Wednesday 2 November 2016

छठ पर्व कथा

छठ को मन्नतों का पर्व भी कहा जाता है. इसके महत्व का इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इसमें किसी गलती के लिए कोई जगह नहीं होती. इसलिए शुद्धता और सफाई के साथ तन और मन से भी इस पर्व में जबरदस्त शुद्धता का ख्याल रखा जाता है. इस त्योहार को जितने मन से महिलाएं रखती हैं पुरुष भी पूरे जोशो-खरोश से इस त्योहार को मनाते हैं औऱ व्रत रखते हैं.
सूर्य उपासना और छठी मैया की पूजा के लिए चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व का इतिहास भी बहुत पुराना है. पुराणों में ऐसी कई कथाएं हैं जिसमें मां षष्ठी संग सूर्यदेव की पूजा की बात कही गयी है, फिर चाहे वो त्रेतायुग में भगवान राम हों या फिर सूर्य के समान पुत्र कर्ण की माता कुंती. छठ पूजा को लेकर परंपरा में कई कहानियां प्रचलित हैं.
राम की सूर्यपूजा
कहते हैं सूर्य और षष्ठी मां की उपासना का ये पर्व त्रेता युग में शुरू हुआ था. भगवान राम जब लंका पर विजय प्राप्त कर रावण का वध करके अयोध्या लौटे तो उन्होंने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को सूर्यदेव की उपासना की और उनसे आशीर्वाद मांगा. जब खुद भगवान, सूर्यदेव की उपासना करें तो भला उनकी प्रजा कैसे पीछे रह सकती थी. राम को देखकर सबने षष्ठी का व्रत रखना और पूजा करना शुरू कर दिया. कहते हैं उसी दिन से भक्त षष्ठी यानी छठ का पर्व मनाते हैं.
राजा प्रियव्रत की कथा
छठ पूजा से जुड़ी एक और मान्यता है. एक बार एक राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रयेष्टि यज्ञ कराया. लेकिन उनकी संतान पैदा होते ही इस दुनिया को छोड़कर चली गई. संतान की मौत से दुखी प्रियव्रत आत्महत्या करने चले गए तो षष्ठी देवी ने प्रकट होकर उन्हें कहा कि अगर तुम मेरी पूजा करो तो तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी. राजा ने षष्ठी देवी की पूजा की जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. कहते हैं इसके बाद से ही छठ पूजा की जाती है.
कुंती-कर्ण कथा
कहते हैं कि कुंती जब कुंवारी थीं तब उन्होंने ऋषि दुर्वासा के वरदान का सत्य जानने के लिए सूर्य का आह्वान किया और पुत्र की इच्छा जताई. कुंवारी कुंती को सूर्य ने कर्ण जैसा पराक्रमी और दानवीर पुत्र दिया. एक मान्यता ये भी है कि कर्ण की तरह ही पराक्रमी पुत्र के लिए सूर्य की आराधना का नाम है छठ पर्व

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