Wednesday, 15 April 2015

भारतीय राजनीती की जबरदस्त भविष्यवाणी ..


१.....दिल्ली की हार के बाद बैकफुट पर आई भारतीय जनता पार्टी में भयंकर खलबली संभव मामला विघटन तक जा सकता है
२.....दिल्ली की हार के बाद कांग्रेस में भी भारी बमचक के आसार .......शायद नए नेतृत्त्व की खोज शुरु हो यानि कांग्रेस पुनर्गठन की ओर
3.....दिल्ली की हार के बाद देश के सभी प्रदेशो के काम काज पर असर संभव.....यानि राष्ट्रव्यापी अरविन्द फैक्टर
४......केंद्र सरकार बहुत जल्द ही तीन तरफ़ा जबरदस्त आंदोलनों से घिर सकती है अन्ना का भूमि अधिग्रहण कानून केखिलाफ ....रामदेव का काले धन के खिलाफ ..और कजरी का दिल्ली को संपूर्ण राज्य का दर्ज़ा दिलवाने के लिए ...
५......राजनीती का ध्रुवीकरण यानि छोटी राजनैतिक पार्टिया भी सिकुडेन्गी....
६......राजनैतिक सरोकारों या मुद्दों में बड़ा परिवर्तन यानि स्मार्ट सिटी का सपना अधुरा रह सकता है .....वाही बिजली पानी स्वस्थ्य शिक्षा रोजगार अर्थनीति विदेश निति सांप्रदायिक सौहार्द ,आदि मुद्दे महत्व पूर्ण होगा
७....एन डी ए और यू पी ए को मजबूत करने की कोशिश होगी यानि राजनीती का यू टर्न आइये एक बार देखे क्यों ये मुद्दे उठ सकते है? या उठ रहे है ?या उठने वाले है? जिसके लिए भर्ती राजनीती के पार्टी के वरिष्ठजनो से विमर्श कर इसका समाधान निकालना होगा ......
स्वतंत्र भारत की कुंडली में लग्र वृषभ और राशि कर्क है, लग्रस्थ राहु है जिसके च लते जनहित की नीतियों का शीर्षासन आजतक हमने देखा, स्वतंत्रता के बाद से लगभग ७० वर्ष में सरकारों की मंशा चाहे जो रही हो, पर धरातल में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, भयानक जनसंख्या विस्फोट, अपराध, सामाजिक विषमता, आर्थिक विषमता, क्षेत्रवाद, भाषावाद और जातिवाद ने बेतहाशा पांव पसारे। मतलब बहुत साफ है, कोई तो वजह रही होगी, वर्ना आप यूं बेवफा न होते! और आज भी भारत की कुंडली को देखने पर लगता है कि यह सरकार भी विकास के मुद्दे पर बड़े उद्योगपति घरानों के गोद में बैठी हुई है, और सर्वहारा फिर लावारिस सा अपनी पहचान खोज रहा है। सरकार के बड़े-बड़े वादे और संभवत: जनता को मूल दर्द से भटकाने की सरकारी कोशिश से लगता है कि सरकार का व्यक्तिगत भी ऐजेंडा है जो लोगों को समझ में आना चाहिए। जबरदस्त औद्योगिक विकास की महत्वाकांक्षा लिये सरकार भूमिअधिग्रहण कानून और पर्यावरण से संबंधित कानूनों में जिस तरह बदलाव लेकर आ रही है, वो फिर किसी अतिवाद का शिकार हो सकती है। इस समय भारत की कुंडली के गोचर के अनुसार २४ जनवरी जब मैं यह लेख लिख रहा हूं तब दशम स्थान में शुक्र मंगल, पांचवे स्थान में राहु, तीसरे स्थान में बृहस्पति, भाग्य स्थान में सूर्य-बुध, ग्यारहवे स्थान में चंद्र-केतु हैं। अमेरिका के सबसे ताकतवर व्यक्ति दिल्ली पहुंचने वाले हैं, पूरा देश रेड कार्पेट बिछाये बैठा है। पूरा मीडिया कार से लेकर कारनामे का बखान कर रहा है। ऐसे में देखने की बात होगी कि देश का भविष्य कैसा है।
ग्रहीय गणना करें तो एकादशेश तीसरे स्थान में है, सरकार औद्योगिक विकास चाहती है, तृतीयेश केतु के साथ एकादशस्थ है, संकल्पनिष्ठा भी पूरी है, ताकत भी पूरी है परंतु भाग्येश शनि सप्तम स्थान पर बैठकर अपने भाव को पूर्ण दृष्टि रखते हैं। यानि कुछ गड़बड़ होगी। ये शनि दशमेश भी हैं यानि कुछ भारी गड़बड़। शनि को न्याय का स्वामी मानते हैं, यहां यह सांस्कृतिक विरासत का भी स्वामी है। क्या देश में समरसता खण्डित होने वाली है? क्या देश अपने लक्ष्य से ईतर किसी दूसरी परेशानी में फंसने वाला है? क्या देश में विघटनकारी शक्तियां कुछ भयानक साजिश कर रहीं हैं, क्या सरकार इससे अनजान हैं? कुछ ऐसा ही होने वाला है। या विकास की गरज से बनाये कानूनों का कुछ लोगों द्वारा दुरूपयोग होने वाला है। कुछ तो ऐसा है जिससे डगर इतनी आसान नहीं रहने वाली। मैं निराशावादी नहीं, और भय फैलाने वाला भी नहीं। अपितु सावधान जरूर हूं और वक्त के आगे देखने की कोशिश करता हूं। आने वाले दिनों में सरकार को इन दोनों ही खतरों से सावधान रहना होगा। शायद यही वे कारण होंगे जो भविष्य में राजनीति का दूसरा केंद्र निर्मित करेंगे। असल में सरकार के पक्ष के कुछ लोग और सरकार के विरोध के कुछ लोग समरसता को भंग करने की भयानक साजिश कर रहे हैं। इसका परिणाम भले ही कुछ हो, पर वह परिणाम तो नहीं आयेगा, जो सरकार चाहती है। सरकार मेरी नजर में इस वक्त अपने मूल स्वाभाव निर्पेक्षता के मूल बिंदु से हट रही है। चाहे वह अपने राजनैतिक सांगठिक मित्रों की वजह से हो या अपने औद्योगिक मित्रों की वजह से। मसला सावधान रहने का है वर्ना देश में राजनीति में पुन: नेतृत्व विकेंद्रित हो सकता है। यहां पर भारत के दूसरे नेतृत्व पर चर्चा करना भी जरूरी है, जिन्होंने बीते दिनों में भारतीय जनतंत्र को प्रभावित किया था। एक थे बाबा रामदेव, दूसरे अन्ना हजारे और तीसरे और इनमें महत्वपूर्ण अरविंद केजरीवाल।
भारतीय राजनीति में महात्मा गाँधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, जयप्रकाश नारायण सरीखे जनता में प्रभाओ शाली नेताओं के नाम की तरह वर्ष २०१४-२०१५ अरविंद केजरीवाल का नाम भी शूमर होगा जिनकी बातों से प्रभावित हो कर देश ने क्रांति का इतिहाश लिखा बेशक इस क्रांति में बहुत लोग शामिल थे और मेरी नज़र में इस क्रांति की स्क्रिप्ट अरविंद केजरीवाल ने लिखी थी तत्कालीन सत्ताशीन कुछ बड़े नेताओं नें मुहिम भी चलाई पर वे नाकाम रहे| अरविंद केजरीवाल चांटे खाकर, भयानक राजनैतिक साजिशों का शिकार होकर भी अत्यंत सहज भाव से भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार और पूंजीवादियों के खिलाफ और गरीब जनता के पक्ष में दृढ़तापूर्वक खड़ा हो तो वह महात्मा गांधी के अलावा सिर्फ अरविंद केजरीवाल हो सकते हैं। हालांकि देश का एक वर्ग इन्हें शायद न स्वीकार करता हो, पर इनके तर्कों के आगे बड़े-बड़े राजनेता नतमस्तक हो जाते हैं। पिछले साल अन्ना, अरविंद और रामदेव बाबा की तिकड़ी एक पूरे राष्ट्रीय पार्टी पर भारी पड़ी मगर तीनों का दुर्भाग्य के इनमें से कोई भी इसका राजनैतिक लाभ नहीं ले पाया क्योंकि तीनों के पास राजनैतिक संगठन की कमी थी। राजनीति के उस्तादों ने सिविल सोसायटी के संगठन में पलीता लगाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन तो कम कर दिया मगर अपनी विश्वसनीयता भी खो बैठे। उधर रामदेव अतिउत्साह में काले धन पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन करके भाजपा के पक्ष में जनता को करने में सफल तो हुये परंतु उनके इस वादे की इतनी किरकिरी हुई कि वे भी अपनी विश्वसनीयता पुन: स्थापित करने में लगे हुये हैं और गाहे-बगाहे सरकार को धमकाते रहते हैं। बचे केजरीवाल, ये इकलौते दूरदृष्टा निकले जिन्होंने वक्त की नजाकत समझा, और एक राजनैतिक पार्टी की स्थापना करदी। मगर सबकुछ इतना जल्दी हुआ कि बहुत सारी जरूरी राजनैतिक सावधानियां नहीं रख पाए और इस पार्टी के आस्तीन में ही बहुतेरे महत्वाकांक्षी लोग पहुच गये जो आगे चल कर पार्टी को हानि पहुचाई ,आंदोलन और विश्वसनीयता तीनों को काफी बट्टा लगाया। बहरहाल, उन लोगों का तो कुछ नहीं पर अरविंद केजरीवाल अपनी सहिष्णुता के साथ अपनी खोई हुई साख पुन: स्थापित करने में लगे हुये हैं। भारत के राजनैतिक पंडित जानते हैं कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में वो चमक नहीं है। समाजवादी अपने प्रदेशों में अव्यवस्था (गुंडई) को नहीं संभाल पा रहे हैं और साथ ही वे वर्तमान विकास की राजनीति के ईतर दूसरे तरीकों में अपना भविष्य ढूंढ़ रहे हैं। ..और बहुजन समाजवादी नेतृत्व भी उत्तर में गलत राजनैतिक प्राथमिकताओं के कारण गैरमनुवादियों और अल्पसंख्यकों पर से अपना सम्मोहन खो चुके हैं। पूरव का कम्यूनिजम अपनी अदूरदर्शी नीतियों और विकास की औद्योगिक नीति के खिलाफ राजनीति कर अपना अस्तित्व खतरे में डाल चुका है। और वर्तमान सरकार पूंजीपतियों के गलबहियां कर रही है। ऐसे में मध्यम और निम्र वर्ग का राष्ट्रीय नेतृत्व शून्य है यानि इनकी बात करने वाला कोई नहीं। आने वाले दिनों में भूल-भुलैया वाली सरकार यदि वास्तविक राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित नहीं करती और केवल आतामशलाघा में जीती है या बहुत जल्दी प्रोपेगेंडा पर आधारित राजनीति की जगह, वास्तविक जनकल्याण की नीतियों पर जैसे मंहगाई, पेट्रोल-डीजल, सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, सुरक्षा, विदेश नीति, कृषि नीति, जनसंख्या, बेरोजगारी, सामाजिक शांति, सामाजिक समरसता ,भ्रस्टाचार, काला धन और न्याय पर ध्यान केंद्रित नहीं करती और भाजपानीत राज्यों में सुशासन और विकास का सपना पूरा नहीं होता तो पक्का जानिये कि आने वाले ढाई वर्षों में जब नीतियों के परिणाम आने शुरू होंगे तो सरकार मीडिया के निशाने पर होगी। और जाने-अनजाने भाजपा के ईतर नेतृत्व पनप सकता है। असल में अतिआत्म विश्वास में सरकार ने शुरुवाती ९ महीनो में ज्यादातर देश को या किसीको खास को विश्व गुरु बनाने की खास मुहीम चलायी .....और जिन मुद्दों को विपक्ष की कमी बता कर सत्ता में आये वे मुद्दे सर्कार के गठन के साथ ही गायब हो गए .....वही उच्च के गुरु बहुत ऊंचे मानदंडो के साथ दुनिया को चलने का निर्देश देते है .....
इसी कारण दिल्ली का परिणाम सरकार के लिए बहुत चौकाने वाला था .....असल में कुछ ज्यादा ही आक्रामक होती जारही भारतीय जनता पार्टी के तेवर दिल्ली चुनाव के बाद नरम पडगए ....और ईसी कारण सभी बहुत ही विनम्र दिखाई पड़ने लगे ......पर अब पछताए होत का ??????जब ......चुग गयी खेत

Pt.P.S Tripathi
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