Monday 22 June 2015

information related to the kitchen of architectural

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Here are some information related to the kitchen of architectural,
Every kitchen should take the time to create. If stored in the kitchen at home homeowner in your job or business is facing considerable difficulties. To prevent these difficulties should create separate kitchen and store room.
Kitchen and bathroom in a straight line does not bode well be. Walanen live in such a house to live in the face of great difficulties. Health is not right. There is unrest in the lives of girls from home.
There is also a good place to worship in the kitchen. The home is a place of worship in the kitchen, living within the brain are hot. Family member may be blood-related complaints.
Kitchen in front of the main door of the house should not. Directly opposite the main entrance to the kitchen, brother of homeowner is unlucky. The kitchen with underground water tanks or wells If there are differences in the brothers. The owner of the house will have to travel to make money too. Eat meal or meeting house meeting is unlucky to be in front of the kitchen. There is hostility between the relatives and the children have difficulties in education.
The kitchen is connected to the main entrance of the house at the beginning is a lot of love between husband and wife, is Sahardpuarn home environment, but after a while seem to be differences among themselves without reason.
Experience has found that their homes as a means of food in the kitchen, gas stove, microwave oven, etc. are more than one, they are more than a means of income. All members of a family with at least one meal should consist. Doing so with mutual respect are strong and have a strong sense of living.

Pt.P.S Tripathi
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जानिये आज का सवाल जवाब1 22/6/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से


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जानिये आज का सवाल जवाब 22/6/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से



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जानिये आज 22/06/2015 के विषय के बारे प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "सूर्य से पाएँ जीवन में सफलता"


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जानिये आज का राशिफल 22/06/20105 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से



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Sunday 21 June 2015

जानिये आज का सवाल जवाब 21/6/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से



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जानिये आज 21/06/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "कम उम्र में चस्मा"



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जानिये आज का राशिफल 21/06/20105 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से


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जानिये आज का पंचांग 21/06/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से



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Saturday 20 June 2015

कैरियर में उतार-चढ़ाव से वैवाहिक जीवन में कष्ट -


कैरियर या व्यवसायिक अपडाउन के कारण वैवाहिक जीवन में रिष्ते खराब हो सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, अष्टम, नवम भाव में से किसी भाव में राहु के होने पर जातक के जीवन में आकस्मिक हानि का योग बनता है। अगर राहु के साथ सूर्य, शनि के होने पर यह प्रभाव जातक के स्वयं के जीवन के अलावा यह दुष्प्रभाव उसके परिवार पर भी दिखाई देता है। अगर प्रथम भाव में राहु के साथ सूर्य या शनि की युति बने तो व्यक्ति अषांत, गुप्त चिंता, स्वास्थ्य एवं पारिवारिक परेषानियों के कारण चिंतित रहता है। दूसरे भाव में इस प्रकार की स्थिति निर्मित होेने पर परिवार में वैमनस्य एवं आर्थिक उलझनें बनने का कोई ना कोई कारण बनता रहता है। तीसरे स्थान पर होने पर व्यक्ति हीन मनोबल का होने के कारण असफलता प्राप्त करता है। चतुर्थ स्थान में होने पर घरेलू सुख, मकान, वाहन से संबंधित कष्ट पाता है। बार-बार कार्य में बाधा आना या नौकरी छूटना, सामाजिक अपयष अष्टम राहु के कारण दिखाई देता है। नवम स्थान में होने पर भाग्योन्नति तथा हर प्रकार के सुखों में कमी का कारण बनता है। सामान्यतः चंद्रमा के साथ राहु का दोष होने पर वैवाहिक जीवन में परेषानी, गुप्तरोग, उन्नति में कमी तथा अनावष्यक तनाव दिखाई देता है। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में इस प्रकार का दोष दिखाई दे तो अपनी कुंडली की विवेचना कराकर उसे शनिवार का व्रत कर धन की प्राप्ति के लिए कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें तथा पाठ पूर्ण करने के उपरांत सवापाव तिल का दान करें। इस प्रकार का उपाय जीवन में एक साल करने के उपरांत हवन करा कर कुछ समय के उपरंात फिर प्रारंभ किया जा सकता है। ऐसा करने से जीवन में कैरियर संबंधी बाधा समाप्त होकर अच्छी आर्थिक स्थिति प्राप्त होने के साथ रिष्तों में भी मधुरता लाता है।
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सौभाग्य सुंदरी व्रत -



सौभाग्य सुंदरी व्रत -
एक समय की बात है कि नारद अनेक-अनेक लोकों का भ्रमण करते हुए जीवों को दुखी देखकर पितामह ब्रम्हाजी के पास पहुॅचे और उन्होंने ब्रम्हाजी से अलग-अलग योनि में सुख दुख पाते हुए व्याधिग्रस्त दुखी जीवो के दुख का कारण पूछा। तब ब्रम्हाजी ने कहा वत्स, ये जो पंच महाभूतो से बना शरीर कर्म रूपी बीज का पौधा है। जिन्होेंने दान किए वे सुखी व सुदंर होते हैं। तप के प्रभाव से बलि व सुभग होते हैं। इसके विपरीत निंदा, धन का अपहरण, दान ना करने वाले जीव क्रमषः दरिद्री, व्याधिग्रस्त तथा दुर्भग होते हैं। तब नारद ने ब्रम्हाजी से सभी मनुष्यों के लिए ऐसा कर्म पूछा कि जिससे सभी सौभाग्यवान और सुंदर हों। तब ब्रम्हाजी ने कहा कि भगवान शंकर ने ब्रम्हार्षि वषिष्ठ पर कृपा करके सौभाग्य सुंदरी का व्रत कहा था, वह मैं तुमसे कहता हूॅ। एक समय की बात है मेघवती नाम की दासी जो कुरूप तथा दुर्भाग्यषाली थी वह किसी को पहुॅचाने एक ब्राम्हण के घर गई। वहाॅ ब्राम्हण देवता बहुत सी स्त्रियों को सौभाग्य सुंदरी व्रत की कथा सुना रहे थे। जो सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। ज्ञान वैराग्य देने वाली है। भगवान षिव कहते हैं कि एक दिन पावर्ती को यह कथा मैंने सुनाई थी। जिसके प्रभाव से पावर्ती को सुंदर रूप तथा सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इस व्रत को मेघवती ने भी यत्नपूर्वक किया। जिसके प्रभाव से वह परमसुंदरी, सुषीला, सर्वलक्षण युक्त निषादराज की कन्या बनी। चूॅकि उसने जूठा अन्न खाया था इस कारण वह निषादयोनि में उत्पन्न हुई। चूॅकि उसने दान नहीं दिया था इस कारण उसे भोगने के लिए कुछ नहीं मिला परंतु व्रत के प्रभाव से वह पतिव्रता हुई। यह व्रत मार्गषीर्ष माह के कृष्णपक्ष की तृतीया को किया जाता है। इसमें अपामार्ग (चिचड़ा) के दातून से व्रत करना चाहिए और भगवती पावर्ती का पूजन करना चाहिए। इस व्रत की पावर्ती सौभाग्य सुंदरी या वषिनी के नाम से जानी जाती हैं। सौभाग्य सुंदरी का व्रत वर्षभर के तृतीया का व्रत होता है। इस दिन जल में आंवला डालकर अध्र्य दें दे तथा कंकोल का प्रासन रात में करें। घी, शक्कर मिले बटको का नैवेद्य करें। घी का दीपक जलाकर रात्रि जागरण करें। इस नियम से इस व्रत को करने से सभी प्रकार की कामनाएॅ पूर्ण होती हैं।

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कुंडली से जाने बच्चों में अनुशासान क्यों नहीं

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ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को प्रमुखता प्राप्त है। कालपुरूष की कुंडली में शुक्र ग्रह दूसरे अर्थात् संपत्ति एवं सुख तथा सप्तम स्थान अर्थात् पार्टनर का स्वामी होता है। शुक्र ग्रह सुख, संपत्ति, प्यार, लाभ, यष, क्रियात्मकता का प्रतीक है। शुक्र ग्रह की उच्च तथा अनुकूल स्थिति में होने पर सभी प्रकार के सुख साधन की प्राप्ति, कार्य में अनुकूलता तथा यष, लाभ तथा सुंदरता की प्राप्ति होती है। इस ग्रह से जीवन में ऐष्वर्या तथा सुख की प्राप्ति होती है किंतु यदि विपरीत स्थिति या प्रतिकूल स्थान पर हो तो सुख में तथा धन ऐष्वर्या में कमी भी संभावित होती है। शुक्र ग्रह की दषा या अंतरदषा में सुख तथा संपत्ति की प्राप्ति का योग बनता है। किंतु शुक्र ग्रह भोग तथा सुख का साधन होने से इन दषाओं में मेहनत या प्रयास में कमी भी प्रदर्षित होती है। यदि ये दषाएॅ उम्र की परिपक्वता की स्थिति में बने तो लाभ होता है किंतु शुक्र की दषा या अंतरदषा कैरियर या अध्ययन के समय चले तो पढ़ाई में बाधा, कैरियर की राह में प्रयास में भटकाव से सफलता बाधित होती है। एकाग्रता में कमी तथा स्वप्न की दुनिया में विचरण से दोस्ती या सुख तो प्राप्त होता है किंतु अच्छा पद या प्रतिष्ठा प्राप्ति के मार्ग में प्रयास में विचलन से कैरियर बाधित हो सकता है। कैरियर की उम्र में शुक्र की दषाएॅ चले तो अभिभावक को बच्चों के व्यवहार में नियंत्रण रखते हुए अनुषासित रखते हुए लगातार अपने प्रयास करने पर जोर देने से कैरियर की बाधाएॅ दूर होती है। साथ ही ज्योतिष से सलाह लेकर यदि शुक्र का असर व्यवहार पर दिखाई दे तो ग्रह शांति के साथ नियम से दुर्गा कवच का पाठ लाभकारी होता है।
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सुख एवं संपत्ति दायी श्रावणी शुक्रवार का व्रत


ज्योतिष शास्त्र में कालपुरूष की कुंडली के अनुसार शुक्र सुख, संपत्ति तथा भोग की देवी मानी जाती है। पुराणों के अनुसार भी शुक्रवार को माता लक्ष्मी तथा संतोषीमाता का वार माना जाता है, जिसे सुख संपत्ति का कारक माना जाता है। यदि किसी के जीवन में सुख तथा वैभव में कमी हो तो उसे शुक्रवार का व्रत तथा माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। श्रावण का मास पाप तथा कष्ट को दूर करने का मास माना जाता है। अतः किसी जातक के जीवन में आकस्मिक धन हानि, व्यवसायिक कष्ट या सुख में किसी भी प्रकार की कमी आ रही हो तो उसे श्रावण मास के शुक्रवार को श्रावणी शुक्रवार का व्रत तथा पूजन करना विषेष लाभकारी होता है। स्कंद पुराण में श्रावणी शुक्रवार का वर्णन करते हुए कहा गया है कि किसी को भी सुख तथा पारिवारिक कष्ट हो तो उसे इस व्रत को करना चाहिए। इस व्रत को करने के लिए शुक्रवार के दिन स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर व्रत करें तथा सायंकाल जब आकाष में शुक्रतारा उदित हो तो उस समय सभी स्त्रीयाॅ मिलकर पावर्ती तथा षिवजी की पूजा कर आरती तथा भजन कीर्तन कर किसी सुहागन ब्राम्हणी महिला को यथा संभव सुहाग सामग्री दान कर आषीष प्राप्त करें। ऐसा करने से कष्ट की निवृत्ति होकर जीवन में सुख तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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The truthfulness charity


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Giving the things to one of his/her choice or interest is not charity.Charity is giving of things so that both the doner as well as taker both are satisfied. Listen, I'll tell you a little story.
The city's name was videh Punderikini former Pushklawati country. Any time there was a king Megrth state. One day while fasting festival Ashtahnik veneration they were preach and shake so that the dove came back there was a vulture with great velocity. Dove sat king. The eagle said: "Rajan! I am distressed by excessive hunger pang, so please give me this pigeon. Hey munificent! If you do not give me the pigeons will leave my life in front of you right now. Seeing the human voice speaking Vulture asked by Prince Dridrhth 'Jesus! Tell me what to speak of the mystery bird is the vulture? King Megrth said Suno- airavat of Jambudvipa in the name of a town Khet Padmini. There Nandisen Dnmitr and wealth for the sake of the name of two brothers died Ldkr together, so it's been bird dove and hawk. The Vulture Lord's body so that it is speaking. Who is she? Suno- Ishanendra sleep in his house while my praise of the earth Megrth is no greater donor. I hear such praise coming from a dev to test By entering the body is speaking. But hey bro! I'll explain all the symptoms of charity, sleep and listen to dwell. Self and the object is for the grace, the charity is called.
Power, science, faith, etc. is such a giving and taking the donor is called and the object both enhances the qualities called her due. The payable diet, medicine, chemistry and have mercy upon all creatures, such as the four types, so Mr. Srwajrtrdev said. Therefore, these four are the only means of salvation from the net payable and order. Mokshmarg which are located in the world-tour of yourself and protect others, they are called character. This material may not be due more meat etc. The character does not wish to give them and they are not donor. Maasadi object hell possess both the character and the donor. Summary to say that it is not eligible for the donation and pigeon hawk object is not visible.
Listening to the voice of Megrth she revealed her true God and unto the king began to praise him, O! You must be donated to the department Dansur knowing, he went to a praise. Both the Eagles and the dove of birds also called Megrth understand everything and leaves the body at the end of the age were dainty and Atirup name Wyantr Dev. He immediately came to praise the lord king-Vandana began to Megrth-O blest! If only we could get out of your offerings Kuyoni so your favor us is always memorable.

आय प्राप्ति में बाधा कैसे दूर करें

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सभी की चाह होती है कि उच्च पद तथा सम्मान अपने जीवन में प्राप्त करें। साथ ही यह चाह भी कि जीवन में स्थिरता बनी रहे। इस का एक तरीका सरकारी नौकरी प्राप्त करना भी है। किंतु कई बार देखा जाता है कोई व्यक्ति बहुत प्रयास के बाद भी सफल नहीं हो पाता है वहीं किसी को एक बार में अच्छी सफलता प्राप्त हो जाती है। इसका कारण अथक मेहनत के साथ जन्मपत्री में ग्रह योग भी होते हैं। यदि ग्रह योग राजकीय पद पर कार्य करने का है तो थोड़े से प्रयास से भी अच्छा पद प्राप्त हो सकता है किंतु इसके लिए व्यक्ति की ग्रह दषाओं के साथ दषा एवं अंतरदषा भी प्रभाव डालती है। प्रत्येक जातक अपने ग्रह स्थिति हेतु कुंडली में सूर्य, गुरू, मंगल, चंद्रमा तथा राहु की स्थिति का विष्लेषण तथा प्रयास के दौरान ग्रह दषाओं के साथ दषा तथा अंतरदषा का मूल्यांकन कर अपनी सफलता का आकलन कर सकता है। यदि किसी जातक की ग्रह स्थिति अनुकूल हो तो दषा के प्रतिकूल होने पर आवष्यक उपाय द्वारा भी सफलता प्राप्ति का रास्ता खोल सकता है। प्रतियोगिता परीक्षा में निष्चित सफलता प्राप्ति तथा मन की एकाग्रता में वृद्धि हेतु पूर्व दिषा में मुख कर नित्य अष्म स्तोत्र का पाठ का पाठ करना चाहिए।
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आपकी संतान को जीवन में अच्छी शिक्षा, सुख,समृद्धि की प्राप्ति कैसे


 आज कल हर पैरेंटस की दिली तमन्ना होती है कि उनकी संतान उच्च तकनीकी षिक्षा प्राप्त करें, जिससे उसके कैरियर की शुरूआत ही एक अच्छे पैकेज से हो, किंतु सभी इसमें सफलता प्राप्त तो नहीं कर सकते किंतु अपने संतान की कुंडली के ज्योतिषीय विवेचन तथा उचित समाधान कर एक अच्छे कैरियर हेतु प्रयास किया जा सकता है। अतः जाने की क्या आपकी संतान में ऐसे योग हैं। षिक्षा कारक ग्रह गुरू, जोकि तर्कषक्ति तथा गणित जैसे विषयों का कारक ग्रह होता है यदि गुरू की उत्तम स्थिति हो तो संतान की षिक्षा संबंधी चिंता नहीं रहती। सूर्य अनुकूल हो तो अनुशासन तथा जिम्मेदार होेने से भी उन्नति में सहायक होता है। यांत्रिक ज्ञान तथा वाकशक्ति उत्तम होना भी सफलता में सहयोगी हो सकता है, इसके लिए जन्म कुंडली का तीसरा भाव तथा बुध एवं मंगल की स्थिति उत्तम होनी चाहिए। शनि उत्तम या अनुकूल है तो व्यक्ति में कार्यक्षमता अच्छी होगी, जिससे उसके सफलता प्राप्ति के अवसर ज्यादा होंगे। किंतु उच्च ग्रह स्थिति होने के बावजूद यदि गोचर में ग्रह दषाएॅ अनुकूल ना हो तो जातक को सफलता प्राप्त होने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अतः अपने संतान के ग्रह स्थिति के अलावा ग्रह दषाओं का आकलन समय से पूर्व कराया जाकर उनके उचित उपाय करने से एक सफल कैरियर की प्राप्ति संभव है।
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विवाह में मूहुर्त गणना का पूर्ण महत्व


विवाह संस्कार को भारतीय समाज में एक धर्म का दर्जा दिया गया है, जिसमें दो व्यक्ति का जीवन एक होकर उनका नया जन्म माना जाता है। इस आधार पर देखा जाए तो विवाह के समय शुभ लग्न उसी प्रकार महत्व रखता है, जिस प्रकार जन्म का समय। विवाह का मूहुर्त निकालते समय वर एवं वधु की कुंडलियों का परीक्षण कर दोनों की कुंडली के मिलान तथा नक्षत्रों की अनुकूल स्थिति के अनुरूप अनुकूल ग्रह दषाओं के अनुसार विवाह का समय निर्धारित करना चाहिए। माना जाता है जिस समय वर-कन्या का विवाह संस्कार होता है, उसी तिथि तथा समय को वर-कन्या का नया जन्म मान कर विवाह का समय निर्धारित करते हुए उन ग्रह दषाओं का अनुकूल और प्रतिकूल असर उनके वैवाहिक जीवन के सुख-दुख तथा आपसी संबंधों में मिठास या मतभेद का पता लगाया जा सकता है। विवाह का समय निर्धारित करते समय विषेष रूप से तीन महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। पहला वर का सूर्य बल अर्थात् जिस तिथि में विवाह हो रहा हो, उस समय वर के सूर्य की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है। वर की जन्मराषि से तीसरे, छठे, दसवें, ग्यारहवे स्थान में सूर्य होतो शुभ होता है, पाॅचवें, दूसरे, सांतवें, नवें में मध्यम तथा चार, आठ, बारहवें भाव में अषुभ फल देता है। इसी तरह से विवाह के समय कन्या की बृहस्पति की स्थिति अनुकूल होनी चाहिए बृहस्पति की अच्छी स्थिति दो, पाॅच, सात, नौ, ग्यारह में उत्तम एक, तीन, छः, दस भाव में मध्यम और चार, आठ, बारह में अषुभ होता है। साथ ही दोनों की मिलाकर चंद्रमा की स्थिति बेहतर होनी चाहिए। दोनों की कुंडलियों में जन्मराषि से चंद्रमा की स्थिति दो, पाॅच, सात, नौ, ग्यारह में उत्तम, एक, तीन, छः भाव में मध्यम तथा चार, आठ, बारह भाव में अषुभकारी होता है। अतः इन ग्रह दषाओं तथा ग्रहों के अनुकूल स्थिति पर विवाह होने पर वैवाहिक सुख तथा जीवन में प्रेमभाव बना रहता है साथ ही जीवन के सभी सुख समय पर प्राप्त होते हैं।
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जीवन शैली तिन चीजों पर आधारीत :सत्व, तमस और राजस



यजुर्वेद तथा भगवदगीता के अनुसार हमारा व्यवहार, विचार, भोजन और जीवनषैली तीन चीजों पर आधारित होती है वह है सत्व, तमस और राजस। सात्विक विचारों वाला व्यक्ति निष्चित स्वभाव का होता है जोकि उसे सृजनषील बनाता है वहीं राजसी विचारों वाला व्यक्ति महत्वाकांक्षी होता है जोकि स्वभाव में लालच भी देता है तथा तामसी व्यवहार वाला व्यक्ति नाकारात्मक विचारों वाला होने पर गलत कार्यो की ओर अग्रसर हो सकता है। मानव व्यवहार मूल रूप से राजसी और तामसी प्रवृत्ति का होता है, जिसके कारण जीवन में नाकारात्मक उर्जा बढ़ती है, जिससे साकारात्मक बनाने हेतु पुराणों में व्रत तथा उपवास पर जोर दिया गया है। मानव जीवन में व्रत की उपयोगिता वैदिक काल से जारी है। जिसका आधार होता है कि उपवास पाॅच ज्ञानेंद्रियों और पाॅच कर्मेद्रिंयों पर नियंत्रण करता है। अनुषासित बनाने तथा मन को आध्यामिक प्रवृत्ति की ओर अग्रसर करने हेतु उपवास तथा मंत्र जीवन में साकारात्मक दिषा देता है। उपवास जीवन में मानसिक शुद्धिकरण के अलावा शारीरिक शुद्धि हेतु भी सहायक होता है चूॅकि उपवास के दौरान अनुष्ठान करने की परंपरा भी है अतः अनुष्ठान के दौरान किया जाना वाला जाप, ध्यान, सत्संग, दान शारीरिक शुद्धता के लिए भी कार्य करती है। भोग लगाने वाले पदार्थ जैसे फल, मेवा, दूध, धी आदि का सेवन भी सात्विक गुणों को बढ़ता है।
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जीवन में निरंतर बदलाव हेतु कुंडली में देखें केतु की दशा




निरंतर चलायमान रहने अर्थात् किसी जातक को अपने जीवन में निरंतर उन्नति करने हेतु प्रेरित करने तथा बदलाव हेतु तैयार तथा प्रयासरत रहने हेतु जो ग्रह सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है, उसमें एक महत्वपूर्ण ग्रह है केतु। ज्योतिष शास्त्र में राहु की ही भांति केतु भी एक छायाग्रह है तथा यह अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसका स्वभाग मंगल ग्रह की तरह प्रबल और क्रूर माना जाता है। केतु ग्रह विषेषकर आध्यात्म, पराषक्ति, अनुसंधान, मानवीय इतिहास तथा इससे जुड़े सामाजिक संस्थाएॅ, अनाथाश्रम, धार्मिक शास्त्र आदि से संबंधित क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। केतु ग्रह की उत्तम स्थिति या ग्रह दषाएॅ या अंतरदषाओं में जातक को उन्नति या बदलाव हेतु प्रेरित करता है। केतु की दषा में परिवर्तन हेतु प्रयास होता है। पराक्रम तथा साहस दिखाई देता है। राहु जहाॅ आलस्य तथा कल्पनाओं का संसार बनाता है वहीं पर केतु के प्रभाव से लगातार प्रयास तथा साहस से परिवर्तन या बेहतर स्थिति का प्रयास करने की मन-स्थिति बनती है। केतु की अनुकूल स्थिति जहाॅ जातक के जीवन में उन्नति तथा साकारात्मक प्रयास हेतु प्रेरित करता है वहीं पर यदि केतु प्रतिकूल स्थिति या नीच अथवा विपरीत प्रभाव में हो तो जातक के जीवन में गंभीर रोग, दुर्घटना के कारण हानि,सर्जरी, आक्रमण से नुकसान, मानसिक रोग, आध्यात्मिक हानि का कारण बनता है। केतु के शुभ प्रभाव में वृद्धि तथा अषुभ प्रभाव को कम करने हेतु केतु की शांति करानी चाहिए जिसमें विषेषकर गणपति भगवान की उपासना, पूजा, केतु के मंत्रों का जाप, दान तथा बटुक भैरव मंत्रों का जाप करना चाहिए जिससे केतु का शुभ प्रभाव दिखाई देगा तथा जीवन में निरंतर उन्नति बनेगी।
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अक्षय तृतीया की खास विशेषताएं और मान्यताएं

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अक्षय तृतीया के रूप में प्रख्यात वैशाख शुक्ल तीज को स्वयं सिद्ध मुहुर्तों में से एक माना जाता है। पौराणिक मान्यताएं इस तिथि में आरंभ किए गए कार्यों को कम से कम प्रयास में ज्यादा से ज्यादा सफलता प्राप्ति का संकेत देती है। समान्यत: अक्षय तृतीया में 42 घड़ी और 21 पल होते हैं। पद्म पुराण, अपरान्ह काल को व्यापक फल देने वाला मानता है। भौतिकता के अनुयायी इस काल को स्वर्ण खरीदने का श्रेष्ठ काल मानते हैं। इसके पीछे शायद इस तिथि की अक्षय प्रकृति ही मुख्य कारण है। सोच यह है कि इस काल में हम यदि घर में स्वर्ण लाएंगे तो अक्षय रूप से स्वर्ण आता रहेगा। अध्ययन या अध्ययन का आरंभ करने के लिए यह काल सर्वश्रेष्ठ है।
यह समय अपनी योग्यता को निखारने और अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए उत्तम है। यह मुहूर्त अपने कर्मों को सही दिशा में प्रोत्साहित करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। शायद यही मुख्य कारण है कि इस काल को दान इत्यादि के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।
दान को वैज्ञानिक तर्कों में उर्जा के रूपांतरण से जोड़ कर देखा जा सकता है। दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने के लिए यह दिवस सर्वश्रेष्ठ है। यदि अक्षय तृतीया सोमवार या रोहिणी नक्षत्र को आए तो इस दिवस की महत्ता हजारों गुणा बढ़ जाती है, ऐसी मान्यता है। इस दिन प्राप्त आशीर्वाद बेहद तीव्र फलदायक माने जाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में होती है। सतयुग, त्रेता और कलयुग का आरंभ इसी तिथि को हुआ और इसी तिथि को द्वापर युग समाप्त हुआ था।
रेणुका के पुत्र परशुराम और ब्रह्मा के पुत्र अक्षय कुमार का प्राकट्य इसी दिन हुआ था। इस दिन श्वेत पुष्पों से पूजन कल्याणकारी माना जाता है। धन और भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति तथा भौतिक उन्नति के लिए इस दिन का विशेष महत्व है। धन प्राप्ति के मंत्र, अनुष्ठान व उपासना बेहद प्रभावी होते हैं। स्वर्ण, रजत, आभूषण, वस्त्र, वाहन और संपत्ति के क्रय के लिए मान्यताओं ने इस दिन को विशेष बताया और बनाया है। बिना पंचांग देखे इस दिन को श्रेष्ठ मुहुर्तों में शुमार किया जाता है। लोक भाषाओं में इसे 'आखातीज, 'अखाती और 'अकतीÓ कहा जाता है। पौराणिक कथाओं में आख्यान आता है कि देवताओं को यह तिथि बहुत प्रिय है। इसलिए इसे उत्तम और पवित्र तिथि माना गया है। ये ऐसी तिथि है जिसमें हर घड़ी, हर पल को शुभ माना जाता है। बड़े से बड़े काम की सफलता तय मानी जाती है।
क्यों खास होती है आखा-तीज :
भविष्य पुराण के अनुसार 'अक्षय तृतीया के दिन सतयुग एवं त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में भगवान परशुराम, नर-नारायण एवं हयग्रीव आदि तीन अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही धरा पर आए। तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के पट भी अक्षय तृतीया को खुलते हैं।
वृंदावन के बांके बिहारी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया को होते हैं। वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त है, उसमें प्रमुख स्थान 'अक्षय तृतीया का है। ये हैं- चैत्र शुक्ल गुड़ी पड़वा, वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया सम्पूर्ण दिन, आश्विन शुक्ल विजयादशमी तथा दीपावली की पड़वा का आधा दिन।
ऐसे करें अक्षय तृतीया पर व्रत पूजा :
वैसाख शुक्ल 'तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। चूंकि इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अत: इसे 'अक्षय तृतीया कहते हैं।
- व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें।
- घर की सफाई व नित्य कर्म से निवृत्त होकर पवित्र या शुद्ध जल से स्नान करें।
- घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
मंत्र से संकल्प करें -
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सकल शुभ फल प्राप्तये
भगवत्प्रीतिकामनया देवत्रयपूजनमहं करिष्ये।
संकल्प करके भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। षोडशोपचार विधि से भगवान विष्णु का पूजन करें। नैवेद्य में जौ या गेहूं का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पण करें। अगर हो सके तो विष्णु सहस्रनाम का जप करें। अंत में तुलसी जल चढ़ाकर भक्तिपूर्वक आरती करनी चाहिए। इसके पश्चात उपवास रहें।
लोक अंचलों में ऐसे मनायी जाती है 'आखा तीज:
अक्षय तृतीया का शास्त्रों में तो बड़ा महत्व है ही और लोग शास्त्रों में उल्लेखित पद्धति के अनुसार पूजन करते हैं वहीं इसे मनाने के लिए कई तरह की लोक परंपराएं भी हैं। माना जाता है कि इस दिन पवित्र सरोवरों और नदियों में डुबकी लगाने से मन को शांति मिलती है साथ ही बुरे कर्मों का प्रभाव कम होता है। इस दिन नदियों के घाटों पर जन सैलाब उमड़ पड़ता है। साथ ही ऐसी मान्यता है कि इस दिन दिया गया दान स्वर्ग में दस हजार गुना होकर मिलता है और भगवान विष्णु के धाम की प्राप्ति होती है। आंचलिक रीति-रिवाजों के अनुसार घरों में सुबह से ही इस पर्व का आनंद दिखाई देता है। बाजार में मिट्टी के घड़ों, इमली और खरबूजों की दुकाने सज जाती है। आज के दिन जल और इमली के शर्बत से भरे कुंभ का दान दिया जाता है। भगवान के सामने नए मिट्टी के नए कुंभ को स्थापित किया जाता है। इसे लीप-पोतकर मंगल स्वस्तिक बनाकर हरे आम्र पत्र और पान के पत्तों से सजाया जाता है। जल से भरे इस कलश के भीतर पैसे और अखंड सुपारी डाली जाती है। पलाश के पत्तों के दोने से इसे ढका जाता है। दोने में इमली व गुड़ से बना शर्बत भरा जाता है। इसका भोग भगवान को लगा कर सबको बांटा जाता है।
खास बात ये है इस कलश को मिट्टी के चार ढेलों पर रखा जाता है। ये चार ढेले आषाढ़, श्रावण, भादों और क्वार मास के प्रतीक हैं। माना जाता है कि जिस मास का ढेला अधिक गीला होता है उस मास में अधिक वर्षा होगी है। देश के किसी हिस्से में मिट्टी के जल से भरे नए घड़े पर खरबूज रखकर दान किया जाता है तो कहीं घड़े के साथ सत्तू या इमली-गुड़ का शर्बत दान देते हैं। इस त्यौहार पर दान की सामग्री का वैज्ञानिक विश्लेषण करें तो तेज धूप, ऊंचे तापमान और लू के थपेड़ों के बीच खरबूज, सत्तू और इमली का शर्बत और घड़े का शीतल जल राहत दिलाता है। लोक भाषाओं के 'आखातीज, 'अखाती और 'अकाती की हर घड़ी, हर पल को शुभ माना जाता है।
तीज पर सोने की शुभ खरीदारी:
अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना अत्यंत शुभदायी माना जाता है और इसलिए सोना खरीदने की परंपरा भी इस त्यौहार से जुड़ी हुई हैं। लोग ठोस सोने के साथ ही सोने के आभूषण भी इस तिथि को खरीदते हैं। बदलते जमाने के साथ ही यह त्यौहार पर भी आधुनिकता की छाप दिखने लगी है। पुराण, पंडित और ज्योतिषी तो सैकड़ो सालों से इस दिन सोना खरीदने की सलाह देते आ रहे हैं और अब इंवेस्टमेंट अडवाईजर्स भी सोना खरीदने की राय दे रहे हैं। इसी कारण सोना खरीदने के साथ ही इस दिन लोग गोल्ड एक्सचेंज ट्रैडेड फंड के जरिए डीमैट फार्मेंट में सोने की खरीदारी करने लगे हैं और सोने को बतौर निवेश देखने लगे हैं। अक्षय तृतीया को स्वर्ण युग की आरंभ तिथि भी मानी गई है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन खरीदा और धारण किए गए सोने और चांदी के गहने अखंड सौभाग्य का प्रतीक माने गए हैं। मान्यताओं के मुताबिक सोने और चांदी के आभूषण खरीदने से घर में बरकत ही बरकत आती है। अक्षय तृतीया के मौके पर सोना खरीदना बड़ा ही शुभ माना जाता है। दरअसल सोने में मां लक्ष्मी का वास माना जाता है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि इस दिन सोना खरीदने के शुभ फल का भी क्षय नहीं होता अर्थात मां लक्ष्मी उस सोने के रूप में उस घर में स्थिरा हो जाती है। जिससे घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदने और पहनने की भी परंपरा है।
अक्षय तृतीया पर शादी का मुहूर्त:
ऐसा माना जाता है कि इस दिन जिनका परिणय होता है, उनका सौभाग्य अखंड रहता है। इस दिन महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए किए गए अनुष्ठान का अखंड पुण्य मिलता है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। अक्षय तृतीया पर सूर्यदेवता अपनी उच्च राशि मेष में रहेंगे और वे इस दिन के स्वामी होंगे। रात्रि के स्वामी चंद्रमा भी अपनी उच्च राशि वृषभ में रहेंगे। शुक्र का वृषभ राशि में रहने से 27 तरह के योगों में अक्षय तृतीया का सौभाग्य योग रहेगा। यह अपने नाम के अनुसार ही फलदायी होगा। सूर्य के साथ मंगल कार्यों के स्वामी बृहस्पति अपनी मित्र राशि मेष में होंगे। ऐसी स्थिति प्रत्येक 12 वर्ष बाद बनती है।
दान का खास महत्व है:
पुराणों के अनुसार अक्षय तृतीया पर दान-धर्म करने वाले व्यक्ति को वैकुंठ धाम में जगह मिलती है। इसीलिए इस दिन को दान का महापर्व भी माना जाता है। इस दिन नए कार्य शुरू करने के लिए इस तिथि को शुभ माना गया है। भगवान विष्णु को सत्तू का भोग लगाया जाता है और प्रसाद में इसे ही बांटा जाता है। अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान करके जौ का हवन, जौ का दान, सत्तू को खाने से मनुष्य के सब पापों का नाश होता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति पर चंदन या इत्र का लेपन भी किया जाता है।


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जानिये कब होगा स्वयं का मकान

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जो लोग किराए के मकान में रहते हैं, उनका सिर्फ एक ही सपना होता है कि उनका भी एक छोटा ही सही, लेकिन सुंदर सा मकान हो। जहां वह निश्चिंत होकर अपने परिवार के साथ रह सके। न मकान मालिक की टेंशन हो और न ही दूसरे किराएदारों की झिकझिक। हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की हाथ की रेखा देखकर यह बताया जा सकता है कि उस व्यक्ति का कभी अपना मकान भी होगा या नहीं, और यदि होगा तो यह स्थिति कब बनेगी।
आज हम आपको उन रेखाओं के बारे में बता रहे हैं, जो किसी भी व्यक्ति के स्वयं के मकान के बारे में बताते हैं-
1- भूमि का ग्रह मंगल है। हस्तरेखा में मंगल का क्षेत्र से भूमि व भवन का पता चलता है। वस्तुत: मंगल का क्षेत्र का उच्च का होना उत्तम भवन प्राप्ति का योग देता है। मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत का बली होना भवन प्राप्ति का अच्छा संकेत है।
2- हस्तरेखा में मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत के उपर किसी रेखा का होन भी ऐसे व्यक्ति को स्वश्रम से निर्मित उत्तम सुख-सुविधाओं ये युक्त भवन प्राप्त होता है।
3- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत मजबूत हो तो भी ऐसा व्यक्ति स्व पराक्रम व पुरुषार्थ से अपना घर(भवन) बनाता है।
4- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत से कोई रेखा भाग्य रेखा तक जाये तो ऐसे व्यक्ति के पास अपना बंगला या महलनुमा भवन होता है जिसमें कलात्मक बगीचा या जलाशय होता है।
5- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत एवं चंद्रमा और शनि का क्षेत्र या पर्वत विकसित हो तो ऐसे व्यक्ति का भवन दूसरों से अलग, सुंदर आकर्षक एवं नूतन साज-सज्जा से युक्त होता है।
6- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत एवं चंद्रमा और शनि का क्षेत्र या पर्वत विकसित हो साथ में इन रेखाओ से चलकर कोई रेखा भाग्य या जीवन रेखा तक जाये तो ऐसे व्यक्ति को अचानक निर्मित भवन की प्राप्ति होती है।
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किस कैरिअर को चुनें जाने अपने हथेली से

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अगर रास्ता सही मिल जाए तो मंजिल तक पहुंचना आसान होता है। इसी प्रकार अगर कैरियर का सही चुनाव कर लिया जाए तो कामयाबी कदम चूमती है और व्यक्ति सफलता की राह पर आगे बढ़ता रहता है। लेकिन जब कैरियर के चुनाव की बात आती है तब अक्सर लोग चुनाव करने में ग़लती कर बैठते हैं जिससे काफी संघर्ष करने के बाद भी निराशा और असफलता का दर्द महसूस होता रहता है। इस समस्या से बचने के लिए हस्तरेखा की सहायता ले सकते हैं। हाथों की बनावट और हस्तरेखाओं से आप यह जान सकते हैं कि ईश्वर आपको किन क्षेत्रों में सफलता प्रदान करेगा। अगर रेखाओं को ध्यान से देखें तो जान सकते हैं कि भाग्य ने आपके लिए किस तरह का करियर चुना है।
उच्चाधिकारी बनाती हैं ऐसी रेखाएं:
सूर्य को सरकार एवं सरकारी क्षेत्र में सफलता का कारक माना जाता है। जिस व्यक्ति की हथेली में सूर्य रेखा स्पष्ट और गहरी होती है तथा इस रेखा पर शुभ चिन्ह जैसे त्रिभुज, चतुर्भुज या सितारों का चिन्ह होता है वह सरकारी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त करते हैं। छोटी उंगली का अनामिका उंगली के तीसरे पोर की जड़ तक पहुंचना। मंगल पर्वत अथवा जीवनरेखा से किसी रेखा का निकलकर सूर्य पर्वत तक पहुंचना भी शुभ माना जाता है। ऐसे व्यक्ति सरकारी क्षेत्र में अधिकारी होते हैं। निष्कंलक अर्थात् शुद्घ भाग्य रेखा अनामिका की तुलना में लम्बी तर्जनी, कनिष्ठा, अनामिका के पहले पोरे को पारकर जाए। शाखायुक्त मस्तिष्क रेखा, अच्छा मजबूत दोषयुक्त सूर्य क्षेत्र तथा श्रेष्ठ अन्य रेखाएं जातक को प्रशासन संबंधी कार्यों की ओर ले जाने का संकेत करती हैं।
इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफलता:
इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कैरियर बनने के लिए शनि पर्वत यानी मध्यमा उंगली की जड़ के पास हथेली उभरी हुई हो। भाग्य रेखा शनि पर्वत पर आकर रुक गई हो। गुरू पर्वत यानी तर्जनी के पास हथेली का उभरा हुआ होना भी इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कैरियर बनाने में सहायक होता है। मजबूत शनि, लम्बी गहरी मस्तिष्क रेखा, लम्बी एवं गांठदार अंगुलियां जातक का रूझान मशीनरी क्षेत्र में होता है।
चिकित्सा के क्षेत्र में कामयाबी:
जिनकी हथेली में बुध, मंगल एवं सूर्य पर्वत उभरा हुआ होता है वह चिकित्सा के क्षेत्र में सफल एवं प्रसिद्घ होते हैं। कनिष्ठा उंगली पर कई सीधी रेखाएं हों और मंगल उभरा हुआ होना बताता है कि व्यक्ति शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में कामयाब होगा। अच्छे बुध पर तीन-चार खड़ी लाइनें, लम्बी एवं गांठदार अंगुलियां तथा वर्गाकार हथेली तथा अच्छी आभास रेखा चिकित्सा क्षेत्र के लिए उपयुक्त है।
फिल्म एवं टेलीविजन में कैरियर:
हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार अगर कोई व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में कैरियर बनाने की सोच रहा है तो जरूरी है कि सूर्य पर्वत और शुक्र पर्वत उभरा हुआ हो। सूर्य पर्वत अनामिका के जड़ के पास के भाग को कहते हैं और शुक्र पर्वत अंगूठे के जड़ वाले भाग को कहा जाता है। इसके साथ ही हाथ की सभी उंगलियां कोमल और हथेली के पीछे की ओर झुकती हों। अनामिका उंगली की लंबाई मध्यमा की जड़ तक हो। और भाग्य रेखा को कोई अन्य रेखा नहीं काटती हो। जिनकी हथेली ऐसी होती है वह अभिनय के क्षेत्र में सफल होते हैं। ऐसे व्यक्ति लोकप्रिय एवं धन-संपन्न होते है। इसमे भी अभिनय के क्षेत्र में सफलता लम्बी एवं शाखा युक्त मस्तिष्क रेखा जिसकी एक शाखा बुध पर जाए, विकसित बुध तथा शुक्र तथा सूर्य एवं अच्छा चन्द्र एवं लम्बी कनिष्ठा अंगुली ऐक्टिंग के लिए उपयुक्त है। अंगुलियों की तुलना में लम्बी हथेली, कोणाकार अंगुलियां, मस्तिष्क एवं जीवन रेखा में प्रारम्भ से ही गैप तथा शाखा युक्त मस्तिष्क रेखा एवं शुक्र व चन्द्र अच्छे हों, तो गायकी के क्षेत्र में सफलतादायी होती है। लचीला अंगूठा, लचीली एवं हथेली की तुलना में लम्बी अंगुलियां होने पर नृत्य के क्षेत्र में नाम प्रदान करती है। अगर सूर्य, बुध पर्वत उभरे हुए हों, भाग्य रेखा, सूर्य रेखा अच्छी हो, मस्तिष्क रेखा चंद्र पर्वत के नीचे तक आए तो छोटी आयु में ही बडा संगीतज्ञ बनने के योग बनते हैं।
कानून के क्षेत्र में कैरियर:
अपने उदय के समय मस्तिष्क रेखा एवं जीवन रेखा थोड़ा गैप लेकर चले तथा मस्तिष्क रेखा के अंत में कोई द्विशाखा हो, कनिष्ठा का पहला पोरा लम्बा एवं मजबूत हो तथा अच्छा बुध, तीन खड़ी लाइन युक्त हो तथा मजबूत अंगूठे का दूसरा पोर सबल हो तो यह न्याय के क्षेत्र में ले जाने का संकेत है। मस्तिष्क रेखा अंत में अर्ध वृत्ताकार चलती हुई बुध पर्वत की ओर मुड जाए तो उसे नीति और चतुराई से समस्या को हल करने में महारत प्राप्त होता है।
सैन्य सेवाओ के क्षेत्र में कैरियर:
लम्बा एवं सख्त मजबूत अंगूठा, उन्नत शुक्र एवं मंगल अच्छी सूर्य एवं भाग्य रेखा तथा वर्गाकार या चमसाकार अंगुलियां सैन्य सेवा के लिए अच्छी हैं। इसके साथ यदि मंगल अति विकसित एवं सख्त है तो थल सेना के लिए उपयुक्त है। यदि उक्त के साथ विकसित बृहस्पति एवं मजबूत एवं थोड़ा सा अन्तराल लिए मस्तिष्क एवं जीवन रेखा का उदय हो तो हवाई सेना के लिए संकेत हैं। जीवन रेखा और भाग्य रेखा के मध्य कोई त्रिभुज हो तो सेना में उच्च पद प्राप्त होता है।
अकाउट के क्षेत्र में कैरियर:
अगर भाग्य रेखा एवं प्रभाव रेखा गुरू पर्वत की ओर जाए तो व्यक्ति धन से संबंधित हिसाब-किताब का कार्य करता है। अच्छा बुध, सूर्य एवं अच्छी भाग्यरेखा तथा मजबूत अंगूठा एवं अंगुलियों की सबल विकसित दूसरी संधि गांठ हो, तो अकांटिंग का कार्य करता है।
व्यापार के क्षेत्र में कैरियर:
अगर भाग्य रेखा का बुध पर्वत पर अंत हो तो जातक को व्यापार में सफलता प्राप्त होती है। अगर मस्तिष्क रेखा अंत में तीन शाखाओं में बँट जाए तो व्यक्ति डिप्लोमेट होता है। इसमें से अगर एक शाखा चंद्र पर्वत तक जाए और दूसरी शाखा बुध पर्वत तक जाए तो व्यक्ति में गजब की व्यापारिक क्षमता होती है और अपनी योग्यता से धन कमाने में सफल होता है। स्वास्थ्य रेखा से कोई प्रभाव रेखा निकल कर नीचे ओर सूर्य रेखा को स्पर्श करें तो यह व्यापार में अच्छी सफलता प्रदान करता है। पर यदि यह रेखा सूर्य रेखा को काट दे तो साझेदारी के लिए हानिकारक होता है।
ज्योतिष के क्षेत्र में कैरियर:
अगर मस्तिष्क रेखा चंद्र पर्वत के बीच तक जाएॅ और तर्जनी के दूसरे पर्व में खडी रेखाएॅ हों तो व्यक्ति ज्योतिष तथा तंत्रमंत्र विद्याओं में पारंगत होता है। बुध पर्वत से चंद्रक्षेत्र तक कोई गोलाई लिये हुए रेखा आए, उसे अंत: प्रेरणा रेखा कहते हैं, तो उसे ज्योतिष का अच्छा ज्ञान होता है। यदि अंत: प्रेरणा रेखा, भाग्य रेखा और मस्तक रेखा मिलकर कोई छोटा क्रास बनाये तो गुप्त विद्यओं का अच्छा ज्ञान होता है। यदि शनि पर्वत के नीचे चतुर्भुज में क्रास हो जिसे कोई भी बडी रेखा स्पर्श ना करें तो उसकी बोली हुई बातें सच साबित होती है तथा ज्योतिष के क्षेत्र में उसे बडी सफलता प्राप्त होती है।

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जाने कुंडली में सरकारी नौकरी प्राप्ति के योग कैसे

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सभी की चाह होती है कि उच्च पद तथा सम्मान अपने जीवन में प्राप्त करें। साथ ही यह चाह भी कि जीवन में स्थिरता बनी रहे। इस का एक तरीका सरकारी नौकरी प्राप्त करना भी है। किंतु कई बार देखा जाता है कोई व्यक्ति बहुत प्रयास के बाद भी सफल नहीं हो पाता है वहीं किसी को एक बार में अच्छी सफलता प्राप्त हो जाती है। इसका कारण अथक मेहनत के साथ जन्मपत्री में ग्रह योग भी होते हैं। यदि ग्रह योग राजकीय पद पर कार्य करने का है तो थोड़े से प्रयास से भी अच्छा पद प्राप्त हो सकता है किंतु इसके लिए व्यक्ति की ग्रह दषाओं के साथ दषा एवं अंतरदषा भी प्रभाव डालती है। प्रत्येक जातक अपने ग्रह स्थिति हेतु कुंडली में सूर्य, गुरू, मंगल, चंद्रमा तथा राहु की स्थिति का विष्लेषण तथा प्रयास के दौरान ग्रह दषाओं के साथ दषा तथा अंतरदषा का मूल्यांकन कर अपनी सफलता का आकलन कर सकता है। यदि किसी जातक की ग्रह स्थिति अनुकूल हो तो दषा के प्रतिकूल होने पर आवष्यक उपाय द्वारा भी सफलता प्राप्ति का रास्ता खोल सकता है। प्रतियोगिता परीक्षा में निष्चित सफलता प्राप्ति तथा मन की एकाग्रता में वृद्धि हेतु पूर्व दिषा में मुख कर नित्य अष्म स्तोत्र का पाठ का पाठ करना चाहिए।
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आत्मविश्वास की कमी जाने ज्योतिष्य कारण


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आत्मविश्वास वस्तुत: एक मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति है। आत्मविश्वास से ही विचारों की स्वाधीनता प्राप्त होती है और इसके कारण ही महान कार्यों में सरलता और सफलता मिलती है। इसी के द्वारा आत्मरक्षा होती है। जो व्यक्ति आत्मविश्वास से ओत-प्रोत है, उसे अपने भविष्य के प्रति किसी प्रकार की चिन्ता नहींं सताती। दूसरे व्यक्ति जिन सन्देहों और शंकाओं से दबे रहते हैं, वह उनसे सदैव मुक्त रहता है। यह प्राणी की आंतरिक भावना है। इसके बिना जीवन में सफल होना अनिश्चित है। आत्मविश्वास वह अद्भुत शक्ति है जिसके बल पर एक अकेला मनुष्य हजारों विपत्तियों एवं शत्रुओं का सामना कर लेता है। निर्धन व्यक्तियों की सबसे बड़ी पूंजी और सबसे बड़ा मित्र आत्मविश्वास ही है। इस संसार में जितने भी महान कार्य हुए हैं या हो रहे हैं, उन सबका मूल तत्व आत्मविश्वास ही है। संसार में जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, यदि हम उनका जीवन इतिहास पढ़ें तो पाएंगे कि इन सभी में एक समानता थी और वह समानता थी- आत्मविश्वास की।
जब किसी व्यक्ति को यह अनुभव होने लगता है कि वह उन्नति कर रहा है, ऊंचा उठ रहा है, तब उसमें स्वत: आत्मविश्वास से पूर्ण बातें करने की शक्ति आ जाती है। उसे शंका पर विजय प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति के मुखमण्डल पर विजय का प्रकाश जगमगा रहा हो, सारा संसार उसका आदर करता है और उसकी विजय, विश्वास में परिणीत हो जाती है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है, वह स्वत: दिव्य दिखाई पडऩे लगता है, जिसके कारण हम उसकी ओर खिंच जाते हैं और उसकी शक्ति पर विश्वास करने लगते हैं। कहते हैं उस व्यक्ति के लिए मौके की और सफलता की कोई कमी नहींं है जिसमें आत्मविश्वास होता है। परफेक्ट पर्सनलिटी वही होता है जिसमें कॉन्फीडेन्स होता है। आत्मविश्वास वह चॉबी है जो जिस व्यक्ति के हाथ में होती है उसके लिए हर ताले को खोलने की कला सिखा देता है। कोई व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान हो, कितना भी सुन्दर हो लेकिन अगर उसमें आत्मविश्वास नहींं है तो वह चाहकर भी वह सफलता प्राप्त नहींं कर पाता है।
आत्मविश्वास की कमी से हममें असुरक्षा और हीनता का भाव आ जाता है। अगर हमारा आत्मविश्वास कम हो तो हमारा रवैया नकारात्मक् रहता है और हम तनाव से ग्रस्त रहते हैं। नतीजतन हमारी एकाग्रता भी कम हो जाती है और हम निर्णय लेते समय भ्रमित और गतिहीन से हो जाते हैं। इससे हमारा व्यक्तित्व पूरी तरह से खिल नहींं पाता। ऐसे में सफलता तो कोसों दूर रहती है।
कैसे बढ़ाएं आत्मविश्वास:
हमें सर्वप्रथम् खुद को अपनी ही नजरों में उठना पड़ेगा। इसलिए हमें देखना पड़ेगा की हम कभी अपने को किसी से कम न समझें और न ही किसी और के साथ अपना मुल्याँकन करें या करने दें। यह जान लें कि हम सब अपनी-अपनी जगह पर सही व पूर्ण हैं। और जब-जब हम अपनी तुलना किसी और से करते हैं तब-तब हम अपने साथ एक बहुत बड़ा अपराध करते हैं।
आत्मविश्वास को बढ़ाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम होगा जब हम खुद को मायूस कर देने वाले व्यक्तियों व नकारात्मक् परिस्थितियों से कोसों दूर रखें क्योंकि यह हमारे आत्मविश्वास को एकदम क्षीण कर देती हैं। इनसब के विपरीत हमें अपना उत्साह बढ़ाने के लिए खुद को सकारात्मक वैचारिक-संदेश देते रहना चाहिए कि मैं श्रेष्ठ हूँ, पूर्ण हूँ, सम्पूर्ण हूँ। मुझमें कोई कमी नहींं है। मैं कोई भी कार्य करने में सक्षम् हूँ। मैं सही हूँ।
यह भी याद रखें कि हमारे हाथ में केवल कर्म करना होता है, और कर्मठता से प्रयास करने वाले ही को प्रभु सफलता देता है। अगर हम किसी कार्य को करते हुये विफल भी होते हैं तो इसमें किसी प्रकार का दुख या रंज करने की जरूरत नहींं होनी चाहिए, क्योंकि हमने तो उक्त कार्य में अपनी १०० फीसदी क्षमता का पूर्ण उपयोग किया है। इस तरह के सोच से आपमें अवसाद और निराशा नहीं रहेगी बल्कि एक प्रकार की नई स्फूर्ति और तेज आयेगा कि हम तो ईश्वर के दिये हुये कार्य को मन लगाकर कर रहे हैं, बाकि तो सब उसके हाथ है।
ज्योतिषीय शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। यदि सूर्य कमजोर होता है तो ऐसा व्यक्ति चाहकर भी आगे नहींं बढ़ पाता है। क्योंकि ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह माना गया है। उसी तरह कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मन का कारक ग्रह होता है। अगर कुंडली में सूर्य, पाप ग्रहों से पिडि़त हो या कुंडली में खराब घर यानी छठे, आंठवें या बारहवें भाव में हो तो अशुभ फल देता है। इससे व्यक्ति का आत्मविश्वास कम होने का योग बनता है। चंद्रमा अगर कुंडली में नीच राशि, वृश्चिक के साथ अपने शत्रु ग्रह की राशि में हो या कुंडली के अशुभ घर में हो तो व्यक्ति का मन कमजोर तो हो ही जाता है साथ ही वह डरपोक होता है और उसमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।
अगर चंद्रमा के साथ ही गुरू और बुद्धि का स्वामी बुध, अच्छी स्थिति में हो तो वो व्यक्ति बहुत ही बुद्धिमान होता है। मतलब जन्मकुंडली में सूर्य और चन्द्र अच्छी स्थिति में हो तो उसका व्यक्तित्व, आत्मविश्वास से भरा होता है। वैसे तो इंसान अपना आत्मविश्वास खुद बढ़ाता है लेकिन ज्योतिष के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। अत: किसी भी जातक की कुंडली में इन ग्रहों के कमजोर होने, नीच के होने या शत्रु स्थान या ग्रहों से पीडि़त होने की स्थिति में इन ग्रहों के उपाय कर तथा उचित कर्मकाण्ड से ग्रहों को मजबूत कर के भी आत्मविश्वास को बढ़ाया जा सकता है।
आत्मविश्वास को बढ़ाने के ये उपाय करें-
* तृतीयेश के मंत्रों का जाप करना, उस ग्रह के पदार्थ का दान करना चाहिए।
* लग्रेश को बली करने के लिए लग्र के रत्न को धारण करना, लग्रेश ग्रह का व्रत, मंत्रजाप तथा दान करना चाहिए।
* आत्मविश्वास का कारक ग्रह सूर्य है, अत: प्रत्येक व्यक्ति को सूर्य को मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए सूर्य का मंत्र ''ú घृणि सूर्याय नम: का सूर्योदय के समय जाप करना चाहिए।
* चंद्रमा को बलवान करने के लिए चंद्रमा के मंत्र का जाप सफेद पदार्थ जैसे चावल, दूध, शक्कर आदि का दान करना चाहिए।
* कालपुरुष की कुंडली में तीसरा स्थान बुध को प्रदान किया गया है, अत: बुध के मंत्रों का जाप, गणेश जी की उपासना, हरी चीजों का दान, गणेश जी को भोग लगाकर प्रसाद वितरण करना चाहिए।

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वास्तु के नियम अनुसार आपका घर

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वास्तु ऐसा माध्यम है जिससे आप जान सकते हैं कि किस प्रकार आप अपने घर को सुखी व समृद्धशाली बना सकते हैं। नीचे वास्तु सम्मत ऐसी ही जानकारी दी गई है जो आपके लिए उपयोगी होगी-
1- ऐसे मकान जिनके सामने एक बगीचा हो, भले ही वह छोटा हो, अच्छे माने जाते हैं, जिनके दरवाजे सीधे सड़क की ओर खुलते हों क्योंकि बगीचे का क्षेत्र प्राण के वेग के लिए अनुकूल माना जाता है। घर के सामने बगीचे में ऐसा पेड़ नहीं होना चाहिए, जो घर से ऊंचा हो।
2- वास्तु नियम के अनुसार हर दो घरों के बीच खाली जगह होना चाहिए। हालांकि भीड़भाड़ वाले शहर में कतारबद्ध मकान बनाना किफायती होता है लेकिन वास्तु के नियमों के अनुसार यह नुकसानदेय होता है क्योंकि यह प्रकाश, हवा और ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के आगमन को रोकता है।
3- आमतौर पर उत्तर दिशा की ओर मुंह वाले कतारबद्ध घरों में तमाम अच्छे प्रभाव प्राप्त होते हैं जबकि दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाले मकान बुरे प्रभावों को बुलावा देते हैं। हालांकि पूर्व और पश्चिम की ओर मुंह वाले कतारबद्ध मकान अनुकूल स्थिति में माने जाते हैं क्योंकि पश्चिम की ओर मुंह वाले मकान सामान्य ढंग के न्यूट्रल होते हैं।
4- पूर्व की ओर मुंह वाले घर लाभकारी होते हैं। कतार के आखिरी छोर वाले मकान लाभकारी हो सकते हैं यदि उनका दक्षिणी भाग किसी अन्य मकान से जुड़ा हो या पूरी तरह बंद हो। ऐसी स्थिति में जहां कतारबद्ध घर एक-दूसरे के सामने हों, वहां सीध में फाटक या दरवाजे लगाने से बचना चाहिए।
5- यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दक्षिण की ओर मुंह वाले घर यदि सही तरीके से बनाए जाएं तो लाभकारी परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। घर और वास्तु का गहरा नाता है। यही वजह है कि अपने सपनों का घर बनवाते हुए लोग आर्किटेक्ट से सुझाव लेना नहीं भूलते। कई बार वास्तु के हिसाब से चूक होने पर लोग घर में तोड़-फोड़ कराकर इसे दुरुस्त करने में हजारों-लाखों रुपये बर्बाद कर देते हैं। शायद आपको मालूम न हो, इस स्थिति में पेड़-पौधे ये नुकसान रोक सकते हैं। ज्योतिष और वास्तु में ये घर को सकारात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत करने वाले बताए गए हैं। बस जरूरत है थोड़ी जानकारी और प्रयास की। यदि आपके घर में वास्तु दोष है तो इसे मिटाने के लिए हरियाली का दामन थामना आपके लिए हर लिहाज से बेहतर विकल्प है।
ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अनुसार जीवनदायिनी प्रकृति के सहारे आशियाने को सेहत, सौंदर्य और समृद्धि से सराबोर किया जा सकता है। अगर मकान के खुले स्थान पर बगीचा लगा दें तो पूरा घर तरोताजा हवा एवं प्राकृतिक सौंदर्य से महक उठेगा। वास्तुशास्त्र के नजर से पेड़-पौधे उगाते हैं तो घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी होगा। चूंकि पेड़-पौधों जीवित होते हैं, इसलिए इनकी जीवंत ऊर्जा का सही उपयोग हमारे शरीर और चित्त को प्रसन्न रख सकता है। बस थोड़ा ध्यान रखना होगा कि पेड़-पौधे वास्तुशास्त्र के लिहाज से लगाए जाएं।
वास्तु और पौधे-
वास्तु में माना जाता है कि सकारात्मक ऊर्जा तरंगें हमेशा पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तथा पूर्वोत्तर से दक्षिण-पश्चिम में नैऋत्य कोण की ओर बहती है। ऐसे में ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व एवं उत्तर की ओर हल्के, छोटे व कम घने पेड़-पौधे उगाए जाएं। ताकि घर में आने वाली सकारात्मक ऊर्जा के रास्ते में कोई अवरोध न हो।
तुलसी बेहद उपयोगी-
इन दिशाओं से होकर घर में आने वाली हवा में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के खातिर तुलसी के पौधे बेहद उपयोगी माने जाते हैं। वास्तु के लिहाज से माना जाता है कि तुलसी के पौधों से होकर आने वाली वायु में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है साथ ही ये शुद्ध व स्वास्थ्यवर्धक भी हो जाती है।
इसके अतिरिक्त इन दिशाओं में अन्य औषधीय पौधों का रोपण भी वास्तु में लाभकारी बताया गया है। घर के पूर्व, उत्तर और पूर्वोत्तर में पुदीना, लेमनग्रास, खस, धनिया, सौंफ, हल्दी, अदरक आदि की उपस्थिति भी तन-मन को ताजगी देते हुए चुस्ती-फुर्ती और आरोग्य देने वाली मानी जाती है।
मनी प्लांट और क्रिसमस ट्री-
मनी प्लांट और क्रिसमस ट्री भी लोग घर में लगाते हैं। दोनों पौधे वास्तु की दृष्टि से समृद्धि कारक माने जाते हैं। शहर में कई परिवारों ने इन पौधों को अपने घरों में लगा रखा है। क्रिसमस ट्री इसाई परिवारों ने अपने घरों में तो मनी प्लांट का पौधा हर धर्म और जाति के लोगों के घरों में देखा जा सकता है।
खूबसूरत बालकनी-
अपने मकान के मुख्य द्वार के आसपास, पूर्व, उत्तर और पूर्वोत्तर में बालकनी पर गुलाब, बेला, चमेली, ग्लेडियोलाई, कॉसमोस, कोचिया, जीनिया, गेंदा और सदाबहार जैसे फूलों के पौधे लगाए जा सकते हैं। अगर जगह कम हो तो स्टैंड वाले गमले में इन्हें लगाया जा सकता है।
पश्चिम या दक्षिणमुखी घर होने पर-
घर पश्चिम और दक्षिणमुखी होने की दशा में उसके आगे या मुख्य द्वार की ओर बड़े-बड़े पेड़-पौधों समेत लताओं वाले पौध लगाए जा सकते हैं।
* पेड़ों को घर की दक्षिण या पश्चिम दिशा में लगाएं। पेड़ सिर्फ एक दिशा में ही न लग कर इन दोनों दिशाओं में लगे होने चाहिए।
* एक तुलसी का पौधा घर में जरूर लगाएं। इसे उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्वी दिशा या फिर घर के सामने भी लगा सकते हैं।
* मुख्य द्वार पर पेड़ कभी भी न लगाएं। श्वेतार्क मुख्य द्वार पर लगाना वास्तु की दृष्टि से शुभ फलदायक होता है।
* नीम, चंदन, नींबू, आम, आवला, अनार आदि के पेड़-पौधे घर में लगाए जा सकते हैं।
* काटों वाले पौधे नहीं लगाएं। गुलाब के अलावा अन्य काटों वाले पौधे घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करते हैं।
* ध्यान रखें कि आपके आगन में लगे पेड़ों की गिनती 2, 4, 6, 8.. जैसी सम संख्या में होनी चाहिए, विषम में नहीं।
लोग अपने घरों की फुलवारी में या लॉन में छोटे-छोटे पौधे लगाया करते हैं। भवन में छोटे पौधों का अपने आप में बहुत महत्व होता है। घर में लगाए जाने वाले छोटे पौधों में कई पौधे ऐसे होते हैं जिनका औषधीय महत्व है। साथ ही उनका रसोई या सौंंदर्यवद्र्धन संबंधी महत्व भी है।
आज के समय में स्थान के अभाव में प्राय: लोग गमलों में ही पौधे लगाते हैं या लॉन तथा ड्राइंगरूम में सजाकर रख देते हैं। इन पौधों एवं लताओं की वजह से छोटे फ्लैटों में निवास करने वाले खुद को प्रकृति के नजदीक महसूस करते हैं एवं स्वच्छ हवा तथा स्वच्छ वातावरण का आनंद उठाते हैं।
तुलसी का पौधा इसी प्रकार का एक छोटा पौधा है जिसके औषधीय एवं आध्यात्मिक दोनों ही महत्व हैं। प्राय: प्रत्येक हिन्दू परिवार के घर में एक तुलसी का पौधा अवश्य होता है। इसे दिव्य पौधा माना जाता है। माना जाता है कि जिस स्थान पर तुलसी का पौधा होता है वहां भगवान विष्णु का निवास होता है। साथ ही वातावरण में रोग फैलाने वाले कीटाणुओं एवं हवा में व्याप्त विभिन्न विषाणुओं के होने की संभावना भी कम होती है। तुलसी की पत्तियों के सेवन से सर्दी, खांसी, एलर्जी आदि की बीमारियां भी नष्ट होती हैं।
किस दिशा में लगाए जाएं कौन से पौधे:
वास्तुशास्त्र के अनुसार छोटे-छोटे पौधों को घर की किस दिशा में लगाया जाए ताकि उन पौधों के गुणों को हम पा सकें, इसकी विवेचना यहां की जा रही है।
1. तुलसी के पौधों को यदि घर की उत्तर-पूर्व दिशा में रखा जाए तो उस स्थान पर अचल लक्ष्मी का वास होता है अर्थात उस घर में आने वाली लक्ष्मी टिकती है।
2. घर की पूर्वी दिशा में फूलों के पौधे, हरी घास, मौसमी पौधे आदि लगाने से उस घर में भयंकर बीमारियों का प्रकोप नहीं होता।
3. पान का पौधा, चंदन, हल्दी, नींबू आदि के पौधों को भी घर में लगाया जा सकता है। इन पौधों को पश्चिम-उत्तर के कोण में रखने से घर के सदस्यों में आपसी प्रेम बढ़ता है।
4. घर के चारों कोनों को ऊर्जावान बनाने के लिए गमलों में भारी प्लांट को लगाकर भी रखा जा सकता है। दक्षिण -पश्चिम कोने में अगर कोई भारी प्लांट है तो उस घर के मुखिया को व्यर्थ की चिंताओं से मुक्ति मिलती है।
5. कैक्टस जैसे रुप के पौधे जिनमें नुकीले कांटे होते हैं उन्हें घर के अंदर लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित नहीं।
6. पलाश, नागकेशकर, अरिष्ट, शमी आदि का पौधा घर के बगीचे में लगाना शुभ होता है। शमी का पौधा ऐसे स्थान पर लगाना चाहिए जो घर से निकलते समय दाहिनी ओर पड़ता हो।
7. घर के बगीचे में पीपल, बबूल, कटहल आदि का पौधा लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार ठीक नहीं। इन पौधों से युक्त घर के अंदर हमेशा अशांति का अम्बार लगा ही रहता है ।
8. फूल के पौधों में सभी फूलों, गुलाब, रात की रानी, चम्पा, जास्मीन आदि को घर के अंदर लगाया जा सकता है किन्तु लाल गेंदा और काले गुलाब को लगाने से चिंता एवं शोक की वृद्धि होती है।
9. शयनकक्ष के अंदर पौधे लगाना अच्छा नहीं माना जाता। बेल (लता) वाले पौधों को अगर शयनकक्ष के अंदर दीवार के सहारे चढ़ाकर लगाया जाता है तो इससे दाम्पत्य संबंधों में मधुरता एवं आपसी विश्वास बढ़ता है।
10. अध्ययन कक्ष के अंदर सफेद फूलों के पौधे लगाने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। अध्ययन कक्ष के पूर्व एवं दक्षिण के कोने में गमले को रखा जाना चाहिए।
11. रसोई घर के अंदर गमलों में पुदीना, धनिया, पालक, हरी मिर्च आदि के छोटे-छोटे पौधों को लगाया जा सकता है। वास्तुशास्त्र एवं आहार विज्ञान के अनुसार जिन रसोईघरों में ऐसे पौधे होते हैं वहां मक्खियां एवं चींटियां अधिक तंग नहीं करतीं तथा वहां पकने वाली सामग्री सदस्यों को स्वस्थ रखती है।
12. घर के अंदर कंटीले एवं वैसे पौधे जिनसे दूध निकलता हो, नहीं लगाने चाहिएं। ऐसे पौधों के लगाने से घर के अंदर वैमनस्य का भाव बढ़ता है एवं वहां हमेशा अशांति का वातावरण बना रहता है।
13. बोनसाई पौधों को घर के अंदर लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित नहीं क्योंकि बोनसाई को प्रकृति के विरुद्ध छोटा कद प्रदान किया जाता है। जिस प्रकार बोनसाई का विस्तार संभव नहीं होता, उसी प्रकार उस घर की वृद्धि भी बौनी ही रह जाती है।
१४. छोटे पौधों को उत्तर या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। इस बात का खयाल रखें कि उत्तर-पूर्व में खुला स्थान बना रहे। लम्बे वृक्षों को बगीचे/भवन के पश्चिम, दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगाएं। इन्हें लगाते हुए यह खयाल रखें कि ये भवन की इमारत से पर्याप्त दूरी पर हों व सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच इनकी छाया इमारत पर न पड़े।
१५. विशाल दरख्तों जैसे पीपल, नीम आदि को भवन से पर्याप्त दूरी पर लगाना चाहिए, क्योंकि इनकी जड़ें भवन की नींव को क्षति पहुंचा सकती हैं। इस बात का भी खयाल रखें कि इन दरख्तों की छाया सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच इमारत पर न पड़े।
१६. कांटेदार पौधों को घर में कभी नहीं लगाना चाहिए क्योंकि ऐसे पौधे नकारात्मक ऊर्जा के वाहक होते हैं। खासकर कैक्टस तो बिल्कुल भी नहीं। इनकी घर में उपस्थिति अशुभ मानी जाती है। अगर आपके घर में कोई कांटेदार पौधा है भी, तो उसे तुरंत उखाड़ फेंकें।
१७. लताओं यानी बेलनुमा पौधों को आंगन या घर की दीवार पर न फैलने दें। इन्हें बगीचे में ही लगाएं और इन्हें अपनी सहायता से आप फैलने दें, लेकिन इन्हें बढऩे के लिए घर या आंगन की दीवार का सहारा न दें। मनी प्लांट अवश्य घर के भीतर लगाया जा सकता है। जो वृक्ष सांप, मधुमक्खी, कीड़े, चीटिंयों, उल्लू आदि को आमंत्रित करते हैं, ऐसे वृक्षों को बगीचे में न लगाएं।


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