Monday 13 April 2015

पूजन में सम्मिलित द्रव्य का धार्मिक एवं वैज्ञानिक आधार



भारतीय दर्शन में पूजा एवं अनुष्ठान का विशेष महत्व है साथ ही पूजन में शामिल द्रव्य का भी विशेष महत्व माना गया है जोकि जीवन में मानसिक तथा शारीरिक के अलावा साकारात्मक उर्जा हेतु भी उपयोगी है। वेदों में माना जाता है कि अनुष्ठान ना केवल करने से बल्कि सम्मिलित होने से भी जीवन में पुण्य बढ़ता है। पूजन हेतु कलश स्थापन से लेकर आरती तक की अपनी उपयोगिता निर्धारित है। पूजन के दौरान स्थापित कलश में माना जाता है कि कलश के अंदर खाली स्थान में शिव का वास होता है, जोकि पूजन के दौरान शिव से एकाकार होने में सहायक होता है। साथ ही किंवदंति है कि समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था इसलिए कलश में जल रखने से सभी देवताओं का वास माना जाता है। कलश के उपर स्थापित नारियल के संबंध में मान्यता है कि नारियल की शिराओं में सकारात्मक उर्जा का भंडार होता है जिसे पूजन के समय उपयोग करने से नारियल की शिराओं से उर्जा तरंगे कलश के जल में पहुंचती हंै जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं। इसलिए नारियल को श्री फल माना जाता है।
तांबे का पात्र उपयोग करने के पीछे धारणा है कि तांबे में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता होती है जिससे मन में सात्विक गुणों का समावेश होता है। सप्तनदियों का जल इसलिए उपयोग किया जाता है कि मान्यता है कि सभी ऋषि मुनि द्वारा इन नदियों के तट पर तपस्या कर उस वातावरण को ईश्वरमय कर दिया गया है। सुपारी, रजोगुण को समाप्त करने की तथा सिक्का दान का प्रतीक होता है, साथ ही पान के पत्ते को नागबेल कहा जाता है, माना जाता है कि पान भूलोक और ब्रम्हलोक को जोडऩे वाली कड़ी है इसलिए देवता की मूर्ति से उत्पन्न सकारात्मक उर्जा पान के डंठल द्वारा ग्रहण की जाती है। तुलसी को अमृततुल्य माना गया है, साथ ही धी की ज्योति आत्मा की ज्योति का प्रतीक मानी जाती है। इस प्रकार पूजन में प्रयुक्त सामग्री देवता तथा मनुष्य के बीच की कड़ी है। साथ ही शरीर के पांचों भागों अर्थात पंच-प्राणों की सहायता से ईश्वर का पूजन तथा आरती, मन तथा शरीर में सकारात्मक गुणों को विकसित करने में सक्षम होते हैं।

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500

Feel Free to ask any questions in

No comments: