सबसे पहले देखें कि हमारे वेदों में इन पंचशीलों का कैसे उल्लेख किया गया है और इनका किस प्रकार से प्रयोग कर बेहतर जीवन किया जाए तथा जीवन में सफलता प्राप्त किया जाए। बेहतर है कि पहले व्यावहारिक पंचशीलों को व्यवहार में शामिल रखा जाए। पारंपरिक योगसाधना में शामिल पंचशीलों को सुबोध अर्थों में समझना चाहें तो उन्हें श्रमशीलता, मितव्ययिता, शिष्टता, सुव्यवस्था और सहकारिता के नाम दे सकते हैं। इसी प्रकार ज्योतिषीय विश्लेषण में किसी भी जातक की कुंडली में लग्र, तीसरा, सांतवा, भाग्येश और एकादश स्थान अर्थात यह पांच स्थान किसी भी जातक के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। पंचशीलों के नाम और ज्योतिषीय अनुसार उनके विश£ेषण इस प्रकार हैं:
श्रमशीलता-
आरामतलबी की बजाए श्रम करने में बड़प्पन अनुभव करें। तत्परता और तन्मयता भरे परिश्रम से जोड़ कर दिनचर्या बनाई जाए। इसके लिए किसी भी जातक की कुंडली में उसके, उसकी दिनचर्या का भाव होता है एकादश स्थान और अगर एकादश स्थान तथा एकादशेश मजबूत तथा उच्च का हो या स्वग्रही अथवा मित्र भाव में विराजमान हो या मजबूत ग्रहों के साथ संबंध स्थापित करे तो उस व्यक्ति का स्वभाव ही नियमित होता है। साथ ही वह अपने जीवन में परिश्रम करने का नियमित रूप से आदि होता है तथा जीवन में बेहद व्यवस्थित होता है। यदि इसके विपरीत किसी जातक की कुंडली में इसके विपरीत स्थिति बने तो उसे अपने एकादश स्थान तथा एकादशेश की स्थिति को सुधार करने की जरूरत होती है, जिसके लिए पहले ज्ञात कर लें कि आपका एकादश क्या है और उस ग्रह के अनुरूप उचित उपाय आजमायें तो जीवन में दिनचर्या व्यवस्थित होगी, जिससे आपके जीवन में सफलता का पहला पायदान प्राप्त होगा।
मितव्ययता-
अमीरी के प्रदर्शन से सम्मान नहीं मिलता, ईष्या ही उपजती है। लिहाजा कम खर्च में काम चलाते हुए सादा जीवन उच्च विचार की नीति को अपनाया जाए। जरूरतमंदों की सेवा में लगाएं। इसका ज्योतिषीय रूप है कि किसी जातक का तीसरा स्थान मन का कारक होता है और व्यक्ति मन से ही बड़ा या छोटा महसूस करता है अत: यदि मन के स्थान पर शुक्र, चंद्रमा, राहु जैसे ग्रह हों तो ऐसा व्यक्ति दिखावा पसंद होता है। यदि ऐसे ग्रह का स्वामी सूर्य हो और वह विपरीत स्थान पर हो तो ऐसे व्यक्ति को आडंबर या झूठा दिखावा करने की आदत होती है। अत: ऐसी स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए किसी भी जातक को अपने तृतीय स्थान के बारे में ज्ञात कर उस स्थान को शुभ या अनुकूल बनाने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए व्यवहार में मितव्ययता बरतने के साथ ग्रहों को अनुकूल बनाने के लिए उन ग्रहों की शांति तथा उचित उपाय का पालन भी करना चाहिए।
शिष्टता-
कहा जाता है कि शालीनता, ''बिना-मोल मिलती है, परन्तु उससे सब कुछ खरीदा जा सकता है। शिष्टता का कारक ग्रह शनि एवं स्थान लग्र स्थान से देखा जाता है। किसी भी जातक का अगर शनि विपरीत हो तो ऐसे व्यक्ति में अहंकार की भावना बलवती होती है, जिसके कारण उसके व्यवहार में शिष्टता कम हो जाती है साथ ही उसके जिद्द के कारण व्यवहार में अतिवादी होने से अशिष्टता का पुट आ जाता है अत: व्यवहार में शालीनता का समावेश करने के लिए शिष्टता तथा उदारतापूर्ण व्यवहार के साथ शनि को शांत करना आवश्यक है।
सुव्यवस्था-
समय, श्रम, मनोयोग, जीवनक्रम, शरीर, सार्मथ्य का सुनियोजन करें। उनका समुचित लाभ उठाया सके, इस प्रकार की सुव्यवस्था जीवन में बनाये रखना चाहिए। इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए अपने जीवन में व्यवस्थित तरीके से सभी कार्य पूर्व निर्धारित तरीके से करना चाहिए। इस प्रकार से कार्य करने के लिए जीवन में सारे दैनिक दैनिंदन कार्य सुचारू रूप से करने के लिए किसी भी जातक का एकादश स्थान जो कि दिनचर्या का भी स्थान होता है वह उच्च एवं बलि होता है, उस व्यक्ति की दिनचर्या नियमित तथा व्यवस्थित होती है। अत: अपनी कुंडली में एकादश स्थान का स्वामी तथा एकादश स्थान को बलवान करने के लिए उस स्थान के स्वामी एवं उस स्थान पर स्थित ग्रह को बलि बनाने के लिए उस ग्रह तथा ग्रह स्वामी के लिए उचित उपाय करना चाहिए।
सहकारिता-
मिल-जुलकर काम करना। परिवार, कारोबार, लोकव्यवहार में, सामंजस्य, साथ-साथ काम करने की प्रवृत्ति बनी रहे। एकाकी और नीरसता, निराशा भरे वातावरण से बचें। जीवन में सभी प्रकार से लोगो से सामंजस्य बनाये रखने के लिए सभी लोगो के साथ व्यवहारिक तौर पर निभाने के लिए सहकारिता का व्यवहार करने के साथ किसी भी जातक को उसके सप्तम स्थान तथा सप्तमेश की स्थिति तथा सप्तम स्थान पर बैठे ग्रह की स्थिति का आकलन करने के साथ ही विपरीत ग्रह स्थित ग्रहों की शांति कराने के साथ व्यवहार में नियंत्रण करना चाहिए।
इस प्रकार पंचशील व्यवहार तथा कुंडली के प्रमुख पंचग्रहों की स्थिति तथा व्यवहारिक संतुलन बनाकर जीवन में सफलता का प्रतिशत बढाया जा सकता है।
Pt.P.S Tripathi
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