Tuesday 14 April 2015

क्यों समझते हैं बच्चें अपने पिता को दुष्मन जाने क्या है इसका ज्योतिषीय कारण और निदान करें

क्यों समझते हैं बच्चें अपने पिता को दुष्मन जाने क्या है इसका ज्योतिषीय कारण और निदान करें-

वाल्मिकी ने कहा है कि
न तो धर्मचरणं किंचिदस्ति महत्तरम्।
यथा पितरि शुश्रूषा तस्य वा वचनक्रिपा॥
(पिता की सेवा अथवा उनकी आज्ञा का पालन करने से बढकर कोई धर्माचरण नहीं है।)
किंतु आज एक पिता अपने ही बच्चों का दुष्मन समझा जाता है इसका ज्योतिषीय कारण क्या है??? कालपुरूष की कुंडली में दसम स्थान को पिता का स्थान माना जाता है जिसका स्वामी शनि है, जोकि न्यायकर्ता, पालनकर्ता होता है वहीं संतान को पंचम भाव से देखा जाता है जोकि सूर्य होता है सूर्य अर्थात् राजा मतलब उसे सभी सुख-साधन चाहिए। अतः यदि किसी भी कुंडली में सूर्य-षनि की युति बने या किसी भी प्रकार से पंचम एवं दसम स्थान के ग्रहों के आपमें संबंध विपरीतकारक हो जाएं या राहु मंगल, शनि तथा सूर्य जैसे ग्रहों से दृष्ट हों तो ऐसे पिता अपने बच्चों के जीवन सुधारने के लिए अपना सब कुछ करने के बाद भी बच्चों का भला नहीं कर पाते और बुरे ही बने रहते हैं। इसी प्रकार यदि किसी की कुंडली में पंचमेष या पंचम भाव छठवे, आठवे या बारहरवे स्थान पर हो तो ऐसे जातक अपने संतान को लेकर जीवनभर परेषान होते रहते हैं।
एक पिता अपने सुख-दुख, अपनी खुषी को निछावर कर अपने बच्चों को सुविधा संपन्न बनाने, एक अच्छा कैरियर देने के लिए प्रयास रत रहता है। अपनी संतान को योग्य बनाने के लिए जी-जान से कोषिष करने और अनुषाासन के लिए प्रेरित करने के कारण बच्चे पिता की अनुशासनप्रियता व सख्ती के चलते पिता को क्रूर समझते हैं किंतु उनके प्रयास को नजरअंदाज कर देते हैं। किशोर बच्चों को सँभालना माता-पिता के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। माता के प्यार तथा पिता से छिपाकर बहुत सहयोग करने के कारण बच्चे माता के तो करीब रहते हैं किंतु एक पिता के योगदान को भुला देते हैं। जब बच्चे युवा उम्र की कठिनाईयों से जुझते हैं जिसमें अपने राह से भटक जाते हैं। वे नियमों का पालन करने में असमर्थ हैं। उन्हें मेहनत करने की भी आदत नहीं होती है, सब कुछ आसानी से चाहिए। उनमें यह प्रवृत्ति माता-पिताओं की अतिशय उदारता (बल्कि दरियादिली) से आती है, जहाॅ अपनी सन्तान को अधिकाधिक सुविधाएँ सुलभ कराने की कोषिष करते हैं जिससे बच्चे अपने जीवन में सफल हो सकें वहीं बच्चों के जीवन में अनुशासन का घोर अभाव देखा जा रहा है। बात-बात में उत्तेजित होना, अपषब्द का प्रयोग करना, कई बार मादक पदार्थों का सेवन करना, फ्लर्ट करना, कई बार चोरी की आदत होना, आर्थिक समृध्दि के झूठे प्रदर्शन के लिए चोरियां करना और शिक्षकों से दुर्व्यवहार करना आदि आज के बच्चों में पाये जाने वाले आम दुर्गुण हैं। पिता जब बच्चों की इन आदतों से वाकिफ होकर सुधारने का प्रयास करता है तो बच्चें अपने पिता को ही अपना दुष्मन समझने लगते हैं। उपाय हेतु शनि की शांति, मंत्रजाप तथा बच्चों को प्रारंभ से ही अनुषासन एवं आवष्यक सुविधा संपन्न बनाना तथा समय रहते दंडाधिकारी की तरह नियमों का पालन कराना चाहिए।

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