गणेश भारत के अति प्राचीन देवता हैं। ऋग्वेद में गणपति शब्द आया है। यजुर्वेद में भी ये उल्लेख है। अनेक पुराणों में गणेश की विरुदावली वर्णित है। पौराणिक हिन्दू धर्म में शिव परिवार के देवता के रूप में गणेश का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक शुभ कार्य से पहले गणेश की पूजा होती है। गणेश को यह स्थान कब से प्राप्त हुआ, इस संबंध में अनेक मत प्रचलित है।
धार्मिक मान्यतानुसार हिन्दू धर्म में गणेश जी सर्वोपरि स्थान रखते हैं। सभी देवताओं में इनकी पूजा-अर्चना सर्वप्रथम की जाती है। श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। ये शिव और पार्वती के दूसरे पुत्र हैं। भगवान गणेश का स्वरूप अत्यन्त ही मनोहर एवं मंगलदायक है। वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चन्दन धारण करते हैं तथा उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं। वे अपने उपासकों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। एक रूप में भगवान श्रीगणेश उमा-महेश्वर के पुत्र हैं। वे अग्रपूज्य, गणों के ईश, स्वस्तिकरूप तथा प्रणवस्वरूप हैं।
अनन्त नाम
निम्नलिखित बारह नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इन नामों का पाठ अथवा श्रवण करने से विद्यारम्भ, विवाह, गृह-नगरों में प्रवेश तथा गृह-नगर से यात्रा में कोई विघ्न नहीं होता है।
सुमुख
एकदन्त
कपिल
गजकर्णक
लम्बोदर
विकट
विघ्ननाशक
विनायक
धूम्रकेतु
गणाध्यक्ष
भालचन्द्र
विघ्नराज
द्वैमातुर
गणाधिप
हेरम्ब
गजानन
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