Thursday 23 June 2016

ज्योतिष द्वारा शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं का निवारण.........

कुंडली में ग्रहों की स्थिति और सितारों की नजर बताती है। आपके करियर का राज:- हर विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में कठिन परिश्रम कर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है। अपने भाग्य और कड़ी मेहनत के बल पर ही कोई, विद्यार्थी परीक्षा में श्रेष्ठ अंकों को प्राप्त कर सकता है। किसी भी तरह की परीक्षा में इंटरव्यू में जाने के पूर्व बड़ों का अशीर्वाद लेना चाहिए। मीठे दही में तुलसी का पत्ता मिलाकर सेवन करना चाहिए इस तरह के उपायों से सफलता प्राप्त करने में सहायता मिलती है। इन्हीं में कुछ मंत्रों यंत्रों एवं सरल टोटकों के प्रभाव से अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकती है। मंत्र: ।। ¬ नमो भगवती सरस्वती बाग्वादिनी ब्रह्माणी।। ।। ब्रह्मरुपिणी बुद्धिवर्द्धिनी मम विद्या देहि-देहि स्वाहा।। अपनी जिह्ना को तालु में लगाकर माॅ सरस्वती के बीज मंत्रों का उच्चारण करने से माॅ सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। किसी भी सफलता की प्राप्ति के लिए इस मंत्र का 11 बार या 21 बार इस मंत्र का जप करने से सफलता की प्राप्ति होती है और इस मंत्र का नित्य सुबह जप करें। ।। जेहि पर कृपा करहि जनु जानी।। ।। कबि उर अजिर नचकहि बानी।। गुरुवार के दिन केसर की स्याही से भोजपत्र पर इस यंत्र का निर्माण करें। इस यंत्र में सब तरह से योग करने पर जोड़ 20 आएगा। इस ताबीज को गले धारण करें। इससे परीक्षा में सफलता की प्राप्ति होगी। विद्यार्थियों को चाहिए कि वह अध्ययन करते समय उनका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। जिन विद्यार्थियों को परीक्षा देेने से पहले उत्तर भूलने की आदत हो। उन्हें परीक्षा के समय जाने से पहले अपने पास कपूर व फिटकरी पास रखकर जाना चाहिए। यह नकारात्मक ऊर्जा को हटाते हैं। परीक्षा के समय जब कठिन विषय की परीक्षा हो तो पास में गुरुवार के दिन मोर पंख रखें। विद्यार्थियों को चाहिए कि वह ब्रह्म मुहूर्Ÿा में उठकर अपनी पढ़ाई का अध्ययन करना चाहिए, जिससे लंबे समय तक विष का विद्यार्थी के ज़हन में ताजा बना रहता है। परीक्षा में जाने से पहले मीठे दही का सेवन करना चाहिए। दिन शुभ व्यतीत होता है। भगवान गणेश जी को हर बुधवार के दिन दूर्बा चढ़ाने से बच्चों की बुद्धि कुशाग्र होती है। इसलिए गणेश जी का सदैव स्मरण करें। जब आपका सूर्य स्वर (दायां स्वर) नासिका का चल रहा है। तब अपने कठिन विषयों का अध्ययन करें। तो वह शीघ्र याद हो जाएगा। इसी प्रकार कक्ष में प्रवेश करते समय भी चल रहे स्वर का ध्यान रखकर प्रवेश करें। ‘परीक्षा में सफलता प्राप्त करने हेतु’ परीक्षा भवन में प्रवेश करते समय भगवान राम का ध्यान करें और निम्नलिखित मंत्र का ग्यारह बार जप करें। ।। प्रबसि नगर कीजे सब काजा।। ।। हृदय राखि कौशलपुर राजा।। गुरु व अंत में चैपाई के संपुट अवश्य लगाएं। यह बहुत प्रभावी टोटके हैं। ‘शिक्षा दीक्षा में रुकावट दूर करने के लिए’’ क्रिस्टल के बने कछुए का उपयोग प्रमुख होता है। क्रिस्टल के कछुए को विद्यार्थी के मेज पर रखना चाहिए। एकाग्रता बनी रहती है। साथ ही सफेद चंदन की बनी मूर्ति टेबल पर रखनी चाहिए रुकावटें धीरे-धीरे दूर होने लगती है। परीक्षा में सफलता के लिए परीक्षा में जाते समय विद्यार्थी को केसर का तिलक लगाएं और थोड़ा सा उसकी जीभ पर भी रखें उसे सारा सबक याद रहेगा और सफलता मिलेगी। चांदी की दो अलग-अलग कटोरी में दही पेड़ा रखकर माॅ सरस्वती के चित्र के आगे ढककर रखें और बच्चे की सफलता के लिए कामना करें। मां सरस्वती का स्मरण कर बच्चे को परीक्षा के लिए निकलने से तीन घंटा पूर्व एक कटोरी खिलाना है और परीक्षा के लिए जाते भक्त दूसरी कटोरी का प्रसाद खिलएं सफलता मिलेगी। ‘विद्या में आने वाले विघ्न को दूर करेने हेतु’ मंदिर में सफेद काले कंबल तथा धार्मिक पुस्तकों का दान करें। 40 दिन तक प्रतिदिन एक केला गणेश जी के मंदिर में उनके आगे रखें। वारों के अनुसार परीक्षा देने के समय किए जाने वाले उपायः सोमवार के दिन पेपर देने जा रहे हों तो दर्पण में अपना प्रतिबिंव देखकर जाएं। शिवलिंग पर पान का पत्ता चढ़ाकर जाएं। मंगलवार: हनुमानजी को गुड़, चने का भोज लगाकर प्रसाद खाकर जाएं। बुधवार: गणेजजी को दूर्वा चढ़ाकर, धनिया चबाकर जाएं। बृहस्पतिवार: केसर का तिलक लगाकर परीक्षा देने जाएं और अपने साथ पीली सरसों रखें। शुक्रवार: श्वेत वस्त्र धारण करके, मीठे दूध में चावल देवी को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करें। शनिवार: अपनी जेब में राई के दाने रखकर परीक्षा देने जाएं। रविवार: दही व गुड़ अपने मुख में रखकर परीक्षा देने जाएं। इनमें किसी एक मंत्र का प्रयोग अवश्य करें।

प्राचीन भारतीय हिमालयों के जड़ी-बूटियां.......

प्राचीन भारतीय ऋषि-महर्षियों को जड़ी-बूटियों का पूर्ण ज्ञान था। यह दुर्लभ विद्या समुद्र मंथन के समय धन्वन्तरी के साथ पैदा हुई। ये वनस्पतियां रोग मुक्ति तो करती हैं ही, इनका विधि-विधान से प्रयोग करें तो तांत्रिक लाभ भी चमत्कारी ढंग से लिया जा सकता है जिससे मानव जीवन में समस्याओं से तुरंत मुक्ति मिलती है। उत्तराखंड सदियों से जड़ी-बूटियों के लिए विख्यात रहा है। रामचरितमानस में लक्ष्मण मूर्छा को दूर करने के लिए रामभक्त हनुमान द्वारा संजीवनी द्रोण पर्वत से ले जायी गई मानी जाती है। उत्तरांचल में अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियां भी पाई जाती रही हैं जो पारंपरिक काल से आयुर्वेदिक चिकित्सा का आधार रही है जिनकी ख्याति एशिया और यूरोप के अनेक देशों में फैल रही है। च्यवन, चरक, सुश्रुत, कश्यप और जीव आदि अनेक ऋषि-मुनियों व वैद्यों ने जिस आयुर्वेदिक पद्धति को जड़ी-बूटियों के मिश्रण से जीवनदायी बनाया उसका आधार उत्तराखंड ही रहा है। कहा जाता है कि हिमालय क्षेत्र में लगभग अलौकिक चमत्कारी 800 जड़ी-बूटियां पाई जाती रही हैं, जिनमें से आज अनेक दुर्लभ जड़ी बूटियां लुप्तप्राय हो चुकी हैं। वनस्पति जगत में अनेकानेक जड़ी-बूटियां भरी पड़ी हैं। हमारे पूर्वजों ने उनके दिव्य ज्ञान के आधार पर उनमें से कई जड़ी-बूटियों को खोजा तथा उनका विस्तृत उल्लेख भी हमारे आयुर्वेद शास्त्रों व अन्य ग्रंथों के माध्यम से उल्लेखित किया है। उन्हीं प्राचीन दुर्लभ चमत्कारी वनस्पतियों में से कुछ संतानदायी जड़ी-बूटियों का वर्णन इस लेख में किया जा रहा है: 1. लक्ष्मणा कथिता पुत्रदावश्यं लक्ष्मणा मुनिपुंगवै। लक्ष्मणार्क तु या सेवेद्वन्ध्यापि लभतेसुतम्।। लक्ष्मणा मधुरा शीता स्त्रीवन्ध्यात्व विनाशिनी। रसायनकरी बल्या त्रिदोषशमनी परा।। अर्थात-हमारे ऋषि-महर्षि तथा आयुर्वेदाचार्यों ने दिव्य चमत्कारी जड़ी-बूटी लक्ष्मणा को पुत्र देने वाली कहा है। लक्ष्मणा के अर्क को अगर बांझ भी सेवन करती है तो पुत्र होता है। लक्ष्मणा कंद मधुर, शीतल, स्त्री के बांझपन को नाश करके रसायन व बलकारक है। लक्ष्मणा बेल पत्र के जैसी होती है। इसके पत्तों पर खून की सनी लाल-लाल छोटी-छोटी बूंदें होती हैं। लक्ष्मणा और पुत्र जननी ये दो लक्ष्मणा के संस्कृत नाम हैं। इसके अलावा भी अपने-अपने राज्य व स्थान विशेष की क्षेत्रीय भाषाओं में नागपत्री, पुत्रदा, पुत्रकन्दा, नागिनी, और नागपुत्री के नाम से जाना जाता है। एक आयुर्वेद शास्त्र के प्राचीन ग्रंथ में लक्ष्मणा के लिए उल्लेख प्राप्त होता है और यह भी उल्लेखित है कि लक्ष्मणा बहुत कम मिलती है तथा इस दिव्य चमत्कारी वनस्पति लक्ष्मणा की उपलब्धि उस ग्रंथ में हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों व ऊंचे पहाड़ांे में बताई गई है। शरद ऋतु में लक्ष्मणा में फल-फूल आते हैं। कार्तिक मास में शनिवार के दिन सायं काल के समय स्नान आदि से निवृत्त होकर खैर की लकड़ी की चार खिलें उसके चारों ओर गाड़कर धूप-दीप एवं नैवेद्य से पूजा करके निमंत्रण दे आयें फिर पुष्य, हस्त, या मूल नक्षत्र में लक्ष्मणा को उखाड़ लायंे और पीछे न देखें। पुत्र देने वाली इस लक्ष्मणा की जड़ को दूध में पीसकर उस द्रव्य पदार्थ को पी लें। जिसके पुत्र न होता हो तो पुत्र होगा और बांझपन से मुक्ति मिलेगी तथा यदि पुत्र होकर मर जाता है तो नहीं मरेगा और पुत्रियां अधिक होती हों तो इसके प्रभाव से पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। 2.शिवलिंगी ऋतु स्नान करके चैथे दिन शिवलिंगी का एक फल निगल लेने से बांझ के भी पुत्र होता है इसमें कोई शंका या संशय नहीं है। बांझपन के श्राप से जूझ रही स्त्रियों की गोद में बालक खेल रहे हैं, उनका घर हरा-भरा हो गया है। आयुर्वेद के ‘‘वैद्यरत्न’’ में लिखा है- ‘‘शिवलिंगी फलमेकमृत्वन्ते यावला गिलति। बन्ध्यापि पुत्ररत्नं लभते सानात्र किचिंत नसन्देहः।। अर्थात - आयुर्वेद के ग्रंथ वैद्यरत्न में संस्कृत शब्दावली के अंतर्गत शिवलिंगी के कई नामोल्लेख किये गये है- शिवलिंगी, लिगिनी, बहुपुत्री, ईश्वरी, शिवमल्लिका, चित्रकला, और लिंगसम्भूता आदि कई नामों से बहुचर्चित है। बंगाली भाषा में इसे शिवलिंगीनी, मरहटी तथा पश्चिमी लैटिन भाषा में इसे ब्रायोनिया लेसिनियोसा के नाम से जाना जाता है। यह स्वाद में चरपरी गरम और बदबूदार होती है। यह शिवलिंगी सर्वसिद्धि दात्री, तांत्रिक वशीकरण में और पारे को बांधने वाली हैं, इसकी बेल चलती है। इसके फल नीचे गोल और छोटे बेर के समान होते हैं। फलों के ऊपर सफेद चित्र होते हैं इस कारण से इसका एक नाम चित्रकला भी है। फलों में से बीज निकलते हैं। उनकी आकृति भी शिवलिंग के समान होती है इसलिए शिवलिंगी कही गई है और इसके पत्तों का आकार अरण्ड के समान होता है। अतः पुष्य या अन्य शुभ नक्षत्र योग में ऋतुस्नान करके चैथे दिन शिवलिंगी का एक फल निगल लेने से बांझ के भी पुत्र होता है तथा यदि संतान होकर मर जाता है तो शिवलिंगी का फल उनके लिए कवच है। 3. नागकेशर नागकेशर और जीरा इन दोनों को देशी गाय के घी में अगर कोई स्त्री ऋतुस्नान करके चैथे दिन बाद लगातार तीन दिन तक पीती है तो गर्भ धारण हो जाता है। भैषज्रत्नावली आयुर्वेद ग्रंथ में कहा गया है - ‘‘नागकेशर संयुक्तमूलेन घृतंपक्वं पयोन्वितम्। अर्थात- नागकेशर और जीरा को ऋ तुस्नान करके चैथे दिन बाद लगातार तीन दिन तक घी के साथ पीती रहें और सहवास करें तो निश्चित तौर पर बांझ स्त्री भी पुत्रवती होती है। इसमें कोई संशय नहीं है।

कुंडली में अष्टम चंद्र....

अष्टम चंद्र यानि जन्म कुंडली में आठवें भाव में स्थित चंद्र। आठवां भाव यानि छिद्र भाव, मृत्यु स्थान, क्लेश‘विघ्नादि का भाव। अतः आठवें भाव में स्थित चंद्र को लगभग सभी ज्योतिष ग्रंथों में अशुभ माना गया है और वह भी जीवन के लिए अशुभ। जैसे कि फलदीपिका के अध्याय आठ के श्लोक पांच में लिखा है कि अष्टम भाव में चंद्र हो तो बालक अल्पायु व रोगी होता है। एक अन्य ग्रंथ बृहदजातक में भी वर्णित है कि चंद्र छठा या आठवां हो व पापग्रह उसे देखें तो शीघ्र मृत्यु होगी। जातक तत्वम के अध्याय आठ के श्लोक 97 में भी आठवें चंद्र को मृत्यु से जोड़ा गया है। ज्योतिष के ग्रंथ मानसागरी के द्वितीय अध्याय के श्लोक आठ में वर्णित है कि यदि चंद्र अष्टम भाव में पाप ग्रह के साथ हो तो शीघ्र मरण कारक है। इसी कारण से अधिकतर ज्योतिषी अष्टम चंद्र को अशुभ कहते हैं और जातक को उसकी आयु के बारे में भयभीत कर पूजादि करवा कर धन लाभ भी लेते हैं, ज्योतिष के प्रकांड ज्ञानी भी जन्मपत्री में अष्टम चंद्र को देखते ही जन्मपत्री को लपेटना शुरू कर देते हैं, वे अष्टम चंद्र को ऐसा सर्प मानते हैं जिसके विष को जन्म कुंडली में स्थित शुभ ग्रह गुरु, शुक्र या बुध रूपी अमृत भी निष्प्रभावी नहीं कर सकते। वे अष्टम चंद्र को भय का प्रयाय व साक्षात मृत्यु का देवता मानते हैं, मैंने स्वयं अनेक पंडितों को अष्टम चंद्र की भयानकता बताते देखा है। परंतु यह सर्वथा गलत है कि अष्टम चंद्र को देखते ही जन्मपत्री के अन्य शुभ योगों, लग्न व लग्नेश की स्थिति, अष्टम व अष्टमेश की स्थिति आदि को भूल जाएं और अष्टम चंद्र को देखते ही अशुभ बताना शुरू कर दें, क्या इस अष्टम चंद्र की भयानकता हमें इतना सम्मोहित कर देती है कि इसे देखते ही मृत्यु या प्रबल अरिष्ट के रूप में अपना निर्णय सुनाने लगते हैं, बिना यह विचार किए कि सुनने वाले जातक को ऐसे मुर्खतापूर्ण निर्णय से कितना आघात पहुंचता है। यह अपने आप में नकारात्मक ज्योतिष है और हमें इससे बचना चाहिए। केवल मृत्यु या भयानकता ही अष्टम चंद्र का प्रतीक नहीं है वरन् आशा व जीवन का प्रतीक भी अष्टम चंद्र ही है। अतः अष्टम चंद्र का केवल नकारात्मक पक्ष ही नहीं, बल्कि इसके सकारात्मक पक्ष पर भी गहन विचार करने के बाद ही ज्योतिषी को अपना निर्णय सुनाना चाहिए। आइए अष्टम चंद्र के बारे में ज्योतिष के विभिन्न ग्रंथों में लिखित निम्न श्लोकों पर एक नजर डालें जो अष्टम चंद्र के सकारात्मक पक्ष को उजागर करते हैं अर्थात भयभीत करने से बचाते हैं: 1. जातक परिजात में लिखा है कि जिस जातक का कृष्ण पक्ष में दिन का जन्म हो या शुक्ल पक्ष में रात्रि का जन्म हो और उसकी जन्म कुंडली में छठा या आठवां चंद्र हो, शुभ व पाप दोनों प्रकार के ग्रहों से दृष्ट हो तो भी मरण नहीं होता। ऐसा चंद्र बालक की पिता की तरह रक्षा करता है। 2. मानसागरी में कहा गया है कि लग्न से अष्टम भावगत चंद्र यदि गुरु, बुध या शुक्र के द्रेष्काण में हे तो वही चंद्र मृत्यु पाते हुए की भी निष्कपट रक्षा करता है। अब इन श्लोकों पर तो ज्योतिषीगण ध्यान देने की आवश्यकता समझते नहीं या ध्यान देना ही नहीं चाहते जो अष्टम चंद्र का सकारात्मक पक्ष उजागर करते हैं बल्कि नकारात्मक पक्ष को उजागर कर स्वार्थ सिद्ध करते हैं। अतः हमें अष्टम चंद्र से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह जीवन का प्रयाय भी बन जाता है यदि निम्न सिद्धांत इस पर लागू हों तो: 1.जातक का जन्म कृष्ण पक्ष में दिन का हो या शुक्ल पक्ष में रात्रि का हो। 2.जन्म कुंडली में चंद्र शुभ ग्रह गुरु, शुक्र या बुध की राशि में हो या इन्हीं ग्रहों से दृष्ट हो। 3.द्रेष्काण कुंडली में चंद्र पर गुरु, शुक्र या बुध की दृष्टि हो या चंद्र इन्हीं तीन ग्रहों की राशियों में स्थित हो। 4. नवांश कुंडली में चंद्र पर गुरु, शुक्र या बुध की दृष्टि हो या चंद्र इन्हीं तीन ग्रहों की राशियों में स्थित हो।

लग्नानुसार कालसर्प दोष के फल



लग्नानुसार कालसर्प योग का फलादेश पं. एम. सी. भट्ट कालसर्प योग प्रत्येक लग्न में अलग-अलग प्रकार का फल देता है तथा काल सर्प योग में विशिष्ट ग्रह स्थिति के मिश्रित फल प्राप्त होते हैं। इन स्थितियों में विभिन्न व्यक्तियों को क्या विशिष्ट उपलब्धियां होती हैं अथवा व्यक्ति किन विषम परिस्थितियों में फंसकर रह जाता है, इसका विवचेन लग्नानुसार किया गया है। विभिन्न लग्नों में काल सर्प योग होने पर किस प्रकार के फल मिलते हैं, उसका विवरण निम्न प्रकार से है :- मेष-वृश्चिक लग्न : मेष-वृश्चिक दोनों लग्नों का लग्नेश मंगल है। इन लग्नों की कुंडलियों में कालसर्प योग बनता हो तो जातक को न तो नौकरी में संतुष्टि मिलती है और न व्यापार में सफलता। नौकरी और व्यापार में भीषण चढ़ाव-उतार देखने पड़ते हैं। उत्तरोत्तर संघर्षों के कारण इनका आत्मविश्वास टूट जाता है। जीवन भर की दाल-रोटी की कमाई का ठोस मार्ग नहीं मिलता। असंतोष और बेचैनी बढ़ाने वाले कई कारण स्वयं ही पैदा होते रहते हैं। कुल मिलाकर जीवन अशांत एवं निराशापूर्ण रहता है। वृषभ- तुला लग्न : वृषभ और तुला लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो जातक अपने रोजगार के विषय में प्रायः चिंतित रहता है। उसे डर रहता है कि जो रोजगार का साधन उसके हाथ में है, वह न जाने कब हाथ से निकल जायेगा। इस भयग्रस्त विचार के कारण उसकी जीवन नौका लड़खड़ाती हुई कब डूब जायेगी, यही विचार उसे भयभीत बनाता है। जातक को विश्वास नहीं होता कि वह अपनी मंजिल तक पहुंच चुका है और अब उसे केवल दो-चार कदम ही और आगे बढ़ना है। आत्मविश्वास कम होता है और वह अशांत एवं बेचैन होकर घबराकर उसी स्थान पर लौट आता है, जहां से वह चला था। इसका परिणाम यह होता है कि जहां पहले उन्होंने अपने पैर जमाये थे वह जमीन ही पैरों के नीचे से खिसक जाती है और वह जमीन दलदल में परिवर्तित हो जाती है। इस तरह की आत्मघात करने वाली घटनाओं का वह शिकार बनता है। वृषभ और तुला लग्न का लग्नेश शुक्र है। मिथुन - कन्या लग्न : मिथुन और कन्या लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो जातक नौकरी में उच्च पद पाने के स्वप्न जरूर देखते हैं, पर उन्हें कामयाबी हासिल नहीं होती। स्टील फर्नीचर का व्यापार या कोई अन्य कल-कारखाना लगायें तो उसमें बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। गुजारे भर की आमदनी भी मुश्किल से हो पाती है। खरीद-बिक्री, कमीशन एजेंसी, दलाली का कार्य करें तो दस बार में कमाया मुनाफा एक ही बार के घाटे में साफ हो जाता है। कागज, कपड़ा, अनाज, किराना, जनरल मर्चेंट, गृहोपयोगी सामग्री, होटल-मोटल, रेस्टोरेंट आदि के व्यापार में ऐसे जातकों को सफल होते देखा गया है। लेकिन श्रेष्ठजनों को इनके बर्ताव से बार-बार दुख उठाना पड़ता है। और फलस्वरूप श्रेष्ठजनों के शाप से इनकी क्षति भी होती है। मिथुन और कन्या लग्न का लग्नेश बुध है। कर्क लग्न : कर्क लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक न सफलतापूर्वक नौकरी कर सकते हैं और न ही कोई व्यवसाय। डाक्टर, वकील, ज्योतिषी, ट्यूटर, कलाकार आदि स्वतंत्र कार्यों में विशेषज्ञ बनकर काफी धन कमाते हैं, फिर भी वे शरीर से अस्वस्थ एवं परिवार से असंतुष्ट रहते हैं। चतुराई, चालाकी और मौकापरस्ती से वे हमेशा अपना रंग-ढ़ंग बदलते हुए कार्य करते रहते हैं। चारों तरफ उन्हें प्रतिष्ठा मिलती है। इनके हाथ में धन तभी रह पायेगा जब वे थोड़ा-बहुत ही क्यों न हो, दान-पुण्य अवश्य करें। कर्क लग्न का स्वामी चंद्रमा है। सिंह लग्न : सिंह लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक अपनी आजीविका और परिवार के लिये सदैव चिंतित रहते हैं। अपने व्यवसाय में बार-बार तेजी का लाभ इन्हें मिलता है, लेकिन ऐसे भी प्रसंग आते हैं कि एक ही झटके की गहरी मंदी कमरतोड़ नुकसान पहुंचाती है। इनकी पूंजी धीरे-धीरे बढ़ती नजर आती है लेकिन एक ही झटके में वह साफ भी हो जाती है। ऐसे जातक नौकरी करना पसंद नहीं करते। परंतु परिस्थितिवश मजबूर होकर थोड़े समय के लिये ही क्यों न हो, पराधीनता स्वीकारनी ही पड़ती है। पारिवारिक एकता बनाये रखना इनकी प्रतिष्ठा का सवाल है। वे दृढ़प्रतिज्ञ, कठोर और जिद्दी भी होते हैं। सिंह लग्न का लग्नेश सूर्य है। धनु-मीन लग्न : धनु एवं मीन लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक पराधीन कार्य में या नौकरी में सफल नहीं होते। बाहरी स्त्रियों के सहयोग से स्वतंत्र कार्यक्षेत्र में अपनी जड़ मजबूत बनाते हैं। परंतु घर की किसी स्त्री के षड्यंत्र का शिकार होकर असफल भी होते हैं। दलाली, कमीशन, एजेंसी या कन्सलटेंसी एवं राजनीति में ऐसे जातक यश एवं प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं। समाज में भी बहुचर्चित बने रहते हैं, परंतु अपने संकोचशील स्वभाव के कारण धन का अभाव बना रहता है। कमाया धन भी खोना पड़ता है। पारिवारिक जीवन बहुत ही संघर्षमय होता है। सीने में दुखदर्द एवं चेहरे पर मुस्कान लिये घूमते हैं। दूसरों का उपकार करने के लिये बेचैन रहते हैं। परोपकारी होते हैं, लेकिन परोपकार से अपयश ही मिलता है। धनु एवं मीन लग्न का लग्नेश गुरु है। मकर-कुंभ लग्न : मकर एवं कुंभ लग्न में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक को विदेश में रहने का अवसर प्राप्त होता है। अवसर मिलने पर देश से अधिक परदेश में कामयाबी हासिल करते हैं। पत्नी एवं बच्चों की ओर से अशांत तथा अतृप्त रहते हैं। पैतृक संपत्ति का उचित लाभ इन्हें नहीं मिलता। स्वयं संपत्ति जुटाते हैं, परंतु उससे न स्वयं और नही अपने परिवार को संतुष्ट कर पाते हैं। खनिज, पेट्रोलियम, ऐसिड, कोयला, दवाइयों या केमिकल लाइन में नौकरी अथवा व्यापार करके अच्छी सफलता प्राप्त करते हैं पर जीवन में ऐसा झटका लगता है कि सारी कमाई डूब जाती है। शेयर, सट्टा, मटका-लाटरी में अच्छा धन प्राप्त होता है। मकर एवं कुंभ लग्न का स्वामी शनि है। सूर्य के साथ शनि और चंद्र के साथ बुध की युति हो तो कालसर्प योग वाले जातक धनवान, खयातनाम एवं धार्मिक रहते हैं। मकर एवं कुंभ लग्न में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक को विदेश में रहने का अवसर प्राप्त होता है, परदेश में कामयाबी हासिल होती है परंतु पत्नी एवं बच्चों की ओर से अशांत तथा अतृप्त रहते हैं। तथा पैतृक संपत्ति का उचित लाभ नहीं मिलता। कालसर्प योग में विशिष्ट ग्रह स्थिति के मिश्रित फल : कालसर्प योग की सभी कुंडलियों में सदैव बुरे ही फल नहीं मिलते। अपवाद स्वरूप कुछ ग्रहयोगों के कारण अच्छे तथा मिश्रित फल भी जातक को प्राप्त होते हैं। इन ग्रह योगों को दृष्टिगत नहीं रखने से भी फलित गलत हो सकता है। 1. कालसर्प योग की कुंडली में एक कारक ग्रह उच्च का बलवान हो और दूसरा कोई भी ग्रह उच्च का हो तो ऐसे जातक हर क्षेत्र में अपनी धाक जमा लेते हैं। असंभव लगने वाले कार्य भी सफलतापूर्वक संपन्न करा लेते हैं। ऐसे जातक धुन के पक्के और रंगीन मिजाज के धनी होते हैं। कालसर्प योग के साथ किसी भाव में सूर्य-चंद्र की युति हो तो जातक उन्नति के लिये अथक परिश्रम करते हैं, मुसीबतों का सामना करते हैं और अंततोगत्वा सफल जीवन बिताते हैं। किंतु उनका अधिकांश धन दुष्टों के कब्जे में जाकर अपव्यय होता है। सूर्य के साथ शनि और चंद्र के साथ बुध की युति हो तो कालसर्प योग वाले जातक धनवान, खयातनाम एवं धार्मिक रहते हैं। 2. कालसर्प की कुंडली में केमद्रुम योग' तथा 'शकट योग' बनता हो तो ऐसे जातक बिना पूंजी के या कम पूंजीवाले काम करके अपनी जरूरतों को पूर्ण करने में सक्षम होते हैं। परंतु धनवान बनने की कामना से किये हुए कामों में उन्हें सफलता नहीं मिलती। अक्सर कर्ज लेकर ही अपना काम चलाते हैं और लिये ऋण को बार-बार चुकता करते रहते हैं। यदि भाग्यवश इन्हें स्वतंत्र कारोबार में रूपया मिल भी गया तो वह इनके जीवनकाल ही में समाप्त हो जाता है। व्यापार, उद्योग में भारी रकम लगाई हो तो इसे इनकी तबाही का प्रारंभ समझना चाहिये। 3. कालसर्प योग की कुंडली में चंद्रमा से केंद्रस्थ गुरु और बुध से केंद्रस्थ शनि हो तो ऐसे जातक पर्याप्त मात्रा में ऐश्वर्य भोगते हैं। कामातुर और विलासी होते हैं। कम परिश्रम से अधिक रुपया ये कमा जरूर लेते हैं और बड़ी से बड़ी कामनापूर्ति भी कर लेते हैं। वृत्ति से धार्मिक भी होते हैं, फिर भी सदैव अपनी उपलब्धियों से असंतुष्ट रहते हैं। परिवार के व्यवहार से दुखी होने से सुख चैन की नींद भी नहीं सो पाते। अपने शत्रुओं को भी शरण देते हैं। ऐसे जातक योग्य गुरु के मार्गदर्शन में तंत्र-मंत्र की साधना कर सकें तो इस दिशा में बड़ी सफलता उनके हाथ लगती है। इनकी आंखों में एक खास चमक होती है जिसकी वजह से वे किसी को भी सहज ही में आकर्षित कर लेते हैं। 4. कालसर्प योग की कुंडली में शनि-सूर्य युति, शनि-मंगल युति या राहु केतु के साथ शनि-मंगल सूर्य से एकाधिक योग बनता हो तो ऐसे जातक का जन्म ही संघर्ष में होता है, यानी पैदा होते ही संघर्षों का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। विद्यार्जन, नौकरी, व्यवसाय, पत्नी, संतान आदि के लिये एक विशिष्ट सीमा तक परेशानियां रहती हैं। अपनी उपलब्धियों से असंतुष्ट होकर दूसरों के अहसानों तले दबे-दबे रहते हैं। कर्ज के सागर में डूबे रहते हैं। पुराना कर्ज चुकाने के लिये नया कर्ज लेने का सिलसिला बना ही रहता है। परिवार, मित्र एवं रिश्तेदारों से हमेशा छले जाते हैं। कर्ज लेकर भी किसी मित्र की मदद की तो वह मित्र भी धोखा दे जाता है। उसको दी रकम टुकड़े-टुकड़े में बटकर भी पूरी वसूल नहीं होती है। मन मुटाव होकर दोस्त दुश्मन में बदल जाता है। इनकी हर वस्तु पर दुष्टों की नजर होती है। जान-माल की क्षति के लिये कभी-कभी लोग तंत्र-मंत्र, टोना-टोका भी इनके ऊपर करते हैं। इन सबके बावजूद ये जातक शान से जीते हैं और शान से ही मरते है। काल सर्प योग से कोई बच नहीं सकता। प्रस्तुत जन्मपत्री में वासुकि नामक कालसर्प योग बना है। उसके अनुसार जातक का एक-एक क्षण संकटों और अभावों के बीच व्यतीत हुआ है। जिस-जिस को चाहा, उसने ही धोखा दिया। जिन-जिन लोगों से दूर रहने की कोशिश की, उन्हीं लोगों को बार-बार सामने देखना पड़ा। अभाव, कर्ज, अहसान, अशांति जैसे विकारों से बच नहीं सका।

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Wednesday 22 June 2016

Karma

The horoscope is a microscopic epitome of multifaceted long life. Various aspects of life have been divided into twelve houses (Bhavas) of natal chart (Janmalagan) of horoscope. Nine planets -Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter, Venus, Saturn, Rahu and Ketu -take their position in respective houses in accordance with the time of birth. Position of planets in different houses (Bhavas) and their power (Bal) by virtue of their position in particular sign (Rashi) and aspect (Drishti) and conjuction (Yuti) with malefic/benefic planet form combination/promises (Yogas) like Rajyoga, Panch Mahapurush Yoga, Dhan Yoga, Budhaditya Yoga, Gaj Kesari Yoga, and so on. There are 108 Rajyogas and many more Yogas provided in scriptures. Such Rajyogas show promise of good health, wealth, achievements in different aspects of life and high status in society and politics, etc.
Now the question arises as to how and when the result of the Yogas will materialize? It depends on MahaDasha/Anter Dasha/ Pratyanter Dasha and transit (Gochar) of the planets involved in forming the Rajyoga. The Dashas (period) will occur and the planet involved will transit the house concerned to bring the results.
Dasha : A period of 120 years has been earmarked as life span in the form of Vimshottari Dasha. This 120 years’ Vimshottari Dasha again has been divided into Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter, Venus, Saturn, Rahu and Ketu -nine planets. During the long span of life from birth to death, these planets come by turn with specific number of years as their Maha Dasha, Antar Dasha for shorter span and Pratyanter Dasha as again shorter span.
Karmas (deeds) play very important role in whatsever we are receiving, or losing in life. Different times of birth form the different map of planets in the natal chart, hence different combinations. Some of them form very good Rajyoga for very healthy and wealthy life, while others bring Daridra (pauper) yog. It is only because of slight difference in time of birth which can very well be the result of past Karmas. With the difference of few minutes in time of birth, one will become the king and the other will be doomed. It is all past Karmas that govern the date of birth and accordingly the promises in the natal chart.
Karma is the panacea and the Karma is the root cause of all pains and problems too. It is a time tested fact that venom can be treated with the same venom. While nothing can undo the destiny, the good Karmas can relax the ill effect of past Karmas to some extent.
Through the mirror of natal chart and with the help of planets posited on constellations (Nakshatra) with some specific longitude, whatsever good, or bad lies in the destiny, could well be seen through. The small map of planetary positions reflects various aspects of life, like past Karmas, health and wealth, wife/husband relationship, relation with parents, with children, with co-borns with friends, gains & losses in business, status in society, success in. politics, education and profession, visit abroad, nature and speech, character and chastity, illness and even death. It all needs a thorough concentration and proper usage of the astrological means and supports.
Astrology has been very much in practice and accepted by the society since time immemorial. Many mystics and sages have left the plethora of scriptures on Astrology as legacy to the present generation. It becomes our moral responsibility to preserve it. We must learn and practise difference ways and means provided in the basic compilation ‘Brihat Parashar Hora Shastra’. All astrological tools, like natal chart, Navansh, Chalit, Dreshkan, Saptamansh Varga, Dasha, - Antar Dasha, transit, Shad Bal and Bhav Bal, Disha Bal, Ashtakvarga, exaltation & debilitation of planets, exchange of planets and aspect and conjuction etc. must be given due consideration before coming to a conclusion. We should strengthen the sanctity of our ancestral heritage of astrology.

Role of Saturn in prediction of horoscope

Saturn as karaka (significator) of the malefic 6th, 8th and 12th house in the horoscope is the most dreaded planet. It is assigned 19 years in Vimshottari Dasa and slowly transits through a house in 2½ years. Its transit through the 3rd, 6th and 11th house from Moon, i.e., nearly 7½ years out of 30 years that it takes to go round the zodiac is favourable. Thus Saturn has the longest influence, and its location and strength in a person’s horoscope indicates the pattern of events he will experience in life according to his prarabdha (result of past karma).
However, Saturn gives the best result when it becomes functional benefic for the horoscope. For example, for Tula (Libra) lagna Saturn gives the best result, and second best for Vrishabha (Taurus) lagna by virtue of becoming a Yogakaraka( Lord of Kendra and Trikona houses). It gives good result for Makar (Capricorn) and Kumbha ( Aquarius) lagna as lagna lord. When for these four lagnas Saturn is also well posited and aspected by benefics, it produces excellent results during its dasa-bhukti and transit.
Saturn gives mixed result for Mithuna ( Gemini), Kanya ( Virgo), Dhanu ( Sagittarius) and Meena (Pisces) lagnas, and proves unfavourable for the remaining lagnas. Like other malefic planets. Saturn gives good result when posited in an Upachaya ( 3, 6, 10 or 11) house. In addition, Saturn’s location in any Kendra, which is its own or exaltation sign, forms Sasa Yoga, one of the Panchmahapurusha Yogas that bestows name, fame, wealth and authority to the native during its dasa and bhukti. Lucky is the person for whom Saturn is favourable and strong in the horoscope.
Saturn has special 10th and 3rd full aspects, in addition to the normal 7th aspect. These aspects adversely affect the affairs of the house receiving it, and afflict the planets posited there, but these aspects are favourable when Saturn becomes a functional benefic in the horoscope. Among these aspects, the 10th aspect is the most powerful, then comes the 7th , and the 3rd aspect is the weakest. Saturn’s aspect on Venus spoils the conjugal life of the person.
Its aspect on Jupiter induces the native to self-abnegation in religious and spiritual pursuits and sometimes causes compromise of moral principles. Saturn’s aspect on the Sun makes the native toil hard in life and face separation from, or even death of father in some cases. Saturn’s aspect on Moon makes the native simple, calm and calculative and gives distress to mother. Saturn’s aspect on Mars makes the native aggressive and cruel, while their mutual aspect portends violent end. Saturn’s aspect on Mercury gives crooked and selfish mentality. Its aspect on Rahu makes the native shrewd and causes chronic ailments. The benefic aspect of powerful Jupiter and Venus on Saturn tones down its malefic effect.
Saturn owns two consecutive signs in the Zodiac, namely, Capricorn and Aquarius. Capricorn being the 10th sign of the Zodiac represents karma (action) and Aquarius the 11th sign denotes labh (gains). Thus Saturn controls profession, status and financial position of the native. It not only influences the affairs of the house of its location, but also of the houses on both sides of its location. Through its ownership, location and aspects, if there is no overlapping of houses, Saturn influences as many as eight houses in any horoscope. This makes the position of Saturn in any horoscope decisive and it is prudent to properly assess the disposition and strength of Saturn before making any prediction. Saturn is a deterministic planet and acts for good or bad without any restraint.
In addition, Saturn has two special features. The first one is the infamous Sadesati ( 7½ years’ period) when Saturn transits through the house prior to natal Moon, the Moon sign, and the sign next to Moon. This cycle repeats in 30 years in everybody’s life. During Sadesati Saturn controls the flight of imagination of the native’s mind and makes him depressed, lonely and self- dependent. If Moon in a horoscope is already afflicted by Saturn, Mars, Rahu or Ketu individually or jointly, or Moon is weak and located in a trika ( 6/8/12) house, the effect of Sadesati is severe.
When Sadesati occurs during the dasa of Saturn, Sun, Moon, Mars or Rahu, then it causes considerable hardship in respect of the houses occupied and aspected by Saturn in the natal horoscope, as well as those aspected during transit. The astrologers are well aware of the trials and tribulations caused by Saturn to an individual during Sadesati.
The second special feature is ‘Shani vat Rahu’, i.e. Rahu is like Saturn. It is observed that in case of Tula lagna born, for which Saturn becomes Yogakaraka, if its dasa comes very late in the native’s life, then Saturn confers its favourable result during the dasa of Rahu. If such an individual has both Rahu and Saturn dasas in his life time, then the results experienced are par excellence.

Results of Planetary Combinations

Yoga means combination but in common parlance yoga means a certain definite or special combination, which adds strength to the horoscope or removes the vitality from it. Human life falls under two categories – Yoga and Arishtas or fortunes and misfortunes. Yogas include success in every sphere of life. Arishtas or misfortunes include all sorts of miseries of life. A yoga is formed by more than one planet. For interpreting yogas, followings are required - 1. The good and evil lords in a horoscope 2. The inherent strengths of planets 3. The residential strength of planets. Arishta Yoga : In Arishta yoga, longevity of nature is considered. Eighth house is considered as ‘AYUS STHANA’ or house of longevity whereas Saturn is considered as ‘Ayuskaraka’ or the significator of longevity. The third house is 8th from 8th and therefore it is believed that strong unaffiliated Saturn, 8th and 3rd lords make a native long lived, Life span is governed by Moon in infancy, by Mars –Venus – Mercury in young age, by Jupiter in middle age and by Saturn in old age. Long life :- (i) If Sun, Moon and Lagna are strong (ii) Benefics in 10th House (iii) Malefics in Upachya houses (iv) Mercury, Venus, Saturn, Sun or Jupiter in 8th House. (v) Benefics deposited in quadrants and trines. Medium Life : (i) Malefics occupying 2nd, 5th , 8th, and 11 th signs or in the 3rd or 4th house. (ii) A weak lord of Lagna, Jupiter in quadrant, the 5th or 9th sign and a malefic in 6th , 8 th , or 12th sign. (iii) A benefic in quadrant, 5th or 9th sign, a strong Saturn or another malefic in 6th or 8 th sign. (iv) If benefics and malefics together occupy 5th or 9th sign or quadrant. Short Life : (i) Moon is in 7th , 8th or 12th from Lagna with malefics without being aspected by benefics. (ii) Moon in the vicinity of Sun is in 6th house (iii) Mars in 7th, Rahu in 9th, Saturn in 1st, Jupiter in 3rd, and Venus in 6th . (iv) Malefics in 2nd, 6th, 8th and 12th houses. Yogas For Low Morale (i) If Mars, Saturn or Rahu is posited in 4th house and when this house and its lord are afflicted by other malefics. (ii) Moon or Sun posited in 5th house (iii) Lord of 10th house aspected by another malefic being posited in 4th house (iv) Venus and descending Moon in association with malefics and aspected by other malefics posited in 4th house (v) Lord of 7th posited in 4th in combination with a malefic and aspected by a malefic. Yogas For Deafness (i) If Mercury is in 4th position from Saturn and lord of 6th house is in 6th, 8th, or 12th house. (ii) If birth is of night and Venus is 10th from Lagna and Mercury in 6th house. (iii) If Lord of 6th in 6th or 12th house and aspected by Saturn Yogas For Dumbness (i) If Mercury posited in Cancer, Scorpio or Pisces sign and Moon and Saturn being together aspect Mercury. (ii) Malefics in Scorpio or Pisces signs and Moon in the last degrees of any sign being aspected by malefics. (iii) If combination as per (i) and (ii) exist but Moon is aspected by benefics, native starts speaking late. (iv) Malefics in 2nd house, lord of 2nd house is either combust or debilitated and aspected by malefics and Sun and Mercury are in Leo sign Yogas For Speech Defects (i) If Sun and Mercury are in Leo sign, native stammers. (ii) If Gemini or Virgo are in 6th house, Malefic is posited or aspecting 2nd house and Mercury is weak – speech of native is not clear. (iii) If Venus of 2nd house is in 3rd Drekanna – native stammers. Yogas For Eyes Troubles (i) If Moon is in 12th house, left eye will have problem. If Sun is in 12th house, both the eyes will have problem. (ii) If both Sun and Moon are in 12th house both the eyes will have trouble. However if aspected by benefics trouble will be in old age. (iii) Person will become blind if lord of 2nd is associated with lord of 6th, 8th or 12th and occupies Lagna. If Lord of 2nd associated with Moon and Venus occupies Lagna, night blindness is predicted. (iv) If lord of Lagna is in 2nd house and lord of 2nd in 1st, 6th or 8th house and if Rahu or Ketu associated with Sun occupies 2nd or 12th house, native will be born blind. (v) If Venus is together with Rahu, the native will have eye trouble. (vi) If Leo is in the Lagna, native will have eye defect (vii) If Aries is Lagna it may lead to cataract or night blindness. (viii) If Cancer is Lagna, eyes will be dull and unclear. Yogas For Wealth (i) Wealth is controlled by lords of 2nd, 4th, 9th and 11 th house and by Moon and Jupiter. If lords of 2nd, 4th and 9th houses are associated either in Lagna chart or in Navamsa chart and occupy 1st, 2nd or 11 th house, they lead to acquisition of good wealth. (ii) The lord of 2nd combined with 9th and occupying 11 th with Moon and Jupiter – native will be a millionaire. (iii) When 2nd house is vacant and aspected by Mercury – native becomes a wealthy person. (iv) Mercury occupying the 2nd house and aspected by Moon – blesses the native with wealth in abundance. (v) If Jupiter as lord of 2nd house is posited therein and is associated with Mars, native is considered as Kuber ( Lord of wealth) (vi) The results of Sl. No (V) will be repeated if there is an exchange of lords of 2nd and 11 th houses. Yogas For Sudden Gains Through Speculation Or Gambling (i) Strong malefic in the 10th house from Lagna or Moon and aspected by a benefic gives much wealth through gambling or lottery. (ii) If Lords of 6th and 11 th house are together and posited in 11 th house, the native wins many times in gambling and lottery. (iii) If 5th lord being Venus is in 11 th with 6th lord, native wins huge money in horse racing. (iv) Person will gain through speculations if lord of 1st and 5th are associated. Yogas For Co-borns (i) If lord or significator of 3rd house is associated with a benefic or if lord of 3rd house is a benefic or if 3rd house is very strong, native will have brothers. (ii) If lord or significator of 3rd house is in quadrant or trine or in exaltation, friend’s house or own sign, the native will have brothers. (iii) If Mercury is in 3rd house and lord of 3rd is associated with Moon and significator of 3rd house is associated with Saturn, there will be an elder sister and a younger brother. (iv) If significator of 3rd house is associated with Rahu or if lord of 3rd house is in debilitation, native will not have any younger brother. (v) If lord of 3rd house and Mars are posited in 8th and are associated with a malefic, brothers will be born but will not remain alive. (vi) If 3rd house is associated with a malefic and Lore of 3rd house conjoins a malefic, the native will have stepbrothers. (vii) If lord of 3rd is in an even sign or Navamsa and if significator of 3rd house is in 3 rd, the native will get a sister. (viii) If Mercury, Moon, Mars and Jupiter are posited in 3rd and 11 th from Lagna and Lagna lord, native will have number of brothers but if Ketu is posited in such position native will have more sisters. (ix) If Sun is in 3rd house native will not have elder brother and if Mars is there, native will not have younger brother. Yogas For Conveyance (i) If Lord of 4th house is in 4th along with Mercury and aspected by benefic. (ii) If lord of 4th, Moon and Lagna are posited in quadrants. (iii) If Mercury in exaltation is posited in quadrants or trines. (iv) If lords of 4th and 10th are strong and posited in 11 th or are aspecting 4th house. Yogas For Progeny (i) If lord of Lagna is in 5th and lord of 5th is in Lagna and Jupiter is posited in quadrant or trine, native with have many children. (ii) If lord of 5th is in exaltation and lord of Lagna is associated with a benefic – native will have number of children. Similar results are predicted if benefic aspects or is associated with 5th house, the lord of 5th or Jupiter. (iii) If Jupiter is strong and lord of Lagna is in 5th and lord of 5th is also strong, native will have number of children. (iv) If fifth house is occupied by Taurus, Cancer or Libra sign and Moon or Venus are either posited in or aspect fifth house, native will have number of children. (v) If Moon, Mercury or Venus are posited in 11 th house, number of daughters will be more. Yogas For Marriage 1. Timely Marriage : (a) If, Moon, Rahu or Venus are in 7th house or lord of 7th and 1st are associated. (b) If benefic planets are posited close to cusp of 1st or 7th house. (c) Ketu aspected by benefics in 7th house (d) Lord of 7th is aspected by Jupiter or Venus 2. Late Marriage : (a) When Rahu – Ketu axis passes very close to Lagna, Venus or Moon (b) Saturn, Sun or Mars are posited in 7th house (c) Moon in 4th /10th house in case of a male and Sun in 4th / 10th house in case of a female. (d) When two or three malefic planets one posited in 1st/ 2nd /5th / 7th / 8th /12th house from Lagna, Moon or Venus. (e) When Venus- Mercury, Venus – Saturn, Saturn – Moon combination are formed or Saturn is posited in 7th /8th houses from Venus. No Marriage : (a) If Venus or lord of 7th is hemmed between Sun and Saturn (b) Rahu or Ketu in 7th house and being aspected or conjoined with at least two malefics. (c) Moon and Venus are in opposition to Mars and Saturn (d) Mars or Saturn is posited in 7th house from Moon or Venus. (e) 2 nd / 4th /7th /12th houses and Venus are afflicted and devoid of benefic aspects. Panch Maha Purusha Yogas (1) Hamsa Yoga : For this yoga Jupiter should be in quadrant which should be his own or exaltation sign. Native born in this yoga will be very powerful like a king. He will have marks of conch, lotus, fish and ankles on legs. He will have handsome body and will be immensely rich. He will be liked by others. He will be righteous in disposition and pure in mind. (2) Bhadra Yoga : For this yoga Mercury should be in quadrant which should be his own or exaltation sign. The native born in this yoga is strong, having lion – like face, well developed chest, well proportioned limbs. He will help relatives and will have very long life. The native with such yoga is intelligent, learned, gifted with wealth. (3) Ruchak Yoga : For this yoga Mars should be in quadrant which should be his own or exaltation sign. Native born in this yoga will have strong built, famous, well – versed in ancient lore, equal to king and conforming to traditions and customs. He will have ruddy complex, attractive body, charitable disposition, wealthy, long – lived and leader of an army. (4) Malavya Yoga : For this yoga Venus should be in quadrant which should be his own or exaltation sign. The native born in this yoga shall have strong physique and strong mind. He will be wealthy and blessed with good wife and children. He will enjoy good conveyance, comforts and pleasures. He will be renowned and learned. (5) Sasa Yoga : For this yoga Saturn should be in quadrant which should be his own or exaltation sign. The native born in this yoga shall command good servants and will be of questionable character. He will be head of a village or town, will covet other’s riches and will be wicked in disposition. Gaja Kesari Yoga This yoga is formed when Jupiter is in quadrant from Moon. Native born in the yoga with have many relations, will be polite and generous and will be builder of village or town. He will be prosperous, renowned and will have reputation long lasting even after death. Amala Yoga This yoga is formed when 10th from Moon or Lagna is occupied by a benefic planet. Native born in the yoga will achieve lasting fame and reputation. His character will be spotless and will lead a prosperous life. Parvata Yoga According to Phaldeepika this yoga is formed when lord of Lagna is posited in quadrant or trine identical with his own sign, Mool – trikona sign or exaltation sign. According to Jatak Parijata this yoga is formed under following ways : (a) Benefics in quadrant while 8th and 12th are free. (b) Lord of Lagna and 12th in mutual angles and aspected by friendly planets. Native born in the yoga shall be prosperous, wealthy, liberal, charitable, humorous and head of town or village. Vasi Yoga This yoga is formed when planet other than Moon occupies 12th position from Sun. The native born in the yoga is happy, prosperous, liberal and favorite of govt. Vesi Yoga This yoga is formed when planet other than Moon occupies 2nd position from Sun. The native born in the yoga will be fortunate, happy, virtuous, famous and aristocratic. Obhaya Chari Yoga This yoga is formed when planets other than Moon are present on either side of Sun. The native born in this yoga shall be eloquent speaker having well proportioned limbs. He will be liked by others, prosperous and famous. Sunapha Yoga This yoga is formed when planet other than Sun is posited in 2nd position from Moon. Native will be intelligent, wealthy, having self earned property. He will enjoy good reputation. Anapha Yoga This yoga is formed when a planet other than Sun is posited in 12th position from Moon. The Native will have well – formed organs, majestic appearance, polite, generous. He will be enjoying good reputation and will be successful in politics. Dhurdhura Yoga This yoga is formed when planets other then Sun are posited on either side of Moon. Native will be blessed with wealth and enjoy good conveyances. Kemadruma Yoga This yoga is formed when there are no planets on either side of moon. The native will be dirty, sorrowful, interested in unrighteous deeds, poor, dependent, rogue and swindler. Kemadruma Bhanga Yoga This yoga is formed under following circumstances – (i) If Moon and Venus are in quadrant and aspected by Jupiter. (ii) Strong Moon is in exaltation or own sign. (iii)Moon being posited in Navamsa sign of his intimate friend is aspected by Jupiter. Kahala Yoga This yoga is formed if lords of 4th and 9th houses are in quadrant from each other and lord of Lagna is strongly disposed. Native will be stubborn, daring, head of an organization. Sankha Yoga This yoga is formed if lords of 5th and 6th are in mutual quadrant and lord of Lagna is powerful. Native will be fond of pleasures, blessed with good wife and children, learned in sciences, doing good deeds and having long life. Chamar Yoga This yoga is formed when Lagna lord being in exaltation is posited in quadrant and aspected by Jupiter or benefics are posited in Lagna, 7th, 9th, and 10th houses. Native will be good orator, intelligent, successful in politics, and having long life. Bheri Yoga This yoga is formed if Venus, lord of Lagna and Jupiter are in mutual quadrant and lord of 9th house is powerfully disposed. Native will be long lived, enjoying good health, wealthy, happy in married life. Mridanga Yoga This yoga is formed if lord of Navamsa occupied by an exalted planet is posited in a trine or quadrant identical with friendly or exalted sign and lord of Lagna is strongly disposed. The native is respected by others, famous, attractive and commands influence. Sreenatha Yoga This yoga is formed if exalted lord of 7th house occupies 10th and lord of 10th is with 9th lord. Native will be successful in politics, will have impressive personality and enjoy married life. Sarda Yoga This yoga is formed when Sun is in own sign, Mercury is in quadrant and 10th lord is in 5 th house or Mars is in 11 th house and Mercury or Jupiter are posited in 9th from Moon. This yoga makes native very happy with wife and children and enjoys company of good friends. He is learned and gets favour from government. Matsya Yoga This yoga is formed when Lagna and 9th are conjoined with malefics, 5th by both malefics and benefices and 4th and 8th by malefics. This makes native benevolent, polite, intelligent, educated, handsome, religious, famous and learned. Kurma Yoga This yoga is formed when benefics occupy 5th, 6th, and 7th houses and then join their exaltation, own or friendly Navamsa or when benefics occupy 1st, 3rd and 11 th houses identical with their exaltation, own or friendly signs. The native will be world famous, righteous, courageous, happy, helpful to others, leader with mild temperament. Kharag Yoga This yoga is formed when there is an exchange of 2nd and 9th lords and Lagna lord is posited in quadrant or trine. The native will be learned, happy, influential, virtuous, successful and prosperous. Lakshmi Yoga This yoga is formed when Lagna lord is strong and lord of 9th occupies own or exaltation sign identical with quadrant or trine. The native will be wealthy, noble, learned, and handsome and will enjoy all comforts of life. Kusuma Yoga If Jupiter is in Lagna, the Moon in 7th and the Sun is in 8th from the Moon, Kusuma yoga is formed. The native will be a political leader or a senior bureaucrat and enjoys fame. The native is learned and prosperous. Kalanidhi Yoga This yoga is formed when Jupiter is conjoined or aspected by Mercury and Venus either in 2nd or in 5th fine and Jupiter must occupy own signs of Mercury or Venus. The native will be highly passionate, good-natured, respected by govt., enjoying comfort of conveyances, aristocrat and enjoys good health. Samrajya Yoga This yoga is formed when if lord of 9th, 10th or 2nd house is either with Moon or in quadrant with Moon and lord of 11 th house is Jupiter. The native will be prosperous, owner of village or town and honoured by govt. Sakata Yoga This yoga is formed when Moon is in 6th, 8th or 12th from Jupiter. The native will be unfortunate, suffers from miseries, stubborn and hated by relatives. Chapa Yoga This yoga is formed when Lagna lord is exalted and there is exchange of lords of 4th and 10th . The native with be wealthy, control the treasury and honoured by govt. Adhi Yoga This yoga is formed when all the benefics are posited in 6th , 7th and 8th from Moon. The native will be polite, trustworthy, affluent, healthy, and prosperous and enjoys happy and luxurious life. Dur Yoga This yoga is formed when lord of 10th is posited in 6th , 8th or 12th house. Native will not derive the fruits of his effects, looked down by others, will be selfish and will have problems in profession. Daridra Yoga This yoga is formed when lord of 11 th is in 6th , 8th , or 12th house. The native will be under huge debts, will remain poor and will suffer from auditory troubles. Andha Yoga This yoga is formed when Mercury and Moon are in 2nd house or lords of Lagna and 2 nd join 2nd house with Sun. the native will have defective sight during night or may be born blind.

राहु का अन्य ग्रहों पर प्रभाव

राहु-केतु छाया ग्रह हैं, परंतु उनके मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के आधार पर हमारे तत्ववेत्ता ऋषि-मुनियों ने उन्हें नैसर्गिक पापी ग्रह की संज्ञा दी है। केतु को ‘कुजावत’ तथा राहु को ‘शनिवत्’ कहा गया है। परंतु जहां शनि का प्रभाव धीरे-धीरे होता है, राहु का प्रभाव अचानक और तीव्र गति से होता है। राहु-केतु कुंडली में आमने-सामने 1800 की दूरी पर रहते हैं और सदा वक्र गति से गोचर करते हैं। राहु ‘इहलोक’ (सुख-समृद्धि) तथा केतु ‘परलोक’ (आध्यात्म), से संबंध रखता है। यह कुंडली के तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में अच्छा फल देते हैं। सूर्य और चंद्रमा से राहु की परम शत्रुता है। शुभ ग्रहों से युति व दृष्टि संबंध होने पर राहु सभी प्रकार के सांसारिक -शारीरिक, मानसिक और भौतिक -सुख देता है, परंतु अशुभ व पापी ग्रह से संबंध कष्टकारी होता है। फल की प्राप्ति संबंधित ग्रह के बलानुपात में होती है। राहु से संबंधित अशुभ ग्रह की दशा जितने कष्ट देती है, उससे अधिक कष्टकारी राहु की दशा-भुक्ति होती है। राहु द्वारा ग्रसित होने पर सूर्य अपने कारकत्व - पिता, धन, आदर, सम्मान, नौकरी, दाहिनी आंख, हृदय आदि- संबंधी कष्ट देता है। बहुत मेहनत करने पर भी लाभ नहीं मिलता। साथ ही सूर्य जिस भाव का स्वामी होता है उसके फल की हानि होती है। व्यक्ति के व्यवहार में दिखावा, घमंड व बड़बोलापन अंततः हानिकारक सिद्ध होता है। राहु द्वारा ग्रस्त होने पर चंद्रमा जातक की माता को कष्ट देता है। पारिवारिक शांति भंग होती है। जातक स्वयं छाती, पेट, बाईं आंख के रोग, या मानसिक संताप से ग्रसित होता है। उसे डर, असमंजस और चिंता के कारण नींद नहीं आती और वह बुरी आदतों में लिप्त हो जाता है। चंद्रमा के निर्बल और पीड़ित होने पर जातक हताशा में आत्महत्या तक कर लेता है। राहु द्वारा ग्रसित होने पर मंगल जातक को उग्र व क्रोधी बनाता है। वह चिड़चिड़ा और आक्रामक बन जाता है तथा समाज और कानून विरोधी कार्य करता है, लड़ाई-झगड़ा, संपत्ति हानि, चोट, फोड़ा-फुंसी, पित्त व रक्त-विकार, बुखार आदि की संभावना बढ़ जाती है। मंगल के स्वामित्व वाले भावों संबंधी कार्यों में अवरोध व हानि होती है। राहु द्वारा शुक्र के ग्रसित होने पर व्यक्ति अपनी सुख-सुविधाओं को अनैतिक रूप से प्राप्त करता है। उसे चेहरा, गला, आंख, किडनी, प्रजनन प्रणाली ओर यौन रोग की संभावना रहती है। व्यक्ति फिजूल-खर्ची करता है। उसके अन्य स्त्रियों से संबंध होते हैं, जो कष्टकारी सिद्ध होता है। राहु द्वारा बुध के ग्रस्त होने पर व्यक्ति के आचार-विचार में विकृति आती है। पढ़ाई में विघ्न तथा विद्या से लाभ नहीं होता। वह झूठ और बेईमानी का सहारा लेता है। उसे छाती, स्नायु, चर्म और पाचन संबंधी रोग होते हैं। राहु द्वारा बृहस्पति के ग्रस्त होने पर व्यक्ति को पुत्र, विद्या, धन, गुरु, धर्म, आदर, मान तथा सुख-समृद्धि में अवरोध आते हैं। उसे लिवर, मधुमेह, रक्त, हृदय, ट्यूमर, नासिका और चर्बी के रोग होते हैं। बृहस्पति के स्वामित्व वाले भावों संबंधी कार्यों में परेशानियां आती हैं। व्यक्ति की सोच में विकृति आती है। उसके संकुचित और अधार्मिक मार्ग अपनाने से मान-सम्मान में कमी आती है, वह दुखी रहता है। बृहस्पति से संबंध होने पर राहु के दुष्प्रभाव में कमी आती है। इस युति को ‘गुरु’ चंडाल योग’ कहते हैं। राहु द्वारा शनि का ग्रस्त होना सर्वाधिक अनिष्टकारी होता है। व्यक्ति को जीवन में दुख, कष्ट, अवरोध, बीमारी, धन हानि, और तिरस्कार मिलता है। व्यक्ति को सर्दी, जुकाम, पाचन क्रिया, तिल्ली, दांत व हड्डियों के रोग तथा अस्थमा, लकवा और गठिया जैसे दीर्घकालीन रोग होते हैं। इस प्रकार राहु तथा शनि का संबंध कुंडली के फलों में अनेक प्रकार के अवरोध लाता है। राहु के शनि से अगले भाव में स्थित होने पर जातक बहुत नीचे स्तर पर कार्य आरंभ करता है। उसकी प्रगति में अनेक बाधाएं आती हैं। वह असंतुष्ट रहता है। शिक्षा प्राप्ति की आयु में नैसर्गिक अशुभ ग्रहों से संबंधित राहु की दशा-भुक्ति ध्यान केन्द्रित नहीं होने देती और सफलता कठिनाई से मिलती है। राहु पर शुभ प्रभाव होने से टेकनिकल, इंजीनियरिंग, कंप्यूटर और डाॅक्टरी शिक्षा में सफलता मिलती है। राहु के केंद्र या त्रिकोण भाव में, त्रिकोण व केंद्र के स्वामी के साथ स्थित होने पर उसकी अपनी दशा-अंतर्दशा राजयोगकारी फल प्रदान कर व्यक्ति के जीवन को सुखी व समृद्धशाली बनाती है। इस प्रकार शुभ प्रभाव में राहु अपनी दशा-भुक्ति में शुभ फल तथा अशुभ प्रभाव में कष्ट देता है। अतः कुंडली में राहु के प्रभाव और भाव स्थिति का पूर्ण आकलन कर लेने से भविष्य कथन में परिपक्वता आती है। राहु प्रदत्त कष्ट निवारण के लिए प्रति दिन एक माला राहु मंत्र (ऊँ रां राहुवे नमः) का जप, तथा विशेषकर अमावस्या तिथि को एक, तीन या पांच कोढ़ियों को सरसों के तेल से बनी सब्जी, रोटी व एक गुड़-तिल का लड्डू स्वयं दान कर, साथ में कुछ दक्षिणा भी देना चाहिए।

क्यूॅ कराये कुंभ या अर्क विवाह.................

क्यूॅ कराये कुंभ या अर्क विवाह -
यदि लड़के अथवा लड़की की कुंडली में सप्तम भाव अथवा बारहवां भाव क्रूर ग्रहों से पीड़ित हो अथवा शुक्र, सूर्य, सप्तमेष अथवा द्वादशेष, शनि से आक्रांत हों... अथवा मंगलदोष हो अर्थात वर-कन्या की कुंडली मेें १,२,४,७,८,१२ इन भावों में मंगल हो तो यह वैवाहिक विलंब, बाधा एवं वैवाहिक सुखों में कमी करने वाला योग होता है... धर्म सिंधु ग्रंथ में तत्संबंध में अर्क-विवाह (लड़के के लिए) एवं कुंभ विवाह (लड़की के लिए) कराना चाहिए... कुंभ विवाह जब चंद्र-तारा अनुकूल हों, तब तथा अर्क विवाह शनिवार, रविवार अथवा हस्त नक्षत्र में कराना ऐसा शास्त्रमति है... मान्यता है कि किसी भी जातक (वर) के कुंडली में इस तरह के दोष हों, तो सूर्य कन्या अर्क वृक्ष से व्याह करना, अर्क विवाह कहलाता है... कहते हैं इस प्रक्रिया से दाम्पत्य सुखों में वृद्धि होती है और वैवाहिक विलंब दूर होता है... इसी तरह किसी कन्या के जन्मांग इस तरह के दोष होने पर भगवान विष्णु के साथ व्याह कराया जाता है, इसलिए कुंभ विवाह क्योंकि कलश में विष्णु होते हैं...

करें समय का सही उपयोग और पाएं सफलता........

करें समय का सदुपयोग -
समय की शक्ति अद्भुत है। खोया हुआ मान, स्वास्थ्य, भूली हुई विद्या, छिना हुआ धन फिर आ सकता है, परंतु बीता हुआ समय कदापि नहीं लौट सकता। धन से भी महत्वपूर्ण है, समय की संपदा। इसलिए समय को व्यर्थ न जाने दीजिए। समय ही महानता के उच्चतम शिखर तक चढ़ने का सोपान है और सूर्य जैसे ग्रहों के अनुरूप नियम तथा नियमित रह कर समय का सदुपयोग करने से ही सफलता प्राप्त हो सकती है अतः किसी की कुंडली में एकादष स्थान से उसके समय के मूल्य को आंका जा सकता है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में एकादष स्थान का स्वामी उच्च, शुभ तथा अनुकूल स्थान पर हो अथवा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसा जातक अपने कार्य में नियमित होता है तथा यदि उसका तीसरा स्थान भी शुभ हो तो ऐसे जातक की एकाग्रता भी अच्छी होती है यदि इसके साथ ही भाग्य स्थान भी अनुकूल हो तो ऐसे जातक को सफलता प्राप्ति में आसानी होती है अतः यदि आपका भाग्य अनुकूल हो साथ ही तीसरा स्थान एकाग्रता भी दे रहा हो तो एकादष स्थान को अनुकूल करने से आपको अवष्य ही सफलता प्राप्त हो सकती है। यदि आप अपने समय का सदुपयोग ना कर पा रहे हों तो एकादष स्थान के स्वामी ग्रह तथा उस स्थान पर उपस्थित ग्रह की स्थिति तथा उस स्थान से संबंधित ग्रह की दषा और अंतरदषा की जानकारी प्राप्त कर उससे संबंधित ग्रह शांति, मंत्रजाप तथा दान से आप अपने जीवन में समय का सदुपयोग कर अपने जीवन में सफलता प्राप्ति का रास्ता आसान कर सकते हैं। साथ ही कालपुरूष की कुंडली के अनुसार शनि की शांति, मंत्रजाप तथा काली वस्तुओं के दान करने चाहिए।

आपके निर्णय ही करते हैं आपके भविष्य का निर्धारण.........

मनुष्य का जीवन उसके निर्णयों पर आधारित है। हर व्यक्ति को दो या अधिक विकल्पों में से किसी एक को चुनता है और बाद में उसका वही चुनाव उसके आगे के जीवन की दिशा और दशा को निर्धारित करता है। एक सही व सामयिक निर्णय जीवन को समृद्धि के शिखर पर पहुँचा सकता है तो गलत निर्णय बर्बादी के कगार पर ले जा सकता है। कुशलता का अर्थ ही सही काम, सही ढंग से, सही व्यक्तियों द्वारा, सही स्थान व सही समय पर होना है। निर्णय लेना अनिवार्य है किन्तु सही समय पर सही निर्णय लेना सक्षम व कुशल प्रबंधक का ही कार्य है। इसे हम ज्योतिषीय गणना में कालपुरूष की कुंडली द्वार उसके लग्नेष, तृतीयेष, भाग्येष और एकादषेष द्वारा देख सकते हैं। अगर किसी जातक की कुंडली में ये स्थान उच्च तथा उसके स्वामी अनुकूल स्थिति में हों तो उसके निर्णय सही साबित होते हैं और अगर क्रूर ग्रहों से आक्रांत होकर पाप स्थानों पर बैठ जाये तो निर्णय गलत हो जाता है। किंतु कई बार ऐसे विपरीत बैठे ग्रह दषाओं में लिए गए निर्णय बेहद कष्टकारी साबित होते हैं, जिसे कहा जा सकता है कि विनाष काले विपरीत बुद्धि। जैसे किसी की राहु की दषा प्रारंभ हो रही हो या होने वाली हो तो वह नौकरी छोड़ने या व्यापार करने का निर्णय ले ले, जिसमें हानि की संभावना शतप्रतिषत होती है।

देव गुरु बृहस्पति........

ऋषि मुनियों ने बृहस्पति की कल्पना ऐसे पुरूष के रूप में की है जो बृहदकाय, विद्वान, सात्विक एवं मिष्ठानप्रिय है। बृहस्पति देव की कृपा के बिना किसी भी जातक का जीवन सुखी एवं संतुष्ट होना असंभव है। जन्मकुंडली में बृहस्पति कर्क, धनु, मीन राशियों तथा केंद्र 1,4,7,10 या त्रिकोण 5,9 भावों में स्थित होने पर शुभ फल देने वाला और योगकारक कहा गया है। आइए जानते हैं कि किस प्रकार जन्म व चंद्र कुंडली में शुभ प्रभाव में स्थित देव गुरु बृहस्पति जातक को विद्यावान, धनवान, सद्चरित्रवान एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति बनाता है। सौरमंडल के केंद्र, सूर्य के बाद विशाल आकार में बृहस्पति का स्थान आता है। यह सूर्य के अतिरिक्त शेष सभी ग्रहों से विशालकाय ग्रह है। ऋषि महात्मा ने बृहस्पति की कल्पना ऐसे पुरूष के रूप में की जो बृहद्काय विद्वान सात्विक एवं मिष्ठानप्रिय है। बिना बृहस्पति की कृपा दृष्टि के किसी भी जातक का जीवन सुखी और संतुष्ट होना असंभव है। भगवान विष्णु ने इन्हें लोक कल्याण के जो कार्य सौंपे हैं उनके अनुसार यह ग्रह लोक को एक दार्शनिक, आध्यात्मिक मार्ग का निर्देशन देता है और लोगों में धर्म, मर्यादा, सामाजिक कला, पितृ भक्ति, गुरु भक्ति और देव भक्ति की आध्यात्मिक भावना जागृत करता है। किसी जातक की कुंडली में शुभ बलि एवं दुष्प्रभावों से मुक्त होकर बैठा बृहस्पति उनके लिए वरदान है। इस रूप में बृहस्पति बुद्धि, सदव्यवहार, सम्मान, धन संपत्ति, पुत्र प्राप्ति, नैतिकता और उच्च तार्किक क्षमता आदि का दाता कारक एवं संचालक होता है। फलदीपिका में मंत्रेश्वर महाराज ने कहा है बृहस्पति लग्न वा चंद्र लग्न से दूसरे, पांचवें, नौवें, दसवें व ग्यारहवें भावों का कारक भी होता है। सबसे विशेष बात यह है कि बृहस्पति मूलतः सात्विक ग्रह होने के कारण जातक को यह ग्रह भौतिक सुख समृद्धि का विरोध नहीं करता है। हां, अलबता यह पूरी तरह भौतिकता में डूबे व्यक्ति को धर्म और अपनी मर्यादाओं का अहसास जरूर करवा देता है। उपरोक्त स्थिति के विपरीत यदि बृहस्पति कुंडली में बलहीन और दुष्प्रभावित होकर बैठा हो तो संबंधित जातक के लिए अभिशाप होता हैं ऐसी स्थिति में जातक मानवीय और धार्मिक भावनाओं से वंचित हो जाता है और अपना विवेक खो देता है और उसकी अंतरात्मा गूंगी हो जाती है। जन्मकुंडली में बृहस्पति कर्क, धनु, मीन राशियों तथा केंद्र (1, 4, 7, 10) या त्रिकोण (5, 9) भावों में स्थित होने पर शुभ फल देने वाला और योग कारक कहा गया है। बृहस्पति की केंद्रस्थ स्थिति की महत्ता इतनी अधिक है कि उत्तर कालामृत में कालीदास ने लिखा है कि ”किं कुर्वति सर्वेग्रहा यष्य केन्द्रे बृहस्पति“ अर्थात सब प्रतिकूल ग्रह मिलकर भी जातक का क्या बिगाड़ लेंगे जिसके केंद्र में बृहस्पति हो। उक्त स्थितियों में यदि बृहस्पति चंद्रमा या शुक्र या दोनों के साथ हो या उनकी शुभ दृष्टि में हो अथवा चंद्रमा से केंद्र में हो तो अत्यंत प्रभावशाली योग बनताता है। कुछ ज्योतिर्विदों ने केंद्र भाव के स्वामी होने पर बृहस्पति को अशुभ माना है और वह यदि स्व राशि में केंद्र में स्थित हो तो मारक माना है। उन विद्वानों का मत है कि बृहस्पति की यह मारक स्थिति अपनी राशि में लग्न से दसवें भाव में स्थित होने पर सर्वाधिक घातक होती है। लेकिन हम इससे सहमत नहीं है और इसके विपरीत केंद्र में स्वराशि में स्थित बृहस्पति हंस योग बनाता है जो जातक को दीर्घायु स्वस्थ सुखी और प्रतिष्ठित तथा संपन्न बनाता है। इसी प्रकार बृहस्पति यदि छठे भाव में स्थित हो तो जातक के लिए शत्रुनाशक होता हैं अष्टम भाव में बैठा बृहस्पति यद्यपि जातक को दीर्घायु बनाता है लेकिन कुछ विद्वानों के मतानुसार बृहस्पति धन संपत्ति का नाश करके जातक को गरीबी की ओर धकेल देता है। यहां भी हम सहमत नहीं है अष्टम भाव में बैठा बृहस्पति जातक को धनवान, बुद्धिमान एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति बनाता है क्योंकि अष्टम भाव में स्थित बृहस्पति द्वितीय एवं चतुर्थ स्थान को देखकर उन भावों को पुष्ट करता है तथा षष्ठ से द्वादश एवं द्वितीय स्थान को दृष्टिपात करके लग्न को ‘शृभ मध्यत्तव’ का लाभ पहुंचाता है जिससे लग्न भाव को बल मिलता है। लग्न बलशाली होने से मनुष्य के जीवन में मूल्य की प्राप्ति होती है जो उसे स्वास्थ्य, बुद्धिमान, धनवान, सदचरित्रवान एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति बनाता है। इसके अतिरिक्त द्वितीय स्थान का शासन से घनिष्ट संबंध है और द्वितीयेश का केंद्रादि में स्थित होकर बलवान होना राज्य की प्राप्ति करवाता है। आइए जानते हैं कि किस प्रकार जन्म व चंद्र कुंडली में शुभ प्रभाव में स्थित देव गुरु बृहस्पति व्यक्ति को विद्यावान, धनवान सदचरित्रवान एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति बनाता है।

उच्च नीच के ग्रह कैसे और क्यूँ होते हैं????????

ज्योतिष में रुचि रखने वाले उच्च/ नीच के ग्रहों से रोजाना मुखातिब होते हैं और ग्रहों की इस स्थिति के आधार पर फलकथन भी करते हैं। शाब्दिक परिभाषा के आधार पर ‘उच्च’ का तात्पर्य सामान्य स्तर से ऊँचा और ‘नीच’ का तात्पर्य सामान्य स्तर से नीचा होता है। इस लेख का विषय है कि ग्रह उच्च/नीच के क्यों और कैसे होते हैं? खगोलीय दृष्टिकोण आज यह तथ्य सर्वविदित है कि सौरमण्डल के सभी सदस्य ग्रह अपने गुरुत्वाकर्षण बल से बंधे हैं और सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। चूंकि जातक (प्रेक्षक) पृथ्वी पर जन्म लेता है इसलिये अगर हम ग्रहों को पृथ्वी से देखें तो किसी ग्रह विशेष का ‘उच्च’ वह बिंदु हुआ जब वह पृथ्वी से अधिकतम दूरी (सूर्य सिद्धांत के अनुसार मंदोच्च) पर होता है। इसी प्रकार ‘नीच’ वह बिंदु हुआ जब वह पृथ्वी से न्यूनतम दूरी (सूर्य सिद्धांत के अनुसार शीघ्रोच्च) पर होता है। भचक्र (चित्र) को 12 बराबर भागों में बांटा गया है और प्रत्येक भाग एक राशि का प्रतिनिधित्व करता है। कौन से ग्रह कितने डिग्री पर उच्च और नीच होता है यह निम्न तालिका में वर्णित है। वैदिक दृष्टिकोण फलित में जातक की कुंडली के योगों, दशाओं, अष्टकवर्ग और गोचर के अतिरिक्त ग्रहों की शक्ति एवं दुर्बलता का आकलन भी किया जाता है। ग्रहों के बल का निर्धारण षड्बल गणना-पद्धति के अंतर्गत आता है और जिसे सभी विद्वानों द्वारा निर्विवादित मान्यता प्राप्त है। ‘षड्बल’ संस्कृत भाषा का शब्द है और इसका अर्थ है, छह प्रकार के बल यानी ग्रहों के द्वारा छह स्रोतों से प्राप्त बल का आकलन। महर्षि पराशर के अनुसार छह प्रकार के बल स्रोत हैं: स्थान बल, दिग्बल, कालबल, चेष्टा बल, नैसर्गिक बल, दृग्बल। सभी प्रकार के बलों को पद्धतिनुसार निकालने के पश्चात ही किसी ग्रह के बल का आकलन किया जाता है। चूंकि लेख का विषय उच्च/नीच है तो हम उसी पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। उच्च/नीच बल, स्थान बल के पाँच भागों में से एक है। अन्य चार हैं: सप्तवर्ग बल, ओज युग्म बल, केंद्र बल और द्रेष्काॅण बल। अर्थात, कुल छह स्रोतों में से ‘स्थान बल’ एक है और ‘स्थान बल’ के पाँच भागों में से उच्च/नीच बल एक है। किसी ग्रह के किसी राशि विशेष में स्थित होने से उसे केवल अतिरिक्त उच्च/नीच स्थान बल प्राप्त होता है। अर्थात, ग्रहों का कुल षड्बल ही फलित के दृष्टिकोण से उपयोग में लाना चाहिये और कुंडली में केवल उच्च/नीच के ग्रहों के होने मात्र से कभी भी तत्काल कोई निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिये। उच्च और नीच क्यों? ग्रह उच्च/नीच के क्यों माने जाते हैं? यह तर्कसंगत रूप में कहीं भी परिभाषित नहीं मिल पाया है। फिर भी अगर समझने का प्रयास करें: हम यह जानते हैं कि सभी ग्रहों और राशियों के अपने-अपने गुण/ तत्व/ स्वभाव/ प्रवृत्ति/ मैत्री/ वर्ण होते हैं। तो क्या यह किसी प्रकार राशि विशेष के गुण/ तत्व/ स्वभाव/ प्रवृत्ति/ मैत्री/ वर्ण से तो संबंधित नहीं है? चंद्र, वृषभ राशि में उच्च के होते हैं। चंद्र एक जल तत्व ग्रह है और वृषभ एक पृथ्वी तत्व राशि है। पृथ्वी अर्थात स्थिरता होने से जल प्रवाह को मजबूत आधार, स्थिरता और दिशा मिलती है और इस कारणवश चंद्र के कारक तत्वों में वृद्धि होती है जैसे भावनाओं का संतुलन भली-भांति हो पाता है जिससे आपसी संबंधों में भी लाभ प्राप्ति होती है। चन्द्र, वृश्चिक राशि में नीच के होते हैं। वृश्चिक एक स्थिर राशि के साथ-साथ जल तत्व प्रधान राशि भी है। जल तत्व/प्रवाह की अधिकता (चन्द्र भी जल तत्व) के फलस्वरूप चंद्र के कारक तत्वों में असंतुलन हो जाता है। जिस प्रकार जल की अधिकता (बाढ़) से सब कुछ नष्ट हो जाता है उसी प्रकार भावनाओं के असंतुलन या कमजोर इच्छा शक्ति से भी कष्ट और परेशानियां बहुत बड़ी लगती हैं और जीवन का संतुलन पूर्णतः बिगड़ जाता है। मंगल, मकर राशि में उच्च के होते हैं। मंगल एक अग्नि तत्व ग्रह है और मकर एक स्थिर एवं पृथ्वी तत्व राशि है। मंगल की अग्नि/ आक्रामकता/शक्ति का एक स्थिर राशि में धैर्य पूर्ण ढंग से, संतुलित एवं सकारात्मक रूप से उपयोग होता है। इसलिये, मंगल मकर राशि में अतिरिक्त स्थान बल प्राप्त कर उच्च के होते हैं। मंगल, कर्क में नीच के होते हैं। कर्क एक जल तत्व राशि है जो अग्नि को बुझा देती है। अर्थात, मंगल अपना स्थान बल पूर्णतः खो देते हैं और जातक में उदाहरणतः कम साहस, डरपोकपन या अनावश्यक क्रोध आ सकता है। बुध, कन्या राशि में उच्च के होते हैं। बुध, अपनी बुद्धिमानी, वाणी, व्यावहारिकता, विश्लेषणात्मक शक्ति आदि के कारक हैं और एक पृथ्वी तत्व ग्रह हैं। कन्या एक द्विस्वभाव एवं पृथ्वी तत्व राशि है। अर्थात, पृथ्वी तत्व ग्रह को पृथ्वी तत्व राशि में एक शक्तिशाली आधार मिलता है और व्यावहारिकता और मानसिक श्रेष्ठता को बनाने या बनाये रखने में सहायता मिलती है। बुध, मीन राशि में नीच के होते हैं। मीन एक जल तत्व और द्विस्वभाव राशि है। जल राशि में बुद्धिमानी, वाणी, व्यावहारिकता, विश्लेषणात्मक शक्ति आदि को ठोस आधार नहीं मिल पाता है और अव्यावहारिकता बढ़ती है। स्थिरता की कमी के कारण बुध स्थान शक्ति खो देते हैं और स्वयं को मीन राशि में सर्वाधिक निर्बल पाते हैं। गुरु, कर्क राशि में उच्च के होते हंै। कर्क, एक जल तत्व राशि है। गुरु, एक आकाश तत्व एवं ज्ञान का ग्रह है जिन्हें जल में प्रबल प्रवाह मिलता है जो ज्ञान के विस्तार में सहायक होता है। अर्थात, गुरु अपने कारक तत्वों में अत्यधिक तेजी से वृद्धि कर पाते हैं। गुरु, मकर में नीच के होते हैं। मकर एक स्थिर राशि है जो ज्ञान के विस्तार/प्रवाह में ठहराव का वातावरण निर्मित करता है। ज्ञान व्यक्ति को पैसे, यश और शक्ति से भी अधिक अहंकारी बनाता है। गुरु की कारक तत्वों में कमी से जातक अहंकारी, भौतिकवादी और स्वार्थी हो जाता है। शुक्र, मीन राशि में उच्च के होते हैं। शुक्र, एक जल तत्व प्रधान ग्रह है और मीन एक द्विस्वभाव व जल तत्व प्रधान राशि है। शुक्र की राजसिक प्रवृत्ति के कारण उनको भोग-विलास, सौन्दर्य, कला, प्रशंसा इत्यादि प्रिय हैं। हालाँकि, शुक्र का जल तत्व और मीन का जल तत्व जल की अधिकता प्रदर्शित करता है परन्तु मीन पर गुरु का स्वामित्व है इसीलिए इस राशि में जल प्रवाह संतुलित, सकारात्मक व ज्ञान वर्धक है। शुक्र, कन्या में नीच के होते हैं। शुक्र एक जल तत्व प्रधान ग्रह हैं और कन्या एक पृथ्वी तत्व व द्विस्वभाव राशि है। शुक्र के ऐश्वर्य एवं भोग-विलास की इच्छा को कन्या का पृथ्वी तत्व स्थिरता प्रदान करता है अर्थात उनकी पूर्ति होने से रोकता है। जातक भौतिकवादी बन सकता है और भोग-विलास प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है अर्थात, बलहीन या नीच का होता है। शनि, तुला में उच्च के होते हैं। शनि वायु तत्व प्रधान ग्रह है और तुला वायु तत्व प्रधान राशि है। वायु तत्व को वायु राशि का साथ मिलने से अतिरिक्त स्थान बल प्राप्त होता है और अत्यधिक अनुकूल वातावरण बनता है। सबल शनि, जातक को भय से मुक्ति, तप-तपस्या, न्याय, सहिष्णुता, दयालुता इत्यादि प्रदान करता है। शनि, मेष में नीच के होते है। शनि वायु तत्व ग्रह हैं और मेष अग्नि तत्व राशि है। वायु के प्रवाह में अग्नि का सम्मिलित होना केवल नुकसान का ही द्योतक हो सकता है। निर्बल शनि, जातक को मानसिक और शारीरिक हानि जैसे दरिद्रता, बीमारी आदि देता है।

साप्ताहिक राशिफल 19 से 27 जून 2016

मेष राशिफल
यह सप्ताह आपके लिए अनुकूल रहेगा क्योंकि सप्ताह की शुरुआत से ही सभी ग्रह आपके लिए अनुकूल रहने से आपको अनुकूल फल प्राप्त होगा मानसिक शांति एवं अपनो का साथ प्राप्त होगा। इस समय आप का कार्य व्यवसाय बेहतर रहेगा। सप्ताह के मध्य में भी चीजों के बेहतर होने की उम्मीद है, निजी जीवन भी सुखद रहेगा जबकि सप्ताहांत में स्वास्थ्य में चोट अथवा प्रदूषित आहार से शारीरिक कष्ट हो सकता है, सावधानी जरूरी होगी।
उपाय - 1. ऊॅ सों सोमाय नमः का जाप करें....
2.चावल, कपूर, का दान करें....
3.शिव सहस्त्रनाम का पाठ करें...
4.शंकरजी का जल से अभिषेक करें....
वृषभ राशिफल -
शुरुआती दिनों में कुछ घरेलू मामलों को लेकर तनाव सम्भव है, लेकिन सप्ताह आपके लिए अपेक्षाकृत अनुकूल है। हालांकि सप्ताह के मध्य में पारिवारिक परिस्थिति में आई अनुकूलता तनाव को दूर कर देगी। संतान या शिक्षा को लेकर भी जो चिंताएँ हैं वो दूर होंगी। आपकी मेहनत रंग लाएगी। सप्ताहांत में अपने दाम्पत्य जीवन पर विशेष ध्यान देना होगा। इस सप्ताह स्वास्थ्य की दृश्टि से भी बेहतर होगा।
उपाय -
1.ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें तथा माॅ महामाया के दर्शन कर दिन की शुरूआत करें....
2.चावल, धी, दूध, दही का दान करें....
मिथुन राशिफल
इस सप्ताह के आरम्भिक दिन आपके लिए अनुकूल हैं। इस समय भाई-बंधु साथ होंगे। आपका आत्मविश्वास बेहतर रहेगा। कम दूरी की यात्राएँ सफल रहेंगी। भाग्य साथ देगा। सप्ताह के मध्य में दुविधा की स्थिति से बाहर निकल कर घरेलू समस्याओं को दूर करने की कोशिश करें। इस काम में मित्रों का सहयोग भी लिया जा सकता है। सप्ताहांत में सभी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी।
केतु के लिए निम्न उपाय करें -
1.गणपति की उपासना करें, धूप, दीप तथा नैवेद्य चढ़ायें...
2.ऊॅ कें केतवें नमः का जाप कर दिन की शुरूआत करें...
कर्क राशिफल
यह सप्ताह आपके लिए मिश्रित फलदायी रहेगा। सप्ताह की शुरुआत खर्चों वाली रह सकती है। इस समय अपनी वाणी पर विशेष संयम रखें। सप्ताह के मध्य में सामान्यतः अनुकूल परिणाम मिलेंगे लेकिन इस समय किसी भी तरह के दबाव में आकर निर्णय लेने से बचें। परिवार के लोगों को समय देना होगा, कार्य भी प्रभावित हो सकता है, व्यवसायिक दृश्टि से इस बात का कोई बहुत प्रभाव नहीं होगा किंतु कुछ जरूरी कार्य में विलंब हो सकता है। सप्ताहांत में कुछ दोस्तों के साथ प्लान बन सकता है, जिससे बजट बिगड़ने की संभावना। इसके साथ छोटी यात्रा से षारीरिक कश्ट संभव।
शांति के लिए आप-
1.‘‘ऊॅ शं शनिश्चराय नमः’’ का जाप कर दिन की शुरूआत करें....
2.भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें....
सिंह राशिफल
यह सप्ताह सावधानी से काम लेने का है। इस समय भावनाओं में बहकर नहीं, अपितु तर्कों को कसौटी में कसने के बाद ही कोई निर्णय लेना उचित रहेगा। सप्ताह के मध्य में अपेक्षाकृत बेहतर परिणाम मिलने की उम्मीद है। आप अपने योग्यता के कारण चीजों को बेहतर करेंगे लेकिन सप्ताह के अंत में हर मामले में संयमित रहें। अपने आहार और निद्रा को नियमित रखें अन्यथा षारीरिक परेषानियाॅ हो सकती है।
उपाय -
1.ॐ धृणिः सूर्याय नमः का जाप कर, अध्र्य देकर दिन की शुरूआत करें,
2.लाल पुष्प, गुड, गेहू का दान करें,
कन्या राशिफल
सामान्य तौर पर सप्ताह मिले जुले परिणाम देगा। सप्ताह के प्रारंभ में मन में कुछ बेचैनी भी रहेगी लेकिन सप्ताह के मध्य में चीजें बेहतर होंगी। परेशानियाँ बहुत हद तक कम हो जाएँगी। बड़ों का सहयोग मिलेगा। हालांकि आर्थिक मामलों में तब भी सावधानी जरूरी होगी लेकिन सप्ताह के अंत में जोश और होश के संगम से आप चीजों को बेहतर करेंगे। इस सप्ताह स्वास्थ्य भी अपेक्षाकृत बेहतर होगा
शांति के लिए -
1.ऊॅ गुरूवे नमः का जाप करें,
2.मीठे पीले खाद्य पदार्थ का सेवन करें तथा दान करें,
तुला राशिफल
सप्ताह के शुरुआत में पिछले दिनों किए गए कामों के परिणाम मिलने के योग हैं। मन प्रसन्न रहेगा, वरिष्ठों का सहयोग मिलेगा। प्रेम प्रसंग के लिए भी यह समय अनुकूल रहेगा। जबकि सप्ताह के मध्य में आकस्मिक खर्च आ सकता है। अतः आर्थिक मामलों में संयम से काम लेने की जरूरत रहेगी। वहीं सप्ताहांत में चीजें बेहतर होंगी लेकिन आर्थिक मामलों में इस समय भी सावधानी रखनी होगी। पारिवारिक सदस्यों में से किसी को चिकित्सक एवं दवाई की आवष्यकता हो सकती है।
राहत के लिए-
1.ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें तथा माॅ महामाया के दर्शन कर दिन की शुरूआत करें,
2.चावल, धी, दूध, दही का दान करें.....
वृश्चिक राशिफल
इस सप्ताह आपके प्रयास और बीते दिनों में आपके द्वारा शुरु किए गए प्रोजेक्ट को बेहतर ढंग से निपटाने में आप कामयाब होंगे और आपकी मेहनत रंग लाएगी। वरिष्ठों का सहयोग मिलेगा। न केवल काम बनेगा बल्कि मान-सम्मान में भी बढ़ोत्तरी होगी। लाभ का प्रतिशत बढ़ा रहेगा लेकिन सप्ताह के मध्य में अचानक कुछ धन खर्च हो सकता है। इस समय दूर की यात्राएँ भी संभावित हैं। सप्ताह के अंत में मिले जुले परिणाम मिलेंगे। अपने तनाव को नियंत्रित रखें और गुस्से पर काबू रखें।
दोषों के निवारण के लिए -
1.ऊॅ रां राहवे नमः का जाप कर दिन की शुरूआत करें....
2.धतूरे की माला शिवजी में चढ़ायें....
धनु राशिफल
सामान्य तौर पर यह सप्ताह अनुकूल रहेगा। किसी धार्मिक या सामाजिक काम से जुड़ने का मौका मिले तो जरूर जुड़िए। इस समय काम-धंधे को लेकर कोई यात्रा भी संभावित है। गुरुजनों के आशीर्वाद से काम बनेगा। सप्ताह का मध्य बहुत बेहतर रहेगा। न केवल काम बनेंगे बल्कि अच्छी आमदनी भी होने के योग हैं। लेकिन सप्ताहांत अपेक्षाकृत कमजोर रह सकता है क्योंकि आपके कार्य और स्वास्थ्य की स्थिति विपरीत हो सकती है।
शांति के लिए -
1.ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें,
2.हनुमानजी की उपासना करें,
3.मसूर की दाल, गुड या तांबा दान करें,
मकर राशिफल
सप्ताह की शुरुआत में आपको बड़ी सावधानी व चतुराई से काम लेना होगा। हालांकि चिंता जैसी कोई बात नहीं लेकिन सावधानी की जरूरत रहेगी। जबकि सप्ताह का मध्य काफी हद तक बेहतर रहेगाय धर्म-कर्म में रुचि जाएगी। काम भी बनेंगे। परिवार की नाराजगी दूर करने कायह समय काफी अनुकूल है। सप्ताह के अंत में सावधानी से काम लेने पर लाभ मिलेगा। आपके अपनो का सहयोग और सप्ताहंात में आराम प्राप्त होने से आने वाला समय भी अनुकूल हो सकता है।
अतः शनि से उत्पन्न कष्ट के लिए -
1.‘‘ऊॅ शं शनिश्चराय नमः’’ का जाप कर दिन की शुरूआत करें,
2.भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,
कुम्भ राशिफल
यह सप्ताह आपको मिले-जुले फल देने वाला है। शुरुआती दिनों में अनुकूल फल मिलेंगे। दाम्पत्य जीवन सुखद रहेगा। यदि साझेदारी में कोई काम कर रहे हैं तो उसके बेहतर होने के योग हैं। वहीं सप्ताह के मध्य में स्वास्थ्य का ख्याल रखना बहुत जरूरी होगा, विशेषकर वाहन बड़ी सावधानी से चलाना होगा। सप्ताह के अंतिम दिनों में बेहतर परिणाम मिलेंगे और काम बनेंगे। इस सप्ताह किसी जानवर अथवा दूसरों की गलती के कारण आप चोटिल हो सकते हैं।
राहु कृत दोषों की शांति के लिए -
1.ऊॅ रां राहवे नमः का जाप कर दिन की शुरूआत करें,
2.धतूरे की माला शिवजी में चढ़ायें,
मीन राशिफल
सप्ताह की शुरुआत में आप खूब मेहनत करेंगे। इस समय आप औरों की नजर में इश्र्या का कारण बनेंगे। आपका उत्साह बढ़ा रहेगाय स्वाभाविक है इससे आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। निजी जीवन भी सुखी रहेगा। लेकिन सप्ताह के मध्य में सावधानी से काम लेना होगा। इस समय किसी से विवाद करना ठीक नहीं रहेगा, लेकिन सप्ताहांत से बेहतर परिणाम मिलने शुरू हो जाएंगे। इस समय आपकी यष और कार्य की स्थिति बेहतर होगी, किंतु खर्च के कारण तनाव संभव, पेट की तकलीफ हो सकती है।
शांति के लिए -
1.ऊॅ ब्रं ब्रहस्पतये नमः का जाप करें....
2.मीठे पीले खाद्य पदार्थ का सेवन करें तथा दान करें....
3.साईजी के दर्षन करें.

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Monday 20 June 2016

अज्ञात पितृ दोष शांति.........


राशिफल 20 जून 2016

---मेष राशि - Aries
धार्मिक प्रवृत्ति रहेगी....
नये वस्त्र या गहने की खरीदी...
आहार का संयम...
मीठी चीजें संभल कर खायें...
उपाय-
1.उॅ नमः शिवाय नमः का जाप करें...
2.माता दुर्गा को दूध, चावल का दान करें...
3.श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
4.रूद्राभिषेक करें...
-------वृषभ -Tarus
बिजनेस का एक्सटेंशन...
सामूहिक विवाद से बचें...
आर्थिक कष्ट....
शांति के लिए -
1.माॅ दुर्गा को मसूर दाल या लाल वस्त्र चढ़ायें....
2.दुर्गा कवच का पाठ करें....
मिथुन -Gemini
व्यवसायिक तनाव...
प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता...
पिता को स्वास्थ्य कष्ट...
मांगलिक कार्य संभव...
उपाय -
1.ऊॅ बृं बृहस्पतयै नमः का एक माला जाप करें....
2.मंदिर में केला, नारियल का दान करें....
3.माता के मंदिर में पीले वस्त्र का चढ़ावा चढ़ायें....
-----कर्क -Cancer
परिवार का साथ....
मानसिक शांति...
अध्ययन या यष में कमी....
उपाय
सफेद खाद्य पदार्थ का भोग लगाकर स्वयं सेवन करें....दूध...दही का सेवन भी लाभकारी होगा....
------सिंह -Leo
मातृपक्ष के सदस्यों से मुलाकात...
पूरा दिन पूजा में बितेगा...
मानसिक शांति देगा...
उपाय -
1.‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ का जाप करें.
2.माता दुर्गा को वायलेट रंग का वस्त्र चढ़ायें....
3.उड़द या तिल से हवन करें....
-----कन्या -Virgo
वित्तीय इंवेस्टमेंट का समय...
निर्णय में विलंब या भ्रम...
बड़ो का सहयोग....
उपाय-
1.ऊॅ सों सोमाय नमः का एक माला जाप करें......
2.खीर बनाकर कम से कम एक कन्या को खिलायें....
3.स्वेत वस्त्र माता दुर्गा को अर्पित करें......
------तुला -Libra
विवाद की समाप्ति संभव...
आहार की अनियमितता...
व्यवसाय में नवीनीकरण...
निवृत्ति के लिए -
1.प्रातः स्नान के उपरांत सूर्य को जल में लाल पुष्प तथा शक्कर मिलाकर.... अध्र्य देते हुए..... ऊॅ धृणि सूर्याय नमः का पाठ करें.....
2.गुड़.. गेहू...का दान करें..
3.आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करें...
------वृश्चिक -Scorpio
बौद्धिक चातुर्य से विवाद का निपटारा...
प्रसिद्धि की प्राप्ति....
अधिनस्थों को सहायता देंगे....
टीवी कम्प्यूटर में समय खराब...
उपाय करें -
1.ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2.हनुमानजी की उपासना करें..
3.मसूर की दाल, गुड दान करें..
-------धनु - Sagiterius
घरेलू वस्तुओं की खरीदी....
अध्ययन संबंधी की तैयारी करेंगे...
शारीरिक कष्ट की संभावना....
निवृत्ति के लिए -
1.ऊॅ बृं बृहस्पतयै नमः का एक माला जाप करें....
2.पुरोहित को केला, नारियल का दान करें....
3.साई जी के दर्शन कर दिन की शुरूआत करें....
------मकर -Capricon
घर में आराम करेंगे....
वस्त्र या आभूषण की खरीदी...
उत्साह तथा तंदुरूस्त...
उपाय आजमायें -
1.ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2.माॅ महामाया के दर्शन करें...
3.चावल, दूध, दही का दान करें...
-------कुंभ -Aquarius
यात्रा की संभावना...
घरेलू सुख में वृद्धि...
नौकरी में अचानक अपयष....
पैरों में कष्ट...
निवारण के लिए -
1.‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें.
2.भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,
3.उड़द या तिल दान करें,
--------मीन -Pieces
नयी योजना की शुरूआत....
इलेक्ट्रानिकीकरण....
विरोध तथा हानि की संभावना...
शांति के लिए -
1.ऊॅ रां राहवे नमः का एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें..
2.मूली का दान करें..
3.सूक्ष्म जीवों को आहार दें..

भानुसप्तमी के श्राद्ध से पायें स्वास्थ्य लाभ..........

मानव जाति त्रिविध (आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक) कष्ट भोगता है उनमें मृत पूर्वजों की अतृप्ति के कारण वंशजों को जो कष्ट होता है वह आध्यात्मिक कारणों से होने वाले कष्टो में से एक है। समस्याओं से मुक्ति के अनेक उपाय करने के बावजूद भी राहत नहीं मिलती है। सामान्यतः दैनिक जीवन में अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। शारीरिक रूप से कमजोर, मानसिक रूप से विक्षिप्त, विकलांग रूप में जन्म लेना इत्यादि। सप्तमी का श्राद्ध भानुसप्तमी के नाम से किया जाता है। जिसमें श्राद्धकर्म करने से सूर्यग्रहण में किए गए पुण्य के बराबर फल मिलता है और आने वाले वंष को शारीरिक कष्टो से छुटकारा मिलकर स्वास्थ्य एवं समृद्धि की प्राप्ति का योग बनता है। किसी भी प्रकार से शारीरिक या किसी बीमारी से मृत्यु को प्राप्त पितरों के कारण शारीरिक कष्टो के कारण जीवन दुखमय होने पर दुख की निवृत्ति और उस प्रकार के शारीरिक कष्ट से रक्षा हेतु भानुसप्तमी का श्राद्ध करने का विधान वेदों में है। इस दिन दीपक, कपूर, धूप, लालपुष्प और चावल, शक्कर से सूर्य को गंगाजल का अध्र्य देते हुए सूर्य पुराण का पाठ कर दान देने से चर्मरोग पंगुपन या मूकपन से मुक्ति प्राप्त होती है।

वृद्धि श्राद्ध से कैसे पायें समृद्धि??????

हिन्दूधर्म की मान्यता अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता, पूर्वजों को आर्शीवाद लेना प्रमुख कर्तव्य है, हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही आज यह सुखी जीवन देख रहे हैं, इस जीवन का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। वेदों में वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया, जिस पक्ष में हम अपने पितरों का श्राद्ध, तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अर्ध्य समर्पित करते हैं। यदि किसी कारण से उनकी आत्मा को मुक्ति प्रदान नहीं हुई है तो हम उनकी शांति के लिए विशिष्ट कर्म करते है इसीलिए आवश्यक है -श्राद्ध और साथ ही जीवन में किसी प्रकार के वृद्धिकार्य जैसेे विवाहादि संस्कार, पुत्र जन्म, वास्तु प्रवेश इत्यादि प्रत्येक मांगलिक प्रसंग में भी पितरों की प्रसन्नता हेतु जो श्राद्ध होता है उसे वृद्धि श्राद्ध कहते हैं। इसे नान्दीश्राद्ध या नान्दीमुखश्राद्ध के नाम भी जाना जाता है, यह एक प्रकार का कर्म कार्य होता है। दैनंदिनी जीवन में देव-ऋषि-पित्र तर्पण भी किया जाता है, जिससे जीवन में जो समृद्धि प्राप्त होती है वह चिरस्थायी बनी रहे और निरंतर वृद्धि प्राप्त होती रहे इस हेतु वृद्धि श्राद्ध किये जाने का विधान है।

ज्योतिष्य उपायों की सार्थकता



ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य का भाग्य उसके पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार लिखा है जिसे कोई भी नहीं बदल सकता। खासकर मनुष्य के जीवन की निम्नांकित तीन घटनाओं को कोई नहीं बदल सकता। 1. जन्म, 2. परण (विवाह) एवं 3. मरण (मृत्यु)। मनुष्य के जीवन की यह तीन घटनाएं भाग्य के अनुसार होती हैं और यह भी कहा गया है कि विवाह के लिये जोड़े स्वर्ग में बनते हैं, इसमें मनुष्य का कोई रोल नहीं है। इस कारण विवाह के पश्चात् पति पत्नी को सामंजस्य बनाए रखते हुए सुख पूर्वक जीवन यापन करना चाहिए। रामायण में भी श्री तुलसीदास जी ने उल्लेख किया है कि ”होइहंै वही जो राम रूचि राखा“ इसका तात्पर्य है कि ईश्वर के द्वारा लिखे गये भाग्य के अनुसार जीवन चलता है। किसी मनुष्य का जन्म महल में होता है और किसी का झोपड़ी में, यह भी उसके पूर्व जन्म के कर्म के अनुसार होता है। परंतु महल में जन्मे कुछ व्यक्ति भी कुछ समय पश्चात् अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करते हैं, यह उसके जन्म के समय स्थित ग्रहों के अनुसार होता है। मनुष्य के भविष्य के संबंध में ज्योतिष ही एक ऐसी विद्या है जिससे भविष्य की योजना बनाकर आगे बढ़ने से सफलता मिलती है। मनुष्य जन्म लेता है तो मृत्यु अवश्य होगी वह भी निर्धारित समय पर इसे कोई नहीं बदल सकता। अब प्रश्न यह उठता है कि यदि भाग्य नहीं बदला जा सकता तो मनुष्य के लिए ज्योतिष की उपयोगिता क्या है। यह सत्य है कि ज्योतिषी की सलाह से भाग्य नहीं बदला जा सकता, परंतु अनुभव ने यह सिद्ध कर दिया है कि शुभ ग्रह एवं योग कारक ग्रहों के रत्न (जेम स्टोन) धारण करने से लोगों को लाभ मिला और अनिष्टकारी ग्रहों के मंत्र जाप, दान एवं संबंधित देवता की पूजा करने से अनिष्ट होने से रूका या कम हुआ। कई ज्योतिष ग्रंथों एवं वेद-शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि अशुभ ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए उनके मंत्र जाप, उनकी वस्तुओं का दान या ग्रह से संबंधित देवता की आराधना करने से ग्रहजनित अनिष्ट फल कम होने की प्रबल संभावना रहती है। इन नियमों के अनुसार सलाह से अनेक लोगों को लाभ प्राप्त हुआ। सर्वश्रेष्ठ उपाय के तौर पर शुभ ग्रह एवं योगकारी ग्रह के रत्न धारण करने से करीब-करीब सभी लोगों को लाभ हुआ। किस राशि एवं लग्न के व्यक्ति को कौन सा रत्न धारण लाभकारी है इसका उल्लेख नीचे किया जा रहा है - व्यक्तित्व के निखार के लिए लग्नेश एवं त्रिकोणेश दोनों के रत्न धारण करना चाहिए। इनसे भाग्योदय भी त्वरित गति से होगा। कुछ विद्वानों का मत है कि नीच राशि स्थित ग्रह यदि लग्नेश या त्रिकोणेश भी हो, तब भी उसका रत्न नहीं धारण करना चाहिए। परंतु यह सिद्ध पाया गया कि यदि उक्त ग्रह नीच का हो ता उसका रत्न अवश्य धारण करना चाहिए। अनुभव में ऐसा पाया गया है कि बहुत सारे व्यक्ति जिन्हें शिक्षा, व्यवसाय अथवा अन्य क्षेत्रों में सफलता नहीं मिल रही थी, उन्होंने उपयुक्त रत्न धारण किए तो उन्हें आशातीत सफलता प्राप्त हुई। एक जातक जिसका वृश्चिक लग्न है और गुरु मकर में नीच राशि में है, वह बार-बार सी.ए. की परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो रहा था, उसे पीला पुखराज और माणिक्य पहनाया गया और वह अंतिम परीक्षा में पास होकर चार्टर्ड अकाउंटेंट बन गया। क्र.लग्न लग्नेश लग्नेश त्रिकोणेश का रत्न का रत्न 1 मेष मंगल मूंगा पुखराज 2 वृष शुक्र हीरा पन्ना एवं नीलम 3 मिथुन बुध पन्ना हीरा 4 कर्क चंद्र मोती मूंगा 5 सिंह सूर्य माणिक्य मूंगा 6 कन्या बुध पन्ना हीरा 7 तुला शुक्र हीरा नीलम 8 वृश्चिक मंगल मूंगा पुखराज 9 धनु गुरु पुखराज माणिक्य 10 मकर शनि नीलम हीरा 11 कुंभ शनि नीलम हीरा 12 मीन गुरु पुखराज मोती इसी प्रकार जिस वृश्चिक राशि एवं लग्न वाले व्यक्ति का भाग्येश चंद्र नीच राशि में रहते हैं, उसे मोती बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ है एवं तुला राशि वाले को शनि मेष में नीच राशि का होने से नीलम बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ है। उपर्युक्त दोनों प्रकरणों में चंद्र एवं शनि योगकारी होने से बहुत लाभकारी होना चाहिए, परंतु नीच राशि स्थित होने से बहुत अशक्त है। उनका रत्न पहनना बहुत ही लाभकारी सिद्ध हुआ है। महर्षि वाराह मिहिर ने पंच महापुरूष राजयोगों की व्याख्या अपने ग्रंथ वृहत्संहिता में इस प्रकार की है: पांच तारा ग्रह (मंगल, बुध, गुरु, शुक्र या शनि) में से एक-एक ग्रह के बलवान रहने पर पंच महापुरूष राजयोग बनते हैं। ये स्थान, दिक्, काल, चेष्टा आदि बलों से युक्त हों, स्वोच्चगत या स्वक्षेत्री उक्त ग्रह केंद्र भावांें में स्थित हों, तो गुरु से हंस, शनि से सस, मंगल से रूचक, बुध से भद्र तथा शुक्र से मालव्य पंच महापुरूष राजयोग की सृष्टि होती है। ऐसे योग वाले को क्रमशः हंस में पुखराज, सस में नीलम, रूचक में मूंगा, भद्र में पन्ना और मालव्य में हीरा बहुत लाभकारी सिद्ध होते हैं। इस कारण व्यक्ति इस प्रकार के रत्न धारण करके लाभान्वित हो सकते हैं। विभिन्न बीमारियों में भी रत्न बहुत लाभकारी होते हैं: यह वर्ण चिकित्सा ही है, जिसमें रत्न लाभकारी सिद्ध हुए हैं- हृदय रोग में माणिक्य (रूबी) लाभकारी है। इससे रक्त का संचालन ठीक गति से होता है तथा आॅक्सीजन भी हृदय के साथ रक्त को ठीक मात्रा में मिलती है। यदि शरीर में कैल्शियम की कमी हो, तो मोती लाभकारी है। यह हड्डी की कमजोरी, शरीर का दुबलापन, ज्वर तथा हृदय की धड़कन को भी नियंत्रित करता है। लाल मूंगा गर्भवती महिला को गर्भपात से बचाता है और पुरूष को जीवनशक्ति प्रदान करता है। यह ज्वर और पीलिया में भी लाभकारी है। गर्भवती महिला के लिए हरा पन्ना सुरक्षित प्रसव में सहायक है। यह दम्मे के रोग को भी कम करता है। हमारे महर्षियों ने अपनी खोज से यह निष्कर्ष निकाला है कि जिस वस्तु का रंग जितना गहरा होगा, वह उतना ही अधिक अपने गुण की अभिव्यक्ति करेगा। इसी सिद्धांत पर रत्नों का मूल्य है। रत्नों में रंग का घनत्व अधिक होने से वे अधिक लाभकारी सिद्ध हुए हैं और होते भी हैं। इसी सिद्धांत के अनुसार हमें लाभकारी रत्न धारण करना चाहिए। विभिन्न रत्नों को धारण करने के लिए उन ग्रहों के दिन, यानि मोती के लिए सोमवार, माणिक्य के लिए रविवार, मूंगे के लिए मंगलवार, पन्ना के लिए बुधवार, पुखराज के लिए गुरुवार, हीरे के लिए शुक्रवार और नीलम के लिए शनिवार उपयुक्त रहते हैं। यह भी अवश्य देख लें कि शुक्ल पक्ष हो और उक्त दिन 4, 8, 9, 14 तिथियां न हों। इन तिथियों में रत्न धारण जैसे शुभ कार्य वर्जित हैं। अब लाल किताब के अनुसार कुछ टोटकों का वर्णन किया जा रहा है, इनके पालन से असंख्य रोगों को लाभ हुआ है। उनका संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है: यदि किसी का सूर्य कर्म स्थान (दशम) में पीड़ित हो तो यह टोटका है कि बहते पानी में तांबे का सिक्का बहा देना लाभकारी रहेगा। प्रत्येक भाव में सूर्य अनिष्टकारी होने पर भिन्न-भिन्न टोटके दिये गये हैं। सभी का वर्णन करना संभव नहीं है यह सिद्धांत सभी ग्रहों के लिए हैं। इसी प्रकार यदि चंद्र पीड़ित हो तो मां का बीमार रहना मानसिक चिंता रहना, दम्मे आदि कष्ट हो सकते हैं। इसके लिए चांदी को बहते पानी में बहा देना अच्छा रहेगा। दूसरा टोटका यह भी है कि रात को दूध या पानी का एक बर्तन सिरहाने में रखकर सो जायें और अगले सवेरे यह कीकर के वृक्ष पर डाल दें। चंद्रमा के कष्ट को दूर करने के लिए श्री शिव आराधना लाभकारी है। प्रत्येक भाव में पीड़ित चंद्र के लिए भिन्न-भिन्न टोटके हैं जैसे चंद्र तृतीय भाव में पीड़ित हो तो हरे रंग का कपड़ा कन्याओं को दान में देना आदि और चतुर्थ में चंद्र पीड़ित हो तो रात्रि को दूध नहीं पियें, हो सके तो सोमवार को पीड़ितों को दूध पिलायें। यदि मंगल अनिष्टकारी हो तो तंदूर की मीठी रोटी दान करें, रेवड़ियां पानी में बहा दें या मीठा भोजन दान करें। मंगल के लिए बजरंग बली जी की आराधना करें और प्रसाद चढ़ाकर ग्रहण करें। बुध अनिष्ट रहने पर कौड़ियों को जलाकर उनकी राख नदी में उसी दिन बहा दें और तांबे के पैसे में छेद करके पानी में बहा दें, या बुध से संबंधित वस्तुएं दान करें, जैसे हरी मूंग, हरा कपड़ा, चांदी। बुध के कष्ट दूर करने के लिए श्री दुर्गाजी की आराधना ”श्री दुर्गा सप्तशती“ का पाठ करना बहुत लाभप्रद रहेगा। यदि हो सके तो नाक छिदवाएं। महिलाएं यह काम सरलता से कर सकती हैं। यदि बुध के कारण कोई रोग हो तो कोला फल (पेठा बनाने के काम आने वाला फल) किसी देवी के मंदिर में दान करें। पीपल का वृक्ष गमले में लगा कर परिक्रमा करें। गुरु की वस्तुएं जैसे चना दाल, हल्दी साबुत, केसर, तांबा (सोने की जगह), पीले फूल, केसरिया कपड़ा गुरुवार के दिन दान करें। शुक्र के अनिष्टकारी होने से अपने भोजन में से कुछ भोजन निकाल कर गाय को खिलाएं। गाय को घास (चारा) खिलाएं। शुक्र से संबंधित वस्तु दान करें और श्री महालक्ष्मी जी की आराधना करें। शनि कष्टकारी होने पर मछलियों को आटा खिलाएं। कौवों को अपने खाने में से कुछ खिलाना लाभप्रद रहता है। शनि से संबंधित वस्तुएं दान करें और शिवजी की पूजा-आराधना करें। केतु के अनिष्टकारी रहने पर काले कुत्ते को खाना खिलाना, श्री गणेश जी की पूजा, आराधना करना लाभप्रद रहता है। यदि आपके लड़के का व्यवहार आपके साथ ठीक नहीं है तो उपर्युक्त विधि से कुत्ते को रोटी खिलाएं और मंदिर में कंबल दान करें। राहु यदि किसी जन्मपत्री में अनिष्टकारी हो तो नारियल को पानी में बहा दें और जौ को दूध में धो कर तथा कोयले को पानी में बहाने से लाभ होगा। राहु की वस्तुएं ”जमादार“ को दान में देने से भी लाभ होगा। यदि किसी पर अपराध प्रकरण चल रहा हो तो वह भी उपर्युक्त विधि से ही उपाय करें। प्रकरण में लाभ होगा। उपर्युक्त उपाय विधि दिन में ही करें, रात में नहीं करें। मान्यता यह भी है कि किसी का शनि पंचम स्थान में हो तो मकान बनाते समय उसके पुत्र को कष्ट होगा। यह सिद्धांत उसके अपने मकान पर लागू होगा, उसके पुत्र द्वारा बनाये गये मकान पर लागू नहीं होगा। यदि किसी पत्री में सूर्य, शनि साथ हों और पत्नी का स्वभाव ठीक नहीं हो, तो पत्नी के वजन के बराबर ज्वार दान करें। इससे लाभ होगा। सिद्धांत बहुत अच्छे हैं और उनके द्वारा बताये गये उपाय अधिकतर बहुत लाभकारी सिद्ध हुए हैं।