीरिक बल दिखाने का अवसर प्राप्त होता है।
यदि किसी व्यक्ति की हथेली में मध्यमा और तर्जनी उंगली के बीच अधिक अंतर दिखाई देता है तो व्यक्ति के हाथ में गुरु ग्रह की प्रधानता हो जाती है। ऐसी हथेली वाले लोग अच्छी बौद्धिक क्षमता वाले और धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं। ये लोग अपने कार्यों पर विश्वास करते हैं और भाग्य को भी कर्मों के आधार पर बदलने की क्षमता रखते हैं।जिन लोगों की हथेली में तर्जनी और मध्यमा उंगली के बीच अधिक अंतर हो और अनामिका एवं सबसे छोटी उंगली के बीच भी अंतर हो तो व्यक्ति व्यापार में लाभ कमाने वाला होता है। इस स्थिति में मध्यमा और अनामिका उंगली के बीच ज्यादा अंतर नहीं दिखाई देना चाहिए, अन्यथा यह फल बदल सकता है।



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गृह मंदिर में पूजा का विधान .......


गृह मंदिर में पूजा का विधान .......
* देवालय मंदिर या गुंबद के आकार का न बनाकर ऊपर से चपटा बनवाएँ।
* देवालय जहाँ तक हो सके ईशान कोण में रखें। यदि ईशान न मिले तो पूर्व या पश्चिम में स्थापित करें।
* देवालय में कुल देवता, देवी, अन्नपूर्णा, गणपति, श्रीयंत्र आदि की स्थापना करें।
* तीर्थ स्थानों से खरीदी मूर्तियों को देवालय में न रखें। पारंपरिक मूर्तियों की ही पूजा करें।
* आसन बिछाकर मूर्तियाँ रखें। पूजा करते समय आप भी आसन पर बैठकर पूजा करें।
* मूर्तियाँ किसी भी हालत में चार इंच से अधिक लंबी न हों।
* नाचते गणपति, तांडव करते शिव, वध करती कालिका आदि की मूर्तियाँ या तस्वीरें न रखें।
* महादेव के लिंग के रूप की आराधना करें, मूर्ति न रखें।
* पूजा करते समय मुख उत्तर या पूर्व की ओर रखें।
* दीपक आग्नेय कोण में (देवालय के) ही जलाएँ। पानी उत्तर में रखें।
* पूजा में शंख-घंटे का प्रयोग अवश्य करें।
* निर्माल्य-पुष्प-नारियल आदि पूजा के पश्चात विसर्जित करें, घर में न रखें।
* पूजा के पवित्र जल को घर के हर कोने में छिड़कें।
* मीठी वस्तुओं का भोग लगाएँ।
* खंडित मूर्तियों का विसर्जन कर दें। विसर्जन से पहले उन्हें भोग अवश्य लगाएँ।



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कैंसर रोगी अपना वास्तु आज ही देखें ...........


कैंसर रोगी अपना वास्तु आज ही देखें ...........
आज मनुष्य कैंसर जैसी भयावह बीमारी से जूझ रहा है . क्यों हम स्वस्थ ,प्रसन्नचित्त ,निरोगी नहीं रह पाते ? हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को भुलाकर पाश्चात्य सभ्यता को जो अपनाते जा रहे है .परिणाम तो भोगने ही होंगे .कही ऐसा तो नहीं घर का कोई वास्तुदोष हमें परेशान कर रहा है .आइये देखते है....
वायव्य, उत्तर, ईशान व पूर्व दिशा का ऊंचा होना एवं आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम में भूमिगत पानी का स्रोत होना या नीचा होना या फिर बढ़ा हुआ होना ब्रेन कैंसर की संभावना को बढ़ाता है।
नैऋत्य में भूमिगत पानी का स्रोत होना, नैऋत्य बहुत नीचा होना या बढ़ा हुआ होना, साथ ही अन्य दिशाएं ईशान कोण की तुलना में नीची होना। और अन्य दिशाओं की तुलना में ईशान कोण ऊंचा होने वास्तु विज्ञान के अनुसार ब्लड कैंसर का कारण माना जाता है।
दक्षिण-पश्चिम भाग में बने अंडर ग्राउंड टैंक के पानी से नहाने वाले भी कैंसर जैसी असाध्य बीमारी का शिकार हो जाते हैं।
दक्षिण-पश्चिमी भाग में से निकलने वाले पानी से कैंसर जैसी असाध्य बीमारी का अंदेशा बढ़ जाता है। यह दाम्पत्य संबंध भी तोड़ता है।
थोड़ी सी सावधानी आपको भयावह बिमारियों से बचा सकती है .घर बनाते वक्त वास्तु नियमों की अनदेखी न करें ..


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निःसंतान दम्पति अपनाये ये वास्तु नियम


निःसंतान दम्पति अपनाये ये वास्तु नियम
संसार के हर स्त्री-पुरुष की विवाह के बाद पहली कामना संतान प्राप्त करने की रहती है परन्तु कई बार देखने में यह आता है कि पति-पत्नी शारीरिक एवं मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ्य रहने के बाद भी निःसंतान ही रह जाते हैं। किसी भी दंपत्ति के निःसंतान रहने में भाग्य के साथ-साथ वास्तुदोष भी एक महत्त्वपूर्ण कारण होता है।
यदि कोई दम्पत्ति निःसंतान है तो उन्हें चाहिए कि वह अपने घर के वास्तु दोष को दूर करें क्योंकि वास्तु दोष के कारण घर में नकारात्क ऊर्जा पैदा होती है जो संतान प्राप्ति में बाधा पैदा करती है। जो दम्पत्ति निःसंतान हैं उन्हें मेरी यह सलाह है कि वे योग्य डॉक्टर से उचित जांच अवश्य करवाए साथ ही घर में जो वास्तुदोष है उन्हें दूर करें ताकि उनकी संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण हो सके। सामान्यतः नीचे लिखे कुछ वास्तुदोष वंशवृद्धि में बाधा का कारण बनते हैं-
1 जिस किसी घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में निर्माण कार्य न होने के कारण खुली हुई हो ईशान कोण में निर्माण होने के कारण घर के ईशान कोण वाले भाग में खुली जगह न हो और उसकी उत्तर और पूर्व दिशा में पड़ोसियों के घर के कारण वहां दरवाजा या खिड़की भी न हो ऐसे कोने वाले कमरे में जिन दम्पत्ति का बेडरूम होता है उन्हें संतान प्राप्ति में बाधा पैदा होती है।
2 उत्तर भाग में खाली जगह न हो और अहाते की हद से लगकर घर हो और दक्षिण में खाली जगह हो तो वंशवृद्धि रूक जाती है।
3 घर अथवा चारदीवारी की ईशान दिशा लुप्त हो जाए तो पुरुष संतान नहीं होगी। यदि हो भी तो विकलांग अथवा पागल बनकर अल्पायु होगी।
4 यदि किसी दम्पत्ति के शयनकक्ष के मुख्यद्वार वाली दीवार और सामने वाली दीवार पर कोई खिड़की न हो परन्तु शयनकक्ष के मुख्यद्वार के दांए या बांए वाली किसी एक दीवार पर खिड़की हो वहां सोने वाले दम्पत्ति को संतान प्राप्ति में कई सालों का लम्बा विलम्ब हो सकता है।
5 पश्चिम की ओर ऊंचाई हो पश्चिम और नैऋत्य के बीच में या पश्चिम और वायव्य के बीच में पश्चिम में किसी भी प्रकार का टैंक, चेम्बर, गड्ढा इत्यादि हो तो वंश वृद्धि नहीं होती। ऐसे घरों में कई बार शादी लायक बच्चों की शादी नहीं होने से वंश वृद्धि रूक जाती है।
6 पूर्व दिशा का हिस्सा घटकर पूर्वी सीमा पर निर्माण हो, तो उस घर का ज्येष्ठ पुत्र गलत आदतों को शिकार होगा और तीसरी पीढ़ी तक पहुँचते-पहुँचते उसका वंश समाप्त हो जाएगा।
7 पूर्व उत्तर दिशाएं जुड़ी हो और पड़ोस से घटी हो तो घर के लोग संपत्ति के होने पर भी लावारिस होगें। पुरुष दत्तक लेने पर उसे संतान तो हो सकती है पर उसे पुरुष संतान नहीं होती है।
8 अगर ईशान कुंचित हो और वायव्य में बढ़ाव हो तो शत्रुओं की संख्या बढ़ जाएगी और संतान हानि होगी। यह हानि जीवित संतान या गर्भ में पल रही संतान की हो सकती है।


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प्रश्न- भवन में सीढ़ी किस स्थान पर उपयुक्त होती है?


प्रश्न- भवन में सीढ़ी किस स्थान पर उपयुक्त होती है?
उत्तर- सीढ़ियों के लिए भवन के मूल पश्चिम, मूल दक्षिण या नैरित्य का क्षेत्र सर्वाधिक उपयुक्त होता है। र्नैत्य कोण में बनी सीढ़ियां अति शुभ होती हैं क्योंकि भवन का नैरित्य क्षेत्र उठा हुआ और इस पर भारी वजन का होना शुभ माना जाता है। दूसरे विकल्प में सीढ़ियां दक्षिण, पश्चिम या पश्चिमी वायव्य की तरफ यथासंभव पूर्वी या उत्तरी दीवार से हटकर बनानी चाहिए।


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किन कारणों से होती है इशान दिशा दोषपूर्ण????/


किन कारणों से होती है इशान दिशा दोषपूर्ण????/
कारण एवं निवारण ......
1. ईशान दिशा में शौचालय होना अनिष्ठ माना जाता है. जो संतति और समृध्दि को नष्ट कर देता है साथ ही विचारों में वैमनस्य देता है
2. उत्तर और ईशान तरफ़ कम जगह छोडकर या उसकी सरहद से भवन का निर्माण काम करने में आया होतो यह गृहिणी के स्वास्थ्य हेतु शुभ नही है.
3. ईशान दिशा में रसोइँ घर हो तो गृहक्लेश होता है. इस के कारण परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर खाना भी नही खा सकते है.
4. ईशान दिशा में गंदी हो, कचरा पडा हो तो अच्छे आरोग्य के लिए शुभ नही है. संतानोत्पत्ति के लीये भी बाधा रुप है.
5. गृह की ईशान दिशा में दोष हो तो नैऋत्य दिशा भी दू:षित बनती है.
ईशान दिशा के वास्तुदोष निवारण के उपाय :
– घर की ईशान दिशा स्वच्छ एवं पवित्र रखे.
– ईशान दिशा में अंधेरा हो तो नियोन लेम्प लगाकर प्रकाशित करे.
– भवन के मुख्य द्वार पर रुद्रतोरण लगाये.
– धर में शिवपूजा और उपासना करे.
– भवन के स्वामी को सोमवार का व्रत करना चाहिये.
– इष्ठ देवी-देवता के फ़ोटो ईशान दिशा में स्थापित करे और उनकी पाठ-पूजा करे.
– मानव जीवन के लीये उपयोगी जैसे सूर्य के पवित्र किरण ईशान कोण से घर में प्रवेश करते है. जो जोडो के दर्द, पक्षघात और स्नायुओ की तकलीफ़ो में राहत देते है. सूर्योदय के समय यह किरणे सीधे घर में प्रवेश करे यह जरुरी है. अत: ईशान दिशा स्वच्छ एवं खुली रखे.
– ईशान दिशा में तुलसी का पौधा रखे जिस से उसकी पवित्रता के कारण इस दिशा के दोष का दुष्प्रभाव कम हो जाता है.



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कैरियर एजुकेषन या में बाधा हो तो क्या करें


कैरियर एजुकेषन या में बाधा हो तो क्या करें -
स्कूल षिक्षा तक बहुत अच्छा प्रदर्षन करने वाला अचानक अपने एजुकेषन में गिरावट ले आता है तथा इससे कैरियर में तो प्रभाव पड़ता ही है साथ ही मनोबल भी प्रभावित होता हैं अतः यदि आपके भी उच्च षिक्षा या कैरियर बनाने की उम्र में पढ़ाई प्रभावित हो रही हो या षिक्षा में गिरावट दिखाई दे रही हो तो सर्वप्रथम व्यवहार तथा अपने दैनिक रूटिन पर नजर डालें। इसमें क्या अंतर आया है, उसका निरीक्षण करने के साथ ही अपनी कुंडली किसी विद्धान ज्योतिष से दिखा कर यह पता करें कि क्या कुंडली में राहु या शुक्र प्रभावकारी है। यदि कुंडली में राहु या शुक्र दूसरे, तीसरे, अष्टम या भाग्यस्थान में हो साथ ही इनकी दषा, अंतरदषा या प्रत्यंतरदषा चल रही हो तो गणित या फिजिक्स जैसे विषय की पढ़ाई प्रभावित होती है साथ ही ऐसे लोगों के जीवन में कल्पनाषक्ति प्रधान हो जाती है। पहली उम्र का असर उस के साथ ही राहु शुक्र का प्रभावकारी होना एजुकेषन या कैरियर में बाधक हो सकता है। यदि इस प्रकार की बाधा दिखाइ्र दे तो शांति के लिए भृगुरा पूजन साथ कुंडली के अनुरूप आवष्यक उपाय आजमाने से कैरियर की बाधाएॅ समाप्त होकर अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकती है।



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बेहतर कैरियर प्राप्ति के योग -


बेहतर कैरियर प्राप्ति के योग -
आज के भौतिक युग में प्रत्येक व्यक्ति की एक ही मनोकामना होती है की उसे अच्छा कैरियर प्राप्त हो तथा उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ रहें तथा जीवन में हर संभव सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती रहे। किसी जातक के पास नियमित कैरियर के प्रयास में सफलता तथा आय का साधन कितना तथा कैसा होगा इसकी पूरी जानकारी उस व्यक्ति की कुंडली से जाना जा सकता है। कुंडली में दूसरे स्थान से उच्च षिक्षा तथा धन की स्थिति के संबंध में जानकारी मिलती है इस स्थान को धनभाव या मंगलभाव भी कहा जाता है अतः इस स्थान का स्वामी अगर अनुकूल स्थिति में है या इस भाव में शुभ ग्रह हो तो षिक्षा, धन तथा मंगल जीवन में बनी रहती है तथा जीवनपर्यन्त धन तथा संपत्ति बनी रहती है। चतुर्थ स्थान को सुखेष कहा जाता है इस स्थान से सुख तथा घरेलू सुविधा की जानकारी प्राप्त होती है अतः चतुर्थेष या चतुर्थभाव उत्तम स्थिति में हो तो घरेलू सुख तथा सुविधा, खान-पान तथा रहन-सहन उच्च स्तर का होता है तथा घरेलू सुख प्राप्ति निरंतर बनी रहती है। पंचमभाव से अध्ययन, सामाजिक स्थिति के साथ धन की पैतृक स्थिति देखी जाती है अतः पंचमेष या पंचमभाव उच्च या अनुकूल होतो संपत्ति सामाजिक प्रतिष्ठा अच्छी होती है। दूसरे भाव या भावेष के साथ कर्मभाव या लाभभाव तथा भावेष के साथ मैत्री संबंध होने से जीवन में धन की स्थिति तथा अवसर निरंतर अच्छी बनी रहती है। जन्म कुंडली के अलावा नवांष में भी इन्हीं भाव तथा भावेष की स्थिति अनुकूल होना भी आवष्यक होता है। अतः जीवन में इन पाॅचों भाव एवं भावेष के उत्तम स्थिति तथा मैत्री संबंध बनने से व्यक्ति के जीवन में अस्थिर या अस्थिर संपत्ति की निरंतरता तथा साधन बने रहते हैं। इन सभी स्थानों के स्वामियों में से जो भाव या भावेष प्रबल होता है, धन के निरंतर आवक का साधन भी उसी से निर्धारित होता है। अतः जीवन में धन तथा सुख समृद्धि निरंतर बनी रहे इसके लिए इन स्थानों के भाव या भावेष को प्रबल करने, उनके विपरीत असर को कम करने का उपाय कर जीवन में सुख तथा धन की स्थिति को बेहतर किया जा सकता है। आर्थिक स्थिति को लगातार बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक जातक को निरंतर एवं तीव्र पुण्यों की आवष्यकता पड़ती है, जिसके लिए जीव सेवा करनी चाहिए। सूक्ष्म जीवों के लिए आहार निकालना चाहिए। अपने ईष्वर का नाम जप करना चाहिए। कैरियर को बेहतर बनाने के लिए शनिवार का व्रत करें।



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मैनेजमेंट में कैरियर की संभावनाएॅ -


मैनेजमेंट में कैरियर की संभावनाएॅ -
इस वैष्वीकयुग में अनेक प्रकार के व्यवसायिक प्रतिष्ठान तथा कंपनियाॅ कार्य कर रहीं हैं। अब देष में ही बैठकर विदेषी कंपनियों में सर्विस प्राप्त करने के चांस उपलब्ध हैं। हर कंपनी में मार्केटिंग मैनेजमेंट, फायनेंस मैनेजमेंट, ह्मेन रिसोर्स मैनेजमेंट, एड मैनेजमेंट, कंसल्टेंसी, टूरिज्म के साथ कई अनेक क्षेत्र मैनेजमेंट हेतु खुले हुए हैं, जिसमें कार्य तथा वेतन का स्तर लुभावना होता है। आज का हर युवा तथा परिवार चाहता है कि अच्छी आय तथा जीवन सुखपूर्वक हो। किसी जातक के जीवन में आय तथा बहुराष्टीय कंपनी में कार्य हेतु कितनी संभावना है इसका पता आपके मैनेजमेंट संबंधी षिक्षा की संभावना से जाना जा सकता है। एमबीए की षिक्षा हेतु ज्योतिषीय गणना में कुंडली कके लग्न या लग्नेष, तृतीयेष, पंचम या पंचमेष, गुरू तथा प्रबंध का कारक बुध तथा इन सभी का संबंध व्यक्ति के एमबीए में सफलता तथा क्षेत्र को दर्षाता है। यदि गुरू तथा बुध का संबंध या दृष्टि संबंध लाभभाव से बन रहा हो तो जातक फायनेंस से संबंधित क्षेत्र में एमबीए करता है। सूर्य से संबंध स्थापना करने पर कंसल्टेंट से संबंधित एमबीए का कार्य करता है। वहीं शनि या मंगल से संबंधित होने पर मार्केटिंग से संबंधित क्षेत्र बनता है। इस प्रकार अन्य ग्रहों का संबंध गुरू या बुध से बनने पर एमबीए कर उच्च पद पर आसीन होने तथा प्रारंभ से ही उच्च वेतन प्राप्ति हेतु जानकारी लेने तथा कमी को दूर करने हेतु ज्योतिष विष्लेषण करना कैरियर के नये क्षेत्र में सफलता का द्वार खोल सकता है।


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कहीं आपके छत पर रखा पानी की टंकी उन्नति में बाधक तो नहीं!!!!!!

उन्नति में बाधक हो सकता है छत पर रखा पानी का टैंक
जरूरत के समय पानी की कमी नहीं हो इसके लिए लोग अपने घर की छत पर पानी की टैंक लगवाते हैं। टैंक लगवाते समय आमतौर पर यह ध्यान नहीं रखा जाता कि टैंक की सही दिशा क्या होनी चाहिए।
जबकि वास्तुशास्त्र के अनुसार पानी का टैंक वास्तु को बहुत अधिक प्रभावित करता है। उपयुक्त दिशा में टैंक नहीं होने पर व्यक्ति को आर्थिक परेशानियों का सामाना करना पड़ सकता है। इससे उन्नति में भी बाधा आती और स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। इसलिए पानी का टैंक लगवाते समय वास्तु का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
वास्तुविज्ञान के अनुसार उत्तर एवं पूर्व दिशा जल के लिए उत्तम दिशा है। इस दिशा में घर के अंदर वॉटर प्यूरिफायर, घड़ा अथवा दूसरे जल पात्र का होना शुभ होता है जबकि इस दिशा में पानी का टैंक होने पर वास्तु दोष उत्पन्न हो जाता है। इससे व्यापार में नुकसान, घर में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव अथवा आकस्मिक दुर्घटना की आशंका बढ़ जाती है।
उत्तर पूर्व दिशा भी पानी का टैंक रखने के लिए उचित नहीं है इससे तनाव बढ़ता है और पढ़ने-लिखने में बच्चों का मन नहीं लगता है। दक्षिण पूर्व दिशा को भी पानी का टैंक लगाने के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है क्योंकि इस दिशा को अग्नि की दिशा कहा गया है। अग्नि और पानी का मेल होने से गंभीर वास्तु दोष उत्पन्न होता है।
पानी का टैंक लगाने के लिए शुभ दिशा
वास्तु विज्ञान के अनुसार दक्षिण पश्चिम यानी नैऋत्य कोण अन्य दिशा से ऊंचा और भारी होना शुभ फलदायी होता है। छत पर पानी का टैंक इस दिशा में लगाने से अन्य भागों की अपेक्षा यह भाग ऊंचा और भारी हो जाता है। इसलिए उन्नति और समृद्घि के लिए दक्षिण पश्चिक दिशा में पानी का टैंक लगाना चाहिए।
इस दिशा टैंक लगाते समय यह भी ध्यान रखें कि इस दिशा की दीवार टैंक से ऊंची हो इससे आय में वृद्घि होती है और लंबे समय तक मकान का सुख मिलता है। अगर दक्षिण पश्चिम दिशा में टंकी लगाना संभव नहीं हो तक दक्षिण अथवा पश्चिक दिशा में विकल्प के तौर पर टंकी लगाया जा सकता है। लेकिन यह ध्यान रखें कि दक्षिण की दीवार टंकी से ऊंची हो।


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निवेश करने का सही समय


वर्तमान युग में जल्दी अमीर बनने तथा समृद्धि पाने की चाह कई व्यक्ति को होती है, इसके लिए कई बार व्यक्ति लाटरी, शेयर या स्टाॅक से संबंधित क्षेत्र में धन लाभ हेतु प्रयास करता है किंतु कई बार दूसरों की देखादेखी यह प्रयास उसके लिए हानिकारक साबित होता है। जहाॅ किसी व्यक्ति को शेयर से लाभ होता है वहीं किसी व्यक्ति को बहुत ज्यादा हानि भी उठानी पड़ती है। इसका कारण जातक की कुंडली से जाना जा सकता है। अतः कोई व्यक्ति अपनी कुंडली की ग्रह स्थितियों के अनुरूप आचरण करें तो उसे कभी भी हानि या घाटा नहीं उठाना पड़े। किसी व्यक्ति की कुंडली धनवान बनने के योग बन रहें हैं या धन हानि के तथा गोचर में समय का पता किया जाता है। यह सर्वज्ञात है कि बिना भाग्य के कोई भी कार्य जीवन में सफल नहीं हो सकता। जब भी मनुष्य का भाग्योदय होगा, तभी उसे प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त होगी। अतः आकस्मिक धनलाभ या धन की हानि को जातक की कुंडली में जानने के लिए किसी जातक की कुंडली का धनभाव, भाग्यभाव या आयभाव अनुकूल तथा उच्च हो साथ ही आकस्मिक हानि या व्यय भाव कमजोर हों तो घाटा से बचा जा सकता है। आकस्मिक लाभ या हानि में सबसे अधिक प्रभावी ग्रह है राहु यदि राहु प्रतिकूल हो तो आकस्मिक हानि तथा अनुकूल हो तो आकस्मिक लाभ के योग बनाता है। अतः निष्चित लाभ की प्राप्ति के लिए राहु की शांति समय-समय पर कराते रहना चाहिए एवं राहु के अनुकूल होने पर ही शेयर या स्टाॅक जैसे अनिष्चित व्यवसाय पर निवेष करना चाहिए।


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-तनाव और अनिद्रा -


बुध ग्रह का असर -तनाव और अनिद्रा -
वर्तमान युग की आरामदायी जीवनषैली तथा भौतिकतावादी वस्तुओं की भरमार के बीच उच्च प्रतिस्पर्धी और असुरक्षित जीवन को सुरक्षा तथा सुविधा संपन्न बनाने के प्रयास में अपने कैरियर को उच्च दिषा तथा दषा देने के फेर में कई बार बहुत बुद्धिमान तथा योग्य व्यक्ति भी स्वयं असंतुष्ट होकर तनाव में आ जाते हैं तथा कई बार यह तनाव अवसाद की स्थिति भी निर्मित होती है। तनाव या अवसाद की विभिन्न स्थिति को कुंडली के माध्यम से बहुत अच्छी प्रकार विष्लेषित किया जा सकता है। यदि किसी जातक का तृतीयेष बुध होकर अष्टम स्थान में हो तो जल्दी तनाव में आने का कारण बनता है वहीं किसी प्रकार से क्रूर ग्रह या राहु से आक्रांत या दृष्ट होने पर यह तनाव अवसाद में जाने का प्रमुख माध्यम बन जाता है। जब बुध की दषा या अंतरदषा चले तो ऐसे में तनाव का होना प्रभावी रूप से दिखाई देता है। ऐसे में व्यक्ति को कम नींद, आहार तथा व्यवहार में अंतर दिखाई देता है, जिसके परिणामस्वरूप जातक कई बार व्यसन का भी आदि हो जाता है। अतः यदि किसी भी प्रकार से तृतीयेष बुध अष्टम में हो और बुध की दषा या अंतरदषा चले तो जातक को बुध की शांति के साथ गणपति के मंत्रों का वैदिक जाप हवन तर्पणा मार्जन आदि कराकर हरी वस्तुओं के सेवन के साथ तनाव से बाहर आकर सामान्य प्रयास करने से भी अवसाद कम करने में मददगार साबित होती है।


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