Thursday 7 April 2016

संवैधानिक बदलाव

आज भारत मेंं सार्वजनिक हित के मामलों को तभी महत्व मिलता है जब उच्चतम न्यायालय इस पर ज़ोर डालता है. सामान्य और विशेष दोनों ही प्रकार के हितधारकों के प्रतिनिधि न्यायपालिका मेंं सक्रिय होकर याचिका दाखिल करते हैं. किसी भी विषय पर होने वाले वाद-विवाद से भारतीय न्यायपालिका को महत्व मिलता है और वह सक्रिय भी बनी रहती है. एक ऐसे युग मेंं जहाँ अधिकांश संस्थाओं पर राजनीति हावी होने लगी है, न्यायपालिका ही एकमात्र संस्था बची है जिस पर नागरिकों का विश्वास अभी भी कायम है और उन्हें लगता है कि वहाँ उनकी सुनवाई ठीक तरह से हो सकती है.
कभी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि केंद्र से एक रुपया चलता है, जो गांव तक पहुंचते पहुंचते 10 पैसे रह जाता है. अगर तीन बड़े घोटालों यानी कॉमनवेल्थ, टूजी टेलीफोनी और कोयला घोटाले की बात करें, तो इनमेंं कई हजार अरब रुपये के वारे न्यारे हो चुके हैं. भ्रष्टाचार तो आम भारतीयों के लिए ‘‘रोजमर्रा’’ की बात हो चुकी है. भारत के पूर्व गृह सचिव मधुकर गुप्ता डॉयचे वेले से कहते हैं, ‘‘भ्रष्टाचार अगर सिर्फ ऊपरी स्तर पर हो, तो अलग बात है लेकिन यह लोगों की सोच मेंं शामिल हो गया है कि अगर पैसा नहीं दिया जाएगा, तो काम नहीं होगा.’’ राजनीति बनाम अफसरशाही
चाहे बड़ी योजनाओं की बात हो, खेलों की या फिर बच्चों के मिडडे मील की, सिर्फ 73 फीसदी साक्षर भारत मेंं हर जगह से भ्रष्टाचार की बदबू आती दिखती है. लालफीताशाही और अफससरशाही को भी इसका जिम्मेंदार माना जाता है. नाम लिखने भर से साक्षर कहलाने वाले लोग हक से अनजान थाना, पुलिस और कचहरी मेंं बेबस हो जाते हैं. यहां बिचौलियों की भूमिका शुरू होती है, जो किसी आसान काम को भी मुश्किल बनाने मेंं माहिर होते हैं. भारत के सरकारी दफ्तरों मेंं कहावत है कि अगर आपकी फाइल पर ‘‘वजन’’ (रिश्वत) न रखा गया हो, तो यह उड़ जाती है.
कैसे बदले भारत अमेंरिका और यूरोप की नजरों मेंं भले भारत आईटी और कंप्यूटर सम्राट हो लेकिन हकीकत मेंं यहां की 70 फीसदी आबादी गांवों मेंं रहती है, जिन्हें न तो पक्की सडक़ें मिलती हैं और न चौबीसों घंटे बिजली. लोकतंत्र के ‘‘लोक’’ को रातों रात मजबूत नहीं किया जा सकता है. शुरुआत कहां से हो, सवाल यहां शुरू होकर यहीं ठहर जाता है. गुप्ता की राय है कि तकनीक बदलाव से पारदर्शिता आ सकती है, ‘‘तकनीक से तंत्र मेंं तेजी और जवाबदेही लाई जाए और तेज फैसले लेने की सलाहियत और उसके आधार पर इसे लागू करने के मामले मेंं जवाबदेही तय होनी चाहिए.’’ सुधार के रास्ते राजनीति के गलियारे से ही गुजरते हैं और उन्हें साफ करना जरूरी है, ‘‘आज के खेल के नियम बदलने के लिए पहले आपको उसी खेल मेंं विजयी होना होगा, तब आप उसे बदल सकते हैं. यह अपने आप मेंं टेढ़ी खीर है. और यही भारत मेंं वैकल्पिक राजनीति करने की चुनौती भी है.’’
भारत की न्यायपालिका कीचड़ मेंं कमल की तरह है लेकिन विकास इतनी तेजी से हो रहे हैं कि संस्थाएं अगर समय समय पर सुधार न करें तो उनमेंं गिरावट आती ही है. मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व मेंं सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों और दूसरे बड़े न्यायिक अधिकारियों ने समस्या को ठीक ही पहचाना है. बुनियादी ढांचों को दुरुस्त करना, आबादी के हिसाब से न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाना, और सूचना प्रौद्योगिकी का व्यापक इस्तेमाल. अब इसके अमल मेंं तेजी लाने की जरूरत है. और इसकी जिम्मेंदारी मुख्य रूप से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की है जो न्यायिक संस्था के मुखिया है.
आम लोगों के लिहाज से भारत मेंं न्यायिक प्रक्रिया को तेज करने की जरूरत है. मुख्य न्यायाधीश ने लोवर कोर्ट मेंं पांच और अपील कोर्ट मेंं दो साल मेंं मुकदमा निबटाने का लक्ष्य रखा है. इसे और जल्दी करने से लोगों का खर्च भी घटेगा और न्यायिक प्रक्रिया मेंं लोगों का विश्वास भी बढ़ेगा. इसके अलावा प्रक्रियाओं को आसान करने की जरूरत है ताकि अदालत की सलाह, हस्तक्षेप या फैसला चाह रहे लोग बिना वजह परेशान न हों और न ही उनपर अनाप शनाप आर्थिक और मानसिक बोझ पड़े.
भारत की आबादी तेजी से बढ़ रही है. साथ ही तेज आर्थिक विकास भी हो रहा है और सरकार के प्रयास सफल हुए तो विकास मेंं और तेजी आएगी. आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां अपने साथ विवाद और अपराध भी लाती है. दोनों ही चुनौतियों से भारत को आने वाले समय मेंं निपटना होगा. न्यायिक व्यवस्था के लिए इसका मतलब अधिक अदालतें और अधिक जज भी हैं. संभवत: समय आ गया है कि भारत सुप्रीम कोर्ट की छतरी के नीचे एक-एक राष्ट्रीय प्रशासनिक, वित्तीय, आपराधिक और सामाजिक अदालत बनाने के बारे मेंं सोचे. इससे सुप्रीम कोर्ट पर बोझ कम होगा और देश की सर्वोच्च अदालत न्याय व्यवस्था के फौरी और दूरगामी विकास पर ध्यान दे पाएगी. आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल जरूर ही न्यायालयों के काम को आसान बनाएगी. हर दफ्तर की तरह न्यायालयों को भी दूरसंचार के आधुनिक तकनीकों से लैस किया जाना चाहिए. आईटी के क्षेत्र मेंं दुनिया भर मेंं डंका पीट रहे देश के अपने चोटी के दफ्तरों मेंं अत्याधुनिक तकनीक न हो, यह कोई अच्छी बात नहीं. इसे प्राथमिकता के साथ लागू किया जाना चाहिए.
भ्रष्टाचार के खात्में पर संसद मेंं दिसंबर 1963 को हुई बहस मेंं डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत मेंं जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है उतना दुनिया के इतिहास मेंं कहीं नहीं हुआ। जज कुरियन जोसेफ ने माना कि वह कॉलेजियम प्रणाली विफल हो गई, जहां दिशा-निर्देशों की अनदेखी कर चहेते और नाकाबिल जजों का चयन होता है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भरूचा ने 15 वर्ष पहले कहा था कि हाईकोर्ट के 20 फीसदी जज भ्रष्ट हैं वहीं, पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने चीफ जस्टिस सहित 50 फीसदी जजों को भ्रष्ट करार दिया। पूर्व कानून मंत्री शांतिभूषण ने तो सुप्रीम कोर्ट के आठ पूर्व चीफ जस्टिसों को भ्रष्ट बताते हुए हलफनामा ही दायर कर दिया परंतु सुप्रीम कोर्ट और सरकार प्रभावी कार्यवाही (इसका एक कारण जजों को हटाने के लिए महाभियोग की जटिल प्रक्रिया भी है) करने मेंं विफल रही, क्योंकि गलत जजों की नियुक्ति मेंं दोनों शामिल थे। काटजू के अनुसार आईबी की प्रतिकूल रिपोर्ट के बावजूद तमिलनाडु मेंं डीएमके के भ्रष्ट नेता को जमानत देने वाले व्यक्ति को यूपीए सरकार द्वारा हाईकोर्ट का जज बनवाकर सुप्रीमकोर्ट के तीन पूर्व प्रधान न्यायाधीशों से अनुचित सेवा-विस्तार दिलवा दिया गया। जज चेलमेंश्वर ने माना कि सिर्फ स्वतंत्र और सक्षम न्यायपालिका ही समाज मेंं भरोसा कायम रखने का काम कर सकती है परंतु देश की अदालतों मेंं लंबित 3.5 करोड़ से अधिक मुकदमों का बढ़ता ढेर जजों की दक्षता का प्रमाण तो नहीं देते। जज कुरियन जोसेफ ने कहा कि न्यायिक प्रणाली लाइलाज नहीं हुई है। उन्होंने इसे दुरुस्त करने के लिए ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका का सुझाव दिया, जिसका प्रयोग रूस मेंं कम्युनिस्ट व्यवस्था मेंं पारदर्शिता और पुनर्निर्माण के लिए मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने आरटीआई के तहत अधिकांश सूचनाओं से अपने को अलग रखा है तो फिर ग्लासनोस्त कैसे आएगा एनजेएसी मामले मेंं छह महीने के भीतर सुनवाई कर निर्णय देने वाले जज, आम जनता के मामलों को सालों-साल क्यों लटकाते हैं? कातिलों के लिए आधी रात मेंं सुनवाई करने वाले जजों को 4 लाख गरीब अनपढ़ कैदियों को जेल से निकालने के लिए समय क्यों नहीं है? मी लार्ड्स को अब हम लोग (वी द पीपुल) से भी जुडऩा पड़ेगा वरना संविधान की संकल्पना को गांधी के अनुसार बदलना पड़ेगा, जिन्होंने कहा था कि अदालतें न हों तो हिंदुस्तान मेंं गरीबों को बेहतर न्याय मिल सकता है। इसके लिए कुछ जमीनी हकीकत को स्वीकार करते हुए ठोस निर्णय लेने होंगे जैसे -
न्यायाधीशों की संख्या मेंं वृद्धि
मुकदमों के समयबद्ध निस्तारण के लिए जरूरत इस बात की है कि न्यायाधीशों की मुकदमें निपटाने की दर के आधार पर अधीनस्थ न्यायालयों मेंं न्यायाधीशों की संख्या में इजाफा किया जाए। इसके लिए जनसंख्या के अनुपात मेंं न्यायाधीशों की संख्या के आधार को छोडऩा होगा।
जजों की नियुक्ति को प्राथमिकता दी जाए
विभिन्न उच्च न्यायालयों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि वर्तमान न्याय प्रणाली के कारण मुकदमों के अंबार लगे हुए हैं। वर्तमान प्रणाली इन्हें रोक भी नहीं पा रही है। मुकदमों के इस अंबार को रोकने और इनके समयबद्ध निस्तारण के लिए अधिक संख्या मेंं जजों की नियुक्तियां की जाएं।
अधीनस्थ न्यायालयों के जजों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़े
समुचित रूप से प्रशिक्षित न्यायाधीशों की कमी के मद्देनजर अधीनस्थ अदालतों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु को बढ़ाकर 62 वर्ष कर दिया जाना चाहिए। इससे मुकदमों के ढेर को कम करने मेंं सहायता मिलेगी।
यातायात/ पुलिस चालान मामलों के लिए हो विशेष कोर्ट
अधीनस्थ न्यायालयों मेंं नए दायर हो रहे मामलों मेंं यातायात या पुलिस चालान सम्बन्धी मामले 38.7 फीसदी होते हैं। लंबित मामलों मेंं भी इनकी संख्या 37.4 प्रतिशत है। इन मामलों के निस्तारण के लिए नियमित न्यायालयों से इतर सुबह और शाम को संचालित होने वाले विशेष न्यायालय शुरू किए जाएं। नए विधि स्नातकों को अल्पकाल के लिए इन नए न्यायालयों का पीठासीन अधिकारी बनाया जा सकता है।
ये न्यायालय जुर्माने आदि से संबंधित मामलों को ही निपटाएं। जहां जेल जैसी सजा के मामले हों, उन्हें नियमित न्यायालय मेंं निपटाया जाए। इसके अलावा जुर्माने को जमा कराने के लिए ऑनलाइन भुगतान की सुविधा होनी चाहिए। न्यायालय परिसर मेंं जुर्माना जमा करवाने के लिए अलग काउंटर लगाए जाने चाहिए।
अतिरिक्त न्यायालयों के लिए आधारभूत सुविधाएं
अतिरिक्त न्यायालयों के लिए पर्याप्त स्टाफ और आधारभूत ढांचागत सुविधाओं के उचित प्रबंध किए जाएं ताकि इन न्यायालयों को कार्यशील बनाया जा सके।
उच्च न्यायालय द्वारा समीक्षा जरूरी
विधि आयोग का वर्तमान कार्य, वर्ष 2012 तक की स्थिति पर आधारित रहा है। लेकिन, भविष्य मेंं कितनी अधीनस्थ अदालतों और उनके न्यायाधीशों की आवश्यकता होगी, इसका अनुमान लगा पाना कठिन है। इसके लिए उच्च न्यायालयों को चाहिए कि समय-समय पर न्यायाधीशों की संख्या, उनकी निस्तारण दर और मुकदमों के लंबित होने की स्थिति का आकलन करते रहें और आवश्यक कदम उठाते रहें।
अदालतों का काम नीतियां तैयार करना नहीं, सिर्फ यह देखना है कि काम कानून के मुताबिक हो रहा है या नहीं। उत्पादन और सामाजिक सुरक्षा की जरूरतों के बीच संतुलन बनाना मूलत: राजनीतिक कार्य है, जिसमेंं उनकी विशेषज्ञता नहीं है। खराब नीतियों के लिए राजनेता मतदाताओं के सामने जवाबदेह होते हैं। लेकिन प्रशासन को पंगु बनाने, ईमानदार कंपनियों का दीवाला निकालने और आर्थिक विकास को धीमा करके गरीबी बढ़ाने के लिए अदालतों की किसी के आगे कोई जवाबदेही नहीं होती।
इसीलिए कोर्ट का एक्टिविज्म कुछेक बेहद गंभीर मामलों तक ही सीमित रहना चाहिए। पुराना न्यायिक नुस्खा है कि भले ही कई अपराधी छूट जाएं, पर एक भी बेकसूर को सजा नहीं होनी चाहिए। बावजूद इसके, जुडिशल एक्टिविज्म का शिकार ज्यादातर बेकसूर उद्यमी और ऑफिसर ही हो रहे हैं। भारत मेंं कुशासन की जड़ मेंं सिर्फ धूर्त राजनेता और उद्योगपति ही नहीं, अच्छी नीयत से बनाए गए बुरे कानून भी हैं। अदालतों मेंं लंबे खिंचते मुकदमें हर क्षेत्र मेंं कानून तोडऩे वालों को बढ़ावा देते हैं। लेकिन इसका इलाज तीव्र न्याय है। यह नहीं है अदालतें खुद ही नीतियां बनाने मेंं जुट जाएं।

अर्धकुम्भ महापर्व हरिद्वार

इस वर्ष देव भूमि हरिद्वार मेंं अर्धकुंभ महापर्व के स्थान का अतिशय महत्व है। हरिद्वार मेंं अर्धकुंभ महापर्व के अन्तर्गत सम्पन्न होने वाले आयोजनों और शाही स्नान आदि की प्रमुख तारीखें इस प्रकार हैं-
१. श्री शुभ संम्वत २०७२ पौष शुक्ल पक्ष पंचमी, मकर संक्राति गुरूवार (१४ जनवरी २०१६) पहला स्नान।
२. श्री शुभ संम्वत २०७२ माघ कृष्ण (सोमवती) अमावस्या, सोमवार (८ फरवरी २०१६) दूसरा स्नान।
३. श्री शुभ सम्वत २०७२ माघ शुक्ल पक्ष चतुथी/पंचमी, शुक्रवार (१२ फरवरी २०१६) तीसरा स्नान।
४. श्री शुभ सम्वत २०७२ माघ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, सोमवार (१२ फरवरी) को चौथा स्नान।
५. श्री शुभ सम्वत २०७२ फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, सोमवार (७ मार्च २०१६) को पांचवा स्नान।
६. श्री शुभ सम्वत २०७२ चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या, गुरूवार (७ अप्रैल २०१६) को छठवा स्नान।
७. श्री शुभ सम्वत २०७३ चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, शुक्रवार (८ अप्रैल २०१६) को सातवां स्नान।
८. श्री शुभ सम्वत २०७३ चैत्र शुक्ल पक्ष सप्तमी, बुधवार, मेंष संक्रान्ति (१३ अप्रैल २०१६) को आठंवा स्नान।
९. श्री शुभ सम्वत २०७३ चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी, श्री राम नवमी, शुक्रवार (१५ अप्रैल २०१६) को नवां स्नान।
१०. श्री शुभ सम्वत २०७३ चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, शुक्रवार (२२ अप्रैल २०१६) को दसवां स्नान। इति शुभम्।

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Wednesday 6 April 2016

Karmic numbers in numerology

The numbers that indicate a Karmic Debt are 11/2, 19/1, 13/4, 22/4, 14/5 and 16/7 and are called Karmic Numbers. These numbers takes on great significance when they are found in the Core Numbers i.e. the most important numbers like Talent Number, Destiny Number, Heart Number, Personality Number or in the Challenges, Pinnacles, Event Numbers, Personal Years or Birth Force Periods during the course of our life time. Each has its own unique characteristics and its own particular difficulties. A Karmic Number can be found in different places in the chart as a result of totals based on date of birth or calculations based on the letters of name. Numerology is based on the ancient idea that each of us is a spiritual being or a soul who incarnates on the earth many times in order to further evolve towards higher states of awareness. During our long evolutionary path of many incarnations, we have accumulated a wealth of wisdom and have made many good choices that benefit us in future life times. We have also committed mistakes and have sometimes abused the gifts we have been given. To rectify such errors we may take on additional burden in order to learn a particular lesson that we failed to learn in previous life times. In Numerology, this burden is called Karmic Debt. Number 11/2 : Number 11 walks the edge between greatness and self destruction. Its potential for growth, stability and personal power lies in its acceptance of intuitive understanding and of spiritual truths. For Number 11, such place is not found so much in logic but in faith. It is the psychic’s number. This number signifies a grave warning of hidden dangers, trial and treachery from others. Immense sensitivity, tension, impracticality and selfishness are its negative features. The people having this number specially as Talent Number have the tendency to force their views on others irrespective of their desire which prove fatal. It has been observed that if this number appears as Core Numbers specially as Talent Number, the person either remain unmarried or face marital problems leading to divorce and immense ups and downs throughout the life. Adolf Hitler and Benito Mussolini are the prime examples. Both were under the negative influence of Number 11 and their acts are well known to the world. Number 19/1 : Karmic Number 19/1 is the result of the inclusion of the negativity of 1 and 9 i.e. selfishness and proud of 1 and misuse of ability and much ambition. The person having this Number always gets ample opportunities in life but due to problems and obstacles he is not able to take the advantage. He always finds it difficult to use his ability in right direction and so fell to harness the opportunity. They always suffer from the hands of their near and dear. They don’t like to listen to others or to accept the help and advice of others. Number 13/4 : The people having this number as Talent Number or other Core Number have to work very hard to accomplish any task but with poor result. Obstacles stand in their way and they often feel burdened and frustrated by seeming futility of their efforts. Very often people with 13/4 Karmic Number do not concentrate or direct their energies in one specific direction or on a single task but scatter their energies over many projects and jobs, non of which amount to very much. A temptation with the 13/4 is to take shortcuts for quick success. Too often, that easy success does not come causing regret and the desire to give up. The result is a poor self –image and the belief that one is incapable of amounting to very much. Number 14/5 : Karmic Number 14/5 arises from previous life times during which human freedom has been abused. Those with a Karmic Number 14/5 are forced to adapt to ever-changing circumstances and unexpected occurrences. There is an acute danger of falling victim to abuse of drugs, alcohal and over indulgence in sensual pleasures. The people having this number as Talent Number or other Core Numbers have the tendency of too much changeability, love of freedom and movement, involvement in sloth and sensualities. They always aspire to have different partners and always seek pleasures at the cost of self destruction. They also don’t like to stick to one particular job or profession and quite frequently try to change without any specific reason which brings troubles for them. Number 16/7 : Number 16/7 is the manifestation of negative 1 i.e. selfishness and egotism and negative 6 i.e. illicit love affair in the form of negative 7 in present life. Indifferent attitude and introvert nature alienate the people from the mass. As a result marriage and business are totally destroyed and could not be saved. Power, authority, honour, dignity and material accumulation suddenly get vanished. When 16/7 is one of the Core Numbers, this process of destruction and rebirth is a continual cycle that actually serve to bring into higher consciousness and closer union with the source of life. Karmic Number 16/7 can be a path of progress and great spiritual growth if it is looked at properly. It has been observed that people having this number as a Core Number have to face sudden ups and downs in every sphere of life at different junctures specially their married life is disturbed and they have several illicit love relationships.

सुखमय गृह वास्तु के 51 सूत्र

सुखमय गृह वास्तु के 51 सूत्र छह श्लोकी संपूर्ण गृह वास्तु : इ्रशान्यां देवतागृहं पूर्वस्यां स्नानमंदिरम्। आग्नेयां पाक सदनं भाण्डारं गृहमुत्तरे॥1॥ आग्नेयपूर्वयोर्मध्ये दधिमणि-मंदिरम्। अग्निप्रेतेशयोर्मध्ये आज्यगेहं प्रशस्यते॥2॥ चाम्यनै त्ययोर्मध्ये पुरीषत्यागमंदिरम्। र्नैयांबुपयोर्मध्ये विद्यााभ्यासस्य मंदिरम्॥3॥ पश्चिमानिलयो र्मध्ये रोदनार्थं गृहं स्मृत। वायव्योत्तरयोर्मध्ये रतिगेहं प्रशस्ते॥4॥ उत्तरेशानयोर्मध्ये औषधार्थं तु कारयेत्। र्नैत्यां सूतिकागेहं नृपाणां भूतिमिच्छता॥5॥ आसन्नप्रसवे मासि कुर्याच्चैव विशेषतः। तद्वत् प्रसवकाल स्यादिति शास्त्रेषु निश्चयः॥6॥ अर्थात् : ईशान कोण में देवता का, पूर्व दिशा में स्नान का, अग्नि कोण में रसोई का, उत्तर में भंडार का, अग्नि कोण और पूर्व दिशा के बीच दूध दही मथने का, अग्नि कोण और दक्षिण दिशा के मध्य घी का, दक्षिण दिशा और नैत्य कोण के मध्य शा चै का, नै त्य काणे व पश्चिम दिशा के मध्य विद्याभ्यास का, पश्चिम और वायव्य कोण के मध्य रोदन का, वायव्य और उत्तर दिशा के मध्य रति मिलाप का, उत्तर दिशा और ईशान के मध्य औषधि का और नैत्य कोण में प्रसव का गृह बनाना चाहिए। प्रसव का गृह प्रसव के आसन्न मास में बनाना चाहिए, ऐसा शास्त्र में कहा गया है। अक्सर लोग वास्तु के नियमों की जटिलता के कारण उनका लाभ लेने से वंचित रह जाते हैं। इस तथ्य के मद्देनजर यहां सुखमय गृह वास्तु के सहज व उपयुक्त इक्यावन सूत्रों का विशद विवरण प्रस्तुत है। सफेद रंग की सुगंधित मिट्टी वाली भूमि ब्राह्मणों के निवास के लिए श्रेष्ठ मानी गई है। लाल रंग की कसैले स्वाद वाली भूमि क्षत्रिय, राजनेता, सेना व पुलिस के अधिकारियों के लिए शुभ होती है। हरे या पीले रंग की खट्टे स्वाद वाली भूमि व्यापरियों, व्यापारिक स्थलों तथा वित्तीय संस्थानों के लिए शुभ मानी गई है। काले रंग की कड़वे स्वाद वाली भूमि अच्छी नहीं मानी जाती। यह भूमि शूद्रों के योग्य होती है। मधुर, समतल, सुगंधित व ठोस भूमि भवन बनाने के लिए उपयुक्त होती है। खुदाई में चींटी, दीपक, अजगर सांप, हड्डी, कपड़े, राख, कौड़ी, जली लकड़ी व लोहा मिलना शुभ नहीं माना जाता है। भूमि की ढलान उत्तर और पूर्व की ओर हो तो शुभ होती है। छत की ढलान ईशान कोण में होनी चाहिए। भूखंड के दक्षिण या पश्चिम में ऊंचे भवन, पहाड़, टीले, पेड़ आदि शुभ माने जाते हैं। जिस भूखंड से पूर्व या उत्तर की ओर कोई नदी या नहर हो और उसका प्रवाह उत्तर या पूर्व की ओर हो, वह शुभ होता है। भूखंड के उत्तर, पूर्व या ईशान में भूमिगत जल स्रोत, कुआं, तालाब, बावड़ी आदि शुभ माने जाते हैं। भूखंड का दो बड़े भवनों के बीच होना शुभ नहीं होता। आयताकार, वृत्ताकार व गोमुखी भूखंड गृह वास्तु के लिए शुभ होता है। वृत्ताकार भूखंड में निर्माण भी वृत्ताकार ही होना चाहिए। सिंहमुखी भूखंड व्यावसायिक वास्तु के लिए शुभ होता है। भूखंड का उत्तर, पूर्व या ईशान कोण में विस्तार शुभ माना जाता है। भूखंड के उत्तर और पूर्व में मार्ग शुभ माने जाते हैं। दक्षिण और पश्चिम में मार्ग व्यापारिक स्थल के लिए लाभदायक माने जाते हैं। भवन के द्वार के सामने मंदिर, खंभा व गड्ढा शुभ नहीं होते। आवासीय भूखंड में बेसमेंट नहीं बनाना चाहिए। बेसमेंट बनाना आवश्यक हो, तो उत्तर और पूर्व में ब्रह्मस्थान को बचाते हुए बनाना चाहिए। बेसमेंट की ऊंचाई कम से कम 9 फुट हो और तल से 3 फुट ऊपर हो ताकि प्रकाश और हवा आ-जा सकें। वास्तु पुरुष के अतिमर्म स्थानों को छोड़कर कुआं, बोरिंग व भूमिगत टंकी उत्तर, पूर्व या ईशान में बना सकते हैं। भवन की प्रत्येक मंजिल में छत की ऊंचाई 12 फुट रखनी चाहिए। बाध्यता की स्थिति में 10 फुट से कम तो नहीं ही होनी चाहिए। भवन का दक्षिणी भाग हमेशा उत्तरी भाग से ऊंचा होना चाहिए। भवन का पश्चिमी भाग हमेशा पूर्वी भाग से ऊंचा होना चाहिए। भवन का नै त्य सबसे ऊंचा और ईशान सबसे नीचा होना चाहिए। भवन का मुखय द्वार ब्राह्मणों को पूर्व में, क्षत्रियों को उत्तर में, वैश्यों को दक्षिण में तथा शूद्रों को पश्चिम में बनाना चाहिए। इसके लिए 81 पदों का वास्तु चक्र बनाकर निर्णय करना चाहिए। द्वार की चौड़ाई उसकी ऊंचाई से आधी होनी चाहिए। बरामदा घर के उत्तर या पूर्व में ही बनाना चाहिए। खिड़कियां घर के उत्तर या पूर्व में अधिक तथा दक्षिण या पश्चिम में कम बनानी चाहिए। ब्रह्म स्थान को खुला, साफ तथा हवादार रखना चाहिए। गृह निर्माण में 81 पद वाले वास्तु चक्र में 9 स्थान ब्रह्मस्थान के लिए नियत किए गए हैं। चार दीवारी के अंदर सबसे ज्यादा खुला स्थान पूर्व में, उससे कम उत्तर में, उससे कम पश्चिम में और सबसे कम दक्षिण में छोड़ें। दीवारों की मोटाई सबसे ज्यादा दक्षिण में, उससे कम पश्चिम में, उससे कम उत्तर में और सबसे कम पूर्व में रखें। घर के ईशान कोण में पूजा घर, कुआं, बोरिंग, बच्चों का कमरा, भूमिगत वाटर टैंक, बरामदा, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम व बेसमेंट बनाएं। घर की पूर्व दिशा में स्नान घर, तहखाना, बरामदा, कुआं, बगीचा व पूजा घर बनाना चाहिए। घर के आग्नेय कोण में रसोई घर, बिजली के मीटर, जेनरेटर, इन्वर्टर व मेन स्विच लगाए जा सकते हैं। घर की दक्षिण दिशा में मुखय शयन कक्ष, भंडार, सीढ़ियां बनाने व ऊंचे वृक्ष लगाने चाहिए। घर के नै त्य कोण में शयनकक्ष, भारी व कम उपयोगी सामान का स्टोर, सीढ़ियां, ओवर हेड वाटर टैंक व शौचालय बनाए जा सकते हैं। घर की पश्चिम दिशा में भोजन कक्ष, सीढ़ियां, अध्ययन कक्ष, शयन कक्ष, शौचालय बनाए व ऊंचे वृक्ष लगाए जा सकते हैं। घर के वायव्य कोण में अतिथि घर, कन्याओं का शयनकक्ष, रोदन कक्ष, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम, सीढ़ियां, अन्न भंडार व शौचालय बनाने चाहिए। घर की उत्तर दिशा में कुआं, तालाब, बगीचा, पूजा घर, तहखाना, स्वागत कक्ष, कोषागार व लिविंग रूम बनाए जा सकते हैं। घर का भारी सामान नैत्य कोण, दक्षिण या पश्चिम में रखना चाहिए। घर का हल्का सामान उत्तर, पूर्व व ईशान में रखना चाहिए। घर के नैत्य भाग में किरायेदार या अतिथि को नहीं ठहराना चाहिए। सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ होना चाहिए। (मतांतर से अपने घर में पूर्व दिशा में, ससुराल में दक्षिण में और परदेश में पश्चिम में सिर करके सोना चाहिए। ध्यान रहे, उत्तर दिशा में सिर करके कभी नहीं सोना चाहिए।) घर के पूर्व गृह में बड़ी मूर्तियां नहीं होनी चाहिए। दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य प्रतिमाएं, तीन देवी प्रतिमाएं, दो गोमती चक्र व दो शालिग्राम नहीं रखने चाहिए। भोजन सदा पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके ही करना चाहिए। सीढ़ियों के नीचे पूजा घर, शौचालय व रसोई घर नहीं बनाना चाहिए। धन की तिजोरी का मुंह उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।

जन्म दिनांक से वास्तु दोष विचार

वास्तु दोष आपके घर में है या नहीं, इसका पता आप अपने जन्म दिनांक से प्राप्त कर सकते हैं। जन्म होते ही हमारे साथ कुछ अंक जुड़ जाते हैं। जैसे कि जन्म तिथि का अंक, जन्म समय की होरा व जन्म स्थान आदि। इन सब के आधार पर ज्योतिष व अंक ज्योतिष की गणनायें की जा सकती है। अगर हम 'गीता में श्री कृष्ण द्वारा बताये गये कर्म-सिद्धांत पर विश्वास करते हैं तो इस बार आपको आपका 'जन्म दिनांक' आपके पिछले कर्मों के आधार पर प्राप्त हुआ है जिसमें प्रत्येक अंक महत्त्व रखता है। वर्ग पद्धति में 'जन्म दिनांक' में आने वाले प्रत्येक अंक को वर्ग में दर्शाया जाता है। सभी अंक उनके नियत स्थान पर दर्शाने के उपरांत भी कुछ स्थान रिक्त रह जाते हैं। ये रिक्त स्थल इस जन्म को जीने की राह दिखाते हैं। शास्त्रों में नौ ग्रहों के नौ यंत्र हैं जिनका आधार निम्नलिखित 'सूर्य यंत्र हैं। सूर्य यंत्र के आधार पर हमारे घर में वास्तु दोष कहां है, इसका पता जातक व उसकी पत्नी की 'जन्मतिथि के आधार पर लगाया जा सकता है। 'सूर्य यंत्र' में दी गई संखया का किसी भी दिशा से योग करें तो योगफल 15 ही होगा। 'ग्रह वास्तु दोष' जानने के लिये हमें जन्म दिनांक में आने वाले प्रत्येक अंक को (दिनांक, माह, वर्ष व शताब्दी के अंक को) उपरोक्त 'सूर्य यंत्र' के आधार पर उनके स्थान पर दर्शाना होगा। यदि कोई अंक उस 'जन्म दिनांक' में नहीं आया है तो उसके स्थान को वर्ग में रिक्त रहने देंगे। इसी रिक्त स्थान पर 'वास्तु दोष' है, ऐसा हम जानेंगे व 'वास्तु उपचार' भी उसी के अनुसार करेंगे। उदाहरण के लिये एक पुरुष जातक व उसकी पत्नी की जन्म तिथि क्रमशः 13-12-1956 व 5-5-1958 है। 'सूर्य यंत्र' पर आधारित वर्ग इनके लिये इस प्रकार बनेगें। इस जातक के निवास गृह में दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) व पश्चिम दिशा में ( द्द्र ) रिक्त वर्ग वाली दिशा में वास्तु दोष होगा। पत्नी के जन्म दिनांक ने पति के वर्ग में अंक 8 (अ ) से ईशान दिशा में होने वाले दोष को दूर कर दिया है व पति के जन्म दिनांक ने पत्नी के वर्ग में अंक 6, 2 व 4 क्रमशः वायव्य, र्नैत्य व पूर्व दिशा में होने वाले वास्तु दोषों को दूर कर दिया है। आजकल संपत्ति पति व पत्नी दोनों के नाम पर होती है। अतः वे एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं। इससे ज्ञात होगा कि दिशा अनुसार गृह में क्या-क्या वास्तु दोष हो सकते हैं? दोष का पता चलने पर उसके उपाय भी किये जा सकते हैं। दिशा के अनुसार निम्नलिखित दोष घर में पाये जा सकते हैं। पूर्व दिशा : पूर्व दिशा में दोष होने पर पिता-पुत्र के संबंध ठीक नहीं रहते हैं। सरकारी नौकरी से परेशानी या सरकार से दंड, नेत्र रोग, सिर दर्द, हृदय रोग, चर्म रोग व पीलिया जैसे रोग घर में लगे रहते हैं। पश्चिम दिशा : पश्चिम दिशा में दोष होने पर नौकरों से क्लेश, नौकरी में परेशानी, भूत-प्रेत का भय, वायु-विकार, लकवा, चेचक, कुष्ठ रोग, रीढ़ की हड्डी में व पैरों में कष्ट हो सकता है। उत्तर दिशा : उत्तर दिशा में दोष होने पर विद्या संबंधी रूकावटें, व्यवसाय में हानि, वाणी दोष, मिर्गी, गले के रोग, नाक के रोग व मतिभ्रम आदि कष्ट हो सकते हैं। दक्षिण दिशा : दक्षिण दिशा में दोष होने पर क्रोध अधिक आना, दुर्घटनायें होना, रक्त विकार, कुष्ठ रोग, उच्च रक्त चाप जैसे रोग हो सकते हैं। भाइयों से संबंध भी ठीक नहीं रहते हैं। ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) : ईशान कोण में दोष होने पर पूजा में मन नहीं लगता, आय में कमी आती है, धन-संग्रह नहीं हो पाता, विवाह में देरी, संतान में देरी, उदर-विकार, कान के रोग, कब्ज, अनिद्रा आदि कष्ट हो सकते हैं। आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) : आग्नेय कोण में दोष होने पर पति/पत्नी में अच्छे संबंध न रहना, प्रेम में असफलता, वाहन से कष्ट, शृंगार में रूचि न रखना, हर्निया, मधुमेह, धातु एवं मूत्र संबंधी रोग व गर्भाशय से संबंधित रोग हो सकते हैं। र्नैत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) : र्नैत्य कोण में दोष होने पर दादा व नाना से परेशानी, अहंकार व भूत-प्रेत का भय, त्वचा रोग, रक्त विकार, मस्तिष्क रोग, चेचक, हैजा जैसी बीमारियों का घर में वास रहता है। वायव्य दिशा (उत्तर-पश्चिम) : वायव्य दिशा में दोष होने पर माता से संबंध ठीक नहीं रहते, मानसिक परेशानियां, अनिद्रा, सर्दी-जुकाम, मूत्र रोग, मासिक धर्म संबंधी रोग, पथरी व निमोनिया आदि हो सकते हैं। अच्छे वास्तु-विशेषज्ञ के सुझाव व उपायों की जानकारी ले कर उपरोक्त दिशा-दोष से होने आने वाले कष्टों से मुक्ति पाई जा सकती है।

वास्तु शांति क्यों जरुरी है गृह प्रवेश के पहले

आप जब भी कोई नया घर या मकान खरीदते हैं तो उसमं प्रवेश से पहले उसकी वास्तु शांति करायी जाती है। जाने अनजाने हमारे द्वारा खरीदे या बनाये गये मकान में कोई भी दोष हो तो उसे वास्तु शांति करवा के दोष को दूर किया जाता है। इसमें वास्तु देव का ही विशेष पूजन किया जाता है जिससे हमारे घर में सुख शांति बनी रहती है। वास्तु का अर्थ है मनुष्य और भगवान का रहने का स्थान। वास्तु शास्त्र प्राचीन विज्ञान है जो सृष्टि के मुख्य तत्वों का निःशुल्क लाभ प्राप्त करने में मदद करता है। ये मुख्य तत्व हैं- आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु। हम प्रत्येक प्रकार के वास्तु दोष दूर करने के लिए वास्तु शांति करवाते हैं। उसके कारण जमीन या बांध, काम में प्रकृति अथवा वातावरण में रहा हुआ वास्तु दोष दूर होता है। गृह प्रवेश के पूर्व वास्तु शांति कराना शुभ होता है। इसके लिए शुभ नक्षत्र, वार एवं तिथि इस प्रकार हैं- शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार व शुक्रवार शुभ हैं। शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी एवं त्रयोदशी। शुभ नक्षत्र- अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, उत्ताफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, स्वाति, अनुराधा एवं मघा। अन्य विचार- चंद्रबल, लग्न शुद्धि एवं भद्रादि का विचार कर लेना चाहिए। क्या है वास्तु शांति की विधि स्वस्तिवाचन, गणपति स्मरण, संकल्प, श्री गणपति पूजन, कलश स्थापन और पूजन, पुनःवचन, अभिषेक, शोडेशमातेर का पूजन, वसोधेरा पूजन, औशेया मंत्रजाप, नांन्देशराद, आचार्य आदे का वरेन, योग्ने पूजन, क्षेत्रपाल पूजन, अग्नि स्थापन, नवग्रह स्थापन और पूजन, वास्तु मंडल पूजन और स्थापन, गृह हवन, वास्तु देवता होम, बलिदान, पूर्णाहुति, त्रिसुत्रेवस्तेन, जलदुग्धारा और ध्वजा पताका स्थापन, गतिविधि, वास्तुपुरुष-प्रार्थना, दक्षिणासंकल्प, ब्राह्मण भोजन, उत्तर भोजन, अभिषेक, विसर्जन। उपयुक्त वास्तु शांति पूजा के हिस्सा हैं। सांकेतिक वास्तुशांतिः सांकेतिक वास्तु शांति पूजा पद्धति भी होती है, इस पद्धति में हम नोंध के अनुसार वास्तु शांति पूजा में से नजरअंदार न कर सके वैसी वास्तु शांति पूजा का अनुसरण करते हैं। ‘विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र’ विधिवत अनुष्ठान करने से सभी ग्रह, नक्षत्र, वास्तु दोषों की शांति होती है। विद्याप्राप्ति, स्वास्थ्य एवं नौकरी-व्यवसाय में खूब लाभ होता है। कोर्ट-कचहरी तथा अन्य शत्रुपीड़ा की समस्याओं में भी खूब लाभ होता है। इस अनुष्ठान को करके गर्भाधान करने पर घर में पुण्यात्माएं आती हैं। सगर्भावस्था के दौरान पति-पत्नी तथा कुटुम्बीजनों को इसका पाठ करना चाहिए। अनुष्ठान-विधि: सर्वप्रथम एक चैकी पर सफेद कपड़ा बिछाएं। उस पर थोड़े चावल रख दें। उसके ऊपर तांबे का छोटा कलश पानी भर के रखें। उसमें कमल का फूल रखें। कमल का फूल बिल्कुल ही अनुपलब्ध हो तो उसमें अडूसे का फूल रखें। कलश के समीप एक फल रखें। तत्पश्चात तांबे के कलश पर मानसिक रूप से चारों वेदों की स्थापना कर ‘विष्णुसहस्रनाम’ स्तोत्र का सात बार पाठ सम्भव हो तो प्रातः काल एक ही बैठक में करें तथा एक बार उसकी फलप्राप्ति पढ़ें। इस प्रकार सात या इक्कीस दिन तक करें। रोज फूल एवं फल बदलें और पिछले दिन वाला फूल चैबीस घंटे तक अपनी पुस्तकों, दफ्तर, तिजोरी अथवा अन्य महत्त्वपूर्ण जगहों पर रखें व बाद में जमीन में गाड़ दें। चावल के दाने रोज एक पात्र में एकत्र करें तथा अनुष्ठान के अंत में उन्हें पकाकर गाय को खिला दें या प्रसाद रूप में बांट दें। अनुष्ठान के अंतिम दिन भगवान को हलवे का भोग लगायें। यह अनुष्ठान हो सके तो शुक्ल पक्ष में शुरू करें। संकटकाल में कभी भी शुरू कर सकते हैं। स्त्रियों को यदि अनुष्ठान के बीच में मासिक धर्म आते हों तो उन दिनों में अनुष्ठान बंद करके बाद में फिर से शुरू करना चाहिए। जितने दिन अनुष्ठान हुआ था, उससे आगे के दिन गिनें। इनका ध्यान रखें अपने नए या पुराने घर में घर के खिड़की-दरवाजे इस तरह होने चाहिए कि सूरज की रोशनी अच्छी तरह से घर के अंदर आए। ड्रॉइंग रूम में फूलों का गुलदस्ता लगाएं। रसोई घर में पूजा की आलमारी या मंदिर नहीं रखना चाहिए। बेडरूम में भगवान के कैलेंडर, तस्वीरें या फिर धार्मिक आस्था से जुड़ी वस्तुएं न रखें। घर में टॉयलेट के बगल में देवस्थान नहीं होना चाहिए। दीपावली अथवा अन्य किसी शुभ मुहूर्त में अपने घर में पूजास्थल में वास्तुदोषनाशक कवच की स्थापना करें और नित्य इसकी पूजा करें। इस कवच को दोषयुक्त स्थान पर भी स्थापित करके आप वास्तुदोषों से सरलता से मुक्ति पा सकते हैं। अपने घर में ईशान कोण अथवा ब्रह्मस्थल में स्फटिक श्रीयंत्र की शुभ मुहूर्त में स्थापना करें। यह यन्त्र लक्ष्मीप्रदायक भी होता ही है, साथ ही साथ घर में स्थित वास्तुदोषों का भी निवारण करता है। प्रातःकाल के समय एक कंडे पर थोड़ी अग्नि जलाकर उस पर थोड़ी गुग्गल रखें और ऊँ नारायणाय नमः मंत्र का उच्चारण करते हुए तीन बार घी की कुछ बूँदें डालें। अब गुग्गल से जो धूम्र उत्पन्न हो, उसे अपने घर के प्रत्येक कमरे में जाने दें। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होगी और वातुदोषों का नाश होगा। प्रतिदिन शाम के समय घर मं कपूर जलाएं इससे घर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है। वास्तु पूजन के पश्चात् भी कभी-कभी मिट्टी में किन्हीं कारणों से कुछ दोष रह जाते हैं जिनका निवारण कराना आवश्यक है। घर के सभी प्रकार के वास्तु दोष दूर करने के लिए मुख्य द्वार पर एक ओर केले का वृक्ष दूसरी ओर तुलसी का पौधा गमले में लगायें। दुकान की शुभता बढ़ाने के लिए प्रवेश द्वार के दोनों ओर गणपति की मूर्ति या स्टिकर लगायें। एक गणपति की दृष्टि दुकान पर पड़ेगी, दूसरे गणपति की बाहर की ओर। हल्दी को जल में घोलकर एक पान के पत्ते की सहायता से अपने सम्पूर्ण घर में छिडकाव करें। इससे घर में लक्ष्मी का वास तथा शांति भी बनी रहती है अपने घर के मन्दिर में घी का एक दीपक नियमित जलाएं तथा शंख की ध्वनि तीन बार सुबह और शाम के समय करने से नकारात्मक ऊर्जा घर से बाहर निकलती है। घर में उत्पन्न वास्तुदोष घर के मुखिया के लिए कष्टदायक होते हैं। इसके निवारण के लिये घर के मुखिया को सातमुखी रूद्राक्ष धारण करना चाहिए। यदि आपके घर का मुख्य द्वार दक्षिणमुखी है, तो यह भी मुखिया के लिये हानिकारक होता है। इसके लिये मुख्य द्वार पर श्वेतार्क गणपति की स्थापना करनी चाहिए। अपने घर के पूजा घर में देवताओं के चित्र भूलकर भी आमने-सामने नहीं रखने चाहिए इससे बड़ा दोष उत्पन्न होता है। अपने घर के ईशान कोण में स्थित पूजा-घर में अपने बहुमूल्य वस्तुएं नहीं छिपानी चाहिए। पूजाकक्ष की दीवारों का रंग सफेद, हल्का पीला अथवा हल्का नीला होना चाहिए। यदि झाड़ू से बार-बार पैर का स्पर्श होता है, तो यह धन-नाश का कारण होता है। झाड़ू के ऊपर कोई वजनदार वास्तु भी नहीं रखें। ध्यान रखें की बाहर से आने वाले व्यक्ति की दृष्टि झाड़ू पर न पड़े। अपने घर में दीवारों पर सुन्दर, हरियाली से युक्त और मन को प्रसन्न करने वाले चित्र लगाएं। इससे घर के मुखिया को होने वाली मानसिक परेशानियों से निजात मिलती है। घर के पूर्वोत्तर दिशा में पानी का कलश रखें। इससे घर में समृद्धि आती है। बेडरूम में भगवान के कैलेंडर या तस्वीरें या फिर धार्मिक आस्था से जुड़ी वस्तुएं नहीं रखनी चाहिए। बेडरूम की दीवारों पर पोस्टर या तस्वीरें नहीं लगाएं तो अच्घ्छा है। हां अगर आपका बहुत मन है, तो प्राकृतिक सौंदर्य दर्शाने वाली तस्वीर लगाएं। इससे मन को शांति मिलती है, पति-पत्नी में झगड़े नहीं होते। वास्तु पुरूष की मूर्ति, चांदी का नाग, तांबा का वायर, मोती और पौला ये सब वस्तुएं लाल मिटटी के साथ लाल कपड़े में रखकर उसको पूर्व दिशा में रखें। लाल रेती, काजू, पौला को लाल कपड़ों में रख कर मंगलवार को पश्चिम दिशा में रखकर उसकी पूजा की जाए तो घर में शांति की वृद्धि होती है। प्रवेश की सीढ़ियों की प्रतिदिन पूजा करें, वहां कुंकुम और चावल के साथ स्वास्तिक, मिट्टी के घड़े का चित्र बनाएं। रक्षोज्ञा सूक्त जप, होम, अनुष्ठान इत्यादि भी करना चाहिए। ओम नमो भगवती वास्तु देवताय नमः। इस मंत्र का जप प्रतिदिन 108 बार और कुल 12500 जप करें और अंत में दशांश होम करें। वास्तु पुरुष की प्रार्थना करें। दक्षिण-पश्चिम दिशा अगर कट गई हो अथवा घर में अशांति हो तो पितृशांति, पिंडदान, नागबली, नारायण बलि इत्यादि करें। प्रत्येक सोमवार और अमावास्या के दिन रुद्री करें। घर में गणपति की मूर्ति या छवि रखें। प्रत्येक घर में पूजा कक्ष बहुत जरूरी है। नवग्रह शांति के बिना गृह प्रवेश मत करें। जो मकान बहुत वर्षों से रिक्त हो उसको वास्तुशांति के बाद में उपयोग में लाना चाहिए। वास्तु शांति के बाद उस घर को तीन महिने से अधिक समय तक खाली मत रखें। भंडार घर कभी भी खाली मत रखें। घर में पानी से भरा मटका हो वहां पर रोज सांझ को दीपक जलाएं। प्रति वर्ष ग्रह शांति कराएं क्योंकि हम अपने जीवन में बहुत से पाप करते रहते हैं।

विद्यार्थी जीवन में उपलब्धि हेतु शास्त्रीय उपाय



पढ़ाई-लिखाई में सफलता के शास्त्रीय उपाय विद्यार्थी जगत की उपलब्धियों में पुस्तक, विद्यालय और शिक्षक के अलावा जिन महत्वपूर्ण बातों का विशिष्ट योगदान रहता है। उनमें परिवेश अर्थात वास्तु एवं अन्य कारकों का सही योगदान होने और कुछ छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने से उपलब्धि की गुणवत्ता निश्चित रूप से कई गुना बढ़ जाती है। यहां ऐसे कुछ घटक तत्वों और कारकों का उल्लेख है जिनका लाभ सभी विद्यार्थी उठा सकते हैं। वास्तु शास्त्र : अध्ययन कक्ष एक ऐसा स्थान है, जहां पर व्यक्ति ज्ञान, बुद्धि के साथ-साथ पढ़ने के शौक को पूरा करता है। इस कक्ष का वास्तविक क्षेत्र, भवन के उत्तर-पूर्व में होता है। इसके अलावा यह कक्ष उत्तर, पूर्व तथा पश्चिम दिशा के बीच भी हो सकता है। दक्षिण-पश्चिम (नैत्य कोण) दक्षिण, वायव्य कोण अध्ययन कक्ष के लिए उपयुक्त नहीं होते। उत्तर-पश्चिम दिशा के बढ़े हुए भाग में बच्चों को कभी अध्ययन न करने दें। यहां अध्ययन करने से बच्चे के घर से भागने की इच्छा होगी। अध्ययन-कक्ष में विद्यार्थियों को सदैव पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की तरफ मुंह करके पढ़ना चाहिए। इससे वह विलक्षण प्रतिभा का धनी व ज्ञानवान होगा। पूर्व दिशा की ओर मुंह करके पढ़ने वाले बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस अधिकारी तक हो सकते हैं। पूर्व दिशा लिखने-पढ़ने के लिए सर्वोत्तम होती है। उत्तर-पूर्व में रहने वाले बच्चे की सेहत भी काफी अच्छी रहती है। मकान के उत्तर-पूर्व कोण के बने कमरे में दक्षिण या पश्चिम की ठोस दीवार के सहारे बैठकर पढ़ने से सफलता जल्दी मिलती है। इस कमरे में उत्तर-पूर्व की दीवार पर रोशनदान या खिड़की जरूर होनी चाहिए। बच्चे को आग्नेय कोण में बैठकर पढ़ने से मना करें, क्योंकि यहां बैठने से रक्तचाप बढ़ता है और बच्चा हमेशा ही पेरशान रहता है। मेहनत करने के बावजूद भी सफलता हाथ नहीं लगती। पढ़ाई हो या दफ्तर, पीठ के पीछे खिड़की शुभ नहीं होती। इससे पढ़ाई/नौकरी छूट जाती है। पीछे व कंधे पर रोशनी या हवा का आना अशुभता को ही दर्शाता है। जिस मकान में, जहां कहीं भी तीन या इससे अधिक दरवाजे एक सीध में हो या गली की सीध में हों तो उसके बीच में बैठकर नहीं पढ़ना चाहिए। इसके बीच में बैठकर पढ़ने से बच्चे की सेहत ठीक नहीं रहती, साथ ही पढ़ने में भी मन नहीं लगता। विद्यार्थियों को किसी बीम या दुछत्ती के नीचे बैठकर पढ़ना या सोना नहीं चाहिए, अन्यथा मानसिक तनाव उत्पन्न होता है। अध्ययन कक्ष की दीवार या पर्दे का रंग हल्का पीला, हल्का हरा, हल्का आसमानी हो तो बेहतर है। कुंडली के अनुसार शुभ रंग जानकर अगर दीवारों पर करवाया जाये, तो ज्यादा बेहतर परिणाम सामने आते हैं। यदि विद्यार्थी कम्प्यूटर का प्रयोग करते हैं तो कम्प्यूटर आग्नेय से दक्षिण व पश्चिम के मध्य कहीं भी रख सकते हैं। ईशान कोण में कभी भी कम्प्यूटर न रखें। अध्ययन-कक्ष के टेबल पर उत्तर-पूर्व कोण में एक गिलास पानी का रखें। इसके अलावा टेबल के सामने या पास में मुंह देखने वाला आईना न रखें। अध्ययन कक्ष में सोना मना है। इस कारण से वहां पर पलंग, गद्दा-रजाई आदि नहीं होनी चाहिए। वैसे सोते समय बच्चे का सिर पूर्व दिशा या दक्षिण दिशा की ओर अच्छा रहता है। रुद्राक्ष रत्न कवच : यह कवच चार मुखी रुद्राक्ष एवं पन्ना रत्न के संयुक्त मेल से निर्मित होता है। चार मुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा जी का स्वरूप होने से इसे विद्या प्राप्ति के लिए धारण करना शुभ होता है। पन्ना रत्न से बुद्धि का विकास होता है, जिससे पढ़ाई में अच्छी सफलता प्राप्त होती है। सरस्वती यंत्र : जिन विद्यार्थियों को अधिक मेहनत करने पर भी परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त नहीं होते, उन्हें यह यंत्र घर में स्थापित करना चाहिए और श्रद्धा से धूप, दीप, गंध, अक्षत आदि से पूजन तथा निम्न मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र : ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं सरस्वत्यै नमः॥ या देवि सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ फेंगशुई : अगर बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लगा रहा हो, तो टेबल पर एजुकेशन टावर लगाना चाहिए। इसके प्रभाव से बच्चे की पढ़ाई में एकाग्रता बढ़ेगी और पढ़ाई में बच्चे का मन लगने लगेगा। बच्चे की परीक्षा में शानदार सफलता के लिए अध्ययन कक्ष में स्फटिक गोले उत्तर दिशा में लटकाने चाहिए। नवरत्न का पौधा बच्चे के नवग्रह को ठीक करता है। इसे उत्तर दिशा में लगाना चाहिए। विद्यार्थी अपनी मेज पर ग्लोब रखें और इसे दिन में तीन बार घुमाएं। पिरामिड : पिरामिड का जल अगर बच्चे को पिलाया जाये तो बच्चे की सेहत ठीक रहेगी और बच्चे की पढ़ाई में रुचि बढ़ेगी। तंत्र व टोटके : अगर बच्चा पढ़ाई में मन नहीं लगा रहा हो तो एक साबुत नींबू लेकर बच्चे के सिर के ऊपर से सात बार उतारें, उतारते समय नींबू से निवेदन करें कि 'अमुक की हर बला तेरे सर'। इसके पश्चात नींबू को आड़ा काटकर किसी चौराहे पर फैंक दें और बिना मुड़े वापिस आ जायें। बच्चे को अगर नजर लगी हो तो बच्चे का पढा़ई में मन नहीं लगता। इसके उपाय के लिए 7 लाल मिर्च, 1 चम्मच राई को लेकर बच्चे के सिर पर से विपरीत दिशा में सात बार उतारकर अग्नि में डाल दें। इससे बड़ी से बड़ी नजर तुरंत उतर जाती है। बच्चे को नजर लगने पर अपने मकान की देहली पर बिठाकर काली उड़द, नमक व मिट्टी को बराबर मात्रा में लेकर सात बार उतारकर दक्षिण दिशा में फैंक दें। 11 गोमती चक्र बच्चे के सिर पर से सात बार उतारकर प्रवाहित करें। यह उपाय लगातार सात सोमवार करें। बच्चे का पढ़ाई में मन लगना शुरू हो जायेगा। प्रत्येक बुधवार को गाय को हरा चारा डालें, इससे बच्चे को विद्या और बुद्धि आती है। जिन बच्चों की स्मरण शक्ति कमजोर हो, उन्हें नियमित रूप से 11 तुलसी के पत्तों का रस मिश्री के साथ देने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है।

टैरो के विभिन्न कार्ड्स और उनके फल

जैसा कि आप जानते हैं, टैरो में कुल 78 कार्ड होते हैं। ये मुख्यतः दो भागों में बंटे होते हैं- मेजर आरकाना व माइनर आरकाना। मेजर आरकाना में ‘0’ से लेकर ‘21’ तक कुल 22 कार्ड होते हैं तथा माइनर आरकाना में ‘56’ कार्ड होते हैं। जहां मेजर आरकाना ब्रह्मांडीय विषयों (मूल तत्वों, गृह व राशियों) को व्यावहारिक क्षेत्र में लाकर यह बताते हैं कि जीवन की रोजमर्रा की घटनाओं में वे कैसे लागू होते हैं। माइनर आरकाना कार्ड्स प्रतिनिधित्व करते हैं उन सरोकारों, गतिविधियों तथा भावनाओं का जो जीवन की प्रतिदिन की प्रक्रिया को स्थापित करती है। इस बार आप को कुछ मेजर आरकाना कार्ड्स के बारे में बताएंगे। क्रम कार्ड का नाम कार्ड का विवरण कार्ड का फल 0 दी फूल (मूर्ख) तत्व-वायु यह कार्ड अप्रत्याशित घटना का या खबर का प्रतीक है। ऐसे प्रभाव जो जातक की निर्णय क्षमता एवं रूचियों को नाटकीय ढंग से बदल देता है तथा सत्य को न पहचानना, बच्चे जैसी आदतें, साफ दिल का, भ्रष्टाचार से कोसों दूर, धर्म की कमी, किसी भी कार्य को करने की अधीरता, अत्यधिक आशावादी, रोमांचकारी कार्य को करने केी उत्सुकता, हाजिर जवाब व बेफ्रिक।
1 दी मैजिशियन (जादूगर) ग्रह-बुध यह एक शुभ कार्ड है जो नये अवसर, नए उद्यम, दृढ़ इच्छा शक्ति एवं प्रत्येक नए काम में उमंग के साथ समाहित होने का प्रतीक है। आगे बढ़-चढ़कर भाग लेना, अपनी काबिलियत को पहचानना। ज्ञान सफलता की कुंजी है परंतु अपने को धोखे में न रखें कि वह हर समस्या का समाधान जानते हैं। अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखें। अपनी बात व काम को कैसे पूरा करना है वह भली भांति जानता है व उसे पूरा भी करता है।
2 दी कार्ड प्रीस्टेस (पुजारिन) ग्रह- चंद्रमा यह कार्ड रहस्यों की मार्गदर्शिका का बोध कराता है। इसका तात्पर्य यह है कि किसी रहस्य से पर्दाफाश होने वाला है या जातक किसी रहस्य को उजागर करना चाहता या चाहती है। रहस्यमयी, मन की छुपी भावनाएं, पूर्वाभास, स्त्रीशक्ति, शांत व्यक्तित्व।
3 दी एम्प्रैस (महारानी) ग्रह-शुक्र यह कार्ड प्रेम, शादी, भरोसे, समृद्धि तथा जन्म का प्रतीक है। इससे यह समझना चाहिए कि कोई स्वागत योग्य शुभ घटना घटने वाली है। किसी नए घटना का उदय होना व बढ़ना, सुख समृद्धि, सृजनात्मकता, अत्यधिक स्नेह भाव, जीवन के प्रति सकारात्मक सोच, कला व सौंदर्य पर ध्यान केंद्रित करना, प्राकृतिक सौंदर्य में रहना पसंद करना, सुख सुविधाओं में भरपूर जीवन जीना।
4 दी एम्परर (महाराना) राशि-मेष यह उपलब्धि और सम्मान का प्रतीक है तथा कई बार पुरूष के अदम्य प्रभाव का द्योतक भी होता है जैसे- पिता/पति/साझेदार या जातक के जीवन में किसी पुरूष या उच्चाधिकारी का प्रभाव होता है। अदम्य शक्ति, प्रतिनिधित्व, सबसे आगे बढ़कर कार्य करना व अन्य लोग उनकी राह पर चलना पसंद करते हैं। न्याय प्रिय व न्याय प्रणाली को सही तरीके से बनाए रखना।
5 दी हायरोफेंट (ज्योतिषी) राशि-वृष यह नैतिक कानून, चतुर और बुद्धिमान, परामर्शदाता, व्यावहारिक निर्देशक या आध्यात्मिक गुरु का प्रतीक है। पारंपरिक रीति-रिवाजों को जो मूलतः दकियानूसी विचार वाला है, जो नई बात तलाशने के हक में नहीं है। इस कार्ड का प्रकटन विवाह या विवाह की कामना एवं कानूनी जिम्मेदारियों और सरकारी दस्तावेजों की ओर इंगित करता है।
6. दी लवर्स (प्रेमी) राशि-मिथुन यह प्रेमी युगल का प्रतीक है, जातक के जीवन में प्रवेश करने वाले नए प्रेम-संबंध का संकेतक है जिसे जातक स्वयं नहीं देख सकता परंतु प्राप्त करने पर आश्चर्यचकित रह जाता है तथा प्रेम व कत्र्तव्य के बीच निर्णय को स्थापित करता है।
7. दी चैरियट (रथ) राशि-कर्क यह संघर्ष या टकरावों के पश्चात् विजय का प्रतीक है। इसलिए यह कार्ड यह सलाह देता है कि यदि किसी संघर्ष में जातक फंसा है तो उसे प्रयत्न जारी रखने चाहिए क्योंकि अंततः विजय जातक की होगी।
8. जस्टिस (न्यायाधीश) राशि-तुला यह न्याय व ईमानदारी का परिचायक होता है तथा हर मामले में संतुलन को प्रदर्शित करता है। साझेदारी, मुकदमे इत्यादि के मामले में सभी के साथ न्याय एवं ईमानदारी को दिखाता है चाहे यह हिस्सा व्यापार का हो या व्यक्तिगत।
9. दी हरमिट (साधु-संन्यासी) राशि-कन्या यह कार्ड आत्म-विश्लेषण तथा शांति एवं एकांत की कामना का प्रतीक हैं। यह जातक को चेतावनी देता है कि निर्णय जल्दबाजी या अधीरता से न लिया जाए बल्कि किसी भरोसेमंद व्यक्ति से उचित सलाह लेकर निर्णय लें। यह निर्णय मुख्यतः स्वास्थ्य से संबंधित भी हो सकते हैं। इससे पता चलता है कि जातक की बीमारी के बाद स्वस्थ होने के लिए कितने समय तक आराम करना चाहिए।
10. दी व्हील आॅफ फाॅरच्यून (भाग्य चक्र) ग्रह-बृहस्पति यह जीवन के नर चक्र का प्रतीक है। इसका अर्थ है सौभाग्यशील एवं सुनहरा भविष्य। यह भी भाग्य है जो आप इस अवसर में आए न कि आप अपनी मर्जी से आए। मौजूदा समस्याओं का अंत और पूर्व समय में किये गए प्रयत्नों का प्रतिफल या ईनाम प्राप्त होता है।
11. स्ट्रेन्थ (शक्ति) राशि-सिंह इसका तात्पर्य केवल भौतिक शक्ति नहीं बल्कि भयंकर दबाव की स्थिति में सहजता से कार्य करने की क्षमता को प्रकट करता है तथा इसका अंत सफलता के साथ होता है।
12. दी हैंगमैन (फांसी) तत्व-जल ग्रह-नेप्च्यून यह जातक के पार्थिव या भावनात्मक बदलाव का प्रतीक है। साथ ही जातक में परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल पाने की योग्यता को दर्शाता है।
13. डेथ (मृत्यु) राशि-वृश्चिक यह कार्ड भयदायक जरूर प्रतीत होता है परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। यह पुराने कामों की समाप्ति या नए कामों की शुरूआत को बताता है।
14. टेम्परेंस (धैर्य) राशि-धनु यह आत्म नियंत्रण, ज्वलनशील मुद्दों को ठंडे दिमाग से निबटने का प्रतीक है जिससे कि सकारात्मक परिणाम मिल सकें।
15. दी डेविल (शैतान) राशि-मकर यह कार्ड एक शुभ संकेतक है। यदि किसी विवाह में प्रतिबद्धता या रिश्तों की ईमानदारी का प्रश्न हो तो इसे सच्चाई, ईमानदारी एवं वफादारी का प्रेमपूर्ण प्रतीक समझा जाना चाहिए।
16. दी टाॅवर (मीनार) ग्रह-मंगल डेथ और डेविल के पश्चात् यह कार्ड बेहद भय एवं खौफ का वातावरण प्राप्त करता है। अप्रत्याशित घटनाओं के बारे में जो तहस-नहस करने वाली लेकिन उसके बाद मजबूत होकर उभरेंगे तथा समस्याओं के विलंब की ओर इशारा करता है।
17. दी स्टार (तारे) राशि-कुंभ यह एक फलदायक कार्ड है जो भविष्य का प्रतीक है व अंतदृष्टि प्रदान करता है। इसमें आशीर्वाद, उम्मीद, निष्ठा का दृष्टिकरण एवं अप्रत्याशित उपहार समाहित है।
18. दी मून (चंद्रमा) राशि-मीन यह जातक की तीव्र भावनात्मक अभिव्यक्ति और संशय की स्थिति प्रदर्शित करता है। परंतु यह जातक की राह को जगमगा देने वाला होता है भले ही मन में कितना भी भय क्यों न हो अर्थात् रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो, अंततः सफलता की प्राप्ति कराता है।
19. दी सन (सूर्य) राशि-सूर्य यह उत्तम कार्डों में से है जो बताता है कि समय बहुत हर्षदायक और प्रसन्नतावर्द्धक स्थिति की ओर अग्रसर है, मस्ती भरी छुट्टियां, चारों ओर से बच्चों के संबंध में शुभ समाचार या काफी समय पश्चात् बच्चे के जन्म का प्रतीक माना जाता है। परिवार व मित्रों के साथ मौज-मजा, प्रिय और सौहार्दपूर्ण संबंधों का प्रतीक है।
20 जजमेंट (निर्णय) ग्रह-प्लूटो तत्व अग्नि यह वर्तमान पूर्णता एवं पूर्व समय में किए गए प्रयत्नों के पुरस्कार का द्योतक है अर्थात् पुराने प्रयत्नों के समापन एवं नए कामों की शुरूआत का प्रतीक है।
21 दी वल्र्ड (विश्व) ग्रह-शनि यह जातक की हार्दिक इच्छा की संपूर्ति का प्रतीक है चाहे वह कुछ भी क्यों न हो अर्थात् उपलब्धि का समय, मान्यता, सफलता पाने की घड़ी और विजयश्री की उपलब्धि का प्रतीक है। मूर्ख (दी फूल): यह कार्ड उदित हो तो अप्रत्याशित घटना या खबर की आशा करनी चाहिए, एक ऐसे प्रभाव की जो नाटकीय रूप से आपके निर्णय को बदल दे। यह कार्ड नई शुरूआत का, अनजान जगह के लिए यात्रा-जिसमें बहुत मजा आए-सूचक है। रास्ते में हुए अनुभव यात्री को अधिक तजुर्बेकार और बुद्धिमान बना देंगे। लेकिन यदि पठन सत्र में पहली बार ये ही उदय हो जाए तो समझना चाहिए कि एक दुःसाहसिक बेवकूफी होगी या पूछा हुआ सवाल ही गलत होगा या इसे पूछने का कारण ही गलत होगा। दी फूल रीडिंग एक ऐसे व्यक्ति का भी परिचायक होता है जो अनूठा, लीक से हटकर चलने वाला, वासना से परिपूर्ण और सनकी हो सकता है। जादूगर: (दी मैजिशियन) यह एक उम्दा कार्ड है जो नए अवसरों का, नए उद्यम की महत्ता, दृढ़ इच्छा शक्ति एवं हर काम में उमंग के समावेश होने का प्रतीक है। इसका पारे जैसा ढुलमुल स्वभाव है। आप स्वयं का आकलन कर अपनी जमीन पर रहेंगे और साम-दाम, दंड-भेद से अपना लक्ष्य अवश्य प्राप्त कर लेंगे। ऋणात्मक रूप से यह कार्ड चालबाजी, धोखाधड़ी को स्थापित कर यह चेतावनी देता है कि किसी पर भी विश्वास बहुत सोच समझकर करें। कभी-कभी इसका उल्टा प्रभाव अपने आत्म-विश्वास में कमी तथा अनिर्णयात्मक स्थिति का द्योतक है। पुजारिन (दी हाई प्रीस्टेस) यह रहस्यों की मार्ग-दर्शिका के रूप में कार्ड-पठन में उभरती है। इसका संकेत है कि किसी रहस्य से पर्दाफाश होने वाला है या कोई रहस्य आप उजागर करना चाहते हैं। आपको समझना होगा कि अपने आंतरिक अभास पर भरोसा करने का समय आ गया है। इतनी अंतप्र्रज्ञा शक्ति को ही अपना मार्ग-दर्शन करने दीजिए। यह उस व्यक्ति की तरफ भी इशारा करेगी जिससे आपको मशविरा लेना चाहिए। यदि किसी आदमी के लिए कार्ड पठन हो रहा है तो यह उसके जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण महिला की तरफ इशारा करता है। इसका ऋणात्मक पक्ष है किसी महिला का उस पर गलत प्रभाव डालना। महारानी (दी एम्प्रेस): यह प्रतीक है प्रेम, भरोसे, समृद्धि तथा जन्म का इसलिए जब यह प्रकट होती है तो समझिए कोई स्वागत योग्य स्थिति घटने वाली है। दी एम्प्रेस सृजनात्मकता का होना इंगित करता है। दी एम्प्रेस धन संबंधी चिंताएं तथा अनचाहे गर्भ या अनुर्वरता का निर्देश देती है। महाराज (दी एम्परर): यह प्रतीक है उपलब्धि एवं सम्मान का और कई बार पुरुष के अदम्य प्रभाव का द्योतक भी होता है जैसे पिता/ पति/साझेदार या आपके जीवन में किसी पुरुष या बाॅस का प्रभाव। जब यह कार्ड सही स्थिति में प्रकट हो तो समझिए आपके प्रभाव और रूतबे में वृद्धि होने वाली है या आपका रौब लोगों पर कायम होगा। ऋणात्मक रूप से दी एम्परर का प्रकटन निर्देश देता है कि कोई दबंग या तानाशाही व्यक्ति आप पर जबरदस्ती, अपनी सत्ता के कारण रौब गांठने वाला है। अन्य ऋणात्मक निर्देश असफल आकांक्षा, पद स्थिति की अदम्य लालसा और किसी सत्ताधारी व्यक्ति के कारण असुरक्षा की भावना।

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Sunday 3 April 2016

ब्राह्मी: एक बुद्धिवर्धक औषधि

ब्राह्मी विशेषतः हिमालय की तराई, बिहार, उत्तरप्रदेश आदि में नदी नालों, नहरों के किनारे पाई जाती है अर्थात यह सीलन भरी भूमि (जलासन्न भूमि) में बहुतायत उगती है। गंगा के किनारे पूरे वर्ष भर में यह हरी भरी पाई जाती है। ब्राह्मी का पौधा फैलने वाला होता है। इसकी पत्तियां चिकनी तथा नरम होती हैं जिनकी लंबाई ज्यादा से ज्यादा 1 इंच तथा चैड़ाई सामान्यतः 1 से. मी. होती है। इसमें गर्मियों के मौसम में नीले, सफेद या हल्के गुलाबी रंग के फूल आते हैं जिनमें से छोटे-छोटे बीज निकलते हैं। ब्राह्मी में एल्केलाइड तथा सेवोनिन नामक दो मुख्य जैव सक्रिय पदार्थ पाए जाते हैं। इसमें पाए जाने वाले दो मुख्य एल्केलाइड ब्राह्मीन तथा हरपेस्टिन है जबकि बेकोसाइड ‘ए’ तथा ‘बी’ मुख्य सेपोनिन है। गुणों की दृष्टि से ब्राह्मी कुचला में पाए जाने वाले एल्केलाइड स्ट्रिकनीन के समान है परंतु यह उसकी तरह विषाक्त नहीं होती। इसके अतिरिक्त ब्राह्मी में बोहलिक अम्ल, डी मेनिटाॅल, स्टिग्मा स्टेनाॅल, बीटा साइटोस्टीराॅल तथा टेनिन आदि भी पाए जाते हैं। हरे पत्तों में प्रायः एल्केलाइड तथा उड़नशील तेल पाए जाते हैं जबकि सूखे पौधों में सेण्टोइक एसिड तथा सेण्टेलिंक एसिड भी पाए जाते हैं। औषधीय गुण: ब्राह्मी के पौधे के सभी भाग उपयोगी होते हैं। जहां तक हो सके ब्राह्मी को ताजा ही प्रयोग करना चाहिए। परंतु जहां यह उत्पन्न नहीं होती वहां इसका छाया में सुखाया हुआ पचांग ही प्रयोग करना चाहिए। सुखा कर रखे पचांग के चूर्ण को एक वर्ष तक प्रयोग किया जा सकता है। ब्राह्मी का प्रभाव मुख्यतः मस्तिष्क पर पड़ता है। यह मस्तिष्क के लिए एक पौष्टिक टाॅनिक तो है ही साथ ही यह मस्तिष्क को शांति भी देता है। लगातार मानसिक कार्य करने से थकान के कारण जब व्यक्ति की क्षमता कम हो जाती है तो ब्राह्मी का आश्चर्यजनक असर होता है। ब्राह्मी स्नायुकोषों का पोषण कर उन्हें उत्तेजित कर देती है और हम पुनः स्फूर्ति का अनुभव करने लगते हैं। मिर्गी तथा उन्माद में भी यह बहुत लाभकारी होती है। मिर्गी के दौरों में यह विद्युत स्फुरण के लिए उत्तरदायी केंद्र को शांत करती है। इससे स्नायुकोषों की उत्तेजना कम होती है तथा दौरे धीरे-धीरे कम होने लगते हैं, लगभग बिल्कुल समाप्त हो जाते हैं। उन्माद में भी यह इसी प्रकार काम करती है। उदासी, निराश भाव तथा अधिक बोलने से होने वाले स्वर भंग में भी ब्राह्मी बड़ी गुणकारी औषधि है। यदि कोई बच्चा जन्म से ही तुतलाता हो तो उसका उपचार भी ब्राह्मी द्वारा सफलतापूर्वक किया जा सकता है। अनिद्रा के उपचार के लिए ब्राह्मी चूर्ण की एक चम्मच गाय के दूध के साथ रोगी को दिया जाए तो लाभ होता है। यदि ताजा पत्ते उपलब्ध हों तो इसके 20-25 पत्तों को अच्छी तरह साफ करके आधा किलो गाय के दूध में घोट छानकर लगभग सात दिनों तक दिया जा सकता है। इससे वर्षों पुराना अनिद्रा का रोग दूर हो जाता है। मिर्गी के दौरों में ब्राह्मी का रस आधा चम्मच शहद के साथ दिया जाता है। यदि रस उपलब्ध न हो तो चूर्ण को शहद के साथ प्रयोग किया जा सकता है। शुरू में चूर्ण केवल दो ढाई ग्राम ही देना चाहिए। परंतु लाभ न हो तो दुगुना तक दिया जा सकता है। ब्राह्मी के तेल की मालिश से मस्तिष्क की दुर्बलता तथा खुश्की दूर होती है तथा बुद्धि बढ़ती है, तेल बनाने के लिए एक लीटर नारियल के तेल में लगभग 200 ग्राम ब्राह्मी का रस उबाल लें। यह तेल सिर दर्द, चक्कर, भारीपन, चिंता आदि से भी राहत दिलाता है। हिस्टीरिया जैसे रोगों में यह तुरंत प्रभावी होता है जिससे सभी लक्षण तुरंत नष्ट हो जाते हैं। चिंता तथा तनाव में ठंडाई के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त किसी ज्वर या अन्य बीमारी के कारण आई निर्बलता के निवारण के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। कुष्ठ तथा अन्य चर्म रोगों में भी यह उपयोगी है। बच्चों की खांसी या छोटी उम्र में क्षय रोग होने पर छाती पर इसका गर्म लेप करना चाहिए। खांसी तथा गला बैठने पर इसके रस का सेवन काली मिर्च तथा शहद के साथ करना चाहिए। मंद अग्नि, रक्त विकार तथा सामान्य शोथ में भी यह लाभकारी है। औषधीय उपयोग मुख्य रूप से यह मस्तिष्क की कार्य क्षमता को बढ़ाती है, मस्तिष्क की कोशिकाओं की क्षमता में वृद्धि करती है जिससे धारण शक्ति एवं स्मरण शक्ति की पुष्टि होती है। आयुर्वेदानुसार यह मस्तिष्क तर्जक कफ (सोरिब्रोस्पाइनल फ्लूड) की पुष्टि करती है जिससे स्मृति दौर्बल्य दूर होता है। सुश्रुत संहिता के अनुसार ब्राह्मी का उपयोग मस्तिष्क विकृति, नाड़ी दौर्बल्य, अपस्मार, उन्माद व स्मृति नाश में किया जाता है। यह बुद्धि बढ़ाने वाला रसायन है। ब्राह्मी पचांग का सूखा चूर्ण रोगियों को देने से मानसिक कमजोरी, तनाव, घबराहट एवं अवसाद की प्रवृत्ति में लाभ होता है। -पागलपन तथा मिर्गी के लिए ब्राह्मी की पत्तियों का स्वरस घी में उबालकर देने से लाभ होता है। - हिस्टीरिया में भी ब्राह्मी असरकारक है। - सिरदर्द, चक्कर, भारीपन तथा चिंता में ब्राह्मी तेल का प्रयोग लाभदायक है। - ब्राह्मी की मुख्य क्रिया मस्तिष्क और मज्जा तंतुओं पर होती है। मस्तिष्क को शांति देने के अतिरिक्त यह एक पौष्टिक टाॅनिक भी है। -स्वर भंग तथा तुतलाने वाले बच्चों के लिए ब्राह्मी रामबाण है। - मस्तिष्क की थकान और कार्यक्षमता कम होने पर ब्राह्मी के घटक स्नायुकोषों का पोषण कर उत्तेजित करते हैं जिससे ताजगी व स्फूर्ति आती है। - मिर्गी के रोगों में ब्राह्मी विशेष लाभकारी औषधि है। इसके सेवन से स्नायुकोषों की उत्तेजना कम होती है। धीरे-धीरे मिर्गी के दौरे कम हो जाते हैं लगभग समाप्त हो जाते हैं। औषधीपचार में ब्राह्मी स्वरस, चूर्ण, सीरप टैबलेट, कैप्सूल, ब्राह्मी तेल आदि के रूप में प्रयुक्त होती है। मिर्गी एवं हिस्टीरिया जैसे रोगों में ब्राह्मी तुरंत प्रभावशाली है। स्मरण शक्ति बढ़ाने में अत्युत्तम है- ‘ब्राह्मी’।

अंक ज्योतिष से जाने रोग से बचाओ

कुंडली में छठे भाव से रोगों की पहचान की जाती है और उसके ज्योतिषीय उपाय भी बताये जाते हैं जो ज्यादा खर्चीले होते हैं लेकिन अंक ज्योतिष से रोग की पहचान और उससे बचाव का जो अनोखा तरीका इस लेख में बताया गया है वह आम आदमी के करने और पढ़ने लायक है। जीवन में सफलता के लिये व्यक्ति का स्वस्थ होना बहुत आवश्यक है। लेकिन प्रत्येक जन्मांक के साथ अंतर्निहित सहज रोग संभावनाएं होती हैं और जन्मांक उनके बचाव का उपाय भी बताता है जिसका समुचित लाभ उठाकर व्यक्ति स्वास्थ्य-लाभ प्राप्त कर सकता है। अंक 1 अर्थात पहली, 10, 19 या 28 तारीख को पैदा हुए व्यक्तियों के लिये जो फल और जड़ी-बूटियां उपयोगी हैं, वे हैं - किशमिश, बेबूने के फूल, केसर, लौंग, जायफल, पत्थरचूर, संतरा, नींबू, खजूर, अदरक, सौंठ, जौ की रोटी और जौ का पानी आदि। अंक 1 वाले व्यक्तियों को शहद का भी खूब प्रयोग करना चाहिये। उनके 19वें, 28वें, 37वें वर्ष में उनके स्वास्थ्य में किसी न किसी रूप में महत्वपूर्ण परिवर्तन होंगे। ऐसे व्यक्तियों को अक्तूबर, दिसंबर और जनवरी माह में स्वास्थ्य रक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए। अंक 2 अर्थात 2, 11, 20 अथवा 29 तारीख को उत्पन्न हुए व्यक्तियों को पेट अथवा पाचन तंत्र के रोग हो सकते है ।उन्हें टामे ने , जहरवाद, गैस, आंखों में सूजन, रसौली या फोड़ा आदि हो सकता है। इन व्यक्तियों के लिये सलाद, गोभी, कुम्हड़ा, खीरा, ककड़ी, तरबूज, चिकोरी या कासनी, करम का साग, केला और भिंसा की भस्म आदि साग-सब्जियां और बूटियां उपयोगी होती हैं। 20वें, 25वें , 29वें, 43 वें, 47 वें, 52 वें और 65वें वर्ष में उनके स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं। उन्हें जनवरी, फरवरी और जुलाई आदि महीनों में अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अंक 3 अर्थात 3, 12, 21 या 30 तारीख को पैदा हुए व्यक्तियों में यह इच्छा होती है कि वे जो काम कर रहे हैं, उसमें कुछ बाकी न रह जाये। इसलिए अधिक कार्य करने के कारण उनके स्नायु-तंत्र पर अधिक जोर पड़ता है, इसलिए उन्हें तंत्रिकाओं में सूजन, शियाटिका दर्द और अनेक त्वचा रोग हो सकते हैं। इन लोगों के लिये चुकंदर, पत्थरचूर, विलबैरी, शतावर, चेरी, स्ट्राबेरी, सेव, शहतूत, नाशपाती, जैतून, खेंदचीनी, अनार, अन्नास, अंगूर, पोदीना, केसर, जायफल, लौंग, बादाम, अंजीर और पहाड़ी बादाम आदि फल और बूटियां उपयोगी हैं। उन्हें दिसंबर, फरवरी, जून और सितंबर में अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिये। उनके जीवन के 12वें, 21वें, 39वें, 48वें और 57वें वर्ष में स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन का योग है। अंक 4 अर्थात 4, 13, 22 या 31 तारीख को पैदा हुए लोगों को कुछ महत्वपूर्ण रोग होने का भय रहता है जिसका निराकरण होना कठिन होता है। उनको पागलपन, मानसिक अस्वस्थता, रक्त की कमी, सिर, कमर, मूत्रस्थान और गुर्दो में पीड़ा हो सकती है। इस अंक वाले व्यक्तियों के लिए पालक सर्दियों की हरी सब्जियां, लोकाट, आईलैंडमास और सोलोमन सील आदि चीजें उपयोगी हैं। अंक 4 वालों को बिजली के इलाज से अत्यधिक लाभ पहुंचता है। उन्हें मानसिक सुझाव और सम्मोहन से भी लाभ होता है। लेकिन उन्हें नशीली दवाओं, मसालेदार भोजन और लाल रंग के मांस से परहेज करना चाहिये। उन्हें जनवरी, फरवरी, जुलाई, अगस्त और सितंबर माह में स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए। स्वास्थ्य की दृष्टि से उनके लिये 12वां, 13 वां, 31 वां, 40 वां, 49वां और 58वां वर्ष महत्वपूर्ण होते हैं। अंक 5 अर्थात 5, 14 या 23 तारीख में पैदा हुए व्यक्ति बहुत अधिक तनाव में रहते हैं। वे मानसिक और स्नायविक तनाव में जीने के अभ्यस्त हो जाते हैं। उन्हें आंखों, चेहरे और हाथों के टेढे-मेढे होने का भय बना रहता है। उनके स्नायुओं पर दबाव रहता है। वे अनिद्रा अथवा अधरंग आदि के शिकार हो सकते हैं। उनके लिये सोना, आराम करना और शांत रहना ही सबसे अच्छी औषधियां हैं। अंक 5 वालों के लिए चुकंदर, ओट्समील अथवा ओट्स की रोटी के रूप में ओट्स, कराजमोद, सभी प्रकार की गिरियां, विशेष रूप से अखरोट और पहाड़ी बादाम आदि उपयोगी रहते हैं। अंक 5 वाले व्यक्तियों को जून, सितंबर और दिसंबर के महीनों में अपने स्वास्थ्य के संबंध में सतर्क रहना चाहिये। स्वास्थ्य की दृष्टि से उनके लिये 10वां, 41वां और 50वां वर्ष महत्वपूर्ण होता है। अंक 6 अर्थात 6, 15 या 24 तारीख को पैदा हुए व्यक्तियों के लिए सभी प्रकार की फलियां, चुकंदर, पालक, मज्जा, तरबूज, अनार, सेव, नाशपाती, खुबानी, अंजीर, अखरोट, बादाम, मेडन्स, फर्न का रस, डैफोनिल, कस्तूरी, वनफशा, गंधवेन और गुलाब के पत्ते आदि, फल और जड़ी-बूटियां उपयोगी रहती है। इन व्यक्तियों को मई, अक्तूबर और नवंबर के महीने में अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिये। इनका 15वां, 24वां, 42वां, 51वां और 60वां वर्ष स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है। अंक 7 अर्थात किसी भी महीने की 7, 16 या 25 तारीख को पैदा हुए व्यक्ति अन्य श्रेणी के व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक चिंतित रहते हैं। जब तक वे ठीक रहते हैं, जितना चाहे काम करते रहते हैं। परंतु जब परिस्थितियों के कारण चिंतित हो जाते हैं तो सोचने लगते हैं कि सब चीजें गलत हैं और वे निराश हो जाते हैं। उनके आसपास के वातावरण का उन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। सही मूल्यांकन किये जाने पर वे कोई भी उत्तरदायित्व लेने को तैयार रहते हैं। उन्हें जो भी काम दिया जाता है, वे उसके प्रति बहुत सजग रहते हैं, परंतु वे शरीर की अपेक्षा मानसिक रूप से सशक्त होते हैं। इसलिए उनकी देहयष्टि दुबली-पतली होती है और वे अपनी शक्ति से अधिक कार्य करने का यत्न करते हैं। उनकी त्वचा बहुत मुलायम तथा चोट आदि के प्रति संवेदनशील होती है। किसी ऐसी चीज के खाने से जो हजम न हो या अनुकूल न हो तो शरीर पर फुंसियां निकल आती है। इन व्यक्तियों के लिये सलाद, गोभी, चिंकोरी, खीरा, ककड़ी, अलसी, खुंबी, सेव, अंगूर और सभी फलों के रस उपयोगी वस्तुएं हैं। जनवरी, फरवरी, जुलाई और अगस्त के महीने में इन लोगों को स्वास्थ्य के प्रति विशेष सतर्क रहना चाहिये। स्वास्थ्य परिवर्तन की दृष्टि से 7वां, 16वां, 25वां, 34वां, 43वां, 52वां और 61वां वर्ष इनके लिये महत्वपूर्ण वर्ष है। अंक 8 अर्थात किसी भी महीने की 8, 17 या 26 तारीख को पैदा हुए व्यक्तियों को अन्य लोगों की अपेक्षा जिगर, पित्ताशय, आंतों तथा मलोत्सर्जन से संबंधित कष्ट होने की संभावना रहती है। उन्हें सिरदर्द, रक्तरोग, वाहनों से जहरबाद तथा गठिया आदि बीमारियों के होने का भय रहता है। उन्हें जहां तक संभव हो, फलों, जड़ी-बूटियों और सब्जियों का प्रयोग करना चाहिये। ऐसे व्यक्तियों को पालक, गाजर, केला, अजमोद तथा जंगली गंधवेन आदि का प्रयोग करना चाहिये तथा दिसंबर, जनवरी, फरवरी और जुलाई महीनों में स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिये। शक्ति से अधिक कार्य करने से कष्ट हो सकता है। उनके स्वास्थ्य के लिये 17वां, 26वां, 35वां और 62वां वर्ष महत्वपूर्ण हो सकता है। अंक 9 अर्थात किसी भी महीने की 9, 18 या 27 तारीख को उत्पन्न हुए व्यक्तियों को सभी तरह के बुखार, खसरा, माता, चिकनपॉक्स, चकत्ते आदि रोग होने का भय रहता है। उन्हें अधिक पौष्टिक भोजन और मद्य सेवन से बचना चाहिये। उन्हें प्याज, लहसुन, मूली, अदरक, मिर्च, रेवन्दचीनी, तोरी, मजीठ और बिच्छू बूटी के रस का सेवन करना चाहिये। ऐसे व्यक्तियों को अप्रैल, मई, अक्तूबर और नवंबर के महीनों में अपने स्वास्थ्य का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिये। स्वास्थ्य की दृष्टि से उनके जीवन का 9वां, 18वां, 27वां, 36वां, 45वां और 63वां वर्ष महत्वपूर्ण होते हैं। जिन जड़ी-बूटियों का यहां वर्णन किया गया है, वे प्रायः सभी देशों में प्राप्त होती हैं और प्राकृतिक रूप से रोगनाशक हैं।

ज्योतिष एवं वास्तु के माध्यम से ग्रह चिकित्सा

ज्योतिष के माध्यम से रोग की प्रकृति, उसका प्रभाव तथा उसके कारणों का विश्लेषण किया जा सकता है। ज्योतिष और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का गहरा संबंध रहा है। प्राचीन काल में वैद्यों को चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ ज्योतिष विज्ञान का अध्ययन कराया जाता था, ताकि वे सम्मिलित प्रयास से रोग का निदान कर सकें। ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियों, 9 ग्रहों और 27 राशियों के नक्षत्रोें के माध्यम से रोग की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। कालपुरुष के विभिन्न अंगों पर राशियों का आधिपत्य बताया गया है जिसके आधार पर हम किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं। जन्म कुंडली में स्थित प्रत्येक राशि तथा ग्रह शरीर के किसी न किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस ग्रह का जिस राशि पर दूषित प्रभाव होता है उससे संबंधित अंग पर रोग के प्रभाव का पता लगाया जा सकता है। इस संबंध में रोग की अवधि में किस ग्रह की महादशा चल रही है, ग्रह कुंडली में कौन से भाव में स्थित या दृष्ट है, ग्रह पापी है या शुभ है इन सब बातों से रोग की जानकारी प्राप्त होती है। रोग की जानकारी के लिए लग्न, चंद्र एवं सूर्य कुंडलियों का अध्ययन करना आवश्यक होता है और उसके लिए कालपुरुष को समझना भी आवश्यक होता है। सामान्यरूप से लग्न मस्तिष्क का, चंद्रमा मन, पेट तथा इंद्रियों का और सूर्य आत्मा और हृदय का प्रतिनिधित्व करता है। 1.मेष, सिंह, धनु राशियां अग्नि तत्व हैं। 2.वृष, कन्या, मकर राशियां पृथ्वी तत्व हैं। 3. मिथुन, तुला, कुंभ राशियां वायु तत्व हैं। 4.कर्क, वृश्चिक, मीन राशियां जल तत्व हैं। इन तत्वों की प्रकृति के आधार पर भी रोग की पहचान आसानी से की जा सकती है। यदि अग्नि तत्व राशियां कुंडली में दूषित हों, पाप प्रभाव में हों अथवा किसी शुभ ग्रह से दृष्ट न हों और पाप ग्रह की महादशा चल रही हो तो अनिद्रा, मूर्छा, सिर का दर्द, माइग्रेन आदि बीमारियों का संकेत देती हैं।यदि पृथ्वी तत्व राशियां कुंडली में दूषित हों, पाप प्रभाव में हों अथवा किसी शुभ ग्रह से दृष्ट न हों और पाप ग्रह की महादशा चल रही हो तो त्वचा एवं हड्डियों से संबंधित रोग तथा वायु विकार, गठिया, वाहन दुर्घटना आदि का संकेत देती हैं। यदि वायु तत्व राशियां कुंडली में दूषित हों, पाप प्रभाव में हों अथवा किसी शुभ ग्रह से दृष्ट न हों और पाप ग्रह की महादशा चल रही हो तो मानसिक विकार, तनाव, पक्षाघात, मतिभ्रम आदि का संकेत देती हैं। यदि जल तत्व राशियां कुंडली में दूषित हों, पाप प्रभाव में हों अथवा किसी शुभ ग्रह से दृष्ट न हों और पाप ग्रह की महादशा चल रही हो तो ट्यूमर, कैंसर, हिस्टीरिया, घबराहट आदि का संकेत देती हैं। इसी प्रकार यह भी जान सकते हैं कि ग्रहों के दूषित होने और पाप ग्रह से दृष्ट होने से एवं उनकी महादशा में कौन-कौन सी बीमारियां हो सकती हैं। यदि सूर्य दूषित हो तो मस्तिष्क रोग, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, पेट एवं नेत्र विकार, बुखार, मिरगी, सिर दर्द आदि हो सकते हैं। यदि चंद्रमा दूषित हो तो नेत्र रोग, ठंड, कफ, दमा, दस्त, मानसिक बीमारी आदि हो सकते हैं। यदि मंगल दूषित हो तो तीव्र ज्वर, चेचक, बवासीर, नासूर, साइनस, गर्भपात, लकवा, फोड़ा, गर्दन के रोग, पोलियो आदि हो सकते हैं। यदि बुध दूषित हो तो मस्तिष्क विकार, पक्षाघात, दौरे आना, हकलाहट, सुनने तथा बोलने की शक्ति का ह्रास आदि हो सकते हैं। यदि बृहस्पति दूषित हो तो पीलिया, यकृत संबंधी रोग, मोतियाबिंद, साइटिका, गठिया की बीमारी आदि हो सकते हैं। यदि शुक्र दूषित हो तो चमड़ी के रोग, कोढ़, गुप्तांग रोग, नेत्र रोग, दाद, मूत्र रोग आदि हो सकते हैं।यदि शनि दूषित हो तो दांत दर्द, पाइरिया, बहरापन, कैंसर, मूर्छा, गठिया एवं अन्य जटिल बीमारियां हो सकती हैं। यदि राहु-केतु दूषित हों तो राहु शनि के जैसे तथा केतु मंगल के जैसे रोग प्रदान करता है अथवा दोनों जिस राशि-भाव में बैठते हैं, उसके अनुरूप रोग देते हैं। सामान्यरूप से नैसर्गिक शुभ ग्रह गुरु, शुक्र, बुध तथा चंद्रमा पाप ग्रह शनि, मंगल, राहु, केतु तथा सूर्य से पीड़ित होने पर अपनी दशावधि में रोग देते हैं। इन सभी ग्रहों से होने वाले रोगों से मुक्ति पाने के लिए उपाय भी दिए गए हैं। जिन ग्रहों से संबंधित बीमारियां हों उनसे संबंधित दान, पूजा, मंत्रों के जप आदि से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए श्रद्धा, विश्वास एवं निष्ठा का होना जरूरी है। रोगी स्वयं इन उपायों का प्रयोग करे तो उसे अधिक लाभ मिलता है। स्वयं करने में सक्षम नहीं हो तो वह परिवार के किसी सदस्य से अथवा किसी योग्य ब्राह्मण से भी कार्य संपादित करा सकता है यदि मारक ग्रह की महादशा हो तो महामृत्युंजय मंत्र का जप करना श्रेस्यकर होता है और यदि अधिक ग्रह दूषित हों तो नवग्रह यंत्र धारण करके रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है। वास्तु, आयुर्वेद एवं रोग: प्राचीन धर्म ग्रंथों में वास्तु और आयुर्वेद का गहरा संबंध बताया गया है। आयुर्वेद में तीन तरह के दोषों वात (हवा), पित्त (अग्नि) तथा कफ (जल) का विचार किया जाता है तथा इन तीनों का विश्लेषण करके ही उचित दवाओं का निर्धारण होता है। वात, पित्त और कफ अर्थात हवा, अग्नि और जल के नियमों के आधार पर लोगों के स्वभाव एवं आदतों से यह निर्धारित किया जा सकता है कि उनमें इन तत्वों में से किस तत्व की प्रधानता है और इसके आधार पर उपाय भी किए जा सकते हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर-पश्चिम (वायव्य) दिशा हवा, दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशा अग्नि और उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा जल का क्षेत्र मानी जाती है। कोई व्यक्ति यदि वात तत्व से प्रभावित है तथा अपना ज्यादा समय अपने घर या दफ्तर के उत्तर-पश्चिम (वायव्य) दिशा में बिताता है तो उसके शरीर मंे वात तत्व और ज्यादा संग्रहीत हो जाता है। इसका उसके स्वास्थ्य तथा आदतों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। वास्तु के नियमों के अनुसार स्वस्थ रहने के लिए किसी भी व्यक्ति को अपने प्रभावी तत्व के क्षेत्र में कम से कम समय बिताना चाहिए। कोई व्यक्ति किस तत्व से प्रभावित है इसकी जानकारी के लिए उसके स्वभाव का अध्ययन करना आवश्यक होता है। वात तत्व से प्रभावित व्यक्ति का स्वभाव आमतौर पर हवा की तरह, पित्त तत्व से प्रभावित व्यक्ति का स्वभाव अग्नि की तरह तथा कफ तत्व से प्रभावित व्यक्ति का स्वभाव जल की तरह होता है। वात तत्व से प्रभावित व्यक्ति को अपना ज्यादा समय दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पूर्व में बिताना चाहिए। ऐसा करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हो सकता है। यदि उत्तर-पश्चिम दिशा का इस्तेमाल ज्यादा करना पड़ रहा हो तो नीले, हरे तथा उजले रंगों का इस्तेमाल करके इस क्षेत्र में संतुलन स्थापित किया जा सकता है। पित्त तत्व से प्रभावित व्यक्ति को अपना ज्यादा समय दक्षिण-पश्चिम तथा उत्तर-पूर्व में बिताना चाहिए। ऐसा करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हो सकता है। यदि दक्षिण-पूर्व दिशा का इस्तेमाल ज्यादा करना पड़ रहा हो तो ठंडे रंगों जैसे नीले, हरे तथा उजले रंगों का प्रयोग करके इस क्षेत्र में संतुलन स्थापित किया जा सकता है। दक्षिण-पूर्व में ज्यादा समय बिताने, शयन करने से डायबिटिज और यकृत की बीमारी हो सकती है। इससे बचने के लिए पित्त तत्व से प्रभावित व्यक्ति को दक्षिण-पश्चिम में शयन करने की सलाह दी जा सकती है। कफ तत्व से प्रभावित व्यक्ति आमतौर पर सुबह देर से उठता है तथा सर्दी जुकाम से पीड़ित रहता है। उसे साइनस होने की संभावना बनी रहती है और यह भी हो सकता है कि वह आलस्य तथा मोटापा से भी परेशान हो। कफ तत्व प्रभावित व्यक्ति को अपना ज्यादा समय दक्षिण-पूर्व में बिताना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि जल तत्व को अग्नि सोखती है। ऐसे में यदि किसी कारणवश उत्तर-पूर्व क्षेत्र का ज्यादा इस्तेमाल करना पड़े तो गाढ़े रंगों जैसे लाल, पीला, नारंगी आदि रंगों का इस्तेमाल कर इन दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। इस प्रकार कफ देाष का निदान हो जाएगा क्योंकि ये रंग अग्नि तत्व से संबंधित हैं। ग्रह चिकित्सा से रोग से बचाव: जातक के जन्म के समय जिस राशि में शुभ ग्रह होते हैं, शरीर का उससे संबंधित भाग सुदृढ़, निरोगी एवं पुष्ट होता है एवं जिस राशि में पाप ग्रह होते हैं शरीर के उस राशि से संबंधित भाग में रोग होता है। ग्रहों के शुभ प्रभाव मंे वृद्धि और अशुभ प्रभाव से छुटकारा पाने के लिए मंत्र, रत्न, औषधि, दान व स्नान का प्रयोग किया जाता है। मनीषियों ने इसे ग्रह चिकित्सा कहा है। इसमें मंत्र की महिमा तथा उसके प्रभाव को सर्वाेच्च प्राथमिकता दी गई है। फलित ग्रन्थों में स्थान स्थान पर इसका उल्लेख है जबकि भारतीय वाङ्मय में इस संबंध में स्वतंत्र शास्त्र रचित है। मंत्र चिकित्सा: मंत्र चिकित्सा में व्यक्ति सुप्त या लुप्त शक्ति को जागृत कर महनीय शक्ति के साथ सामंजस्य स्थापित करता है। यह गूढ़ ज्ञान ही ‘मंत्र’ कहलाता है। इसमें साधक को एक हाथ से भुक्ति तथा दूसरे हाथ से मुक्ति प्राप्त होती है। मंत्र साधना से जीवन की किसी भी समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। हमारे प्राचीन ग्रन्थों में प्रत्येक ग्रह के नाम, मंत्र, तांत्रिक मंत्र तथा उनकी जप संख्या निर्धारित है। रत्न चिकित्सा: रत्न के द्वारा ग्रहों के अनिष्ट प्रभाव को कम करके उसके शुभ प्रभाव में वृद्धि की जा सकती है। इसलिए अनिष्ट से बचने व शुभ प्रभाव में वृद्धि के लिए रत्न धारण करने का विधान प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। सूर्य के लिए माणिक्य, चंद्रमा के लिए मोती, मंगल के लिए मूंगा, बुध के लिए पन्ना, गुरु के लिए पुखराज, शुक्र के लिए हीरा, शनि के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद तथा केतु के लिए लहसुनिया रत्न का प्रयोग किया जा सकता है। औषधि चिकित्सा: विभिन्न ग्रह जातक के शारीरिक व मानसिक क्षमताआंे को कभी सकारात्मक तो कभी नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। इस निमित्त वैदिक ज्योतिष के प्रमुख अंग आयुर्वेद शास्त्र की मदद ली जा सकती है। ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए निश्चित औषधियों से स्नान ग्रह चिकित्सा का एक अंग है। इसके अलावा तीर्थ स्थानों पर औषधियुक्त जल से स्नान करने से चमत्कारी परिणाम सामने आते हैं। दान: जन्म जन्मांतरों के अर्जित कर्मों के प्रभाव से जातक को जीवन में कभी अच्छा तो कभी बुरा फल मिलता है। अशुभ कर्मों के प्रायश्चित व शुभ कर्मों के पुण्य को बढ़ाने के लिए उनके सूचक ग्रहों के अनुसार दान करने का विधान है। सूर्य: गेहूं, गुड़, लाल चंदन, गुलाब का फूल, माणिक, लाल गाय, गुलाबी वस्त्र, ताम्र पत्र, नारियल आदि दान करने चाहिए। चंद्रमा: शंख, मोती, चावल, सफेद चंदन, आटा, कपूर, घी, दही, चीनी, मिठाई, मिश्री आदि दान करने चाहिए। शनि: सरसों तेल, नीले वस्त्र, नारियल, काली उड़द, काली दाल, मूंगफली, नीलम, जूते, शनि चालीसा आदि दान करने चाहिए। मंगल: गुड़, घी, सोना, मसूर, मूंगा, मीठी रोटी, नारियल, केसर, गेहूं, लाल वस्त्र, लाल पुष्प, हनुमान चालीसा आदि दान करने चाहिए। गुरु: पीले वस्त्र, पीले खाद्य पदार्थ, कर्मकांड की किताबें, माला, विष्णु की मूर्ति, पीला कंबल, दाल आदि दान करने चाहिए। राहु: मूंगफली, काला/भूरा कंबल, काला पुष्प, नारियल, सप्त धान, गोमेद, चांदी से बना सर्प का जोड़ा आदि दान करने चाहिए। केतु: मूंगफली, काला/भूरा कंबल, काला पुष्प, नारियल, सप्त धान, लहसुनिया, चांदी से बना सर्प का जोड़ा आदि दान करने चाहिए। बुध: साग-सब्जी, पांच प्रकार के फल, केला, चीनी, हरी इलायची, हाथी दांत, सोना, पन्ना, ओनेक्स, हरा वस्त्र, हरा फूल, पंचांग, धार्मिक किताबें, दुर्गा चालीसा आदि दान करने चाहिए। शुक्र: दूध, दही, घी, शहद, आटा, चावल, सोना, हीरा, फिरोजा, सफेद पुष्प, सफेद वस्त्र, सुगंधित पदार्थ आदि दान करने चाहिए। इस प्रकार हमने देखा कि ज्योतिष एक विज्ञान है जिसमे अन्य सभी प्रकार की जानकारी के साथ रोगोें के निदान के उपाय भी हैं और बड़े ही सरल तरीके से रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है।

Deaf and Dumbness and planets

ars are very important sense organs of our body, associated with the sense of hearing. In a Nativity, the 3rd house and sign Gemini (3rd house of natural zodiac) are connected with hearing; and Aakash Tattva, governed by Jupiter, is responsible for manifesting the Sound, which the ears can hear. The 2nd house and sign Taurus (the 2nd house of natural zodiac) is connected with organs of speech (Larynx and Vocal Cords etc). The planet Mercury is karaka of expression and communication. Any affliction to the planets Jupiter and Mercury, 2nd and 3rd house of the nativity and Gemini and Taurus at the time of cause the problem of hearing and speech. Mercury governs the nervous system and nerves. Damage to speech and hearing is due to sensory loss or afflicted nerves responsible for these functions. And finally, Lagna and Lagna-lord should be associated with these afflictions. If Mercury is conjuncted or aspected or square or opposition with Saturn or eclipsed creates deformity with speech such as stammering, because Mercury is 6th lord of natural zodiac. If Mercury is afflicted as above by Mars or Saturn in watery sign, Cancer, Scorpio and Pisces, also known as Mute sign, the native will suffer from impediments in speech. If Mercury is in first dreshkon of Scorpio and in opposition of Moon, the native has impediments in speech. Mercury in 6th along with lord of the lagna and conjuncted or afflicted by Sun or Mars or Saturn it causes impediments in Speech. If Saturn is posited in any Chatushpada sign, Aries, Taurus, Leo, first half of Capricorn and 2nd half of Sagittarius, or watery sign, it causes impediments in speech and hearing. It is also to be noted that if the planet is posited in Mrityu bhaga of the sign such as Gemini- Sagittarius 14 to 18 degrees the planet will be treated as afflicted. Airy sign, Gemini, Libra and Aquarius, if afflicted cause impediments in hearing. We should not forget that 6th house is the house of diseases and 8th and 12th houses are included in trik houses. The planets posited in these houses and the position of the lord of the these houses in any house or association or aspect of the lord of these houses with the lord of other houses destroy the signification of that house whose lord is associated or aspected. More over dasha and bhukti should also be of related planets. If the afflicted planets are under the influence of benefic planet, there will be some protection to the native. The eclipse during the birth of child may cause impediment of speech if Mercury is afflicted. The retrograde planet, even retrograde Jupiter in lagna, does not give protection. The native was born in the dasha of Mars/Venus. The Mars is posited in 2nd house in enemy sign with Moon and Jupiter. Jupiter is 8th lord. So 2nd house is afflicted. 3rd house is occupied by Saturn and Venus, the dasha nath, posited in enemy sign. The both signs are airy and watery. Venus is lagna lord also. There is no benefic aspect to the planet. Mercury is retrograde. Lagna is aspected by Rahu also. Sign Gemini and Taurus are also afflicted. In Navamsha, Venus is posited with Mars and Jupiter in Sagittarius and aspected by Saturn. Saturn is aspected by Rahu. Mercury is posited in 6th. So we find that lord of dasha and bhukti, 2nd and 3rd house and sign Gemini and Taurus are afflicted at the time of birth and the native was deaf and dumb. The native was born in Venus/Ketu. The lagna lord Moon is posited in 2nd house and aspected by Jupiter, the 6th lord. Lagna is aspected by Ketu, the lord of bhukti. The 3rd Mercury is retrograde and posited in enemy sign and aspected by 6th lord, Jupiter and Saturn, the 8th lord. The 2nd lord Sun is posited with enemy Venus, the dispositor of Rahu. All the airy and watery signs are afflicted. In Navamsha, Venus is lagna lord and aspected by Saturn and Ketu is posited in 2nd house. The lord of Dasha and bhukti at birth, 2nd and 3rd lord and house and Taurus and Gemini are afflicted. The native is deaf and dumb. The native was born in the dasha of Saturn/Ketu. The Saturn is yoga karaka for the lagna, but posited in enemy sign with Rahu. Ketu is posited in 5th house aspected by Saturn. Lagna is aspected by 7th lord Mars and lagna lord Venus is associated with Mars and posited in neutral sign. The 2nd and 7th lord Mars is posited in 7th with Venus. 3rd lord Jupiter is exalted in 10th with Moon, but aspected by Mars. Ketu is in Airy sign. Taurus and Gemini are also afflicted. In Navamsha lagna is afflicted by Mars and Rahu, 2nd lord Mars is afflicted by Rahu and 3rd lord Venus is posited in 8th. As the Jupiter is exalted and posited in the strongest Kendra 10th with Moon, so the native improved after the dasha. The native was born in Mars/Moon/Ketu. Mars is 2nd and 7th lord, Maraka and is debilitated in strongest Kendra 10th. The Jupiter is exalted. Therefore there is cancellation of debilitation. But lagna lord Venus is posited in enemy sign with Mars, and aspected by retrograde Saturn. Moon and lagna is aspected by Ketu. Moon is also aspected by Mars. 2nd house is aspected by Sun and 3rd house is occupied by Rahu and 3rd and 6th lord Jupiter is associated with lagna lord Venus and Mars. The Taurus and Gemini are also afflicted. In Navamsha, lagna is occupied by Sun, Taurus and Gemini are afflicted.2nd lord Moon is in 6th, Venus is posited in enemy sign in 3rd.

ऋतुराज का आगमन

वसंत पंचमी का उत्सव माघ मास शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व ऋतुराज वसंत के आने की सूचना देता है। इस दिन से ही होरी तथा धमार गीत प्रारंभ किये जाते हैं। गेहूं तथा जौ की स्वर्णिम बालियां भगवान को अर्पित की जाती हैं। नर-नारी, बालक-बालिकाएं सभी वासंती एवं पीत वस्त्र धारण करते हैं। वसंत पंचमी को श्री पंचमी और श्री सरस्वती जयंती के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और मां सरस्वती के पूजन से अभीष्ट कामनाएं सिद्ध हो कर स्थिर लक्ष्मी और विद्या-बुद्धि की प्राप्ति होती है। वसंत पंचमी के आगमन से शरीर में स्फूर्ति और चेतनाशक्ति जागृत होती है। बौराये आम वृक्षों पर मधुप (भौंरे) गुंजार करते हैं तथा कोयल की कूक मुखरित होने लगती है। गुलाब, मालती आदि फूल खिल जाते हैं। मंद सुगंध वाली शीतल पवन बहने लगती है। इस ऋतु के प्रमुख देवता काम तथा रति हैं। अतः वसंत ऋतु कामोद्दीपक होता है। चरक संहिताकार का कथन है कि इस ऋतु में स्त्रियों तथा वनों का सेवन करना चाहिए। काम तथा रति की विशेष पूजा करनी चाहिए। वेद में कहा गया है कि ‘वसंते ब्राह्मण मुपनयीत‘। वेद अध्ययन का भी यही समय था। बालकों को इसी दिन विद्यालय में प्रवेश दिलाना चाहिए। केशर से कांसे की थाली में ‘ऊॅँ ऐं सरस्वत्यै नमः‘ मंत्र को नौ बार लिख कर थाली में गंगा जल डाल कर, जब लिखित मंत्र पूर्णतया गंगा जल में घुल जाय, तो उस जल को मंद बुद्धि बालक को पिला देने से उसकी बुद्धि प्रखर होती है। माघ शुक्ल पंचमी को उत्तम वेदी पर नवीन पीत वस्त्र बिछा कर अक्षतों का अष्टदल कमल बनाएं। उसके अग्रभाग में गणेश जी और पृष्ठ भाग में ‘वसंत‘- जौ, गेहूं की बाल का पुंज (जो जल पूर्ण कलश में डंठल सहित रख कर बनाया जाता है) स्थापित कर सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन करें। पुनः उक्त पुंज में रति और कामदेव का पूजन करें। उन पर पुष्प से अबीर आदि के छींटे लगा कर वसंत सदृश बनाएं। तत्पश्चात् ‘शुभा रतिः प्रकर्तव्या वसंतोज्ज्व्ल भूषणा। नृत्यमाना शुभा देवी समस्ताभरणैर्युता।। वीणावादनशीला च मदकर्पूर चर्चिता।।‘ से ‘रति‘ का और कामदेवस्तु कर्तव्यों रूपेणाप्रतिमों भुवि। अष्टबाहुः स कर्तव्यः शंखपद्म विभूषणः।। चापबाण करश्चैव मदादचिंत लोचनः। चतस्त्रस्तस्य कर्तव्याः पत्न्यो रूपमनोहराः। चत्वारश्च करास्त्तस्य कार्या भार्यास्त्तनोपगाः।। केतुश्च मकरः कार्यः पंचबाण मुखो महान्। मंत्र से कामदेव का ध्यान करके विविध प्रकार के फल, पुष्प और पत्रादि समर्पण करें, तो गृहस्थ जीवन सुखमय हो कर प्रत्येक कार्य में उत्साह प्राप्त होता है। वसंत ऋतु रसों की खान है और इस ऋतु में वह दिव्य रस उत्पन्न होता है, जो जड़-चेतन को उन्मत्त करता है। इसकी कथा इस प्रकार है: भगवान विष्णु की आज्ञा से प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि रचना की। स्वयं द्वारा सृष्टि रचना कौशल को जब इस संसार में ब्रह्मा जी ने नयन भर के देखा, तो चहुं ओर सुनसान निर्जनता ही दिखायी दी। उदासी से संपूर्ण वातावरण मूक सा हो गया था, जैसे किसी की वाणी ही न हो। इस दृश्य को देखकर ब्रह्मा जी ने उदासी तथा सूनेपन को दूर करने हेतु अपने कमंडल से जल छिड़का। उन जल कणों के पड़ते ही वृक्षों से एक शक्ति उत्पन्न हुई, जो दोनों हाथों से वीणा बजा रही थी तथा दो हाथों में क्रमशः पुस्तक तथा माला धारण किये थी। ब्रह्मा जी ने उस देवी से वीणा बजा कर संसार की उदासी, निर्जनता, मूकता को दूर करने को कहा। तब उस देवी ने वीणा के मधुर-मधुर नाद (ध्वनि) से सब जीवों को वाणी प्रदान की। इसी लिए उस अचिंत्य रूप लावण्य की देवी को सरस्वती कहा गया। यह देवी विद्या-बुद्धि देने वाली है। अतः इस दिन ‘ऊॅँ वीणा पुस्तक धारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नमः‘ इस नाम मंत्र से गंधादि उपचारों द्वारा पूजन करें।

चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी

अगस्त्य संहिता में कहा है: चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि में पवित्र पुनर्वसु नक्षत्र में गुरु नवांश में पांच ग्रहों के उच्च राशि में स्थित होने पर, मेष में सूर्य के प्राप्त होने पर तथा कर्क लग्न में कौशल्या महारानी से (महाराज दशरथ के आंगन में) परब्रह्म परमात्मा का आविर्भाव हुआ। उसी दिन सदा उपवास रूपी व्रत करना चाहिए। उसी दिन रघुनाथ के भक्त पृथ्वी पर जागरण करें। यह तिथि मध्याह्न कालव्यापिनी ग्रहण करें। यदि चैत्र शुक्ल नवमी तिथि पुनर्वसु नक्षत्र युक्त होकर मध्याह्नव्यापिनी हो, तो वह महापुण्यप्रद होती है। कहा भी है: चैत्र मास की नवमी तिथि में स्वयं हरि, राम के रूप में उत्पन्न हुए। यदि पुनर्वसु नक्षत्र से नवमी तिथि संयुक्त हो, तो संपूर्ण कामनाओं को देने वाली होती है। यह राम नवमी करोड़ों सूर्य ग्रहों से अधिक फलदायक होती है। संपूर्ण भारतवर्ष में हिंदू परिवारों में विशेष रूप से मर्यादा पुरुषोत्तम राम का यह जन्म महोत्सव मनाया जाता है। प्रत्येक राम मंदिर में भक्तों द्वारा श्री राम का गुणगान किया जाता है। स्थान-स्थान पर कई दिन पूर्व से ही गोस्वामी तुलसीदास के अमर काव्य ‘रामचरित मानस’ का पाठ, ‘हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।’ महामंत्र का जाप, दिव्य राम कथा, श्री राम की प्रतिमा का पंचामृत से अभिषेक, गंधोदक-शुद्धोदक स्नान, धूप, दीप, नैवेद्यादि से पंचोपचार एवं षोडशोपचार पूजा, नृत्य, गीत, भजन आदि के कार्यक्रम सानंद संपन्न किये जाते हैं। बाबा तुलसीदास ने श्री रामचरित मानस की रचना इसी दिन से अयोध्या में आरंभ की थी। भगवान श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या में इस दिन बड़ा भारी मेला लगता है। दूर-दूर के अंचलों से आये भक्त जन राम लला के दर्शन एवं सरयू स्नान से कृत कृत्य होकर आदिपुरुष की अतीत लीलाओं में खो जाते हैं। देवता भी इस परम उत्सव को देखने के लिए निज विमानों और वाहनों पर बैठकर इस अलौकिक छटा का आनंद लेते हैं। भक्तों द्वारा विभिन्न प्रकार की आरतियां, स्तोत्र पाठ, प्रार्थनाएं की जाती हैं। पुनः पुष्पांजलि, क्षमा प्रार्थना और भोग-प्रसाद एवं भंडारे के भी विशाल आयोजन संपन्न होते हैं। सत्यता है कि जो एक बार प्रभु राम के सम्मुख हो जाता है, उसके करोड़ों जन्म के पातक नष्ट हो जाते हैं। सन्मुख होहि जीवन मोहिं जब हीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तब हीं।। यह व्रत सभी वर्णों के नर-नारियों को समान रूप से करना श्रेयस्कर है, क्योंकि भगवान राम की मर्यादाएं जनमानस के लिए विशेष लाभकारी हैं। भाई का भाई के प्रति, माता का पुत्र के प्रति, पुत्र का पिता के प्रति, पति का पत्नी के प्रति, पत्नी का पति के प्रति, वीर का वीर के प्रति, शत्रु का शत्रु के प्रति, मित्र का मित्र के प्रति, पुत्र का माता के प्रति आदि जो कर्तव्य हैं, वे भगवान श्री राम के चरित्र से ही प्राप्त हैं। मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ (धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष) इस व्रत से सिद्ध हो जाते हैं। यह वह राम है, जो कण-कण में व्याप्त है, जड़ चेतन में व्याप्त है, ऊर्जा शक्ति को प्रवाहित करने वाला है। यह पे्रम से प्रगट होने वाला राम है- हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम से प्रगट होहि मैं जाना। अतः ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम सबके अंतर्यामी परब्रह्म परमात्मा सच्चिदानंद स्वरूप तापत्रय नाशक श्री राम के युगल चरणों में कोटिशः साष्टांग प्रणाम: नीलम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्। पाणौ महासायकचारुचापं, नमामि रामं रघुवंशनाथम्।। श्री रामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि, श्री रामचन्द्र चरणौ वचसा गृणामि। श्री रामचन्द्र चरणौ शिरसा नमामि, श्री रामचन्द्र चरणौ शरणं प्रपद्ये।। श्री राम जय राम जय जय राम। धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो, सनातन धर्म की जय हो। विचार शुद्धि के लिए: ताके जुग पद कमल मनावउं। जासु कृपां निरमल मति पावउं।ं जीवन सुधारने के लिए: मोरि सुधारिहि सो सब भांती। जासु कृपा नहिं कृपा अघाती।। बुद्धि को धर्म में लगाने के लिए: जग मंगल गुनग्राम राम के। दान मुकुति धन धरम धाम के।। प्रारब्ध दोष निवृत्ति के लिए: मंत्र महामनि बिषय ब्याल के। मेटत कठिन कुअंक भाल के।। मंगल कल्याण के लिए: मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवऊ सो दशरथ अजिर बिहारी।। कार्यसिद्धि के लिए: जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा। करहु सो बेगि दास मैं तोरा।। भगवद्दर्शन की व्याकुलता के लिए: उर अभिलाष निरंतर होई। देखिय नयन परम प्रभु सोई।। पुत्र प्राप्ति के लिए: प्रेम मगन कौशल्या निसि दिन जात न जान। सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।। विवाह कार्य के लिए: देवि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब हो हिं सुखारे।। सुनि सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। गुप्त मनोरथ सिद्धि के लिए: मोर मनोरथ जानहु नीके। बसहु सदा उर पुर सबही के।। शंकर भगवान की प्रसन्नता के लिए: आसुतोष तुम्ह अवठर दानी। आरति हरहु दीन जनु जानी।। पाप नाश के लिए: राम राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि न पाप पुंज समुहाहीं।। भगवत भक्ति की वृद्धि के लिए: सीता राम चरन रति मोरे। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरे।। भगवान के चरणों की प्रीति के लिएः यह बर मागऊं कृपानिकेता। बसहु हृदय श्री अनुज समेता।। संपूर्ण मनोरथों की सिद्धि के लिए भव भेषज रघुनाथ जस सुनहि जे न अरु नारि। तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।। किंकर्तव्यविमूढ़ावस्था के समय: तरु पल्लव महुं रहा लुकाई। करइ विचार करौं का भाई।। मानसिक दुर्बलता को दूर करने के लिए: गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही।। संकट नाश के लिए: दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।। यात्रा में दुर्घटना से बचाव के लिए चलत बिमान कोलाहल होई। जय रघुवीर कहइ सबु कोइ।। सुख-संपत्ति के लिए: जो सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख संपति नाना विधि पावहिं।। हार्दिक इच्छा की पूर्ति के लिएः जो इच्छा करिहहु मन माहीं। हरि प्रसाद कछु दुर्लभ नाहीं।।

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