'माया'.....स्व अश्रितम रक्षनम करोति यह माया .........संत-महात्मा सब कहते हैं ये सब माया का बंधन है। सारा संसार माया के वशीभूत है। आखिर ये माया है क्या। हिन्दू धर्म के ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु को मायाधिपति कहा गया है। अर्थात वे माया के स्वामी माने जाते हैं।
जब द्वापर युग में भगवान विष्णु ने कंस के संहार और पापियों का नाश करने के लिए पृथ्वी पर कृष्ण के रूप में अवतार लिया तब उन्होंने अपने अनन्य भक्त नारद को माया की महिमा बताई जो इस प्रकार है-
नारदजी और भगवान कृष्ण में वार्तालाप चल रही थी। नारदजी ने पूछा- भगवन आप मायाधिपति कहलाते हैं। बताइए आखिर ये माया है क्या?भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- नारद आज मैं तुम्हारे सामने माया के रहस्य का वर्णन करूंगा। चलो महल से बाहर निकलकर तुम्हें बताता हूं।
भगवान कृष्ण और नारदजी महल से आगे चलने लगे, तभी भगवान ने नारदजी से कहा- मुनि नारद, मुझे बहुत तीव्र प्यास लगी है, क्या आप सामने वाले कुएं से जल भरकर ले आएंगे।
भगवान कृष्ण और नारदजी महल से आगे चलने लगे, तभी भगवान ने नारदजी से कहा- मुनि नारद, मुझे बहुत तीव्र प्यास लगी है, क्या आप सामने वाले कुएं से जल भरकर ले आएंगे।
नारदजी ने कहा- अवश्य प्रभु। नारदजी जल लेने के लिए कुएं के समीप गए। तभी उनकी दृष्टि वहां जल भर रही एक सुंदर स्त्री पर पड़ी। नारद उसके रूप को देखकर उस पर मोहित हो गए। जब वह स्त्री जल भरकर जाने लगी तब नारदजी भी उनके पीछे चल दिए।
वह स्त्री गांव के एक घर में गई। नारदजी घर में जाने लगे, तभी एक वृद्ध ने उन्हें रोका और पूछा- आप कौन हैं।
नारदजी ने कहा- मैं भगवान विष्णु का परम भक्त नारद हूं।
नारदजी ने कहा- मैं भगवान विष्णु का परम भक्त नारद हूं।
नारदजी ने उस वृद्ध से पूछा- आप कौन हैं और स्त्री आपकी क्या लगती है?
वृद्ध ने कहा- मैं इस गांव का सरपंच हूं और यह मेरी इकलौती पुत्री है।
नारदजी ने कहा- क्या आप अपनी पुत्री का विवाह मुझसे करेंगे?
वृद्ध ने कहा- ठीक है, लेकिन मेरी एक शर्त है।
नारदजी ने पूछा- कौनसी शर्त?
वृद्ध ने कहा- मेरी लड़की से विवाह करने के बाद तुम्हें मेरे पास रहना पड़ेगा और गांव का सरपंच बनना पड़ेगा।
नारदजी ने कहा- ठीक है।
विवाह हो गया। नारदजी गांव के सरपंच बन गए। नारदजी खुशी से अपना जीवन व्यतीत करने लगे। उनके यहां पुत्र का जन्म हुआ। फिर एक पुत्री का जन्म हुआ। नारदजी सोचने लगे कितना खुशहाल जीवन है।
एक दिन अचानक गांव में भयंकर बाढ़ आई। सारा गांव जलमग्न हो गया। नारदजी ने सोचा कि इस गांव से बाहर निकलना चाहिए। उन्होंने एक युक्ति निकाली। लकड़ी के दरवाजे पर अपने पूरे परिवार को बिठा लिया और पानी पर तैरने लगे। अचानक उनकी पुत्री बाढ़ के पानी में गिर गई, उसे बचाने की कोशिश करते इतने में पुत्र गिर गया। पुत्र का विलाप कर ही रहे थे कि पत्नी भी पानी में गिर गई।
नारदजी दुखी हो गए और रोने लगे... तभी भगवान कृष्ण ने उन्हें जगाया- नारद उठो, तुम्हें मैंने कुएं से पानी लेने के लिए भेजा था ना।
नारदजी ने कहा- प्रभु, मैं समझ गया क्या होती है माया!........
Pt.P.S.Tripathi
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