Monday 13 April 2015

एैसे बनते और टूटते हैं रिश्ते



कहा जाता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और सामाजिक है तो रिश्ते भी होंगे ही। वैसे तो प्रेम एक ऐसी भावना है जो मनुष्य तो मनुष्य, मूक पशुओं तक से रिश्ता जोड़ देती है। रिश्ते भी कई प्रकार के होते हैं। इनमें सबसे बड़ा रिश्ता है परिवार का, जो आपको कई-कई रिश्तों में बांध देता है।
एक बच्चा जब इस दुनिया में आता है तो वह किसी को मां, किसी को पिता, किसी को भाई, बहन, चाचा, मामा, दादा-दादी या नाना-नानी बनाता है। कुछ रिश्ते केवल कामकाजी होते हैं, और कुछ ऐसे कि जिनका कोई नाम नहींं होता पर वे नामधारी रिश्तों से ज्यादा पक्के होते हैं। कुछ रिश्ते हमें जन्म से मिलते हैं और कुछ हम बनाते हैं, जिनमें सबसे ज्यादा अहम होता है पति-पत्नी का रिश्ता, जो कहा जाता है कि सात जन्मों का होता है। कुछ रिश्ते मुंहबोले भी होते हैं। कुछ रिश्ते केवल विश्वास से बनते हैं, और जैसे ही विश्वास टूटा, रिश्ते भी बिखर जाते हैं। कुल मिलाकर रिश्ते, एक ऐसा चक्रव्यूह रचते हैं जिसमें हम में से हर एक कभी न कभी उलझता ही है। हर तरह के रिश्तों में कभी न कभी दरार आ ही जाती है। इस बात से कोई फर्क नहींं पड़ता कि आपका संबंध कितना अंतरंग और मजबूत है। आमतौर पर अलग-अलग विचार और एक दूसरे से अलग-अलग अपेक्षाओं के कारण रिश्तों में खटास पैदा हो जाती है। रिश्तों के शुरुआती दौर में ही यह पनपने लगती है और समय के साथ-साथ रिश्ते में दरारें दिखने लगती हैं। यह महत्वपूर्ण नहींं कि रिश्तों में खटास पैदा होने के बाद बातचीत की शुरुआत कौन करता है। महत्वपूर्ण यह है कि आप एक स्वस्थ बातचीत के जरिए मामले को किस तरह सुलझा सकते हैं। ज्योतिष में मान्य बारह राशियों के आधार पर जन्मकुंडली में बारह भावों की रचना की गई है। प्रत्येक भाव मनुष्य जीवन के विभिन्न रिश्तों को दर्शाता है।
1. प्रथम भाव: यह लग्न भी कहलाता है। इस स्थान से व्यक्ति के स्वयं का शरीर, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है। इस भाव से व्यक्ति का अपने रिश्तों के प्रति समर्पण तथा जुड़ाव देखा जाता है।
2. द्वितीय भाव: इसे धन भाव भी कहते हैं। इससे व्यक्ति के परिवार के सभी लोगों से रिश्ता तथा उस रिश्ते का सुख के बारे में जाना जाता है।
3. तृतीय भाव: इसे पराक्रम का सहज भाव भी कहते हैं। इससे जातक के छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पड़ोसियों आदि से रिश्तों का विचार किया जाता है।
4. चतुर्थ स्थान: इसे मातृ स्थान भी कहते हैं। इससे मातृसुख, मित्र आदि का विचार किया जाता है।
5. पंचम भाव: इसे सुत-भाव भी कहते हैं। इससे संतति, बच्चों से मिलने वाला सुख, प्रेम संबंध का विचार किया जाता है।
6. छठा भाव: इसे शत्रु या रोग स्थान भी कहते हैं। इससे जातक के शत्रु, मामा-मौसी का सुख, नौकर-चाकर आदि का विचार किया जाता है।
7. सातवाँ भाव: विवाह सौख्य, जीवनसाथी का स्वभाव, पार्टनर से रिश्ता आदि का ज्ञान इस भाव से होता है।
8. आठवाँ भाव: इस भाव को मृत्यु स्थान कहते हैं। इससे आयु निर्धारण, और जातक के जीवन में आने वाले दुख का पता चलता है।
9. नवाँ भाव: इसे भाग्य स्थान कहते हैं। यह भाव गुरु, भाई की पत्नी, दूसरा विवाह आदि के बारे में बताता है।
10. दसवाँ भाव: इसे कर्म स्थान कहते हैं। इससे बॉस, सामाजिक सम्मान, पितृ सुख, सासू माँ आदि के बारे में पता चलता है।
11. ग्यारहवाँ भाव: इसे लाभ भाव कहते हैं। इससे मित्र, बहू-जँवाई के बारे में जाना जाता है।
12. बारहवाँ भाव: इसे व्यय स्थान भी कहते हैं। इससे चाचा, पिता के रिश्ते और गुप्त शत्रु का विचार किया जाता है।
रिश्तों का लाभ प्राप्त करने के लिए सूर्य का लग्न, चौथे, साँतवे या दसवें घर में होना जरूरी है। यदि वह मेष अथवा मकर राशि का भी हो तो सोने पे सुहागे का काम करता है। सिंह राशि का पाँचवें घर होना जरूरी है। चन्द्रमा, धरती व सूर्य की राशि का व धनु राशि का हो तो अधिक तन्मयता से सफऱ के किसी भी मुकाम पर, छोटी से छोटी मुलाकात, आत्मिक रिश्ते बना सकती है। और ये रिश्ते वो सब दिला सकती है जिसकी कल्पना भी साधारण रूप में नहींं कर सकते हैं।
किंतु अगर किसी रिश्ते में कटुता आ गई हो या रिश्ता टूटने की कगार पर आ गया है तब सामान्य प्रयास करने के साथ ज्योतिषीय विश£ेषण भी किया जाना आवश्यक है जिसमें बैठकर शांत मन से सोचें कि आपके बीच ऐसा क्या हुआ था जो ऐसी स्थिति पैदा हो गई है। अपने आपसी मतभेदों को प्यार और समझदारी से सुलझाने की कोशिश करें। और इरादा करें कि उन्हें फिर नहींं दोहराएंगे। आपकी अपने उस रिश्तें से आपको क्या अपेक्षाएं हैं और यह भी जानने का प्रयास करें कि आपसे सामने वाले को क्या परेशानी आ रही है। बहस में ना उलझें और विवाद को सुलझाने का प्रयास करते हुए अपनी गलतियों पर माफी मांगने में ना हिचकें।
अपने रिश्तों को अगर बचाना है तो दोनों का खुल कर बात करना बहुत जरूरी है। इस तरह दोनों को बेहतर तरीके से सोचने का मौका मिलेगा। इस बातचीत के दौरान अपने अतीत को ना कुरेदें और ना ही उसे दोहराएं। अगर आप उसे दोहराएंगे तो इससे आप दोनों ही आहत होंगे। पहले किसने क्या किया, इस बहस में ना उलझें। याद रखें, आप बात बनाने के लिए बैठे हैं बिगाडऩे के लिए नहींं। आपको अपने रिश्तों को नीचा नहींं दिखाना है। आपको उन बातों का पता लगाना है जिनसे आपके संबंधों में दरार आई है। इस बात पर आरोप-प्रत्यारोप ना करने लग जाएं। जब संबंधों में दरार आ जाती है तो उस रिश्ते के लिए भावनाएं या तो खतम हो जाती है या फिर बुरी भावनाएं आती है। ऐसे में अगर आप रिश्ता संभालने में असमर्थ हैं तो बेवजह रिश्ते को ना ढोएं। रिश्ते बड़े नाजुक होते हैं, इन्हें प्यार, सामंजस्य और समझदारी से निभाने की जरुरत होती है।
कई बार रिश्तों में आप कितना भी प्यार या सामंजस्य रखने के बाद भी रिश्तों में कटुता दिखाई देती है वहीं कई रिश्ते, औपचारिक होकर भी सुख देते हैं, इसका ज्योतिषीय कारक है कि जब किसी भी रिश्तें का भाव या भावेश अपने उच्च स्थान या मित्र राशि अथवा शुभ हो तो वह रिश्ता आपके लिए लाभकारी तथा सुखदायी होता है। वहीं पर कुछ रिश्तें अगर विपरीत कारक बैठें हों या नीच अथवा शत्रु भाव में हो जायें तो वे रिश्तें दुख तथा हानि का कारण बनते हैं। अत: अगर आपके लाख कोशिशें के बाद भी कोई रिश्ता आपके लिए शुभ ना हो रहा हो तो ज्योतिषीय विश£ेशण कर उन रिश्तों के लिए उचित ज्योतिषीय निदान करने के उपरांत अपने रिश्तो को नया रूप देना चाहिए। जैसे कि कभी पड़ोसियों से रिश्ता बिना कारण खराब हो रहा हो तो अपनी कुंडली में देखें कि तृतीयेश की स्थिति कैसी है और उसकी दशा अथवा अंतरदशा तो नहीं चल रही है। अगर उस भाव या भावेश की स्थिति खराब हो अथवा छठे, आठवे या बारहवे बैठा हो तथा गोचर में ग्रहों की दशा या अंतरदशा चल रही हो तो उन ग्रहों की शांति कराने से उस रिश्तें में मजबूती लाई जा सकती है। इस प्रकार कुंडली के बारह भावों में से जिस भाव की स्थिति खराब हो उसे ग्रहों की शांति, ग्रह मंत्रों का जाप अथवा ग्रहों के वस्तुओं के दान से उस स्थान से जुड़े रिश्तों को बेहतर किया जा सकता है।

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500

Feel Free to ask any questions in

No comments: